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[color=rgb(226,]डी॰बी॰[/color]
[color=rgb(61,]सेठजी की लड़की
[/color]
डी बी का फोन था , थोड़े रिलैक्सड थे, बोले
"हाँ अब बता। गाड़ी में हो न। वो सब कचड़ा साफ हो गया ना?" वो पूछ रहे थे।
मैंने पूछा- "हाँ बास लेकिन ये लफड़ा था क्या?"
"अबे तेरी किश्मत अच्छी थी जो ये आज हुआ। तीन महीने पहले होता न,. तो बास मैं भी कुछ नहीं कर सकता था, सिवाय इसके की तुम्हें किसी तरह यूपी के बाहर पहुँचा दूँ। लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे." उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया।
मैंने फिर गुजारिश की- "अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करो ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा."
डी॰बी॰- "अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी। राजेश सिंह का नाम सुना है?" सवाल के जवाब में सवाल, पुरानी आदत थी।
"किसने नहीं सुना है। वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में ए॰जे॰हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ." मैंने अपने सामन्य ज्ञान का परिचय दिया।
डी॰बी॰- "वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम और खास लोग."
वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था।
डी॰बी॰- "वही। और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की। लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है, इसलिए थोड़ा ज्यादा जोर है."
मेरे दिमाग में गूँजा।
फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे, नई सरकार खास तौर से डी॰बी॰ को ले आई है अपनी छवि सुधारने के नाम पे। पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किडनैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था, खास तौर पे इस्टर्न यूपी में था तो हमेशा से, लेकिन अभी बहुत खुले आम हो गया था।
डी॰बी॰ का फोन चालू था-
"तो वो सिंह। पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था, लेकिन जब सरकार बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी। उसके बहुत छुटभैये पकड़े गए, कुछ मारे गए। उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है। जो दूसरे गैंग है उनको उभरने में थोड़ा टाइम लगेगा। इसके गैंग के जो दो-तीन नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर-उधर सेट कर रहे हैं या क्या पता सिंह ही दल बदल कर 6-7 महीने में इधर आ जाय."
"और वो शुक्ला?" मेरे सवाल जारी थे।
डी॰बी॰- "वो तो खास आदमी था सिंह का। तुमने सुना होगा बाटा मर्डर."
"हाँ। वो भी तो सिंह ने दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में." मैंने बताया।
डी॰बी॰- "वो साला भी कम नहीं था। लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका खास आदमी था। जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे, आगे-पीछे पुलिस की एस्कोर्ट वैन थी, एक ट्रक पीएसी भी थी, लेकिन तब भी,. 4 एके-47 चली थी आधे घंटे तक, 540 राउंड गोली। सिंह ने जो 4 शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया, शकील का गैंग जवाइन कर लिया। एक नेपाल में है। एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया,शुक्ला का हाथ लोग कहते हैं पूरी प्लानिंग में था। और उसके पहले सिंह के टॉप शूटर्स में था, चाक़ू में भी नंबरी।
डी बी रुक गए और मैं सोचने लगा, उसका चाक़ू का हाथ, अगर गुड्डी ने टाइम पर बचो न बोला होता तो निशाना उसका एकदम सही था। और जिस तरह से बजाय कट्टा के दो विदेशी रिवाल्वर लिए था उसी से लग रहा था, लेकिन डी बी ने शुक्ला और सिंह का आगे का रिश्ता बताया
"ये सिंह का रेलवे, हास्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था। लेकिन अब सरकार बदलने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था। इसलिए अपना सीधा,. सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से। इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहुत सपोर्ट नहीं करते थे। हाँ 6-7 महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता। बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोंई भी मारा गया था, 38 साल का बहुत ईमानदार इन्स्पेक्टर। उसके अलावा साले सभी मिले थे, वरना पुलिस की कस्टडी से। इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना."
मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था, सवाल भी और डर भी- "वो सेठ जो। उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा?"
