hotaks444
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ननद की ट्रैनिंग – भाग 7
(लेखिका - रानी कौर)
आज उसका हाफ डे था, इसलिए दोपहर को ही स्कूल से आ गयी. साथ मे उसकी एक सहेली भी थी. गोरी, गदराई, तीखे नाक नक्श, बड़े उभार और हिप्स देख के लग रहा था कि खेली खाई है.
" मेरी सहेली है भाभी, दिया." गुड्डी ने इंट्रोड्यूस कराया.
" दिया,... अरे किसको किसको दिया." मैने हंस के, उसका हाथ पकड़ के पूछा.
" अरे भाभी ये पूछिए, किसको किसको नही दिया, मेरी सहेलियों मे सबसे पहले इसीने... ये तो एक्सचेंज प्रोग्राम मे भी... ." हंस के गुड्डी बोली.
दिया ने आँखे तरेर के गुड्डी को देखा तो मैने उनका ब्लाइंड फोल्ड और मूह मे ठुँसी पैंटी निकाल दी गुड्डी ने उससे बोला कि भाभी से मैं कुछ छिपाती नही और ये मेरी सबसे अच्छी सहेली भी है. मैं भी दिया को गले लगाती बोली कि हे ननद भाभी मे क्या शरम. गुड्डी ने उसकी पोल खोली कि जब वो 8 मे पढ़ती थी तो एक दिन उसके बड़े भाई ने उसे छिप के, जव वो एक ब्लू फिल्म देख रहे थे, देखते हुए पकड़ लिया, और उसी समय चोद दिया और तबसे उन दोनो मे लगातार..."
" और ये एक्सचेंज प्रोग्राम क्या है." मैने उत्सुकता से पूछा.
दिया बोली, " भाभी, मेरी एक सहेली पे भैया का दिल आ गया था...और उस का भाई मुझे चाहता था . एक दिन हम चारों लोग साथ साथ पिक्चर देखने गये और फिर लौट के...फिर तो रेग्युलर....हम दोनो के भाई साथ साथ जाते थे इसलिए घर से परमिशन भी मिल जाती थी और कोई शक नही करता था."
" देख गुड्डी, सबक सीख अपनी सहेली से " मैने छेड़ा.
" अरे भाभी, मेरी क्लास मे अकेले यही बची है, जो क्लास के नाम पे दाग है." हंस के, दिया ने मेरा साथ दिया.
" अरे तुझे एक खुश खबरी सुनाऊ, दिया. अब ये भी, मेरे तेरे ग्रुप मे ज्वाइन कर गयी है"
अब गुड्डी की आँख तरेरने की बारी थी. वो बात बदलते हुए बोली, " भाभी मैं ज़रा स्कूल की ड्रेस चेंज कर के आती हू, तब तक आप लोग बात करे."
" अरे तूने बताया नही, और अभी तो हॉस्पिटल चलना था ना तुझे मेरे साथ" दिया बोली.
" अरे बैठो जल्दी क्या है, क्या हुआ तुम्हारी भाभी को" मैने पूछा
" अरे वही जो भाभियों को होता है, भाई की मेहनत का कमाल. उनके बच्चा होने वाला है."
तब तक गुड्डी फ्रॉक चेंज कर के आ गयी. (छोटी सी फ्रॉक, जिससे उसकी गोरी गोरी जंघे सॉफ दिख रही थी और लग रहा था कि घर मे पहनने के लिए जो मैने उसके लिए रूल बना रखा था, बिना ब्रा और पैंटी के, उसे उसने फॉलो किया था.)
" हे दिया, भाभी को बताओ ना. कल हॉस्पिटल वाली बात" गुड्डी ने उसे उकसाया
" अरे कल रात मे मैं वही थी. जो रेसिडेंट डॉक्टर था वो तो सुनता ही नही था और नर्स के पास गयी तो उसने उल्टे मुझसे पूछा कि जब तुम्हारी भाभी डलवा रही थी तब तो हंस के डलवा रही होंगी और अब जब निकलने वाला है तो क्यों चीख रही है. वही पास मे एक और औरत थी वो बोली कि इत्ता दर्द हो रहा है कि अब मैं कान पकड़ती हू दुबारा नही करवाउंगी. पर नर्स ने कहा कि अरे मैने बहोत देखा है, साल भर के अंदर दुबारा आ जाओगी पेट फूला के. ऐसे खुल के मज़ाक हो रहे थे...कि."
