hotaks444
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" अरे सारी शर्ते मंजूर है बस आप देखती जाइए बस एक बार आप लिफ्ट दिला दीजिए फिर देखिए छीनाल भी मात हो जाएगी उससे." नंदोई जी मेरे कान मे बोले.
अब खुल कर मेरा दूसरा जोबन भी उनकी गिरफ़्त मे था. विजयी भाव से मैने अपनी बड़ी ननद को देखते हुए, प्रस्ताव दुहाराया, " ननद रानी एक बार फिर सोच लीजिए, आख़िरी बार, अदला बदली कर लीजिए जो अपने मेरे उनका बचपन में देखा होगा अब वैसा नहीं है, पूरा मूसल हो गया है एक बार ट्राई कर के देख लीजिए मेरे सैयाँ को"
झुंझला कर वो बोलीं, " अरे तुम्हारा मूसल तुम्ही को मुबारक, मेरा भी रख लो अपना भी घोन्टो."
" अरे ननद जी पट गयी क्या मूसल के नाम से चख कर तो देखिए."
" अरे क्या पट गयी गान्ड फॅट गयी साफ साफ खुल कर बोलो ना, क्या आडि टेढ़ी बात बोलती हो." गुलाबो फिर अपने मूड में आ गयी.
" अरे तो क्या गान्ड अब तक नंदोई जी से बची थी फटने को." भोलेपन से जिठानी जी ने छेड़ा.
" हाँ आप के नंदोई जी इत्ते सीधे हैं जो छोड़ेगें" हंसकर लाली बोली और मेरी ओर मोरचा खोलते हुए बोली, " और रीनू भाभी , तुम्हारी बची है क्या."
" हाँ आप के भाई इतते सीधे हैं जो छोड़ेंगें". मुस्करा कर उसी अंदाज में मैने बोला. और हम सब लोग ंसाने लगे.
तब तक दुलारी आई कि मंडप में उड़द छूने की रसम के लिए हम लोगों का इंतजार हो रहा है और हम लोग चल दिए.
काफ़ी समय रसम और शादी के काम में बीत गया. तब तक मैनें देखा कि गुड्डी शॉपिंग से आ गयी है. उसने बताया कि राजीव और अल्पना उसे छोड़ कर जनवासे के इताज़ाम के लिए चले गये हैं. मैं उसे सबसे उपर वाली मंज़िल पे उस कमरे
में ले गयी जहाँ हमने सब समान रख रखा था और कोई आता जाता नहीं था. मैने उसके कंधे पे हाथ रख के प्यार से समझाया, " देखो गुड्डी तुम्हारे जीजा बहोत नाराज़ थे, वो तो मैने बहोत मुश्किल से उन्हे समझाया अब आगे तुम्हारे हाथ मे है, तुम्हे सब इनिशियेटिव लेना पड़ेगा, सब शर्म लिहाज छोड़ कर मैने तुम्हे समझाया है ना कैसे देखो अल्पी ने तो आज ही
उनको जीजा बनाया है और कैसे सबके सामने खुल के मज़े ले रही है तुम उससे भी दो हाथ आगे बढ़ जाओ, अपने हाथ से उनका हाथ पकड़ के अपने कबूतरों को पकड़वाओ, अरे एक बार उनका गुस्सा ख़तम हो गया ना तो फिर तो खुद ही तुम्हे नही छोड़ेंगें" और मैने उसको सारी बातें खोल कर समझा दी.
" हाँ भाभी, आप बहुत अच्छी है बस एक बार आप दोस्ती करवा दीजिए, फिर आप देखिए"
" ठीक है, तो मैं उनको लाने जाती हू तुम यही रहना और तुम्हे वो शर्त तो याद ही होगी कि अगर तुम्हारी चिड़िया ने 24 घंटे के अंदर चारा नही घोन्टा तो" और मैं नीचे जा कर नंदोई जी को ले आई. नीचे सब लोग काम मे व्यस्त थे कि किसी ने ध्यान ही नही दिया कि हम लोग कहाँ है.
