Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
10-18-2020, 12:48 PM,
#1
Star  Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
वारिस (थ्रिलर)


Chapter 1
कोकोनट ग्रोव गणपतिपुले के समुद्रतट पर स्थित एक हॉलीडे रिजॉर्ट था जिसे कि उस प्रकार के कारोबार के स्थापित मानकों के लिहाज से मामूली ही कहा जा सकता था लेकिन क्योंकि वो मुम्बई से कोई पौने चार सौ किलोमीटर दूर एक कदरन शान्त, छोटे लेकिन ऐतिहासिक महत्व के इलाके में था और आसपास वैसा हॉलीडे रिजॉर्ट या रत्नागिरि में था या फिर जयगढ में था । इसलिये उसके मौजूदा मुकाम पर मामूली होते हुए भी उसकी अहमियत थी । वो हॉलीडे रिजॉर्ट ऐन समुद्रतट पर अर्धवृत्त में बने कॉटेजों का एक समूह था जहां आसपास मौजूद शिवाजी महाराज के वक्त के बने कई किलों को देखने वाले सैलानी तो आते ही थे, मुम्बई की अतिव्यस्त और तेज रफ्तार जिन्दगी से उकताये और उससे निजात पाने के ततन्नाई लोग भी आते थे जिसकी वजह से वो डेढ दर्जन कॉटेजों वाला हॉलीडे रिजॉर्ट अमूमन फुल रहता था । उसके सड़क की ओर वाले रुख पर एक वैकेन्सी/नो वैकेन्सी वाला निओन साइन बोर्ड लगा हुआ था जिसका अमूमन ‘नो वैकेन्सी’ वाला हिस्सा ही रोशन दिखाई देता था ।

उस रिजॉर्ट के मालिक का नाम बालाजी देवसरे था जिसकी पचपन साला जिन्दगी की हालिया केस हिस्ट्री ऐसी थी कि उसके सालीसिटर्स की राय में मुम्बई से इतनी दूर वैसी जगह पर उसे तनहा नहीं छोड़ा जा सकता था क्योंकि वो अपनी इकलौती बेटी सुनन्दा की दुर्घटनावश हुई मौत के बाद से दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुका था । सालीसिटर्स की फर्म का नाम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स था, जिसके ‘एण्ड एसोसियेट्स’ वाले हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाला युवा, ट्रेनी, वकीलों में से एक मुकेश माथुर था जिसको फर्म के सीनियर पार्टनर नकुल बिहारी आनन्द उर्फ बड़े आनन्द साहब की हिदायत थी - हिदायत क्या थी, नादिरशाही हुक्म था - कि वो उनके आत्मघाती प्रवृति वाले क्लायन्ट को कभी अकेला न छोड़े और इस हिदायत पर मुकम्मल अमल के लिये उसका भी क्लायन्ट के साथ हॉलीडे रिजॉर्ट में रहना जरूरी था ।

आम हालात में मुकेश माथुर उसे कोई बुरी पेशकश न मानता जिसमें कि नौकरी की कम और तफरीह की ज्यादा गुंजाइश थी लेकिन हालात उसके लिये आम इसलिये नहीं थे क्योंकि छ: महीने पहले उसने मोहिनी माथुर उर्फ टीना टर्नर नाम की एक परीचेहरा हसीना से शादी की थी जो कि कभी ब्रांडो की बुलबुलों में से एक थी और जिससे उसकी मुलाकात अपनी पिछली असाइनमेंट के दौरान गोवा में पणजी से पचास किलोमीर्टर दूर स्थित फिगारो आइलैंड पर हुई थी जहां कि बुलबुल ब्रांडो नामक धनकुबेर का आलीशान मैंशन था और जहां कि सालाना रीयूनियन ग्रैंड पार्टी के सिलसिले में उसकी कई बुलबलें इकट्ठी हुई थीं और जिस पार्टी का समापन दो बुलबुलों के कत्ल से हुआ था । अब उसकी बीवी पांच मास से गर्भवती थी और मुम्बई में उसकी मां के हवाले थी । मुकेश माथुर का खयाल था कि ऐसे वक्त पर उसे मुम्बई में अपनी बीवी के करीब होना चाहिए था - या बीवी को भी वहां उसके साथ होना चाहिये था - लेकिन उसके हिटलर बॉस बड़े आनन्द साहब के हुक्म के तहत दोनों ही बातें नामुमकिन थीं लिहाजा नवविवाहिता बीवी के वियोग का सताया भावी पिता युवा एडवोकेट मुकेश माथुर उस शान्त रिजॉर्ट और खूबसूरत समुद्रतट का वो आनन्द नहीं उठा पा रहा था जो कि हालात आम होते तो वो यकीशनन उठाता ।\

मुकेश माथुर के पिता भी एडवोकेट थे और अपनी जिन्दगी में आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स से ही सम्बद्ध थे । वस्तुत: साढे तीन साल पहले उनकी मौत के बाद उन्हीं की जगह उसे दी गयी थी जबकि, बकौल बड़े आनन्द साहब, अपने पिता के मुकाबले में वो अभी एक चौथाई वकील भी नहीं बन पाया था, अभी वकीलों की उस महान फर्म में उसका ट्रैक रिकार्ड बस ‘ऐवरेज’ था ।

विनोद पाटिल वो शख्स था जो तीन जुलाई की शाम को वहां पहुंचा था और उसने आकर उस शान्त हॉलीडे रिजॉर्ट के ठहरे पानी में जैसे पत्थर फेंका था । वो कोई तीस साल का लम्बा ऊंचा, गोरा चिट्टा युवक था जो कि डेनिम की एक घिसी हुई जींस और काले रंग की चैक की कमीज पहने वहां पहुंचा था । सुनन्दा की जिन्दगी में वो उसका पति था - यानी कि रिजॉर्ट के मालिक बालाजी देवसरे का दामाद था - और वो ही सुनन्दा की असामयिक मौत की वजह बना था । मुम्बई में एक कार एक्सीडेंट को उसने यूं अंजाम दिया था कि एक्सीडेंट में खुद उसको तो मामूली खरोंचें ही आयी थीं जो कि चार दिन में ठीक हो गयी थीं लेकिन सुनन्दा की जिसमें ठौर मौत हो गयी थी । अपनी इकलौती बेटी की मौत ने बालाजी देवसरे को ऐसा झकझोरा था कि दो बार वो आत्महत्या की नाकाम कोशिश कर चुका था और अभी तीसरी बार फिर कर सकता था इसलिये अब मुकेश माथुर उसका बड़े आनन्द साहब की इस सख्त हिदायत के साथ जोड़ीदार बना हुआ था कि देवसरे आत्महत्या की कोई नयी कोशिश हरगिज न करने पाये ।
Reply
10-18-2020, 12:48 PM,
#2
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
विनोद पाटिल ने कुछ क्षण अपलक कोकोनट ग्रोव हॉलीडे रिजॉर्ट का मुआयना किया जहां कि तब पहली बार उसके पांव पड़ रहे थे और पिर उस कॉटेज की ओर बढा जिसमें रिजॉर्ट का ऑफिस था और रिजॉर्ट के मैनेजर माधव घिमिरे का आवास था ।

