Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 02:50 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर बेबस हो चुका था, अब वो 5 लोग शंकर पर पिल पड़े, लात घूँसों से वो उसकी धुनाई करने लगे, कुछ देर तक वो उन लोगों की मार खड़े खड़े ही झेलता रहा..,

लेकिन घूँसों की मार उसके पेट पर पड़ने से उसके घुटने मुड़ने लगे, और वो अपने घुटनो पर बैठ गया.., तभी उनमें से एक बोला.., क्या हुआ भोसड़ी के.. निकल गयी सारी हेकड़ी..,

उसे यौं पिट’ता देख कर सुषमा रो पड़ी, और रोते हुए ही बोली – तुम मेरी चिंता मत करो शंकर, मारो इन्हें.., तुम्हें मेरी कसम..,

लेकिन शंकर ने फिर भी बचने की कोई कोशिश नही की और पिट’ता ही रहा…!

उधर सलौनी बदले हुए हालत देख कर सकते में आ गई, वो अपने भाई को यौं पिट’ता हुआ देख कर उसका कलेजा छल्नि हुआ जा रहा था,

सुषमा को कोई हानि ना पहुँचे इसके लिए उसका भाई पिट रहा था, वो बेबसी में अपने होंठों को कुचलने लगी, एक हाथ से उसने गौरी का मुँह ढक रखा था जिस’से उसके मुँह से कोई चीख ना निकले…!

बेबसी में ही उसने अपनी नज़रें इधर-उधर दौड़ाई.., पास ही उसे लकड़ी का एक मोटा सा डंडा पड़ा दिखाई दिया..!

सलौनी ने मन ही मन कुछ फ़ैसला लिया, फिर उसने गौरी के कान में फूस-फुसाकर उसे समझाया, कि वो वहीं छुपी रहे…!

उसे समझाकर उसने वो डंडा अपने हाथ में लिया, दबे पाँव वो उस गुंडे के पीछे जा पहुँची जो सुषमा को चाकू से कवर किए हुए था..!

उस गुंडे को भनक भी नही लगी और सलौनी उसके सिर पर जा पहुँची, फिर उसने पूरी शक्ति से डंडा घुमाया और उस गुंडे के सिर पर दे मारा…!

एक भयानक चीख मारते हुए वो त्यौरकर धडाम से ज़मीन पर जा गिरा..,

गुंडे की चीख सुनकर शंकर की नज़र उस पर पड़ी, सुषमा को आज़ाद देख कर उसके शरीर में फिर से बिजली भर गयी..,

इधर सलौनी उन तक जा पहुँची और जो उसके सामने पड़ा डंडे की मार से धो डाला साले को,

उधर गौरी ने जैसे ही अपनी माँ को गुंडे के चंगुल से आज़ाद होते देखा, वो पेड़ के पीछे से निकल कर मम्मी मम्मी चीखते हुए उस’से आकर लिपट गयी..

दोनो भाई-बेहन ने मिलकर 5 मिनिट में ही उनकी वो दशा कर दी अब वो 6 के 6 लोग बस ज़मीन पर पड़े बुरी तरह कराह रहे थे..,

फिर वो दोनो जैसे ही उन्हें ठोक-पीटकर सुषमा के पास पहुँचे शंकर ने अधीर होकर पुछा – आप ठीक तो हैं ना भाभी..?

सुषमा गौरी को छोड़कर सलौनी के गले से जा लगी, बहुत देर तक वो उससे लिपटी रही, फिर अलग होते हुए उसके बाजू पकड़ कर एक तक उसे निहारने लगी..!

सलौनी ने मुस्कुरा कर कहा – ऐसे क्या देख रही हो भाभी..?

सुषमा – भाई तो भाई, बेहन भी झाँसी की रानी से कम नही है, क्या हिम्मत दिखाई तुमने.., थॅंक यू बेहन.., ये कहकर उसने उसे फिर से अपने सीने से लगा लिया…!

आज तुम इतनी हिम्मत नही करती तो ना जाने क्या हो जाता..? फिर शंकर को डपट’ते हुए बोली – तुमने उन्हें मारा क्यों नही.., रुक क्यों गये थे..?

शंकर – उसने आपके गले पर चाकू रखा हुआ था, आपको कुछ कर देता तो..?

सुषमा ने पास खड़ी सलौनी की भी परवाह नही की, और शंकर के गले से लगकर फफक पड़ी – मेरे लिए तुमने इतनी मार खाई.., तुम बहुत अच्छे हो शंकर…!

ये देखकर सलौनी मंद मंद मुस्कुरा रही थी, वहीं शंकर सुषमा के कुल्हों पर हाथ फेर्कर उसे शांत करा रहा था..,

कुछ देर बाद वो साडे तीन लोग उन गुण्डों को उसी हालत में छोड़ फिर से अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़े…!

उधर सुप्रिया के यहाँ गोद भराई की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही थी, और हो भी क्यों ना, शादी के इतने सालों के बाद उनके घर वारिस जो आने वाला था…

उसके सास ससुर की खुशी तो देखते ही बनती थी.., पूरे घर को किसी दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था, मेहमानों के लिए 5 स्टार होटेल बुक कर दिया गया..!

लेकिन सुषमा, शंकर और सलौनी को उन्होने अपने घर में ही रखा, अगले दिन बड़ी धूम धाम से गोद भराई के रसम संपन्न हुई…

सेलेब्रेशन के बाद प्रिया उन सबको अपने घर ले गयी जहाँ उन सभी का जोरदार स्वागत किया गया.., सलौनी तो शहर आकर मानो अपने आप को भूल ही गयी,

गाओं की जिंदगी शहर की जिंदगी से कितनी अलग तरह की होती है ये उसे पहली बार पता चला, उसे तो जैसे स्वर्ग में ले आए हों ये लोग..,

पहले सुप्रिया का घर और अब प्रिया के यहाँ आते ही वो मानो किसी दूसरे लोक में ही पहुँच गयी थी हो, वो गौरी को लेकर पूरे घर में इधर से उधर दौड़ती भागती फिर रही थी..,

शाम को प्रिया उन सभी को सुप्रिया के यहाँ छोड़ने ले गयी, लेकिन काम के बहाने वो शंकर को अपने साथ लेकर अपने होटेल जा पहुँची…!

होटेल के उसी शानदार सूट में पहुँचते ही वो शंकर के साथ लिपट गयी, उसके चेहरे, बालों, कान, नाक सभी जगह चुंबनो से उसे गीला कर दिया…!

उसका उतावलापन देख कर शंकर ने मुस्कराते हुए पुछा – ये क्या है प्रिया दीदी, आप तो मानो मुझे देख कर अपना आपा ही खो बैठी, थोड़ा साँस तो लो…

वो उसे लेकर सोफे पर आ गयी, और खुद उसकी गोद में बैठकर बोली – तुम नही समझोगे शंकर तुम्हें अकेला पाकर मे कितनी खुश हूँ…!

तुम्हारे जाने के बाद से ऐसा एक भी दिन नही गया जब मेने तुम्हारी कमी महसूस ना की हो, ये कैसा जादू कर दिया है तुमने मेरे उपर,

शंकर ने हँसते हुए कहा – मैने.. क्या जादू कर दिया..?

प्रिया अधीर होते हुए बोली – पुछो मत.., तुम्हारी कल्पना मात्र से ही मे गीली हो जाती थी, तुम्हारा वो चुदाई का अंदाज निराला था शंकर..,

प्लीज़ अब बातों में वक़्त जाया मत करो, जल्दी से मुझे बिस्तर पर ले चलो और मेरी सारी हसरतें पूरी करदो मेरे राजा…!

शंकर ने उसके रसीले लज़्जत से भरे होंठों को चूमते हुए उसकी गोल-गोल सुडौल चुचियों को सहलकर कहा – इतनी भी क्या जल्दी, थोडा आराम से बैठते हैं,

उउम्मन्णन…नही शंकर, हमें समय पर घर भी पहुँचना है, वरना
खम्खा लोगों को हम पर शक होगा, अपने किस को तोड़ते हुए पिया बोली…

शंकर तो था ही उसके हुक्म का गुलाम, फ़ौरन उसने उसे अपनी गोद से उठाया, और उसकी साड़ी खींच दी..,
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10-16-2019, 02:50 PM,
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प्रिया के पीछे सॅट कर खड़े होकर अपने लौडे को उसकी मखमली गान्ड पर दबाते हुए उसने उसके सुडौल उरोजो को मसल्ते हुए कहा…, जैसी आपकी मर्ज़ी..

चुचियों की मिंजाई से प्रिया सिसक पड़ी.., आअहह…सस्सिईइ…बेड पर चलो ना…

शंकर ने अपना हाथ नीचे करके उसके पेटिकोट के नाडे को खींच दिया और ब्लाउस के बटन खोलते हुए बोला..,

बेड पर आपकी मुनिया का रस अच्छे से पीने नही मिलता, ये कहते हुए उसने उसके ब्लाउस और ब्रा को भी एक तरफ उछाल दिया..!

दूध जैसी गोरी, गोल-मटोल इलाहाबादी अमरूद जैसी प्रिया की गदराई चुचियों को देख कर शंकर बौरा उठा, और वो उनके उपर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़ा…!

एक को चूस्ता, दूसरी को हाथ से मींजता, कभी उसके निपल को उमेठ देता.., फिर दूसरी को चूस्ता और पहली के साथ खेलने लगता..!

