hotaks444
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उसकी आँखें एक बार फिर घड़ी पे थीं। घड़ी में पौने चार बज रहे थे- “भाभी कब लौटती हैं, तुमने क्या बताया था?” उसने पूछा।
गुड्डी- “चार बजे…” गुड्डी के चेहरे पे एक मुश्कान तैर गयी। उसके होंठों को उसने एक बार कसकर चूमकर बोला- “हे एक बात कहूंगी बुरा तो नहीं मानोगे?”
“नहीं बोलो ना, बुर वाली की बात का क्या बुरा मानना और तुमने तो आज मुझे खुश कर दिया है…”
गुड्डी- “गुस्सा तो नहीं होगे?”
“नहीं…” कसकर उसने अपनी बांहों में भींच लिया।
गुड्डी- “भाभी रोज चार बजे लौटती थीं, लेकिन आज पौने छ: बजे आयेंगी, मैंने तुम्हें पूरी बात नहीं बतायी थी… और अभी भी तुम्हारे पास पूरे दो घंटे बचे हैं…” अपनी मस्त किशोर चूचियां उसकी छाती पे कसकर रगड़ के और बुर को उसके खड़े लण्ड पे सहला के, वो शरारत से बोली।
मारे जोश के उसका यार उठकर बैठ गया और उसे अपनी गोद में बिठाकर कसकर दबोच के बोला- “फिर तो…”
गुड्डी- “और क्या…” वो मुश्कुराकर हामी भरती बोली। वो प्यार से उसके गोद में बैठी थी। सामने शीशे में साफ-साफ दिख रहा था, उसके किशोर उभारों के नीचे उसका यार हाथ लगाकरके हल्के-हल्के सहला रहा था, और उसका खड़ा खूंटा भी उसकी जांघों के बीच झलक रहा था।
“इन्होंने बहुत तड़पाया मुझे, मेरा बहुत मन करता था की…” उसके किशोर उरोजों को सहलाते वो बाला।
गुड्डी- “मालूम है मुझे, अब लो ना, कसकर सहलाओ, दबाओ, रगड़ो, मसलो, जो चाहे वो करो, अब ये तुम्हारे हैं। कर लो अपने मन की, दे दो सजा इन्हें इत्ते दिन तड़पाने की…” उसका हाथ खींचकर अपने रसीले जोबन पे रखकर दबाते हुये वो बोली।
बस अब क्या था। अब तो कसकर वह उसकी चूची कभी दबाता, कभी मसलता, कभी कस-कसकर रगड़ता, कभी कसकर उसके उत्तेजित खड़े निपल भी खींच लेता। थोड़ी देर में उसने अपनी एक उँगली गुड्डी के निचले होंठों के बीच भी डाल दी और अन्दर बाहर करने लगा। शीशे में ये सब देखकर वो और जोश में आ गयी और सिसकियां लेने लगी। अब उसको उठाकर उसके यार ने मोड़कर गोद में बैठा लिया जिसस गुड्डी का मुँह उसके सामने हो गया और फिर दोनों कस-कसकर एक दूसरे को चूमने लगे। उसका एक हाथ अभी भी कसकर जोबन रगड़ रहा था और दूसरा उसकी कसी किशोर चूत के अंदर-बाहर तेजी से उँगली कर रहा था।
उसके होंठों पे कसकर चुम्मा लेती, वो बोली- “हे, मुझे दो बातें कहनी हैं...“
“बोलो ना…” उसे वो अपनी बाहों में कसकर भींचते हुये बोला।
गुड्डी- “पहली तो ये कि तुम मेरे साथ जो कुछ, जैसे भी, जितनी बार, जहां भी, जो भी सब कुछ कर सकते हो, बिना पूछे और हां अगर तुमने पूछा ना तो मैं गुस्सा हो जाऊँगी। ये सब, मेरी सारी देह, मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है…” उसके हाथ को अपने उभारों पे से लेकर अपनी बुर तक ले जाकर वो बोली।
उसके यार ने कसकर उसे अपनी बाहों में भींच लिया।
तो गुड्डी ने अपनी चूत को उसमें घुसी उँगली पे सिकोड़ लिया- “और… और जाने दो मुझे शरम लगती है…” वो शरमाकर बोली।
“क्या बोलो ना अब क्या शरम?”
