08-12-2023, 04:03 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 47 B
महल में या मन में घुसपैठ
देवरानी: थोड़ा और कर लो और अब जाओ अपने कक्ष में आराम करो। सुबह अपने काम पर जाओ।
बलदेव: पर मेरा तुम्हे छोड़ कर जाने का दिल नहीं करता।
देवरानी: तुम दो दिन से दिन रात में यही हो। सीमा पार भी नहीं जा रहे, सबका शक बढ़ता जा रहा है । मेरे युवराज!
बलदेव थोड़ा गुस्सा होते हुए।
"तो बढ़ने दो! मेरी जान में इन सब से नहीं डरता।"
देवरानी: बात को समझो सही समय पर सब कुछ मिलता है पर उसकी प्रतीक्षा मनुष्य को करनी चाहिए।
बलदेव: माँ! आपका जितना धैर्य मैंने नहीं कही नहीं देखा। पिछले 18 वर्ष से तो आप हर सुख से वंचित हो फिर आपने अपने धैर्य को नहीं खोया है ।
देवरानी: उसी धैर्य का वह परिनाम है कि मुझे इतना सुंदर या बलिष्ठ प्रेमी मिला है तुम्हारे रूप में।
ये सुन कर बलदेव शर्मा जाता है।
बलदेव; माँ! दिन बा दिन तुमसे मेरा प्रेम बढ़ता ही जा रहा है।
देवरानी: बस करो!
और बलदेव के माथे पर चूम लेती है ।
"जाओ बलदेव अपने कक्ष में।"
"तुम्हारे चेहरे से नज़र नहीं हटती । माँ!"
"जाओ तुम्हारी कक्ष में मेरे चित्र को देखते रहना। पर यहाँ पर ऐसे ज्यादा समय रहना खतरे से खाली नहीं है ।"
देवरानी; (मन में) मुझे माफ़ कर दो मेरे पिया । मैं तड़पा रही हूँ तुमको!
बलदेव जाने लगता है तभी देवरानी उसे रोक कर।
"ओ मेरे बलमा! इतनी रात में मेरे कक्ष से जाओगे और किसी ने देख लिया तो क्या समझेगा?"
"यही समझेगा देवरानी! की एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्यार कर के आ रहा है।"
"पर तुम्हारी दादी जिसका शक हो गया है वह तो समझेगी के... !"
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"अरी माँ यही समझेगी के ना मैं तुम्हारे साथ सो कर आ रहा हूँ।"
देवरानी ये सुन कर लज्जा जाती है और अपना सारा झुक लेती है और अपने पैर की उंगली से जमीन खोदती है।
"बेटा अगर लोग ये समझेंगे कि आधी रात बलदेव अपनी माँ के साथ सो कर आ रहा है तो सब हमारे दुश्मन हो जायेंगे।"
"सारे दुश्मनों को मैं काट दूंगा पर मैं अपनी माँ को अपने साथ ले कर सोना बंद नहीं करूंगा" और मुस्कुराता है।
"बड़ा आया! ये लो चादर ओढ़ लो ठंड भी है और इसमें कोई देख नहीं पाएगा।"
बलदेव उसके हाथ से चादर ले लेता है फिर उसे ओढ़ लेता है और अपने मुँह को हल्का-सा खोल देता है। देखने भर के लिए ।
"वैसे माँ तुम्हारे साथ सोने से ज़रा भी ठंड नहीं लग रही थी।"
देवरानी बलदेव को जल्दबाजी में पकड़ कर दरवाजे से बाहर ढकेलती है। बलदेव बाहर निकल जाता है और देवरानी दरवाजा बंद करती है।
बलदेव दबे पाव सीढियो की तरफ जाने लगता है।
इधर जगा हुआ राजपाल को फिर से वही दबे हुए चोर कदमों की आवाज सुनता है और वह उत्सुक्त हो कर अपने बगल में तलवार लगाए बाहर निकलता है।
जैसे वह बहार आता है उसे हल्का अँधेरे में कोई चादर ओढ़े देवरानी की कक्षा से कोई सीढ़ियों की तरफ जाता हुआ दिखता है।
राजपाल; कौन है वहाँ?
और अपनी तलवार खेंच कर निकल कर आदेश देता है ।
राजपाल; रूक जाओ वही।
बलदेव ऐसी अवस्था में पकड़े जाने से रुक जाता है और राजपाल अपनी तलवार को लिए बलदेव के करीब आने लगता है।
बलदेव की पीठ की तरफ से आता राजपाल तलवार बलदेव की पीठ के पास ले जा रहा था।
"कौन हो बहुरूपिए" ?
