Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
06-02-2019, 02:00 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
तीसरे दिन नाश्ते के समय से ही निशा की हालत खराब सी होने लगी.., मे नाश्ता लेकर उसके पास ही था, नीलू भाभी निशा को नाश्ता कराकर भाभी के साथ किचन में थी..,

निशा के चेहरे पर पीड़ा के भाव देख कर मेने पुछा – क्या हुआ निशु.., ठीक तो हो..?

उसने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा – पता नही कुछ ज़्यादा ही भारीपन सा होने लगा है.., हल्का-हल्का पेन भी हो रहा है..,

मेने फ़ौरन भाभी को आवाज़ दी, उनके आते ही मेने कहा – लगता है भाभी निशा को हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा.., आप थोड़ा देखो मे वीना को फोन करता हूँ, वो मेडिवॅन भिजवा देगी..,

1 घंटे के बाद डॉक्टर वीना खुद आंब्युलेन्स लेकर आ गयी.., भाभी ने घर की ज़िम्मेदारी रखते हुए नीलू भाभी को हमारे साथ भेज दिया..,

भाभी का घर पर रहना ज़रूरी था, छोटा बच्चा, रूचि स्कूल में थी, भैया शाम तक आते.., बाबूजी को इत्तला करके हम लोग निकल गये..,

रास्ते में ही मेने प्राची को भी फोन कर दिया, जो हमारे हॉस्पिटल पहुँचने से पहले ही वहाँ पहुँच गयी..,

निशा को एक स्पेशल बर्ड में शिफ्ट कर दिया, जाते ही वीना ने पेनकिलर मिलाकर बोटेल लगा दी..,

1 घंटे के अंदर ही निशा ने एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया.., घर में लक्ष्मी पाकर मेरी खुशी का ठिकाना नही नही था..,

मेने फ़ौरन भाभी को भी बता दिया, वो भी बहुत खुश हुई.., निशा के सामान्य होते ही मे उसके पास गया.., वो थोड़ी कमजोर और बुझी-बुझी सी लगी..

मेने उसका माथा चूमकर उसके बगल में बैठकर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला – क्या हुआ निशा, कुछ प्राब्लम है…!

निशा ने बुझे से स्वर में कहा – सॉरी राजे, मे आपकी इच्छाओं पर खरी नही उतरी.., आपको बेटा नही दे पाई..!

मेने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा – तुमसे किसने कहा कि मे बेटा चाहता था..?

वो अपने खुसक होठों पर जीभ फेरते हुए बहुत ही धीमे स्वर में बोली – नही वो मेने सोचा आपके अबतक के सभी अंश के रूप में बेटे ही हुए तो…शायद अपने लिए भी आपने यही सोचा होगा…!

मेने उसके गाल पर किस करके कहा – नही निशु.., सच मानो मे बिल्कुल नही चाहता था कि हमारे बेटा हो, भगवान से मन ही मन यही कामना करता रहा कि हे भगवान, मुझे एक लक्ष्मी का रूप दे दे.., और देखो उसने मेरी सुन ली.., क्या तुम बेटा चाहती थी..,

निशा – नही, मेने तो कुछ चाहा ही नही, बस सोचती थी, कि अब तक के देखते हुए कहीं बेटा ही ना हो.., वैसे एक तरह से अच्छा ही हुआ, वरना आप अपने उन बेटों को वो प्यार नही दे पाते.., ये कहते हुए निशा के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान तैर गयी..,

मेने उसके होठ छूकर कहा – ओह निशु.., हमारे विचार कितने मिलते हैं.., तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी.., थॅंक यू जान, मुझे लक्ष्मी के रूप में बेटी देने के लिए..!

इतने में प्राची के साथ वहाँ डॉक्टर. वीना आगयि, और वो निशा का चेक-अप करने लगी, सब कुछ नॉर्मल ही था..,

शाम का खाना हमारे लिए प्राची ही बनाकर ले आई थी, मेने नीलू भाभी को बोला कि अगर वो चाहें तो प्राची के साथ उसके बंगले पर जा सकती हैं.., लेकिन वो नही मानी..!

खाना खिलाकर और कुछ देर रुक कर प्राची अपने घर चली गयी.., चूँकि हमें डॉक्टर. वीना ने ये प्राइवेट रूम दिया था.., जिसमें एक एक्सट्रा पलंग और विज़िटर्स के लिए एक छोटा सा सोफा भी पड़ा हुआ था…!

नीलू भाभी बच्ची की देखभाल में लगी थी, तब तक में डॉक्टर. वीना के साथ उसके कॅबिन की तरफ चला गया.., वो इस समय मरीजों को देखकर जस्ट रिलॅक्स ही हुई थी…!

मुझे देख कर उसकी सारी थकान दूर हो गयी, मुझे सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए वो खुद भी अपनी चेर से उठकर वहीं आगयि…!

मेरे सोफे पर बैठते ही वो आकर मेरी गोद में बैठ गयी.., कुछ देर तक हम दोनो आपस में थोड़ी बहुत छेड़-छाड़ करते रहे.., चुसम-चुसाई की…!

डॉक्टर. वीना की मखमली गान्ड के नीचे दबा मेरा नाग पॅंट के अंदर फुफ्कारने लगा..,

मेने वीना की मस्त मस्त रूई जैसी सॉफ्ट सॉफ्ट गोलाईयों को दबाते हुए पुच्छ – कुछ मन है अभी..?

वीना इतराते हुए बोली – मुझे पता है नीचे तुम्हारा मूसल चूत में जाने के लिए मचल रहा है.., सच कहूँ तो मेरा भी बहुत मन है.. लेकिन अभी इसके लिए समय नही है..,

घर निकलने के लिए मेरे हज़्बेंड मेरा वेट कर रहे होंगे, ऐसा ना कि वो यहीं आ धमके.., इतना कहकर वो मेरी गोद से उठने लगी…!

मेने उसे एक लंबा सा गुड नाइट किस किया और निशा के पास चला आया….!

निशा दवाओं के असर में गहरी नींद में सो चुकी थी, नीलू भाभी एक नाइट गाउन में झुक कर बच्ची के डाइपर चेंज कर रही थी, जो शायद उसने पेशाब से गीले कर दिए थे…!

खुले गले के गाउन से उनकी दूध जैसी गोल-गोल सुडौल गोलाइयाँ काफ़ी अंदर तक दिख रही थी, अंदर घुसते ही मेरी नज़र जैसे ही उनपर पड़ी, बस वहीं की होकर रह गयी…!

उनके भरे-भरे सुन्दर सुडौल वक्ष देख कर मेरे मूह से एक साथ निकल पड़ा…वाउ !

मेरी आवाज़ सुनकर उन्होने पहले मेरी तरफ देखा, फिर मेरी नज़रों का पीछा करते हुए जैसे ही उन्हें पता चला कि मेरी नज़र उनके जान मारु जोबन पर है, जिन्हें देखकर मेरे मूह से वाउ निकला है, वो मन ही मन खुश हो उठी…!

मेरी कामुक नज़र के एहसास से उनके निपल कड़क हो उठे, जो बिना ब्रा के सॉफ्ट कपड़े के गाउन में आगे से कंचे के माफिक दिखने लगे…!

सीधे होकर एक मनमोहक मुस्कान के साथ उन्होने अपने गाउन को ठीक करने के बहाने उसे पहले और आगे को किया.., इस वजह से वो थोड़ा और ज़्यादा दिखाई दे गये फिर उसे गले की तरफ खींचकर पट बंद कर लिए…!

फिर जैसे ही उन्होने दोबारा मेरे उपर ध्यान दिया.., पाजामे में मेरा तंबू अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ था जो डॉक्टर. वीना के साथ टीज़िंग करने के दौरान बन चुका था..!

थोड़ी बहुत रास्ते में उसके सेंसेक्श में जो गिरावट आई भी थी वो फिरसे कमरे के सीन को देखकर उतने ही लेवेल की हो गयी…!

मेरे उठे हुए पाजामे को देखकर नीलू भाभी चुदासी हो उठी.., एक बार उन्होने निशा की तरफ देखा, जो बहुत ही गहरी नींद में सोई हुई थी…!

फिरसे नज़र घूमाकर उन्होने मेरे तंबू पर गढ़ा दी.., और भारी से स्वर में बोली – जीजा जी अब गेट लॉक करके अंदर नही आएँगे.., सोना नही है क्या..? बहुत रात हो गयी…!

कमरे में एक 4एक्स6’ का एक एक्सट्रा बेड भी था.., मे गेट लॉक करके सोफे की तरफ बढ़ता हुआ बोला – हां क्यों नही.., अब तो सोना ही है.., आप बेड पर सो जाओ मे इस सोफे पर लेट जाता हूँ…!

नीलू – आपकी लंबाई के हिसाब से सोफा कुछ छोटा नही है..? घंटा-दो घंटा की बात हो तो कैसे भी काट सकते हैं, लेकिन पूरी रात कैसे निकलेगी..?

मे – अरे कोई बात नही.., एक दो रात कैसे भी काट सकते हैं, फैल फूटकर घर में तो रोज़ ही सोते हैं.., आप मेरी चिंता मत करो.., मे कर लूँगा मॅनेज..!

नीलू – नही.., अगर सोना है तो मे सो जाती हूँ सोफे पर, आप पलंग पर ही लेट जाओ…., ये कहते हुए वो भी सोफे की तरफ आने लगी…!

मे – अरे आप खम्खा क्यों परेशान होती हैं.., मे कर लूँगा मॅनेज…!
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06-02-2019, 02:00 PM,
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मेरे उपर बैठकर श्यामा ने इतनी तेज़ी से अपनी कमर चलाई कि नीचे से मे अपनी कमर उचकाना भूल गया गया, उसकी चुदाई की लगन देखकर मे मंत्रमुग्ध होकर बस मज़े लेता रहा..,

शयामा आज अपनी सारी अगली पिच्छली कसर निकाल लेना चाहती थी.., ना जाने वो कितनी बार झड़ी होगी..,

लेकिन चुदाई की रफ़्तार के आगे मेरा लंड भी एक बार झड़ने के बाद चूत के अंदर ही अंदर ढीला भी नही हो पाया कि फिर से अकड़ गया..,

श्यामा के उपर मानो चुदाई का भूत सवार हो, वो एक पल के लिए भी नही लगी कि वो झड़ने के बाद थकि हो, बस दे दनादन चक्रि की तरह अपनी कमर घुमाती चली जा रही थी..,

फिर जैसे ही वो अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर रुकी, मेने शयामा को कुतिया की तरह पीछे से पेलना शुरू कर दिया, और खूब पेला, फिर आख़िरकार अपना ढेर सारा पानी उसकी नन्ही सी चूत में उडेल दिया..,

शयामा औंधे मूह चारपाई पर पड़ी रह गयी, कुछ देर मे भी उसके उपर लेटा रहा, फिर उठकर उसकी गान्ड को सहलाकर अपने कपड़े पहन लिए..,

शयामा के शरीर को हिलाया तो वो कुन्मूनाकर सीधी हुई, अपनी बाहें फैलाकर मेरी तरफ बढ़ा दी.., मेने झुक कर उसे गले से लगा लिया..,

वो मेरे गले से लिपटकर बोली – धन्याबाद मालिक, आज आपका प्रसाद पाकर मे धन्य हो गयी..,

चोंक कर मेने उसे अलग किया और बोला – क्या मतलब..? कैसा प्रसाद..?

श्यामा मुस्करा कर बोली – वही जो अभी अभी ढेर सारा मेरे अंदर डाला है आपने.., मुझे पूरी उम्मीद है कि मे आपके बीज़ को पा चुकी हूँ..,

ये कहकर वो फिर एक बार मेरे गले में झूल गयी.., मेने उसकी छोटी सी गान्ड को कसकर दबाया और उसे नंगी ही चारपाई पर पड़ी छोड़कर उसके घर से निकल आया…!

श्यामा की चुदाई ने आज सच में मुझे निढाल सा कर दिया था.., और ये भी सच था कि आज से पहले कभी इतना मज़ा भी शायद ही आया होगा मुझे..,


एक नयी जवान प्यासी औरत की प्यास क्या होती है श्यामा ने मुझे जता दिया था…!

ना जाने क्यों, उसे तृप्त करके, उसकी इच्छा पूरी करके आज मुझे अपार सुख की अनुभूति हो रही थी..,


घर आते ही मेने वरामदे में पड़ी चारपाई पकड़ ली, और कुछ ही मिनटों में मे गहरी नींद में डूब गया…!

