MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 12:42 PM,
#31
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मैं शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था और कीर्ति से कुछ भी बोलने की हालत मे नही था. कीर्ति मुझे गौर से देख रही थी. जैसे कि कुछ समझने की कोशिस कर रही हो और फिर वो खुद ही इस खामोशी को तोड़ती हुई कहती है.

कीर्ति बोली “तू इतनी रात को कहाँ जा रहा है और तेरे कमरे से ये कैसी आवाज़े आ रही थी.?”

मगर मेरी काटो तो खून नही वाली हालत हो गयी थी और मुझे उसकी बातों का कोई जबाब ही नही सूझ रहा था. इसलिए मैं खामोश ही खड़ा रहा. मुझे खामोश देख कर, उसने फिर से मुझसे सवाल करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “यू सर झुकाए चुप चाप क्यो खड़ा है. कुछ बोलता क्यो नही.”

मैं कीर्ति के सवालों से परेशान था. लेकिन उसके सवालों का जबाब देना भी ज़रूरी था. वरना वो मेरा पिछा छोड़ने वालों मे से नही थी. इसलिए मैंने अपने आपको बचाने की कोशिस करते हुए कहा.

मैं बोला “मुझे नींद नही आ रही थी, इसलिए तेरे ही पास आ रहा था.”

कीर्ति बोली “हां इसी वजह से तो मैं भी तेरे पास आई हूँ. मुझे भी नींद नही आ रही थी, तो सोचा कुछ देर चल कर तुझ से बात कर लेती हूँ. मगर तू तो शायद किसी और ही काम मे व्यस्त था. क्या कर रहा था तू.”

मैं बोला “कुछ तो नही. तेरे तो कान ही बजते रहते है.”

कीर्ति बोली “चल मेरे कान ही बज रहे थे. अब मुझे अंदर भी आने देगा या यू ही दरवाजे पर ही खड़ा रखेगा.”

कीर्ति की बात सुनते ही, मैं दरवाजे के सामने से अलग हो गया. मैं समझ चुका था कि, इसने अपनी छुप कर सुनने की आदत का यहाँ भी इस्तेमाल किया है और मेरे कमरे से आ रही सारी आवाज़े सुन ली है.

लेकिन इसके बाद भी, मैं उसको झुठलाने के सिवा कर भी क्या सकता था. सही बात तो मैं उस से कह नही सकता था. मैं अभी इसी सब मे उलझा था कि, कीर्ति ने फिर मुझे टोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मैं बैठ जाउ या वापस जाउ.”

मैं बोला “ये तेरा ही घर है. अब क्या तुझे यहाँ बैठने के लिए भी बोलना पड़ेगा.”

कीर्ति बेड के दूसरी तरफ पैर फैला कर बैठ गयी और मैं भी बैठ गया. हम दोनो बैठे रहे मगर कोई कुछ नही बोल रहा था. कुछ देर बाद कीर्ति ने, इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा.

कीर्ति बोली “आज अमि निमी के ना होने से, घर कितना सुना सुना लग रहा है.”

मैं बोला “हां, उनके रहने से घर मे चहल पहल बनी रहती है.”

कीर्ति बोली “हाँ, वो तो है पर अब आगे का तूने क्या सोचा है.”

मैं बोला “किस बारे मे.”

कीर्ति बोली “नितिका को अपनी गर्लफ्रेंड बनाने के बारे मे.”

मैं बोला “मुझे नितिका मे कोई दिलचस्पी नही है. वो मेरी तरह की नही है.”

कीर्ति बोली “और रिया कैसी लगी तुझे.”

कीर्ति के मूह से रिया का नाम सुनकर मैं सन्न रह गया और मैं उसका चेहरा देखने लगा. वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. लेकिन जब मैं कुछ बोला नही तो उसने कहा.

कीर्ति बोली “बता ना, मैं कौन सा रिया से बोलने जा रही हूँ.”

मैं बोला “रिया मुझे बहुत सुंदर है पर उसे तो तूने खुद राज के साथ.....”

इतना कह कर मैं चुप हो गया, मगर कीर्ति मेरे बिना कहे ही, मेरी आगे की बात समझ चुकी थी. उसने हंसते हुए अपना मोबाइल निकाला और कॉल लगाने लगी. उसे कही कॉल लगाते देख, मैंने उससे पुछा.

मैं बोला “क्या कर रही है. अब इतनी रात को, किसको फोन लगा रही है.”

कीर्ति बोली “नितिका को.”

तब तक दूसरी ओर से फोन उठ गया और फिर कीर्ति उस से बात करने लगी.

कीर्ति बोली “क्या हुआ, तुझे राज और रिया के बारे मे कुछ पता चला.”

नितिका “............” (नही यार, जैसा तू कह रही थी, उनके बीच ऐसा तो कुछ भी नही हुआ.)

कीर्ति बोली “हो सकता है कि, वो लोग ये सब अकेले मे ही करते हों.”

नितिका “................” (हां ये भी हो सकता है, क्योकि रिया तो मेरे साथ ही मेरे कमरे मे सो रही है और राज भैया का कमरा अलग है. वो सगे भाई बहन है. फिर वो पार्क मे खुले आम ऐसा करने की हिम्मत कैसे कर सकते है. तूने सच मे उन्ही को देखा है ना. कही तुझे कोई धोका तो नही हुआ.)

कीर्ति बोली “नही यार, मैंने उन्हे ही पार्क मे देखा है. मुझे कोई धोका नही हुआ और तू खुद ही सोच ना. ये सिटी उनके लिए नयी है और उन्हे इस सिटी मे पहचानता ही कौन है. मैंने भी जब उन्हे पार्क मे देखा था तो, मैं भी यही समझी थी कि वो कोई गर्लफ्रेंड और बाय्फ्रेंड है.”

नितिका “................” (हां तेरी बात तो सही है. उन्हे यहाँ जानता ही कौन है, मगर फिर भी पार्क मे ये सब करने की बात मुझे हजम नही हो रही है.)

कीर्ति बोली “अरे तू तो उस पार्क के बारे मे जानती है. फिर भी ऐसी बात कर रही है. वहाँ ये सब खुले आम होता है. हां ये बात अलग है कि, वो सब करने वाले सिर्फ़ गर्लफ्रेंड बाय्फ्रेंड होते है.”

नितिका “...........” (लेकिन मेरे सामने तो, उन्हो ने ऐसा कुछ भी नही किया है.)

कीर्ति बोली “अरे यार, अभी उनने कुछ नही किया तो क्या हुआ, तू उन्हे थोड़ा अकेलापन दे, फिर तेरे सामने उनकी असलियत खुद आ जाएगी.”

नितिका “...........” (यार मैंने तो उन दोनो को अकेला रहने का बहुत मौका दिया पर राज भैया तो मेरे पीछे ही पड़े रहे. उन्हो ने तो रिया की तरफ ज़रा भी ध्यान नही दिया और रिया तो पूरे समय मम्मी और आंटी के साथ ही रही. मुझे तो कुछ समझ मे ही नही आ रहा है.)

कीर्ति बोली “लगता है, तेरा राज भैया तेरे साथ भी, वही सब करना चाहता है.”

नितिका “..........” (नही यार, मुझे ऐसी कोई बात नही लगती, क्योकि वो तो पूरे समय किसी ना किसी बहाने से तेरी ही बात करते रहे. यही सब जानने की कोशिस करते रहे कि, तू किस तरह की लड़की है. तेरा कोई बाय्फ्रेंड है या नही. तुझे किस तरह के लड़के पसंद है. मुझे तो लगता है कि, तू उन्हे बहुत पसंद आ गयी है. तू क्या कहती है.)

कीर्ति बोली “मैं क्या बोलू. मेरे कुछ सोचने से पहले ही, पुन्नू ने मुझसे कह दिया कि, राज अच्छा लड़का नही है. मैं उस से दूर ही रहूं तो अच्छा है. इसलिए तू अपने राज भैया से कह दे कि, मेरे बारे मे सोचना बंद कर दे.”

नितिका “...........” (यार उनकी बात छोड़ और ये बता, तेरी पुन्नू से मेरे बारे मे कोई बात हुई या नही हुई. मेरा उसके साथ चक्कर चलवा दे, मैं जिंदगी भर तेरी गुलाम बन के रहूगी.)

कीर्ति बोली “नही यार, मेरी अभी पुन्नू से तेरे बारे मे कोई बात नही हुई है. लेकिन मैं इतना कह सकती हूँ कि, उसके मन मे तेरे लिए कोई बात नही है. यदि उसके मन मे तेरे लिए कोई बात होती तो, उसने किसी ना किसी बहाने, मुझसे तेरे बारे मे कुछ तो पूछा होता. वैसे भी जहाँ तक मैं जानती हूँ, पुन्नू को रिया या शिल्पा जैसी लड़किया ही पसंद आती है और तू तो उनके जैसी है ही नही. इसलिए मुझे तो नही लगता कि, तेरी वहाँ कुछ दाल गलेगि.”

नितिका “............” (यार, तू तो जानती है की, मेरे पापा मम्मी को ये सब पसंद नही है. इसलिए मुझे इस तरह से रहना पड़ता है. मगर इसका मतलब ये तो नही है की, मैं रिया या शिल्पा से कुछ कम हू. तू एक बार उसे समझा कर तो देख, शायद मेरा काम बन जाए.)

कीर्ति बोली “ओके यार, मैं कोशिश करूगी. अब तू रख. मुझे नींद आ रही है. कल बात करते है. गुड नाइट.”

नितिका “..........” (ठीक है मेरी बात पुन्नू से करना मत भूलना. गुड नाइट.)

फिर कीर्ति फोन रख देती है और मुझसे कहती है.

कीर्ति बोली “ले सुन लिया ना. नितिका तो तेरी दीवानी हो गयी है. वो कह रही थी कि, मैं किसी भी तरह से उसका चक्कर तेरे साथ चलवा दूं. वो जिंदगी भर मेरी गुलामी करेगी.”

मैं बोला “तू तो जानती है कि, अब मुझे किसी लड़की मे कोई दिलचस्पी नही है.”

कीर्ति बोली “देख मैं अच्छे से जानती हूँ कि, तुझे रिया मे दिलचस्पी है. लेकिन तू अपने दिल की बात खुल कर नही कह पा रहा है. मगर तू इस बात को क्यो भूलता है कि, रिया कुछ दिन के लिए यहाँ आई है और यदि तू इस बीच मे उस से कोई रिश्ता बना भी लेता है तो, वो कुछ दिन तेरे साथ मौज मस्ती कर के चली जाएगी और तू शिल्पा की तरह उसकी यादों को भी दिल लगाए बैठा रहेगा. जबकि रिया मुंबई जाते ही, तुझे भूल कर अपनी दुनिया मे मस्त हो जाएगी.”

मैं बोला “होने को तो ये भी हो सकता है कि, उसे भी मुझसे प्यार हो जाए.”

कीर्ति बोली “ज़्यादा एमोशनल मत बन. बड़े शहर की लड़कियाँ, कपड़ो की तरह बाय्फ्रेंड भी बदलती रहती है और फिर जो चीज़ उसे बाय्फ्रेंड से मिलनी चाहिए, वो सारी चीज़ें तो, उसे उसका भाई ही दे रहा है. फिर वो भला क्यो किसी लड़के के प्यार मे पागल होगी.”

मैं बोला “इसीलिए तो मैं किसी लड़की के चक्कर मे पड़ना नही चाहता हूँ. तुझे अपने लिए कोई बाय्फ्रेंड ढूँढना है तो, तू ढूँढ ले. मगर मेरे लिए कोई गर्लफ्रेंड ढूंडना बंद कर दे.”

कीर्ति बोली “मुझे कोई बाय्फ्रेंड ढूँढने की ज़रूरत नही है. क्योकि राज खुद मुझे अपनी गर्लफ्रेंड बनाने के चक्कर मे लगा हुआ है. मैं उसे पहली ही नज़र मे पसंद आ गयी हूँ.”

कीर्ति की बात सुनकर मुझे बुरा लगा. लेकिन मैंने सोचा कि, शायद जैसे मुझे रिया पसंद आ गयी है. वैसे ही इसे भी राज पसंद आ गया है. इसलिए मैंने उसी की बात, उसको समझाते हुए कहा.

मैं बोला “देख, इस राज के लफडे मे मत पड़. वो मुझे सही लड़का नही लगता. वैसे भी वो रिया का भाई है तो, रिया जैसा ही होगा. वो भी मौज मस्ती करके अपने घर चला जाएगा. बेहतर यही होगा कि, हम दोनो इन रिया और राज से दूर ही रहें.”

कीर्ति बोली “तू राज की चिंता मत कर. राज जैसे पचासों लड़के मेरे आगे पीछे घूमते रहते है. मैं उनको अपनी उंगलियों पर नचाना अच्छी तरह से जानती हूँ. मुझे तो तेरी चिंता है कि, कही तू रिया की सुंदरता मे दीवाना ना हो जाए.”

मैं बोला “ऐसा कुछ नही होगा. हाँ कुछ पल के लिए रिया मुझे अच्छी लगी थी. लेकिन तेरी बात सुनकर, अब मैं समझ चुका हूँ कि, रिया मेरे लायक नही है.”

कीर्ति बोली “तब तो ठीक है, अब थोड़ा नितिका के बारे मे भी सोच ले. मेरे ख़याल से तो, तेरे लिए उस से अच्छी लड़की कोई हो ही नही सकती.”

मैं बोला “अब तू अपनी बातों को यही पर ख़तम कर और जाकर सो जा. क्योकि अब बहुत ज़्यादा रात हो चुकी है.”

कीर्ति बोली “अब नींद तो मुझे भी आ रही है. लेकिन इतने बड़े घर मे, मुझे अकेले सोने मे डर लग रहा है. तू कहे तो मैं तेरे पास यही सो जाउ.”

मैं बोला “जैसी तेरी मर्ज़ी. तुझे जहाँ लगे, तू वहाँ सो जा, मगर अब सो जा. गुड नाइट.”

कीर्ति बोली “गुड नाइट.”
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09-09-2020, 12:44 PM,
#32
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इसके बाद कीर्ति करवट बदल कर, मेरी तरफ पीठ करके सो गयी. लेकिन मैं बैठे बैठे बहुत देर तक, उसको देखता रहा और सोचता रहा कि, ये कितनी सुंदर है. इसके आगे तो रिया और शिल्पा भी कुछ नही है. मगर अफ़सोस कि ये मेरी बहन है. यदि ये मेरी बहन नही होती तो, मैं इसे जिंदगी भर के लिए अपना बना लेता.

लेकिन फिर मैं खुद की ही सोच पर ही हंस देता हूँ कि, मैं ये क्या बेकार की बातें सोच रहा हूँ. मैं अपनी इस सोच को झटक कर कीर्ति की तरफ देखता हूँ. वो शायद अब सो चुकी थी और नींद मे किसी मासूम बच्चे की तरह लग रही थी.

उसका ये रूप देख कर, मुझे उस पर बहुत ज़्यादा प्यार आता है और मैं धीरे से उसके माथे पर एक छोटा सा किस कर देता हूँ. मैं बैठा बैठा उसके बालों पर हाथ फेरने लगता हूँ और उसके चेहरे का भोलापन देखने लगता हूँ.

उस पल मुझे ऐसा लग रहा था कि, ये वक्त यही ठहर जाए और मैं कीर्ति को ऐसे ही देखता रहूं. ये ही सब सोचते हुए और कीर्ति के भोले चेहरे को देखते हुए, पता नही कब मैं भी बैठे बैठे ही सो जाता हूँ.

सुबह जब कीर्ति की नींद खुलती है तो, वो मुझे बैठा हुआ पाती है और मेरा हाथ उसके सर पर होता है. वो मेरे हाथ को पकड़ कर उसे चूमने लगती है और मेरी भी नींद खुल जाती है. हम दोनो की नज़रे एक दूसरे से मिलती है और फिर हम दोनो मुस्कुराने लगते है.

कीर्ति बोली “रात भर यूँ ही क्यो बैठे रहे. जब मैं सो ही गयी थी तो, तुमको भी सो जाना था.”

मैं बोला “तू पहली बार मेरे पास सोई थी और तू सोते समय बहुत ही प्यारी लग रही थी. इसलिए मैं तेरे सर पर हाथ फेरता रहा और पता ही नही चला कि मुझे कब नींद आ गयी.”

कीर्ति बोली “इतना प्यार करता है मुझसे तो, फिर जब मैं चली जाउन्गी तो कैसे रहेगा.”

मैं बोला “हां ये तो सच है, पर ना जाने क्यो, इन थोड़े से दिनो मे, मुझे तेरी आदत सी हो गयी है.”

कीर्ति बोली “चलो देरी से ही सही, पर तुझे अपनी इस बहन पर भी प्यार तो आया.”

मैं बोला “चल छोड़ इन बातों को और ये बता आज कहाँ घूमने चलेगी.”

कीर्ति बोली “घर मे कोई नही है और तुझे घूमने की पड़ी है.”

मैं बोला “छोटी माँ और बाकी लोग सुबह जल्दी ही आ जाएगे और हम लोग तो दोपहर के खाने के बाद निकलेगे.”

कीर्ति बोली “अगर अपने साथ नितिका को भी ले चले तो, तुझे बुरा तो नही लगेगा.”

इस समय मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था और मैं सिर्फ़ उसको खुश देखना चाहता था. इसलिए मैंने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “नितिका क्या, तू चाहे तो, राज रिया और शिल्पा को भी अपने साथ ले चल. मुझे ज़रा भी बुरा नही लगेगा.”

ये बात सुनते ही, वो फ़ौरन उठ कर बैठ गयी और मुझसे पुछ्ने लगी.

कीर्ति बोली “कहीं ये बात तू गुस्से मे तो नही बोल रहा.”

मैं बोला “नही, मैं ज़रा भी गुस्से मे नही बोल रहा. तू चाहे तो मुझसे कोई कसम खिला सकती है.”

मेरी इस बात से कीर्ति के चेहरे पर चमक आ गयी. उसने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “नही, तुझे कोई कसम खाने की ज़रूरत नही है. अभी तो मैं फ्रेश होने जाती हूँ. फिर नाश्ते के बाद, नितिका से बात करते है.”

मैं बोला “ठीक है, जैसी तेरी मर्ज़ी.”

इसके बाद कीर्ति अपने कमरे मे चली गयी और मैं आराम से लेट गया. मगर रात को मेरी नींद पूरी ना होने की वजह से, मेरी फिर से नींद लग गयी. फिर कीर्ति के जगाने पर मेरी नींद खुली. मगर मुझे अभी भी बहुत नींद आ रही थी और मैं उठ नही रहा था तो, उसने कहा.

कीर्ति बोली “कब से तेरा मोबाइल बज रहा है. उठाता क्यो नही है.”

मैं बोला “सोने दे ना यार, मुझे बहुत नींद आ रही है. जिसका भी कॉल है, तू ही बात कर ले."

ये कह कर मैं फिर से सो गया. कीर्ति ने मोबाइल देखा तो, मेहुल का कॉल आ रहा था. कीर्ति ने तुरंत कॉल उठाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हेलो, कौन बदतमीज़ सुबह की नींद मे खलल डाल रहा है.”

मेहुल कीर्ति की आवाज़ पहचान गया और उसने फ़ौरन कीर्ति के ही अंदाज मे उसे जबाब देते हुए कहा.

मेहुल बोला “मैंने तो अपने शहज़ादे को फोन लगाया था. लेकिन ये बच्चो को डराने वाली डायन बीच मे कहाँ से आ गयी.”

उसकी बात सुनकर, कीर्ति ने गुस्से मे भनभनाते हुए उस से कहा.

कीर्ति बोली “अच्छा तो मैं बच्चो को डराने वाली डायन हूँ, तो फिर आप कौन हो, बच्चो को हंसाने वाले बंदर.”

मेहुल जानता था कि, वो कीर्ति से बातों मे नही जीत सकता है. इसलिए उसने बात बदलते हुए फ़ौरन कहा.

मेहुल बोला “अब ये सुबह सुबह बकवास करना बंद कर और फोन पुन्नू को दे. मुझे पुन्नू से ज़रूरी बात करना है.”

कीर्ति बोली “वो तो बहुत गहरी नींद मे सोया है. आपको जो बोलना है मुझसे ही बोल दीजिए.”

मेहुल बोला “मुझे नही मालूम था कि, पुन्नू ने अपने लिए पर्सनल सेक्रेटरी रख ली है. नही तो मैं पहले से ही तुझसे बात करने का अपायंटमेंट ले लेता.”

कीर्ति बोली “बहुत उड़ रहे है. लेकिन याद रखना कि, मेरी बात सुनते ही, अपने शहज़ादे को, भूलकर मुझे शहज़ादी कहते नज़र आएगे.”

मेहुल बोला “ऐसी क्या बात है.”

कीर्ति बोली “बात तो आपके मतलब की है. मगर अफ़सोस आप तो मामा जी के यहाँ हो, इसलिए आपके लिए बेकार है.”

मेहुल बोला “अरे मेरी नटखट शहज़ादी, मैं घर से ही बोल रहा हूँ. अभी सुबह ही मामा जी के यहाँ से वापस लौटा हूँ. अब तो बता क्या बात है.”

कीर्ति बोली “तो सुनो आज मैं, पुन्नू, नितिका और नितिका के कज़िन पिक्निक पर जा रहे है.”

मेहुल बोला “इसमे मेरे मतलब की कौन सी बात है.”

कीर्ति बोली “नही है तो क्या हुआ. आप चाहो तो हो सकती है. हम शिल्पा को भी अपने साथ ले जा सकते है.”

मेहुल बोला “क्यो, क्या तेरी शिल्पा से बात हो गयी है.”

कीर्ति बोली “नही, बात तो नही हुई है. मगर यदि आप बोलो तो कर सकते है.”

मेहुल बोला “अरे नेकी और पुछ पुछ. तू उसे ले चलने को तैयार कर ले. फिर तू जो भी माँगेगी मैं तुझे दूँगा.”

कीर्ति बोली “इसमे कौन सी बड़ी बात है. वो तो आपका नाम सुनते ही चलने को तैयार हो जाएगी.”

मेहुल बोला “ना ना, ऐसी ग़लती मत करना. उसे मैं अचानक पहुच कर सर्प्राइज़ देना चाहता हूँ. तू बस उसे किसी भी तरह से चलने के लिए तैयार कर ले. बाकी का काम मुझ पर छोड़ दे.”

कीर्ति बोली “ओके मैं ये काम कर दूँगी. लेकिन भूलना मत आपने कहा है, जो मैं माँगूंगी, वो आप मुझे देंगे.”

मेहुल बोला “एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी तो, कर दी, फिर तो मैं अपने आपकी भी नही सुनता हूँ. तू अपना वादा पूरा कर और मैं अपना वादा पूरा करूगा. तू नही जानती मैं कब से इस मौके की तलाश मे था. जब पुन्नू मैं और शिल्पा तीनो एक साथ हो. मगर पुन्नू इसके लिए कभी तैयार ही नही था. अगर आज तूने ऐसा कर दिया तो, मेरा नाम भी नही आएगा और काम भी हो जाएगा.”

कीर्ति बोली “ठीक है, समझो आज आपका ये काम हो गया.”

मेहुल बोला “मगर मेरे आने की बात पुन्नू को ज़रूर बता देना. नही तो उसे बुरा भी लग सकता है.”

कीर्ति बोली “आप बिल्कुल चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूँगी. अब बात हो गयी हो तो फोन रखा जाए.”

मेहुल बोला “ओके मुझे फोन करके बता देना कि, कब कितने बजे और कहाँ चलना है. बाइ.”

कीर्ति बोली “ओके बता दूँगी. बाइ.”

मेहुल से बात करने के बाद, कीर्ति फिर से मुझे जगाती है और कहती है.