बलदेव को राजपाल की चाल की आहट अब सुनाई नहीं देती। वह बिना पीछे मुड़े, मौका देख कर भागने लगता है।
राजपाल: सैनिको होशियार! घुसपैठिया!
राजपाल ज़ोर से चिल्लाता है।
महल में चारो ओर से सैनिक जग कर अपने तलवारो को निकाल कर इधर उधर देखने लगते हैं।
बलदेव मरता क्या न करता झट से सीढ़ी से चढ़ कर ऊपर अपने कक्ष की तरफ जाता है और उसका पीछा करते हुए राजपाल जो कि उतनी फुर्ती से सीढिया चढ़ नहीं पाता ।
बलदेव ऊपर जा कर अपनी कक्ष के बगल में एक छोटा कक्ष था, जिसमें कोई नहीं रहता था, सिर्फ पुराना सामान राखे उसमें घुस जाता है।
राजपाल: बलदेव उठो महल में घुसपैठ हुई है। उठो बलदेव...सेनापति!
बलदेव ये सुन कर मुस्कुराता है और कक्ष की खिड़की के पास जा कर अपना चादर वही छोड़ देता है और खुद अपने कक्ष की खिड़की में छलांग लगाता है।
राजपाल दौड़ता हुआ सामान वाले कमरे में घुसता है और उसके पीछे सेनापति और बहार से आए कुछ सैनिक घुसते हैं, तो वह लोग देखते हैं खिड़की खुली हुई है और वहाँ पर एक चादर गिरी हुई है।
राजपाल चादर उठा कर!
"सेनापति यहाँ से कूद गया वह नीचे सैनिकों को ले कर जाओ उसे ढूढो और पकड़ो! वह राष्ट्र की सीमा को पार न कर सके।."
सेनापति: जी महाराज कुछ दिनो पहले भी ऐसे ही महल में एक घुसपैठ हुई थी । जरूर कोई हमारे खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है।
बलदेव अपनी कक्ष में जा कर अपने नंगे जिस्म पर कुर्ता पहनता है और बाहर निकलता है ।
"पिता जी कहा हो आप?"
बलदेव राजपाल या सैनिको की आवाज सुन कर उनकी तरफ जाने लगता है।
सेनापति: महाराज हम चलते हैं और वह लोग भी उसी कक्ष की खिड़की से कूद जाते हैं।
बलदेव उन सबको देखता रहता हैं।
फिर बलदेव अपने पिता के पास पहुँच कर।
"क्या हुआ पिता जी इतनी रात गए, महल इतना शोर क्यों मचा हुआ में।"
"बेटा तुम अब आ रहे हो, महल में घुसपैठ हुई है।"
"पिता जी मैं नींद में था । मुझे क्षमा करे।"
"वो भाग गया बलदेव और ये चादर छोड़ गया । अगर तुम सही समय पर उठ जाते तो वह पकड़ा जाता।"
जी हाँ पिता जी शायद वह पकड़ा जाता, पर घुसपैठिया शातिर होते हैं।"
"चलो चलो बलदेव!"
नीचे सब के सब जग गए थे । जीविका सृष्टि और कमला भी सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए दोनों बाप बेटे को सब देख रहे थे।
जारी रहेगी
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08-12-2023, 04:05 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 47 C
महल में या मन में घुसपैठ
"चलो चलो बलदेव!"
नीचे सब के सब जग गए थे । जीविका सृष्टि और कमला भी सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए दोनों बाप बेटे को सब देख रहे थे।
"बेटा बलदेव एक बात याद रखना एक राजा कभी रात में चेन से नहीं सोता। बल्कि अपनी प्रजा की रखवाली करता है।"
जीविका; अरे! क्या हुआ राजपाल इतना शोर क्यों मचाया हुआ है?
राजपाल और बलदेव अपने परिवार के पास आते हैं।
राजपाल; माँ, जासूसी करने महल में कोई घुसपैठिया आया था ।
जीविका: भगवान भला करे तुम अकेले ही उसके पीछे दौड़ जाते हो कम से कम सैनिको को तो साथ लेते।
राजपाल: बस वह पकड़ा जाता अगर बलदेव सही समय पर उठ जाता।
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तभी वहा पर देवरानी चल कर आती है और ये बात सुन कर मन में!
