Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:17 PM,
#61
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#56

सच कहू तो दिन से ज्यादा मेरे साथ ये राते थी, बहुत समय से जो इन रातो में मैं भटक रहा था लगता था की अब तो जैसे याराना हो गया है इनके साथ , कितने खूबसूरत पल मैंने मेघा के साथ ऐसी ही रातो में बिताये थे , तो कभी प्रज्ञा के साथ, लगता था की मेरे जीवन में तीसरी कोई थी तो बस ये राते.

दिमाग में ऐसे ही विचार लिए मैं रतनगढ़ पहुच चूका था , मंदिर के आस पास कोई नहीं था शायद प्रज्ञा ने लोगो को हटा दिया होगा, टूटी सीढिया चढ़ते हुए मैं ऊपर गया, और प्रज्ञा का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी.

प्रज्ञा- आ गए

मैं- तुम्ही लेट हो

वो- कोई बात नहीं, आओ

हम मूर्ति के पास आये.

प्रज्ञा- देखो, मूर्ति को इसने हैरान किया हुआ है

मैंने मूर्ति को हाथ लगाया, ताकत लगाई वो टस से मस नहीं हुई . मेरे लिए भी ये नयी बात थी .

प्रज्ञा- अब बताओ क्या करे,

मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया , मेरे दिमाग में उथल पुथल मची थी,

मैं- प्रज्ञा, आन लगी है मूर्ति पर, कुछ छिपा है , कोई राज़

प्रज्ञा- पर मालूम कैसे हो

मुझे याद आया कैसे मेरे खून से वो दीपक जल उठा था, और यही बात इस मंदिर की भी थी , यहाँ पर भी कभी दीप नहीं जलता था .

मैं- कोई दीप तलाश करो ,

जल्दी ही हमें वो मिल गया मैंने अपने खून से उसे भरा और जलाया पर बेकार, काम नहीं बना

प्रज्ञा- क्या था ये

मैं- एक तरीका पर कामयाब नहीं हुआ , मुझे लगा था की मेरे खून से काम बन जाना चाहिए था , पर क्यों नहीं बना

मैं बस एक अंदाजा लगा सकता था , और अंदाजा विफल हो गया था , मैंने दिमाग पर जोर डाला, वहां मेरे खून से तुरंत दिया जल गया था , क्या कहा मेरे खून से ,नहीं मेरे खून के साथ मेघा का खून भी मिला था शायद. क्योंकि वो लथपथ थी खून से

प्रज्ञा- क्या सोचने लगे,

मैं- एक थ्योरी है बल्कि यूँ कहू की एक तुक्का , क्या पता काम हो जाये पर मुझे तुम्हारी मदद चाहिए

प्रज्ञा- हाँ जो तुम कहो

मैं- इस दीपक में तुम्हारे खून की कुक बूंदे मिलाओ

प्रज्ञा ने अपना हाथ आगे किया , मैंने उसे बालो से क्लिप निकाली और ऊँगली में चुभो दी, खून की बूंदे जैसे ही मेरे खून से मिली, चिंगारी जलने लगी.

मैं- आन टूट रही है , जोड़े की आन थी .

प्रज्ञा- समझी नहीं

मैं-रुको जरा

मैंने वो दिया माता के चरणों में रखा और फिर जैसे ही मूर्ति को छुआ वो सरक गयी, अपना स्थान छोड़ दिया उसने

प्रज्ञा को जैसे अपनी आँखों पर यकीं नहीं हुआ

“ये कैसे हुआ कबीर, ” उसने सवाल किया

मैं- इन सब घटनाओ से मेरा कोई न कोई रिश्ता है, और तुम्हारा मुझसे सम्बन्ध है, जोड़े की आन से तात्पर्य है की तुम्हारा और मेरा रिश्ता हम भी एक दुसरे से जुड़े है , शायद हमारे जिस्मानी संबंधो की वजह से .

प्रज्ञा को इस बात पर यकीं नहीं था पर मुझे था क्योंकि मेघा मेरी पत्नी बन गयी थी इस लिए मैं उस से जुड़ा था और प्रज्ञा के साथ मैं सो चूका था, एक अनकहा रिश्ता तो इस से भी था ही

मैंने मूर्ति को हटा कर पास में रख दिया, तो देखा की एक चोर दरवाजा था .

मैं- टोर्च जलाओ हम इस के अन्दर जायेंगे

प्रज्ञा- दिन का समय सही रहता

मैं- नहीं अभी

मैंने वो छोटा सा ढक्कन हटाया देखा निचे जाने को सीढिया थी , हम उतरने लगे, सीढिया धीरे धीरे कम होने लगी, चारो तरफ जाले लगे थे, सांस लेने में थोड़ी दिक्कत होने लगी थी पर फिर भी हम चल रहे थे फिर हम एक कमरे में पहुचे, टोर्च की रौशनी में हमने देखा ,

हमने देखा यहाँ खूब सोना पड़ा था ,एक पल को हम दोनों की आँखे चुंधिया गयी, चमक से नहीं बल्कि ये सोच कर की इतना सारा सोना इधर उधर बिखरे पड़े थे बिना किसी बात के

प्रज्ञा- अरे बाप रे

मैं - कौन था इतना अमीर

प्रज्ञा- कबीर, ये सोना वैसा नहीं है जो तुमने मुझे दिखाया था ये इस्तेमाल किया हुआ है देखो इसके आकर को, बनावट से लगता है की जैसे पिघला कर ठंडा किया हो इसे

मैं- हाँ, सही कहा तुमने

मैंने कमरे का विश्लेषण करना शुरू किया ,ये तो तय था की मुद्दतो बाद हम ही आये थे इधर , पर इसका क्या प्रयोजन था , पहले के लोग ऐसे तहखानो में खजाना आदि छुपाते थे पर यहाँ मामला कुछ और था , क्योंकि छुपाने वाले कभी न कभी लौटते जरुर है पर हमारे मामले में जैसे भुला दिया गया था , परवाह ही नहीं की गयी थी इस माल की .

“तुम्हे कुछ सुनाई दे रहा है कबीर. ” प्रज्ञा ने पूछा

मैं- क्या

वो- पानी की आवाज

मैं- तालाब है तो सही पास में

प्रज्ञा- नहीं, गौर से सुनो तुम बहते पानी की आवाज महसूस करोगे.

मैं- नहर यहाँ से कोसो दूर है , और नदी है नहीं

प्रज्ञा- पर पानी है कबीर , मेरा यकीं करो ये आवाजे बहते पानी की ही है

मैं- ठीक है पर कहाँ है नदी , अपने चारो तरफ तो दीवारे है

प्रज्ञा- तलाश करते है क्या मालूम ऐसा कोई और चोर दरवाजा भी हो.

हम बारीकी से कमरे की जांच करने लगे. पर तभी प्रज्ञा का फ़ोन बजा , उसने मुझे चुप रहने का इशारा किया और बोली- हाँ , कहाँ है आप.

उसने सुना .

प्रज्ञा- हाँ थोड़ी बेचैन थी तो मंदिर आ गयी थी, आप रुकिए मैं आती हु

उसने फ़ोन रखा

“राणाजी वापिस आ गए है , मेरी गाड़ी देख ली थी उन्होंने तो फ़ोन किया , जाना होगा ” उसने कहा

मैं- संभाल लोगी न

वो- हाँ बिलकुल.

मैं- मैं यही छानबीन करूँगा तुम मूर्ति को उसके स्थान पर रख देना ताकि किसी और को मालूम न हो

उसने हाँ में सर हिलाया और मुड गयी, मैं वापिस से अपने काम पर लग गया , तीसरी दिवार पर मुझे सफलता मिली , दिवार का एक हिस्सा खोखला था मैंने कोशिश की और वो हिस्सा खिसक गया . आगे अँधेरा ही अँधेरा था मैंने टोर्च को सामने किया और चलने लगा. ठंडी हवा को महसूस करते हुए मैंने पाया की मैं जल्दी ही शायद जंगल के किसी हिस्से में पहुँचने वाला हु. और जब मुझे साफ़ साफ दिखाई दिया तो ...................
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12-07-2020, 12:17 PM,
#62
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
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मैंने खुद को एक ऐसी जगह पाया , जिसकी कल्पना मैंने तो क्या मेरे फरिश्तो ने भी नहीं की थी न जाने ये कौन सी जगह थी , सामने एक नदी थी या नाला था मैं नहीं जानता पानी बहुत थोडा था , प्यास सी लगी थी मैंने अपने अंजुल में थोडा पानी भरा और होंठो से लगा लिया, ये पानी बिलकुल वैसा ही मीठा था जैसा मैंने सुराही से पिया था , अपने चेहरे पर लगाया पानी मैंने,

बेशक मेरा चैन, करार सब खो गया था पर फिर भी मुझे करार मिला , ये ठीक ऐसा ही अहसास था जैसा मुझे मेघा के पास होने पर होता था ,
क्या कहा मैं मेघा, उसकी याद आते ही दिल भारी भारी सा हो गया , बेचैनी बढ़ गयी, मैं रोना चाहता था बुलाना चाहता था उसे,

सामने एक बड़ा सा पेड़ था बहुत बड़ा पीपल का पेड़ जिसके पास से एक कच्चा रास्ता जा रहा था, मैंने वो रास्ता पकड़ लिया और चलता गया , पर वो रास्ता जैसे खत्म ही नहीं हो रहा था पर मुझे लग रहा था की कुछ तो मिलेगा जरुर और मेरी इस आस को मैंने हकीकत होते देखा , मैं एक गाँव के सामने खड़ा था,

“ग्राम पंचायत अनपरा आपकी स्वागत करती है ” मैंने उस टूटे से बोर्ड पर पढ़ा . अब यहाँ से आगे क्या. अनपरा गाँव से क्या लेना देना था , यहाँ पर मेरे पास दो थ्योरी थी की ये बस एक आम रास्ता तह आने जाने का और दूसरी ये की चोर रस्ते का उपयोग कोई तो करता था आने जाने को ,

मैंने दूसरी थ्योरी को चुना क्योंकि जीवन में बहुत कुछ ऐसा हो रहा था जो सामान्य नहीं था . जिसकी मुझे अब सबसे ज्यादा जरुरत थी वो थी प्रज्ञा क्योंकि उस पर मुझे हद से ज्यादा भरोसा था और मेरा सहारा भी थी वो. वापिस आया तब तक सुबह होने वाली थी , मैं मंदिर आया , थोड़ी थकान भी हो रही थी तो मैंने तालाब में ही नहाने का सोचा .

