MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:26 PM,
#71
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरे पास कीर्ति के मोबाइल से जो मेसेज आया था.

वो मेसेज था "भैया कॉल उठाओ. मैं अमि हूँ."

ये मेसेज पढ़कर मेरे मरने का इरादा तो टल चुका था. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, कीर्ति के मोबाइल पर अमि कैसे हो सकती है. यदि वो अमि ही है तो, क्या उसने मेरा भेजा हुआ मेसेज पढ़ लिया है. जो वो इस तरह से कॉल लगाए जा रही है. या फिर ये कीर्ति ही मेरे मेसेज को पढ़ कर कोई चाल चल रही है.

इधर मैं ये सब सोचे जा रहा था. उधर कीर्ति के मोबाइल से लगातार कॉल आए जा रहे थे. अचानक मुझे ख़याल आया कि, यदि ये सच मे ही अमि हुई तो, कहीं मेरे कॉल ना उठाने से बात ज़्यादा ना बिगड़ जाए. इस बात के मेरे दिमाग़ मे आते ही मैने कॉल उठा लिया और धड़कते हुए दिल से कहा.

मैं बोला "हेलो."

अमि ने मेरे मेसेज को पढ़ लिया था. इसलिए वो मेरे कॉल उठाते ही रोते हुए कहने लगी.

अमि बोली "भैया आपने कीर्ति दीदी के मोबाइल पर ये कैसा मेसेज भेजा है. मैं अभी जाकर मम्मी से बोलती हूँ कि, भैया कीर्ति दीदी से नाराज़ होकर मरने जा रहे है."

अमि की बात सुनकर मेरे पैरो के नीचे की ज़मीन ही खिसक गयी. मुझे लगा कि ये अभी छोटी माँ को जाकर सब कुछ बता देगी और अभी हंगामा शुरू हो जाएगा. ये ख़याल मन मे आते ही, मैं अपने हर दर्द को भूल कर, अमि को बड़े प्यार से समझाने लगा.

मैं बोला "पागल लड़की, जैसा तू सोच रही है. ऐसा कुछ भी नही है. ये मेसेज तो, यहाँ के मेरे एक दोस्त ने, मेरे मोबाइल से अपनी गर्लफ्रेंड को किया था. मैं उसी को डेलीट कर रहा था. धोके से वो कीर्ति के नंबर पर चला गया. मैने ये बताने के लिए कॉल भी किया था. लेकिन तब मोबाइल बंद था. इसलिए कॉल नही गया."

अमि बोली "यदि ऐसा था तो, फिर आप कॉल क्यों नही उठा रहे थे."

मैं बोला "मैं अंकल के पास बैठा था. अब उनके पास से उठ कर आने मे वक्त तो लगता है ना. यदि मुझे कॉल ना उठाना होता तो, फिर मैं कॉल काटता ही क्यों. कॉल काटने का यही मतलब होता है कि, अभी सामने वाला बिज़ी है. जब तू मोबाइल चलाने लगेगी तो, ये सब बातें खुद तेरे समझ मे आ जाएगी."

अमि बोली "आप सच बोल रहे है ना भैया."

मैं बोला "मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा है. जो मैं अपनी अमि निमी को छोड़ने कर मरने जाउन्गा. मैं तो यहाँ हॉस्पिटल मे अंकल के पास बैठा हूँ, और अभी अंकल सो रहे है. मेरी तो उस से दोपहर के बाद बात ही नही हुई है. फिर भला मैं कीर्ति से किस बात पर नाराज़ रहुगा. मुझे तो लगता है तू निमी से भी ज़्यादा नासमझ है. जो इतनी सी बात भी नही समझती."

मेरी इस बात का अमि पर असर हुआ और वो मेरी बात को समझ गयी. उसने राहत की साँस लेते हुए कहा.

अमि बोली "मैं तो डर ही गयी थी. मुझे लगा कही आप सच मे तो ये सब करने नही चले गये."

मैं बोला "अब तो सब बात समझ मे आ गयी ना. अब ये बता तू इतनी रात को क्यों जाग रही है, और तेरे पास ये कीर्ति का मोबाइल कहाँ से आ गया."

अमि बोली "भैया मैं और निमी तो आपको बर्तडे विश करने के लिए जाग रही थी. मगर निमी आपसे बात होने के थोड़े ही देर बाद सो गयी. लेकिन मैं अभी तक जाग रही हूँ. हॅपी बर्थदे टू यू भैया."

उसकी बात सुनकर मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े. ये आँसू खुशी के भी थे, और उस ग़लती के पछतावे के भी थे. जो मैं अभी अभी करने जा रहा था. मुझसे कुछ भी कहते ना बना. मैने सिर्फ़ इतना कहा.

मैं बोला "थॅंक्स बेटू."

लेकिन मेरी इतनी सी बात से ही अमि को अहसास हो गया था कि, मैं रो रहा हूँ. उसे मुझे बर्तडे विश करने से जो खुशी मिली थी. वो खुशी मेरी आँखों के आँसू महसूस करते ही उदासी मे बदल गयी थी. उसने उदासी भरे शब्दों मे मुझसे कहा.

अमि बोली "भैया आप रो क्यों रहे हो. आपको क्या हुआ है. क्या आपको किसी ने कुछ कहा है."

अमि की बात सुनकर मुझे अहसास हुआ कि, मैं ये क्या कर रहा हूँ. अपनी उस भोली भली बहन को बेकार मे दुखी कर रहा हूँ. जो अभी तक सिर्फ़ इसलिए जाग रही थी कि, मुझे बर्तडे विश कर सके. मैने जल्दी से अपने आँसू पोन्छे और अमि को चिड़ाते हुए कहा.

मैं बोला "आमो तू सच मे पागल है. अरे पगली ये आँसू तो इस खुशी के है कि, तुम दोनो को मेरा जनम दिन याद है. मुझे तो याद ही नही था कि, आज मेरा जनम दिन है."

मेरी इस बात से अमि को यकीन हो गया कि, मेरी आँखों मे खुशी के आँसू है. उसने मुझे झुता गुस्सा दिखाते हुए कहा.

अमि बोली "मैं नही, आप पागल हो और बहुत बड़े भुलक्कड़ भी हो. जो आपको कुछ भी याद नही रहता."

मैं उसकी बात का मतलब समझता था. लेकिन मैं चाहता था कि, मेरी बात को लेकर उसके मासूम से दिल पर कोई भी शक़ ना रहे. इसलिए मैने मासूम बनते हुए कहा.

मैं बोला "क्यों मुझे क्या याद नही रहता. मैं क्या भूल गया."

अमि बोली "अरे आप अपना जनम दिन ही भूल गये. ऐसा भी कभी होता है. मुझे और निमी को देखो. हम लोग कभी अपना जनम दिन नही भूलते."

मैं बोला "मैं भूल गया तो क्या हुआ. मेरा जनमदिन याद रखने के लिए मेरी प्यारी प्यारी आमो और निम्मो तो है. अब ये बता मुझे जनम दिन मे क्या गिफ्ट दे रही है."

अमि बोली "मैं कोई कमाने जाती हूँ. जो मैं आपको गिफ्ट दुगी."

मैं बोला "ज़्यादा बातें मत बना. मैं जानता हूँ. तुम दोनो ने मेरे गिफ्ट के लिए छोटी माँ की नाक मे दम कर दिया होगा."

मेरी बात सुनकर अमि खिलखिलाने लगी और बोली.

अमि बोली "मैने तो आपके लिए पर्स खरीदा है."

मैं बोला "और निमी ने क्या खरीदा है."

अमि बोली "वो मैं नही बता सकती. यदि मैने बता दिया तो, वो मुझसे झगड़ा करेगी."

मैं बोला "मैं कौन सा उसे बताने जा रहा हूँ. तू मुझे बता दे. मैं उसे कुछ नही बोलुगा."

अमि बोली "निमी ने आपके लिए मनी बॅंक खरीदा है."

मैं बोला "क्या मेरी उमर उसे मनी बॅंक रखने की लगती है. जो उसने मेरे लिए मनी बॅंक खरीदा है."

अमि बोली "मैने भी यही कहा था. लेकिन वो कहने लगी कि, वो इसमे आपसे पैसे जुडवाएगी और जब ये भर जाएगा. तब वो उन पैसो से आपके लिए एक कार ख़रीदेगी."

मैं बोला "कार तो तब आएगी. जब वो मनी बॅंक भरेगा. लेकिन निमी के रहते वो भर ही नही सकता. उसे तो आए दिन पैसो की ज़रूरत पड़ती रहती है. वो खुद ही उसमे से पैसे निकालती रहेगी."

अमि बोली "यही बात कीर्ति दीदी ने भी उस से कही थी. लेकिन वो कहने लगी कि, इस बार वो ज़रूर उसे भर कर रहेगी."

कीर्ति का नाम सुनते ही मेरे दिल का दर्द ताज़ा हो गया. लेकिन साथ ही साथ ये भी पता चल गया कि, कीर्ति भी ये जानती है आज मेरा जनम दिन है. मगर शायद अपनी सगाई की खुशी मे उसे मुझे बर्तडे विश करने की ज़रूरत ही महसूस नही हुई. मैने अपने दर्द को छुपाते हुए अमि से कहा.

मैं बोला "चल अब ये बातें यही पर ख़तम कर. अब यदि तेरा बर्तडे विश करना हो गया हो तो, ये बता कीर्ति का मोबाइल तेरे पास कैसे आया. क्या कीर्ति घर वापस आ गयी है."

अमि बोली "नही दीदी अभी वापस नही आई है. उनका मोबाइल तो दोपहर से ही हमारे पास था. निमी दोपहर को उनके मोबाइल से आपको कॉल लगाती रही. लेकिन आपने कॉल नही उठाया तो उसने गुस्से मे मोबाइल बंद करके अपने पास ही रख लिया. तब से मोबाइल निमी के पास ही था. दीदी के माँगने पर भी उसने मोबाइल दीदी को नही दिया था. फिर दीदी घर चली गयी तो, मोबाइल हमारे पास ही रह गया."

मैं बोला "ये तो ग़लत बात है बेटू. तुम लोगों को ऐसा नही करना चाहिए था. उसे मोबाइल के बिना कितनी परेशानी हो रही होगी."

अमि बोली "भैया बस एक दिन की ही तो बात थी. यदि दीदी यहाँ रहती तो हम उनका मोबाइल ज़रूर दे देते. लेकिन दीदी घर जा रही थी और हम को रत को आपको बर्तडे विश भी करना था. इसलिए हम दोनो को ऐसा करना पड़ा."

मैं बोला "बेटू तुम दोनो को यदि विश ही करना था तो, तुम छोटी माँ या आंटी का मोबाइल भी ले सकती थी."

अमि बोली "कैसे ले लेते भैया. निमी ने जब से मम्मी के गंदे मोबाइल को साबुन से धोया है. तब से तो वो हमें मोबाइल छूने तक नही देती है. अब आंटी के मोबाइल मे मेहुल भैया के कॉल आते रहते है. ऐसे मे वो अपना मोबाइल हमे क्यों देगी."

मैं बोला "कीर्ति तो है नही. फिर अभी तुम लोगों के साथ कौन सो रहा है."

अमि बोली "हम दोनो अकेले सो रहे है. निमी ने रो रोकर मम्मी और आंटी को नीचे सोने के लिए भगा दिया है. नही तो वो लोग हमे जागने नही देती और जल्दी सुला देती."

मैं बोला "ठीक है. अब तुम्हारा बर्थ'डे विश करना हो गया है. अब कीर्ति का मोबाइल बंद करके रख दो. कल जब वो आए तो उसे दे देना. अब कल से कोई नाटक मत करना. नही तो मैं तुम से नाराज़ हो जाउन्गा. अब तुम भी सो जाओ."

अमि बोली "ओके भैया. कल से हम कोई नाटक नही करेगे. हॅपी बर्थ'डे भैया. गुड नाइट."

मैं बोला "गुड नाइट."

इसके बाद अमि ने कॉल रख दिया. कुछ देर बाद मैने फिर कॉल लगाया तो उसने मोबाइल बंद कर दिया था. मैने राहत की साँस ली और फिर टाइम देखा तो 12:30 बज चुके थे. मैं अजीब कशमकश मे फसा था. ना तो कीर्ति का चेहरा मुझे जीने दे रहा था. ना ही अमि निमी का चेहरा मुझे मरने दे रहा था.

मैं इसी जीने मरने की कशमकश मे फसा हुआ वापस अंकल के पास आ गया. आज मेरा जनमदिन था और कीर्ति ने मुझे ऐसा तोहफा दिया था. जिसे मैं जिंदगी भर नही भुला सकता था. मेरे मन मे जीने की इच्छा ही ख़तम हो गयी थी. मैं रोना चाहता था. अपने आपको ख़तम कर देना चाहता था. लेकिन जीने के लिए मजबूर था.
Reply
09-09-2020, 01:26 PM,
#72
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरा दिल अंदर ही अंदर रो रहा था. मैं शायद दुनिया का पहला ऐसा आशिक़ था. जो अपनी प्रेमिका की शादी की खबर सुनते ही इस कदर टूट गया था कि, उसके मन मे अपनी प्रेमिका से करने के लिए कोई सवाल ही नही बचा था. ऐसा होता भी क्यों ना. इस बात को खुद उस लड़की की माँ ने कहा था. जिसे मैं अपनी जान समझता था.

मैने इन्ही सोचों मे गुम घंटों तक, एक ही जगह पर बैठा रहा. मैं मन ही मन कीर्ति से हज़ारों सवाल किए जा रहा था. हर सवाल के करने के साथ मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे कोई मेरे सीने से मेरे दिल को खीच कर बाहर निकाल रहा हो. मुझे अपनी हालत का कोई होश ना रहा. सारी रात कब आँखों ही आँखों मे गुजर गयी. इसका मुझे पता ही नही चला.

मुझे होश तब आया. जब सुबह 6 बजे नर्स मेरे पास आई. उसने आकर मुझे देखा और मेरे चेहरे को गौर से देखते हुए कहा.

नर्स बोली "यहाँ सब ठीक तो है ना."

मैं बोला "हाँ सब ठीक है."

नर्स बोली "आप ठीक तो है."

मैं बोला "हाँ मुझे क्या हुआ."

नर्स बोली "ओके तो अब आप नीचे जाइए. मरीज को बाथ देने का समय हो गया है."

नर्स के इस तरह से बात करने का कारण मैं नही समझ सका. लेकिन उसकी बात सुनकर मैं नीचे ज़रूर आ गया. नीचे आकर मैं अपनी जगह पर जाकर बैठ गया. लेकिन आज उस जगह पर भी मुझे कोई शांति नही मिल रही थी. मैं अभी भी उदास और गमगीन था. मेरी सारी दुनिया लूट जाने का दर्द मेरे चेहरे से झलक रहा था.

ऐसे मे मेरी नज़र अजय पर पड़ी. उस पर नज़र पड़ते ही मैं अपने आपको उसकी नज़र से छुपाने लगा. शायद मेरे अंदर किसी से नज़र मिलाने की ताक़त नही थी, या फिर मैं अपने गम को सब से छुपाना चाहता था.

लेकिन मेरी ये कोसिस भी नाकामयाब रही. अजय ने मुझे देख लिया था. वो मेरे पास चला आया. मगर जब उसकी नज़र मेरे चेहरे पर पड़ी तो, थोड़ी देर के लिए वो भी सहम गया. उसने बस मुझसे इतना पुछा.

अजय बोला "उपर सब ठीक तो है बाबू साहब."

मैने मुस्कुराने की नाकामयाब कोसिस करते हुए कहा.

मैं बोला "हाँ हाँ, सब ठीक है. आप ऐसा क्यों पुछ रहे है."

अजय बोला "वो इसलिए क्योंकि आपके चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा है. जैसे आप सारी रात रोते रहे है."

मैं बोला "नही ऐसी कोई बात नही है. वो तो सारी रात जागने की वजह से ऐसा लग रहा होगा.

अजय बोला "बाबू साहब. मैं तो क्या कोई छोटा सा बच्चा भी आपके चेहरे को देख कर यही कहेगा कि, आप सारी रात रोते रहे है."

मैं बोला "सच मे ऐसी कोई बात नही है. दो दिन से मेरी नींद पूरी नही हो पा रही है. इसलिए आपको ऐसा लग रहा होगा."

अजय की पारखी नज़र समझ गयी थी कि, मुझे कोई गम है. लेकिन मैं अपना गम उसे बताना नही चाहता हूँ. उसने मुझसे कहा.

अजय बोला "बाबू साहब, हो सकता है कि आप सही बोल रहे हो. लेकिन आपका चेहरा कुछ और ही बोल रहा है. अच्छा तो यही होगा कि, आप अपने दोस्तों के आने के पहले अपना चेहरा सही कर ले. नही तो मेरी तरह वो भी आप से यही सवाल करेगे."

मुझे अजय की बात सही लगी. मैं उठ कर अंदर मूह हाथ धोने चला गया. जब मैं मूह हाथ धोकर बाहर निकला तो, अजय कॉफी लिए मेरा इंतजार कर रहा था. मैं उसके पास पहुचा तो उसने मुझे कॉफी दी. मैने उस से कॉफी लेते हुए कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. आप अभी तक यहीं खड़े हुए है. क्या आज आपको कोई सवारी नही मिल रही है."

अजय बोला "सवारी का क्या है बाबू साहब. एक गयी तो दूसरी मिल जाएगी. लेकिन सही बात ये है कि आपको ऐसे मे छोड़ कर जाने का मेरा दिल ही नही किया."

मैं बोला "अरे मुझे सच मे कुछ नही हुआ. आप बेकार मे परेशान मत होइए."

अजय बोला "बाबू साहब, मैं भी इस दौर से गुजर चुका हूँ. इसलिए जानता हूँ कि, आपको किस बात का गम है. आप भले मुझे दोस्त नही मानते, मगर मैं तो आपको दोस्त मानता हूँ. फिर भला आपको कैसे अकेला छोड़ कर जा सकता हूँ."

मुझे अजय की ये सब बातें अच्छी लग रही थी. फिर भी मैं उसे अपने दिल का हाल नही बता सकता था. मैने अपनी बात से उसका ध्यान हटाने के लिए उस से कहा.

मैं बोला "आप भी अजीब बात करते हो. एक तरफ तो मुझे अपना दोस्त समझते हो, और दूसरी तरफ मुझे बाबू साहब कहते हो. मुझे आपकी दोस्ती का ये राज कुछ समझ मे नही आया."

अजय बोला "मैं तो आपको दोस्त समझता हूँ. लेकिन जब आप ही मुझे दोस्त नही समझते तो फिर भला मैं आपको आपके नाम से कैसे बुला सकता हूँ."

मैं बोला "ऐसी बात नही है अजय भाई. यदि मैं आपको अपना दोस्त नही समझता होता तो, फिर आपसे इतनी बातें करता ही क्यों. अच्छा यही होगा कि अब आप मुझे बाबू साहब की जगह पुन्नू ही कहे."

अजय बोला "तब आप भी मुझे सिर्फ़ अज्जि ही कहिए. दोस्ती मे ये आप वाप अच्छा नही लगता."

मैं बोला "ओके अज्जि. क्या तुम मेरा एक काम करोगे."

अजय बोला "एक क्या सौ काम बोलो भाई. दोस्ती के लिए तो ये जान भी हाजिर है."

मैं बोला "मुझे आज रुकने के लिए किसी होटेल मे एक कमरा चाहिए. लेकिन मेरे पास कोई समान नही है. इसलिए बिना समान के मुझे किसी होटेल मे कमरा मिलने मे बहुत परेसानी होगी."

अजय बोला "लेकिन तुम तो अपने दोस्त के घर रुके हुए हो. फिर तुम्हे होटेल मे रुकने की क्या ज़रूरत है."

मैं बोला "ये मत पुछो. तुम यदि कर सकते हो तो बस आज के लिए मेरा ये काम कर दो."

अजय बोला "यदि ऐसी बात है तो तुम, मेरे घर मे रुक सकते हो."

मैं बोला "नही, यदि मुझे घर मे ही रुकना होता तो, फिर मेरे दोस्त के घर मे कोई बुराई नही थी. मैं आज अकेला रहना चाहता हूँ."

अजय शायद मेरी बात का मतलब समझ चुका था. उस ने मुझसे कहा.

अजय बोला "मेरा घर किसी होटेल से कम नही है. तुम्हे वहाँ कोई परेसानी नही होगी. क्योंकि वहाँ मेरे सिवा और कोई नही है. तुम वहाँ चाहे जैसे रह सकते हो. इसी बहाने तुम मेरा घर भी देख लोगे.'

जब अजय नही माना तो मुझे उसकी बात मानना ही पड़ी. मैने उसे उसके घर जाने के लिए हाँ कह दिया. इसके बाद मेरी उस से इधर उधर की बात होती रही. इस बीच उसके पास काई सवारी आई मगर उस ने सभी सवारी को ले जाने से मना कर दिया. शायद वो मुझे अकेला छोड़ना नही चाहता था.

फिर 7 बजे मेहुल आ गया. मेरी मेहुल से थोड़ी बहुत अंकल को लेकर बातें हुई. उसके बाद मैने मेहुल का अजय से परिचय कराया और उस से कहा कि, आज मैं दिन भर अजय के साथ ही रहुगा. इसलिए आज मेरा राज के घर जाना नही हो पाएगा. तुम राज को और उसके घर वालों को ये बात बता देना. हो सकता है कि दिन मे मेरा मोबाइल भी बंद रहे. इसलिए यदि घर से कोई फोन आए तो उसे भी तुम संभाल लेना.

मेरी इस बात का मतलब मेहुल नही समझ सका. उसे ये लगा कि मैं अजय के साथ घूमने जा रहा हूँ. इसलिए ये सब उस से कह रहा हूँ. उसने मेरी हर बात को हाँ कहा. फिर वो उपर अंकल के पास चला गया.

उसके जाते ही मैने छोटी माँ के मोबाइल पर कॉल किया. उनने कॉल उठाते ही मुझे बर्थ'डे विश किया. फिर निमी को कॉल थमा दिया. निमी ने भी मुझे बर्थ'डे विश किया और फिर हमेशा की तरह अपनी बातों का पिटारा खोल लिया. थोड़ी देर तक मैं उसकी बातें सुनता रहा. फिर मैने उसे बताया कि मैं अपने दोस्त के साथ उसके घर जा रहा हूँ. इसलिए आज दोपहर मे उस से बात नही कर पाउन्गा. लेकिन उसे लगा कि मैं उस से झूठ बोल रहा हूँ. तब मैने उसकी अजय से बात करा दी. फिर जाकर उसने मुझे कॉल ना करने की सहमति दी. इसके बाद मेरी अमि से बात हुई. उसने अभी भी मुझे बर्थ'डे विश किया. उस से थोड़ी बहुत बात करने के बाद मैने कॉल रख दिया.

कॉल रखने के बाद मैने अजय से घर चलने को कहा. मेरी बात सुनते ही अजय ने अपनी टॅक्सी निकाली और हम उसके घर के लिए निकल पड़े. रास्ते मे मैने एक शराब की दुकान के सामने टॅक्सी रुकवा दी. अजय शायद पहले से ही जानता था कि, मैं आज होटेल मे क्यों रुकना चाहता हूँ. उसने मुझसे सिर्फ़ इतना कहा कि, तुम किसी चीज़ की चिंता मत करो. ये सब चीज़े तुम्हे मेरे घर मे ही मिल जाएगी. उसके बाद हम दोनो उसके घर के लिए निकल पड़े.

कुछ ही देर बाद हम उसके घर पहुच गये. उसके घर पहुचने पर मैं उसके घर को देखता रह गया. मैने जैसा सोच रखा था, उस से बिल्कुल उल्टा उसका घर था. उसे घर कहना ही ग़लत था. वो किसी बंगलो से कम नही था. उसके मुक़ाबले मे रिया राज का घर भी कुछ नही था.

उस बंगलो के मैंन गेट मे ताला लगा हुआ था. अजय ने टॅक्सी से उतर कर ताला खोला और हम अंदर पहुचे. घर के अंदर का भी वही हाल था. देखने से कही से भी नही लग रहा था कि, वो किसी टॅक्सी वाले का घर है. बल्कि ऐसा लग रहा था. जैसे कि मैं किसी बिज़्नेसमॅन के यहाँ आया हूँ.

मेरा मन इस सब को जानने की जिगयाशा तो हुई थी. मगर उस समय मेरे अंदर किसी बात को समझने की ताक़त नही थी. मैं सिर्फ़ अकेलापन चाहता था. जिसकी वजह से मैं अजय के घर आया था. अजय ने मुझे मेरा कमरा दिखाया और मुझसे फ्रेश हो जाने को कहा. मैं फ्रेश होने चला गया.

मैं जब फ्रेश होकर आया तो अजय एक ट्राली धकेलते हुए मेरे कमरे मे ले आया. उस ट्रॉली मे एक ओल्ड मॉंक रूम की बॉटल, सोडा और ड्राइ फ्रूट थे. उसने ट्रॉली को मेरे बेड के सामने लाकर खड़ा कर दिया. फिर उसने अलमारी से एक नाइट सूट निकाला और मुझे देते हुए कहा.

अजय बोला "तुम चाहो तो ये नाइट सूट पहन सकते हो. तुम शायद पहली बार पी रहे हो. इसलिए तुम्हारे लिए ये ब्रांड लाया हूँ. तुम्हे यदि ये ब्रांड पसन्द ना आए तो तुम बाहर से अपनी पसंद का ब्रांड ले सकते हो. तुम जितनी चाहे उतनी पी सकते हो. मेरी तरफ से तुम्हे कोई रोक नही है. मैं तुम्हे डिस्टर्ब करने भी नही आउन्गा. बस मेरी तुमसे एक रिक्वेस्ट है."

मैं बोला "क्या."

अजय बोला "तुम इस समय बहुत अपसेट लग रहे हो. इसलिए शराब पीकर अपने गम को भूलना चाहते हो. लेकिन शराब पीने के बाद क्या होता है. शायद तुम इस बात को नही जानते. शराब के नशे मे अक्सर इंसान वो सब कर बैठता है. जो वो कभी करना नही चाहता. मैं नही चाहता कि तुम्हारे साथ भी ऐसा ही कुछ हो. या फिर तुम शराब के नशे मे किसी को उल्टा सीधा कॉल कर बैठो. इसलिए यदि तुम बुरा ना मानो तो अपना मोबाइल मुझे दे दो. जिस से ऐसा कुछ होने से बचा जा सके."

मुझे अजय की इस बात मे सच्चाई नज़र आई. लेकिन मुझे अपने उपर पूरा विस्वास था. लेकिन उस विस्वास से ज़्यादा मुझे अपने मोबाइल से लगाव था. क्योंकि मेरे मोबाइल मे कीर्ति के मेसेज और उसकी फोटो थी. जिस वजह से मैं चाह कर भी अपने मोबाइल को किसी के हवाले नही कर सकता था. मैने अजय को टालते हुए कहा.

मैं बोला "तुम ग़लत सोच रहे हो यार. मैं किसी गम को भूलने के लिए शराब नही पी रहा. मैं तो सिर्फ़ अपनी थकान मिटाने और नींद पूरी करने के लिए शराब पीना चाहता हूँ. इसलिए जैसा तुम सोच रहे हो. वैसा कुछ भी नही होगा. मुझे अपना मोबाइल तुम्हे देने मे कोई परेशानी नही है. लेकिन इसमे मेरी जान की तस्वीर है. जिसे मैं एक पल के लिए भी खुद से डोर नही कर सकता. तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं एक दो पेग लेकर सो जाउन्गा."

