08-02-2020, 01:00 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,307
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
मेरे छक्के छूट पड़े।
जिस दौलत के लिए मैंने तीन—तीन हत्यायें की थीं, जिस दौलत की खातिर मैंने अपनी सहेली और सरदार करतार सिंह जैसे बेहद भले आदमी तक को मौत के घाट उतार डाला था, वही दौलत अब मेरे पास नहीं थी।
मैं फिर वहीं—की—वहीं थी।
तिलक राजकोटिया की बात सुनकर मेरे ऊपर कैसा वज्रपात हुआ होगा, इसका आप सहज अनुमान लगा सकते हैं।
आखिर मैंने दौलत के लिए ही तो तिलक राजकोटिया से शादी की थी।
एक सुखद भविष्य के लिए ही तो उसकी अद्र्धांगनी बनना स्वीकार किया था।
और कितने मजाक की बात है।
दौलत फिर भी मेरे पास नहीं थी।
मैं फिर कंगाल थी।
किस्मत मेरे साथ कैसा अजीब खेल, खेल रही थी।
सारी रात मुझे नींद न आयी।
मैं बस बेचैनीपूर्वक करवटें बदलती रही।
कभी उधर!
कभी इधर!
क्या मजाल- जो मेरी एक पल के लिए भी आंख लगी हो।
और सोया तिलक भी नहीं।
अलबत्ता फिर हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी।
मुझे यह कबूल करने में कुछ हिचक नहीं है कि अब हम दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं। कम—से—कम पहले जैसा प्यार तो अब हमारे दरम्यान हर्गिज भी नहीं था।
अगले दिन सुबह—ही—सुबह शक्ल—सूरत से बहुत गुण्डे नजर आने वाले चार आदमी ऊपर पैंथ हाउस में आये।
उन्होंने कीमती सूट पहना हुआ था।
टाई लगाई हुई थी।
और हाथ की कई उंगलियों में सोने की मोटी—मोटी अंगूठियां थीं।
फिर भी कुल मिलाकर बदमाशी उनके चेहरे से झलक रही थी।
वह साफ—साफ गुण्डे दिखाई पड़ रहे थे।
उनमें से एक की जेब में मुझे रिवॉल्वर का भी स्पष्ट अहसास हुआ।
“गुड मॉर्निंग तिलक साहब!”
“गुड मॉर्निंग!”
उन चारों को देखकर तिलक राजकोटिया के नेत्र सिकुड़ गये।
वह तेजी से उनकी तरफ बढ़ा।
“कौन हो तुम लोग?”
“हमें आपके पास सावंत भाई ने भेजा है।”
सावंत भाई!
उस नाम ने एक बार फिर मेरे शरीर में सनसनाहट दौड़ा दी।
जबकि एक गुण्डा अब बड़ी अश्लील निगाहों से मेरी तरफ देख रहा था।
जैसे कोई नंगी—बुच्ची औरत को देखता है।
मेरे ऊपर कोई फर्क न पड़ा।
आखिर ऐसे बद्जात मर्दों को और उनकी ऐसी वाहियात निगाहों को मैं बचपन से झेलती आयी थी।
मैं खूब जानती थी, किसी ठीक—ठाक औरत को देखने के बाद ऐसे मर्दों के दिल में सबसे पहली क्या ख्वाहिश जन्म लेती थी।
वह एकदम उसके साथ अभिसार की कल्पना करने लगते थे।
“अगर तुम्हें सावंत भाई ने भेजा है,” तिलक राजकोटिया थोड़े कर्कश लहजे में बोला—”तो तुम्हें नीचे मैनेजर से बात करनी चाहिए थी।”
“जी नहीं।” वही गुण्डा बोला, जो बड़ी प्यारी निगाहों से मुझे घूरकर देख रहा था—”मैनेजर से हम लोग बहुत बात कर चुके। अब सावंत भाई का आर्डर है कि हम लोग सीधे आपसे बात करें और जल्द—से—जल्द इस मामले को निपटायें । चाहें कैसे भी!”
