hotaks444
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लेकिन प्लान क्या था.. तो अब मैं अपना प्लान बताता हूँ.. विनोद का ध्यान हटते ही मैंने माया को देखते हुए कहा- आंटी आप ही कुछ बताओ न..
तो वो बोलीं- मैं क्या बताऊँ?
मैंने उनसे पूछा- जब आप लोग छोटे थे.. तो क्या खेलते थे?
बोलीं- बहुत कुछ.. पर उस जमाने में आज की तरह इतने साधन नहीं थे.. तो हम लोग कैरम, लूडो, लुका-छिपी, खो-खो, रस्सी-कूद, चोर-पुलिस और अंताक्षरी वगैरह खेलते थे।
‘वाह आंटी.. बहुत मज़ा आता होगा न..?’
वो बोलीं- हम्म.. हम लोगों के समय बस यही खेल खेले जाते थे.. जिसमें से अंताक्षरी में.. मैं हमेशा हार जाती थी।
माया की बात से मुझे याद आया कि मेरा दोस्त विनोद भी अपनी माँ की ही तरह था.. उसे गाने-वाने में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था… तो आंटी की इस बात से मुझे पक्का यकीन हो चला कि अब मेरा प्लान सफल हो जाएगा और प्लान इतना मज़ेदार था कि किसी भी हाल में आज या तो मेरे साथ माया रहेगी या रूचि.. जिसके सपने मेरी आँखों के सामने घूमने लगे थे।
बस फिर क्या था.. मैंने बोला- चलो फिर आज अंताक्षरी खेली जाए.. पर एक शर्त रहेगी..
तो सब बोले- वो क्या?
मैं बोला- वो बाद में.. पहले ये बोलो कि दूसरी टीम का कप्तान कौन बनेगा..?
तो रूचि ही ने तपाक से बोला- अगर तुम कप्तान हो.. तो मुझसे मुकाबला करो..
सभी हंस दिए.. वो ऐसे बोली थी कि जैसे झाँसी की रानी हो..
मैंने बोला- चलो ठीक है.. पर आंटी और विनोद.. किसकी टीम में रहेंगे.. इसके लिए टॉस होगा।
तो सभी ने सहमति जताई और मेरे पक्ष की बात हुई.. तो मैंने सिक्का निकाला और रूचि से बोला- देख.. अगर हेड आया तो विनोद मेरी ओर.. और अगर टेल आया.. तो तेरी ओर..
वो मुस्कुरा कर बोली- अरे कोई भी आए.. जीतूंगी तो मैं ही..
तो मैंने टॉस उछाला और वही हुआ.. जो मैंने सोचा था।
मैंने सोचा यह था कि विनोद मेरी ओर ही रहे और नसीब से हेड ही आया।
फिर सबसे पहले आंटी बोलीं- अच्छा अब शर्त भी तो बता.. जो तू बोल रहा था।
मैं बोला- बहुत ही आसान है.. अगर बिना शर्त के खेल खेला गया तो शायद मज़ा न आए.. बस इसलिए गेम में ट्विस्ट लाने के लिए किया जा रहा है।
तो विनोद बोला- अबे यार इतना घुमा क्यों रहा है.. सीधे बोल न.. करना क्या है?
मैं बोला- जो जीतेगा.. उस टीम का 1 मेंबर हारी हुई टीम के 1 मेंबर के साथ रहेगा.. उतने सभी दिन.. जितने दिन मैं यहाँ हूँ.. और हर रोज पार्टनर आल्टरनेट बदलते रहेंगे और उसे जीतने वाली टीम के मेंबर की हर बात माननी होगी।
आंटी बोलीं- पर कैसे?
मैंने समझाया- जैसे मैं जीतता हूँ.. तो आपको या रूचि में से कोई आज मेरे साथ ही रहेगा.. और जैसा मैं बोलूंगा.. वो उसको करना पड़ेगा और कल आप में से कोई दूसरा मेरे साथ.. इसी तरह जब तक मैं हूँ.. यही चलता रहेगा।
वो बोलीं- वैसे करना क्या-क्या पड़ सकता है?