कपडे उतारे और एक एक करके सीढिया उतरते हुए मैं पानी की गहरे की तरफ जाने लगा.ठन्डे पानी में डुबकी लगायी , मुझे कुछ महसूस हुआ ,अजीब सा अहसास जैसे किसी ने मुझे छुआ हो . मैंने फिर डुबकी लगाई फिर से लगा की किसी ने मेरा पैर पकड़ा हो. तीसरी बार किसी ने मुझे गहराई में खींच लिया हो .
मेरा खुद पर काबू नहीं था कोई मुझे गहरे पानी में खींचे जा रहा था सांसे फेफड़ो में रुकने लगी थी .

पर फिर मैंने उस गहराई में ऐसा कुछ देखा जिसने मुझे हिला दिया तालाब की तली में बहुत सा सोना था ठोस सोना, जैसे तालाब सोने से ही भरा हो . मैंने एक सोने की ईंट को छुआ भर ही था की मुझे एक जोर का झटका लगा जैसे किसी ने उठा कर फेक दिया हो मुझे अगले ही पल मैं सीढियों पर पड़ा था .

ये क्या हुआ था , मैं तुरंत फिर पानी में उतर गया पर इस बार किसी ने पकड़ा नहीं मुझे, मैं गहराई में उतरा , और गहराई में उतरा और फिर मितियाले पानी के पार मुझे वो खजाना दिखा मैंने फिर से ईंट को छुआ ही था की फिर से मुझे बाहर फेक दिया गया.

अब मेरी उत्सुकता हद से ज्यादा बढ़ गयी थी , मैंने तीसरी बार पानी में उतरने को पैर से पानी को छुआ ही था की एक आवाज आयी” तीसरी खता माफ़ नहीं होगी, वापिस मुड जा , ये तेरा नहीं है वारिस को भेज ”

एक गहरी आवाज थी पर किसकी

मैं- पहली दो बार क्यों रोका और कौन है वारिस

“जब वो आएगा तो पहचाना जायेगा ” आवाज आई

मैं- फिर मुझे क्यों दिखाया

“तू प्रहरी है , आधा प्रहरी, तेरा आधा खून प्रहरी का है ” आवाज आई

मैं- और आधा , जवाब दो वर्ना मैं पानी में आ रहा हु

मैंने इतना कहा ही था की पानी में भंवर उठने लगे पानी लाल होने लगा. खून जैसा लाल
“ये बावड़ी घंटाकर्ण के २१ नाहर वीरो से रक्षित है , ये जब तक वारिस तुझे इजाजत न दे ये खता न करना , बंधन टुटा है , हम वचन से बंधे है ” आवाज फिर आई.

मैं- पर कौन है वारिस

कोई जवाब नहीं आया. बार बार मैं सवाल करता रहा पर कोई जवाब नहीं आया. एक बार फिर मैं अधूरे सवालो के साथ अकेला रह गया था . भोर होने लगी थी मैं वहां से खिसक लिया . अब प्रज्ञा से मिलना बहुत जरुरी हो गया था . मैं अपनी तक़दीर को कोस रहा था की राणाजी को भी इसी समय आना था.

पर कहते है न कभी कभी चुतियो की किस्मत भी साथ देती है आज का दिन मेरी जिन्दगी का वो ही दिन था. मैंने प्रज्ञा को फ़ोन किया .

प्रज्ञा- हाँ कबीर.

मैं- मुझे मिलना है चाहे थोड़ी देर ही पर बेहद जरुरी है

प्रज्ञा- कबीर, अभी नहीं, तुम जानते हो न मेरी माँ की तबियत बहुत ख़राब है मैं आज अपने मायके जा रही हु और कब वापसी हो कह नहीं सकती

मैं- समझता हु ,

प्रज्ञा- मेरी कुछ मजबुरिया भी है मेरे दोस्त
मैं- ठीक है पर इतना समय तो होगा न की फ़ोन पर ही सही दो घडी मेरी बात सुन सको

वो- हाँ

मैंने उसे तमाम बात बताई की कैसे वो रास्ता अनपरा गाँव तक गया था

प्रज्ञा- किस गाँव का नाम लिया

मैं- अनपरा

प्रज्ञा- तुम पक्के तौर पर कह रहे हो न

मैं- हाँ , क्या हुआ

प्रज्ञा- दो घंटे बाद तुम मुझे सड़क पर मिलना

मैं- ठीक है पर तुम चौंक क्यों गयी

प्रज्ञा- ठीक दो घंटे बाद .........…
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12-07-2020, 12:17 PM,
#63
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#58

बेसब्री से मुझे इंतजार था प्रज्ञा का , और जब वो आई तो मैंने उस से पहला सवाल यही किया “अनपरा के बारे में तुम क्या जानती हो ”
प्रज्ञा- गाड़ी में बैठो जल्दी
उसने दरवाजा खोलते हुए कहा , मैं अन्दर बैठा . उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी
मैं- कहाँ जा रहे है
वो- जहाँ तुम जाना चाहते थे
मैं- अनपरा
वो- हाँ
“पर तुम्हे तो तुम्हारी माँ के पास जाना था न ” मैंने कहा
प्रज्ञा- वहीँ जा रहे है , मेरा मायका है अनपरा
मेरे लिए ये एक और हैरान करने वाली खबर थी ,
मैं- तुमने कभी बताया नहीं
“कभी जिक्र हुआ ही नहीं ” उसने जवाब दिया
मैं- प्रज्ञा, मेरा दिल बहुत जोर से धडक रहा है
प्रज्ञा- मेरा भी , अब तो मुझे भी लगने लगा है की कुछ तो है , तुम्हारा और मेरा रिश्ता वैसा नहीं है जैसा हम जानते है , हम दोनों का यु पास आना, जरुर कोई तो बात है , कल रात जब तुम मेरे गाँव पहुच गए मैंने इस बात पर बहुत ज्यादा विचार किया .
मैं- तो किस नतीजे पर पहुची तुम
प्रज्ञा- नतीजे के लिए ही तो तुम्हे वहां ले जा रही हु
मैं- पर प्रज्ञा, तुम वहा जाकर कहोगी क्या, मेरा मतलब ...
प्रज्ञा- तुम्हे उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए.
मैं- तो तुम भी अब मानती हो की प्रीत की डोर वाली कहानी सच है
प्रज्ञा- कुछ कुछ मानने लगी हूँ
मैं- एक सवाल और पुछू
प्रज्ञा- हूँ
मैं- तुमने कहानिया तो सुनी ही होंगी की कैसे कुछ लोग खजाने को बाँध दिया करते थे ताकि असली वारिस की जगह कोई और न उसे चुरा सके
प्रज्ञा- तंत्र बहुत गूढ़ विषय है कबीर, कोई मानता है कोई नहीं , ठीक जैसे दुनिया में अच्छे है बुरे है , वैसे ही तंत्र मन्त्र है दुनिया में हर चीज़ की अपनी अपनी उपयोगिता है .
मैं- प्रज्ञा, तुम्हे वो याद है मंदिर में हम दोनों के खून से दिए का जलाना.
प्रज्ञा- मैं हैरान हु उस बात को क्यों हुआ ऐसा.
मैं- शायद हम शारीरिक रूप से एक हो चुके है इसलिए
प्रज्ञा- मुझे नहीं लगता
मैं- तो फिर मेरा क्या नाता है तुमसे, क्या तुम मेरा नसीब हो .
जैसे ही मैंने प्रज्ञा से ये सवाल किया उसके पैर ब्रेक पर दबते गए, गाड़ी रुक गयी.
“मैं कैसे, मैं तुमसे १६-१७ साल बड़ी हु,मेरे बच्चे भी तुमसे बड़े है , मैं कैसे ” उसने उल्टा मुझसे सवाल किया
और मेरे पास कोई जवाब नहीं था, उसकी बात एक हद तक सही थी
“कहीं तुम मुझसे प्यार तो नहीं करने लगे ” उसने सवाल किया
मैं- तुम्हे क्या लगता है
प्रज्ञा- यही की हमारे रिश्ते की सीमाए है , सब कुछ हमारी मर्ज़ी से होते हुए भी हम अपनी अपनी डोर से बंधे है
मैं- जब सब मालूम है ही तो फिर क्यों पूछा तुमने, तुमने अपने जीवन में मुझे इतना स्थान दिया मैं तो शुक्रिया करता हु तुम्हारा .
प्रज्ञा ने मेरे सर पर हाथ फेरा और गाड़ी आगे बढ़ा दी, जल्दी ही हम उसी बोर्ड के पास से गुजरे , मैंने नजर घुमा कर कच्चे रस्ते को भी देखा , गाड़ी आगे बढती रही . कुछ देर बाद हम प्रज्ञा के घर पहुच गए. उसके घर को देखते हुए मुझे दो ख्याल आये एक तो ये की बेंचो इन ठाकुरों को इतने आलिशान महल बनाने का क्या शौक रहता है , दूसरा ये था की प्रज्ञा के घर के पास ही एक बड़ा सा खंडहर था ,किसी ज़माने में शायद ऐसी ही की आलिशान हवेली रही होगी.
उसके घरवाले पढ़े लिखे लोग थे, एक दम सभ्य सबने जाते ही प्रज्ञा को सर माथे पर ले लिया. प्रज्ञा ने सबसे मेरा परिचय करवाया उसके मेनेजर के रूप में,
“कुछ देर परिवार के साथ रहना पड़ेगा. तुम मेहमान खाने में आराम करो ” उसने किसी को बुलाया और मैं उसके साथ मेहमान खाने में आ गया.
“हुकुम आराम करे, किसी चीज़ की जरुरत हो तो आवाज दीजिये, वैसे नाश्ता बस अभी पेश करू, आपकी आज्ञा हो तो ” नौकर ने कहा
मैं- हाँ ठीक है .
मैंने थोडा बहुत नाश्ता किया और फिर मेरी आँख लग गयी. उठा तो हल्का हल्का अँधेरा हो रहा था , मेरे उठते ही नौकर फिर आ गया. मैंने हाथ मुह धोये,
“क्या नाम है तुम्हारा ” मैंने पूछा
“हरिराम, हुकुम ” उसने जवाब दिया
मैं- हरिराम जी, ये सामने खंडहर कैसा है
हरिराम को उम्मीद नहीं थी की मैं उसे ऐसे इज्जत दूंगा, वो बहुत खुश हो गया .
मैं- बताओ
वो- जी ये पुराणी हवेली है मालिक लोगो के परिवार से ही बड़ी ठकुराईन रहती थी वहां,
मैं- अब नहीं रहती
हरिराम- हुकुम बरसो पहले की बात है वो. तब इधर बहुत कम आबादी थी , गाँव थोडा दूर था बस हवेली ही थी , ये मालिक लोग भी पहले दुसरे छोर पर रहते थे पर फिर समय बदलता गया आबादी बढती गयी
मैं- क्या नाम था बड़ी मालकिन का
वो- जी कामिनी माँ सा .
मैं हरिराम से कुछ और बातचीत कर पाता उससे पहले ही प्रज्ञा का भाई आ गया मेरा हाल चाल पूछने, मालूम हुआ वो भी होटल और शराब का व्यापर करता था ,पर स्वाभाव का सरल था प्रज्ञा जैसा , कोई अहंकार नहीं काफी देर तक वो बाते करता रहा , मैं बस उसका साथ देता रहा .
रात को मेरी मुलाकात खाने के टेबल पर प्रज्ञा की माँ से हुई, बुजुर्ग औरत थी , रक्त नहीं बनता था इस उम्र में वो ही दिक्कत थी , खाने पीने और बातो में आधी रात हो गयी . मैं वापिस आ गया मेहमान खाने में जहाँ हरिराम मेरा इंतज़ार कर रहा था .