“कैसे भी से क्या मतलब है तुम्हारा?”
गुण्डा हंसा।
“आप समझदार आदमी हैं तिलक साहब। दुनिया देखी है आपने। क्यों सारी बात हमारी जबान से ही ‘हिन्दी’ में सुनना चाहते हैं।”
तिलक राजकोटिया ने अपने शुष्क अधरों पर जबान फेरी।
हालात खुशगवार नहीं थे।
“तुम लोग मेरे साथ अंदर कमरे में आओ।”
“कमरे में क्यों?”
“तुम्हें जो कहना है- वहीं कहना।”
चारों गुण्डों की निगाह एक—दूसरे से मिली।
“ठीक है।” फिर उनमें से एक बोला—”कमरे में चलो, हमारा क्या है!”
तिलक राजकोटिया और वह चारों एक कमरे में जाकर बंद हो गये।
उसके बाद उनके बीच जो बातें हुईं, उसी कमरे के अंदर हुईं।
बातों का तो मुझे कुछ पता न चला।
अलबत्ता फिर भी मैं यह अंदाजा भली—भांति लगा सकती थी कि उनके बीच क्या बातें हुए होंगी।
वह गुण्डे जिनती देर पैंथ हाउस में रहे- मेरी सांस गले में अटकी रही।
थोड़ी ही देर बाद वह चले गये।
•••
|
|
08-02-2020, 01:00 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,307
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
अगले दिन से ही मेरा खेल शुरू हो गया।
बड़े हिसाब से मैंने एक—एक चाल चली।
जो किसी को भी मेरे ऊपर शक न हो।
तिलक राजकोटिया नीचे अपने ऑफिस में जाने के लिए सुबह ठीक दस बजे तक तैयार हो जाता था। फिर वह लिफ्ट में सवार होकर नीचे पहुंचता। ऊपर से नीचे ग्राण्ड फ्लोर तक पहुंचने में उसे दो मिनट लगते थे।
लिफ्ट ग्राउण्ड फ्लोर पर जिस जगह जाकर रुकती, वो एक काफी सुनसान गलियारा था।
उसके बाद वो लम्बे—लम्बे डग रखता हुआ गलियारा पार करता। एक लॉबी में पहुंचता। लॉबी के बराबर में ही एक काफी लम्बा—चौड़ा गलियारा और था- जो आगे उसके ऑफिस तक जाता था।
उस दिन मैं सुबह पोने दस बजे ही नहा—धोकर तैयार हो गयी थी।
मैंने बड़ी खूबसूरत ड्रेस पहनी।
टाइट जीन!
हाइनेक का पुलोवर!
और चमड़े का मेहरून कोट। जिसमें कमर वाली जगह बहुत चौड़ी बेल्ट लगी थी और उसमें सुनहरी बक्कल फिट था।
“तुम कहां जा रही हो?” तिलक राजकोटिया मेरी तरफ देखकर बोला।
“मैंने आज से एक नया फैसला किया है तिलक।”
“क्या?”
“मैं अब हमेशा तुम्हारे साथ रहा करूंगी।” मैंने कहा—”ऑफिस में भी और जहां—जहां तुम जाया करोगे, वहां भी। यूं समझो- अब मैं हमेशा साये की तरह तुम्हारे साथ लग गयी हूं।”
“ऐसा क्यों?” तिलक चैंका।
“दरअसल तुम नहीं जानते—सावंत भाई के आदमियों से अब तुम्हारी जान को पूरा खतरा है।” मैंने अपनी योजना के पत्ते फैलाने शुरू किये—”वह किसी भी पल, कुछ भी कर सकते हैं। पैंथ हाउस में वो जिस तरह दनदनाते हुए घुस आये थे, उससे उनके इरादे साफ झलक रहे हैं।”
“लेकिन तुम मेरे साथ रहकर बिगड़ते हुए हालातों को सम्भाल थोड़े ही सकती हो शिनाया?”