मेरी बात सुनकर अजय समझ गया कि मैं अपना गम उसे बताना नही चाहता हूँ. वो मुस्कुराते हुए, कमरे से बाहर निकल गया. उसके जाते ही मैने दरवाजा बंद किया और अपने कपड़े बदले. अब मैं हर तरह से आज़ाद था. मैं शराब के नशे मे कीर्ति की बेवफ़ाई को भुला देना चाहता था.

मैने टाइम देखा तो 8:30 बज चुके थे. मैं आकर बिस्तर पर टिक कर बैठ गया. मैने मोबाइल मे कीर्ति का फोटो निकाला और उसे देखने लगा. कल तक जिस फोटो को देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती थी. आज उसी फोटो को देख कर मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, और मेरे दिल का दर्द आ बनकर गूंजने लगा.

दिल और दिमाग़ को रो लुगा आह कर लुगा.
तुम्हारे इश्क़ मे सब कुछ तबाह कर लुगा.
अगर मुझे ना मिली तुम, तुम्हारे सर की कसम.
मैं अपनी सारी जवानी तबाह कर लुगा.

सच भी यही था. कीर्ति मेरे चेहरे की मुस्कान थी. मेरे दिल की धड़कन थी. वो ही मेरी जिंदगी और मेरी जिंदगी की हर खुशी थी. फिर भला मैं हंसते हंसते, उसे किसी और का होते कैसे देख सकता था. मेरे लिए ये सब होते देख पाना मुस्किल ही नही नामुमकिन था.

अब मैं कुछ भी समझने की हालत मे नही था. मेरी आँखों से आँसू झरते जा रहे थे. मैं एक तक कीर्ति की तस्वीर देखे जा रहा था. मैं कीर्ति से नाराज़ ज़रूर था. फिर भी मेरे दिल मे उसके लिए इतना ज़्यादा प्यार था की, किसी भी हालत मे उसका कम होना मुस्किल ही था.

मेरा अजीब ही हाल हो गया था. मैं उसकी तस्वीर देख कर रो भी रहा था, और मुस्कुरा भी रहा था. मैं समझ नही पा रहा था की, मैं उसे मेरे साथ धोका करने के लिए बद्दुआ दूं, या फिर उसे नयी जिंदगी शुरू करने के लिए दुआ दूं.

उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देख कर, उसके साथ बिताया गया, हर लम्हा मेरी आँखों के सामने से गुजरने लगा. उसके साथ बिताया गया हर पल मुझे तडपा रहा था. उसकी बातें मेरे कानो मे गूँज रही थी. उसकी हँसी मुझे पागल बना रही थी.

मैं उसके बिना जीने की सोच भी नही सकता था. यही वजह थी की, मैने उसके बिना जीने से बेहतर मरने को समझा था. लेकिन अमि के कॉल ने, मुझे ये सब करने से रोक दिया था. लेकिन अब मेरे सामने ऐसी स्थिति पैदा हो गयी थी. जिसमे ना तो मैं उसे भुला सकता था, और ना ही उसे अपना बना सकता था. इस स्थिति ने मुझे शराब का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया था.

जब मुझसे ये सब सहन नही हुआ. तब मैने बॉटल खोल ली. मैने एक पेग बनाया, और सॅट्ट से अपने गले से नीचे उतार लिया. पहला पेग पीने मे, मुझे मेरे सीने मे जलन सी महसूस हुई. लेकिन ये जलन उस आग के मुक़ाबले, कुछ भी नही थी. जो उस समय मेरे दिल मे जल रही थी.

एक पेग पीने के बाद भी मुझे, कोई राहत महसूस नही हुई. ना ही मुझे उसका कोई नशा समझ मे आया. तब मैने गुस्से मे एक बाद दूसरा, और फिर दूसरे के बाद तीसरा पेग भी बना कर पी लिया. तीसरे पेग को पीने के बाद मुझे कुछ हल्का हल्का शुरूर महसूस हुआ.

लेकिन ये शराब का इतना शुरूर भी मेरे काम का नही था. क्योंकि अभी भी मुझे कीर्ति की याद परेशान कर रही थी. मैने इस हल्के से नशे के शुरूर मे चौथा पेग भी बना कर पी लिया. चौथा पेग पीते ही मेरा सर घूमने लगा. मेरी आँखों के सामने की हर चीज़ मुझे, हिलती हुई नज़र आने लगी. लेकिन अभी भी मुझे, कीर्ति की तस्वीर साफ साफ नज़र आ रही थी.
Reply
09-09-2020, 01:27 PM,
#73
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरे कलेजे मे दर्द की लहर अब भी उठ रही थी. जिसे मिटाने के लिए मैने पाँचवा पेग भी अपने हलक के नीचे उतार लिया. मैं पहली बार शराब पी रहा था. मुझे या सब नही मालूम था कि, शराब कब और कितनी देर बाद अपना असर दिखाती है. इसलिए नशा ना होते देख, मैं एक के बाद एक पेग पीता गया गया.

लेकिन पाँचवे पेग के, मेरे हलख मे उतरते ही, शराब ने बड़ी तेज़ी से अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. मेरा दिमाग़ पूरी तरह से सुन्न पड़ चुका था. मैने कीर्ति को भूलने के लिए शराब पी थी. लेकिन अब मैं उसके सिवा सब कुछ भूल चुका था. यहाँ तक की अपने आपको भी भूल गया था. मुझे अब बस, वो ही वो नज़र आ रही थी.

मेरी आँखे नशे के शुरूर मे बड़ी बड़ी हो गयी थी. मैं फटी फटी आँखों से कीर्ति की तस्वीर को देखने लगा. मेरे दिल का सारा दर्द उमड़ कर बाहर आने लगा था. जैसे की मेरे दिल के हर दबे हुए दर्द को, ज़ुबान मिल गयी हो. मैं कीर्ति की तस्वीर से बातें करने लगा.

मैं बोला "जान तुम्हे मेरी हालात पर हँसी आ रही है ना. हंस लो जान, आज तुम्हे जितना हँसना है हंस लो. लेकिन एक बात याद रखो. एक दिन तुम्हारी ये जुदाई मेरी जान ले जाएगी. तब तुम भी ऐसे ही तड़पोगी. जैसा आज मैं तुम्हारे लिए तड़प रहा हूँ. मैं तुम्हे कभी नही भूल सकता जान. लेकिन मैं मरते दम तक तुम्हारे इस धोके को माफ़ नही करूगा."

मैं ना जाने कितनी देर तक यूँ ही, कीर्ति की तस्वीर को उल्टा सीधा बकता रहा. फिर अचानक मेरा मोबाइल बजने लगा. लेकिन उस समय नशे मे मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि, मुझे ये समझ मे ही नही आ रहा था कि, किसका कॉल आ रहा है.

मैं मोबाइल को बिल्कुल अपनी आँखों के पास ले आया और फिर देखा कि मौसी का कॉल आ रहा है. मैं मौसी का कॉल आया देख कर मुस्कुराने लगा. मैने मोबाइल को चूम लिया और बिना कॉल उठाए ही मौसी से बोलने लगा.

मैं बोला "ओ मौसी, तुमने तो कभी मुझे प्यार से नही देखा, और जब देखा तो ऐसे देखा कि, मेरे प्यार को ही नज़र लग गयी. अब क्यों मुझे कॉल लगा रही हो. क्या अब मुझे कीर्ति की शादी की तारीख भी बताना चाहती हो. आइ लव यू मौसी. तुम सच मे बहुत अच्छी हो. तुमने बड़े प्यार से मेरा सब कुछ लूट लिया."

ये बोल कर मैं ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा. कॉल अभी भी बजे जा रहा था. जब कॉल बहुत देर तक बजता रहा. तब मैने कॉल उठा लिया. लेकिन मैं उस नशे की हालत मे भी, मैं इतना समझ रहा था कि, मुझे अभी किसी से बात नही करनी है. इसलिए मैने अपनी आवाज़ को लड़खड़ाने से बचते हुए, धीरे से सिर्फ़ इतना कहा.

मैं बोला "हेलो"

ये बोल कर मैं चुप हो गया. मगर मेरी आवाज़ सुनते ही, दूसरी तरफ से आवाज़ आई. वो आवाज़ कीर्ति की थी. उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "ओह जान. आइ मिस यू. आइ लव यू. हॅपी बर्तडे टू यू जान. मुउउहह.."

लेकिन मैं कुछ नही बोला. बस खामोश रहा. मुझे खामोश रहते देख उस ने फिर कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी जान. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मैं जानती हूँ. तुम मुझसे बहुत नाराज़ हो. क्या तुम अपनी जान को माफ़ नही कर सकते."

कीर्ति ये बोलने के बाद मेरे कुछ बोलने का इंतजार करने लगी. मैं नशे के शुरूर मे, उसकी इस माफी माँगने की हरकत पर, उसको मन ही मन उल्टा सीधा बक रहा था. लेकिन हक़ीकत मे खामोश ही रहा. जब मैं कुछ नही बोला तो, उसने फिर मुझे मनाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "ओके बाबा, तुम मुझ पर गुस्सा हो तो, गुस्सा कर लो. लेकिन अपनी जान को अपनी आवाज़ सुनने के लिए इतना मत तरसाओ. मैं तुम्हारी आवाज़ सुने बिना एक पल नही रह सकती."

कीर्ति की ये बात सुन कर मेरे दिल मे आग लग गयी और मेरा गुस्सा भड़क उठा. मैं अपने आपको बोलने से ना रोक सका. लेकिन मैने अपनी आँखों को बंद किया और फिर अपनी आवाज़ को बहुत संभालते हुए कहा.

मैं बोला "क्यों, क्या तुम्हे अपने होने वाले पति की आवाज़ पसंद नही है. या फिर अभी मेरे प्यार का मज़ाक उड़ाने से तुम्हारा दिल नही भरा है."

कीर्ति को शायद इस बात का पता नही था कि, मौसी से मेरी बात हुई है, और मुझे उसकी सगाई के बारे मे पता चल गया है. वो मेरी बात सुन कर सिर्फ़ इतना कह कर रह गयी.

कीर्ति बोली "जानंणणन्."

मेरी बात उसे गाली की तरह लगी थी. इसलिए वो इसके आगे कुछ नही बोल पाई. लेकिन उसे मेरी बात से जो दर्द पहुचा था. वो उसकी आँखों से आसू बन कर छलकने लगा. जिसकी आवाज़ मेरे कानों तक पहुचि तो, मुझे और गुस्सा आ गया. मैं उस पर चीखते हुए बोला.

मैं बोला "अब बंद करो अपने रोने का ये नाटक, और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. मुझे तुम जैसी धोकेबाज लड़की से कोई बात नही करना."

मैं इतने गुस्से मे ये सब बोला था कि, अपनी आवाज़ को लड़खड़ाने से रोक ना सका. मेरी आवाज़ को पहचानते ही कीर्ति को एक और सदमा पहुचा. वो मेरी आवाज़ से पहचान चुकी थी कि, मैने शराब पी है. मैं तो उसके दर्द का अहसास करने की हालत मे नही था. लेकिन मेरी हालत का पता चलते ही, उसे मेरे दर्द का भी अहसास हो गया. उसकी आँखों मे आँसू थे. लेकिन अब वो आँसू मेरे दर्द के लिए थे. मेरे दर्द से वो कराह उठी.

कीर्ति बोली "जान तुमने शराब पी है. क्यों मुझे इतना प्यार करते हो कि, मेरी छोटी सी ग़लती भी सह ना सको. मेरी ग़लती की सज़ा अपने आपको क्यों दे रहे हो. मैं कितनी बदनसीब हूँ. जो तुम्हारे इस शराब पीने का कारण बन गयी. मुझे तो ये देखने के पहले ही मर जाना चाहिए था."

ये बोल कर वो बिलख कर रो पड़ी. मैं नशे के शुरूर मे ज़रूर था. लेकिन शराब के नशे से ज़्यादा, मेरे उपर कीर्ति के प्यार का नशा था. मैं उसका रोना ना देख सका, और मैं भी किसी बच्चे की तरह रोते हुए कहने लगा.

मैं बोला "तुम क्यों मरोगी. मारूँगा तो मैं, क्योंकि मुझे तुम्हारे बिना जीना नही आता. मैं तुम्हारे बिना जी ही नही सकता. बदनसीब तुम नही मैं हूँ. जो तुम्हे इतना प्यार करने के बाद भी, पा नही सकता. मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता. मैं तुम्हारे बिना मर जाउन्गा. हाँ मुझे मरना है. मुझे मरना है. मुझे मरना है."

किसी छोटे बच्चे की तरह मैं रोए जा रहा था, और मुझे मरना है, मुझे मरना है की रट लगाए हुए था. जिसे सुनकर कीर्ति का रोना थम गया था. वो मुझे चुप कराने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मैं बस मरना है की, रट लगाए हुए था. कीर्ति मुझसे कह रही थी.

कीर्ति बोली "जान प्लीज़ चुप हो जाओ. ऐसा मत करो जान. मैं कहीं नही गयी हू. मैं तुम्हारे पास ही हूँ."

लेकिन मुझ पर उसकी इस बात का, कोई असर नही हुआ. मैं फिर वही बोले जा रहा था.

मैं बोला "नही मुझे मरना है. मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता. मुझे मरना है."

जब कीर्ति ने देखा कि मुझ पर, उसकी किसी बात का कोई असर नही हो रहा है. तब उसने कहा.

कीर्ति बोली "जान तुम्हे मेरी कसम. तुम बहुत थक गये हो. तुम सो जाओ जान."

मैं बोला "नही मैं नही सोउंगा. मैं सो गया तो, तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी."

कीर्ति बोली "जान क्या तुम मेरी कसम नही मनोगे. देखो मैने तुम्हारा सर अपनी गोद मे रख लिया है, और तुम्हारे सर पर हाथ फेर रही हूँ. मैं तुम्हे छोड़ कर कही नही जाउंगा जान. अब तुम सो जाओ."

कीर्ति के इन शब्दों ने मेरे उपर जादू सा काम किया.

मैं बोला "तुम सच मे मुझे छोड़ कर नही जाओगी ना."

कीर्ति बोली "हाँ जान मैं सच मे बोल रही हूँ. मैं तुम्हे छोड़ कर कहीं नही जाउन्गी. देखो मैं तुम्हारे सर पर हाथ फेर रही हूँ. तुम्हे कैसा लग रहा है."

मैं बोला "मुझे नींद आ रही है. मैं सो रहा हूँ पर तुम जाना मत."

कीर्ति बोली "हाँ जान अब तुम सो जाओ. मैं तुम्हारे पास ही बैठी हूँ."

उसके बाद कीर्ति ने ऐसे ही बहलाते बहलाते मुझे सुला दिया. उस समय मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे मैं सच मे उसकी गोद मे, सर रख कर सो रहा हूँ, और वो मेरे सर पर हाथ फेर रही है. मुझे कब सुकून भरी नींद आ गयी मुझे पता ही नही चला.

फिर मेरी नींद 4:30 बजे खुली. मेरा नशा अब पूरी तरह से उतर चुका था. लेकिन मुझे सिर्फ़ इतना याद था कि, कीर्ति का कॉल आया था. मैने उसे कुछ भला बुरा बोला और फिर रोते हुए उसकी गोद मे सर रख कर सो गया. उस से मेरी क्या क्या बात हुई. ये सब मुझे याद नही आ रहा था.

मैने अपना मोबाइल उठाया और देखने लगा कि, कीर्ति का मोबाइल कितनी देर चालू रहा. मोबाइल मे 1 घंटा 35 मिनट बता रहा था. जिसका मतलब था कि, कीर्ति ने मेरे सोने के बाद भी, काफ़ी देर तक कॉल नही काटा था.

मैं बहुत देर तक, लेटे लेटे यही सोचता रहा कि, कीर्ति ने मुझे क्या बताया है. लेकिन ज़्यादा नशे मे रहने की वजह से, मुझे कुछ भी याद नही रहा. मेरा मन कीर्ति से बात करने का कर रहा था. मुझे उसकी कमी बहुत ज़्यादा खल रही थी. मगर ना जाने क्यों, मैं उसे कॉल करने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था.

जब मैने देखा कि 5 बज गये है तो, फिर मैं उठ कर फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद मैने कपड़े बदले और फिर कमरे का दरवाजा खोल दिया. इसके बाद मैने बिस्तर सही किए और फिर वापस टेक लगा कर बैठ गया.

कुछ देर बाद अजय कॉफी लेकर आ गया. उसने मुझे कॉफी दी और फिर शराब की बॉटल को देखते हुए कहने लगा.

अजय बोला "ये लो कॉफी पियो. एक बार मे आधी बॉटल खाली कर दी. अब ज़रूर सर चढ़ रहा होगा."

मैं बोला "नही, मैं ठीक हूँ. मुझे कुछ नही हो रहा."

अजय बोला "यार तुम्हारा हाजमा तो गजब का है. आधी बॉटल पीने के बाद भी, ऐसे बैठे हो जैसे कुछ किया ही ना हो."

मैं बोला "मैने तो सिर्फ़ 5 पेग ही लिए थे."

अजय बोला "हो ही नही सकता. 5 पेग मे आधी बोतटेल खाली नही होती. ज़रूर तुमने पटियाला पेग मार लिए है. मैं तो कभी 3 पेग से ज़्यादा पी ही नही पाता हूँ. हाँ कभी जब ज़्यादा तनाव मे रहता हूँ. तब 4 पेग भी मार लेता हूँ, मगर तब सोकर उठने पर सर चढ़ जाता है."

मैं बोला "मैं इस बारे मे कुछ नही जानता. मैने आज पहली बार पी है, और शायद आख़िरी बार भी, क्योंकि मैं अपने घर मे रह कर तो, ऐसा कभी कर ही नही सकता."

अजय बोला "ये तो मैं भी तुम्हे नही करने देता. लेकिन मैने देखा कि तुम बहुत तनाव मे हो. इसलिए मैने तुम्हे ऐसा करने से नही रोका."

मैने अजय की इस बात का कोई जबाब नही दिया. अजय ने देखा कि मैं फिर किसी सोच मे गुम हो गया हूँ तो, वो मुझे टोकते हुए कहने लगा.

अजय बोला "सुबह से तुमने कुछ नही खाया है. यही कुछ खाना पसंद करोगे, या फिर बाहर चल के कुछ खाया जाए."

मैं बोला "नही यार, आज भूक ही नही है. अब मैं सीधे रात को ही खाना खाउन्गा. अभी मुझे राज के घर भी पहुचना है. सुबह से गायब हूँ. पता नही वो लोग क्या सोच रहे होगे."

अजय बोला "कोई कुछ नही सोचेगा. सब यही सोचेगे कि, तुम मुंबई घूम रहे हो. इसलिए रात का खाना तुम मेरे साथ ही खाकर, यही से सीधे हॉस्पिटल चले जाना."

मैं बोला "नही यार, ऐसा अच्छा नही लगता. वो लोग हमारी इतनी मदद कर रहे है. ऐसे मे उनको बिना बताए इस तरह गायब रहना, ठीक बात नही है. रही तुम्हारे साथ खाना खाने की बात, तो वो मैं किसी दिन तुम्हारे साथ ज़रूर खाउन्गा. आज के लिए तुम मुझे माफ़ करो."

अजय बोला "कोई बात नही है. चलो मैं तुम्हे राज के घर तक छोड़ देता हूँ."

मैं बोला "तुम क्यों परेशान हो रहे हो. मैं कोई टॅक्सी पकड़ कर चला जाउन्गा."

अजय बोला "यार मेरी टॅक्सी होते हुए, तुम कोई और टॅक्सी मे जाकर मेरे पेट पर क्यों लात मार रहे हो. दोस्ती अपनी जगह है और धंधा अपनी जगह है."

ये कह कर अजय हँसने लगा. लेकिन अजय का घर देखने के बाद मुझे, उसकी हर बात रहस्य लग रही थी. फिर भी अभी मैं, उस से इस बारे मे कोई बात करने के मूड मे नही था. मैने उस की बात की हाँ की और फिर उसके साथ बाहर आ गया.

अजय की टॅक्सी वहाँ नज़र नही आ रही थी. मुझे पोर्च के पास खड़ा करके, वो गॅरेज खोलने लगा. मुझे लगा कि वो अपनी टॅक्सी निकालेगा. लेकिन उसने मुझे एक बार फिर चौका दिया. उसने जैसे ही गॅरेज खोला वहाँ एक बीएमडब्ल्यू कार खड़ी थी. उसने BMW बाहर निकाली और मेरे पास आ गया. मैं चुप चाप उस मे बैठ गया.

मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, ये सब क्या माजरा है. वो आलीशान बंगले का मालिक और जिसके पास किसी चीज़ की कमी नही है. वो इस तरह रात को टॅक्सी क्यों चलाता है. मगर मैं अभी अपनी ही उलझन मे उलझा हुआ था. ऐसे मे मुझे किसी और उलझन मे उलझना अच्छा नही लगा.

मैं खामोशी से बैठा रहा. रास्ते भर अजय ही कुछ ना कुछ बात करता रहा. थोड़ी देर बाद हम घर पहुच गये. मुझे छोड़ने के बाद अजय वापस चला गया. मैं वही खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा. उसकी हर हरकत मेरे लिए एक रहस्य थी. फिर भी मुझे उसका साथ बुरा नही लगा था.

शायद उसके अंदर इंसान का दिल जीतने का हुनर था. इसलिए उसने कुछ ही मुलाकात मे मेरा दिल भी जीत लिया था. मुझे उसके साथ रह कर ये लगा ही नही था कि, मेरी उस से सिर्फ़ एक दो बार ही मुलाकात हुई है. बल्कि ऐसा लगा था. जैसे हम दोनो बरसों से एक दूसरे के दोस्त है.

मैं बाहर खड़ा यही सब सोच रहा था. तभी रिया बाहर आ गयी. उसने आते ही सब से पहले मुझे बर्थ'डे विश किया. फिर पुछ्ने लगी कि, मैं दिन भर कहाँ था. मैने उसे यही बताया कि, मैं मुंबई घूमने निकल गया था.

फिर हम दोनो अंदर आ गये. अंदर आते ही आंटी मिली. उनने भी मुझे बर्थ'डे विश किया. फिर वो भी वही सब पुच्छने लगी. जो बाहर रिया ने पुछा था. मैने उनको भी वही जबाब दिया. जो रिया को दिया था. मेरी आंटी से थोड़ी बहुत बात हुई. फिर आंटी मेरे मना करने के बाद भी, मेरे लिए चाय बनाने चली गयी.

आंटी के चाय बनाने चले जाने की वजह से, मुझे वहाँ रुकना पड़ा. मैं रिया से बात करने लगा. बातों बातों मे मैने रिया से, प्रिया और निक्की के बारे मे पुछा तो, उसने बताया कि, वो दोनो दादा जी के साथ वॉक पर गयी है. फिर मेरी रिया से यहाँ वहाँ की बात चलती रही.

कुछ देर बाद आंटी चाय ले आई. मैं चाय पीते हुए आंटी से बात करने लगा. आंटी बड़े ही प्यार से बात कर रही थी. लेकिन आज मेरा मन बहुत उदास था. ऐसे मे जब आंटी मुझसे इतने प्यार से बातें कर रही थी तो, मुझे छोटी माँ की याद सताने लगी.

मेरा मन अपने कमरे मे जाकर, छोटी माँ से बात करने का हो रहा था. लेकिन मैं जानता था कि, रिया मुझे अकेला नही छोड़ेगी. मैने टाइम देखा तो, अभी सिर्फ़ 6:15 बजा था. मैने चाय पी और फिर आंटी से कहा कि मैं कुछ देर बाहर टहल कर आता हूँ. ये कह कर मैं बाहर आ गया.

रिया के घर से कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा पार्क था. जहाँ दादा जी रोज शाम को वॉक के लिए जाते थे. अभी भी शाम का समय ही था, और बहुत से लोग टहल रहे थे. मैं टहलते हुए उसी पार्क के बाहर, एक बेंच पर बैठ गया.

मैने अपना मोबाइल निकाला और छोटी माँ को कॉल लगा दिया. छोटी माँ ने कॉल उठाते ही कहा.

छोटी माँ बोली "अच्छा हुआ तूने कॉल लगा लिया. मेरा मन आज सुबह से ही बहुत घबरा रहा था. लेकिन सुबह तूने कहा था कि, तू घूमने जा रहा है. इसलिए तुझे कॉल लगा कर परेशान नही किया."

मैं बोला "मुझे भी आपकी बहुत याद आ रही है छोटी माँ. मुझे यहाँ ज़रा भी अच्छा नही लग रहा है."

छोटी माँ बोली "तेरी तबीयत तो सही है ना. खाना वाना समय पर खा रहा है या नही."

मैं बोला "सब सही है छोटी माँ. बस आपकी बहुत याद सता रही है. आपको देखने का बहुत मन कर रहा है. बहुत ज़्यादा बेचैनी हो रही है"

छोटी माँ बोली "मैं कभी तेरी नज़रों से दूर नही रही हूँ. इसलिए मुझे सामने ना पाकर तुझे ऐसा लग रहा है. मुझे भी कल रात से तेरे बिना बहुत बेचैनी और घबराहट सी हो रही है. आज तेरा जनम दिन है और हम साथ नही है. शायद इसी वजह से हम दोनो को ऐसा लग रहा है."

छोटी माँ को लग रहा था कि, उन्हे बेचैनी और घबराहट जनम दिन की वजह से हो रही थी. लेकिन मैं समझ गया था कि, एक माँ के दिल ने, उसके बेटे का दर्द महसूस किया था. जिस वजह से उसका दिल अपने बेटे के लिए बेचैन हो उठा था.

आज सच मे मुझे छोटी माँ की गोद की कमी बहुत अखर रही थी. यदि आज मेरे बस मे होता तो, मैं दौड़ कर छोटी माँ के पास चला जाता. तब शायद इतना सब सहने के बाद भी, उनकी गोद मे सुकून की नींद सो पाता और अपने हर गम को भुला पाता.

आज मुझे मेरा बचपन याद आ रहा था. जब मैं कभी भी छोटी माँ को, अपने से दूर नही होने देता था. वो मेरी सग़ी माँ नही थी. फिर भी उन ने मुझे सग़ी माँ से बढ़ कर प्यार दिया था. वो मेरी सग़ी माँ नही है. उन्हो ने ये कभी मुझे महसूस ही नही होने दिया था.



Reply
09-09-2020, 01:27 PM,
#74
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
64
मगर मैं उस माँ का ऐसा नालयक बेटा था. जो कीर्ति के प्यार मे अँधा होकर मरने चला था. जिसने एक पल के लिए भी, अपनी माँ और बहनों के बारे मे नही सोचा था. लेकिन तब भी मेरी माँ को मेरे दर्द का अहसास था, और मुझे मरने से रोकने वाली मेरी बहन ही थी.

ये सब बातें मेरे मन मे आते ही, मैं अपनी माँ और बहनों को देखने के लिए तड़प उठा. लेकिन आज इस परदेस मे मेरे पास, ना तो मेरी बहनों का साथ था, और ना ही मेरी माँ की गोद थी. यही सब सोचते हुए मैने छोटी माँ से कहा.