घिमिरे उस वक्त कम्प्यूटर पर रिर्जार्ट के एकाउन्ट्स चैक कर रहा था जबकि पाटिल ने शीशे का दरवाजा ठेल कर भीतर कदम रखा । घिमिरे ने कम्प्यूटर स्क्रीन पर से निगाह हटाई, अपने रीडिंग ग्लासिज उतार कर की-बोर्ड के करीब रखे और फिर प्रश्नसूचक नेत्रों से आगन्तुक की तरफ देखा ।

“विनोद पाटिल ।” - वो बोला - “मुम्बई से रिजर्वेशन के लिये ई-मेल भेजी थी । कूरियर से दो हजार रुपया एडवांस भी भेजा था ।”

“जी हां, जी हां ।” - तत्काल घिमिरे व्यवसायसुलभ तत्पर स्वर में बोला - “सात नम्बर कॉटेज आपके लिये रिजर्व है । पहले देखना चाहेंगे ।”

“क्या जरूरत है ?” - पाटिल लापरवाही से बोला - “ठीक ही होगा ।”

“ठीक ही है । ये एक्सक्लूसिव रिजॉर्ट है इसलिये....”

“आई अन्डरस्टैण्ड । बालाजी देवसरे मालिक हैं न इसके ?”

“जी हां ।”

“सुना है वो भी यहीं रहते हैं ।”

“ठीक सुना है ।”

“इस वक्त हैं यहां ?”

“मेरे खयाल से हैं । दिन में फिशिंग के लिये गये थे लेकिन शायद लौट आये हुए हैं ।”

“हूं ।”

घिमिरे ने उसके सामने रजिस्ट्रेशन कार्ड रखा ।

पाटिल ने कार्ड पर अपना नाम और मुम्बई का एक पता दर्ज कर दिया ।

घिमिरे ने की-बोर्ड पर से एक चाबी उतारी और बोला - “आइये ।”

पाटिल उसके साथ हो लिया ।

कॉटेज एक ब्लाक में चार चार की सूरत में बने हुए थे । हर कॉटेज की उसके पहलू में या पिछवाड़े में अपनी कार पार्किंग भी और सामने लॉन से पार एक बाजू में जनरल पार्किंग भी थी । दूसरे बाजू में सत्कार नामक एक रेस्टोरेंट था ।

पाटिल ने अर्धवृत्त में बने तमाम कॉटेजों पर निगाह डाली और फिर बोला - “प्रोप्राइटर साहब का कॉटेज कौन सा है ?”

घिमिरे ने एक कॉटेज की ओर संकेत किया ।

पाटिल ने नोट किया कि उसमें प्रवेश द्वार दो थे ।

“दो दरवाजे किस लिये ?” - उसने सवाल किया ।

“दरअसल वो आपस में जुड़े दो कॉटेज हैं ।” - घिमिरे बोला - “भीतर दोनों के बीच में भी एक दरवाजा है जिसे खोल दिया जाये तो दोनों को एक कॉटेज की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है । कोई बड़ा परिवार या बड़ा ग्रुप आ जाये तो यूं उन्हें सहूलियत होती है ।”

“आई सी । तो आजकल दो कॉटेज एक की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं ! बड़ी फैमिली तो है नहीं उनकी -फैमिली ही नहीं है - जरूर कोई खास मेहमान आ गये होंगे !”

“ऐसी कोई बात नहीं ।”

“तो ?”

“एक कॉटेज में मिस्टर मिकेश माथुर हैं ।”

“वो कौन हए ?”

“मिस्टर देवसरे के एडवोकेट हैं ।

“पक्के यहीं रहते हैं ?”

“पक्के तो नहीं रहते लेकिन आजकल ऐसा ही है ।”

“वजह ?”

घिमिरे ने वजह बयान करने की कोशिश न की ।

“दोनों दरवाजों में से मिस्टर देवसरे का दरवाजा कौन सा है ?”

“दायां ।” - घिमिरे बोला - “लेकिन बायें से भी दाखिल हुआ जा सकता है ।”

“क्योंकि दोनों के बीच में कम्यूनीकेशन डोर है ?”

“हां ।”

“जो कि खुला रहता है ?”

“अमूमन ।”
Reply
10-18-2020, 12:49 PM,
#3
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“वजह ?”

“मिस्टर पाटिल, आप इस बाबत कुछ ज्यादा ही सवाल कर रहे हैं !”

“ऐसी कोई बात नहीं ।” - पाटिल लापरवाही से बोला - “आपको ऐसा लगता है तो... तो लीजिये, मैं खामोश हो जाता हूं ।”

देवसरे के कॉटेज के जालीदार दरवाजे के पीछे से मुकेश माथुर वो तमाम नजारा कर रहा था अलबत्ता उस घड़ी उसे मालूम नहीं था कि बाहर मैनेजर के साथ मौजूद शख्स देवसरे का दामाद विनोद पाटिल था । देवसरे उस वक्त उसके पीछे ड्राइंगरूम में मौजूद था । उसका उस रोज का फिशिंग का साथी मेहर करनानी भी वहां मौजूद था । दोनों उस घड़ी जिन एण्ड टॉनिक का आनन्द ले रहे थे ।

देवसरे अपनी उम्र के लिहाज से एक तन्दुरुस्त शख्स था जिसे प्रत्यक्षतः कोई अलामत, कोई बीमारी नहीं थी । वो जिस्मानी तौर से नहीं, जेहनी तौर से बीमार था इसलिये उस पर वो पाबन्दियां लागू नहीं होती थीं जो कि किसी जिस्मानी तौर पर बीमार शख्स पर होना लाजमी होता था । लिहाजा वो शाम की चाय की जगह जिन एण्ड टॉनिक भी एनजाय कर सकता था ।

देवसरे एक कामयाब व्यवसायी था और अपनी व्यवसायिक प्रवृत्ति की वजह की वजह से ही मिजाज का कठोर, बेगरज, बेएतबार और कदरन बेरहम था । उसकी जिन्दगी की कभी कोई कमजोर कड़ी थी तो वो उसकी बिन मां की बेटी सुनन्दा थी जिसकी मां बन के उसने परवरिश की थी । लेकिन फिर भी पता नहीं कहां कसर रह गयी थी कि जब वो मुम्बई में एलफिंसटन कॉलेज में पढती थी तो विनोद पाटिल नामक एक नाकाम थियेटर एक्टर से दिल लगा बैठी थी और वो दिल की लगी उसकी मर्जी के खिलाफ कोर्ट मैरेज की वजह बनी थी । देवसरे वो झटका किसी तरह झेल ही चुका था जबकि उसे अपनी जिन्दगी का सबसे बड़ा झटका लगा ।

सुनन्दा एक रोड एक्सीडेंट में - जो कि सरासर उसके नामुराद खाविंद का लापरवाही से हुआ था - जान से हाथ धो बैठी ।