“पेग लेते हो हरिराम जी ” पूछा मैंने
वो बेचारा तो हैरान था,
“जी कभी कभी ” बड़े संकोच से उसने उत्तर दिया
मैंने उसे दो पेग बनाने को कहा एक उसका और मेरा
मैं उस से बाते करने लगा. उसके काम के बारे में परिवार के बारे में दो पेग के बाद वो भी थोडा खुल गया
मैं- यार हरिराम, अब तो वो हवेली में कोई नहीं जाता होगा
वो- नहीं हुकुम कोई नहीं जाता, बंद पड़ी है , जबसे बड़ी मालकिन की मौत हुई तबसे ही
मैं- तुमने देखा कभी बड़ी मालकिन को
वो- नहीं हुकुम, मैं तो तब पैदा भी नहीं हुआ था , मेरे बाप- दादा से सुनी बाते है .
मैं- हम्म ,
मैं उस से और बात करता की तभी प्रज्ञा का फ़ोन आ गया तो मैंने उसे जाने को कहा
प्रज्ञा- कैसे हो
मैं- सोयी नहीं तुम अभी
वो- बस सो ही रही थी सोचा दो बात कर लू तुमसे
मैं- कौन सा दूर हूँ मिल ही लेती
वो- अभी कैसे
मैं- खैर छोड़ो, मुझे न कामिनी की हवेली देखनी है
वो- पर क्यों
मैं- शायद तक़दीर उसी के लिए मुझे यहाँ लायी है
वो- सुबह देखते है सो जाओ अभी
मैं मुस्कुरा दिया .
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12-07-2020, 12:17 PM,
#64
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#59
प्रज्ञा से बात करने के बाद मैंने सोने की कोशिश की पर मेघा की यादो ने मेरे दिल पर कब्ज़ा कर लिया, मुझे बेचैन कर दिया. उसके बिना मैं कितना तड़पता था ये बस मैं ही जानता था , दर्द बहुत था पर किसके आगे दुखड़ा रोऊँ खुद का, तक़दीर ने उस अधूरी कहानी में मेरी जिन्दगी को ऐसे किरदार बना दिया था की न अंजाम पर पहुँच पा रहा था, न छूट पा रहा था.
सोचते सोचते न जाने कब आँख लगी कितनी देर सोया पर जब एक अहसास से आँख खुली तो मैंने प्रज्ञा को खुद पर झुके पाया
“कबीर, उठो , उठो न ” उसने फुसफुसाते हुए कहा
मैं-आंह हाँ ,
प्रज्ञा- उठो जल्दी
मैं- क्या हुआ
वो- तुम्हे वो हवेली देखनी है न
मैं- हाँ
प्रज्ञा- तो चलो फिर
मैं तुरंत उठा बाहर आकर देखा धुप खिली हुई थी
मैं- लगता है बहुत देर सोया मैं
प्रज्ञा- और नहीं तो क्या
मैं- ऐसे चलेंगे तो कोई रोकेगा नहीं
प्रज्ञा- तुम्हे क्या लगता है मैं कौन हु, ये मेरा घर है मुझे किसकी इजाजत की जरुरत है , आओ साथ
प्रज्ञा और मैं पैदल चलते हुए ही उस खंडहर तक पहुंचे, मैंने एक नजर प्रज्ञा पर डाली पीले सूट में बहुत गजब लग रही थी वो , जी तो किया की उसे अभी चोद लू, पर ये काम चुदाई से ज्यादा जरुरी था , उसने बड़े से गेट का ताला खोला और हम अन्दर आ गए.
धुल मिटटी और जाले थे हर कही, निचे के कुछ कमरे खुले थे पर वो खाली भी थे, हम ऊपर गए कोने के एक कमरे में ताला था , पुराना जंग खाया, जरा सा खींचने पर टूट गया . इस कमरे का हाल भी बहुत बुरा था पर एक बात और थी ये कमरा बहुत बड़ा था, एक कोने में बड़ा सा बिस्तर जिसे दीमक चाट गयी थी,
मैंने खिड़की खोली तो कुछ रौशनी आई, एक तरफ बड़ी शेल्फ थी जिसमे किसी ज़माने में खूब किताबे रही होंगी पर अभी केवल कागजों के बचे खुचे टुकड़े ही बाकी थे, एक तरफ बार था जिसमे अभी भी बहुत सी शराब की बोतले थी .
“तुम्हे तो ये नशा विरासत में मिला है प्रज्ञा ” मैंने उसे छेड़ते हुए कहा
प्रज्ञा हंस पड़ी .
“यही है कामिनी का कमरा ” उसने कहा
हमने तमाम अलमारिया खोली , सब कपड़ो को वक्त लील गया था हर एक चीज़ छानी पर कुछ नहीं मिला
“मेहनत का कोई फल नहीं मिलता दिख रहा कबीर ” उसने कहा
बात तो सही थी पर तभी प्रज्ञा का हाथ न जाने कहा लगा उन किताबो की शेल्फ में वो एक तरफ सरक गयी. सामने एक दरवाजा था, बड़ी मशक्कत करनी पड़ी उसे खोलने में . ये एक तहखाना था , उम्मीद की एक हलकी सी लौ दिखाई दी .
कमरे में कुछ नहीं था सिवाय ढेर सारी तस्वीरों के , एक खूबसूरत औरत और एक मर्द , बड़ी बड़ी मूंछे, सर पर साफा, तो किसी तस्वीर में पगड़ी. मालूम होता था की खूब संजिली जोड़ी रही होगी दोनों की
“ये तो कामिनी है , पर ये आदमी कौन है ” प्रज्ञा ने कहा
मैं- मुझे लगता है कामिनी का पति
प्रज्ञा- कैसी बाते करते हो , मुझे अपने पुरखो का नहीं मालूम होगा क्या ये कोई और है
मैं- इसका मतलब
प्रज्ञा- इसका मतलब की हमारे पुरखे भी हमारे जैसे ही थे
मैं मुस्कुरा दीया
“और तलाशी लेते है ” प्रज्ञा ने कहा
मैंने पूरी बारीकी से जांच की पर उस कमरे में और कुछ नहीं था , अनजानी तस्वीरों की कड़ी में दो तस्वीरे और जुड़ गयी थी . मैंने एक शराब की बोतल उठा ली .
प्रज्ञा- पुराणी शराबे अक्सर बहुत तेज होती है कलेजा जलाती है पर सकूं भी देती है
मैं- शराब के बहाने खुद की तारीफ कर रही हो
प्रज्ञा- बुड्ढी कह रहे हो मुझे तुम , अभी बताती हु तुम्हे
उसने मुझे हल्का सा धक्का दिया पर मैंने उल्टा उसे ही अपनी बाँहों में थाम लिया. पसीने से भरा उसका बदन एक पल में ही मुझे उत्तेजित कर गया. मैंने उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें पीने लगा , पर जल्दी ही वो मेरी बाँहों से निकल गयी .
“नहीं अभी नहीं ” उसने मुझे रोकते हुए कहा .
मैं- ऐसे नहीं रोक सकती तुम मुझे
वो- पर फिर भी अभी नहीं , किसी और कमरे में देखे
मैं- हाँ
हम एक और कमरे में गए, यहाँ पर ढेर सरे कागज़ थे कुछ तस्वीरे थी , हाथ से बनाई हुई , कुछ अधूरी कुछ पूरी , थोड़ी दुरी पर एक बड़ी सी मेज थी जिस पर कुछ किताबे पड़ी थी और एक डायरी भी . जिल्द चमड़े का था मैंने उसे खोल कर देखा पन्ने पीले पड़ गए थे , ऊपर से दीमक का कहर
अपनी इस चुतिया तक़दीर पर मुझे गुस्सा तो बहुत आता था पर किस से कहू, मैंने डायरी पढने की कोशिश की , स्याही जगह छोड़ गयी थी पर फिर भी कुछ शब्द मैंने जोड़ लिए थे , करवा चौथ, जुदाई, कब मिलोगे, पुराना डाकखाना ,और लाल मंदिर .
“ये डायरी मैं रख लू प्रज्ञा ” मैंने पूछा
प्रज्ञा- बिलकुल , बल्कि मैं शहर में किसी ऐसे को जानती हु जो पुराणी किताबो वगैरह को काफी हद तक वापिस सा कर देते है , मैं बात कर लुंगी तुम इसे वहां ले जाओ हो सके तो कुछ और जानकारी मिले तुम्हे
मैं- इतना तो है की कामिनी का किसी से प्रसंग था और ये आदमी अवश्य हमारी कड़ी हो सकती है .
प्रज्ञा- अब मैं क्या कहूँ
मैं- देखो इन शब्दों को ये इशारा तो करते है, वैसे तुम इस लाल मंदिर के बारे में कुछ जानती हो
प्रज्ञा- नहीं, मैंने कुछ सुना नहीं ऐसा .
मैं- कुछ तो है प्रज्ञा, कुछ तो ऐसा है जो यही कही है मेरी आँखों के सामने पर सामने होकर भी छिप रहा है , मुझे अब डर लगने लगा है
प्रज्ञा- क्यों भला
मैं- जिस हिसाब से ये कडिया जुड़ने लगी है कहीं मेरा तुम्हारा कोई ऐसा नाता न निकल आये.
प्रज्ञा- इस फ़िक्र में दुबले मत होना, तुम्हारा और मेरा रिश्ता वो डोर है जिसको बहुत मजबूत हाथो ने थामा हुआ है . ज़माने को बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी तुम्हे मुझसे जुदा करने को
मैं- बस इसी लिए मुझे डर लगता है
प्रज्ञा आगे बढ़ी और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए.
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12-07-2020, 12:17 PM,
#65
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
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उसके होंठो का रस जो मेरे मुह में गिर रहा था वो केवल एक चुम्बन नहीं था , मैंने प्यार महसूस किया, प्रज्ञा ने बेशक कुछ नहीं कहा था , वो हमेशा भागती थी इस अनजाने सवाल से पर , जिस तरह से उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था, वो समा जाना चाहती थी मुझ में , पर मैं उसकी मजबुरिया समझता था , उसके गले में किसी और के नाम का मंगलसूत्र था.