मैं बोला "छोटी माँ मैं इतना बड़ा क्यों हो गया कि, आपके बिना ही इतनी दूर जा सकूँ. यदि मैं छोटा ही रहता तो, कम से कम हर समय आपके पास तो रहता, और जब चाहे तब आपकी गोद मे सर रख कर सो सकता."

छोटी माँ बोली "तू तो मेरे लिए हमेशा ही छोटा सा बच्चा है. तू जब चाहे तब मेरी गोद मे सो सकता है. लेकिन तू ये सब क्यों सोच रहा है. बस कुछ दिनो की ही तो बात है. फिर तो मेरा प्यारा बेटा मेरे ही पास रहेगा."

मैं बोला "छोटी माँ आज आपको देखने का बहुत मन कर रहा है. अब मुझसे यहाँ नही रहा जा रहा है. आप कहो तो मैं वापस घर आ जाउ. मुझसे अब यहाँ कुछ भी नही हो पाएगा."

छोटी माँ बोली "तू ये कैसी बात कर रहा. मेरा पुन्नू इतना कमजोर नही हो सकता. यदि तू अभी इन सब बातों का सामना करना नही सीखेगा तो, फिर मेरे मरने के बाद, तू अपना और अपने परिवार का कैसे ख़याल रख पाएगा."

छोटी माँ की बात सुनकर मैं अंदर तक काँप गया. मैने छोटी माँ पर पहली बार गुस्सा करते हुए कहा.

मैं बोला "छोटी माँ, दोबारा कभी अपने मरने की बात मत करना. मेरे लिए आप से बढ़कर दुनिया मे कुछ भी नही है. यदि आप ही ना रही तो, मैं जी कर क्या करूगा."

छोटी माँ बोली "अरे पगले. मैं सच मे मरने का कहाँ बोल रही हूँ. मैं तो तुझे समझाने के लिए बोल रही थी. लेकिन ये तो सच ही है, किसी के माँ बाप जिंदगी भर साथ नही रहते."

मैं बोला "मुझे कुछ नही सुनना. कुछ नही समझना. आप मेरे साथ मेरे मरते दम तक रहोगी. बस."

छोटी माँ बोली "मुझसे ग़लती हो गयी. जो मैने ऐसा कहा. अब अपना गुस्सा ख़तम कर दे. मैं दोबारा ऐसी बात नही करूगी. लेकिन तू भी अब मुझसे वादा कर कि, तू किसी बात से घबराएगा नही. हर बात का डॅट कर मुकाबला करेगा. क्योंकि बात चाहे पहाड़ जितनी बड़ी ही क्यों ना हो. लेकिन जब हमारे अंदर उसका सामना करने की हिम्मत रहती है. तब वो पहाड़ जैसी बात भी राई जैसी हो जाती है."

मैं बोला "जी छोटी माँ. आप जो बोलोगि. मैं वो सब कुछ करूगा पर आप कभी मरने की बात नही करना."

छोटी माँ बोली "नही करूगी. अब ये बता तुझे आज क्या हुआ है. तू इतना उदास क्यों है."

मैं बोला "कुछ नही छोटी माँ. बस आप सब की बहुत याद आ रही है."

छोटी माँ बोली "देख मुझसे कुछ मत छुपा. मैने तुझे इतना बड़ा किया है. मैं जानती हूँ तुझे मेरी गोद की ज़रूरत कब, इतनी ज़्यादा महसूस होती है. मुझे बता तुझे क्या परेशानी है."

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही छोटी माँ."

छोटी माँ बोली "यदि अपनी माँ से बताने की बात नही है तो, तू मुझे अपनी दोस्त समझ कर बता दे. हो सकता है कि, मैं तेरी परेशानी को दूर करने मे कुछ मदद कर सकूँ."

मैं बोला "कोई बात होती तो ज़रूर बता देता. लेकिन जब कोई बात है ही नही तो, फिर क्या बता दूं."

छोटी माँ बोली "देख मुझे मजबूर मत कर कि, मैं तुझे अपनी कसम देकर कुछ पुछु."

छोटी माँ की बात सुनते ही मैने उनकी बात को बीच मे ही काट दिया और कहा.

मैं बोला "नही छोटी माँ. आप मुझे अपनी कसम मत देना. आपको मेरी कसम है."

छोटी माँ बोली "तूने मुझे अपनी कसम देकर बात पुच्छने से रोक दिया. इस से ये बात तो पक्की हो गयी है कि, कोई ना कोई बात ज़रूर है. तूने मुझे कसम दी है तो अब मैं तुझसे कुछ नही पुछुगि. लेकिन मुझे ये दुख हमेशा रहेगा कि, तू मुझे इस लायक भी नही समझता कि, अपने दिल की बात मुझसे कर सके."

मुझे ये बात सुनकर बहुत बुरा लगा कि, छोटी माँ को मेरी वजह से दुख पहुचा है. मगर मैं कर भी क्या सकता था. मैं उन्हे अपनी और कीर्ति की बात कैसे बता सकता था. लेकिन मैं छोटी माँ को दुखी भी नही करना चाहता था. मैने उनसे कहा.

मैं बोला "मैं आपको ज़रा भी दुख नही पहुचाना चाहता हूँ. यदि आपको मेरे बात ना बताने से दुख पहुच रहा है, तो मैं आपको अपनी बात ज़रूर बताउन्गा. मगर आपको भी मेरी एक बात मानना होगी."

छोटी माँ बोली "तू बता तो सही, मुझे तेरी हर बात मंजूर है."

मैं बोला "मैं आपको जितनी बात बताउन्गा. आप उतनी ही बात सुनेगी. उसके आगे आप मुझसे कुछ नही पुछेगि."

छोटी माँ बोली "ठीक है तू जितनी बात बताना चाहता है. उतनी ही बात बता. मैं तुझसे आगे कुछ भी नही पुछुगि."

मैं बोला "बात ऐसी है कि, मुझे एक लड़की से प्यार हो गया था. वो भी मुझसे प्यार करती थी. लेकिन कल उसके घर वालों ने उसकी शादी कहीं और पक्की कर दी."

मेरी बात सुनकर छोटी माँ शांत ही रही. उन्हो ने कुछ भी नही कहा. मैं समझा उन्हे मेरी बात खराब लगी है. मैने उनसे कहा.

मैं बोला "आपको ये बात सुनकर बुरा लगा ना. मैं इसी वजह से आपको कुछ नही बताना चाहता था."

छोटी माँ बोली "मुझे कुछ बुरा नही लगा. मैं तो ये सोच मे पड़ गयी थी कि, छोटा सा पुन्नू अब इतना बड़ा हो गया है कि, वो किसी लड़की से प्यार भी करने लगा है. मेरे दिमाग़ मे ये बात पहले क्यों नही आई. लेकिन अब तुझे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत नही है. मैं तेरे साथ हूँ. लेकिन मेरी ये बात समझ मे नही आ रही है कि, तू तो अभी 10थ मे है. फिर वो लड़की कितनी बड़ी है. जो उसके माँ बाप उसकी शादी करने जा रहे है."

मैं बोला "लड़की भी 10थ मे ही है."

छोटी माँ बोली "यानी कि लड़की नाबालिग है. ऐसे मे तो उसके माता पिता उसकी शादी कर ही नही सकते. वो लोग यदि ऐसा करने की सोच भी रहे है तो, वो ग़लत कर रहे है. तू मुझे बस उस लड़की और उसके घर वालों का नाम पता बता दे. मैं उन्हे ऐसा करने से रोक दुगी. जब तुम दोनो एक दूसरे को प्यार करते हो तब लड़की के माता पिता उसकी शादी ज़बरदस्ती कहीं नही कर सकते."

मैं बोला "उन्हो ने लड़की के साथ कोई ज़बरदस्ती नही की है. लड़की ने शादी के लिए खुद हाँ की है. अभी उसके माता पिता ने सिर्फ़ लड़की की सगाई की है. मैं आपको लड़की और उसके माता पिता के बारे मे इस से ज़्यादा कुछ नही बता सकता. आपने वादा भी किया है कि, आप मुझसे ऐसा कुछ नही पुछेगि."

छोटी माँ बोली "ठीक है तू लड़की और उसके माता पिता के बारे मे नही बताना चाहता तो मत बता. लेकिन तू तो कह रहा था कि, लड़की भी तुझे प्यार करती थी. यदि ऐसा है तो फिर उसने शादी के लिए हाँ क्यों कर दी."

मैं बोला "यही बात मेरे भी समझ मे नही आ रही है. यदि वो हाँ नही करती तो उसके सगाई भी नही होती."

छोटी माँ बोली "तूने उस लड़की से इसकी वजह नही पुछि."

मैं बोला "जब उसकी सगाई ही हो चुकी है तो, फिर मैं अब इसकी वजह पुच्छ कर क्या करूगा. हो सकता है कि उसे वो लड़का मुझसे ज़्यादा पसंद आया हो."

छोटी माँ बोली "उसने तुझसे प्यार किया था तो, फिर उसने तेरे साथ ऐसा क्यों किया. तुझे ये जानने का पूरा हक़ है. क्या उसके बाद उस लड़की से तेरी बात हुई है."

मैं बोला "हाँ सुबह उस ने मुझे बर्थ'डे विश करने के लिए कॉल किया था."

छोटी माँ बोली "तब तूने उस से ये सब नही पुछा."

अब मैने कीर्ति से सुबह क्या बात की थी. ये बात तो मुझे याद ही नही थी. मैने छोटी माँ से कहा.

मैं बोला "नही. मैने उसे उसकी सफाई देने का मौका ही नही दिया. मैने उस से कहा कि तुम अपनी लाइफ मे खुश रहो और मुझे अपनी लाइफ मे खुश रहने दो."

छोटी माँ बोली "क्या तू उस लड़की से बहुत प्यार करता है."

मैने छोटी माँ की इस बात का कोई जबाब नही दिया. तब छोटी माँ ने कहा.

छोटी माँ बोली "मेरी एक बात मानेगा."

मैं बोला "क्या."

छोटी माँ बोली "मुझे लगता है तू उस लड़की से बहुत प्यार करता है, और वो लड़की भी तुझे प्यार करती है. तभी उसने अपनी सगाई होने के बाद भी तुझे बर्थ'डे विश किया है. यदि मेरा ये समझना सही है तो, तू मेरी एक बात मान. उस लड़की को अपनी सफाई देने का एक मौका ज़रूर दे."

मैं बोला "बर्थ'डे विश करने से क्या होता है छोटी माँ. उसने मेरे प्यार का मज़ाक उड़ाया है. मैं उस से अब कोई बात करना नही चाहता."

छोटी माँ बोली "देख मैं खुद एक लड़की हूँ इसलिए इस बात को समझ सकती हूँ कि, एक लड़की के उपर दुनिया और घर वालों का कितना दबाव होता है. ऐसे ही दबाव की वजह से कयि बार लड़कियों को, अपने सच्चे प्यार की भी बलि देना पड़ जाती है. इसलिए तू जल्दबाज़ी मे कोई फ़ैसला मत ले. उसको अपनी बात बोलने का मौका तो देकर देख. हो सकता है जैसा मैं कह रही हूँ. वैसा ही कुछ उस लड़की के साथ भी हुआ हो."

मैं बोला "नही छोटी माँ. अब मैं उस से कभी बात नही करूगा."

छोटी माँ बोली "ठीक है, तू उस से कभी बात मत करना. लेकिन यदि वो खुद तुझसे बात करने आती है तो, मेरी खातिर उसे एक बार अपनी बात कहने का मौका तो दे सकता है."

मैं बोला "ठीक है छोटी माँ. आप कहती है तो मैं उसे उसकी बात कहने का मौका ज़रूर दूँगा. लेकिन मैं जानता हूँ कि, जो कुछ भी हुआ है. सब उसकी मर्ज़ी से ही हुआ है. इसीलिए इस सब से कोई फ़ायदा नही है."

छोटी माँ बोली "मेरी बात मानने के लिए थॅंक्स पुनीत जी. अब देखिएगा आपकी प्यार की गाड़ी जल्द ही पटरी पर आ जाएगी."

छोटी माँ ये बात बोल कर हँसने लगी. मैने भी काफ़ी समय बाद उन्हे इस तरह दिल खोल कर हंसते और मज़ाक करते देखा था. इसलिए इतने तनाव मे भी मेरी हँसी छूट गयी. मैने हंसते हुए छोटी माँ से कहा.

मैं बोला "छोटी माँ ये क्या है. आप ऐसे बात क्यों कर रही हो."

छोटी माँ बोली "मेरा बेटा जवान हो गया है. लेकिन इसका मतलब ये नही कि मैं बूढ़ी हो गयी हूँ. मैं उसको बताना चाहती हूँ कि, मैं भी नखरे दिखाने मे उसकी गर्लफ्रेंड से कम नही हूँ."

छोटी माँ की बात सुन कर फिर मेरी हँसी छूट गयी. मैने कहा.

मैं बोला "आप मज़ाक करती हुई बहुत अच्छी लगती है छोटी माँ. आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजिए."

छोटी माँ बोली "ना रे. वो तो मैं तेरा मूड सही करने के लिए कर रही थी. ये सब बातें अब मुझे शोभा नही देती."

मैं बोला "क्यों छोटी माँ. ऐसे ही हँसी मज़ाक करते रहने मे क्या बुराई है. आप मेरे साथ कहीं जाओगी. तो आपको कोई मेरी माँ नही, बल्कि बड़ी बहन ही समझेगा."

छोटी माँ बोली "चल अब ये बातें छोड़ भी और ये बता तूने अभी तक खाया या नही."

मैं बोला "खा लिया छोटी माँ. आज बहुत कुछ खा लिया."

छोटी माँ बोली "झूठ क्यों बोल रहा है. मेरा दिल कह रहा है कि, तूने आज कुछ भी नही खाया होगा."

मैं बोला "मुझे आज बिल्कुल भी भूक नही है."

छोटी माँ बोली "देख तेरे ऐसे भूके रहने से मुझे बहुत तकलीफ़ होगी. मैं भी कुछ नही खा पाउन्गी."

मैं बोला "मैं खाना खा लुगा छोटी माँ. आपकी बातों से मेरा सारा तनाव ख़तम हो गया है. अब आप मेरी ज़रा भी चिंता मत करो."

छोटी माँ बोली "ठीक है. लेकिन एक बात याद रखना. तू कभी अपने को अकेला मत समझना. तुझे कोई भी परेशानी हो मुझे कॉल कर लेना. कभी किसी बात मे कोई तेरा साथ दे या ना दे. मगर मैं हर बात मे हमेशा तेरे साथ हूँ."

मैं बोला "ओके छोटी माँ. मैं इस बात को हमेशा याद रखुगा."

छोटी माँ बोली "ठीक है. अब मैं फोन रख रही हूँ. लेकिन तू खाना ज़रूर खा लेना."

मैं बोला "ओके छोटी माँ. आप बेफिकर रहे. मैं खाना खा लुगा."

इसके बाद छोटी माँ ने कॉल रख दिया. उनके कॉल रखने के बाद मैने टाइम देखा तो 7:15 बज गये थे. मुझे छोटी माँ से बात कर के बहुत हद तक तनाव से मुक्ति मिली थी. मैने अपना मोबाइल जेब मे रखा और वहाँ टहल रहे लोगों पर नज़र डालने लगा.

तभी मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई मेरे पिछे खड़ा हो. मुझे इस बात का अहसास होना था कि, मेरे मन मे एक सवाल उठ गया. कहीं मेरे पिछे दादा जी, प्रिया, निक्की मे से कोई, या फिर तीनो ही तो नही खड़े है. यदि जैसा मैं सोच रहा हूँ. वैसा ही है, तो क्या उन्हो ने मेरे और छोटी माँ के बीच चल रही, सारी बातें सुन ली.

ये बात मेरे मन मे आते ही मैं अजीब कशमकश मे पड़ गया था. मैं पिछे पलट कर देखने की हिम्मत भी नही कर पा रहा था. लेकिन तभी मुझे छोटी माँ की पहाड़ और राई वाली बात याद आ जाती है. उसके याद आते ही मैं अपने मन मे कहता हूँ. अब मैं किसी बात से नही डरूँगा छोटी माँ, और फिर मैं अपने पिछे पलट कर देखता हूँ.
Reply
09-09-2020, 01:28 PM,
#75
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
65
मेरा अंदाज़ा सही निकला था. मेरे पिछे प्रिया और निक्की खड़ी थी. मैने एक नज़र दोनो को चेहरे पर डाली. निक्की मुझे देख कर मुस्कुराने लगी थी. लेकिन प्रिया कुछ सोच मे लग रही थी. दोनो को अपने सामने देख कर एक पल के लिए मैं चौका तो ज़रूर था. लेकिन मेरे उपर छोटी माँ के समझाने का ऐसा असर हुआ था, की मैने बिना किसी बात की परवाह किए हुए, उन दोनो से कहा.

मैं बोला "आप लोग ऐसे छुप छुप कर मेरी बात क्यो सुन रही थी. यदि आप लोगों को मेरी बात सुनना ही थी तो, यहाँ मेरे पास बैठ कर भी सुन सकती थी."

मेरी बात सुन कर भी प्रिया का मूह फूला ही रहा. लेकिन निक्की ने कहा.

निक्की बोली "हम दोनो तो यहाँ टहलने आए थे. लेकिन आपको यहाँ बैठे देख कर रुक गये. हम यदि सामने आ गये होते तो, आप अपनी बात करना ही बंद कर देते. इसलिए हम लोग पिछे ही खड़े होकर आपकी बात सुनने लगे."

मैं बोला "लेकिन आप लोग कब मेरे पिछे आकर खड़ी हो गयी. मुझे तो कुछ पता ही नही चला."

निक्की बोली "जब आप अपनी छोटी माँ को मरने की बात बोलने के उपर से गुस्सा कर रहे थे. तभी हम लोग आए थे."

मैं समझ गया कि, इन लोगों ने मेरी और कीर्ति के बारे मे छोटी माँ से हुई सभी बात सुन ली है. अब ये तो सिर्फ़ निक्की ही जानती है कि, मेरी गर्लफ्रेंड कौन है. वो ज़रूर मुझसे इस बारे मे जानना चाहेगी. मैं अभी इसी बारे मे सोच रहा था कि, निक्की ने मुझे टोकते हुए कहा.

निक्की बोली "आप चिंता मत कीजिए. जो कुछ भी हम ने सुना है. हम किसी को कुछ नही बताएगे."

मैं बोला "थॅंक्स, लेकिन आप लोग यहाँ अकेली कैसे है. आप लोग तो दादा जी के साथ आई थी."

निक्की बोली "दादा जी अपने दोस्तो के साथ अंदर वॉक कर रहे थे. हम दोनो यहा बाहर टहल रहे थे. हम ने उनसे कह दिया था कि, आप घर चले जाना. हम दोनो भी टहलने के बाद आ जाएगे."

मैं बोला "लेकिन आज आप लोगों को अचानक वॉक करने का शौक कैसे लग गया."

निक्की बोली "वो हम लोग घर मे बैठे बैठे बोर हो रहे थे. इसलिए दादा जी के साथ वॉक पर आ गये थे."

मैं निक्की से बात कर रहा था और प्रिया मुझे गुस्से से घूर रही थी. मैने उस से पुछा.

मैं बोला "तुमको क्या हुआ है. क्या तुम्हारा किसी से झगड़ा हुआ है. जो तुम्हारा गुस्से मे मूह फूला हुआ है."

प्रिया गुस्से मे बोली "मुझे तुमसे ज़रूरी बात करना है."

मैं बोला "बोलो ना. मैने कब तुम्हे कुछ बोलने से मना किया है."

प्रिया बोली "यहाँ नही, मुझे अकेले मे कुछ बात करना है. तुम घर चलो. वही चल कर बात करेगे."

मुझे और निक्की दोनो को प्रिया के इस बदले हुए मिज़ाज का कारण समझ मे नही आया था. फिर भी उसके इस गुस्से को देख कर ना तो मैने कुछ उस से आगे पुछा और ना ही निक्की ने कुछ कहा. मैने सिर्फ़ इतना कहा.

मैं बोला "ओके चलो."

इसके बाद हम तीनो घर के लिए निकल पड़े. लेकिन प्रिया का चेहरा अभी भी गुस्से मे ही लग रहा था. उसने सारे रास्ते भर कोई भी बात नही की. मेरी निक्की से ही थोड़ी बहुत बातें होती रही. कुछ ही देर मे हम घर पहुच गये.

हम घर पहुचे तो सबसे पहले दादा हॉल मे बैठे थे. मुझे देखते ही उन्हो ने मुझे जनम दिन की मुबारक बाद दी. प्रिया और निक्की भी वही थे. लेकिन दोनो मे से किसी ने भी मुझे बर्थ'डे विश नही किया था. मुझे उनका ये बर्ताव बहुत अजीब लगा.

लेकिन मैं इसे अनदेखा कर दादा जी बातें करने लगा. थोड़ी देर मेरी दादा जी से इधर उधर की बातें होती रही. फिर जब मैं उनसे हॉस्पिटल के बारे मे बात करने लगा तो, उनको जैसे कुछ याद आ गया हो. वो मेरी बात को अधूरा छोड़ कर प्रिया से बोले.

दादा जी बोले "प्रिया बेटा, 8 बज गये है. ज़रा जाकर देखो. मेहुल अभी सोकर उठा है या नही."

मैं दादा जी की बात सुनकर चौक गया. प्रिया अभी मेहुल को देखने जा पाती. उस से पहले ही हमें मेहुल आते हुए दिख गया. उसे इस तरह घर मे देख कर मुझे गुस्सा आ गया. मैं उठ खड़ा हुआ और उस से कहने लगा.

मैं बोला "तुझे तो अभी हॉस्पिटल मे होना चाहिए था. तू यहाँ क्या कर रहा है. क्या रात भर सोकर भी तेरी नींद पूरी नही हुई थी. जो इस तरह अंकल को अकेला छोड़ कर यहाँ आराम करने चला आया. तुझे आराम ही करना था तो, मुझे बोल देता. मैं वहाँ रुक जाता."

मुझे यू गुस्सा करते देख मेहुल के कोई बोल नही फूटे. वो बेबस सा दादा जी की तरफ देखने लगा. मुझे यूँ उस पर गुस्सा करते देख दादा जी अपनी जगह से उठे और मेरे पास आकर मुझे समझाने लगे.

दादा जी बोले "बेटा तुम इस पर बेकार मे गुस्सा कर रहे हो. इसको ऐसा करने के लिए मैने कहा था."

मैं दादा जी की बात सुन कर चौके बिना ना रह सका. मैने दादा जी से कहा.

मैं बोला "दादू आपने. मगर आपने ऐसा क्यो किया. आपको तो पता है कि, हम दोनो मे से किसी ना किसी का, अंकल के पास रहना ज़रूरी है."

दादा जी बोले "मुझे सब पता है बेटा. लेकिन मुझे लगा कि, तुम लोगों को अपनी पारी बदलते रहना चाहिए. नही तो राजेश की तबीयत को ठीक करते करते, तुम दोनो मे से किसी की भी तबीयत खराब हो सकती है. इसी बात को लेकर कल मेरी मेहुल से बात हुई थी. मेहुल बोला भी था कि यदि उसने तुम से पुछे बिना कुछ भी किया तो, तुम नाराज़ हो जाओगे. इसलिए मैने ही उस से कहा था कि, तुमसे मैं बात कर लूँगा. लेकिन तुम सुबह घर ही नही आए थे. इस वजह से मेरी तुमसे बात नही हो सकी."

मैं बोला "लेकिन दादू. अब राज वहाँ दिन भर से रुका है. वो बेचारा भी तो अकेला परेशान हुआ होगा."

दादा जी बोले "राज अकेला कहाँ था. राज 12 बजे वहाँ पहुचा था. उसके पहुचने के बाद मेहुल घर आया. फिर मेहुल के घर आते ही रिया प्रिया और निक्की वहाँ पहुच गयी थी. ये लोग शाम को 5 बजे तक वहाँ थी. जब ये लोग वहाँ से लौटने लगी. तब तुम्हारे पापा वही थे. उन्हो ने कहा था कि, वो 7-8 बजे तक वहाँ रुकेगे. क्योकि उनको अपने किसी डॉक्टर. दोस्त से भी मिल कर राजेश की तबीयत के बारे मे चर्चा करना है. जो 7 बजे के बाद उन से वही मिलेगा."

पापा का नाम आते ही मुझे याद आया कि, कल रिया लोग पापा के साथ डिन्नर पर गयी थी. लेकिन अभी किसी से भी मेरी इस बारे मे बात नही हुई थी. मैं अभी इस बात को सोच रहा था. तभी दादा जी ने कहा.

दादा जी बोले "अब एक दो दिन मेहुल को रात मे हॉस्पिटल मे रुकने दो. तुम दिन मे रुकना."

मैं बोला "दादू, मुझे किसी भी समय वहाँ रुकने मे कोई परेशानी नही है. परेशानी तो इस मेहुल को है. इसे रात को 9 बजे ही नींद आने लगती है."

दादा जी बोले "वो तो इस लिए क्योकि ये दिन मे नही सोता है. अब ये दिन मे सो लिया है तो, अब भला इसे कहाँ नींद आएगी. वैसे भी ऐसे समय पर इसको अपनी नींद पर काबू करना आना चाहिए. ये इसके लिए भी तो एक चुनोती है."

मैं बोला "ठीक है दादू. आप को जो ठीक लगे. लेकिन अभी 8 बजे है. मेहुल तो वहाँ 10 बजे के बाद जाएगा. आप कहे तो तब तक के लिए मैं वहाँ चला जाता हूँ."

दादा जी बोले "मैं तुमको जाने से कहाँ मना कर रहा हूँ. तुम अभी जाना चाहते हो तो चले जाओ."

दादा जी की बात सुनने के बाद मैने कहा कि मैं हॉस्पिटल जा रहा हूँ. जब मेहुल पहुचेगा तब मैं राज के साथ आ जाउन्गा. ये कह कर मैं हॉस्पिटल चला गया. मैं 8:30 बजे हॉस्पिटल पहुच गया. मेरे हॉस्पिटल पहुचने पर मुझे राज ने बताया कि, पापा 8 बजे तक वहाँ रुके थे. राज और अंकल दोनो ने मुझे बर्थ'डे विश किया. फिर मैं उपर अंकल के पास ही बैठा रहा.

इसके बाद 9:30 बजे मेहुल आ गया. निक्की की घटना के बाद मेरी मेहुल से ज़्यादा बात नही हो रही थी. लेकिन आज पहली बार मेहुल ने मुझे बर्थ'डे विश नही किया था. छोटी माँ और अमि निमी के बाद कीर्ति और मेहुल ही दो ऐसे लोग थे. जो मेरे दिल के बहुत ज़्यादा करीब थे.

लेकिन आज के दिन मुझे उन दोनो की ही बातें इस तरह से चुभ रही थी. जिसके बारे मे मैं उन से कुछ कह ही नही सकता था. अभी भी मेरी मेहुल से ज़्यादा कोई बात नही हुई. मेरी जो भी बात हुई. अंकल के विषय मे ही हुई. फिर राज के साथ मैं घर वापस आ गया.

घर आते आते हमे 10:00 बज गये थे. हमारे घर पहुचते ही आंटी ने हमारे लिए खाना लगाया. मुझे उम्मीद थी कि सब मेहुल के साथ ही खाना खा चुके होगे. लेकिन मुझे देख कर तब ताज्जुब हुआ. जब एक एक करके पहले रिया, फिर प्रिया और निक्की भी आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गयी और आंटी उन्हे भी खाना लगाने लगी.

