FreeSexKahani - फागुन के दिन चार - Page 19 - SexBaba
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

[color=rgb(226,]डी॰बी॰[/color]
[color=rgb(61,]सेठजी की लड़की

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डी बी का फोन था , थोड़े रिलैक्सड थे, बोले

"हाँ अब बता। गाड़ी में हो न। वो सब कचड़ा साफ हो गया ना?" वो पूछ रहे थे।

मैंने पूछा- "हाँ बास लेकिन ये लफड़ा था क्या?"

"अबे तेरी किश्मत अच्छी थी जो ये आज हुआ। तीन महीने पहले होता न,. तो बास मैं भी कुछ नहीं कर सकता था, सिवाय इसके की तुम्हें किसी तरह यूपी के बाहर पहुँचा दूँ। लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे." उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया।

मैंने फिर गुजारिश की- "अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करो ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा."

डी॰बी॰- "अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी। राजेश सिंह का नाम सुना है?" सवाल के जवाब में सवाल, पुरानी आदत थी।

"किसने नहीं सुना है। वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में ए॰जे॰हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ." मैंने अपने सामन्य ज्ञान का परिचय दिया।

डी॰बी॰- "वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम और खास लोग."

वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था।

डी॰बी॰- "वही। और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की। लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है, इसलिए थोड़ा ज्यादा जोर है."

मेरे दिमाग में गूँजा।

फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे, नई सरकार खास तौर से डी॰बी॰ को ले आई है अपनी छवि सुधारने के नाम पे। पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किडनैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था, खास तौर पे इस्टर्न यूपी में था तो हमेशा से, लेकिन अभी बहुत खुले आम हो गया था।

डी॰बी॰ का फोन चालू था-

"तो वो सिंह। पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था, लेकिन जब सरकार बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी। उसके बहुत छुटभैये पकड़े गए, कुछ मारे गए। उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है। जो दूसरे गैंग है उनको उभरने में थोड़ा टाइम लगेगा। इसके गैंग के जो दो-तीन नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर-उधर सेट कर रहे हैं या क्या पता सिंह ही दल बदल कर 6-7 महीने में इधर आ जाय."

"और वो शुक्ला?" मेरे सवाल जारी थे।

डी॰बी॰- "वो तो खास आदमी था सिंह का। तुमने सुना होगा बाटा मर्डर."

"हाँ। वो भी तो सिंह ने दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में." मैंने बताया।

डी॰बी॰- "वो साला भी कम नहीं था। लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका खास आदमी था। जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे, आगे-पीछे पुलिस की एस्कोर्ट वैन थी, एक ट्रक पीएसी भी थी, लेकिन तब भी,. 4 एके-47 चली थी आधे घंटे तक, 540 राउंड गोली। सिंह ने जो 4 शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया, शकील का गैंग जवाइन कर लिया। एक नेपाल में है। एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया,शुक्ला का हाथ लोग कहते हैं पूरी प्लानिंग में था। और उसके पहले सिंह के टॉप शूटर्स में था, चाक़ू में भी नंबरी।
डी बी रुक गए और मैं सोचने लगा, उसका चाक़ू का हाथ, अगर गुड्डी ने टाइम पर बचो न बोला होता तो निशाना उसका एकदम सही था। और जिस तरह से बजाय कट्टा के दो विदेशी रिवाल्वर लिए था उसी से लग रहा था, लेकिन डी बी ने शुक्ला और सिंह का आगे का रिश्ता बताया

"ये सिंह का रेलवे, हास्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था। लेकिन अब सरकार बदलने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था। इसलिए अपना सीधा,. सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से। इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहुत सपोर्ट नहीं करते थे। हाँ 6-7 महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता। बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोंई भी मारा गया था, 38 साल का बहुत ईमानदार इन्स्पेक्टर। उसके अलावा साले सभी मिले थे, वरना पुलिस की कस्टडी से। इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना."

मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था, सवाल भी और डर भी- "वो सेठ जो। उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा?"

डी॰बी॰ हँसे और बोले- "अरे यार तुम मौज करो। ये सब ना, उसको कौन बोलेगा? सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है, और वैसे भी अब वो सिंह यहाँ का धंधा समेट रहा है। माइनिंग में बहुत माल है। खास तौर से उसने वहां एक-दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है। यूपी से लड़के ले जाता है। वहां जमीन पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में, तो अब बनारस की परचून की दुकान में,.. शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया। अब साल भर का तो उसको आराम हो गया और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था।

उसकी दुकान से इस्टर्न यूपी, बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डालकर हथियार खास तौर से कारतूस, बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी।

और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी। तो सेठजी की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो उसकी लड़की उठाकर ले गए थे। फिर जो सौदा सेट हो गया तो। वैसे भी शुक्ला को एक-दो बार इसने घर पे भी बुलाया था। वहीं पे उसकी लड़की इसने देखी।

और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं। उनका लड़की वड़की का नहीं होता, ज्यादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए। लेकिन ये नया और थोड़ा ज्यादा। तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक-दो हफ्ते के लिए तुम्हें इत्ता डर है तो सिक्योरिटी लगा दूंगा। उसका फोन तो हम टैप करते हैं."
तो वो सेठ जी की लड़की वाला मामला, मेरे अभी भी समझ में नहीं आया था, मैंने पूछ लिया।

डी बी हंस के बोले अभी पांच छह महीने बाद पोस्टिंग हो जायेगी न तो समझ में आ जायेगी। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था। जब मैं यहाँ आया साल भर पहले तो पता चला था लेकिन सेठ जी ने ऍफ़ आई आर तक तो करवाई नहीं। मुझे आये साल भर से ऊपर होगया और मुझे पता चला तो बहुत गुस्सा आया। सेठ जी से कहलवाया की रिपोर्ट तो करवा दीजिये, पुलिस प्रोटेक्शन भी दूंगा लेकिन आ के हाथ जोड़ के खड़े होगये। नहीं साहब, अब तो बिटिया भी आ गयी है सब लोग भूल गए हैं। फिर से अखबार, कोर्ट कचहरी, गवाही, लड़की की जाति शादी में झंझट होगा। लेकिन जानते हो असली बात क्या थी,

" नहीं " मैंने फोन पर भी जोर से सर हिलाया।

" अरे डील में सेठ जी को भी बहुत फायदा हुआ। कई जगह की सप्लाई का ठेका मिल गया, जितना महीना बाँधा था उससे बहुत ज्यादा और फिर जब से नयी सरकार आयी, उससे भी उनकी रब्त जब्त। "
 
[color=rgb(226,]पूर्वांचल और माफिया[/color]

डी बी का कोई दूसरा फोन आ गया था

शायद हेडक्वार्टर से या किसी नेता वेता का, क्योंकि उनकी खाली यस जी सर की आवाज आ रही थी और मेरा फोन उन्होंने होल्ड पर रखा था।

और फोन काटने की मेरी हिम्मत भी नहीं थी, हॉस्टल के मेरे सीनियर थे और यहाँ भी,

लेकिन मैं शुक्ला के बारे में सोच रहा था, और ड्रग्स और सेठ जी की लड़की के बारे में।

ये कोई फ्रिंज आपरेशन रहा होगा, शुक्ला की पहल पर, क्योंकि ज्यादातर माफिया रंगदारी से शुरू हुए फिर ठेकेदारी की ओर मुड़ गए। और शुक्ला ने सिंह के प्रभुत्व का इस्तेमाल किया होगा।