मैं बोला- जैसे खाना बनाने में मदद.. सोते में साथ ही रहना.. और अगर रात को पानी मांगे.. तो उठ कर देना.. ये समझ लो.. बिना कुछ सोचे उसका आदेश मानना है।
विनोद बोला- यार मेरे से नहीं हो पाएगा.. साले कहीं तू हार गया तो सब मुझे भी करना होगा.. जो कि मुझसे नहीं होगा।
तो मैं बोला- अबे प्रयास करेगा या पहले ही हार मान लेगा।
वो फिर बोला- साले.. मेरे हिस्से का भी तू ही करेगा.. ये सोच ले.. मुझसे जितना बन पड़ेगा.. मैं बस उतना ही करूँगा।
जिस पर रूचि ने विनोद की बहुत चिकाई ली.. तो वो भी मुझे अपने मन में गरियाता हुआ ‘हाँ’ बोल दिया।
तभी रूचि बोली- भाई अगर मैं जीती.. तो तुम्हें आज ही अपनी सेवा का मौका दूंगी.. बहुत काम कराते हो मुझसे!
तो वो खिसियाते हुए बोला- पहले जीत तो सही.. फिर देखेंगे..
आंटी मेरे बताए हुए प्लान के मुताबिक मौन धारण किए हुई थीं.. क्योंकि उनका न बोलना ही प्लान को हवा दे रहा था।
फिर हमने गेम शुरू किया.. क्योंकि टॉस मैं जीता था.. तो मुझसे ही शुरूवात हुई।
अब गाने वगैरह लिखने की शायद जरूरत नहीं है.. आप लोग बुद्धिजीवी हैं.. सब समझ ही लेंगे और अगर लिखता भी हूँ तो कुछ को यही लगेगा कि फालतू की समय बर्बादी हो रही है.. इसलिए अब कहानी आगे बढ़ाता हूँ।
तो वो बोलीं- मैं क्या बताऊँ?
मैंने उनसे पूछा- जब आप लोग छोटे थे.. तो क्या खेलते थे?
बोलीं- बहुत कुछ.. पर उस जमाने में आज की तरह इतने साधन नहीं थे.. तो हम लोग कैरम, लूडो, लुका-छिपी, खो-खो, रस्सी-कूद, चोर-पुलिस और अंताक्षरी वगैरह खेलते थे।
‘वाह आंटी.. बहुत मज़ा आता होगा न..?’
वो बोलीं- हम्म.. हम लोगों के समय बस यही खेल खेले जाते थे.. जिसमें से अंताक्षरी में.. मैं हमेशा हार जाती थी।
माया की बात से मुझे याद आया कि मेरा दोस्त विनोद भी अपनी माँ की ही तरह था.. उसे गाने-वाने में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था… तो आंटी की इस बात से मुझे पक्का यकीन हो चला कि अब मेरा प्लान सफल हो जाएगा और प्लान इतना मज़ेदार था कि किसी भी हाल में आज या तो मेरे साथ माया रहेगी या रूचि.. जिसके सपने मेरी आँखों के सामने घूमने लगे थे।
बस फिर क्या था.. मैंने बोला- चलो फिर आज अंताक्षरी खेली जाए.. पर एक शर्त रहेगी..
तो सब बोले- वो क्या?
मैं बोला- वो बाद में.. पहले ये बोलो कि दूसरी टीम का कप्तान कौन बनेगा..?
तो रूचि ही ने तपाक से बोला- अगर तुम कप्तान हो.. तो मुझसे मुकाबला करो..
सभी हंस दिए.. वो ऐसे बोली थी कि जैसे झाँसी की रानी हो..