तब तक राजीव वहाँ आ गये. उनको देख के सब लोग खड़े हो गये. वो दिया की सीट पे बैठ गये. सब लोग बैठे पर दिया खड़ी रही और कोई सीट थी नही. मैने उसे चॅलेंज किया,
" हे बैठ जाओ ना, अपनी भैया की गोद मे, क्यों डरती हो क्या, कि..."
" अरे भाभी डरना क्या, जिसके मन मे चोर हो वो डरे..." ये कह के वो राजीव की गोद मे बैठ गयी.
" और क्या दिया, जैसे तेरे भैया वैसे मेरे, मज़े से बैठ." गुड्डी ने उसके और उसके भैया के रिश्ते की ओर इशारा करते हुए छेड़ा. राजीव टी शर्त और शर्ट मे हॅंडसम लग रहे थे. दिया उनकी ओर वासना भरी निगाहों से देख रहे थे. और राजीव भी...एक खूबसूरत टीनएजर, गोद मे बैठी हो तो...उनका खड़ा होना शुरू हो गया था. उनकी आँखे बार उसके नशीले उभार की ओर जा रही थी और दुष्ट दिया भी, हल्के हल्के अपना भारी सेक्सी चूतड़ उस पे रगड़ रही थी.
" हे, कुछ गढ़ तो नही रहा है." मैने उसे छेड़ा.
" अरे गड़ भी रहा होगा तो ये बोलेगी नही' गुड्डी ने भी मेरा साथ दिया.
थोड़ी देर मे दिया उठ गयी और गुड्डी से बोली कि अच्छा चल अब तू बैठ, ज़रा मैं बाथ रूम होके आती हू उनके शर्ट मे उनका खड़ा खुन्टा एकदम सॉफ सॉफ दिख रहा था.
" ठीक तो कह रही है ये. हिम्मत हो तो बैठ के दिखा दे." मैं गुड्डी से बोली.
" अरे भाभी आपकी ननद हू, ये क्यों भूल जाती है आप " और उनकी गोद मे जाके बैठ गयी. बैठने मे उसकी छोटी सी फ्रॉक सिकुड के बिलकुल उपर तक उठ गयी थी. जैसे ही दिया बाहर गयी, मैने उसकी फ्रॉक बिल्कुल कमर तक खींच दी और उनका शर्ट भी नीचे सरका दिया. अब तो सटाक से उनका तननाया लंड सीधे निकल के उसकी जाँघो के बीच मे आ गया. मैने दोनो को इस तरह पकड़ रखा था कि वो हिल नही सकते थे. काफ़ी देर तक उनका लौंडा उसकी चूत पे ठोकर मारता रहा. कसमसाने की दोनो आक्टिंग कर रहे थे, पर मुझे मालूम था कि मज़ा दोनों को आ रहा है. जब दिया की आने की आहट हुई तो दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए.
" हे तुम बात रूम मे इत्ति देर ...कुछ और तो नही कर रही थी, भैया की गोद मे बैठ के कुछ गड़बड़ तो नही हो गया था."
" क्या पता भाभी..." उस ने भी उसी अंदाज मे हंस के जवाब दिया."
" मैं तैयार हो के आती हू अभी." गुड्डी उठते हुए बोली.
" चल, मैं तेरे कपड़े निकाल के देती हू और हाँ तब तक तुम लोगों को जो गड़बड़ करना हो कर लेना." दिया और राजीव से मैं बोली.
गुड्डी जब लौटी तो उस पे आँख नही टिकती थी. लैयकरा का टाइट शोल्डर लेस टॉप, और वो इत्ता टाइट था कि उसके उभार सॉफ सॉफ दिख रहे थे और लो कट भी,गहराई कटाव सब कुछ और उसके अंदर एक पुश अप हाफ कप ब्रा थी. उसके उभार कम से कम दो नंबर ज़्यादा लग रहे थे और निपल ना सिर्फ़ ब्रा से थोड़े निकले हुए थे बल्कि टाप से रगड़ खाते हुए उनकी झलक सॉफ दिख रही थी. और उदर दर्शाना तो जींस थी ही उसके चूतडो के पूरे उभार सॉफ दिख रहे थे और वो इतनी लो कट थी कि नितम्बो के क्रैक भी...राजीव की निगाह तो उसके जोबन पे फिर मस्त चूतडो पे चिपक गयी थी
" हे कैसे और कब तक लोटोगी तुम." मैने पूछा.
" भाभी थोड़ी देर तो हो जाएगी." दिया बोली.
कोई बात नही हम लोग भी शापिंग के लिए जाएँगे और देर से ही आएँगे और लौटने का.."
