12-09-2019, 01:33 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
![*](images/star.png) ![*](images/star.png) ![*](images/star.png) ![*](images/star.png) ![*](images/star.png) ![*](images/star.png) ![*](images/star.png)
|
Posts: 52,952
Threads: 4,450
Joined: May 2017
|
|
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम : हाहाहा बस आपके ये हाथ में देखा तो मैं भी बातों में लग गया चलो चलता हूँ शायद रात को देरी से आउ घर आने से पहले मिस कॉल दे दूँगा ठीक है
अंजुम : अच्छा बेटा चल जा
आदम : हा हा हा हा
आदम हंसता हुआ माँ से गले मिलते हुए अपना बॅग उठाए जल्दी जल्दी घर से रवाना होता है...वाक़ई कितना ख्याल रखता था वो अपनी माँ का?.....अंजुम फिरसे उस तस्वीर को देखने लगी और उसे दराज़ में रखते हुए काम में जुट गयी....दोपहरी उसे ख्याल आया कि फ्रिड्ज में सब्ज़िया काफ़ी कम पड़ी थी...उफ्फ अगर सब्ज़ी खरीदी नही गयी तो रात को बेटे को क्या खाने में दूँगी? और उसने कहा भी था कि बैगन का भरता खाना है......माँ बुदबुदाते हुए उठ खड़ी हुई....
उसने दोपहर को खाना खाया फिर बालों में तेल लगाने और कंघी करने के बाद वो तय्यार होके शाम को सब्ज़ी मंडी के लिए निकल गयी....अकेले निकलने में उसे संकोच नही होता था....सब्ज़ी मंडी टाउन में थी वहाँ मेन रोड से भीढ़ बहुत थी उसे रोड क्रॉस करने में काफ़ी दिक्कत हुई भी....क्यूंकी बड़े बड़े ट्रक लगभग उससे एक हाथ दूर ही गुज़र रहे थे फिर वो सब्ज़ी मंडी में घुसी....सब्ज़िया खरीदने में मलिन झोला में भरते हुए अंजुम अपने ही गफलत में थी....वो सब्ज़ी वाले को पैसे देते हुए आगे बढ़ रही थी....
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
राज़ौल को इस शहर में अभी चौदहवाँ दिन ही हुआ था अभीतक कोई सुराग उसके हाथ नही लगा था उन माँ-बेटे का...सोच की गहराइयो में आस पास की औरतो को ताड़ते हुए वो लस्सी पी रहा था...अचानक उसने देखा कि ठीक रोड के उस पार सब्ज़ी मॅंडी में खड़ी अंजुम सूट शलवार पहने सब्ज़ियो का मोल भाव कर रही थी....उसकी आँखे अंजुम को देखके जैसे एकदम बड़ी बड़ी हो गयी वो अपनी होंठो पे ज़ुबान फेरता हुआ जल्दबाज़ी में ही लस्सी वाले को पैसा दिए ग्लास वैसे ही अधूरा छोड़ उसकी तरफ आने लगा....
इधर अंजुम आलू लेते हुए बैगन की तरफ गौर से देखने लगी एक बैगन कुछ 8 इंच के लगभग मोटा और लंबे से गठन का उसे लगा....वो दिल ही दिल में बेटे के लंड को उससे तस्सवर करने लगी....अचानक जब उसे होश आया तो वो मुँह पे हाथ रखके शरमाने लगी बेटे का भी तो उस बैगन जैसा ही तो दिखता था..."ये कैसे दिए भैया बैगन".....
."40 रुपी किलो"....."
ये भी दे दो".....झोले में सब्ज़िया भरते हुए जब उसे वो भारी लगने लगी तो उसने झोला रखके सब्ज़ी वाले को पैसे दिए और वहाँ से चल पड़ी..
राज़ौल फुर्ती से रोड क्रॉस किसी तरह किए लोगो को ठेलता हुआ आगे बढ़ रहा था...हर कोई उसे अचंभित नज़रों से देख रहा था...कुछ लोग उसके धकेले जाने से उसे गाली दे रहे थे...वो इतनी भीढ़ भाड़ को धकेलते हुए बस बेसवरी से अंजुम के पास पहुचने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...जब तक वो ठेले के पास पहुचा तो अंजुम फिर भीड़ में आगे बढ़ गयी...."अंजुमम अंजुमम".......राज़ौल ने ज़ोर से चिल्लाया
लेकिन इतनी भीड़ थी कि अंजुम को सुनाई नही दिया बस उसे अहसास सा हुआ तो उसने पीछे मूड कर देखा फिर मुस्कुराते हुए अपना वेहेम मानी भला कोई उसका नाम यहाँ क्यूँ पुकारेगा ? अंजुम तेज़ कदमो से आगे बढ़ रही थी क्यूंकी भीढ़ बहुत ज़्यादा थी और पीछे राज़ौल उसके बेहद करीब लोगो को ठेलते हुए पहुच चुका था....उसने एक बार फिर आवाज़ दी तो अंजुम ने पीछे मूड के देखा तो पाया कि वोई आदमी उसके पीछे तेज़ी से आ रहा था जिसे उसने ट्रेन में देखा था
