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RE: Antarvasna Sex kahani वक़्त के हाथों मजबूर
वक़्त के हाथों मजबूर--8
दूसरे दिन सुबह करीब 10 बजे जब राधिका घर में अकेली थी और सनडे का दिन था. उसका भाई और बाप रोज की तरह अपने शराब पीने के लिए बाहर गये हुए थे की तभी उसके घर की डोर बेल बजी.
राधिका- इस वक़्त कौन आ गया और वो दरवाजा खोलने चली जाती है.
जैसे ही दरवाजा खोलती है सामने राहुल खड़ा था. जैसे ही राधिका की नज़र राहुल पर पड़ती है वो एक दम चोंक जाती है उसने कभी भी सपने में भी नही सोचा था कि राहुल उसके घर पर आएगा.
राधिका- अरे राहुल जी आप!!!!! कैसे !!!! कब!!!! आपको मेरे घर का अड्रेस कैसे मालूम चला!!!!! ऐसे ही ढेर सारे सवाल एक साथ राधिका ने एक ही साँस में पूछ डाले.
राहुल- ठहरो तो सही मेडम एक एक कर आपके सारे सवालो का जवाब देता हूँ. मुझे अंदर आने को नही कहोगी क्या.
राधिका- एक दम से हाँ.. जी अंदर आइये.
राहुल जैसे ही अंदर आता है वो घर की दशा को देखकर उसने कभी ऐसा सोचा भी नही था कि राधिका ऐसे घर में रहती होगी. मकान बहुत पुराना था. जगह जगह प्लास्टर फूटा हुआ था. और कही कही पर तो पैंट भी नही था. उपेर छत आरसीसी का था. कुल मिलाकर दोनो कमरे बड़े थे लगता था जैसे दो हॉल है. एक किचन और उससे अटॅच बाथरूम.
राहुल को ऐसे देखकर राधिका को अपने अंदर गिल्टी फील होने लगती है.और झट से कहती है आप यहा सोफा पर बैठिए मैं अबी आती हूँ.
राहुल कुछ देर तक घर का पूरा मुआईना करता है. घर में ज़्यादा समान भी नही था. ज़रूरत भर का समान जैसे टी.वी, एक पुराना रेडियो , और दो पलंग थे. एक सोफा सेट और पहनने के लिए कपड़े . बस इससे ज़्यादा कुछ नही.
राधिका- अंदर से आती है और राहुल को ऐसे देखकर पूछती है
राधिका- क्या देख रहे हो राहुल. मैं किसी करोड़पति की बेटी नही हूँ. बस यही मेरी दुनिया है. जीवन में जो चाहिए रोटी, कपड़ा और मकान तीनो चीज़ें हैं मेरे पास. हां बस आलीशान नही है.
राहुल- कोई बात नही राधिका जी लेकिन आपको देखने से तो ऐसा नही लगता पर खैर कोई बात नही.
राधिका- आप बैठिए मैं आपके लिए चाइ नाश्ता लेकर आती हूँ.
राहुल- आरे आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं. रहने दीजिए इसकी कोई ज़रूरत नही.
राधिका- देखिए राहुल जी आप आज पहली बार आए हैं मेरे घर तो मेरा फ़र्ज़ बनता है. इतना कहकर राधिका किचन में चली जाती है और कुछ देर में स्नॅक्स ,चाइ वगेरह एक ट्रे में लेकर आती है.
राधिका- कहिए कैसे आना हुआ आपको मेरा घर का अड्रेस कैसे पता चला.
राहुल- उस दिन हम कॅंटीन में नाश्ता कर रहे थे तो आपका ये आइ-कार्ड वही फर्श पर गिरा हुआ मुझे मिला.बस इसमें तुम्हारा नाम, पता सब कुछ इस आइ कार्ड से ही मिल गया.और मैं यहाँ ...........
राधिका- ओह ये तो मुझे बिल्कुल ध्यान ही नही रहा .धन्यवाद राहुल जी नही तो ये गुम हो जाता तो मुझे प्राब्लम हो जाती.
राहुल- वैसे आप इस वक़्त घर पर अकेली हैं क्या. राहुल से ऐसे सवाल सुनकर राधिका घूर के राहुल को देखने लगती हैं.