लेकिन डी बी की ये बात एकदम सही थी की दूकान से भेजे जाने वाले सामने के साथ हथियारों की आवाजाही आसान रही होगी। इनकी दूकान का सामान नेपाल तक जाता हैं और उधर से भी ड्राई फ्रूट्स और बाकी सब, फिर नेपाल का बार्डर खुला हैं और पक्की सड़कों के अलावा तराई के जंगल के बीच भी कच्ची सड़कों का जाल हैं, और वहां से पिट्ठू पे भी सामान आता हैं, और पहली बार बाटा मर्डर में जो एके ४७ इस्तेमाल हुयी, कुछ तो कहते हैं की सिंह ने हॉस्पिटल शूटआउट के इनाम के तौर पर डी गैंग से पायी और कुछ कहते हैं की नेपाल से आयी।

लेकिन असली खेल तो होता हैं गोली का।

और नेपाल से हर जगह तो जा नहीं सकती तो इसका मतलब एक सेन्ट्रल प्रोक्योरमेंट डिपो टाइप होगा और वहां से जहाँ जरूरत हो, तो एक बार कहीं पहुँच भी गयीं तो वहां से आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया, छपरा, आरा, सिवान सब जगह मिर्च मसलों के साथ। और ४० किलो सूखी लाल मिर्च के बोरे में एक दो किलो कारतूस तो कहाँ पता चलता हैं।

डी बी की ये बात भी सही थी की माफिया वालों को खास तौर से पूर्वांचल में लड़कियों का ज्यादा शौक नहीं था, कई तो एकदम परिवार वाले, हाँ तीसरे चौथे पायदान वालों की, शूटर्स की बात अलग थी और ये शुक्ल जी उन्होंने उसी पायदान से शुरू किया होगा और दूसरी बात ये हैं की चाहे अखबार हो ट्रक और बस में बजने वाले कैसेट के गाने हों या चाय की दूकान की बातचीत इन छुटभैयों का महिमा मंडन भी अच्छी तरीके से किया जाता था ( बड़े माफिया की नाम लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी) तो कैशोर्य की पायदान पर पैर रखती लड़कियों के मन में भी,

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तो कभी शुक्ला ने तांक झाँक के बाद सोचा होगा चांस ले सकते हैं। और फिर सेठजी पर प्रेशर भी बनाना आसान होगा, इसलिए उनकी लड़की उठायी गयी होगी, वो आपरेशन सिंह के लेवल का नहीं लगता लेकिन उसने आब्जेक्ट भी नहीं किया होगा।

और फिर कुछ ले देकर जो छोटा चेतन का मोहरा बोल रहा था, यानी महीने वार रकम, और सेठ जी का भी फायदा,

तबतक डी बी की आवाज सुनायी दी,

" अरे यार ये फोन, यस सर यस सर, करते,,,,, अच्छा मुद्दे पे आओ " और उनकी आवाज धीमी होगयी

" ये वही हैं न चिट्ठी वाली, किस्मत वाले हो "

उसी तरह धीमी आवाज में मैंने कबूल किया, हाँ वही है।

चिट्ठी वाला किस्सा तो पूरा हॉस्टल जनता था, करीब तीन साल से, अंतर्देशीय पत्रों का चक्कर, और डर ये लगता था कोई खोल के झाँक न ले। मैंने लाख गुड्डी से कहा था लिफ़ाफ़े में भेजो लेकिन वो मेरी सुनती तो गुड्डी क्यों होती।
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चिट्ठियां सारी हॉस्टल के आफिस की टेबल पे रखी रहती, जिसका होता उठा लेता या कोई उस विंग वाला होता तो वो भी ला के दे देता। लेकिन गुड्डी की चिट्ठी के चक्कर में, मैं भी बेवकूफों की तरह जिस दिन गुड्डी की चिट्ठी आती, उसी दिन जवाब लिखा जाता, भेजा जाता और अगले दिन से हॉस्टल के आफिस का चक्कर चालू दिन में तीन बार और कुछ दिन में उड़ती चिड़िया के पर भांपने वालों ने भांप लिया कोई खास चिट्ठी है। बस एकाध बार चिट्ठी जब्त भी हो गयी और सबको चाय पिलाने के बाद ही मिली, और फिर गुड्डी की मोती ऐसी राइटिंग, पता देख के ही लोग समझ जाते थे की, कोई खास है।

हाँ समझदार तो वो है तो बस ये गनीमत थी की नाम नहीं लिखती थी बस बनारस, और इतना तो सब को पता चल गया की आनंद बाबू का चक्कर किसी बनारस की चिट्ठी वाली से है।

डी बी ऐसे दो चार क्लोज लोग ही थे जिन्हे नाम मालूम था लेकिन उसके आगे कुछ नहीं।

डी बी ने एक हॉस्टल के सीनियर फिर जॉब में सीनियर होने के नाते एक काम की बात बोली, " तुम घर जा रहे हों न "

" हाँ मैं हलके से बोला। गुड्डी मेरे कंधे पे सर रखे शायद ऊंघा रही थी, रतजगे की तैयारी में, थोड़ी सी नींद कही भी कभी भी।

" स्साले, अभी घर पे शादी की बात पक्की कर ले, किस्मत है तेरी इतनी अच्छी लड़की मिल रही है। और तेरी ट्रेनिंग तो अभी पांच छह महीने बची है न "

" हाँ, बस मई से फिल्ड ट्रेनिंग तो यहीं यूपी में ही और फिर सितंबर तक पोस्टिंग " मैंने बताया।

" बेस्ट है, सबसे अच्छा फील्ड ट्रेनिंग के टाइम में शादी कर ले , अगर एक बार पोस्टिंग हो गयी न तो गिन के तीन दिन की शादी की छुट्टी मिलेगी और सुहागरात के दिन फोन आ जायेगा, कही बंदोबस्त में ड्यूटी लगी है, फिर पता नहीं कहाँ कोने अंतरे पोस्टिंग हो, और हाँ वो तेरा पेपर पढ़ा था मैंने मेरे पास भी असेसमनेट के लिए आया था, जबरदस्त था, डाटा भी काफी था और अनैलेसिस भी।"

ट्रेनिंग में दो साल में दो पेपर लिखने होते हैं तो मैंने पूर्वांचल का माफिया लिखा था नाम तो पेपर टाइप ही था, सोशियो -इकोनॉमिक पर्स्पेक्टिव और ईस्टर्न यू पी माफिया। लेकिन असली खेल था फील्ड विजिट के नाम पे एक हफ्ते का टाइम मिलता था, ईस्टर्न यूपी मतलब हफ्ते भर के लिए में घर आ गया और गुड्डी भी उस समय आयी थी।

डीबी ने मेरा पेपर ध्यान से पढ़ा था, और इन्होने एक टेढ़ा सवाल पूछ लिया,

" ये तो ठीक है की पूर्वांचल में माफिया का चक्कर जो ७० और ८० के दशक में शुरू हुआ और ९० के दशक में अमरबेल की तरह फ़ैल गया, उसका आधार जाति था लेकिन उसका फायदा क्या मिला और उससे लिमिट्स क्या सेट हुईं ?