प्रिया बस अपना मुँह छत की तरफ उठाए बुरी तरह सिसक रही थी.., आअहह…सस्सिईइ..
शंकर.. मेरे राजा… ख़ाआ जाऊ…इन्हें उउऊयईी…माआ.., निपल ज़ोर्से मत खींचूओ..,

कुछ देर बाद वो उसकी टाँगों के बीच बैठ गया, मिनी पैंटी में प्रिया की चूत की फूली हुई फाँकें पैंटी से बाहर दिखाई दे रही थी,

उत्तेजना और वासना के वशीभूत उसकी मुनिया इतनी लार टपका चुकी थी कि उसकी छोटी सी पैंटी उसके कामरस से गीली हो चुकी थी,

शंकर ने एक बार उसकी गीली मिनिया को पैंटी के उपर से ही चूम लिया.., फिर अपने बड़े से हाथ में उसकी माल पुआ जैसी चूत को भर लिया..,

मारे उत्तेजना के प्रिया दोहरी हो गयी और उसने शंकर के बालों को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत पर दबा दिया..,

शंकर ने अपना मुँह उठाकर प्रिया की तरफ देखा जो अपने एक हाथ से अपनी ही चुचि को मसल रही थी, उसकी पैंटी में उग्लियाँ फँसा कर आँखों में देखते हुए शरारत भरे लहजे में बोला…!

इजाज़त हो तो इस दो इंच के कपड़े को भी निकाल दूँ दीदी..,

प्रिया इतनी आतुर हो चुकी थी कि उस’से एक-एक पल निकालना मुश्किल हो रहा था, सो नागिन की तरह फुफ्कार्ते हुए बोली – नाटक मत कर मदर्चोद, जो करना है जल्दी कर..,

यहाँ मेरी चूत में आग लगी पड़ी है, और भोसड़ी का पुछ्ता है, पैंटी उतारू क्या.., भेन्चोद तुझे कब्से इजाज़त लेने की ज़रूरत पड़ गयी.., जल्दी कर अब बैठा क्या देख रहा है मेरी तरफ…!

शंकर भी पूरे मज़े लेने के मूड में था, उसने पैंटी उतारने की वजाय एक तरफ को करदी, और अपनी बीच की उंगली जड़ तक उसकी रसीली चूत में पेल दी…!

सस्सिईईई…..आआहह….इसी से चोद…, हां चाट ले मेरा राजा भीयया..शाबास बेटा आआईय… ये क्या किया री…, मुम्मय्यी….मेरी चुत्त……गायईयी…, क्लिट को पपॉर्ते ही प्रिया की चूत ने पानी छोड़ दिया, जिसे शंकर पूरा चट कर गया…!

अच्छी से झड़ने के बाद प्रिया ने राहत की साँस ली, शंकर को खड़ा करके उसके होंठों को चूम कर बोली….

सही में बहुत जालिम है रे तू.., कैसा औरत को अपनी उंगलियों पर नाचता है.., कहाँ से सीखी ये कला..,,हान्न्न…!

शंकर उसकी चुचियों को मसलते हुए बोला – वो बाद में बताउन्गा, पहले अब आप मेरे लौडे की थोड़ी सेवा करो, वरना ये मेवा नही खिलाएगा आपकी मुनिया को…!

शंकर की बात सुनते ही प्रिया फ़ौरन अपने पंजों पर बैठ गयी, उसकी जीन्स खोलकर नीचे खिसका दी, तब तक शंकर ने अपनी टी-शर्ट निकाल फेंकी..!

अंडर वेअर में फुफ्कार मार रहे उसके लौडे को प्रिया ने हाथ से मसलते हुए कहा – मेरी मुनिया पर नही तो कम से कम अपने इस मूसल पर ही रहम कर लिया कर बेहन के लौडे..,

कैसा अंदर ही अंदर फडफडा रहा है बेचारा, ये कहते हुए उसने उसे अंडरवेर से बाहर निकाल लिया..,

खुली हवा में साँस लेते ही शंकर का घोड़ा पछाड स्प्रिंग लगे गुड्डे की तरह फुदक कर प्रिया के होंठों से जा लगा, जिसे उसने बड़े प्यार से दुलार कर चूम लिया..,

सुरमुई सुपाडे को खोलकर अपनी जीभ की नोक से उसे चाटा.., शंकर के मुँह से आअहह… निकल गयी..,

प्रिया ने उसकी तरफ देख कर उसके गरम दहक्ते लंड को अपने मुँह में भर लिया.., उत्तेजना के वशीभूत होकर शंकर के मुँह से अनाप शनाप निकलने लगा..

आअहह…चूस ले मेरी पालतू कुतिया.., साअली बहुत भूखी है तू मेरे लंड.., उउफ़फ्फ़.., क्या मस्त चुस्ती है साली किसी रंडी की तरह..,

प्रिया आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए बड़े मज़े ले-लेकर उसके लौडे को चूसे जा रही थी, उसे शंकर की गालियाँ बड़ी सुहानी लग रही थी..,

जब शंकर को लगने लगा कि अब कंट्रोल रखना मुश्किल होता जा रहा है, सो उसने अपने लॉड को प्रिया के मुँह से बाहर खींच लिया और उसे गोद में उठाकर बेड पर लाकर पटक दिया…!

प्रिया की चूत फिर से रस छोड़ने लगी थी, शंकर ने देर ना करते हुए उसकी जांघों को अपनी मजबूत जांघों पर चढ़ाया, अपने रोड जैसे सख़्त हो चुके लंड को उसके छेद पर रखा और एक करारा सा धक्का अपनी कमर में लगा दिया…!

आआययययी….मुम्मय्यी…मर गयी.., हरअमजाड़े…कुत्तीए…आअरराां…सी.. डाल..ना….., उउउफ़फ्फ़.. मार डाला भेन्चोद..,

आधे से ज़्यादा लंड एक झटके से अपनी चूत में लेकर प्रिया बिल-बिला उठी..,

शंकर ने वहीं रुक कर उसके होंठ चूस लिए, फिर उसकी चुचियों को सहलाते हुए
वाकी का लंड भी पेल दिया..,

दर्द से प्रिया का सिर पीछे को हो गया, अपनी छाती आगे निकाल कर वो कराह उठी.., आहह..शंकर.., मर गयी रे..,

शंकर फिर से उसके होंठ चूसने लगा.., कुछ देर ठहर कर उसने धीरे-धीरे अपने धक्के लगाने शुरू कर दिए..,

अब प्रिया भी लय में आती जा रही थी.., शंकर के धक्कों में तेज़ी आते ही वो भी अपनी मक्खमली गान्ड उपर उछाल-उछाल कर चुदने लगी..,

सस्सिईई…आअहह…उउम्म्मन्णन…और तेज हान्ं.. और ज़ोर्से.. फाड़ इसे.. शनकाररर.. हुन्न्ं…ले मेरी जान…और ले..झेल मेरे लंड को..रान्नीी…,

ऐसे ही कुछ गरमा गरम शब्दों से होटल का वो शानदार आलीशान सूट गूँज रहा था…, कोई किसी से कम नही पड़ना चाहता था…!

ऐसा लग रहा था जैसे ये चुदाई कभी ख़तम होने वाली नही है..,

आधे घंटे के उस घमासान युद्ध के बाद तूफान थमा, जिसमें प्रिया तीसरी बार अपना पानी छोड़ रही थी,
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10-16-2019, 02:50 PM,
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शंकर के झड़ने के बाद तूफान थम गया, और अब वो काम युद्ध के दोनो योद्धा एक दूसरे की बाहों में पड़े लंबी-लंबी साँसें ले रहे थे…!

यहाँ शहर के जन्नत भरे माहौल में शंकर और प्रिया की

मस्तियाँ जारी थी, और उधर गाओं में…,

लाजो अपनी चूत की प्यास के बशिभूत आए दिन भोला के उड़ानखटोले में झूलने उसके घेर में पहुँच जाती..,

दोनो सारी सारी रात एक दूसरे के साथ मल्लयुद्ध लड़ते रहते, हां लेकिन ये भी अपनी जगह सच है कि लाजो अपनी तरफ से यथा संभव भोले का खाने पीने का पूरा ध्यान रखती…!

वो कभी भी खाली हाथ नही गयी उसके पास कुछ ना कुछ ऐसी लज़ीज़ चीज़ें ले जाती जो काजू, बादाम, पिस्ता से भरपूर खाने में स्वादिष्ट होती…!

अब भोला का लंड और जीभ दोनो ही चटोरे हो गये थे, ऐसे ही एक दोपहरी जहाँ पूरी हवेली चैन से अपने अपने कमरों में आराम फर्मा रही थी,

वहीं लाजो रसोईघर में भोला के लिए बादाम का हलवा बनाने में जुटी हुई थी…, तभी वहाँ किसी काम से उसकी चहेती नौकरानी मुन्नी आ गयी..,

लाजो को भरी दोपहरी में चूल्हा फूँकते देख पूछ बैठी – अरे छोटी मालकिन आप खुद ही इतनी गर्मी में क्या बनाने में लगी हैं, मुझे बोल दिया होता, मे बना देती…!

अचानक से मुन्नी की आवाज़ सुनकर एक बार को तो लाजो सकपका गयी, जल्दी से कोई जबाब उसे नही सूझा.., फिर कुछ संभलते हुए बोली-

अरी कुछ नही री, थोड़ा मेरा हलवा खाने का मन किया, अब वक़्त बेवक़्त किसी को क्या तक़लीफ़ देती, और वैसे भी जो स्वाद अपने हाथ से बनाके खाने में है वो तेरे हाथ के बने हुए में नही आता..!

मुन्नी – मेरी कुछ मदद की ज़रूरत हो तो बताओ छोटी मालकिन..,

लाजो – नही..नही तू जा, मे कर लूँगी, बस हो ही गया.., और हां एक बात कान खोलकर सुन.., इस बात का भूलकर भी किसी से जिकर मत करना समझी…!

मुन्नी अपनी गर्दन इधर से उधर झुलाती हुई वहाँ से चल दी.., लेकिन उसके अल्प दिमाग़ में ये बात नही समा पा रही थी कि हलवा बनाने की बात किसी को क्यों पता नही लगनी चाहिए…?