गुड्डी- “तुम मुझे प्यार करते हो ना?”
“ये भी कोई पूछने की बात है? हां बहुत…” उसे कसकर चूमते हुये वो बोला।
गुड्डी- “तुम्हें मेरे प्यार की कसम, अब आगे से ना, चाहे मुझे कित्ता भी दर्द क्यों ना हो, चाहे खून निकल आये, चाहे मैं दर्द से चीखूं, चिल्लाऊँ, बेहोश हो जाऊँ पर… पर तुम रुकना मत, बस तुम्हें जो भी अच्छा लगे, पूरी ताकत से, मन भर, पूरा अंदर तक, चाहे जैसे, जहां चाहे करना। मैं रोकूं भी उस समय तो जबरदस्ती…” और ये कहकर उसने कसकर चूम लिया।
“तो करूं?” मुश्कुराकर वो बोला।
गुड्डी- “एकदम…” और अबकी वो खुद लेट गयी अपनी गोरी-गोरी टांगें फैलाकर।
उसने वैसलीन की शीशी से थोड़ा वैसलीन निकालकर, गुड्डी की चूत में लगाना शुरू कर दिया। और मुश्कुराकर गुड्डी ने भी वैसलीन लेकर उसके मोटे कड़े लण्ड पे खुद लगा दिया। उसके यार ने, अपने हाथ से उसकी चूत के पपोटों को थोड़ा फैलाया और फिर अपना मोटा लण्ड सटाकरके कमर पकड़कर कसकर धक्का लगाया। अबकी धक्का इत्ता करार था की एक बार में ही पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया। गुड्डी के मुँह से चीख निकल गयी पर उस पे कोई असर नहीं हुआ और वो उसी तरह कमर पकड़कर कस-कसकर धक्के लगाता रहा।
थोड़ी ही देर में आधा से ज्यादा लण्ड उसकी चूत में था। अब जिस तरह सुपाड़ा, उसकी चूत में रगड़ता, घुस रहा था गुड्डी को भी खूब मजा आने लगा। और वो “हां हां… ऐसे ही ओह… ओह…” सिसकियां ले रही थी।
गुड्डी- “चार बजे…” गुड्डी के चेहरे पे एक मुश्कान तैर गयी। उसके होंठों को उसने एक बार कसकर चूमकर बोला- “हे एक बात कहूंगी बुरा तो नहीं मानोगे?”
“नहीं बोलो ना, बुर वाली की बात का क्या बुरा मानना और तुमने तो आज मुझे खुश कर दिया है…”
गुड्डी- “गुस्सा तो नहीं होगे?”
“नहीं…” कसकर उसने अपनी बांहों में भींच लिया।
गुड्डी- “भाभी रोज चार बजे लौटती थीं, लेकिन आज पौने छ: बजे आयेंगी, मैंने तुम्हें पूरी बात नहीं बतायी थी… और अभी भी तुम्हारे पास पूरे दो घंटे बचे हैं…” अपनी मस्त किशोर चूचियां उसकी छाती पे कसकर रगड़ के और बुर को उसके खड़े लण्ड पे सहला के, वो शरारत से बोली।
मारे जोश के उसका यार उठकर बैठ गया और उसे अपनी गोद में बिठाकर कसकर दबोच के बोला- “फिर तो…”
गुड्डी- “और क्या…” वो मुश्कुराकर हामी भरती बोली। वो प्यार से उसके गोद में बैठी थी। सामने शीशे में साफ-साफ दिख रहा था, उसके किशोर उभारों के नीचे उसका यार हाथ लगाकरके हल्के-हल्के सहला रहा था, और उसका खड़ा खूंटा भी उसकी जांघों के बीच झलक रहा था।
“इन्होंने बहुत तड़पाया मुझे, मेरा बहुत मन करता था की…” उसके किशोर उरोजों को सहलाते वो बाला।
गुड्डी- “मालूम है मुझे, अब लो ना, कसकर सहलाओ, दबाओ, रगड़ो, मसलो, जो चाहे वो करो, अब ये तुम्हारे हैं। कर लो अपने मन की, दे दो सजा इन्हें इत्ते दिन तड़पाने की…” उसका हाथ खींचकर अपने रसीले जोबन पे रखकर दबाते हुये वो बोली।