बस मुझे मौका मिल गया ज्ञान बघारने का और मैं नॉन स्टॉप बोलता रहा। गुड्डी और रीत के सामने तो बोलने का सवाल ही नहीं था,

" दोनों गुट दो डॉमिनेंट कास्ट के थे और सबसे बड़ी बात मुझे ये लगी की एक फ्यूडल कल्चर के बचे हुए अंश साफ़ साफ़ दिख रहे थे, प्रभुत्व स्थापित करने की लड़ाई और उस प्रभुत्व का एक्सटर्नल मैनिफेस्टेशन। और सबसे बड़ा अडवांटेज था उन्हें बिना बोले अपनी जाति के लोगों का अलीजियेंस मिला, फिजिकल, फायनेंसियल और इमोशनल सपोर्ट। और क्योंकि सैकड़ों सालों से ये ढांचा वहां था, इनबिल्ट था तो इस तरह की ग्रुप लॉयल्टी का, "

लेकिन डी बी ने मुझे काट दिया, लेकिन तुमने उनके ढांचे के बारे में भी अच्छा लिखा था।

" हां," मैं बोला और स्वीकार किया की मैं भी चकित था। ऊपर की पहली दो तीन पक्तियों में तो जाति का असर था जिसमे उनके फंक्शनल हेड , एरिया हेड इत्यादि थे लेकिन जो फुट सोल्जर्स थे उनमे भी बहुत वैरायटी थी। शूटर्स तो टोटेम पोल में सबसे ऊपर थे लेकिन ज्यादातर का लाइफ स्पान शार्ट था, पर उसके अलावा वाचर्स, फ़ॉलोअर्स, स्पलायर्स , रुकने और रहने का ठिकाना देने वाले इन सबकी पूरी फ़ौज थी और कई तो बस ' बॉस खुश होगा ' के अंदाज में इन्फर्मेशन मुहैया कराते थे । "

" एकदम सही कह रहे हो, जब छह महीने बाद तेरी पोस्टिंग होगी तो पहली पोस्टिंग में ही पता चल जाएगा की असली ताकत किस के पास है "

थोड़ा दुखी , थोड़ा गंभीर हो के वो बोले, फिर जोड़ा,

मेरे अपने आफिस में मुझे पता नहीं है की में जो बोलता हूँ वो कहाँ कहाँ तक पहुंचता है। लेकिन ये चेंज भी तुमने एकदम सही मैप किया था और पूरे डिटेल्स के साथ, ये फंक्शनल कमाडंर वाली बात मेरी समझ में नहीं आयी लेकिन

और मुझे फिर बोलने का मौका मिला गया,

" जब एक बार जातिगत माफिया का सिक्का बैठ गया तो बस असली चीज थी कमाई और ठेकदारी वो समझ गए की रंगदारी से भी बढ़िया है, तो उन्होंने डिपार्टमेंट वाइज बाँट दिया, किसी को पी डब्लू डी , किसी को सिंचाई, किसी को रेलवे, किसी को बिजली, तो बस जितने ठेके वाले काम थे सब। रेलवे में तो मैं चौंक गया, एक पांडेय जी फंक्शनल हेड थे, स्टेशन पर बिकने वाली रेवड़ी के ठेके से लेकर कंस्ट्रक्शन के बड़े से बड़े ठेके तक, और छोटे ठेके में पैसा कमाने से ज्यादा प्रभुत्व और उनकी छत्रछाया, और वो सब बिन पैसे के इन्फॉर्मर के तौर पर काम करते थे। असली पैसा बड़े ठेके में था। और मैंने तो यहाँ तक सुना कि अक्सर रेलवे मिनिस्टर बिहार के होते थे, वहां कि रेलवे लाइन के काम भी होते थे लेकिन ठेका चूँकि रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर में था इसलिए उत्तर बिहार के माफिया को दिक्क्त होती थी। इसलिए भी रेलवे का विभाजन हुआ और हाजीपुर बिहार के जितने रेलवे मंडल थे,

गुड्डी कि तरह डी बी को भी बात काटने कि आदत थी, वो बोले
"लेकिन ये काम करने की तो इन सब माफिया की ताकत तो थी नहीं

" काम तो काम करने वाली ही कम्पनिया ही करती थी हाँ उनके रेट में २० से २५ परसेंट बढ़ा के ये कोट करती थी, और ये एक्स्ट्रा पैसा सीधे फंक्शनल हेड के जरिये और दुसरे छोटे मोटे कम टेक्निकल लेबर इंटेसिव काम, सप्लाई के काम भी माफिया के आदमियों को तो वो अलग से पैसा बनाते थे। "

हम लोगो की पुलिस वाली गाडी रुक गयी थी , सामने कोई वृषभ विश्राम कर रहे थे। तो ड्राइवर बगल की दूकान से चाय लेने चला गया।

मैं और गुड्डी चाय सुड़क रहा थे और मैं डी बी से पॉलिटिक्ल, आफीसीएल, माफिया और बिजनेस नेक्सस के बारे में बात कर रहा था लेकिन डी बी ने कहा

" तुम्हारे पेपर में एक पार्ट नहीं है लेकिन वो सब्जेक्ट का पार्ट था भी नहीं और वो एकदम हाल का मुद्दा और अब मुझे सबसे ज्यादा डर उसी से लगता है, "

क्या, मेरी समझ में नहीं आया। और अब डी बी ने बोलना शुरू किया तो रुके नहीं। गाडी चल पड़ी थी।
 
[color=rgb(184,]माफिया, दंगा और पॉलिटिक्स[/color]

लो इंटेसिटी रायट्स, उससे माफिया का कनेक्शन, और लांग टर्म इम्पैक्ट टेरर के ब्रीडिंग ग्राउंड के तौर पर, माफिया तो अब समझो नयी सरकार के बाद ठंडा हो गया है लेकिन ये बड़ा सरदर्द है। " डी बी ने ठंडी साँस लेकर कहा।

" ये लो इंटेसिटी रायट्स, ये क्या बला है " मेरी समझ में नहीं आया

" कास्ट बनाम रिलिजन " वो बोल के रुक गए फिर समझ गए की मेरी समझ में नहीं आया। और बात आगे बढ़ाई,

" और उसी से नैरेटिव सेट करना, वेस्टर्न यूपी में तो शुरू हो गया था लेकिन अब यहाँ भी लगता है वही, किसी एकदम छोटे से मुद्दे को लेकर कस्बे में आग भड़केगी और फिर दो तीन दिन में जबतक पुलिस ऐक्शन होकर मामला ठंडा हो, ऐसा नैरेटिव सेट होगा, इलेक्ट्रानिक मिडिया वाले सब मिले हुए और आग भड़काएंगे। उन्हें टी आर पी का फायदा, और माफिया फायदा उठाती है हथियार सप्लाई करने का, और उसके बाद एक किसी कम्युनिटी वालों के मकान जल जाते हैं तो सस्ते मद्दे कोई माफिया का आदमी, या उनके इशारे पर और फिर वहां नया आपर्टमेंट, शहर के साथ गाँव, कसबे में भी, जो सैकड़ों साल से साथ रहते थे अलग,अलग

और एक तरह के लोग अगर एक साथ रहेंगे तो फिर आग सुलगाने में आसानी होती है उन्हें असली नकली वीडियो दिखा के, टेरर वालों के लिए भी अपना धंधा बढ़ाना आसान हो जाता है। फिर अगर ग्राउंड लेवल पे ये बात हो गयी तो, कहाँ तक पुलिस लगेगी, इसलिए ये दंगे, लैंड माफिया, पोलिटिसियन सबके लिए फायदे में हैं सिवाय हम लोगो के "

डी॰बी॰- "ठीक है तो। लेकिन लौटते समय घर जरूर आना और अकेडमी का क्या हाल है? वो खड़ूस चला गया."

मैंने बोला- "हाँ। नए डायरेक्टर तो यूपी में ही ए॰डी॰जी॰ थे ना। हाँ लौटूंगा तो मिलूँगा."