खैर उस लम्बे चुम्बन के बाद हम अलग हुए. हमने पूरी हवेली को छान मारा पर सिवाय उस डायरी के कुछ और नहीं मिला. इतिहास की सबसे बड़ी कमी यही होती है की उसका क्या सच है क्या झूठ कौन जाने,

“तुम्हे शहर के लिए निकलना चाहिए,” प्रज्ञा ने कहा

मैं- सही कहती हो.

प्रज्ञा- मेरी गाड़ी ले जाओ

मैं- नहीं, कोई पहचान लेगा और मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से तुम्हे सवालो के जवाब देने पड़े

प्रज्ञा- हम्म, सुनो होटल चले जाना , वहां तुम्हे पैसे मिल जायेंगे जरुरत पड़ेगी

मैं- ठीक है .

करीब घंटे भर बाद मैं प्रज्ञा के घर से निकल गया , गाँव के अड्डे पर आकर मैने बस पकड़ी और शहर के लिए निकल गया . सबसे पहले मैं वहां गया जहाँ प्रज्ञा ने मुझे जाने का कहा था, डायरी दिखाई , मालूम हुआ की पूरी तरह से तो नहीं पर जितना हो सकेगा वो कोशिश करेंगे .

दिमाग में बस एक ही सवाल था की कामिनी के साथ वो कौन था , अगर उस के बारे में कुछ मालूम हो जाये तो बात बन जाये,

अब शहर में कुछ और काम तो था नहीं मुझे वापिस लौटना ही था , मैं पैदल ही बस अड्डे की तरफ बढ़ रहा था की पास से एक गाड़ी आकर गुजरी, मेरी धड़कने जैसे थम सी गयी, मैंने उसे देखा गाड़ी में ,मैंने मेघा को देखा . नहीं ये मेरा वहम नहीं था , वो मेघा ही थी .

“मेघा, मेघा ” मैं जोर से चिल्लाया पर उसे सुना नहीं . मैं गाड़ी के पीछे भागा पर सरपट दौड़ती गाड़ी मेरी पहुच से दूर हो गयी. हांफते हुए भी मेरे चेहरे पर ज़माने भर की ख़ुशी थी , उसे देखना भी अपने आप में जन्नत था, वो ठीक थी .ये बहुत बड़ी बात थी मेरे लिए.

दिल का हिरन दौड़ने लगा था.

मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था की काश मेरे पास गाड़ी होती तो मैं उसे रोक पाता पर साथ ही एक सवाल भी था की वो मिलने क्यों नहीं आई. मेघा के बारे में सोचते सोचते मैं खेत पर आया . करने को हमेशा की तरह ही कुछ खास नहीं था, मेरी खेती भी इस सब में बर्बाद ही थी. किसी चीज़ में दिल न लगे, ख्याल आये तो बस मेघा के ,

देखते देखते रात घिरने लगी थी , दिल किया की उसी जगह पर चलू शायद मेघा आये वहां पर उसे देखने के बाद उस से दूर रहना मुश्किल हो रहा था . रस्ते में मैंने मजार पर दिया जलाया और दुआ मांगी मेघा से मिलने की , मैं अपने ठिकाने की तरफ जा ही रहा था की मेरे कानो में चीख पड़ी . एक लड़की या औरत की चीख थी , मेरे कान खड़े हो गए मैं दौड़ा उस तरफ . कुछ दूर जाके मैंने देखा

कोई उस लड़की से जोर जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था , मैंने टोर्च जलाई और जब उस चेहरे पर मेरी नजर पड़ी थी मैं हैरान रह गया , वो करण था मेरा भाई करण , मैं दौड़ा उसकी तरफ

“भाई, भाई छोड़ दे इसे ये पाप मत कर छोड़ इसे ” मैंने लड़की को करण से छुडाते हुए कहा

उसने मुझे देखा, और बोला- चल भाग चूतिये यहाँ से. ये मेरा माल है और मैं इसके साथ जो चाहे करूँ तुझे क्या है ये पूरा गाँव मेरी मिलिकियत है , यहाँ की हर चूत पर मेरा हक़ है तू निकल यहाँ से

मैं- भाई, तू मालिक है इस गाँव का और मालिक का काम होता है अपने लोगो की सुरक्षा करना , और तू अपने लोगो की इज्जत से खेल रहा है

“तू सिखाएगा मुझे, तू ” कर्ण ने गुस्से में मुझे थप्पड़ मार दिया.

मैंने अपमान सह लिया .

मैं- तुझे मारना है तो मुझे मार ले, इस लड़की को जाने दे.

कर्ण- इस दो टके की रांड के लिए तू अब मेरे से जुबान लादयेगा , तेरी क्या औकात है मेरे सामने, मैं दिखाता हु तुझे तेरी औकात , तू यही रुक तेरिया आँखों के सामने ही चोदुंगा इसे, इसकी चीखे सुन तू . साला मुझसे जुबान लडाता है .

कर्ण ने एक झटके में उस लड़की का ब्लाउज फाड़ दिया. और उसकी चूची मसलने लगा.

हुकुम बचाओ, मेरी लाज आपके हाथो में है ” लड़की ने रोते हुए कहा

मेरे कानो में ये शब्द आज से नहीं तीन साल से गूँज रहे थे, आँखों के सामने तीन साल पहले का मंजर घुमने लगा. आंसू बहने लगे,

मैं- भाई, तेरे पास क्या नहीं है , तुझे जो चाहिए तू रख ले, तू चाहे तो मेरे हिस्से की सब जमीन जायदाद रख ले पर इसे जाने दे

भाई- कबीर, भाग जा यहाँ से कही ऐसा न हो की इसकी चूत से पहले मैं तेरा खून कर दू,

कर्ण ने अपने हाथ उस लड़की के लहंगे की तरफ बढ़ाये की मैंने उसका हाथ पकड लिया.

“भाई तू नशे में है तुझे समझ नहीं आ रहा , तू मेरे साथ घर चल सुबह बात करेंगे ” मैंने उसे फिर से रोकते हुए कहा

कर्ण ने मुझे एक लात मारी और उसके लहंगे को खोल दिया , उसे पटक दिया धरती पर उसे चोदने की कोशिश करने लगा. मैं इस घड़ी को टालना चाहता था , क्योंकि बरसो पहले मैं टाल नहीं पाया था , मेरा कल आज बनकर फिर मेरी परीक्षा ले रहा था .

पर मैंने तब भी सही किया था और आज भी मुझे सही ही करना था, मैंने कर्ण को उस लड़की के ऊपर से खींच लिया और उसे एक पेड़ के साहरे खड़ा किया.

“बस बहुत हुआ, इस से पहले की मैं भूल जाऊं, तू चला जा यहाँ से ,तू नशे में है , पर मैं नहीं मैं विनती करता हु, भाई तू घर चला जा ”मैंने कहा

कर्ण- अब समझा, तेरा दिल आ गया है इस लड़की पर चल तू भी क्या याद करेगा मैं चोद लू इसे फिर तू भी चढ़ लेना

कर्ण उस लड़की की तरफ फिर बढ़ा मैंने उसका हाथ पकड़ लिया

“भाई, मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले ”
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12-07-2020, 12:17 PM,
#66
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#61

मैंने भाई को धक्का दिया तो वो गुस्से से उबल पड़ा .