डी॰बी॰ हँसे और बोले- "अरे यार तुम मौज करो। ये सब ना, उसको कौन बोलेगा? सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है, और वैसे भी अब वो सिंह यहाँ का धंधा समेट रहा है। माइनिंग में बहुत माल है। खास तौर से उसने वहां एक-दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है। यूपी से लड़के ले जाता है। वहां जमीन पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में, तो अब बनारस की परचून की दुकान में,.. शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया। अब साल भर का तो उसको आराम हो गया और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था।
उसकी दुकान से इस्टर्न यूपी, बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डालकर हथियार खास तौर से कारतूस, बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी।
और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी। तो सेठजी की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो उसकी लड़की उठाकर ले गए थे। फिर जो सौदा सेट हो गया तो। वैसे भी शुक्ला को एक-दो बार इसने घर पे भी बुलाया था। वहीं पे उसकी लड़की इसने देखी।
और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं। उनका लड़की वड़की का नहीं होता, ज्यादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए। लेकिन ये नया और थोड़ा ज्यादा। तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक-दो हफ्ते के लिए तुम्हें इत्ता डर है तो सिक्योरिटी लगा दूंगा। उसका फोन तो हम टैप करते हैं."
तो वो सेठ जी की लड़की वाला मामला, मेरे अभी भी समझ में नहीं आया था, मैंने पूछ लिया।
डी बी हंस के बोले अभी पांच छह महीने बाद पोस्टिंग हो जायेगी न तो समझ में आ जायेगी। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था। जब मैं यहाँ आया साल भर पहले तो पता चला था लेकिन सेठ जी ने ऍफ़ आई आर तक तो करवाई नहीं। मुझे आये साल भर से ऊपर होगया और मुझे पता चला तो बहुत गुस्सा आया। सेठ जी से कहलवाया की रिपोर्ट तो करवा दीजिये, पुलिस प्रोटेक्शन भी दूंगा लेकिन आ के हाथ जोड़ के खड़े होगये। नहीं साहब, अब तो बिटिया भी आ गयी है सब लोग भूल गए हैं। फिर से अखबार, कोर्ट कचहरी, गवाही, लड़की की जाति शादी में झंझट होगा। लेकिन जानते हो असली बात क्या थी,
" नहीं " मैंने फोन पर भी जोर से सर हिलाया।
" अरे डील में सेठ जी को भी बहुत फायदा हुआ। कई जगह की सप्लाई का ठेका मिल गया, जितना महीना बाँधा था उससे बहुत ज्यादा और फिर जब से नयी सरकार आयी, उससे भी उनकी रब्त जब्त। "
[color=rgb(61,]सेठजी की लड़की

डी बी का फोन था , थोड़े रिलैक्सड थे, बोले
"हाँ अब बता। गाड़ी में हो न। वो सब कचड़ा साफ हो गया ना?" वो पूछ रहे थे।
मैंने पूछा- "हाँ बास लेकिन ये लफड़ा था क्या?"
"अबे तेरी किश्मत अच्छी थी जो ये आज हुआ। तीन महीने पहले होता न,. तो बास मैं भी कुछ नहीं कर सकता था, सिवाय इसके की तुम्हें किसी तरह यूपी के बाहर पहुँचा दूँ। लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे." उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया।
मैंने फिर गुजारिश की- "अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करो ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा."
डी॰बी॰- "अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी। राजेश सिंह का नाम सुना है?" सवाल के जवाब में सवाल, पुरानी आदत थी।
"किसने नहीं सुना है। वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में ए॰जे॰हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ." मैंने अपने सामन्य ज्ञान का परिचय दिया।
डी॰बी॰- "वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम और खास लोग."
वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था।
डी॰बी॰- "वही। और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की। लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है, इसलिए थोड़ा ज्यादा जोर है."
मेरे दिमाग में गूँजा।
फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे, नई सरकार खास तौर से डी॰बी॰ को ले आई है अपनी छवि सुधारने के नाम पे। पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किडनैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था, खास तौर पे इस्टर्न यूपी में था तो हमेशा से, लेकिन अभी बहुत खुले आम हो गया था।
डी॰बी॰ का फोन चालू था-
"तो वो सिंह। पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था, लेकिन जब सरकार बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी। उसके बहुत छुटभैये पकड़े गए, कुछ मारे गए। उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है। जो दूसरे गैंग है उनको उभरने में थोड़ा टाइम लगेगा। इसके गैंग के जो दो-तीन नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर-उधर सेट कर रहे हैं या क्या पता सिंह ही दल बदल कर 6-7 महीने में इधर आ जाय."
"और वो शुक्ला?" मेरे सवाल जारी थे।
डी॰बी॰- "वो तो खास आदमी था सिंह का। तुमने सुना होगा बाटा मर्डर."