डी॰बी॰- "पक्का। वो भी खाली भाषण है। चलो टच में रहना." कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

बात उनकी सही थी, लेकिन तबतक उनकी कोई मीटिंग शुरू होने वाली थी और वो चल दिए और मैं सोच रहा था।

कुछ दिन पहले की बात है मैं ट्रेन से आ रहा था, और एक कोई बुजुर्ग सहयात्री थे, उन्होंने पूछा की कहाँ के रहने वाले हो और जैसे मैंने नाम बताया, बड़ी अजीब नज़रों से उन्होंने देखा और बोले

" अच्छा जहाँ का अबू सलेम है "

मैंने उन्हें लाख, शिब्ली नोमानी, हरिऔध, राहुल सांस्कृत्याययन से लेकर ब्रिगेडियर सुलेमान और कैफ़ी आजमी का जिक्र किया लेकिन अकेले अबू सलेम ने सबको धो दिया था।

आज मुझे समझ में आ रहा था नैरेटिव की ताकत।

मेरी चिड़िया चहक के बोली, " पता नहीं तेरे सीनयर क्या चकचक कर रहे थे लेकिन एक बात मुझे लगता है उन्होंने तुमसे समझदारी की, की "
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और बिना मेरे पूछे कान खींच के कान में बोली, " कुछ कहा न उन्होंने ट्रेनिंग में ही कर लेने को, तुम्हारे सीनियर हैं कुछ तो तुझे उनकी बात माननी चाहिए "

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मतलब मेरी चिड़िया सो नहीं रही थी, सुन रही थी

जो डी बी ने कहा था, " तेरी किस्मत अच्छी है जो ऐसी लड़की मिली है। अबकी घर पे बात पक्की कर लेना और पांच छह महीने ट्रेनिंग के बचे हैं, ट्रेनिंग में ही शादी कर लेना वरना बाद में ऐन सुहागरात के समय फोन आ जाएगा, और शादी की छुट्टी भी मुश्किल से तीन दिन की

तब तक होटल आ गया।
 
[color=rgb(65,]होटल
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तब तक होटल आ गया था। रेडीसन होटल। शायद नया बना था। थ्री स्टार रहा होगा।

मैं- "अरे हम लोगों को तो खाली खाना खाना था यहाँ कहाँ?" होटल की बिल्डिंग देखते हए मैंने ड्राइवर से कहा।

"नया खुला है साहब अच्छा है और साहब ने यहाँ बोल भी दिया है." ड्राइवर ने कहा और जब हम उतरे तो होटल का मैनेजर खुद हमारा इंतजार कर रहा था।

मैनेजर- "सर का फोन आया था, ये होटल हमारा नया है लेकिन सारी सुविधा हैं." कहकर उसने हाथ मिलाया और लेकर अन्दर चला।

सामने ही रेस्टोरेंट था।

मैंने कहा- "असल में हम लोग सिर्फ लंच के लिए आये हैं." और रेस्टोरेंट की ओर मुड़ने लगा।

"एक्सक्यूज मी." पीछे से एक मीठी सी आवाज आई। मैंने मुड़कर देखा।

डार्क कलर की साड़ी में। हल्के मेकअप में। रिसेप्शनिस्ट थी, - "अक्चुअली। वी हैव मेड अरेंजमेंटस एट आवर स्यूट। फोल्लो मी."

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मैनेजर बोला- "असल में मैं भी यही कह रहा था। आज रेस्टोरेंट में थोड़ा रिनोवेशन चल रहा है एंड रूम इस कम्फर्टेबल। आप थोड़ा रिलेक्स भी कर सकते हैं."

रूम क्या था पूरा घर था। दो कमरों का स्यूट।

मीठी आवाज वाली दरवाजे के बाहर तक छोड़कर गई और बोली-

"आप लोग चाहें तो थोड़ा फ्रेश हो लें। मैं 10 मिनट में वेट्रेस को भेजती हूँ, या 108 पे आप रूम सर्विस को भी आर्डर दे सकते हैं."

कहकर दरवाजा उसने खुद बंद कर दिया था, और मैग्नेटिक चाभी टेबल पे छोड़ दी थी।

मैं जानता था अब ये कमरा सिर्फ अन्दर से खुल सकता है।

गुड्डी तो पागल हो गई।

बाहर वाले कमरे में सोफा, एक छोटी सी डाइनिंग टेबल 4 लोगों के लिए, मिनी फ्रिज, और एक बड़ा सा टीवी 32." इंच का एल॰सीडी, और बेडरूम और भी बढ़िया। लेकिन सबसे अच्छा था बाथरूम।

बाथटब, शावर सारी चीजें जो कोई सोच सकता है।

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गुड्डी ने बाथरूम में ही मुझे किस कर लिया। एक-दो पांच 10 बार।

झूठ बोल रहा हूँ। किस करते समय भी कोई गिनता है।

गुड्डी फिर दूर खड़ी हो गई और वहीं से हुक्म दिया- "शर्ट उतारो."

मैं एक मिनट सोचता रहा फिर बोला- "अरे यार मूड हो रहा है तो बेडरूम में चलते हैं ना। यहाँ कहाँ?"

गुड्डी मुश्कुरायी और बिना रुके पहले तो आराम से शर्ट के सारे बटन खोले और फिर उतारकर सीधे हुक पे, अगला नम्बर बनियान का था।

अब मैं पूरी तरह टापलेश था। गुड्डी ने पहले मुझे सामने से ध्यान से देखा, एकाध जगह हल्की खरोंच सी थी। वहां हल्के से उसने उंगली के टिप से सहलाया और फिर पीछे जाकर, एक जगह शायद हल्का सा लाल था, वहां उसने दबाया, तो मेरी धीमी सी चीख निकल गई।

गुड्डी- "खड़े रहना."

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वो बोली और बाहर जाकर फ्रिज से बर्फ एक टिशू पेपर में रैप करके ले आई और उस जगह लगा दिया।

एक-दो जगह और शायद कुछ घूंसे लगे थे या गिरते पड़ते टेबल का कोना, वहां भी उसने बर्फ लगाकर हल्का-हल्का दबाया।

गुड्डी- "पैंट उतारो." मैडम जी ने हुकुम सुनाया। पीछे से फिर बोली-

"मैं ही बेवकूफ हूँ। तुम आलसी से अपने हाथ से कुछ करने की उम्मीद करना बेकार है."

और मुझे पीछे से पकड़े-पकड़े मेरी बेल्ट खोल दी, और पैंट भी हुक पे शर्ट के ऊपर, और अब वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी।

एक क्लोज इंस्पेक्शन मेरी टांगों का। फिर पीछे से घुटनों के पास एक बड़ी खरोंच थी।

वाश बेसिन पे होटल वालों ने जो आफ्टर शेव दिया था उसे हाथ में लेकर उसने ढेर सारा घुटने पे लगा दिया।

"उईईई." मैं बड़ी जोर से चीखा।

गुड्डी- "ज्यादा चीखोगे। तो इसे खोलकर लगा दूंगी."

मुश्कुराते हुए उसने अपनी लम्बी उंगलियों से चड्ढी के ऊपर से 'उसे' दबा दिया।

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दर्द, डर और मजे में बदल गया।

गुड्डी- "चड्ढी उतारोगे या मैं उतार दूँ? वैसे अन्दर वाला कई बार देख चुकी हूँ। आज इसलिए ज्यादा शर्माने की जरूरत नहीं है."

"नहीं मैं वो उतार दूंगा." और मैंने झट से नीचे सरका दिया।

गुड्डी- "देखा। चड्ढी उतारने में कोई देरी नहीं." मुश्कुराते हुए वो बोली। फिर पीछे से उसने देखा, एक हाथ में उसके बर्फ के क्यूब थे। मैं जो डर रहा था वही हुआ। वो बोली- "झुको."

मैं झुक गया।

गुड्डी- टांगें फैलाओ।

मैंने फैला दी।

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और बर्फ का क्यूब अपने होंठों में पकड़ के सीधे मेरे बाल्स पे और वहां से हटाने के बाद मेरे पिछवाड़े के छेद पे।

और असर वही जो होना था, वही हुआ। 90° डिग्री।

."
 