नींद में भी शयामा ने मेरा पीछा नही छोड़ा, उसकी चुदाई के सुखद अनुभव नींद में भी मेरे दिमाग़ पर हावी थे, श्यामा की कसी हुई चूत में फँसा हुआ मेरा खूँटा, उसका अचेत हो जाना..,

फिर उसके बाद लंड के बाहर खींचने पर होश आना.., उसके बाद की उसकी तेज़ी.., यही सब सपने में देख रहा था, नतीजा आप सब लोग जानते ही हैं, क्या हुआ होगा !

मेरा पस्त हुआ पड़ा लंड नींद में ही खड़ा हो गया,

मे चित्त पड़ा सो रहा था, पाजामे में फुल तंबू बन चुका था, यही नही सपने में हो रहे घटनाक्रम के साथ साथ वो ठुमके भी लगा रहा था..!

वहाँ से गुज़रते हुए नीलू भाभी की नज़र जब मेरे लौडे पर पड़ी, उनकी साँसें थम गयी, वो वही मेरी चारपाई के पास खड़ी होकर उसका ये कौतूहल देखने लगी…!

मेरे फुल खड़े लंड के ठुमके देखकर उनकी मुनिया गीली होने लगी.., ना जाने वो ये नज़ारा कितनी देर से देख रही थी..,

अपनी चूत की खुजली के वशीभूत होकर उनसे रहा नही गया, और चारपाई की पाटी पर बैठ गयी.., अभी वो मेरे लौडे को अपने हाथ में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा ही रही थी…,

कि पीछे से भाभी की आवाज़ ने उन्हें चोंका दिया.., वो फ़ौरन से पेस्तर चारपाई से उठ खड़ी हुई, और बिना कुछ कहे तेज-तेज कदमों से वहाँ से चली गयी..,!

जब भाभी मेरी चारपाई के पास आई, तब उन्हें पता चला कि असल माजरा क्या है..,

कुछ देर तो वो भी बड़ी प्यासी निगाहों से उसे देखती रही.., मेरे लंड के कौतुक देखकर उनकी मुनिया की प्यास भी भड़कने लगी..,

लेकिन वो जानती थी, कि नीलू की नज़र अभी भी यहीं पर लगी होगी, सो अपनी भावनाओं पर काबू रख कर उन्होने मुझे कंधे से हिलाया..,

लल्ला..ओ..लल्ला.., उठो…, जाओ जाकर अपने कमरे में सो जाओ..,

मे हड़बड़ा कर उठा, भाभी को जागते हुए देख बोला – क्या हुआ भाभी…?

भाभी ने आँखों के इशारे से बताया कि देखो तुम्हारा मूसल क्या कर रहा है..,

जब मेरी नज़र वहाँ गयी तो वो मुस्करा कर बोली – अभी तो नीलू की नज़र पड़ी है, वो तुम्हारे इस मूसल की दीवानी हो रही थी.., लेकिन सोचो, उसकी जगह कोई और आ जाए तो..?

जाओ, सोना है तो अपने कमरे में जाओ..,

वास्तविकता का भान होते ही मे झेंप कर उठ बैठा और चारपाई से उतरकर अपने कमरे की तरफ चल दिया.., पीछे खड़ी भाभी मंद-मंद मुस्करा रही थी…!

ऐसे ही दो दिन निकल गये, इन दो दिनो में नीलू भाभी ने मुझे सिड्यूस करने के भरसक प्रयास किए.., ज़रूरत से ज़्यादा टाइट कपड़े पहन कर अपने कूल्हे और उभारों को कुछ ज़्यादा ही उभार कर दिखाना..,

चलते-फिरते मेरे शरीर से टच करना, कभी कभार मेरे लौडे को छू लेना.., लेकिन मेने अपनी तरफ से उनकी हर कोशिश नाकाम कर दी..,

कुल मिलाकर उनकी तड़प बढ़ती ही जा रही थी, ऐसा भी नही था कि मेरी इक्षा नही थी उन्हें चोदने की लेकिन भाभी का कहा मानकर मे उन्हें और थोड़ा तड़पाना चाहता था..,

मेने आजकल कोर्ट जाना बंद किया हुआ था, निशा के दिन पूरे हो चुके थे, किसी भी वक़्त उसकी डेलिवरी हो सकती थी..,
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06-02-2019, 02:00 PM,
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वो आकर एकदम मेरे सामने खड़ी हो गयी.., और मेरा हाथ पकड़कर बेड की तरफ ले जाते हुए बोली – किसी एक को ही सोना है तो आप सो-ओगे.., वरना हम दोनो इसी पर सोते हैं…!

मे – अरे नही भाभी.., आप समझा करो.., पलंग इतना बड़ा नही है कि हम दोनो सो सकें.., आप खम्खा परेशान मत हो…!

नीलू मेरी आँखों में देखते हुए बोली – मे इतनी मोटी हूँ, जो आपके लायक जगह नही बचेगी…? या आप इस बात से डर रहे हैं कि कहीं सलहज साहिबा रात भर परेशान ना करे…!

इतना कहकर उन्होने मेरे दोनो बाजू पकड़ कर जबदस्ती पलंग पर बिठा दिया.., वो मेरे ठीक सामने खड़ी मुस्करा रही थी..,

मेने अपने दोनो हाथ उनकी मखमली गान्ड के इर्द-गिर्द लपेट दिए, उन्हें अपनी ओर खींचते हुए अपना मूह उनकी चुचियों के ठीक नीचे सटाते हुए कहा – आप जैसी हसीन सलहज से तो मे रात भर परेशान होने को तैयार हूँ…!

उन्होने भी अपनी उंगलियाँ मेरे सिर के बालों में उलझा दी, और उन्हें सहलाते हुए झुक कर अपनी मुलायम चुचियाँ मेरे सिर पर दबाते हुए बोली…

फिर तो कोई समस्या ही नही है.., ननद रानी तो अब सुबह से पहले उठने वाली नही हैं.., हो लेते हैं सारी रात मिलकर परेशान…!

ये कहकर उन्होने मेरे उपर अपना भार डालते हुए मुझे पलग पर लिटा दिया.., और खुद मेरे उपर आकर मेरे होठों को चूम लिया…!

नीलू भाभी एकदम से मेरे उपर पसर गयी, उनकी मुलायम चुचियाँ मेरे सीने से रगड़ने लगी.., एकदम कबूतर की चोंच जैसे उसके निपल कड़क होकर मेरे सीने से रगड़ा खाकर मुझे और उत्तेजित करने लगे..,

मेरे पैर अभी भी नीचे ज़मीन पर ही रखे थे, मेरा लंड पाजामा में बुरी तरह से फनफना रहा था.., उनकी मुनिया की मांसल फाँकें उससे दबी हुई थी..,

मेने उनकी मखमली गान्ड के उभारों को अपने हाथों में लेकर मसल्ते हुए और ज़ोर्से दबाया.., उनके मूह से अत्यंत कामुक सिसकी निकल पड़ी…

सस्सिईइ…आअहह….जीजा जी.., ये क्या चुभ रहा है मेरे आगे..?

मेने उनकी गान्ड की दरार में अपनी उंगली घूमाते हुए कहा – हाथ डालकर देख लो ना.., क्या चुभ रहा है..? हटाना चाहो तो हटा दो ज़्यादा परेशान कर रहा हो तो.. , ये कहकर मेने अपनी उंगली का दबाब उनकी गान्ड के छेद पर बढ़ा दिया…!

नीलू ने अपना एक हाथ पीछे लेजकर मेरी कलाई थाम ली और सिसकते हुए अपनी चूत का दबाब मेरे लंड पर और बढ़ाते हुए बोली—

सस्सिईइ…हाए…ये क्या कर रहे हैं.., अपनी उंगली वहाँ से हटाइए.., वरना घुस जाएगी मेरे पीछे…!

मेने एक हाथ से उनकी गोलाईयों को सहलाते हुए कहा.., ऐसा क्या है वहाँ पीछे जिसमें घुस जाएगी.., कोई सुरंग-उरंग है क्या..?

मेरे हाथ को अपनी गान्ड से हटाकर वो मेरे लंड के उपर बैठ गयी, अपनी चूत को उसके उपर घिसते हुए हंस कर बोली – अच्छा जी, जैसे आपके तो पीछे छेद ही नही.., दिखाऊ क्या..?

नीलू भाभी घुटने मोड़ कर मेरे उपर बैठी हुई थी, मेने उनकी नाइटी को अपने हाथों से उपर की ओर सरकाते हुए उनकी जांघों तक कर दिया,


उनकी बिना बालों वाली, केले के तने जैसी चिकनी जांघों को सहलाते हुए और उपर चढ़ाते ले गया…!

उन्होने भी अपनी गान्ड थोड़ी सी उठा दी, अब उनकी नाइटी कमर तक पहुँच चुकी थी.., छोटी सी पैंटी में क़ैद उनकी मुनिया के मोटे-मोटे होठ पैंटी में उभरे हुए थे,


उनके बीच की पतली सी लकीर देख कर मेरे लंड में और तनाव बढ़ गया..,

वो अपनी फांकों को मेरे लंड के उपर रगड़ रही थी, जिससे अब उनकी चूत गीली होने लगी थी.., पैंटी उपर से पूरी गीली हो चुकी थी..,

मेने उनकी नाइटी को सिर के उपर से निकाल बाहर किया.., बिना ब्रा के उनके कबूतर फड़-फडा कर अपनी चोंच निकाले हवा में लहरा उठे.., उनकी थिरकन देखकर मेने उन्हें अपने हाथों में भर लिया.., और ज़ोर-ज़ोर्से मसल्ने लगा…!

आअहह…और ज़ोर्से..मस्लो जीजाजी….उउउफ़फ्फ़…माआ…आआईयईई…इन्हें क्यों मरोड़ते हैं…, दर्द होता है…, हाईए…हान्ं…, चूस्लो इन्हें.., बड़ा मज़ा आरहा है.

उउऊययईीीई….काटो मत ना…क्या कर रहे हैं…, दाँत बन जाएँगे.., मत करो ऐसा…हाईए…बड़े जालिम हो आपप…!

मेरी कामुक हरकतों से नीलू भाभी के मूह से लगातार कुछ ना कुछ निकल रहा था.., उनकी चूत ने अपना कामरस छोड़-छोड़कर पैंटी को तर कर दिया था…!

मेरे लंड में भी बुरी तरह से ऐंठन होने लगी थी.., सो मेने उन्हें पलंग पर पलटा दिया और घुटने टेक कर ज़मीन पर बैठ गया..,

उनकी मखमली जांघों को सहलाते हुए अपना हाथ उनकी गीली चूत पर ले गया.., नीलू अपनी आँखें बंद किए आनंद के सागर में गोते लगा रही थी..,

मेने जैसे ही उनकी गीली चूत को अपनी मुट्ठी में भींचकर दबाया.., उनकी उत्तेजना अपनी चरम सीमा लाँघ गयी.., आअहह…कहकर उन्होने मेरा हाथ थाम लिया…!

मेने मुस्करा कर उनकी तरफ देखा, जो अपने होठों पर जीभ फेर रही थी..,

फिर मेने उनकी चड्डी को भी अपनी उंगलियों में फँसाकर टाँगों से निकाल बाहर किया.., छोटे छोटे कोई एक हफ्ते पुराने बालो के बीच उनकी मालपुए जैसी चूत देख कर मेने अपने होश गँवा दिए.., और अपनी जीभ उनकी मोटी-मोटी फांकों के उपर फेर दी…!

अपनी चूत के मोटे-मोटे होठों पर मेरी जीभ का एहसास होते ही नीलू भाभी उठकर बैठ गयी, मेरे बालों को जकड कर मेरा सिर उपर किया और वासना से भरी आश्चर्य युक्त आवाज़ में बोली –

सस्स्सिईइ…हाईए..दैयाअ…ये क्या किया आपने नंदड़ोइइ..जीई…, कितनी गंदी जगह मूह लगा दिया…, च्चिि…

मेने मुस्कराते हुए उनकी आँखों में झाँक कर कहा – आपको अच्छा नही लगा..?

