MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 12:58 PM,
#41
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
जब से मैने होश संभाला था. तब से आज पहली बार मैं छोटी माँ को यूँ फुट फुट कर रोते देख रहा था. मैं अब कोई बच्चा नही था इसलिए ये सब समझ सकता था कि क्या हुआ है और इन आसुओं का मतलब क्या है. छोटी माँ को रोते देख मेरी आँखे भी अपने आपको छलकने से ना रोक पाई, लेकिन ये आँसू ना किसी दुख के थे और ना किसी पछतावे के थे, बल्कि ये आँसू एक ऐसी नफ़रत के थे जो मुझे अभी अभी अपने बाप से हुई थी.

मैने गुस्से से भरा हुआ था. मैने छोटी माँ से अपना हाथ छुड़ाया और वापस ऑफीस के अंदर जाने लगा. छोटी माँ ने मुझे आवाज़ लगाई मगर मैं उनकी बात को अनसुनी कर अंदर की ओर बढ़ता चला गया. छोटी माँ भी मेरे पीछे पीछे आ रही थी और मुझे अंदर जाने से रोकने की कोशिश कर रही थी. लेकिन जब मैं नही रुका तो उन्हो ने कहा.

छोटी माँ "पुन्नू रुक जा. तुझे अमि निमी की कसम है. तू एक कदम भी आगे नही बढ़ाएगा."

ये कह कर छोटी माँ ने मेरे बढ़ते हुए कदमो को तो रोक लिया, मगर मेरे अंदर भड़क रही गुस्से की आग को वो नही भुझा सकी.

मैं गुस्से चीखते हुए बोला "क्यों नही छोटी माँ.? वो सब जो अंदर हो रहा था, यदि वो सही है तो आप रोई क्यों.? और यदि सही नही है तो आज उस आदमी को इसका जबाब सबके सामने देना होगा कि, उसने ये क्यों किया.?"

छोटी माँ "देख तुझे जो कुछ भी बोलना है. उनके घर आने पर बोल लेना. यहाँ ऑफीस मे बात करके उनकी इज़्ज़त का तमाशा बनाने से वो सब कुछ वापस तो नही हो जाएगा."

मैं बोला "कौन सी इज़्ज़त छोटी माँ. किसी मजबूर लड़की की मजबूरी का फ़ायदा उठाने वाले की तो बीच चौराहे मे इज़्ज़त उच्छालना चाहिए. उसने आपके विस्वास को ठेस लगाया है. मैं उस शैतान को कभी माफ़ नही कर सकता."

छोटी माँ ने मुझे गले से लगा लिया और रोते हुए बोली "देख तुझे मेरा इतना ख़याल है तो मेरा और अपनी छोटी बहनों का ख़याल करके चुप चाप घर चल. जो भी बात करना है हम उनके घर आने पर कर लेंगे."

आख़िर मे मुझे छोटी माँ की बात मानकर घर आना पड़ा लेकिन अब मेरा मन मेरे बाप से ज़रा भी बात करने का नही था. मैं मन ही मन उसे गालियाँ बक रहा था और मेरे अंदर उसके लिए कोई सम्मान की भावना अब शेष नही बची थी. शाम को पापा घर आए तो मैं अपने कमरे मे था. घर का महॉल उन्हे बदला हुआ लगा मगर इसका कारण उन्हे नही मालूम था. जब उन से छोटी माँ ने दिन वाली बात बताई तो वो उल्टा छोटी माँ पर बरस पड़े.

पापा छोटी माँ से कह रहे थे "मैं एक मर्द हूँ और घर की चार दीवारी के बाहर मैं किस किस के साथ क्या करता हूँ इसका तुमसे कोई मतलब नही है. मैं घर मे किसी को लेकर आता हूँ तो तुम्हे परेशानी होना चाहिए.. तुम्हे अच्छा लगता है तो तुम इस घर मे रहो, और यदि अच्छा नही लगता तो तुम जहाँ चाहे जा सकती हो. मेरी तरफ से कोई रोक नही है. मगर आइन्दा से मेरे किसी मामले मे दखल देने की ज़रा भी कोशिश मत करना."

ये सब सुनकर तो मेरे होश ही उड़ गये और मेरा सारा गुस्सा अब डर मे बदल गया कि कही छोटी माँ सच मे ना चली जाए. छोटी माँ रोती रही मगर फिर कुछ नही बोली. उस दिन ना तो मैने खाना खाया और ना ही छोटी माँ ने खाना खाया. दूसरे दिन छोटी माँ को मैने अपना समान बाँधते देखा तो मैं रोने लगा. वो घर छोड़ कर जाने की तैयारी कर रही थी. लेकिन मेरा चेहरा देख कर उन्हो ने अपना घर छोड़ने का इरादा बदल दिया. शाम को पापा आए और उन्हो ने छोटी माँ को घर मे देखा तो उन्हे अपनी जीत महसूस हो रही थी क्योंकि अब उनके मामले मे टाँग अडाने वाला कोई नही था.

मैने उनके साथ उठना बैठना, बात करना, खाना खाना सब बंद कर दिया. कुछ दिन तो उनको इस बात का अहसास ही नही हुआ. मगर जब कुछ दिन बात उन्हे इस बात का ऐएहसास हुआ तो उन ने मुझसे इसकी वजह पूछी. तब मैने उन्हे उनकी उस जलील हरकत के बारे मे बताया. जिसे सुनकर उनके पैरों से ज़मीन ही खिसक गयी. लेकिन उन्हो ने मुझे भी वही जबाब दिया जो छोटी माँ को दिया था. तब मैने उन्हे कोई जबाब तो नही दिया, मगर उस दिन से मेरा उनके साथ सिर्फ़ नाम का ही रिश्ता रह गया. हम बाप बेटे एक घर मे भी रहकर अजनबी की तरह रहने लगे और फिर कुछ समय बाद मैं अमि निमी के साथ इधर उपर आकर रहने लगा.

इतना कह कर मैं खामोश हो गया. कीर्ति जो अभी तक खामोशी से मेरी बात सुन रही थी. उसने मुझसे पूछा.

कीर्ति बोली "क्या तुम मौसा जी को माफ़ नही कर सकते."

मैं बोला "माफ़ तो उसे किया जाता है जो अपनी ग़लती माने. उसे क्या माफ़ करूँ जो अपनी ग़लती को मानने को ही तैयार नही है."

कीर्ति बोली "मौसी ने ये बात तो शायद मम्मी को भी नही बताई है."

मैं बोला "हाँ इस बात को मेरे और उनके सिवा कोई नही जानता. वो तो शायद इसे भूल भी गयी हो मगर पापा का उस लड़की से ये कहना आज भी मेरे कानो मे गूँजता है की यदि तू मेरी बेटी होती तो तेरे साथ मैं कब का ये सब कर चुका होता."

कीर्ति बोली "ये सब बोलने की बात है. कोई बाप अपनी बेटी के साथ ऐसा नही कर सकता."

मैं बोला "वो बाप नही हवस का भूका भेड़िया है. ना जाने इस बीच मे उस ने और कितनी लड़कियों के साथ ये सब किया होगा. लेकिन यदि उसने कभी मेरी अमि निमी पर अपनी बुरी नज़र डाली तो वो उसकी जिंदगी का आख़िरी दिन होगा. मैं उसे जिंदा नही छोड़ूँगा."

कीर्ति ने पापा के लिए मेरे अंदर इतनी नफ़रत और गुस्सा देखा तो वो बात को पलटने के लिए बोली.

कीर्ति बोली "चल इस बात को यही ख़तम कर और ये बता मेहुल को उसके पापा की बीमारी के बारे मे कब और कैसे बताएगा."

मैने अपने दिमाग़ को शांत किया और बोला.

मैं बोला "पहले अंकल का वहाँ से फोन तो आ जाए कि डॉक्टर. क्या बोल रहे है फिर उसके बाद ही मैं इस बारे मे कुछ सोचुगा."

थोड़ी देर हम लोगों मे अंकल की तबीयत के बारे मे ही बात चलती रही. फिर कीर्ति ने कहा कि उसे नींद आ रही है. वो कल की तरह मेरे सीने पर सर रख कर और मुझे अपनी बाँहों मे जाकड़ कर आँख बंद कर लेती है. लेकिन अपने अतीत को याद करने के बाद मेरी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी. कुछ देर बाद कीर्ति मुझे जागता देखती है तो, फिर कल की तरह मेरे बालों मे हाथ फेर कर मुझे सुलाने लगती है. उसके ऐसा करने से मुझे राहत महसूस होती है और कुछ देर बाद मेरी नींद लग जाती है.

सुबह 7 बजे मेरी नींद खुलती है. मैं अपने कमरे मे अकेला था. नीचे से अमि निमी की आवाज़ आ रही थी. कीर्ति भी नीचे ही थी. शायद वो ही स्कूल जाने के लिए निमी को तैयार कर रही थी. मेरे घुटने मे आज दर्द कुछ कम था. मैने अपने घुटने को मोड़ा तो वो अब कुछ हद तक मूड रहा था. मैं उठ कर फ्रेश होने बाथरूम मे चला गया. कुछ देर बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकला और कपड़े पहनने लगा. तभी कीर्ति नाश्ता लेकर आ गयी. मैने नाश्ता किया और दवा खिलाने के बाद वो चली गयी. मैं अपने कमरे मे ही आराम करता रहा. फिर 9 बजे पापा के ऑफीस जाने के बाद मैं खुद से नीचे आकर बैठ गया और मेरी कीर्ति से बात चलती रही. इस बीच ऐसा कुछ भी खास नही हुआ जिसे बताया जा सके.

दोपहर को 1 बजे अमि निमी स्कूल से आ गयी और हम सबने खाना खाया. सबकी बातें होती रही. तभी 2 बजे कमल कीर्ति का बेग और कपड़े लेकर आ गया. वो शाम तक रुका और फिर घर चला गया. यू ही पूरा दिन गुजर गया और फिर रोज की तरह रत को कीर्ति मेरे पास ही सोई. दूसरे दिन वो छोटी माँ की स्कूटी लेकर स्कूल भी गयी. इन 2 दिनो मे मैं अपने घर से नही निकला. मुंबई जाने से पहले रिया मुझसे मिलने आई. फिर तीसरे दिन रिया वापस मुंबई चली गयी. मेरी अंकल से भी फोन पर बकायदा बात चलती रही.

यू ही करते करते 1 हफ़्ता बीत गया. अब मैं पूरी तरह से ठीक हो चुका था और कल के दिन कीर्ति को वापस जाना था. उसके जाने की बात से ना तो मुझे अच्छा लग रहा था और ना ही उसे अच्छा लग रहा था. रात को जब कीर्ति मेरे पास सोने आई तो वो उदास लग रही थी.

मुझसे उसकी उदासी देखी नही जा रही थी.

मैं बोला "देख अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ. अब तो मैं कहीं भी आ जा सकता हूँ. फिर तू यू उदास क्यों है. क्या तुझे मेरे ठीक होने से खुशी नही हुई है."

कीर्ति बोली "कैसी पागल जैसी बात करता है. मुझे बहुत खुशी हुई तेरे अच्छे होने से. मैं तो उदास इसलिए हूँ क्योंकि कल मुझे वापस घर जाना है."

मैं बोला "घर जाने मे उदास होने की क्या बात है. तुझे तो खुशी खुशी घर जाना चाहिए."

कीर्ति बोली "मेरे जाने से तुझे खुशी हो रही है तो तू खुशी मना. लेकिन तुझसे दूर होना मुझे अच्छा नही लग रहा है."

मैं बोला "पागलपन की बातें तो तू कर रही है. घर जाने मे उदास होने की क्या बात है. मैं कौन सा तुझसे दूर हूँ. तेरा जब मुझसे मिलने का मन चाहे तू मुझे बुला लेना. मैं तेरे पास आ जाउन्गा और अब तो तेरे पास मोबाइल भी है. तू जाब चाहे मुझसे बात कर सकती है."

मेरी बातों से कीर्ति को कुछ राहत मिली और फिर हम दोनो सो गये. सुबह कीर्ति ने अपना समान पॅक किया और फिर मैं उसे घर तक छोड़ कर आया. मगर घर आने के बाद मुझे बहुत सूना सूना लग रहा था. यू लग रहा था कि जैसे घर की सारी रौनक कही खो गयी हो. रात को मुझसे खाना भी ढंग से नही खाया गया और मुझे नींद भी नही आ रही थी. कीर्ति के ना होने से मुझे अपने कमरे मे रहना तक अच्छा नही लग रहा था. मैं अपने कमरे से बाहर निकल आया. मैने अमि निमी के पास जाने की सोची मगर वो सो चुकी थी. आख़िर मे मैं लौट कर वापस अपने कमरे मे आ गया और टीवी चालू कर टीवी देखने मे मन लगाने की कोशिश करने लगा. लेकिन मेरा मन टीवी देखने मे भी नही लग रहा था. मैं नही जानता था कि कीर्ति के जाने के बाद मुझे उसकी इतनी ज़्यादा याद आएगी. मुझसे उसके बिना एक पल भी नही रहा जा रहा था. मैने टीवी बंद कर दी और आँख बंद करके लेट गया. मेरी कुछ समझ ही नही आ रहा था कि मैं क्या करू.

रात के 12 बज गये थे और अब मुझे कीर्ति पर गुस्सा भी आ रहा था, कि उसने मुझे एक कॉल करने की ज़रूरत भी नही समझी. मैं मन ही मन कीर्ति पर गुस्सा कर रहा था कि तभी कीर्ति का कॉल आ गया. उसका कॉल देखते ही मेरे चेहरे पर रौनक आ गयी. मैने उसका कॉल तुरंत उठाया.

मैं बोला "तू तो मुझे जाते ही भूल गयी. एक बार भी कॉल करने की ज़रूरत नही समझी."

कीर्ति बोली "अगर भूल गयी होती तो तुझे इतनी रात को खुद से कॉल नही लगाया होता. भूल तो तू मुझे गया है. तूने ज़रूरत नही समझी कि कम से कम मेरा हाल चाल पूछ ले."

मैं बोला "अमि निमी की कसम मैं तुझे बहुत मिस कर रहा हूँ. आज तेरे बिना मेरा कमरा भी मुझे काटने को दौड़ रहा है. सब कुछ उजड़ा उजड़ा सा लग रहा है और एक तू है जिसे अब मुझे कॉल करने का टाइम मिला है."

कीर्ति बोली "अच्छा तो मुझे भी नही लग रहा था इसलिए मैं शाम को ही सो गयी. अभी जैसे ही नींद खुली तो सबसे पहले तुझे कॉल किया है."

मैं बोला "तू शाम से सो रही है तो फिर तूने खाना कब खाया."

कीर्ति बोली "आज मुझे भूक ही नही है तो खाना कैसे खाती."

मैं बोला "देख यू खाली पेट रहना ग़लत बात है. पहले तू कुछ खा ले फिर हम लोग बात करते है."

कीर्ति बोली "खाना ही तो खा रही हूँ."

मैं बोला "क्या खा रही है."

कीर्ति बोली "तेरा भेजा जो खा रही हूँ."

मैं बोला "देख मज़ाक बंद कर और जल्दी से कुछ खा ले."

कीर्ति बोली "सच मे मुझे भूक नही है."

मैं बोला "मैं तेरी कोई बात नही सुनुगा. मैं कॉल काट रहा हूँ. पहले तू कुछ खा कर आ. उसके बाद मुझे कॉल करना. मैं तेरे कॉल का वेट कर रहा हू."

ये कह कर मैने कॉल काट दिया और कीर्ति के कॉल आने का वेट करने लगा. फिर कोई 10-15 मिनिट बाद कीर्ति का कॉल आया.

मैं बोला "कुछ खाया या नही."

कीर्ति बोली "हाँ खा लिया."

मैं बोला "झूठ तो नही बोल रही."

कीर्ति बोली "तेरी कसम. सच मे खाना खा कर आ रही हूँ."

मैं बोला "ठीक है. अब ये बता कैसा गुज़रा आज का दिन."

कीर्ति बोली "बहुत बुरा. सारे टाइम तेरी याद सताती रही. दिल कर रहा था कि तेरे पास वापस चली जाउ. मुझसे तेरे बिन नही रहा जा रहा है."

मैं बोला "यार मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही है. तेरे बिना कुछ भी अच्छा नही ला रहा. अगर तेरा कॉल नही आया होता तो शायद मैं सच मे ही पागल हो जाता."

और फिर 1:30 बजे तक हम लोग ऐसे ही बात करते रहे. आख़िर मे मुझे ही कीर्ति से फोन रखने को बोलना पड़ा. उसने कल रात को फोन करने का बोलकर फोन रख दिया. कीर्ति से बात होने से मेरा मन कुछ हल्का हो गया था. मैं उसके बारे मे सोचते सोचते ही सो गया.

अगले दिन से मैं भी स्कूल जाने लगा. अंकल मुंबई से आ चुके थे. मेरी उनसे मुलाकात भी हुई थी. मैने उन्हे बताया कि अभी मैने मेहुल को कुछ भी नही बताया है. उनने बताया कि डॉक्टर. ने ऑपरेशन के लिए बोला है. कुछ दिन बाद उन्हे फिर मुंबई जाना है. उन्हो ने मेहुल को सब बात बताने को बोला तो मैने कल बात करने को बोला. रात को मैने कीर्ति को सब बात बताई. कीर्ति ने कहा कि वह भी मेरे साथ कल मेहुल से बात करेगी. मैं कल उस से मेहुल के साथ मिलूं. मैने उसकी बात मान ली और कल उस से मिलने को कहा.
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09-09-2020, 12:59 PM,
#42
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
दूसरे दिन मैने स्कूल से आने के बाद कीर्ति को कॉल किया.

मैं बोला "मैं घर से निकल रहा हूँ. तू बता तू कहाँ पर मिलेगी."

कीर्ति बोली "तू कहाँ पर मेहुल से बात करने की सोच रहा है."

मैं बोला "मैं तो घर पर ही बात करने की सोच रहा था. क्यों तूने क्या सोचा है."

कीर्ति बोली "घर मे बात करना ठीक नही होगा. तू ऐसा कर उसे घर ले आ. कहना मैने किसी काम से बुलाया है. क्योंकि ऐसी बात को किसी एकांत जगह पर करना ही ठीक रहेगा. पता नही इस बात का उस पर क्या असर पड़ता है."

मैं बोला "बात तो तेरी ठीक है पर घर मे तो मौसी होगी. क्या उनके सामने ये बात करना ठीक रहेगा."

कीर्ति बोली "तू मम्मी की चिंता बिल्कुल मत कर. मम्मी की आदत तो दिन मे खाना खा कर सोने की है. अब वो सोने ही जा रही है. तुम लोग जब तक आओगे तब तक वो सो चुकी होगी और फिर शाम के पहले नही उठेगी."

मैं बोला "ठीक है. जैसी तेरी मर्ज़ी. मैं मेहुल को लेकर तेरे पास आता हूँ."

ये बोल कर मैने फोन रख दिया और मेहुल को कॉल लगा कर उसे बता दिया कि मैं आ रहा हूँ. हमे कीर्ति ने किसी काम से बुलाया है. तू मुझे तैयार मिलना. फिर मैं मेहुल के घर के लिए निकल गया. उसके घर पहुचने पर वो मुझे बाहर ही मिल गया. मैने बाइक उस से चलाने को कहा और फिर हम दोनो मौसी के घर के लिए निकल पड़े. कुछ देर बाद हम मौसी के पहुच गये. कीर्ति छत पर खड़ी हमारे आने की रह देख रही थी. हमे आया देख वो तुरंत नीचे आ गयी. उसने दरवाजा खोला और हमें अपने कमरे मे ले गयी. मेहुल को कुछ भी समझ मे नही आ रहा था.

मेहुल बोला "क्या बात है. तुमने हम दोनो को क्यों बुलाया है."

कीर्ति बोली "क्या मैं बिना काम के तुम लोगों को नही बुला सकती."

मेहुल बोला "बुला सकती हो मगर ये तो कह रहा था कि तुझे हम से कुछ काम है."

कीर्ति बोली "अरे बुलाया है तो बताउन्गी भी कि किसलिए बुलाया है पर पहले आराम से बैठो तो सही. मैं जब तक तुम लोगों के लिए चाय बनाकर लाती हूँ."

ये कह कर कीर्ति चाय बनाने चली गयी और हम दोनो वही बैठ गये. कुछ देर बाद कीर्ति चाय लाई तो हम दोनो चाय पीने लगे. चाय पीने के बाद कीर्ति ने मेरी तरफ देखा मगर मैं चुप ही रहा. तब उसने मेहुल से कहा.

कीर्ति बोली "देखो मैने बहुत ही ज़रूरी बात करने के लिए तुम्हे यहाँ बुलाया है पर समझ मे नही आ रहा है कि किस तरह तुम्हे वो बात बताऊँ."

मेहुल बोला "ज़्यादा पहेलियाँ मत बुझा. जो भी बात है खुल कर बता."

कीर्ति बोली "बात इतनी छोटी नही है की मैं एक पल मे बोल दूं और तुम सुन लो. बात इतनी बड़ी है कि शायद तुम बात को सुनकर अपने आपको संभाल भी ना सको."

कीर्ति के मूह से ये बात सुनकर मेहुल के चेहरे का रंग बदल गया और वो किसी अंजाने से डर से घिर गया. उसकी आवाज़ मे अब नर्मी आ गयी.