वो ही एक झटका था जो देवसरे बर्दाश्त न कर सका, जिसने उसके मुकम्मल वजूद को तिनका तिनका करके बिखरा दिया । तब उसे फौरन नर्सिंग होम में भरती न कराया गया होता तो शायद वो दीवारों से सिर टकरा टकरा के मर जाता । नार्सिंग होम में वो एक मनोचिकित्सक की देखरेख में रखा गया कुछ दिनों बाद जिसने उसकी हालत में सुधार की बड़ी तसल्लीबखश रिपोर्ट दाखिलदफ्तर की ।

जल्दी ही उस तसल्लीबख्श रिपोर्ट का खोखलापन उजागार हो गया ।

देवसरे ने अपने नर्सिंग होम के आठवीं मंजिल के कमरे की बालकनी से बाहर कूद जाने की कोशिश की ।

ऐन वक्त पर नर्स वहां न पहुंच गयी और उसने बला की फुर्ती दिखाते हुए पीछे से उसकी कमीज न जकड़ ली होती तो देवसरे अपनी जन्नतनशीन बेटी के रुबरु उसका हालचाल पूछ रहा होता ।

फौरन उसे ग्राउन्ड फ्लोर के एक कमरे में शिफ्ट किया गया जहां तीन दिन वो ठीक रहा फिर एक रात नर्सिंग स्टेशन से सिडेटिव की गोलियों से तीन चौथाई भरी एक शीशी चुराने में और तमाम गोलियां निगल जाने में कामयाब हो गया । तब भी किसी तरीके से उसकी वो हरकत नाइट डयूटी पर तैनात हाउस सर्जन की जानकारी में आ गयी और तत्काल स्टोमक पम्प से उसका पेट खाली करके उसे बचा लिया गया ।

उस दूसरी वारदात के बाद नर्सिग होम वालों ने हाथ खड़े कर दिये तो उसे उसे मानसिक विकारों के स्पैशलिटी हस्पताल ट्रॉमा सेन्टर में शिफ्ट किया गया जहां की दो महीने की मेडिकल और साईकियाट्रिक देखभाल के बाद वो नार्मल हुआ । तब डाक्टरों ने उसे सलाह दी कि वो किसी ऐसे कारोबार में मन लगाये जो कि आमदनी का जरिया हो न हो, मसरुफियत और मनबहलाव का जरिया बराबर हो ।

नतीजतन वो उस हॉलीडे रिजॉर्ट में पहुंच गया जो कि उसकी बेटी की मौत से पहले से उसकी मिल्कियत था । डॉक्टरों ने भले ही उसकी ‘कम्पलीट रिकवरी’ को सर्टिफाई कर दिया था लेकिन उसके सालीसिटर्स और वैलविशर्स आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेटस को फिर भी अन्देशा था कि अभी वो फिर आत्महत्या की कोशिश कर सकता था । वो ऐसी कोशिश न कर पाये, इसी बात को सुनिश्चित करने के लिये मुकेश माथुर को उसके साथ अटैच किया गया था क्योंकि, बकौल, बड़े आनन्द साहब, उसकी वकालत अभी बहुत कमजोर थी लेकिन एक उम्रदराज शख्स की निगाहबीनी करने का काम तो वह कर ही सकता था या वो भी नहीं कर सकता था ।

गोली लगे कम्बख्त को - मुकेश माथुर दांत पीसता सोचता रहा था - जो वकालत और चौकीदारी में कोई फर्क ही नहीं समझना चाहता था, जिसको इस बात भी लिहाज नहीं हुआ था कि उसकी शादी हुए सिर्फ छः महीने हुए थे और उसकी बीवी और चार महीनों पहला बच्चा जनने वाली थी ।

बहरहाल उस रिजॉर्ट ने, वहां के खूबसूरत बीच ने और आसपास उपलब्ध मनोनंजन के साधनों ने देवसरे पर अपना अच्छा असर दिखाया था; वो टेनिस खेलने में, फिशिंग में और नजदीकी ब्लैक पर्ल में काडर्स खेलने या रौलेट व्हील पर दांव लगाने में मशगूल रहता था और साफ जाहिर होता था कि अपनी बेटी के साथ हुई ट्रेजेडी को वो धीरे धीरे भूलता जा रहा था । इसका ये भी सबूत था कि अब वो माथुर के हमेशा ‘अपनी पूंछ से बन्धे रहने’ से एतराज करने लगा था और ऐसी किसी तवज्जो को गैरजरूरी बाताने लगा था । और तो और वो लोगों के सामने मुकेश माथुर को ‘मेल नर्स’ या ‘शरीकेहयात’ कह कर हलकान करने लगा था । जवाब में अभी कल ही मुकेश माथुर ने बड़ी संजीदगी से उसे समझाया था कि उसकी सोहबत को दरकिनार करने का अख्तियार उसे नहीं था, अगर वो उससे इतना ही बेजार था तो उस बाबत बड़े आनन्द साहब से बात करनी चाहिये थी जो कि उसके दोस्त और मोहसिन थे और माथुर के बॉस थे । उसने ये तक कहा था कि अगर देवसरे उसे वाहियात, नाकाबिलेबर्दाश्त असाइनमेंट से निजात दिला पाता तो वो जाती तौर पर उसका अहसानमन्द होता । जवाब में अगली सुबह ही देवसरे ने नकुल बिहारी आनन्द से बात करने की पेशकश की थी लेकिन पता नहीं कि उसने ऐसा किया था या नहीं ।

बहरहाल अब खुद वो भी अपनी रिपोर्ट पेश कर सकता था कि देवसरे अब बिल्कुल ठीक था और उसे किसी कि मुतवातर निगाहबीनी की जरुरत नहीं थी ।

उस रमणीय बीच रिजॉर्ट से जल्दी निजात पाने की एक वजह और भी थी ।

उस वजह का नाम रिंकी शर्मा था ।
Reply
10-18-2020, 12:49 PM,
#4
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
रिंकी शर्मा कोई तेईस चौबीस साल की भूरी आंखों और सुनहरी बालों वाली खूबसूरत लड़की थी और ‘सत्कार’ की मैनेजर थी ।

वो एक खुशमिजाज लड़की थी जो पहले ही दिन से मुकेश से खास मुतासिर दिखाई देने लगी थी । देवसरे की निगाहबीनी की एकरसतापूर्ण और बोर डयूटी में उसे भी उसमें बहुत रस आने लगा था जो कि गलत था, नाजायज था क्योंकि रिंकी को जब पता चलता कि वो शादीशुदा था और बहुत जल्द एक बच्चे का बाप बनने वाला था तो माहौल तल्ख और बदमजा हुए बिना न रहता । लिहाजा अनायास किसी सम्मोहन में जकड़े जाने से पहले उसका वहां से कूच कर जाना ही श्रेयस्कर था ।

“आया !”

देवसरे की तीखी आवाज चाबुक की फटकार की तरह उसके जेहन से टकराई ।

तब तक उसकी निगाह का मरकज, मैनेजर के साथ चलता युवक, सात नम्बर कॉटेज में हो आया था और अब देवसरे के कॉटेज की ओर बढ़ रहा था ।

मुकेश माथुर घूमा, उसने होंठों को जबरन फैलाकर मुस्कराते होने का भ्रम पैदा किया और प्रश्नसूचक नेत्रों से देवसरे की तरफ देखा ।

“सिन्धी भाई की मर्जी है” - देवसरे अपना खाली गिलास उसे दिखाता हुआ बोला - “कि एक एक जिन और टॉनिक और हो जाये ?”