कीर्ति बोली “अब तो उठ जाओ, देखो 8 बज चुके है. मौसी भी घर आ गयी है. मेहुल का कॉल आया था और मेहुल अपने मामा जी के यहाँ से वापस आ गया है. हमारे साथ वो भी पिक्निक पर चलने को तैयार है. अब मैं तैयार होने जा रही हूँ. तब तक तुम भी फ्रेश होकर नाश्ता करने नीचे आ जाओ. ताकि हम नितिका से पिक्निक पर चलने की बात कर सके.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैं उठ कर बैठ गया. मुझे उठता देख कर, वो मुस्कुराते हुए अपने कमरे मे चली गयी. उसके जाने के बाद, मैं भी उठ कर फ्रेश होने बाथरूम मे चला जाता हूँ.

मैं फ्रेश होने के बाद तैयार होता हूँ और नीचे आकर सोफे पर बैठ जाता हूँ. मुझे नीचे आया देख कर, निमी भी कहीं से भागती हुई आती है और मेरे पास आकर मेरे गले लग लग जाती है. वो कल की पार्टी को लेकर बहुत खुश थी और अब मज़े ले लेकर, मुझे पार्टी की बातें बता रही थी.

तभी कीर्ति भी तैयार होकर आ जाती है और मुस्कुराते हुए दूसरे सोफे पर जाकर बैठ जाती है. निमी उसे देखते ही मेरे पास से उठ कर उसके पास जाकर, उसे पार्टी की बातें बताने लगती है.

मैं भी निमी की बातें मज़े लेकर सुन रहा था कि, तभी अमि छोटी मान के कमरे से बाहर निकलती है और चुप चाप जाकर सबसे अलग बैठ जाती. मैंने उसकी तरफ गौर से देखा तो, उसका मूड कुछ खराब सा समझ मे आ रहा था.

मैंने उसे अपने पास बुलाया और पूछा. मैंने उसे अपने पास आने का इशारा किया तो, वो मेरे पर आकर बैठ गयी. मैंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए, उस से पुछा.

मैं बोला “ये सुबह सुबह मेरी बेटू का मूह क्यो फूला हुआ. क्या तुझे किसी ने कुछ कहा है. मुझे बता, तेरा मूड किसने खराब किया है. मैं अभी उसकी खबर लेता हूँ.”

अमि ने मेरी बात सुनते ही मुझ पर गुस्सा दिखाते हुए कहा.

अमि बोली “मुझे आपसे कोई बात नही करना.”

मुझे अमि से बात करते देख कर, कीर्ति और निमी भी ध्यान लगा कर, हमारी बातें सुनने लगे. मैंने अमि को मुझ पर गुस्सा करते देखा तो, मुझे समझ मे आ गया कि, वो मेरी ही किसी बात से नाराज़ है. मैंने उस से पुछा.

मैं बोला “इसका मतलब है कि, मेरी बेटू, मेरी ही किसी बात से नाराज़ है. लेकिन मुझे पता तो चले कि, मैंने ऐसा क्या कर दिया, जो तुझे मुझसे बात नही करना.”

अमि बोली “आप हमारे साथ पार्टी मे क्यो नही गये. वहाँ कितना मज़ा आ रहा था मगर मेरे साथ तो कोई नही था. मैं सारे समय पार्टी मे अकेली ही घूमती रही. मुझे पार्टी मे बिल्कुल भी मज़ा नही आया.”

मैं बोला “क्यो तेरे साथ निमी तो थी ना.”

अमि बोली “कहाँ भैया. ये तो उधर के छोटे छोटे बच्चों के साथ मिल कर बहुत हुड़दंग करती रही. मेरे पास तो रुकी ही नही.”

मैं बोला “तो तू भी उनके साथ मिलकर उधम करती ना, तुझे ऐसा करने से किसने मना किया था.”

अमि बोली “अब मैं छोटी थोड़ी हूँ, जो छोटे छोटे बच्चों के साथ मिलकर उधम करती. वो बच्चे तो इतने शैतान थे कि, उन ने सब की नाक मे दम कर रखा था और ये निमी भी उनके साथ मिल कर, उनके ही जैसी बन गयी थी.”

मैं बोला “चल अब उस बात को जाने दे. तू मुझसे नाराज़ है ना, तो आज मैं तुझे पिक्निक पर ले चलता हूँ. वहाँ तू मेरे साथ बहुत मज़ा कर लेना. अब तो अपना मूड सही कर ले.”

मेरी बात सुनते ही अमि खुश हो गयी और फ़ौरन मेरे गले से लग गयी. लेकिन ये बात सुनते ही निमी मुझे गुस्से मे देखने लगी. मैंने उसकी तरफ देखा तो, मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “अब तू क्यो मुझे घूर रही है. क्या तुझे हमारे साथ पिक्निक पर नहीं जाना है.

मेरी बात सुनकर निमी के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी और वो दौड़ते हुए मेरे पास आकर, मेरे गले से लग गयी. फिर उसने ये बात छोटी माँ को बताने की बात बोली और अमि को अपने साथ लेकर छोटी माँ के पास चली गयी.

उनके जाने के बाद, मैंने मुस्कुराते हुए कीर्ति की तरफ देखा. लेकिन अब कीर्ति का चेहरा उतरा हुआ था. उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर, मुझे ये समझते देर नही लगी कि, अमि निमी को अपने साथ, ले जाने वाली बात, कीर्ति को पसंद नही आई है.

लेकिन अमि निमी को अपने साथ ले जाने वाली बात पर, कीर्ति का इस तरह से अपना चेहरा उतार लेना, मुझे ज़रा भी अच्छा नही लगा और मेरा पिक्निक पर जाने का सारा मूड खराब हो गया.
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09-09-2020, 12:44 PM,
#33
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मगर मैं अपनी वजह से कीर्ति की पिक्निक को खराब करना नही चाहता था. इसलिए मैंने अपने मन की बात को, मन मे ही दबाते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “अब तुझे क्या हुआ. क्या तुझे अमि निमी के पिक्निक पर जाने से कोई परेशानी है.”

कीर्ति बोली “मुझे उनके जाने से कोई परेशानी नही है. लेकिन तुझे ये सोचना था कि, ये पिक्निक हमने बड़े बड़ों के लिए रखी है. पता नही, वहाँ कौन क्या हरकत करता है. क्या ऐसे मे इनको साथ ले जाना सही है.”

कीर्ति की इस बात से मुझे, उसके इस तरह से चेहरा उतार लेने का मतलब समझ मे आ गया था. असल मे उसे रिया और राज की वजह से इस बात का डर सता रहा था कि, वो अमि निमी के सामने कोई उल्टी सीधी हरकत ना कर दे. उसकी ये बात समझ मे आते ही, मैंने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “तू फिकर मत कर, जैसा तू सोच रही है, वैसा कुछ भी नही होगा और इनकी वजह से तेरी पिक्निक भी खराब नही होगी. इस सबकी ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ. अब रही इनको साथ ले जाने की बात तो, तू ये अच्छी तरह से जानती है कि, मैं इनका उतरा हुआ चेहरा नही देख सकता.”

कीर्ति बोली “अब जब तूने इनको चलने के लिए बोल ही दिया है तो, फिर हम कमाल को भी साथ ले चलते है. कम से कम वो इनका दिल तो बहलाए रहेगा.”

मैं बोला “हां ये ठीक रहेगा. तू उसे अभी ही कॉल कर दे. वो तो पिक्निक के नाम से भागा चला आएगा.”

इसके बाद कीर्ति ने सबसे पहले नितिका को कॉल करके पिक्निक पर चलने का पुछा. नितिका ने कहा कि वो राज, रिया और शिल्पा से बात करके अभी वापस कॉल लगाती है. नितिका से बात होने के बाद, कीर्ति ने कमल से पिक्निक पर चलने की बात कही तो, वो फ़ौरन चलने को तैयार हो गया.

कमल से बात होने के फ़ौरन बाद ही नितिका का कॉल आ गया और उसने बताया कि, सब पिक्निक पर चलने को तैयार है. कीर्ति ने उस से कहा कि, हम लोग 10:30 बजे तेरे घर आ जाएगे. तुम लोग तैयार रहना.

नितिका से बात करने के बाद उसने मेहुल को भी फोन करके सारी बातें बता दी. जब उसकी सबसे बातें हो गयी तो, मैंने उस से पुछा.

मैं बोला “हमें तो दोपहर के खाने के बाद चलना था. फिर तूने नितिका को 10:30 बजे का टाइम क्यो दिया.”

कीर्ति बोली “हम लोग घर से नाश्ता करके निकलेगे और खाना पिक्निक मे ही खाएगे.”

मैं बोला “तो खाने की क्या तैयारी है.”

कीर्ति बोली “हमें खाने की चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है. खाने पीने का सारा इंतेजाम मेहुल करेगा. मगर उसने ये बात किसी को भी बताने से मना किया है.”

मैं बोला “अच्छी बात है. मेहुल को ये सब करने मे बहुत मज़ा आता है. खास कर बात जब शिल्पा से जुड़ी हो.”

मेरी ये बात सुनते ही कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “उसे कम से कम किसी के लिए, कुछ करने का मन तो होता है और एक तू है, जिसे किसी मे कोई दिलचस्पी नही है.”

क्रीती की बात सुन कर मेरे सामने रिया का चेहरा घूमने लगा और मैं सोचने लगा कि, रिया कितनी सुंदर है. लेकिन क्या वो मेरे जैसे सीधे सादे लड़के को पसंद करेगी. मैं अभी अपने इन्ही ख़यालों मे खोया हुआ था कि, तभी कीर्ति ने मुझे टोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “कहाँ खोया है. जल्दी से जाकर तैयार हो जा. तब तक मैं अमि और निमी को भी तैयार कर देती हूँ.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैं अपने कमरे मे आकर तैयार होने लगा. मैंने एक ब्लॅक टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी और फिर नीचे आ गया. अमि निमी भी तैयार हो चुकी थी और कीर्ति कपड़े बदलने चली गयी थी.

मैं कीर्ति के आने का इंतजार करने लगा. कुछ ही देर बाद कीर्ति भी तैयार होकर आ गयी. आज उसने वाइट शॉर्ट शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहना था. जिसमे वो हमेशा की तरह बहुत सुंदर लग रही थी.

मगर आज मैंने उसके कपड़ों पर ज़्यादा ध्यान नही दिया. कीर्ति के आते ही हम सब नाश्ता करने लगे. इसी बीच कमल भी आ गया और वो भी हमारे साथ नाश्ते मे शामिल हो गया.

नाश्ता करने के बाद मैंने ड्राइवर को टाटा सफ़ारी निकालने को बोला और फिर हम लोग नितिका के घर के लिए निकल गये. जब हम लोग नितिका के घर पहुचे तो, नितिका और शिल्पा बाहर खड़ी हमारा ही इंतजार कर रही थी.

शिल्पा ने स्कर्ट टॉप पहना था और नितिका रेड सलवार सूट मे थी. कुछ ही देर मे राज और रिया भी आ गये. रिया ने ब्लॅक टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहना था. जबकि राज पॅंट और शर्ट मे था.

एक एक करके सब गाड़ी मे बैठने लगे. अमि निमी और कमल पहले से ही सबसे पीछे वाली सीट पर बैठे थे. मैं और राज ड्राइवर के बाजू वाली सीट मे आकर बैठ गये. कीर्ति, रिया नितिका और शिल्पा बीच वाली सीट मे बैठ गयी और फिर हम पिक्निक के लिए निकल गये.

करीब एक घंटे के सफ़र के बाद हम लोग वॉटरफॉल पहुच गये. वॉटरफॉल चारो तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ था और वहाँ दूर दूर तक प्राकृतिक सुंदरता बिखरी पड़ी थी.

लोग अक्सर शांति की तलाश मे या फिर हमारी तरह पिक्निक मनाने वहाँ आया करते थे. वहाँ सिर्फ़ बहुत उचाई से गिरते झरने की आवाज़ के सिवा कोई शोर सुनाई नही दे रहा था. वो स्थान शहर से दूर होने की वजह से वहाँ ज़्यादा भीड़ भाड़ नही थी.

हमारे वहाँ पहुचते ही, हमारा स्वागत मेहुल ने किया. वो हम लोगों से पहले वहाँ पहुच गया था और उसने वहाँ खाने पीने का सारा इंतेजाम कर के रखा था. मेरे और कीर्ति के अलावा सभी वहाँ मेहुल को देख कर चौक गये.

मेहुल को अपने सामने देख कर, शिल्पा की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था. मेहुल ने उसे देख कर आँख मारी और वो मेहुल की इस हरकत से शरमा गयी. मैं मेहुल के पास पहुचा तो उसने मुझे अपने गले से लगाते हुए कहा.

मेहुल बोला “आज तो तू बहुत चमक रहा है. सब कुछ ठीक तो है ना, कही तूने किसी के साथ कोई चक्कर वक्कर तो नही चला लिया.”

मैं बोला “मेरा किसी के साथ कोई चक्कर वक्कर कुछ नही. बस कीर्ति का कल बर्थदे था, इसलिए आज उसे पिक्निक कराने लाया हूँ.”

मेहुल बोला “ये ब्लॅक टी-शर्ट और ब्लू जीन्स मे पटाखा कौन है और उसके साथ ये हॅंडसम लड़का कौन है.”

मैं बोला “ये नितिका के कज़िन है और मुंबई से आए है.”

मेहुल बोला “यार ये लड़की तो अपने हुश्न से सारी दुनिया जला सकती है. मेरी मान तो तू इसे पटा ले, तेरी लाइफ बन जाएगी.”

मेहुल की बात सुनकर, मैं मुस्कुरा दिया. लेकिन इस पहले की मैं कुछ बोल पाता कीर्ति और शिल्पा हमारे पास आ गयी. कीर्ति ने हमारे पास आते ही हम से कहा.

कीर्ति बोली “आप लोग बात ही करते रहोगे या अब कुछ घूमना फिरना भी होगा.”

तब तक बाकी सब लोग भी हमारे पास आ चुके थे. कीर्ति ने रिया और राज का परिचय मेहुल से करवाया. इसके बाद मेहुल सबको वहण लेकर आ गया. ज़हण उसने सबके खाने पीने और बैठने का इंतेजाम किया था. Wअहण आकर हम सब बैठ गये. फिर मेहुल ने कीर्ति से कहा.

मेहुल बोला “यहाँ घूमने फिरने के लिए, हम सब दो दो या तीन तीन के ग्रूप मे बँट जाते है. मैंने तो सोच लिया है कि एक ग्रूप मेरा और शिल्पा का होगा. अब बाकी लोग भी अपना अपना ग्रूप बना लो.”

मेहुल की ये बात सुनकर मुझे अच्छा लगा. क्योकि मैं रिया के साथ रहना चाहता था. लेकिन मेरी ये बात बोलने की हिम्मत नही हो रही थी. ना ही किसी और ने भी कुछ बोलने की कोई उत्सुकता दिखाई. तब मेहुल ने ही सबका ग्रूप बनाते हुए कहा.

मेहुल बोला “लगता है आप लोगो की समझ मे नही आ रहा कि आप किस के साथ ग्रूप बनाए, इसलिए आपकी ये मुश्किल मैं आसान किए देता हूँ. मेरा और शिल्पा का तो एक ग्रूप बन चुका है. अब दूसरा ग्रूप रिया और पुनीत का होगा. तीसरे ग्रूप मे कीर्ति और राज हो जाएगे. चौथे ग्रूप मे नितिका और निमी हो जाएगी. पाँचवा ग्रूप अमि और कमल हो जाएगा.”

मेहुल की ये बात सुनकर जहाँ सब खुश थे. वही मेरी और नितिका की खुशी गायब हो चुकी थी. क्योकि नितिका मेरे साथ रहना चाहती थी. जबकि कीर्ति का राज के साथ रहना मुझे पसंद नही आ रहा था.

मगर ग्रूप बनाने के बाद, मेहुल ने किसी को कुछ बोलने का मौका दिए बिना ही, कहा कि, हम सब एक घंटे यहाँ वहाँ घूमेगे फिर यही आकर मिलेगे. इसके बाद सभी अलग अलग घूमने निकल गये. मैं रिया के साथ झरने के करीब जाकर एक चट्टान पर बैठ गया.

रिया बोली “आप क्या यही बैठे रहेगे. कही घूमेगे नही.”

मैं बोला “हम थोड़ी देर यही बैठ कर बात करते है. फिर जहाँ तुम्हारी मर्ज़ी हो, वहाँ चलेगे.”

रिया बोली “वैसे भी मुझे फालतू मे घूमने की आदत नही है. मुझे तो यही अच्छा लग रहा है.”

ये कहकर वो मुझे से सट कर बैठ गयी. उसके कोमल शरीर की छुअन के अहसास से ही मेरी धड़कने बढ़ गयी. मैंने अपनी धड़कनो पर काबू करने के लिए अपना ध्यान इस तरफ से हटाते हुए रिया से कहा.

मैं बोला “तुम बहुत सुंदर हो और इन कपड़ो मे तो तुम और भी सुंदर लग रही हो.”

रिया बोली “थॅंक्स, मैं जानती हूँ कि मैं बहुत सुंदर हूँ, क्योकि हर लड़का मुझे देख कर यही कहता है.”

रिया की ये बात सुनकर मुझे कुछ अच्छा सा नही लगा. लेकिन तभी रिया ने अपनी बात को पूरी करते हुए कहा.

रिया बोली “सच कहूँ तो आपके मूह से ये बात सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा. क्योकि आप मुझे बहुत अच्छे लगते है.”

मैं बोला “मेरे अंदर तो कोई ऐसी बात ही नही है कि, मैं आपको अच्छा लग सकूँ. ना तो मैं मेहुल और राज की तरह स्मार्ट हूँ और ना ही हॅंडसम हूँ.”

रिया बोली “सब मे अपने अपने गुण होते है और आप ये क्यो सोचते है कि आप हॅंडसम और स्मार्ट नही है. मुझे तो आप हॅंडसम और स्मार्ट दोनो लगते हो. मगर इन सब से बढ़कर जो बात मुझे आपकी पसंद आई है, वो है आपकी सादगी.”

मैं बोला “क्या तुम्हारा कोई बाय्फ्रेंड है.”

रिया बोली “नही मेरा कोई बाय्फ्रेंड नही है.”

मैं बोला “तुम तो इतनी अड्वॅन्स्ड हो, फिर भी तुम्हारा कोई बाय्फ्रेंड नही है.”

रिया बोली “अड्वॅन्स्ड होने का ये मतलब तो नही कि, मैं किसी भी लड़के को अपना बाय्फ्रेंड बना लूँ. मैं एक मेट्रो सिटी मे रहती हूँ और वहाँ लड़के हो या लड़की सब कपड़े की तरह बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड बदलते रहते है. प्यार का कोई मतलब ही नही समझता. सब सिर्फ़ सेक्स के लिए उतावले रहते है.”

मैं बोला “क्या सेक्स करना बुरी बात है.”

रिया बोली “सेक्स करना बुरी बात नही है. लेकिन यदि सेक्स के लिए ही बाय्फ्रेंड बनाना है तो, फिर सेक्स को पूरा करने के ओर भी काई रास्ते है. मैं सिर्फ़ सेक्स के लिए कोई ऐसा कदम उठाना नही चाहती, जिस से कल मेरे लिए कोई परेशानी खड़ी हो या फिर मुझे ऐसा करने के लिए पछतावा हो.”

मैंने पूछा “क्या तुमने कभी किसी के साथ सेक्स किया है.”

रिया बोली “नही, मैंने कभी सेक्स नही किया.”
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09-09-2020, 12:46 PM,
#34
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
रिया का ये झूठ सुन कर मैं मन ही मन मुस्कुरा दिया और फिर मैंने उस से इस बारे मे कोई ऑर बात करना ठीक नही समझा और उस से कहा.

मैं बोला “चलो हम भी थोड़ा घूम कर आते है.”

ये कहते हुए मैं उठ कर खड़ा हो गया. रिया ने मुझे खड़ा होते देखा तो, अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया. मैंने उसका हाथ थाम लिया और वो भी मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी हो गयी.

फिर हम एक दूसरे का हाथ थामे, उस तरफ टहलने चले गये, जिस तरफ मेहुल और शिल्पा टहलने गये थे. हम दोनो प्रक्रुति की सुंदरता का नज़ारा देखते हुए आगे बड़े जा रहे थे, तभी रिया ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे आगे बढ़ने से रोक दिया. मैंने हैरानी से रिया की तरफ देखा तो, उसने मुझे एक ओर इशारा किया.

मैंने उस ओर देखा तो मेहुल और शिल्पा एक पहाड़ी की आड़ लेकर बैठे थे. शिल्पा मेहुल की गोद मे बैठी थी और दोनो एक दूसरे के होंठो को चूस रहे रहे थे. मुझे ये देख कर अच्छा नही लगा और मैं रिया का हाथ पकड़ कर उसे उधर से दूर ले गया.

रिया बोली “क्या हुआ.? क्या तुम्हे उन दोनो को प्यार करते देख अच्छा नही लगा.”

मैं बोला “जो करना नही है, उसे देखने से क्या फ़ायदा.”

रिया बोली “क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नही है.”

मैं बोला “नही है, तभी तो तुम्हारे साथ घूम रहा हूँ. वरना मेहुल की तरह मैं भी उसके साथ नही घूम रहा होता.”

मेरी बात सुनकर, रिया को हँसी आ गयी और उसने मुझे छेड़ते हुए कहा.

रिया बोली “घूम रहे होते या वही सब कर रहे होते, जो मेहुल कर रहा है.”

मैं बोला “ये सब बातें तो तब की है, जब कोई गर्लफ्रेंड होती. जब गर्लफ्रेंड ही नही है तो, फिर ये सब बात करने का मतलब ही क्या है.”

मेरी बात सुनकर रिया फिर हँसने लगी और मेरी बात का मज़ा लेते हुए कहने लगी.

रिया बोली “चलो कुछ देर के लिए मुझे ही अपनी गर्लफ्रेंड मान लो और अब करो, क्या करते.”

मैं बोला “ये कोई मज़ाक की बात नही है.”

रिया बोली “मैं भी मज़ाक नही कर रही. मैं सच मे ही बोल रही हूँ.”

रिया की बात सुनकर मेरा लिंग जो अभी तक सोया हुआ था, जागने लगा था. लेकिन मैंने मौके की नज़ाकत को समझते हुए खुद को सभाला और उस से कहा.

मैं बोला “यदि तुम सच भी बोल रही हो, तो भी इसका कोई फ़ायदा नही है. क्योकि मैं अपनी 3 बहनों के साथ यहाँ आया हूँ और तुम्हारा भाई भी यही है. ऐसे मे हम कुछ करना भी चाहे तो भी कुछ नही कर सकते.”

रिया बोली “तुम भी अजीब तरह के लड़के हो. एक लड़की तुम्हे खुला आमंत्रण दे रही है और तुम हो कि अपनी बहनों के बारे मे सोच रहे हो.”

मैं बोला “सोचना पड़ता है. मेरी एक ग़लत हरकत मुझे उनकी नज़रों मे जीवन भर के लिए गिरा सकती है या फिर उन्हे ग़लत रास्ते की तरफ ले जा सकती है.”

मेरी बात सुनकर रिया मुझे गौर से देखने लगी और फिर अपनी बात पलटते हुए उसने कहा.

रिया बोली “अरे मैं तो मज़ाक ही कर रही थी. लेकिन इस मज़ाक से ये तो पता चल गया कि, तुम दूसरे लड़को की तरह नही हो. जो मौका मिलते ही चौका मारने से पीछे नही हटते. मुझे तो इस बात का ताज्जुब हो रहा है कि, आज तक किसी लड़की की नज़र तुम पर क्यो नही पड़ी.”