तब आंटी ने बताया कि, अभी तक इन सबने भी तुम्हारी वजह से खाना नही खाया है. मैने एक नज़र उन सब के चेहरे पर डाली. रिया और निक्की का चेहरा खिला हुआ था. लेकिन प्रिया का चेहरा अभी भी गुस्से मे लग रहा था और वो खा जाने वाली नज़रो से मुझे ही घूरे जा रही थी.

मुझे प्रिया के इस गुस्से की वजह समझ मे नही आ रही थी. वो शाम को बात करने के लिए मुझे घर भी वापस लेकर आई थी. लेकिन दादा जी की बातों मे लग जाने और फिर मेरे हॉस्पिटल चले जाने की वजह से मेरी उस से बात नही हो सकी थी.

लेकिन ये प्रिया के नाराज़ होने की वजह नही हो सकती थी. क्योकि जब वो शाम को मुझे बात करने के लिए घर लेकर आई थी. तब भी वो बहुत गुस्से मे नज़र आ रही थी. अब ये तो वो ही जानती थी कि, वो मुझ पर किस बात को लेकर इतना ज़्यादा गुस्सा है.

खाना लग चुका था. लेकिन किसी ने खाना खाना शुरू नही किया था. सब को जैसे किसी बात का इंतजार हो. सब मेरी तरफ ही देख रहे थे और मैं सब के खाना शुरू करने का इंतजार कर रहा था. फिर अचानक रिया ने निक्की को कोहनी मारी. जिस से निक्की ने रिया को पलट कर देखा.

उन मे इशारे ही इशारे मे कोई बात हुई. फिर निक्की ने प्रिया को कोहनी मारी. प्रिया जैसे इस हमले के लिए तैयार नही थी. क्योकि उसका ध्यान तो मुझे घूर्ने मे लगा हुआ था. वो निक्की के कोहनी मारने से लड़खड़ा सी गयी और अपनी चेयर से गिरती गिरती बची.

उसने निक्की को गुस्से मे घूर कर देखा तो, निक्की ने उसे कुछ इशारा किया. वो निक्की का इशारा समझ गयी थी. वो अपनी जगह से उठी और फिर कहीं चली गयी. थोड़ी देर बाद वो अपने हाथ मे एक पॅकेट लेकर आई.

उसने मेरे पास आकर वो पॅकेट खोला. उसमे एक केक था. प्रिया ने केक डाइनिंग टेबल पर रखा और मुझे काटने को कहा. मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था. मैने आंटी से कहा.

मैं बोला "आंटी ये सब क्या है. मुझे इस सब की आदत नही है. मैने कभी अपना जनम दिन इस तरह से नही मनाया है. आप चाहे तो मेहुल से पूछ सकती है."

आंटी बोली "हमे मेहुल से कुछ पूछने की ज़रूरत नही है. वो हमे कल ही इस बारे मे बता चुका था कि, तुम्हे ये सब पसंद नही है. लेकिन ये प्रिया नही मानी. इसने ये केक कही से मँगाया नही है. बल्कि खुद अपने हाथ से तैयार किया है. अब तुम्हे केक काटना है या नही तुम इस बात का फ़ैसला तुम और प्रिया आपस मे मिलकर कर लो."

लेकिन प्रिया का चेहरा देखते ही मेरी बोलती बंद हो गयी. मेरी उस से कुछ भी कहने की हिम्मत नही हुई. क्योकि मैं उसके गुस्से से मुझे घूर्ने से मैं ये तो समझ चुका था कि, वो मुझसे ही किसी बात पर गुस्सा है. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, वो किस बात को लेकर इतना गुस्सा है.

जब मैं प्रिया से कुछ नही बोला तो, मुझे खामोश देख कर रिया और निक्की केक काटने की जल्दी मचाने लगे. तब राज ने कहा.

राज बोला "चलो यार, अब देर मत करो. जल्दी से केक कतो."

राज की बात सुनकर सब खड़े हो गये. उस समय वहाँ सच मे किसी पार्टी की तरह का महॉल बना हुआ था. सब के चेहरे हँसी खुशी से भरे हुए थे. उनके खुशी भरे चेहरों को देख कर मैं भी खड़ा हो गया. मेरे खड़े होते ही रिया और निक्की भी मेरे पास आकर खड़ी हो गयी. प्रिया तो पहले से ही मेरे पास ही खड़ी थी. मैने केक काटा और प्रिया ने केक का टुकड़ा उठा कर मेरे मूह मे ठूंस दिया.

इसे ठुसना इसलिए कहा जाएगा. क्योकि उसके चेहरे पर गुस्सा अभी था. उसके केक खिलाने से मुझे ऐसा लगा. जैसे कि बकरे को हलाल करने के पहले खिलाया पिलाया जा रहा हो. मैने सबको अपने हाथो से केक खिलाया. इसके बाद सबने मिलकर खाना खाया. खाना खाते समय और खाने के बाद प्रिया को छोड़ कर, सबसे मेरी इधर उधर की बातें होती रही.

उस समय मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे मैं राज के परिवार के साथ नही बल्कि अपने ही परिवार के साथ हूँ. मैं अपने आपको उनके परिवार का ही एक हिस्सा महसूस कर रहा था. काफ़ी देर तक मेरी उन सब से बातें होती रही. फिर 11:15 बजे मैने सब से गुड नाइट कहा और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा.

कल रात के बाद से आज मैं अपने कमरे मे जा रहा था. मेरे मन मे जहाँ राज के परिवार के लोगों के प्यार को देख कर खुशी थी. वही कीर्ति की बात को लेकर उदासी भी थी. मैं इसी कशमकश मे उलझा हुआ अपने कमरे तक पहुच गया.

लेकिन कमरे का दरवाजा खोलते ही मैं चौक पड़ा. मैने एक नज़र कमरे पर डाली. फिर पलट कर वापस राज के परिवार के लोगों की तरफ देखा. वो सब मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे. मुझे दरवाजे पर ही यूँ खड़ा देख कर निक्की मेरे पास आने लगी.
Reply
09-09-2020, 01:31 PM,
#76
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
66
मगर तभी आंटी ने निक्की को रोकते हुए कहा.

आंटी "अरे अब उसे आराम भी करने दो. तुम्हे जो भी बात करना है. सुबह कर लेना. अब तुम सब भी अपने कमरे मे जाकर सो जाओ."

आंटी की बात सुन कर निक्की हंस दी और फिर वो मेरे पास नही आई. सबने वही से मुझे फिर से गुड नाइट कहा और सब अपने अपने कमरे की तरफ चले गये. मैने भी अपने कमरे मे आकर कमरे का दरवाजा बंद लिया. मैने एक नज़र अपने बेड पर डाली. जिसमे इस समय बहुत से गिफ्ट पॅक रखे हुए थे.

उन गिफ्ट पॅक को देखते ही मुझे फिर उदासी ने घेर लिया. क्योकि अब मुझे बहुत ज़्यादा कीर्ति की याद सता रही थी. मैने भारी मन से अपने कपड़े बदले और फिर सारे गिफ्ट पॅक बेड के एक किनारे सरका कर, बेड पर टिक कर बैठ गया.

अब मेरे दिमाग़ मे कीर्ति के सिवा कुछ नही था. रह रह कर मेरी नज़र मेरे पास रखे हुए गिफ्ट पॅक पर जा रही थी. मेरी नज़र एक गिफ्ट पॅक पर पड़ी. जिसमे प्रिया लिखा हुआ था. ना जाने क्यो मगर प्रिया को लेकर मेरे मन मे एक अलग ही अहसास था. ना चाहते हुए भी मेरे दिल मे उसके लिए एक अलग सी ही जगह बन गयी थी.

उसके गुस्सा रहने की वजह मुझे पता नही चल सकी थी. लेकिन मैं इतना तो समझ चुका था कि वो मुझसे ही किसी बात को लेकर नाराज़ है. इसलिए जब मेरी नज़र उसके दिए गिफ्ट पॅक पर पड़ी तो, मैं अपने आपको रोक ना सका. मैने उसके दिए गिफ्ट पॅक को उठाया और उसे खोलने लगा.

प्रिया का गिफ्ट खोलते समय मेरी धड़कने बढ़ गयी थी. मेरे मन मे ये जानने की उत्सुकता थी कि प्रिया ने मुझे गिफ्ट मे क्या दिया है. मेरा सारा ध्यान प्रिया का गिफ्ट खोने मे लगा हुआ था. तभी मेरा मोबाइल बज उठा और अचानक से मोबाइल की रिंग टोन बजने से मैं चौक गया था. जिस की वजह से गिफ्ट पॅक मेरे हाथ से छूट कर बेड के नीचे गिर गया.

मैने कुछ पल अपने आपको शांत किया और फिर मोबाइल को देखा. मेहुल का कॉल आ रहा था. मेहुल का इतने समय कॉल आने से मुझे कुछ आशंका सी हुई और मैने जल्दी से कॉल उठाते हुए मेहुल से कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. वहाँ सब ठीक तो है."

मेहुल बोला "कुछ नही हुआ. यहाँ सब ठीक है."

मैं बोला "फिर इतने समय कॉल क्यो किया."

मेहुल बोला "अबे तेरा कॉल नही आया तो मुझे ही कॉल करना पड़ा."

मैं बोला "मैने कब तुझे कॉल लगाने को कहा था."

मेहुल बोला "वाह बेटा. इतने सारे लोगों के बर्थ'डे गिफ्ट पाकर अपने दोस्त को थॅंक्स बोलना ही भूल गया."

मैं बोला "तूने मुझे कब विश किया. जो मैं तुझे थॅंक्स बोलू."

मेहुल बोला "अबे ये सारा किया धरा मेरा ही तो था. नही तो यहाँ किसको मालूम था कि, आज तेरा बर्थ'डे है."

मैं बोला "कुछ भी हो पर तूने मुझे विश तो नही किया है."

मेहुल बोला "भाई विश करने के लिए ही तो तेरे कॉल का इंतजार कर रहा था."

मैं बोला "ये क्या बात हुई. मुझे क्या ज़रूरत पड़ी कि, तेरी विश लेने के लिए तुझे कॉल करूँ."

मेहुल बोला "यार मैं सोच रहा था कि तू मेरे गिफ्ट को देख कर ज़रूर मुझे कॉल करेगा. इसीलिए मैने तुझे विश नही किया था कि, जब तू कॉल करेगा. तब मैं तुझे विश कर दूँगा. लेकिन मुझे लगा कि तूने अभी तक मेरा गिफ्ट देखा ही नही है. इसलिए अब मुझे विश करने के लिए खुद कॉल करना पड़ा."

मैं बोला "हाँ अभी मैने कोई गिफ्ट नही देखा है. लेकिन आज तेरे जैसे कंजूस को मुझे गिफ्ट देने का ख़याल कैसे आ गया."

मेहुल बोला "ये सब बातें छोड़, पहले मेरा गिफ्ट देख और बता कि कैसा है."

मेहुल की बात सुनकर मैने वहाँ रखे गिफ्ट मे से मेहुल का गिफ्ट निकाला और उसे खोला. उसमे एक मोबाइल था. उसे देखते हुए मैने मेहुल से कहा.

मैं बोला "अबे तुझे मोबाइल ही गिफ्ट करना था तो कोई अच्छा सा करना था. ये कौन सा सस्ता वाला मोबाइल गिफ्ट किया है."

मेहुल बोला "तुझसे किसने कहा कि मैने तुझे ये मोबाइल गिफ्ट किया है. मैने तो तुझे बस इस मोबाइल का सिम कार्ड गिफ्ट किया है."

ये बोल कर मेहुल हँसने लगा. मैने उस से पुछा.

मैं बोला "तो फिर ये मोबाइल किसका है."

मेहुल बोला "ये मोबाइल भी तुझे गिफ्ट मे ही मिला है. मैने तो तुझे बस इसमे यहाँ का सिम कार्ड डाल कर तुझे दिया है."

मैं बोला "मगर ये किसने गिफ्ट मे दिया है."

मेहुल बोला "अबे इतनी जल्दी भूल गया. कीर्ति ने तेरे सामने ही तो इसे मेरे बेग मे रखा था. उसने तुझे जनम दिन के पहले इसके बारे मे बताने को मना किया था. इसलिए मैने तुझे इसके बारे मे कुछ नही बताया था. कल राज से एक सिम कार्ड खरीद कर इसे पॅक करके तेरे कमरे मे रख दिया था. सोचा था कि आज सुबह जब तू यहाँ सब के गिफ्ट के साथ इसे रखा देखेगा तो, मुझे कॉल ज़रूर करेगा. लेकिन तूने तो इसे अभी तक देखा भी नही था."

मैं बोला "लेकिन इस मोबाइल की ज़रूरत क्या थी. मेरे पास तो पहले से ही मोबाइल है."

मेहुल बोला "तेरे पास मोबाइल है. लेकिन अकल ज़रा भी नही है. मैने तो यहाँ आते ही अपने दूसरे मोबाइल का सिम कार्ड बदल लिया था. ताकि मुझे कॉल करने मे रोमिंग ना लगे. लेकिन तू अभी भी वही सिम कार्ड चला रहा है. शायद इसी वजह से उसने तुझे ये मोबाइल गिफ्ट किया है."

मेहुल की ये बात सुनते ही मेरा दिल रो पड़ा. सच मे कीर्ति को मेरा कितना ख़याल था. वो मेरी हर आदत को जानती थी. उसे पता था कि मैं खुद के लिए यहा ज़रा भी समय नही निकल पाउन्गा. इसलिए उसने मेरे लिए सब कुछ की तैयारी पहले से ही कर के रख दी थी.

जब सब कुछ वो जानती थी. तब क्या वो ये नही जानती थी कि उसकी शादी से मुझे कितनी तकलीफ़ होगी. फिर उसने ऐसा क्यो किया. क्या उसे ऐसा करते हुए एक पल के लिए भी मेरा ख़याल नही आया था. क्या उसे एक पल के लिए भी ये महसूस नही हुआ कि, इस सब से मेरे उपर क्या बीतेगी.

मैं अभी ये सब ही सोच रहा था कि, मेहुल की बात ने मुझे मेरी सोच से बाहर निकाल दिया. मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला "क्या सोचने लगा. क्या तुझे उसका ऐसा करना अच्छा नही लगा."

मैने अपने मन की बात को मेहुल से छुपाते हुए कहा.

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. मैं तो ये सोच रहा था कि, उसके पास इतना पैसा कहाँ से आ गया. क्या उसने तुझे बताया है."

मेहुल बोला "नही मुझे इसके बारे मे कुछ नही पता. उसने हमारे यहाँ पहुचने के बाद मुझे बताया था कि, उसने तुम्हे जनम दिन का गिफ्ट देने के लिए मोबाइल रखा है और मैं उस मोबाइल मे यहाँ का सिम कार्ड डाल कर, तुम्हे तुम्हारे जनम दिन के दिन गिफ्ट कर दूं."

मैं समझ गया था कि मेहुल इस बारे मे कुछ नही जानता है. मैने मेहुल का ध्यान इस बात पर से हटाने के लिए अपनी बात को बदलते हुए कहा.

मैं बोला "चल छोड़ इस बात को और ये बता कि, तू रात को वहाँ जाग सकेगा या नही. यदि तुझे रुकने मे कोई परेशानी हो रही है तो, तू वापस आजा. मैं वहाँ रात को रुक जाउन्गा."

मेहुल बोला "नही यार. मुझे कोई परेशानी नही हो रही है. तू चिंता क्यो करता है. यदि मुझसे रात को यहाँ रुकते नही बना तो, कल से तुझे ही रोक दूँगा. अब तू आराम कर, मैं पापा के पास जाता हूँ."

ये कह कर मेहुल ने कॉल रख दिया. उसके कॉल रखने के बाद मैने कीर्ति का दिया हुआ मोबाइल हाथ मे लिया और प्यार से उसे देखने लगा. ना जाने कब मेरी आँखों मे नमी छा गयी थी. मुझे सच मे कीर्ति की बहुत कमी अखर रही थी. मेरा मन उसे कॉल करने को कर रहा था. लेकिन चाह कर भी मैं ऐसा नही कर पा रहा था.

मैने टाइम देखा तो 11:30 बज चुके थे. आज कीर्ति का कॉल आने का नाम ही नही ले रहा था. मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, नाराज़ तो मैं उस से हूँ. फिर वो मुझे मनाने के लिए कॉल क्यो नही कर रही है. उसे तो आज दिन भर मुझे मनाने की कोशिश करना चाहिए थी. लेकिन उसने तो सुबह के बाद से मुझे एक भी कॉल नही किया.

यही सब सोचते हुए मैने कीर्ति के दिए मोबाइल को चालू कर दिया. मोबाइल के चालू होते ही एक के बाद एक, तीन मेसेज आ गये. मसेज किसी अंजान नंबर से आए थे. लेकिन मेसेज देखते ही मैं समझ गया कि, ये मेसेज कीर्ति ने ही किए है.

कीर्ति के मेसेज
"तुम हँसते हो मुझे हसाने के लिए.
तुम रोते हो मुझे रुलाने के लिए.
तुम यदि रूठ जाओगे मुझसे.
तो मैं मर जाउन्गी तुम्हे मनाने के लिए."

"आए मौत तुझे गले लगाना चाहती हूँ.
कितनी वफ़ा है तुझ मे आज़माना चाहती हूँ.
उन्हो ने बहुत रुलाया है मुझे.
तेरा साथ मिले तो उन को रुलाना चाहती हूँ."

"एक बार सारी फीलिंग्स ने डिसाइड किया कि वो लोग हाइड न सीक खेलेंगे.
दर्द ने काउंटिंग स्टार्ट की और बाकी फीलिंग्स छुप गयी.
झूट पेड़ के पीछे छुपा और प्यार गुलाब की झाड़ियों के पीछे.
सब पकड़े गई सिवाए प्यार के, यह देख जेलसी ने दर्द को बता दिया कि प्यार कहाँ छुपा है.
दर्द ने प्यार को खीच के निकाला तो कान्टो की वजह से प्यार की आँखे खराब हो गयी.
प्यार अँधा हो गया. यह देख कर गॉड ने दर्द को सज़ा सुनाई कि उसे जिंदगी भर प्यार के साथ रहना पड़ेगा.
तब से प्यार अँधा है और जहाँ भी जाता है दर्द साथ होता है."

कीर्ति के तीनो मेसेज मे मुझे जो प्यार और दर्द नज़र आया था. उसे देख कर मैं अपनी आँखों को ना तो छलकने से रोक पाया और ना ही खुद को कीर्ति को मेसेज करने से रोक पाया. मैने भी उसका जबाब उसी दर्द भरे अंदाज मे भेजा.

मेरे मेसेज
"आँखे क्यू हुई मेरी नम कभी सोचना.
क्यूँ मिला मुझे इतना गम कभी सोचना.
प्यार तो हम दोनो ने किया था लेकिन.
सिर्फ़ मुझ पर ही क्यूँ हुआ ये सितम कभी सोचना."

मेरे मेसेज करते ही उस नंबर से कॉल आने लगा. जैसे उसे इसका ही इंतजार रहा हो. मैने धड़कते दिल से कॉल उठाया और कहा.

मैं बोला "हेलो".

दूसरी तरफ कीर्ति ही थी. उसने मेरी आवाज़ सुनते ही कहा.

कीर्ति बोली "जान प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. मैने तुम्हे बहुत तकलीफ़ पहुचाई है. प्लीज़ जान मुझे माफ़ कर दो."

ये कह कर वो सिसकने लगी. उसकी आँखों की नमी उसकी बातों मे साफ झलक रही थी. मेरा मन तो उसे दो चार बातें सुनाने का था. लेकिन उसकी ये हालत देख कर मुझसे उसे कुछ कहते ना बना. मैने सिर्फ़ इतना कहा.

मैं बोला "तुमने ऐसा क्यों किया. क्या ऐसा करते हुए तुम्हे मेरा ज़रा भी ख़याल नही आया. क्या तुमने ऐसा करने के पहले एक पल के लिए भी ये सोचा था कि, इस सब से मुझ पर क्या गुज़रेगी."

कीर्ति बोली "जान मुझे नही मालूम था कि, ये बात तुम्हे इस तरह पता चल जाएगी. मैने सोचा था कि, मैं ये बात तुम्हे खुद बताउन्गी."

मैं बोला "ये बात मुझे किस तरह से पता चली. इस बात से क्या फरक पड़ता है. तुम्हारे बताने से ये सच बात, झूठ तो हो नही जाएगी. ये सच बदल तो नही जाएगा कि, तुम्हारी सगाई तुम्हारी मर्ज़ी से हुई है."

कीर्ति बोली "जान प्लीज़ मेरा विस्वास करो. तुम जैसा सोच रहे हो. वैसा कुछ भी नही है. मैने जो कुछ भी किया है. सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हे ही अपने मन मे बसा कर किया है. मेरे लिए तो मेरा सब कुछ तुम ही हो. मैं तुम्हारे सिवा किसी का होने की सोच भी नही सकती."

मैं बोला "यदि ऐसा है तो, फिर तुमने इस सगाई के लिए हाँ क्यो कहा. तुमने यदि चाहती तो ये सगाई हरगिज़ नही होती."

कीर्ति बोली "जान तुम्हारा कहना सच है. लेकिन पहले मेरी पूरी बात को सुन लो. उसके बाद बोलो कि मैने ग़लत किया है या सही किया है."

मैं बोला "ठीक है बोलो."

कीर्ति बोली "जान तुमको मालूम है कि, पापा का सारा बिज़्नेस मौसा जी की ही देन है. पापा ने मौसा जी की मदद से अपना ये बिज़्नेस शुरू किया था और ये अच्छा भी चल रहा था. लेकिन कुछ समय से पापा के बिज़्नेस की हालत सही नही चल रही थी. मगर पापा को बार बार बिज़्नेस के लिए मौसा जी की मदद लेना अच्छा नही लग रहा था. पापा के बिज़्नेस से जुड़े कुछ लोगों ने पापा की इसमे मदद की और पापा का बिज़्नेस फिर से सही चलने लगा. पापा को इसमे मदद करने वालों मे एक रॉय अंकल भी है."

रॉय अंकल का नाम सुनते ही मैने बात को बीच मे काटते हुए कहा.

मैं बोला "क्या तुम उन्ही रॉय अंकल की बात कर रही हो. जो अंकल के साथ इलाज के लिए यहाँ मुंबई आए थे."

कीर्ति बोली "हाँ मैं उन्ही की बात कर रही हूँ. उन्हो ने पापा को बिज़्नेस मे सभालने मे बहुत मदद की है. इसी सिलसिले मे उनका हमारे घर आना जाना भी लगा रहता था. जिस वजह से उनके और हमारे परिवारों के बीच भी अच्छे रिश्ते बन गये थे. इधर मम्मी को मेरे लिए लड़का देखने की जल्दी थी. उन्होने ये ही बात रॉय आंटी के सामने बातों बातों मे रखी तो, रॉय आंटी ने अपने बेटे सौरव के लिए मेरा हाथ माँग लिया."

मैं बोला "इसका मतलब ये है कि तुम अपने पापा मम्मी की खुशी के लिए इस शादी के लिए तैयार हुई हो. ये तो तुम अपने मम्मी पापा के लिए कर रही हो. इसमे तुम्हे मेरा ख़याल कहाँ आया."

कीर्ति बोली "पूरी बात तो सुनो. मम्मी और आंटी की बात हो जाने के बाद ये बात पापा और रॉय अंकल को पता चली. तब पापा और रॉय अंकल ने कहा कि अभी हम दोनो की शादी की उमर नही है. लेकिन मम्मी और आंटी इस बात को मानने को तैयार नही थी. तब पापा और अंकल ने इस बात का फ़ैसला मेरे और सौरव के उपर छोड़ दिया. मैने तो मम्मी से शादी के लिए साफ मना कर दिया था. पर उनकी बात मान कर एक बार सौरव से मिलने को तैयार हो गयी. सौरव से मेरी बात हुई तो, उसने पहले ही बोल दिया कि, वो किसी और लड़की को प्यार करता है."

कीर्ति की ये बात सुन कर जहाँ एक तरफ मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था. वही दूसरी तरफ मुझे ऐसा लगा. जैसे कीर्ति ने खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार दी हो. मैने गुस्से मे कहा.

मैं बोला "तब तुम्हे इस शादी के लिए हाँ कहने की क्या ज़रूरत थी. हमारा काम तो सौरव के ना कहने से ही हो जाता."

कीर्ति बोली "जान पूरी बात तो सुनो. मैं भी जानती थी कि, हमारा काम सौरव के ना कहने से हो जाएगा. लेकिन सौरव की बात सुनकर मेरे मन मे बात आई कि, जब ऐसी बात थी तो, फिर ये मुझसे मिलने क्यो आया. इसने सीधे अपने मम्मी पापा से ये बात क्यो नही बता दी. इसलिए मैने सौरव से कहा कि, जब ऐसी बात है तो, फिर वो मुझसे मिलने क्यो आया. उसने ये बात खुद अपने मम्मी पापा को क्यो नही बता दी. तब सौरव ने बताया कि, वो अपनी पढ़ाई पूरी होने के पहले और उसे कोई जॉब मिल जाने तक, ये बात अपने मम्मी पापा को बताना नही चाहता है. इसलिए वो मुझसे मिलने आया है. ताकि मैं इस शादी के लिए मना कर दूं."

अपनी खुशी और उत्सुकता की वजह से, मुझसे फिर नही रहा गया और मैं फिर बीच मे बोल पड़ा.

मैं बोला "तो तुम्हे ऐसा कर देना था. इस से हमारी परेशानी भी दूर हो जाती और सौरव की परेशानी भी दूर हो जाती."

मुझे फिर बात के बीच मे टोकते देख कर कीर्ति ने प्यार भरा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "जान ये क्या है."

मैं बोला "क्यो, क्या हुआ. क्या मैं कुछ ग़लत बोल रहा हूँ."

कीर्ति ने फिर प्यार भरे गुस्से मे कहा.

कीर्ति बोली "जान क्या तुम थोड़ी देर चुप होकर मेरी बात नही सुन सकते. मैं एक एक करके सब बात बता रही हूँ ना."

मैं बोला "सॉरी, अब मैं बीच मे नही बोलुगा. तुम अपनी बात बोलो."

कीर्ति बोली "सौरव की बात सुन कर मुझे भी उतनी ही खुशी हुई थी. जितनी अभी तुम्हे हो रही है. मगर फिर मैने सोचा कि मेरे सौरव से शादी करने के लिए मना कर देने से सौरव की परेशानी तो दूर हो जाएगी. लेकिन मेरी परेशानी तब भी जहाँ की तहाँ बनी रहेगी. क्योकि मम्मी तो मेरे लिए लड़का ढूँढना सुरू कर चुकी है. वो सौरव के बाद किसी दूसरे की तलाश शुरू कर देगी. ये बात मेरे मन मे आते ही मैने सौरव से कहा कि, यदि मैं शादी के लिए अपने घर मे मना करूगी तो, मेरे घर वाले इसकी वजह पुछेगे. अब यदि मैं उन्हे ये वजह बता देती हूँ कि, तुम किसी लड़की से प्यार करते हो तो, मेरी मम्मी ज़रूर तुम्हारी मम्मी को ये बात बताएगी. तब तुम क्या करोगे."

मैं बोला "हाँ ये बात तो तुमने ठीक कही. उसके घर मे पता चल जाने से उसकी परेशानी और भी बढ़ जाती."