नीलू अपनी काँपती आवाज़ में बोली – अरे लेकिन वो जगह कितनी गंदी होती है..!
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06-02-2019, 02:00 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
मेने उनकी चूत को अपनी हथेली से रगड़ते हुए कहा – जिस जगह से एक नये जीवन का उदगम होता हो वो जगह कैसे गंदी हो सकती है.., आप बस मज़े लो..,

ये कहकर मेने फिरसे अपनी जीभ उनकी चूत की फांकों के बीच डाल दी.., वो मज़े में आँखे बंद करके फिरसे लेट गयी..,


सस्सिईई..आअहह…हाईए…माआ… मारिी…उउउफफफ्फ़.. बहुत मज़ा है इसमें.., खाजाओ इसे जीजजीी…!

अब मेने उनकी क्लिट जो कामुकता बस कौए की चोंच की तरह खड़ी होकर फांकों से बाहर निकल आई थी,


उसे अपने होठों के बीच दबाकर चचोर्ते हुए अपनी दो उंगलियाँ उनके सुराख में पेल दी.. और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा…!

नीलू का बुरा हाल हो रहा था.., बुरी तरह सिसकते हुए उन्होने मेरे सिर के बालों को पकड़ कर मेरा मूह अपनी चूत पर दबा दिया, और कमर उचका कर मेरे मूह में ही झड़ने लगी…..!

मेरे मूह में झड़ने के बाद नीलू भाभी लंबी-लंबी साँसें ले रही थी.., मज़े की खुमारी से उनकी आँखें अभी भी बंद थी..,

मेने अपनी टीशर्ट निकाल दी और लोवर को नीचे करके घुटनों के बल उनके उपर आगया.., झड़ने के सुकून से आँखें बंद किए अधखुले होठों पर अपनी जीभ से तर कर रही थी..,

कि तभी मेने अपना गरम दहक्ता हुआ खूँटे जैसे लंड का का सुपाडा उनके होठों पर रख दिया..,


मेरे पी होल पर प्री-कम की एक बूँद लगी हुई थी…, जो होठों को तर करते समय उनकी जीभ ने वो भी चाट लिया…!

जीभ पर अजीब सा स्वाद लगते ही उन्होने अपनी आँखें खोल दी.., मेरे लौडे को अपने होठों पर पाकर वो सकपका गयी, और अपना मूह एक तरफ को करने लगी..!

मेने फ़ौरन एक हाथ से उनके गालों को दबाकर फिरसे अपने लौडे को उनके होठों के बीच किया.., तो वो उठने की कोशिश करते हुए बोली – नही.. ये मत करो प्लीज़.., मे ये नही कर सकती..!

मेने ज़बरदस्ती अपना लंड उनके होठों पर रगड़ते हुए कहा – क्यों इसमें क्या है.., कुछ देर पहले आप अपनी चूत चटवाने को तैयार नही थी,

फिर बाद में खुद ने मेरा सिर उसके उपर दबा कर अपना सारा पानी पिला दिया.., तो अब आपको भी तो मेरा चूसना चाहिए ना..!

मेरी छाती पर अपना हाथ रख कर मुझे पीछे को धकेलते हुए वो बोली – वो..वो तो आपने ज़बरदस्ती मूह लगा दिया..इसलिए…

मे – तो बाद में आपको मज़ा आया ना.., अब इसको चूसो, देखना कुछ अलग ही तरह का मज़ा आएगा.., लो अब नखरे मत करो वरना मे चला सोफे पर सोने…!

इतना कहकर मे जैसे ही उनके उपर से उतरने लगा, उन्होने झटके से मेरे कंधे पकड़ कर मुझे पलंग पर पटक दिया और खुद मेरे उपर सवार होकर बड़ी कामुक नज़रों से देखते हुए मुस्करा कर बोली –

ऐसे कैसे जाने दूँ नंदोई जी.., अब तो इस मूसल का स्वाद अपनी सलहज को चखाना ही पड़ेगा..,


ये कहकर वो नीचे को खिसकती चली गयी.., अपनी गीली चूत को मेरे लौडे से रगड़ते हुए मेरी टाँगों के बीच जा बैठी..!

पहले मेरे मूसल जैसे लंड को अपने दोनो हाथों में लिया, फिर उसे बारी बारी से दोनो तरफ से सहलाया, उसके बाद मेरे सुपाडे की चुम्मि लेकर बोली –

हाए राम, कितना सुंदर है ये, और ग़ज़ब का लंबा और मोटा भी.., एक ही बार में किसी की भी च…त..की धज्जियाँ उड़ा देता होगा.., निशा जी वाकई में खुश नसीब हैं.., जब चाहे ले लेती होंगी इसे…!

वैसे बुरा मत मान’ना जीजाजी.., मेने आज से पहले कभी इस तरह का मज़ा लिया नही है ना.., इसलिए थोड़ा ऑड लग रहा था..,


ये कहकर उन्होने मेरे लाल टमाटर जैसे गरम दह्क्ते सुपाडे को अपने होठों में क़ैद कर लिया…!

मज़े से मेरी आँखें बंद होने लगी.., उन्होने पहले उसे आधे तक अपने मूह में लेने की कोशिश की, लेकिन फिर जल्दी ही बाहर भी निकाल दिया क्योंकि उतने से ही उनका पूरा मूह भर गया…,

अब वो उसे अपनी जीभ से पूरी लंबाई तक चारों तरफ से चाटने लगी.., मेरे मूह से आहह..निकल पड़ी…

सस्सिईइ..आअहह…भाभी..मेरी गोलियों को भी साथ में सहलाओ,,..उन्हें भी चूसो.., वो मेरी बात मान कर वैसा ही करने लगी..,

फिर उन्होने उसे फिरसे अपने मूह में भर लिया, और जितना हो सकता था उतना मूह में लेकर लॉलीपोप की तरह चूसने लगी…!

आअहह…भाभी थोड़ा पलटो.., अपनी चूत मेरे मूह पर रखो.., उन्होने फ़ौरन पलटकर अपने चूत मेरे मूह के उपर रख दी..,

उनकी मस्त गान्ड के उभारों को अपने हाथों से मसल्ते हुए मे उनकी चूत को चाटने लगा.., अब वो भी अपनी गान्ड दबा दबा कर अपनी चूत को मेरे मूह पर घिसते हुए मेरा लंड चूसने लगी…!

कुछ देर की चुसम-चुसाई के बाद मेने उन्हें पलंग पर लिटा दिया, खुद उनकी टाँगों के बीच आकर उनकी मखमली जांघों को सहलाते हुए मेने उन्हें अपनी जागों पर चढ़ाया…

फिर अपना गरम दहक्ता हुआ लंड जो अब किसी लोहे की रोड की तरह सख़्त हो चुका था के सुपाडे को उनकी गरम गीली चूत की फांकों के बीच रखकर एक बार उपर से नीचे तक घुमाया…!

सस्स्सिईईई….आअहह…जीजिया जी…ज़रा आराम से डालना राजा जी…आपका बड़ा तगड़ा है.., देखना कहीं मेरी चूत फट ना जाए..,

मेने अपने दोनो हाथों से उनके दोनो दशहरी आमों को दबाया, फिर उनके निप्प्लो को चुटकी में लेकर मसलते हुए कहा -चिंता क्यों करती हो रानी.., आपको पता भी नही चलेगा..,

कहकर मेने एक धक्का अपनी कमर में लगा दिया.., गीली चूत में मेरा आधा लंड सर-सरा कर घुस गया.., नीलू के मूह से कामुकता से भरी कराह निकल गयी…

आअहह…धीरीए…उउउफ़फ्फ़…बहुत मोटा है.., मेने झुक कर अपने लंड की तरफ देखा.., सचमुच उसने उनकी चूत की फांकों को बुरी तरह फैला दिया था..,

मेने थोड़ा सा लंड बाहर को निकाला और एक और तगड़ा सा धक्का देकर इस बार पूरा लंड एक ही बार में जड़ तक पेल दिया….!

आआईयईई….मर गाइ….म्माआ…, बड़े जालिम हो भेन्चोद ने मेरी फाड़ दी…, उउउफ़फ्फ़…ननद रानी ना जाने कैसे झेल पाती हैं इनको…!

मेने नीलू के होठों को अपने मूह में भर लिया.., हाथों से उनकी चुचियों को मीजते हुए होठ चूसने लगा.., दो मिनट में ही उनकी कमर हिलने लगी..,

तो मेने उनकी टाँगों को और उठाकर जांघों के नीचे से अपनी बाजू डालकर उनकी चुचियों को मसल्ते हुए धक्के देना शुरू कर दिया…!

अब नीलू भाभी को भी मज़ा आने लगा था.., बच्चे दानी के मूह तक लंड की ठोकर लगने से उनकी चूत अपना काम रस छोड़ने लगी..,

कमरे में फुकछ..फुकछ..ताप्प..ताप्प…जैसी आवाज़ें गूंजने लगी.., नीलू वासना में डूबी.., ना जाने क्या क्या अनप-शनाप बकती जा रही थी..,

मेरे धक्कों की गति पल-प्रतिपल तेज हो रही थी.., नीलू का बदन भूकंप के झटकों की तरह हिल रहा था..,
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06-02-2019, 02:01 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
10 मिनट में ही उनकी चूत ने अपना पानी फिरसे छोड़ दिया.., उसके बाद मेने उन्हें घोड़ी बना दिया, और पीछे से उनकी सुडौल गान्ड को मसलते हुए अपना लंड उनकी चूत में पेल दिया…!

अगले 10 मिनटों तक इसी तरह चोदने के बाद मेने भी अपना नल उनकी चूत के अंदर ही खोल दिया.., जिसकी गर्मी से वो तीसरी बार फिर एक बार झड़ने लगी..,

झड़ने के बाद मे उनके उपर ही पसर गया.., साँसों के जुड़ते ही, उनको बगल में पलट कर उनको गद्देदार गान्ड को सहलाने लगा…!

मे – भाभी एक बात कहूँ.., आपकी गान्ड बहुत सुंदर है.., मन करता है, एक बार अपना लंड इस गद्देदार गान्ड में डाल दूं..,

मेरी बात सुनकर वो एक झटके के साथ पलटकर मेरी तरफ मूह करके बोली – ना बाबा ना.., मेरी चुदि चुदाई चूत को ही इसने कीर्तन करवा दिया, गान्ड का ना जाने क्या हाल करेगा.., ये कहकर उन्होने मेरे आधसोए लंड को पकड़ कर मसल दिया…!

मेने भी उनकी गीली चूत में उंगली करते हुए कहा – क्या भाभी.., अपने नंदोई की इतनी सी भी सेवा नही कर सकती…?

नीलू – समझा करिए जीजा जी.., सच में आपका नाग बहुत मोटा और लंबा है.., चलो एक बार को मेने हिम्मत कर भी ली.., और मेरी गान्ड फट गयी तो.., यहाँ कोई और भी नही है मदद करने वाला…,

और दर्द सहन नही हुआ, मेरी चीखें निकली.., तो हॉस्पिटल का मामला है.., पोलीस आपको रेप के मामले में अंदर कर देगी.., इसलिए आप ये विचार फिलहाल त्याग दीजिए..

रातभर मेरी चूत है ना इसकी सेवा के लिए.., ये कहकर उन्होने मेरे खड़े हो चुके लंड को अपनी चूत की फांकों पर रगड़ना शुरू कर दिया…!

शायद आप सही कहती हो चलो ये ही सही, ये कहकर मेने उन्हें अपने उपर खींच लिया.., वो मेरे लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट करके उसके उपर बैठने लगी…!

इस तरह उस रात 4 बजे तक नीलू ने जमकर अपनी चुदाई करवाई.., जब उनकी चूत सूजकर माल पुए जैसी हो गयी,,

अब उनमें एक बार भी लंड लेने की हिम्मत नही बची तब जाकर हम दोनो एक दूसरे की बाहों में लिपटे सो गये…!
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मुंबई जुहू चौपाटी, शाम के वक़्त यहाँ कुछ ज़्यादा ही रौनक रहती है, लोग दिनभर की थकान और स्ट्रेस दूर करने अक्सर यहाँ चले आते हैं…!