(लेखिका - रानी कौर)
आज उसका हाफ डे था, इसलिए दोपहर को ही स्कूल से आ गयी. साथ मे उसकी एक सहेली भी थी. गोरी, गदराई, तीखे नाक नक्श, बड़े उभार और हिप्स देख के लग रहा था कि खेली खाई है.
" मेरी सहेली है भाभी, दिया." गुड्डी ने इंट्रोड्यूस कराया.
" दिया,... अरे किसको किसको दिया." मैने हंस के, उसका हाथ पकड़ के पूछा.
" अरे भाभी ये पूछिए, किसको किसको नही दिया, मेरी सहेलियों मे सबसे पहले इसीने... ये तो एक्सचेंज प्रोग्राम मे भी... ." हंस के गुड्डी बोली.
दिया ने आँखे तरेर के गुड्डी को देखा तो मैने उनका ब्लाइंड फोल्ड और मूह मे ठुँसी पैंटी निकाल दी गुड्डी ने उससे बोला कि भाभी से मैं कुछ छिपाती नही और ये मेरी सबसे अच्छी सहेली भी है. मैं भी दिया को गले लगाती बोली कि हे ननद भाभी मे क्या शरम. गुड्डी ने उसकी पोल खोली कि जब वो 8 मे पढ़ती थी तो एक दिन उसके बड़े भाई ने उसे छिप के, जव वो एक ब्लू फिल्म देख रहे थे, देखते हुए पकड़ लिया, और उसी समय चोद दिया और तबसे उन दोनो मे लगातार..."
" और ये एक्सचेंज प्रोग्राम क्या है." मैने उत्सुकता से पूछा.
दिया बोली, " भाभी, मेरी एक सहेली पे भैया का दिल आ गया था...और उस का भाई मुझे चाहता था . एक दिन हम चारों लोग साथ साथ पिक्चर देखने गये और फिर लौट के...फिर तो रेग्युलर....हम दोनो के भाई साथ साथ जाते थे इसलिए घर से परमिशन भी मिल जाती थी और कोई शक नही करता था."
" देख गुड्डी, सबक सीख अपनी सहेली से " मैने छेड़ा.
" अरे भाभी, मेरी क्लास मे अकेले यही बची है, जो क्लास के नाम पे दाग है." हंस के, दिया ने मेरा साथ दिया.
" अरे तुझे एक खुश खबरी सुनाऊ, दिया. अब ये भी, मेरे तेरे ग्रुप मे ज्वाइन कर गयी है"
अब गुड्डी की आँख तरेरने की बारी थी. वो बात बदलते हुए बोली, " भाभी मैं ज़रा स्कूल की ड्रेस चेंज कर के आती हू, तब तक आप लोग बात करे."
" अरे तूने बताया नही, और अभी तो हॉस्पिटल चलना था ना तुझे मेरे साथ" दिया बोली.
" अरे बैठो जल्दी क्या है, क्या हुआ तुम्हारी भाभी को" मैने पूछा
" अरे वही जो भाभियों को होता है, भाई की मेहनत का कमाल. उनके बच्चा होने वाला है."
तब तक गुड्डी फ्रॉक चेंज कर के आ गयी. (छोटी सी फ्रॉक, जिससे उसकी गोरी गोरी जंघे सॉफ दिख रही थी और लग रहा था कि घर मे पहनने के लिए जो मैने उसके लिए रूल बना रखा था, बिना ब्रा और पैंटी के, उसे उसने फॉलो किया था.)
" हे दिया, भाभी को बताओ ना. कल हॉस्पिटल वाली बात" गुड्डी ने उसे उकसाया
" अरे कल रात मे मैं वही थी. जो रेसिडेंट डॉक्टर था वो तो सुनता ही नही था और नर्स के पास गयी तो उसने उल्टे मुझसे पूछा कि जब तुम्हारी भाभी डलवा रही थी तब तो हंस के डलवा रही होंगी और अब जब निकलने वाला है तो क्यों चीख रही है. वही पास मे एक और औरत थी वो बोली कि इत्ता दर्द हो रहा है कि अब मैं कान पकड़ती हू दुबारा नही करवाउंगी. पर नर्स ने कहा कि अरे मैने बहोत देखा है, साल भर के अंदर दुबारा आ जाओगी पेट फूला के. ऐसे खुल के मज़ाक हो रहे थे...कि."