कीर्ति बोली "मुझे उसकी परेशानी से कोई मतलब नही था. मैं तो सिर्फ़ अपनी मम्मी के सर पर से अपने लिए लड़का ढूँढने का भूत उतारना चाहती थी. इसलिए सौरव के मन मे ये डर पैदा कर दिया. जब उसने मेरी बात सुनी तो उसे भी तुम्हारी तरह मेरी बात सही लगी. तब उसने मुझसे ही पूछा कि वो क्या करे, जिससे उसकी मेरे साथ शादी भी ना हो, और उसके घर मे उसकी बात का पता भी ना लगे."

मैं बोला "तब तुमने क्या कहा."

कीर्ति बोली "मैने सौरव से पूछा कि उसे अपनी पढ़ाई पूरा करने और जॉब मिलने मे कितना समय लगेगा. तब उसने बताया कि ये उसके ग्रॅजुयेशन का अंतिम साल है और इसके बाद वो एमबीए करना चाहता है. जिसको करने मे उसे 2 साल का समय लगेगा. एमबीए करते ही उसे कोई ना कोई जॉब मिल ही जाएगा. तब मैने उस से कहा कि उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने और जॉब मे लगने मे कम से कम 4 साल का समय लगना है. ऐसे मे यदि मैं शादी के लिए मना भी कर देती हूँ. तब भी उसके घर वाले उसके लिए कोई ना कोई लड़की देखते रहेगे. इस से अच्छा तो ये ही है कि वो मुझसे ही शादी करने के लिए हाँ कह दे."

कीर्ति की ये बात सुनकर मैं चौके बिना ना रह सका. मेरे चेहरे पर एक ही पल मे हज़ारों भाव आए और चले गये. लेकिन मैं उसके गुस्सा होने के डर से कुछ नही बोला. मैने सिर्फ़ इतना कहा.

मई बोला "फिर क्या हुआ. उसने क्या कहा."

मेरी बेचैनी और उत्सुकता को देख कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली "मेरी बात सुनकर उसकी भी ऐसी ही हालत हो गयी थी. जैसे अभी तुम्हारी है. उस से कुछ ना कहते बन रहा था. जब वो कुछ ना बोला. तब मैने ही उस से कहा कि, मैं सच मे शादी करने को नही कह रही हूँ. मैं तो सिर्फ़ शादी करने की हाँ करने को बोल रही हूँ. तुम शादी के लिए हाँ कर देना और फिर कह देना कि मेरे बालिग होने और अपने जॉब पर लगने तक तुम शादी नही करोगे. जब तुम्हारा जॉब लग जाएगा. तब तुम जिस से चाहे शादी कर लेना. मेरी बात सुन कर वो खुश हो गया और फिर उसने शादी के लिए हाँ कर दी."

मैं बोला "लेकिन ये सगाई का क्या लफडा है. जब शादी अभी नही होना तो, अभी से सगाई करने की क्या ज़रूरत थी."

कीर्ति बोली "ये बात तो मुझे भी नही मालूम थी. कल अचानक मम्मी ने मुझे बुलाया और कहा कि वो लोग शादी के लिए तैयार है. हम जल्द से जल्द तुम दोनो की शादी कर देना चाहते है. तब मैने सौरव से बात की तो उसने कहा कि, उसने अपने घर मे शादी के लिए हाँ तो की थी. मगर ये नही कहा था कि, वो अभी शादी नही करना चाहता है. इसलिए ये लफडा हो गया है."

कीर्ति की ये बात सुन कर मुझसे फिर नही रहा गया और मैं फिर बीच मे बोल दिया. मैने कहा.

मैं बोला "यदि वो ऐसे ही डरता रहा तो, ऐसे मे उस से तुम्हारी शादी भी हो जाएगी."

कीर्ति बोली "चुप करो. ऐसा कुछ नही होगा. सौरव की बात सुन ने के बाद मैने उस से साफ कह दिया था कि, वो चाहे जैसे भी हो, इस सगाई को रोके. तब उस ने अपने मम्मी पापा से बात की थी. जिस वजह से कल रॉय अंकल आंटी सौरव के साथ घर आए थे. कल जब मम्मी से तुम्हारी बात हुई थी. तब हम लोगों मे इसी बात को लेकर चर्चा चल रही थी. देर रात तक सब सौरव को समझाने की कोशिश करते रहे कि, सगाई करने मे कुछ नही जाता. लेकिन वो किसी भी हालत मे सगाई के लिए तैयार नही था. उसने साफ कह दिया कि, वो अपने जॉब पर लगने के पहले और मेरे बालिग होने तक इस बारे मे सोच भी नही सकता. बाद मे सौरव की बात से सभी सहमत हो गये और फिर सगाई टल गयी."

कीर्ति की ये बात सुन कर मुझे ऐसा लगा. जैसे मेरा सब कुछ मुझे वापस मिल गया हो. मेरी खोई हुई खुशी मुझे वापस मिल चुकी थी. लेकिन फिर भी मेरे मन मे बहुत से सवाल उठ रहे थे. जिसकी वजह से मैं इस खुशी को ना तो महसूस कर पा रहा था, और ना ही खुश हो पा रहा था.
Reply
09-09-2020, 01:48 PM,
#77
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
67

कीर्ति ने जब देखा कि मैं उसकी बात को सुन कर भी खुश नज़र नही आ रहा हूँ. तब उसने बड़ी मासूमियत के साथ मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "जान क्या हुआ. तुम मेरी बात सुन कर भी खुश नज़र नही आ रहे."

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. मैं ये बात सुन कर सच मे बहुत खुश हूँ."

कीर्ति बोली "नही जान. तुम झूठ बोल रहे हो. यदि तुम सच मे मेरी बात सुन कर खुश होते तो, इस तरह चुप क्यो हो."

मैं बोला "अरे मैं सच मे खुश हूँ. चुप तो मैं इसलिए हूँ, क्योकि मैं बेकार मे ही तुम पर इतना नाराज़ रहा."

मगर कीर्ति जानती थी कि, मैं उस से कुछ छुपा रहा हूँ. शायद उसे मेरे दिल की हालत का अंदाज़ा लग चुका था. उसने अपनी ग़लती मानने वाले अंदाज मे कहा.

कीर्ति बोली "जान तुम कुछ ना भी कहो, तब भी मैं तुम्हारे दिल का हाल समझ सकती हूँ. तुम यही सोच रहे होगे कि, इतनी सब बातें हो गयी और मैने तुम्हे कुछ भी नही बताया. लेकिन मेरा यकीन करो जान. मैं तुम से कोई भी बात छुपाना नही चाहती थी. जितना बुरा अब तुम्हे ये सब बातें जानकर लग रहा है. इतना ही बुरा मुझे भी लग रहा है कि, मैं तुम्हे ये बातें क्यो नही बता पाई."

मैं बोला "तुम बेकार की बात मत सोचो. मुझे किसी बात का कोई बुरा नही लगा है."

कीर्ति बोली "यदि ऐसा है तो तुम मेरी कसम खाकर बोलो कि, तुम्हे किसी बात का कोई बुरा नही लगा."

मगर मैं कीर्ति की झुटि कसम कैसे खा सकता था. बुरा तो मुझे लगा था और उसी बात का बुरा लगा था. जो कीर्ति बोल रही थी. लेकिन अब मैं उसे परेशान करना नही चाहता था. इसलिए मैने कीर्ति से हंसते हुए कहा.

मैं बोला "तू तो बिल्कुल पागल है. क्या कोई ऐसे ज़रा ज़रा सी बातों मे अपनी जान की कसम ख़ाता है. क्या तुझे मुझ पर विस्वास नही है. जो मुझे अपनी कसम खाने को बोल रही है."

कीर्ति बोली "जान विस्वास तो अब तुमको मुझ पर नही है. जो अपने दिल की बात मुझे नही बता रहे हो. मैं तो अपनी सांसो से ज़्यादा तुम पर विस्वास है. जिस दिन ये विस्वास टूट गया. उस दिन मेरी सांस भी टूट जाएगी. तुम अपने दिल की बात कहो या ना कहो. लेकिन मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि, मैने तुम्हारे दिल को बहुत चोट पहुचाई है. तुम्हे अंदर ही अंदर ये बात खाए जा रही है कि, इतना सब कुछ हो गया और मैने तुम से कुछ भी नही बताया."

मैं बोला "छोड़ ना. अब जब सब कुछ ठीक हो गया है तो, तू क्यो इस बात को बढ़ा रही है."

कीर्ति बोली "जान तुम्हारे ठीक कह देने से मेरी ग़लती ठीक नही हो जाएगी. तुम नही जानते कल रात से अब तक, मैं कितना तडपी हूँ और सुबह तुम्हारी हालत देख कर कितना रोई हूँ. यदि मुझे तुम्हारा ख़याल ना होता तो, मैं सच मे अपने आपको इस ग़लती के लिए ख़तम कर चुकी होती."

माइ बोला "खबरदार जो दोबारा कभी मरने की बात की. मैं तेरे बिना जी नही सकता. तू नही जानती ये आज का दिन मेरे लिए मौत से भी बदतर गुजरा है. इस एक दिन मे मैने अपनी जिंदगी के सबसे बुरे समय का सामना किया है. ना तो मैं जी पा रहा था और ना ही मैं मर पा रहा था. लेकिन अब तुझे अपने पास पाकर मैं इस सब को भूल जाना चाहता हूँ."

कीर्ति बोली "मैं सब जानती हूँ जान. मुझे तुम्हारे हर दर्द का अहसास है. मगर यकीन मानो मैने ये सब जान बुझ कर नही किया. मैं तुम्हे हर बात सच सच बता देना चाहती थी. मगर एक के बाद एक, हालत कुछ ऐसे हो गये कि, मैं चाह कर भी तुम्हे कुछ बता नही पाई. सबसे पहले तो मौसा जी वाली बात को लेकर, तुम इतने गुस्से मे आ गये थे कि, उसके बाद मैं तुमसे ये बात कहने की हिम्मत ही ना कर सकी. इसके बाद निमी की तबीयत को लेकर, तुम इतने परेशान हो गये थे कि, मैं तुमसे ये बात ना कह सकी. ये सब इतने अचानक हो गया कि, मुझे तुमसे कुछ कहने का कोई समय ही नही मिल सका."

मैं बोला "अब जो हो गया है. उसे भूल जा. मुझे तुझ से कोई शिकायत नही है."

कीर्ति बोली "जान तुम्हारे मन मे मेरे लिए कोई शिकायत हो या ना हो. मगर मेरे मन मे इस बात को लेकर बोझ है कि, मैं तुमसे इतनी ज़रूरी बात नही कह सकी. जिसकी वजह से तुम्हे इतनी तकलीफ़ उठानी पड़ी."

मैं बोला "जाने दे ना. जो होना था. वो हो चुका है. अब उस बात को खिचने से क्या फ़ायदा है."

कीर्ति बोली "जान बात फ़ायदे या नुकसान की नही है. कुछ देर के लिए ही सही लेकिन तुम्हारा मेरे उपर से प्यार और विस्वास तो उठ गया था. ये बात मुझे सहन नही हो रही है."

मैं बोला "कोई प्यार और विस्वास नही उठा था. मुझे बस थोड़ा सा गुस्सा था. जो सारी सच्चाई सुनकर दूर हो गया है. अब तू भी अपने मन पर कोई बोझ मत रख."

कीर्ति बोली "जान मेरे मन पर कैसे कोई बोझ नही रहेगा. क्या ये बात सच नही है कि, मेरी वजह से तुम्हे शराब पीना पड़ी.

कीर्ति को दिलासा देने की नियत से मैने कहा.

मैं बोला "पागल शराब तो मैने सिर्फ़ इसलिए पी थी. क्योकि उस बात को लेकर मुझे नींद नही आ रही थी. यदि मैं सोता नही तो फिर रात को हॉस्पिटल मे कैसे रुक पाता. लेकिन मैं वादा करता हूँ कि, अब मुझसे ये ग़लती दोबारा नही होगी. अब तू इस बात को अपने मन से निकल दे."

कीर्ति बोली "जान मैं इस बात को भूल भी जाउ कि तुमने मेरी वजह से शराब पी थी. लेकिन मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूँ कि, तुमने मेरी वजह से खुद को ख़तम करने के की कोसिस की थी. क्या तुम इस बात को भी झुठला सकते हो. क्या तुम्हारे इस मेसेज का तुम्हारे पास कोई जबाब है."

ये कहते हुए कीर्ति ने मुझे मेरा ही मेसेज सेंड कर दिया.

"जान ये तुम्हरे लिए मेरा आख़िरी मेसेज है. माफी चाहता हूँ कि तुम्हारी खुशियों से भरी जिंदगी को देख कर मैं अपने आपको खुश नही रख सका. मगर क्या करूँ. मेरे लिए मेरा सब कुछ तुम ही थी. जब तुम्हे ही मेरा साथ पसंद नही है. तब भला मैं जीकर क्या करूगा. मेरे दिल मे आख़िरी बार तुमसे बात करने की हसरत थी. लेकिन मेरी हसरत मेरे दिल मे ही दब कर रह गयी. तुम अपनी खुशियों मे इतनी खोई रही कि तुम्हे मैं याद ही ना रहा. लेकिन अब मैं तुम्हे याद आना भी नही चाहता. मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए जा रहा हूँ. मैं अपनी इस जिंदगी को आज अभी ख़तम कर रहा हूँ. आइ लव यू जान."

मैने मेसेज देखा तो मुझे कीर्ति की बात का कोई जबाब नही सूझा. मैने बस इतना कहा.

मैं बोला "इस बात को यही ख़तम कर दे. देख मैं तो तेरे सामने अच्छा भला खड़ा हूँ और इन सब बातों को भूल चुका हूँ. तू भी इन्हे भूल जा."

मेरी बात सुन कर कीर्ति ने जो कहा वो मैं जिंदगी भर नही भूल सकता. उसकी हर बात मे बेपनाह प्यार और दर्द झलक रहा था. उसके प्यार के सामने मेरा प्यार और मेरा दर्द मुझे बहुत छोटा नज़र आया. कीर्ति ने मेरी बात के जबाब मे मुझसे कहा था.

कीर्ति बोली "जान तुम्हारे लिए ये भूल जाने वाली बात होगी. मगर मेरे लिए नही है. मेरे लिए तो ये मर जाने वाली बात है. कल यदि अमि ने ये मेसेज मिलते ही तुम्हे कॉल नही किया होता तो, पता नही क्या अनर्थ हो जाता. मेरे लिए तो अमि भगवान का रूप साबित हुई. जिसने सही समय पर तुम्हे कॉल करके ये सब करने से रोक दिया. वो तो बच्ची है. इसलिए तुम्हारे बहलावे मे आ गयी और उसने मान लिया कि ये मेसेज तुमसे धोके से सेंड हो गया था. लेकिन मैं बच्ची नही हूँ. मैं इस मेसेज की सच्चाई और इसमे छुपे दर्द को समझ सकती हूँ. मैं अपने आपको क्या मूह दिखाऊ."

मैं बोला "प्लीज़ यार मुझसे ग़लती हो गयी. अब दोबारा ऐसा नही होगा. अब तुम इस बात को ख़तम कर दो. वैसे भी तुमने सुबह मुझसे बात होने के बाद ही तो इस मेसेज को देखा होगा. फिर तुम इस मेसेज को इतनी गंभीरता से क्यो ले रही हो."

कीर्ति बोली "जान तुमने बहुत सही बात की है. तुम ऐसी बात कर सकते हो. क्योकि तुम्हारे पास जीने के लिए, मेरे अलावा अमि निमी और छोटी माँ का भी सहारा है. मगर मेरे लिए तो मेरी सारी दुनिया सिर्फ़ तुम ही हो. यदि कल तुम्हे कुछ हो गया होता तो, मैं क्या करती. मैं किसके लिए जीती. तुमने तो मुझे जीते जी मार दिया. मैं दिन भर तुम्हारे इसी मेसेज को देख देख कर हज़ारों मौत मरी हूँ. सुबह से एक नीवाला तक मेरे गले से नही उतरा और तुम कहते हो कि, मैं इस मेसेज को गंभीरता से ना लूँ."

कीर्ति की बातों मे उसकी बेबसी, उसका दर्द और उसके प्यार को खो देने की तड़प सभी कुछ था. मैं उसके हर दर्द को महसूस कर सकता था. उसका कुछ भी कहना ग़लत नही था. मैने उसके दर्द को हल्का करने की नियत से कहा.

मैं बोला "सॉरी जान. मुझसे ग़लती हुई. लेकिन यदि मुझे ये सब बात पता होती तो, मैं ऐसी ग़लती कभी नही करता. इसे तू मेरी नादानी समझ कर ही भुला दे और कुछ खा ले."

मैने ये बात कीर्ति को मनाने और समझाने की गरज से कही थी. लेकिन मैं नही जानता था कि, मेरी ये बात कीर्ति के मन मे दबी हुई चिंगारी को ज्वालामुखी का रूप दे देगी. उसने मेरी बात के बदले मे कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी तुम क्यो बोलोगे जान. सॉरी तो मुझे बोलना चाहिए. जो मैं तुम्हे ये सब बात नही बता सकी और तुम ये नादानी कर बैठे. लेकिन आज मैं तुमसे सिर्फ़ इतना पूछना चाहती हूँ कि, क्या तुम्हे मुझ पर इतना भी भरोसा नही था कि, तुम खुद इस बात को झुठला देते कि, मैं तुम्हारे सिवा किसी दूसरे का होने की सोच भी नही सकती. क्या तुम्हे मेरे प्यार पर इतना भी यकीन नही था कि, तुम अपने आप से ये कह सको कि, मेरी कीर्ति कभी मेरे साथ ऐसा नही कर सकती. क्यो जान ऐसा क्यो नही हुआ. मेरा प्यार क्यो कम पड़ गया. मेरा प्यार क्यो हार गया जान. क्यो हार गया."

ये कह कर वो रोने लगी. उसकी हर बात मे सच्चाई थी. मेरे पास उसके किसी भी सवाल का कोई जबाब नही था. वो रोए जा रही थी पर अब मुझ मे इतनी हिम्मत भी नही थी कि, मैं उसे चुप होने के लिए बोल सकूँ. उसका हर आँसू मेरे दिल पर गिर रहा था और मेरे सीने को छल्नी कर रहा था. मैं उसका गुनहगार था और शायद ये मेरे गुनाह की सज़ा थी.

उसका ये दर्द मुझसे सहन नही हो रहा था और मेरी आँखों से भी आँसू बह रहे थे. लेकिन मेरी खामोशी की वजह से कीर्ति को मेरे बहने वाले आँसुओं का अहसास नही था. हम दोनो ही रो रहे थे. फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि मैं जानता था कि कीर्ति रो रही है. लेकिन कीर्ति नही जानती थी कि, मैं रो रहा हूँ.

मगर कीर्ति मेरी तरह नही थी. उसका प्यार मेरी तरह ख़ुदग़र्ज़ नही था. उसे खुद से ज़्यादा मेरी परवाह थी. शायद उसे मेरे दर्द का अहसास हो गया था. इसलिए उसने खुद ही अपने आँसुओं को रोकने की नाकाम कोसिस करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी जान. मेरी जैसी पागल लड़की की बात को दिल पर मत लेना. वैसे भी मेरी वजह से तुम्हारा आज का दिन खराब हुआ और अब मैं रात भी खराब कर रही हूँ. तुम दिन भर के थके हुए हो. अब तुम आराम करो. हम कल बात कर लेगे."

मेरा मन अभी फोन रखने का नही था. मैं उस से बात करना चाहता था. इसलिए मैने अपने आँसुओं को पिया और लड़खड़ाती हुई आवाज़ मे कहा.

मैं बोला "थोड़ी देर बात और कर ना."

मगर मेरी इतनी सी बात से ही कीर्ति ने मेरी आँखों की नमी को महसूस कर लिया था. मेरे आँखों की नमी महसूस होते ही उसका दिल तड़प उठा. उसे लगा जैसे उस से कोई गुनाह हो गया हो. उसकी आँखों मे फिर वो आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. जिसे वो रोकने की कोसिस कर रही थी. उसने अपने आपको कोसते हुए कहा.

कीर्ति बोली "जान तुम रो रहे हो. मैने तुम्हे फिर रुला दिया. मैं सच मे बहुत बुरी हूँ. हर बार तुम्हे रुला देती हूँ. मेरे जैसी लड़की को मर ही जाना चाहिए."

मैं बोला "तू क्यो बार बार मरने की बात करती है. तू इस बात को क्यो नही समझती कि मैं तेरी आँखों मे आँसू नही देख सकता. तेरी आँखों मे आँसू हो तो, मैं कैसे खुश रह सकता हूँ. हाँ मैं तेरा गुनहगार हूँ. जो मैं तुझसे इतना प्यार नही करता, जितना तू मुझसे प्यार करती है. मगर फिर भी मैं तुझे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करता हूँ. इसलिए जब मैने वो बात सुनी तो मैं अपने सोचने समझने की ताक़त ही खो बैठा, और एक के बाद एक ग़लती करता गया. लेकिन मैं करता भी क्या. तू मेरी सारी दुनिया है. तुझे मैं किसी दूसरे का होते कैसे देख सकता था. मैने ग़लतियाँ ज़रूर की है. मगर उन ग़लतियों की वजह भी मेरे दिल मे तेरे लिए प्यार बेसुमार प्यार ही था. जिसने मुझे कमजोर बना दिया था."

इसके आगे मैं कुछ और कह ना सका. लेकिन कीर्ति मेरी इतनी ही बात से मेरे दिल की सारी बात समझ गयी थी. उसने अपने आँसुओं को पोछा और कहा.

कीर्ति बोली "नही जान तुम्हारा प्यार कहीं भी मेरे प्यार से कम नही है. तुमने कोई ग़लती भी ग़लती नही की है. मैं ही पागल थी, जो तुम्हारे प्यार को समझ ना सकी और ना जाने तुम्हे क्या क्या बोल गयी. प्लीज़ जान रोना बंद करो. तुम्हे मेरी कसम है. मेरी जान की आँखों मे में एक भी आँसू नही देखना चाहती."

मैं बोला "मेरी जान को भूका रखेगी तो, तुझे भी तेरी जान की आँखों मे आँसू देखना पड़ेंगे. तू क्या समझती है. तू मेरी जान को रुलाएगी तो, मैं तेरी जान को खुश रहने दूँगा."

कीर्ति बोली "सॉरी जान, अब ऐसा नही होगा. क्या अब भी तुम अपनी जान की कसम नही मानोगे."

कीर्ति की ये बात सुनकर मैने अपने आँसुओं को पोन्छा और खुद को शांत करने लगा. कुछ देर बाद जब मैने अपने आपको शांत महसूस किया तो, फिर कीर्ति से कहा.

मैं बोला "देख मैने तेरी कसम पूरी कर दी. अब तू भी मेरी बात पूरी कर और जल्दी से कुछ खाकर आ."

कीर्ति बोली "ओके जान. तुम वेट करो. मैं अभी खाना खाकर आती हूँ. मुउउहह."

ये कह कर कीर्ति ने फोन रख दिया. मैं अब बहुत खुश था. मेरे उपर छाये गम के बदल छांट चुके थे और मेरे दिल पर अब, कही कोई बोझ नही था. मैं सोच रहा था कि, कीर्ति को खाना खाकर आने मे कुछ समय लगेगा. ये सोचते हुए मैं बाथरूम जाने के लिए उठा. लेकिन तभी कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाया और कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. तू बिना खाना खाए ही क्यो चली आई."

कीर्ति बोली "मैं खाना यहीं लेकर आ गयी हूँ. अब तुम से बात भी करती जाउन्गी और खाना भी खाती जाउन्गी."

मैं बोला "ओके तू खाना खाना शुरू कर, तब तक मैं बाथरूम से होकर आता हूँ."

कीर्ति बोली "नही अब तुम कहीं नही जाओगे. मैं बात करने के लिए ही खाना यहाँ लेकर आई हूँ."

मैं बोला "समझा कर, बस 2 मिनट की बात है."

कीर्ति बोली "नही अब मैं एक पल के लिए भी तुम्हारा पीछा नही छोड़ूँगी."

मैं बोला "देख ज़िद मत कर, मुझे बहुत ज़ोर से आई है."

कीर्ति बोली "ओके तो फिर मुझे भी लेकर चलो."

मैं बोला "तुझे कुछ शरम नही है क्या."

कीर्ति बोली "जिसने की शरम, उसके फूटे करम. मुझे चलना है, मतलब चलना है."

मैं बोला "मुझे कहीं नही जाना. तू खाना खा, मैं तुझसे बात करता हूँ."

ये कह कर मैं वापस बैठ गया. मुझे बैठते देख उसने कहा.

कीर्ति बोली "ओके आज तुम जा सकते हो. लेकिन याद रखना. अगली बार मैं साथ जाए बिना नही मानूँगी."

उसके मूह से ये सुनते ही मैं उठ कर बाथरूम चला गया. कुछ देर बाद जब मैं बाथरूम से वापस लौटा तो, मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "हाँ अब बोल, क्या बोलना है."

कीर्ति अभी खाना खा रही थी और नीवाला उसके मूह मे ही था. उसे शरारत सूझी और उसने खाना चबाते चबाते ही कहा.

कीर्ति बोली "तुम्हे सच मे बहुत ज़ोर से लगी थी. अब मुझे पूरा यकीन हो गया."

मैं बोला "क्यो ऐसा क्या हुआ."

कीर्ति बोली "क्योकि आवाज़ मुझे यहाँ तक सुनाई दे रही थी."

ये कह कर वो ज़ोर से हँसने लगी. लेकिन खाना खाते खाते हँसने की वजह से उसे ज़ोर का थन्स्का लग गया. जिसकी वजह से वो खांसने लगी. मैने उसे जल्दी से पानी पीने को कहा और फिर उसके पानी पीने के कुछ देर बाद वो सही हो गयी. मैने उस पर गुस्सा करते हुए कहा.

मैं बोला "तुझे हर समय मज़ाक ही सूझता है. हज़ार बार कहा कि, खाना खाते समय मज़ाक मत किया कर लेकिन तू है कि, मेरी बात सुनती ही नही है."

मगर कीर्ति के उपर मेरे इस गुस्से का कोई असर नही पड़ा. उसने मासूम बनने का नाटक करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "अब आवाज़ यहाँ तक आ रही थी तो, मैं क्या करती. यदि मेरी बात मानकर मुझे लेकर गये होते. तब भी तो मैं आवाज़ ही सुनती. कुछ देख थोड़े ही लेती. अब बिना जाए ही मैने आवाज़ सुन ली तो, क्या मैं हंस भी नही सकती."

मैं बोला "तू कभी नही सुधर सकती."

कीर्ति बोली "सुधर तो तुम भी नही रहे हो."

मैं बोला "अब मैने क्या किया."

कीर्ति बोली "तुम जानते हो कि मैं कभी नही सुधर सकती. इसके बाद भी जब देखो तब कहते रहते हो, तू कभी नही सुधर सकती."

ये कह कर वो फिर हँसने लगी. लेकिन अब मैने उसकी इस बात का का जबाब नही दिया तो, उसने मुझे छेड़ते हुए कहा.

कीर्ति बोली "ओके अब मेरा खाना खाना हो गया है. अब तो मुझे बहुत ज़ोर की नींद आ रही है. मैं तो सोती हूँ."

मैं बोला "इतनी जल्दी. अभी तो 1 भी नही बजा है. थोड़ी देर और बात कर ना."