[color=rgb(41,]डी॰बी॰
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गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे था और वो एकदम सटी हुई फिर मेरे कुछ बोलने से पहले बोलने लगी-

"हे ये मत बताना की तुम्हारे हास्टल में सीनियर थे, आई पी एस में में हैं यहाँ सिटी एस॰पी॰ हैं. लेकिन अभी एस एस पी के चार्ज में हैं ये सब मुझे आधे घंटे में दो-तीन बार सुनाई पड़ गया है। इनका पूरा नाम, .तुमसे लेकर सब लोग खाली डी॰बी॰,... डी॰बी॰ बोलते हो."

मैं हँसने लगा।

गुड्डी बुरा सा मुँह बनाकर बैठ गई- "तो क्या मैंने चुटकुला सुनाया है?"

मैं- "अरे नहीं यार बात ही ऐसी ही। चलो मैं पूरी बात सुना देता हूँ। वो महाराष्ट्र के हैं। सतारा जिले के। ओके। पूरा नाम है, धुरंधर भाटवडेकर। उनके पिता जी जो फिल्में खास तौर से उत्पल दत्त की पिक्चरें बहुत पसंद हैं। एक पिक्चर आई थी रंग बिरंगी। उसमें उत्पल दत्त का वही नाम था,. बस।लेकिन वो इनीसियल ही इश्तेमाल करते हैं। बहुत लोगों को पूरा नाम मालूम नहीं है."

और वो ' भाभी' जो तुझे बुला रही थीं,जानते हो उनको भी तुम "

मुस्करा के मुझे कुछ चिढ़ाते, कुछ रस लेते मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,
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मैं भी मुस्कराने लगा और यादो के झुरमुट में खो गया, गर्ल्स हॉस्टल, कॉफी हाउस, थियेटर, ड्रामे की रिहर्सल, और डी बी सर ने सिर्फ मुझे मिलवाया था और पहली बार में ही गुड्डी की बात भी चल निकली थी।

देखते ही उन्होंने पूछ लिया डी बी से

" वही जिसकी चिट्ठी आती रहती है,... वही वाला न "
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मैं तो बीर बहूटी हो गया लेकिन वो समझ गयीं और खिलखलाती हुयी पूछी कब से चक्कर चल रहा है और मैंने कबूल दिया तीन साल से ज्यादा तो उन्होंने चिढ़ाया की अभी तक लिफाफा खोल पाए की नहीं

और ये बात सुन के गुड्डी भी खिलखिलाने लगी, फिर पूछी और उन लोगों का लिफाफा कब खुला,
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बात टाल के मैं बोला, उन्होंने तो शादी भी, ....जैसे उनकी ट्रेनिंग शुरू हुयी उसी समय,

" सीखो, कुछ सीखो "

गुड्डी हँसते हुए बोली और मैं डी बी के बारे में सोच रहा था, अकेडमी में भी उनके बड़े किस्से थे , गोल्ड मेडल भी उन्हें मिला था, शार्प तो वो थे ही स्ट्रांग भी और थियेटर और जासूसी कहानियों के शौक़ीन

और मैंने उसके हाथ से रिमोट लेकर चैनेल चेंज कर दिया कोई न्यूज।

गुड्डी ने मुश्कुराते हुए रिमोट फिर छीन लिया और बोली-

"तुम्हारे अन्दर यही बुराई है की तुम हर जगह अपनी बात चलाते हो." और फिर से गाने वाला चैनल लगा दिया।

"जिया तू बिहार के लाला." आ रहा था।

मैं- "तो ठीक है। जहां मेरी बात चलनी हो वहां तुम्हें मेरी बात माननी होगी, और बाकी जगह। ."

और मैं उसके पास सट गया। अब मेरे हाथ भी उसके कंधे पे और उंगलियां उसके उभार पे।

जरा सा रिमोट के लिए मैं रात का प्रोग्राम चौपट नहीं करना चाहता था।

गुड्डी मुश्कुरायी, कनखियों से मुझे देखा और मेरे हाथ जो उसके उभारों के पास था खींचकर उसे सीधे उसके ऊपर कर लिया और हल्के से दबा दिया। उसका दूसरा हाथ अब मेरे बाथिंग तौलिया के ऊपर, जंगबहादुर से एक इंच से भी कम दूर,

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बाथरूम में जो उसने शरारत की थी उससे वो कुनमुना तो गए ही थे अब फिर से उन्होंने सिर उठा लिया, और बिना मुझे देखे टीवी की ओर देखते बोली-

"मंजूर। लेकिन बाकी हर जगह मेरी बात चलेगी। समझ लो। फिर। इधर-उधर मत करना."

मैं- "एकदम." और मैंने अब उसका उभार हल्के से दबा दिया।

तभी कालबेल बजी- "खाना."

उस नटखट किशोरी ने उठते-उठते मेरा बाथिंग गाउन खोल दिया और 'वो' बाहर पूरी तरह सिर उठाये, यही नहीं चलते चलाते वो उठी और खुले जंगबहादुर के सिर की टोपी भी खोल दी। अब सुपाड़ा पूरी तरह खुला। और गुड्डी ने दरवाजा खोल दिया।
 
[color=rgb(235,]तान्या[/color]

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खाने की महक ने मेरी भूख जगा दी। एक डिनर ट्राली पे कुछ प्लेटें और ड्रिंक्स की बोतल लेकर एक सुपर सेक्सी वेट्रेस

और एक अधेड़ उम्र का आदमी। खिचड़ी फ्रेंच दाढ़ी।

वेट्रेस ने टिपिकल फ्रेंच मेड की कास्ट्यूम पहन रखी थी, खूब गोरी, हल्का गुलाबी फाउंडेशन, बड़ी सी आई लैशेज, मस्कारा, बाल पोनी टेल में, सफेद बस्टियर ऐसा टाप, थोड़ा छोटा और गहरी क्लीवेज वाला जिसमें से उसकी 34सी गोलाइयों का आकार साफ नजर आ रहा था। बस्टियर कमर पे बहुत टाईट था। एकदम आवर ग्लास की फिगर के लिए। ब्लैक स्कर्ट घुटनों से करीब एक डेढ़ बित्ते ऊपर और ब्लैक स्टाकिंग्स।

वेट्रेस- "गुड आफ्टर नून मेडम, गुड आफ्टर नून सर। मैं तान्या। आय आम हियर टू सर्व यू टूडे। और मेरे साथ हैं मोंस्यु सिम्नों। फ्राम आकवूड बार आवर वाइन हेड."

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उन्होंने भी सिर झुका के ग्रीट किया और मैंने और गुड्डी ने भी जवाब दिया।

तान्या ने पहले तो दमस्क के टेबल मैट लगाये फिर सिल्वर वेयर, क्राकरी और नेपकिन।

तब तक मुझे अचानक याद आया की 'वो' तो खुला हुआ है।

मैं कुछ बोलता उसके पहले तान्या हमारी ओर बढ़ी लेकिन गुड्डी ने गनीमत थी नेपकिन से 'उसे' ढक दिया और खुद भी नेपकिन रख ली।

तान्या के चेहरे पे एक हल्की सी मुश्कुराहट खेल गई।

मैं समझ गया की वो समझ गई।

उसने गुड्डी की आँखों में देखा और एक मुश्कान दोनों की आँखों में तैर गई। लेकिन तान्या कम दुष्ट नहीं थी, वो हम लोगों की कुर्सी के पीछे खड़ी थी। बल्की ठीक मेरी कुर्सी के पीछे, और हल्की सी झुकी। उसके 34सी उभार मेरी गर्दन को पीछे से हल्के-हल्के ब्रश कर रहे थे, यहाँ तक की खड़े निपलों भी मैं फील कर सकता था। वो थोड़ा और झुकी अब उसके उभार खुलकर रगड़ रहे थे।

तान्या- "वुड यु लाइक टू हैव सम वाइन। वी हैव। सम आफ बेस्ट वाइनस."