“इस दो कौड़ी की के लिए तू मुझ पर हाथ उठा रहा है , पर शायद तू भूल गया है की मैं कर्ण हु ठाकुर कर्ण , पहले तुझसे निपट कर ही चोदुंगा इसे ” उसने गुस्से से कहा

मेरी आँखों के सामने तीन साल पहले की वो रात आ गयी जब ठीक ऐसी ही परिस्तिथि सामने थी, और क्या बदला था उस रात से इस रात में सिवाय मेरे दुःख के, इन चुतियो को तो कोई फर्क न तब पड़ा था न आज. बस फर्क इतना था उस रात ताऊ था आज भाई था और समानता ये थी की वो भी अपना विवेक छोड़ चूका था ये भी .

मैं- कर्ण, ये गलती मत कर, मेरे सब्र का इम्तेहान मत ले एक बार मैं शुरू हुआ तो रुकुंगा नहीं ,

भाई- शुरू तो अब हो गया है .

वो मेरी तरफ लपका, मैंने उसके पैरो में अडंगी लगाई वो निचे गिरा गिरते ही मैंने उसके पेट में एक लात मारी. चीखा वो . मैंने एक लात और मारी . अब उसे भी गुस्सा आया. उसने मुझे परे किया और उछालते हुए मेरे मुह पर एक लात मारी. बड़ी जोर से लगी . इतने में उसने एक लकड़ी उठा ली और दनादन मेरी पीठ पर मारने लगा. जैसे वो पागल हो गया था.

“आज तेरी चमड़ी नहीं उधेड़ दी तो मेरा नाम बदल दियो ” मुझे मारते हुए बोला वो

मैंने उसका प्रतिकार किया और उसके मुह पर एक मुक्का मारा , तिलमिला गया वो . मैंने एक पत्थर उठा लिया और उसके चेहरे पर दे मारा, मुझे गुस्सा तो था ही बस मारते गया उसे जब तक की वो कराहते हुए गिर नहीं गया.

पर मैं रुक गया, मैं इतिहास नहीं दोहराना चाहता था , मैंने उस लड़की को वहां से जाने को कहा , और फिर कर्ण को गाड़ी में डाल कर घर की तरफ गया. हवेली में मेरे पहुचते ही चीख पुकार मच गयी भाभी, माँ दौड़ कर आई ,पूछने लगी

मैं- इलाज करवा लेना इसका, और जब इसे होश आये तो इसे समझा देना गाँव की किसी भी बहन बेटी की तरफ गलत नजरो से देखा न इसने तो खाल खींच लूँगा इसकी

मेरी बात पूरी होती उस से पहले ही मेरे गाल पर थप्पड़ आ पड़ा

“हिम्मत कैसे हुई मेरे पति को हाथ लगाने की तुम्हारी, ” भाभी ने चीखते हुए कहा

मैं- वाह , वाह भाभी वाह , मेरी हिम्मत की बात करती हो हिम्मत इसकी कैसे हुई जब वो लड़की मिन्नते कर रही थी दुहाई दे रही थी अपनी इज्जत की भीख मांग रही थी इस से

भाभी- तो क्या हुआ, ठाकुरों का खून थोडा गर्म होता ही है क्या हुआ अगर कही बाहर मुह मार लिया तो

मैं- क्या हुआ बाहर मुह मार लिया तो , ठाकुरों का खून है , मेरे अन्दर भी ठाकुरों का खून है न भाभी मेरा भी जी कर रहा है चल तू ही आ कर मेरा बिस्तर गर्म, क्या हुआ मैं भी सो लूँगा तेरे साथ

मैंने भाभी का हाथ पकड़ लिया.

“चल तेरे इस मादक जिस्म से मेरी गर्मी मिटा दे, भाभी ” मैंने कहा

तड़क

एक और थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा

“कमीने तुझे शर्म नहीं है अपनी भाभी से ऐसे बात करता है , खाल खींच लुंगी तेरी ” माँ थी ये

मैं- क्यों मिर्च लग गयी , तुम्हारा खून, खून दुसरो का खून पानी कब तक इन न मर्दों की गलतिया छुपओगी माँ

मैं- गलती है इसकी पर तूने जो हरकत की है वो भी गलत है

मैं- क्यों गलत है क्योंकि ये भाभी इस घर की बहु है , वो लड़की भी किसी की बहन बेटी होगी न, और जब उसका जिस्म सस्ता है तो तेरे गहर की बहु का क्यों नहीं .

माँ- निकल जा इस घर से, और मुड के शक्ल मत दिखाना

मैं- जा रहा हु, शौक नहीं है तुम नकली लोगो संग रहने का पर अपने इस चाँद को समझा लेना अगर मुझे मालूम हुआ उस लड़की को इसने फिर तंग किया तो तू तेरी बहु का सिंदूर खुद मिटा देना

अगर मेरा बस चलता तो इस झूठी शान शौकत, दिखावे को मैं इस जहाँ से मिटा देता . मैंने गुस्से में दरवाजे पर थूका और बाहर निकल गया .

दूसरी तरफ, मेघा, हाँ ये मेघा ही थी जो बावड़ी पर खड़ी थी, उसने अपने झोले से एक छोटी सी सीशी निकाली और कुछ बूंदे खून की पानी में डाली , पानी में हलचल हुई मेघा पानी में उतरने लगी , उतरती रही जब तक की डूब नहीं गयी. कुछ देर बाद वो अपने कंधे पर एक मोटी बेल लिए कुछ खींच रही थी, जबड़े भींचे थे जैसे उसे बहुत जोर लगाना पड़ रहा हो. जैसे ही उसने पानी से बाहर आने को अपना पैर बाहार निकाला वो बेल जलने लगी.

तपिशसे अपने कंधे को जलते महसूस किया उसने

“आह” चीखी वो . बेल वापिस पानी में डूब गयी.

“”वारिस को ले आओ , वारिस तुम्हे ये देता है तो ले जाओ “ आवाज आई

“ये मेरा है , मैं इसे लेकर रहूंगी ” मेघा बोली

आवाज- जान जाएगी

मेघा- आजमाइश करुँगी

आवाज- पीछे हटी तो मौत , जीती तो सब तेरा

मेघा- तैयार हूँ

आवाज- तैआर हो

कुछ पल ख़ामोशी छाई रही , और फिर पानी से बुलबुले निकले एक दो तीन नहीं ये तो पुरे २१ थे, और फिर जब वो सामने आये तो मेघा के पैर एक पल को लडखडा गए.

मेघा के सामने २१ नाहर्वीर थे, दुनिया एक को नहीं देख पाती, भाग्यवान थी मेघा जो २१ को देख रही थी , २१ नाहर्वीर जिनका काम था मुद्दतो तक खजाने की रक्षा करना ताकि उसे उसके वारिस को सौंप सके. कोई आवाज नहीं हो रही थी, पर फिर भी सीढियों पर तुफ्फान आया हुआ था. एक तलवार २१ से लोहा ले रही थी .

जहाँ बड़े बड़े तांत्रिक घुटने टेक देते थे उन्हें साधने में मेघा का दुस्साहस ही था ये की वो उनको सीधे युद्ध में हराना चाहती थी, मेघा ने अपनी सिद्धियों का इस्तेमाल किया और अपने रूप के २१ टुकड़े कर लिए. एक मेघा और एक नाहर्वीर पर वो दुनिया के सबसे कुशल रक्षक थे, उन्होंने डोरा बांधना शुरू किया और मेघा कमजोर होने लगी.

कुछ ही पलो में उसके रूप बिखरने लगे, डोरे में फंस गयी थी वो और २१ तलवारे अब उसकी एक से टकराने को उठी, पर टकरा नहीं पायी मेघा को अपने ऊपर ढाल महसूस हुई .
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12-07-2020, 12:17 PM,
#67
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#62
मेघा की आँखे फटी रह गयी जब उसने उन नहारविरो को उस बला के आगे नतमस्तक होते देखा,

“वापिस जाओ ” जैसे उसने आदेश दिया. पल भर में सब शांत हो गया रह गए मेघा और वो .
“जरा भी शर्म नहीं है तुझे, इतना सब होने के बाद भी ये ओछी हरकत, धन की भूख है तो मांग मुझसे, जिनसे तूने टकराने की सोची थी उनके बारे में मालूम तो कर लिया होता तूने, तेरा जो ये दंभ हैं न तेरी इस आधी जान को ले जायेगा ” गुस्से से फुफकारते हुए उसने मेघा से कहा

मेघा- जानती हु ,

वो- जानते हुए भी

मेघा- हाँ जानते हुए भी और कारण आप भी जानती है

उसने घुर कर मेघा को देखा फिर बोली- जो तेरा नहीं है नहीं वो तेरा हो नहीं पायेगा. तूने अपनी गलतियों की वजह से ऐसा जाल बुन दिया है तू जितना उसके पास जायेगी वो तुझसे उतना ही दूर होगा.

मेघा- इसीलिए तो मैं ये सब कर रही हु.