अभी शाम होने में वक़्त था, दिन के लगभग 4 बजे होंगे.., भले ही दिसंबर का महीना था लेकिन गर्मी में कोई ज़्यादा राहत नही थी..,

समुंदर की लहरों के साथ बहती हवा शरीर को कुछ राहत दे देती थी..,

चौपाटी के मेन पिक्निक स्पॉट से हटकर छोटी-छोटी चट्टानों की तरफ एक युवक गुम-सूम सी अवस्था में समंदर की ओर बढ़ा चला जा रहा था..,

उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो वो किसी सम्मोहन से बँधा समंदर की उच्छलती कूडती लहरों में खोया हुआ उनसे कुछ पाने की इच्छा लेकर उनकी तरफ बढ़ा चला जा रहा हो…!

थोड़ी देर में ही वो एक ऐसी चट्टान पर जा पहुँचा जिससे समंदर की तेज लहरें टकराकर अपना दम तोड़कर वापस लौट जाती थी, उसके कुछ ही पलों बाद वो फिरसे अपनी शक्ति बटोरकर उस चट्टान से आ टकराती..,

लेकिन चट्टाना के हौसले बुलंद देख वो अपना सिर पटक कर फिर वापस लौट जाती.., ये सिलसिला ना जाने कितनी सदियों से चला आरहा था..,


ना तो लहरें अपनी हिम्मत खोने को तैयार थी और चट्टान तो जैसे थामे ही बैठी थी कि आओ देखें किस्में कितना है दम…!

चट्टान के ठीक नीचे अतः गहराई समेटे समंदर जिसका कोई ओर या छोर दिखाई नही पड़ता था.., जितनी दूर तक नज़र जा सकती थी, बस पानी ही पानी..,

सफेद-सफेद रूई जैसी लहरों से सुशोभित, सूरज की तेज किरणों के बीच चाँदी की प्लेटो जैसी चमचमाती लहरें आ रही थी…जा रही थी…!

युवक चलते-चलते चट्टान के अंतिम छोर पर जेया पहुँचा, इतना की अगर एक कदम और आगे बढ़ता कि सीधा समंदर की तेज लहरों के बीच,


जहाँ से निकलना किसी इंसान तो क्या, जल के किसी जीव के बस की बात भी नही थी..,

कुछ देर वो युवक अपनी आँखें बंद किए ना जाने क्या सोचता रहा, फिर उसने कुछ निर्णय लिया और समंदर की तेज लहरों के बीच छलान्ग लगाने के लिए अपना अगला कदम आगे बढ़ा दिया…!

उसी चट्टान की छोटी के साइड की ढलान पर एक और आदमी जिसकी उम्र कोई 30-32 साल की रही होगी बैठा समंदर की लहरों का मज़ा ले रहा था,

अपनी तरफ आते उस युवक जो उससे उम्र में 3-5 साल छोटा ही लग रहा था को उसने देखा.., उसकी अवस्था देखकर उसको शंका हुई..,

दीवानो की तरह बढ़े चले आ रहे युवक को देख वो सतर्क हो गया, क्योंकि वो जिस तरह से चोटी की तरफ बढ़ा चला आ रहा था, उससे सॉफ जाहिर था की वो समंदर की लहरों को देखने तो नही आ रहा है…!

वो फ़ौरन अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ.., जब युवक अपने अंतरद्वंद से लड़ रहा था तब तक वो उसके अत्यंत करीब जा पहुँचा..,

युवक पर ना जाने कैसा जुनून सवार था की उसे उस दूसरे व्यक्ति के आने की भनक तक भी नही लगी..,

फिर जैसे ही उसने समंदर की लहरों के बीच छलान्ग लगाने की कोशिश की, उस व्यक्ति ने समय रहते उसकी कलाई थाम ली..!

अचानक से किसी और के द्वारा उसकी कलाई पकड़े जाने पर उस छलान्ग लगते व्यक्ति के शरीर को एक तेज झटका लगा, वो उस व्यक्ति की तरफ घूमा.., साथ ही साथ अपनी कलाई छुड़ाने का प्रयास भी किया…!

इस आपा धापी में वो छलान्ग लगाने वाला व्यक्ति दूसरी तरफ आ गया और बचाने वाला चट्टान के किनारे की तरफ चला गया..,

उसकी कलाई इस झटके के साथ उसके हाथ से छूट गयी, लेकिन झोंक झोंक में वो बचाने वाला व्यक्ति चट्टान के नीचे की तरफ गिरने लगा..,

भाग्यबस चट्टान से गिरते ही उसके हाथ एक बाहर को निकला हुआ उस चट्टान का सिरा हाथ आ गया.., इधर जब उस युवक ने अपने बचाने वाले को ही समुंदर में गिरते देखा तो एक क्षण को तो वो सन्न खड़ा रह गया..,

लेकिन फिर जैसे ही देखा कि वो एक हाथ से ही चट्टान के नुकीले पत्थर को पकड़ कर लटका है.., उसने फ़ौरन नीचे लेट कर अपना हाथ लंबा करके उसे थामने की कोशिश की…!

जैसे तैसे करके उस लटके हुए व्यक्ति ने अपना दूसरा हाथ लंबा करके उसके हाथ को थाम लिया.., और पैर के पंजों को चट्टान की चिकनी सतह पर जमाते हुए वो उपर आ गया…!
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06-02-2019, 02:01 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
एक अप्रत्याशित अनहोनी होने से बच गयी थी.., उपर आकर वो कितनी ही देर तक अपने डर पर काबू पता रहा.., फिर दोनो मिलकर वहाँ से थोड़ा हटकर एक चट्टान पर आकर बैठ गये…!

संयत होकर उस व्यक्ति ने उस युवक से पुछा.., कॉन हो तुम और ये शूसाइड क्यों करना चाहते थे…?

युवक – मेरी छोड़ो.., तुम बताओ, तुम कॉन हो और यहाँ क्या कर रहे थे, शुक्र है भगवान का वरना मेरी वजह से मौत के ग्रास बन जाते…?

व्यक्ति – मेरा नाम युसुफ है, यूपी के एक छोटे से गाओं का रहने वाला हूँ, गाँव में मेरे बूढ़े अम्मी-अब्बू, 4 बहनें जिनमें से एक का ही निकाह हो पाया है अब तक.., वहाँ बड़ी कुरबत की जिंदगी जी रहे हैं…!

मेने सोचा यहाँ मुंबई में आकर कुछ काम धाम करके घर पैसे भेजूँगा.., दो महीने हो गये लेकिन कोई काम नही मिला…!

हालात ये हैं कि जब किसी हिंदू के पास काम माँगने जाता हूँ, तो मुस्लिम नाम सुनकर काम देने को तैयार नही है.., और मुसलमान खुद ही इतने हैं कि उनके पास खुद कोई करने को काम नही है…!

जैसे तैसे कुछ मेहनत मज़दूरी करके अपना पेट भरने का जुगाड़ करने लगा.., लेकिन इतना नही कि घर कुछ भेज सकूँ..!

थक कर चोरी चकोरी करने की ट्राइ किया लेकिन अब तक कोई बड़ा हाथ नही मार पाया, उपर से पकड़े जाने का ख़तरा हर समय मंडराता रहता है.., बस किसी तरह से दिन कट जाता है…!

कभी-कभी तो भूखे पेट ही सोना पड़ जाता है, कभी-कभी सोचता हूँ कि बेकार ही यहाँ आया.., इससे अच्छा तो अपने गाओं में ही रहकर किसी के यहाँ खेत मज़दूरी कर लेता…!

भटकते हुए इधर निकल आया, समंदर की लहरों को देखकर यही सब सोच रहा था कि ना जाने मेरे परिवार का क्या हो रहा होगा.., बस इतनी सी कहानी है मेरी..,

अब तुम बताओ कुछ अपने बारे में.., लगता है.. तुम मुझसे भी ज़्यादा मुसीबत के मारे हो जो इतना बड़ा कदम उठा बैठे…!

वो युवक कुछ देर तक यूँही बैठा रहा.., युसुफ ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा.., युवक ने उसकी तरफ सूनी-सूनी निगाहों से देखा फिर अनायास ही उसकी आँखें नम हो गयी…!

युसुफ ने उसका कंधा थप-थपाकर कहा – बोलो दोस्त जो भी तुम्हारे दिल में है.., सुना है दुख बाँटने से कम हो जाते हैं…!

युवक – क्या बताउ दोस्त.., मेरी कहानी भी तुमसे कुछ हटके नही है.., और फिर मेरे दुख ऐसे हैं जो कम होने वाले नही हैं.. बस बढ़ते ही रहेंगे…!

अब तो दुखों के साथ साथ मेरा आत्म सम्मान भी इतना घायल हो चुका है.., कि जब भी उनसे टीस उठती है सहना मुश्किल हो जाता है…!

दिल के घाव दिनो-दिन नासूर बनते जा रहे हैं.., अपना सब कुछ खो चुका हूँ, सहन शक्ति जबाब दे चुकी है इसलिए मे अब अपनी जिंदगी ख़तम करने का फ़ैसला करके ही यहाँ आया था…!

लेकिन मेरी फूटी किस्मत, यहाँ भी तुमने मुझे बचा लिया..मरने भी नही दिया मुझे..,

युसुफ – आत्महत्या कायरता है दोस्त.., जो किसी समस्या का समाधान नही कर सकती..!

युवक उसकी बात सुनकर रो ही पड़ा और उसके गले से लिपटकर फफकते हुए बोला – मे कायर ही तो हूँ दोस्त.., समस्याओं से लड़ते-लड़ते थक चुका हूँ.., समाधान कहीं हो तो दिखे…?

युसुफ – हौसला रखो दोस्त.., हो सकता है हम दोनो मिलकर अपनी-अपनी समस्याओं का कोई हल निकाल सकें…!

युवक – तुम जाओ यहाँ से…मुझे अकेला छोड़ दो भाई.., कहीं ऐसा ना हो कि मेरी फूटी किस्मत की परच्छाई तुम्हारी समस्या और बढ़ा दे..,

युसुफ – मेरे सामने समस्याओ का पूरा पहाड़ खड़ा है.., तुम्हारी वजह से थोड़ी और बढ़ जायें तो भी क्या फरक पड़ने वाला है.., हां ये भी हो सकता है कि हम दोनो मिल बैठ कर कोई हल निकाल सकें…!

अब रोना छोड़ो.., और अपने बारे में बताओ…!

युवक कुछ देर के लिए शांत रहा फिर एक लंबी साँस छोड़कर बोला – ठीक है, अगर मेरे बारे में जान’ना ही चाहते हो तो सुनो….!

मेरा नाम संजू शिंदे है.., विदर्भ के एक छोटे से गाओं का रहने वाला हूँ.., मेरे पिता एक ग़रीब किसान थे.., बड़ी मुश्किल से साल भर की रोटी का जुगाड़ कर पाते थे..!

थोड़ा बहुत बचता था उसे गाओं का साहूकार कभी पिताजी द्वारा लिए गये कर्जे के सूद के तौर पर ले जाता था…!

परिवार में मेरे माँ-बाप के अलावा मे सबसे बड़ा, एक बेहन और उससे छोटा एक भाई था..,

जब मे 10थ में पढ़ता था तभी कुपोषण के शिकार अधिक मेहनत की वजह से मेरे पिता का देहांत हो गया.., घर की सारी ज़िम्मेदारी मेरी माँ पर आगयि…!

मेरी माँ उस वक़्त 32-33 साल की थी, दिखने में वो ठीक-ठाक ही लगती थी.., मेहनत के कारण उनका बदन एकदम कसा हुआ था.., खेतों में काम करने के बावजूद भी उनका रंग साफ ही था…!

गाओं के लोग अक्सर उनको ग़लत नज़र से ही ताड़ते थे.., हमेशा ही हमारी ग़रीबी का फ़ायदा उठाने के चक्कर में ही रहते थे…!

अपनी इज़्ज़त बचाने के साथ साथ माँ को दो वक़्त की रोटी भी जुटानी थी.., सो उन्होने मेरी आगे की पढ़ाई छुड़वा दी और मे उनके साथ खेतों में काम करके घर की परिस्थितियों से लड़ने में उनकी मदद करने लगा…!

ऐसे ही हालातों से लड़ते लड़ते किसी तरह हमने 5 साल निकाल दिए.., मेरी बेहन और छोटा भाई भी काम में हाथ बंटाने लगे.., नतीजा अब हमारी स्थिति पहले से सुधरने लगी…!

हमें लगने लगा कि अब हम अपने दुखों से छुटकारा पाते जा रहे हैं.., मेरी बहन अब जवान हो रही थी.., सोचा कुछ दिनो में कोई अच्छा सा घर देख कर उसकी शादी कर देंगे…!