कीर्ति बोली "नही अब मुझे सोना है. वैसे भी तुम्हे मेरी कोई बात पसंद नही आती."

मैं बोला "मैने ऐसा कब कहा कि, मुझे तेरी बात पसंद नही आती. तुझे जो बात करना है, तू कर मगर अभी मत सो."

मेरी बात सुन कर कीर्ति फिर हँसने लगी. मुझे उसके हँसने का कारण समझ मे नही आया तो, मैने पुछा.

मैं बोला "अब क्यो हंस रही है."

कीर्ति बोली "मुझे कोई नींद नही आ रही. मैं तो सिर्फ़ तुम्हे परेशान कर रही थी."

मैं कुछ बोलने को हुआ तो उसने मेरी बात को काट कर खुद ही मेरी बात पूरी करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "तू कभी नही सुधरेगी."

ये कह कर वो फिर खिलखिलाकर हँसने लगी. मगर इस बार उसकी हँसी मे मेरी हँसी भी शामिल हो गयी थी. इसके बाद वो मुझे ऐसे ही परेशान करती रही और हँसती रही. मुझे उसकी इन हरकतों और उसकी हँसी मे बहुत सुख मिल रहा था. हँसी और खुशी का ये दौर काफ़ी देर तक चलता रहा.

जब कीर्ति के मज़ाक करने का ये दौर थमा. तब उस ने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "जान 1:30 बज गया है. तुम्हे सुबह जल्दी उठना है. अब सो जाओ."

मैं बोला "लेकिन मुझे अभी तुझसे बहुत सी बात करना है. अभी तो मेरी तुझसे कोई बात हुई ही नही है."

कीर्ति बोली "जान मैं कोई भागी थोड़ी जा रही हूँ. तुम कल दिन मे मुझसे बात कर लेना. अब तुम दिन मे हॉस्पिटल मे रहोगे तो, हम रात के साथ साथ दिन मे भी बात कर सकेगे."

मैं बोला "हाँ तेरी बात सही है. ठीक है तो फिर अब सोया जाए."

कीर्ति बोली "ओके तो अब मेरी गुड नाइट किसी दो."

मैं बोला "गुड नाइट मुउउहह."

कीर्ति बोली "गुड नाइट जान मुउउहह."

इसके बाद कीर्ति ने कॉल रख दिया. अभी उसका कॉल रखना हुआ ही था कि, तभी मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मेरे कमरे के दरवाजे पर बड़े ही धीमे से एक दस्तक दी हो. मगर उसके बाद मुझे कोई हलचल समझ मे नही आई. जिससे मुझे लगा कि, ये मेरा वहम था. लेकिन फिर थोड़ी देर बाद मुझे एक हल्की सी दस्तक सुनाई दी.

अब ये बात साफ हो चुकी थी कि, कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. लेकिन शायद सबके जाग जाने की वजह से वो बहुत धीमे से दस्तक दे रहा है. जब तीसरी बार फिर दरवाजे पर दस्तक हुई तो, मैं दरवाजा खोलने के लिए उठ खड़ा हुआ.
Reply
09-09-2020, 01:49 PM,
#78
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
68
मुझे दरवाजा खोलने के पहले ही, इस बात का अनुमान हो गया था कि, ये प्रिया के सिवा कोई दूसरा नही हो सकता. मेरा ये अनुमान बिल्कुल सही निकला. मैने दरवाजा खोला तो, सामने प्रिया ही खड़ी थी. वो इस समय पिंक शॉर्ट नाइटी मे थी. कमरे की दूधिया रोशनी मे उसका गोरा बदन, चाँदनी की तरह चमक रहा था.

अभी उसने 16 सावन भी नही देखे थे. लेकिन उसका गदराया हुआ बदन, किसी भी कमसिन हसीना को मात कर देने वाला था. उसके सामने इस समय यदि खुद विश्वामित्र भी खड़े होते. तो उसे देख कर मेनका को भूल कर दोबारा अपनी तपस्या से उठ कर खड़े हो गये होते. फिर मैं तो एक सीधा साधा इंसान था.

मैं भला खुद को उसकी इस गदराई जवानी को देखने से कैसे रोक पाता. उस समय मैं खुद को भी भूल गया और मेरी नज़र उसके सीने की तरफ चली गयी. जहाँ उसके सीने के गोलाइयाँ उसके ब्रा ना पहने होने की वजह से बाहर नाइटी से बाहर आती लग रही थी. वो इस समय साक्षात काम की देवी लग रही थी. जिसके काम का बान मेरे उपर चल चुका था.

अभी प्रिया के चेहरे पर गुस्से के कोई भाव नही थे. यदि कुछ था तो, सिर्फ़ एक कुटिल मुस्कान थी. उस कुटिल मुस्कान का अर्थ समझ पाना मेरे बस की बात नही थी. उसने मुझे यू दरवाजे पर ठगा सा खड़ा देखा तो, उसकी मुस्कान और भी गहरी हो गयी. मुझे उसकी आँखों मे वासना की चमक नज़र आ रही थी. वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगी.

मेरे करीब आकर उसने मुझे अपने बाहों मे जकड लिया, और अपने चेहरे को मेरे सीने मे छुपा लिया. उसकी इस हरकत से उसके बूब्स की कोमलता का अहसास मुझे अपने सीने पर होने लगा. उसके बदन का कोमल अहसास पाकर, मेरे बदन मे भी झुरजुरी सी दौड़ गयी.

प्रिया मुझे ज़ोर से अपनी बाहों के बंधन मे भीच रही थी. जिससे उसके बूब्स मेरे सीने से दब रहे थे. उस की तेज धड़कने मुझे महसूस हो रही थी. जिसे महसूस कर मेरी धड़कने भी तेज हो गयी थी. मेरे लिंग मे भी कंपन सा होने लगा था.

जो शायद प्रिया को भी महसूस हो गया था. उसने मुझे खुद से और भी ज़ोर से चिपका लिया, और मेरी पीठ पर उपर नीचे हाथ फेरने लगी. उसकी इस हरकत से मैं और भी ज़्यादा गरम हो गया. मेरे लिंग का तनाव बढ़ गया और मेरा लिंग प्रिया की जांघों से सटा हुआ था.

जिसका अहसास प्रिया को हुआ तो, वो अपनी जाँघो को मेरे लिंग पर दबाने लगी. उसकी ये हरकत मेरे लिए असहनीय हो गयी थी. लेकिन इसके बाद भी मैं कोई प्रतिक्रिया नही करने की हिम्मत ना जुटा सका. क्योकि मेरा दिल कह रहा था. ये सब ग़लत है. मगर अब मेरा शरीर, मेरा साथ नही दे रहा था की, मैं उसे खुद से अलग कर सकूँ.

मैं किसी पत्थर की बुत की तरह खड़ा रहा. प्रिया अपने बूब्स को मेरे सीने पर दबाए जा रही थी और अपनी जांघों का दबाब मेरे लिंग पर बनाए जा रही थी. प्रिया ने जब मुझे कुछ ना करते देखा तो, उसने एक पल के लिए अपना चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा.

उस एक पल मे मुझे उसके चेहरे मे, कीर्ति का चेहरा नज़र आया. कीर्ति का चेहरा नज़र आते ही मुझे मेरी ग़लती का अहसास हो गया. प्रिया के चेहरे मे एक मासूमियत, एक भोलापन था. मैं प्रिया की आँखों की जिस चमक को उसकी वासना समझ रहा था. वो असल मे एक अल्हड़ लड़की का, मेरे लिए बेशुमार प्यार था.

मेरी आँखों मे प्रिया की नाराज़गी से लेकर उसके केक बनाने तक की सारी बातें घूमने लगी. अब मैं समझ चुका था कि, प्रिया को मुझसे प्यार हो गया है, और वो हर हालत मे मुझे पा लेना चाहती है. वो मुझे पाने के लिए किसी भी हद से गुजरने को तैयार है.

प्रिया की ये बात मेरी समझ मे आते ही मेरे तो होश ही उड़ गये. मैने प्रिया को समझाने की गरज से, बड़े प्यार के साथ, अपने दोनो हाथों से. उसके चेहरे को उपर उठाया और उसकी आँखों मे देख कर, मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला "क्या बात है. आज मुझ पर बहुत ज़्यादा प्यार आ रहा है. तुम्हारा इरादा तो नेक है ना."

लेकिन शायद प्रिया समझने की हद से बाहर निकल चुकी थी. या फिर वो इतनी गरम हो चुकी थी कि, कुछ समझने की हालत मे ही नही थी. उसने नशीली आँखों से मुझे देखा और फिर मेरी बात के जबाब मे, मेरे गालों को बेहताशा चूमने लगी.

मैं अजीब कशमकश मे फस गया था. मेरा लिंग था कि शांत होने का नाम नही ले रहा था, और प्रिया का साथ दे रहा था. मगर मैं ना तो कीर्ति के विस्वास के साथ धोका कर सकता था, और ना ही प्रिया के भोलेपन के साथ खिलवाड़ कर सकता था.

मैने प्रिया को अपने से अलग किया और बेड पर जाकर बैठ गया. प्रिया मेरे ऐसा करने का मतलब ना समझ सकी. उसने मुझे बेड पर बैठते देखा तो, वो आकर मेरी गोद मे बैठ गयी. उसने फिर से मेरे गले मे बाहें डाल दी और मेरे गालों को चूमना सुरू कर दिया.

मेरी उत्तेजना चरम पर थी और मैं एक ऐसे दोराहे पर खड़ा था. जहाँ पर यदि मैं प्रिया का साथ देता तो, कीर्ति का प्यार और विस्वास चकनाचूर होना था. या फिर प्रिया का साथ ना देने पर भोले मन को चोट पहुचाना था. मैं कुछ भी फ़ैसला नही कर पा रहा था.

अचानक मुझे छोटी माँ की कही बात याद आ जाती है कि, परेशानी चाहे कितनी भी बड़ी क्यो ना हो. यदि तुम उसका सामना करोगे तो, वो बहुत छोटी हो जाएगी. इस बात के दिमाग़ मे आते ही मैं अपने आपको संभालता हूँ और प्रिया के दोनो हाथ अपने गले से अलग कर देता हूँ.

मेरी इस हरकत से प्रिया के चेहरे की मुस्कान गायब हो जाती है और वो मुझे देखने लगती है. मानो पुच्छ रही हो कि, मैने ऐसा क्यो किया. मैं उसकी इस बात के जबाब मे, उसके गालों को प्यार से चूम लेता हूँ. उसके चेहरे की मुस्कान फिर वापस आ जाती है और वो बड़े प्यार से मुझे देखने लगती है.

मैं उसके माथे पर चूमता हूँ, तो वो और भी खुश हो जाती है. मैं उसके दोनो हाथों को अपने हाथों मे लेकर उन्हे सहलाने लगता हूँ. मेरे लिंग मे अभी भी तनाव था. लेकिन मैं उसे अनदेखा करते हुए प्रिया से कहता हूँ.

मैं बोला "प्रिया तुम सच मे बहुत प्यारी हो. तुम मेरी जिंदगी मे पहले क्यो नही आई."

प्रिया बोली "तो क्या हुआ. अब तो आ गयी हूँ."

मैं बोला "नही प्रिया, अब बहुत देर हो चुकी है. अब मेरी जिंदगी मे कोई और लड़की है. मैं उसके प्यार के साथ धोका नही कर सकता. तुमने शाम को खुद सुना था कि, मैं किसी लड़की के बारे मे अपनी माँ से बात कर रहा था."

प्रिया बोली "हाँ सुना था. इसी वजह से मैं तुम से नाराज़ भी थी. लेकिन फिर बाद मे मैने सोचा कि, उसकी तो सगाई हो गयी है. उसका और तुम्हारा साथ, अब ख़तम हो गया है. यही सोच कर मेरा गुस्सा ख़तम हो गया और मैं तुम्हारे पास चली आई."

मैं बोला "प्रिया तुम भी मेरी तरह उसको ग़लत समझी. उसने ऐसा कुछ भी नही किया. उसकी शादी की बात पक्की ज़रूर हुई है, मगर उसने सगाई नही की है. उसने ये सब नाटक सिर्फ़ मेरे प्यार को बचाए रखने के लिए किया था. वो मुझे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती है. वो मेरी खुशी के लिए ही सब कुछ करती है."

प्रिया बोली "मैं भी तुम्हे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती हूँ. मैं भी तुम्हारी खुशी के लिए सब कुछ कर सकती हूँ. मैं तुम्हे अपने सिवा किसी का नही होने दुगी."

प्रिया की इस बात मे उसके प्यार की गहराई के साथ साथ, उसका एक पक्का संकल्प नज़र आ रहा था. जिसने कुछ देर के लिए मुझे विचलित और सोचने पर मजबूर कर दिया. मुझे यूँ सोचता देख. प्रिया ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे थामा और अपनी तरफ घूमाते हुए कहा.

प्रिया बोली "तुम इतना सोच मे क्यो पड़ गये. तुम ये क्यो सोचते हो कि, मेरा प्यार उस लड़की से कम है. ऐसा क्या है, जो वो लड़की कर सकती है और मैं नही कर सकती. तुम चाहो तो मुझे आज़माकर देख लो. मेरा प्यार तुम्हे कही भी, उस से कम नज़र नही आएगा."

मैं बोला "तुम शायद उसके प्यार को कभी नही समझ सकती. उसका प्यार तुम्हारे और मेरे प्यार से बहुत उपर है."

मेरी इस बात से प्रिया को गुस्सा आ गया. वो गुस्से मे कहने लगी.

प्रिया बोली "मैं नही समझ सकती तो, तुम मुझे समझाओ. मैं समझना चाहती हूँ कि, ऐसा क्या है उसके प्यार मे, जो उसका प्यार हम सब से उपर है."

मैं बोला "तुम नही समझ पाओगी प्रिया. प्यार समझने की चीज़ है ही नही. ये तो दिल का दिल से रिश्ता है. जो सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है. मेरा दिल यदि उसे इधर पुकारेगा तो, उसे उधर खबर हो जाएगी कि, मैं उसे पुकार रहा हूँ. उसकी हर एक साँस पर सिर्फ़ मेरा नाम लिखा है. शायद वो अभी नींद मे भी मेरे ही सपने देख रही होगी."

प्रिया बोली "मुझे ये सब नही सुनना. मुझे बस ये बताओ कि, उसका प्यार मेरे प्यार से उपर क्यो है."

मैं बोला "मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ की, ये सब समझने की बात नही है. फिर भी तुम ज़िद कर रही हो तो, मैं तुम्हे ये समझाने की एक कोशिस ज़रूर करूगा."

ये कहते हुए मैने अपना मोबाइल उठा कर कीर्ति के मोबाइल पर एक रिंग कर के कॉल काट दिया. मुझे ऐसा करते देख प्रिया ने कहा.

प्रिया बोली "क्या हुआ. इस तरह कॉल लगा कर काट क्यो दिया. क्या उसका कॉल बिज़ी जा रहा है."

मैं बोला "नही, वो तो 1:30 बजे ही सो गयी है. मैने तो सिर्फ़ इसलिए एक रिंग करके कॉल काट दिया. ताकि पता तो चले कि, उसे गहरी नींद मे भी मेरे कॉल आने का अहसास होता है या नही."

प्रिया बोली "ऐसा कैसे होगा. यदि वो जाग भी रही होती. तब भी तुम्हारे इतने से कॉल को देख नही पाती. फिर भला नींद मे कैसे उसे पता चल सकेगा. मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा कि, तुम ये सब करके आख़िर साबित क्या करना क्या चाहते हो."

मैं बोला "मैं सिर्फ़ यही साबित करना चाहता हूँ कि, वो मुझे कितना प्यार करती है. तुम देख लेना इतने से मे ही उसका कॉल आ जाएगा."

मेरी बात सुनकर प्रिया हंस दी और कहने लगी.

प्रिया बोली "तुम पागल हो. क्या ऐसा भी कभी होता है."

मैं प्रिया की इस बात का कोई जबाब दे पाता. उस से पहले ही नये मोबाइल पर कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाया और इस तरह से मोबाइल अपने कान मे लगाया कि, प्रिया को भी हमारी बात सुनाई दे सके. मेरे कॉल उठाते ही कीर्ति ने उनीदी सी आवाज़ मे कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी जान. मुझे बहुत गहरी नींद लगी थी. इसलिए तुम्हे तुरंत कॉल नही लगा सकी. लेकिन तुम अभी तक सोए क्यो नही."

मैं बोला "मुझे नींद नही आ रही थी. इसलिए तुझे कॉल किया था. लेकिन तू तो बहुत गहरी नींद मे है. ऐसा कर तू सो जा."

कीर्ति बोली "नही जान. ऐसी कोई बात नही है. तुमको सुबह उठना था. इसलिए मैने सोने की जल्दी की थी. नही तो मैं तुमसे रात भर भी बात करती रहूं. तब भी मुझे नींद नही आएगी. लेकिन तुम्हे नींद क्यो नही आ रही. क्या तुम्हे कोई बात परेशान कर रही है."

मैं बोला "हाँ, मुझे एक बात बहुत परेशान कर रही है."

कीर्ति बोली "क्या बात है जान. मुझे बताओ. हो सकता है कि, मैं तुम्हारी परेशानी दूर कर सकूँ."

मैं बोला "मेरी कोई बात तुझसे छुपि नही है. मगर समझ नही पा रहा कि, ये बात तुझे कैसे बताऊ."

मेरी बात सुनकर कीर्ति की नींद उड़ चुकी थी. ऐसा मुझे उसकी बातों से समझ मे आ चुका था. उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "जान ऐसी क्या बात हो गयी है. जिसे बोलने के लिए तुम्हे इतना सोचना पड़ रहा है. तुमको जो भी बात बोलना है. जल्दी से बोल दो. अब मुझे सच मे घबराहट हो रही है."

मैं बोला "बात ऐसी है कि, यहाँ एक लड़की को मुझसे प्यार हो गया है. वो हर हालत मे मुझे अपना बनाना चाहती है. उसकी इस बात से ही मेरी नींद उड़ गयी है."

मैं कीर्ति से बात कर रहा था और प्रिया मेरी गोद मे बैठी उसकी सारी बात अपने कानों से सुन रही थी. अभी हम लोगों की बात चल ही रही थी कि, तभी मेरी नज़र दरवाजे पर पड़ी. दरवाजे पर निक्की खड़ी हम लोगों को देख रही थी. उस पर नज़र पड़ते ही मैं थोड़ी देर के लिए सकपका गया.

लेकिन फिर मैने प्रिया को निक्की के दरवाजे पर खड़े होने का इशारा किया. प्रिया ने निक्की को दरवाजे पर खड़े देखा लेकिन वो मेरी गोद से उठी नही. उसने निक्की की तरफ देखा और उसे चुप रहने का इशारा कर अपने पास आने को कहा. निक्की भी हम लोगों के पास आकर खड़ी होकर बात समझने की कोशिश करने लगी. उधर से कीर्ति मेरी हँसी उड़ाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली "जान ये तो अच्छी बात है. तुम हो ही ऐसे कि, हर लड़की तुम्हे अपना बनाना चाहती है."

मैं बोला "तुझे हँसी सूझ रही है, और इधर मेरी जान पर बनी हुई है."

कीर्ति बोली "तुम अपनी जान की चिंता मत करो. उसे कुछ नही होने वाला. तुम तो बस अपनी चिंता करो कि, दो दो लड़कियों को कैसे संभालोगे."

ये कह कर वो खिलखिलाकर हँसने लगी. उसे हंसते देख मैने गुस्से मे कहा.

मैं बोला "मैं यहाँ परेशान हूँ और तुझे रात के 2:30 बजे मज़ाक सूझ रहा है. यदि मैं उसके साथ चला गया तो, रोती रह जाएगी."

मेरी बात सुन कर वो कुछ देर के लिए शांत हो गयी. फिर बड़े ही संजीदा होकर कहने लगी.

कीर्ति बोली "जान मैं नही जानती कि, वो लड़की कौन है. लेकिन यदि वो तुमको पसंद है और तुम उसे अपना बनाना चाहते हो तो, तुम्हे मेरी तरफ से पूरी छूट है. मैं तुम्हे किसी बात के लिए मना नही करूगी. तुम मुझे लेकर ज़रा भी परेशान मत हो. मैं तुमसे पहले ही बोल चुकी हूँ कि, तुम्हारी खुशी मे ही मेरी खुशी है."

मैं बोला "तू अपने आपको समझती क्या है. जब देखो तब मुझसे कहती रहती है कि, मैं जिसे चाहूं, उसे अपना बना लूँ. ये कैसा प्यार है तेरा. जो कभी मुझे किसी के पास जाने से नही रोकता. मुझे तो लगता है कि, तू मुझे प्यार ही नही करती."

कीर्ति बोली "जान मैं तुम्हे किसी का होने से रोक तो सकती हूँ. लेकिन क्या मैं तुम्हारे दिल मे किसी को रहने से रोक सकती हूँ. यदि मैं तुम्हे ज़बरदस्ती अपना बना भी लेती हूँ, और तुम्हारे दिल मे कोई दूसरा हो तो, तुम जिंदगी भर उसके लिए तड़प्ते रहोगे. क्या ऐसे मे मैं तुम्हे तड़प्ता देख कर खुश रह सकुगी. नही जान तब मैं तुम्हे पाकर भी नही पा सकुगी. यही वजह है कि, मैं कभी तुम्हे किसी का होने से नही रोकती. यदि तुम्हारे दिल मे मैं हूँ तो फिर मेरी जगह कोई नही ले सकता. लेकिन यदि कोई और है तो फिर उसकी जगह मैं नही लेना चाहती. मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुम्हे खुश देखना चाहती हूँ. मुझे इस बात से फ़र्क नही पड़ता कि तुम्हारी खुशी की वजह मैं हूँ या कोई और है."

मैं बोला "तेरा प्यार बड़ा अजीब है. जो सब कुछ देना तो जानता है, पर कुछ लेना नही जानता."

मेरी बात सुन कर कीर्ति ठंडी साँस लेकर एक शायरी बोलने लगी.

कीर्ति बोली "
फूल से किसी ने पूछा.
तूने खुसबू दी तुझे क्या मिला.
फूल ने कहा लेना देना तो व्यापार है.
जो देकर कुछ ना माँगे वही तो प्यार है."

मैं बोला "बंद कर अपनी शायरी करना. मुझे ये बता कि, मैं उस लड़की की बात का क्या जबाब दूं."

कीर्ति बोली "इसमे सोचना क्या है. यदि वो लड़की तुम्हे पसंद नही है तो, उसे ना बोल दो और यदि पसंद है तो, उसे हाँ बोल दो. अब ये फ़ैसला तो तुम्हे ही करना है कि, वो तुम्हे पसंद है या नही है. इसमे तो मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकती."

मैं बोला "मुझे लगता है कि, मुझे भी उस से प्यार हो गया है. मैं सिर्फ़ तेरे से ये जानना चाहता हूँ कि, यदि मैं उसे हाँ कह देता हूँ, तब तू क्या करेगी."

कीर्ति बोली "मुझे क्या करना है. जो करना होगा. वो लड़की ही करेगी. मैं तो आराम की नींद सोउंगी. वैसे भी तुम्हारे जैसे बुद्धू के साथ रह पाना मेरे बस की बात नही है. तुम्हारे साथ तो कोई पागल लड़की ही रह सकती है. क्या मैं जान सकती हूँ कि, वो पागल लड़की कौन है. जिसने तुम्हे भी अपने प्यार मे पागल बना दिया है."

मैं बोला "हाँ क्यो नही जान सकती. वो लड़की कोई और नही रिया की छोटी बहन प्रिया है."

कीर्ति बोली "ये तो बहुत अच्छी बात है. वैसे भी प्रिया तुम्हे पहली ही नज़र मे भा गयी थी. अब तुम भी उसे अच्छे लगने लगे हो. अब तो तुम दोनो की खूब जमेगी. लेकिन देखो उसे मेरे बारे मे कुछ मत बताना. कहीं ऐसा ना हो कि, मेरी वजह से तुम लोगों का बन रहा रिश्ता टूट जाए."

मैं बोला "तू उसकी चिंता मत कर. वो तेरे बारे मे यही जानती है कि, तेरी सगाई पक्की हो गयी है और तूने मेरे साथ धोका किया है."

मेरी ये बात सुनकर कीर्ति गुस्से का नाटक करते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली "गुड, तुम लड़कों को ये बहुत अच्छी तरह से आता है कि, एक लड़की का प्यार पाने के लिए दूसरी लड़की को बेवफा बना दो. मैने तो ऐसा कुछ भी नही किया."

मैं बोला "तू कहती है तो, मैं उसे सारी सच्चाई बता देता हूँ. मुझे कुछ भी बताने मे कोई परेशानी नही है. मैं भला तुझे बेवफा बताकर क्यो किसी लड़की का प्यार पाना चाहूगा."

कीर्ति बोली "तुम सच मे ही बुद्धू हो. अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी. क्या अब मैं मज़ाक भी नही कर सकती. तुम्हे उसे कुछ भी बताने की ज़रूरत नही है. वो यदि मुझे बेवफा समझती है तो, मुझे इसमे कोई परेशानी नही है."

मैं बोला "तुझे सच मे मेरे उसके पास चले जाने से कोई दुख नही हो रहा."

कीर्ति बोली "नही, मुझे सच मे कोई दुख नही है. मेरे मन से तो एक बोझ उतर गया है. अब यदि मेरी कहीं शादी पक्की भी हो जाती है तो, मुझे मम्मी पापा का दिल नही तोड़ना पड़ेगा. कुछ भी हो वो मेरे पता पिता है. उनकी खुशी को पूरा करना मेरा फ़र्ज़ है. अब कम से कम मैं अपना फ़र्ज़ तो निभा सकुगी."

मैं बोला "मैं तो बेकार मे ही डर रहा था. अब मेरे मन से भी सारा बोझ उतर गया. अब मैं भी चैन से रह सकुगा."

कीर्ति बोली "अब यदि तुम्हारा बोझ उतर गया है तो, अब तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो. मुझे बहुत नींद आ रही है."

मैं बोला "ओके गुड नाइट."

कीर्ति बोली "गुड नाइट."

मगर कीर्ति ने गुड नाइट कहने के बाद भी कॉल नही काटा. तब मैने कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. फोन क्यो नही रख रही."

कीर्ति बोली "नही आज मैं कॉल नही रखुगी. आज तुम कॉल रखो."

मैं बोला "लेकिन हमेशा तो तुम ही रखती हो."

कीर्ति बोली "हाँ हमेशा मैं ही फोन रखती हूँ. मगर आज मेरा मन फोन रखने का नही है. आज तुम ही फोन रखोगे."

मैं बोला "यदि तेरा मन बात करने का है तो, हम बात करते है. फोन रखने की ज़रूरत क्या है."

कीर्ति बोली "नही, मुझे बहुत नींद आ रही है. बस आज मेरा दिल फोन रखने का नही कर रहा है. प्लीज़ आज तुम फोन रखो ना."

मैं बोला "ठीक है. जैसी तेरी मर्ज़ी. गुड नाइट."

कीर्ति बोली "गुड नाइट."

इसके बाद मैने कॉल काट दिया और प्रिया की तरफ देखने लगा. प्रिया और निक्की बड़े ही गौर से मेरी और कीर्ति की बातें सुनने मे लगे थे. निक्की को ये सब बातें समझ मे नही आ रही थी कि, हम लोग ये क्या कर रहे है. इसलिए वो चुप चाप खड़ी होकर हमारी बातें सुन रही थी.