बस अब क्या था। अब तो कसकर वह उसकी चूची कभी दबाता, कभी मसलता, कभी कस-कसकर रगड़ता, कभी कसकर उसके उत्तेजित खड़े निपल भी खींच लेता। थोड़ी देर में उसने अपनी एक उँगली गुड्डी के निचले होंठों के बीच भी डाल दी और अन्दर बाहर करने लगा। शीशे में ये सब देखकर वो और जोश में आ गयी और सिसकियां लेने लगी। अब उसको उठाकर उसके यार ने मोड़कर गोद में बैठा लिया जिसस गुड्डी का मुँह उसके सामने हो गया और फिर दोनों कस-कसकर एक दूसरे को चूमने लगे। उसका एक हाथ अभी भी कसकर जोबन रगड़ रहा था और दूसरा उसकी कसी किशोर चूत के अंदर-बाहर तेजी से उँगली कर रहा था।
उसके होंठों पे कसकर चुम्मा लेती, वो बोली- “हे, मुझे दो बातें कहनी हैं...“
“बोलो ना…” उसे वो अपनी बाहों में कसकर भींचते हुये बोला।
गुड्डी- “पहली तो ये कि तुम मेरे साथ जो कुछ, जैसे भी, जितनी बार, जहां भी, जो भी सब कुछ कर सकते हो, बिना पूछे और हां अगर तुमने पूछा ना तो मैं गुस्सा हो जाऊँगी। ये सब, मेरी सारी देह, मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है…” उसके हाथ को अपने उभारों पे से लेकर अपनी बुर तक ले जाकर वो बोली।
उसके यार ने कसकर उसे अपनी बाहों में भींच लिया।
तो गुड्डी ने अपनी चूत को उसमें घुसी उँगली पे सिकोड़ लिया- “और… और जाने दो मुझे शरम लगती है…” वो शरमाकर बोली।
“क्या बोलो ना अब क्या शरम?”
गुड्डी- “तुम मुझे प्यार करते हो ना?”
“ये भी कोई पूछने की बात है? हां बहुत…” उसे कसकर चूमते हुये वो बोला।
गुड्डी- “तुम्हें मेरे प्यार की कसम, अब आगे से ना, चाहे मुझे कित्ता भी दर्द क्यों ना हो, चाहे खून निकल आये, चाहे मैं दर्द से चीखूं, चिल्लाऊँ, बेहोश हो जाऊँ पर… पर तुम रुकना मत, बस तुम्हें जो भी अच्छा लगे, पूरी ताकत से, मन भर, पूरा अंदर तक, चाहे जैसे, जहां चाहे करना। मैं रोकूं भी उस समय तो जबरदस्ती…” और ये कहकर उसने कसकर चूम लिया।
“तो करूं?” मुश्कुराकर वो बोला।
गुड्डी- “एकदम…” और अबकी वो खुद लेट गयी अपनी गोरी-गोरी टांगें फैलाकर।
उसने वैसलीन की शीशी से थोड़ा वैसलीन निकालकर, गुड्डी की चूत में लगाना शुरू कर दिया। और मुश्कुराकर गुड्डी ने भी वैसलीन लेकर उसके मोटे कड़े लण्ड पे खुद लगा दिया। उसके यार ने, अपने हाथ से उसकी चूत के पपोटों को थोड़ा फैलाया और फिर अपना मोटा लण्ड सटाकरके कमर पकड़कर कसकर धक्का लगाया। अबकी धक्का इत्ता करार था की एक बार में ही पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया। गुड्डी के मुँह से चीख निकल गयी पर उस पे कोई असर नहीं हुआ और वो उसी तरह कमर पकड़कर कस-कसकर धक्के लगाता रहा।
थोड़ी ही देर में आधा से ज्यादा लण्ड उसकी चूत में था। अब जिस तरह सुपाड़ा, उसकी चूत में रगड़ता, घुस रहा था गुड्डी को भी खूब मजा आने लगा। और वो “हां हां… ऐसे ही ओह… ओह…” सिसकियां ले रही थी।