मेहुल बोला "देख तू क्या कहना चाहती है, मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा है. तू क्या बोलना चाहती है. साफ क्यों नही बोल देती.?"

कीर्ति बोली "ये बात तुझे बताना इतना ही आसान होता तो तुझे ये बात या तो अंकल बता चुके होते या फिर..."

इतना कह कर कीर्ति चुप हो गयी. कीर्ति सीधे सीधे मेहुल को बात ना बताकर धीरे धीरे बात को बता रही थी ताकि मेहुल को बात को सुनकर एक दम से धक्का ना लगे. कीर्ति के बात करने का ये ढंग मुझे बहुत पसंद आया. शायद मैं या अंकल भी इस तरह से मेहुल को बात ना बता पाते. कीर्ति की बात से मेहुल कुछ असंकित सा होते हुए बोला.

मेहुल बोला "या फिर क्या.?"

कीर्ति बोली "या फिर पुन्नू ने बता दी होती."

ये सुनते ही मेहुल मेरी तरफ देखने लगा लेकिन वो मुझसे कुछ सवाल कर पाता इस से पहले ही कीर्ति बोल पड़ी.

कीर्ति बोली "ये लोग तुम्हे ये बात इसलिए नही बता पाए क्योंकि इनमे ये बात तुम से कहने की हिम्मत नही थी इसलिए आज मैं तुमसे ये बात कह रही हू."

मेहुल बोला "तो फिर जल्दी से बोलो."

कीर्ति बोली "ऐसे नही. पहले तुम वादा करो कि बात को तुम पूरा सुनोगे और बात कितनी भी बड़ी क्यों ना हो पर तुम उसके आगे अपना आपा नही खोने दोगे और उसका हिम्मत से सामना करोगे."

मेहुल बोला "ठीक है. मैं वादा करता हूँ कि बात कितनी भी बड़ी क्यों ना हो मैं उसका डटकर सामना करूगा. अब बता क्या बात है."

कीर्ति बोली "तुम्हे मालूम है अंकल मुंबई क्यों गये थे."

मेहुल बोला "हाँ वो रॉय अंकल के किसी रिश्तेदार को लेकर मुंबई इलाज के लिए लेकर गये थे."

कीर्ति बोली "कौन कौन गया था मुंबई."

मेहुल बोला "पापा, रॉय अंकल और उनका वो रिश्तेदार जिसका इलाज करना था."

कीर्ति बोली "तुमने उनके उस रिश्तेदार को देखा था."

मेहुल बोला "नही मैं तो पापा और रॉय अंकल को स्टेशन छोड़ कर आया था पर वो वहाँ नही दिखे थे. मैने उन लोगों से पूछा भी था कि आप जिन्हे इलाज के लिए ले कर नही जा रहे तो उन्हो ने कहा था कि वो पहले ही जा चुके है."

कीर्ति बोली "अच्छा जब वो लौटे तो तब तुमने उनको देखा था."

मेहुल बोला "नही तब तो मुझे इस बात को पूछने का ध्यान ही नही था. मैने पापा को लिया और घर आ गया. रॉय अंकल वही से अपने घर निकल गये थे पर उनके साथ मैने किसी को नही देखा था. वो अकेले ही घर जा रहे थे."

कीर्ति बोली "तो तुम्हे अभी भी कुछ समझ मे नही आ रहा है."

मेहुल बोला "क्या.?"

कीर्ति बोली "यही कि उनके साथ कोई तीसरा था ही नही बल्कि वो खुद का इलाज कराने के लिए मुंबई गये थे."

मेहुल बोला "तुम कहना क्या चाहती हो.? क्या तुम ये कह रही हो कि पापा अपना इलाज करने के लिए मुंबई गये थे."

कीर्ति बोली "हाँ मैं यही कह रही हूँ."

मेहुल बोला "मगर पापा को हुआ क्या है.? वो किस चीज़ का इलाज करने गये थे.?"

कीर्ति बोली "अंकल को डॉक्टर ने कॅन्सर बताया है और वो उसी के इलाज के लिए मुंबई गये थे. वहाँ डॉक्टर ने उन्हे ऑपरेशन करने की सलाह दी है."

कीर्ति की बात सुनकर मेहुल कुछ नही बोला. वो जैसे कहीं खो गया था लेकिन उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे. मैने उसकी आँखों मे आँसू देखे तो मैं उसके कंधे पर हाथ रख कर बोला.

मैं बोला "तू चिंता मत कर यार. हम अंकल को कुछ नही होने देंगे. हम दोनो खुद उन्हे मुंबई लेकर चलेगे और वहाँ सबसे अच्छे हॉस्पिटल मे उनका इलाज कराएगे."

मेहुल कुछ नही बोला वो मुझसे लिपट कर रोने लगा और उसकी आँखों मे आँसू देख कर मेरी आँखों मे भी आँसू आ गये. लेकिन ये देख कीर्ति गुस्सा करने लगी.

कीर्ति बोली "तुम लोग रोकर ये जता रहे हो कि तुम अंकल को कितना प्यार करते हो, मगर ये अपने प्यार को दिखाने का कौन सा तरीका है. यदि तुम लोग उन से इतना ही प्यार करते हो तो रोना छोड़ो और उनके इलाज की चिंता करो. डॉक्टर ने उन्हे ऑपरेशन करने की सलाह दी है तो जाहिर है कि उनकी बीमारी का इलाज है और उनका कॅन्सर उस हद तक नही पहुचा है कि उसका इलाज ना हो सके."

कीर्ति की बातों से मेहुल का मनोबल थोड़ा बड़ा और मैने भी अपने आँसू पोंछ कर कीर्ति की हाँ मे हाँ मिलाई.

मैं बोला "कीर्ति ठीक बोल रही है. हमें हिम्मत से काम लेना होगा. हमें चल कर अंकल से बात करना चाहिए."

मेहुल बोला "हाँ हम पापा का अच्छे से अच्छा इलाज कराएगे. चल घर चले."

कीर्ति बोली "ये हुई ना बात. तुम लोगों की हिम्मत देख कर अंकल को भी हिम्मत मिलेगी. अब देर मत करो और जाकर अंकल से बात करो."

फिर हम लोग मेहुल के घर के लिए निकल पड़े. हम लोग घर पहुचे तो मैने मेहुल से कहा तू अंकल से बात कर मैं आंटी को बातों मे लगाए रहुगा. मेहुल ने अंकल के पास जाकर बात की और मैं आंटी से बात करता रहा. फिर बात होने के बाद मेहुल ने मुझे बताया.

मेहुल बोला "डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए 20 दिन का समय दिया है. हमें जल्द से जल्द ऑपरेशन कराना होगा."

मैं बोला "तू चिंता मत कर हम एक दो दिन के अंदर ही मुंबई के लिए निकलेगे पर आंटी को क्या कहेगे."

मेहुल बोला "पापा तो मम्मी को बताना नही चाहते मगर मैने कहा है कि हमें बता देना चाहिए क्योंकि हम तो मुंबई चले जाएँगे और पता नही हमें वहाँ कितने दिन लग जाए. वो परेशान हो जाएगी. लेकिन समस्या ये है कि उन्हे ये बात कैसे बताई जाए और ये बात उन्हे कौन बताए."

मैं बोला "हम कीर्ति से ही बात करते है. उसने तुझे कितनी अच्छे से समझाई है. वो आंटी को भी समझा सकती है."

मेहुल बोला "ठीक है तू अभी उस से बात करके देख वो क्या कहती है."

मैने कीर्ति को कॉल लगाया और उसे अंकल से हुई सारी बात बता कर आंटी को बात बताने की बात कही.

कीर्ति बोली "देखो मेहुल को समझाने की बात थी तो, वो मैं इसीलिए ठीक से कर सकी क्योंकि मेहुल मेरी ही उमर का है, और हमारी समझ एक बराबर की है. लेकिन आंटी को समझा पाना शायद मैं सही ढंग से ना कर सकूँ. इसके लिए हमें किसी बड़े की मदद लेना चाहिए."

मैं बोला "ऐसा कौन है जो आंटी को समझा सके."

कीर्ति बोली "मुझे लगता है कि ये काम मौसी अच्छी तरह से कर सकती है. तुम लोग जाकर मौसी से बात करो. वो ज़रूर इस बात को समझा पाने मे सफल होगी. वैसे भी उन्हे ये सब बातें मालूम है."

कीर्ति से बात करने के बाद मेहुल को सारी बात बताई. फिर हम दोनो ने अंकल से इस बारे मे बात की तो अंकल को भी कीर्ति की बात सही लगी. हम दोनो अंकल से बात करने के बाद हम दोनो मेरे घर आ गये. घर आकर मैने छोटी माँ से सारी बात बताई तो वो बात करने को तैयार हो गयी.

छोटी माँ बोली "मैं ये बात तो रिचा दीदी से कर लुगी पर यदि इस बात को करते समय अनु दीदी (मौसी) साथ हो तो अच्छी बात है. क्योंकि वो दोनो पक्की सहेली है. ऐसे मे उनके साथ होने से रिचा दीदी को कुछ हिम्मत मिलेगी."

मैं बोला "मगर छोटी माँ हम इस बात को आज ही करना चाहते है, क्योंकि हमारे पास बर्बाद करने का टाइम नही है. हम जल्द से जल्द मुंबई के लिए निकलना चाहते है."

छोटी माँ बोली "ये कोई बड़ी बात नही है. मैं अभी जाकर अनु दीदी से बात कर लेती हूँ. तुम दोनो रिचा दीदी के पास पहुचो. मैं अनु दीदी को वही लेकर आती हूँ."

मैं बोला "आप अमि निमी को भी अपने साथ ले जाइए. इन्हे कीर्ति के पास छोड़ दीजिएगा. पता नही हमें वापस आने मे कितना टाइम लग जाए."

ये सुनकर छोटी माँ ने अमि निमी को तैयार होने को कहा और खुद भी तैयार होने चली गयी. तैयार होने के बाद उन्हो ने ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहा और मौसी के घर के लिए निकल गयी. उनके जाते ही हम लोग वापस मेहुल के घर के लिए निकल पड़े. मेहुल के घर पहुचने के बाद हम लोग छोटी माँ के आने का इंतजार करने लगे. लगभग 2 घंटे बाद छोटी माँ और मौसी आ गये. उन दोनो को एक साथ आया देख कर आंटी को कुछ ताज्जुब हुआ. छोटी माँ थोड़ी देर इधर उधर की बात करती रही. जब वो आंटी को अंकल की तबीयत की बात बताने को हुई तो मैं उठ कर बाहर आ गया. क्योंकि मेरे अंदर आंटी के आँसुओं का सामना करने की ताक़त नही थी.

अभी आंटी के उपर बीतने वाले पलों की बात सोचते सोचते ही मेरी आँखें भर आई. ऐसा होना भी जायज़ था क्योंकि आंटी से मुझे इतना प्यार मिला था कि उनके रोने की कल्पना ने ही मेरे अंदर एक दर्द का तूफान उठा दिया. मैं अपने आपको रोने से रोकने की कोशिश करने लगा और तभी मेरे कंधो पर अंकल ने हाथ रखा और उन्हे देखते ही मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया. मैं अपने आपको ना रोक पाया और अंकल से लिपट कर फुट फुट कर रोने लगा. अंकल मुझे समझाने की कोशिश करने लगा.

मैं बोला "अंकल मैं कमजोर नही हूँ पर आंटी के आँसू मैं नही देख सकता. वो मेरी माँ है. मैं उनके आँसू कैसे देख सकता हू. उन्हे भगवान ने ये दर्द क्यों दिया. वो कितना रो रही होंगी. मैं तो उन्हे चुप भी नही करा सकता. मैं अपनी बेबसी पर रो रहा हूँ कि मैं अपनी माँ को रोने से नही रोक सकता. मैं कैसा बेटा हूँ जो अपनी माँ के आँसू ही नही पोछ सकता."
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09-09-2020, 01:00 PM,
#43
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
अंकल बोले "तुम चिंता क्यों करते हो बेटे. सब ठीक हो जाएगा पर अगर तू ही इस तरह से हिम्मत हारेगा तो तेरी माँ को कौन संभालेगा. अपने आँसू पोछ और रिचा के पास जा. उसे इस समय तेरी ज़रूरत है."

अंकल की बातों ने मेरे दिल पर तीर की तरह असर किया. मैने अपने आँसू पोंछे.

मैं बोला "नही अंकल मैं आंटी का सामना नही कर सकता. मैं उन्हे रोते हुए नही देख पाउन्गा. उन्हे रोता देखुगा तो मैं पूरी तरह टूट जाउन्गा."

अंकल बोले "तुम क्या चाहते हो कि रिचा रो रो कर मर जाए."

मैं बोला "ये आप क्या बोल रहे है अंकल."

अंकल बोले "तो फिर रिचा के पास जाओ. तुम भी ये बात अच्छे से जानते हो कि वो मेहुल से ज़्यादा तुम्हे प्यार करती है. तुम्हे देख कर उसे अपने आपको संभालना ही पड़ेगा."

अंकल की बात सुन कर मैने अपने दिल को कड़ा किया और फिर अंकल के साथ अंदर गया. मगर अंदर वही नज़ारा था जिस से बच कर मैं भाग कर बाहर आ गया था. आंटी रो रही थी. मौसी छोटी माँ और मेहुल उन्हे समझाने की कोशिश कर रहे थे मगर वो थी कि बेहतासा रोए जा रही थी. ये देख कर मेरे कदम अपने आप पीछे होने लगे. लेकिन अंकल ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया. मैने अपने आपको मजबूत करने की कोशिश की और फिर एक दम से आंटी की तरफ बड़ा. मैं आंटी के पास जाकर बैठ गया.

आंटी ने एक नज़र मेरी तरफ देखा और मुझे अपने गले से लगा कर रोने लगी. उनके इस तरह रो रोकर बहाल होने से, ना जाने मेरे अंदर कहाँ से इतनी ताक़त आ गयी कि मैने उनके आँसू पोंछे और कहा.

मैं बोला "मत रो आंटी. क्या तुम्हे अपने इस बेटे पर भरोसा नही है. अंकल को कुछ नही होगा. हम उनका इलाज अच्छे से अच्छे हॉस्पिटल मे कराएगे और उन्हे अच्छा भला करके आपके सामने लाकर खड़ा कर देंगे."

इतना बोलने के बाद मेरी आँखे फिर आँसुओं से भर गयी. तभी अंकल ने बात को संभाला.

अंकल बोले "रिचा अपना नही तो कम से कम इन बच्चों का तो ख़याल करो. देखो तुम्हारा रोना देख कर ये भी रोने लगे है."

आंटी ने एक नज़र मेरी और मेहुल की तरफ देखा और उनके आँसू गिरना बंद हो गये मगर वो कुछ नही बोल रही थी. उन्हे इस बात से बहुत सदमा पहुचा था.

मैं बोला "आंटी आप बिल्कुल चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा."

आंटी अपने आपको संभालते हुए बोली "तुम दोनो अभी बहुत छोटे हो. तुम ये सब कैसे कर पाओगे."

आंटी की इस बात का जबाब मौसी ने दिया और जबाब भी ऐसा दिया जिसकी उम्मीद कम से कम मुझे तो नही थी.

मौसी बोली "रिचा जिन बच्चों के सर पर दो दो माँ का आशीर्वाद हो, वो छोटे भले हो पर कमजोर नही हो सकते. तुम्हे अपने बच्चों पर विस्वास करना चाहिए."

अब मौसी की बात को छोटी माँ ने आगे बढ़ाया.

छोटी माँ बोली "दीदी, अनु दीदी ठीक कह रही है. हमारे बच्चे छोटे ज़रूर है मगर कमजोर बिल्कुल नही है. जीजा जी को कुछ नही होगा. वो जल्दी ठीक हो जाएँगे मगर आपने यदि अपने आपको नही संभाला तो आपके साथ साथ ये बच्चे और जीजा जी भी टूट कर रह जाएँगे. ये वक्त हम लोगों का हिम्मत से काम लेने का है. ना कि बीमारी का मातम मनाने का."

छोटी माँ की बातों से आंटी को कुछ दिलासा मिला. उन्हो ने अंकल की तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देख कर बोली.

आंटी बोली "तो तुम लोग कब जा रहे हो और कौन कौन जा रहा है."

आंटी की बात का जबाब अंकल ने दिया. अंकल बोले "किसी के जाने की ज़रूरत नही है. मैं और रॉय दो लोग ही जाएँगे. मेहुल यहाँ रह कर तुम्हारा ख़याल रखेगा."

अंकल की ये बात सुनकर सब एक दूसरे को देखने लगे. अभी इस से पहले की कोई कुछ बोल पाता तभी डोरबेल बजी और सब दरवाजे की तरफ देखने लगे. मेहुल ने जाकर दरवाजा खोला तो अमि निमी और कीर्ति अंदर आती हुई नज़र आई.

उन्हे देख सब चौक गये कि ये लोग इधर कैसे मगर दूसरे ही पल पापा ने अंदर कदम रखा.

पापा अंदर कदम रखते ही बोले "इतनी बड़ी बात हो गयी और आप लोगों ने मुझे कुछ बताया तक नही. वो तो मुझे दिनेश से काम पड़ा और मैं उसके ऑफीस पहुचा तो पता चला कि उसके घर से अचानक फोन आ गया तो वो घर चला गया. घर पहुचने पर मुझे पता चला कि ये सब बात हुई है और मैं अपने आपको यहाँ आने से नही रोक पाया. अब ज़रा खुल कर बताइए कि बात क्या है."

फिर अंकल ने पापा को सारी बात बताई. पापा कुछ देर सोचते रहे फिर बोले.

पापा बोले "घबराने की कोई बात नही है. मेरे एक दोस्त डॉक्टर. जी.डी. डूबे मुंबई की बड़ी हॉस्पिटल मे कॅन्सर विशेशग्य है. आप उनसे मिल लीजिए वो आपको सही सलाह देंगे."

पापा की बात सुनकर अंकल बोले "मेरा इलाज वही कर रहे है और उन्होने ही ये सलाह दी है."

पापा बोले "तब तो चिंता की कोई बात नही है. आप बस जाने की तैयारी कर लीजिए बाकी की बात मैं उन से कर लूँगा और यदि ज़रूरत पड़ी तो मैं भी आ जाउन्गा."

अंकल बोले "मेरी जाने की सारी तैयारी है. मैं और मेरा दोस्त रॉय दो लोग ही जा रहे है."

पापा बोले "ये तो ठीक है पर मेरे ख़याल से आपको मेहुल को भी ले जाना चाहिए और यदि मेहुल के साथ पुन्नू भी जाना चाहे तो मुझे इसमे कोई आपत्ति नही है. रही बात रिचा बहन की तो वो चाहे तो हुमारे साथ या फिर अनु के घर मे रह सकती है."

पापा की बात सुनकर अंकल ने कुछ नही कहा.

मेहुल बोला "अंकल ठीक कह रहे है पापा. मैं और पुन्नू भी आपके साथ चलेगे. हम भी अपने चलने की तैयारी कर लेते है."

अंकल बोले "जब भाई साहब यही चाहते है तो फिर मैं तुम लोगो को मना नही करूगा पर तुम लोग वहाँ जाकर परेशान ही होगे."

पापा बोले "आप इनकी परेशानी की फिकर मत कीजिए. यही तो वक्त है जब ये जिंदगी की दुस्वरियों से लड़ना सीखेगे. तभी तो इन्हे समझ मे आएगा कि जिंदगी किस चीज़ का नाम है."

ये बोलकर पापा ने कहा "अब मुझे चलना चाहिए. आप जाने से पहले मुझसे मिल कर जाइएगा."

इतना कहकर पापा जाने को हुए तो अंकल ने उनसे चाय नाश्ता करने को कहा तो पापा ने कहा कि तकल्लूफ करने की कोई ज़रूरत नही है पर जब वो अच्छे होकर लौटेगे तब वो ज़रूर चाय नाश्ता करेंगे. ये कहकर पापा चले गये.

पापा के जाने के बाद कीर्ति ने सबको पापा के अचानक मौसी के यहाँ आने की बात बताई और फिर मौसा जी से सारी बात मालूम होने के बाद अमि निमी और उसके साथ पापा के अंकल के घर आने की बात बताई.

पापा का ये रूप किसी के लिए नया नही था क्योंकि पापा सभी के साथ इसी तरह से मिलनसार और दयालु हृदय के इंसान थे जो सब के दुख सुख मे बराबर से सरीक होते थे. इसलिए वो सभी की नज़र मे एक अच्छे इंसान थे सिवाय मेरे और छोटी माँ को छोड़ कर और अब इसमे कीर्ति भी शामिल हो गयी थी क्योंकि उसे भी पापा के उस रूप के बारे मे मालूम पड़ गया था जो अभी तक दुनिया से छुपा था.

खैर पापा के जाने के बाद मेहुल और मेरे साथ चलने पर अंकल ने अपनी हाँ की मोहर लगा दी.

कीर्ति ने आंटी को अपने साथ घर चल कर रहने को तैयार कर लिया.
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09-09-2020, 01:00 PM,
#44
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
37

अब तय हुआ कि 3 दिन बाद हम लोग मुंबई के लिए निकलेगे. आंटी थोड़ा परेशान थी मगर अब उनका रोना बंद हो चुका था और वो स्तिथि से समझौता कर चुकी थी. कोई नही जानता था कि आगे क्या होने वाला है. सब के मन मे एक अंजाना सा भय घर कर गया था. फिलहाल तो सब को सिर्फ़ हमारे मुंबई जाने की तैयारी की पड़ी थी.

