Maa ki Chudai माँ का चैकअप
08-07-2018, 10:56 PM,
#32
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--13

"अब तू जवान हो चुका है रेशू! इस अवस्था के तेहेत तुझे अपनी मा के मम्मो से प्यार करना कतयि सोभा नही देता बेटे" ममता ने नैतिकता का बखान किया परंतु अपनी चूत के रिसाव को कैसे नज़रअंदाज़ कर पाती. लगातार बहते हुवे उसके गाढ़े कामरस से उसकी काली घनी झान्टे अत्यंत चिपचिपी हो चली थी, पूर्व से फूला हुआ उसका संवेदनशील भांगूर अब तीव्रता से फड़कने लगा था.

"काश कि मेरा बचपन वापस लौट आए मा! जैसे उस वक़्त मैं तुम्हारे इन सुंदर निप्पलो को चूसा करता था, अपनी नन्ही उंगलियों से इन्हे सहलाया करता था, तुम्हारे यही निपल मेरा सबसे पसंदीदा खिलोना हुआ करते थे और यक़ीनन तुम्हे भी इन्हे मेरे सुपुर्द करने में आनंद की प्राप्ति होती होगी क्यों कि तुम्हारे अमूल्य दूध से ही तुम्हारे बेटे को सुरक्षित भावी जीवन मिलना था. मैं सच कह रहा हूँ ना मा ?" अपनी मा के तने चूचकों को बलपूर्वक उमैठते हुवे ऋषभ ने कहा.

"ओह्ह्ह्ह .. हां रेशू! मुझे बहुत खुशी होती थी, किस मा को नही होती होगी ? आख़िरकार मैं तेरी जनम्दात्रि थी, कैसे तुझे तेरे हक़ से विंचित रख पाती ? मगर अब तू वो नन्हा रेशू नही रहा और मेरे मम्मो का दूध भी सूख चुका है" बोलते हुवे ममता का रोम-रोम पुलकित हो रहा था, बीते उन यादगार पलो को सोचते हुवे बरसो बाद उसकी कोख अचानक से कुलबुला उठी थी.

"बड़ा हो गया हूँ तो क्या हुआ मा! अब भी तुहमे मुझे रोकने का कोई हक़ नही" ऋषभ ने निप्पलो को निचोड़ना ज़ारी रखते हुवे कहा और साथ ही साथ अपने खुश्क होंठो से अब वह ममता की गर्दन चूमने लगता है, हलाकी बजाए चुंबन के वह उसकी गर्दन को चाटना चाहता था मगर अपनी मा के प्रति उसका झूठा लाड कहीं उसकी असल वासना का भेद ना खोल दे, अपने सैयम को अंत तक बचा कर रखना उसकी पहली और अंतिम प्राथमिकता बन गयी थी.

"सीईईईईई आहह! तुझे रुकना ही होगा रेशू .. नही तो! नही तो मैं ....." कहते हुवे ममता की गर्दन अकड़ गयी, उसका मूँह खुल जाता है. अपने मम्मो पर वह क्या कम आघात झेल रही थी जो अब ऋषभ उसे चूमने भी लगा था.

"आज के बाद मैं इन्हे कभी नही देख पाउन्गा मा! कम से कम तुम कुच्छ देर तो सहेन कर ही सकती हो" ऋषभ आग्रह के स्वर में फुसफुसाया, उसके नथुओ से बाहर निकलती गरम हवा सीधे उसकी मा के बाएँ कान के भीतर प्रवेश कर रही थी और होंठो से उसकी गर्दन चूमने की गति भी रफ़्तार पकड़ चुकी थी. वह जानबूझ कर अपनी लार को अधिक मात्रा में गर्दन पर उगलता जाता ताकि चटाई ना सही चुसाई का सुख तो मिलता ही रहे. कोई शरम नही! ना ही कोई डर! वासना की प्रचूरता में वह बेहद निर्भीक हो चला था. पहली बार अपनी मा के छर्हरे नंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था, जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को पूरी तरह से क्षीण कर दिया था.

"रेशू .. उफफफ्फ़! मान जा बेटे .. ओह्ह्ह! मैं बहेक जाउन्गि" ममता ने सिहरते हुवे कहा, उसके पुत्र की लार उसकी गर्दन से नीचे बह कर उसकी पीठ को भिगोने लगी थी. कुच्छ ही क्षणो के पश्चात उसने अपने दोनो हाथ अपने पुत्र के हाथो पर रख दिए और स्वयं भी शक्तीपूवक अपने मम्मो को भिचना आरंभ कर देती है.

"अहह रहुउऊउउ" उसकी चीख से कॅबिन गूँज उठा, उसके पुत्र ने अपने नुकीले दाँत उसकी गर्दन पर गढ़ा दिए थे. उसके लंड की कठोरता का एहसास ममता को पथ भ्रष्ट हो जाने के लिए उकसाने लगा था, जिसके प्रभाव से वह तीव्रता के साथ अपने निचले धड़ को हिलाने लगती है.

"ओह्ह्ह्ह मा! कितना अच्छा लग रहा है, कभी ना मिल सका ऐसा मज़ा आ रहा था" ऋषभ बेहद उद्विग्न लहजे में बोला, उसकी कमर भी अब उसकी मा के निच्छले धड़ का पूरा समर्थन कर रही थी. यदि उसके शरीर की लंबाई कम होती तो यक़ीनन उसका लंड ममता की पीठ की बजाए उसके चूतड़ो की दरार के भीतर रगड़ का रहा होता.

"यह .. यह ठीक नही रेशू! मैं तेरी मा हूँ" अपने पुत्र की हरक़तो में अचानक से आए बदलाव के मद्देनज़र ममता ने घबराते हुवे कहा, माना उसे रोकने के स्थान पर अपने पापी किर्यकलापो के ज़रिए वह खुद उसकी उत्तेजना को बढ़ाती जा रही थी मगर उसका ममत्व निरंतर उसे झकझोर रहा था, कचोट रहा था कि उसे अपनी उमर और मा होने के गौरव को तुरंत नष्ट होने से बचा लेना चाहिए.

"मुझे पता था मा कि तुम पापा को मुझसे ज़्यादा चाहती हो वरना मुझे कभी खुद से दूर ना करती" ऋषभ क्रोधित स्वर में बोला, उसकी मा के कथन से उसका डगमगाता सैयम पुनः उसके क़ब्ज़े में लौट आया था.

"अगर तुम वाकई मुझे नही चाहती तो मैं तुम्हे विवश नही करूँगा" अपनी मा के मम्मो को छोड़ कर उनसे ममता के हाथो को भी झटक दिया, उसकी नाटकीय छवि तो जैसे उसका सबसे बड़ा हथियार थी.

"नही रेशू" ममता ने फॉरन उसके हाथो को थाम कर कहा और दोबारा उन्हे अपने मम्मो के ऊपर रखने का प्रयत्न करने लगती है.

"तू नही जानता कि मैं इस वक़्त क्या झेल रही हूँ! खेर अभी मेरा तुझे रोकने का कारण कुच्छ और ही है बेटे" वह ऋषभ के हाथो से स्वयं अपने मम्मो का मर्दन करते हुवे बोली.

"वो क्या भला ?" ऋषभ ने व्याकुलतापूर्वक पुछा और अपनी मा के अगले कपकापाते अल्फ़ाज़ सुन कर तुरंत उसके होंठो पर शरारती मुस्कान व्याप्त हो जाती है.
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