राधिका- हाँ हूँ तो. क्यों कुछ ऐसा वैसा करने का इरादा है क्या. कही तुम मेरा रेप तो नही करना चाहते हो ना.
राहुल- हँसते हुए, आरे आप भी कमाल करती हो मैं और रेप,, मुझमें इतनी हिम्मत नही है कि मैं किसी लड़की का रेप कर सकूँ.
राधिका- क्यों इसमें हिम्मत की क्या बात है. सब जैसे करते है वैसे तुम भी... इतना बोलकर राधिका चुप हो जाती है.
राहुल- राधिका सब इंसान एक जैसे नही होते. यकीन मानो मैं ऐसा कुछ नही सोच रहा हूँ. वैसे तुम्हारा भाई और पिताजी कहाँ है इस वक़्त.??
राधिका- गये होंगे उस बिहारी के पास उसकी गुलामी करने. और तो कोई काम नही है ना सारा दिन उसके आगे पीछे घूमते रहते हैं और मुफ़्त में वो रोज़ उनको शराब देता है पीने के लिए.
राहुल- अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं उनसे इस बारे में बात करू. हो सकता है वो सुधर जाए.
राधिका- आपने कभी कुत्ते का दुम को सीधा होते देखा है क्या !! नही ना ऐसे ही है वो दोनो. हमेशा टेढ़े ही रहेंगे.
राहुल- यार तुम कोई भी बात डाइरेक्ट्ली क्यों बोल देती हो. वही बात थोड़े प्यार से भी तो कह सकती थी. फिर राधिका उसको ऐसे नज़रो से देखती है कि वो उसे कच्चा चबा जाएगी.
राधिका- मैं ऐसी ही हूँ. और कोई काम है क्या आपको.
राहुल- नही !! आज थोड़ा फ्री हूँ. मेरे आने से तुम्हें कोई प्राब्लम है क्या.
राधिका- नही राहुल मेरा ये मतलब नही था.
राहुल- एक बात कहूँ. जब से मैने तुमको देखा है पता नही क्यों मैं दिन रात बेचैन सा रहता हूँ. हर पल तुम्हारा ही ख़याल आता रहता है. मेरे साथ पता नही ऐसा पहली बार हो रहा है क्या तुम्हें भी.......................
राधिका- मुझे कोई बेचैनी और किसी का ख्याल नही आता. जा कर डॉक्टर से अपना इलाज़ करवाईए. अगर नही तो बोल दो मैं इलाज़ कर देती हूँ.
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RE: Antarvasna Sex kahani वक़्त के हाथों मजबूर
दूसरे दिन उधेर विजय भी बार बार राधिका के लिए बेचैन था. और हर रोज़ शाम को सोने के पहले और सुबह उठने के बाद राधिका की नाम की मूठ मारता रहता था.
विजय- ये तूने क्या कर दिया है राधिका क्यों मेरा लंड तेरे लिए इतना बेचैन हैं. जब तक तेरे नाम का मैं मूठ नही मार लेता मेरे लंड को चैन ही नही मिलता. अब चाहे कुछ भी हो जाए मैं तुझे किसी भी तरह हासिल करूँगा चाहे उसके लिए मुझे कोई भी कीमत,चाहे मुझे किसी की भी बलि क्यों ना देनी पड़े. तुझे मुझसे कोई नही छीन सकता राहुल भी नही इतना सोचकर विजय के चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ जाती है.
विजय फिर मोनिका के पास फोन करता है
विजय- कैसी है मेरी रांड़!!!
मोनिका- ठीक हूँ बोलो कैसे याद किया मुझे.
विजय- तू तो जानती है ना कि जब मेरा लंड खड़ा होता है तो तेरी याद आती है. चल मेरे घर पर आ जा मैं बहुत बेचैन हूँ.
मोनिका- नही मुझे तुम्हारे साथ सेक्स नही करना. तुम आज कल बहुत वाइल्ड होते जा रहे हो. मुझे तो डर लगता है अब तुमसे.