“सही कहा तुमने।” मैंने बे—हिचक कबूल किया—”मैं बिगड़ते हुए हालातों को नहीं सम्भाल सकती। लेकिन मैं समझती हूं, एक से भले हमेशा दो होते हैं। दो आदमियों का असर, दो आदमियों का रुतबा अलग होता है। इसके अलावा मैं तुमसे एक बात और कहूंगी।”
“क्या?”
“रिवाल्वर हमेशा अपने पास रखा करो- चौबीसों घण्टे उसे तकिये के नीचे रखना ठीक नहीं है।”
मैंने अपने कोट की जेब से स्मिथ एण्ड वैसन रिवॉल्वर निकालकर उसकी तरफ बढ़ाई।
“ओह शिनाया!” तिलक ने एकाएक कसकर मुझे अपनी बांहों के दायरे में समेट लिया—”तुम कितना ख्याल रखती हो मेरा।”
“आखिर मैं पत्नी हूं तुम्हारी!” मैं अमरबेल की तरह उससे लिपट गयी—”अगर मैं तुम्हारा ख्याल नहीं रखूंगी- तो कौन रखेगा?”
तिलक राजकोटिया ने बुरी तरह भावुक होकर मेरा प्रगाढ़ चुम्बन ले लिया।
उसकी बांहों का दायरा मेरी पीठ के गिर्द कुछ और ज्यादा कसा।
“अब इस रिवॉल्वर को अपनी जेब में रखो।”
तिलक ने वह रिवॉल्वर अपनी जेब में रखी।
“सचमुच मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में पाकर धन्य हो गया हूँ शिनाया!”
मैं धीरे से मुसकुरा दी।
उसे कहां मालूम था- मुझे पत्नी के रूप में पाकर उसके गले में कितनी बड़ी मुसीबत की घण्टी बंध गयी थी।
उसने मुझे फिर भी बांहों के दायरे से मुक्त नहीं किया।
बल्कि उसने मुझे और ज्यादा कसकर अपने सीने से चिपटा लिया।
उसकी उंगलियां धीरे—धीरे मेरी पीठ पर सरसराने लगीं।
उसने अपने जलते हुए होंठ स्थायी तौर पर मेरे नाजुक और सुर्ख होठों पर रख दिये।
उसकी सांसें भारी होने लगी।
आंखों में नशा—सा छाने लगा।
मैं भी अपने बदन में अब अजीब—सी सनसनाहट अनुभव कर रही थी।
“क्या कर रहे हो, अब और ज्यादा शरारत मत करो।” मैंने तिलक राजकोटिया को जबरन धकेलकर अपने से अलग किया—”ये दिन है, कोई रात नहीं है।”
“मैं जानता हूं डार्लिंग- यह दिन है।” तिलक मुस्कुराया—”लेकिन शरारत करने के लिए दिन ही कौन—सा मना करता है।”
तिलक ने मुझे फिर आलिंगनबद्ध कर लेना चाहा।
“अच्छा अब बस करो।” मैं तुरंत दो कदम पीछे हटी—”और मेरी बात ध्यान से सुनो।”
“कहो।”
“मैं फिलहाल नीचे ऑफिस में जा रही हूं, तुम भी तैयार होकर जल्दी से वहां पहुंचो।”
“ठीक है बॉस!” वह बड़ी अदा से सिर नवाकर बोला—”बंदा अभी हाजिर होता है।”
मैं धीरे से हंस पड़ी।
•••
|
|
08-02-2020, 01:00 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,307
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
लेकिन सच तो ये है कि उस समय मेरा दिमाग पूरी तरह सक्रिय था।
मेरी हंसी, मेरा चुहलपन, सब एक नाटक था।
ड्रामा!