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मैं मना करता उसके पहले ही गुड्डी बोल पड़ी- "हाँ हाँ क्यों नहीं."

और जब तान्या ने झुक के वाइन टेस्टिंग ग्लास सामने रखी तो मेरी आँखें खुशी से चमक पड़ी। मैंने उसकी आँखों की ओर चेहरा उठाकर कहा-

"आई विल हैव प्लेजर आफ टेस्टिंग। इफ यू परमिट."

दुहरी खुशी। जब वो झुकी तो उसकी आधी गोलाईयां बस्टियर से छलक रही थी। परफेक्ट उभार, खूब कड़े और गुदाज। वो भी कनखियों से देख रही थी और आँखों में मुश्कुरा रही थी। और वो वाइन टेस्टिंग ग्लास, मेरलोत, कनोसियार्स डिलाईट।

मोंस्योर सिम्नों ने बोतल तान्या को दी और उसने थोड़ी सी डालकर मुझे दी। परफेक्ट व्हाईट ग्लोव सर्विस।

मैंने ग्लास ऊपर करके अपनी आँख के सामने लाकर देखा और मोंस्योर सिम्नों की ओर देखकर बोला- "बोर्देऔक्स."

वो हल्का सा मुश्कुराए और तान्या भी।

मैंने ग्लास को हल्के से घुमाया, ट्विर्ल किया और ग्लास की ओर देखता रहा, हल्के से सूंघा और बोला- "लेफ्ट बैंक."

अबकी तान्या और मोंस्योर सिम्नों दोनों की मुश्कुराहट ज्यादा स्पष्ट थी। फिर दो-चार बूंदें जीभ पे रखकर एक मिनट के लिए महसूस किया और मेरी आँखें बंद हो गई। धीमे-धीमे मैंने उसे गले के नीचे उतारा और जब मैंने आँखें खोली तो मेरी आँखें चमक रही थी-

"ग्रेट। ग्रेट विंटेज मोंस्योर। इफ आई आम नाट रांग। आई थिंक। 2005। 2005 एंड सैंट मार्टिन."

बस मोंस्योर ने ताली नहीं बजाई। प् अब वो बोले- "यस। वी हव स्पेशली सेलेक्टेड फार यू."

मैंने दो घूँट और मुँह में डाली और बोला- "मेर्लोत." उनकी आँखें थोड़ी सिकुड़ी लेकिन फिर मैंने बोला ब्लेंड के लिए अक्चुअली- "कब्रेंते सुव्ग्नन."

उन्होंने हल्के से झुक के बो किया और बोले- यु आर अ रियल गूर्मे, एनी थिंग मोर?"

मैंने हल्के से उठने की कोशिश की तो मुझे याद आया। अरे जंगबहादुर तो खुले हुए हैं और पीछे सटकर तान्या खड़ी है और मैं बैठ गया।

तान्या ने पीछे से मोंशुर से इशारा किया- "आई थिंक इट्स आल राईट। आई विल सर्व देम."

जाते-जाते वो दरवाजे पे एक मिनट के लिए रुक के फिर बोले- "आय आम एत ओकवूड बार। एंड माय फ्रेंडस काल मी क्लोस्ज्युन। एंड नाऊ यू टू कैन काल मी." और दरवाजा बंद कर दिया।

तान्या अब एक बार फिर सामने और उसके ड्रेस फाड़ते उरोज मेरा ध्यान खींच रहे थे। मैं नदीदों की तरह देख रहा था। उसने एक प्लेट में ढेर सारे कबाब रख दिए, और कहा-

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"ये हमारी। कबाब फैक्ट्री से हैं। टुंडा, गलवाटी, काकोरी, सीख और ढेर सारे। नानवेज प्लैटर। वेज प्लैटर भी दूँ?"

"नहीं। ये बहुत हैं। क्यों?" गुड्डी बोली और मुझसे पूछा।

मेरा ध्यान तो तान्या के उभारों में खो गया था। कड़े-कड़े मादक रसीले और जब वो झुकी थी तो आधी गोलाइयां बाहर झांकती, और फिर गुड्डी की बात टालना।

"हाँ हाँ." मैंने भी बोला।

तान्या ने हम लोगों के प्लेट में डालना चाहा तो फिर गुड्डी ने मना कर दिया- "नहीं हम लोग ले लेंगे."

लेकिन उसने बोतल से हम दोनों के वाइन ग्लास में रेड वाइन पोर कर दी।

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अभी भी ¾ बोतल बची थी। मैं भी अब सोच रहा था की वो कहीं ज्यादा देर रुकी और नेपकिन सरक गया तो बनी बनायी। सब गड़बड़ हो जायेगा। मेनू उसने बगल में रख दिया।

तान्या- "ओके। यू फिनिश योर ड्रिंक्स। देन काल मी। जस्ट प्रेस दिस बटन."

उसने एक कार्डलेश काल बेल पकड़ा दी, और कहा- "एंड यु कैन आर्डर। आर जस्ट रिंग मी अट 104। एंड आई विल कम बोन अपेतित."

"ओह्ह. थैंक्स." मैंने और गुड्डी ने साथ-साथ बोला।

तान्या अपने नितम्ब मटकाते हुए बाहर गई और मेरी आँखों ने तुरंत नाप लिया- 35." इंच।
 
[color=rgb(235,]गुड्डी
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[/color]


उसके जाते ही गुड्डी उठी और तुरंत जाकर दरवाजा लाक भी कर दिया।

बाद में हम लोगों ने देखा की उसके लिए भी एक रिमोट था, और लौटकर दो काम किया।

पहला मेरे 'जंगबहादुर' को नेपकिन मुक्त किया। वो हुंकार करते हुए बाहर निकला।
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और दूसरा, कसकर मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका के एक जबर्दस्त चुम्मी दी।

गुड्डी के अन्दर कई अच्छी बातें थी लेकिन एक सबसे अच्छी बात ये थी की वो अपनी बात बोलने के बाद जवाब सुनने का न तो इन्तजार करती थी ना उम्मीद। इसलिए उसको ये बताना बेकार था की जलवा मेरा नहीं मेरे सीनियर डी॰बी॰ का था।

फिर वो मुँह फुला कर बैठ गई, फिर मुश्कुराने लगी, और बोली-

"तुम कैसे लालचियों की तरह उसे देख रहे थे। खास तौर से उसके सीने को?"
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लेकिन फिर चालू हो गई- "वैसे माल मस्त था."

और एक सिप उसने ड्रिंक का लिया। एक सिप मैंने भी।

इस वैरायटी में अल्कोहल बाकी रेड वाइन्स से थोड़ा ज्यादा होता है लेकिन उसका मजा भी है।

मेरा 'वो' जो नेपकिन से मुक्त हो गया था फिर कैद हो गया गुड्डी के बाएं हाथ में और सिर्फ कैद ही नहीं थी कैद बा-बा-मशक्कत थी। उसे मेहनत भी करनी पड़ रही थी। गुड्डी का हाथ आगे-पीछे हो रहा था।
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इस सांप का मंतर गुड्डी ने अच्छी तरह सीख लिया था। गुड्डी ने दूसरा, तीसरा सिप भी ले लिया।

पहले मैंने सोचा की बोलूं जरा धीरे-धीरे। लेकिन फिर टाल गया।

गुड्डी फिर बोली-

"यार वैसे आइडिया बुरा नहीं है। वो साली सिगनल इतना जबर्दस्त दे रही थी। यार मैं लड़कियों की आँख पहचानती हूँ। भले ऊपर से मना करें, और ये तो पिघली जा रही थी। वो आदमी था वरना। अबकी तो जरूर उसे इसकी झलक दिखलाऊँगी, गीली हो जायेगी, और खाने के बाद, स्वीट डिश में वही रस मलाई गप कर जाना। मेरा तो खुद मन कर रहा है लेकिन क्या करूँ? रात के पहले तो कुछ हो नहीं सकता। ये भी पगला रहा है बिचारा."