विजय- आरे आ जा ना मेरी जान क्यों नखरे करती है . चल वादा करता हूँ कि अब तुझे मैं अपने चंगुल से आज़ाद कर दूँगा. अब तो तू खुस है ना चल जल्दी से आ जा .
मोनिका- ठीक है ठीक है अभी आती हूँ और मोनिका फोन रख देती है.
थोड़ी देर के बाद मोनिका राहुल के घर पर पहुँच जाती है.
विजय- आ गयी मेरी रांड़ देख ना मेरा लंड तेरी याद में खड़ा ही रहता है. चल अपने पूरे कपड़े उतार कर एक दम नंगी हो जा.
मोनिका- विजय आज भी तुमने ड्रग्स लिया है ना. मैं इसी वक़्त यहाँ से जा रही हूँ.
विजय- अरे मेरी जान तेरे नशे के आगे तो ये ड्रग्स भी क्या चीज़ है. लत लग गयी है मुझे क्या करू छूट ती ही नही .
मोनिका- मुझे तुमसे बहुत डर लगता है. पता नही कब क्या करदोगे मेरे साथ.
विजय- अरे गैरों से डरना चाहिए अपनो से नही. चल अब फटाफट नंगी हो जा.
मोनिका अपनी साड़ी पेटिकोट, ब्लाउस, ब्रा और पैंटी सब कुछ उतार कर एक दम नंगी होकर वही विजय के सामने खड़ी हो जाती है.
विजय- अब वही खड़ी भी रहेगी क्या,, देख ना मेरे जूते कितने गंदे हो गये हैं. चल आ कर सॉफ कर दे ना. विजय अपने जूते को मोनिका की ओर दिखाता हुआ बोला.
मोनिका जब उसके बात का मतलब समझती है तो उसके होश उड़ जाते हैं. मगर वो चुप चाप आकर विजय के बाजू में बैठ जाती है.
विजय- यहाँ नही जानेमन नीचे मेरे जूते के पास बैठ ना. मोनिका भी धीरे से उसके जूते के पास बैठ जाती है.
विजय- अब देख क्या रही है चल मेरे जूते सॉफ कर ना. तुझे तो हर बात बतानी पड़ती है क्या. देख एक बात बोल देता हूँ जितना मैं बोलता हूँ उतना ही कर उसी में तेरी भलाई है. वरना अंजाम बहुत बुरा होगा.
विजय की बात सुनकर मोनिका का डर और बढ़ जाता है और वो चुप चाप अपना सिर नीचे झुका लेती है.
विजय- चल ना अब सॉफ भी कर ना अपने इन प्यारे होंठो से.
मोनिका भी धीरे से झुक कर उसके जूते को अपने जीभ से साफ करना सुरू कर देती है. और तब तक करती है जब तक विजय उसको मना नही कर देता.
मोनिका को इतनी शर्मिंदगी लगती है उसका दिल करता है कि अभी यहा से फ़ौरन निकल का भाग जाए.
विजय- चल अच्छे से चाट और एक भी धूल का कण नही रहना चाहिए. कुछ देर तक मोनिका उसके जूते अपने मूह से सॉफ करती है और फिर विजय अपना दूसरा जूता आगे बढ़ा देता है. और वो फिर उसे भी सॉफ करने लगती है.
विजय- साबाश मेरी रांड़ तूने तो मेरे जूते चमका दिए. अब से मैं तुझसे ही अपने जूते सॉफ कराउन्गा. मोनिका उसको घूर कर देखती है मगर कुछ नही बोलती.
विजय- चल अब मेरा लंड चूस और हाँ पूरा अंदर लेना नही तो आज तेरी गान्ड फाड़ दूँगा.
मोनिका झट से उसके पॅंट को खोल देती है और फिर अंडरवेर, और उसका मूसल उसकी नज़रों के सामने आ जाता है.
मोनिका भी चुप चाप उसे मूह में लेकर चूसने लगती है. थोड़े देर की चुसाइ के बाद विजय का लंड एकदम अकड़ जाता है.
विजय- चल तू पूरा मूह खोल मैं अब तेरे मूह में अपना पूरा लंड डालूँगा. इतना कहकर विजय खड़ा हो जाता है और मोनिका को सोफे पर पीठ के बेल लेटा देता है और वो सामने से आकर अपना लंड मोनिका के मूह में डाल देता है. अब मोनिका भी धीरे धीरे विजय का लंड पूरा अपने मूह में लेने लगती है.