वही प्रिया अब भी कुछ सोच रही थी. शायद वो कीर्ति की बातों का कुछ मतलब निकालने की कोशिस कर रही थी. जब प्रिया थोड़ी देर तक कुछ नही बोली. तब मैने उस से कहा.

मैं बोला "क्या अब भी तुम्हे लगता है कि, तुम्हारा या मेरा प्यार इस लड़की के प्यार की बराबरी कर सकता है."

मैने जब कीर्ति का नाम लेने की जगह अपनी बात मे उस लड़की बोला. उस वक्त मैने निक्की की तरफ देखा. ताकि वो भी यदि कुछ कहे तो, कीर्ति का नाम ना ले. प्रिया मेरी बात को कुछ देर तक सोचती रही. फिर कहने लगी.

प्रिया बोली "मेरे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है. कोई लड़की ऐसे हंसते हंसते, अपने प्यार को खुद से जुदा करके कैसे इतने आराम से सो सकती है."

मैं बोला "तुम ये क्यो सोचती हो कि, वो सो गयी होगी. अभी तक वो मेरे सामने, अपने आँसू रोक कर रखी थी. अब वो फोन रखने के बाद रो रही होगी."

हमारी बात सुन कर अब निक्की से नही रहा गया. वो बीच मे बोल ही पड़ी.

निक्की बोली "आप लोगों ने, इतनी रात को ये क्या तमाशा लगा रखा है. किसी भोली भाली लड़की के जज्बातों के साथ खेलना, क्या कोई अच्छी बात है. आप लोगों को उसके प्यार का मज़ाक बना कर, क्या मिल रहा है."

मैं बोला "मैं उसके प्यार का मज़ाक नही बना रहा. मैं बस प्रिया को ये समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि, जो लड़की मुझे प्यार करती है. उसके प्यार की बराबरी ना तो, मेरा प्यार कर सकता है और ना ही प्रिया का प्यार कर सकता है."

मेरी बात सुन कर प्रिया मेरी गोद से उठ कर खड़ी हो गयी और गुस्से मे कहने लगी.

प्रिया बोली "तुम्हारे पास इस बात का क्या सबूत है कि, वो अभी सोई नही है और रो रही है. हो सकता है कि, उसे सच मे तुम्हारे जाने का कोई फरक ना पड़ा हो."

निक्की बोली "प्रिया आख़िर ये चल क्या रहा है. ये इन दोनो के आपस का मामला है. इस से तुझे क्या लेना देना है कि, ये दोनो क्या करते है और क्या नही करते."

निक्की अपनी बात बोलकर, गुस्से मे प्रिया को देखने लगी. उसे प्रिया की इन हरकत का मतलब समझ मे नही आ रहा था. मैं चाहता था कि निक्की को सब सच पता चल जाए. ताकि वो ही प्रिया को समझा सके. लेकिन प्रिया की स्थिति भी समझता था.

प्रिया पर इस समय मेरे प्यार का जुनून सवार था. वो जो कुछ भी कर रही थी. सिर्फ़ मेरा प्यार पाने के लिए ही कर रही थी. ये अलग बात थी की, उसका ये प्यार एक तरफ़ा था. फिर भी मैं प्रिया के प्यार की कदर करता था. इसलिए मैं चाहते हुए भी निक्की से कुछ ना बता सका. शायद ये कीर्ति के प्यार का ही असर था. जो मुझे प्रिया के दिल को ठेस लगाने से रोक रहा था.
Reply
09-09-2020, 01:49 PM,
#79
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
69
मैं बैठा बैठा यही सब सोच रहा था और उधर निक्की प्रिया से बहस कर रही थी. निक्की प्रिया से कह रही थी.

निक्की बोली "मैं तेरे से कुछ पुच्छ रही हूँ. तू सीधे सीधे मेरी बात का जबाब क्यो नही देती. आख़िर तू इन लोगों के बीच मे क्यो अपनी टाँग अड़ा रही है. तुझे ये सब करके क्या मिलेगा."

निक्की के बार बार एक ही बात पुच्छने पर प्रिया भी अपने आपको चुप ना रख सकी. उसने झुंझलाते हुए कहा.

प्रिया बोली "तुझे सुनना है तो सुन. मुझे उस लड़की से कोई मतलब नही है कि, वो क्या करती है और क्या नही करती. मुझे मतलब है तो सिर्फ़ पुन्नू से है. क्योकि मैं इसे प्यार करती हूँ. तुझे जो जानना था. मैने तुझे बता दिया. अब तू चुप रह."

प्रिया की बात सुन कर निक्की के तो होश ही उड़ गये. उसे समझ मे नही आ रहा था कि, अचानक ये सब क्या हो गया. वो एक दम से खामोश हो गयी. या शायद उसके पास अब बोलने के लिए कुछ बचा ही नही था. वो खामोश होकर मेरी तरफ देखने लगी. जैसे की ये जानना चाहती हो कि, अब मैं क्या करूगा.

मगर मैं उसके इस खामोश सवाल का, क्या जबाब देता. मैं तो खुद ही इसका जबाब ढूँढ रहा था. कीर्ति मेरे लिए मेरी जान थी. इसलिए मुझे उसके दर्द का अहसास था. लेकिन प्रिया तो मुझे अपनी जान बनाना चाहती थी. मैं उसे होने वाले दर्द से भी अंजान नही था.

मेरे लिए प्रिया को ना बोलना इतना आसान नही था. क्योकि कीर्ति का दिल तो मैने सिर्फ़ कुछ देर के लिए ही तोड़ा था. मुझसे बात होते ही कीर्ति को उसका सब कुछ वापस मिल जाना था. लेकिन प्रिया का तो सब कुछ ही ख़तम हो जाना. यही सब सोच कर मैं खामोश ही रहा.

मैं चुप चाप बेड पर बैठा रहा. जब मैं प्रिया की बात सुनकर भी कुछ नही बोला. तब शायद निक्की को मेरी हालत का अहसास हो गया. उसने फिर से प्रिया को समझाते हुए कहा.

निक्की बोली "प्रिया तू इनसे प्यार करती है, ये कोई ग़लत बात नही है. मगर इसका मतलब ये तो नही है कि, इनको भी तुझसे प्यार हो. फिर तू बेकार मे ज़बरदस्ती इन पर अपना प्यार क्यो लादना चाहती है. तू ये क्यो नही समझने की कोसिस करती कि, ये दोनो एक दूसरे से सच्चा प्यार करते है."

प्रिया बोली "मैं ज़बरदस्ती कहाँ कर रही हूँ. पुन्नू भी मुझे प्यार करता है. ये बस उस लड़की की वजह से अपने प्यार का इज़हार नही कर पा रहा है."

निक्की बोली "क्या इन्हो ने खुद तुझसे कहा है कि, ये तुझसे प्यार करते है."

प्रिया बोली "इसने नही कहा तो क्या हुआ. मैं अच्छे से जानती हूँ कि, ये भी मुझे प्यार करता है. फिर वो लड़की भी तो यही कह रही थी कि, वैसे भी प्रिया तुम्हे पहली ही नज़र मे भा गयी थी. अब तुम भी उसे अच्छे लगने लगे हो. अब तो तुम दोनो की खूब जमेगी. अब इस बात का मतलब तो यही हुआ ना कि पुन्नू को मैं पसंद हूँ. तभी इसने मेरे बारे मे ये सब बात उस लड़की से की होगी. वरना उसे क्या मालूम कि प्रिया कौन है."

निक्की बोली "लेकिन किसी को पसंद करना और किसी को प्यार करना दोनो ही अलग बातें होती है. करने को तो मैं भी इन्हे पसंद करती हूँ. मगर इसका मतलब ये तो नही कि, मैं इन्हे प्यार करती हूँ."

कहने को तो ये बात निक्की ने प्रिया को समझाने के लिए कही थी. लेकिन प्रिया पर निक्की की इस बात का उल्टा ही असर पड़ा. प्रिया निक्की की ये बात सुनकर भड़क उठी. उसने निक्की से जो कहा. उस से तो निक्की की बोलती ही बंद हो गयी. प्रिया ने गुस्सा करते हुए कहा.

प्रिया बोली "तुझे अपनी सहेली कहते हुए मुझे शर्म आ रही है. यदि तू मेरी सच्ची सहेली होती तो, चाहे मैं ग़लत ही क्यो ना होती, पर तू मेरा प्यार पाने मे मेरा साथ देती. लेकिन तू मेरा साथ देने की जगह, एक ऐसी लड़की का साथ दे रही है. जिसे तू जानती भी नही है."

प्रिया की बात सुन कर निक्की का मूह छोटा सा हो गया. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी तो, मैं उसे ही देख रहा था. वो मुझसे नज़र मिला नही पाई. लेकिन फिर उसने खुद को संभाला और दोबारा प्रिया को समझाने लगी.

निक्की बोली "यदि मैं तुझे सिर्फ़ अपनी सहेली मानती, तो ज़रूर तेरी हर बात मे, हाँ मे हाँ मिलाती. लेकिन तू मेरे लिए मेरी सहेली से बढ़ कर, मेरी बहन जैसी है. इसलिए मैने तुझे ये सब समझाने की कोसिस की थी. मगर तूने आज मुझे ये बात बोलकर मुझे मेरी ही नज़रों मे गिरा दिया. तुझे यदि मेरी बात का बुरा लगा है, तो उसके लिए मैं तेरे से माफी मांगती हूँ. तुझे जो ठीक लगे तू वही कर. अब मैं तेरी किसी बात मे बीच मे नही बोलुगी."

ये बोल कर निक्की कमरे से बाहर जाने को लगी. लेकिन इस तरह निक्की को बाहर जाते देख शायद प्रिया को अपनी ग़लती का अहसास हो गया. उसने निक्की को टोकते हुए कहा.

प्रिया बोली "हाँ मैं तेरी सग़ी बहन थोड़ी हूँ. जो तू मेरी किसी बात को सहेगी. एक तरफ मुझे बहन कहती है और दूसरी तरफ मेरी गुस्से मे कही बात का बुरा मानती है. तुम सभी बहुत अच्छे हो. बस मैं ही एक बुरी लड़की हूँ. तू जाना चाहती है तो जा. मैं भी तुझे नही रोकूगी. लेकिन मेरी एक बात सुन ले. मैने हमेशा तुझे अपनी बहन माना है. तुझमे और रिया मे मैने कभी कोई फ़र्क नही किया है."

ये बोल कर प्रिया की आँखे आँसुओं से भीग गयी और निक्की के बाहर जाते हुए कदम वही रुक गये. निक्की प्रिया के पास वापस आई और उसके कंधे पर हाथ रखती हुई उस से कहने लगी.

निक्की बोली "तू मेरी बहन थी और हमेशा रहेगी. मुझे तेरी किसी बात का कोई बुरा नही लगा. लेकिन तू मेरी किसी बात को समझना ही नही चाहती तो, मैं यहाँ रुक कर क्या करूगी."

निक्की की बात से प्रिया को इस बात की राहत महसूस हुई कि, निक्की को उसकी बात का बुरा नही लगा. लेकिन इसके बाद भी वो अपनी बात पर अडी ही रही. उसने अपने आँसुओं को पोन्छ्ते हुए कहा.

प्रिया बोली "मैं हर बात को समझने तैयार हूँ. लेकिन तुम लोगों को तो हर बात मे, उस लड़की की अच्छाई ही दिखाई दे रही है. तुम लोगों को ये क्यो नही दिखाई दे रहा कि, मेरे बारे मे सुनकर भी, उसे कोई असर नही पड़ा. उल्टे उसने ये तक कह दिया कि, अब कम से कम वो अपने माता पिता की मर्ज़ी से शादी करके, अपना फ़र्ज़ पूरा कर सकेगी."

निक्की बोली "तू यही तो समझना नही चाहती. तुझे क्या लगता है कि, इनके ये बात कहने से, उस पर कोई असर नही पड़ा और वो खुशी खुशी सो गयी है."

प्रिया बोली "हाँ मैं यही कहना चाहती हूँ."

निक्की बोली "यदि ये बात साबित हो जाए कि, वो ये सब सिर्फ़ इनके दिल का बोझ कम करने के लिए कह रही थी, और उसे सच मे इनकी बात से बहुत दुख पहुचा है. तब तू क्या करेगी. क्या तब तू अपने प्यार को भुला सकेगी."

प्रिया बोली "यदि उसका प्यार सच्चा है तो, मैं ज़रूर इनके बीच से हट जाउन्गी. लेकिन तुम लोगों को ये बात अभी इसी वक्त साबित करना होगी."

निक्की बोली "ओके ये बात अभी साबित हो जाएगी. अभी तेरे सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा."

निक्की और प्रिया की बातों से मुझे कुछ तसल्ली तो ज़रूर हुई. लेकिन मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, निक्की इस बात को साबित कैसे करेगी. मैं उम्मीद भरी नज़रों से निक्की की तरफ देखने लगा. निक्की ने प्रिया को बैठने को कहा तो, वो मेरे पास आकर बैठ गयी. फिर निक्की ने एक चेयर ली और हम दोनो के सामने बैठते हुए, मुझसे कहने लगी.

निक्की बोली "अब ये आपको साबित करना है कि, वो लड़की आपसे सच्चा प्यार करती है. उस लड़की ने तो आपको अपना ये सबूत दे दिया है कि, वो आपसे कितना प्यार करती है. अब आप भी इस बात का सबूत दीजिए कि आपको उस के दर्द का कितना अहसास है."

मैं बोला "मैं भला अपने प्यार का क्या सबूत दे सकता हूँ. मैं उसकी तरह नही हूँ. जो हर बात को इतनी आसानी से कह सकूँ. मैं बस इतना जानता हूँ कि, मुझे हँसना उसी लड़की ने सिखाया है. मेरी जिंदगी मे आज जो भी रंग है. सब उसके ही भरे हुए है. लेकिन मैं चाहू भी तो, ये सब साबित नही कर सकता. क्योकि मुझे ये सब करना नही आता. अभी तुमने तो खुद देखा कि, मैने प्रिया को उसके प्यार का सबूत देने के लिए, किस तरह उसका दिल दुखा दिया."

निक्की बोली "आप उसके बारे मे कुछ ऐसा बताइए. जिस से प्रिया को यकीन हो जाए कि वो लड़की आप से सच्चा प्यार करती है. उसे आपसे दूर होने का बहुत दुख है."

मैं बोला "ये उसकी आदत है. वो अपना दुख अपना दर्द कभी मुझ पर जाहिर नही होने देती. मैं इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि, यदि कीर्ति मेरे मूह से सुनेगी कि, मुझे किसी और लड़की से प्यार हो गया है. तब वो मुझे उसके पास जाने से नही रोकेगी. यही वजह थी कि, मैने कीर्ति की बात प्रिया को सुनाई थी. ताकि प्रिया को इस बात का अहसास हो सके कि सच्चा प्यार क्या कहलाता है. मगर प्रिया पर कीर्ति के इतने बड़े बलिदान का कोई असर नही पड़ा. उसे तो अब यही लग रहा है कि, कीर्ति को मेरे उस से दूर होने का कोई दुख नही है."

प्रिया बोली "दुख है तो फिर उसकी बातों मे, मुझे वो दुख दिखाई क्यो नही दिया."

मैं बोला "उसने अपना दर्द मुस्कुरा कर छुपा लिया और आप लोग उसके दर्द को महसूस नही कर पाई. मगर मैं ये अच्छी तरह से जानता हूँ कि, भले ही उस ने हंसते हंसते इस बात के लिए हाँ कह दी हो, पर असल मे अब वो अकेले मे बहुत रो रही होगी."

प्रिया बोली "यदि ऐसी बात है तो, आप अभी उसे कॉल लगाइए. मैं देखना चाहती हूँ कि, वो सो रही है या रो रही है."

मैं बोला "कोई कॉल करने का कोई फ़ायदा नही है. वो अभी रो ही रही होगी और अब सोने का बहाना कर के मेरा कॉल नही उठाएगी."

निक्की बोली "उसे कॉल मत उठाने दीजिए. लेकिन आप कॉल तो लगाइए."

उन दोनो की बात सुन कर मैने कॉल लगा दिया. लेकिन हुआ वही जो मैने कहा था. मेरे दो तीन बार कॉल लगाने के बाद भी कीर्ति ने कॉल नही उठाया. तब मैने कहा.

मैं बोला "आप लोग उसे नही जानती. जब मैं यहाँ आ रहा था. तब भी उसने ऐसा ही कुछ किया था. मुझे अपने से दूर होता देख पहले तो वो रोई लेकिन फिर उस ने रोना बंद कर दिया और पूरी तरह से शांत हो चुकी थी. मगर उसके चेहरे से मुस्कुराहट गायब थी. उसका चेहरा किसी पत्थर की तरह सख़्त था. लेकिन उसकी आँखो मे आँसुओं की झिलमिलाहट साफ नज़र आ रही थी. उसकी ये हालत देख कर मेरा भी दिल रो रहा था. मैं उसके पास खड़ा रहा. लेकिन ना उसने कुछ बोला और ना ही मैने कुछ बोला. कुछ देर बाद ट्रेन आ गयी. सब ट्रेन मे समान रखने लगे, पर मैं वही पत्थर का बुत बने खड़ा रहा. मेरे पैर जबाब दे गये थे. मुझसे वहाँ से हिलते भी नही बन रहा था. जब उसने मेरी ऐसी हालत देखी. तब उसने दोनो हाथ अपने चेहरे पर फेरे और अपने आपको मजबूत करके खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर, मुझे ट्रेन पर चढ़ा दिया. अभी भी उसने ऐसा ही कुछ किया है. उसे इस बात से फ़र्क नही पड़ता कि उसे क्या दर्द है. उसे फ़र्क पड़ता है तो इस बात से की मुझे कोई दर्द ना हो."

अब शायद प्रिया के मन मे कीर्ति के लिए सहानुभूति जाग गयी थी. उसने कहा.

प्रिया बोली "जब उसे तुम्हारे दर्द की इतनी पहचान है. तब तुमको भी उसके दर्द की पहचान होगी. मुझे तो उसके तुमसे बात करते समय, उसकी बातों मे कोई दर्द समझ नही आया. लेकिन तुमको उसकी कौन सी बातों मे उसका दर्द समझ मे आया."

मैं बोला "ये समझने की बात है. यदि आप लोगों ने उसके दर्द को समझा होता तो, उसका दर्द आप लोगों को तभी समझ मे आ गया होता. जब वो मुझसे बात कर रही थी. प्यार मे छोटी छोटी बातें बहुत मायने रखती है. उसने बिना एक आँसू बहाए मुझे किसी और के पास जाने दिया. फिर भी यदि आप लोगों ने ध्यान दिया होता तो, तो आपको उसकी बेबसी समझ मे आ जाती. पहले वो मुझसे जान कह कर बात करती रही. लेकिन जैसे ही मैने कहा कि, मुझे प्रिया से प्यार है. उसके बाद से उसने मुझसे बात करते हुए जान लगाना बंद कर दिया. फिर आज उसने ना तो रोज की तरह खुद कॉल रखा और ना ही उस ने कॉल काटते समय मुझसे किस की माँग की. ऐसा सिर्फ़ इसलिए था क्योकि उसे लगा कि अब मैं उसका नही हूँ. वरना आज तक उसने कभी मुझसे किस लिए बिना कॉल नही काटा. चाहे मैं किसी भी जगह पर क्यो ना रहा हूँ. वो मुझसे किस लिए बिना कॉल रखती ही नही है."

मेरी इस बात पर निक्की बोल पड़ी.

निक्की बोली "हाँ ये तो एक बार मेरे सामने हॉस्पिटल मे भी हो चुका है. उसने तब तक कॉल नही रखा था. जब तक आपने उसे किस नही दे दिया था. लेकिन मेरी समझ मे ये बात नही आ रही कि, आप कॉल क्यो नही रखते है. कॉल वो ही क्यो रखती है."

मैं बोला "ऐसा इसलिए है क्योकि मैं कभी कॉल रख ही नही पाता हूँ. मुझे कॉल रखने मे ऐसा महसूस होता है. जैसे की मैं उस से हमेशा के लिए दूर हो रहा हूँ. इसी वजह से वो कभी मुझसे कॉल रखने को कहती भी नही है. मगर आज ना जाने क्यो उसने मुझसे कॉल रखने को कहा."

निक्की बोली "सो सॅड. तुम इतनी सी बात भी नही समझ सके. उसने कॉल रखने को इसलिए कहा होगा. क्योकि वो ये देखना चाह रही होगी कि, तुम्हारे दिल मे उसकी जगह अब भी वही है या नही है. लेकिन तुमने कॉल रख कर उसे ये अहसास दिला दिया कि, तुम्हारे दिल मे उसकी जगह पहले जैसी नही है. उसे तुम्हारे कॉल रख देने बहुत ज़्यादा तकलीफ़ पहुचि होगी."

मैं बोला "हाँ, उसे तकलीफ़ तो पहुचि है. लेकिन मेरे लिए उस समय, उसकी तकलीफ़ से ज़्यादा ये ज़रूरी हो गया था कि, मैं किसी भी तरह से प्रिया को उसके प्यार का अहसास दिला सकूँ. क्योकि बात चाहे कैसी भी क्यो ना हो. लेकिन सच तो यही है कि, प्रिया मुझसे प्यार करती है. ऐसे मे मैं इसके दिल को ठेस कैसे लगा सकता हूँ. मैं पहले प्यार को ना पा सकने का दर्द जानता हूँ. इसलिए मैं प्रिया के दिल को किसी भी हालत मे ठेस लगाना नही चाहता था."

इतना बोल कर मैं नीचे सर झुका कर बैठ गया. लेकिन मेरी इन बातों ने सीधे प्रिया के दिल पर असर किया. उसे शायद कीर्ति के प्यार पर यकीन होने लगा था. उसने बड़े ही धीरे से कहा.

प्रिया बोली "सॉरी, मैं तुम दोनो के प्यार को समझ ना सकी. मैं अपने प्यार के जुनून मे बहुत स्वार्थी हो गयी थी. जो मुझे अपने आगे तुम दोनो का प्यार समझ मे नही आ रहा था. लेकिन मैं भी क्या करती. वो इस तरह से हंस रही थी कि, मैं समझ ही नही सकी कि, उसे तुमसे दूर होने का कोई दुख है. सच कहूँ तो मुझे अभी भी इस बात पर पूरी तरह से यकीन नही हो पा रहा है."

मैं इस बात का मतलब अच्छे से जानता था कि, जब कोई किसी से प्यार करता है तो, फिर वो दिल से ये मानने को तैयार ही नही होता कि, कोई और उस से ज़्यादा प्यार कर सकता है. यही हाल प्रिया का भी था. उसके दिमाग़ ने तो ये बात मान ली थी कि, कीर्ति ने जो कुछ किया वो सब दिखावा था. लेकिन उसका दिल अभी भी इस बात को मानने को तैयार नही था.

मुझे भी ऐसा कोई रास्ता समझ मे नही आ रहा था. जिस से मैं प्रिया के दिल से इस बात को निकल सकूँ. लेकिन प्रिया की बात को सुनने के बाद शायद निक्की को कुछ सूझा. उसने मुझसे कहा.

निक्की बोली "आप ज़रा अपना मोबाइल मुझे दीजिए."

निक्की की बात सुनकर मुझे लगा कि वो फिर कीर्ति को कॉल लगाने वाली है. मैने उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला "अब उसे कॉल लगाने का कोई फ़ायदा नही है. वो बहुत जिद्दी है. यदि उसे कॉल उठाना होता तो, वो तभी कॉल उठा लेती, या फिर तभी उसने वापस कॉल लगा दिया होता. अब वो कॉल नही उठाएगी."

निक्की बोली "मैं कॉल नही लगाउन्गी. आप बस मुझे मोबाइल दीजिए और देखते जाइए क्या होता है."

मैने अपना मोबाइल निक्की को दे दिया. निक्की ने मोबाइल लिया और कुछ टाइप करने लगी. फिर उसने मुझे मोबाइल दे दिया. उसने एक मेसेज टाइप किया था.

निक्की का मेसेज
"सोचा किसी अपने से बात करें.
अपने किसी खास को याद करें.
जो फ़ैसला किसी को एसएमएस करने का किया.
दिल ने कहा क्यूँ ना तुमसे शुरुआत करें."

मैने मेसेज पढ़ा. फिर निक्की ने वो मेसेज कीर्ति को सेंड करने को कहा. मैने मेसेज कीर्ति को सेंड किया और फिर निक्की से कहा.

मैं बोला "इस से क्या होगा. क्या वो कॉल करेगी."

निक्की बोली "कुछ नही होगा. बस आप देखते चलिए और मेसेज सेंड करते चलिए."

इस मेसेज के थोड़ी देर बाद निक्की ने फिर मोबाइल लिया और फिर एक मेसेज टाइप करके मुझे दे दिया.

निक्की का मेसेज
"अभी करो मेरे साथ कोई बात फिर सो जाना.
जब ढल जाए ये रात फिर सो जाना.
मुद्दत से प्यासे है हम तेरी दीद के.
जब बुझ जाए मेरी प्यास फिर सो जाना..
कुछ तुम सताओ, कुछ हम सताए.
कुछ हो जाए दिल की बात फिर सो जाना.
अभी तो जाग रहे है चाँद सितारे.
जब सो जाए ये कायानात फिर सो जाना."

मैने मेसेज पढ़ा और कीर्ति को सेंड किया और फिर वापस मोबाइल निक्की को दे दिया. थोड़ी देर बाद उसने फिर एक मेसेज टाइप करके मुझे दिया.

निक्की का मेसेज
"रात की धड़कन जब तक जारी रहती है.
सोते नही है हम, ज़िम्मेदारी रहती है.
जब तक तुझसे अपने दिल की बातें ना हो.
सुकून नही मिलता तबीयत भारी रहती है."

मैने मसेज पढ़ा और फिर से सेंड कर दिया. लेकिन कीर्ति की तरफ से अभी भी कोई जबाब नही आ रहा था. मैं अच्छे से जानता था कि, वो ये सब मेसेज पढ़ तो रही है. लेकिन वो किसी का जबाब नही देगी. थोड़ी देर बाद फिर निक्की ने एक मेसेज टाइप करके मुझे दिया.

निक्की का मेसेज
"आज ज़रूरत है जिसकी वो पास नही है,
अब उनके दिल मे वो एहसास नही है,
तड़पते है दो पल बात करने को,
शायद अब वक़्त हमारे लिए उनके पास नही है."

मैने मेसेज पढ़ा तो, मुझे मेसेज अच्छा नही लगा. मैने निक्की से कहा.

मैं बोला "इस तरह का मेसेज भेजने की कोई ज़रूरत नही है. वो बेकार मे परेशान होगी."

निक्की बोली "जब आपने उसे कॉल करके परेशान किया. तब आपको इस बात की फिकर नही हुई. अब थोडा सा परेशान मुझे भी कर लेने दो."
.
मुझे निक्की की बात पसंद तो नही आई. लेकिन फिर भी मैने मेसेज सेंड कर दिया. मगर अभी भी कीर्ति की तरफ से कोई जबाब नही आया था. तब निक्की ने फिर एक मेसेज टाइप करके मुझे दिया.

निक्की का मेसेज
"आँखे रो पड़ी उनका ना पैगाम आया,
चले गये हमें अकेला छोड़ के ये कैसा मुकाम आया,
मेरी तन्हाई हँसी मुझपे और बोली,
बता आख़िर मेरे सिवा तेरे कॉन काम आया."