मैं बोला “ऐसी बात नही है. कई लड़कियों की नज़र मुझ पर पड़ी. लेकिन मुझे कोई लड़की पसंद ही नही आई.”

रिया बोली “तुम्हे किस तरह की लड़कियाँ पसंद आती है.”

मैं बोला “तुम्हारी तरह की.”

रिया बोली “लेकिन मैं तो तुमसे बड़ी हूँ, गर्लफ्रेंड तो छोटी होना चाहिए.”

मैं बोला “जब कोई अच्छा लगता है तो, छोटा बड़ा नही देखा जाता.”

रिया बोली “लगता है तुम मुझे पसंद करने लगे हो.”

मैं बोला “शायद.”

रिया बोली “लेकिन तुम तो जानते हो कि, मैं कुछ दिन के लिए ही यहाँ आई हूँ और कुछ दिन बाद वापस अपने घर चली जाउन्गी. फिर ऐसे मे मुझे पसंद करने से तुम्हे क्या फ़ायदा और फिर तुम मेरे बारे मे जानते ही क्या हो.”

मैं बोला “जब कोई अच्छा लगता है तो, ये सोच कर अच्छा नही लगता कि, इस से मुझे क्या फ़ायदा होगा. बल्कि जब कोई अच्छा लगता है तो, वो बिना कुछ सोचे दिल को भा जाता है.”

रिया बोली “तुम्हारी ये बात सही है. लेकिन क्या तुमने ये सोचा है कि, मैं कोई बाय्फ्रेंड क्यो नही बनाती.”

मैं बोला “मैं इसकी वजह जानता हूँ.”

मेरी बात सुनकर रिया सन्न रह गयी और उसने चौुक्ते हुए कहा.

रिया बोली “क्या वजह है.”

मैं बोला “क्योकि तुम और राज एक दूसरे के बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड हो.”

मेरी इस बात को सुनकर रिया को झटका सा लगा और उसने मुझ पर गुस्से मे भड़कते हुए कहा.

रिया बोली “ये क्या बकवास कर रहे हो. जानते भी हो, तुम ये क्या बोल रहे हो.”

मैं बोला “हां मैं जानता हूँ कि, मैं क्या बोल रहा हूँ. लेकिन मैं वो ही बोल रहा हूँ, जो मैंने देखा है.”

मेरी इस बात को सुनकर, रिया ने कुछ नरम होते हुए मुझसे कहा.

रिया बोली “तुमने ऐसा क्या देख लिया, जो तुम मुझसे इतनी वाहियात बात कह रहे हो.”

मैं बोला “कल मैंने तुम्हे और राज को पार्क मे वो सब करते देखा, जो एक भाई बहन कभी नही करते.”

मेरी बात सुनकर रिया का चेहरा शर्म से झुक गया. वो मुझसे नज़र नही मिला पा रही थी और वही पर एक चट्टान के उपर बैठ गयी. मुझसे उसका इस तरह शर्मिंदा होना नही देखा गया और मैंने उसके हाथ को पकड़ कर, उसके पास बैठते हुए कहा.

मैं बोला “देखो ये बात मैंने तुम्हे शर्मिंदा करने के लिए नही बताई. बल्कि इसलिए बताई है कि, ये सब जानने के बाद भी तुम मुझे अच्छी लगती हो. मैंने जब तुम्हे ये सब करते देखा था. तब ही तुम मुझे पसंद आ गयी थी. लेकिन तब मैं समझता था कि, तुम किसी और की गर्लफ्रेंड हो. इसलिए मैंने तुम्हारे बारे मे जानने की कोशिश नही की थी. मगर जब नितिका के घर मे तुम्हे देखा तो मुझे पता चला कि तुम दोनो भाई बहन हो. तब मुझे लगा कि शायद मैं तुम्हे अपनी जिंदगी मे ला सकता हूँ.”

मेरी बात सुनकर रिया की आँखो मे आसू आ गये और वो रोने लगी. मैं उसे चुप करने की कोशिश करता रहा. मगर वो चुप होने का नाम ही नही ले रही थी. तब मैंने अपने दोनो हाथों से उसका चेहरा पकड़ा और उसके होंठों को उसके होंठों पर रख दिया. मैं बड़े प्यार से उसके होंठो को चूसने लगा.

कुछ देर बाद रिया भी मेरे किस का जबाब देने लगी और उसका रोना रुक गया. उसने अपनी जीभ मेरे मूह मे डाली और उसे गोल गोल घुमाने लगी. थोड़ी देर मैं उसे यूँ ही किस करता रहा और जब देखा कि, वो पूरी तरह से सामान्य हो गयी है तो मैंने उसे किस करना बंद करते हुए कहा.

मैं बोला “देखो तुम्हे मेरी बात पसंद नही आई तो, इसे भूल जाओ. लेकिन अपने आपको इस तरह दुखी मत करो. मैं तुम्हारा रोना नही देख सकता.”

अब तक रिया भी अपने आपको संभाल चुकी थी. उसने मेरी इस बात के जबाब मे उल्टे मेरे से ही सवाल करते हुए कहा.

रिया बोली “मेरे अपने ही भाई के साथ सरिरिक संबंध है. ये बात जानते हुए भी मैं तुम्हे अच्छी लगती हूँ. इसका तो सीधा सा मतलब ये ही हुआ कि, तुम्हे मुझसे नही, मेरे शरीर से प्यार है.”

मैं बोला “शरीर से सिर्फ़ हवस मिटाइ जा सकती है, प्यार नही किया जा सकता. यदि मुझे अपनी हवस ही मिटाना होती तो, उसके लिए मुझे कुछ करने की ज़रूरत नही थी. अभी हम मेहुल को किस करते देख रहे थे. कुछ देर उधर हम और खड़े रहते तो तुम वो सब देख कर अपने आपको खुद मेरी बाँहों मे सौप देती. फिर मैं जो चाहता, वो तुम्हारे साथ कर सकता था.”

मेरी बात सुनकर रिया को अहसास हुआ कि, मैं सच ही कह रहा हूँ. क्योकि उसने खुद ही मुझसे कहा था कि, कुछ देर के लिए तुम मुझे अपनी गर्लफ्रेंड समझो. ये बात उसने मज़ाक मे नही बल्कि सच मे कही थी और इसकी सच्चाई वो खुद भी जानती थी. इसलिए उसने मुझसे कहा.

रिया बोली “क्या तुम ये जानना नही चाहोगे कि, राज के साथ मेरे ये संबंध क्यो बने.”

मैं बोला “जानना तो चाहता हूँ. मगर सिर्फ़ इसलिए कि ऐसे संबध बनने का कारण जानना चाहता हूँ. इसलिए नही कि मुझे तुम्हारी कोई सफाई चाहिए हो.”

मेरी बात सुनकर रिया कुछ कहने ही वाली थी कि, तभी उसे निमी और नितिका आते हुए दिखाई दिए और उसने मुझसे कहा.

रिया बोली “निमी और नितिका आ रहे है. हम इस बारे मे बाद मे बात करेगे.”

तब तक निमी और नितिका पास आ चुके थे. हमें बैठा देख कर नितिका ने कहा.

नितिका बोली “अरे आप लोग यहीं बैठे हो और हम लोग कहाँ कहाँ घूम कर आ गये.”

मैं बोला “रिया को कहीं जाना ही नही था, इसलिए हम लोग यही बैठ कर बातें करने लगे. लेकिन बाकी के लोग कहाँ है. क्या अभी तक कोई वापस नही आया.”

नितिका बोली “कमल और अमि तो वो पिछे आ रहे है. हां कीर्ति और राज शायद ज़्यादा दूर निकल गये है.”

मैं बोला “ठीक है, आप कीर्ति को कॉल करके वापस आने को बोलो, तब तक मैं मेहुल को कॉल कर देता हूँ.”

ये सुनकर नितिका कीर्ति को कॉल करने लगती है और मैं मेहुल को कॉल करके वापस आने को बोलता हूँ. कुछ देर बाद मेहुल और शिल्पा आ जाते है. मगर कीर्ति और राज का कोई पता नही रहता.

मैं नितिका से फिर से उन्हे कॉल लगाने को कहता हूँ तो, नितिका कीर्ति को और रिया राज को कॉल लगाने लगती है. मगर तभी हमें कीर्ति और राज, एक दूसरे का हाथ पकड़ कर आते हुए नज़र आ जाते है.

राज और कीर्ति को ऐसे देख कर, मुझे कीर्ति पर बहुत गुस्सा आ रहा था. लेकिन सबके सामने मैं अपने गुस्से को छिपाते हुए, सब से कॅंप मे चलने के लिए बोलता हूँ और मैं भी उठ कर उस तरफ चल देता हूँ.
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09-09-2020, 12:46 PM,
#35
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
सब लोग कॅंप मे पहुच कर कुछ देर आराम से बैठ कर यहाँ वहाँ की बातें करने लगते है. कुछ देर यू बातें करते रहने के बाद, मेहुल ने सब से कहा.

मेहुल बोला “जो जो यहाँ पर नहाने के लिए कपड़े लेकर आया है, वो मेरे साथ चले और जो कपड़े नही लाया है, वो चाहे तो यही रुके या फिर हम लोगों को नहाते देखने के लिए साथ चल चले.”

मेहुल की बात सुनकर कीर्ति और राज को छोड़कर सभी अपने कपड़े निकालने लगते है. लेकिन राज और कीर्ति अपने कपड़े नही निकल रहे थे. उन्हे इस तरह बैठ देख कर, मैंने उन से कहा.

मैं बोला “क्या तुम लोग नहाने के लिए अपने कपड़े नही लाए हो.”

कीर्ति बोली “मैं तो कपड़े लाई हूँ. लेकिन राज अपने कपड़े नही लाया है. इसलिए मैं राज का साथ देने के लिए यही रुक रही हूँ.”

कीर्ति की बात सुनकर मुझे उस पर फिर से बहुत गुस्सा आया. मगर इस बार भी मुझे अपना गुस्सा पीना पड़ गया और मैं चुप चाप अपने कपड़े निकालने लगा. जब सबने अपने कपड़े निकाल लिए तो, रिया ने कहा.

रिया बोली “अब सब लड़के बाहर जाओ, हम कपड़े बदल कर आते है.”

रिया की बात सुनकर, सभी लड़के बाहर आ गये और अपने कपड़े बदलने लगे. कुछ देर बाद सारी लड़किया अपने अपने स्विम्मिंग सूट पहन कर बाहर आ गयी. सभी लड़कियाँ स्वीमिंग सूट मे सभी कमाल की लग रही थी.

लेकिन मेरी नज़र तो सिर्फ़ रिया की तरफ ही थी. उसका स्वीमिंग सूट टू पीस मे था. जिसमे वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी. उसे देख कर मुझे मेरे लिंग मे कंपन सा महसूस हुआ और मैं उसे देखता रह गया.

वही रिया मेरी ऐसी हालत देख कर मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और धीरे से मेरे कान मे कहा.

रिया बोली “अपने आपको संभालो, सब तुम्हारी ही तरफ देख रहे है.”

उसकी बात सुनकर मैंने अमि निमी का हाथ पकड़ा और उन्हे झरने की तरफ ले जाने लगा. तभी निमी की दूसरी तरफ नितिका आ गयी और उसने उसका दूसरा हाथ पकड़ लिया. शायद वो मेरे साथ कुछ समय बिताना चाहती थी. लेकिन उसकी देखा देखी रिया भी आ गयी और उसने अमि का दूसरा हाथ पकड़ लिया.

अब हम पाँचो साथ साथ झरने के पानी मे उतरे. मेहुल तो शिल्पा के साथ पानी मे मस्ती करने मे लगा हुआ था. वो उसे अपनी गोद मे उठाता और पानी मे छोड़ देता. शिल्पा उठती और जैसे ही भागने की कोशिश करती वो उसे फिर पकड़ लेता और उठा कर फिर पानी मे छोड़ देता. ये दृश्य देख कर सबको मज़ा आ रहा था. मगर असली मज़ा तो मेहुल लूट रहा था. क्योकि ये सब करने मे कभी वो उसके बूब्स मसल रहा था तो कभी उसकी गान्ड को अपने अंडरवेर मे तंबू गाढ़े लंड से चिपका कर दबा लेता था और फिर उसे अपने उपर लिए पानी मे कूद जाता था.

कुछ देर सब उनकी मस्ती देखते रहे.

फिर अमि बोली "भैया मुझे स्विम्मिंग सीखना है."

तो फिर मैंने उसे अपने दोनो हाथो का सहारा दिया और उसे हाथ पैर चलाने को कहा और जब वो हाथ पैर चलाने लगती तो मैं उसके नीचे से हाथ अलग कर देता मगर मेरे हाथ अलग करते ही वो हाथ पैर चलाना बंद कर देती और बुकबुकने लगती.

तब रिया बोली "देखो अमि एक बार मैं करके दिखाती हूँ फिर तुम मेरे जैसा करना."

ये कहकर रिया ने मेरी तरफ इशारा किया तो मैंने उसे अपने दोनो हाथो पे ले लिया.

मेरा इक हाथ उसके पेट पर था और दूसरा उसकी जाँघो के नीचे. अब वो अमि को हाथ पैर चलाना बता रही थी पर उसके बदन के अहसास से मेरा लिंग पानी के अंदर ही तन गया था. पर मैं कमर के उपर तक था पानी के अंदर था, इसलिए वो किसी को नज़र नही आ रहा था. मगर हाथ चलाते चलाते अचानक रिया का हाथ मेरे लिंग से टकरा जाता है और वो हाथ चलना रोक कर खड़ी हो जाती है.

फिर अमि से बोलती है "अब तुम चलाओ हाथ पैर और जब तुम्हे लगने लगे कि तुम्हे छोड़ देना चाहिए तब तुम बोल देना तो हम छोड़ देगे."

ये कहकर वो फिर से अमि को हाथो मे लेने को बोलती है तो मैं फिर उसे अपने हाथों मे ले लेता हूँ और वो फिर से हाथ पैर चलाने लगती है.

उधर निमी भी अमि के जैसे स्विम्मिंग सीखने की ज़िद करती है तो कमल और नितिका उसे दूसरी तरफ ले जाकर इसी तरह सिखाने लगते है.

इधर रिया मेरे पास खड़ी रहती है और उसे ना जाने क्या सूझती है कि वो अंडरवेर के उपर से मेरे लिंग को सहलाने लगती है और उसकी इस हरकत से जहाँ मेरा लिंग फडफडाने लगता है वही मेरे हाथ भी काँपने लगते है और फिर अचानक वो मेरी अंडरवेर के अंदर हाथ डालकर मेरे लिंग को मसल्ने लगती है. हम दोनो गहरे पानी मे थे इसलिए कोई उसकी हरकत देख नही सकता था.

मैं अपना ध्यान बटाने के लिए अमि से बतियाने लगता हूँ मगर रिया अपने हाथो से मेरे लिंग की चॅम्डी को उपर नीचे करने लगती है और धीरे धीरे रफ़्तार बढ़ाती जाती है और मैं उसकी इस हरकत से अपना नियत्रण खोने लगता हूँ.

तब रिया अमि से बोलती है "अब स्विम्मिंग बहुत हो गयी. अब मैं तुम्हे पानी मे डुबकी लगा कर दिखाती हूँ."

ये कह कर वो अमि को हम से थोड़ा दूर खड़ा कर देती है और कहती है देखना मैं कितनी देर पानी के अंदर रहती हूँ. फिर एक दम से वो पानी मे डुबकी लगा लेती है और अंदर जाकर मेरी अंडरवेर को नीचे खिचकर मेरा लिंग अपने हाथ मे लेकर उसे उपर नीचे करने लगती है. उसकी इस हरकत से मैं अपने आपको संभाल नही पाता और मेरा हाथ अपने आप उसके बूब्स पर चला जाता है और मैं उसके कोमल कोमल बूब्स मसल्ने लगता हूँ.

कुछ देर बाद रिया मेरा हाथ हटाते हुए वापस पानी के उपर आ जाती है मगर अब भी वो मेरे लिंग को अपने हाथो से मसल रही होती है. वो अमि से कहती है अब तुम टाइम देखो कि मैं कितनी देर तक पानी मे रहती हूँ और मुझसे कहती है तुम पानी के अंदर मेरा हाथ पकड़े रहना. ये कहकर वो फिर पानी मे घुस कर मेरे लिंग को अपने मूह मे ले लेती है. मुझे अब मज़ा आने लगता है. वो पूरी ताक़त से मेरे लिंग को चूस रही थी और अपने हाथों से उसकी चमड़ी को उपर नीचे करने लगती है और फिर अचानक मेरे लिंग को अपने मूह मे भर कर चूसने लगती है. मैं भी उसके बूब्स को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगता हूँ. वो मेरे लिंग को पागलो की तरह कभी हाथों से मसल रही थी तो कभी मूह मे लेकर उसे चूस रही थी. उसके मूह और जीभ के कोमल स्पर्श से मेरा लिंग विकराल रूप ले चुका था और मैं मदहोशी की हालत मे बस उसके बूब्स ही दबाए जा रहा था. ये सिलसिला लगभग 3 मिनिट चलता है और वो फिर पानी से निकलती है.

अमि कहती है अभी 3 मिनिट हुआ. वो तेज तेज सांस खिचती है और बोलती है अबकी बार कम से कम 5 मिनिट होगा. और वो फिर पानी के अंदर जाकर पहले वो मेरे लिंग को अपने होंठो से अच्छी तेज़ी से उपर नीचे करती है और मैं उसके बूब्स मसलता हूँ. कुछ देर बाद वो मेरे लिंग को फिर से अपने मूह मे लेकर तेज़ी से अंदर बाहर करने लगती है. उसके ऐसा करने से मैं बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो जाता हूँ और उसका सर को अपने लिंग पर दबाने लगता हूँ. मेरा लिंग झटके खाने लगता है और वो समझ जाती है कि मैं छूटने वाला हूँ. इसलिए वो तेज़ी से लिंग को अपने मूह के अंदर बाहर करने लगती है. मैं अब अपने चरम पर रहता हूँ और उसके सर को अपने हाथों से पूरा अपने लिंग पर दबा देता हूँ और मेरा लिंग उसके मूह मे ही पिचकारिया छोड़ने लगता है. मेरे लिंग से 6-7 पिचकारिया निकलती है और मेरा सारा माल उसके गले के नीच उतरने लगता है और ढीला पड़ कर उसे छोड़ देता हूँ.

मेरे हाथो से छूटते ही वो गुदगुदाते हुए पानी के उपर आ जाती है. उसके मूह मे मेरे माल के साथ साथ कुछ पानी भी भर जाता है. मैं उसकी पीठ थपथपाता हूँ.

रिया अपने को शांत करते हुए अमि से पूछती है "अब कितना टाइम हुआ है."

अमि बोली "पूरे 6 मिनिट हो गये है."

इसके बाद अमि ने कहा "भैया अब भूक लग रही है"

मैं बोला "ठीक है. चलो और कपड़े पहन लो फिर हम खाना खाते है."

ये कह कर मैंने मेहुल और नितिका लोगों को भी पानी से बाहर निकलने को बोला और फिर सब वापस कॅंप पर आ गये. कॅंप मे कीर्ति और राज नही थे. ये देख कर मैंने जो अभी तक रिया के साथ मज़ा किया था सब भूल गया और कीर्ति के बारे मे सोचने लगा कि आख़िर ये राज के साथ क्यो चिपकी हुई है. सबने कपड़े पहने और फिर खाने की तैयारी करने लगे मगर अब मेरा मूड कुछ भी खाने का नही था.

मैं रिया से बोला "ये राज और कीर्ति कहाँ निकल गये."

रिया बोली "जाएँगे कहाँ, होंगे यही कही या फिर अकेले मे मस्ती कर रहे होंगे. जैसे हम लोग कर रहे थे."

रिया की बात सुनकर मुझे झटका लगा और डर भी लग रहा था कि कही अकेले मे ये दोनो कोई हरकत ना कर रहे हो. अब मुझे वहाँ रुकना ज़रा भी अच्छा नही लग रहा था.

मैंने रिया से कहा "उन्हे कॉल करो कि सब खाने के लिए उनका वेट कर रहे है."

रिया शायद मेरे डर को समझ रही थी बोली "डरते क्यो हो. वो जो भी कर रहे होंगे. उसे पूरा करते ही वो खुद ही यहाँ आ जाएगे. तुम उनके पीछे क्यो पड़े हो. उनको भी कुछ मज़ा करने दो. आख़िर हम मज़ा करने ही तो यहा आए है ना.

मैं कुछ नही बोला मगर तभी मेहुल आ गया. उसने कीर्ति और राज को पूछा और जब उसे पता चला कि वो यहाँ कही नही है तो उसने कीर्ति को कॉल किया और उसे वापस आने को कहा. लगभग 10 मिनिट के बाद कीर्ति और राज आ गये. फिर सबने खाना खाया और फिर सब उसके बाद घर के लिए निकले. इस बीच रिया ने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर लिया और रात को कॉल करने को कहा.

लौटते समय सबके चेहरे पर रौनक थी सिवाय मेरे और नितिका को छोड़ कर. मैं तो आज की कीर्ति की हरकतों की वजह से परेशान था की वो राज को कुछ ज़्यादा ही भाव दे रही थी. वही नितिका को इस बात का दुख था कि उसे मेरे साथ ज़रा भी समय बिताने का मौका नही मिला और इसके लिए वो रिया को दोषी मान रही थी. मुझे नितिका के साथ पूरी सहानुभूति थी मगर मैं उसके लिए कुछ कर नही सकता. क्योकि मैं तो रिया को पसंद कर रहा था.

खैर मेहुल तो अपनी बाइक से आया था तो वो अपनी बाइक से ही घर निकल गया था. हम लोगों ने नितिका लोगों को उनके घर छोड़ा और फिर हम अपने घर आ गये. घर आते ही अमि निमी दौड़ कर छोटी मा के पास गयी और उन्हे अपनी पिक्निक की बाते बताने लगी. कीर्ति भी वही थी.

मैं उन सब को उधर ही छोड़ कर अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर मैं लेट गया और आज कीर्ति के राज के साथ घूमने की बात सोचने लगा. ये सोचते सोचते मेरा दिमाग़ फटने लगा और फिर मैं सो गया.

शाम को 7 बजे कीर्ति ने आकर मुझे जगाया. मैंने कीर्ति को देखा तो वो बहुत ज़्यादा खुश नज़र आ रही थी जिस से मेरा मूड और भी ज़्यादा खराब हो गया. मैं उस से बिना कुछ बोले मूह हाथ धोने चला गया. मैं सोच रहा था कि मेरे ऐसा करने से वो मेरे कमरे से चली जाएगी पर जब मैं मूह हाथ धोकर वापस आया तो वो कमरे मे ही बैठी थी और मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी.

मुझसे उसका ये मुस्कुराना नही देखा गया और मैं उस से बिना कुछ नही बोले तैयार होता रहा और फिर तैयार होने के बाद उसे अपने ही कमरे मे छोड़ कर नीचे आ गया.

नीचे आकर मैंने छोटी माँ से कहा कि मैं मेहुल के घर जा रहा हूँ और खाना भी वही खाकर आउगा. फिर मैं अपनी बाइक उठा कर मेहुल के घर चला गया. मेहुल के घर पहुच कर मैंने डोरबेल बजाई तो दरवाजा मेहुल के पापा ने खोला.

मैं बोला "नमस्ते अंकल जी."

अंकल बोले "नमस्ते पुन्नू बेटा. आओ, अंदर आओ. मेहुल अपने कमरे मे ही है."

मैंने अंदर जाकर आंटी को नमस्ते किया.

आंटी बोली "आज इतनी समय कैसे आ गया. सब ठीक तो है ना."

मैं बोला "आंटी सब ठीक है. मैं बस मेहुल से मिलने आया हूँ और अब खाना खाकर ही जाउन्गा."