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RE: Antarvasna Sex kahani वक़्त के हाथों मजबूर
वक़्त के हाथों मजबूर--9
मोनिका भी कुछ नही बोलती है और बस विजय के हुकुम का इंतेज़ार करती है.
विजय- चल सबसे पहले ये अपने आँसू सॉफ कर. अगर मुझे खुस रखेगी तो तू भी खुस रहेगी समझी.
मोनिका भी चुप चाप हां में गर्देन हिला देती है.
विजय- चल अब तू पेट के बल सो जा आज मैं तेरी सिर्फ़ गांद मारूँगा. इतना कहकर विजय अपना शर्ट और बनियान निकाल देता है.
मोनिका भी पेट के बल लेट जाती है और विजय के लंड को अपनी गान्ड में लेने का इंतेज़ार करती हैं.
थोड़ी देर के बाद विजय का लंबा लंड मोनिका के गान्ड के द्वार पर रखता है और मोनिका के दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है. वो धीरे धीरे अपने लंड पर प्रेशर बढ़ाना शुरू कर देता है और मोनिका के मूह से चीख धीरे धीरे तेज़ होनी शुरू हो जाती है.
मोनिका- प्लीज़ ज़रा धीरे करना बहुत दर्द होता है. तुम एक ही बार में अपना पूरा लंड डाल देते हो. थोड़ा धीरे धीरे करना.
विजय- क्या करू मेरी जान तेरी गान्ड ही ऐसी है और तू तो जानती है कि मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी औरत की गान्ड ही है. कोई बात नही तू मेरे लिया इतनी तो तकलीफ़ सह ही सकती है. इतना कहकर विजय एक ही झटके में अपना लंड मोनिका की गंद में घुसाने की कोशिश करता है मगर लंड करीब 4 इंच तक मुश्किल से जा पाता है और मोनिका की ज़ोर से चीख निकल जाती है.
मोनिका- प्लीज़ बहुत दर्द हो रहा है ज़रा धीरे डालो ना मैं मर जाउन्गि.
विजय- रिलॅक्स बेबी लगता है तेरी गंद अभी पूरी खुली नही है चिंता मत कर मेरी शरण में तू आई है ना तो तेरी गंद का इतना बड़ा होल करूँगा कि चूत भी उसके आगे फीकी लगेगी.
फिर विजय एक झटके से अपना लंड बाहर निकाल लेता है और फिर कुछ सेकेंड में दुबारा उसी रफ़्तार से मोनिका की गंद में डाल देता है. अब की बार लंड करीब 8 इंच तक चला जाता है. और मोनिका बहुत ज़ोर से चिल्ला पड़ती है.
विजय- क्या हुआ मेरी बुलबुल आज तेरी गंद इतनी टाइट क्यो लग रही है. अरे मैने तो बस अपनी लाइफ में सिर्फ़ 2 बार ही तेरी मारी है. और इतना बोलकर विजय हंसता है.
मोनिका- तुम्हें हँसी आ रही है और मेरी जान जा रही है प्लीज़ विजय निकाल लो ना बहुत दर्द हो रहा है.
विजय- चिंता मत कर थोड़ी देर में तुझे भी मज़ा आएगा इतना कहकर फिर विजय पूरा लंड निकाल कर एक बार फिर पूरी गति से अंदर डाल देता है और मोनिका की हालत खराब होने लगती है. कुछ देर तक वो कुछ नही करता फिर आगे पीछे अपना लंड मोनिका की गंद में करता है.
मोनिका भी सिसकारी लेती है उसे तकलीफ़ और मज़ा दोनो का एहसास एक साथ होता है. कुछ देर में विजय अपने लंड की रफ़्तार को तेज़ कर देता है और मोनिका की आहें तेज़ हो जाती है.
विजय- कसम से क्या गंद है तेरी जी करता है ज़िंदगी भर अपना लंड इसी में डाले रखूं.