छोटे भाई को खूब पढ़ा लिखा कर शहर भेज देंगे किसी अच्छी सी नौकरी के लिए.., लेकिन कहते हैं कि आदमी की सोचों से कई गुना तेज उसका वक़्त चलता है…!

मे अब 22-23 साल का हॅटा-कट्टा जवान हो चुका था, खूब मेहनत करता और भर पेट ख़ाता.., वाकी और कुछ सोचने विचारने का समय ही नही था मेरे पास…!

मे एक दिन खेती के लिए पास के कस्बे से बीज़ और खाद लेने गया हुआ था अपनी बैल गाड़ी लेकर…!

पीछे से गाओं के दबंग लोग जिनमें से एक दो मेरे हाथों मार भी खा चुके थे मेरी माँ और बेहन को छेड़ने के कारण.., वो लाला के साथ बासूली के बहाने आ गये…!

जब मेरी माँ ने कहा कि लाला जी.. हम तो आपका पूरा हिसाब कर चुके हैं.., तो उसने झूठे बही खाते दिखाकर पहले तो पैसों का दबाब डाला..,

फिर जब माँ ने कहा- ठीक है मे शाम को संजू को भेजती हूँ हिसाब करने तो वो लोग अभी के अभी चुकता करने पर अड़ गये..,

बसूली तो एक बहाना था, उसकी आड़ में वो लोग मेरी माँ के साथ बदतमीज़ी करने लगे..,


मेरी बेहन और छोटा भाई भी था उन्होने विरोध करना चाहा तो उन्होने मेरे भाई – बेहन को मजबूती से जकड लिया ..

और उनकी आँखों के सामने ही मेरी माँ को मादरजात नंगा कर दिया.., यही नही वो हरम्जादे बारी-बारी से मेरी माँ के साथ बलात्कार करते रहे..!

उनमें से जिन्होने मेरी बेहन को जकड़ा हुआ था उन्होने उसके साथ भी छेड़खानी शुरू करदी.., लेकिन उसने एक आदमी जो उसे मजबूती से पकड़े हुए था उसकी कलाई काट खाई…!

बिल-बिलाकर उसने उसे जैसे ही उसे छोड़ा वो वहाँ से जान बचाकर भाग निकली…!
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06-02-2019, 02:01 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
मे समान गाड़ी में लाद कर घर की तरफ ही आ रहा था कि मुझे अपनी तरफ बेत-हासा भागती हुई मेरी बेहन चकोर दिखाई दी…!

पास पहुँच कर मेने जैसे ही गाड़ी खड़ी की, वो भागकर मेरे सीने से लिपट कर रोने लगी.., मेरे पुछ्ने पर उसने रोते-रोते सारी बातें बताई.., जिन्हें सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी..,

मेने उसे गाड़ी में बिठाया और बेचारे बैलों पर डंडे बरसाता हुआ उन्हें दौड़ता हुआ जैसे ही घर के सामने पहुँचा वो हरम्जादे मेरे घर से बाहर निकलते दिखाई दिए…!

मे उनसे उलझने की वजाय अपने घर के अंदर भागा…, लेकिन सामने का भीभत्स नज़ारा देखकर मेरे पैर लड़खड़ा गये.., आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया…!

अंदर मेरा भाई खून से लथपथ मरा पड़ा था.., घर के हालत बता रहे थे कि उसने यथासंभव संघर्ष किया होगा..,

मेरी मादरजात माँ के पेट में भी एक लंबा सा छुरा धंसा हुआ था.., मेरी समझ से वो भी मर चुकी थी..,

कुछ देर अपना सिर पकड़ कर मे सन्नाटे की स्थिति में ही बैठा रहा, फिर जैसे मेने कुछ निश्चय कर लिया था…, उठकर अपनी कुल्हाड़ी ली और घर से बाहर चल दिया…!

तभी मेरे कानों में मेरी माँ की दर्द भरी कराह सुनाई दी.., मेरे पैर ठिठक गये, लपक कर माँ के पास पहुँचा..,

उसका सिर अपनी गोद में रख कर जैसे ही मेने वो छुरा बाहर खींचा, खून का मानो फब्बरा सा उसके पेट से बाहर निकला जिसने मेरे कपड़े भी लाल कर दिए…!

साथ ही माँ की गर्दन भी एक तरफ को लुढ़क गयी.., बहुत देर तक उसके सिर को लेकर फुट-फूटकर रोता रहा.., चकोर भी मेरे पास ही बैठकर रोती रही…!

फिर जैसे कुछ जुनून सा मेरे दिमाग़ पर छाने लगा.., मेरा रोना अप्रत्याशित रूप से थम गया.., मेने अपनी बेहन को चुप कराया.., माँ और भाई की लाश को यौंही लावारिश छोड़..

मेने अपनी कुल्हाड़ी संभाली.., चकोर का हाथ थामा और बिना कुछ लिए दिए उसे लेकर घर से बाहर निकल गया…!

वो बेचारी डरी सहमी उसकी हिम्मत भी नही हुई कि मुझसे कुछ पूछ भी ले.., बस मेरे साथ लगभग घिसटती सी चलने लगी…!

मेने उसे गाओं के बाहर खड़े रहने को कहा और खुद उस हरामी बनिये के घर की तरफ बढ़ गया…!

उस वक़्त मेरा भाग्य अच्छा था जो सारे गुनेहगार उसी के घर में एक साथ मिल गये, जो शायद आगे क्या हो सकता है इस विषय पर बातें कर रहे थे..!

घर में घुसते ही मेने एक तरफ से उन हरांजादों को लकड़ी की तरह काटना शुरू कर दिया.., 6-6 लोगों को एक साथ मार कर खून से सना मे बाहर आया..,

अपनी बेहन को अपने साथ लिया और गाओं की सीमा से दूर और दूर होता चला गया, क्योंकि अब वहाँ रहने का मतलब था अपने आप को जैल में सड़ाना या फाँसी पर झूल जाना…!

उसके बाद मेरी बेहन का क्या होता.., ये मे भली भाँति जानता था.., एक तालाब में जाकर मेने खुद को और अपने कपड़ों को साफ किया और उसी रात

मुंबई की ट्रेन पकड़ कर इस शहर में आ गया…!

अपनी सोच से तो मे अपनी बेहन को गाओं से बचा लाया, लेकिन इस शहर में आते ही मेरे सामने मुशिबतो का पहाड़ खड़ा मिला…!

सिर पर छत नही.., जेब में एक फूटी कौड़ी नही.., खाने को दो दिन से पेट में एक अन्न का दाना तक नही गया था…!

दिनभर भटकने के बाद भी कहीं से कोई आशा की किरण नही मिली जिससे अपनी भूख भी शांत कर सकें…!

तक कर भूख से निढाल हम दोनो एक फूटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर, पहने हुए कपड़ों के अलावा जेब में एक रुमाल तक नही..,


लेकिन थकान के कारण तेज नींद ने हमारी सारी समस्याओं का हल कर दिया…!

पता नही कब हमें नींद आ घेरा.., एक बौंड्री वॉल के सहारे पीठ टिकाते ही हमें नींद ने घेर लिया..,

ना जाने वो रात का कॉन्सा प्रहर था जब मेरी नींद एक लड़की की तेज-तेज चीखों के कारण खुल गयी…, बगल में देखा तो मेरी बेहन चकोर वहाँ नही थी…!

मे चीख की दिशा में बेतहासा दौड़ पड़ा.., सड़क से हटकर झाड़ियों के पीछे वो चार लोग चकोर के साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे.., उसके कपड़े एक-एक करके उसका बदन छोड़ते जा रहे थे…!

अपने आप को बचाने की वो जी तोड़ कोशिश कर रही थी.., लेकिन कब तक..,


मात्र एक कच्छि में वो अपने नगन शरीर को धान्पने की कोशिश कर रही थी, और वो दरिंदे..उसे चारों ओर से उसके बदन के साथ खेल रहे थे…!

हे भगवान ये क्या क्या खेल खेल रहा है तू मेरे साथ.., कब तक और कितना दुख देना चाहता है हमें…मेने मन ही मन उपरवाले से कहा…!

लेकिन उसे तो जैसे मुझसे कोई सरोकार ही नही था.., जीवन देकर जैसे उसने हमारे उपर कोई उपकार किया हो.., और छोड़ दिया हो समाज की दरिंदगी के बीच…!

ठीक है तू यही चाहता है तो यही सही.., मेने उधर से ध्यान हटाकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई.., कुछ दूरी पर मुझे एक जंग लगी हुई लोहे की रोड दिखाई पड़ गयी…!

मेने उसे मजबूती से अपने हाथ में पकड़ा.., और पीछे से जाकर एक की खोपड़ी खोल दी.., वो ढंग से चीख भी नही पाया और वहीं ढेर हो गया…!

वाकी बचे तीन लोगों ने जैसे ही देखा कि किसी ने उनके एक साथी को मार डाला है वो वहाँ से भागने लगे, तब तक मेने उनमें से एक और को धर लिया.. मौके का लाभ लेकर वो दो वहाँ भाग लिए…!

उसी रात हमने वो इलाक़ा छोड़ दिया.., दूसरे दिन मे अपनी बेहन को एक जगह छोड़ कर कुछ काम धंधे की तलाश में निकल पड़ा…!

लेकिन महानगरी मुंबई में काम मिलना भी इतना आसान नही है.., सारे दिन भटकने के बाद यौंही खाली पेट भारी कदमों से मे वहीं लौट आया जहाँ मेने चकोर को छोड़ा था…!

लेकिन वहाँ मुझे चकोर नही मिली.., चारों तरफ इधर उधर ढूँढता रहा.., घूम फिर कर फिर वहीं आ जाता कि शायद कहीं इधर उधर गयी होगी.., आ ही जाएगी.., लेकिन उसका कहीं पता नही चला…!

मेरे चलने फिरने की शक्ति भी जबाब दे चुकी थी, आज चौथे दिन भी पेट खाली ही था.., बस किसी नलके से पानी पी लिया जो खाली पेट वो भी लगने लगा था…!

थक कर मे अपने घुटनो में मूह देकर अंदर ही अंदर रोने लगा.., उपर वाले को जी भर भरकर गालियाँ देता रहा…!

तभी किसी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा, मेने बेमन से अपना सिर उठाकर अपने आँसुओं से भरे चेहरे को उठाकर देखा..तो आश्चर्य से मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी…!

मेरे सामने चकोर खड़ी थी.., लेकिन कुछ बदली-बदली सी, साफ सुथरे नये से कपड़े..निखरा हुआ रंग जैसे अभी नहा धोकर आई हो.., लेकिन उसके चेहरे पर पीड़ा साफ-साफ दिखाई दे रही थी…जिसे मे उस वक़्त समझ नही पाया था…!

उसके एक हाथ में एक बड़ा सा बॅग भी था…!
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06-02-2019, 02:01 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
आश्चर्य के साथ बहुत देर तक मे उसे देखता ही रहा., वो अपने होठों को आपस में कसकर दबाते हुए मेरे पास बैठ गयी..ऐसा लगा मानो वो किसी दर्द को पीने की कोशिश कर रही हो…!

मेने उसका हाथ पकड़कर कहा – कहाँ चली गयी थी तू..? पता है मे कितना परेशान हो गया था तुझे यहाँ ना पाकर…!

चकोर – अरे परेशान होने की कोई बात नही है.., ये बता तुझे कोई काम धंधा मिला…?

संजू घोर निराशा में डूबे स्वर में बोला – नही कुछ नही मिला.., कोई हरामजादा सीधे मूह बात तक करने को तैयार नही है काम तो क्या देगा..!

चकोर – मे जानती हूँ यहाँ ऐसा ही होता है.., बिना जान पहचान यहाँ किसी को मज़दूरी भी नही करने देता कोई.., चल छोड़.. ले मे तेरे लिए खाना लाई हूँ, फिर उसने बॅग से खाने का एक पॅकेट निकाला…!

ये तुझे किसने दिया..? मेने उसे सवाल किया तो उसने मेरी बात को टालते हुए कहा – सब बता दूँगी पहले तू खाना खा.., मुझे भी भूख लगी है…!

अब चार दिन का भूखा आदमी और उसके सामने बिरयानी रख दी जाए तो वो बिना कुछ सोचे समझे उसपर टूट ही पड़ेगा, यही हाल मेरा हुआ…!