मुकेश ने करनानी की तरफ देखा ।

“इफ यू डोंट माइन्ड ।” - करनानी दान्त निकालता बोला ।

साला ! छाज तो बोले ही बोले, छलनी भी बोले ।

रिजॉर्ट में देवसरे के साथ उसकी आमद से अगले रोज ही मेहर करनानी वहां पहुंच गया था और लगभग फौरन ही उसकी देवसरे से गाढी छनने लगी थी । मुकेश उसके बारे में बस इतना ही जान पाया था कि वो पुलिस के खुफिया विभाग से मैडीकल ग्राउन्ड्स पर वक्त से पहले अवकाश प्राप्त शख्स था और अब - बकौल उसके - किसी माकूल कारोबार की तलाश में था ।

माकूल कारोबार की तलाश वहां उस रिजॉर्ट में ! मछली मारते ! टेनिस खेलते ! पत्ते पीटते ! ड्रिंक करते !

उम्र में वो कोई चालीस साल का था, उसकी निगाह पैनी थी और जिस्म कसरती था । ऐसा शख्स अपने आपको मैडीकल ग्राउन्ड्स पर पुलिस से रिटायर हुआ बताता था । क्या मैडीकल ग्राउन्ड्स मुमकिन थीं ! हट्टा कट्टा तो था । पट्टा रोज दो घण्टे टेनिस खेलता था, स्विमिंग करता था, छ: ड्रिंक्स से कम में उसकी दाढ नहीं गीली होती थी और तन्दूरी मुर्गा यूं चबाता था जैसे मूंगफली खा रहा हो ।

“नो” - वो बोला - “आई डोंट माइन्ड ।”

“थैंक्यू ।” - करनानी बोला ।

मुकेश ने दोनों के खाली गिलास सम्भाले और उन्हें जिन एण्ड टॉनिक के नये जामों से नवाजा ।

तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।

“कम इन ।” - देवसरे बोला ।

आगन्तुक ने भीतर कदम रखा तो उस पर निगाह पड़ते ही देवसरे के नेत्र फैले ।

“पाटिल !” - वो हैरानी से बोला ।

“हल्लो !” - पाटिल वहां मौजूद तीनों सूरतों पर निगाह फिराता बोला - “गुड ईवनिंग ।”

“यहां कैसे पहुंच गये ?” - देवसरे पूर्ववत हैरानी से बोला ।

“बस, पहुंच गया किसी तरह ।”

“वजह ?”

“आपसे मिलने के अलावा और क्या हो सकती है ?”

“कैसे जाना कि मैं यहां हूं ?”

“बस, जाना किसी तरह से ।”

“कैसे ?”

“मुम्बई में आपके सालीसिटर्स के ऑफिस से खबर निकाली ।”

“इस जहमत की वजह ?”

“वो तो न होगी जो ऐसे मामलों में अमूमन समझी जाती है ।”

“मतलब ?”

“आपकी मुहब्बत नहीं खींच लायी ।”

“वो तो जाहिर है । असल वजह बयान करो आमद की ।”
Reply
10-18-2020, 12:49 PM,
#5
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“असल वजह की मद में मेरे पास आपके लिये अच्छी खबर भी है और बुरी खबर भी है । पहले कौन सी सुनेंगे ?”

“ओह, कैन दि थियेट्रिकल्स । ये स्टेज नहीं है । न ही मैं किसी नाकाम एक्टर की नाकाम परफारमेंस देखने का तमन्नाई हूं । सो कम टु दि प्वायन्ट ।”

“ओके । अच्छी खबर ये है कि मैं अभी भी आपका दामाद हूं ।”

“हं हं !” - देवसरे के स्वर में तिरस्कार का स्पष्ट पुट था ।

“ये हकीकत है कि....”

“खुशफहमी मत पालो, बरखुरदार । मैंने तो तुम्हें तब अपना दामाद नहीं माना जब मेरी बेटी जिन्दा थी, अब तो....”

“आपके मानने या न मानने से क्या होता है ?”

“होता है ।”

“चलिये ऐसे ही सही । फिर तो बुरी खबर वाकेई बुरी है आपके लिये ।”

“अब कह भी चुको ।”

“बुरी खबर ये है कि मैं यहां रोकड़ा कलैक्ट करने आया हूं ।”

“रोकड़ा ! कैसा रोकड़ा ?”

“वो रोकड़ा जो इस रिजॉर्ट में मेरे हिस्से का दर्जा रखता है ।”

“तुम्हारा हिस्सा ? माथा फिरेला है ?”

“अभी नहीं । आप एक अहम बात भूल रहे हैं कि आपने अपनी बिटिया रानी को यहां के बिजनेस के एक चौथाई हिस्से का वारिस बनाया था ?”

“तो ? उससे तुम्हें क्या मतलब ?”

“अपनी मौत से पहले सुनन्दा ने एक वसीयत ती थी जिसमें उसने मुझे, अपने पति को, अपना इकलौता वारिस करार दिया था । उस वसीयत के तहत आपके इस रिजॉर्ट में उसके मुकर्रर पच्चीस फीसदी हिस्से का हकदार अब मैं हूं । अब आप रिजॉर्ट की मौजूदा कीमत के एक चौथाई हिस्से के बराबर की रकम मुझे दे सकते हैं या एक चौथाई रिजॉर्ट मुझे सौंप सकते हैं ।”

देवसरे एकाएक बेहद खामोश हो गया । अपने हाथ में थमा नया जाम उसने धीरे से सामने मेज पर रख दिया । उसने कुछ क्षण अपलक पाटिल को घूरा लेकिन उसे विचलित होता न पाया तो वो बोला - “कब की उसने ये वसीयत ?”

“एक्सीडेंट से दस दिन पहले ।”

“मुझे यकीन नहीं ।”

“रजिस्टर्ड विल है ।”

“मुझे यकीन नहीं ।”

“मुझे आपसे ऐसी ही ढिठाई की उम्मीद थी इसलिये यकीन दिलाने का सामान मैं साथ ले आया हूं । ये” - उसने जेब से एक तयशुदा कागज निकाल कर देवसरे के सामने टेबल पर डाला - “वसीयत की जेरोक्स कापी है । मुलाहजा फरमाइये ।”

देवसरे ने मेज पर से कागज उठाने का उपक्रम न किया । उसने मुकेश को इशारा किया ।
Reply
10-18-2020, 12:49 PM,
#6
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
मुकेश ने सहमति में सिर हिलाते हुए कागज उठाया और उसे खोल कर उसका गम्भीर अध्ययन किया ।

“ये” - आखिरकार वो बोला - “आपकी बेटी की इसके हक में ऐन चौकस वसीयत है ।”

“पक्की बात ?” - देवसरे संजीदगी से बोला ।

“जी हां ।”

