hotaks444
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"हेलो, प्रताप कहाँ हो"
"ऑफीस में. कहो कैसे याद किया ?" प्रताप ने पूचछा.
"प्रताप, यह जगबीर क्या करता है ?" शबाना ने सीधे सीधे सवाल किया.
"क्यों जान अब पीछे से वार करने वाले पसंद आ गये, भाई हम तो लूट जाएँगे" प्रताप ने रोमॅंटिक होते हुए कहा
"धुत्त, ऐसी कोई बात नहीं है, ऐसे ही पूच्छ रही हूँ" शबाना ने शरमाते हुए कहा.
"वो असिस्टेंट कमिशनर ऑफ पोलीस है. काफ़ी ऊँची चीज़ है वो. काम है क्या कुच्छ ? अर्रे हम ही आ जाते हैं"
"चुपचाप काम करो अपना, हर वक़्त यही नहीं सोचा करते." शबाना ने बात ख़त्म की. वो नहीं चाहती थी कि इतनी जल्दी दोबारा बुलाया जाए, ख़ासकर ताज़ीन के सामने.
फोन रखने पर शबाना की परेशानी अब बढ़ गई थी. यानी की जगबीर सचमुच काफ़ी पहुँचा हुआ आदमी था. और उसने जो भी कहा था, वो बात जितनी सीधी दिख रही थी उतनी थी नहीं. ज़रूर कुच्छ कारण रहा होगा.
"शबाना क्या सोच रही हो ?" ताज़ीन के प्रश्न ने उसकी तंद्रा भंग की थी.
"कुच्छ नहीं, तुम्हारे भैया आज जल्दी आ गये."
"हां अच्च्छा हुआ, आज तो हम बाल बाल बच गये. अगर मेरे कहने पर जग्गू और प्रताप रुक जाते तो आज तो गये ही थे काम से."
"हाई जगबीर"
"हाई. कौन ?"
"अच्च्छा, तो अब आवाज़ भी नहीं पहचानते हैं जनाब."
"ओह्हो, शबानाजी, बड़े दिनों बाद याद किया." बड़े अदब से चुटकी ली जगबीर ने.
"क्या करें आप तो याद करते नहीं, सो हमने ही फोन कर लिया.एक महीने आपके फोन की राह देखी है." शिकायती लहज़े में कहा शबाना ने.
"आप बुला लेते हम हाज़िर हो जाते" जगबीर के पास जवाब तैयार था.
"अभी आ सकते हैं ?
"अभी नहीं. कल आ जाता हूँ अगर आपको आपत्ति ना हो तो."
"ठीक है. तो कल 11 बजे ?"
"ओके डियर" बिना शबाना के जवाब का इंतेज़ार किए फोन काट दिया जगबीर ने.
"सरदार बहोत तेज़ है. लेकिन साला है बहोत ही इंट्रेस्टिंग." शबाना, जैसे अपनेआप से कह रही हो.
उसने दोबारा फोन लगाया "हां ज़रीना, में घर पर ही हूँ, तुम ज़ीनत को भेज सकती हो"
दरवाज़े की दस्तक से शबाना का ध्यान भंग हुआ. कोई था शायद बाहर.
ज़रीना थी, अपनी बेटी को छ्चोड़ने आई थी. ज़रीना शबाना से उम्र में 15 साल बड़ी थी लेकिन सबसे अच्छि सहेली थी और थोड़ी ही दूरी पर रहती थी, इसलिए कभी कभी आ जाती थी. उसकी बेटी ज़ीनत के 10थ के एग्ज़ॅम्स थे और उसने शबाना से रिक्वेस्ट की थी थोड़ी मदद कर देने के लिए. क्योंकि उस इलाक़े में सबसे ज़्यादा पढ़ी लिखी महिला शबाना ही थी. एमएससी इन केमिस्ट्री.
[size=large]ज़रीना के जाने के बाद शबाना ने दरवाज़ा बंद कर लिया.
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ज़ीनत काफ़ी खूसूरत थी और उसके मम्मे उसकी उम्र को काफ़ी पीछे छ्चोड़ चुके थे. उसका जिस्म देखकर कोई भी यही सोचेगा की 18-19 की है. पहनावा भी काफ़ी मॉडर्न किस्म का था. कॉनवेंट में पढ़ने वाली ज़ीनत रोज़ घुटनों के ऊपर तक की फ्रॉक पहन कर स्कूल जाती थी. और ज़रीना ने काफ़ी छ्छूट दे रखी थी उसे. आख़िर एकलौती संतान थी वो.