जीत को देखते ही जब तक वह कुछ समझे, गुड्डी उनसे लिपट गई. उनकी तो चाँदी हो गयी. उन्होने भी जवाब मे उसे कस के भीच लिया. उन्होने उसका सर पकड़ के अपनी ओर खींचा तो उसने खुद अपने किशोर होंठ अपने जीजा के होंठों पे रख दिए. अब तो जीत पागल हो गये. वो कस के उस के गुलाबी होंठों को कभी चूमते, कभी अपने होंठों मे दबा के उस का रस लेते. उन्होने अपनी जीब उसके मस्त रसीले होंठों के बीच डाल दी और कस कस के रस लेने लगे. जब उन्होने अपने होंठों से उसको आज़ाद किया तो मैने आँखों से गुड्डी को कुछ इशारा किया. उसने शिकायत भरे स्वर मे अपने जीजा का हाथ पकड़ के कहा,
" जीजू, आप इत्ते लेट क्यों आए आप को साली की ज़रा भी याद नही आती, देखिए आप की याद मे आप की साली का सीना कित्ता ज़ोर से धड़क रहा है," और यह कह के उसने अपने जीजा का हाथ सीधे अपने टॉप पे मम्मो के उपर रख दिया और कस के दबा दिया. जीत की तो हालत खराब थी. फिर भी उन्होने मौके का फ़ायदा उठा कर
बोल ही दिया,
" ये तो टॉप है, साली जी सीना तो देखे कैसे धड़क रहा है मेरी याद मे"
" लीजिए जीजू, आप भी याद करिएगा किस साली से पाला पड़ा था," और उसने खुद अपने हाथ से उनका हाथ पकड़ के, अपने टॉप के अंदर घुसा कर, सीधे, अपने टीन बूब्स के उपर रख दिया.
मैने मौके का फ़ायदा उठा कर कहा, अब मैने जीजा साली को मिलवा दिया अब मैं चलती हू.
बाहर निकल कर मैं चौकीदार की तरह थी, कि कोई और आए तो मैं उन्हे आगाह कर दू और वहाँ से मुझे अंदर का सीन भी दिख रहा था. आधे घंटे से भी ज़्यादा, जैसे मैने समझाया था, जीजा ने साली का खूब चुंबन लिया, जोबन मर्दन
किया बल्कि अच्छी तरह टॉप उठा कर जोबन दर्शन भी किया और गोद मे अपने कड़े खुन्टे पे बैठाया.
जब वह बाहर निकले तो जीजा का हाथ साली के उभारों पे था और साली भी खुल के, बिना किसी शर्म के ज़ुबान का रस अपने जीजा को दे रही थी. कभी खुद उनके गाल से गाल रगड़ती, कभी उन्हे दिखा के अदा से अपने जोबन को कस कस के उभारती.
मेरे प्लान का पहला पार्ट पूरा हो चुका था. गुड्डी अपने जीजू से ऐसे चिपक गयी थी जैसे, लिफाफे से टिकट. मंडप मे, आँगन मे कही भी जहाँ उसके जीजा जाते साथ साथ वहाँ और मेरे ननदोइ जी भी मौके का पूरा फ़ायदा उठा रहे थे, कभी उनके हाथ उसके गोरे गोरे गाल सहलाते, कभी जोबन का रस लेते और अब वह हमारे खुले मज़ाक मे भी बिना शरमाये पूरा
हिस्सा ले रही थी. मंडप मे वह एक रस्म मे बैठी थी पर निगाह उसकी अपने जीजू पे थी. मैं उनके साथ बैठी दूर से उसे चिढ़ा रही थी. नंदोई जी का एक हाथ मेरे कंधे पे था. उन्होने मेरे गाल से गाल सटाकर धीरे से कहा,
" सलहज जी आप जादू जानती है, मैं तो सोच नही सकता था."