आंटी के घर से आने के बाद छोटी माँ जहाँ मुझे समझाती रही वही अमि निमी का चेहरा उतरा हुआ था. मैं पहली बार उनकी नज़रो से दूर जा रहा था. उन्हे मेरा जाना अच्छा नही लग रहा था. वो नही चाहती थी कि मैं मुंबई जाउ. उनकी हालत को मैं समझ सकता था. मैने और छोटी माँ ने मिल कर किसी तरह उन्हे तैयार कर लिया. रात को पापा आए तो उन्होने छोटी माँ को कहा कि मैने पुन्नू के खाते मे पैसे डाल दिए है. उसे और ज़रूरत पड़े तो बोल देगा मैं और पैसे डाल दूँगा. एक तरह से पापा ने अंकल के इलाज मे कोई कमी ना हो इसका इंतेजाम कर दिया था.

रात को मेरी कीर्ति से बात हुई. वो भी मेरे जाने से उदास सी लग रही थी मगर वो अमि निमी की तरह अपनी उदासी को जाहिर नही कर रही थी. उसकी बातों मे एक अजीब सा दर्द था और उसकी बातों से मुझे उसकी उदासी महसूस हो रही थी और मेरा दिल बैठा जा रहा था. शायद कीर्ति को भी मेरी इस हालत का अंदाज़ा मेरी बातों से हो गया और वो बनावटी हँसी हंसते हुए बोली.

कीर्ति बोली "तू तो ऐसे बात कर रहा है जैसे कि मुंबई कुछ दीनो के लिए नही बल्कि हमेशा के लिए जा रहा हो. अरे हंसते हंसते जा और हंसते वापस आ."

मैं बोला "हाँ तुझे तो मेरे जाने से बहुत खुशी हो रही है मगर मुझे ज़रा भी खुशी नही है."

कीर्ति मुझे बहलाते हुए बोली "ये सब यहा की बातें है. वहाँ तो तुझे पहुचते ही रिया मिल जाएगी फिर तो तेरा वापस आने का मन ही नही होगा. इसलिए अब ये मूह फुलाने का नाटक बंद कर दे."

कीर्ति की बातों से ना जाने क्यों मुझे गुस्सा आ गया और इसी गुस्से मे मैने कॉल काट दिया. कीर्ति ने मुझे दो तीन बार कॉल लगाया पर मैने नही उठाया. तब उसने मुझे एक एसएमएस किया.

कीर्ति का एसएमएस
"मेरी किसी ख़ाता पर नाराज़ ना होना,
अपनी प्यारी सी मुस्कान कभी ना खोना,
सुकून मिलता है देखकर मुस्कुराहट तुम्हारी,
मुझे मौत भी आए तो भी मत रोना."

इसके बाद कीर्ति ने मुझे फिर कॉल लगाया लेकिन मैने नही उठाया तो उसने फिर एसएमएस किया.

कीर्ति का एसएमएस
"तुम रूठ जाओ मुझ से ऐसा कभी ना करना,
मैं एक नज़र को तरसूं ऐसा कभी ना करना,
मैं पूछ पूछ हारू सौ सौ सवाल कर के,
तुम कुछ जवाब ना दो ऐसा कभी ना करना."

मगर इसके बाद भी ना तो मैने उसके एसएमएस का कोई जबाब दिया और ना ही उसे कॉल लगाया. तब उसने फिर एसएमएस किया.

कीर्ति का एसएमएस "मेरा कॉल उठाओ नही तो मैं अपने आप को कुछ कर लूँगी."

एसएमएस करने के बाद उसने दो तीन बार फिर कॉल लगाया मगर मैने नही उठाया तो उसने फिर मुझे एसएमएस किया.

कीर्ति का एसएमएस
"रात गहरी है डर भी सकते है,
हम जो कहते है कर भी सकते है,
रूठने से पहले बस इतना सोच लेना,
हम तो पागल है मर भी सकते है."

कीर्ति का ये एसएमएस देख कर मैने गुस्से मे उसे कॉल लगा दिया.

मैं बोला "अब तुम्हे क्या परेशानी है. ये फालतू की बकवास क्यों कर रही हो."

मगर कीर्ति का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था.

कीर्ति बोली "तुमने मेरा कॉल क्यों काटा."

मेरा गुस्सा कीर्ति को गुस्से मे देख कर शांत पड़ गया और मैने उस से झूठ कह दिया.

मैं बोला "मैने नही काटा था वो अपने आप कट गया था."

कीर्ति बोली "यदि अपने आप कट गया था तो फिर जब मैं कॉल लगा रही थी और एसएमएस कर रही थी तो क्यों नही उठाया."

मैं बोला "मैं गुस्से मे था."

कीर्ति बोली "तो अब गुस्सा शांत हो गया."

मैं बोला "हाँ."

कीर्ति बोली "क्यों शांत हो गया."

मैं बोला "क्योंकि तुम्हे गुस्सा आ गया था इसलिए."

मेरी बात सुन कर कीर्ति को हँसी आ गयी और उसे हंसते देख कर मुझे भी हँसी आ गयी.

कीर्ति बोली "तुम्हे मेरे गुस्से से डर लगता है."

मैं बोला "हाँ."

कीर्ति बोली "क्यों.?"

मैं बोला "क्योंकि मुझे तुम्हारी तरह मनाना नही आता."

मेरी बात सुनकर वो फिर हँसने लगी और उसकी हँसी मे मेरे दिल का सारा बोझ उतर गया.

मैं बोला "मुझे ना जाने मुंबई मे कितने दिन लग जाएँगे. क्या कल तुम कही घूम ने चलोगि."

कीर्ति बोली "हाँ बिल्कुल चलूगी मगर मेरी दो शर्त है."

मैं बोला "कैसी शर्त."

कीर्ति बोली "पहली तो ये कि आज के बाद तुम कभी मेरा कॉल इस तरह से नही काटोगे और चाहे तुम कितना भी गुस्सा क्यों ना रहो लेकिन मेरा कॉल उठाओगे."

मैं बोला "ठीक है आज के बाद कभी ऐसा नही होगा. अब दूसरी शर्त बोलो."

कीर्ति बोली "कल किसी ऐसी जगह चलो जहाँ हम आराम से बैठ कर ढेर सारी बात कर सके और हमें टोकने वाला कोई ना हो."

मैं बोला "ठीक है तो कल हम उसी वॉटरफॉल पर चलते है जहाँ पिक्निक पर गये थे. वो बहुत शांत है और वहाँ ज़्यादा भीड़ भाड़ भी नही रहती."

कीर्ति बोली "हाँ वो जगह ठीक रहेगी मगर घर मे क्या कहेगे."

मैं बोला "किसी से कुछ कहने की ज़रूरत नही है. हम स्कूल टाइम पर चलेगे और स्कूल टाइम पर ही वापस आ जाएँगे. किसी को कुछ पता ही नही चलेगा. लेकिन तुम घर मे इतना ज़रूर कह देना कि
तुम्हे स्कूल से आने मे देर हो जाएगी और हो सके तो नितिका से भी कुछ बहाना बना देना ताकि वो तुम्हे स्कूल मे ना पाकर घर फोन ना लगाए."

कीर्ति बोली "मुझे इतनी समझ है. मुझे कुछ मत समझाओ. तुम तो बस अपनी सोचो कि तुम्हे किस से क्या कहना है क्योंकि जो भी परेशानी आती है तुम्हारी तरफ से ही आती है."

मैं बोला "मेरी तरफ से कोई परेशानी नही आएगी."

इसके बाद हम लोगों मे कुछ देर इधर उधर की बातें होती रही. रात को 1 बजे हम ने एक दूसरे को गुड नाइट कहा और सो गये.

सुबह मेरी नींद कुछ देर से खुली. मैने टाइम देखा तो 6:45 बज चुके थे. मुझे कीर्ति से 7:30 बजे मिलना था. मैं जल्दी जल्दी तैयार हुआ मगर मुझे घर से निकलते निकलते ही 7:30 बज गये थे.
मैं जल्द से जल्द कीर्ति के पास पहुचना चाहता था इसलिए मैं बिना नाश्ता किए ही घर से निकल गया.

मैं 15 मिनिट देर से कीर्ति के पास पहुचा. आज उसने ऑरेंज कलर की स्लीव्ले शॉर्ट कुरती और ब्लॅक लेग्गी पहनी थी. उसमे वह बहुत सुंदर लग रही थी. मुझे देख कर कीर्ति बोली कि वो मेरा बहुत देर से इंतजार कर रही है. मैने उसे सॉरी बोला और उसकी स्कूटी पार्किंग मे लगाने के बाद हम लोग वॉटरफॉल के लिए निकल पड़े. वॉटरफॉल तक हमें पहुचने के लिए लगभग 1 घंटे का सफ़र तय करना था. मैं चुप चाप बाइक चला रहा था. कीर्ति भी चुप थी.

बहुत देर तक हम दोनो यू ही खामोशी के साथ चलते रहे. जब हम सिटी के बाहर निकल आए और रास्ते आने जाने वाली गाड़ियों की तादाद कम हो गयी तब कीर्ति ने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "आज मुझे बाइक नही चलाने दोगे."

मैं बोला "अभी रास्ता खराब है. कुछ देर बाद चला लेना."

फिर हम खामोशी से आगे बढ़ने लगे. कुछ देर बाद रास्ता सही आ गया तो कीर्ति ने फिर मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "अब तो रास्ता सही आ गया है. अब तो मुझे बाइक चलाने दो."

उसकी बात सुनकर मैने बाइक रोक दी और मैं पीछे बैठ गया और कीर्ति बाइक चलाने लगी. लेकिन बाइक चलाते चलाते कीर्ति को शरारत सूझी और उसने बाइक की स्पीड बढ़ा दी.

मैं बोला "बाइक धीरे चलाओ. बड़ी गाडिया तेज़ी से निकल रही है."

कीर्ति ने बाइक की गति कुछ कम की मगर सिर्फ़ कुछ देर के लिए. थोड़ी देर बाद उसने फिर गति बढ़ा दी.

मैं फिर बोला "स्पीड कम करो."

कीर्ति बोली "मुझे इतने धीरे चलाने मे मज़ा नही आता है. तुम चुप चाप बैठो. कुछ नही होगा."

ये कह कर उसने स्पीड और बढ़ा दी.

मैं बोला "देखो अगर तुम्हे बाइक धीरे नही चलानी है तो तुम बाइक मुझे चलाने दो."

कीर्ति बोली "तुम्हे डर लग रहा है तो मुझे पकड़ कर बैठ जाओ क्योंकि अब बाइक मैं ही चलाउन्गी और ऐसे ही चलाउन्गी."

उसके तेज गति से बाइक चलाने से मुझे सच मे डर लग रहा था की कही कोई आक्सिडेंट ना हो जाए. इसलिए मैने अपने दोनो हाथ आगे किए और बाइक के हॅंडल से कीर्ति के हाथ अलग कर हॅंडल अपने हाथो मे ले लिया और बाइक की स्पीड कम कर दी. अब मैं हॅंडल संभाला था मगर कीर्ति के पैर अभी भी गियर और ब्रेक पर जमे हुए थे. वो कुछ देर तक तो हॅंडल अपने हाथों मे लेने की कोशिश करती रही. लेकिन जब मैने उसे ऐसा नही करने दिया तो वो कभी गियर बदलने लगी, तो कभी ब्रेक दबा कर छोड़ने लगी. जिससे बाइक झटके खाने लगी.

मैने उसे ऐसा करने से मना किया मगर जब वो नही मानी. तब मैने उसके पैर ब्रेक और कलिच से अलग कर अपने पैर जमा लिए. अब कीर्ति सिर्फ़ आगे बैठी थी और मैं बाइक चला रहा था. इस तरह बाइक चलाने मे मुझे परेशानी भी हो रही थी और अच्छा भी लग रहा था. एक तरह से कीर्ति मेरे से सीने से लगी हुई थी. जिस वजह से मेरे सीने की धड़कने बढ़ गयी थी. जिसका अहसास कीर्ति को भी हो रहा था. क्योंकि उसकी पीठ मेरे सीने से सटी हुई थी.

मैं अपने आपको उससे दूर रखने की भरपूर कोशिश कर रहा था. लेकिन बाइक चलाने के लिए मुझे आगे की तरफ झुकना पड़ रहा था. जिस वजह से कीर्ति को भी कुछ झुकना पड़ा था. पहले तो वो थोड़ा आगे की तरफ झुकी हुई थी मगर जब उसने मेरी बढ़ी हुई धड़कनो को सुना तो उसे फिर से शरारत सूझ गयी.

कीर्ति ने अपनी पीठ को पीछे कर बिल्कुल मेरे सीने से चिपका दिया. उसकी इस हरकत ने मेरे रहे सहे होश भी उड़ा दिए. मेरा दिल मुझे मेरे सीने से बाहर निकलता महसूस होने लगा. जब मुझसे नही रहा गया तो मुझे कीर्ति से बोलना पड़ा.

मैं बोला "क्या कर रही. ठीक से बैठ ना."

कीर्ति बोली "ठीक से ही तो बैठी हूँ और कैसे बैठूं."

मैं बोला "थोड़ा आगे खिसक कर बैठ. मुझे बाइक चलने मे परेशानी हो रही है."

कीर्ति बोली "और कितना आगे खिसक कर बैठू. क्या पेट्रोल की टंकी पर जाकर बैठ जाउ."

मैं बोला "देख फालतू की बक बक मत कर. तू पीछे आकर बैठ और मुझे बाइक चलाने दे."

कीर्ति बोली "मैं तुझे बाइक चलाने से कहाँ रोक रही हूँ. तुझे बाइक चलाना है तो ऐसे ही चला क्योंकि बाइक चाहे मैं चलाऊ या तू चला पर मैं तो आगे ही बैठुगी. अब ये फ़ैसला तू कर कि बाइक किसे चलानी है."

मैं बोला "ओके बाइक तू ही चला पर ज़रा धीरे चला. नही तो आक्सिडेंट हो सकता है."

कीर्ति ने कुछ देर कुछ सोचती रही फिर मुस्कुराते हुए बोली.

कीर्ति बोली "ठीक है मैं अब धीरे बाइक चलाउन्गी."

तब मैने उसे बाइक चलाने दी. फिर वो सारे रास्ते भर आराम से बाइक चलाती रही मगर बीच बीच मे ब्रेक लगा लगा कर शरारत भी करती रही और इसी तरह हम लोग वॉटरफॉल तक पहुच गये.

वहाँ पहुच कर हम लोग झरने के पास जाकर बैठ गये. कुछ देर तक हमारी यहाँ वहाँ की बातें होती रही. मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "यार मुझे तो अब भूक लग रही है. देर से उठने की वजह से मैं नाश्ता भी नही कर पाया."

कीर्ति बोली "ये तो तेरे देर से उठने की सज़ा है. अब भूके बैठो रहो. हम तो यहाँ से 1 बजे के बाद ही निकलेगे."

मैने कहा "तू तो घर से नाश्ता करके निकली है. तुझे क्या फ़र्क पड़ेगा चाहे 1 बजे या 4 बजे. लेकिन मेरी तो सोच. मैने तो कल रात से खाना नही खाया."

कीर्ति बोली "यदि तुझे यहाँ कुछ खाने को मिल जाए तो ले आ मगर यहाँ से जाने की बात मत करना."

मैं बोला "यहाँ कहाँ कुछ खाने को मिलेगा. हमें यहाँ से कही खाने के लिए चलना चाहिए."

कीर्ति बोली "मैं तो यहाँ से नही जाने वाली. तुझे जाना है तो तू जा."

मैं बोला "ठीक है तुझे मेरा भूका रहना पसंद है तो यही सही. तेरी खुशी के लिए मैं भूका भी रह लुगा."

कीर्ति बोली "चल अब ज़्यादा नौटंकी करना बंद कर दे. मैं तेरी किसी नौटंकी मे फँसाने वाली नही हूँ. मैने कह दिया कि मैं 1 के पहले यहाँ से नही जाउन्गी तो मतलब नही जाउन्गी."

मैं बोला "तेरे चक्कर मे एक तो मेरी नींद पूरी नही हो पाती है और अब पेट भर खाना भी नसीब नही हो रहा है."

कीर्ति बोली "क्यों तेरी नींद पूरी क्यों नही होती. मैं तो रात को सिर्फ़ 1 या 1:30 बजे तक ही बात करती हूँ. उसके बाद तू किस से बात करता है."

मैं बोला "अरे रात को 1:30 बजे तू बात करना बंद करती है और मुझे नींद आते आते 2 बज जाता है और फिर सुबह 6 बजे से निमी जगाना सुरू कर देती है. अब भला 4 घंटे मे सोने मे कही नींद पूरी होती है. मुझे तो ये समझ मे नही आता कि तू कैसे रात को 1:30 बजे तक बात करने के बाद सुबह 6 बजे उठ जाती है और तेरी नींद भी पूरी हो जाती है."

कीर्ति बोली "वो ऐसे पूरी हो जाती है क्योंकि मैं स्कूल से आने के बाद खाना खा कर आराम से सो जाती हूँ ताकि रात को तुझसे बात करते समय मुझे नींद ना आए."

मैं बोला "गयी भैस पानी मे."

कीर्ति बोली "क्यों क्या हो गया."

मैं बोला "मैं तो समझ रहा था कि मेरी तरह तेरी भी नींद पूरी नही हो पा रही होगी मगर यहाँ तो पेट भर खाया जा रहा है और नींद भर सोया जा रहा है."

कीर्ति बोली "तो तुझे सोने से किसने मना किया है."

मैं बोला "अरे रात को 11 बजे मेरे सोने का समय सुरू होता है तो रात के 11 बजे तेरे बात करने का समय सुरू होता है फिर भला मैं कैसे सो सकता हूँ."

कीर्ति बोली "क्यों क्या तू मेरी तरह दिन मे नही सो सकता."

मैं बोला "मेरी दिन मे सोने की आदत नही है. तू दिन मे ही क्यों बात नही कर लेती. क्या रात को ही बात करना ज़रूरी है."

कीर्ति बोली "अरे जब तू मेरे लिए अपनी आदत नही बदल सकता तो मैं तेरे लिए अपनी आदत क्यों बदलू. वैसे भी मैं रात को जब तक तुझसे बात नही कर लेती मुझे नींद नही आती."

मैं बोला "ठीक है आज मैं दिन मैं सोया करूगा और रात को तुझसे बात किया करूगा."

कीर्ति बोली "गुड. ये हुई ना अच्छे बच्चो वाली बात. अब मुझे लगता है कि तू सुधर गया है."

मैं बोला "तुझे दिन मे मेरे सोने से परेशानी तो नही होगी ना."

कीर्ति बोली "तेरे दिन मे सोने से मुझे क्यों परेशानी होने लगी. मेरे तो बात करने का समय रात का है."

मैं बोला "अच्छे से सोच ले फिर बोलना. बाद मे अपनी बात से मुकरना मत."

कीर्ति बोली "हाँ सोच लिया. मैं अपनी बात से नही मुकुरुँगी."

मैं बोला "तो ठीक है. अब मेरे सोने का समय है. हम लोग रात को बात करेंगे."

ये कह कर मैने कीर्ति की गोद मे अपना सर रखा और आँख बंद करके लेट गया. उसकी गोद मे सर रख कर लेटने से मुझे अजीब ही तरह का सुकून मिला और मैं यू ही सर रख कर लेटा रहा. कुछ देर तक तो कीर्ति मुझसे बात करती रही पर जब मैं बिना कोई जबाब दिए यू ही उसकी गोद मे सर रख कर लेटा रहा. तब फिर वो मेरा सर अलग कर मुझे उठाने की कोशिश करने लगी. लेकिन मैं आँख बंद कर आराम से लेटा रहा.
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09-09-2020, 01:00 PM,
#45
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
कीर्ति जब मुझे उठाते उठाते परेशान हो गयी और मैं नही उठा तब उसने एक चाल चली.

कीर्ति बोली "जल्दी उठो. कोई इधर ही आ रहा है."

ये सुनते ही मैं उठ कर बैठ गया और कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी. मैने उठ कर इधर उधर देखा मगर वहाँ कोई भी नही था.

मैं फिर से लेटने को हुआ तभी कीर्ति मेरे पास से उठकर भागने को हुई. मैने उसका हाथ पकड़ कर उसे ज़बरदस्ती उसे बैठा दिया और उसकी गोद मे सर रख कर फिर से लेट गया.

कीर्ति ने पहले मेरा सर अपनी गोद से हटाने की कोसिस की लेकिन मैने उसे अपना सर उसकी गोद से अलग नही करने दिया. जब वो मेरा सर अपनी गोद से नही हटा पाई तो मेरे बालों मे अपनी उंगलिया फेरने लगी.

उसके ऐसा करने से मुझे बड़ा ही अच्छा लग रहा था. मुझे यू लग रहा था जैसे कि मैं अलग ही किसी दुनिया मे आ गया हूँ. मुझे इस तरह अपनी गोद मे आराम करते देख कीर्ति ने सवाल किया.

कीर्ति बोली "क्या तू यहाँ मेरी गोद मे सर रख कर सोने के लिए आया है."