"दीदी, कल केमिस्ट्री की एग्ज़ॅम है. और मुझे तो कुछ समझ नहीं आता है. यह टेबल्स और केमिकल फॉर्मुलास तो मेरी जान ले लेंगे" काफ़ी झुंझलाई हुई थी ज़ीनत.
"कोई बात नहीं, में समझा दूँगी" शबाना ने प्यार से कहा.
तीन घंटे की पढ़ाई के बाद ज़ीनत काफ़ी खुश थी. उसका लगभग सारा पोर्षन ख़त्म हो चुका था. उसने शबाना और खुद के लिए चाइ बनाई. "थॅंक यू दीदी, मुझे तो लगा था में गई इस बार. आपने बचा लिया." कहते हस उसने शबाना को गले लगा लिया.
अगले दिन परवेज़ के जाने के बाद, वो जगबीर का इंतेज़ार करने लगी थी.
ठीक 11 बजे जगबीर आ गया.
"क्यों डार्लिंग बड़े दिनों बाद याद किया. वो भी जब प्रताप बाहर गया है. जब तक वो था, आपने तो हमें याद ही नहीं किया" जगबीर ने सवाल में ही जवाब दाग दिया था.
"लगता है, आप उसके बिना आप कुच्छ कर नहीं सकते. हर बार उसकी मदद चाहिए क्या ?" शबाना ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया.
"पता चल जाएगा जानेमन" कहते हुए जगबीर ने उसे बाहों में उठा लिया.
"क्यों आज शराब नहीं लाए ?" शबाना ने पूचछा.
"में दिन में नहीं पीता, तुम्हें पीनी है तो ले आता हूँ" अब जगबीर उसके जिस्म को हर जगह से दबा रहा था.
"मुझे जो चाहिए तुम्हारे पास है, शराब फिर कभी ट्राइ करूँगी" शबाना ने कहा.
उसने शबाना की सारी का पल्लू हटाया और उसके ब्लाउस के ऊपर से ही उसके मम्मों को दबाने लगा. उसके होंठों को अपने होंठों में दबाते हुए उसने एक हाथ उसके मम्मों पर रख दिया और दूसरे हाथ से उसकी सारी को ऊँचा उठाकर उसकी गंद को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. उसने शबाना को एकदम जाकड़ लिया. शबाना उसके लंड को अपनी चूत पर महसूस कर सकती थी और उसकी जैसे साँस अटक रही थी.
[size=large]जगबीर ने फिर उसे अलग किया और उसकी सारी को खींच कर निकाल दिया. उसके पेटिकोट का नारा खींचते ही निकल गया. जगबीर उसके पैरों के बीच बैठ गया और उसकी चड्डी उतार दी. अब उसका मुँह शबाना की नाभि को चूस रहा था और उसका एक हाथ शबाना के दोनों पैरों के बीच उसकी जांघों पर सैर कर रहा था. उसने शबाना की जाँघ पर दबाव बनाया और शबाना ने अपने पैर फैला दिए. अब वो जगबीर को अपनी चूत खिलाने के लिए तैयार थी.उसने अपनी चूत आगे की तरफ धकेली. जगबीर ने अपने दोनों हाथों को उसकी टाँगों के बीच से लेकर उसकी गंद पर रख दिए. शबाना के पैर और फैल गये और उसकी आयेज की तरफ निकली हुई चूत जगबीर के मुँह के ठीक सामने थी. "सस्सीए" सिसकारी छ्छूट गई शबाना की जब जगबीर की जीभ ने उसकी चूत को चॅटा और उसके किनारों पर ज़ोर से रगड़ दी. जगबीर की जीभ उसकी चूत में घुसती जा रही थी और शबाना के पैर जैसे उखाड़ने को थे. जगबीर के हाथ जो शबाना के पैरों के बीच से पीछे की तरह थे, उनसे शबाना के हाथों की कलाईयों को पकड़ लिया, अब शबाना की चूत और आगे की तरफ निकल आई और जगबीर की जीभ उसकी चूत में और अंदर धँस गई. जगबीर ने इसी स्थिति में उसे उठा लिया और एक धक्का देकर बेड के बिल्कुल किनारे पर पटक दिया और खुद बेड के नीचे घुटनों के बल बैठ गया.