बड़ी मालकिन तो वैसे भी किसी भी बहू के कुछ भी खाने पीने पर रोक नही लगती, तो फिर इन्होने ऐसा क्यों कहा…?

मुन्नी ऐसी ही उधेड़बुन में अपनी गर्दन लटकाए अपने आप से ही बातें करती अपने नौकर वाले कमरे की तरफ बढ़ी चली जा रही थी की उधर से आती हुई रंगीली से टकरा गयी..!

रंगीली ने उसे प्यार से डाँट’ते हुए कहा – अरी मुनिया की बच्ची कहाँ जवानी के जोश में बड़बड़ाती हुई चली जा रही है, ये भी नही देखती की सामने से भी कोई आ रहा है कि नही…!

मुन्नी – माफ़ करना काकी, मे देख नही पाई तुम्हें.., मे वो..मे.. कुछ नही..

रंगीली – अरी मे..वो..मे..वो..क्या बकरी की तरह मिमिया रही है, मेने पुछा कहाँ से घोड़े पे सवार होकर चली आ रही है..?

मुन्नी सोच में पड़ गयी.., बताए कि नही, वैसे ऐसी तो कोई बात भी नही है जो रंगीली काकी से छुपानि पड़े.., ये सोच कर वो बोली –

वो मे रसोईघर में गयी थी किसी काम से तो देखा कि वहाँ छोटी मालकिन कुछ पका रही थी, मेने पुछा भी कि तुम क्यों ऐसी गर्मी में चूल्हा फूँक रही हो..,

रंगीली की उत्सुकता ये सुनकर जाग उठी, उसने मुन्नी को कुरेदते हुए कहा – तो फिर क्या जबाब दिया उन्होने तुझे..?,

वो बोली की कुछ नही थोड़ा हलवा खाने का मन किया तो सोचा इतने से के लिए क्यों किसी को तक़लीफ़ दी जाए, खुद ही बना लेती हूँ..,

मुन्नी की बात सुनकर रंगीली के दिमाग़ के घोड़े सरपट दौड़ने लगे.., जो लाजो एक पानी का ग्लास खुद से लेकर नही पीती वो इस भरी दोपहरी में चूल्हा फूँके..

बात कुछ हजम नही हो रही, कुछ तो गड़बड़ चल रहा है, शक़ तो उसे था ही लाजो पर, क्योंकि कुछ दिनो से उसने उसके कान खाना छोड़ दिए थे शंकर को लेकर..,

ज़रूर कहीं ना कहीं चक्कर तो चल रहा है, लेकिन ऐसे यार के साथ की जिसकी सेवा में खुद चूल्हा फूँक रही है छिनाल..,

उसने इस बात की तह तक पहुँचने का मन ही मन निश्चय कर लिया..और दबे पाँव रसोई की तरफ बढ़ गयी..!

रसोईघर की खिड़की से आती हुई सुगंध से ही रंगीली जान गयी.., बादाम के हलवे की सुगंध सूंघते ही वो मन ही मन बुदबुदा उठी…!

अरे वाह ! बादाम का हलवा बन रहा है, लगता है कोई खासम-खास है, तभी इतनी मेहनत की जा रही है..,

फिर इस’से पहले की लाजो हलवा एक डिब्बे में बंद करके रसोई से बाहर आती उससे पहले रंगीली वहाँ से हट गयी..,

डिब्बा लिए लाजो अपने कमरे में आ गयी.., रंगीली की नज़र अब हर समय लाजो के कमरे पर ही टिकी रही.., शाम तक वो अपने कमरे से बाहर नही निकली..!

रात हुई, सब लोग खाना खा पीकर आराम करने चले गये.., रंगीली ने अपना काम धंधा ख़तम किया इस दौरान भी उसके कान लाजो की आहट ही लेते रहे..,

अपने घर आकर उसने अपने पति रामू को खाना वग़ैरह दिया और जल्दी ही ये कहकर अपने कमरे से निकल गयी कि, खाना खा कर वो अपने घर चला जाए, उसे सेठानी के पास देर हो जाएगी..!

लाजो अपने निर्धारित समय पर हवेली से निकली, बाहर आकर हमेशा की तरह उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई और फिर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ गयी.., इस बात से बेख़बर कि दो आँखें निरंतर उसका पीछा कर रही हैं…!

रंगीली का माथा तब ठनका जब लाजो के कदम उसके खुद के घेर के बाहर आकर थम गये.., लाजो ने गेट के अंदर जाने से पहले एक बार फिर इधर उधर का जायज़ा लिया.., और अंदर चली गयी…!

रंगीली ये जानती थी कि उसके घेर की सांकल लंबी है, थोड़ा कोशिश करने पर वो बाहर से भी खोली जा सकती है दोनो किवाड़ के बीच की दरार में हाथ फँसा कर..,

पहले तो उसने बाहर से झाँक कर देखा.., कुछ देर भोला के बगल में बैठ कर लाजो ने उसे हलवे का डिब्बा दिया.., खोलते ही भोला की बान्छे खिल उठी..,

मारे खुशी के उसने लाजो को खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और दोनो किसी नवजात विवाहित जोड़े की तरह प्यार से एक दूसरे को हलवा खिलाने लगे…!
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10-16-2019, 02:51 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली ये देख कर मन ही मन मुस्करा कर बुदबुदाई, वाह मेरे बुद्धू जेठ जी, क्या किस्मेत खुली है.., एक भरे बदन लाला की गोरी चिटी बहू की चूत के साथ साथ माल खाने को मिल रहे हैं…!

ज़रूर जेठ जी का हथियार दमदार होगा तभी लाजो जैसी छिनाल माल खिला रही है, वरना काम तो इसका ससुर से भी चल ही रहा था..,

रंगीली बाहर खड़ी खड़ी इन्ही विचारों में खोई हुई थी कि तभी वो दोनो खुले आसमान के नीचे से अंदर भूसे वाले कोठे की तरफ चल दिए…!

रंगीली ने सोचा कि अब उसका यहाँ रुकने का कोई अर्थ नही है, यहाँ से चला जाए, ये दोनो तो मस्ती करेंगे मे बेकार में यहाँ रुककर अपनी रात काली क्यों करूँ…,

ये सोचकर उसने वहाँ से खिसकने का मन बनाया ही था कि तभी उसके दूसरे मन ने सरगोशी की…!

अरे बाबली, इतनी रात को उसका पीछा करते हुए यहाँ तक आई है, लाजो जैसी चुड़ैल औरत जिस आदमी के लिए खुद बादाम का हलवा बना के लाई है, उसमें कुछ तो खास होगा ही..,

ये जाने बिना तू यहाँ से चली जाएगी कि आख़िर तेरे आधे दिमाग़ वाले जेठ के खूँटे में ऐसी क्या खास बात है जो लाजो जैसी छिनाल औरत को बाँधे हुए है… !

अपने दूसरे मन की बात मानकर उसने वहाँ रुक कर उनकी रास लीला देखने का मन बना ही लिया..!

लाजो और भोला भूसे वाले कोठे में जा चुके थे, कुछ देर इंतेजार करने के बाद रंगीली ने बिना आवाज़ किए किवाड़ के दोनो पल्लों में गॅप बढ़ाया..,

अपना पतला लचीला हाथ डालकर सांकॅल को बेअवाज़ खोला और इधर-उधर नज़र डालकर वो चुपके से घेर के अंदर चली गयी…!
'
कोठे का दरवाजा खुला ही था, उनके हिसाब से वहाँ इतनी रात गये कौन आने वाला था.., रंगीली दीवार की ऑट लेकर अंदर के सीन को देखने की कोशिश करने लगी…!

एक तेल की डिब्बी का पीला सा उजाला कोठे को रोशन करने की नाकाम कोशिश कर रहा था, ज़मीन पर एक बिछबन डालकर उसे बिस्तेर की सूरत देने की कोशिश की गयी थी..,

इस समय भोला अढ़लेटा पड़ा था और लाजो मात्र पेटिकोट और एक छोटे से ब्लाउस में उसके बगल में अढ़लेटी पड़ी भोला के अजगर जैसे लंड को जो 9” से कतयि कम नही था…!

उसके लंड को लूँगी से बाहर निकाले अपने हाथ से सहला कर उसे उसके असली रूप में लाने की कोशिश कर रही थी..,

लाजो के हाथ के कमाल से भोला का कड़ियल कोब्रा अपना फन फैलाकर खड़ा हो चुका था…!

9” लंबे और अपनी कलाई जितने मोटे भोला के लंड को देखकर रंगीली की आँखें फटी की फटी रह गयी..,

हाए दैयाअ….ये लंड है क्या है..?, तभी साली छिनाल इतनी खातिर कर रही है जेठ जी की.., वाह जी बुद्धू राम क्या किस्मेत पाई है…!

अकल कम है तो क्या हुआ, लंड तो दमदार मिला है.., ये सब बातें अपने मन ही मन बुद-बुदाती रंगीली, अपने पागल जेठ के लंड का महिमा-मॅंडन कर रही थी..

कसे हुए ब्लाउस से लाजो की कसी हुई भरपूर जवान चुचियाँ बाहर को उबली पड़ रही थी, जिन्हें भोला अपने दोनो हाथों से दबाकर और ज़्यादा बाहर को निकालने की कोशिश कर रहा था..!

लाजो की गहरी खाई में उसने अपना मुँह डालकर अब वो उन्हें कुत्ते की तरह चाट रहा था.., लाजो मस्ती में आकर उसके लंड को और कस कर मुत्ठियाने लगी..,

देखते ही देखते भोला ने उसके पेटिकोट का नाडा भी खोल दिया जिसे दूसरे हाथ से लाजो ने खुद ही अपनी मोटी गान्ड से बाहर करके पैरों में होकर निकाल दिया..!