आंटी बोली "ठीक है तू मेहुल के पास बैठ. मैं अभी तेरे लिए चाय बनाती हू."

मैं बोला "जी आंटी."

ये कह कर मैं मेहुल के कमरे की तरफ जाने लगा तभी अंकल ने मुझे रोक लिया.

अंकल बोले "पुन्नू बेटा, कभी हमारे पास भी बैठ लिया करो. तुम तो बस अपनी आंटी और मेहुल से मिल कर ही चले जाते हो. जैसे हम तुम्हारे कुछ लगते ही ना हो.

मैं अंकल के पास बैठते हुए बोला "ऐसी बात नही है अंकल. मैं ज़्यादातर दिन मे ही आता हूँ और आप उस टाइम ऑफीस मे ही रहते है. आज शाम को आया हूँ तो आप से मिल पाया हूँ."

अंकल बोले "बात तो तुम्हारी सही है पर कभी कभी हम से भी मिलने आ जाया करो.

हम भी तो तुम्हे मेहुल से कम प्यार नही करते."

मैं बोला "ठीक है अंकल. आगे से ध्यान रखुगा."

तभी आंटी चाय देकर चली गई और मैं अंकल के साथ चाय पीने लगा.

अंकल बोले "बेटा मुझे तुमसे ज़रूरी बात करना है पर वो बात मैं घर मे करना नही चाहता. क्या तुम कल ऑफीस आ सकते हो."

मैं बोला "जी अंकल आ जाउन्गा."

अंकल बोले "ठीक है अब तुम मेहुल के पास जाकर बैठो."

तब तक मेरी चाय भी ख़तम हो चुकी थी और मैं उठ कर मेहुल के कमरे मे चला गया. मेहुल बेड पर आराम से लेटा मोबाइल पर बात कर रहा था. उसकी बात सुन कर मैं समझ गया कि वो शिल्पा से बात कर रहा है. उसने मुझे बैठने का इशारा किया और मैं बिना कुछ कहे उसके पास ही लेट गया और उसकी बातें सुनने लगा.
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09-09-2020, 12:50 PM,
#36
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेहुल मोबाइल को स्पीकर मोड़ पर डाल देता है और मुझे उन दोनो की बातें सुनाई देने लगती है.

मेहुल बोला "मुझे नही लगता कि तू जैसा कह रही है, ऐसा कुछ उन दोनो के बीच मे हुआ है."

शिल्पा बोली "मैं दावे के साथ कहती हू कि कुछ तो हुआ है. तुमने उस समय पुन्नू के चेहरे के भाव देखे होते तो तुम्हे भी ऐसा ही लगता."

मेहुल बोला "पुन्नू अमि निमी के सामने ऐसा क्यों करेगा."

शिल्पा बोली "अमि निमी तो बहुत दूर थी और उनकी तरफ मेहुल की पीठ थी. सबकी नज़र तो रिया पर थी, जो कि पानी के अंदर थी. उसके पानी के अंदर होने के कारण कोई समझ नही पाया कि, वो पानी के अंदर क्या खेल खेल रही है. सब तो यही समझ रहे थे कि वो पानी मे डुबकी लगाए हुए है. लेकिन पुन्नू के शरीर का अकड़ना, उसके दोनो हाथो का पानी के अंदर कुछ ढूँढना और फिर चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि रिया पानी के अंदर उसके लिंग से खेल रही है."

मेहुल बोला "यार ये रिया तो कमाल की लड़की है. उसने इतने लोगो के सामने वो सब करके दिखा दिया जो मैं तुम्हारे साथ अकेले मे भी नही कर सका. मुझे अपने दूध तक नही पीने दिया. बस होंठ चूस कर ही रह गया. आख़िर कब तक मुझे तडपाओगी. अरे कुछ नही तो कम से कम अपना दूध पीने का मौका ही देदो. "

शिल्पा बोला "तुम्हे ये मौका अभी नही मिलेगा. अभी तो तुम बस मेरे होंठो का रस चूसो और दूध दबाओ. वैसे भी तुमने मेरे दूध दबा दबा कर बड़े कर दिए है. "

मेहुल बोला "जान बड़े तो मैने उन्हे पीने के लिए ही किया था पर तुम हो कि उन्हे पीने ही नही देती हो."

शिल्पा बोली "जानू आग तो मेरे दिल मे भी लगी है पर मुझे डर लगता है."

मेहुल बोला "प्यार करने वाले डरा नही करते और एक दिन मैं तुम्हे मन भर के प्यार करना चाहता हूँ. वो भी बिना कपड़ो के."

शिल्पा बोली "अब तुम फिर शुरू हो गये. मैं अब रखती हूँ. रात को खाने के बाद बात करेंगे. बाइ जानू."

मेहुल बोला "बाइ बाइ जान."

इसके बाद मेहुल मोबाइल काट देता है और मेरी तरफ देख कर बोलता है.

मेहुल बोला "भाई अब बता. क्या बात है. तू इतना परेशान सा क्यों दिख रहा है."

मैं बोला "ये शिल्पा मेरे बारे मे क्या बोल रही थी."

मेहुल बोला "यही कि रिया और तुम्हारे बीच मे कुछ चल रहा है और आज पानी के अंदर वो तुम्हारे लिंग से खेल रही थी. लेकिन तू इस बात से तो परेशान नही है. तेरी परेशानी की वजह कुछ और है."

मैं बोला "मेरी परेशानी की वजह राज है."

मेहुल बोला "बात क्या है ज़रा खुल कर बता. क्या राज तेरे और रिया के बीच मे अपनी टाँग अड़ा रहा है. यदि ऐसी कोई बात है तो, तू चिंता मत कर, मैं कल ही साले के हाथ पैर तुडवा देता हूँ. हाथ पैर टूटेगे तो, साला पड़ा रहेगा किसी हॉस्पिटल मे, और तू रिया के साथ मौज करते रहना."

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. वो साला जब से आया है बस कीर्ति के पीछे पड़ा हुआ है. मैने कीर्ति को समझाया भी मगर वो भी उसके साथ ही रहती है. मैं क्या करूँ कुछ समझ मे नही आता."

मेहुल बोला "हाँ यार आज सुबह कीर्ति ने ही मुझसे ये ग्रूप बना कर घूम ने वाली बात की थी, और बताया था कि किस किस का ग्रूप बनाना है. मैं तो समझा वो तुझे और रिया को पास लाने के लिए ये सब कर रही है, इसलिए मैने इस बात पर ज़्यादा गौर नही किया. मगर बाद मे मैने गौर किया कि कीर्ति राज के साथ कुछ ज़्यादा ही घुल मिलने की कोशिश कर रही थी, और वो राज भी सारे टाइम कीर्ति से ही चिपका रहा. मगर तू चिंता मत कर इसका भी वही इलाज है कि इसे हॉस्पिटल पहुचा दिया जाए."

मैं बोला "इसमे तो पुलिस केस बन सकता है यार, और यदि राज को पता चल गया कि ये सब हम ने करवाया है तो लेने के देने पड़ जाएँगे."

मेहुल बोला "तू डरता बहुत है यार. ऐसा कुछ नही होगा. हमारा काम भी हो जाएगा और हमारा नाम भी नही आएगा. तू बस हाँ बोल."

मैं बोला "तुझे जो ठीक लगे तू कर. बस इस राज नाम के लड़के को कीर्ति से दूर कर दे."

मेहुल बोला "ठीक है ये काम हो जाएगा. साले को पता तो चले कि कीर्ति पर नज़र डालने का अंजाम होता है."

मैं बोला "तू ये काम किस से करवाएगा."

मेहुल बोला "अरे बहुत से गुंडे टाइप के लड़के है मेरे पास. जो मेरे एक इशारे पर अपनी जान दे भी सकते है और किसी की जान ले भी सकते है."

मैं बोला "वो तो ठीक है पर उन्हे समझा देना कि सिर्फ़ उसके हाथ पैर बस तोड़ना है, इसके सिवा उसे कही और चोट नही पहुचाना है."

मेहुल बोला "अब तू मुझे मत समझा और इस बात को भूल जा. ये बता रिया ने सच मे वो सब किया था या फिर वो शिल्पा का वहम है."

मैं बोला "हाँ वो सब हुआ था."

मेहुल बोला "ये सब ऐसे अचानक कैसे हो सकता है."

तब मैने पिक्निक मे रिया से हुई सारी बातें बता दी मगर उसे राज और रिया के सेक्स संबंध के बारे मे कुछ नही बताया.

मेहुल बोला "भाई ये लड़की तो बहुत फास्ट है पर पता नही उसे तुझमे क्या नज़र आया, जो पहली बार मे ही तेरे साथ इतना आगे बढ़ गयी. मुझे तो ये बहुत खेली खाई लड़की लगती है. ज़रा बच के रहना."

मैं बोला "यार वो कुछ दिन के लिए ही यहाँ आई है फिर वापस चली जाएगी. इसलिए उसके बारे मे ज़्यादा कुछ सोचना बेकार है."

मेहुल बोला "कुछ भी कहो यार ये लड़की पटाखा है. तू एक बार तो इस पटाखे को चला कर देख ले."

मैं बोला "मुझे पटाखे चलाने का कोई शौक नही है. मैं तो बस उसे अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहता हू."

मेहुल बोला "अबे तो गर्लफ्रेंड बना कर उसकी पूजा करेगा क्या.? तब भी तो वही सब करेगा ना जो अभी मैं करने को कह रहा हूँ."

मैं बोला "देख मुझे जो करना है, मैं कर लुगा. तू बेकार की सलाह देना बंद कर."

मेहुल बोला "ओके भाई.

इसके बाद मेरी उस से इधर उधर की बातें होती रही. फिर आंटी खाने के लिए बोलने आई तो मैने सबके साथ बैठ कर खाना खाया. खाने के बाद मेरी उन लोगों से कुछ देर तक बात होती रही. फिर मैने उन सबसे विदा ली और घर वापस आ गया.

मैं घर पहुचा तो सब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे. मैने प्यार से अमि निमी के सर पर हाथ फेरा और फिर अपने कमरे मे चला गया. कमरे मे आकर मैं लेट गया और टीवी चालू कर टीवी देखने लगा. फिर 11 बजे कीर्ति उपर आई. उसने मेरे कमरे की तरफ देखा और फिर अपने कमरे मे चली गयी. कुछ देर बाद वो नाइट सूट पहन कर मेरे कमरे मे आई और आकर मेरे बेड पर टोनो टांगे फैला कर बैठ गयी. मगर जब मैं बिना उसकी तरफ ध्यान दिए टीवी ही देखता रहा. तब उसने मेरे हाथ से टीवी का रिमोट छीन कर टीवी बंद कर दी.

कीर्ति बोली "क्या बात है. आज तू मुझसे बात क्यों नही कर रहा है. क्या हो गया है तुझे."

मैं बोला "मुझे तुझसे कोई बात नही करनी. तू चुप चाप सो जा और मुझे टीवी देखने दे."

कीर्ति बोली "टीवी देखने दे तो ऐसे बोल रहा है, जैसे पढ़ाई करने को बोल रहा हो."

मैं अपना गुस्सा शांत करते हुए बोला "देख मेरा मूड खराब है. मुझे और परेशान मत कर."

कीर्ति बोली "ठीक है तुझे मुझसे बात नही करना तो, मैं तुझे परेशान नही करूगी."

इतना कह कर कीर्ति मेरी तरफ पीठ करके लेट जाती है और अपनी आँख बंद कर लेती है. मैं समझता हूँ कि वो सोने की कोशिश कर रही है और फिर मैं टीवी चालू कर टीवी देखने लगता हूँ. मगर तभी मुझे अहसास होता कि शायद कीर्ति रो रही है. मैं टीवी बंद करके उसकी तरफ देखता हूँ तो वो सच मे रो रही होती है. उसे रोते देख मेरा सारा गुस्सा ख़तम हो जाता है.

मैं उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहता हूँ "सॉरी. मुझसे ग़लती हुई. मुझे तेरे साथ ऐसा नही करना चाहिए था. देख मैं सॉरी बोल रहा हूँ और तुझसे बात भी कर रहा हूँ. तो अब तू भी अपना रोना बंद कर दे."

मगर उसने रोना बंद नही किया और रोते रोते ही बोली "ये भी कोई बात हुई. जब दिल किया रुला दिया और जब दिल किया चुप करा लिया. जब मूड हुआ बात की और जब मूड नही हुआ बात नही की. क्या हर बात पर तुम्हारी ही मर्ज़ी चलेगी. क्या मैं कुछ भी नही हू."

मैं उसे मनाते हुए बोला "कौन कहता है कि तू कुछ नही है. तू तो जान है मेरी पर तुझे भी तो समझना चाहिए ना कि अभी मेरा मूड सही नही है तो मुझसे कोई बात ना करे , पर तुझे तो हर बात पर मज़ाक सूझ रहा था. फिर भी मैने तुझ पर कोई गुस्सा नही किया. इसके बाद भी तू रोने लगी. मैने तो तुझे कुछ भी नही कहा."

वो रोते हुए ही बोली "हाँ मैं सब समझती हू कि तुम्हारा मूड क्यों खराब है. मैं पिक्निक पर राज के साथ घूम रही थी इसलिए तुम्हारा मूड खराब है."

मैने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया और उसके आँसू पोंछते हुए बोला "सॉरी मुझसे ग़लती हो गयी. अब तुझे जिसके साथ भी घूमना है तू घूम, मैं अपना मूड खराब नही करूगा."

अब कीर्ति का रोना बढ़ हो चुका था. वह उठ कर बैठ गयी और बोली "हाँ मैं किसी के साथ भी घूमती रहूं तुम्हे क्या फ़र्क पड़ता है. मैं होती ही कौन हू तुम्हारी."

मैं बोला "यार तू किस टाइप की लड़की है. यदि मैं किसी के साथ तेरे घूम ने को लेकर मूड खराब करता हूँ तो उस मे भी तुझे परेशानी है और यदि मूड खराब नही करता हूँ तो उसमे भी तुझे परेशानी है. ऐसे मे मैं करूँ भी तो क्या करूँ. तू ही बता."

कीर्ति बोली "कुछ मत करो सिर्फ़ बात करो. यदि राज की बात को लेकर तुम्हारा मूड खराब था तो तुम मुझसे बोल सकते थे. मैं तो अपनी कोई बात तुमसे नही छिपाती."

मैं बोला "अब तुझे राज पसंद आ रहा है तो मैं तुझे उसके साथ घूम ने से कैसे रोक सकता हूँ."

कीर्ति बोली "तो तुझे क्या लगता है कि, राज के साथ जो मैं इतनी इतनी देर तक घूम रही थी, तो क्या उसके साथ कही छुप कर कुछ ग़लत हरकत कर रही थी."

मैं बोला "मैने तो ऐसा कुछ नही बोला."

कीर्ति बोली "तूने बोला नही पर तेरे अंदर की सोच यही है और इसीलिए तेरा वहाँ से आते ही मूड खराब हो गया और तूने मुझसे बात करना भी बंद कर दिया."

मैं बोला "चल जाने दे. अब तो मेरा मूड ठीक हो गया ना, तो अब इस बात को यही ख़तम कर दे."

कीर्ति बोली "तेरा मूड ठीक हो गया तो इसका मतलब ये तो नही कि तू इस बात को भूल गया कि मैं दिन भर राज के साथ क्या कर रही थी."

मैं बोला "मुझे तुझ पर भरोसा है कि तू कुछ ग़लत नही करेगी. मुझे बस डर इस बात का था कि कही वो राज तेरे साथ कुछ ग़लत ना करे और फिर तेरे उसके साथ यूँ घुल मिल जाने से मेरा डर और बढ़ गया था."

कीर्ति बोली "राज के साथ मैने जो भी किया वो सब एक नाटक था. मैने ही मेहुल को बोला था कि वो घूम ने के लिए इन इन लोगों के ग्रूप बनाए. ताकि तुझे रिया के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय मिल सके. अब यदि मैं राज के साथ ना होती तो जाहिर सी बात है राज रिया के आस पास ही रहता और तू चाह कर भी रिया से कोई बात ना कर पाता."

मैं बोला "तुझे ये सब करने की क्या ज़रूरत थी."

कीर्ति बोली "ज़रूरत थी तभी मैने ऐसा किया. मैं जानती हूँ कि तुझे बहुत दिन बाद कोई लड़की पसंद आई है, इसलिए मैं नही चाहती थी कि तू उसे बिना अपने दिल की बात बताए जाने दे."

मैं बोला "क्या राज ने तुझे प्रपोज़ किया है."

कीर्ति बोली "वो मुझे प्रपोज़ करने की सोचता उस से पहले ही मैने उस से बोल दिया था कि मेरा एक बाय्फ्रेंड है. फिर उसी बाय्फ्रेंड की बात बताते मैं उसे तुम लोगों से दूर रखे रही."

मैं बोला "अब तेरा ये बाय्फ्रेंड कहाँ से आ गया. तेरे दिमाग़ मे ये फालतू की बातें आती कहाँ से है."

कीर्ति बोली "राज को कौन सा यहाँ हमेशा रहना है. जितने दिन वो यहाँ है तब तक मेरा बाय्फ्रेंड बाहर ही रहेगा और जब वो बाहर है तो उस से मिलने का सवाल ही पैदा नही होता."

मैं बोला "तेरे इस नाटक के चक्कर मे तो बेचारे राज के हाथ पैर ही टूट जाते. एक मिंट रुक मुझे एक कॉल करना है."

ये बोल कर मैने मेहुल को कॉल लगाया और उसे सारी बात बताते हुए राज के साथ कुछ भी करने से मना कर दिया.

हमारी बात सुनकर कीर्ति बोली "छि.. तुम लोग राज के हाथ पैर तोड़ने वाले थे."

मैं बोला "अब यदि तुम पर कोई बुरी नज़र डालेगा तो मैं चुप चाप तो देखता नही रह सकता ना. मुझे कुछ तो करना ही पड़ेगा. जो मुझे सही लगा वो ही मैं करने वाला था."

कीर्ति बोली "तुमको उसकी बहन पसंद आई तो ये ठीक बात है पर उसे तुम्हारी बहन पसंद आ गयी तो ये ग़लत बात कैसे हो गयी."

मैं बोला "मैं ये कुछ नही जानता. रिया मुझे मिलती है तो ठीक है. पर यदि रिया मुझे तेरी कीमत पर मिलती है, तो मुझे कोई रिया विया नही चाहिए."

कीर्ति बोली "अरे जैसा तेरा दिल करता है किसी को अपनी गर्लफ्रेंड बनाने का वैसा ही तो मेरा दिल भी करता है किसी को अपने बाय्फ्रेंड बनाने का. इसमे बुराई क्या है."

मैं बोला "इसमे कोई बुराई नही है. तू भी अपना बाय्फ्रेंड बना सकती है मगर वो लड़का शरीफ होना चाहिए. इस राज की तरह सड़क छाप मजनू नही होना चाहिए. यदि तेरी नज़र मे ऐसा कोई लड़का है तो मुझे बता. मैं पहले उसके बारे मे पता करूगा और अगर वो मुझे सही समझ मे आया तो तू उसे बाय्फ्रेंड बना लेना."

कीर्ति हंसते हुए बोली "बाप रे.. क्या कोई ऐसे भी बाय्फ्रेंड बनाता है. अरे बाय्फ्रेंड तो एक नज़र मे दिल को छु जाता है और दिल बिना कुछ सोचे समझे उसको अपने अंदर समा लेता है."

मैं बोला "ठीक है तू जैसे चाहे वैसे अपना बाय्फ्रेंड बना लेना मगर उसे एक बार मुझसे मिलवा ज़रूर देना."

कीर्ति हंसते हुए बोली "ताकि तू उसके हाथ पैर तुडवा दे."

अभी मैं कुछ बोलने ही वाला था कि तभी मेरा मोबाइल बज उठा. किसी नये नंबर से फोन आ रहा था. मैने कॉल उठाया.

मैं बोला "हेलो"

दूसरी तरफ से आवाज़ आई "मैं रिया बोल रही हूँ."

मैं बोला "इतनी रात को क्यों फोन किया. क्या नींद नही आ रही."

रिया बोली "मैं तो कब से फोन करने के लिए बैठी थी मगर ये नितिका की बच्ची सोने का नाम ही नही ले रही थी. अब वो सोई है तो तुम्हे कॉल लगाया है."

मैं बोला "मैं तो कब से तुम्हारे कॉल का वेट कर रहा था फिर सोचा शायद तुम सो गयी होगी इसलिए मैं भी सोने ही वाला था कि तुमहरा फोन आ गया."

रिया बोली "मुझे मिस कर रहे थे ना."

मैं बोला "मिस कर रहा था तभी तो अभी तक जाग रहा हूँ."

मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और मोबाइल रखने का इशारा करने लगी. इधर

रिया बोली "मिस तो मैं भी तुम्हे बहुत कर रही हूँ."

कीर्ति मोबाइल छिनने लगती है तो मैं रिया से कहता हूँ.

मैं बोला "देखो अब रात ज़्यादा हो गयी है और मुझे सुबह स्कूल भी जाना है. क्या हम कल मिल कर अकेले मे बात कर सकते है."

रिया बोली "कितने समय."

मैं बोला "दोपहर को 3 बजे के बाद तुम जब भी फ्री हो मुझे कॉल कर लेना. मैं आ जाउन्गा."

रिया बोली "ठीक है. मैं सही मौका देख कर कॉल लगा दुगी."

मैं बोला "ओके गुड नाइट."

रिया बोली "गुड नाइट."

और फिर मैं कॉल काट के कीर्ति की तरफ द्देखने लगा.

मैं बोला "क्या हरकत थी ये. मुझे उस से बात क्यों नही करने दी."

कीर्ति बोली "ये बात करने का टाइम मेरा है और इस समय तुम सिर्फ़ मुझसे बात करोगे और किसी से नही."

मैं बोला "ये तेरे बात करने का टाइम कैसे हो गया."

कीर्ति बोली "वो ऐसे कि इस टाइम हम दोनो ही फ्री होते है और हम दोनो के सिवा कोई तीसरा नही होता. इसलिए मैने इस टाइम को अपने लिए फिक्स कर लिया है. अब से तुम्हे 11 बजे तक जिस से भी जितनी बात करना है कर लो मगर 11 बजे के बाद सिर्फ़ मुझसे ही बात करोगे. समझ गये ना."

मैं बोला "हाँ समझ गया. पर अब सोने का टाइम भी हो गया है, तो क्यों ना अब सोया जाए."

कीर्ति बोली "नही, अभी मुझे बात करना है. जब तक मेरी बात पूरी नही हो जाती, तब तक तुम नही सो सकते."

मैं बोला "ओके बोलो क्या बोलना है. पूछो क्या पुच्छना है."

कीर्ति बोली "पहले तो ये बोलो कि आज के बाद कभी मुझसे गुस्सा होकर बात करना बंद नही करोगे."

मैं बोला "ओके अब कभी भी ना तो तुम पर गुस्सा करूगा और ना ही बात करना बंद करूगा. अब अपनी अगली बात बोलो."

कीर्ति बोली "दूसरी बात ये कि 11 बजे के बाद का टाइम मैने सिर्फ़ अपने लिए बात करने का टाइम रखा है. इस समय मे तुम किसी से भी बात नही करोगे. फिर चाहे वो रिया ही क्यों ना हो."

मैं बोला "ओके 11 बजे के बाद मैं तुम्हारे सिवा किसी से भी बात नही करूगा. अब खुश."

कीर्ति बोली "हाँ खुश तो मैं हूँ मगर मेरी अभी भी कुछ बातें बाकी है."

मैं बोला "अब जो बातें बाकी है वो हम कल कर लेगे. कुछ बातें कल के लिए भी छोड़ दो और अब सो जाओ."