“हूं ।”

वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बड़े यत्न से अपने स्थान से उठकर ड्राईंगरूम और बैडरूम के बीच का खुला दरवाजा लांघकर अपने बैडरूम में पहुंचा । वो बैडरूम की सामनी दीवार के करीब पहुंचा जो कि सागवान की चमचमाती लकड़ी की पैनलों से ढंकी हुई थी, उसने वहां कहीं लगा एक खुफिया बटन दबाया जिसके नतीजे के तौर पर जमीन से चार फुट ऊंची दो गुणा दो फुट की एक पैनल अपने स्थान से हट गयी और उसके पीछे से एक वाल सेफ नुमायां हुई । सेफ पर एक पुश बटन डायल लगा हुआ था, उसने उस पर उसका कम्बीनेशन पंच किया और उसका हैंडल घुमा कर सेफ का दरवाजा खोला । सेफ के भीतर एक और दरवाजा था जिसे उसने अपनी जेब से एक चाबी निकाल कर खोला । यूं खुले दूसरे दरवाजे से भीतर हाथ डाल कर उसने एक दस्तावेज बरामद की और उसे मुकेश को सौंप दिया ।

“जिस जमीन पर ये रिजॉर्ट खड़ा है” - फिर वो यूं बोला जैसे किसी व्यक्तिविशेष से सम्बोधित न हो - “वो मैंने कई साल पहले कौड़ियों के मोल खरीदी थी । तीन साल पहले मैंने इस पर टूरिस्ट रिजॉर्ट बनाने का मन बनाया था तो ऐसा मैंने कमाई को मद्देनजर रख कर नहीं, अपनी और अपने यार दोस्तों और सगे सम्बन्धियों की सुविधा को मद्देनजर रख कर किया था । ये काम मुझे तब इसलिये भारी नहीं पड़ा था क्योंकि तब जो कुछ किया था मेरे लिये भरपूर वफादारी दिखाते हुए माधव घिमिरे ने किया था । उसी वफादारी के ईनाम के तौर पर मैंने घिमिरे को मैनेजर बनाया था और सुनन्दा की तरह उसे भी कमाई के एक चौथाई हिस्से का हकदार बनाया था । अब तुम इस खुशफहमी से मुब्तला यहां आन पहुंचे हो कि सुनन्दा का एक चौथाई का हिस्सा तुम हथिया सकते हो ।”

“खुशफहमी !” - पाटिल विद्रुपपूर्ण स्वर में बोला ।

“यकीनन खुशफहमी । जो कि अभी दूर होती है ।” - वो मुकेश की तरफ घूमा - “वकील साहब, तुम्हारे हाथ डाकूमेंट है वो इन्हीं शर्तों की तसदीक करता एग्रीमेंट है । जरा इस खुशफहम और लालच के हवाले शख्स को बताओ कि एग्रीमेंट क्या कहता है ?”

तब तक मुकेश सरसरी तौर पर एग्रीमेंट की तहरीर से वाकिफ हो चुका था ।

“इसमें रिजॉर्ट के मुनाफे के चार हिस्सों में बंटवारे का प्रावधान है” - मुकेश बोला - “जिनमें से दो हिस्से देवसरे साहब के हैं, एक हिस्सा माधव घिमिरे का है, एक हिस्सा सुनन्दा देवसरे का है - जो कि अब सुनन्दा की वसीयत के तहत उसके पति विनोद पाटिल का है - हिस्से की अदायगी साल में चार बार हर तिमाही के मुकम्मल होने पर होने का प्रावधान है । साथ में ये कनफर्मेशन है कि प्रापर्टी के मालिकाना हकूक इनकी जिन्दगी में सिर्फ और सिर्फ बालाजी देवसरे के होंगे अलबत्ता इनकी मौत की सूरत में प्रापर्टी के पच्चीस पच्चीस फीसदी हिस्से पर घिमिरे और - अब - पाटिल अपना हक कायम कर सकते हैं ।”

“क्या मतलब हुआ इसका ?” - पाटिल हकबकाये स्वर में बोला ।

“मतलब समझ, बेटा ।” - देवसरे व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “इतना नासमझ तो नहीं दिखाई देता तू । या शायद मैं सूरत से धोखा खा रहा हूं ।”

“मिस्टर देवसरे, पहेलियां न बुझाइये, कानूनी नुक्ताचीनी न कीजिये, न किसी दूसरे से कराइये और साफ बोलिये क्या कहना चाहते हैं !”

“ठीक है, साफ सुनो । मेरे जीते जी तुम इस प्रापर्टी के मालिकाना हकूक में हिस्सेदार नहीं बन सकते, तुम सिर्फ इस साल की पहली तिमाही के मुनाफे में से पच्चीस फीसदी का हिस्सा क्लेम कर सकते हो जो मैं तुम्हारे मुंह पर मारने को तैयार हूं लेकिन आइन्दा तुम्हें वो हिस्सा भी नहीं मिलेगा ।”

“क्यों ? क्यों नहीं मिलेगा ?”

“क्योंकि मैं ऐसा इन्तजाम करूंगा ।”

“क्या करेंगे आप ?”

“अभी पता चलता है । माथुर, जरा नेशनल बैंक के मैनेजर अशोक पटवर्धन को फोन लगाओ । इस वक्त” - देवसरे ने वाल क्लॉक पर निगाह डाली - “वो अपने घर पर होगा ।”

सहमति में सिर हिलाता मुकेश माथुर टेलीफोन के हवाले हुआ । बैंक का मैनेजर जब लाइन पर आ गया तो उसने रिसीवर देवसरे को थमा दिया ।
Reply
10-18-2020, 12:49 PM,
#7
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“हल्लो, पटवर्धन !” - देवसरे माउथपीस में बोला - “मैं कोकोनट ग्रोव से बालाजी देवसरे । कैसे हो, भाई ? बढिया... भई, घर पर डिस्टर्ब करने के लिये माफी चाहता हूं लेकिन कोई ऐसी इमरजेंसी आन पड़ी है कि मेरा अपने बैंकर से फौरन सम्पर्क करना निहायत जरूरी हो गया था । वो क्या है कि मैं कोकोनट ग्रोव को बैंक के पास गिरवी रख कर ज्यादा से ज्यादा रकम का कर्जा उठाना चाहता हूं ।.... भई कीमती प्रापर्टी है, चला हुआ ठीया है, आज मजबूरी वाली सेल भी करूं तो डेढ करोड़ से कम तो क्या मिलेगा ! ऐसी प्रापर्टी पर कीमत से आधी रकम का - यूं समझो कि पिचहत्तर लाख का कर्जा तो मिल ही जाना चाहिये ।.... अरे, ब्याज कितना भी लगे, कोई वान्दा नहीं ।... क्या ? चौदह फीसदी ?.... ठीक है । मुझे मंजूर है । मैं चाहता हूं कि कल ही तमाम कागजी कार्यवाही मुकम्मल हो जाये और फिर इसी हफ्ते में मुझे तुम्हारा चैक मिल जाये ठीक है, शुक्रिया । गुडनाइट ।”

उसने रिसीवर वापिस मुकेश को थमा दिया औक एक विजेता के से भाव से पाटिल की तरफ देखा ।

“अब कुछ समझे, बरखुरदार ?” - वो बोला ।

“समझा तो सही कुछ कुछ ।” - पाटिल मरे स्वर में बोला ।

“बस कुछ कुछ ? सब कुछ नहीं ? ठीक है, सब कुछ मैं समझता हूं । तफसील से समझता हूं । पिचहत्तर लाख की कर्जे की रकम पर चौदह फीसदी सालाना ब्याज साढे दस लाख रुपये होता है जिसकी अदायगी इस रिजॉर्ट की सलाना आमदनी में से होगी । वो अदायगी हो चुकने के बाद अव्वल तो पीछे कुछ बचेगा ही नहीं, बचेगा तो वो चिड़िया का चुग्गा ही होगा जिसका एक चौथाई मैं बाखुशी तुम्हारे हवाले कर दूंगा । ओके ?”