साली कच्छि भी पहन कर नही आई, लगता है समय बर्बाद नही करना चाहती..

भोला ने उसकी चुचियों को छोड़कर उसकी मटके जैसी गान्ड पर हाथ फिराता हुआ उसकी गान्ड को अपने मुँह की तरफ खींच लिया…!

लाजो अपने घुटने मोड़ कर भोला के उपर आ गई, अपनी गरम दहक्ति चूत को उसने भोला के मुँह पर रखकर खुद ने उसके काले भुजंग कड़ियल नाग को मुँह में भर लिया…!

अब वो दोनो 69 की पोज़िशन बनाकर एक दूसरे के अंगों का सेवन कर रहे थे.., लाजो ने लंड चूस्ते हुए अपना ब्लाउस भी निकाल बाहर किया..,


बिना ब्रा के उसकी मस्त गदराई हुई चुचियाँ हिलोरें मारती हुई हवा में लहरा उठी…!

लाजो अपनी गान्ड को भोला के मुँह पर घिसने लगी, मादकता में उसके मुँह से गुउन्ण..गुउन्ण..जैसी आवाज़ें निकल रही थी..,

लगातार रस छोड़ रही लाजो की चूत को भोला चपर चपर करके चाट रहा था.., इतना गरम सीन देख कर रंगीली की आँखें वासना से सुर्ख हो गयी..,

अनायास ही उसका हाथ अपनी खुद की चूत पर चला गया, जो अंदर चल रही रासलीला को देखकर गीली होने लगी थी..,

कुछ देर बाद भोला ने उसकी गान्ड पर थपकी देकर उसे उठने का इशारा किया.., लाजो इशारा पाकर उसके उपर से उतर गयी, उसकी चूत किसी सावन में बरसते बादल जैसी हो रही थी…!

उसका खुद का बुरा हाल था, सो पलते ही उसने भोला के लंड को अपनी चूत के मुंहाने पर रखा, और कस कर अपने होंठों को भींचकर उसके उपर बैठ’ती चली गयी..,

एक ही प्रयास में पूरे अजगर जैसे लंड को अपनी चूत में लेकर वो हाँफने लगी.., रंगीली ने मन ही मन उसे दाद दी.., साली पक्की छिनाल औरत है ये..,

बताओ इतने बड़े और खूँटे जैसे लंड को एक ही बार में जड़ तक ले गयी और उफ्फ तक नही की..,
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10-16-2019, 02:51 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उधर हान्फ्ते हुए लाजो ने भोला के होंठों को चूस्ते हुए कहा – आअहह…भोला राजा.., क्या कमाल का लंड है.., अब भी इसे लेते हुए नानी याद आ जाती है मुझे.., लेकिन मज़ा भी उतना ही देता है..,

भोला ने उसकी गान्ड पर चट्टाककक..से एक थप्पड़ लगाया और बोला – तो अब बैठी क्यों है, गान्ड चलाती क्यों नही अपनी.., मुझे सबर नही हो रहा…!

लाजो ने मुस्कुरा कर अपनी गान्ड उपर उठाते हुए कहा – जो हुकुम मेरे आका..

जैसे ही भोला का लंड चूत से बाहर आया, उसके चूतरस से पूरा भीगा हुआ दिए की मद्धिम रोशनी में चम-चमा रहा था..,


बाहर निकलता लंड पीछे से रंगीली को ऐसा लग रहा था, मानो कोई नाग अपने बिल से नहाकर बाहर आ रहा है…!

अभी वो उसे ठीक से देख भी नही पाई थी कि लाजो ने अपनी गान्ड दबाकर उसे फिर से अपनी चूत में निगल लिया…!
रंगीली की चूत ये देखकर अपने आप पानी छोड़ने लगी, उसकी आँखें भारी होने लगी.., अब वो लाजो की जगह अपने आप को भोला के लंड पर सवारी करते हुए महसूस करने लगी..,

जैसे जैसे लाजो की आहें निकल रही थी, रंगीली की चूत उतनी बुरी तरह से तप रही थी…!

लाजो ने यथा संभव अपनी गान्ड को गति दे रखी थी.., लेकिन कब तक..?

उसकी चूत ने अपना कुलावा खोल दिया, जड़ तक जाते भोला के लंड ने उसकी चूत के श्रोत को खुलने पर मजबूर कर दिया.., वो अपनी गान्ड को भोला के लंड पर बुरी तरह से दबाकर झड़ने लगी..,

नीचे से भोला ने उसकी चुचियों को कस कर भींचते हुए उसके निप्प्लो को मरोड़ दिया..,

आआईयईई…भोला रजाअ…इतनी ज़ोर से नही.., लाजो कराह कर बोली…

भोला – साली अब बैठी क्यों है फिर, चल उतार नीचे, ये कहकर उसने उसे नीचे लुढ़का दिया.., और उसकी टाँगों को चौड़ा कर अपना रोड जैसा कड़क लंड उसकी चूत में पेल दिया…,

इसी के साथ रंगीली ने भी अपनी अपना लहँगा उपर करके 3-3 उंगलियाँ एक साथ अपनी चूत में डाल दी और उन्हें तेज़ी से अंदर बाहर भी करने लगी..,

वो अब इतनी गरम हो चुकी थी कि, कोशिश करने के बाद भी वो खुद को रोक नही पाई और एक दबी दबी सी सिसकी लेकर खड़े-खड़े ही झड़ने लगी…!

वो इतनी भूरी तरह से झड़ी, की अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल पड़ गया उसे, और अपनी चूत दबाकर अपने पंजों पर वहीं बैठ गयी..,

उधर भोला के लंड पेलते ही लाजो बुरी तरह से हीन-हिना उठी…

आआययईीी…मैयाअ. धीरे…राजा…फट गयी मेरी तो..,, भोला ने उसकी गान्ड पर चान्टे मारते हुए धक्कों की झड़ी लगा दी…

हुउन्ण…साली कुतिया..कैसे चिल्लाती है, जैसे पहली बार चुद रही हो.., ले खा मेरा मूसल.., साली रंडी..,

सस्सिईइ…पेलो राजा.., जितनी गान्ड में दम हो उतना पेलो…आअहह…मज़ा आरहा है..उउउफफफ्फ़…आअहह…ांनग्ज्ग…उउऊयईी…

हुउन्ण..हहुऊन्न्ं..ली..मेरी..कुतिया और ली…ले..ले मेरा बीज़, कहते हुए भोला ने अपना नाल उसकी ओखली में खोल दिया..,

भोला के लंड से निकले वीर्य की तेज बौच्हर अपनी बच्चेदानी के मुँह पर पाकर लाजो की चूत फूलने पिचकने लगी और उसके लंड को अपनी फांकों में कस कर वो भी झड़ने लगी…

झाड़ते हुए उसकी गान्ड का कत्थयि छेद भी कस कर बंद हो गया…,

लाजो औंधे मुँह बिस्तर पर पड़ गयी, और उपर भोला, किसी सांड की तरफ पड़ा हाँफने लगा…!

रंगीली को जब पता लगा कि अब इनकी चुदाई ख़तम हो चुकी है, कभी भी कोई भी इनमें से बाहर आ सकता है, सो उसने खड़े होकर अपनी चूत को पेटिकॉट से पोन्छा और दबे पाँव अपने घर की तरफ चल पड़ी…!



उस पूरी रात रंगीली ठीक से सो नही पाई, वो जैसे ही अपनी आँखों को बंद करके सोने की कोशिश करती, भोला का वो कड़ियल काला नाग लाजो की सुरंग जैसी चूत में अंदर बाहर होता दिखाई देने लगता…!

वो मन ही मन लाजो को गालियाँ निकलती, बार बार गीली हो रही अपनी मुनिया को पोंछती जा रही थी..,

साली रंडी कुतिया को मिला भी तो मेरे ही घर का लंड मिला, पर फिर ये सोच कर मन को शांत कर लेती, कि चलो आधे दिमाग़ वाले उसके जेठ के मज़े बहुत आ रहे हैं..

एक बड़े घर की लुगाई चोदने को मिल रही है, साथ में हलवा राबड़ी खाने को मिल रहे हैं.., लेकिन फिर जैसे ही उसके सेठ का मूसल याद आता, वो फिर से बैचैन हो उठती..,

क्या मुझे भी जेठ जी से मिलना चाहिए..? नही-नही, ये ठीक नही होगा, खम्खा उनके भजन में भंग पड़ेगा, उनका जैसा चल रहा है, चलने देती हूँ,

मेरे लिए मेरा बेटा ही ठीक है.., अपनी खम्खा की लालसा के लिए अपने पति से तो बेवफ़ाई कर ही चुकी हूँ, अब बेटे से नही.., वरना मुझमें और इस छिनाल लाजो में फरक ही क्या रह जाएगा….!

लेकिन अगर लाजो के पैर भारी हो गये तो..? मेरी सारी योजना मिट्टी में मिल जाएगी...!

तो फिर अब क्या किया जाए, जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे…!

फिर कुछ विचार करके मन ही मन एक निर्णय लिया, और निश्चिंत होकर वो सो गयी..,

अभी वो कुछ ही घंटे सो पाई थी, क़ि सुबह की चहल-पहल ने उसे उठने पर मजबूर कर दिया..,

अपना सुबह का काम धंधा ख़तम करके उसने लाला जी के लिए नाश्ता तैयार किया और लेकर उनकी बैठक में जा पहुँची..,
रंगीली को देखते ही उनकी मन की कली खिल उठी, वैसे जबसे लाजो ने भोला के लौडे की सवारी शुरू की थी, वो अपने ससुर से दूर-दूर ही रहने लगी थी..,
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10-16-2019, 02:51 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
अब वो रंगीली को फिर से वही पहले वाला प्यार देने लगे थे, रंगीली को देखते ही उन्होने उसके हाथ से नाश्ता लेकर अपनी गद्दी के एक किनारे रखा और उसे गोद में उठाकर गद्दी पर ले आए..,

अरे..अरे.., लाला जी क्या कर रहे हो..? सुबह ही सुबह ना राम का नाम ना कुछ.., लगता है आजकल छोटी बहू ने आना कम दिया है..?