"तू राजपाल मर्द के नाम पर कलंक है। तेरी पत्नी के दिल में तुम्हारे पुत्र बलदेव ने घुसपैठ कर ली तो तुम पकड़ नहीं सके तुम महल में हुई घुसपैठ को क्या पकड़ पाओगे?"
सब देवरानी को देखते हैं जो चलते हुए आ रही थी।
"क्या हुआ महाराज?" "क्या हुआ बलदेव?"
राजपाल: अभी आ रही हो! तुम देवरानी। आओ!
देवरानी: जी महाराज!
राजपाल; तुम बड़ी भोली हो देवरानी! ऐसा दृश्य होने का मतलब है कि महल में घुसपैठ हुई है।
देवरानी: अरे ऐसा है महाराज! लेकिन घुसपैठ हुई आपके महल में, तो आप ने पकड़ा क्यू नहीं, कुछ चोरी तो नहीं कर लिया?
देवरानी भोली बनती हुई कहती है।
बलदेव देवरानी को देख मन में ("ये माँ बड़ी तेज़ है इतनी जल्दी वस्त्र बदल लिए, साडी पहन ली और आ कर सती सावित्री बन रही है।")
राजपाल; तुम सही में भोली हो ऐसे घुसपैठिये जासूसी करने आते हैं, किसी भी महल में । ये चोरी नहीं करते।
देवरानी; (मन में) राजपाल में भोली हुआ करती थी पर अब नहीं रही और बलदेव ने घुसपैठ कर के मेरा दिल चुरा लिया है । पर तुमसे हमसे क्या?
देवरानी; अच्छा महाराज मुझे नहीं पता था।
सृष्टि: इसे कहाँ समझ रहे हो महाराज! ये सब समझने के लिए दिमाग होना चाहिए।
राजपाल; और ये चादर छोड़ के भाग गया घुसपैठिया ।
सबकी नज़र उस चादर पर जाती है।
जीविका: (मन में) ये चादर तो जानी पहचानी लग रही है, कहीं मैं जो सोच रही हूँ वह सही तो नहीं बलदेव...?
जीविका का तेज दिमाग भांप कर तेजी से दौड़ने लगता है।
सृष्टि: ये चादर तो मैंने कहीं तो पहले भी देखी है। महाराज को बताऊंगी।
राजपाल: जाओ अब सब! अपने-अपने कक्ष में जा कर आराम करो! अभी इतनी रात में कोई बहस नहीं चाहता और हाँ कमला आज तुम गई नहीं अपने घर?
कमला: वह महाराज मैं जा रही थी पर!
देवरानी: वो मैंने ही इसे रोक लीया था क्योंकि मेरे कमर में दर्द था।
देवरानी: (मन मैं) ये कमला का रोक के क्या फ़ायदा हुआ । कामिनी सो गई थी जिसकी वजह से ये सब हुआ। अगर पहले सचेत कर देती तो?
जीविका; (मन में) लगता है कमर तोड़ के पेलवा रही है रंडी! जो कमर की मालिश करवाती रहती है।
सब लोग अपने-अपने कक्ष में जाने लगते हैं।
देवरानी: सासु माँ चलो! मैं छोड़ देती हूँ आपको।
जीविका मैं बैसाखी के सहारे चली जाउंगी।
राजपाल: माँ अगर वह मदद करना चाहती है तो उसके साथ चली जाओ ना।
जीविका: मैं अभी इतनी भी बेबस नहीं हुई हूँ।
और देवरानी के ओर गुस्से से देखती है।
थोड़े देर में सब एक-एक कर के वापस सोने चले जाते हैं।
राजपाल सोचते हुए अपनी कक्षा में जा रहा था।
"ये देवरानी के कक्ष के पास से ही घुसपैठिये ने भागना शुरू किया था।"
वो कुछ सोच कर देवरानी के कक्ष की ओर जाता है।
देवरानी का दरवाजा खटखटाता है।
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"अरे महाराज आप!"
देवरानी (मन में) ; हे भगवान! ये इतनी रात में यहाँ ।! कहीं इसका कुछ गलत इरादा तो नहीं, कहीं इसका पति प्रेम तो नहीं जग गया। "
"क्या हुआ महाराज कुछ काम था?"
"देवरानी क्या दरवाजे पर ही रहु? अंदर तो आने दो मुझे ।"
"ओह्ह! हा आइये ना महाराज!"