पाटिल के मुंह से बोल न फूटा ।

“अब” - देवसरे एकाएक कहरभरे स्वर में बोला - “दफा हो जाओ यहां से और दोबारा कभी मुझे अपनी मनहूस सूरत मत दिखाना ।”

पाटिल अपमान से जल उठा, उसका चेहरा सुर्ख होने लगा, वो यूं दहकती निगाहों से देवसरे को देखने लगा जैसे एकाएक उस पर झपट पड़ने का इरादा रखता हो ।

करनानी ने उसके मूड को भांपा तो वो तत्काल उठ खड़ा हुआ और देवसरे और पाटिल के बीच में आ गया ।

“पुटड़े” - वो धीमे किन्तु दृढ स्वर में बोला - “बड़ों का अदब करते हैं और उनके हुक्म की तामील करते हैं ।”

“क... क्या ?” - पाटिल के मुंह से निकला ।

“क्या क्या ? वही जो मिस्टर देवसरे ने कहा, और क्या ?”

“क्या कहा ?”

“अब क्या खाका खींच के समझायें ? अरे, ठण्डे ठण्डे तशरीफ ले के जा, साईं । बल्कि आ चल मैं तेरे को बाहर तक छोड़ के आता हूं ।”

करनानी ने उसकी बांह थामी तो पाटिल ने बड़े गुस्से से बांह पर से उसका हाथ झटक दिया ।

“सर” - वो देवसरे से सम्बोधित हुआ - “आई हैव ए गुड न्यूज एण्ड ए बैड न्यूज फार यू । गुड न्यूज ये है कि मुझे ये जगह और यहां का खुशगवार मौसम बहुत पसन्द आया है । और बैड न्यूज ये है कि मैंने यहां के कॉटेज नम्बर सात का एडवांस किराया भरा हुआ है जो कि मैंने रिजर्वेशन की रिक्वेस्ट के साथ बाजरिया कूरियर भेजा था इसलिये फिलहाल मुझे यहां से तशरीफ ले जाने के लिये मजबूर करने की कोशिश किसी ने की तो ऐसी फौजदारी होगी कि सब याद करेंगे, खासतौर से आप जनाब” - वो करनानी से बोला - “जो कि नाहक ससुर और दामाद के बीच में आ रहे हैं ।”

“खबरदार जो मुझे ससुर कहा ।” - देवसरे तमक कर बोला - “मैं तुम्हारा ससुर नहीं हूं । पहले भी बोला ।”

“कितनी भी बार बोलिये । जुबानी जमाखर्च से कहीं हकीकत बदलती हैं ।”

“गैट आउट, डैम यू ।”

“यहां से जाता हूं । हिम्मत हो तो रिजॉर्ट से भेज कर दिखाइये ।”

वो घूमा और लम्बे डग भरता वहां से रुख्सत हो गया ।

पीछे कई क्षण सन्नाटा छाया रहा ।

“चलता हूं ।” - फिर करनानी बोला - “क्लब में मुलाकात होगी ।”

देवसरे ने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।

“माथुर” - करनानी बोला - “कहना न होगा कि देवसरे के क्लब में आने से तुम्हारी वहां हाजिरी तो अपने आप ही लाजमी हो जायेगी ।”

“जाहिर है ।” - मुकेश उखड़े स्वर में बोला ।

“अभी उखड़ के दिखा रहा है, पुटड़ा, वहां रिंकी मिल गयी तो बाग बाग हो जायेगा ।”

बात सच थी, फिर भी मुकेश को कहना पड़ा - “सर, आई एम ए हैपीली मैरिड पर्सन ।”

“झूलेलाल ! जैसे हैपी के और हैपी हो जाने पर कोई पाबन्दी आयद होती है ।”

मुकेश खामोश रहा ।
Reply
10-18-2020, 12:50 PM,
#8
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
बालाजी देवसरे टी.वी. पर सात बजे की खबरें देख रहा था जबकि ऑफिस का एक कर्मचारी वहां पहुंचा ।

देवसरे की वो नियमित रुटीन थी, भले ही दुनिया इधर से उधर हो जाये वो शाम सात बजे और ग्यारह बजे की खबरें देखने के लिये अपने कॉटेज में जरूर मौजूद होता था । अपना शाम का हर प्रोगाम - भले ही वो डिनर का हो या ब्लैक पर्ल क्लब जाने का हो - वो इस बात को खास ध्यान में रख कर बनाता था कि खबरें देखने के उसके उस दो बार के प्रोग्राम में कोई विघ्न न आये ।

सात बजे वो ‘आजतक’ पर हिन्दी की खबरें देखता था और ग्यारह बजे ‘स्टार-न्यूज’ पर अंग्रेजी की ।

“आपकी” - कर्मचारी मुकेश से बोला - “ऑफिस के टेलीफोन पर ट्रंककॉल है ।”

“कहां से ?” - मुकेश ने पूछा ।

“मुम्बई से ।”

तत्काल उसके जेहन पर दो अक्स उबरे; एक उसके बॉस का और दूसरा उसकी बीवी का ।

“कौन है ?” - उसने पूछा ।

“पता नहीं साहब । नाम नहीं बताया ।”

“बोलने वाला कोई आदमी था या औरत ?”

“औरत ।”

फिर तो जरूर मोहिनी की कॉल थी ।

“कॉल सुनकर आता हूं ।” - वो देवसरे से बोला ।

देवसरे ने बिना टी.वी. स्क्रीन पर से निगाह हटाये सहमति में सिर हिला दिया ।

मुकेश ने ऑफिस में जाकर कॉल रिसीव की ।

“मिस्टर माथुर ?” - पूछा गया ।

“स्पीकिंग ।”

“लाइन पर रहिये, बड़े आनन्द साहब बात करेंगे ।”

मुकेश ने बुरा सा मुंह बनाया । जो आवाज वो सुन रहा था, वो उसकी बीवी की नहीं उसके बॉस की सैक्रेट्री श्यामली की थी ।

“होल्डिंग ।” - वो बोला ।

कुछ क्षण खामोशी रही ।

“माथुर !” - फिर एकाएक उसके कान में नकुल बिहारी आनन्द का रोबीला, कर्कश स्वर पड़ा ।

“यस, सर ।” - मुकेश तत्परता से बोला - “गुड ईवनिंग, सर ।”

“क्या कर रहे हो ?”