कीर्ति बोली "ओके तो अब हम सोते है पर पहले मुझे एक गुड नाइट किस दो."

मैं बड़े प्यार से उसके माथे पर एक किस देता हूँ और "गुड नाइट" बोलता हूँ.

वो भी मेरे गाल पर एक किस करती है और "गुड नाइट." बोल कर आँख बंद कर लेती है.

मैं कुछ देर बैठा उसका मासूम सा चेहरा देखता रहता हूँ और सोचता हूँ कि इस लड़की को समझ पाना मुस्किल ही नही नामुमकिन है. ये सोचते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और मैं प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरता हूँ. कुछ देर तक उसके बालों पर हाथ फेरने के बाद मैं उसके माथे पर फिर एक किस करता हूँ और धीरे से गुड नाइट बोल कर मैं भी सो जाता हूँ.
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09-09-2020, 12:50 PM,
#37
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
सुबह मेरी नींद 5:30 बजे खुल जाती है. मैं आँख खोलता हूँ तो कीर्ति पेट के बल सो रही होती है और उसका एक हाथ मेरे सीने पर रखा रहता है. मैं उसका हाथ अलग करने की सोचता हूँ मगर फिर मेरी नज़र उसकी तरफ जाती है तो मुझे उसके चेहरे पर बच्चों सी मुस्कान दिखाई देती है. जैसे कि वह कोई मीठा सपना देख रही हो. ये देख कर मैं उसका हाथ वैसे ही रखे रहने देता हूँ ताकि उसका सपना ना टूटे. मैं फिर से आँख बंद कर के लेट जाता हूँ और उसके हाथ अलग करने का इंतजार करने लगता हूँ मगर उसके हाथ के स्पर्श से मुझे इक अलग ही तरह का सुकून महसूस होता है और मेरी फिर से नींद लग जाती है.

फिर मेरी नींद निमी के जगाने पर 6:30 बजे खुलती है. कीर्ति उठ कर अपने कमरे मे जा चुकी होती है. निमी रो रही होती है.

मैं पूछता हूँ "ये सुबह सुबह तुझे क्या हुआ है. इस तरह क्यों रो रही है."

निमी बोली "मेरे पेट मे दर्द है और मम्मी स्कूल जाने को बोल रही है."

मैं बोला "आज फिर स्कूल जाने के नाम से तेरी नाटक बाजी सुरू हो गयी. चल अब ये नाटक बंद कर और जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जा."

निमी बोली "आज मैं नाटक नही कर रही हूँ भैया. आज सच मे मेरे पेट मे बहुत दर्द है."

तभी अमि आ गयी. मैने उससे पूछा "ये आज स्कूल जाना क्यों नही चाहती है."

अमि बोली "भैया कल ये पिक्निक मे चली गयी थी और फिर उधर से लौटने के बाद भी होमवर्क नही किया है और आज इसे डाँट पड़ेगी, इसलिए ये आज स्कूल जाने से डर रही है."

निमी बोली "नही भैया दीदी झूठ बोल रही है. मेरी मिस तो मुझे कभी गुस्सा नही होती. आज मेरे पेट मे सच मे दर्द हो रहा है."

मैं बोला "देख तुझे स्कूल नही जाना तो मत जा मगर झूठ मत बोल. यदि तू झूठ बोलेगी तो मैं तेरा साथ नही देने वाला. अब सच सच बोल कि तुझे स्कूल क्यों नही जाना."

निमी बोली "दीदी ठीक कह रही है. मैने होमवर्क नही किया है इसलिए मिस मुझ पर बहुत गुस्सा करेगी."

मैं बोला "यदि तेरी मिस तुझ पर गुस्सा ना करे तो, क्या तू स्कूल जाएगी."

निमी बोली "नही भैया वो ज़रूर गुस्सा करेगी. उन्हो ने साफ साफ कहा था कि जो होमवर्क करके नही लाएगा उसे कड़ी सज़ा दी जाएगी."

मैं बोला "तू तैयार हो जा. मैं खुद तेरे साथ चल कर तेरी मिस से बात करूगा. फिर वो तुझे गुस्सा नही करेगी."

मगर निमी नही मानी. वो बोली "आप कुछ भी करो पर मैं आज स्कूल नही जाउन्गी मतलब नही जाउन्गी. आप अभी जाकर मम्मी से कहो कि मुझे स्कूल ना भेजे. इसके सिवा मैं कुछ नही सुनना चाहती."

मैं बोला "ठीक है मेरी माँ. तू स्कूल मत जा. मैं मम्मी से बोल दूँगा पर अब मुझे तो स्कूल के लिए तैयार होने दे."

मेरी बात सुनकर निमी खुशी खुशी अपने कमरे मे चली गयी और मैं फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद मैं स्कूल के लिए तैयार हुआ तभी कीर्ति नाश्ता लेकर आ गयी.

मैं बोला "आज तू क्यों नाश्ता लेकर आई है. क्या चंदा मौसी नही है."

कीर्ति बोली "अगर तुझे मेरा नाश्ता लाना बुरा लगा तो मैं वापस ले जाती हूँ और चंदा मौसी को भेज देती हूँ."

मैं बोला "अरे यार मैने यूँ ही पूछ लिया. तू तो हर वक्त गुस्सा अपनी नाक पर ही रखे रहती है."

ये बोल कर मैं नाश्ता करने लगा और कीर्ति मेरे पास ही बैठ गयी.

कीर्ति बोली "तूने आज रिया से मिलने का टाइम दोपहर के 3 बजे के बाद का क्यों दिया है. तू तो स्कूल से 1 बजे ही आ जाता है."

मैं बोला "तुझे आज ये मेरी जासूसी का करने शौक क्यों लगा है."

कीर्ति बोली "मैं तो ये कल ही पूछना चाहती थी पर तूने मुझे सुला दिया था. अब बता ना, तूने उसे 3 बजे के बाद मिलने को क्यों कहा. क्या उस से पहले तुझे और भी कुछ काम है."

मैं बोला "हाँ मुझे आज मेहुल के पापा से मिलने उनके ऑफीस जाना है. उन्हे मुझसे अकेले मे कोई बात करना है. अब जाहिर है कि जब उन्हो ने अकेले मे बात करना चाहा है तो, वो बात ऐसी होगी जो वो घर बाहर किसी से भी बताना नही चाहते है. इसलिए तू भी ये किसी को मत बताना."

कीर्ति बोली "चल तूने मुझे इस लायक तो माना कि अपने राज की बात मुझे बता सके."

इसके बाद मैं नाश्ता करके नीचे आया और छोटी माँ से निमी को स्कूल ना भेजने को कहकर मैं स्कूल चला गया. स्कूल से आकर मैने खाना खाया और फिर मेहुल के पापा से मिलने उनके ऑफीस निकल गया. वो मेरा ही इंतजार कर रहे थे. उनके साथ उनके कोई फ्रेंड भी थे. मैं उनके पास जाकर बैठ गया.

मैं बोला "नमस्ते अंकल."

अंकल बोले "नमस्ते बेटा. ये मेरे खास मित्र सुभेन्दु रॉय है."

मैने उनसे भी नमस्ते किया और फिर अंकल से बोला "बताइए अंकल. आपने मुझे किस लिए बुलाया है. ऐसी क्या बात थी जो आप घर मे नही कर सकते थे."

मेरी इस बात का जबाब रॉय अंकल ने दिया.

वो बोले "देखो बेटे हम ने तुम्हे बहुत ही खास बात करने को बुलाया है. वैसे ये बात हमें मेहुल से करना था पर अभी हम लोग किसी खास नतीजे पर नही पहुचे है इसलिए हम ने मेहुल से बात करना ठीक नही समझा. लेकिन अब हमें लगता है कि मेहुल को ये बात पता चलना चाहिए. मगर राजेश (अंकल) ये बात उसे बता नही पा रहा है और इसीलिए तुम्हे बुलाया है ताकि तुम ये बात मेहुल को बता सको पर बेटे ये बात अभी तुम्हारी आंटी को पता नही चलनी चाहिए."

रॉय अंकल की बात सुनकर मैं अंदर ही अंदर कांप गया. मुझे समझ मे ही नही आ रहा था कि ऐसी कौन सी बात है जिसने अंकल को इतना परेशान कर दिया है. अंकल के कोई रिश्तेदार तो थे नही शायद इसीलिए मुझे बुलाया था.

मैं बड़ी बेचैनी के साथ बोला "अंकल क्या हुआ.? मेरा दिल बहुत घबरा रहा है. प्लीज़ बताइए ना क्या बात है."

रॉय अंकल बोले "देखो बेटा ये बात सुनकर तुम्हे धक्का ज़रूर लगेगा पर तुम्हे अपने आपको संभालना है और मेहुल को भी संभालना है. बात ये है कि राजेश को डॉक्टर. ने कॅन्सर बताया है. हमे ये बात बहुत देर से पता चली है. अभी तक हम यहीं इलाज करवा रहे थे इसलिए कोई परेशानी नही आई थी पर अब डॉक्टर. का कहना है कि, इन्हे इलाज के लिए मुंबई ले जाना होगा. अब मुंबई मे इलाज मे कितना दिन लगेगा ये तो बता पाना मुस्किल है. इसलिए अब ये बात इनके घर मे बताना ज़रूरी हो गया है."

ये कह कर वो मेरी तरफ देखने लगे मगर मैं तो अपने होश ही खो बैठा था. अंकल को कॅन्सर होने की बात मेरे गले से ही नही उतर रही थी और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे थे. ऐसा होता भी क्यों रिचा आंटी और राजेश अंकल ने हमेशा मुझे बेटे की तरह ही प्यार दिया था और ये बात सुनकर मुझे वो झटका लगा था जो शायद अपने पापा के बारे मे सुनकर भी नही लगता.

मेरी हालत समझते हुए अंकल ने मेरे कंधो पर हाथ रखा और बोले "पुन्नू बेटा सम्भालो अपने आपको. यदि तुम ही ऐसे टूट जाओगे तो फिर मेहुल को कैसे संभालोगे. अब यदि मुझे कुछ हो गया तो तुझे ही तो मेहुल को और अपनी आंटी को संभालना है.

ये सुनते ही मैं रोने लगा और बोला "नही अंकल आपको कुछ नही होगा. मैं आपके साथ मुंबई चलुगा और आपका इलाज करवाउन्गा. आप बिल्कुल ठीक हो जाएँगे."

और मैं फुट फुट कर रोने लगा.

अंकल बोले "हाँ बेटा. मैं ज़रूर ठीक हो जाउन्गा. तभी तो मुंबई जा रहा हूँ. तुझे मेरे साथ जाने की ज़रूरत नही है. तू बस यही रह कर अपनी आंटी और मेहुल का ख़याल रखना."

मैं बोला "नही अंकल मैं आपको अकेले नही जाने दूँगा. मैं भी आपके साथ चलुगा. कब जाना है हमें."

अंकल बोले "बेटे कल ही निकलना है पर तुम हमारे साथ नही जाओगे. तुम वही करोगे जो मैं कह रहा हूँ. मेरे साथ रॉय है ना. अगर ज़रूरत पड़ी तो तुझे ज़रूर बुला लेगे."

मैं बोला "ठीक है अंकल पर आंटी से क्या कह कर जाएँगे."

अंकल बोले "रिचा को कुछ नही बताना है इसलिए हम कहेगे कि मैं रॉय के साथ उसके किसी रिश्तेदार के इलाज के सिलसिले मे जा रहा हूँ."

मैं बोला "क्या मेहुल को ये बात बताना ज़रूरी है. मैं कैसे बता पाउन्गा उसे ये सब."

अंकल बोले "बेटा यदि बताना ज़रूरी नही होता तो मैने ये बात तुझे भी नही बताई होती. लेकिन ये बात तू उसे मेरे जाने के बाद ही बताना. अब तू जा हमे कल निकलने की अभी कुछ तैयारिया भी करनी है."

मैं बोला "ठीक है अंकल."

ये बोल कर मैं उदास मन से घर आ गया. घर आकर मैं किसी से बात किए बिना सीधे अपने कमरे मे आ गया. मुझे आया देख कर कीर्ति मेरे कमरे मे आई.

कीर्ति बोली "क्या हुआ. इतना उदास क्यो है. क्या रिया का फोन नही आया."

मैं बोला "कुछ नही. बस थोड़ा मूड सही नही है."

कीर्ति बोली "अरे अभी तो 3 ही बजे है. 10-15 मिनिट मे रिया का फ़ोन आ जाएगा. तू बैठ कर उसके फोन का इंतजार कर तब तक मैं तेरे मूड को सही करने के लिए एक गरमा गरम चाय बना कर लाती हूँ."

ये बोल कर कीर्ति चली गयी और मैं लेट कर अंकल के बारे मे सोचने लगा. कुछ देर बाद कीर्ति चाय लेकर आती है. वो देखती है कि मेरा मोबाइल बज रहा है लेकिन मैं उठा नही रहा हूँ. वो मुझे चाय देती है और फिर मोबाइल मे देखती है तो रिया का कॉल आ रहा होता है.

ये देख कीर्ति बोलती है "अरे रिया का कॉल आ रहा है और तू कॉल ही नही उठा रहा. सब ठीक तो है."

पर मैं उसकी बात को अनसुना कर चुप चाप चाय पीने लगता हूँ. रिया का कॉल लगातार आता रहता है. तब कीर्ति उसका कॉल उठाती है.

कीर्ति बोली "हेलो."

रिया बोली ".........." (हेलो, कौन कीर्ति)

कीर्ति बोली "हाँ रिया, मैं कीर्ति ही बोल रही हूँ."

रिया बोली "............" (क्या पुनीत अपना मोबाइल घर मे ही भूल गया है)

कीर्ति बोली "नही रिया. वो घर मे ही है मगर उसकी तबीयत कुछ सही नही है इसलिए वो सो रहा है. उसका मोबाइल साइलेंट मे है. मैं उसकी तबीयत देखने आई थी तभी देखा कि तेरा कॉल आ रहा है तो मैने उठा लिया."

रिया बोली "................" (क्यों क्या हो गया पुनीत को. ये अचानक उसकी तबीयत खराब कैसे हो गयी)

कीर्ति बोली " कुछ नही. शायद विराल फीवर है. दवा दे दी है शाम तक उसे आराम लग जाएगा."

रिया बोली ".............." (ओके कीर्ति. जब पुनीत जागे तो उसे बता देना कि मेरा फोन आया था. मैं रखती हूँ. बाइ)

कीर्ति बोली "ठीक है रिया. मैं उसे बता दूँगी. बाइ."

ये बोल कर कीर्ति कॉल रख देती है. तब तक मैं चाय पी चुका होता हूँ. कीर्ति मेरे माथे पर हाथ लगा कर बुखार देखती है.

फिर बोलती है "बुखार तो तुझे नही है. आख़िर क्या हुआ है तुझे. अचानक तू इतना उदास क्यों है."

मैं बोला "कुछ नही. बस मूड कुछ ठीक नही है."

कीर्ति बोली "तू मेहुल के पापा के पास से आ रहा है ना.? क्या बोला उन्हो ने.? सच सच सच बता क्या बात हुई तेरी उन से.?"

पहले तो मैं कीर्ति को टालता रहा पर आख़िर मे उसने मुझे अपनी कसम दे दी. तब मैने उसे मेहुल के पापा से हुई सारी बात बता दी. जिसे सुन कर उसे भी धक्का लगा.

फिर कुछ सोचते हुए वो बोली "देख जो होना था वो तो हो चुका है. अब सोचना ये है कि हम उसका सामना कैसे करे. यदि तू ही ऐसे हिम्मत हार जाएगा तो मेहुल का क्या होगा. तू अपने आपको संभाल और ये सोच कि मेहुल को ये बात कैसे बताएगा. अगर अंकल ने ये बात तुझे बताई है तो कुछ सोच समझ कर ही बताई है. इसलिए तू अपने आपको मजबूत कर और इसका सामना कर."

अभी कीर्ति मुझे ये बातें समझा ही रही थी तभी उसकी नज़र दरवाजे पर खड़ी छोटी माँ पर पड़ती है. जो हमारी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी. वो मुझे उदास देख कर मेरी उदासी का कारण जानने आई थी मगर मेरे मूह से अंकल की बीमारी की बात सुन कर बाहर ही खड़ी हमारी बात सुनने लगी थी.

उन्हे देखते ही कीर्ति बोली "मौसी आप. ?"

ये सुनते ही मेरी नज़र दरवाजे पर जाती है और छोटी माँ अंदर आ जाती है. वो मुझे अपने गले से लगा लेती है.

फिर कहती है "देख मैं सब बात सुन चुकी हूँ. कीर्ति जो भी बोल रही है, ठीक ही बोल रही है. यदि तू सच मे उनका भला चाहता है तो बहादुर बन कर इसका सामना कर. तू ये सोच ना कि जब ये बात सुनकर तुझे इतनी तकलीफ़ हुई है तो मेहुल को कितनी तकलीफ़ होगी. इस समय तुझे एमोशनल नही बल्कि प्रॅक्टिकल बनना चाहिए."

कीर्ति और छोटी माँ की बातों से मेरे अंदर साहस जगा और मैने अपने आपको संभाला.

मैं बोला "आप ठीक कह रही है छोटी माँ. लेकिन ये बात हम तीन लोगों के ही बीच मे रहनी चाहिए. हमारे अलावा ये बात किसी को पता नही चलनी चाहिए."

छोटी माँ बोली "तू चिंता मत कर मैं ये बात किसी से भी नही बोलुगी पर तू शाम को एक बार ज़रूर मेहुल के यहाँ चले जाना हो सकता है जीजा जी (मेहुल के पापा) को और भी कुछ तुझसे कहना हो. मगर ध्यान रखना कि अब उनके सामने जाना तो मजबूत बन कर जाना ताकि वो अपनी कोई भी बात दिल खोल कर कर सके."

ये बोल कर छोटी माँ चली गयी और मैं मूह हाथ धोने चला गया. मैं मूह हाथ धो कर लौटा तो कीर्ति अभी भी मेरे कमरे मे ही बैठी थी.

मुझे आता देख कर बोली "तूने रिया से मिलने के बारे मे क्या सोचा है."

मैं बोला "अब मेरा मूड नही है उस से मिलने का."

कीर्ति बोली "हर काम मूड से नही किया जाता. कुछ काम बिना मूड के भी करना चाहिए."

मैं बोला "उस से मिलने का फ़ायदा भी क्या है. वैसे भी तो वो 2-3 दिन मे यहाँ से चली ही जाएगी."

कीर्ति बोली "मैं इसीलिए तो तुझसे बोल रही हूँ कि रिया से मिल ले. क्योंकि वो मुंबई की है और यदि तू उस से दोस्ती बनाए रखता है तो ये दोस्ती बहुत काम आएगी. इसलिए तू कम से कम अभी उसे कॉल करके ये तो बता दे कि तू उससे तबीयत खराब होने की वजह से मिलने नही आ सका और उसे शाम को मेहुल के घर मिलने बुला ले ताकि उसकी अंकल आंटी से भी जान पहचान हो जाए."

कीर्ति की बात सुनकर मैं मन ही मन उसके दिमाग़ की दाद देने लगा और फिर मैने रिया को कॉल करके बता दिया कि, मेरी तबीयत खराब होने के कारण, मैं आज उस से मिलने नही आ सका. मैं शाम को 7 बजे, मेहुल के घर आ रहा हूँ, और यदि वो मुझसे मिलना चाहती है तो वही मिल ले. इसके बाद मैं तैयार होने लगा.

कीर्ति बोली "ये तैयार होकर कहाँ जा रहा है तू."

मैं बोला "कहीं नही बस बाहर जाकर थोड़ा मूड फ्रेश करना चाहता हूँ."

कीर्ति बोली "मैं भी तेरे साथ चलूं. दिन भर घर मे रहते रहते बोरियत होने लगी है."

मैं बोला "ठीक है. जल्दी से जाकर तैयार हो जा."

मेरी बात सुन कर कीर्ति जल्दी से अपने रूम मे तैयार होने चली गयी. मैं तैयार होकर नीचे आ गया. मैने छोटी माँ को बताया कि हम लोग बाहर घूम ने जा रहे है. आने मे देर भी हो सकती है. इतना कहकर मैं बाहर आ गया.

मैने अपनी बाइक निकाली और कीर्ति के आने का इंतजार करने लगा. कुछ देर बाद कीर्ति भी आ गयी. वो पर्पल टी-शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहने थी. मैने उसे देखा तो मुस्कुरा दिया. कीर्ति बाइक के दोनो तरफ पैर डालकर बैठी और उसने मेरी कमर को पकड़ लिया. मैने बिना कुछ कहे बाइक आगे बढ़ा दी. ना तो कीर्ति ने ये पूछा कि हम कहाँ जा रहे है, और ना ही मैने बताया कि हम कहाँ जा रहे है. दोनो ही खामोश थे. या फिर दोनो ही कुछ सोच रहे थे. मैं तो ये सोच रहा था कि अब कहाँ जाया जाए. तभी कीर्ति ने मेरी पीठ पर अपना सिर टिका दिया और उसके ऐसा करने से मुझे बहुत अच्छा लगा. कीर्ति के इस तरह से बैठने से मुझे बहुत सुकून मिल रहा था इसलिए मैं भी बस बाइक को यूँ ही रास्ते पर दौड़ाता रहा और सोचता रहा कि काश ये रास्ता कभी ख़तम ना हो. कुछ देर यू ही चलते चलते हम बहुत दूर निकल आए. अब गाड़ियों की आवाजाही कम थी और रास्ते के दोनो तरफ हरे भरे पेड़ लगे हुए थे. जिनसे ठंडी हवा चल रही थी और वो हवा हमे छु कर मदहोश कर रही थी. कीर्ति आँख बंद कर मेरी पीठ पर अपना सर रखे खामोशी के साथ बैठी थी.

मैं बोला "तुम चुप क्यों हो.? कुछ बोलो ना."

कीर्ति बोली "हूँ हूँ."

मैं बोला "कुछ बोलोगी नही."

कीर्ति बोली "हूँ हूँ."

मैने कहा "तुम्हे यू ही घूमते रहना अच्छा लग रहा है."

कीर्ति बोली "हूँ."

वह मेरी हर बात का जबाब बिना अपना मूह खोले हूँ हूँ करके दे रही थी. शायद इस ठंडी हवा के झोंको ने उसे मदहोश कर दिया था. फिर इसी मदहोशी मे उसने मुझे कसकर पकड़ लिया और वह पूरी तरह मुझ से चिपक कर अपना सर टिकाए बैठ गयी. उसके ऐसा करने से मेरे मूह से भी शब्द निकलना बंद हो गये और मैं खामोशी से बस बाइक को चलाते जा रहा था. बिना ये सोचे बिना ये जाने कि हम कहाँ जा रहे है. पर शायद हम दोनो ही यही चाहते थे कि ये सफ़र यूँ ही चलता रहे. कभी इस सफ़र का अंत ना हो.
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09-09-2020, 12:50 PM,
#38
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
31

मैने अपनी जिंदगी मे इतना सुकून कभी नही पाया था, जो आज आज कीर्ति के इस कोमल स्पर्श से पा रहा था. उसके दोनो पैर मेरे पैरो से सटे हुए थे. उसके नाज़ुक स्तनो की छुअन मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी. उसने अपने नाज़ुक हाथो से मुझे जकड़ा हुआ था और उसका सर अभी भी मेरी पीठ पर टिका हुआ था. उसके बदन की महकती खुश्बू मे मैं सब कुछ भूल गया था. मेरे मन मे कीर्ति को लेकर कोई भी बुरा विचार नही था इसलिए इसे किसी लड़की के शरीर से लिपटने की वाषना नही कहा जा सकता था. ये तो एक मधुर अहसास था. जिसे मैने पहले कभी महसूस नही किया था. मेरे लिए तो ये सफ़र किसी जन्नत के सफ़र से कम नही था और मैं इसे और भी लंबा करना चाहता था. इसलिए मैं बिना किसी बात की परवाह किए आगे बढ़ता जा रहा था.