लाला जी – अरे छोड़ो उसे, वैसे भी मे उससे परेशान हो गया हूँ, बहुत जान खाने लगी थी.., तुम तो जानती ही हो, तुम्हारे कहने पर मेने उसके साथ संबंध बनाए थे..,

मुझे तुम्हारे साथ जो मज़ा आता है, वो किसी और के साथ नही.., ये सुनकर रंगीली मन ही मन खुश हो उठी, चलो कम से कम अभी भी वो लाला जी की पहली पसंद है..!

रंगीली अपने आप पर इतराते हुए इठलाकर बोली – ऐसी क्या खास बात हैं मुझमें, जो एक भरपूर जवान बहू के आगे आप मुझे तबज्जो दे रहे हैं..,

लाला जी ने रंगीली के लज़्जत भरे रसीले होंठों को चूमकर कहा – ये हम मात्र तुम्हें खुश करने की वजह से नही कह रहे मेरी जान, तुम सचमुच हमारी पहली पसंद हो…!

लेकिन अब ये मत पुछ्ना कि लाजो में क्या कमी है, क्योंकि हम बता नही पाएँगे, तुम तुम हो और वो वो है..,

अबतक रंगीली की गदराई हुई, मुलायम गान्ड की गर्मी पाकर लाला जी का लॉडा अपना आकार ले चुका था, उसे अपनी धोती से बाहर निकाल कर रंगीली के हाथ में पकड़कर बोले…

इसे तुम्हारी तबज्ज़ो की ज़रूरत है मेरी जान, कुछ करदो इसका भी..,

रंगीली ने उनके गरम लौडे को मुट्ठी में कस कर उनकी मूठ मारने लगी, लाला जी सिसकते हुए बोले…

सस्सिईई…आअहह…रानी, इसे ज़रा मुँह में तो लो.., उनकी बात मानकर उसने उसे अपने होंठों में दबा लिया..,

थोड़ी देर लंड चुस्वा कर लाला ने रंगीली को गद्दी पर औंधी कर लिया, उसकी सारी को कमर तक चढ़कर अपना लंड उसकी रसीली चूत में डाल दिया..,

लंबे-लंबे धक्के मारकर वो उसकी ओखली को कूटने का भरसक प्रयास करने लगे, लेकिन अपने बेटे के लंड के आगे अब उसे लाला के लंड में पहले जैसा मज़ा नही आता था..,

फिर भी वो सिसकियाँ भरते हुए अपनी गान्ड को लाला जी के लंड पर पटकने लगी.., आअहह…पेलो राजा जी, सस्सिईई…उउउफ़फ्फ़ आज भी बहुत मज़ा आता है आपसे चुद्वाने में..,
हहुऊन्ण…ले..मेरी रानी.., ले..पीली मेरा पानी…आअहह….हम तो गये..रीि..,

रंगीली ने भी कस कर अपनी गान्ड दो-तीन बार लाला के लंड पर पटकी, और फिर उसे उसके उपर दबाकर वो भी झड़ने लगी…!

कुछ देर बाद जब अलग होकर लाला गुसलखाने में जाकर फ्रेश हुए और नाश्ता करने लगे..,

रंगीली ने पंखा झलते हुए बात चलाई – छोटी बहू की कोई उम्मीद है लाला जी..?

लाला नाश्ता करते हुए बोले – अब क्या उम्मीद होगी, इतने दिन तो होगये, हमें लगता है, अब हमारे वीर्य में वो बात नही रही.., वरना तुम तो दो महीने में ही उम्मीद से हो गयी थी..,

रंगीली – तो अब आपने क्या सोचा है उसके बारे में..?

लाला जी – हमारे हाथ में है ही क्या..? ईश्वर को मंजूर होगा तो कल्लू के ही किए कुछ हो पाएगा.., अब इसलिए बहू ने भी हमारे पास आना कम कर दिया है..,

रंगीली अपने मन में बोली – अब उसे आपकी लुल्ली से कुछ नही होता लाला जी, अब तो वो पूरा अजगर ले रही है आजकल…!

उसे चुप रहते देख लाला बोले – अब तुम क्या सोचने लगी..?

रंगीली – जी कुछ नही, बस सोच रही थी, शहर में बहू और बच्चे क्या कर रहे होंगे..?

लाला जी – हमारी बेटियाँ बहुत समझदार हैं, संबंधी भी भेद नही मानते, तुम चिंता मत करो, वो लोग मज़े से होंगे..!

रंगीली सोच रही थी, कि लाजो वाली बात लाला को बताए या नही, फिर खुद ही फ़ैसला किया कि इनको बताने का कोई फ़ायदा नही होगा,

वो छिनाल सॉफ मुकर जाएगी, कुछ ज़्यादा बात बढ़ गयी तो खम्खा लाला जी को ही बदनाम ना कर्दे, ये सोच कर वो फिलहाल उस बात पर चुप्पी लगा गयी,

गद्दी से निकलकर रंगीली सीधी रसोईघर में गयी, और सेठानी के लिए नाश्ता निकालकर वो उसके कमरे में पहुँची..,

हालाँकि सेठानी उसे एक आँख नही सुहाती थी, फिर भी अपना मतलब हल करने की गाराज़ से वो ना केवल उसके लिए नाश्ता लेकर गयी अपितु वहाँ जाकर चापलूसी भरे अंदाज में कहा –

मालकिन लीजिए नाश्ता कर लीजिए, मालिक ने कर लिया है, आप ही बची हैं..,

सेठानी भृकुटी टेडी करके बोली – क्यों री मालिक की चमची.., आज इधर का रास्ता कैसे भूल गयी.., और क्या मर गयी जो तू नाश्ता लेकर आई है..?

रंगीली ने उसकी बात का बुरा मानने की वजाय अपने मुँह में मिठास घोलते हुए कहा – ऐसी बात क्यों कह रही हैं मालकिन, मे तो आप दोनो की सेवा में ही लगी रहती हूँ..,

अब थोड़ा बड़ी बहू का काम नही है तो सोचा मे अपने हाथ से ही आपको नाश्ता करा दूं.., देखिए मे आपके लिए गरम गरम आलू के परान्ठे दही के साथ लाई हूँ, आपको तो ये बेहद पसंद हैं ना..,

परान्ठो का नाम सुनकर सेठानी की तबीयत ग्लॅड हो गयी…, आसान पर बैठते हुए बोली – ला लेआा, तू सही कहती है, ये तो मेरी पसंद के ही हैं..,

सेठानी नाश्ता करने लगी, और रंगीली पंखे से उनकी हवा झलने लगी.., रेंगीली की तरफ से ऐसा सेवा भाव देखकर सेठानी खुश हो गयी…!

उसको खुशी देखकर रंगीली उससे बातें करने लगी…!

मालकिन आप बुरा न मानें तो एक बात पुछु..?

सेठानी नाश्ता करते हुए उसकी तरफ मुस्करा कर देखते हुए बोली – पुच्छ क्या पुच्छना चाहती है..?

छोटी बहू को कल रात आपने कहीं भेजा था..?

सेठानी ने चोन्क्ते हुए उसकी तरफ देखा और थोड़ा असमंजस जैसी स्थिति में आकर बोली – नही तो मेने तो उसे कहीं जाने को नही भेजा था..? कहाँ गयी थी वो और कितने बजे..?

रंगीली – मे ज़रा मुतने के लिए उठी थी, यही कोई 10-10:30 का समय था, देखा तो छोटी बहू हवेली से बाहर बस्ती की तरफ जा रही थी.., मेने सोचा शायद आपने कोई टोना-टोटका बताया हो करने को..?

सेठानी थोड़ा तल्ख़ लहजे में बोली – अरी करम जैल, मे क्यों कोई टोटका बताने लगी.., मेने तो कभी ऐसे काम किए ही नही तो उसको क्या बताउन्गी..?

जा तू उसे बुलाकर ला यहाँ, पुछु तो सही इतनी रात को कहाँ गयी थी हरम्जादि.., कहीं हमारी नाक ना कटवादे…!

रंगीली – नही मालकिन ! अगर वो आपको पुछ कर नही गयी थी, तो आप खुद सोचिए क्या वो आपसे सच बोलेंगी..?


खम्खा मुझे ही झूठा ठहराएगी.., और आप भी उनकी बात का विश्वास करके मुझे झूठा मान लेंगी…!

सेठानी – तो फिर कैसे साबित होगा कि तू सच बोल रही है…?

रंगीली – अब मे आपको क्या बताऊ, आप खुद ही इतने समझ दार हैं.., वैसे मेरे ख्याल से अगर वो चुप-चाप कोई टोना-टोटका कर रही होंगी, तो आगे भी जाएँगी..,

फिर आप जानो आपका काम.. , आपकी नौकर होने के नाते मेने आपको बताना अपना फ़र्ज़ समझा.., इतना कहकर वो उसके झूठे बर्तन उठाकर रसोईघर की तरफ चल दी…!

रंगीली ने सेठानी के दिमाग़ में शक़ का कीड़ा बो दिया था, उसका कूद मगज भी सोचने पे मजबूर हो गया कि आख़िर इतनी रात को लाजो बहू कहाँ और क्यों गयी होगी..?

कहीं ये हरम्जादि रंगीली झूठ तो नही बोल रही, जाकर पूछ ही लेती हूँ बहू से, क्या पता ये नौकरानी बातें बना रही हो उसे बदनाम करने को…!