तिलक राजकोटिया से विदा लेकर मैं तेजी से लिफ्ट की तरफ बढ़ गयी।
अगले ही पल मैं लिफ्ट के अंदर दाखिल हुई और झटके के साथ लिफ्ट का दरवाजा बंद किया।
फिर लिफ्ट का ग्राउण्ड फ्लोर वाला बटन दबाया।
लिफ्ट तूफानी गति से नीचे की तरफ भागने लगी।
वह समय आ गया था- जब मैंने तिलक की हत्या की दिशा में अपनी पहली चाल चलनी थी।
ठीक दो मिनट बाद लिफ्ट ग्राउण्ड फ्लोर पर पहुंचकर रुकी।
मैं लिफ्ट से बाहर निकली।
अब मैं गलियारे में थी।
गलियारा हमेशा की तरह बिल्कुल सुनसान पड़ा था। वहां कोई न था। इंसान का एक बच्चा तक नहीं!
फिर मैं लिफ्ट के बिल्कुल सामने वाले कमरे की तरफ बढ़ी। वह कमरा खाली पड़ा था। कमरे के पास पहुंचकर मैंने उसका ताला खोला। उसकी चाबी हासिल करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं आयी थी- वह बड़ी सहजता से हासिल हो गयी।
दरअसल तिलक के पास एक ऐसी मास्टर—की थी, जो उस होटल के लगभग सभी दरवाजों के ताले सहूलियत के साथ खोल देती थी। सबसे बड़ी बात ये है, तिलक राजकोटिया मास्टर—की को पैंथ हाउस की उसी अलमारी में रखता था, जिसमें दूसरे जरूरी डाक्यूमेण्ट रखे रहते हैं।
ताला खोलते ही मैं कमरे के अंदर दाखिल हुई और दरवाजा पहले की तरह वापस बंद कर लिया।
फिर मैं एक खिड़की की तरफ बढ़ी।
वह ग्लास—विण्डो थी, जिसमें से लिफ्ट बिल्कुल साफ नजर आ रही थी।
मैंने अपने चमड़े के मेहरून कोट की जेब से पिस्तौल निकाली।
उसका चैम्बर खोलकर देखा।
उसके चार खानों में गोलियां मौजूद थीं।
मैंने चैम्बर सैट करके उसे वापस बंद किया। फिर मैंने ग्लास—विण्डो मुश्किल से एक इंच खोली।
इतनी—जो बस पिस्तौल की नाल उसमें से बाहर निकल सके।
फिर मैं बहुत धैर्यपूर्वक तिलक का इंतजार करने लगी।
•••
|
|
08-02-2020, 01:01 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,307
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
तिलक अब अपने शयनकक्ष में लेटा हुआ था।
दर्द के निशान अभी भी उसके चेहरे पर थे।
होटल का मैनेजर और दोनों बैल ब्वॉय भी उस समय वहीं मौजूद थे। वह थोड़ी देर पहले ही नीचे से ऊपर आये थे।
“आज तो बस बाल—बाल बचे हैं।” मैनेजर अपने कोट का ऊपर वाला बटन लगाता हुआ बोला।
वह हड़बड़ाया हुआ था।
“क्या हो गया?” तिलक ने पूछा।
“होटल के ग्राहकों के बीच यह बात पूरी तरह फैल गयी थी कि वह गोली की आवाज थी। मैं बड़ी मुश्किल से उन्हें इस बात का यकीन दिला सका कि ऐसा सोचना उनकी गलती थी। वह गोली की आवाज नहीं थी।”
“फिर किस चीज की आवाज थी वो?”
“मैंने उन्हें समझाया कि कार के बैक फायर की आवाज भी बिल्कुल ऐसी ही होती है, जैसे कोई गोली चली हो। जैसे कोई बड़ा धमामा हुआ हो। तब कहीं जाकर उन्हें यकीन हुआ। अलबत्ता एक ग्राहक तो फिर भी हंगामा करने पर तुला था।”
“क्या?”