मगर कुदरत को शायद मेरा ये सफ़र पसंद नही आया या फिर यू कहा जाए कि वो मुझे कुछ और भी दिखाना चाहती थी. इसलिए जो ठंडी हवाए हमे मदहोश कर रही थी, वो अचानक ही तेज आँधियों मे बदल गयी और हम दोनो को इस मदहोशी से बाहर ले आई. उन आँधियों का रुख़ हमारी ही तरफ था और वो हमे आगे बढ़ने से रोक रही थी. कीर्ति ने मुझे कस कर जाकड़ लिया और अपने चेहरे को मेरे कंधे पर टिका लिया. उसके ऐसे करने से मेरा हौसला बढ़ गया और मैं अब भी आगे ही बढ़ता रहा. मगर अब तेज आँधियों के साथ बारिश भी होने लगी जिसने तूफान का रूप ले लिया और मेरे लिए बाइक चला पाना मुस्किल हो गया था. मैने बाइक को रोक दिया और कीर्ति से कहा.

मैं बोला "आँधी अब तूफान का रूप ले रही है और उसका रुख़ हमारी ही तरफ है. अब हमें वापस चलना चाहिए."

कीर्ति बोली "ऐसी तेज तूफान मे वापस लौटना ख़तरे से खाली नही होगा. कोई भी दुर्घटना हो सकती है. अच्छा तो ये है कि किसी अच्छी सी जगह पर रुक कर हम तूफान के रुकने का इंतजार करे. मुझे ऐसे मे वापस लौटने मे बहुत डर लग रहा है."

मैं बोला "यहाँ कोई बस्ती या घर मकान तो है नही, जहाँ पर रुका जा सके. अब वापस चलना ही ठीक रहेगा. वैसे भी जिस ओर की आँधी चल रही है उसी तरफ बाइक चलाने मे ज़्यादा परेशानी नही होगी. तुम चिंता मत करो हम आराम से पहुच जाएँगे."

ये कहकर मैने अपनी बाइक वापस मोड़ ली और हम बारिश मे भीगते हुए उसी तरफ चलने लगे जिस तरफ आँधी का रुख़ था. तेज हवाए हम से टकराकर हमे और भी आगे धकेल रही थी, तो बारिश की बूंदे मेरे चेहरे पर पड़कर मेरा बाइक चलाना मुश्किल कर रही थी. कीर्ति घबरा रही थी और मुझे इतनी ज़ोर से जकड़े हुई थी कि जैसे वह मुझे ढीला पकड़ेगी तो ये आँधी उसे उड़ा कर ही ले जाएगी.

मैं उसे समझा रहा था कि "मैने इस से भी तेज आँधी और बारिश मे गाड़ी चलाई है. तुम डरो मत हमें कुछ नही होगा. हम सही सलामत घर पहुच जाएँगे."

मगर अंदर ही अंदर मैं खुद भी डर रहा था. मेरे डरने की वजह ये आँधी तूफान नही था, बल्कि वजह थी कीर्ति का मेरे साथ होना. मैं अकेला होता तो मुझे किसी भी बात का डर नही होता. लेकिन कीर्ति का डरना भी वेवजह नही था. क्योंकि कुछ ही दूर पहुचे के बाद वो हुआ जिसके लिए मैं कतई तैयार नही था.

बारिश और तेज आँधी की वजह से पेड़ की एक मोटी सी डाली टूटकर हमारी बाइक के सामने आ गिरी और उससे हमारी टक्कर हो गयी. टक्कर इतनी जोरदार थी कि टक्कर लगने से कीर्ति बाइक से उछल कर दूर जाकर गिरी और मैं बाइक के साथ ही घिसटता चला गया. बाइक मे तो कुछ ज़्यादा टूट फुट नही हुई थी, मगर बाइक से ज़्यादा चोट मुझे पहुचि थी, क्योंकि मैं बाइक के साथ ही घिसटता चला गया था.

घिसटने से मेरे घुटने और पैर मे बहुत ज़्यादा चोट आई थी और हाथ भी बुरी तरह छिल गये थे. घुटने मे चोट आने की वजह से मैं पैर मोड़ नही पा रहा था इसलिए अब मुझसे खड़ा तक होते नही बन रहा था. मेरी बाइक कहीं पड़ी थी और मैं कहीं पड़ा था. मेरे जिस पैर मे चोट लगी थी उस पैर का जूता भी घिसटने की वजह से उतर चुका था और मेरे पैर के पंजे भी बुरी तरह से छिल गये थे. सब मिलाकर अब मेरी हालत ऐसी नही थी कि मैं उठ कर खड़ा हो सकूँ. फिर बाइक चला कर वापस घर पहुचने की बात ही दूर थी. लेकिन मुझे जैसे ही कीर्ति की याद आई मैं अपना सारा दर्द भूल गया और कीर्ति को इधर उधर देखने लगा.

कीर्ति मुझसे लगभग बीस कदम की दूरी पर सड़क के किनारे पेट के बल पड़ी थी. उसे ऐसे देख कर मैं घबरा गया कि कही उसे कुछ हो तो नही गया. मैने जल्दी से उठने की कोशिश की मगर उठने से पहले ही मैं दर्द के कारण गिर पड़ा. मैं उस तक किसी भी हालत मे पहुचना चाहता था, इसलिए मैं घिसटते घिसटते उसके पास गया. मैं उसके पास जाकर बैठा और उसका सर अपनी गोद मे खीच कर उसका चेहरा थपथपाने लगा मगर वो बेहोश सी थी.

मैं उसकी हालत देख बहुत ज़्यादा डर गया था. मैं मदद के लिए चिल्लाने लगा मगर उस तेज तूफान मे वहाँ मदद करने वाला कोई नही था. मेरा दिमाग़ काम करना बंद कर दिया और मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे. मैं पागलों की तरह उसके गालों पर थप्पड़ मार कर उसे उठाने की कोशिश करने लगा. उसके चेहरे पर बारिश की बूंदे और मेरे थप्पड़ पड़ने से वो होश मे आ गयी.

कीर्ति ने कराहते हुए आँखे खोली और उठ कर बैठ गयी. मैने उसे अपने गले से लगा लिया. मेरी आँखों मे अभी भी आँसू थे.

मैं रुँधे गले से बोला "तुझे ज़्यादा चोट तो नही आई."

कीर्ति ने एक नज़र बाइक पर डाली और फिर मुझे देखते हुए बोली "नही मुझे ज़्यादा चोट नही आई बस थोड़े से ये हाथ छिल गये है और थोड़ी बहुत खरॉच पैरो मे आई है, बाकी मैं बिल्कुल ठीक हूँ."

फिर वो मेरे हाथ पैरो को देखते हुए बोली "तेरा जीन्स घुटने के उपर से फट गया है और उसमे खून लगा भी लगा हुआ है. लगता है तुझे बहुत चोट लगी है. ऐसे मे तू बाइक कैसे चला पाएगा."

मैं बोला "हाँ मुझे बहुत चोट लगी है. मैं ना तो खड़ा हो पा रहा हूँ और ना ही बाइक चला पाउन्गा. तुम एक काम करो मेहुल को कॉल करके बुला लो वो हमे आकर ले जाएगा."

कीर्ति ने अपने रुमाल को मेरे घुटने पर बाँध दिया और फिर मेरा रुमाल लेकर उसे मेरी बाहों मे बाँध दिया.

कीर्ति बोली "मुझे ऐसी कोई खास चोट नही लगी है. मैं बिल्कुल ठीक हूँ और अब तूफान भी थम गया है. तुम बस बाइक मे बैठने की कोशिश करो. मैं बाइक चला लुगी."

मैं बोला "तूने अभी सिर्फ़ स्कूटी ही चलाई है और अब सीधे बाइक चलाना चाहती है. मेरे तो हाथ पैर टूट ही गये है. अब क्या अपने भी तुड़वाना चाहती है. तुझसे बाइक चलाते नही बनेगी. जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा कर. बेकार मे वक्त बर्बाद मत कर और मेहुल को कॉल लगा."

कीर्ति बोली "ज़रा दिमाग़ से काम लो. शाम हो गयी है और कुछ ही देर मे इधर अंधेरा हो जाएगा. हम घर से बहुत दूर है मेहुल को आने मे कम से कम एक घंटा तो लग ही जाएगा. उस एक घंटे तक हम इस सुनसान मे, गीले कपड़ो मे कैसे रहेगे. उपर से तुम्हे चोट भी लगी है. मुझे बाइक चलाने दो मैं चला लुगी."

मैं बोला "नही मैं अपनी सुविध के लिए तुझे ख़तरे मे नही डाल सकता. तुम मेहुल को कॉल करो नही तो मुझे मोबाइल दो, मैं उसे कॉल करता हूँ."

वैसे भी रास्ता सूना है इसलिए मुझे बाइक चलाने मे कोई परेशानी नही होगी."

मुझे अपनी बात ना मानते देख कीर्ति ने मेरा हाथ अपने सर पर रखा और बोली "तुमको मेरी कसम. प्लीज़ मुझे बाइक चलाने दो. मुझे कुछ नही होगा. मैने बाइक चलना सीखा है और यहाँ तो सुनसान रास्ता है. मैं धीरे धीरे चलाउन्गी."

अब मेरे पास कीर्ति की बात मानने के सिवा कोई रास्ता नही था.

मैं बोला "ठीक है तू कोशिश करके देख ले मगर मेहुल को कॉल करके बता दे वो हमे रास्ते मे कही ना कही मिल जाएगा."

कीर्ति ने मेरी ये बात मान ली और मेहुल को कॉल करके बता दिया कि मुझे बाइक से गिर जाने के कारण चोट लगी है और वो धीरे धीरे मुझे लेकर आ रही है. तुम रास्ते मे हमें मिलो. इसके बाद कीर्ति बाइक के पास गयी और थोड़ी मेहनत करने के बाद वो बाइक मेरे पास ले आई. फिर उसने बाइक को स्टॅंड मे लगाया और मुझे सहारा देकर बाइक पर बिठाया और फिर बाइक स्टार्ट कर धीरे धीरे चलाने लगी. कीर्ति मेरे साथ एक दो बार बाइक चलना सीख चुकी थी लेकिन उसे बाइक चलाना नही आता था, पर ना जाने क्यों उसे ये विस्वास था कि वो बाइक चला लेगी और अब वो वही करके बता रही थी.

ये भी अजीब इतेफ़ाक था कि जाते समय कीर्ति मुझसे चिपक कर मेरे पीछे बैठी थी, तो अब लौटती समय मैं उस से चिपक कर उसके पीछे बैठा था. फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि उस समय वो खुश और निश्चिंत थी और उसे घर जाने की कोई चिंता नही थी, मगर इस समय उसे जल्दी मुझे डॉक्टर. को दिखाने की चिंता ने घेर रखा था. जो उसके चेहरे से साफ झलक रही थी.

मैने उसका मन हल्का करने के लिए कहा "यार तू तो मुझसे भी अच्छी बाइक चलाती है. यदि लौटते समय मैने तुझे ही बाइक चलाने दी होती तो ये दुर्घटना ना होती."

कीर्ति गुस्से मे बोली "चुप करो. ये सब मेरी ही वजह से हुआ है. ना मैं तुम्हारे साथ आई होती और ना तुम्हारे साथ ये हादसा हुआ होता."

मैं मज़ाक मे बोला "अरे तू नही आई होती तो मुझे घर कौन ले जाता. मैं तो अकेला रास्ते पर पड़ा तड़प रहा होता और हो सकता था कि कोई गाड़ी मेरे उपर से निकल कर मेरा काम तमाम कर जाती."

ये बात सुनते ही कीर्ति ने बाइक रोक दी और मेरी तरफ मूह कर के मुझे गले से लगती हुई बोली "तुमको मेरी कसम, कभी अपने मूह से ऐसी बात ना निकालना. यदि तुमको कुछ हो गया तो मैं अपने आपको ख़तम कर दूँगी."

ये कहकर वो रोने लगी. मैं उसका ये रूप देख कर दंग रह गया. मैने उसके आँसू पोंछे और बात को टालते हुए बोला "नही बोलुगा. कभी नही बोलुगा मगर अभी जल्दी से यहाँ से निकलो. अंधेरा होना सुरू हो गया है."

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने बाइक आगे बढ़ा दी. अब मुझे उस पर बहुत प्यार आया और मैने अब अपने दोनो हाथ उसकी कमर पर डाल कर उसे जाकड़ लिया और किसी छोटे बच्चे की तरह उसकी पीठ पर सर रख कर बैठ गया. अब जो सुकून कीर्ति को जाते समय मेरी पीठ पर सर रखने से मिल रहा था. अब वो सुकून मुझे उसकी पीठ पर सर रखने से मिल रहा था.

आज पहली बार कीर्ति मेरे सीने से इस तरह लगी हुई थी, और इसलिए इतने दर्द मे होने के बाद भी मैं यही सोच रहा था कि काश ये सफ़र यू ही चलता रहे. मगर ये सिर्फ़ मेरी सोच थी. कीर्ति की नही. उसे तो बस एक ही सोच ने घेरा था कि जल्दी से जल्दी मुझे डॉक्टर. को दिखाने की और उसने अपनी इस सोच को जल्दी ही पूरा करके दिखा दिया. करीब एक 45 मिनिट के सफ़र के बाद हमे मेहुल आते दिख गया. वह अपने किसी दोस्त के साथ आ रहा था. उसे देख कीर्ति ने बाइक रोकी. फिर कीर्ति मेहुल के दोस्त के साथ बैठ गयी और मेहुल मेरी बाइक चलाने लगा और आधे ही घंटे मे उसने बाइक एक हॉस्पिटल के सामने रोकी और फिर मुझे मेहुल और उसका दोस्त उठा कर अंदर ले गये. अंदर एक डॉक्टर ने. कीर्ति की मरहम पट्टी की और एक ने मेरा चेकप किया और फिर मुझे पैर मे हॉट स्ट्रीप चढ़ा दी. डॉक्टर ने मेरे गीले कपड़े बदलने को कहा तो मेहुल ने अपने सूखे कपड़े मुझे पहनाए और मेरे गीले कपड़े खुद पहन लिए. डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ खाने की दी, जो मैने वहीं खा ली जिस से कुछ ही देर मे मेरे दर्द मे आराम हो गया.

फिर उसने कुछ दवाइयाँ लिखी और कहा "घबराने की कोई बात नही है. घुटने मे चोट और सूजन की वजह से इनसे चला नही जा रहा है. इनके घुटने की हर 2 घंटे मे सिकाई करते रहना. सुबह तक ये चलने फिरने लगेगे और दो तीन दिन मे ये पूरी तरह से ठीक हो जाएँगे."

और फिर हम लोग घर के लिए निकले. मैने रास्ते मे कीर्ति और मेहुल को समझा दिया कि घर मे ये ना कहे कि इतनी दूर ये हादसा हुआ है. घर मे यही कहना है कि तेज बारिश की वजह से बाइक फिसल गयी थी.

कुछ देर बाद हम लोग घर पहुच गये. मेहुल ने अपने दोस्त को जाने दिया. फिर वो और कीर्ति मुझे सहारा देकर अंदर ले आए. मुझे ऐसी हालत मे देख छोटी माँ और अमि निमी घबरा गये. सबने मुझे सोफे पर बिठाया.

फिर मेहुल ने उन्हे समझाया कि "घबराने की कोई बात नही है. बारिश की वजह से बाइक फिसल गयी और ये गिर गया. मामूली सी चोट है. यदि चोट मामूली नही होती तो डॉक्टर. इसे घर आने ही क्यों देता."

इसके बाद कीर्ति ने छोटी माँ को बताया कि डॉक्टर. ने हर दो घंटे मे सिकाई करने को कहा है तो छोटी माँ घुटने की शिकाई करने की तैयारी करने लग गयी और कीर्ति अपने गीले कपड़े बदलने चली गयी. अपने कपड़े बदल कर आने के बाद उसने मेहुल को मेरे कपड़े लाकर दिए तो मेहुल ने भी अपने गीले कपड़े बदल लिए.

इस सब के चलते मेरी नज़र अब तक अपनी भोली भाली निमी पर नही पड़ी थी मगर जब सब कुछ शांत हुआ तो देखा कि वो दूर खड़ी सब कुछ देख रही थी और उसकी आँखों मे आँसू डब डबा रहे थे. शायद उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि मुझे क्या हुआ है और वो घबराई हुई मुझे दूर से ही देख रही थी. मैने जैसे ही उसे अपने पास बुलाया तो वो मुझसे लिपट कर रोने लगी.

मैने उसे अपने पास बिठाया और समझाया "पागल लड़की मुझे कुछ नही हुआ है. बस गाड़ी से गिर गया हूँ तो ये चोट लग गयी है."

असल मे उसके सामने ऐसा कोई हादसा पहली बार हुआ था इसलिए उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है. हड़बड़ी मे सब अपने अपने मे लगे थे और उसकी तरफ किसी ने ध्यान नही दिया था. जिस वजह से वो और डर गयी थी. मेरे समझाने से उसे समझ मे आया तो वो फिर पहले की तरह खिलखिलाने लगी थी.
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09-09-2020, 12:52 PM,
#39
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
उसे हंसता देख कर सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. तभी छोटी माँ आ गयी. उनने मेरे घुटने की शिकाई की और बोली "आज तू नीचे ही सो जा. तुझे उपर चढ़ने उतरने मे तकलीफ़ होगी."

मैं बोला "नही छोटी माँ मैं अपने कमरे मे ही सोउंगा. वैसे भी मुझे अब नीचे नही उतरना है. खाना आप उपर ही भेज देना."

मेहुल बोला "चल तुझे उपर छोड़ देता हूँ, वरना तुझे उपर चढ़ने मे परेशानी होगी."

ये कहकर मेहुल मुझे मेरे कमरे मे ले आया और फिर उसने कमरे मे आने के बाद मेरे कपड़े बदल कर मुझे नाइट सूट पहना दिया. इसके बाद बाकी के लोग भी मेरे कमरे मे आ गये.

मेहुल बोला "तू अब आराम कर, मैं चलता हूँ. पापा बाहर जा रहे है. उनके जाने की तैयारी भी तो करना है."

कीर्ति बोली "आप जाएँगे कैसे. आपके दोस्त को तो आपने वापस भेज दिया है."

मेहुल बोला "मैं पुन्नू की बाइक ले जा रहा हूँ. अभी कुछ दिन तो इसकी बाइक चलाने से भी छुट्टी है. तब तक मैं उसकी टूट फुट भी सुधारवा लुगा."

छोटी माँ बोली "थोड़ी देर रुक जा. खाना खाकर जाना."

मेहुल बोला "नही आंटी. बहुत देर हो चुकी है और खाना मुझे पापा के साथ ही खाना है."

छोटी माँ बोली "ठीक है. पर दीदी और जीजा जी को पुन्नू के साथ हुई दुर्घटना के बारे मे कुछ मत बताना और उनको मेरा नमस्ते कहना."

मेहुल बोला "नही बताउन्गा आंटी. अब मैं चलता हूँ. बाइ."

ये कह कर मेहुल चला गया और छोटी माँ किचन मे खाना बनाने चली गयी. अब मेरे कमरे मे कीर्ति और अमि निमी थी.

मैने निमी से पूछा "तेरा होमवर्क पूरा हो गया है, जो आराम से यहाँ बैठी है."

निमी बोली "आप बस आराम करो. डॉक्टर ने ज़्यादा बोलने से मना किया है."

मैं बोला "डॉक्टर ने कब मना कर दिया मुझे बोलने से."

निमी बोली "डॉक्टर ने आराम करने को तो कहा होगा ना. आराम का मतलब ही होता है कि किसी से कोई बात नही करना."

मैं बोला "अपनी नौटंकी बाद कर और जाकर अपना होमवर्क पूरा कर."

निमी बोली "मैं तो यहाँ इसलिए बैठी हू ताकि देख सकूँ की कीर्ति दीदी और अमि दीदी आपका ठीक से ख़याल रख रही है या नही."

मैं बोला "तुम लोगो को मेरा ख़याल रखने के लिए यहाँ बैठे रहने की कोई ज़रूरत नही है. मुझे जब किसी भी चीज़ की ज़रूरत होगी, मैं तुम लोगो को बुला लुगा. अब तुम लोग जाओ और अपना अपना काम करो."

मेरी बात सुनकर निमी मूह बनाकर अमि और कीर्ति के साथ अपने कमरे मे चली गयी. उनके जाने के बाद मैं आज के हादसे के बारे मे सोचने लगा और मुझे कीर्ति का मुझसे लिपट कर रोना और मेरा मूह बंद कर मुझे अपनी कसम देना याद आने लगा. ये सब पल मेरे लिए ना भुलाए जाने वाले पल बन गये थे. मैं इन्हे याद कर के मुस्कुराने लगा. तभी कीर्ति आ गयी. कीर्ति ने मुझे इस तरह अपने आप मुस्कुराते देखा तो पूछने लगी.

कीर्ति बोली "क्या हुआ. किस बात को याद कर यू मुस्कुरा रहा है."

मैं बोला " कुछ नही, आज का तेरा नया रूप देख कर मुस्कुराहट आ गयी."

कीर्ति बोली "क्यों आज ऐसा क्या देख लिया तूने."

मैं बोला "मेरे लिए तो सभी कुछ नया था. तेरा बाइक चलना. मुझे बाइक मे बैठा कर लाना और बात बात पर अपनी कसम देना."

कीर्ति बोली "वो सब तो घबराहट मे हो रहा था. तेरी वैसी हालत मुझसे देखी नही जा रही थी और तू था कि बस अपनी अपनी कहे जा रहा था. इसलिए तुझसे अपनी बात मनवाने के लिए मुझे अपनी कसम देना पड़ गयी."

मैं बोला "और वो मेरे बिना मर जाने वाली बात."

कीर्ति बात को पलटते हुए बोली "तूने रिया को 7 बजे के बाद मेहुल के घर आने को बोला था. हो सकता है तेरी बाइक देख कर वो मेहुल के घर पहुच जाए. इसलिए तू कॉल करके उसे बता दे कि आज तू वहाँ नही आ रहा है."

मैं बोला "मेरा मूड नही है. तू ही उसे कॉल करके बोल दे."

मेरी बात मानकर कीर्ति ने रिया को कॉल लगाकर सारी बात बता दी, और उसे बता दिया कि अभी पुन्नू की हालत ऐसी नही है कि वो बाइक चला कर कहीं जा सके, इसलिए आज वो मेहुल के घर नही जा सकेगा मगर कल यदि उसकी तबीयत सही हो जाती है तो शायद वो दिन के टाइम मेहुल के घर आएगा. ये सब बता कर कीर्ति ने कॉल रख दिया.

मैने कहा "तूने ये क्यों कहा कि कल मैं दिन को मेहुल के घर जा सकता हूँ. तुझे तो मालूम है कि मैं अभी बाइक नही चला सकता."

कीर्ति बोली "तो इसमे कौन सी बड़ी बात है. कल तक तू इतना तो ठीक हो ही जाएगा कि चल सके."

मैं बोला "तो क्या मैं पैदल मेहुल के घर जाउन्गा."

कीर्ति बोली "क्यों क्या घर मे 2-2 फोर वीलर्स है वो कब काम मे आएगी. क्या उन से नही जा सकता."

मैं बोला "नही उन से नही जा सकता. यदि उन से गया तो पापा को आक्सिडेंट की सारी बात पता चल जाएगी और मैं नही चाहता कि उन्हे इस बारे मे कुछ पता चले."