राजपाल आकर कक्ष के चारो ओर देखता है।
राजपाल: देवरानी क्या तुमने घुसपैठिये के आने की या चलने की आवाज सुनी थी।
देवरानी: नहीं महाराज! मैं नींद में थी।
राजपाल (मन में) : कहीं देवरानी का किसी से चक्कर तो नहीं या यही किसी के सहारे हम पर आक्रमण तो नहीं करवा रहे हैं षड्यंत्रकारी ।
देवरानी (मन में) ; बस यही तुम्हारा पति धर्म है। अपनी पत्नी पर शक करना कि वह दुश्मनी कर रही है और तुम्हारी जान लेना चाहती है। ये सब सृष्टि ने तुम्हारे दिमाग में भर दिया है।
राजपाल: ठीक है मैं जाता हूँ।
राजपाल के जते हे देवरानी फटाक से दरवाजा लगा के लम्बी-लम्बी साँस लेने लगती है।
"हे भगवान बचा लिया तूने! नहीं तो अगर राजपाल मेरे साथ कुछ ऊंच नीच करते तो मैं उन्हें रोक नहीं पाती, क्यूकी वह अब भी मेरे पति है समाज के सामने और फिर मैं बलदेव को क्या मुंह दिखाती?"
"नहीं मैं राजपाल को, अपने शरीर को छूने भी नहीं दे सकती इसपे अब सिर्फ बलदेव का हक है।"
फिर देवरानी मुस्कुराती है।
"भगवान क्या हो रहा है मुझे जब बलदेव आया औरमेरे साथ रंगरलिया मना कर गया तो मुझे संकोच नहीं हुआ पर राजपाल के आते, मैं ऐसे डरने लगी जैसे कोई गैर पुरुष आगया हो।"
"सच मैं मुझे बलदेव से प्रेम हो गया है।"
और फिर जा कर उल्टा लेट कर कामसूत्र पुस्तक उठा कर पढ़ने लगती है।
जारी रहेगी
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08-12-2023, 04:07 PM,
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 48 A
दाग-शक के बीज
देवरानी: उह! बलदेव, एक दिन मुझे भी इस चित्र की तरह अपने गोद में उठाया खड़े-खड़े पेलना इस निगोड़ी बुर ने मुझे बहुत तड़पाया है...! ओह्ह! "बलदेव के लिंग का पानी कितना मज़ेदार था!"
चुत को मसलते हुए बिस्तर पर देवरानी आज की घटना को याद कर रही थी, कैसे उसे बलदेव ने रगड़ा था और उसका साथ दे कर देवरानी को आज एक अलग ही सुख का एहसास हो रहा था। आखिर में वह किसी भी तरह उस रात में सो जाती है।
बलदेव भी देवरानी पर खूब मेहनत कर अपना पानी गिरा कर हल्का हो गया था। बाप दुवारा पकड़े जाने से बचने की ख़ुशी भी थी उसे और वह चैन की नींद लेने लगता है।
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राजपाल के मन में कहीं न कहीं शक पैदा हो गया था कि, इस घुसपैठ के पीछे कहीं देवरानी तो नहीं जुड़ी है और कहीं उसके देवरानी की ओर से ध्यान नहीं देने के कारण, किसी से सम्बंध तो नहीं बना लीये हैं देवरानी ने!
जीविका तो मन ही मन समझ गई थी घुसपैठ किसी अन्य ने नहीं बल्कि बलदेव ने ही की है, वह भी अपनी माँ के लिए और सृष्टि के मन में भी शंका पैदा हो गई थी, के हो ना हो ये चादर जो घुसपैठिये ने छोड़ दी थी वह देवरानी की ही है।
सुबह सब से पहले कमला उठती हैऔर घर का काम करने में लग जाती है। उसके बाद जीविका उठती है और टहलने के लिए बाग में चली जाती है। राजपाल भी सुबह जल्दी उठ जाता है और महल के बाहर टहलने लगता है।
सृष्टि स्नान घर से निकल कर आती है।
शुरुष्टि: कमला कहा हो तुम?
कमला: महारानी रसोई में हूँ।
शुरुष्टि रसोई की ओर आ कर...