लेकिन फिर उसे रंगीली की बात याद आ गयी, लाजो है तो बनफर, सही सही तो बताने से रही अगर बिना बताए कुछ कर रही है तो..,

तो फिर मे कैसा पता लगाऊ सच्चाई क्या है…?

इधर हेवी नाश्ता करने की वजह से सेठानी की आँखें भी भारी होने लगी थी, लेकिन दिमाग़ में यही उधेड़-बुन चल रही थी…, वो चाहकर भी सो नही पा रही थी…!

इसी उधेड़-बुन में उसे समय का भी पता नही चला और दोपहर हो गयी.., कुछ देर बाद मुन्नी उसके लिए दोपहर का खाना ले आई..,

सेठानी को अभी भूख नही थी, सो उसने खाने को वहीं अपने कमरे में रखवा लिया और मुन्नी को जाने के लिए बोल दिया…!
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10-16-2019, 02:51 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
दोपहर का काम ख़तम होते ही नौकर भी अपने-अपने घरों में जाकर आराम करने लगे, हवेली में चारों तरफ शांति च्छाई हुई थी..,

हवा के झोंके की आस में कमरे की खिड़की पर बैठी सेठानी अपनी ही सोचों में गुम बैठी थी, कि तभी उसे लाजो अपने कमरे से निकलकर आँगन में दिखाई दी..,

उसके हाथ में पीतल का एक डिब्बा था, और वो इधर-उधर नज़र दौड़ाती हुई बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ी चली जा रही थी…!

सेठानी उसे आवाज़ देकर रोकने ही वाली थी कि उसके कूढ़ मगज में ना जाने कैसे ये बात आई, कि क्यों इसका पीछा करके पता लगाया जाए कि आख़िर ये जा कहाँ रही है..,

ये बात तो साबित हो गयी कि रंगीली ने जो बताया था वो सही है, वरना ये ऐसे चुपके-चुपके दबे पाँव बाहर की तरफ क्यों जाती…!

ये विचार करके सेठानी भी लपक कर अपनी खटिया से उठ बैठी और लाजो की नज़रों से खुद को बचाती हुई वो भी उसके पीछे पीछे हो ली…!

अपनी बहू को भोला के घेर में घुसते देख सेठानी का माथा ठनका.., साली कुतिया यहाँ इस पागल से चुदने आती है हरम्जादि..,

आज देख मे तेरा क्या हाल करती हूँ, साली रंडी की औलाद, गालियाँ बॅड-बड़ाती हुई सेठानी अभी अपने घर को मुड़ने वाली थी कि तभी उसके दिमाग़ ने फिर से काम करना शुरू कर दिया..!

देखूं तो सही ये साली कहाँ तक गिर सकती है, ऐसे ही लौट गयी तो ये कभी मेरी बात को लगने नही देगी, सॉफ मुकर जाएगी..,

इस हरम्जादि को रंगे हाथ पकड़ती हूँ तब मानेगी कुतिया.., ये सोचकर सेठानी भी भोला के घेर की तरफ बढ़ गयी…!

भाग्यबस सेठानी को घेर का मुख्य दरवाजा खुला ही मिल गया, जो जल्दबाज़ी में शायद लाजो ऐसे ही भिड़ा कर चली गयी थी…!

पहले उन्होने दरवाजे की झिर्री से आँख सटा कर अंदर का जायज़ा लिया, उन्हें बाहर कोई नही दिखा, वैसे भी ऐसी भीषण दोपहरी में खुले में कॉन होने वाला था..,

सामने ही एक कोठा सा था जिसमें से कुछ आवाज़ें आती सुनाई पड़ी..,

सेठानी चुपके से घेर का दरवाजा धकेल कर अंदर दाखिल हो गयी, दबे पाँव वो कोठे तक पहुँची, अंदर से आती आवाज़ों को सुनकर सेठानी के होश गुम हो गये..,

लाजो बुरी तरह सिसकते हुए कह रही थी.., आअहह….सस्स्सिईइ….भोला रजाअ.., और ज़ोर्से से चूसो इन्हें.., बहुत सताते हैं निगोडे..,

भोला – हाए मेरी रानी, तेरी ये मस्त भारी-भारी चुचियाँ देखकर मेरा जी करता है इन्हें कच्चा ही खा जाउ..,,,

लाजो – उउउफफफ्फ़.. तो खा जाओ मेरे राजा, रोका किसने है.., आआईय…म्माआ…, ज़ोर्से मत काटो.., निशान पड़ जाएँगे..,

ऐसी कामुक आवाज़ें सुनने के बाद किसी के भी खून में गर्मी पैदा हो सकती है, सेठानी भी अंदर चल रही रास लीला का आनंद लेने के लिए व्याकुल होने लगी..,

दरवाजे की झिर्री में आँखें सटा कर उन्होने जैसे ही अंदर का नज़ारा देखा, उनकी अधेड़ चूत भी सुरसुराने लगी..,

इस समय उसकी प्यारी बहू उपर से बिल्कुल नंगी थी.., और भोला नीचे से.., दोनो बैठे एक दूसरे से गुथे हुए थे..,

भोला उसकी चुचियों को मथ रहा था, चूस रहा था, वहीं लाजो उसके अजगर जैसे लंड को अपने दोनो हाथों में लेकर मुठिया रही थी..,

भोला के अजगर पर नज़र पड़ते ही सेठानी ने अपने मुँह पर हाथ रख लिया, वरना उनके मुँह से चीख ही निकल पड़ती..,

हाअईए…राम…ये लंड है या कुछ और.., क्या लाजो बहू इसको पूरा ले जाती होगी..? लगता है हरम्जादि की चूत में कुछ ज़्यादा ही खुजली होती है.., तभी मोटे-तगड़े लंड की खोज करती हुई यहाँ तक आ पहुँची..,

ला अभी बताती हूँ, हरम्जादि कुतिया.., छिनाल को मेरा बेटा कम पड़ता है जो यहाँ इस पागल से चुदने आती है, मन ही मन बड़बड़ाती सेठानी अभी किवाड़ को धकेल कर अंदर आने की सोच ही रही थी, कि तभी लाजो ने भोला के अजगर को अपने मुँह में ले लिया..,

सेठानी के लिए ये किसी अजूबे से कम नही था.., उन्होने अपने जीवन में ये कभी नही सोचा था कि लंड को मुँह में भी लेकर मज़ा आता है..,

उन्होने घृणा से अपना मुँह बीसूर लिया.., राम..राम..कितनी बड़ी कुतिया है साली, बातो मूतने वाले लंड को मुँह में ही ले गयी.., हाए दैयाअ… ये तो इसे मज़े ले-लेकर चूस भी रही है..,

इतनी तन्मयता से अपनी बहू को लंड चूस्ते देख सेठानी सोचने पर मजबूर हो गयी, कहीं इसमें भी मज़ा तो नही आता..? वरना ये बुरा सा मुँह बनाने की बजाय इतना रस ले-लेकर नही चुस्ती…!

अभी वो अपने इसी कौतूहल में ही उलझी हुई थी कि भोला ने लाजो की साड़ी कमर तक चढ़ाई, और उसकी गान्ड को अपने मुँह पर रखकर उसकी चूत में अपनी जीभ डालकर उसे कुत्ते की तरह चाटने लगा..,

लाजो ने लंड को मुँह से निकालकर अपना भाड़ सा मुँह खोल दिया.., चूत की फांकों पर जीभ के लगते ही वो कामुकता भरी सिसकी भरते हुए बोली…

सस्स्सिईइ….आआहह…चाटो राजा, और अच्छे से..चाटो मेरी चूत को.., हाए..अंदर करो ना…,

भोला ने उसकी गान्ड पर एक जोरदार चान्टा मारते हुए कहा – तू अपना काम कर साली कुतिया.., मुझे मत सिखा मुझे क्या करना है..,

एक आधे पागल नौकर के भाई को बहू के साथ गाली गलौच करते देख सेठानी को बड़ा अचंभा सा हुआ.., जबाब में उसकी बहू ने हस्कर उसका लंड मुँह में भरकर फिर से चूसने लगी..,
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10-16-2019, 02:51 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सेठानी के उपर एक के बाद एक झटके लग रहे थे.., लेकिन ये भी बात सही थी, कि उनको अब बुरा लगने की बजाय, देखने में मज़ा आने लगा था..,

सामने ऐसा गरमा-गरम सीन और अपनी बहू के मुँह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सेठानी की अधेड़ चूत, जिसे लाला जी ने मुद्दत से देखा तक नही था, उसमें भूचाल आने लगा..,

वो खड़े-खड़े रस बहाने पर मजबूर हो गयी.., सेठानी की आँखों में भी वासना के कीड़े तैरने लगे, उन्होने अपनी साड़ी उपर की और चूत में दो उंगलियाँ सरका दी..,

वर्सों से उजाड़ पड़ी सेठानी की बगिया को मानो सावन की फ़ुआरों ने फिर से हरा भरा कर दिया हो.., गीली चूत में सर्र्र्र्र्र्ररर…से दो उंगलियाँ चली गयी..,

वर्सों के बाद चूत में उंगलियाँ डालते वक़्त सेठानी ने मारे गुदगुदी के अपनी टाँगें भींचकर उंगलियों को चूत के अंदर ही लॉक कर दिया…!