कीर्ति बोली "देख कल तेरा मेहुल के घर जाना ज़रूरी है. तू या तो टेक्शी मे चला जा या फिर मैं मौसी की स्कूटी मे तुझे लेकर चल चलूगी."

मैने कहा "ठीक है, तुझे जो ठीक लगे तू कर. लेकिन अभी मुझे चाय की तलब लगी हुई है. अभी तू मुझे गरमा गरम चाय पिला दे."

ये सुनकर कीर्ति चाय लेने चली गयी और मैं फिर कीर्ति के ख़यालों मे खो गया. मैं नही जानता कि ये मेरे साथ क्यों हो रहा था पर अब मैं कीर्ति के सिवा किसी और के बारे मे सोच ही नही पा रहा था. मेरा दिल कर रहा था कि कीर्ति मेरे पास बैठी रहे और मैं उस से बात करता रहूं. कुछ देर बाद कीर्ति चाय लेकर आ गयी.

उसने मुझे चाय दी और मेरे पास बैठ गयी. मैने चाय पीते हुए उस से पूछा.

मैं बोला "तूने बताया नही कि तू मेरे बिना क्यों मर जाएगी."

कीर्ति बोली "तू भी कौन सी फालतू की बात लेकर बैठ गया. छोड़ ना इस बात को, कोई और बात करते है."

मैं बोला "नही मुझे तो यही बात करनी है. बता ना तूने ऐसा क्यों कहा था."

कीर्ति बोली "तो सुन, तू मुझे सबसे प्यारा है. मैं चाहे तुझसे लडू या नाराज़ रहूं फिर भी तेरे बिना रहने की मैं सोच भी नही सकती और तुझे कुछ हो गया तो मैं सच मे ही नही जी पाउन्गी."

मैं बोला "मुझे तो आज मालूम पड़ा कि तू मुझे कितना प्यार करती है. यदि ऐसा है तो तू मुझसे इतना लड़ती क्यों है."

कीर्ति बोली "लड़ना झगड़ना भी तो प्यार की ही एक निशानी है. अब तू आराम कर मैं जाती हूँ."

मैं बोला "बैठ ना. कहाँ जा रही है."

कीर्ति बोली "डॉक्टर. ने जो दवा लिखी है वो दवा लेने जा रही हूँ. जब तक मैं दवा लेकर आती हू तब तक तू आराम कर ले. फिर आकर तुझ से बात करूगी."

मैं बोला "अकेली मत जा. अमि निमी को भी अपने साथ ले जा."

कीर्ति बोली "ठीक है."

ये बोल कर कीर्ति चली गयी और मैं लेटे लेटे कीर्ति के बारे मे सोचने लगा. आज वो सच मे ही मुझे ना जाने क्यों बदली बदली सी लग रही थी. मैं उसके बारे मे ही सोचते सोचते ना जाने कब सो गया. ना जाने कितनी देर मैं सोता रहा. शायद ये दवाओ का ही असर था कि मैं इतनी गहरी नींद सोया था कि मुझे कुछ होश ही नही था. मेरी नींद खुली अमि के जगाने से.

अमि बोली "भैया उठो ना. खाना नही खाना क्या.?"

मैने कसमसाते हुए बिना आँख खोले ही कहा "सोने दे ना, क्यों परेशान कर रही है."

अमि बोली "भैया 10 बज गये है. सब आपके जागने का इंतजार कर रहे है."

उसकी बात सुनकर मैने आँख खोली और टाइम देखा तो सच मे 10 बज गये थे. सब मेरे कमरे मे ही थे.

मैने कहा "छोटी माँ आप लोग खाना खा लेते ना. मैं जब नींद से उठता तो खाना खा लेता."

छोटी माँ बोली "ये बात मुझे नही. अपनी बहनो को समझा. दोनो मे से कोई तैयार ही नही थी खाना खाने को, और उनका साथ ये कीर्ति भी दे रही थी. फिर भला मैं अकेले कैसे खाना खा लेती."

मैने कहा "ठीक है. अब तो सब खाना खा लो."

अमि बोली "नही भैया. आज हम सब यही खाना खाएगे."

मैने निमी की तरफ देखा और बोला "तू इतनी चुप क्यों है. कुछ बोलती क्यों नही."

निमी बोली "आप लोग तो बात ही कर रहे है. मुझे बहुत भूक लगी है. हम खाना कब खाएगे."

उसकी बात सुन कर सबको हँसी आ गयी और फिर कीर्ति ने सबको खाना लगा कर दिया और सबने खाना खाया. खाना खाने के बाद कीर्ति ने मुझे दवा दी और छोटी माँ ने मेरे घुटने की सिकाई की. 11 बजे छोटी माँ अमि निमी को लेकर अपने कमरे मे चली गयी. कीर्ति भी अपने कमरे मे गयी और फिर नाइट सूट पहन कर वापस आ गयी.

मैने पूछा "तू कब आई थी दवा लेकर. मुझे जगाया क्यों नही."

कीर्ति बोली "मैं तो थोड़ी ही देर मे आ गयी थी मगर तू सो रहा था, तो सोचा कि तुझे सोने ही दूं."

मैने कहा "अब खड़ी ही रहेगी या फिर बैठेगी भी."

कीर्ति आकर बेड के दूसरी तरफ पैर फैला कर बैठ गयी मगर कुछ बोल नही रही थी.

मैने कहा "तू चुप क्यों है. कुछ बोलती क्यों नही."

कीर्ति बोली "आज पापा का फोन आया था. वो घर वापस बुला रहे है. परसो से मेरे स्कूल खुलने है इसलिए वो कल वापस आने को बोल रहे थे. "

मैं बोला "तो इसमे परेशन होने की क्या बात है. जब तेरी फिर छुट्टी पड़े तो तू फिर रहने आ जाना."

कीर्ति बोली "पर मैं तुझे ऐसी हालत मे छोड़ कर कैसे जा सकती हूँ."

मैं बोला "अरे मुझे क्या हुआ है. एक दो दिन मे तो मैं बिल्कुल ठीक हो जाउन्गा."

कीर्ति मेरे गले लग गयी और रोने लगी.

मैं बोला " क्या हुआ तुझे, रो क्यों रही है."

कीर्ति रोते हुए बोली "नही तू जब तक ठीक नही हो जाता, मैं तुझे छोड़ कर कही नही जाउन्गी."

मैं बोला "ठीक है बाबा मत जाना. मैं कल मौसा जी से बात कर लूँगा. अब रोना बंद कर."

मेरी बात सुनकर कीर्ति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और कहने लगी "ये बात पहले नही कह सकते थे. क्या मुझे रुलाना ज़रूरी था."

मैं बोला "मुझे क्या पता था कि तू इतनी सी बात पर ही रोने लगेगी."

कीर्ति बोली "अच्छा अब ज़्यादा बात मत बना और चुप चाप सो जा."

मैं बोला "अभी तो मैं सोकर उठा हूँ अब मुझे नींद कहाँ आएगी."

कीर्ति बोली "तुम लेटो तो सही. मैं तुम्हे सुला दुगी."

कीर्ति की बात सुन कर मैं लेट गया. वो मेरे सिरहाने पर बैठ कर बड़े प्यार से मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फेरने लगी. उसके ऐसा करने से मुझे एक अजीब सी शांति का अनुभव होने लगा. मैं उस से कुछ कहने ही वाला था कि उसने अपनी उंगलिया मेरे होंठो पर रख कर मुझे चुप करा दिया. फिर अपने हाथों से मेरी आँखों को बंद कर, वो फिर से मेरे बालों मे उंगलिया फेरने लगी. उसकी कोमल उंगलियों के अहसास मे क़ैद होकर, पता ही नही चला कि मैं कब गहरी नींद की आगोश मे खो गया.

मैं गहरी नींद मे था तभी मुझे मेरे घुटनो पर सिकाई का अहसास हुआ और मैने आँख खोल कर देखा तो कीर्ति बड़े ही हल्के हाथो से मेरे घुटने की सिकाई कर रही थी. मैने फिर आँख बंद कर ली और चुप चाप लेता रहा. वो कब से सिकाई कर रही थी ये तो मुझे नींद मे होने की वजह से नही मालूम था, मगर उसने करीब 10 मिनिट ऑर मेरे घुटने की सिकाई की और फिर लाइट बंद कर वापस मेरे पास आकर बैठ गयी. कुछ देर मुझे कोई हलचल समझ मे नही आई फिर मुझे अपने माथे पर कीर्ति के नरम होंठो का अहसास हुआ. उसने मेरे माथे पर हल्का सा किस किया और मुझे धीरे से गुड नाइट बोला. फिर उसने मेरे सीने पर अपना सर रखा और अपनी एक बाँह से मुझे जाकड़ कर सो गयी.

अपने सीने पर उसका सर रखा होने के अहसास से, मुझे एक नये सुख का अहसास हुआ और मैं अपने आपको ना रोक सका. मैने अपनी आँख खोली और उसका चेहरा देखने लगा. उसके चेहरे की मासूमियत देख कर मुझे उस पर बहुत प्यार आया और मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा. कीर्ति अभी सोई नही थी. जैसे ही उसे अपने सर पर मेरे हाथ फेरने का अहसास हुआ. उसने बिना आँख खोले ही कहा.

कीर्ति बोली "कब नींद खुली."

मैं बोला "अभी अभी."

उसने अपने हाथो को मेरी आँखो पर रख कर बंद किया और बोली "अब आँख मत खोलना और चुप चाप सो जाओ."

मैं बोला "अब नींद नही आ रही."

कीर्ति कुछ नही बोली. उसने अपने हाथो से मेरे मूह को बंद किया और फिर मेरे बालों मे उंगलियाँ फेरने लगी. मुझे दवाइयों का असर तो था ही और उपर से कीर्ति की जादुई उंगलियों के स्पर्श से मैं फिर गहरी नींद मे सो गया. सुबह देर तक मैं सोता रहा.

छोटी माँ के जगाने से मेरी नींद खुली. उन्हो ने मुझे जगाया और पूछा "अब तेरा दर्द कैसा है."

मैं बोला "अब तो काफ़ी कम है."

छोटी माँ बोली "अपने घुटने को मोड़ कर देख ज़रा."

मैने घुटने को मोड़ कर देखा मगर वो सिर्फ़ थोडा सा मुड़ा और फिर मुझे दर्द होने लगा.

छोटी माँ बोली "रहने दे. इसे ठीक होने मे अभी समय लगेगा. तू अभी फ्रेश होने जाएगा."

मैं बोला "हाँ."

ये सुनकर छोटी माँ ने मेरे कपड़े उतार दिए अब मैं सिर्फ़ शॉर्ट्स मे था. वो मुझे सहारा देकर बाथरूम तक ले गयी. फिर मैने उन्हे जाने को कहा तो उन्होने दरवाजा अंदर से बंद करने को मना किया और खुद दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया. छोटी माँ बहुत कम ही उपर आती थी मगर कल से उन्हे मेरी वजह से बार बार उपर आना पड़ रहा था.

मुझे घुटने के ना मुड़ने की वजह से थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी फिर भी मैं धीरे धीरे फ्रेश हो ही गया. फ्रेश होने के बाद मैने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा कीर्ति ने खोला. कीर्ति मुझे सहारा देकर बेड तक ले गयी और फिर उसने कपड़े पहन ने मे भी मेरी मदद की. तब तक छोटी माँ नाश्ता लेकर आ गयी.

मैने पुछा "अमि निमी स्कूल चली गयी."

छोटी माँ बोली "हाँ चली गयी मगर बड़ी मुश्किल से गयी है. आज तो निमी के साथ साथ अमि भी स्कूल नही जाना चाहती थी. फिर कीर्ति ने उनको समझा कर स्कूल भेजा है."

कीर्ति बोली "अब नाश्ता कर लो, तुम्हे नाश्ते के बाद दवा भी खाना है."

मैं चुप चाप नाश्ता करने लगा और छोटी माँ मेरे घुटने की सिकाई करने लगी.

छोटी माँ बोली "तेरे पापा आ गये है."

मैं बोला "आपने उन्हे मेरी तबीयत के बारे मे कुछ बताया तो नही."

छोटी माँ बोली "अभी तो नही बताया क्योंकि वह सुबह जल्दी ही ऑफीस निकल गये मगर शाम को तो बताना ही पड़ेगा."

मैं बोला "नही, उनको कुछ मत बताना. वैसे भी मैं 1-2 दिन मे ठीक हो जाउन्गा और उन्हे कुछ मालूम भी नही पड़ेगा."

छोटी माँ बोली "ठीक है नही बताउन्गी पर यदि मैं उनके सामने उपर आउगि तो उन्हे शक़ तो हो ही जाएगा कि मैं बार बार उपर क्यों जा रही हूँ."

मैं बोला "आपको उनके सामने उपर आने की ज़रूरत नही है. वैसे भी कीर्ति और अमि निमी तो है मेरा ख़याल रखने के लिए. आप बस मौसा जी से बोल कर कीर्ति को एक दो दिन के लिए ऑर रोक लीजिए."

छोटी माँ बोली "ठीक है मैं जीजा जी से बात कर लुगी और उनसे बोल दुगी कि कीर्ति कुछ दिन यही से स्कूल चली जाएगी."

मैं बोला "हाँ ये ठीक रहेगा. हो सके तो कमल से कहकर कीर्ति का बॅग यूनिफॉर्म और स्कूटी मॅंगा लीजिए."

छोटी माँ बोली "मैं बॅग और यूनिफॉर्म मॅंगा लेती हूँ. स्कूटी तो ये मेरी भी ले जा सकती है."

मैं बोला "ठीक है. तो आप मौसा जी से अभी बात कर लीजिए पर उन्हे भी मेरे आक्सिडेंट की बात मत बताना, नही तो उनसे बात पापा तक पहुच जाएगी."

छोटी माँ बोली "ठीक है नही बताउन्गी. अब मैं नीचे जाती हूँ. मुझे बहुत काम है."

ये कह कर छोटी माँ नीचे चली गयी और नाश्ते के बाद कीर्ति ने मुझे दवा खिलाई और फिर अपने कमरे मे चली गयी. कुछ देर बाद वो तैयार होकर आई. वो ब्लू टी-शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहने थी.

मैने कहा तुझे इस जीन्स और टी-शर्ट के अलावा कोई और ड्रेस नही मिलती पहन ने के लिए."

कीर्ति बोली "मुझे इसके अलावा कोई और ड्रेस पसंद नही आती. मैं इसी मे अपने आपको कंफर्ट महसूस करती हूँ."

मैं बोला "ठीक है जो तुझे अच्छा लगे तू पहन, पर तू इतना बन ठन के कहाँ जा रही है."

कीर्ति बोली "मैं नही हम जा रहे है. तू भूल गया कि हमें आज मेहुल के घर जाना है."

मैं बोला "हाँ यार मैं तो भूल ही गया था, मगर अभी तो 9:30 ही बजा है. हम इतनी जल्दी जाकर क्या करेंगे."

कीर्ति बोली "जल्दी नही हम आराम से चलेगे. मैं तो पहले से इसलिए तैयार हो गयी हूँ, ताकि बाद मे तैयार होने मे समय बर्बाद ना हो, और हम लोग अमि निमी के आने से पहले निकल चलें."

मैं बोला "अमि निमी के आने से पहले निकलने की कोई खास वजह है."

कीर्ति बोली "वजह तो खास ही है. क्योंकि दोनो बड़ी मुश्किल से स्कूल गयी है और यदि वो आ गयी तो हो सकता है कि तुझे घर से निकलने ही ना दे, इसलिए हमें उनके आने से पहले ही निकलना होगा."

अब मैने कुछ नही बोला और चुप चाप बेड पर लेट गया. कीर्ति भी मेरे पास ही बैठ गयी और रिया से मिलने के बारे मे पूछने लगी, मगर आज ना जाने क्यों मुझे कीर्ति का रिया को लेकर बात करना अच्छा नही लगा. या यूँ कह लो कि मैं रिया के बारे मे कोई बात ही करना नही चाहता था. मैं बेमन से कीर्ति की बातों का जबाब देता रहा पर सच तो ये था कि अब मुझे रिया मे कोई खास रूचि नही रह गयी थी. ये शायद कीर्ति के साथ का ही असर था, जिसने मेरे दिल से रिया का साथ पाने का ख़याल निकाल दिया था पर कीर्ति को शायद इस बात का अहसास नही था. तभी तो वह रिया की बातें हंस हंस कर किए जा रही थी. मगर जब मुझसे नही रहा गया तो मैं खीजते हुए बोला.

मैं बोला "तुझे रिया के सिवा कुछ दिखाई नही देता. यदि उसे इतनी ही पड़ी थी तो वो खुद मुझसे मिलने क्यों नही आ गयी. मुझे रिया के बारे मे कोई बात नही करनी."

मेरा अचानक से ये बदला हुआ रूप देख कर कीर्ति कुछ देर के लिए भौकक्की रह गयी मगर फिर हंसते हुए बोली.

कीर्ति बोली "मैं तो तेरा मूड फ्रेश करने के लिए रिया की बात कर रही थी. अगर तुझे अच्छा नही लगता तो नही करूगी."

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. रिया की अपनी लाइफ है और मेरी अपनी लाइफ है. मैं नही चाहता कि हम इस बारे मे कोई ज़्यादा बात करे. वो अपनी लाइफ मे खुश रहे और हम अपनी लाइफ मे खुश रहे."

कीर्ति बोली "ओके यार, अब ऐसी कोई बात नही करूगी पर तू अपना मूड मत खराब कर."

इसके बाद हम मेहुल के घर जाने की बात करने लगे. इसमे काफ़ी सारा समय बीत गया और फिर 11 बजे छोटी माँ खाना लेकर आई. फिर मैने और कीर्ति ने थोड़ा बहुत खाना खाया और छोटी माँ ने मेरे घुटने की सिकाई की और फिर मैने उन से मेहुल के घर जाने की बात की तो उन ने मना नही किया. कीर्ति ने मेहुल के घर चलने की बात पूछी तो मैने कहा चलो. फिर वो और छोटी माँ मुझे सहारा देकर नीचे ले आई. छोटी माँ ने पूछा तुझसे चलते तो बन रहा है ना. तो मैने कहा हाँ, अब मुझसे थोड़ा बहुत चलते बन रहा है. उन्हो ने कहा ठीक है ज़रा तू चल कर बता. मैं धीरे धीरे चल कर स्कूटी तक पहुचा. कीर्ति ने मुझे स्कूटी पर बिठाया और फिर आराम आराम से स्कूटी चलाने लगी. करीब आधा घंटे बाद हम मेहुल के घर पहुचे. कीर्ति ने मुझे स्कूटी से सहारा देकर उतारा और फिर मेहुल के घर की डोरबेल बजाई.
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09-09-2020, 12:53 PM,
#40
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
दरवाजा मेहुल ने खोला. मुझे अपने सामने खड़ा देख कर वो चौक गया. वो तुरंत भागते हुए मेरे पास आया और मुझे अपने कंधे का सहारा देकर अंदर ले गया. पीछे पीछे कीर्ति भी अंदर आ गयी. उसने ले जाकर मुहे सोफे पर बैठाया और मेरे पैरों को सोफे पर फैला दिया. ताकि मुझे तकलीफ़ ना हो. अंकल भी वही थे पर उन्हे कुछ समझ मे नही आ रहा था और वो चुपचाप खड़े मुझे और मेहुल को देखने लगे.

मेहुल बोला "तू पागल है क्या.? ऐसी हालत मे तुझे यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी."

फिर वो कीर्ति की तरफ देख कर बोला "क्या तुझे ज़रा भी अकल नही है. जब मालूम है कि अभी इस से ठीक से चलते नही बन रहा है, तो इसे लेकर क्यों घूम रही है."

कीर्ति अंजान बनते हुए बोली "मैं क्या करती. ये तो टेक्शी लेकर आ रहा था. अब मैं इसे अकेले तो नही आने दे सकती थी. मजबूरी मे मुझे ही इसको लेकर आना पड़ा."

तभी आंटी भी वहाँ आ गयी. "मुझे सोफे पर पैर फैलाए बैठे देख कर बोली "क्या हुआ इसे. इसके शरीर पर ये चोट के निशान कैसे है.?"

मैं बोला "कुछ नही आंटी कल बारिश मे बाइक फिसल गयी थी और ये चोट लग गयी."

आंटी मेरे पास बैठ गयी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली "तुझे ज़्यादा चोट तो नही आई. कहाँ कहाँ लगी है."

मेरे बोलने से पहले ही मेहुल बोल पड़ा "मम्मी इसके घुटने मे चोट है और इस से चलते फिरते भी नही बन रहा है. डॉक्टर. ने 2-3 दिन का बेड रेस्ट बोला है और ये महाशय चहल कदमी करते हुए यहाँ आ गये."

मैं बोला "आंटी ये भी तो मेरा घर ही है ना. तो क्या मैं अपनी तबीयत खराब होने पर यहाँ आराम नही कर सकता."

आंटी बोली "हाँ बेटा ये भी तेरा घर है, पर जब तुझे इतनी तकलीफ़ थी तो तुझे इस तरह यहाँ नही आना चाहिए था."

मैं बोला "आंटी अंकल आज जा रहे थे तो, मैने सोचा मैं भी मिल लूँ, इसलिए आ गया."

अंकल जो अभी तक चुप थे बोले "बेटे बात तो तेरी ठीक है पर तुझे इस तरह यहाँ नही आना चाहिए था. तू बोल देता तो मैं खुद तुझसे मिलने आ जाता."

मैं बोला "नही अंकल ऐसी कोई बात नही है. ये मेहुल तो बेकार मे बात का बटांगड़ बना रहा है. बस यू ही हल्की सी चोट लगी है. अब यदि हाथ पैर नही चलाउन्गा तो ठीक कैसे होउंगा."

कीर्ति बोली "हाँ अंकल अब तो इसको पहले से बहुत आराम है. घुटने की चोट मे थोड़ा सा चलना फिरना ज़रूरी है ताकि उसकी कसरत हो सके."

आंटी बोली "चल आ गया तो कोई बात नही है. अब तू यही आराम कर ले. मेहुल तू इसे अपने कमरे मे ले जा."

मैं बोला "आंटी मैं अभी यही ठीक हूँ. जब आराम करना होगा तो मैं खुद बोल दूँगा."

मेहुल कुछ बोलना ही चाहता था कि आंटी ने उसे गुस्सा करते हुए कहा "अब तू चुप कर. कल से लड़के की ऐसी हालत है और तूने बताया तक नही और अब आया बड़ा ख़याल करने वाला. जा और जाकर जल्दी से इसके लिए जूस लेकर आ. तब तक मैं इसे कुछ खिला देती हूँ."

मेहुल मुझे घूरते हुए बाहर चला गया और आंटी किचन मे चली गयी.

अंकल कीर्ति को खड़ा देख कर बोले "तुम क्यों अजनाबीयों की तरह खड़ी हो बेटी. तुम्हारा ही घर है आराम से बैठो."

कीर्ति भी दूसरे सोफे पर बैठ गयी और वो अंकल को मेरी तबीयत के बारे मे बताने लगी. कुछ देर बाद नितिका और रिया भी आ गयी, लेकिन उनके साथ शिल्पा भी थी. अंकल ने उन्हे भी बैठने को कहा. तभी मेहुल जूस लेकर आ गया. उसकी नज़र उन तीनो पर पड़ी तो वो फिर से चौके बिना ना रह सका. तब तक आंटी खाना लेकर आ गयी और मेरे पास बैठ कर मुझे अपने हाथों से खिलाने लगी.

ये देख कर मेहुल बोला "आप ने ही इसे बिगाड़ा है मम्मी. एक तो ये ऐसी हालत मे इधर तक आया. उपर से आप इसे गुस्सा करने की जगह अपने हाथों से खिला कर इसकी मनमानी को बढ़ावा दे रही हो. इसे तो भूका रखना चाहिए ताकि दोबारा ऐसी हरकत ना करे."