मैं बोला "आया तो तुझसे बात करने था पर अब लगता है कि तेरी गोद मे सर रख कर यूँ ही लेटा रहूं."

कीर्ति बोली "उठ कर बैठ ना. क्यों मुझे परेशान कर रहा है."

मैं बोला "तूने तो खुद कहा था कि मैं दिन मे सो सकता हू. अब तू अपनी बात से मत मुकर."

कीर्ति बोली "मैं अपनी बात से नही मुकर रही हूँ. पर मैने तो घर मे सोने को कहा था. तू तो यही सोने लगा है."

मैं बोला "मेरा बस चले तो मैं सारी जिंदगी यू ही लेटा रहूं."

कीर्ति बोली "बड़ा आया सारी जिंदगी मेरी गोद मे सर रख कर सोने वाला. मुझे क्या तकिया समझ रखा है."

मैं बोला "ऐसा मज़ा तकिये मे कहाँ जो तेरी गोद मे है."

कीर्ति बोली "जल्दी से उठ. देख कोई इधर ही आ रहा है."

मैं बोला "चल झुटि. मुझे उठाने के लिए फिर बहाना बना रही है."

कीर्ति बोली "नही इस बार मैं झूठ नही बोल रही. सच मे कोई आ रहा है. जल्दी उठ."

मुझे कीर्ति की बात सही लगी और मैं उठ कर बैठ गया. लेकिन अभी भी कोई नही था. मेरे उठ कर बैठते ही कीर्ति उठ कर भागने लगी.

मैने अपने दोनो हाथ उसकी कमर मे डाल कर उसे पकड़ कर अपनी तरफ खिचा और उसे अपनी गोद मे बैठा लिया.
वो मेरी पकड़ से छूटने की कोसिस करने लगी. लेकिन मैं उसे अपनी बाँहों मे जकड़े रहा.

कीर्ति बोली "छोड़ मुझे. अभी कोई आ जाएगा."

मैं बोला "कोई आता है तो आ जाए पर अब मैं तुझे नही छोड़ूँगा. यदि मैने तुझे छोड़ा तो तू फिर भागेगी."

कीर्ति बोली "नही भागुंगी. छोड़ ना."

मैने कहा "सच बोल रही है ना."

कीर्ति बोली "हाँ कसम से. अब मैं नही भागुंगी."

लेकिन कीर्ति को तो अभी भी शरारत ही सूझ रही थी. मेरे छोड़ते ही वो भागने की कोसिस करने लगी और मैने फिर उसे पकड़ कर अपनी गोद मे बैठा कर जकड लिया.

कीर्ति बार बार मुझे छोड़ने को बोलती और जब मैं उसे छोड़ता तो वो खिलखिला कर भागने की कोसिस करती और मैं उसे फिर पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लेटा. ये सिलसिला बहुत देर तक चलता रहा.

हम दोनो अपनी एक अलग ही दुनिया मे मस्त थे. जहाँ हमें इक दूसरे के सिवा कोई भी नही सूझ रहा था. हम ये भी नही जानते थे कि जो हम कर रहे हैं वो क्या है. ना ही हम ये जानना चाहते थे.

कीर्ति ने मेरी गोद मे बैठे बैठे ही मुझसे पूछा.

कीर्ति बोली "तुझे भूक लगी है ना."

मैं बोला "हाँ लगी तो है पर अब घर जाकर ही खाउन्गा."

कीर्ति बोली "और उसका क्या करेगा, जो मैं तेरे लिए बना कर लाई हूँ."

मैं बोला "क्या बना कर लाई है."

कीर्ति बोली "तेरे मनपसंद आलू के परान्ठे."

मैं बोला "मुझे नही खाना."

कीर्ति बोली "क्यों.? क्या तुझे मेरे हाथ से बने पराठे पसंद नही है."

मैं बोला "यदि तू अपने हाथ से खिलाएगी तो जहर भी खा लूँगा लेकिन शर्त ये है कि तू अपने हाथ से खिलाए."

कीर्ति बोली "चल अच्छा. तुझे अपने हाथ से ही खिला देती हूँ. अब मुझे छोड़."

मैं बोला "तुझे खिलाना ही है तो ऐसे ही मेरी गोद मे बैठे बैठे खिला दे. नही तो मुझे नही खाना."

कीर्ति बोली "अरे लंच बॉक्स तो निकालने दे. तभी तो अपने हाथ से खिलाउन्गी ना."

ये सुनकर मैने कीर्ति को छोड़ दिया. उसने अपने हॅंडबॅग से लंच बॉक्स निकाला और मुझे खिलाने लगी. लेकिन मैने खाने से मना कर दिया. तब कीर्ति ने पूछा.

कीर्ति बोली "अब तो मैं अपने हाथ से खिला रही हूँ. फिर क्यों नही खा रहा."

मैं बोला "मैने तुझसे पहले ही कहा था कि तुझे खिलाना है तो मेरी गोद मे ही बैठ कर खिलाना होगा नही तो मुझे नही खाना है."

कीर्ति बोली "ज़िद मत कर और सीधे से खा ले."

मैं बोला "तुझे खिलाना है तो जैसे मैने कहा है. वैसे ही खिला नही तो मुझे नही खाना."

मेरी बात सुन कर कीर्ति मेरी गोद मे पहले की तरह बैठ गयी और मैने उसे अपनी बाहों मे जकड लिया और वो मुझे पराठे खिलाने लगी. वो खिलाते खिलाते बोली.

कीर्ति बोली "तू बहुत शरारती हो गया है."

मैं बोला "तुझसे तो कम ही हूँ."

कीर्ति बोली "मैने क्या शरारत की."

मैं बोला "जब तू मेरे लिए खाने के लिए लाई थी तो पहले क्यों नही बताया. मुझे इतनी देर तक भूका क्यों रखा."

कीर्ति बोली "तुझे तो खुश होना चाहिए. पहले यदि मैं बता देती तो तुझे अपने हाथ से खाना पड़ता लेकिन अब तो मैं खुद तुझे अपने हाथों से से खिला रही हूँ."

मैं बोला "हाँ ये बात तो है. अब पता नही फिर कब तेरे हाथों से यू खाने को मिले."

ये बोलते ही मैं ना जाने क्यों उदास सा हो गया. मुझे यू उदास देख कर कीर्ति ने मुझे समझाया.

कीर्ति बोली " देख आज मे जीना सीख. तू बस ये देख ना कि आज हम लोग साथ है और खुश है. कल होने वाली बात को सोच कर आज की खुशियाँ खराब करने से क्या फ़ायदा है."

मुझे कीर्ति की बात सही लगी और मेरा चेहरा फिर से खिल गया. मैं उसे अपने हाथों से खिलाने लगा. पराठे खाने के बाद हम दोनो पानी पीने झरने के पास गये. मैने पानी पिया मगर कीर्ति पानी नही पी रही थी.

मैं बोला "तुझे पानी नही पीना."

कीर्ति बोली "जैसे तूने अपने हाथों से खिलाया है वैसे ही अपने हाथों से पानी पिला."

कीर्ति की बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी और फिर मैं हाथों मे पानी लेकर उसे पिलाने लगा. उसे पानी पिलाने के बाद जहा हम लोग बैठे थे वही आ गये. कीर्ति बैठ गयी और मैं उसकी गोद मे सर रख कर फिर से लेट गया.

कीर्ति बात करती जा रही थी और मेरे बालों मे उंगली फेरती जा रही थी. मैं चुप चाप आँख बंद कर लेटा हुआ उसकी बात सुन रहा था और उसकी बातों का जबाब दे रहा था. ये सिलसिला काफ़ी देर तक चलता रहा.

बाद मे कीर्ति ने मेरे मुंबई जाने की बात करना शुरू कर दिया. मैं सिर्फ़ उसकी बातों का छोटा सा जबाब दे रहा था. फिर अचानक ही उसने रिया का ज़िक्र छेड़ दिया.

कीर्ति बोली "रिया को तूने बता दिया कि तुम लोग मुंबई आ रहे हो."

मैं बोला "हाँ, वो तो मैने कल ही बता दिया था."

कीर्ति बोली "तूने कल कब बता दिया उसको."

मैं बोला "रात को तेरा फोन आने के पहले रिया का भी फोन आया था. तभी मैने उसे बताया था."

कीर्ति बोली "तो फिर ये बात तूने रात को मुझे क्यों नही बताई."

मैं बोला "तू जानती है, मुझे तुझसे रिया की बात करना अच्छा नही लगता इसलिए मैने तुझे ये बात नही बताई."

कीर्ति बोली "जब तू उस से बात करता है तो फिर मुझसे छुपाने से क्या फ़ायदा."

ना जाने क्यों पर मुझे कीर्ति से रिया के बारे मे बात करना ज़रा भी अच्छा नही लगता था. मगर वो थी कि अब इस बात को बढ़ाती ही जा रही थी. मुझे गुस्सा आ गया.

मैं बोला "अब क्या मुझे किसी से बात करने के लिए भी तेरी इजाज़त लेनी होगी. मैं किस से बात करता हूँ और किस से नही करता. तू इस मामले मे अपनी टाँग मत अड़ाया कर. मुझे जो बात ठीक लगेगी वो मैं तुझे बताउन्गा और जो ठीक नही लगेगी वो मैं तुझे नही बताउन्गा."

इतना कह कर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके कीर्ति की गोद मे ही लेटा रहा. मगर ये बात सुनते ही कीर्ति का हाथ मेरे बालों मे चलना बंद हो गया. मैं समझ गया कि उसे मेरी बात अच्छी नही लगी है. कीर्ति अब खामोश ही रही.

मैं भी चुप चाप ही लेटा रहा और उसके कुछ बोलने का इंतजार करने लगा. लेकिन तभी मेरे चेहरे पर टाप टाप करके कीर्ति के आँसू गिरने लगे.

मैने अपनी आँख खोल कर देखा तो वो खामोश बैठी थी और उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे. ये देख कर मैं तुरंत उठा.

मैने पूछा "ये क्या हुआ.? तू रो क्यों रही है."

मगर कीर्ति चुप थी रोए जा रही थी. मैने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया.

मैने कहा "तुझे मेरी बात बुरी लगी तो सॉरी. आगे से ऐसा नही कहूँगा. तू रोना बंद कर."

लेकिन वो रोए जा रही थी. मैने उसके आँसू पोछने की कोसिस की तो वो मेरे पास से उठ कर दूसरी तरफ जाकर बैठ गयी. मैं उठ कर उसके पास गया. मैने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया और उसके आँसू पोंछने लगा. मगर मेरे ऐसा करते ही वो और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.

मैने फिर उसे चुप कराने की कोसिस की तो वो फिर उठकर दूर चली गयी. मेरे तो कुछ समझ मे नही आ रहा था कि उसका रोना कैसे बंद करवाऊ. मैं फिर उसके पास जाकर बैठ गया.

मुझे अपने पास आया देख कर वो फिर उठ कर जाने के लिए खड़ी हो गयी. मैने उसे खींच कर अपनी गोद मे बैठा लिया. लेकिन वो मेरी पकड़ से छूटने की कोसिस करती रही पर मैने उसे नही छोड़ा तो वो दूसरी तरफ मूह करके रोने लगी.

मैं उसका रोना बंद करने के लिए बोलता रहा मगर वो थी कि अपना चेहरा घुमाए रोए जा रही थी. और बहुत देर तक यूँ ही रोते रहने की वजह से उसका रोना सिसकियाँ मे बदल चुका था. मैं उसे जितना चुप करने की कोसिस कर रहा था. उसकी सिसकियाँ उतनी तेज होती जा रही थी.

जब मेरी किसी बात का असर उस पर नही पड़ा और मैं उसे चुप करते करते थक गया. तो उसे चुप कराने की कोसिस मे मुझसे वो हो गया. जो शायद हम दोनो के बीच मे नही होना चाहिए था.
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09-09-2020, 01:00 PM,
#46
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मैने कीर्ति से कहा "तू चुप होती है या नही."

लेकिन उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया. वो सिसकती ही जा रही थी.

मैने उसे डराने के लिए कहा "तुझे रोना ही है तो घर चल. घर चल कर रोती रहना."

मगर मेरी बात का उस पर उल्टा असर पड़ा. वो उठने को हुई तो मैने उसे छोड़ दिया. और फिर हम दोनो बाइक की तरफ बढ़ने लगे. मैं बाइक पर बैठ गया. लेकिन कीर्ति बाइक पर ना बैठ कर सीधे ही आगे बढ़ गयी.

उसे ऐसा करते देख मैं तुरंत बाइक से उतरा और उसके पास पहुचा.

मैने कहा "कहाँ जा रही है. चल कर बाइक मे बैठ ना."

कीर्ति कुछ नही बोली और सिसकी भरते हुए पैदल ही आगे बढ़ती रही. मैने जबरदती उसका हाथ पकड़ कर उसे वापस वही लेकर आ गया जहाँ हम बैठे थे. मैने उसे पकड़ कर उधर ही बैठा दिया और मैं उसका हाथ पकड़े पकड़े ही उसके पास बैठ गया.

लेकिन कीर्ति ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया. मैं उसे समझाए जा रहा था पर मेरी किसी बात का उस पर कोई असर नही पड़ रहा था.

आख़िर मे जब वो किसी तरह से नही मानी तो मैने उसे अपनी तरफ खिचा. अब कीर्ति पूरी तरह मेरी बाहों मे थी. उसका चेहरा मेरी तरफ था. उसका चेहरा बहुत भोला लग रहा था और मुझे उस पर प्यार आ रहा था. वो अपने आपको छुड़ाने की कोसिस करने लगी. मगर मेरी पकड़ मजबूत थी. इस से पहले कि वो अपने आपको मुझसे छुड़ा पाती, ना जाने मुझे क्या हो गया.

मैने अपने होठों को उसके होंठो पर रख दिया और उन्हे चूसने लगा. मेरे ऐसा करने से पहले कीर्ति चौक गयी. उसने आपको मुझसे छुड़ाने की कोसिस की लेकिन मैने उसे नही छ्चोड़ा. मैं लगातार उसके होंठों को चूसे जा रहा था.

मेरे ऐसा करने से उसकी आँखें धीरे धीर बंद हो गयी. मैं उसके होठों को लगातार चूसे जा रहा था और फिर मैने अपनी जीभ को उसके मूह मे डाल दिया. मेरे ऐसा करने से उस पर एक अजब सी मदहोशी छा गयी थी. उसने अपने आपको मेरी बाहों मे ढीला छोड़ दिया और मेरे सर पर हाथ रख कर वो भी मेरे किस का जबाब देने लगी. हम दोनो करीब 3 मिनिट तक एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे.

मगर ऐसा करने से मेरे लिंग मे भी सर-सराहट होने लगी और मैने उसे किस करना बंद किया और उसे अपनी बाहों से आज़ाद कर दिया. लेकिन वो मेरी गोद मे ही आँख बंद कर के लेटी रही.

उसके चेहरे पर एक अलग ही कामुकता नज़र आ रही थी. मैं उसका मदहोशी मे भरा मासूम सा चेहरा देखता रहा. जिसे देख कर मैं अपने आपको रोक नही पाया और मैने फिर अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए. मैं फिर उसके होंठ चूसने लगा. वो कभी मेरे बालों मे हाथ फेरती तो कभी मेरी गर्दन पर हाथ फेरती.

मुझ पर भी एक अजब सा नशा छा गया था. मैने उसके बूब्स पर हाथ रखना चाहा तो उसने मेरा हाथ अलग कर दिया. ये देख कर मैने उसके होंठ चूसना बंद कर दिया. लेकिन वो मेरे होंठो को चूसे जा रही थी.

उसने मुझे अपने किस का जबाब ना देते हुए देखा तो उसने मेरा हाथ खुद पकड़ कर अपने बूब्स पर रख दिया. अब मैं भी उसके किस का जबाब देने लगा और उसके बूब्स मसल्ने लगा. उसके बूब्स पर मेरा हाथ पड़ते ही जहाँ मेरे अंदर उत्तेजना बढ़ रही थी तो वही कीर्ति भी अपने आप पर अपना काबू खोती जा रही थी.

मैं अब किसी भी हद से गुजरने को तैयार था. मैं ये पूरी तरह से भूल चुका था कि मैं किसके साथ क्या कर रहा था. मुझे तो कीर्ति पर बहुत प्यार आ रहा था और मैं अपना सारा प्यार उस पर लूटा देना चाहता था. मैने अपना हाथ उसकी कुरती के अंदर डालने की कोसिस की मगर कुरती शॉर्ट थी और उसके लेटे होने के कारण नीचे दबी हुई थी इसलिए मेरा हाथ कुरती के अंदर नही जा रहा था.

कीर्ति समझ गयी कि मैं क्या करना चाह रहा हूँ. उसने अपनी कमर को थोड़ा उठाया तो मेरा हाथ कुरती के अंदर चला गया और मैं उसके पेट पर हाथ फेरते हुए अपना हाथ उपर ले जाने लगा. मेरा हाथ धीरे धीरे उसके पेट पर रेंगते हुए उसके बूब्स की तरफ बढ़ रहा था.

मेरे हाथ के स्पर्श से कीर्ति भी उत्तेजना से भरती जा रही थी. अब मेरा हाथ उसके नंगे बूब्स पर था. उसके कोमल बूब्स को स्पर्श करते ही मैं अपना आपा खो चुका था. मैं बड़ी ज़ोर ज़ोर से उसके बूब्स को दबाने लगा. निप्पल्स को अपने हाथ की उंगलियों से मसल्ने लगा. जब मैं उसके निप्पल्स मसलता तो वो कसमसा कर रह जाती और उसके मूह से एक कामुकता भरी सिसकी निकल जाती. जिस से मेरे अंदर और भी उत्तेजना भर जाती. मैं और भी जोश से उसके बूब्स मसल्ने लगता.

बहुत देर तक हम लोग ऐसा ही करते रहे. ऐसा करने से मेरा लिंग पूरे उफान पर पहुच गया था. हमारी साँसे बहुत तेज हो गयी थी और हमारी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.

लेकिन जब हमारी बेचैनी हद से ज़्यादा बढ़ने लगी तो हम ने किस करना बंद कर दिया. हम दोनो ने खामोशी से बिना कुछ कहे ये सब बंद करने की सहमति एक दूसरे को दे दी थी. अब हम दोनो अपने आप पर काबू पाने की कोशिस करने लगे.

कीर्ति मेरी गोद मे अभी भी लेटी थी. उसे फिर शरारत सूझी और उसने मुझ से कहा.

कीर्ति बोली "मेरे सर मे कुछ गढ़ रहा है."

मैं समझ गया कि उसके सर मे क्या गढ़ रहा है मगर मुझे कोई जबाब नही सूझ रहा था कि मैं उसे क्या जबाब दूं.

मैं बोला "बाइक की चाबी होगी."

कीर्ति ने अपने सर को उपर उठाया और ना मे सर हिलाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "नही मुझे ये चाबी जैसी चीज़ तो मालूम नही हो रही है."

फिर उसने मेरी पॅंट की तरफ इशारा करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "तेरे यहाँ क्यों फूला हुआ है. ये क्या है."

उसके इस सवाल से मैं झेप गया. मुझे समझ मे ही नही आ रहा था कि मैं उसे क्या जबाब दूं. ऐसे मे मैने उसका ध्यान उस तरफ से हटाने के लिए कहा.

मैने कहा "छोड़ ना कहाँ की फालतू की बात लेकर बैठ गयी. ये बता तुझे मेरा ये किस करना बुरा तो नही लगा."

कीर्ति बोली "नही मुझे किस करना बुरा नही लगा पर उसके बाद तूने जो किया वो मुझे अच्छा नही लगा."

मैं बोला "तूने मेरा हाथ हटा दिया था तो मैने कुछ कहा क्या. तूने तो खुद मेरा हाथ वहाँ रखा था."

कीर्ति बोली "वो तो मैने इसलिए किया क्योंकि मुझे लगा कि तू मेरे मना करने से गुस्सा हो गया है."

मैं बोला "नही मैं गुस्सा नही था. मुझे लगा कि मेरी हरकत तुझे पसंद नही आई इस लिए मैं रुक गया था."

कीर्ति बोली "पर तू तो इतनी ज़ोर से दबा रहा था कि मेरी जान ही निकल रही थी."

मैं बोला "तुझे मना करना चाहिए था."

कीर्ति बोली "जब हाथ लगाने से मना नही कर सकी तो फिर दबाने से मना कैसे करती."

मैं बोला "वो तो ठीक है पर तुझे ये नही लग रहा कि, हम दोनो ने जो किया भी किया है, वो ग़लत किया है."

कीर्ति बोली "मुझे तो नही लग रहा कि हम ने जो किया, वो ग़लत है. लेकिन यदि तुझे ऐसा लग रहा है तो हम अपनी ग़लती सुधार सकते है."

मैं बोला "कैसे.?"

कीर्ति बोली "ऐसे."

ये कहकर कीर्ति ने मेरे चेहरे को अपनी ओर खिचा और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए. उसका ये किस करने का अंदाज बहुत ही ख़तरनाक था. वो मेरे होंठों को बड़ी बेरहमी से चूसने लगी. मुझे अच्छा भी लग रहा था और दर्द भी हो रहा था. उसने मेरे होंठों पर जैसे ही अपने दाँत गढ़ाए मेरी तो जान ही निकल गयी. मैने उसे अपने से दूर किया और कहा.