“वो कहता था कि उसने एक आदमी के चीखने की आवाज सुनी थी। वो बड़े पुख्ता अंदाज में कह रहा था कि अगर वो कार के बैक फायर की आवाज थी, तो उसे किसी आदमी के बुरी तरह चिल्लाने की आवाज क्यों सुनाई पड़ी?”
“उससे क्या कहा तुमने?”
“मैंने उसे समझाया कि वह जरूर उसका वहम था।”
“मान गया वो इस बात को?” मैं अचरजपूर्वक बोली।
“पहले तो नहीं माना। लेकिन जब मैंने उसे यह दलील दी कि अगर होटल में सचमुच कोई गोली चली होती या वहां कोई हादसा घटा होता- तो वह नजर तो आता। दिखाई तो पड़ता। तब कहीं जाकर वह शांत हुआ। तब कहीं उसकी बोलती बंद हुई।”
“ओह!”
वाकई एक बड़ा हंगामा होने से बचा था।
होटल का मैनेजर कुर्सी खींचकर वहीं तिलक के करीब बैठ गया।
“गोली निकालने के लिए किसी डॉक्टर को बुलाया?”
“हां।” मैं बोली—”मैं एक डॉक्टर को फोन कर चुकी हूं, वह बस आता ही होगा।”
“ठीक किया।”
फिर मैनेजर बहुत गौर से तिलक राजकोटिया के कंधे के जख्म को देखने लगा।
उसमें से खून अभी भी रिस रहा था।
“हाथ तो सही हिल रहा है?”
“हां।” तिलक ने अपना हाथ हिलाया—डुलाया—”हाथ तो सही हिल रहा है, बस थोड़ा दर्द है।”
“सब ठीक हो जाएगा। शुक्र है- जो गोली सिर्फ मांस में जाकर धंसी है, अगर उसने किसी हड्डी को ब्रेक कर दिया होता, तो फिर हाथ महीनों के लिए बेकार हो जाता।”
मैंने भी आगे बढ़कर जख्म का मुआयना किया।
गोली कंधे में धंसी हुई बिल्कुल साफ नजर आ रही थी।
वह कोई एक इंच अंदर थी।
“मैं अभी आती हूं।” एकाएक मैं कुछ सोचकर बोली।
“तुम कहां जा रही हो?”
“बस अभी आयी।”
मैं शयनकक्ष से बाहर निकल गयी।
जल्द ही जब मैं वापस लौटी- तो मेरे हाथ में कोई एक मीटर लम्बी रस्सी थी।
रस्सी काफी मजबूत थी।
“इस रस्सी का आप क्या करेंगी मैडम?” मैनेजर ने पूछा।
“इसे मैं इनके कंधे पर ऊपर की तरफ कसकर बांध दूंगी।” मैं बोली—”इससे गोली का जहर पूरे शरीर में नहीं फैल पाएगा और खून का प्रवाह भी रुकेगा। जब तक डॉक्टर नहीं आ जाता- तब तक मैं समझती हूँ कि ऐसा करना बेहतर है।”
“वैरी गुड- सचमुच आपने अच्छा तरीका सोचा है।”
मैनेजर ने प्रशंसनीय नेत्रों से मेरी तरफ देखा।
जबकि मैं रस्सी लेकर तिलक की तरफ बढ़ गयी।
“आप अपना हाथ थोड़ा ऊपर उठाइए।”
तिलक ने अपना वह हाथ ऊपर उठा लिया- जिसमें गोली लगी हुई थी।
मैंने फौरन कंधे से ऊपर रस्सी कसकर बांध दी।
रस्सी कसने का फायदा भी फौरन ही सामने आया। तत्काल खून बहना बंद हो गया।
मैंने डस्टर से तिलक के कंधे पर मौजूद बाकी खून भी साफ कर दिया।
उस समय मेरी एक्टीविटी देखकर कोई नहीं कह सकता था कि मैंने ही वह गोली चलाई है।
मैंने ही तिलक राजकोटिया को उस हालत में पहुंचाया है।
•••
|
|
|