कुछ देर बाद जब उन्होने आखें खोलकर दोबारा अंदर झाँका.., तभी भोला ने लाजो को कुतिया बनाकर अपना मूसल जैसा कड़क लंड पीछे से उसकी रसीली चूत में पेल दिया..,

लाजो अपना थोबड़ा उपर करके मादक कराह लेते हुए पूरा लंड अपनी चूत में ले गयी.., ये देख कर सेठानी की साँसें ही अटक गयी.., वो समझ चुकी थी कि उसकी बहू कितनी बड़ी चुदैल है..,

लेकिन साथ ही उन्होने अपनी टाँगें चौड़ी करके अपनी तीन-तीन उंगली एक साथ अपनी चूत में पेल दी.., थोड़ा दर्द तो हुआ, लेकिन उससे ज़्यादा उन्हें इसमें मज़ा आया..,

उन्हें ये बात समझते देर नही लगी कि चुदाई का असली मज़ा मोटे और तगड़े लंड से ही आता है.., अंदर चल रही चुदाई की लय पर वो भी अपनी उंगलियों को अंदर बाहर करने लगी..,

उन्हें वो क्षण याद आने लगे, जब लाला जी उसे घोड़ी बनाकर चोदते थे, लेकिन यहाँ भोला का मूसल तो उनके लंड से सवाया दिख रहा था…,

अंदर लाजो और भोला अपनी दमदार चुदाई में लिप्त थे तो वहीं दरवाजे के ठीक बाहर सेठानी अपनी चूत में वर्सों बाद लगी आग को शांत करने का प्रयास करते हुए अपनी उंगलियों को अंदर बाहर कर रही थी..,

आख़िर कुछ ही देर में उनकी वर्सों से बंद चूत का बाँध टूट ही गया, ढेर सारा खारा पानी इनकी चूत से बाहर आने लगा.., वो अपनी उंगलियों को चूत के अंदर चेन्प्कर झाड़ते हुए हाँफने लगी.., मानो मीलों की दौड़ लगाकर आई हों….!

अपने होश ठिकाने करते हुए जब उन्होने अंदर देखा, तभी भोला ने भी एक लंबी सी हुंकार भरते हुए लाजो की कमर को दबाकर अपने लंड का पानी उसकी चूत में भर दिया…!

ऐसी गरमा गरम धमाकेदार चुदाई का दृश्य देखकर सेठानी की वर्सों से सूखी हुई चूत भी हरी-भरी हो गयी थी, अपनी चूत का गीलापन लहंगे को जांघों के बीच दबाकर कम किया..,

कुछ देर वो असमंजस की स्थिति में वहीं दीवार के सहारे खड़ी रही.., फिर मन ही मन एक निर्णय लेकर वो हवेली की तरफ चल दी…!

उधर भोला के साथ हुई खाट कबड्डी के बाद लाजो कुछ देर तक उससे चिपक कर पड़ी रही, कुछ देर बाद उसने भोला को फिर से उकसाना शुरू किया..,

भोला ने उसकी नंगी मोटी चौड़ी चकली गान्ड पर एक जोरदार चाँटा मारते हुए कहा – साली तेरी चूत है या कुँआ.., कभी खाली ही नही होती..,

अब जा यहाँ से इतनी दोपहरी में अब और नही छोड़ पाउन्गा सोने दे मुझे, कुछ देर बाद अपने पशुओं को चराने भी जाना है..!

मन मसोस कर लाजो बिस्तर से खड़ी हुई, अपने कपड़े पहने और फिर भोला के नाग की प्रदक्षिणा (चूमकर) रात को आने का वादा करके वहाँ से चल दी…!

उधर भन्नाइ हुई सेठानी जब हवेली पहुँची.., वो सीधी लाजो के कमरे में पहुँची, और उसके सारे कपड़े लत्ते एक बकषे (सूटकेस) में डाले और निकालकर आँगन में बाहर रख दिया..!

जाते जाते उन्होने उसके कमरे को बाहर से एक मोटा सा ताला लगा दिया..!

जब लाजो घर पहुँची, अपने कमरे पर एक मोटा सा ताला लटका देखकर उसके होश उड़ गये.., पास ही एक बक्शा देखकर वो सारी स्थिति भाँप गयी…!

उसका पहला शक़ लाला जी पर ही गया.., लगता है ससुर जी को पता चल गया है, अब उनको मनाना पड़ेगा.., ये सोचकर वो उनको गद्दी की तरफ बढ़ गयी..!

अभी उसने कुछ कदम ही बढ़ाए थे कि तभी सेठानी की कड़क आवाज़ सुनाई दी..

उधर कहाँ जा रही है हरम्जादि कुलटा.., ये अपना बक्शा उठा और चलती बन इस घर से…,

लाजो ने पलटकर सेठानी की तरफ देखा, जो अपनी कमर पर दोनो हाथ रखे किसी मारखनी भेंस की तरह अपने नथुने फुलाए खड़ी थी…!

उन्हें देखते ही लाजो की गान्ड फट गयी.., वो समझ चुकी थी की उसकी पॉल-पट्टी ससुरजी के सामने नही इस हिटलार्नी सासू के सामने खुल चुकी है.., लेकिन कैसे..?

अपना सारा साहस बटोरकर उसने कहा – ये आप क्या कह रही हैं सासू जी..? ऐसा मेने क्या कर दिया जो आप मुझे घर से निकल जाने के लिए कह रही हैं..?

सेठानी गुस्से से लाल भभूका हो रही थी, फिर भी अपने गुस्से पर काबू रखते हुए बोली – क्या बता सकती है, इतनी भीषण गर्मी में इतनी दोपहर को तू कहाँ से आ रही है..?

लाजो उनके इस सवाल पर सकपका गयी.., हकलाते हुए बोली -म.मे.मईए…वो..मी..

सेठानी – अब ये बकरिया की तरह क्यों मिमिया रही है.., बता कहाँ गयी थी तू..? बोल जबाब दे…!

सेठानी की तेज आवाज़ सुनकर लाला जी अपनी गद्दी से बाहर आ गये.., ये तो अच्छा था कि इस समय सारे नौकर हवेली से बाहर अपने अपने घरों में आराम कर रहे थे वरना वहाँ ख़ासी भीड़ हो जाने वाली थी…!

लाला जी ने बाहर आकर देखा माजरा क्या है.., पहले तो वो कुछ समझ नही पाए.., फिर जब लाजो के कमरे पर ताला लटका देख और उसका संदूक बाहर रखा देख उन्हें झटका सा लगा…!

वो सेठानी की तरफ बढ़ते हुए बोले – क्या हुआ भगवान.., इस तरह बहू पर क्यों चिल्ला रही हो..? क्या किया है इसने..?
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10-16-2019, 02:51 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सेठानी उसी गुस्से में लाला जी की तरफ देखते हुए बोली – तुम अभी चुप रहो जी.., अभी सब कुछ समझ में आ जाएगा…, फिर पलटकर लाजो से बोली –

हां बोल.. कहाँ से आ रही है तू इतनी गर्मी में…?

लाजो को काटो तो खून नही.., मानो उसे साँप सूंघ गया हो.., अब जबाब दे तो क्या..? लेकिन कुछ तो बोलना ही पड़ेगा.., सो हकलाते हुए बोली – जी..वो..मी…मे.. थोड़ा बाहर तक गयी थी…!

सेठानी किसी भाटीयारी की तरह हाथ नचाते हुए बोली – क्यों..? इतनी गर्मी में यहाँ कोन्से पार्क में घूमने गयी थी..? या तेरी उस छिनाल माँ के बाग़ीचे हैं जिनमें तफरीह करने गयी थी…?

लाला जी – ये तुम किस तरह की बात कर रही हो बहू से..?

सेठानी – तुम चुप रहो जी.., तुम नही जानते ये क्या क्या गुल खिला रही है…? हमारी नाक के नीचे ये हमारी इज़्ज़त को सरे बाज़ार नीलाम करके आ रही है…!

लाला जी – तुम जानती भी हो क्या कह रही हो..? ये इल्ज़ाम उस बेचारी पर किस बिना पर लगा रही हो..?

सेठानी – उउन्न्ह..बेचारी.., तो पुछो इस बेचारी से ये भोला के घेर में क्या करने गयी थी.., और ये पहली मर्तबा नही है.., ना जाने कब से ये उस आधे पागल आदमी से चुद रही है…!

लाजो को अपना भंडा फूटता देख उसकी टाँगें काँपने लगी, उसका खड़ा रहना मुश्किल होने लगा.., सो वो फुट-फूटकर रोते हुए वहीं ज़मीन पर बैठ गयी…!

लाला जी उसे सहारा देने की गर्ज से जैसे ही आगे बढ़े.., सेठानी गरज कर बोली – खबरदार जो तुमने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो, अब ये एक पल भी इस घर में नही रहेगी…!

लाजो ने हिम्मत करके रोते हुए कहा – ये सरासर झूठ है.., किसी ने मेरे उपर झूठा इल्ज़ाम लगाया है.., ये भोला कॉन है.., मे तो जानती तक नही..?

लाजो की बात सुनकर जहाँ लाला जी ने सेठानी को देखा.., वहीं सेठानी लपक कर लाजो के पास पहुँची और उसके बाल पकड़कर खड़ा करते हुए बोली –

मुझे झूठा ठहरा रही है साली कुतिया.., कुलटा.., किसी और ने नही.., मेने खुद अपनी आँखों से कुछ देर पहले तुझे उस पागल के मूसल जैसे लंड से चुद’ते हुए देखा है..,

कह दे मेरी आँखों को भी धोखा हुआ होगा.., वो तू नही कोई और होगी.., क्यों…!

सेठानी के मुँह से ये खुलासा होते ही जहाँ लाला जी का मुँह खुला का खुला रह गया.., वहीं लाजो ने हथियार डालते हुए सेठानी के पैर पकड़ लिए..,

रोते गिडगिडाते हुए बोली – मुझसे ग़लती हो गयी सासू जी.., मुझे माफ़ कर दीजिए..!