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"ऑफीस में. कहो कैसे याद किया ?" प्रताप ने पूचछा.
"प्रताप, यह जगबीर क्या करता है ?" शबाना ने सीधे सीधे सवाल किया.
"क्यों जान अब पीछे से वार करने वाले पसंद आ गये, भाई हम तो लूट जाएँगे" प्रताप ने रोमॅंटिक होते हुए कहा
"धुत्त, ऐसी कोई बात नहीं है, ऐसे ही पूच्छ रही हूँ" शबाना ने शरमाते हुए कहा.
"वो असिस्टेंट कमिशनर ऑफ पोलीस है. काफ़ी ऊँची चीज़ है वो. काम है क्या कुच्छ ? अर्रे हम ही आ जाते हैं"
"चुपचाप काम करो अपना, हर वक़्त यही नहीं सोचा करते." शबाना ने बात ख़त्म की. वो नहीं चाहती थी कि इतनी जल्दी दोबारा बुलाया जाए, ख़ासकर ताज़ीन के सामने.
फोन रखने पर शबाना की परेशानी अब बढ़ गई थी. यानी की जगबीर सचमुच काफ़ी पहुँचा हुआ आदमी था. और उसने जो भी कहा था, वो बात जितनी सीधी दिख रही थी उतनी थी नहीं. ज़रूर कुच्छ कारण रहा होगा.
"शबाना क्या सोच रही हो ?" ताज़ीन के प्रश्न ने उसकी तंद्रा भंग की थी.
"कुच्छ नहीं, तुम्हारे भैया आज जल्दी आ गये."
"हां अच्च्छा हुआ, आज तो हम बाल बाल बच गये. अगर मेरे कहने पर जग्गू और प्रताप रुक जाते तो आज तो गये ही थे काम से."
"हाई जगबीर"
"हाई. कौन ?"
"अच्च्छा, तो अब आवाज़ भी नहीं पहचानते हैं जनाब."
"ओह्हो, शबानाजी, बड़े दिनों बाद याद किया." बड़े अदब से चुटकी ली जगबीर ने.
"क्या करें आप तो याद करते नहीं, सो हमने ही फोन कर लिया.एक महीने आपके फोन की राह देखी है." शिकायती लहज़े में कहा शबाना ने.
"आप बुला लेते हम हाज़िर हो जाते" जगबीर के पास जवाब तैयार था.
"अभी आ सकते हैं ?
"अभी नहीं. कल आ जाता हूँ अगर आपको आपत्ति ना हो तो."
"ठीक है. तो कल 11 बजे ?"
"ओके डियर" बिना शबाना के जवाब का इंतेज़ार किए फोन काट दिया जगबीर ने.
"सरदार बहोत तेज़ है. लेकिन साला है बहोत ही इंट्रेस्टिंग." शबाना, जैसे अपनेआप से कह रही हो.
उसने दोबारा फोन लगाया "हां ज़रीना, में घर पर ही हूँ, तुम ज़ीनत को भेज सकती हो"
दरवाज़े की दस्तक से शबाना का ध्यान भंग हुआ. कोई था शायद बाहर.
ज़रीना थी, अपनी बेटी को छ्चोड़ने आई थी. ज़रीना शबाना से उम्र में 15 साल बड़ी थी लेकिन सबसे अच्छि सहेली थी और थोड़ी ही दूरी पर रहती थी, इसलिए कभी कभी आ जाती थी. उसकी बेटी ज़ीनत के 10थ के एग्ज़ॅम्स थे और उसने शबाना से रिक्वेस्ट की थी थोड़ी मदद कर देने के लिए. क्योंकि उस इलाक़े में सबसे ज़्यादा पढ़ी लिखी महिला शबाना ही थी. एमएससी इन केमिस्ट्री.
[size=large]ज़रीना के जाने के बाद शबाना ने दरवाज़ा बंद कर लिया.
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ज़ीनत काफ़ी खूसूरत थी और उसके मम्मे उसकी उम्र को काफ़ी पीछे छ्चोड़ चुके थे. उसका जिस्म देखकर कोई भी यही सोचेगा की 18-19 की है. पहनावा भी काफ़ी मॉडर्न किस्म का था. कॉनवेंट में पढ़ने वाली ज़ीनत रोज़ घुटनों के ऊपर तक की फ्रॉक पहन कर स्कूल जाती थी. और ज़रीना ने काफ़ी छ्छूट दे रखी थी उसे. आख़िर एकलौती संतान थी वो.