“आपकी कॉल सुन रहा हूं, सर ।”

“अरे, वो तो मुझे भी मालूम है । ऐसी अन्डरस्टुड बात कहने का क्या मतलब ? वो भी ट्रंककॉल पर ! ट्रंककॉल कास्ट्स मनी । मालूम है या भूल गये ?”

“मालूम है, सर ।”

“हमारा क्लायन्ट कैसा है ?”

“मिस्टर देवसरे एकदम ठीक हैं, सर, और अब इतने नार्मल हैं कि मेरे से बेजार दिखाई देने लगे हैं ।”

“बेजार दिखाई देने लगे हैं ! क्या मतलब ?”

“अब वो यहां अपने साथ मेरी मौजूदगी नहीं चाहते ।”

“ऐसा कैसे हो सकता है !”

“सर, ऐसा ही है ।”

“मेरा मतलब है, हमारी तरफ से ऐसा कैसे हो सकता है !”

“जी ! क्या फरमाया ?”

“ये एक नाजुक मामला है । इसमें ये फैसला हमने करना है कि उनके लिये क्या मुनासिब है, और क्या नहीं मुनासिब है । समझे ?”

“जी हां ।”

“मेरे समझाने से समझे तो क्या समझे ? ये बात तुम्हें खुद समझनी चाहिये थी ।”

“अब पीछा छोड़, कमबख्त ।” - मुकेश दान्त पीसता होंठों में बुदबुदाया ।

लेकिन बुढऊ के कान बहुत पतले थे ।

“माथुर ! ये अभी मैंने क्या सुना ?”

“क्या सुना, सर ?”

“तुम मुझे कोस रहे थे ।”

“आई कैन नाट डेयर, सर ।”

“लेकिन मैंने साफ सुना कि.... “

“सर, क्रॉस टाक हो रही होगी ।”

“क्रॉस टॉक !”

“ट्रंक लाइन पर अक्सर होने लगती है ।”

“मैं और जगह भी तो ट्रंककॉल पर बात करता हूं । तब तो नहीं होती क्रॉस टाक । ये सो काल्ड क्रास टाक मेरी तुम्हारे से बात के दरम्यान ही क्यों होती है ?”

“तफ्तीश का मुद्दा है, सर । मेरे खयाल से हमें इस बाबत बुश को चिट्ठी लिखनी चाहिये ।”
Reply
10-18-2020, 12:50 PM,
#9
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“हमें क्यों किसी को चिट्ठी लिखनी चाहिये । आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का इतना ऊंचा नाम है....”

“कि सारे आनन्द माउन्ट एवरेस्ट पर टंगे हुए हैं ।”

“क्या !”

“सर, मैंने किसी ऐरे गैरे को नहीं, अमरीका के राष्ट्रपति जार्ज बुश को चिट्ठी लिखने की बाबत कहा था ।”

“उसे किसलिये ?”

“क्योंकि साउथ एशिया के सारे उलझे हुए मामले आजकल वो ही सुलझाता है । क्रॉस टाक भी एक उलझा हुआ मामला है जिसे...”

“माथुर, तुम मजाक कर रहे हो ।”

“मेरी मजाल नहीं हो सकती, सर । सर, ये नामुराद क्रॉस टाक ही मेरे लिये विलेन बनी हुई है और आपकी निगाहों में मेरा इमेज बिगाड़ रही है । ये मेरे जैसी आवाज में रह रह कर बीच में बोलने वाला शख्स मेरी पकड़ में आ जाये तो मैं उसकी गर्दन मरोड़ दूं ।”

“यू विल डू नो सच थिंग । तुम्हारे पर आई.पी.सी. तीन सौ दो लग जायेगी । मैं ये बर्दाश्त नहीं कर सकता कि आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के किसी एसोसियेट का नाम कत्ल के मामले में घसीटा जाये...”

“सर, वुई आर टाकिंग आन ट्रंककॉल...”

“सो वुई आर । सो वुई आर ।”

“....एण्ड ट्रंककॉल कास्ट्स मनी ।”

“ऐज इफ आई डोंट नो ।”

“एण्ड क्रॉस टाक रिडन ट्रंककॉल कास्ट्स मोर मनी, सर ।”

“यस । यस । अब बोलो, क्या हुआ ?”

“अभी तो कुछ नहीं हुआ, सर । अभी तो चार महीने बाकी हैं ।”

“चार महीने बाकी हैं ! किस बात में चार महीने बाकी हैं ?”

“बच्चा होने में, सर ।”

“किसको ? किसको बच्चा होने में ?”

“मोहनी को ।”

“मोहनी ?”

“मेरी बीवी । आपकी बहू ! उसकी प्रेग्नेंसी के अभी पांच ही महीने मुकम्मल हुए हैं न, सर ! और बच्चा तो, आप जानते ही होंगे, कि नौ महीने में होता है ।”

“वाट द हैल !”

“सर, क्रास टाक....”

“माथुर, आई एम नाट हैपी विद यू ! आई एम नाट हैपी विद यूअर वर्क । एण्ड अबोव आल, आई एम नाट हैपी विद युअर एटीच्यूड । मुझे नहीं लगता कि कोई क्रॉस टाक हो रही है । मुझे लगता है कि तुम खुद ही अनापशनाप बोल रहे हो और क्रॉस टाक को दोष दे रहे हो ।”

“सर, वो क्या है कि....”

“डोंट इन्ट्रप्ट एण्ड पे अटेंशन टु वाट आई एम सेईंग ।”

“यस, सर ।”

“इस वक्त तुम कोई संजीदा बात करने की हालत में नहीं जान पड़ते हो... बाई दि वे, तुम नशे में तो नहीं हो ?”

“ओह नैवर, सर । मैं सरेशाम नहीं पीता ।”

“लेकिन पीते हो ?”

“कभी कभार । मेजबान इसरार करे तो ।”

“आज मेजबान ने सरेशाम इसरार किया जान पड़ता है ।”

“नो, सर । वो क्या है कि....”

“माथुर, कल सुबह ग्यारह बजे तुम अपने एण्ड से मुझे ट्रंककॉल लगाना और मुकम्मल रिपोर्ट पेश करना । दैट्स ऐन आर्डर ।”

“यस, सर ।”

“तुम शायद समझते हो कि तुम्हे पिकनिक मनाने के लिये वहां भेजा गया है । तुम समझते हो कि...”

“थ्री मिनट्स आर अप, सर ।” - एकाएक बाच में आपरेटर की आवाज आयी ।

“वॉट ? आलरेडी !

“थ्री मिनट्स आर अप, सर । यू वाट टु एक्सटेंड दि कॉल ?”