हालाँकि चकोर भी खाने में मेरा साथ दे रही थी.., लेकिन मे तो खाने पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़ा था.., मुझे यौं खाते देख उसके खुश्क होठों पर एक फीकी सी मुस्कान आ गयी…!

खा-पीकर मेने उसे फिर वही सवाल किया तो बदले में उसने बॅग से एक जोड़ी कपड़े निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा दिए और मुस्कुरा कर बोली – पहले कहीं नहा धोकर ये कपड़े बदल ले, फिर कहीं अच्छी जगह बैठकर बातें करेंगे…!

मेने बिना कोई सवाल किए उससे कपड़े लिए और पास में ही एक सार्वजनिक शौचालय में जाकर अपने शरीर का मैल धोया, वो कपड़े पहने जो मेरे लगभग फिट ही आए..,

उसके बाद में जब चकोर के पास पहुँचा तो उसके पास एक मोटी सी थोड़ी साँवले रंग की एक महिला खड़ी मिली.., जिसके दाँत हमेशा पान खाते रहने से लाल-पीले हो रहे थे…!

मुझे देखते ही चकोर बोली – भैया ये शन्नो ताई हैं, इन्होने ही मुझे एक जगह काम दिला दिया है.., उसी के अड्वान्स से ये सब लिया है..,

फिर मेरा हाथ पकड़ कर बोली – यही नही पास ही में एक खोली भी किराए पर दिला दी है, जिसमें हम दोनो आराम से रह सकते हैं.., चल आजा…!

मे निठल्ला जवान आदमी, शर्म के मारे उस बेचारी से ये भी नही पुछ सका कि आख़िर इतनी जल्दी उसे क्या काम मिल गया और वो भी अड्वान्स के साथ..?

खैर रहने को छत पाकर, खाना खाकर में कुछ समय के लिए सब कुछ भूल गया.., कई दिनो बाद भरपेट खाना मिलने से बहुत गहरी नींद आई उस रात...!

दूसरे दिन मे फिर अपने लिए काम ढूँढ ने निकल पड़ा लेकिन सारे दिन भटकने के बाद नतीजा वही धक के तीन पात, शाम को चकोर फिर खाने का पॅकेट लेकर आई..

जिसे खापीकर हारा थका मे फिर गहरी नींद में सो गया…! इसी तरह दिन निकलते रहे मे भटकता रहा, चकोर खाने पीने का इंतज़ाम करती रही…!

मेरे दिमाग़ में ये कभी-कभी ये सोचकर बड़ी कोफ़्त होती जा रही थी कि देखो मे मुस्टंडा सा खाली बैठा हूँ, मेरी बेहन कमाने जाती है..,

एक दो बार मेने शन्नो ताई को भी बोला कि वो मेरे लिए भी कोई काम धंधा बताए.., लेकिन वो टाल-म-टोल करती रही, तरह तरह के बहाने बनाती रही…!

मे अब अपने आप को दुनिया का सबसे निठल्ला और मजबूर इंसान समझने लगा.., जिस भाई को अपनी छोटी बेहन के हाथ पीले करने की चिंता होनी चाहिए वही भाई अपनी बेहन के रहमो-करम पे जिंदा था..,

उसकी कमाई खा रहा था.., जो ना जाने कैसे-कैसे करके क्या क्या करके चार पैसे कमाती थी.., इसी कोफ़्त में आकर मेरी ठलुआ का नतीजा ये हुआ कि मे अपने जैसे ही दूसरे फालतू लोगों के साथ उठने बैठने लगा..,

नशे पत्ते करने लगा…!

नशे की लत ने मुझे अब ये भी सोचने से रोक दिया कि मुझे कुछ करना चाहिए.., दिन, महीने, साल इसी तरह गुजर गये.., एक दिन छकोर बीमार पड़ गयी..,

एक खैराती हॉस्पिटल में शन्नो ने ही उसे भरती करा दिया, काफ़ी इलाज हुआ लेकिन वो ठीक नही हुई.., एक दिन मेरे अंदर के भाई ने डॉक्टर से पुछ ही लिया कि आख़िर मेरी बेहन को बीमारी क्या है…!

डॉक्टर का जबाब सुनकर तो जैसे मेरे अंदर की इंसानियत भी जैसे मर गयी.., अपने नकारापन से मेने अपनी प्यारी बेहन को नरक की आग में झोंक दिया था…!

उसे एचआइबी का घातक रोग लग गया था.., यहाँ आकर जो पहला नीवाला मेने खाया था वो उसने अपना शरीर बेचकर मुझे दिया था…!

लेकिन नशे की लत ने मुझे इतना बेगैरत कर डाला था, मे कुछ करने लायक नही था सो उसी खैराती हॉस्पिटल में उसे मरने को छोड़ दिया…!

लेकिन उस दिन के बाद मेरी अंतरआत्मा ने मुझे चैन से जीने नही दिया, लाख सिर पटकने पर में चार पैसे जुटाने में नाकाम रहा.., मेरी नाकामियों का ख़ामियाजा मेरी बेहन उठा रही थी..,

चार पैसे जुटाने की धुन में मेने एक जगह चोरी करने की कोशिश की लेकिन हाए रे मेरी फूटी किस्मेत, पहली बार में ही धर लिया गया…!

6 महीने की सज़ा हुई, जिसे काट कर जब बाहर आया तो मेरी बेहन, मेरी

प्यारी बेहन मुझे छोड़कर जा चुकी थी.., जिसकी मौत का मे खुद ज़िम्मेदार था..,
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06-02-2019, 02:02 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
इतना कहते कहते संजू फुट-फूटकर रोने लगा.., अपनी हिचकियों पर काबू करते हुए आगे बोला – अब तुम ही बताओ दोस्त, इस दुनिया में मेरे लिए बचा ही क्या जिसके लिए मे जी सकूँ..!

मेने अपनी जिंदगी को ख़तम करने का फ़ैसला ले लिया और यहाँ चला आया.., लेकिन वाह री मेरी किस्मेत.., तुमने मुझे वो भी नही करने दिया…!

युसुफ उसे शान्त्वना देते हुए बोला – मेने मैथ में एक फ़ॉर्मूला पढ़ा था..(-)+(-) = + हो जाता है.., मेरी बदनसीबी जब तुम्हारी बदनसीबी के साथ जुड़ जाएगी तो हो सकता है हम दोनो की बदनसीबी दूर हो जाए…!

संजू अपने आँसू पोन्छ्ते हुए बोला – मेरे पास तो अब कुछ है नही खोने या पाने को, अगर मेरा जीवन तुम्हारे ही कुछ काम आए तो भी मे अपने आप को धन्य समझूंगा.., आज से जैसा तुम कहोगे मे वैसा ही करूँगा…!

दोनो को अपनी अपनी आप-बीती आपस में शेर करते-करते काफ़ी वक़्त निकल गया था.., वातावरण में अंधेरा छा चुका था..,

वो दोनो नये-नये बदनसीब दोस्त वहाँ से एक दूसरे का हाथ थामकर चल पड़े अपनी अंजान मंज़िल की तरफ जिसका कोई पता नही था कि वो कहाँ मिलेगी…!

युसुफ के पास कुछ पैसे थे जो उसने कुछ कबाड़ इकट्ठा करके कमाए थे, उससे उन दोनो ने पेट की भूख शांत की, उसके बाद उन दोनो ने डिसाइड किया कि अब जो भी हो आगे वो और कुरबत की जिंदगी नही जीएँगे…!

युसुफ ने सही ही कहा था कि (-)+(-) = + होता है.., उसी रात उन्होने एक दुकान का ताला तोड़ा.., और अच्छी ख़ासी रकम उनके हाथ लगी…!

दूसरे ही दिन एक अच्छी सी खोली किराए पर ली, और दोनो दोस्त एक नयी राह पर चलने लगे.., संजू जहाँ मरने मारने से नही डरता था, वहीं युसुफ अपनी बुद्धि और विवेक से काम निकाल लेता था…!

देखते ही देखते कुछ ही महीनों में उस इलाक़े में उनकी धाक जमने लगी.., संजू की दिलेरी से छोटे बड़े गुंडे दहशत खाने लगे,

वो ज़रा ज़रा सी बात पर ही बिना अंजाम की परवाह किए हाथ छोड़ देता था, यहाँ तक कि एक दो को उसने चाकू से घायल भी कर डाला और खुद भी हुआ….!

संजू शिंदे के पास तो कुछ पाने या खोने के लिए था ही नही लेकिन युसुफ का अपना भरा पूरा परिवार था जिसे वो गाओं छोड़ आया था, उसे ये भी नही पता था कि अब वो लोग किस हालत में होंगे…!

उसे उनकी ज़िंदगियाँ संवारने के लिए धन की ज़रूरत थी, जो इन छोटे-मोटे चोरी चकोरी से पूरा पड़ने वाला नही था..,

वो दिन रात किसी लंबे हाथ मारने की फिराक में लगा रहता था.., जिसका जिकर वो कई मरतवा संजू से भी कर चुका था.., लेकिन संजू के मुतविक वो जो बोलेगा वो करने को तैयार था…!

उसके पास अकूत शक्ति थी, दिलेरी थी, कुछ नही था तो बस पैसे कमाने के लिए दिमाग़.., जिसकी कमी की वजह से वो अपनी जान से प्यारी बेहन को भी खो चुका था…!

एक दिन मरीना बीच के पत्थरों पर बैठे वो दोनो इसी बारे में विचार विमर्श कर रहे थे कि किस तरह से एक लंबा हाथ मारा जाए जिससे उनकी धन की ज़रूरत पूरी हो सके…!

जब किसी ठोस नतीजे पर ना पहुँच सके तो थक कर वो दोनो वहाँ से जाने के लिए उठ खड़े हुए,

चलने के लिए जैसे ही मुड़े की सामने एक निहायत ही खूबसूरत औरत को देख कर वो दोनो अपनी जगह पर जाम होकर रह गये…!!!

28-30 साल की बेहद खूबसूरत औरत को अपने सामने देख कर वो दोनो तगे से खड़े उसके सौन्दर्य में खो गये…!

गोरे चिट्टे पैरों में चमकीले फॅन्सी सॅंडल, ब्राउन लोंग स्कर्ट जो उसकी पिन्डलियो को बखूबी ढके हुए.., लेकिन उसके उपर तो मानो कयामत का साम्राज्य फैला हुआ था…!

उसकी 32 की कमर तक स्कर्ट के बाद उपर वो एकदम फक्क सफेद झीना सा टॉप पहने थी जिससे उसकी काले रंग की ब्रा साफ-साफ दिखाई दे रही थी…,

कसे हुए टॉप में क़ैद उसकी 34 की कसी हुई ठोस गोलाईयों पर उन दोनो की नज़र जम कर रह गयी…, टॉप का गला इतना चौड़ा की उसकी ब्रा की स्ट्रीप कंधों के उपर दिख रही थी…!

ब्रा के स्ट्रीप उस चमकीले टॉप के बाहर दिख रहे थे…, सामने उसकी गोरी गोरी गोलाईयों के बीच की गहरी दरार देख कर किसी का भी मन उन्हें मसलने का हो जाए…!

यहाँ तक का सफ़र तय करने के बाद उन दोनो की नज़र जैसे ही उसके चेहरे पर पड़ी.., मन ही मन वो उसकी प्रशन्शा किए बिना नही रह सके…!

एकदम गोरी रंगत, मानो वो कोई विदेशी महिला उनके सामने खड़ी हो.., गोल-गोल चेहरा.., हल्के फूले हुए गाल, लाली लिए हुए..,

पतले पतले होठों पर सुर्ख लाली, सुतवान नाक, कम्मान समान भवें के नीचे काले स्याह गॉग्ल्स से धकि उसकी आँखें.., सुनहरे कंधे तक के बाल, जो आयेज से एक बेहद चहमकीले ब्राउन कलर के स्कार्फ से ढके हुए थे…!

दोनो ही उसे देखते ही रह गये.., नज़र उसके रूप लावण्य से हटने का नाम ही नही ले रही थी.., जब बहुत देर तक भी उनकी नीयत उसे देखने से नही भरी..

चुटकी बजकर उस युवती ने उन दोनो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया – कहाँ खो गये युसुफ मियाँ.., संजू शिंदे…??? क्या कोई सुन्दर औरत पहले कभी नही देखी..??