मैं बोला "ये क्या कर रही है. किस कर रही है या मेरे होंठ खा रही है."

कीर्ति हंसते हुए बोली "जो दर्द तूने मुझे दिया था वो तुझे वापस कर रही थी."

मैं बोला "देख जो कुछ भी हुआ अचानक मे हो गया. ये हम दोनो के बीच होना ठीक नही है. हम इस बात को यही ख़तम कर देते है. इसी मे हम दोनो की भलाई है."

कीर्ति बोली "बात तेरी सही है पर मुझे इसमे कोई बुराई नज़र नही आती."

मैं बोला "तुझे बुराई क्यों नज़र नही आ रही. कुछ भी हो पर हमे ये नही भूलना चाहिए कि हम दोनो भाई बहन है. क्या तू कमल के साथ ऐसा कर सकती है."

मेरी बात कीर्ति को अच्छी नही लगी. उसका चेहरा उतर गया. मैने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा.

मैं बोला "देख कमल का नाम मैने तुझे सिर्फ़ बात को समझाने के लिए लिया था. मेरी बात का बुरा मत मान."

कीर्ति बोली "तुम्हे शरम नही आती. किसी लड़के के साथ मेरा नाम जोड़ते हुए. क्या मैं तुम्हे ऐसी लड़की लगती हूँ जो हर किसी के साथ ये सब करती फिरू."

मैं बोला "तू मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल रही है. मैं कुछ ऑर कहना चाहता था और तू कुछ ऑर मतलब निकल रही है."

कीर्ति बोली "मैं तेरी बात को अच्छी तरह समझ रही हूँ. मैं कोई बच्ची नही हूँ. तू यही कहना चाहता है ना कि तू मेरा भाई है इसलिए ये सब मैं तेरे साथ नही कर सकती."

मैं बोला "हाँ मेरे कहने का यही मतलब है."

कीर्ति बोली "यदि तुझे ऐसा करने से ऐतराज है तो फिर तूने मुझे किस क्यों किया."

कीर्ति की बात सुनकर मेरा सर झुक गया. मुझसे उसकी बात का जबाब देते नही बना.

मैं बोला "मुझसे ग़लती हो गयी."

कीर्ति बोली "ग़लती तुझसे हुई है क्योंकि तू मुझसे प्यार नही करता. लेकिन मुझसे कोई ग़लती नही हुई. मैं चाहती तो तुझे ऐसा करने से रोक सकती थी. मगर मैने नही रोका, क्योंकि मैं तुझे प्यार करती हूँ और मेरी नज़र मे हमारे बीच कुछ भी ग़लत नही हुआ."

मैं बोला "तू जानती भी है तू ये क्या कह रही है. कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा. लोग थुकेगें तुझ पर और मुझ पर."

कीर्ति बोली "मैं जानती हूँ कि, मैं क्या कह रही हू. मुझे दुनिया की परवाह नही है. लोग मुझ पर थुक्ते है तो थूकें मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता. लेकिन दुनिया के डर से मैं अपना प्यार नही खो सकती."

कीर्ति की ये बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया. मैने गुस्से मे उस से कहा.

मैं बोला "कैसा प्यार.? कौन से प्यार की बात कर रही है तू.? मैं तुझे कोई प्यार व्यार नही करता. अपनी बकवास बंद कर और चुप चाप घर चल."

मेरी बात सुन कर कीर्ति की आँखों मे आँसू आ गये. वो रुआंसी होकर बोली.

कीर्ति बोली "मुझे नही जाना घर. तुझे जाना है तो तू जा. मेरी चिंता मत कर."

मैं बोला "तेरे जैसी बद दिमाग़ लड़की की मुझे चिंता करने की ज़रूरत भी नही है. तू मेरे साथ आई है तो मेरे साथ चल. उसके बाद तू क्या करती है, मुझे इससे कोई लेना देना नही है."

कीर्ति की आँखों मे आँसू तो थे ही अब उसे गुस्सा भी आ गया था. वो गुस्से और रोने के मिले हुए स्वर मे बोली.

कीर्ति बोली "कौन जानता है कि मैं तेरे साथ आई हूँ. तू आराम से घर जा. कोई तुझसे नही पुछेगा कि कीर्ति कहाँ है."

मैं बोला "तू क्या साबित करना चाहती है. यही कि मुझे तेरी फिकर नही है और मैं तुझे यहाँ ऐसे ही छोड़ कर जा सकता हूँ."

कीर्ति बोली "मैं कुछ साबित करना नही चाहती. प्लीज़ भगवान के लिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो."

कीर्ति बस रोए जा रही थी. बात कोई भी हो पर उसका रोना मुझसे देख नही जा रहा था. मैने अपना गुस्सा शांत किया और उसे समझाने लगा.

मैं बोला "देख जो कुछ भी होना था वो हो चुका. तू मुझे प्यार करती है तो मैं भी तुझ से कोई कम प्यार नही करता. लेकिन हम भाई बहन है. हमें इस बात को नही भूलना चाहिए. मैं आज यदि तेरी बात को मान भी लेता हूँ तो, तू खुद सोच कल इस रिश्ते का क्या अंजाम होगा. हम चाहें भी तो इक दूसरे के साथ जिंदगी भर नही रह सकते. कुछ दिन बाद मौसा मौसी किसी अच्छे लड़के को देख कर तेरी शादी कर ही देगे. फिर मेरा क्या होगा. मुझे भी तो किसी ना किसी से शादी करना ही पड़ेगी. फिर हम ऐसा कोई रिश्ता बनाए ही क्यों जो आगे जाकर टूटना ही है."

ये बात मैने कीर्ति को समझाने के लिए कही थी मगर उसके उपर इसका उल्टा ही असर पड़ा. उसे इस बात मे अपने लिए आशा की एक किरण नज़र आई.

कीर्ति बोली "तू हाँ तो कर. मैं मरते दम तक इस रिश्ते को निभाउन्गी. तुझे किसी से शादी करना हो तो तू कर लेना. मैं तुझे शादी करने से नही रोकूगी, पर मैं तेरे सिवा किसी को अपना नही बना सकती. मुझे तुझसे सिर्फ़ तेरा प्यार चाहिए और कुछ नही चाहिए."

कीर्ति की बात सुनकर तो मेरे पैरो के नीचे की ज़मीन ही खिसक गयी थी. मैं नही जानता था कि मेरा कुछ देर के लिए बहक जाना मुझ पर इतना भारी पड़ेगा. मेरी एक ग़लत हरकत ने कीर्ति के अंदर, ना जाने कब से दबी हुई भावनाओं की चिंगारी को ज्वालामुखी का रूप दे दिया था. जो अब हर हाल मे मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती थी.
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09-09-2020, 01:01 PM,
#47
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
प्यार तो मैं भी कीर्ति को बहुत करता था. मगर उस नज़र से नही. जिस नज़र से वो मुझे प्यार कर रही थी. कीर्ति की समझदारी का लोहा, मेरे साथ साथ सभी लोग मानते थे. लेकिन आज उसकी इस नासमझी को देख कर, मैं अपनी सोचने समझने की ताक़त खो चुका था. मेरे अंदर ना तो उसकी बात मानने की ताक़त थी, और ना ही मेरे अंदर उसकी बात को काट कर उसका दिल दुखने की ताक़त थी. मैं अपने आपको बहुत बेबस महसूस कर रहा था.

कीर्ति मेरी बाएँ (लेफ्ट) तरफ बैठी थी. उसने मुझे यूँ सोच मे खोया देख ना जाने क्या समझा कि, अपनी दोनो बाहें मेरे गले मे डाल दी और अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया. उसके चेहरे पर इक अजीब सी खुशी नज़र आ रही थी. वो कुछ खोई खोई सी लगी. उसे इस तरह देख कर मैं अनमने मन से बोला.

मैं बोला "मैं ये सब नही कर सकता. मैं तुझे प्यार करता हूँ मगर उस नज़र से नही, जिस नज़र से तू मुझे प्यार करती है."

मेरा इतना कहना ही था कि कीर्ति भड़क कर उठी और घर चलने की ज़िद करने लगी. मैं भी कुछ नही बोला. मैं चुप चाप उठा और अपनी बाइक उठाने लगा. मेरे बाइक चालू करते ही वो बाइक पर बैठी और फिर हम घर के लिए निकल पड़े. बाइक पर कीर्ति मुझसे बहुत दूर हट के बैठी थी और कुछ नही बोल रही थी. बस आँसू बहाए जा रही थी.

मैं बोला "देख मेरी परेसानी समझ. जो तू बोल रही है, वो ग़लत है. हम दोनो एक दूसरे के बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड नही बन सकते. तू मेरी बात को समझती क्यों नही."

कीर्ति बोली "मुझे कुछ नही समझना. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे.

मैं बोला "तू ऐसा रोते रहेगी तो तेरी तबीयत खराब हो जाएगी. प्लीज़ रोना बंद कर दे."

कीर्ति बोली "मैं जियुं या मरूं, तुझे मेरी चिंता करने की ज़रूरत नही है. मुझे इस दुनिया मे प्यार करने वाला कोई नही है. मेरी किस्मत मे तो रोना ही लिखा है."

मैं बोला "ऐसा क्यों कहती है. तू नही जानती मैं तुझे कितना प्यार करता हूँ. अब मैं तुझे कैसे समझाऊ."

कीर्ति बोली "मुझे नही चाहिए तेरा प्यार. अपना प्यार अपने पास ही रख.

ये बोल कर वो फिर से रोने लगी. मैं उसे समझाने की कोसिस कर रहा था. लेकिन फिर वो ना तो कुछ बोली और ना ही अपना रोना बंद किया. कुछ देर मैने उसका ध्यान भटकने के लिए बाइक चलाते चलाते ब्रेक लगाना शुरू किया. ताकि वो मुझसे टकराए और मुझे पकड़ कर बैठ जाए. मगर उस पर इस बात का भी कोई असर नही पड़ा. वो मुझसे दूर ही बैठी रही. बस झटकों से बचने के लिए उसने एक हाथ मेरी पीठ पर लगा दिया. ताकि ब्रेक लगने पर वो मुझसे ना टकराए.

बस ऐसे ही चलते चलते हम कुछ ही देर मे पार्किंग स्टॅंड पहुच गये. वहाँ से मैने कीर्ति की स्कूटी निकाली और फिर वो बिना कुछ बोले ही अपनी आँखों मे आँसू भरे चली गयी. उसके इस तरह बिना कुछ कहे रोते हुए जाने से मुझे उदासी ने घेर लिया. मुझे रोना आ रहा था पर मैं रो नही पा रहा था. मुझे यूँ लग रहा था जैसे मेरा सब कुछ छिन गया हो. कुछ देर मैं वही बुत बना खड़ा रहा और फिर उदास मन से घर आ गया.

घर आया छोटी माँ सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी. मुझे यू उदास देखकर उन्होने पूछा.

छोटी माँ बोली "तेरा चेहरा इतना क्यों उतरा हुआ सा है. तेरी तबीयत तो ठीक है."

मैं बोला "कुछ नही. बस थोड़ा सा सर मे दर्द है."

ये कहते हुए मैं सोफे पर ही उनकी गोद मे सर रख कर लेट गया. उस समय मेरे सर मे दर्द तो नही था, मगर कीर्ति के बारे मे सोच सोच कर सच मे मेरा सर फटा जा रहा था. छोटी माँ मेरा सर दबाने लगी. लेकिन आज ना तो मुझे उनकी गोद मे सर रखने से सुकून मिल रहा था, और ना ही उनके सर दबाने से कुछ आराम मिल रहा था. जब मुझे लगा कि कहीं मैं रोने ना लगूँ तो मैं छोटी माँ की गोद से उठ गया.

मैने कहा मैं अपने कमरे मे जाकर आराम कर रहा हूँ. उन्होने खाना के लिए कहा तो मैने मना कर दिया. मैं अपने कमरे मे आकर लेट गया मगर आज मेरा कमरा ही मुझे काटने को दौड़ने लगा. मेरे कमरे की हर चीज़ मे मुझे कीर्ति ही नज़र आ रही थी. मुझे उधर भी चैन नही मिल रहा था.

मैं उठ कर अमि निमी के कमरे मे चला गया. दोनो कुछ खेल रही थी. मैने कहा मुझे मेरे कमरे मे नींद नही आ रही है. मैं तुम्हारे कमरे मे सो जाता हूँ. तुम लोग मेरे कमरे मे जाकर खेलो. मेरा उतरा हुआ चेहरा देख कर उन्हो ने कोई सवाल नही किया और चुप चाप उठ कर मेरे कमरे मे चली गयी. उनके कमरे मे आकर लेटने के बाद मुझे ना जाने कब नींद आ गयी. मुझे किसी ने जगाया भी नही. मैं शाम को 7 बजे तक सोता रहा.

शाम को जब मेरी नींद खुली तो मुझे कुछ राहत महसूस हुई. मगर कीर्ति की याद मुझे अभी भी घेरे रही. रात को मुझसे खाना भी नही खाया गया. अब मैं अपने ही कमरे मे लेटा 11 बजने और कीर्ति के फोन आने का इंतजार करने लगा.

जैसे जैसे रात होती जा रही थी. मेरी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. फिर रात के 11 भी बज गये और 11:30 भी बज गये मगर कीर्ति का फोन नही आया. कीर्ति का फोन ना आने से मुझे एक अजीब सी उलझन महसूस हो रही थी. मैं उसे फोन करना तो चाहता था मगर फोन लगाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था.

लेकिन अब मुझसे कीर्ति से बात किए बिना नही रहा जा रहा था. कीर्ति के फोन आने का रास्ता देखते देखते 12 बज गये थे. अब मुझे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि कीर्ति फोन नही करेगी. आख़िर मे मैने उसे फोन करने का फ़ैसला किया और उसे कॉल लगा दिया. रिंग तो जा रही थी मगर कीर्ति ने फोन नही उठाया. मैं उसे एक के बाद एक फोन लगाए जा रहा था लेकिन उसने फोन नही उठाया. जब मैने देखा कि 1:30 बज गया है तो मैने फोन लगाना बंद कर दिया.

अब मुझे कीर्ति पर गुस्सा आ रहा था क्योंकि ऐसा तो था नही कि वो इतनी जल्दी सो गयी हो. कम से कम एक बार तो मेरा फोन उठा सकती थी. अब कुछ भी हो जाए मैं उसे फोन नही लगाउन्गा. यही सब सोचते सोचते मुझे नींद नही आई और सुबह के 6 बज गये. तब तक मेरा गुस्सा भी शांत हो चुका था.

मैने सोचा अब कीर्ति भी उठ गयी होगी और शायद उसका गुस्सा भी कम हो गया हो. यही सोच कर मैने उसे फोन लगा दिया मगर अभी भी उसने फोन नही उठाया. मैने 8-10 बार कॉल किया लेकिन जब फोन नही उठा तो मैने सोचा कि अब उस से आमने सामने बात करना ही ठीक रहेगा.

ये सोच कर मैं उठ गया और फ्रेश होकर स्कूल के लिए तैयार हो गया. नाश्ता करने के बाद मैं स्कूल निकल गया. स्कूल पहुच कर मैने अपनी छुट्टी का आवेदन दिया और फिर लंच टाइम मे स्कूल से निकल आया.

लंच के बाद मैं कीर्ति के स्कूल चला गया और उसकी छुट्टी होने का इंतजार करने लगा. 1 बजे कीर्ति का स्कूल छूटा. मैं उसे देखता रहा मगर वो नज़र नही आई. तभी मेरी नज़र नितिका पर पड़ी. मैने नितिका को रोका.

मैं बोला "कीर्ति कहाँ है. क्या आज स्कूल नही आई."

नितिका बोली "वो तो कल से स्कूल नही आ रही."

मैं बोला "क्यों क्या हो गया उसको."

नितिका बोली "मुझे नही मालूम."

मैं बोला "क्यों.? क्या तुमने उसे फोन करके पता नही किया."

नितिका बोली "उसका परसों फोन आया था कि वो कल स्कूल नही आएगी और उसने मुझे घर फोन लगाने से भी मना किया था. इसलिए मैने पता नही किया."

मैं समझ गया कि नितिका की हमारे घूमने जाने के पहले ही कीर्ति से बात हुई थी. उसके बाद उसकी कीर्ति से कोई बात नही हुई. इसलिए मुझे अब उस से ऑर कोई बात करना बेकार लगा. मैने उस से कहा कि ठीक है मैं कीर्ति से फोन पर बात कर लूँगा. इतना कह कर मैं वापस घर आ गया.

घर आकर मैने कीर्ति को कॉल लगाया. कॉल लगाते ही मुझे ऐसा लगा, जैसे किसी ने मेरे दिल की धड़कने ही रोक दी हो. कीर्ति का मोबाइल बंद बता रहा था. अब मेरे पास बस एक ही काम बचा था. हर 5-10 मिनिट बाद कीर्ति को कॉल लगाना मगर हर बार मुझे निराशा ही हाथ लग रही थी.

मुझे मुंबई जाने की अपनी तैयारी भी पूरी करनी थी मगर मेरा किसी बात मे कोई मन ही नही लग रहा था. मेहुल ने भी एक दो बार मेरी चलने की तैयारी के बारे मे पूछा पर मैने उससे कह दिया कि मेरी चलने की सारी तैयारियाँ हो चुकी है. जबकि हक़ीकत मे तो मुझे कुछ भी कर पाने का टाइम ही नही मिल रहा था.

दो दिन से मेरा सारा दिल और दिमाग़ सिर्फ़ एक ही चीज़ मे लगा था. वो है कीर्ति से कैसे भी बात करना. मैं उसका मोबाइल बंद रहने के बाद भी उसे कॉल लगाए जा रहा था. यही सब करते करते पता ही नही चला कि, कब दिन बीत गया और कब रात हो गयी. लेकिन हर बार उसका मोबाइल बंद ही आ रहा था. रात के 10:30 बज चुके थे और उसका मोबाइल अभी भी बंद बता रहा था. इस से मैं पूरी तरह निराश हो गया था. अब जबकि पूरा दिन और आधी रात तक उसका मोबाइल चालू नही हुआ तो, फिर मुझे उसका मोबाइल चालू होने की कोई उम्मीद भी नही लग रही थी.

लेकिन मैं ग़लत था. मैने टाइम देखा रात के 11 बज चुके थे. मैने बेमन से कीर्ति को कॉल लगाया. कॉल लगते ही मुझे अपने कानो पर विस्वास ही नही हुआ क्योंकि उसका मोबाइल चालू था. मैं कॉल लगाता रहा पर उसने कॉल नही उठाया. मगर अब मैं जानता था कि ये 11 बजे के बाद सिर्फ़ मेरे लिए चालू हुआ है. ये देख कर मेरे चेहरे पर पूरे दो दिन बाद रौनक नज़र आई थी.

कल रात भर जागने की वजह से अब मुझे नींद भी आ रही थी फिर भी मैं खुद को सोने से रोके हुए उसे कॉल लगाए जा रहा था. रात को 1 बजे तक कॉल लगाने के बाद फिर ना जाने कब मेरी नींद लग गयी. फिर सुबह ठीक 6 बजे मेरी नींद खुली तो मैने फिर कीर्ति को कॉल लगाना शुरू कर दिया.

आज मुझे स्कूल तो जाना नही था, इसलिए मैं आराम से उठना चाहता था, मगर जब देखा कि 7 बजे कीर्ति का मोबाइल बंद हो गया तो, मैने सोचा कि हो ना हो ये स्कूल जाने की वजह से 7 बजे बंद किया है. ये सोच कर मैं उठ गया और फ्रेश होने चला गया.

तैयार होने के बाद मैने नाश्ता किया और मेहुल के घर चला गया. मेहुल से कल शाम को चलने की तैयारी की सारी बात करने के बाद 12:30 बजे मैं कीर्ति के स्कूल के लिए निकल गया. लेकिन वहाँ पहुच कर मुझे निराशा ही हाथ लगी. नितिका स्कूल से अकेले ही बाहर निकलती नज़र आई. मैं समझ गया कि आज भी कीर्ति स्कूल नही आई है. ये देखते ही मेरे चेहरे की सारी रौनक गायब हो गयी और मैं दुखी मन से घर वापस आ गया.

पर ये सब कुछ सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए ही था. घर आते ही छोटी माँ ने कहा कि तेरी मौसी का फोन आया था. वो तुझसे मुंबई जाने के पहले मिलना चाहती है. ये सुनते ही मेरे चेहरे की सारी रौनक वापस आ गयी. मैं उल्टे पैर ही वापस मौसी के घर के लिए निकलने लगा. छोटी माँ ने मुझे खाने के लिए रोकने की कोसिस की तो मैने कहा मुझे भूक नही है. मैने अपनी बाइक उठाई और मौसी के घर के लिए निकल पड़ा.

आज से पहले मुझे मौसी के घर जाने की बात से, कभी इतनी खुशी महसूस नही हुई थी. जितनी खुशी आज महसूस हो रही थी. मैं जल्द से जल्द मौसी के घर पहुच जाना चाहता था. जाते जाते मैं मन ही मन ये भी सोच रहा था कि मुझे कीर्ति से बात करने के लिए कैसे समय निकालना है.