मैने बेमन से मेसेज सेंड कर दिया. क्योकि मुझे मालूम था कि, निक्की फिर वही जबाब देगी. जो उसने पहले दिया था. इसके थोड़ी देर बाद निक्की ने फिर एक मेसेज टाइप करके दिया.

निक्की का मेसेज
"क्या ज़माना था, तुम रोज़ मिला करती थी.
रात भर चाँद के, हमराज़ फिरा करती थी.
देख कर भी आज मुझे मूह फेरे बैठी हो.
कभी तुम ही मुझे अपनी जान कहा करती थी."

मैने मसेज पढ़ा और कीर्ति को मेसेज सेंड कर दिया. अब मेरी और प्रिया की नज़र निक्की पर ही टिकी थी. क्योकि हमें समझ मे नही आ रहा था कि, वो करना क्या चाह रही है. मैं तो अपनी बेचैनी को छुपाए रहा. लेकिन प्रिया अपने आपको ज़्यादा देर ना रोक सकी. प्रिया ने निक्की से कहा.

प्रिया बोली "तू आख़िर करना क्या चाहती है. जब उसकी नींद कॉल करने से नही खुली तो, क्या अब वो तेरे मेसेज करने से जाग जाएगी."

निक्की बोली "तू चुप करके बैठ. तुझे खुद पता चल जाएगा कि, मैं क्या करना चाहती हूँ."

प्रिया बोली "ऐसे तो तू उसे रात भर मेसेज करती रहेगी. तो क्या हम रात भर चुप बैठ कर तेरा तमाशा देखते रहेगे."

निक्की बोली "रात भर नही. बस अब इस मेसेज के बाद तेरे सब समझ मे आने लगेगा."

ये कह कर निक्की ने फिर एक मेसेज टाइप किया.

निक्की का मेसेज
"तुमसे दूर जाने का इरादा ना था.
सदा साथ रहने का भी वादा ना था.
तुम याद ना करोगी ये जानते थे हम.
पर इतनी जल्दी भूल जाओगी आंदज़ा ना था."
"यू ब्रेक माइ हार्ट."
"बाइ न टेक केयर"

मैने मेसेज पढ़ा और कीर्ति को मेसेज सेंड करने के बाद निक्की से कहा.

मैं बोला "ये तो ग़लत बात है. उसने तो ऐसा कुछ भी नही किया. वो बस अपना दर्द मेरे सामने जाहिर करना नही चाहती है. इसलिए वो सोने का नाटक कर रही है. यदि आपको ये ही जानना है कि, वो जाग रही है या सो रही है. तब आप उसे बस इतना लिख कर भेज दो कि, मैने जो कुछ भी कहा था. वो सब झूठ था. देखिए तुरंत उसका कॉल आ जाएगा. लेकिन ऐसा करके उसे और चोट मत पहुचाईए. ये मेसेज पढ़ पढ़ कर उसका बुरा हाल हो रहा होगा."

निक्की बोली "मैं जानती हूँ कि, मैं ग़लत कर रही हूँ. लेकिन आप ये मत भूलिए कि, आप एक लड़के हो और हम लड़कियों की सोच को नही समझ सकते. आप सिर्फ़ देखते जाइए, इस मेसेज के बाद उसका मेसेज ज़रूर आएगा. यदि नही आया तो, फिर ये बात कोई मायने नही रखती की, वो जाग रही है या सो रही है. फिर मैं भी प्रिया की तरह यही मानूँगी कि, उसका प्यार सच्चा नही है. क्योकि जब उसे आपके दर्द से ज़्यादा अपने दर्द की परवाह हो तो, फिर उसका प्यार सच्चा हो ही नही सकता."

इतना बोल कर निक्की चुप हो गयी. लेकिन उसकी इस बात से जहाँ प्रिया के चेहरे पर विजयी मुस्कान आ गयी थी. वही मेरे चेहरे की रौनक उड़ गयी थी. हम सभी की नज़र अब मेरे मोबाइल पर ही टिकी हुई थी. सबको अब कीर्ति के मेसेज आने या ना आने का इंतजार था.

मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयी थी. क्योकि अब सवाल सिर्फ़ कीर्ति के सो जाने का नही था. बल्कि अब सवाल मेरे प्यार की इज़्ज़त का था. जो सिर्फ़ कीर्ति के एक मेसेज करने या ना करने पर टिकी हुई थी. मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगा कि, मेरे प्यार की इज़्ज़त रख लो और साथ साथ अपने मन मे कीर्ति से बात करते हुए कहने लगा कि, "प्लीज़ जान, चाहे जैसे भी हो, पर अपने प्यार की इज़्ज़त रख लो. वरना हमारा प्यार इन लोगों की नज़र मे झूठा पड़ जाएगा."
Reply
09-09-2020, 01:51 PM,
#80
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
70
घड़ी की बढ़ती हुई सुइयों के साथ साथ, मेरे दिल की धड़कनो की रफ़्तार भी तेज होती जा रही थी. मेरे लिए एक एक पल, एक एक साल की तरह गुजर रहा था. बाहर से मैं खामोश ज़रूर था. मगर मन ही मन, कीर्ति से हज़ारों बात किए जा रहा था और उसे मेसेज भेजने के लिए कह रहा था.

आज तक मैने सुना था कि दिल से दिल को राह होती है. प्यार करने वाले एक दूसरे के दिल की बात दिल से सुन लेते है. बस ये वक्त उसी बात को आज़माने का था और मैं उसी बात को आजमा भी रहा था. बहुत जल्दी ही मुझे इस बात के सच होने का सबूत भी मिल गया.

कीर्ति ने मेरे दिल की आवाज़ सुन ली थी. उसने अपनी सोने का नाटक करने की, ज़िद को तोड़ते हुए, हमारे प्यार की इज़्ज़त रख ली थी. उसने मुझे मेसेज किया था.

कीर्ति का मेसेज
"
भूल जाने का तुम्हे, हमारा कोई इरादा नही है.
तुम्हारे सिवा हम ने, किसी से किया वादा नही है.
निकाले भी तो कैसे निकाले, अपने दिल से तुम्हे.
जब इस दिल मे बाहर जाने का, कोई दरवाज़ा नही है."

कीर्ति का मेसेज देखते ही मेरी आँखों मे खुशी के आँसू आ गये. मैने मोबाइल निक्की को पकड़ा दिया और अपने चेहरे को अपने घुटनो पर टिका दिया. मैं मन ही मन उसे इस मेसेज को करने के लिए थॅंक्स करने लगा और हज़ारों बार उसे आइ लव यू बोलने लगा. मैने भगवान को भी मेरे प्यार की इज़्ज़त रखने के लिए थॅंक्स कहा.

मुझे इस तरह अपने घुटनों पर झुका देख प्रिया इसका मतलब समझ नही पाई. उसने मेरे कंधे पर हाथ रख कर, मुझसे पुछा.

प्रिया बोली "क्या हुआ तुम्हे. क्या उसने कोई ग़लत मेसेज कर दिया."

मैने सर झुकाए झुकाए अपने आँसुओं को पोन्छा और फिर सर उपर उठाते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला "नही ऐसा कुछ नही है. मेरी आँख मे कुछ चला गया था. अब ठीक है.

लेकिन निक्की मेरी हालत को समझ गयी थी. उसने मुस्कुराते हुए प्रिया से कहा.

निक्की बोली "नही उसने कुछ बुरा नही कहा. उसने एक प्यार भरा मेसेज भेजा है."

ये कह कर निक्की ने प्रिया को मेसेज पढ़ कर सुनाया और फिर एक मेसेज टाइप कर के मुझे थमा दिया.

निक्की का मेसेज
"
जिंदगी मे ये कैसी मजबूरी है.
ना जाने क्यो तेरे मेरे बीच ये दूरी है.
सोचता हूँ कभी दिल से भुला दूं तुझको.
पर क्या करूँ तेरी मुस्कान ही मेरी कमज़ोरी है."

मैने मेसेज देखा और निक्की से कहा.

मैं बोला "अब मेसेज करने की क्या ज़रूरत है. उसने मेसेज किया है तो, अब वो कॉल भी उठा लेगी. मैं सीधे उस से बात ही कर लेता हूँ.

निक्की बोली "आप दोनो की बातें तो हमेशा होती रहती है. अभी आप उसे कॉल करोगे तो वो कॉल भी उठा लेगी. लेकिन फिर वो नही हो पाएगा, जो मैं करना चाहती हूँ. आप थोड़ी देर मुझे, उस से मेसेज मे बात करने दीजिए."

निक्की की बात सुन कर मैने मेसेज कीर्ति को सेंड किया और मोबाइल वापस निक्की को पकड़ा दिया. लेकिन अभी भी निक्की की हरकत मेरे लिए एक पहेली ही बनी हुई थी. जब कीर्ति जाग रही है और उसने मुझे मेसेज भी किया है तो, फिर निक्की ने मुझे उस से बात क्यो नही करने दी. मैं यही सब सोचता रह गया. तब तक निक्की एक मेसेज और टाइप कर चुकी थी.

कीर्ति का मेसेज
"कदमो की दूरी से दिलो के फ़ासले नही बढ़ते,
दूर होने से एहसास नही मरते,
कुछ कदमो का फासला ही सही हमारे बीच,
लेकिन ऐसा कोई पल नही जब हम तुमको याद नही करते."

निक्की ने कीर्ति का मेसेज पढ़ कर सुनाया और फिर वो मेसेज टाइप करने लगी.

निक्की का मेसेज
"उठाएगें हम जब भी हाथ दुआ को.
रब से तुम्हारे लिए ही फरियाद करेगे.
तुम हो जाओ चाहे हम से हंस कर जुदा.
हम रोकर ही सही पर तुम्हे याद करेगे."

मेसेज टाइप हो जाने के बाद उसने हमे मेसेज पढ़ कर सुनाया और फिर उसे कीर्ति को सेंड कर दिया. थोड़ी ही देर बाद फिर कीर्ति का जबाब आ गया.

कीर्ति का मेसेज
"आओ और मुझे टूट कर बिखरता देखो.
मेरी रंगों मे जहर जुदाई का उतरता देखो.
किस किस अदा से तुम्हे माँगा है खुदा से.
आओ कभी मुझे सजदों मे सिसकता देखो."

निक्की ने कीर्ति का मेसेज पढ़ कर सुनाया तो, अब मुझसे नही रहा गया. मैने निक्की से कहा.

मैं बोला "अब बस भी कीजिए. क्या आपको उसके मेसेज मे, उसका दर्द समझ मे नही आ रहा है."

निक्की बोली "मुझे सब समझ मे आ रहा है. बस 2 मेसेज और करने दीजिए."

ये कह कर निक्की ने एक मेसेज और टाइप किया.

निक्की का मेसेज
"
मेरी कोई खता है तो, खता साबित करो.
जो मैं बुरा हूँ तो, मुझे बुरा साबित करो.
मैं जा रहा हूँ दूर, तुम जैसी बेवफा से.
यदि मैं बेवफा हूँ तो, तुम अपनी वफ़ा साबित करो."

निक्की ने टाइप किया हुआ मेसेज हमें पढ़ कर सुनाया और उसे सेंड कर दिया. लेकिन अब कीर्ति का कोई मेसेज नही आया. तब मैने निक्की से कहा.

मैं बोला "आपने अपने मन का कर के देख लिया. मुझे लगता है कि, उसे इस बात का बहुत ज़्यादा बुरा लग गया है. इसलिए उसने इस बात का जबाब नही दिया."

निक्की बोली "उसे बुरा ज़रूर लगा है. लेकिन वो इसका जबाब ज़रूर देगी."

निक्की का कहना सही निकला. कुछ देर बाद कीर्ति का मेसेज आ गया.

कीर्ति का मेसेज
"तुम जाओ हम से दूर तो एक काम कर जाना.
कुछ पल अपने हमारे नाम कर जाना.
अगर आ जाए मौत हमे तुम्हारे आने से पहले.
तो आ कर मेरे जनाज़े का एहतराम कर जाना.
ना रोना इस क़दर कि तकलीफ़ हो हमे.
मौत को भी मकक समझ कर अंजान बन जाना.
मैं तो एक दिन सो जाऊंगी सदा के लिए.
फिर मुझे बेवफा कह कर बदनाम कर जाना.
जो गुज़रो मेरी कबर से तो नज़रें ना फेरना.
अजनबी ही बन के मुझे दुआ सलाम कर जाना."

निक्की ने हमें मेसेज पढ़ कर सुनाया और फिर एक मेसेज टाइप करने लगी.

निक्की का मेसेज
"
हम मरकर भी दिखा देगे तुम्हारे लिए.
क्या तुम्हे फिर भी ना हम पर प्यार आएगा.
जब जलाया जाएगा हमें तुम्हारे सामने.
क्या तब भी तुम्हारा दिल आँसू रोक पाएगा."

निक्की ने टाइप किया हुआ मेसेज हमें पढ़ कर सुनाया. लेकिन मैने उसे मेसेज सेंड करने से रोकते हुए कहा.

मैं बोला "ये मेसेज पढ़ कर वो टूट जाएगी. उसे आप कुछ भी कहती रहिए वो यू ही हँस के जबाब देती रहेगी. मगर मेरे मरने की बात वो नही सह सकेगी. ये मेसेज रहने दीजिए."

निक्की बोली "मैं भी यही चाहती हूँ कि, उसका दर्द बाहर निकले. ताकि कम से कम प्रिया को उसके प्यार का अहसास हो. मैं दावे के साथ कहती हूँ. इस मसेज के जबाब मे उसका कॉल आएगा."

इतना बोल कर निक्की ने बिना मेरी कोई बात सुने मेसेज सेंड कर दिया. उसका कहना सही ही निकला. अभी मेसेज गया ही था कि, नये वाले मोबाइल पर कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाते ही कीर्ति भड़क भड़क पड़ी. वो उस समय रोते हुए कह रही थी.

कीर्ति बोली "मैने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा. ये तुम मुझसे किस बात का बदला ले रहे हो. आख़िर मेरी ग़लती क्या है. मैं तुम्हें अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती हूँ. क्या यही मेरी ग़लती है.".

कीर्ति का आँसुओं और गुस्से से भरा ये रूप देख कर, मेरी तो बोलती ही बंद हो गयी. मुझसे उसकी इस बात का कोई जबाब देते ना बना. जब मैं चुप रहा तो वो फिर बोली.

कीर्ति बोली "चुप क्यो हो. कुछ बोलते क्यो नही. यदि ये मेरी ग़लती है तो, तुम मुझे अपने हाथ से जहर दे दो. मैं मर जाउ फिर तुम्हे जो करना है. तुम करते रहना."

लेकिन अभी भी मुझसे कुछ कहते नही बन रहा था. निक्की ने मेरी ऐसी हालत देखी तो उसने पास पड़ी नोट बुक मे कुछ लिखा और वो कीर्ति से बोलने को कहा. मैने वही कीर्ति से कह दिया.

मैं बोला "तुम रो क्यों रही हो. तुम्हे तो खुश होना चाहिए. मेरे जैसे बुद्धू से तुम्हारा पिच्छा छूट गया. अब तुम्हे मुझको और नही झेलना पड़ेगा. तुम तो मेरे जाने से बहुत खुश थी. मेरे कॉल करने और मेसेज करने से भी तुम्हारी नींद नही खुल रही थी, तो अब क्यो जाग गयी और ये क्यो आँसू बहा रही हो."

मेरी बात सुनकर कीर्ति का गुस्सा शांत हो गया मगर उसके आँसू अभी भी बह रहे थे. उसने शायद ये समझा कि मैं उसकी बात को लेकर उस से नाराज़ हूँ. वो मुझे समझाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली "जान, तुम्हारी कसम खाकर कहती हूँ. तुम्हारे जाने से मेरी जान निकल रही थी. मैं अपने आँसू नही रोक पा रही थी. इसलिए चाह कर भी तुम्हारा कॉल नही उठा सकी और ना ही तुम्हारे मेसेज का रिप्लाइ कर सकी. लेकिन इसमे मेरी ग़लती क्या है. तुम ही तो कह रहे थे कि तुम्हे प्रिया से प्यार हो गया है. इसके बाद मेरे पास बोलने को कुछ बचा ही नही था."

मैं बोला "मैने कहा और तुमने मान लिया. ये भी पुछ्ने की ज़रूरत नही समझी कि मैने तुम्हारे साथ धोका क्यो किया."

अब कीर्ति के आँसू थम गये थे. उसने कहा.

कीर्ति बोली "इसमे धोका कैसा जान. धोका तो तब होता, जब तुम्हारे दिल मे प्रिया के लिए प्यार होता और तुम ज़बरदस्ती मेरे साथ जुड़े रहते. तब ना तो तुम खुद खुश रह पाते और ना ही मुझे खुश रख पाते."

मैं बोला "मुझे तेरी इतनी बड़ी बड़ी बात समझ मे नही आती. मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ कि तुझे मेरे जाने से कभी कोई फरक नही पड़ता है. तू जब देखो तब मुझे हंसते हंसते अपने से दूर कर देती है. लेकिन अब मैं तेरे उपर बोझ नही बनना चाहता. जब तुझे मेरे जाने से कोई फ़र्क नही पड़ता तो, अब मैं भी तेरे साथ रहना नही चाहता हूँ. तू अब फोन रख, मुझे सोना है."

कीर्ति बोली "ये कैसी बात कर रहे हो जान. तुमने खुद ही मुझे नींद से जगा कर प्रिया की बात बताई और अब खुद ही इस बात को लेकर मुझ पर गुस्सा कर रहे हो. गुस्सा तो मुझे होना चाहिए कि, जब ऐसा कुछ नही था तो, फिर मुझे बेमतलब इतना रुलाया क्यों. जब देखो तब मुझे बेवजह रुलाते रहते हो."

मैं बोला "मुझे कुछ नही सुनना. अब तू फोन रख, मुझे नींद आ रही है. मुझे सोना है."

कीर्ट बोली "नही, अब मैं ना तो फोन रखुगी और ना ही तुम्हे सोने नही दुगी. अब मैं तुम्हारी कोई बात नही मानूँगी. अब मैं वो ही करूगी. जो मेरा दिल करेगा."

मैं बोला "अपनी मीठी मीठी बात अपने पास रख. मुझे सोना है और अब मैं फोन रख रहा हूँ."

कीर्ति बोली "तुम फोन रख कर देखो. मैं भी देखती हूँ, तुम कैसे फोन रखते हो. यदि तुमने फोन रखा तो मुझसे बुरा कोई नही होगा."

मैं बोला "तुझसे बुरा कोई है भी नही. देख रात के 3 बाज रहे है. मुझे सच मे सोना है. यदि अभी भी नही सोया तो सुबह मेरी नींद नही खुल पाएगी. अब इसके बाद भी तू मुझे सोने नही देना चाहती है तो, मैं नही सोता हूँ."

कीर्ति बोली "ओके एक शर्त पर मैं फोन रखुगी कि, तुम सुबह उठते ही सबसे पहले मुझे कॉल करोगे."

मैं बोला "मुझे मंजूर है. अब फोन रख."

कीर्ति बोली "अरे ऐसे कैसे रखूं. पहले मेरी किसी तो दो."

मैं बोला "ओके ये ले तेरी किसी. मुऊऊऊहह."

कीर्ति बोली "आइ लव यू जान. मुऊऊुुउऊहह."

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया. उसके फोन रखने के बाद निक्की ने कहा.

निक्की बोली "देखिए अब सब ठीक हो गया है. दोबारा कुछ भी हो पर उस लड़की का दिल मत दुखाना. वो लड़की सच मे आपसे सच्चा प्यार करती है."

मैं बोला "मैं जानता हूँ लेकिन जिसके लिए ये सब कुछ किया. वो तो कुछ बोल ही नही रही है."

ये कह कर मैं प्रिया की तरफ देखने लगा. मेरे साथ साथ निक्की भी अब उसे ही देख रही थी. प्रिया थोड़ी देर चुप रही और फिर अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहने लगी.

प्रिया बोली "ओके मैं भी मानती हूँ कि, वो तुमसे सच्चा प्यार करती है. लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नही है कि, मेरा प्यार तुम्हारे लिए ख़तम हो गया या कम हो गया है. तुम मेरा पहला प्यार हो और मैं चाह कर भी तुम्हे नही भुला सकती. मगर अब मैं तुम दोनो के प्यार के बीच मे नही आउगि."

निक्की बोली "गुड, ये हुई ना कुछ बात. ओके तो अब मैं चलती हूँ. मुझे भी सुबह जल्दी उठना है. क्या तू नही चल रही."

प्रिया बोली "तू चल, मैं अभी आती हूँ."

निक्की बोली "ओके गुड नाइट. अब फिर से कुछ लफडा मत करना."

प्रिया बोली "नही अब कोई लफडा नही होगा. गुड नाइट."

फिर निक्की चली गयी लेकिन मुझे प्रिया के रुकने की वजह समझ मे नही आ रही थी. वो कुछ देर रुकने के बाद बोली.

प्रिया बोली "मैं सच मे तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ. मैं तुम्हे कभी भुला नही पाउन्गी. मुझे समझ मे नही आ रहा कि मैं क्या करूँ."

ये कहते हुए वो रोने लगी. वो मेरे पास ही बैठी थी. मैने उसे अपने गले लगाया तो मुझसे लिपट कर रोने लगी. मैने उसके आँसू पोन्छे और उस से कहा.

मैं बोला "क्या मैने तुमसे कहा है कि, मैं तुमसे प्यार नही करता. मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ और बहुत ज़्यादा प्यार करता हूँ. तभी तो मैने तुमको समझाने के लिए उसका लड़की का दिल तक दुखा दिया. लेकिन हमारा प्यार दोस्ती से आगे नही जा सकता. मैं हमेशा तुम्हारा दोस्त बनकर रहूँगा.

लेकिन प्रिया पर मेरी बात का कोई असर नही पड़ रहा था. वो अपने आँसू रोकने की कोशिश कर रही थी. मगर रोक नही पा रही थी. मैं भी चाहता था कि, वो दिल खोल कर रो ले. ताकि उसके दिल का बोझ हल्का हो जाए. मैं इस बात को अच्छे से समझता था कि, जिसे वो अपना पहला प्यार समझ रही है. वो प्यार नही सिर्फ़ एक आकर्षण है.

इस दौर से मैं भी गुजर चुका था. जब मैं शिल्पा के लिए अपने आकर्षण को अपना पहला प्यार समझता था. लेकिन जब मुझे कीर्ति से प्यार हुआ. तब मुझे समझ मे आया कि प्यार क्या चीज़ होती है और जिसे मैं अपना पहला प्यार समझ रहा था. वो सिर्फ़ मेरा आकर्षण था. मेरा प्यार तो कीर्ति थी.

जब प्रिया के आँसू कुछ कम हुए तब मैने उसका मन हल्का करने के लिए उस से कहा.

मैं बोला "प्रिया एक बात बोलू."

प्रिया बोली "क्या."

मैं बोला "अभी इस कमरे मे हम दोनो अकेले है. तुमने कहा था कि जब मैं तुम्हारे साथ अकेले रहुगा. तब तुम मुझे बताओगी कि गर्लफ्रेंड बाय्फ्रेंड अकेले कमरे मे क्या करते है. अब हम दोनो अकेले है, अब तुम्हारा क्या इरादा है."

मेरी बात सुनकर प्रिया हँसे बिना ना रह सकी. उसने मेरे सीने मे मुक्का मारते हुए कहा.

प्रिया बोली "तुम बहुत शैतान हो. मुझे नही सीखना कुछ. जाकर अपनी गर्लफ्रेंड से सीखो. वही तुम्हे सब सिखाएगी."

मैं बोला "तुम भी तो मेरी गर्लफ्रेंड हो. तुम ही सिखा दो ना."

प्रिया बोली "मेरे साथ ज़्यादा मस्ती करने की कोशिश मत करो. यदि फिर से मेरा इरादा बदल गया ना, तो फिर मुझे समझते रह जाओगे."

मैं बोला "ओके मस्ती नही करता. लेकिन ये बताओ तुम इतने छोटे कपड़े क्यो पहनती हो. जिस से तुम्हारा पूरा शरीर नज़र आता है."

प्रिया बोली "मैं तो बचपन से ही ऐसे कपड़े पहनती हूँ. मुझे सलवार सूट पहनना पसंद नही है."

मैं बोला "मैने तो तुम्हे अभी तक फ्रॉक और स्कर्ट टॉप के अलावा किसी और ड्रेस मे देखा ही नही है. वो भी तुम बहुत छोटे पहनती हो."

प्रिया बोली "मुझे ये ही अच्छे लगते है. मैं जीन्स भी कम ही पहनती हूँ."

मैं बोला "लेकिन अब तुम बड़ी हो गयी हो. तुम्हे यदि ये कपड़े ही पसंद है तो, तुम ये ही पहनो मगर थोड़े बड़े पहनो."

प्रिया बोली "क्या तुम्हे मेरा ये कपड़े पहना पसंद नही है."

मैं बोला "मेरी पसंद नापसंद की बात नही है. मैं बस ये चाहता हूँ कि, तुम जैसी भोली भाली लड़की को, कोई लड़का सिर्फ़ इसलिए पसंद ना करे, क्योकि तुम सेक्सी दिखती हो. बल्कि इस लिए पसंद करे, क्योकि तुम्हारे अंदर एक सुंदर सा प्यार भरा मन है."

प्रिया बोली "अब कोई मुझे पसंद करे या ना करे मुझे कोई फरक नही पड़ता. फिर भी तुम्हारी बात मैं ज़रूर मानूँगी और आगे से ऐसे छोटे कपड़े नही पहनूँगी."

मैं बोला "ये हुई ना कोई बात. अब ज़रा रूको मैं तुम्हारा बर्थ'डे गिफ्ट तो देख लूँ कि तुमने मुझे गिफ्ट मे क्या दिया है."

ये कहते हुए मैं उसके पास से उठा और उसका गिफ्ट नीचे गिरा हुआ गिफ्ट उठाने लगा. अपने गिफ्ट को नीचे पड़ा देख प्रिया ने कहा.

प्रिया बोली "मैने तुम्हे इतने प्यार से गिफ्ट दिया और तुमने मेरा गिफ्ट नीचे फेक दिया."

मैं बोला "जैसा तुम सोच रही हो, ऐसी बात नही है. वो देखो सारे गिफ्ट वही रखे है. सिर्फ़ तुम्हारा गिफ्ट ही नीचे पड़ा है. हुआ ये था कि, मैं जब गिफ्ट देखने बैठा तो, सब से पहले मेरा मन तुम्हारे गिफ्ट को देखने का किया. मैं तुम्हारा गिफ्ट खोल ही रहा था. तभी अचानक मेहुल का कॉल आ गया और गिफ्ट मेरे हाथ से छूट कर नीचे गिर गया. मैं मेहुल से बात करता रहा और फिर जैसे ही उस से बात ख़तम हुई, तुम आ गयी."

मेरी बात सुनकर प्रिया की नाराज़गी कुछ कम हुई और मैं उसका गिफ्ट खोलने लगा. मैने उसका जिफ खोल कर देखा तो, उसे देखते ही मैं अपने आँसू ना रोक पाया. मेरी आँखों से झर झर आँसू गिरने लगे.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,483,090 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 542,429 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,224,690 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 926,256 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,643,667 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,071,988 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,936,379 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,008,828 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,013,695 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 283,135 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 7 Guest(s)