करीब 20 मिनिट तक विजय मोनिका की गंद को चोद्ता है और फिर उसका शरीर अकड़ने लगता है और उसका वीर्य मोनिका की गंद में ही झाड़ जाता है. और शांत हो कर मोनिका के उपर ही पसर जाता है.
करीब 5 मिनट तक दोनो की साँसें बहुत तेज़ चलती है और दोनो एक दूसरे को देखते है.
मोनिका- अब मन भर गया ना तुम्हारा अब मैं चलती हूँ. और हां मुझे अब तुम आज़ाद कर दो अब मुझे ये सब अच्छा नही लगता.
विजय- वाहह .... मेरी सती सावित्री क्या बात है आज प्यास भुज गयी तो आज़ादी की दुआ माँग रही है. याद कर मैं तेरे पास नही गया था बल्कि तू खुद चुदवाने मेरे पास आई थी , तू ये बात कैसे भूल सकती है ...आज मैं तेरे जिस्म की आग को ठंडा करता हूँ तो तू अब कह रही है मुझे आज़ाद कर दो. तू इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है....
विजय की बात का मोनिका के पास कोई जवाब नही था. इसलिए वो कुछ नही बोलती और अपनी गर्देन नीचे झुका लेती है.
विजय- तुझे मेरे साथ एक डील करनी होगी. अगर तू मेरा डील मानेगी तो मैं वादा करता हू कि मैं तुझे हमेशा के लिए आज़ाद कर दूँगा.
मोनिका- क.....कैसी डील??????
विजय- घबरा मत तुझे मेरा एक छोटा सा काम करना होगा . अगर तू मेरा वो काम करेगी तो समझ ले तू आज़ाद हो गयी नही तो काजीरी है ना दूसरा ऑप्षन तेरे लिए.
मोनिका- मुझे करना क्या होगा.
विजय- तू सवाल बहुत पूछती है . वक़्त आने दे तुझे सब बता दूँगा.इतना कहकर विजय घर से बाहर निकल जाता है.
मोनिका- हे भगवान !!! ये मेरी कैसी ज़िंदगी बन गयी है .कितनी खुस थी मैं जब मेरी शादी तय हुई थी. मेरा भी हंसता खेलता परिवार था. सब की में लाडली थी.
मोनिका के साथ ऐसा क्या हुआ था वो अपने आतीत में खो जाती है.............................................,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
घर पर सब खुस थे. मेरा बी.ए फाइनल एअर था. मेरा भी सपना था कि मैं पढ़ लिख कर खुद अपनी ज़िम्मेदारी निभाऊ, अपने परिवार और अपने होने वाले पति को सारी ख़ुसीया दूँ. मगर ख़ुसीयों को ग्रहण लगते देर नही लगती. मेरी जिंदगी का सूरज भी ऐसा डूबा कि आज भी मेरे जीवन में अंधकार के सिवा कुछ नही है.
आज मेरे घर पर मम्मी पापा, और मेरा एक छोटा भाई के साथ मैं बहुत खुस थी. आज मैने अपनी ग्रॅजुयेशन कंप्लीट कर ली. और मेरे को देखने लड़के वाले आ रहे थे. कुछ देर में वो लोग आए और मुझे देखकर पसंद भी कर लिया. मैं भी बहुत खूबसूरत थी. गोरा बदन उम्र करीब 25 .
कुछ दिन में मेरी शादी हो गयी और मैं अपने ससुराल चली गयी. घर से बहुत दूर. मैं वहाँ बहुत खुश थी. गोपाल मेरे पति करीब 28 साल के थे. वो ट्रक ड्राइवर थे.मेरे सास ससुर गाओं में रहते थे. हम सहर में आ कर रहने लगे क्यों कि गाओं का महॉल कुछ ठीक नही था. इस लिए गोपाल भी यही चाहता था कि मैं भी सहर में ही रहू. हमारी शादी हुए अभी 2 साल ही हुए थे कि एक दिन रोड आक्सिडेंट में उनकी मौत हो गयी. मेरे सर पर मानो पहाड़ टूट पड़ा. मैने भी सोचा कि अब सहर में क्या रखा है सोचा अपने सास ससुर के पास जाकर उनकी सेवा करू.
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