"कमला मेरे कपड़े कुछ गंदे हो गए हैं थोड़ा देख लेना।"
"ठीक है महारानी मैं कर दूंगी साफ।"
कमला रसोई का काम ख़त्म कर के कपडे धोने के लिए सब जगह से कपडे इकठ्ठा करने लगती है।
कमला: हे भगवान सब उठ गये ये प्रेमी जोड़ा अब तक सो रहे है देखु ज़रा इनको।
कमला देवरानी की कक्षा में जाती है।
कमला: महरानी देवरानी हद्द हो गयी अब तक सो रही हो आप।
देवरानी एक अंगड़ाई ले कर उठती है।
"कमला कहो ना क्या बात है।"
"अब मैं क्या कहूँ महारानी उठ जाओ सुबह कब की हो गयी है।"
देवरानी उठ के बैठ जाती है।
"कमला मेरे बदन का नस-नस दुख हो रहा है।"
अपनी अधखुली आंखो से देवरानी कहती है।
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"क्यू महारानी कल रात में कुवा खुदवा ली क्या?"
"हट पागल कमला!" शर्मा कर फिर लेट जाती है।
"अब कर लो बात! कुछ भी नहीं और रोम-रोम दर्द भी है! ऐसा नहीं हो सकता, कोई बात नहीं महारानी वर्षो बाद प्रेम का खेल रही हो, शरीर को धीरे-धीरे आदत हो जाएगी।"
"चुप करो कमला! जाओ अपना काम करो!"
"ठीक है महरानी सोती रहो! सब पूजापाठ, सुबह उठ कर स्नान करना भूल गई हो! , मैं जाती हूँ कपड़े धोने, तुम्हारा कुछ है धोने के लिए तो बताओ!"
देवरानी उल्टा लेती हुई अपना मुँह तकिये से दबाये बोलती है।
"हा स्नान गृह में देखो, अलगनी पर उतरे वस्त्र है सब धो दो!"
"ठीक है महारानी!"
कमला सब वस्त्र ले कर चली जाती है महल के एक कोने में जहाँ पर कुआ था और बड़ी-सी पक्की जगह थी वहाँ पर सिर्फ कपडे धोये जाते थे वहाँ पर जाकर कमला बारी-बारी से कपडे धोने लगती है।
कमला अब जैसे ही देवरानी की एक साडी धो कर फिर से बाल्टी में हाथ डालती है तो उसके हाथ में एक छोटी धोती नुमा कपड़ा आता है जिसे देख उसके मुँह से निकलता है।
"हाय राम ये तो इतना छोटी-सी धोती है वह भी रेशमी है ये महारानी कब से ऐसा वस्त्र पहनने लगी!"
"अच्छा रात का कार्यक्रम में यही धारण किया था महारानी ने!"
जारी रहेगी
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08-12-2023, 04:10 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 48 C
दाग-शक के बीज
देवरानी परेशान हो कर बोली।
"हाँ वह तो शातिर है, उसे मैं आसानी से बेवकूफ भी नहीं बना सकती थी। मुझे लगता है कि वह समझ गई कि किसी पुरुष का वीर्य है।"
"हे भगवान कमला! कही वह ये बात महाराज को ना बता दे?"
"हाँ वह रात की बात भी समझ चुकी होगी। डरो मत महारानी आज नहीं तो कल पता तो चलना ही है।"
"हम्म वह तो है, मैं नहीं डरती किसी से! ज्यादा से ज्यादा मेरी जान ले लेंगे!"
"अरे छोड़ो उसे! अभी शक वह पैदा हुआ है ना । उसके पास क्या सबूत है?"
"कमला तुम तो बस चुप रहो, सब तुम्हारे कारण से हो रहा है। कल रात में घोड़े बेच कर सो गई थी । महाराज के आने का इशारा कर देती तो मैं बलदेव को ऐसे बाहर ना भेजती।"
"मेरा बलदेव बाल-बाल बच गया। नहीं तो पकड़ा जाता!"
"महारानी तुम ना भेजती बलदेव को बाहर, पर महाराज को अगर चलने की आवाज आ चुकी थी और वह कहीं आपका कक्ष खुलवा कर देखते और म दोनों को रंगे हाथ पकड़ लेते तो?"
"हम्म वह भी है कमला!"
"इसलिये कहती हूँ महारानी जो होता है अच्छे के लिए होता है मौज करो, डरो नहीं! मरना तो एक दिन है ही।"
"कमला तू इतना ज्ञान कहाँ से लाती है?"
"जैसा तुमने बलदेव का वीर्य अपने कपड़े पर लगा लिया वैसे ही मेरे पास ज्ञान आ गया।"
"चल हट कामिनी कहीं की। वह तो बस!"