आंटी बोली "तू तो बिल्कुल चुप रह. तुझे तो मैं बाद मे देखती हूँ. अभी जाकर गिलास मे जूस लेकर आ."

ये देख कर शिल्पा को छोड़ बाकी सब हँसने लगे और मेहुल गिलास मे जूस निकालने लगा.

कीर्ति ने मेरी तरफ देख कर इशारा किया और मैं अंकल से बोला "अंकल आप की ट्रेन कितने बजे की है."

अंकल बोले "6 बजे की."

ये सुनकर नितिका बोली "आप कहीं जा रहे है अंकल."

अंकल बोले "हाँ बेटी, मेरे एक दोस्त के रिश्तेदार की तबीयत ठीक नही है. उन्हे ही लेकर मुंबई जा रहा हूँ."

मुंबई का नाम सुनते ही रिया बोल उठी "अंकल जी हम लोग भी मुंबई मे ही रहते है. आप कितने दिन वहाँ रुकेगे."

अंकल बोले "बेटी अभी तो सिर्फ़ दिखाने जा रहे है, अगर डॉक्टर. ने रुकने को कहा तो हो सकता है कि 10-15 दिन या कुछ ज़्यादा भी रुकना पड़ जाए."

रिया बोली "अंकल जी आप मेरा अड्रेस और मोबाइल नंबर लिख लीजिए और अपना मोबाइल नंबर मुझे दे दीजिए. मैं भी 2 दिन बाद घर वापस जा रही हूँ. अगर उस समय आप वहाँ रहे तो हो सकता है कि, मैं आप के कुछ काम आ सकूँ."

फिर रिया ने अपना अड्रेस और मोबाइल नंबर अंकल को दिया और अंकल का मोबाइल नंबर खुद नोट किया. ये सब होते देख कर अंकल समझ गये थे कि, मैं वहाँ इस हालत मे भी किस लिए आया था.

वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए आंटी से बोले "रिचा अब उसे और कितना खिलाओगी. तुम उसे खिलाती जाओगी तो, वो भी बिना मना किए खाए जाएगा. अब उस बेचारे पर रहम भी करो, और कुछ जगह जूस के लिए भी रहने दो."

ये सुनकर आंटी ने मुझे खाना खिलाना बंद किया और जूस पिलाकर वापस जाकर अंकल के जाने की तैयारी करने लगी. अंकल भी अपने रूम मे चले गये. उनके जाने के बाद रिया मेरे पास आकर बैठ गयी और फिर हम लोगों की आपस मे बात चलती रही. अंकल के जाने की सारी तैयारी होने के बाद अंकल आंटी भी हमारे पास आकर बैठ गये. करीब 5 बजे रॉय अंकल आ गये और फिर अंकल मेहुल और रॉय अंकल स्टेशन के लिए निकल गये और कुछ देर आंटी से बात करने के बाद हम सब भी अपने अपने घर आ गये.

मेरे घर लौटने पर निमी ने उनके आने से पहले ही, चले जाने की नाराज़गी जताई और फिर मैं अपने कमरे मे आ गया. आज पापा आ गये थे इसलिए सब ने पापा के साथ ही खाना खाया. खाने के बाद अमि निमी और कीर्ति सोने के लिए उपर आ गये. उपर आकर तीनो काफ़ी देर तक मेरे पास ही बैठी बात करती रही. फिर 11 बजे अमि निमी अपने कमरे मे और कीर्ति अपने कमरे मे चली गयी. मैने सोचा कि अमि निमी आज उपर सो रही है इसलिए कीर्ति उनके साथ ही सोएगी मगर ऐसा नही हुआ. कुछ देर बाद कीर्ति अपना नाइट सूट पहन कर वापस मेरे कमरे मे आ गयी. उसने आकर पहले मेरे घुटने की सिकाई की और फिर मेरे पास ही लेट गयी, मगर आज वो कुछ खोई खोई सी लग रही थी.

मैं बोला "क्या बात है. आज तू जबसे नीचे से आई है बहुत चुप चुप सी है."

कीर्ति बोली "कोई खास बात नही है. बस यू ही."

मैं बोला "जिस बात ने तुझे यू खामोश कर दिया है, वो कोई ऐसी वैसी बात तो हो ही नही सकती. सच सच बता क्या बात है."

कीर्ति बोली "मुझे यहाँ आए एक हफ़्ता हो गया है, मगर मैने इस एक हफ्ते मे कभी भी तुझे और मौसा जी को ना तो बात करते देखा है, और ना ही एक दूसरे का सामना करते देखा है. यहाँ तक कि मैने दोनो मे से किसी को भी एक दूसरे से के बारे मे बात तक करते नही देखा है. दोनो एक दूसरे से कटे कटे ही रहते है. मैने आज ये बात मौसी से भी पूछी, तो वो भी टाल गयी. बस यही एक बात है जो मुझे परेशान कर रही है."

ये कहकर वो मेरी तरफ देखने लगी और मैं किसी सोच मे गुम हो गया. मेरा चेहरा कठोर हो गया. मेरे चेहरे की रंगत बदलने लगी. जिसे देख कर कीर्ति को लगा कि शायद उसने कोई ग़लत बात पूछ ली है. जिस वजह से परेशान हो गया हूँ. मुझे यू किसी गहरी सोच मे डूबा देख कर कीर्ति मुझे बहलाने लगी.

कीर्ति बोली "जाने दे ना. यदि बताने लायक बात नही है तो मत बता. मैं जानकार भी क्या करूगी. मैं तो पागल हूँ. तू मेरे साथ पागल मत बन. अपने दिमाग़ को ये टेन्षन देना बंद कर और इस बात को भूल जा."

मैं बोला "तेरे सिवा इस बात को किसी और ने पूच्छा होता तो मैं कभी नही बताता. क्योंकि मैं इस बात को अपने दिल की गहराई मे कब का दफ़न कर चुका था. मगर ये बात तूने पुछि है इसलिए बता रहा हूँ. ये बात मैं तुझसे किस तरह कहूँ ये मेरे समझ मे नही आ रहा है. ये बात मेरे मूह से सुनने मे तुझे शायद बहुत बुरा लगे पर अब तू मेरे बारे मे सब अच्छी बुरी बात जानती है तो तुझे ये बात भी जानने का पूरा हक़ है, इसलिए मैं तुझे ये बात बता रहा हूँ. लेकिन तू ये बात सिर्फ़ अपने तक ही रखना."

"ये बात आज से करीब 2 साल पहले की है. तब मैं 8थ मे पड़ता था. सेक्स के बारे मे मुझे भी उसी तरह जानकारी होने लगी जैसे बाकी लोगों को उमर के साथ हो जाती है. मेरे और पापा के रिश्ते तो मेरी माँ के मरने के बाद से ही धीरे धीरे खराब होते चले गये थे. छोटी माँ के आने से मुझे शुरू शुरू मे थोड़ा बुरा ज़रूर लगा था, मगर फिर कुछ समय बाद हम दोनो के बीच के सारे मतभेद ख़तम हो चुके थे और मैं उनके साथ बहुत खुश था. अमि निमी के आने से मेरी खुशी और भी बढ़ गयी थी तो वही तेरे जैसा दोस्त भी मिल गया था. मैं छोटी माँ को अब अपनी माँ की तरह ही प्यार करता था, इसलिए यदि पापा उन्हे कुछ भी कहते तो मुझे बुरा लगता था. मैं उन्हे उल्टा सीधा बकने लगता मगर फिर भी हम बाप बेटे का रिश्ता बना रहा."

लेकिन 2 साल पहले एक ऐसी घटना घटी जिससे हम बाप बेटे के रिश्ते मे दूरियाँ और भी ज़्यादा बढ़ गयी. हुआ ये कि मुझे अचानक कुछ पैसो की ज़रूरत पड़ी. छोटी माँ अपनी किसी सहेली से मिलने गयी थी, और मुझे पैसों की सख़्त ज़रूरत थी इसलिए मैं पापा के ऑफीस पहुच गया, मगर जब मैं पहुचा तो छोटी माँ भी अपनी सहेली से मिलने के बाद किसी काम से ऑफीस पहुचि थी. वो मुझे ऑफीस के बाहर ही मिल गयी. मैने उनसे पैसे माँगे तो उन्हो ने कहा अभी उनके पास उतने पैसे नही है. मैं अंदर चलूं वो पापा से मुझे पैसे दिला देगी. हम दोनो पापा के ऑफीस मे आ गये. लेकिन पापा अपने कॅबिन मे नही थे. हम लोग पापा के उस रूम की तरफ बढ़ गये जो पापा ने अपने रेस्ट के लिए बनाया हुआ था. उस मे पापा की बिना अनुमति के कोई भी नही जाता था. एक तरह से वो पापा का ऑफीस कम बेडरूम था. जो पापा ने सिर्फ़ अपने आराम के लिए बनवाया था. उसमे सभी तरह की सुविधाए थी.

हम लोग अभी उस रूम के दरवाजे पर पहुचे ही थे कि, एक लड़की के रोने की आवाज़ आई. छोटी माँ ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर जाने से रोक दिया. हम दोनो कमरे के बाहर दरवाजे पर ही खड़े होकर पापा और उस लड़की की बात सुनने लगे.

पापा अपने टेबल से टिक कर खड़े थे और लड़की उनके सामने एक चेयर पर बैठी थी. वो पापा का व्याकिगत कमरा था इसलिए वाहा उनकी इजाज़त के बिना किसी के आने की कोई उम्मीद नही थी.

लड़की बोली "सर प्लीज़ मेरे साथ ऐसा मत कीजिए. मैं आपकी बेटी की उमर की हूँ."

पापा बोले "अगर तुम मेरी बेटी होती तो मैं तुम्हारे साथ ये सब कब का कर चुका होता और मैं कॉन सा तुम्हारा बलात्कार कर रहा हूँ या तुम्हे गर्भवती कर रहा हूँ. तुम्हे जॉब की ज़रूरत है और मुझे तुम जैसी कमसिन कली की. यदि मैं तुम्हारी ज़रूरत को पूरा कर रहा हूँ तो, तुम्हारा भी फर्ज़ बनता है कि तुम मेरी ज़रूरत को पूरा करो."

लड़की बोली "सर मैं बहुत सरीफ़ लड़की हूँ. मैं ये सब नही कर सकती."

पापा बोले "सोच लो तुम्हे जॉब चाहिए या नही. मेरे पास लड़कियों की कमी नही है पर तुम्हे शायद ऐसा जॉब कही और ना मिले."

लड़की बोली "सर मैं बदनाम हो जाउन्गी. मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. आप तो शादी शुदा है और मेरी तो अभी शादी भी नही हुई है. कुछ तो मेरे उपर रहम कीजिए."

पापा बोले "हाँ मैं शादी शुदा हूँ पर मुझे तुम जैसी कमसिन कली का रस चूसने की आदत है. यदि तुम शादी शुदा होती तो मैं तुम्हारी तरफ देखता भी नही. क्योंकि मैं वो भँवरा हूँ जो सिर्फ़ कलियों का रस चूस्ता है फूलों का नही. मैं इतने साल से ये सब करते आया हूँ, क्या तुमने किसी के मूह से ये बात सुनी है. नही ना. तो फिर अपनी बदनामी का डर निकल दो. ये बात सिर्फ़ मेरे तुम्हारे बीच मे ही रहेगी. अब आगे तुम्हारी मर्ज़ी. तुम चाहो तो जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो, या फिर कल से जॉब पर मत आओ. मैं तुमसे किसी भी बात के लिए ज़बरदस्ती नही करूगा. जो भी करूगा तुम्हारी मर्ज़ी से करूगा."

"ये बोल कर पापा उस लड़की के जबाब का इंतजार करने लगे और छोटी माँ इन सब बातों को सुनने मे ऐसा खो गयी कि वो ये भी भूल गयी कि मैं भी उनके साथ ही हूँ. उनके लिए पापा का ये रूप बिल्कुल ही नया था."

"उस लड़की की उम्र कोई 19-20 के आस पास रही होगी. वो ब्लॅक शॉर्ट स्कर्ट और वाइट शर्ट पहने थी. देखने मे बहुत ही सुंदर थी. उसके बूब्स शर्ट को फड़कर बाहर निकलने के लिए बेताब नज़र आ रहे थे. उसकी शर्ट के अंदर से रेड कलर की लालिमा सॉफ नज़र आ रही थी. जिस से अंदाज लगाया जा सकता था कि वो अंदर रेड ब्रा पहने हुए है. उसकी स्कर्ट भी घुटनो के काफ़ी उपर थी जिस से उसकी पिंदलियो पर पड़ने वाले बल को देख कर उसकी जाँघो का हिसाब लगाना भी मुस्किल नही था. उसके पहनावे से उसके बदन आकार सॉफ समझ मे आ रहा था कि 34 28 36 है."

लड़की ने कुछ जबाब नही दिया तो पापा बोले "तुम कुछ जबाब तो दो या फिर तुम्हारी खामोशी को मैं तुमहरि हाँ समझू."

"लड़की चुप थी. पापा ने उसकी खामोशी को उसकी हाँ मान लिया और उसकी दोनो बाँहे पकड़ कर उसे खड़ा कर अपने होंठ उसके होंठो पर लगा कर चूसने लगे और अपने हाथों से उसके बूब्स मसल्ने लगे. लड़की ने कोई विरोध नही किया, मगर वो कोई सहयोग भी नही कर रही थी.

मगर पापा किसी मँझे हुए खिलाड़ी की तरह उसके होंठ चूस्ते चूस्ते अपने एक हाथ से उसकी शर्ट के बटन खोलने लगे. कुछ ही देर मे शर्ट लड़की के बदन से अलग हो चुकी थी. अब लड़की रेड ब्रा मे थी और पापा उसकी ब्रा के उपर हाथ फेरते हुए अभी भी उसके होंठ चूस रहे थे.

पापा के हाथ उसकी ब्रा पर घूमते घमते ब्रा की स्ट्रीप पर गये, और लड़की कुछ ही पल बाद ब्रा के बंधन से मुक्त हो चुकी थी. अब पापा उसके होंठो को चूसना बंद कर उसकी मस्त चुचियों बारी बारी से को चूसने लगे. जिससे उसकी चुचियाँ तन कर खड़ी हो गयी. पापा एक चुचि को चूस्ते तो, दूसरी को अपने हाथो से मसलते. जिस वजह से लड़की कसमसा रही थी.

लड़की सिस्याने लगी और उसके हाथ खुद बा खुद पापा के सर पर चले गये, और वो पापा के सर को अपने बूब्स पर दबाने लगी. लड़की को उत्तेजित कर पापा ने एक पड़ाव पार कर लिया था, और अब घमासान जंग की तैयारी मे लग गये.

उन्होने लड़की की चुचियों का रस पीते पीते अपने हाथो से, उसकी स्कर्ट को नीचे धकेल दिया और रेड पेंटी के उपर से उसकी पुसी को सहलाने लगे.

पापा के ऐसा करने से लड़की अपना काबू खोने लगी और उसकी आँखें मस्ती से बंद होने लगी. वो पापा के सर को अपने अपने बूब्स पर दबा रही थी.

पापा ने उसे टेबल पर बैठा दिया और एक पल मे उसकी पेंटी को अलग कर उसकी पुसी पर अपने होंठ लगा कर अपनी जीभ से उसे चाटने लगे.

लड़की छटपटाने लगी और अपनी टाँगों से पापा के सर को जाकड़ लिया, और और अपने हाथो से पापा के सर को पुसी पर दबाने लगी.

अब वो पूरी तरह से मदहोशी की हालत मे थी, और बोल रही थी "चाटो सिर्र्र्र्र्र्ररर, मेरी कुँवारी पूस्सयययी को चाट चाट कार्रररर इसकी प्यसस्स्स्स्स्स्सस्स भुजाआआअ दूऊऊ."

अब कमरे मे लड़की की सिसकियाँ और वासना भरी आवाज़ें ही गूँज रही थी. पापा ने अपना दूसरा पड़ाव भी पार कर लिया था.

वो लड़की की पुसी चाट रहे थे और अपने हाथों से उसके बूब्स मसल रहे थे और फिर कुछ समय बाद वो पल भी आ गया जिसके लिए पापा ने इतनी मेहनत की थी.

लड़की कुछ देर बाद शांत पड़ गयी. उसकी पुसी से रस धार बहने लगी और पापा उसे पी रहे थे.

अब पापा ने लड़की को गोद मे उठाया और फिर बेड पर ले गये और उसे बैठा दिया.

उन्होने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपना लिंग लड़की के हाथ मे थमा दिया. अब लड़की भी जंग लड़ने के मूड मे थी, उसने पापा के लिंग को अपने हाथों से मसलना सुरू कर दिया.

लेकिन पापा का मूड कुछ और ही था, उनने अपने लिंग को उसके होंठो पर लगा दिया. लड़की मतलब समझ चुकी थी उसने पापा के लिंग को अपने मूह मे भर लिया.

वह पापा के लिंग को बड़े मज़े से चूसने लगी. पापा की आँख बंद होने लगी. वो लड़की के सर को अपने लिंग पर दबा रहे थे.

लड़की लॉलिपोप की तरह उनके लिंग को चूसे जा रही थी. अब पापा पूरे उन्माद पर पहुच चुके थे और शायद वो झड़ना नही चाहते थे.

उन्हो ने लड़की का मूह अपने लिंग से अलग कर उसे बेड पर लिटा दिया, और खुद उसकी दोनो टाँगों के बीच मे आ गये. ये देख लड़की घबरा गयी.

वो बोली "सर इतना मोटा लिंग मेरी पुसी मे कैसे जाएगा."

पापा बोले "पहली बार ऐसा ही लगता है पर जब ये अंदर जाएगा तो, पता ही नही चलेगा कि पूरा का पूरा कहाँ चला गया, और फिर तुम्हे वो मज़ा देगा जो कभी तुमने महसूस ही नही किया होगा."

पापा ने लड़की की दोनो टाँगों को फैलाया और अपने लिंग के टॉप को उसकी पुसी मे लगा कर एक धक्का मारा.

लड़की के मूह से चीख निकल गयी "उईईईई माआआआ"

पापा ने अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए और उसके बूब्स मसल्ने लगे. अभी पापा के लिंग का टॉप ही उसकी पुसी मे गया था.

पापा थोड़ी देर उसके होंठ चूस्ते रहे और लिंग के टॉप को पुसी मे हिलाते रहे. ताकि अगला धक्का मारने के लिए जगह बन सके.

जब उन्हो ने देखा कि लड़की को मज़ा आ रहा है और वो पूरी तरह से उत्तेजित है तो, उन्हो ने एक ज़ोर दार धक्का मारा. इस धक्के से उनका आधा लिंग लड़की की पुसी मे चला गया. लड़की चीखी मगर उसकी चीख उसके गले मे ही दब कर रह गयी थी.

पापा अपने होंठो से उसके होंठों को बंद किए हुए थे. लेकिन दर्द से लड़की की आँख से आँसू बह निकले.

पापा थोड़ी देर के लिए रुक गये और उसके होंठो को चूस्ते रहे, उसके बूब्स मसल्ते रहे.

थोड़ी देर बाद लड़की अपनी कमर को उपर नीचे करने लगी और अब पापा ने भी अपने आधे फसे लिंग को अंदर बाहर करना सुरू कर दिया.

लड़की को मज़ा आने लगा और वह कह रही थी "सर और अंदर कीजिए. मज़ा आ रहा है. ऐसे ही करते रहिए. सर आप बहुत अच्छे हो. आपका लिंग भी बहुत मस्त है.

ये जब मेरी पुसी मे जाता है तो बहुत मज़ा आता है. इसे पूरा अंदर डाल दीजिए. मुझे और भी ज़्यादा मज़ा चाहिए."

वो मस्ती मे अपनी कमर उपर उचका रही थी और पापा आधे लिंग से धक्के लगा रहे थे.

लड़की फिर बोली "प्लीज़ सर पूरा अंदर कीजिए. मुझे पूरा मज़ा चाहिए. मेरी पुसी की प्यास बुझा दीजिए सर."

मगर शायद वो नही जानती थी कि अब ये मज़ा ही उसके लिए सज़ा बनने वाला है.

पापा उसकी बात सुनकर और जोश मे आ गये और उनने अपने लिंग का एक और ज़ोर दार धक्का मारा.

इस बार तो लड़की के प्राण ही निकल गये. वो चीखे बिना ना रह सकी "उईईइ माआ मररर्ररर गाइिईईईई, बाहर निकालो सर मैं मर जाउन्गी, इसे प्लीज़ बाहर निकाल लो."

मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, उसकी कुंवारेपन की झिल्ली फट चुकी थी और उसकी पुसी खून से तर हो गयी थी.

लड़की इसे देख कर जहाँ घबरा रही थी, वही पापा का जोश बढ़ गया था और वो ज़ोर दार धकके पे धक्के लगाए जा रहे थे.

पापा को जहाँ इस से परम आनंद मिल रहा था वही लड़की चीख चीख कर कह रही थी. "प्लीज़ सर मुझे छोड़ दो, मैं मर जाउन्गी."

लेकिन ऐसी सुख की अवस्था मे पापा को रुक पाना ठीक नही लग रहा था, वो उसकी चीख को अनसुना कर, धक्के पे धक्के लगाए जा रहे थे.

कुछ देर बाद लड़की शांत पड़ गयी और अब इन धक्को का मज़ा लेने लगी. उसने पापा की कमर को अपने पैरो से जाकड़ लिया और पापा के धकको के साथ अपनी कमर भी उचकाने लगी.

अब कमरे मे लड़की की सिसकारी और पापा के लिंग के धक्को की आवाज़ें गूँज रही थी.

पापा का लिंग किसी मूसल की तरह लड़की की पुसी मे अंदर जाता और फिर बाहर निकलता.

कुछ देर बाद लड़की शांत पड़ गयी. उसकी पुसी से उसका रस लिंग के अंदर बाहर होने से बाहर आ रहा था.

अब पापा ने भी धक्के मारने की रफ़्तार बढ़ा दी, और कुछ देर बाद पापा का लिंग झटके खाते खाते लड़की की पुसी के अंदर ही शांत हो गया.

पापा झड गये थे और उनका सारा वीर्य लड़की की पुसी के अंदर ही छूट गया था. अब पापा लड़की के उपर ही ढेर हो गये.

मगर ढेर होने से पहले पापा ने तीसरा पड़ाव भी पर कर लिया था, और एक कमसिन कली को फूल बना कर ये जंग भी जीत ली थी.

जो लड़की कुछ देर पहले तक पापा के सामने रो रही थी. अपने शरीफ होने की दुहाई दे रही थी. वही अब पापा को अपनी बाहों मे समेटे उन्हे प्यार से चूम रही थी, और उनसे यह सुख देने के लिए थॅंक्स भी कह रही थी. दोनो ने ही अपनी मंज़िल पा ली थी. पापा और वो लड़की दोनो अब एक दूसरे से लिपटे पड़े थे मगर दोनो संतुष्ट नज़र आ रहे थे.

उनका यह तमाशा मूक दर्शक की तरह देखने वाले हम लोगों के चेहरे पर, तनाव छा गया था. छोटी माँ के तो होश ही गुम थे. उन्हे पापा से इस तरह की हरकत की कभी कोई अपेक्षा नही थी. इसलिए जब उन ने अचानक पापा को ये सब करते देखा तो, वो अपनी सुध बुध खो बैठी थी. उन्हे ये तक ध्यान नही था कि ये सब देखने वाली वो अकेली नही बल्कि मैं भी उनके साथ हूँ. उन्हे जैसे ही अपनी और मेरी उपस्थिति का अहसास हुआ. उन्हो ने बिना देर किए, मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर वापस बाहर ले आई मगर वो अपने आपको रोने से ना रोक पाई.
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