अब तक तो वो बेचारे दोनो उस अप्सरा जैसी खूबसूरत औरत के रूप जाल में ही खोए हुए थे लेकिन अब उसके मूह से अपने अपने नाम सुनकर तो वो दोनो अपनी अपनी जगह पर उच्छल ही पड़े…!

उन दोनो की हालत पर वो मेनका मंद-मंद मुस्करा रही थी.., उनकी हालत का मज़ा उठाते हुए वो बोली – ऐसे क्यों चोंक रहे हो.., मुझे तो तुम दोनो की पूरी कुंडली पता है..,

क्यों युसुफ मियाँ, धन कमाने के लिए परेशान हो.., अपने घरवालों को सुख सुविधा देना चाहते हो…, क्यों मे सही कह रही हूँ ना…?

युसुफ हक्का बक्का अभी भी उसे इस तरह से देख रहा था मानो उसके सामने औरत का रूप लेकर कोई अजूबा खड़ा हो.., बड़ी मुश्किल से अपनी इस हालत पर काबू करते हुए वो बस इतना ही बोल पाया – हां…लेकिन…!

उसकी बात बीच में ही काट’ते हुए वो बोली – लेकिन वेकीन के चक्कर में मत पडो.., ये बताओ, पैसा कमाने के लिए क्या क्या कर सकते हो…?

अब तक शांत खड़ा संजू बोला – ओ मेडम जी.., पहले तो आप अपने बारे में बताओ.., कॉन हो और हम लोगों के बारे में इतना सब कैसे जानती हो…?

संजू की बात पर चुटकी लेते हुए वो हसीना बोली – अरे वाह.. संजू, तुम्हरे मूह में भी ज़ुबान है.., मे तो सोच रही थी कि बोलने का काम बस युसुफ मियाँ का ही है….!

चलो तुम पुछ्ते हो तो अपने बारे में भी बता देती हूँ.. मेरा नाम लीना फेरनडीज़ है.., अपने काम के बारे में मे यहाँ कुछ नही बता सकती…!

रही बात तुम लोगों के बारे में इतनी जानकारी कैसे है.., तो उसी दिन से मेरी नज़र तुम दोनो पर है जब तुम दोनो जुहू बीच पर एक दूसरे को पहली बार मिले थे.., जब उसूफ मियाँ ने तुम्हारी जान बचाई थी…!

अब मे आती हूँ असल मुद्दे पर, अगर तुम लोगों को पैसा कमाना है तो ये लो मेरा कार्ड.., कल दोपहर के बाद आकर मुझसे इस पते पर मिलो…!

युसुफ ने आगे बढ़कर उसके हाथ से कार्ड लिया.., हां इस दौरान वो उसके हाथ को टच करने का लालच नही छोड़ पाया…!

उसकी इस हरकत पर लीना नाम की वो हसीना उसके चेहरे पर नज़र डालकर मुस्कराती हुई पलट कर एक तरफ को बढ़ गयी…!

पीछे वो दोनो हतप्रभ खड़े उसकी थिरकति गान्ड को तब तक निहारते रहे जब तक की वो उनकी आँखों से ओझल नही हो गयी…!
……………………………………………………………………………………..

बड़ा ही कड़क माल है यार…, उसके ओझल होते ही संजू के मूह से निकले इस शब्द ने युसुफ की तंद्रा भंग की..,


एक लंबी सी साँस लेकर उसने अपने उस हाथ को चूमा जिसने उसके हाथ को टच किया था और वो बोला – सही कहा तुमने..

लेकिन साली को हमसे क्या काम लेना है जो इतने दिनो से हमारे पीछे लगी हम लोगों के बारे में तहकीकात कर रही है…, कुछ तो गड़बड़ है भाई…?

संजू ने उसका हाथ थामा और उसे खींचते हुए बोला – हमें क्या लेना देना साली से.., होगी कोई..चलो चल कर कुछ खाते-पीते हैं.., भूख लग रही है..!

युसुफ – हां चलो…, लेकिन देखना तो पड़ेगा कि आख़िर ये चीज़ क्या है.., और हम लोगों से कॉन्सा काम लेने वाली है..?

वो चलते चलते पास के ही एक सस्ते से होटेल कम बार में घुस गये.., कुछ सस्ती सी विस्की ऑर्डर की और बैठकर पीने लगे…!

एक-एक पेग लेने के बाद संजू बोला – मेरे ख्याल से हमें इस औरत को अपने दिमाग़ से निकाल देना चाहिए..,

ये सुनहरी नागिन ना जाने कैसा काम हमसे निकलवाना चाहती है…?


अपना काम निकाल कर रफूचक्कर हो जाए और हम लोग पोलीस के लफडे में फँस जाएँ…!

युसुफ – एक औरत से ही डर गया मेरा शेर…? अरे यार देखें तो सही इसमें हमारा कितना फ़ायदा होने वाला है.., क्या पता इसका साथ देने से हमारे भी बारे न्यारे हो जायें…!

संजू – डरता कॉन साला है..वो भी एक मामूली सी औरत से.., मुझे तो बस औरत जात से नफ़रत सी हो चुकी है..,


एक औरत की वजह से ही मेरी बेहन उस दलदल में फँस गयी.., तबसे मुझे किसी भी औरत पर भरोसा नही रहा…,

बातों के चलते वो दो-दो पेग और पी चुके थे.., ये उनका अब रोज़ का ही काम हो गया था.., नशा अपना असर दिखाने लगा था..!

युसुफ ने संजू को चढ़ाते हुए कहा – अरे यार संजू.., वैसे भी हम कोन्से करोड़पति हैं जो वो हमारा कुछ ले लेगी.., कुछ नही मिला तो मौका देख कर साली को मिलकर चोद डालेंगे…!

संजू को भी नशे में उसकी कड़क जवानी नज़र आने लगी थी.., वो थोडा झूमते हुए बोला – ये सही कहा युसुफ भाई तुमने.., पैसे वैसे गये तेल लेने.., साली की कड़क जवानी का मज़ा तो ले ही लेंगे.. बहुत कड़क है भेन्चोद…!

वैसे मेने आज तक किसी औरत को नही चोदा है.. लेकिन इसे देखकर मेरा ये नियम भंग करने का मन करने लगा है….!

मे तो बस एक बार उसकी मस्त मटकती गान्ड को खूब मसल-मसलकर जमकर चोदना चाहता हूँ.., उसकी उस चिकनी गोल-मटोल गान्ड में लंड डालकर हिलाना चाहता हूँ..झूमते हुए युसुफ ने कहा…उसके बाद भले ही उसकी गान्ड पे लात मारकर अपने रास्ते निकल लेंगे…क्या बोलता है…!

डन ! ये कहकर संजू और युसुफ ने एक दूसरे को हाई-फ़ाई किया.., एक-एक पेग और गटकने के बाद उन्होने जमकर खाना खाया और कल उस सुंदरी से मिलने का प्लान तय करके वो दोनो अपनी खोली की तरफ चल दिए….!

दूसरे दिन सुबह से ही वो दोनो लीना से मिलने की तैयारीओं में जुट गये.., उन्होने रात में ही अपने लिए अच्छे अच्छे कपड़े खरीद लिए थे…!

नहा धोकर एक सस्ता सा सेंट वेंट लगाकर नये कपड़े पहने.., संजू ने अपना रामपुरी शॉक्स में लगाया और तय सुदा समय पर वो दोनो उससे मिलने को चल दिए…!

कार्ड पर दिए गये पते पर पहुँचकर उन्होने अपने सामने एक फ्लॅट के बंद दरवाजे की बेल बजाई…!
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06-02-2019, 02:02 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
अंदर कहीं चिड़ियाँ सी चह-चहाईं.., कोई दो मिनट के इंतेजार के बाद दरवाजा खुला…, और उसी के साथ साथ सामने का दृश्य देख कर उन दोनो के मूह भी खुले रह गये……!

दरवाजे के बीचो-बीच लीना खड़ी थी, इस समय वो बिना किसी मेक-अप के थी.., लेकिन फिर भी उसकी सुंदरता में कोई खास कमी नही थी.., उपर से उसके कपड़े….,

हाईए…देखना इन दोनो में से किसी का खड़े खड़े ही पानी ना निकल जाए…!

निहायत ही छोटा सा शॉर्ट, जो मुश्किल से उसके उभरे हुए चुतड़ों को ढक पा रहा था.., इतना टाइट कि आगे से उसकी चूत की मोटी-मोटी फाँकें साफ-साफ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही थी…!

उनके बीच की दरार…उउउफफफ्फ़…, युसुफ की देख कर हालत ही खराब होने लगी, उसके मूह में उसकी उन फांकों को चाटने के ख्याल से ही पानी भर आया…!

कमर में इतना नीचे बँधा था कि अगर उसकी चूत पर बाल होते तो शर्तिया उपर से दिखाई देते…!

और उसका टॉप…, मासा-अल्लाह.., उसके वक्षों को बा मुश्किल धक पा रहा था.., नीचे से इतना लूस, ऐसा लग रहा था, मानो उसे किन्ही दो खूँटियों के उपर ऐसे ही टाँग रखा हो…!

अगर कोई बैठकर झाँकने लगे तो उसकी ब्रा समेत चुचियों का पूरा जेओगराफिया पता कर सकता था…!

यही नही उपर उसका इतना चौड़ा गला कि उसकी पिंक ब्रा आधी तक दिख रही थी, उसके पुष्ट उरोजो की गहरी खाई देख कर वो दोनो पलक झपकाना ही भूल गये…!

टॉप के ढीले होने की वजह से उसका एक तरफ का शोल्डर बिल्कुल नंगा था, जिससे उसकी ब्रा की स्ट्रीप अलग ही दिख रही थी..,

कंधे तक के खुले रेशमी बालों के बीच उसका चाँद सा मुखड़ा जिस पर इस समय शरारत से भरपूर मुस्कराहट विद्यमान थी…!

अपनी नशीली आँखों से उन दोनो को घूरते हुए बोली - वेल कम दोस्तो.., मेरे घर में तुम दोनो का स्वागत है.., आओ..अंदर आओ.. इन शब्दों के साथ ही वो अपनी जगह पर पलट गयी.., !

उफफफ्फ़…क्या कयामत है याररर.., लगता है आज तो पानी निकल्वाकर ही रहेगी ये…, पीछे से उसके शॉर्ट का और ही बुरा हाल था.., इतना नीचा कि उसके कुल्हों की गोलाईयों की ढलान बिल्कुल साफ दिखाई दे रही थी..,

उसकी माइक्रो पैंटी की डोरी जो कमर के बंद से होती हुई उसकी गान्ड की दरार में घुसी पड़ी थी.., पीछे से साफ दिख रही थी कि वो अंदर किस जगह और कितनी सुरक्षित होगी…!

अपने गोल-गोल नितंबों को मटकाते हुए वो उन दोनो के आगे-आगे चल रही थी.., उसके पीछे आहें भरते हुए वो दोनो किसी चाबी लगे खिलौनों की तरह उसकी मटकती गान्ड के मज़े लेते हुए पॅंट में अपने-अपने लंड अड्जस्ट करते हुए चल पड़े…!

एक छोटी सी लॉबी पार करके वो एक हॉल नुमा कमरे में पहुँची जहाँ एक लोंग सोफा, दो चेर और एक सेंटर टेबल पड़ी हुई थी…!

सामने एक बेहद सुसज्जित शो केस में एक 44” का टीवी था जिस पर इस समय कोई हॉलीवुड मूवी चल रही थी..,


कुल मिलकर लीना यहाँ ऐश की जिंदगी बसर कर रही थी.., जिसके श्रोत का उन्हें अभी कुछ पता नही था…!

उसने लोंग सोफे की तरफ इशारा करके उन दोनो को बैठने के लिए कहा और खुद एक चेयर पर बैठ गयी.., जो सेंटर टेबल के उस पार ठीक उनके सामने थी…!

बैठते हुए जानबूझकर उसने अपनी संगेमरमर जैसी चिकनी गोल मांसल जांघों के बीच गॅप बना रखा था जिसमें से उसकी चूत की मोटी-मोटी फाँकें उभरी हुई साफ-साफ नुमाया हो रही थी…!

बैठने के बाद उसका टाइट शॉर्ट उस जगह पर और ज़्यादा टाइट हो गया.., जिससे उसका मुलायम सॉफ्ट कपड़ा दोनो फांकों के बीच की दरार में धँस गया..,

कुल मिलाकर कपड़े के बबजूद उन दोनो को उसकी ढाई-तीन इंच लंबी चूत की शेप क्लियर दिखाई दे रही थी…!