" अरे नंदोई जी, जादू की छड़ी तो आपके पास है अभी मेरी छोटी ननद को अपनी ये लंबी, मोटी जादू की छड़ी पकड़ाए कि नही?" उनकी बात काटकर मैं बोली. मेरी उगलिया उनके पाजामे के उपरी हिस्से पे सहला रही थी, जहाँ हल्का हल्का तंबू तना था.
" नही, हाँ, डिब्बे के उपर से जादू की छड़ी को ज़रूर छुबाया था" हंसकर वो बोले.
"अरे उपर से क्यों दिया, खोलकर , पूरा पकड़ा देना चाहिए था, अरे देखिए ना उसके गुलाबी हाथ मे मेहंदी कैसी रच रही है, और उसको पकड़ कर तो मेहंदी का रंग और निखर आता. जब एक बार उस मोटे जादू के डंडे को पकड़ कर, सहला कर, अपनी मुट्ठी मे दबा कर देखेगी ना तो उस के मन से डंडे का डर निकल जाएगा, और उससे खुलवा कर अपने मोटे पहाड़ी आलू को भी मैं तो कहती हू उसको खुल कर बेशर्म बना डालिए तभी असली मज़ा आएगा. बहुत तड़पाया है इस साली ने आप को अब आप का दिन है." अब मेरी उंगली तने तंबू के ठीक उपर थी.
" हां, सलह्ज जी आप ठीक कहती है अब बस आप देखती जाइए, दो दिन के अंदर एकदम बदल दूँगा इसको.
जैसे ही वह मंडप से निकली, नंदोई जी ने इशारा किया और उनके पीछे वह बँधी बँधी चली गयी, उपर उस कमरे की ओर जहाँ अभी थोड़ी देर पहले उनकी मैने मुलाकात करवाई थी. मैं मुस्कुरा कर रह गयी कि मेरी शर्मीली ननद की ट्रैनिंग का एक और चॅप्टर आगे बढ़ रहा होगा.
अब खुल कर मेरा दूसरा जोबन भी उनकी गिरफ़्त मे था. विजयी भाव से मैने अपनी बड़ी ननद को देखते हुए, प्रस्ताव दुहाराया, " ननद रानी एक बार फिर सोच लीजिए, आख़िरी बार, अदला बदली कर लीजिए जो अपने मेरे उनका बचपन में देखा होगा अब वैसा नहीं है, पूरा मूसल हो गया है एक बार ट्राई कर के देख लीजिए मेरे सैयाँ को"
झुंझला कर वो बोलीं, " अरे तुम्हारा मूसल तुम्ही को मुबारक, मेरा भी रख लो अपना भी घोन्टो."
" अरे ननद जी पट गयी क्या मूसल के नाम से चख कर तो देखिए."
" अरे क्या पट गयी गान्ड फॅट गयी साफ साफ खुल कर बोलो ना, क्या आडि टेढ़ी बात बोलती हो." गुलाबो फिर अपने मूड में आ गयी.
" अरे तो क्या गान्ड अब तक नंदोई जी से बची थी फटने को." भोलेपन से जिठानी जी ने छेड़ा.
" हाँ आप के नंदोई जी इत्ते सीधे हैं जो छोड़ेगें" हंसकर लाली बोली और मेरी ओर मोरचा खोलते हुए बोली, " और रीनू भाभी , तुम्हारी बची है क्या."
" हाँ आप के भाई इतते सीधे हैं जो छोड़ेंगें". मुस्करा कर उसी अंदाज में मैने बोला. और हम सब लोग ंसाने लगे.
तब तक दुलारी आई कि मंडप में उड़द छूने की रसम के लिए हम लोगों का इंतजार हो रहा है और हम लोग चल दिए.