मेरे लण्ड को कसकर मसलते वो बोली।

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गुड्डी आलमोस्ट मेरी गोद में बैठ गई थी।

लेकिन अब मुड़कर सीधे मेरी गोद में, मेरी ओर मुँह करके, मेरी ही चेयर पे। दोनों टांगें मेरी टांगों के बाहर की ओर फैलाकर गुड्डी के उभार मेरे सीने से रगड़ रहे थे और मेरा खड़ा मस्ताया खुला लण्ड उसकी शलवार के बीच में।

एक हाथ से उसने अपनी वाइन ग्लास की आधी बची वाइन सीधे एक बार में ही मेरे मुँह में उड़ेल दी और बोली-

"सच सच बतलाना। चलो तान्या की बात अभी छोड़ो."

मैं- "पूछो ना जानम." मेरे ऊपर भी हल्का सा एक साथ इतनी गई वाइन का सुरूर चढ़ गया और मैंने कसकर उसे अपनी बाहों में भींच लिया-

"तुमसे कोई बात छिपाता हूँ मैं?"

गुड्डी- "सच्ची। अगर तुम हिचकिचाए भी ना तो तुम जानते हो न मुझे."

गुड्डी के होंठ मेरे होंठ से एक इंच भी दूर नहीं रहे होंगे।

मुझसे ज्यादा कौन जानता था उसको। अगर वो नाराज हो गई तो उसको मनाना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर था। आज रात क्या पूरी होली की छुट्टी सूखी-सूखी बीतने वाली थी। और फिर सबसे बड़ी बात मैं अगर कोशिश भी करता न। तो उससे झूठ नहीं बोल सकता था। मेरा दिल अब मुझसे ज्यादा उसके कंट्रोल में था।

गुड्डी बड़ी सीरियस हो के, मेरी आँखों में आँखे झाँक के बोली,

"ये बताओ। मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, सच सच पूछ रही हूँ। वो जो मेरी नाम राशि है, तेरी ममेरी बहन,... गुड्डी। उसे देखकर कभी कुछ मन वन किया?"

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मैं हिचकिचा रहा था। फिर बोला- "ऐसा कोई चक्कर नहीं है."

मेरे गाल पे एक किस करके फिर गुड्डी बोली-

"ये तो मुझे भी मालूम है की कोई अफेयर वफेयर नहीं है,... लेकिन। मैंने कई बार तुम्हें उसके उभारों को देखते देखा है, वैसे ही जैसे आज तुम इसके सीने को देख रहे थे। खुद मैंने देखा है इसलिए झूठ मत बोलना."

मैं झेंपते हुए नीचे देखते हुए बोला- "नहीं। वो नहीं। मेरा मतलब। अब यार। कोई लड़की सामने होगी। उसके उभार सामने होंगे तो नजर तो पड़ ही जायेगी ना."

गुड्डी फिर बोली- "अरे सिर्फ नजर पड़ गई या उसे देखकर कुछ हुआ भी। माना उसके मेरे से छोटे ही होंगे लेकिन इतने छोटे भी नहीं हैं। हैं तो मस्त गदराये."

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"हुआ क्यों नहीं? ऐसा कुछ खास भी नहीं, लेकिन तुम तो खुद ही बोल रही हो की,... की,... उसके भी मस्त उभार हैं। तो बस वही हुआ। मन किया."

मैं हकलाते हुए बोल रहा था।

गुड्डी ने अब मेरी ग्लास मुड़कर उठा ली। एक सिप खुद ली और बाकी फिर मुझे पिला दिया-

"हाँ तो क्या मन किया उसके उभार देखकर साफ-साफ बोलो यार?" गुड्डी ने फिर पूछा।

कुछ रेड वाइन का असर, कुछ मेरे लण्ड पे गुड्डी के मस्त चूतड़ों की रगड़ाई का असर। मैंने कबूल दिया-

"अरे वही यार। जो होता है। मन करता है बस पकड़ लो दबा दो, मसल दो कसकर, चूम लो। वही."

गुड्डी अब पीछे पड़ गयी मेरी ममेरी बहन को लेकर "अरे बुद्धू साफ-साफ क्यों नहीं बोलते की तू उसकी चूची मसलने के लिए तड़प रहे थे। सिर्फ चूची? लेने का मन नहीं किया कभी। एकाध बार। यार बुरी तो नहीं है वो। और मैं बताऊँ। मेरी तो सहेली है, मुझसे तो सब बताती है। तुम इतने बुद्धू न होते न तो वो खुद ही चढ़ जाती तेरे ऊपर। मैं ये नहीं कह रही हूँ की कोई चक्कर है या तू उसको पटाना चाहता है। बस एकाध बार मजे के लिए, कभी तो मन किया होगा ये खड़ा हुआ होगा उसके बारे में सोचकर?"

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गुड्डी खुद कस-कसकर अपने चूतड़ मेरे लण्ड पे रगड़ते बोली।

मेरा लण्ड अब पागल हो रहा था था। उसका बस चलता तो गुड्डी की शलवार फाड़कर उसके अन्दर घुस जाता।

लेकिन हाथ तो कुछ कर सकते थे। मैंने उसके टाईट कुरते के ऊपर से ही उसकी चूचियां दबानी शुरू कर दी। वो बात भी ऐसी कर रही थी।

गुड्डी- "नहीं यार। नहीं मेरा मतलब एकाध बार तो। यार किसका नहीं हो जायेगा। वो खुद ही."

मैंने मान लिया- "हाँ दो-चार बार हुआ था एकदम ज्यादा। बस मन कर रहा था लेकिन। वैसा कुछ है नहीं हम दोनों के बीच में। लेकिन हाँ. ये खड़ा हुआ भी था कई बार सोचकर। लेकिन."

गुड्डी- "चलो चलो कोई बात नहीं। अबकी होली में मैं दिलवा दूंगी। लेकिन तुम पीछे मत हटना। समझे वरना? मन तो तुम्हारा किया था ना उसकी लेने का। तो बस। अब उसको पटाना मेरा काम है। मंजूर?" और ये कहकर उसने कसकर फिर दो-चार किस लिए और अपनी कुर्सी पे।
 
[color=rgb(243,]कबाब[/color]

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फिर प्लेट पे नजर डालकर जोर से चिल्लाई-

"ऊप्स। सारी। मैं तो भूल ही गई थी तुम प्योर वेजिटेरियन हो। अरे यार मिस्टेक हो गया। वेज स्टार्टर मैंने मना कर दिया और तुम भी तो तान्या की चूची दर्शन में इतने मगन थे की भूल गए। तुम क्यों नहीं बोले? अब चलो। तुम मेन कोर्स का इन्तजार करो मैं तो खाती हूँ."