सेठानी – ये ग़लती नही.., तेरे जिस्म की आग है जो तुझे खींचकर हवेली के बाहर तक ले गयी.., एक आधे पागल तक को नही छोड़ा तूने तो और ना जाने कितने होंगे,

हमें तेरी जैसी बहू नही चाहिए.., अब जल्दी से अपना समान उठा और चलती बन यहाँ से वरना.. नौकरों से धक्के मार-मारकर निकलवाउंगी…!

मे नही चाहती कि ये बात किसी को पता चले.., इसलिए शांति से कह रही हूँ, तू अभी इसी वक़्त इस घर से चली जा…!

लाला जी किसी पत्थर की मूरत बने खड़े सिर्फ़ तमाशा ही देख रहे थे.., ऐसे मामले में उनका बोलना भी ठीक नही था.., इनमें से अगर किसी का भी पक्ष लेते हैं तो बात और बिगड़ सकती है..,

ये भी हो सकता है कि कहीं उनकी ही पोल ना खुल जाए, अतः उन्हें यहाँ से सरकने में ही अपनी भलाई दिखी…!

सेठ जी को वहाँ से जाते देख लाजो की रही सही आशा भी धूमिल होती लगी.., अब उसके पास अपना समान उठाने के अलावा और कोई चारा नज़र नही आया.., सो वो अपना संदूक उठाते हुए बोली –

ठीक है सासू जी.., मे तो यहाँ से चली जाती हूँ, लेकिन जाते जाते एक बात कहे जाती हूँ.., कि सारा दोष मेरा नही, दोष तुम्हारे उस नपुंश्क बेटे का है..,

अगर वो मेरी आग बुझा पाता तो मे आज बाहर नही जाती.., और एक बात..तुमने सही कहा.. कि और कितने होंगे.., तो उनमें से एक तुम्हारे प्यारे पातिदेव भी हैं, जो अभी अभी दम दबाकर यहाँ से सटक लिए…!

सेठानी मुँह फाडे उसके थोबडे को देखती रह गयी.., उसे अपने कानों पर विश्वास नही हुआ.., लेकिन फिर भी वो भभके हुए स्वर् में बोली – जा साली छिनाल अपनी करनी दूसरों पर तो मढ़ेगी ही…!

अपने ससुर पर झूठा आरोप माढते हुए लज़्ज़ा नही आई.., और रही बात मेरे बेटे की.., तो दूसरी के एक बेटी और अब दूसरा बेटा कैसे होने वाला है…!

लाजो – विस्वास ना हो तो अपने पति से पुच्छ लेना.., हां ये बात ज़रूर मेरी समझ में नही आ रही कि सुषमा कैसे गर्भवती हुई..,

खैर तुझे तेरा नपुंश्क बेटा मुबारक, अब मे भी उसके साथ नही रहना चाहती..!

ये कहकर लाजो अपना संदूक उठाकर हवेली से निकल गयी.., बिना ये सोचे समझे कि अब वो जाएगी कहाँ..? रहेगी कहाँ..? उसके पास तो इस समय फूटी कौड़ी भी नही थी..,

लेकिन इस समय उसके सोचने समझने की शक्ति बिल्कुल गायब थी.., बस रोष में आकर वो हवेली से निकल गयी…!
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10-16-2019, 02:51 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लाला धरमदास अपनी गद्दी पर आकर बैठ तो गये, लेकिन उनके दिलो-दिमाग़ में इस समय भारी उथल-पुथल मची हुई थी..,

उन्हें ये तो पता था कि लाजो एक महा चुदक्कद औरत है, जब वो अपने साडे-साती लंड से उसे तृप्त नही कर पाते थे, तो भला कल्लू की नूनी उसका क्या कर पाती होगी..,

लेकिन उन्हें कहीं ना कहीं ये भी नागवार गुजरा था कि वो उनके घर की इज़्ज़त को ताक पे रखके भोला जैसे आधे पागल आदमी से चुद रही थी..,

अब अगर कहीं लाजो ने गुस्से में आकर उनका भंडा सबके सामने फोड़ दिया तो…?

सेठानी को तो वो कैसे भी करके संभाल लेंगे, लेकिन अगर उनके संबंध अगर लोगों के सामने उजागर हो गये तो…, सोच कर ही वो अंदर तक हिल उठे…!

वो अपनी इसी उधेड़-बुन में अपना सिर हाथों में लिए बैठे थे कि तभी उन्हें लाजो अपना संदूक लटकाए हवेली से बाहर जाती हुई दिखाई दी…!

उसकी चाल देखकर ही वो समझ गये कि ये गुस्से में निकली है, सेठानी ने जिस तरह से उसे जलील करके हवेली से निकाला है, ज़रूर कुछ ना कुछ वो भी खरी-खोटी सुनाकर ही गयी होगी…!

ये भी हो सकता है कि उसने सेठानी के सामने अपने रिस्ते को भी उजागर कर दिया हो.., जो कभी भी बॉम्ब की तरह सेठानी द्वारा उनके सिर पर फूटने वाला है…!

लेकिन तभी उनके दिमाग़ में आया, जब सेठानी ने लाजो को घर के अंदर तक नही घुसने दिया, तो इस समय इसके पास पैसे भी नही होंगे, इतनी भरी दोपहरी में ये बेचारी कहाँ भटकेगी..?

कहीं ना कहीं लाला के दिल ने अपने गुप्त रिस्ते की दुहाई देते हुए कहा – धरमदास तुझे इसकी मदद करनी चाहिए, वरना ये बेचारी कहाँ कहाँ भटकती फ़िरेगी..?

ये भी हो सकता है कि किसी ग़लत हाथों में पड़कर और ज़्यादा इसकी जिंदगी बर्बाद ना हो जाए.., ये विचार आते ही वो लपक कर उठे, फ़ौरन रंगीली के पास पहुँचे और उसे सारी वस्तुस्थिति से अवगत कराया…!

रंगीली को भी उनकी बात जायज़ लगी, फिर उन्होने उसे कुछ रकम दी और बोले – ये लो रंगीली, ये इतने पैसे हैं कि लाजो कहीं भी रहकर अपना गुज़ारा कर सकती है..,

इन्हें ले जाओ और उसे किसी ऐसी जगह पहुँचा दो जिससे वो किसी ग़लत रास्ते पर ना चली जाए और अपना जीवन बसर कर सके..,


क्योंकि अब शायद इस घर के दरवाजे उसके लिए हमेशा के लिए बंद ही समझो..,

सेठानी उसे अब कभी भी इस घर में नही रहने देगी.., और हां ! हो सके तो उसको समझा देना कि अपना मुँह हमेशा के लिए बंद ही रखे,


आगे भी अगर उसे किसी चीज़ की ज़रूरत होगी उसे हम पूरा करते रहेंगे…!
अब तुम जल्दी से जाओ वरना भटकती हुई वो कहीं इधर उधर ना निकल जाए…!

इतना समझाकर लाला जी अपनी गद्दी की तरफ बढ़ गये और रंगीली रकम के थैले को लेकर लाजो की खोज में जो इस समय गाओं के बस अड्डे की तरफ बढ़ी चली जा रही थी..!

तैश-तैश में वो निकल तो आई थी, लेकिन अब उसके दिमाग़ ने सोचना शुरू किया.., एक घने से पेड़ की छाँव में बैठकर वो सोचने लगी…!

इतनी बड़ी दुनिया में अब वो जाएगी कहाँ ? अपने माँ-बाप के घर जाए तो किस मुँह से और क्या कहेगी…?

हाथ में फूटी कौड़ी नही, करे तो क्या करे, पल भर में वो घर से बेघर हो चुकी थी.., उसके अंतर मन में एक तरह का अंधड़ सा मचा हुआ था…!

ज़िल्लत और हिकारत से भरी जिंदगी बिना पैसों के कहाँ और कैसे गुजारेगी..? एक बार उसके मन में आया कि लौट चले हवेली और कर्दे हंगामा खड़ा..,

कर्दे सेठ-सेठानी को समाज के सामने नंगा..., फिर कहीं से उसके मन के कोने में छुपी बैठी अच्छाई बोली – ये तू क्या करने जा रही है करम्जलि..,

तुझे तो फिर भी ज़िल्लत ही उठानी पड़ेगी.., अभी कम से कम लोगों को जो बातें पता नही हैं वो सबको पता लग जाएँगी, क्या मुँह लेकर समाज में रहेगी..!

तो फिर क्या करूँ..मे..? कहाँ जाउ..? उसका मॅन कुंठा से भर उठा..,

लानत है ऐसी जिंदगी पर.., इससे तो मर जाना अच्छा.., ये विचार करते ही वो गाओं के बाहर बने उस कुए की तरफ बढ़ चली जहाँ से लगभग आधा गाओं पानी लाता था..,

दोपहर होने के कारण चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, गर्मी से बचने के लिए लोग अपने अपने घरों में छुपे बैठे थे…!

अंतर्मन में उठ रहे विचारों के अंधड़ में फाँसी लाजो के कदम कुए की तरफ बढ़े चले जा रहे थे.., संदूक को वो वहीं भूल चुकी थी..,

कुए के पास पहुँच कर एक बार वो ठिठकी.., मन में कहीं ना कहीं डर ने आ घेरा.., नही तू ये ग़लत कर रही है.., सोच तेरे मरने से भी क्या होगा..? बातें तो फिर भी उठेंगी…!

फिर दूसरे ही पल.., उठी हैं तो उठें.., मुझे अब कोई फरक नही पड़ता.., ऐसा दृढ़ निश्चय करके वो कुए की मुंडेर पर जा खड़ी हुई.., एक बार कुए के अंदर झाँका..,

किसी बड़ी सी तली के समान 60-70 फुट गहरे पानी की सतह उसे दिखाई दी.., कस कर आखें बंद करके उसने भगवान को याद किया और कुए में छलान्ग लगाने को आगे बढ़ी…!
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