काफ़ी समय रसम और शादी के काम में बीत गया. तब तक मैनें देखा कि गुड्डी शॉपिंग से आ गयी है. उसने बताया कि राजीव और अल्पना उसे छोड़ कर जनवासे के इताज़ाम के लिए चले गये हैं. मैं उसे सबसे उपर वाली मंज़िल पे उस कमरे
में ले गयी जहाँ हमने सब समान रख रखा था और कोई आता जाता नहीं था. मैने उसके कंधे पे हाथ रख के प्यार से समझाया, " देखो गुड्डी तुम्हारे जीजा बहोत नाराज़ थे, वो तो मैने बहोत मुश्किल से उन्हे समझाया अब आगे तुम्हारे हाथ मे है, तुम्हे सब इनिशियेटिव लेना पड़ेगा, सब शर्म लिहाज छोड़ कर मैने तुम्हे समझाया है ना कैसे देखो अल्पी ने तो आज ही
उनको जीजा बनाया है और कैसे सबके सामने खुल के मज़े ले रही है तुम उससे भी दो हाथ आगे बढ़ जाओ, अपने हाथ से उनका हाथ पकड़ के अपने कबूतरों को पकड़वाओ, अरे एक बार उनका गुस्सा ख़तम हो गया ना तो फिर तो खुद ही तुम्हे नही छोड़ेंगें" और मैने उसको सारी बातें खोल कर समझा दी.
" हाँ भाभी, आप बहुत अच्छी है बस एक बार आप दोस्ती करवा दीजिए, फिर आप देखिए"
" ठीक है, तो मैं उनको लाने जाती हू तुम यही रहना और तुम्हे वो शर्त तो याद ही होगी कि अगर तुम्हारी चिड़िया ने 24 घंटे के अंदर चारा नही घोन्टा तो" और मैं नीचे जा कर नंदोई जी को ले आई. नीचे सब लोग काम मे व्यस्त थे कि किसी ने ध्यान ही नही दिया कि हम लोग कहाँ है.
जीत को देखते ही जब तक वह कुछ समझे, गुड्डी उनसे लिपट गई. उनकी तो चाँदी हो गयी. उन्होने भी जवाब मे उसे कस के भीच लिया. उन्होने उसका सर पकड़ के अपनी ओर खींचा तो उसने खुद अपने किशोर होंठ अपने जीजा के होंठों पे रख दिए. अब तो जीत पागल हो गये. वो कस के उस के गुलाबी होंठों को कभी चूमते, कभी अपने होंठों मे दबा के उस का रस लेते. उन्होने अपनी जीब उसके मस्त रसीले होंठों के बीच डाल दी और कस कस के रस लेने लगे. जब उन्होने अपने होंठों से उसको आज़ाद किया तो मैने आँखों से गुड्डी को कुछ इशारा किया. उसने शिकायत भरे स्वर मे अपने जीजा का हाथ पकड़ के कहा,
" जीजू, आप इत्ते लेट क्यों आए आप को साली की ज़रा भी याद नही आती, देखिए आप की याद मे आप की साली का सीना कित्ता ज़ोर से धड़क रहा है," और यह कह के उसने अपने जीजा का हाथ सीधे अपने टॉप पे मम्मो के उपर रख दिया और कस के दबा दिया. जीत की तो हालत खराब थी. फिर भी उन्होने मौके का फ़ायदा उठा कर
बोल ही दिया,
" ये तो टॉप है, साली जी सीना तो देखे कैसे धड़क रहा है मेरी याद मे"
" लीजिए जीजू, आप भी याद करिएगा किस साली से पाला पड़ा था," और उसने खुद अपने हाथ से उनका हाथ पकड़ के, अपने टॉप के अंदर घुसा कर, सीधे, अपने टीन बूब्स के उपर रख दिया.
मैने मौके का फ़ायदा उठा कर कहा, अब मैने जीजा साली को मिलवा दिया अब मैं चलती हू.