मेघा ने अपने गले में पड़ा वो लॉकेट उसे दिखाया . अब हैरानी की बारी उस बला की थी .
“तो तेरा प्रयोजन ये था , बहुत बड़ा छल किया है तूने, ” उसने कहा

मेघा- छल नहीं, प्रेम करती हु उस से , और मैं हर वो परीक्षा दूंगी जिस से मैं अपने प्रेम को पा सकू, जी सकू उसके साथ ,

“मोहब्बत साची हो न छोरी तो उपरवाले का कलेजा भी पिघल जाता है पर न तू सच्ची न तेरा प्रेम. जब उसके नाम का मंगलसूत्र पहन ही लिया तो डंके की चोट पर पकड़ उसका हाथ, दिखा जमाने को तेरा प्यार. क्यों दूर भाग रही है उस से, जितने भी दिन का साथ है ,जी उसके साथ सच बता दे उसे , प्रेम सच्चा है तो कोई राह निकल आएगी , मेरी मान प्रेम ही वो शक्ति है वो धारा का रुख मोड़ देती है , ” उसने मेघा को समझाते हुए कहा

मेघा- बता दूंगी , बस मेरा ये काम पूरा हो जाए
“उफ़ तेरा ये हठ , पंचमी नजदीक आ रही है आगे भाग और सुन तू इस रस्ते पर मत चल कुछ नहीं मिलेगा दुखो के सिवा ” उसने मेघा से बात कही और मुड कर चल पड़ी

मेघा- एक मिनट रुकिए, मुझे आपका परिचय जानना है

“अभागनो के नाम नहीं होते , होता है तो बस उनके भाग में दुःख, तुझे अपने जैसी नहीं नहीं देखना चाहती इसलिए रोकती हु मान न मान तेरी मर्ज़ी ” उसने कहा और चल पड़ी. पायल की आवाज सन्नाटे को चीर गयी

इधर मैं बेसर्ब्री से इंतज़ार कर रहा था की कब वो डायरी मेरे पास आये और मैं उन पन्नो को पढ़ कर अतीत को आज से जोड़ दू. कर्ण से झगडे के बाद मैं गाँव भी नहीं जा सकता था और रतनगढ़ जाने का कारण था नहीं मेरे पास . उस डायरी के अलावा एक चीज़ और थी वो थी मेघा ,

वो शहर में थी , पर इतने बड़े शहर में उसे कहाँ तलाश करू, इक तरफ मैं चिंतित इसलिए भी था की पंचमी आने वाली थी , मजार की मिटटी लेके मुझे जाना कहाँ था वो भी नहीं मालूम था . पर इतना जरुर विश्वास था की पंचमी को मेघा जरुर मिलेगी मुझे
.
अर्जुन्गढ़, रतनगढ़ के बीच आखिर ऐसी क्या दुश्मनी थी , मैंने बहुत सोचा बहुत सोचा बहुत ज्यादा सोचा , ये सब शुरू हुआ जब मैं पहली बार रतनगढ़ गया मेघा मिली, दूसरी अजीब चीज थी वो दिया, वसीयत में मिला मामूली दिया , मेरे दादा जानते थे उनके बारे में ,

बहुत सोच कर मैं एक बार फिर से शहर चल दिया.

बेशक वकील मर गया था पर उसकी औलाद उसके जूनियर मेरी मदद कर सकते थे, कुछ घंटो बाद मैं फिर से वकील के ऑफिस में था,
“मुझे मेरे दादा और परदादा की हर एक प्रोपर्टी जिनकी डीड बनवाई गयी थी छोटी से छोटी जमीन उनकी जानकारी चाहिए, ”

शाम तक मैं वही बैठा तमाम उन कागजो को खंगालता रहा जो मेरे खानदान से सम्बंधित थे पर सब बेकार था कोई ऐसा सुराग नहीं मिला जो मदद कर सके . खैर, वापसी में मैंने थोडा सामान लिया और गाँव की तरफ हो लिया.
खेत तक पहुचते पहुचते रात घिर आई थी मैंने देखा ताई आई हुई थी,

मैं- यहाँ कैसे

ताई- तुमसे मिलने

मैं- देवर ने भेजा है क्या

ताई- खुद आई हु,

मैं- बड़े दिनों बाद आई याद

ताई- कई बार आ चुकी हूँ, पर तुम मिलते नहीं

मैं- मुसाफिरों का क्या ठिकाना , आज यहाँ तो कल कही और

ताई- मुझे एक बात करनी है तुमसे

मैं- कहो,

वो- तुम्हारे घर छोड़ने की क्या वजह थी .

मैं- मुझे लगा था तुम्हारे देवर ने बता दिया होगा. जब तुमने चूत दे दी तो इतना तो पूछ लिया होता

ताई- चूत तो तुम्हे भी दी है , उसी का लिहाज करके बता दो

मैं-बस बाप बेटे का झगडा था

ताई- मैं उस रात का सच जानना चाहती हु कबीर, कर्ण के साथ जो हुआ उस से मुझे लगता है की

“आपको लगता है की मैंने ही आपके पति को मारा है , यही न ” मैंने ताई की बात पूरी की

ताई- मेरा वो मतलब नहीं था , कबीर , पर उस दिन उनकी लाश तुम और देवर जी ही लाये थे, और फिर उसी रात तुमने घर छोड़ दिया.

मैं- तो ये बात तीन साल में कभी भी पूछ लेती ,
ताई- कबीर, मैं बस उस रात का सच जानना चाहती हु ,

मैं-मुझे नहीं मालूम

ताई- मैं जानती हु कबीर, की हमारे घर में सबने मुखोटे ओढ़े है बस मैं असली रंग देखना चाहती हु.

मैं- तो फिर अपने देवर से क्यों नहीं पूछती वो क्यों नहीं बताते

ताई- नहीं बताता इसलिए ही तो तुम्हारे पास आई हूँ

मैं- आपको जाना चाहिए

ताई- नहीं बताना चाहते तुम, तो ठीक है मैं तुमसे एक सौदा करती हूँ तुम उस रात का सच मुझे बताओगे, बदले में

मैं- बदले में क्या

ताई- बदले में मैं तुम्हे कुछ ऐसा बताउंगी , जो तुम्हारी मदद करेगा, ये जो तुम उधेध्बुन में लगे हो मैं तुम्हे एक मजबूत सिरा दूंगी.

मैं- कैसे विश्वास करू, हो सकता है तुम्हारे देवर ने कोई योजना बनाई हो मेरे खिलाफ

ताई- मैं जल की सौगंध उठा सकती हु.

मैं- ठीक है पर मेरी दो शर्त है ,

ताई- क्या

मैं- एक तो वो जानकारी और दुसरे मेरे एक सवाल का जवाब .

ताई- मंजूर
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12-07-2020, 12:17 PM,
#68
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#63

मैं- तो ठीक है , उस रात बारिश बहुत तेज थी , उसी बारिश की वजह से मैं जंगल में एक पेड़ के निचे खड़ा था , घर आने की जल्दी थी पर बरसात तेज और तेज होती गयी, फिर मुझे ध्यान आया की फार्म हाउस नजदीक ही है क्यों न वहा चला जाऊ,

ताई- फिर .

मैं- भीगते हुए मैं फार्म हाउस पंहुचा , गीले कपडे बदलने मैं बाथरूम में था ही की ताऊ भी अपनी गाड़ी में आ गया पर वो अकेला नहीं था उसके साथ एक औरत थी , जिसके हाथ पाँव ताऊ ने बांधे हुए थे . ताऊ बहुत ज्यादा नशे में था , फिर उस औरत को होश आ गया .

ताई- फिर क्या हुआ

मैं- बता रहा हु, जैसे ही उस औरत को होश आया वो समझ गयी की गलत जगह पर आ फंसी है वो , ताऊ का दिल आया हुआ था उस पर इसलिए वो उठा लाया था उसे, चोदना चाहता था, वो गिडगिडाने लगी अपनी लाज की दुहाई देने लगी. पर ताऊ तो मालिक था न गाँव बस्ती का, उसने उस औरत के साथ जबरदस्ती करनी चाही

मैं ये देख न सका और बीच में आ गया. मैंने ताऊ को समझाने की कोशिश की , की ये सब गलत है पर वो नहीं माना, हमारी झीना- झपटी हो गयी , की तभी पिताजी आ गए वहां पर , अपने भाई को तो वो क्या कहते मुझे ही मारने लगे, माहौल थोडा ज्यादा गर्म हो गया .

पिताजी ने मुझे वहा से जाने को कहा , क्योंकि उन्होंने अपने भाई का पक्ष ले लिया था , ठीक उसी तरह से जैसे मेरी माँ और भाभी ने कर्ण का पक्ष लिया. पर मैं वाही रुका रहा, मैंने कहा की जाऊंगा पर उस औरत के साथ .

ताऊ अपनी जिद पर था और मैं अपनी , नशे में ताऊ फिर मुझसे उलझ गया और मैंने भी पिताजी का लिहाज नहीं किया , पिताजी बीच बचाव करने लगे, की तभी बिजली चली गई और हमने चीख सुनी , ताऊ की चीख थी वो . मैंने भाग कर लालटेन जलाई और जब कुछ देखने लायक हुआ तो ताऊ निचे पड़ा था उसकी छाती में खंजर घुसा हुआ था, उसी समय वो मर गया था.

पिताजी ने सोचा की अँधेरे का फायदा उठा कर मैंने ताऊ को मार दिया. जबकि उस थोड़ी देर के अँधेरे में क्या हुआ था कोई नहीं जानता , बस सच यही है की ताऊ मर चूका था . पिताजी को लगता है की मैंने ताऊ को मारा , इसी बात पर हमारे बीच तकरार हुई, दुरिया हो गयी और मैंने घर छोड़ दिया.

मेरी बात सुन कर ताई खामोश हो गयी . मैं उसके चेहरे पर आये भावो को पढने की कोशिश करने लगा.

मैं- बस यही थी उस रात की कहानी, अब तुम मुझे बताओ

ताई- अभी नहीं, पहले तुम मुझे बताओगे की वो कौन औरत थी, जिसके लिए तुम अपने ताऊ के खिलाफ हो गए.

मैं- हमारे सौदे में ये नहीं है ताई.

ताई- तो ठीक है भूल जा सौदे को फिर,

मैं- ये गलत बात है , धोखा हुआ ये तो

ताई- कैसा धोखा, मुझे हक़ है पूरी जानकारी लेने का , तूने नहीं मारा , देवर जी ने नहीं तो बची वो औरत , उसी ने मारा मेरे पति को , तू मुझे उसका नाम दे मैं तुझे तेरा सुराग दूंगी.