"दीदी, कल केमिस्ट्री की एग्ज़ॅम है. और मुझे तो कुछ समझ नहीं आता है. यह टेबल्स और केमिकल फॉर्मुलास तो मेरी जान ले लेंगे" काफ़ी झुंझलाई हुई थी ज़ीनत.
"कोई बात नहीं, में समझा दूँगी" शबाना ने प्यार से कहा.
तीन घंटे की पढ़ाई के बाद ज़ीनत काफ़ी खुश थी. उसका लगभग सारा पोर्षन ख़त्म हो चुका था. उसने शबाना और खुद के लिए चाइ बनाई. "थॅंक यू दीदी, मुझे तो लगा था में गई इस बार. आपने बचा लिया." कहते हस उसने शबाना को गले लगा लिया.
अगले दिन परवेज़ के जाने के बाद, वो जगबीर का इंतेज़ार करने लगी थी.
ठीक 11 बजे जगबीर आ गया.
"क्यों डार्लिंग बड़े दिनों बाद याद किया. वो भी जब प्रताप बाहर गया है. जब तक वो था, आपने तो हमें याद ही नहीं किया" जगबीर ने सवाल में ही जवाब दाग दिया था.
"लगता है, आप उसके बिना आप कुच्छ कर नहीं सकते. हर बार उसकी मदद चाहिए क्या ?" शबाना ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया.
"पता चल जाएगा जानेमन" कहते हुए जगबीर ने उसे बाहों में उठा लिया.
"क्यों आज शराब नहीं लाए ?" शबाना ने पूचछा.
"में दिन में नहीं पीता, तुम्हें पीनी है तो ले आता हूँ" अब जगबीर उसके जिस्म को हर जगह से दबा रहा था.
"मुझे जो चाहिए तुम्हारे पास है, शराब फिर कभी ट्राइ करूँगी" शबाना ने कहा.
उसने शबाना की सारी का पल्लू हटाया और उसके ब्लाउस के ऊपर से ही उसके मम्मों को दबाने लगा. उसके होंठों को अपने होंठों में दबाते हुए उसने एक हाथ उसके मम्मों पर रख दिया और दूसरे हाथ से उसकी सारी को ऊँचा उठाकर उसकी गंद को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. उसने शबाना को एकदम जाकड़ लिया. शबाना उसके लंड को अपनी चूत पर महसूस कर सकती थी और उसकी जैसे साँस अटक रही थी.
[size=large]जगबीर ने फिर उसे अलग किया और उसकी सारी को खींच कर निकाल दिया. उसके पेटिकोट का नारा खींचते ही निकल गया. जगबीर उसके पैरों के बीच बैठ गया और उसकी चड्डी उतार दी. अब उसका मुँह शबाना की नाभि को चूस रहा था और उसका एक हाथ शबाना के दोनों पैरों के बीच उसकी जांघों पर सैर कर रहा था. उसने शबाना की जाँघ पर दबाव बनाया और शबाना ने अपने पैर फैला दिए. अब वो जगबीर को अपनी चूत खिलाने के लिए तैयार थी.उसने अपनी चूत आगे की तरफ धकेली. जगबीर ने अपने दोनों हाथों को उसकी टाँगों के बीच से लेकर उसकी गंद पर रख दिए. शबाना के पैर और फैल गये और उसकी आयेज की तरफ निकली हुई चूत जगबीर के मुँह के ठीक सामने थी. "सस्सीए" सिसकारी छ्छूट गई शबाना की जब जगबीर की जीभ ने उसकी चूत को चॅटा और उसके किनारों पर ज़ोर से रगड़ दी. जगबीर की जीभ उसकी चूत में घुसती जा रही थी और शबाना के पैर जैसे उखाड़ने को थे. जगबीर के हाथ जो शबाना के पैरों के बीच से पीछे की तरह थे, उनसे शबाना के हाथों की कलाईयों को पकड़ लिया, अब शबाना की चूत और आगे की तरफ निकल आई और जगबीर की जीभ उसकी चूत में और अंदर धँस गई. जगबीर ने इसी स्थिति में उसे उठा लिया और एक धक्का देकर बेड के बिल्कुल किनारे पर पटक दिया और खुद बेड के नीचे घुटनों के बल बैठ गया.
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