लेकिन मेरे दिमाग़ मे ये बात बिल्कुल भी नही थी कि, मुझे कीर्ति को कैसे समझाना है. मैं ये भूल ही चुका था कि कीर्ति मुझसे किस बात पर नाराज़ है और उसकी नाराज़गी किस बात से ख़तम होगी. ये सब बिना सोचे बिना समझे. मैं बस कीर्ति से बात करने के चक्कर मे मौसी के घर पहुच गया. मैने डोरबेल बजाई और दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा.
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09-09-2020, 01:02 PM,
#48
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरा अनुमान था कि दरवाजा कीर्ति या कमाल मे से कोई एक खोलेगा. मेरा अनुमान दरवाजा खुलते ही ग़लत हो गया. दरवाजा मौसी ने खोला और मुझे देखते ही मुस्कुराते हुए बोली.

मौसी बोली "अरे तू इतनी जल्दी आ गया. मुझे नही मालूम था कि, तू अपनी मौसी की बात का इतना ख़याल रखेगा."

मौसी के मूह से अपने लिए प्यार भरी बात सुनकर मैं भी पिघल गया और बोला.

मैं बोला "मुझे जैसे ही छोटी माँ ने कहा कि, आप मुझसे मिलना चाहती है, तो मैं अपने आपको रोक नही पाया और फ़ौरन चला आया. मैं छोटी माँ से पूछना ही भूल गया कि, आपने मुझे कब बुलाया है."

मौसी बोली "अब तुझे अपने घर मे आने के लिए भी, समय देख कर आना पड़ेगा. ये तेरा ही घर है. तेरी जब मर्ज़ी तू आ जा सकता है."

मैं बोला "हाँ वो तो है लेकिन आपने मुंबई जाने से पहले मुझे क्यों बुलाया था."

मौसी बोली "आते ही काम की बात शुरू कर दी. तू घर से बिना कुछ खाए पिए अपनी मौसी की बात सुनने यहाँ आ गया. मुझे सुनीता ने सब बता दिया है. अब पहले तुझे कुछ खिला दूं."

मैं बोला "क्या छोटी माँ ने आपको फोन किया था."

मौसी बोली "नही कीर्ति ने फोन लगा कर पूछा था कि, तुम कब आ रहे हो. सुनीता ने बताया कि तू तो निकल चुका है."

मैं बोला"ये कीर्ति और कमल कहाँ है. दिखाई नही दे रहे."

मौसी बोली "कीर्ति तो सुनीता से बात होने के बाद ही कमल को साथ लेकर अपनी किसी सहेली के यहाँ चली गयी. मैने उन लोगों से कहा भी था कि तू आ रहा है तो कम से कम तेरे आने तक तो रुक जाए. लेकिन कीर्ति कहने लगी कि उसे अपनी सहेली से ज़रूरी मिलना है. वो तुझसे बाद मे मिल लेगी. अब तू फालतू की बात छोड़. मैं तेरे लिए खाना लगाती हूँ.

मगर कीर्ति के यूँ चले जाने से मेरी भूक मर चुकी थी. मैं मौसी को टालने के लिए बोला.

मैं बोला "मौसी मुझे बिल्कुल भी भूक नही है."

मौसी बोली "ज़्यादा झूठ मत बोल. तुझे अपनी मौसी के हाथ का खाना अच्छा नही लगता तो साफ बोल दे."

मैं समझ गया कि मौसी को ये भी पता चल गया है की मैं बिना खाना खाए घर से निकला हूँ. फिर भी मैं बात घूमाते हुए बोला.

मैं बोला "नही मौसी ऐसी कोई बात नही है. मैं तो इसलिए बोल रहा था कि छोटी माँ भी खाने के लिए मेरा इंतेजार करेगी."

मौसी बोली "तेरी छोटी माँ तेरा खाने पर इंतजार नही करेगी. मैने बोल दिया है कि मैं तुझे खाना खिलाकर ही भेजुगी. तू बैठ मैं खाना लेकर आती हूँ."

अब मैं समझ चुका था कि मौसी को छोटी माँ ने ही मेरे खाना ना खाने की बात कही है. थोड़ी देर बाद मौसी खाना ले आई तो मैने मौसी से पूछा.

मैं बोला "मौसी ये कमल और कीर्ति कब तक आएँगे."

मौसी बोली "कुछ सही से बता कर नही गये. बस कीर्ति ने इतना ही बताया था कि उसे सहेली के यहाँ देर हो जाएगी. तुम आओ तो मैं तुम्हे बिना खाना खाए ना जाने दूं. अब तू बात करना बंद कर और चुप चाप खाना खा."

मुझे अब पूरी बात समझ मे आ चुकी थी. कीर्ति को मालूम था कि मैं उस से ही मिलने आ रहा हूँ और वो मुझसे मिलना नही चाहती थी, इसलिए मेरे आने के पहले ही घर से चली गयी. उसने इक पल मे ही मेरी सारी उम्मिदो पर पानी फेर दिया था. उस से दिमाग़ मे तो कोई जीत ही नही सकता था. मगर आज उसके दिमाग़ ने सीधे मेरे दिल पर चोट की थी. जिसे मैं सह नही पा रहा था और तिलमिला कर रह गया था.

अब मेरे मौसी के यहाँ रुकने का कोई मतलब ही नही था. मैं जल्द से जल्द यहाँ से जाना चाहता था. मैने जल्दी से खाना खाया और फिर मौसी से उनका काम सुनने लगा. उनका काम सुनने के बाद, मैने मौसी से मेहुल के घर जाने का बहाना किया और उधर से निकल आया.

मैं नितिका के सिवा कीर्ति की किसी सहेली को नही जानता था. मेरे दिमाग़ मे आया कि यदि कीर्ति नितिका के घर होगी तो, उसकी स्कूटी बाहर ही नज़र आ जाएगी. ऐसे मे मैं मेहुल के घर चला जाउन्गा और फिर किसी ना किसी तरीके से कीर्ति से मिलने का बहाना भी निकल ही लुगा.

ये सोच कर मैं नितिका के घर पहुच गया. मगर कीर्ति की तरह मेरी किस्मत यहा भी मुझसे रूठी हुई थी. नितिका के घर के बाहर मुझे कीर्ति की स्कूटी नज़र नही आई. अब मेरे लिए मेहुल के घर जाने का भी कोई मतलब नही था. मैं मजबूर होकर वापस घर के लिए लौट पड़ा.

मैं सारे रास्ते भर मन ही मन कीर्ति के उपर गुस्सा करता रहा कि उसने मेरे साथ ये अच्छा नही किया. कम से कम जाने से पहले इक बार तो मुझसे मिल सकती थी. मेरा कसूर ही क्या था. मैने जो भी किया था उसमे क्या ग़लत था. जो सच था वही तो मैने कहा था. मेरे मन मे ऐसे ही हज़ारों सवाल उठ रहे थे और हर सवाल मे मैं अपने आपको सही और कीर्ति को ग़लत साबित कर रहा था.

यही सब सोचते सोचते मैं घर पहुच गया. घर आकर मैने छोटी माँ से कहा कि मैं मौसी के यहाँ से खाना खा कर आया हूँ. अब रात को मेरे लिए खाना मत बनाना. मैं खाना नही खाउन्गा. इस सब की वजह मैने उन्हे कल सफ़र के लिए निकलना बताया और कहा कि आज मैं आराम करना चाहता हूँ. अमि निमी से भी कह देना कि वो आकर मुझे परेशान ना करे. फिर मैं सीधे अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैने कीर्ति के मोबाइल मे फोन लगाया और वो बंद ही मिला. मैं निराश होकर सोने की कोसिस करने लगा पर मुझे नींद ही नही आ रही थी. हर पल मेरे उपर भारी गुजर रहा था. मैने टीवी देखने की कोसिस की लेकिन उसमे भी मन नही लगा. जब हर तरह से मन बहलाने से हार गया तो मैने मोबाइल लगाया और कीर्ति को कॉल लगाया. ऐसा करने से मुझे गुस्सा भी आ रहा था पर कुछ राहत भी महसूस हो रही थी इसलिए मैं फिर बिना रुके कीर्ति को कॉल लगाता रहा.

ऐसा करने से मुझे कुछ राहत थी. शायद ऐसा करने से मैं अपने आपको उसके करीब महसूस कर रहा था. मैं 7 बजे तक यू ही कॉल लगता रहा फिर फ्रेश होने चला गया. मैं फ्रेश होकर अभी निकला ही था कि तभी मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं समझ गया था कि ये निमी के सिवा कोई नही हो सकता. मैने ना तो दरवाजा खोला और ना ही कोई जबाब दिया. जब दो तीन बार फिर दस्तक हुई तो मैने कहा.

मैं बोला "देख निमी अभी मुझे परेशान मत कर. तुझे जो भी कहना है कल कह लेना. मुझे कल सफ़र को निकलना है. अभी मुझे आराम करने दे."

फिर इसके बाद कोई दस्तक नही हुई. मैं समझ गया कि वो नाराज़ होकर चली गयी है. इस बात से मेरा दिल फिर दुख कर रह गया और मैं मन ही मन कीर्ति को बकने लगा. आख़िर ये सब उसके ही कारण तो हो रहा था. अब मुझे बहुत ज़्यादा उदासी ने घेर लिया था. इसी उदासी मे लेटे लेटे मुझे कब नींद आ गयी पता ही नही चला.

मेरी नींद फिर रत को 11:15 बजे खुली. घड़ी देखते ही मैने हड़बड़ा कर अपना मोबाइल उठाया और जल्दी से कीर्ति को कॉल लगाया. कीर्ति का मोबाइल चालू था और रिंग जा रही थी. मैं जानता था कि कीर्ति कॉल नही उठाएगी. फिर भी मेरे मन मे इक उम्मीद थी कि शायद अब उठ जाए. मैं मन ही मन कह रहा था प्लीज़ कीर्ति सिर्फ़ एक बार कॉल उठा लो और शायद इस बार उसे मेरे मन की पुकार सुनाई दे गयी. कीर्ति ने कॉल उठा लिया. ये देखते ही मेरी खुशी का ठिकाना ही नही रहा. मैं तुरंत बोला.

मैं बोला "क्या हुआ तुझे.? कितने दिन से फोन लगा रहा हूँ. उठाती क्यों नही.?"

मगर वो कुछ नही बोली और मैने फिर कहा.

मैं बोला "देख मुझे मालूम है कि तू मुझसे नाराज़ है पर जाने से पहले कम से कम इक बार तो बात कर ले."

लेकिन वो अभी भी चुप ही थी. मैने फिर कहा.

मैं बोला "मैं तुझसे मिलने घर भी गया था, पर तू जानबूझ कर किसी सहेली के घर चली गयी थी. मैने तेरे साथ इतना बुरा तो नही किया. जितना बुरा तू मेरे साथ कर रही है."

इस बार कीर्ति अपने आपको बोलने से ना रोक पाई लेकिन उसकी आवाज़ से ऐसा लग रहा था कि जैसे वो बहुत रोई हो और बहुत ही उदास हो. उसने कहा.

कीर्ति बोली "मैं तेरे साथ क्या बुरा कर रही हूँ. तू ही तो चाहता है कि मैं तुझसे प्यार करने की बात अपने दिल से निकाल दूं. तो मैं तेरी बात मान कर वही करने की कोसिस कर रही हूँ. बुरा तो मैं अपने साथ कर रही हूँ. मैं भला तेरे साथ क्या बुरा करूगी."

मैं बोला "देख तू ऐसे बात मत कर. मुझे अच्छा नही लग रहा है. तू खुश रहा कर. ऐसे बिल्कुल भी अच्छी नही लगती."

कीर्ति बोली "मैं तो तुझे वैसे भी अच्छी नही लगती थी. मेरी चिंता मत कर. मैं भी धीरे धीरे खुश रहना सीख लुगी. तू तो खुश है ना."

मैं बोला "तू ऐसा क्यों कर रही है. तुझे ऐसा कर के क्या हासिल हो जाएगा."

कीर्ति बोली "अब मैं कुछ हासिल करना नही चाहती. मैं पागल थी ना जाने क्या क्या सोच बैठी थी मगर अब मैं सब समझ चुकी हूँ. तेरा मेरा कोई मेल नही है. तू मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे."

मैं बोला "तू ऐसी बात मत कर. मैं तुझे उदास नही देख सकता."

कीर्ति बोली "मैं भी नही चाहती कि तू मुझे उदास देखे, इसलिए तो सुबह अपना मनहूस चेहरा लेकर तेरे आने के पहले ही घर से चली गयी थी."

ऐसा बोलते बोलते कीर्ति अपने आँसू रोक नही पाई और रो पड़ी. उसका रोना और बातें सुनकर मेरी आँखो मे भी आँसू आ गये और फिर मैं अपने दिल की बातों को कहने से अपने आपको रोक नही पाया.

मैं बोला "तू क्यों रोती है. मनहूस तू नही, मनहूस तो मैं हू. जो पैदा होने के बाद अपनी माँ को खा गया. जिस छोटी माँ ने मुझे अपने बेटे की तरह प्यार किया उसके सुखी संसार की बर्बादी का कारण मैं ही हूँ और तो और जिस आंटी ने मुझे बेटे से बढ़कर प्यार किया आज उसके उपर भी मेरी मनहूसियत का साया पड़ गया और उसके सुहाग पर बात आन पड़ी. रोना तुझे नही मुझे चाहिए कि तू मुझे इतना प्यार करती है और मैं चाहते हुए भी तेरे प्यार को नही अपना पा रहा हूँ. तुझे तो खुश होना चाहिए कि मेरे जैसे मनहूस से तेरा पीछा छूट रहा है."

कीर्ति मुझे रोते देख अपना रोना भूल चुकी थी और मुझे चुप होने को बोल रही थी मगर अब उसकी बातों से मेरे सब्र का प्याला छलक पड़ा था. जो मेरी आँखों से आँसू बनकर बह रहा था और मैं रोते हुए कहे जा रहा था.

मैं बोला "तू क्या समझती है. मुझे तुझसे दूर रहने का कोई दुख नही, कोई दर्द नही है. तू क्या समझेगी मेरे दर्द को. तू कहती है तू मुझसे प्यार करती है, तो क्या मैं तुझसे प्यार नही करता. तुझे तो सिर्फ़ अपना दर्द दिखता है. तू कभी नही जान सकती कि इन 3 दिनो मे मैं कितना तडपा हूँ, कितना रोया हूँ. एक एक पल मेरे लिए मौत से भी बढ़कर गुजरा है. तू तो इन 3 दिन मुझसे बात किए बिना रह गयी पर मेरा क्या था. मैं तो हर पल तुझसे बात करने की कोसिस मे ही लगा रहा. क्या नही किया मैने तुझसे मिलने के लिए, तुझसे बात करने के लिए. तेरे घर गया, तेरे स्कूल के चक्कर लगाए. रात दिन तुझे कॉल लगाता रहा. तू सिर्फ़ उन कॉल को ही देख सकती है ना जो मैने तेरे चालू मोबाइल पर लगाए. वो कॉल तुझे कैसे दिखेगे जो मैं तेरे बंद मोबाइल पर लगाता रहा इस उम्मीद के साथ कि कही तूने मोबाइल चालू तो नही कर दिया."

ये कहने के साथ ही मेरी आँखों से आँसू बहते गये और मेरा बोलना बंद हो गया. थोड़ी देर कोई कुछ नही बोला और फिर अचानक मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई. मैने अपने आँसू पोंछे. मुझे लगा मेरे रोने की आवाज़ से अमि निमी मे से कोई आ गया होगा. लेकिन दरवाजा खोलते ही मुझे अपनी आँखों पर विस्वास नही हुआ.

मेरे सामने कीर्ति खड़ी थी. उसकी आँखों मे भी आँसू थे. वो आकर मुझसे लिपट गयी और मैने भी उसे अपने गले से लगा लिया. हम दोनो एक दूसरे के गले से लगे रोए जा रहे थे. फिर कुछ देर बाद उसने मेरे आँसू पोंछे और दरवाजा बंद करके बेड पर बैठ गयी. मैं भी उसके पास जाकर बैठ गया और उसे फिर अपने सीने से लगा लिया.

मैं बोला "तूने मुझे इतना क्यों रुलाया."

कीर्ति बोली "तूने भी तो मुझे कितना रुलाया है."

मैं बोला "तो तू मुझसे बदला ले रही थी."

कीर्ति बोली "नही मैं सिर्फ़ ये देख रही थी कि मैं तुझे जितना प्यार करती हूँ, तू भी मुझे उतना प्यार करता है कि नही."

मैं बोला "तो तूने क्या देखा."

कीर्ति बोली "मैं जितना सोचती थी तू मुझे उस से भी ज़्यादा प्यार करता है. मैं तो सोच भी नही सकती थी कि तू मुझे इतना प्यार कर सकता है."

अब मेरे मन का सारा गुबार निकल चुका था. मैने उसे अपने सीने से अलग किया और फिर बेड पर टिक कर बैठ गया. कीर्ति भी मेरे बाजू से कंधे पर सर टिका कर बैठ गयी. मैं उसके बालों पर हाथ फेरने लगा और उस से पूछा.

मैं बोला "तू यहाँ कब और कैसे आ गयी और यदि आई थी तो फिर मुझसे पहले क्यों नही मिली."

कीर्ति बोली "मैं तो शाम की आई हूँ और आते ही सबसे पहले तेरे पास आई थी पर तूने दरवाजा ही नही खोला."

मैं बोला "वो तू थी.? मैं तो समझा कि निमी है और तेरे गुस्से मे मैने दरवाजा नही खोला पर तुझे आवाज़ तो देनी ही चाहिए थी."

कीर्ति बोली "मैने सोचा तू गुस्से मे है इसलिए बिना कुछ बोले वापस चली गयी थी कि जब रात को बात होगी तो तुझसे मिल लुगी."

मैं बोला "जब तू मुझसे मिलने ही आई थी तो फिर फोन पर इतना नाटक क्यों कर रही थी."

कीर्ति बोली "वो सब नाटक नही था. मेरे मन की भडास थी. तूने मुझे बहुत रुलाया है."

मैं बोला "तूने नही रुलाया क्या.?"

कीर्ति बोली "पर शुरू तो तूने किया था."

मैं बोला "चल मेरी ग़लती है पर तू तो मुझे कुछ कहने का मौका ही नही दे रही थी. एक तो अपना मोबाइल बंद कर के रखी थी और उपर से जब चालू करती थी तो मेरा कॉल भी नही उठा रही थी."

कीर्ति बोली "अब छोड़ ना इन बातों को. कोई और बात कर."

मैं बोला "नही मुझे जानना है. तूने ऐसा क्यों किया."

कीरी बोली "मेरा किसी से बात करने का मन नही कर रहा था, इसलिए मोबाइल बंद करके रखी थी."

मैं बोला "तो फिर रात को क्यों चालू कर देती थी."

कीर्ति बोली "वो मेरा तुझसे बात करने का टाइम रहता था इसलिए अपने आपको नही रोक पाती थी और मोबाइल चालू कर देती थी."

मैं बोला "चल इस से एक बात तो पता चल ही गयी कि, तू मुझसे बात किए बिना भी रह सकती है."

कीर्ति बोली "बड़ा आया पता करने वाला. तुझे क्या पता कि मैं कितना रोई हूँ."

मैं बोला "चल झुटि. यदि ऐसा ही था तो फिर मेरा कॉल क्यों नही उठा रही थी."

कीर्ति बोली "वो तो मैं गुस्से मे थी इसलिए नही उठा रही थी. लेकिन मुझसे तेरे से बात किए बिना नही रहा जाता था.

मैं बस फोन को देख देख कर रोती रहती थी."

मैं बोला "तू मुझसे इतना ज़्यादा प्यार करती है."

कीर्ति बोली "इस से भी ज़्यादा. ये देख."

ये कह कर उसने अपना हाथ दिखाया. उसे देख कर मेरी आँखों मे खुशी और दर्द दोनो के आँसू एक साथ
छलक पड़े. उसने अपनी हथेली पर काट कर मेरा नाम लिखा था. मैने उसकी हथेली को चूमा और कहा.

मैं बोला "ये सब तूने क्यों किया. कितना दर्द हुआ होगा. ये पागलपन करने की क्या ज़रूरत थी."

मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने बड़ा ही अजीब सा मूह बनाया और भोलेपन के साथ कहा.

कीर्ति बोली "मुझसे तेरे बिना नही रहा जा रहा था और तू रात भर फोन लगाए जा रहा था. मुझे अपने उपर गुस्सा आ रहा था और तेरे उपर प्यार भी आ रहा था. जब मुझसे नही सहा गया तो मैने अपने हाथ मे ये कर लिया."

मैं बोला "ये सब करते समय तुझे ये भी नही लगा कि मुझे ये सब देख कर कितना दर्द होगा."

मैने बड़े प्यार से उसके हाथों को चूमा और उसे अपने सीने से चिप्टा लिया.

कीर्ति बोली "उस समय मेरे उपर पागलपन सवार था. मुझे समझ मे ही नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ और क्या ना करूँ. लेकिन इस सब मे तेरी ही ग़लती है."

मैं बोला "क्यों.? मेरी ग़लती क्यों है.

कीर्ति बोली "यदि तू उस दिन मेरी बात मान लेता तो मुझे ये सब करने की नौबत ही नही आती."

मैं बोला "कैसे मान लेता. तब मुझे अहसास ही नही था कि मैं तुझे कितना प्यार करता हू. तेरी 2 दिन की जुदाई ने मुझे अहसास करा दिया कि मैं तेरे बिना नही जी सकता. अब तू कभी मुझसे दूर मत जाना. नही तो मैं सच मे मर जाउन्गा."