मैं- उसका नाम तो नहीं बताऊंगा,

ताई- तो ठीक है मत बता देवर जी से पूछ लुंगी

मैं- कर ले कोशिश मेरे और मेरे बाप के बीच एक करार है , उस औरत की सुरक्षा का , मेरा बाप भी नहीं बताएगा चाहे कितना ही लंड हिला तू उसका .

ताई- मैं पता कर ही लुंगी, और उसकी लाश तेरे इसी दरवाजे पर पटक कर जाउंगी, जिसके लिए तूने अपने ताऊ को मरवा दिया उसकी लाश जरुर देखेगा तू

मैं- वो दिन कभी नहीं आएगा, अगर तूने मालूम भी कर लिया उसके बारे में और मुझे खबर मिली की उसके जिस्म पर खरोंच भी आई, तो कसम है मुझे मैं भूल जाऊंगा तू मेरी ताई है , और तू क्या सोचती है तू मुझे नहीं बताएगी तो तेरे हाथ पांव जोडू मैं, कबीर में अभी इतनी गैरत बाकी है .

ताई- नादानी मत कर , तू बस उसका नाम बता दे बदले में मैं तेरी मुश्किल हल कर दूंगी,

मैं- तू मुझे समझ ही नहीं पायी कभी ताई, जा चली जा दूर हो जा मेरी नजरो से .

गुस्से में तमतमाती ताई चली गयी, मैं बस उसकी गोल मटोल गांड को देखते रहा . बेशक मैं चाहता तो इस सौदे में अपना फायदा बना सकता था पर फिर क्या इंसानियत रहती मेरी, जिस जान को मैंने बचाया था उसी को अपने फायदे के लिए हलाल करवा देता तो धिक्कार था मेरे ऊपर .

शाम होते ही मैं गाँव की तरफ चल दिया और सीधा पंहुचा सविता मैडम के घर , मैडम मुझे देखते ही हमेशा की तरह खुश हो गयी .

“बड़े दिन बाद आये ” मैडम ने कहा

मैं- हाँ थोडा व्यस्त था , पर अभी मुझे बहुत जरुरी बात करनी है

सविता- हाँ कहो

मैं- मास्टर जी कहा है

वो- तुम्हारे पिता के साथ शहर गए है , क्या मालूम कब लौटेंगे

मैं- ताई आखिरी बार कब मिली थी तुमसे

सविता- कल शाम को .

मैं- जब वो तुम्हारे साथ थी कुछ ऐसी घटना हुई थी क्या मतलब उन्होंने किसी बात का जिक्र किया , जो मुझसे सम्बंधित था , या हमारे परिवार से मतलब कोई छुपी हुई बात

सविता- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं . वो रोज ही आती है मुझसे मिलने बस कल हम घर पर नहीं बल्कि स्कूल में ही बैठे थे , तुम तो जानते हो मैं कभी देर तक रुक जाती हु,

मैं- कोई आया था मिलने उस दौरान , तुमसे या ताई से

सविता- ऐसा तो कोई खास नहीं था पर तुम क्यों पूछ रहे हो .

मैं- ताई को मालूम हो गया है की उसके पति को किसने मारा

ये सुनते ही सविता के होश उड़ गए. उसने मेरी तरफ देखा

मैं- उसे शक है बस नाम नहीं पता ,

सविता- पर तुम तो जानते हो कबीर की मैंने .......

मैं- जानता हु तुमने नहीं मारा उसे, दरअसल यही मेरी उलझन है की ताऊ को मैंने नहीं मारा, तुमने नहीं मारा पिताजी अपने भाई को मारेगा नहीं तो फिर कौन कर गया वो काम
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12-07-2020, 12:18 PM,
#69
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#64

“कबीर मैं तुम्हारी अहसानमंद हु मेरी लाज बचाने के लिए तुमने न जाने क्या क्या कुर्बान कर दिया. घर बार सब छोड़ दिया, जब इस हाल में तुम्हे देखती हु तो दिल दुखता है मेरा ” सविता ने कहा

मैं- नसीब है मैडम जी,

सविता- पर कही न कही मैं दोषी भी तो हूँ

मैं- कोई और भी होती तो भी मैं उसके लिए ऐसा ही करता , पर फिलहाल मेरी प्राथमिकता है की तुम्हे ताई से दूर रखा जाए, मैं उस पर एक मिनट का भी भरोसा नहीं कर सकता, वो पूरा जोर लगाएंगी तुम्हे ढूंढने का

सविता- मैं ध्यान रखूंगी,

मैं- हमेशा अपने पास बन्दूक रखना जब भी तुम्हे लगे की तुम्हे खतरा है बेहिचक गोली चला देना बाकि मैं देख लूँगा.

सविता- जब तुम साथ हो तो मुझे क्या खतरा होगा,

मैं- ये ठीक है पर हर समय भी तो मैं साथ नहीं हो सकता न , अब तक तो मैं निश्चिन्त था पर अब जब आग लग ही गयी है तो जल्दी ही धुआ भी दिखाई देगा, मेरी जिन्दगी में बहुत कम लोग है और मैं नहीं चाहता की उनमे से भी कोई कम हो जाये

मैंने सविता का हाथ पकड़ा और कहा - वादा करो तुम, अगर कोई ऐसी परिस्तिथि आई जब तुम अकेली इस खतरे का सामना करोगी तो , बेहिचक तुम निर्णय लोगी.

सविता- हाँ कबीर,

मै- ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ अपना ख्याल रखना ,और चूँकि ताई तुम्हारी खास सहेली है ध्यान देना उसके व्यवहार पर, उसकी बातो पर

मै उठ कर खड़ा हुआ की सविता ने मेरा हाथ पकड़ लिया.

“रुको कबीर, ” सविता बोली

मैं- क्या हुआ .

सविता- कुछ नहीं मैं चाहती हु की तुम आज रात मेरे साथ रहो, मेरे पास रहो ,

सविता का आँचल थोडा सा सरक गया मेरी निगाह उसके उन्नत वक्षो पर पड़ी .

मैं- अगर मुझे ये करना होता तो कभी का कर सकता था न

सविता- जानती हु कबीर, पर मेरी इच्छा है , मैं ये करना चाहती हु

सविता आगे बढ़ी और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए. प्यासे होंठो से सुर्ख लबो की रगड़ ने बदन को हिला कर रख दिया. सविता अपने आप में हुस्न का एक बम थी , जैसे जैसे वो चूमती जा रही थी मेरे हाथ उसकी गोल गांड तक पहुच गए . मैंने उसके कुलहो को दबाया.

सविता की साडी उतार कर फेक दी मैंने , बलाउज और काले पेटीकोट में उसका गोरा बदन कहर ढा रहा था . ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को बेताब उसकी पञ्च पांच किलो की चुचिया. किसी को भी पागल कर दे, मैंने अपनी पेंट खोल दी.

सविता की नजर मेरे लंड पर पड़ी. मुस्कुराते हुए वो मेरे पास आई और उसे अपनी मुट्ठी में भर लिया. नर्म उंगलियों के स्पर्श मात्र ने ही मेरे तन में आग सुलगा दी. मैंने उसे अपने आगे खड़ी की और उसकी चुचियो को मसलने लगा. बलाउज को उतार फेंका . मैंने उसके कंधो को चूमा.

सिसकारी भरते हुए वो लंड को हिला रही थी मैंने अपनी उंगलिया पेटीकोट के नाड़े में फंसाई और संमर्मारी जांघो से रगड़ खाते हुए वो सविता के पैरो में आ गिरा. मैंने कभी सोचा नहीं था की सविता को चोदने का दिन आएगा. मैंने कभी इस नजर से देखा ही नहीं उसे.

“सीईई ” सविता आहे भरने लगी थी उसके अपनी जांघे खोली और मैंने चूत को अपनी मुट्ठी में भर लिया, जैसे एक छोटी भट्टी दहक रही हो.

“बहुत गर्म हो तुम,”

“बहुत दिनों से किआ नहीं न ” सविता बोली

मैं- मास्टर जी की रूचि नहीं है क्या

सविता- समय कहाँ है हमेशा से तो तुम्हारे पिताजी के साथ घूमते रहते है , वो तो बाहर मुह मार लेते होंगे मैं प्यासी रह जाती हु

मैं- पहले बता देती ऐसी बात थी तो

सविता- तुम कब समझे मेरे इशारे, हार कर आज मुझे खुल कर कहना ही पड़ा.

सविता ने अपने हाथ घुटनों पर रखे और झुक गयी उसकी बड़ी सी गांड देख कर मैं तो पागल हो गया. मैंने लंड को चूत के मुहाने पर रखा और उसकी कमर को थामते हुए धक्का लगा दिया. चूँकि सविता के बच्चा नहीं हुआ था तो चूत में दम था. मेरे लंड ने जैसे ही अपनी जगह बनाई मैं उसे पेलने लगा.

मेरे धक्को के घर्षण से उसकी चूत का पानी जांघो तक बहने लगा. वो आह आह कर रही थी मैं उसे पेल रहा था . सविता के पैर मस्ती के मारे डगमगाने लगे थे, पुच की आवाज से लंड बाहर निकल आया.

सविता- बेड पर चलो

वो मेरे आगे आगे अपनी गांड मटकाते हुए चल रही थी, ऐसा मादक द्रश्य देख कर मैं और उत्तेजित हो गया. बिस्तर पर लेटते ही उसने अपनी जांघे फैलाई मैंने उसकी जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया. और एक बार फिर हम एक दुसरे में समां गए. मैं बार बार उसके होंठो को चूम रहा था फिर मैंने उसके निप्पल को मुह में भर लिया.

सविता का पूरा बदन ऐंठ गया मेरी इस हरकत पर उसने मुझे कस कर भींच लिया अपनी बाहों में और कुछ ही देर में हम दोनों साथ साथ झड़ गए. उसका बदन बुरी तरह कांप रहा था . कुछ देर हम एक दुसरे से लिपटे रहे फिर अलग हो गए.