“नो । नो । माथुर, फालो इन्स्ट्रक्शन्स । कॉल मी एट अलैवन इन दि मार्निंग विद फुल रिपोर्ट ।”

“यस, सर ।”

लाइन कट गयी ।
Reply
10-18-2020, 12:50 PM,
#10
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
ब्लैक पर्ल क्लब गणपतिपुले को रत्नागिरि से जोड़ने वाली सड़क पर कोकोनट ग्रोव से कोई आधा मील के फासले पर स्थापित थी । उस इलाके में वैसी क्लब होना एक बड़ी घटना थी इसलिये सैलानियों की और आसपास के इलाकों के रंगीन मिजाज, तफरीहपसन्द लोगों की शाम को वहां अच्छी खासी भीड़ रहती थी । क्लब एक एकमंजिला इमारत में थी जिसके सामने का पार्किंग एरिया और मेन रोड से वहां तक पहुंचता ड्राइव-वे दिन डूबने के बाद खूब रोशन रहता था ।

क्लब में मेहमानों के मनोरंजन के लिये एक चार पीस का बैंड ग्रुप भी था और मीनू सावन्त नाम की एक पॉप सिंगर भी थी जिसके बारे में लोगबाग ये फैसला नहीं कर पाते थे कि वो गाती बढिया थी, या खूबसूरत ज्यादा थी ।

क्लब को असली कमाई पिछवाड़े के एक बड़े कमरे में स्थापित मिनी कैसीनो से थी जिसका प्रमुख आकर्षण रौलेट का गेम था । उस प्रकार के विलायती जुए का इन्तजाम वहां कानूनी था या गैरकानूनी, ये न कभी किसी ने दरयाफ्त किया था और न क्लब के मालिक अनन्त महाडिक ने इस बाबत कभी कुछ कहने की कोशिश की थी । बहरहाल वहां बार, जुआ, सांग, डांस सब बेरोकटोक चलता था ।

बालाजी देवसरे अपनी उस इलाके में आमद के पहले दिन से ही उस क्लब, का और उसके मिनी कैसीनो का रेगुलर पैट्रन था ।

देवसरे अमूमन ‘आजतक’ पर सात बजे की खबरें सुन चुकने के बाद क्लब का रुख करता था लेकिन विनोद पाटिल से हुई झैं झैं ने उसका ऐसा मूड बिगाड़ा था कि उस रोज उसे वहां पहुंचते पहुंचते नौ बज गये थे । अब वो क्लब के मेन हॉल के कोने के एक बूथ में अपनी ‘आया’ मुकेश माथुर और क्लब की हसीनतरीन पॉप सिंगर मीनू सावन्त के साथ मौजूद था जहां ड्रिंक हाथ में आने के बाद ही उसका मूड सुधरना शुरू हुआ था ।

देवसरे वहां मीनू सावन्त के संसर्ग से बहुत खुश होता था और संसर्ग उसे लगभग हमेशा हासिल रहता था । वो मीनू सावन्त के साथ नहीं होता था तो मिनी कैसीनो में होता था जिस तक पहुंचने का हॉल के पिछवाड़े के गलियारे से क्योंकि एक ही रास्ता था इसलिये मुकेश को ये अन्देशा नहीं था कि वो वहां से चुपचाप कहीं खिसक जायेगा । उस क्लब में मुकेश का अपने कलायन्ट की निगाहबीनी का काम मीनू सावन्त पर और मिनी कैसीनो को जाते गलियारे के दहाने पर निगाह रखने भर से ही मुकम्मल हो जाता था जो कि उसके लिये बहुत सुविधा की बात थी क्योंकि यूं महज वाचडॉग बने रहने की जगह खुद उसे भी वहां अपनी मनपसन्द तफरीह का मौका मिल जाता था ।

मीनू सावन्त बहुत खुशमिजाज लड़की थी और बावजूद इसके कि उसका क्लब के मालिक अनन्त महाडिक से टांका फिट था उसे क्लब के किसी मेहमान से मिलने जुलने या चुहलबाजी से कोई गुरेज नहीं होता था । इसी वजह से मुकेश को अक्सर उसके साथ चियर्स बोलने का या डांस करने का मौका मिल जाता था । ऐसे मौकों पर कई बार वो साफ कहती थी कि ‘रिंकी बुरा मान जायेगी’ तो मुकेश को उसे ये समझाने में बड़ी दिक्कत होती थी कि उसका रिंकी शर्मा से वैसा अफेयर नहीं था । जैसा कि मीनू सावन्त का अनन्त महाडिक से था । अलबत्ता ये बात वो उससे भी छुपा कर रखता था कि वो पहले से शादीशुदा था ।

रिंकी उस वक्त मेहर करनानी की सोहबत में थी । वो दोनों हॉल में एक मेज पर बैठे डिनर लेते उसे अपने केबिन में से निर्विघ्न दिखाई दे रहे थे । उस घड़ी केबिन में देवसरे यूं घुट घुट कर मीनू सावन्त से बातें कर रहा था जैसे मुकेश का वहां कोई अस्तित्त्व ही न हो ।

फिर एकाएक देवसरे उसकी ओर घूमा ।

“यहां बैठे क्या कर रहे हो ?” - वो बोला - “जा के मौज मारो ।”

“वही तो कर रहा हूं ।” - मुकेश उसे अपना विस्की को गिलास दिखाता हुआ बोला ।

“अरे पोपटलाल, बैंड डांस म्यूजिक बजा रहा है । जा के डांस करो ।”

“किसके साथ ?”

“ये मैं बताऊं ?

मुकेश की निगाह अनायास ही रिंकी शर्मा की ओर उठ गयी ।

देवसरे ने उसकी निगाह का अनुसरण किया और फिर धीरे से बोला - “मुझे नहीं लगता कि वो सिन्धी भाई की सोहबत को कोई खास एनजाय कर रही है ।”

“ऐसा ?”

“हां । जा के डांस के लिये हाथ बढाओ । वो हाथ थाम ले तो समझ लेना कि मेरी बात सही है ।”

सहमति में सिर हिलाता मुकेश उठा और रिंकी और मेहर करनानी की टेबल पर पहुंचा । उसने करनानी का अभिवादन किया और फिर बड़े स्टाइल में रिंकी से बोला-- “मैडम, मे आई हैव दिस डांस प्लीज ।”

“ये कॉफी पी रही है ।” - करनानी बोला ।

“पी चुकी हूं ।” - रिंकी जल्दी से बोली और उसने एक ही घूंट में अपना कप खाली कर दिया ।

“ये इस वक्त मेरी कम्पनी में है ।” - करनानी बोला - “तू क्यों कम्पनीकतरा बनना चाहता है, भई ?”

“वडी साईं” - मुकेश नाटकीय स्वर में बोला - “मेहर कर न नी !”

करनानी की हंसी छूट गयी ।

“ठीक है । ठीक है ।” - वो बोला - “लेकिन वापिस इधर ही जमा करा के जाना उसे ।”

“यस, बॉस ।”

दोनों डांस फ्लोर पर पहुंचे और बांहें डाल कर बैंड की धुन पर डांस करते जोड़ों में शामिल हो गये ।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,300,077 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 522,327 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,151,235 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 872,017 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,542,336 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,987,037 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,797,080 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,516,526 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,825,942 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 266,208 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)