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने मेरे मूह पर हाथ रख दिया और गुस्से मे बोली.

कीर्ति बोली "फिर ऐसा कभी मत कहना. नही तो तुमसे पहले मैं मर जाउन्गी."

मैं बोला "अच्छा नही बोलुगा मगर एक बात बता. आज तू अपनी किस सहेली के यहाँ गयी थी."

कीर्ति बोली "नितिका के यहाँ."

मैं बोला "अगर तू नितिका के यहाँ थी तो फिर तेरी स्कूटी वहाँ क्यों नही दिखी."

कीर्ति बोली "मुझे मालूम था कि तू मुझे ढूँढते हुए ज़रूर नितिका के यहाँ आएगा और मेरी स्कूटी को देख कर तुझे पता चल जाएगा कि मैं नितिका के यहाँ हूँ इसलिए मैं अपने साथ कमल को लेकर गयी थी. मैने स्कूटी लेकर कमल को मेहुल के पास भेज दिया था. अब ये मत पूछना कि मेहुल के यहाँ तो तू भी पहुच सकता था. तब तो तुझे पता चल जाता कि मैं नितिका के यहाँ हू."

मैं बोला "नही पूछुगा."

कीर्ति बोली "क्यों.?"

मैं बोला "क्योंकि छोटी माँ से तुझे पता चल गया होगा कि मैं मेहुल के घर से ही लौट कर आया हूँ और सीधे मौसी से मिलने निकल गया."

मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और बोली.

कीर्ति बोली "मेरे साथ रहकर तू कितना समझदार हो गया है."

और फिर खिलखिला कर हँसने लगी.

मैं बोला "बहुत रात हो गयी है. अब सोना नही है क्या.?"

कीर्ति बोली "नही. कल तुझे जाना है इसलिए आज हम सारी रात बात करेगे."

मैं बोला "लेकिन मुझे तो नींद आ रही है."

कीर्ति उठ कर बैठ गयी और मुझे उंगली दिखाते हुए बोली.

कीर्ति बोली "खबरदार जो सोने का नाम लिया. आज ना तो मैं सोउंगी और ना ही तुझे सोने दुगी."

मैने अपने पैर फैलाए और आराम से लेटते हुए बोला.

मैं बोला "तुझे जो बोलना है बोलती जा. जब तक मैं जाग रहा हूँ. तेरी बात का जबाब देता रहुगा मगर सो जाउ तो फिर मुझे जगाना मत."

कीर्ति बोली "देख तू ये अच्छा नही कर रहा है. मुझे गुस्सा मत दिकला. नही तो मैं..."

मैं बोला "नही तो तू क्या करेगी."

कीर्ति बोली "नही तो मैं तेरा खून पी जाउन्गी."

मैं बोला "बड़ी आई खून पीने वाली. अपनी बकबक बंद कर और चुप चाप सो जा. सुबह मुझे जाने की तैयारी भी करनी है."

ये कहकर मैने अपनी आँख बंद कर ली मगर कीर्ति चुपचाप बैठी रही. कुछ देर बाद वो फिर मुझे मनाने लगी. मुझे उसका मनाना अच्छा लग रहा था इसलिए मैं चुपचाप आँख बंद किए लेटा रहा और उसके मनाने का मज़ा ले रहा था. कीर्ति मुझे मनाते हुए कह रही थी.

कीर्ति बोली "प्लीज़ उठ जा ना. ऐसा मत कर. देख दो दिन से तू मेरे पीछे पागल बना घूम रहा था और जब मैं तेरे पास हूँ तो तुझे नींद आ रही है. ये अच्छी बात नही है. उठ जा."

ये कहकर वो मुझे हिलाने लगी लेकिन मैं चुपचाप लेटा उसकी बातों का मज़ा लेता रहा. वो फिर बोली.

कीर्ति बोली "देख अब मैं आखरी बार बोल रही हूँ. सीधे तरीके से उठ जा नही तो अब अच्छा नही होगा."

फिर भी मैं उसकी बात को अनसुनी कर आँख बंद कर लेटा रहा, लेकिन कीर्ति तो फिर कीर्ति थी. भला वो अपनी बात मनवाए बिना कहाँ रहने वाली थी. आख़िर मे उसने अपनी हरकतों से मुझे अपनी आँख खोलने पर मजबूर कर दिया.

कीर्ति ने अपने खुले हुए बाल मेरे चेहरे पर बिखरा दिए और अपना चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल पास ले आई. उसके बालों की खुश्बू ने मुझे मदहोश कर दिया और उसकी आती जाती सांसो का अहसास मुझे मेरे चेहरे पर हो रहा था. जिससे मुझे एक अलग ही सुख की अनुभूति हो रही थी.

मैने आँख खोलकर देखा तो वो बड़ी ही कातिल नज़रों से मेरी ही तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी. मैने बनावटी गुस्सा दिखा कर कहा.

मैं बोला "ये क्या हो रहा है."

कीर्ति भी अपने चेहरे को सिकोडते हुए डरावने चेहरे बनाने के अंदाज मे अपनी दोनो हाथो की उंगलियों को चलाते हुए बोली.

कीर्ति बोली "तेरे खून पीने की तैयारी कर रही हूँ. अब तू आँख बंद करके सो जा और मुझे मेरा काम करने दे."

मुझे उसकी आँखों की रंगत से समझ मे आ गया कि उसका इरादा कुछ नेक नही है. मैं बात को बदलने के लिए बोला.

मैं बोला "तुझे मुझसे बात करना है तो, चल बात करते है पर तू अपना ये नाटक बंद कर."

कीर्ति बोली "सॉरी. तूने अपना फ़ैसला बदलने, मे बहुत देर कर दी है. अब मेरा बात करने का मूड बदल चुका है. अब तो मैं सिर्फ़ तेरा खून पीकर ही रहूगी."

मैं कुछ बोलने के लिए अपना मूह खोल कर, कुछ बोलने ही वाला था कि मेरा मूह खुला का खुला ही रह गया. कीर्ति ने अपने दोनो हाथों से मेरा चेहरा पकड़ कर, अपने नरम नरम होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. कीर्ति के बालों से मेरा चेहरा ढका हुआ था. वो मेरे उपर झुकी हुई थी और मेरे होंठो को चूस रही थी.

एक पल को तो मैं हक्का बक्का रह गया और फटी फटी आँखों से उसकी इस हरकत को देखता रह गया. मगर दूसरे ही पल उसकी बालों की सुगंध और उसके कोमल होंठों के स्वाद से, मेरी आँखें खुद ब खुद बंद होती चली गयी, और मेरा हाथ उसके सर पर चला गया. अब मैं भी उसके नरम होंठो को चूसने लगा.

मैं धरती से सीधा स्वर्ग पर पहुच गया था. मेरी धड़कने तेज से भी तेज बढ़ती गयी और मैने कीर्ति की कमर मे हाथ डालकर उसे अपने उपर खीच लिया. अब कीर्ति मेरे उपर लेटी थी. उसके नाज़ुक बदन के भर से मेरी उतेज्ना और भी ज़्यादा बढ़ चुकी थी और मैं उसे अपने शरीर से और मजबूती से अपने से चिपकाए जा रहा था. धीरे धीरे मेरे हाथ उसके बूब्स पर चले गये और मैं उन्हे मसल्ने लगा. हम दोनो की उत्तेजना चरम पर पहुच गयी थी और साँसे तेज हो गयी थी.

लेकिन तभी अचानक ही कीर्ति ने किस करना बंद कर दिया. उसने अपने आपको मुझसे छुड़ाया और बैठते हुए अपने बाल ठीक करने लगी. मैने उसकी तरफ देखा तो वो अपनी साँसे संभालने की कोसिस कर रही थी. मैने सवालिया नज़रों से उसकी तरफ देखा और उसने भी मेरी तरफ देखा. उसका चेहरा ना जाने क्यों उतर गया था. जब वो कुछ नही बोली, तो मैने पुछा.

मैं बोला "ये अचानक तुझे क्या हो गया.? तेरा चेहरा क्यों उतर गया.?"

कीर्ति कुछ नही बोली बस खामोशी से उसने अपना सर नीचे झुका लिया. उसकी आँखों से आँसू बहने लगे. उसके आँसू देख कर मैं घबरा गया. मैं उठ कर उसके पास बैठ गया और उसके आँसू पोछते हुए बोला.

मैं बोला "देख तू रो मत. तेरे दिल मे जो कुछ भी है. तू मुझे साफ साफ बोल दे. मैं तेरी किसी बात का बुरा नही मानूँगा. लेकिन मैं तेरा इस तरह रोना नही देख सकता. अभी तो तू इतनी अच्छी भली थी. फिर अचानक तुझे ये क्या हो गया."

कीर्ति कुछ नही बोली बस खामोशी से नीचे देखती रही. तब मैं फिर बोला.

मैं बोला "तुझे मेरी कसम है. तू ये रोना बंद कर और जो भी बात है सच सच बता दे."

मेरी कसम सुनकर कीर्ति ने अपने आँसू पोंछे और बोली.

कीर्ति बोली "मैं तेरे साथ जबरदती कर रही हूँ ना."

उसकी बात सुनते ही मुझे हँसी आ गयी लेकि फिर मैने अपनी हँसी रोकी और उस से बोला.

मैं बोला "हाँ तू आगे बोल फिर मैं बोलता हूँ."

कीर्ति बोली "तू ये सब इसलिए कर रहा है ना क्योंकि ये मेरी खुशी है. तुझे इन सब बातों से खुशी नही होती है. मैं ही हर वक्त तेरे साथ ज़बरदस्ती करती रहती हूँ. अभी भी मैने ही तुझे जबरदती किस किया है."

मैं बोला "तू इतनी समझदार है फिर तेरे मन मे ऐसी फालतू की बातें कैसे आ जाती है."

कीर्ति बोली "समझदार हूँ. तभी दिमाग़ मे ये बातें आती है. नही तो तेरी बातों मे बहल जाती."

मैं बोला "ऐसा कुछ नही है. तूने मेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नही की है."

कीर्ति बोली "तू सो रहा था और मैं किस करने लगी. अब भला एक लड़की एक लड़के को किस करेगी तो, वो अपने आपको किस करने से कैसे रोक पाएगा. मैं यदि किस नही करती तो तू सो गया होता. मेरी ही ज़बरदस्ती के कारण तुझे भी मुझको किस करना पड़ा नही तो तेरा मन ज़रा भी नही था."

मैं बोला "तुझे कैसे मालूम कि मेरा मन तुझे किस करने का नही था."

कीर्ति बोली "अगर होता तो तूने मुझे किस किया होता. मैने तुझे नही किया होता और मेरे पास होने पर भी तुझे नींद नही आ रही होती."

मैं बोला "देख तू ये सच बोल रही है कि मेरा मन तुझे किस करने का नही था, मगर तूने मुझे किस किया तो मुझे अच्छा लगा. इसमे ज़बरदस्ती वाली कोई बात नही थी. अब रही मुझे नींद आने वाली बात तो सुन मुझे कोई नींद नही आ रही थी. वो तो मैं तुझे तंग करने के लिए नाटक कर रहा था."

कीर्ति बोली "मगर फिर भी ये बात तो सही है कि तेरा मन किस करने का नही था. यानी कि मैने तेरे साथ ज़बरदस्ती की है."

मैं बोला "अच्छा एक बात बता. उस दिन मैने तुझे ज़बरदस्ती किस किया था. क्या तुझे लगता है कि उस दिन मैने तेरे साथ ज़बरदस्ती की थी."

कीर्ति बोली "तेरी बात अलग है. तू मेरे साथ कुछ भी कर ले. मुझे कभी नही लगेगा कि तूने मेरे साथ ज़बरदस्ती की है."

मैं बोला "ऐसा क्यों."

कीर्ति बोली "क्योंकि मैं तुझे प्यार करती हूँ और तुझे मेरे उपर पूरा हक़ है. तू जो चाहे वो कर सकता है. मुझे बुरा नही लगेगा."

मैं बोला "तो मेरी माँ. मैं क्या करता हूँ. मैं भी तो तुझे प्यार करता हूँ ना. तो फिर तुझे मुझ पर पूरा हक़ हुआ या नही.
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09-09-2020, 01:02 PM,
#49
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरी बात सुनकर कीर्ति ने बच्चो की तरह मासूम सा चेहरा बनाया और अपने होंठ सिकोडते हुए बोली.

कीर्ति बोली "हाँ. हुआ तो मगर मुझे डर लगता है."

मैं बोला "अब जब मैं तुझे प्यार करता हूँ तो, फिर अब तुझे किस बात का डर लगता है."

कीर्ति बोली "यही कि कही बाद मे तू मुझसे गुस्सा ना हो जाए."

मैं बोला "चल आज तेरा ये डर भी निकाल देता हूँ. आज मैं तेरी कसम खाकर कहता हूँ कि मर जाउन्गा मगर कभी किसी बात पर तुझको गुस्सा नही करूगा. अब तो खुश."

कीर्ति बोली "याद रखना. तुमने मेरी कसम खाई है. यदि तुमने मुझ पर गुस्सा किया तो कसम झुटि पड़ जाएगी और मैं मर जाउन्गी."

मैं बोला "हाँ याद रखुगा. अब ये फालतू की बक बक बंद कर और चुप चाप सो जा."

कीर्ति बोली "तुझे सच मे नींद आ रही है."

मैं बोला "नींद तो नही आ रही है. मगर ऐसे ही बैठे बैठे बात करते रहेगे तो, सुबह भी हो जाएगी और नींद भी नही आएगी. इसलिए ऐसा कर लाइट बंद कर दे और लेट जा. यू ही बात करते करते जब नींद आने लगेगी तो सो जाएगे."

कीर्ति बोली "ठीक है. मैं लाइट बंद कर देती हूँ."

कीर्ति लाइट बंद करने उठी मगर जब वह लाइट बंद करने की जगह दरवाजा खोलने लगी तो मैने पूछा.

मैं बोला "अब इतनी रात को कहाँ जा रही है."

कीर्ति बोली "अरे तूने तो अपना नाइट सूट पहना हुआ है और क्या मैं ऐसे ही जीन्स टी-शर्ट पहन कर सो जाउ. मुझे भी तो कपड़े बदल लेने दे."

मैं बोला "ठीक है मगर जल्दी आना."

कीर्ति बोली "मैं तेरी तरह नही हूँ कि नाइट सूट डाला और बस हो गया. मुझे सोने से पहले नहाने की आदत है. अब नहाने और कपड़े बदलने मे जितना टाइम लगता है, उतना तो लगेगा ही."

मैं बोला "तो इतनी देर तक किस बात का इंतजार कर रही थी. अब रात को 1 बजे तुझे नहाने की याद आ रही है. मैं इतनी देर तक अकेला बैठा क्या करूगा."

कीर्ति बोली "तू दिन भर से इसी कमरे मे बंद पड़ा हुआ है. सूंघ कर देख तेरे बदन से कितनी बास आ रही है. ऐसा कर तू भी नहा ले. कम से कम मुझसे कुछ तो अच्छा सीख ले."

कीर्ति की बात सुनकर मैं अपने बदन को सूंघने लगा और मुझे ऐसा करते देख कीर्ति हँसने लगी. क्योंकि मैने बॉडी स्प्रे लगाया हुआ था और मेरे शरीर से उसकी ही खुश्बू आ रही थी. उसने मुझे बुद्धू बनाया और मैं बन भी गया था. इसी गुस्से मे मैने उस से कहा.

मैं बोला "अपनी अच्छाई अपने पास रख. मुझे नही नहाना. तुझे जो करना है तू कर मगर ज़्यादा टाइम मत लगाना, नही तो मैं सच मे सो जाउन्गा."

कीर्ति बोली "तू सोकर तो देख. अब मैं सच मे तेरा खून पी जाउन्गि."

ऐसा कहते हुए वो हँसती हुई कमरे से बाहर निकल गयी. उसके जाने के बाद मैने कीर्ति की कही बातों को सोच कर मुस्कुराता रहा. लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे सच मे नींद आने लगी. मैने सोचा ये अभी फ्रेश होकर आएगी तो, क्या पता इसे कब तक नींद आए और कहीं मुझे नींद आ गयी तो हो सकता है कि उसे बुरा लगे. इस से अच्छा तो यही है कि मैं भी नहा ही लूँ. कम से कम ये आलस तो भाग ही जाएगा. ये सोच कर मैं भी नहाने चला गया.

मैं नाहकार आया और अपना नाइट सूट पहनकर कीर्ति के आने का इंतेजर करने लगा. उसे गये हुए अभी ज़्यादा देर नही हुई थी. मुझे उसके जल्दी आने की उम्मीद भी कम थी, इसलिए मैं टाइम पास करने के लिए टीवी देखने लगा.

मैं टीवी देख ही रहा था कि, अमि निमी के कमरे से मुझे निमी के रोने की आवाज़ आई. मैने तुरंत टीवी बंद की और अमि निमी के कमरे मे चला गया. निमी का रोना सुनकर अमि भी उठ गयी थी और वो उसे चुप कराने की कोसिस कर रही थी. लेकिन निमी थी कि अपने हाथों से अपनी आँख मलते हुए रोए जा रही थी.

निमी के साथ अक्सर ही ऐसा होता था कि, वो रात को यदि कोई बुरा सपना देखती तो डर कर रोने लगती. जब कभी भी निमी के साथ ऐसा होता था तो मैं उसके डर को दूर करने के लिए, उसके पास ही सो जाया करता था. निमी का रोना सुनकर कीर्ति भी नहाते से भागती चली आई. उस समय वो सिर्फ़ इक टवल लपेटी हुई थी. मगर मेरा ध्यान उसकी तरफ नही था.

मैं जाकर निमी के पास बैठ गया और उसे अपने सीने से चिपका लिया. मैने निमी को चुप करते हुए कहा.

मैं बोला "क्या हुआ.? मेरी निम्मो ने क्या फिर कोई बुरा सपना देखा है. देख अब डर मत. मैं तेरे पास हूँ ना."

मेरी बात सुनकर निमी चुप हो गयी मगर बहुत डरी हुई होने की वजह से सो नही रही थी. मैने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.

मैं बोला "इतना क्यों डरी हुई है. ऐसा क्या देख लिया तूने सपने मे."

निमी बोली "मैने सपने मे देखा कि कोई आपको बहुत मार रहा है और आप ज़ोर ज़ोर से रो रहे हो."

मैं बोला "देख मैं तो तेरे सामने अच्छा भला बैठा हूँ. ऐसे सपने कभी सच नही होते है. तुझे छोटी माँ ने क्या बताया था. जब हमे किसी के बारे मे कोई बुरा सपना आए तो समझना चाहिए कि उसके साथ कुछ अच्छा होने वाला है. ऐसे सपनो से डरते थोड़ी है. सपना अच्छा हो या बुरा. सच थोड़े ही होता है. अब तू डरना छोड़ और सोने की कोसिस कर."

निमी बोली "नही, मैं नही सोउंगी. मैं सोउन्गी तो फिर वही सपना आ जाएगा."

मैं बोला "डरती क्यों है. मैं तो तेरे पास हूँ ना."

निमी बोली "नही. मैं सो जाउन्गी तो आप चले जाओगे और वो सपना फिर आ जाएगा."

मैने कहा "मैं कही नही जाउन्गा. तू अब सोजा."

निमी बोली "तब आप भी मेरे साथ सोइए."

मैने कहा "ठीक है. मैं तेरे पास ही सो जाता हूँ. अब तो तू अपनी आँख बंद कर सोने की कोसिस कर."

ये कह कर मैं निमी के पास ही बेड पर पैर फैला कर बैठ गया. निमी ने मेरे दाएँ हाथ को अपने दोनो हाथो मे जाकड़ लिया और फिर मेरी तरफ करवट लेकर आँख बंद कर ली. मैने अमि को भी सोने को बोला तो वो भी लेट गयी.

फिर मेरी नज़र कीर्ति पर पड़ी. वो निमी का रोना सुनकर सिर्फ़ टवल लपेट कर ही आ गयी थी मगर ये सब देख कर अपने आप को भूल सी चुकी थी. मगर कीर्ति पर मेरी नज़र पड़ते ही मैं उसे देखता रह गया. उसके टवल लपेटने से उसके उभारों से लेकर उसकी कमर के नीचे तक का हिस्सा ढका हुआ था. बाकी का उसका सारा बदन सोने की तरह चमक रहा था उपर से उसके गीले बालों से टपकती पानी की बूंदे यूँ लग रही थी मानो मोती हो. मैं उसे बिना पलक झपकाए देखे जा रहा था. ऐसा नही था कि मैं अपने जीवन मे पहली बार किसी लड़की को ऐसी अवस्था मे देख रहा हूँ. रिया को तो मैने बिकिनी मे देखा था और उसके बूब्स भी मसल चुका था मगर उस समय मेरे मन मे उसे देख कर सिर्फ़ सेक्स की भावना आई थी, लेकिन कीर्ति को यू देख कर भी मेरे मन मे कोई बुरी भावना नही थी. बस यू लग रहा था कि मैं उसे यू ही देखता रहूं.

कीर्ति ने मुझे यू अपनी तरफ एक-टक देखते हुए देखा तो उसने अपने हाथ के इशारे से पूछा "क्या हुआ.?"

मैने भी अपने हाथों के इशारे से उसकी टवल की तरफ इशारा कर पूछा "ये सब क्या है."