सविता शायद बाथरूम में चली गयी, मैं लेटा रहा . की तभी मेरा फ़ोन बज उठा, दुनिया में बस एक ही थी जिसका फ़ोन मुझे आता था , वो थी प्रज्ञा मैंने तुरंत फ़ोन उठाया

मैं- हाँ,

प्रज्ञा- कबीर, कहाँ हो, मुझे अभी तुमसे मिलना है

मैं- अभी पर क्यों कैसे

प्रज्ञा- कोई सवाल नहीं , मैंने कहा न अभी के अभी मिलना है

मैं- ठीक है जगह बताओ

प्रज्ञा- मैं अनपरा में हु, तुम यही से पिक करो मुझे

मैं- ठीक है जल्दी ही पहुचता हूँ

मैंने फटाफट अपने कपडे पहने तबतक सविता आ गयी .

सविता- क्या हुआ,

मैं- मुझे जाना होगा बहुत जरुरी है

सविता- कहाँ जा रहे हो

मैं- मिलके बताता हु

मैंने बाहर निकलते हुए कहा , तभी मुझे एक बात ध्यान आई

मैं- तुम्हारी गाड़ी मिल सकती है क्या

सविता- हाँ क्यों नहीं, उधर मेज पर रखी है चाबी.

मैंने सविता का माथा चूमा और उसे अपना ध्यान रखने को कहा .

गाड़ी स्टार्ट करते ही मैंने गति बढ़ा दी. आखिर ऐसा क्या हुआ था जो मुझे प्रज्ञा ने तुरंत ही अनपरा बुलाया था . दिल जोरो से धडकने लगा था .
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12-07-2020, 12:18 PM,
#70
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#65

मेरे दिल में एक साथ हजार सवाल दौड़ रहे थे आखिर ऐसी क्या बात थी जो प्रज्ञा ने मुझे इतना अर्जेंट बुलाया था, किसी अनहोनी की वजह से मैं थोडा टेंशन में आ गया था , ले देकर बस एक प्रज्ञा ही तो बची थी मेरे पास , खैर मैं जल्दी ही अनपरा पहुच गया , मैंने उसे फ़ोन किया

मैं- हाँ मैं पहुच गया हु

प्रज्ञा- पुरानी हवेली के पास आ जाओ

मैंने गाड़ी उस तरफ मोड़ ली, कुछ देर बाद प्रज्ञा उस तरफ आई , उसके हाथो में एक बैग था , तुरंत वो गाड़ी में बैठ गयी

मैं- क्या हुआ .

वो- बताती हु, तुम गाड़ी स्टार्ट करो

मैं- पर हुआ क्या

प्रज्ञा- कहा न यहाँ से चलो

मैं- ठीक है बाबा , पर किधर चलना है .

प्रज्ञा- जहाँ सिर्फ हम दोनों हो .

उसने मेरे काँधे पर अपना सर रखा और बोली- थोड़ी देर सोना चाहती हु

मैं समझ गया था की उसे कहाँ जाना है और ये भी की परेशान है वो . रात आधी से ज्यादा बीत गयी थी , थोडा समय और लगा हमें फिर हम प्रज्ञा के फार्महाउस पहुच गए.

गाड़ी अन्दर लगाई और फिर कमरे में आ गए.

मैं- अब तो बता दो

प्रज्ञा- बताती हु, मेरे पति और तुम्हारे पिता का क्या रिश्ता है

मैं- इस सवाल के लिए इतना जल्दी था मिलना

प्रज्ञा- बताओ मुझे

मैं- तुम नहीं जानती क्या

प्रज्ञा- जानती तो तुमसे सवाल नहीं करती

मैं- दुश्मनी का

प्रज्ञा - और दो दुश्मन जब एक साथ आ जाये, उनमे दोस्ती हो जाये तो

मैं- हो सकता है लोग अपने स्वार्थ के लिए अक्सर दुश्मनी भुला देते है , या फिर कोई ऐसी चीज़ जो दुश्मनी से ऊपर हो , मतलब कोई व्यापारिक फायदा जैसे की

प्रज्ञा- यही बात मुझे खटक रही है की पीढियों की दुश्मनी को अचानक भुला कर दो लोग एक कैसे ही गए, कोई और मौका होता तो मैं भी खुश होती की चलो दोनों गाँव एक हो गए, भाईचारा बन गया , पर इस हालात में ये कैसे मुमकिन है

मैं- भाड़ में जाए दुनिया, तुम क्यों इतना सोचती हो. अगर दोनों कोई खिचड़ी पका भी रहे है तो भी हमें क्या लेना देना उनसे

प्रज्ञा- आज होटल में एक मीटिंग हुई है , किस्मत से मुझे जानकारी मिल गयी ,

मैं- क्या हुआ मीटिंग में

प्रज्ञा- ये कहानी इतनी आसान नहीं है कबीर, इस कहानी के मोहरे भर है हम सब , तुम्हे याद होगा कबीर मैंने तुमसे कहा था की राणाजी ने बहुत सा सोना ख़रीदा है . वो लोग उस सोने से कुछ करने जा रहे है

मैं- क्या , क्या करने जा रहे है

प्रज्ञा- ये मालूम करना होगा हमें .

मैं- किस जगह

प्रज्ञा- जल्दी ही मालूम कर लुंगी मैं

मैं- हम्म, पर तुम्हारी माँ बीमार है , तुम्हे ऐसे नहीं आना चाहिए था फ़ोन पर बता देती , मैं देख लेता मामले को

प्रज्ञा- मेरा सब कुछ दांव पर लगा है कबीर, राणाजी ने रखैल पाली हुई है गृहस्थी डांवाडोल हुई पड़ी है

मैं- समझता हूँ पर सोचो जरा एक दिन ऐसा आएगा जब दुनिया के सामने तुम्हे हमारे इस रिश्ते को बताना पड़ेगा तब क्या कहोगी तुम राणाजी से.

प्रज्ञा- मैं क्या कहूँगी, मैं क्या कहूँगी मैं हक़ से तुम्हारे हाथ को थाम लुंगी

मैं- किस हक़ से

प्रज्ञा- दोस्ती के हक़ से,

मैं- जमाना कहाँ मानता है इन बातो को और मेरी वजह से तुम्हारे दामन पर दाग लगे, ऐसा होने नहीं दूंगा मैं .

प्रज्ञा- इसलिए तो तुमपे भरोसा करती हूँ , ये जिस्मानी रिश्ते इसलिए नहीं बनाये मैंने की मेरी हवस मेरे काबू में नहीं है बल्कि मैं तुमसे इस तरह जुडी हु की तुम मेरा एक हिस्सा हो .

मैं- इसीलिए डरता हु की कही मेरी वजह से तुम्हारी ग्रहस्थी में आग न लग जाये.

प्रज्ञा- आग तो राणाजी ने लगा ही दी है , मैं तो बुझाने की कोशिश कर रही हूँ

मैंने ताई वाली बात प्रज्ञा को बताई की मैं सविता के लिए चिंतित था

प्रज्ञा- अगर वो रतनगढ़ आ जाये तो मैं जिम्मेदारी ले सकती हु उसकी सुरक्षा की

मैं- ऐसा नहीं हो पायेगा.

प्रज्ञा- तो फिर जैसा है वैसे रहने दो. वैसे मैंने एक बात और मालूम कर ली है

मैं क्या

प्रज्ञा- यही की कामिनी के कमरे में वो कौन आदमी की तस्वीर थी .

मैं- ये सबसे पहले बताना था न

प्रज्ञा- अभी ध्यान आया, वो राणा हुकुम सिंह की तस्वीर थी ,

मैं- कौन राणा हुकुम सिंह

प्रज्ञा- तुम्हे हमेशा से इतिहास जानने की तलब थी न , मैं पूरा तो नहीं पर जितना जानती हूँ बताती हूँ , राणा हुक्म सिंह का ताल्लुक देवगढ़ से है .

मैं- देवगढ़. पर वो तो

प्रज्ञा- हाँ , वही देवगढ़ जो बरसो पहले खत्म हो गया .

प्रज्ञा ने एक पेग बना कर मेरी तरफ बढ़ाया

मैं- इस से बात नहीं बनेगी,

प्रज्ञा- तो क्या चाहिए तुम्हे

मैं- तुम्हारी चूत का रस पीना चाहता हु

प्रज्ञा- तुम्हारी ये अश्लील बाते, कलेजे में उतर जाती है

मैं- तुम हो ही ऐसी , इस खूबसूरत बदन की कशिश मुझे पागल कर देती है

प्रज्ञा- ठीक है वो रस भी पिला दूंगी , पर पहले इन अधूरी बातो को पूरा कर लेते है , और कल सुबह सुबह ही हम देवगढ़ के लिए निकलेंगे.

मैं- बिलकुल , पर एक बात खटक गयी है दोनों ठाकुर मिल कर आखिर क्या करने वाले है कामिनी की डायरी भी नहीं आई है दुरुस्त होक , कुछ जानकारी मिल जाती

प्रज्ञा- जानकारी मिली तो है , देखो मंदिर में पिघला सोना, फिर वो बावड़ी पर सोना, उसके बाद दोनों ठाकुरों का सोना खरीदना, फिर कामिनी की हवेली में पिघला सोना मिलना , ये सब आपस में जुडी हुई घटनाये है , बस हमें इनके जुड़ने की वजह तलाश करनी है

मैं- और वो वजह हमें मिलेगी देवगढ़ में .

मैंने प्रज्ञा का हाथ पकड़ा और उसे अपने आगोश में खींच लिया .

प्रज्ञा- मुझे लगता है थोड़ी देर सो लेना चाहिए

मैं- सो लेंगे पर अभी मुझे तुम्हे प्यार करना है .
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