तब तक राजीव वहाँ आ गये. उनको देख के सब लोग खड़े हो गये. वो दिया की सीट पे बैठ गये. सब लोग बैठे पर दिया खड़ी रही और कोई सीट थी नही. मैने उसे चॅलेंज किया,
" हे बैठ जाओ ना, अपनी भैया की गोद मे, क्यों डरती हो क्या, कि..."
" अरे भाभी डरना क्या, जिसके मन मे चोर हो वो डरे..." ये कह के वो राजीव की गोद मे बैठ गयी.
" और क्या दिया, जैसे तेरे भैया वैसे मेरे, मज़े से बैठ." गुड्डी ने उसके और उसके भैया के रिश्ते की ओर इशारा करते हुए छेड़ा. राजीव टी शर्त और शर्ट मे हॅंडसम लग रहे थे. दिया उनकी ओर वासना भरी निगाहों से देख रहे थे. और राजीव भी...एक खूबसूरत टीनएजर, गोद मे बैठी हो तो...उनका खड़ा होना शुरू हो गया था. उनकी आँखे बार उसके नशीले उभार की ओर जा रही थी और दुष्ट दिया भी, हल्के हल्के अपना भारी सेक्सी चूतड़ उस पे रगड़ रही थी.
" हे, कुछ गढ़ तो नही रहा है." मैने उसे छेड़ा.
" अरे गड़ भी रहा होगा तो ये बोलेगी नही' गुड्डी ने भी मेरा साथ दिया.
थोड़ी देर मे दिया उठ गयी और गुड्डी से बोली कि अच्छा चल अब तू बैठ, ज़रा मैं बाथ रूम होके आती हू उनके शर्ट मे उनका खड़ा खुन्टा एकदम सॉफ सॉफ दिख रहा था.
" ठीक तो कह रही है ये. हिम्मत हो तो बैठ के दिखा दे." मैं गुड्डी से बोली.
" अरे भाभी आपकी ननद हू, ये क्यों भूल जाती है आप " और उनकी गोद मे जाके बैठ गयी. बैठने मे उसकी छोटी सी फ्रॉक सिकुड के बिलकुल उपर तक उठ गयी थी. जैसे ही दिया बाहर गयी, मैने उसकी फ्रॉक बिल्कुल कमर तक खींच दी और उनका शर्ट भी नीचे सरका दिया. अब तो सटाक से उनका तननाया लंड सीधे निकल के उसकी जाँघो के बीच मे आ गया. मैने दोनो को इस तरह पकड़ रखा था कि वो हिल नही सकते थे. काफ़ी देर तक उनका लौंडा उसकी चूत पे ठोकर मारता रहा. कसमसाने की दोनो आक्टिंग कर रहे थे, पर मुझे मालूम था कि मज़ा दोनों को आ रहा है. जब दिया की आने की आहट हुई तो दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए.
" हे तुम बात रूम मे इत्ति देर ...कुछ और तो नही कर रही थी, भैया की गोद मे बैठ के कुछ गड़बड़ तो नही हो गया था."
" क्या पता भाभी..." उस ने भी उसी अंदाज मे हंस के जवाब दिया."
" मैं तैयार हो के आती हू अभी." गुड्डी उठते हुए बोली.
" चल, मैं तेरे कपड़े निकाल के देती हू और हाँ तब तक तुम लोगों को जो गड़बड़ करना हो कर लेना." दिया और राजीव से मैं बोली.
गुड्डी जब लौटी तो उस पे आँख नही टिकती थी. लैयकरा का टाइट शोल्डर लेस टॉप, और वो इत्ता टाइट था कि उसके उभार सॉफ सॉफ दिख रहे थे और लो कट भी,गहराई कटाव सब कुछ और उसके अंदर एक पुश अप हाफ कप ब्रा थी. उसके उभार कम से कम दो नंबर ज़्यादा लग रहे थे और निपल ना सिर्फ़ ब्रा से थोड़े निकले हुए थे बल्कि टाप से रगड़ खाते हुए उनकी झलक सॉफ दिख रही थी. और उदर दर्शाना तो जींस थी ही उसके चूतडो के पूरे उभार सॉफ दिख रहे थे और वो इतनी लो कट थी कि नितम्बो के क्रैक भी...राजीव की निगाह तो उसके जोबन पे फिर मस्त चूतडो पे चिपक गयी थी
" हे कैसे और कब तक लोटोगी तुम." मैने पूछा.
" भाभी थोड़ी देर तो हो जाएगी." दिया बोली.
कोई बात नही हम लोग भी शापिंग के लिए जाएँगे और देर से ही आएँगे और लौटने का.."