"क्या बस महरानी!"
"महारानी तुम तो कहती हो कुछ नहीं हुआ पर तुम्हारे रोम-रोम में भी दर्द हो रहा था!"
"अरे कामिनी बस हम कोई जल्दीबाजी नहीं करना चाहते पर वह बलदेव ने जोश में आ कर पीछे से रगड़ के पानी छोड़ दिया!"
देवरानी शर्मा कर अपना मुंह फेर लेती है।
"महारानी है वह तुम्हारा पिछवाड़ा है ही ऐसा अच्छा! क्या खूब मसला बलदेव ने और महारानी इतना गाढ़ा वीर्य मैंने तो कभी नहीं देखा!"
"हम्म पता है कमला!"
(मन में: कमला अब तुम्हें क्या बताऊँ की मैंने मेरे प्यारे प्रेमी के वीर्य के अनमोल दानो को, मेरे बेटे के बीज को चखा भी है और जिसका स्वाद अब तक मेरे मुंह में है।
"क्या सोच रही हो महारानी बलदेव का ऐसा गाड़ा अमोघ वीर्य है कि किसी भी महिला को एक बच्चे नहीं दो बच्चे की माँ बना दे!"
"चुप कर कामिनी कमला! और जा प्रसाद बांट दे सबको!"
कमला: महारानी ध्यान से करना कहि बलदेव आपको ही जुड़वा बच्चे की माँ ना बना दे!
ये कह कर कमला प्रसाद की थाली ले कर जल्दबाजी में भागती है और हसती है।
देवरानी: कमला की बच्चीऔर उसके ऊपर हाथ उठाये उसके पीछे भागती है।
कमला तेजी से भाग जाती है और देवरानी ज़ोर से हस देती है और आखे बंद कर के...
"हे भगवान ये कमला भी ना।" और बलदेव द्वारा उसे गर्भआती कर देने वाली बात सोच कर उसका रोम-रोम सिहर जाता है फिर कुछ सोच कर।
"प्यार मेरा है, प्रेमी मेरा है, वह एक बच्चे से मुझे गर्भवती करे या जुड़वाँ से इससे इस कमला को क्या काम?"
उधर बलदेव भी अब उठ चुका था फिर व्यायाम कर के स्नान कर तैयार हो गया है और वैद द्वारा दिया चूरन खा लेता है उतने में कमला वहाँ आती है।
कमला: ये लो युवराज प्रसाद!
युवराज बलदेव कमला से प्रसाद ले कर श्रद्धा के साथ प्रसाद खा लेता है।
कमला: कब तक चूरन खाओगे प्रसाद खाओ।
बलदेव: कमला वह तो मैं बच गया रात में नहीं तो तुम तो मुझे मरवा ही देती।
कमला: अपनी माँ को ले कर सोना भी है और मजे भी करने है या डरते भी हो!
बलदेव: डरते तो हम अपने बाप से भी नहीं हैं!
कमला: हाँ जानती हूँ इसलिए तुमने अपनी ही माँ को पटा लिया है और आधी रात माँ के साथ मजे ले कर उसके वह कक्ष में उसीके बिस्तर पर ही सो जाते हो।
बलदेव: हाँ कमला हमें कुछ न कुछ सोचना पड़ेगा! क्यू के हम और ज्यादा दिन तक ये छुपनछुपायी का खेल इस तरह से नहीं खेल सकते!
कमला: तो आपका युवराज से महाराज बन ने का इरादा है?
बलदेव: अब तुम्हारी महारानी मेरी हुई तो महाराज तो हो गया मैं।
कमला: पर आधे हुए ही अभी क्यूकी अभी ब्याह तो किया नहीं है।
बलदेव: विवाह हाहा! उसका पता नहीं पर मेरे प्रेम में दीवानी है तुम्हारी महारानी!
कमला: चलो अब प्रसाद खा लिया और अब मैं अपना काम करने जा रही हूँ और कक्ष से बाहर जाने लगती है।
बलदेव: अरे सुनो तो ये तो बताती जाओ मेरी रानी कहा है अभी?
कमला: तैयार हो कर बैठी है तुम्हारे लिए अपनी कक्षा में और जल्दबाजी में बाहर चली जाती है।
बलदेव (मन में अब मुझे अपना असली प्रसाद खाना चाहिए जो भगवान ने सिर्फ मेरे लिए बनाया है)
जारी रहेगी
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