और फोर्क में एक कबाब का टुकड़ा लगाकर मुझे दिखाते हुए गड़प कर गई।

प्लैटर मैंने एक बार फिर से देखा। मैंने बचपन से अब तक नानवेज कभी नहीं खाया था, नाम के लिए भी नहीं। स्कूल और हास्टल में दोस्तों ने बहुत जिद की, फिर ट्रेनिंग और बाहर भी गया। लेकिन कभी नहीं। कोई धार्मिक या पारिवारिक कारण नहीं। बस नहीं खाया। भूख जोर से लगी थी। लेकिन अब जो गुड्डी ने बोला था मेन कोर्स का इन्तेजार करने के अलावा चारा ही क्या था? लेकिन उन सबसे बढ़कर इतनी अच्छी वाइन। एक ग्लास से ज्यादा तो मैं गटक गया था। गुड्डी के सौजन्य से। लेकिन खाली पेट और खाली पेट वाइन मतलब हैंगओवर। गैस और वाइन की ¾ भरी बोतल सामने थी।

मैंने फिर प्लेटर की ओर देखा। कम से कम 14 आइटम रहे होंगे। उसके अलावा सास, तरह-तरह की चटनी। पांच आइटम तो खाली चिकेन के थे- चिकेन लालीपाप, चिकेन टिक्का, चिकेन रेशमी कबाब, टंगड़ी कबाब और मुर्ग अचारी टिक्का।

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उसके बाद मटन के आइटम- मटन गिलाफी सीक, मटन, मटन मेथी सीक, मटन काकोरी कबाब और मटन लैम्ब चाप इन सिनेमम सास। फिर फिश फिंगर और फिश बटर फ्राई भी थी। इसके अलावा, झींगा लासुनी, थाई श्रिम्प केक और चिली गार्लिक प्रान।

गुड्डी- "तुमने कभी नानवेज नहीं खाया ना?" गुड्डी के होंठों के बीच में एक गिलाफी सीक था।

"न." मैं वाइन की ग्लास हाथ में घुमाते बोल रहा था।

गुड्डी ने फिर पूछा- "घर में और कोई?"

मैं- "तुम्हें मालूम है। भाभी तो खाती है और कोई नहीं." सामने वाइन का ग्लास तो मैंने भर लिया था। लेकिन।

गुड्डी- "नहीं खाओगे पक्का?" कहकर उसने मेरा इरादा टेस्ट किया।

"नहीं." मैंने अपने निश्चय को पक्का करते हुए कहा, और गुड्डी के ग्लास में भी वाइन डाल दी।

गुड्डी- "चलो। मैं कहूँगी भी नहीं." और अब वो मेरी ओर और सरक आई एकदम सटकर, और उसका हाथ मेरे कंधे पे। उसने मुझे अपनी ओर खींच रखा था। चिकेन लालीपाप उसके मुँह में था और वो मेरे मुँह के पास अपना मुँह लाकर बोली- "वैसे है बहुत स्वादिष्ट."

मैं क्या बोलता?

गुड्डी बोली- "मुँह खोलो खूब बड़ा सा."

मैं सशंकित- "क्यों?" मैंने धीमे से पूछा।

गुड्डी- "अभी क्या तय हुआ था उस समय? मैं तुम्हारी सब बात मानूंगी और बाकी समय तुम और इतनी जल्दी। मुँह ही खोलने को कह रही हूँ। और कुछ खोलने को तो नहीं कह रही हूँ."

मैंने मुँह खोल दिया।

गुड्डी- "आँखें बंद."

मैंने आँखें बंद कर ली। और अगले पल लालीपाप मेरे मुँह के अन्दर और गुड्डी मेरी गोद में- "यार तेरे हाथ मार कुटाई करके थक गए होंगे और अभी वो तान्या आती होगी, उसका भी जोबन मर्दन करना होगा। तो चलो थोड़ा आराम करो और थोड़ा प्रैक्टिस."

मेरे हाथ गुड्डी के जोबन पे थे वो भी ऊपर से नहीं गुड्डी ने अपने कुरते के बटन खोलकर अन्दर सीधे वहीं। बाकी का लालीपाप गुड्डी के होंठों से कुचला कुचलाया। मेरे हाथ गुड्डी के रसीले उभारों का रस लूट रहे थे। थोड़ी देर में पूरा प्लेटर और वाइन की बोतल खतम हो गई थी। थोड़ा गुड्डी के हाथों से गया, थोड़ा गुड्डी के मुँह से और काफी कुछ मेरी जीभ ने गुड्डी के मुँह में जाकर निकालकर। मुख रस में लिथड़ा। अधखाया। कुचला।

और इस दौरान एक पल के लिए भी दुकान में हुई घटना। वो गुंडे,. वो पोलिस वाले जो हम लोगों को अन्दर करना चाहते थे और बाद में जो डी॰बी॰ ने बताया की जिससे मैं भिड़ गया था, शुक्ला एक नोन गैंगस्टर था,.. कुछ भी नहीं याद आया। गुड्डी ने जैसे सब कुछ इरेज कर दिया है और हम लोग सीधे उसके घर से रीत के पास से, अपने घर जा रहे हों, और बीच में जो हुआ वो एक दुस्वप्न था जिसे हम लोग भूल चुके हों।

गुड्डी ने पूछा- "मीनू देखें या?" और खुद ही फैसला कर दिया- "उस छैल छबीली को ही बोल देते हैं." और फोन उठाकर गुड्डी ने बोल दिया। मैंने सिर्फ हाँ हूँ। एकदम सुना। पता ये चला की अबकी फिर गुड्डी ने नानवेज का ही आर्डर कर दिया और पूछने पे बोला- "कौन दिमाग लगाए। खाना तो खाना."
जब तक मेन कोर्स आता मैं बाथरूम में जाकर अपने कपड़े पहनकर वापस आ गया और उसी समय तान्या फिर फूड ट्राली के साथ आई।

हम लोगों का पेट तो स्टार्टर्स से ही काफी भर गया था, लेकिन फिर भी इसरार करके। और इस बार भी। लैम्ब विद पोर्ट-रेड वाइन सास, चेत्तिनाड मटन करी, और लखनवी चिकेन दो प्याजा, साथ में असारटेड ब्रेड और हैदराबादी बिरयानी।

तान्या थी तो गुड्डी खिलाती नहीं, तो मुझे अपने हाथ से ही नानवेज खाना पड़ा और गुड्डी कनखियों से देखकर मुश्कुरा रही थी।

जैसे कह रही हो- "देखा। अभी तो ये शुरूआत है, देखो क्या-क्या करवाती हूँ तुमसे?"
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खाने के बाद जब गुड्डी बाथरूम गई तो तान्या ने राज खोला।

मेरी खातिर डी॰बी॰ के चक्कर में तो हो ही रही थी लेकिन कुछ-कुछ मेरे चक्कर में भी। शुक्ला के पकड़े जाने को पुलिस ने दबाकर रखा था और मुझे तो वैसे भी कोई नहीं जानता था, लेकिन थोड़ी बहुत खबर लग गई थी।

शुक्ला के नाम पे हर होटल में एक स्यूट रिजर्व रहता था। इसके आलावा ताज, क्लार्क हर जगह एक कमरा होटेल वालों को खाली रखना पड़ता था। उसकी मर्जी जहाँ रुके और ऐय्याशी भी उसने काफी शुरू कर दी थी। सेक्स के साथ-साथ वो सैडिस्ट भी था।

इसलिए और सब उससे डरते थे।

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तान्या पे भी उसकी नजर थी और वो बोलकर गया था की अगली बार वो होटल में आया तो रात उसे उसके साथ ही गुजारनी पड़ेगी। होटल के मैनेजर को उसने बोला था-

"आपकी लड़की शाम को चार बजे लहुराबीर कोचिंग के लिए जाती है."

स्वीट डिश में रबड़ी, गुलाब जामुन, लेकिन गुलाब जामुन के चारों ओर बूंदी लगी थी। मीठी बूंदी।

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हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा, लेकिन कोई नंबर नहीं। मैंने फिर ध्यान से देखा तो लिखा था- "प्राइवेट नम्बर."

अचानक मुझे ध्यान आया, डी॰बी॰ का नंबर। मुझे एस॰एम॰एस॰ किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेगा। मैंने फोन उठाया।

डी॰बी॰ की आवाज बड़ी सीरियस थी, बोले - "टीवी देख रहे हो?"

मैं- "हाँ." टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला-

आई आम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन।

व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन

ऊ ऊ।

आवाज उनके फोन पे जा रही होगी।

डी॰बी॰बोले "अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज."
 
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