उन दोनो का ध्यान अपनी जन्नत पर पाकर वो मन ही मन खुश हो रही थी.., उसे पता था कि किसी भी मर्द से काम निकलवाने का कॉन्सा सटीक तरीक़ा होता है…!

अपने चहरे पर स्माइल लाकर वो बोली – तुम दोनो को यहाँ तक पहुँचने में कोई तकलीफ़ तो नही हुई…?

उसकी आवाज़ सुनकर उन दोनो ने एक साथ झटके से अपने सिर उठाए.., एक साथ ही उनके मूह से निकला…ज.ज्ज..जीए…कोई खास नही..,

लीना – तो बताओ क्या लेना पसंद करोगे.., कुछ ठंडा.., गरम…?

एक बार उसके चेहरे पर नज़र डालकर उन दोनो की नज़रें झिजक के कारण फिर झुक गयी.., नज़र झुकाए हुए ही युसुफ ने कहा – जी मेडम जी, जो आप पिलाना चाहें...!

लीना – नही.. तुम लोग मेरे मेहमान हो, और मेहमान की इच्छा जानकार ही मेहमान नवाज़ी होती है.., बोलो क्या लोगे..?

युसुफ थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोला – इक्च्छा तो हमारी कुछ और ही पीने की है, लेकिन आप पिलाएँगी नही…!

लीना – ऐसा क्यों सोचते हो..बोलो तो सही क्या पीना चाहते हो.., मेरे पास हर तरह की ब्रांड मिलेगी तुम्हें.., बिंदास कहो, क्या चाहिए तुम्हें..?

युसुफ भी पक्का खिलाड़ी था, वो थोड़ा धिठाई के साथ बोला – जो हम पीना चाहते हैं, वो तो आपके पास है, और आप इतनी दूर बैठी हैं… तो फिर..कैसे…???

लीना भी पूरी खेली खाई थी.., वो युसुफ की बात का मतलब अच्छे से समझ रही थी.., लेकिन बजाय गुस्सा दिखाने के उसने अपनी एक जाँघ उठाकर दूसरी के उपर रखते हुए कहा –

बड़े उस्ताद हो युसुफ मियाँ.., उंगली पकड़ने की बजाय सीधा हाथ ही थामना चाहते हो.., अभी तो चाय से काम चला लो.., उसके लिए तुम लोगों को थोड़ा इम्तिहान देना पड़ेगा..

मोटी-मोटी गुदाज जांघों के बीच दबाब पड़ने से उसका योनि प्रदेश कुछ और ज़्यादा ही फूल गया.., उस पर नज़र गढ़ाते हुए युसुफ बोला…

उसके लिए हम किसी भी इम्तिहान से गुजरने को तैयार हैं.., बोलो क्या करना होगा…!

उसकी बात पर मन ही मन मुस्काराकार लीना ने अपनी मैड को आवाज़ दी…लूसी ज़रा दो चाय लाना, साथ में कुछ स्नेक्क्स भी…!

चाय पीते हुए लीना ने कहा – मे तुम लोगों को दो पॅकेट दूँगी, जिन्हें तुम्हें हिना बार &क्लब के मालिक अब्बास अली को उसके ठिकाने पर पहुँचना है और उससे 10 लाख लेकर आने हैं…!

याद रखना, वो थोड़ा टेडा आदमी है.., अब तुम जानो ये काम कैसे करना है तुम जानो.., अगर तुम ये पॅकेट उसे देकर पेमेंट ले आए तो उसमें से 10% यानी 1 लाख तुम दोनो का इनाम…!

अब तक शांत बैठा संजू बोला – टेढ़े के लिए हम भी टेढ़े हैं, उसकी आप चिंता मत करो.., बस आप अपना प्रॉमिस याद रखना..!

लीना – हां..हां.., क्यों नही.., चाहो तो उसमें से 1 लाख अपने निकाल कर ही देना मुझे….,

संजू – मे पैसे की बात नही कर रहा…, जो आपने कुछ देर पहले वादा किया था.. स्पेशल इनाम का हमारे लौटने के बाद…!

लीना खिल-खिलाकर हँसते हुए बोली – आई…शाबास…, तो संजू शिंदे को भी वो गिफ्ट चाहिए.., चलो तुम भी क्या याद करोगे.., किस रईस से पाला पड़ा है.., तुम दोनो की तमन्ना ज़रूर पूरी की जाएगी…

तुम्हरे आज के इम्तिहान में सफल होने की खुशी में मेरी तरफ से एक स्पेशल पार्टी तय.., जो खाना चाहो.., पीना चाहो…, और जो…भी…, आज रात लूसी भी हमारे जश्न में शामिल होगी…!

लीना ने लूसी की मोटी गान्ड दबाते हुए कहा – क्यों लूसी तुम्हें तो कोई प्राब्लम नही..?

आययईीी मेडम…जैसा आप कहो.., इतना कहकर लूसी अपनी गान्ड सहलाते हुए वहाँ से अपनी गान्ड हिलाती हुई किचन में भाग गयी…!

चाय नाश्ते के बाद उन दोनो ने लीना से पॅकेट लिए और विदा लेकर उसके फ्लॅट से निकल लिए…!

बाहर आकर संजू ने कहा – युसुफ भाई देखो तो सही ऐसा क्या इन पॅकेट में जिसकी कीमत 10 लाख रुपये है…!

युसुफ – अरे यार तू रहेगा पक्का भोन्दु ही.., अब क्लब वाले को सोना या हीरे मोटी तो भेजेगी नही.., कुछ ना कुछ नशे-पत्ते की ही चीज़ होगी.., चल देखते हैं.., इसको कैसे निपटाना है…!

और सुन.., जब तक कोई ऐसी वैसी प्राब्लम खड़ी ना हो तब तक भड़कने का नही.., समझा.., मौके के हिसाब से काम लेना है हमें..,

याद रहे ये अपना पहला ऐसा काम है जिसमें अच्छा ख़ासा धन के साथ साथ..दो दो मस्त जवानियाँ भोगने को मिलने वाली हैं..

इसलिए किसी भी सूरत में हमें फैल नही होना है.., बस थोड़ा अपने आप पर संयम रखना…ओके..

संजू – अरे यार युसुफ भाई तुम इतना डरते काहे को हो.., चलो देखते हैं क्या हालत बनते हैं वैसा ही करेंगे., आप फिकर मत करो.. सब ठीक ही होगा…!

युसुफ – खुदा करे सब ठीक ही हो.., इस तरह बातें करते हुए वो दोनो निकल पड़े अपनी मंज़िल की ओर…..!

हिना क्लब & बार, मुंबई की घनी आबादी के बीच.., दिन छिप्ते ही यहाँ नशेडियों की भीड़ जमा होने लगती है..,

अभी दिन छिप्ने में देरी थी इस वजह से बार अभी लगभग खाली ही था.., इक्का-दुक्का ग्राहक शांति से अपनी टेबल पर बैठा था..!

युसुफ और संजू सीधे रिसेप्षन काउंटर पर पहुँचे.., काउंटर पर बैठे आदमी ने उनसे सवाल किया – बोलो क्या चाहिए…?

युसुफ – हमें अब्बास भाई से मिलना है…

वो – काहे कू…?

यूसुस अपने हाथों में दबे पॅकेट्स की तरफ इशारा करते हुए – ये पॅकेट उनको देने का है…!

वो – क्या है इनमें…?

संजू – ओये स्याने.., ज्यास्ती सवाल जबाब नही करने का, उसकू बोल.., दो लोग मिलने को आएला हैं.., लीना मेडम ने पॅकेट भेजेला है, वो समझ जाएँगा…!

वो अकड़ कर बोला – ओये लौन्डे…, इधर ज्यास्ती नही बोलने का.., समझा क्या.., वरना बाद में पछ्ताने का भी समय नही मिलता…!

युसुफ ने बीच में कूदते हुए कहा – जाने दे भाई, छोकरा नादान है.., तुम अब्बास भाई को हमारे आने की खबर दो…!

वो संजू की तरफ खा जाने वाली नज़र से घूरते हुए बोला – चल ठीक है.., तुम इधेर एच खड़ा रहने का, मे अभी बोलके आता…!

कोई दो मिनट बाद ही वो एक दरवाजे के पीछे से निकल कर आते ही बोला – जाओ तुम लोग, भाई अंदर ही बैठेला है.., और सुनो.., तुम लोग के पास कोई हथियार, वथियार तो नही…?

युसुफ ने ना में गर्दन हिलाई और संजू का हाथ पकड़ कर उस बंद दरवाजे की तरफ बढ़ गया…!

रास्ते में.., तू तो आते ही शुरू हो गया.., किसी दिन बेमौत मरवाएगा.. युसुफ ने उसे समझाते हुए कहा…

अभी संजू कोई जबाब देने ही वाला था कि तभी वो दोनो दरवाजे के उसपार जा पहुँचे.., अंदर एक ऑफीस नुमा कमरा था जहाँ एक सोफे के आगे एक टेबल था, साथ में दो चेयर पड़ी थी…!

सोफे पर एक मध्यम कद काठी का पक्के रंग वाला उमर कोई 40 साल जिसके नाक के पास एक चाकू का निशान था, लाल लाल आँखों वाला व्यक्ति जो शायद अब्बास ही था.. लगभग पूरे सोफे पर पसरा हुआ बैठा था…!

साथ की चेर्स पर दो और लोग भी थे, जो शायद उसके खास चम्चे होंगे…!

उन दोनो को देखते ही अब्बास बोला – आओ रे तुम लोग.., बैठो.., क्या लोगे.., विस्की, रम या देशी…?

युसुफ ने आगे बढ़कर उसे सलम्बलेकुम बोला और जाकर उसकी बगल में बैठते हुए बोला – नही भाई इस टेम हम लोग कुछ नही लेते..,

ये पॅकेट भेजे हैं लीना मेडम ने आपको देने के वास्ते..,

अब्बास पॅकेट टेबल पर रखवा कर बोला – माल तो अच्छा है कि नही..?

युसुफ – हमें नही पता भाई.., आप खुद ही चेक कर्लो…

अब्बास एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए बोला – देख अह्मेद एक पॅकेट खोल के चेक कर.., माल अच्छा होएंगा तभी..च लेगा अपुन.., वरना और बहुत हैं देने वाले...

आहेमद ने चाकू की नोक से पॅकेट की सील तोड़ी, जिसमें सफेद पाउडर की थैलियाँ भरी हुई थी, उनमें से एक थैली निकाल कर उसको खोला.. थोड़ा सा पाउडर एक 1000 के नोट पर रख कर उसने उसे सूँघा…!

माल तो कड़क है भाई.., लगता है इंपोर्टेड है…, इतना कहकर उसने वो नोट अब्बास को थमा दिया.., उसने भी चेक किया और बोला… सही बोला तू…इंपोर्टेड है…

लीना साली जैसी खुद कड़क है वैसा इच माल रखती है…, चल ठीक है.., वो ड्रॉस से 5 गॅडी निकाल कर ये छोकरा लोग को दे दे…!

युसुफ – 5 गड्डी मतलब…?

अब्बास – 5 पेटी… बोले तो 5 लाख…,

युसुफ – लेकिन मेडम तो 10 लाख बोली लाने को…!

अब्बास – आए स्याने.., 5 लाख बोला तो 5 लाख.., एक पैसा ज्यास्ती नही.., ये पकड़ और कट ले इधर से वरना.., पैसे भी जाएँगे और माल भी…, बोल देना अपनी मेडम को…इससे ज्यास्ती नही मिलेगा…!

अब्बास की धमकी भरी बातें सुनकर युसुफ को होठ खुश्क हो गये.., उसके मूह पर मानो ताला चिपक गया हो.., लेकिन तभी संजू बोल पड़ा…!

ये तो ग़लत बात है.., 10 लाख का माल 5 लाख में कैसे दे सकते हैं.., चलो युसुफ भाई माल उठाओ.., चलते हैं यहाँ से..., इतना कहकर उसने एक पॅकेट की तरफ हाथ बढ़ा दिया…!

इससे पहले की संजू पॅकेट से हाथ लगा पाता कि बाजू में खड़े अहेमद ने उसकी कलाई थाम ली, उसे मजबूती से पकड़ कर बोला – शेर के मूह से गोस्त निकालना चाहता है लौन्डे…!
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