"अर्रे ये तो वोई टीटी है? वोई आदमी ये यहाँ?".....अंजुम को ये देख हैरत हुई तो वो कुछ समझ ना सकी राज़ौल उसे रुकने का इशारा कर रहा था....लेकिन अंजुम को डर सा लगा वो उसे जानती थी और ना जाने क्यूँ उसका पीछा करते हुए वो यहाँ तक आया था? वो कुछ समझ नही पा रही थी वो रुकी नही बल्कि दुगने कदमो से तेज़ भागने सी लगी
"अर्रे रूको अंजुमम अंजुम वेट".........राज़ौल चीखते हुए उसके पीछे भागा
दोनो मेन रोड पे थे गाड़िया एकदम तेज़ी से दोनो को क्रॉस कर रही थी....लेकिन गनीमत थी कि अंजुम रोड क्रॉस कर चुकी थी एक तो उसके हाथ में भारी झोला था....वो उसे जैसे तैसे थामें हुई थी इतने में उसकी साँस भारी होने लगी तो हान्फ्ते हुए मेन रोड के बीच के फाटक को पकड़े वहीं ठहर गयी....वो जैसे ही आगे बढ़ी तो इतने में उसे महसूस हुआ कि उल्टे साइड से एक ट्रक उसकी तरफ आ रहा है....एक तो भारी सब्ज़ियो का झोला उपर से ट्रक के हॉर्न की आवाज़ को सुन एकदम से अंजुम हिल पड़ी वो बड़ी बड़ी आँखो से लगभग मैन रोड पे ही खड़ी होकर ट्रक को घूर्र रही थी...जो उसकी तरफ बढ़ रहा था....अभी ट्रक उसके और करीब आ ही पाता कि उस हाथ ने उसे एकदम से पकड़ते हुए झट से मेन रोड से सीधा किनारे पे लाते हुए खींच लिया "काकी बेचो (काकी बचिए)"...ये आवाज़ एक लड़की की थी...अंजुम को ख्याल आया कि उस लड़की ने ही उसे मेन रोड के बीच ट्रक के सामने से खींच लिया था वरना ट्रक तो उसके उपर चढ़ ही जाता...आज एक बहुत बड़ा हादसा होने से बच गया था....
अंजुम ने गौर किया उसने साड़ी पहन रखी थी और माथे पे सिंदूर था...उसे जानने में देर नही लगी कि वो एक शादी शुदा थी....उसने हान्फ्ते हुए अंजुम को थोड़ा सा ज़ोर से कहा "क्या काकी आप तो अभी ट्रक के नीचे आ जाती? ऐसे कोई रोड क्रॉस करता है वो तो मेरी नज़र पड़ गयी आप पर"........
.अंजुम ने उसका शुक्रियादा किया...बातों में अंजुम को खुशी हुई कि ये कोई और नही उसकी जानने वाली थी उसकी ख़ास में से....उसकी बहन की बहू यानी आदम की रूपाली भाभी
उधर अंजुम को किसी औरत के साथ देख राज़ौल वहीं ठिठक गया...उसने पाया कि अंजुम पीछे पलटके उसकी तरफ देख रही थी....साथ में रूपाली भी थी तो वो गाड़ी की आड़ में हो गया...उसने पाया कि दोनो एकदुसरे के साथ थ्री वीलर में बैठी और वहाँ से चली गयी.....राज़ौल के हाथ आते आते अंजुम रह गयी उफ्फ काश वो उसका पीछा कर पाता पर बीच में ही ये आफ़त उसे अपने किस्मत पे खुन्नस सी हुई ...
रात 9:30 बज चुके थे....बाइक खड़ी किए आदम झट से जैसे ही घर के द्वार पे आया तो पाया कि ताला लगा हुआ था...उसने ताले को टटोला "अर्रे माँ कहाँ गयी वो भी इतने रात गये? इस वक़्त तो वो घर पे होती थी ......आदम को बहुत धक्का सा लगा..भला इतनी रात गये माँ गयी किधर? उसने पास की राशन की दुकान मे जाके देखा और वहाँ पूछा तो दुकानदार ने कहा कि माँ तो उसकी यहाँ सुबह से नही आई...आदम को थोड़ी फिकर होने लगी....माँ यहाँ तो किसी को जानती तक नही वो है कहाँ? कही मार्केट में तो नही चली गयी..अर्रे यार कम से कम बताके तो जाती....बेटे को माँ की फिकर होने लगी उसका दिल धक धक करने लगा
उसने माँ को फोन लगाया....माँ ने फोन तुरंत उठाया
माँ : हेलो हां बेटा?
आदम : अर्रे माँ कहाँ हो तुम? मैं अभी पहुचा तो पाया दरवाजे पे ताला लगा है?
माँ : ओह हो बेटा मुझे मांफ कर दे मैने सोचा तुझे मेरी फिकर ना हो जाए तू प्लीज़ जल्दी से ताहिरा के यहाँ पहुच
आदम : ताहिरा मौसी के यहाँ? (आदम को लगा शायद माँ ताहिरा मौसी के यहाँ मिलने गयी होगी)
माँ : हां तू यहाँ जल्दी पहुच फिर सबकुछ बताउन्गी
आदम : ठीक है माँ मैं अभी वहीं पहुचता हूँ
आदम वापिस बाइक पे बैठा और उसे रोड की तरफ मोड़ते हुए स्टार्ट किया..वो फुरती से टाउन की तरफ रवाना हो जाता है....उसके मन में ख्याल आता है कि अचानक से माँ ताहिरा मौसी के यहाँ क्या करने गयी? फिर उसे अहसास हुआ कि ताहिरा मौसी के घर में और लोग भी तो मज़ूद होंगे जो उसके बेहद करीब है
जब ताहिरा मौसी के यहाँ पहुचा तो पाया कि घर में कोई तब्दीलियत नही हुई थी सबकुछ जैसे छोड़के गया था वैसे के वैसा ही लगा वही घर वही गली वही माहौल...
|
|
|