"हाँ। वो भी तो सिंह ने दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में." मैंने बताया।
डी॰बी॰- "वो साला भी कम नहीं था। लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका खास आदमी था। जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे, आगे-पीछे पुलिस की एस्कोर्ट वैन थी, एक ट्रक पीएसी भी थी, लेकिन तब भी,. 4 एके-47 चली थी आधे घंटे तक, 540 राउंड गोली। सिंह ने जो 4 शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया, शकील का गैंग जवाइन कर लिया। एक नेपाल में है। एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया,शुक्ला का हाथ लोग कहते हैं पूरी प्लानिंग में था। और उसके पहले सिंह के टॉप शूटर्स में था, चाक़ू में भी नंबरी।
डी बी रुक गए और मैं सोचने लगा, उसका चाक़ू का हाथ, अगर गुड्डी ने टाइम पर बचो न बोला होता तो निशाना उसका एकदम सही था। और जिस तरह से बजाय कट्टा के दो विदेशी रिवाल्वर लिए था उसी से लग रहा था, लेकिन डी बी ने शुक्ला और सिंह का आगे का रिश्ता बताया
"ये सिंह का रेलवे, हास्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था। लेकिन अब सरकार बदलने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था। इसलिए अपना सीधा,. सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से। इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहुत सपोर्ट नहीं करते थे। हाँ 6-7 महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता। बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोंई भी मारा गया था, 38 साल का बहुत ईमानदार इन्स्पेक्टर। उसके अलावा साले सभी मिले थे, वरना पुलिस की कस्टडी से। इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना."
मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था, सवाल भी और डर भी- "वो सेठ जो। उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा?"
डी॰बी॰ हँसे और बोले- "अरे यार तुम मौज करो। ये सब ना, उसको कौन बोलेगा? सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है, और वैसे भी अब वो सिंह यहाँ का धंधा समेट रहा है। माइनिंग में बहुत माल है। खास तौर से उसने वहां एक-दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है। यूपी से लड़के ले जाता है। वहां जमीन पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में, तो अब बनारस की परचून की दुकान में,.. शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया। अब साल भर का तो उसको आराम हो गया और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था।
उसकी दुकान से इस्टर्न यूपी, बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डालकर हथियार खास तौर से कारतूस, बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी।
और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी। तो सेठजी की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो उसकी लड़की उठाकर ले गए थे। फिर जो सौदा सेट हो गया तो। वैसे भी शुक्ला को एक-दो बार इसने घर पे भी बुलाया था। वहीं पे उसकी लड़की इसने देखी।
और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं। उनका लड़की वड़की का नहीं होता, ज्यादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए। लेकिन ये नया और थोड़ा ज्यादा। तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक-दो हफ्ते के लिए तुम्हें इत्ता डर है तो सिक्योरिटी लगा दूंगा। उसका फोन तो हम टैप करते हैं."
तो वो सेठ जी की लड़की वाला मामला, मेरे अभी भी समझ में नहीं आया था, मैंने पूछ लिया।
डी बी हंस के बोले अभी पांच छह महीने बाद पोस्टिंग हो जायेगी न तो समझ में आ जायेगी। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था। जब मैं यहाँ आया साल भर पहले तो पता चला था लेकिन सेठ जी ने ऍफ़ आई आर तक तो करवाई नहीं। मुझे आये साल भर से ऊपर होगया और मुझे पता चला तो बहुत गुस्सा आया। सेठ जी से कहलवाया की रिपोर्ट तो करवा दीजिये, पुलिस प्रोटेक्शन भी दूंगा लेकिन आ के हाथ जोड़ के खड़े होगये। नहीं साहब, अब तो बिटिया भी आ गयी है सब लोग भूल गए हैं। फिर से अखबार, कोर्ट कचहरी, गवाही, लड़की की जाति शादी में झंझट होगा। लेकिन जानते हो असली बात क्या थी,
" नहीं " मैंने फोन पर भी जोर से सर हिलाया।
" अरे डील में सेठ जी को भी बहुत फायदा हुआ। कई जगह की सप्लाई का ठेका मिल गया, जितना महीना बाँधा था उससे बहुत ज्यादा और फिर जब से नयी सरकार आयी, उससे भी उनकी रब्त जब्त। "