बाहर निकल कर मैं चौकीदार की तरह थी, कि कोई और आए तो मैं उन्हे आगाह कर दू और वहाँ से मुझे अंदर का सीन भी दिख रहा था. आधे घंटे से भी ज़्यादा, जैसे मैने समझाया था, जीजा ने साली का खूब चुंबन लिया, जोबन मर्दन
किया बल्कि अच्छी तरह टॉप उठा कर जोबन दर्शन भी किया और गोद मे अपने कड़े खुन्टे पे बैठाया.
जब वह बाहर निकले तो जीजा का हाथ साली के उभारों पे था और साली भी खुल के, बिना किसी शर्म के ज़ुबान का रस अपने जीजा को दे रही थी. कभी खुद उनके गाल से गाल रगड़ती, कभी उन्हे दिखा के अदा से अपने जोबन को कस कस के उभारती.
मेरे प्लान का पहला पार्ट पूरा हो चुका था. गुड्डी अपने जीजू से ऐसे चिपक गयी थी जैसे, लिफाफे से टिकट. मंडप मे, आँगन मे कही भी जहाँ उसके जीजा जाते साथ साथ वहाँ और मेरे ननदोइ जी भी मौके का पूरा फ़ायदा उठा रहे थे, कभी उनके हाथ उसके गोरे गोरे गाल सहलाते, कभी जोबन का रस लेते और अब वह हमारे खुले मज़ाक मे भी बिना शरमाये पूरा
हिस्सा ले रही थी. मंडप मे वह एक रस्म मे बैठी थी पर निगाह उसकी अपने जीजू पे थी. मैं उनके साथ बैठी दूर से उसे चिढ़ा रही थी. नंदोई जी का एक हाथ मेरे कंधे पे था. उन्होने मेरे गाल से गाल सटाकर धीरे से कहा,
" सलहज जी आप जादू जानती है, मैं तो सोच नही सकता था."
" अरे नंदोई जी, जादू की छड़ी तो आपके पास है अभी मेरी छोटी ननद को अपनी ये लंबी, मोटी जादू की छड़ी पकड़ाए कि नही?" उनकी बात काटकर मैं बोली. मेरी उगलिया उनके पाजामे के उपरी हिस्से पे सहला रही थी, जहाँ हल्का हल्का तंबू तना था.
" नही, हाँ, डिब्बे के उपर से जादू की छड़ी को ज़रूर छुबाया था" हंसकर वो बोले.
"अरे उपर से क्यों दिया, खोलकर , पूरा पकड़ा देना चाहिए था, अरे देखिए ना उसके गुलाबी हाथ मे मेहंदी कैसी रच रही है, और उसको पकड़ कर तो मेहंदी का रंग और निखर आता. जब एक बार उस मोटे जादू के डंडे को पकड़ कर, सहला कर, अपनी मुट्ठी मे दबा कर देखेगी ना तो उस के मन से डंडे का डर निकल जाएगा, और उससे खुलवा कर अपने मोटे पहाड़ी आलू को भी मैं तो कहती हू उसको खुल कर बेशर्म बना डालिए तभी असली मज़ा आएगा. बहुत तड़पाया है इस साली ने आप को अब आप का दिन है." अब मेरी उंगली तने तंबू के ठीक उपर थी.
" हां, सलह्ज जी आप ठीक कहती है अब बस आप देखती जाइए, दो दिन के अंदर एकदम बदल दूँगा इसको.
जैसे ही वह मंडप से निकली, नंदोई जी ने इशारा किया और उनके पीछे वह बँधी बँधी चली गयी, उपर उस कमरे की ओर जहाँ अभी थोड़ी देर पहले उनकी मैने मुलाकात करवाई थी. मैं मुस्कुरा कर रह गयी कि मेरी शर्मीली ननद की ट्रैनिंग का एक और चॅप्टर आगे बढ़ रहा होगा.