मैंने बोला- चलो ठीक है.. पर आंटी और विनोद.. किसकी टीम में रहेंगे.. इसके लिए टॉस होगा।
तो सभी ने सहमति जताई और मेरे पक्ष की बात हुई.. तो मैंने सिक्का निकाला और रूचि से बोला- देख.. अगर हेड आया तो विनोद मेरी ओर.. और अगर टेल आया.. तो तेरी ओर..
वो मुस्कुरा कर बोली- अरे कोई भी आए.. जीतूंगी तो मैं ही..
तो मैंने टॉस उछाला और वही हुआ.. जो मैंने सोचा था।
मैंने सोचा यह था कि विनोद मेरी ओर ही रहे और नसीब से हेड ही आया।
फिर सबसे पहले आंटी बोलीं- अच्छा अब शर्त भी तो बता.. जो तू बोल रहा था।
मैं बोला- बहुत ही आसान है.. अगर बिना शर्त के खेल खेला गया तो शायद मज़ा न आए.. बस इसलिए गेम में ट्विस्ट लाने के लिए किया जा रहा है।
तो विनोद बोला- अबे यार इतना घुमा क्यों रहा है.. सीधे बोल न.. करना क्या है?
मैं बोला- जो जीतेगा.. उस टीम का 1 मेंबर हारी हुई टीम के 1 मेंबर के साथ रहेगा.. उतने सभी दिन.. जितने दिन मैं यहाँ हूँ.. और हर रोज पार्टनर आल्टरनेट बदलते रहेंगे और उसे जीतने वाली टीम के मेंबर की हर बात माननी होगी।
आंटी बोलीं- पर कैसे?
मैंने समझाया- जैसे मैं जीतता हूँ.. तो आपको या रूचि में से कोई आज मेरे साथ ही रहेगा.. और जैसा मैं बोलूंगा.. वो उसको करना पड़ेगा और कल आप में से कोई दूसरा मेरे साथ.. इसी तरह जब तक मैं हूँ.. यही चलता रहेगा।
वो बोलीं- वैसे करना क्या-क्या पड़ सकता है?
मैं बोला- जैसे खाना बनाने में मदद.. सोते में साथ ही रहना.. और अगर रात को पानी मांगे.. तो उठ कर देना.. ये समझ लो.. बिना कुछ सोचे उसका आदेश मानना है।
विनोद बोला- यार मेरे से नहीं हो पाएगा.. साले कहीं तू हार गया तो सब मुझे भी करना होगा.. जो कि मुझसे नहीं होगा।
तो मैं बोला- अबे प्रयास करेगा या पहले ही हार मान लेगा।
वो फिर बोला- साले.. मेरे हिस्से का भी तू ही करेगा.. ये सोच ले.. मुझसे जितना बन पड़ेगा.. मैं बस उतना ही करूँगा।
जिस पर रूचि ने विनोद की बहुत चिकाई ली.. तो वो भी मुझे अपने मन में गरियाता हुआ ‘हाँ’ बोल दिया।
तभी रूचि बोली- भाई अगर मैं जीती.. तो तुम्हें आज ही अपनी सेवा का मौका दूंगी.. बहुत काम कराते हो मुझसे!
तो वो खिसियाते हुए बोला- पहले जीत तो सही.. फिर देखेंगे..
आंटी मेरे बताए हुए प्लान के मुताबिक मौन धारण किए हुई थीं.. क्योंकि उनका न बोलना ही प्लान को हवा दे रहा था।
फिर हमने गेम शुरू किया.. क्योंकि टॉस मैं जीता था.. तो मुझसे ही शुरूवात हुई।
अब गाने वगैरह लिखने की शायद जरूरत नहीं है.. आप लोग बुद्धिजीवी हैं.. सब समझ ही लेंगे और अगर लिखता भी हूँ तो कुछ को यही लगेगा कि फालतू की समय बर्बादी हो रही है.. इसलिए अब कहानी आगे बढ़ाता हूँ।