ये देख कर उसकी नज़र खुद पर पड़ी और फिर वो गुस्से से मुझे घूर्ने लगी. मैने उसकी टवल की तरफ उंगली दिखाते हुए हाथो के ही इशारे से कहा "इस टवल मे बहुत सुंदर लग रही हो."

मेरी बात का मतलब समझते ही उसने बाँये हाथ से टवल पकड़ कर दाएँ हाथ से मुक्का बनाकर मुझे मारने का इशारा करती हुई बाहर निकल गयी. मैं भी उसकी इस हरकत से मुस्कुराए बिना नही रह सका.

उसके जाने के बाद मैने निमी से अपना हाथ छुड़ाने की कोसिस की तो उसने और ज़ोर से मेरे हाथ को जाकड़ लिया. वो अभी सोई नही थी थी. इसलिए मैं अपने दूसरे हाथ से उसके सर पर हाथ फेरने लगा. कुछ देर बाद कीर्ति भी नाइट सूट मे आ गयी. वो अमि की तरफ बेड पर पैर फैला कर बैठ गयी. कुछ देर बाद निमी गहरी नींद मे सो गयी तो मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "तू अब क्यों बैठी है. जाकर सो जा."

कीर्ति बोली "ज़्यादा बन मत. निमी सो गयी है. चल अब हम भी चल कर सोते है."

मैं बोला "नही. ये अब रात भर जाग जाग कर मुझे देखती रहेगी और यदि मैं नही दिखा तो फिर डर कर रोने लगेगी."

कीर्ति बोली "तो क्या मैं जाकर अकेली सोऊ."

मैं बोला "क्या तुझे भी निमी की तरह अकेले सोने से डर लगता है."

कीर्ति बोली "मुझे डर वर कुछ नही लगता. मुझे तो तेरे साथ सोना है."

मैं बोला "तो अब तू भी यही सो जा."

कीर्ति बोली "वो तो तू नही भी कहेगा तब भी मैं यहाँ से जाने वाली नही हूँ."

मैं बोला "मैं तुझे क्यों जाने को बोलुगा. मैं तो चाहता हूँ कि तू हमेशा मेरी नज़रो के सामने ही रहे."

कीर्ति बोली "ये फालतू की बात छोड़ और ये बता कि आज तेरे जाने की सोच कर ही निमी इतना डरी हुई है तो फिर कल तेरे जाने के बाद ये तेरे बिना कैसे रहेगी."

मैं बोला "एक तो तेरे गुस्से मे मैने दोनो से, 2-3 दिन ठीक से बात भी नही की, और अब कल जा रहा हूँ तो यही सब सोच सोच कर दिल बैठा जा रहा है."

कीर्ति बोली "तू कहे तो तेरी ये चिंता मैं दूर कर सकती हूँ."

मैं बोला "कैसे."

कीर्ति बोली "जब तक तू यहाँ नही है. तब तक के लिए मैं यही इन दोनो के पास रुक सकती हूँ."

मैं बोला "ये तो मैने सोचा ही नही था. तूने तो मेरी सारी चिंता दूर कर दी. अब मैं खुशी खुशी जा सकुगा."

कीर्ति बोली "ना ना चिंता दूर नही की. मैने कहा रुक सकती हूँ. ये नही कहा कि रुक जाती हू."

मैं बोला "तू कहना क्या चाहती है."

कीर्ति बोली "मैं सिर्फ़ ये कहना चाहती हूँ कि, यदि तू चाहता है कि मैं अमि निमी के पास मैं रुक जाउ तो मैं ऐसा कर सकती हूँ. मगर इसके लिए तुझे मेरी 2 शर्त मानना पड़ेगा और यदि तू उनमे से इक भी शर्त नही मानता तो मैं नही रूकूगी."

मैं बोला "कौन सी 2 शर्त है तेरी.?"

कीर्ति बोली "पहली शर्त ये कि तू जाकर मुझे फोन करना नही भूलेगा और मुझे मेरे टाइम पर रोज फोन करेगा."

मैं बोला "मुझे मंजूर है. अब अपनी दूसरी शर्त बोल."

कीर्ति बोली "दूसरी शर्त ये है कि कल जब तक तू यहाँ है, तब तक मुझे हर घंटे मे इक पप्पी चाहिए."

मैं बोला "ये कैसी बेहूदा शर्त है. कल मैं अपने जाने की तैयारी पूरी करूगा कि, हर घंटे मे तुझे पप्पी देने के लिए ढूंढता रहुगा. मुझे ये शर्त मंजूर नही है. तू इसके बदले मे कोई ओर शर्त बता."

कीर्ति बोली "नही मेरी तो यही शर्त है और यदि तुझे ये नही मानना है तो फिर इस बात को यही पर ख़तम कर दे. मैने तो पहले ही कहा था कि मेरी दोनो ही शर्त माननी पड़ेगी. एक भी शर्त पूरी ना होने पर मैं नही रूकूगी."

मैं बोला "तू तो पागलों जैसी बात कर रही है. तुझे मालूम है कि कल मुझे कितनी तैयारी करना है. ऐसे मे हर इक घंटे मे मेरा तेरे सामने आ पाना मुश्किल है."

कीर्ति बोली "ये सब तू मुझ पर छोड़ दे. मैं हर घंटे मे तुझे तेरे सामने मिलुगी. अगर नही मिलती तो तुझे उस घंटे की पप्पी माफ़ है मगर यदि मैं तेरे सामने हूँ तो फिर चाहे जैसे भी हो तुझे पप्पी देना ही पड़ेगा. लेकिन मेरे सामने होने पर भी यदि तूने मुझे पप्पी नही दी तो समझ लेना कि शर्त को तूने नही माना है और फिर मैं भी यहाँ नही रूकूगी."

मैं बोला "ये तो तू तुझे ब्लॅकमेल कर रही है."

कीरी बोली "अब तू जो भी समझ पर यदि तू चाहता है कि मैं रुकु तो तुझे मेरी शर्त माननी ही पड़ेगी. आगे तेरी मर्ज़ी."

मैं बोला "ओके मुझे ये शर्त भी मंजूर है."

कीर्ति बोली "गुड बॉय. ये हुई ना बात. चल अब शुरू कर."

मैं बोला "क्या.?"

कीर्ति बोली "पप्पी देना और क्या.?"

मैं बोला "अभी.? पर शर्त तो कल से शुरू होना है."

कीर्ति बोली "ये तुझसे मैने कब कहा कि शर्त कल से शुरू होगी. मैने तो कहा था कि जब तक तू यहाँ है तब तक हर घंटे मे तुझे पप्पी देनी है. अब देर मत कर और जल्दी से पप्पी दे और फिर एक घंटे के लिए बेफिकर हो जा."

मैं बोला "मगर यहाँ तो अमि निमी सो रही है. उनके सामने ये सब करना अच्छा नही है."

कीर्ति बोली "अरे जब ये सो रही है तो तू पप्पी नही दे पा रहा है. फिर तो कल दिन मे सब जागते हुए रहेगे. तब कैसे देगा. मुझे लगता है कि तू इस शर्त को पूरा नही कर पाएगा. इससे तो अच्छा यही होगा कि हम अपनी शर्त अभी कॅन्सल कर दे."

मैं बोला "मैने कब ऐसा करने से मना किया है. मैं तो ये चाहता हूँ कि बाहर चल कर पप्पी ले ले."

कीर्ति बोली "नही अब तो तुझे यही पप्पी देना होगी."

मैं बोला "ठीक है, जैसी तेरी मर्ज़ी. मुझे तो इसमे मज़ा ही मज़ा मिलने वाला है."

ये कहकर हंसते हुए मैने अपने आपको थोड़ा सा कीर्ति की तरफ झुकाया और फिर कीर्ति ने भी अपने आपको झुकाया तो मैने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए. हम लोग करीब 5 मिनिट तक इक दूसरे को किस करते रहे. फिर उसके बाद कीर्ति ने किस करना बंद किया और अंगड़ाई लेते हुए कहा.

कीर्ति बोली "अब मुझे तो नींद आ रही है. अभी 3 बजे है और अगले किस का टाइम 4 बजे का है. अगर तू तब तक जागता रहता है तो, अपना अगला किस कर लेना नही तो, सुबह उठते ही सबसे पहले किस करना, उसके बाद कोई और काम करना. अब मैं सोती हूँ. गुड नाइट."

इतना कहकर कीर्ति ने मुस्कुराते हुए अमि के बाजू मे ही उसे पकड़ कर लेट गयी और अपनी आँख बंद कर ली. मैं कुछ देर यू ही बैठा कभी अमि निमी को देखता तो, कभी कीर्ति को देखता. कुछ देर बाद मुझे कीर्ति भी गहरी नींद मे सोती लगी मगर मेरी आँखों मे ना जाने क्यों नींद नही थी.

मैं बस अमि निमी और कीर्ति को देखे जा रहा था. तीनो मे मुझे कोई अंतर समझ मे नही आ रहा था. कीर्ति अमि निमी से बहुत बड़ी थी और समझदार भी थी. लेकिन उसमे मासूमियत बिल्कुल अमि निमी की तरह ही थी. जो इस समय उसके चेहरे से साफ झलक रही थी.

जिसे देख कर मैं सोचने पर मजबूर हो गया. क्या मैं जो सब कुछ कीर्ति के साथ कर रहा हूँ, वो सब ठीक है. ये बात मेरे दिमाग़ मे आते ही मैं परेशान हो उठा. मैने आज जो पल कीर्ति के साथ बिताए थे वो मुझे अचानक हमारे रिश्ते पर गाली लगने लगे.

मैं सोच रहा था कि, ये मैं क्या कर रहा हूँ. आख़िर कीर्ति भी तो अमि निमी की तरह मेरी बहन ही लगती है. अगर कीर्ति मेरी सग़ी मौसी की लड़की नही तो अमि निमी भी तो मेरी सग़ी बहन नही है. जब मैं अमि निमी के बारे मे ऐसा नही सोच सकता तो फिर कीर्ति के बारे मे ऐसा कैसे सोच सकता हूँ. कहीं मैं कीर्ति की मासूमियत का फ़ायदा तो नही उठा रहा हूँ. अगर वो ग़लती कर रही है तो क्या मुझे उसको रोकना नही चाहिए. मैं क्यों उसकी ग़लती का साथ दे रहा हूँ.

ये सब सोचते सोचते मुझे मेरे आप पर घिन आने लगी. मुझे अब हर तरफ से मैं ही ग़लत नज़र आ रहा था. मुझे बस यू लग रहा था कि, मैं जो भी कर रहा हूँ, वो किसी भी तरह से सही नही है. कीर्ति मेरी बहन है, बस यही बात मेरे दिमाग़ मे गूँज रही थी और शायद मेरे अंदर की इस गूँज को कीर्ति ने सुन लिया.

अचानक ही कीर्ति ने अपनी आँख खोल कर मुझे देखा. वो अभी तक सोई नही थी बस आँख बंद करके ही लेटी हुई थी, या फिर आँख बंद करके मेरे सोने का इंतजार कर रही थी. लेकिन मुझे यूँ परेशानी मे गुम देख कर शायद वो मेरी परेशानी का अंदाज भी लगा चुकी थी.

वो बिना कुछ कहे ही अपनी जगह से उठी और मेरे पास आई. उसने आकर मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खीच कर मेरे कमरे मे ले आई. मुझे बेड पर बिठाकर वो खुद मेरे सामने ज़मीन पर ही घुटने मोड़ कर बैठ गयी, और फिर मेरे दोनो हाथों को अपने हाथों मे लेते हुए उसने कहा.

कीर्ति बोली "क्या सोच रहा है. अभी तो तू अच्छा भला था फिर अचानक इतना उदास क्यों है."

मैं बोला "कुछ नही. कभी तुम सब से इतना दूर नही गया हूँ ना, इसीलिए उदास हूँ."

कीर्ति बोली "देख झूठ मत बोल. मैं जानती हूँ, तू मेरे और अपने इस रिश्ते को लेकर उदास है. तू अगर हमारे इस नये बने रिश्ते से खुश नही है तो, मैं अभी इस रिश्ते को ख़तम कर देती हूँ. मुझे दर्द तो होगा मगर उतना नही जितना तुझे यू परेशान होते देख कर हो रहा है. मैं सब कुछ सह सकती हूँ मगर तेरी ये उदासी, ये परेशानी नही सह सकती."

मैं बोला "ऐसा कुछ नही है, जैसा तू सोच रही है."

कीर्ति ने मेरा हाथ अपने सर पर रखा और कहा.

कीर्ति बोली "अब यही बात तू मेरे सर पर हाथ रख कर मेरी कसम खाकर बोल कि ऐसा कुछ नही है."
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09-09-2020, 01:03 PM,
#50
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मैं उसका दिल तोड़ना नही चाहता था इसलिए चाह कर भी अपने दिल का हाल उसे नही बता पा रहा था. मैं बस चुप ही बैठा रहा. मुझे खामोश देख कर कीर्ति ने फिर कहा.

कीर्ति बोली "जो बात तू आज सोच रहा है. उसे मैं बरसो से सोचती आ रही हूँ कि ये सब ग़लत है. तू मेरा भाई है. तेरे साथ ऐसा नही हो सकता. मगर मेरे दिल ने कभी मेरी इस बात को नही माना. वो तो तुझे दिनो दिन और भी ज़्यादा प्यार करने लगा. दुनिया क्या सोचेगी, मुझे इसकी परवाह नही है. मेरे लिए सिर्फ़ ये बात मायने रखती है कि तू क्या सोचता है. अब यदि तू ही मेरे प्यार को ग़लत मानता है तो फिर ऐसे रिश्ते को आगे बढ़ाने से क्या फ़ायदा है."

ये कहकर कीर्ति ने अपना सर मेरे हाथो पे रख लिया. मैने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

मैं बोला "मैं तेरे प्यार को ग़लत नही मानता, पर ये बात अपने दिल से कैसे निकाल दूं कि तू मेरी बहन है. बस यही सोच सोच कर मुझे लग रहा है कि मैं तेरा फ़ायदा उठा रहा हूँ."

कीर्ति बोली "तू मेरा क्या फ़ायदा उठा रहा है. तूने तो मुझ पर कभी कोई बुरी नज़र नही डाली. कितने दिन से मैं तेरे साथ सो रही हूँ पर हम ने क्या ग़लत किया है. हमारा प्यार रिया और राज की तरह सिर्फ़ वासना नही है. जिसने उन्हे ये तक नही सोचने दिया कि वो भाई बहन होकर एक सार्वजनिक स्थल पर क्या कर रहे है. हम तो एक दूसरे के साथ कितने दिन इस बंद कमरे मे रहे फिर भी आज तक हम ने एक दूसरे के किसी अंग को नही देखा. फिर हमारा प्यार कैसे ग़लत हो सकता है."

मैं बोला "मैं तेरी हर बात को मानता हूँ, पर रिया राज के रिश्ते से हम अपनी तुलना करके क्या अपने आपको सही साबित कर सकते है."

कीर्ति बोली "हम ग़लत नही है, इसलिए हमे अपने आपको सही साबित करने की कोई ज़रूरत नही है. हमारा जो भी रिश्ता दुनिया के सामने है, उसे बदलने के लिए तुझसे कौन बोल रहा है. लेकिन हम दोनो ने जिस रिश्ते को आज बनाया है, बस हम उसे आपस मे निभाते चलेगे. अब तू मुझे ये बता कि तुझे मेरी खुशी कितनी प्यारी है."

मैं बोला "अपनी जान से भी ज़्यादा."

कीर्ति बोली "तुझे मेरी खुशी अपनी जान से भी प्यारी है तो, जब कभी भी तेरे दिल पर, इस बात को लेकर कोई बोझ पड़े तो, बस इस बात सोचना कि, तू जो भी कर रहा है, सिर्फ़ मेरी खुशी के लिए कर रहा है. अब ज़्यादा मत सोच. सुबह का 4 बज गया है. चल अब चल कर सोते है."

कीर्ति की बात सुनकर मेरे दिल का बोझ उतर चुका था और 4 बजने की बात को सुनकर मैने उसे पकड़कर अपनी तरफ खीच लिया.

कीर्ति बोली "अब क्या करने का इरादा है."

मैं बोला "तेरी शर्त पूरी करना है क्योंकि 4 बज गया है."

मैने कीर्ति को खीच कर अपनी गोद मे बैठा लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए. अभी हम एक दूसरे को किस कर ही रहे थे कि तभी निमी के नींद मे कुन्मूनाने की आवाज़ आई और हम लोग एक दूसरे से अलग हो गये. फिर हम लोग वापस अमि निमी के पास आकर अपनी अपनी जगह पर सो गये.

सुबह देर से सोने के कारण मेरी नींद सबसे बाद मे 9 बजे खुली. अमि निमी कीर्ति सब सो कर उठ चुके थे. मैं उठ कर देखा तो दरवाजे के सामने कीर्ति अपनी कमर पर दोनो हाथ रखे मुस्कुरा रही थी. मैने उसे गुड मॉर्निंग किया मगर वो मुझे देख कर बस मुस्कुराए जा रही थी. मैने उसे ऐसा करते देख कहा.

मैं बोला "क्या हो गया तुझे यू पागलों की तरह बेवजह क्यों हँसे जा रही है."

कीर्ति बोली "सुबह होते ही शर्त भूल गया."

मैं बोला "याद है पर मुझे फ्रेश तो हो जाने दे."

कीर्ति बोली "तब तक तो दूसरे की बारी आ जाएगी. वैसे भी अभी मेरा कुछ बासा खाने का मूड है."

ये कहकर वो मेरे पास आकर बैठ गयी और मैने उसे अपनी उसके चेहरे को अपनी गोद पर झुका कर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिए. मैं अभी उसके होंठ चूस ही रहा था कि तभी मुझे किसी के आने की आहट हुई. मैने तुरंत कीर्ति को छोड़ दिया. मैं कीर्ति को अपनी गोद पर झुकाए उसे किस कर रहा था और अचानक से मेरे छोड़ देने से कीर्ति अपने आपको संभाल नही पाई और मेरी गोद मे ही लेटी रह गयी.

तभी अमि अंदर आ गयी. कीर्ति को मेरी गोद मे लेटे देख कर वो कुछ सोचने लगी और कहा.

अमि बोली "क्या हुआ दीदी को. ये इस तरह से आपकी गोद मे क्यों लेटी है."

तब तक कीर्ति अपने आपको संभाल कर उठी और अमि से कहा.

कीर्ति बोली "कुछ नही. मेरी आँख मे कुछ चला गया था. वही पुन्नू से निकलवा रही थी."

अमि बोली "अरे आँख मे कुछ चला जाए तो उसे ऐसे नही निकलना चाहिए. इससे आँख खराब हो सकती है."

कीर्ति बोली "तो कैसे निकलना चाहिए."

अमि बोली "उसे पानी डाल कर निकलना चाहिए. अभी निकल गया या निकाल कर दिखाऊ."

कीर्ति बोली "अब तो निकल गया पर आगे से तेरी बात को याद रखुगी. अब तू ये बता कि तुझे मैने जो काम दिया था तू उसे छोड़ कर उपर क्यों आ गयी."

अमि बोली "मुझे तो मम्मी ने भेजा है कि 9 बज गये है जाकर भैया को उठा दूं."

कीर्ति बोली "अच्छे से देख ले कि पुन्नू उठ चुका है. अब जाकर वो काम कर जो मैने तुझे बताया है."

अमि बोली "खुद तो आराम से घूम रही हो और अपना काम मुझसे करवा रही हो. ठीक है मैं जाती हूँ."

ये कहकर अमि चली गयी और कीर्ति मुझे गुस्से से घूर्ने लगी. मैं समझ गया कि ये मुझे क्यों घूर रही है. मैने कहा.

मैं बोला "अब मैं क्या करता. मुझे किसी के आने की आहट हुई तो डर के मारे मैने तुझे छोड़ दिया."

कीएरटी बोली "छोड़ना ही था तो कम से कम मुझे सीधा तो कर देते. यू अपनी गोद मे पटक देने से कौन सा बहादुरी का काम कर दिया. उस पर जब अमि पूछ रही थी तो कोई जबाब भी नही दे सकते थे."

मैं बोला "तूने कितना सही जबाब तो दिया है. मैं ये जबाब कभी सोचने बैठता तब भी नही सोच पाता."

कीर्ति बोली "चलो अब ज़्यादा मस्का लगाने की ज़रूरत नही है. जल्दी से उठो और 10 बजे के पहले तैयार हो जाओ."

मैं बोला "10 बजे के पहले क्यों."

कीर्ति बोली "तुम्हे तो सब कुछ बताना पड़ेगा. 10 बजे के पहले इसलिए क्योंकि 10 बजे मैं अपनी दूसरी किस्त वसूलने आउन्गी."

ये बोलकर कीर्ति हंसते हुए बाहर निकल गयी, और मैं भी उठ कर अपने कमरे मे फ्रेश होने चला गया. मुझे तैयार होते होते 10 बज गये और ठीक समय पर फिर कीर्ति मेरे सामने नाश्ता लिए खड़ी थी. मैने फिर से उसे किस किया. किस के बाद कीर्ति ने बताया कि नीचे मेहुल बैठा है और मैं जल्दी से नाश्ता करके नीचे आ जाउ. इतना कह कर वो चली गयी और मैं नाश्ता करने लगा.
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