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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
पता नहीं क्यों पर दिल बहुत खुश हो गया था ना जाने कितनी देर से उसको अपनी बाहों में लिए खड़ा था मैं न वो कुछ बोल रही थी न मैं कुछ , बस वो खामोशिया ही थी जो हमारी सांसो की ताल को पहचान रही थी आज पहली बार किसी से यु दोस्ती की थी किसी ने कबूल किया था मुझे कुछ ऐसा लग रहा था की शब्द नहीं हैं बताने को पर जब बहुत देर हो गयी तो पिस्ता धीरे से मेरी बाहों से खिसक गयी और बोली- पूरी रात क्या खड़े खड़े गुजारनी हैं
मैं- दिल नहीं कर रहा तुमसे दूर होने को
वो- इतने पास भी ना आओ की फिर तकलीफ हो दूर जाने में
मैं- दूर किसलिए जाना हैं
पिस्ता- कभी न कभी तो जाना ही होगा
मैं- तब की तब देखेंगे
वो- अच्छा तो मैं चलती हूँ,
मैं- कहा
वो- नींद बहुत आ रही हैं जाने दो वैसे भी अब तो मुलाक़ात होती ही रहेगी
मैं- पर जो मेरी नींद उड़ गयी है उसका क्या
वो- जिसने नींद उड़ाई है उस से पूछो मुझे क्या पता
मैं- अच्छा जी , ज़ख्म देने वाला ही मरहम का पता दे रहा हैं
पिस्ता मुस्कुराते हूँए- बाते बड़ी अच्छी करते हो तुम
मैं- और तुम कितनी अच्छी हो बस मैं जनता हूँ
वो- अभी मत बोलो ये अभी टाइम लगेगा मुझे जानने में
मैं- तो फिर करती क्यों नहीं जान पहचान , रुक जाओ ना तुम चली जाओ गी तो फिर मेरा मन नहीं लगेगा
वो- इतने बेसब्रे न बनो, कही मेरा नशा चढ़ गया तो फिर मुश्किल होगी तुम्हे
मैं- नशे का इलाज करने को तुम हो न
पिस्ता ने अपने आँचल को सही किया और चल पड़ी घर की तरफ बिना कुछ कहे मुझे पता था अब नहीं रुकेगी ये बाकी की रात बस अब इसके बारे में सोचते ही कटेगी वो कुछ दूर गयी ही थी की मैंने पुछा फिर कब मिलोगी
वो- जिसको मिलना होता हैं वो पूछते नहीं मिल ही लिया करते हैं मैं कौन सा 90 कोस दूर हूँ घर का पता तुम्हे मालूम हैं जब जी करे आ जाना बाकि राहो में कही न कही टकरा ही जाना हैं , वैसे मैं सुबह ठीक 5 बजे मंदिर वाले नल पर जाती हूँ पानी भरने की लिए क्या पता तुम्हारी भी कोई दुआ कबूल हो जाये इतना कह कर बंदी चल पड़ी फिर न देखा मुद कर उसने
कुछ तो बात थी इस लड़की में जो इतना भा गयी थी मुझे उसकी वो बेतकल्लुफी भरी बाते बड़ी अच्छी लगती थी मुझे मेरा जी तो चाह रहा था की रोक लू उसको पर अभी नया नया नाता जोड़ा था तो जल्दबाजी भी ठीक नहीं थी कलाई घडी पर टाइम देखा और सो गया सुबह जल्दी जो उठाना था पर अपनी किस्मत भी आजकल कुछ ज्यादा ही आँख मिचोली खेलने लगी थी आँख खुली ही नहीं , जब नींद टूटी तो सूरज सर पर खड़ा था जल्दी से भगा उधर से और सीधा आकर बाथरूम में घुस गया तैयार होने के लिए पर आज तो साली क़यामत ही हो गयी ,
सोचा नहीं था की ये सब ऐसे अचानक हो जायेगा, दरअसल जल्दबाजी में मैंने ध्यान नहीं दिया दरवाजा थोडा सा खुला था तो मैं सीधा अन्दर घुस गया जबकि अन्दर चाची नाहा रही थी पानी की बूंदों स सरोबार उनके संगमरमरी जिस्म पर मेरी भूखी नजरे जो रुकी तो अपने आप को उस नज़ारे को निहारने से ना रोक सका गोर जिस्म पर बैंगनी ब्रा- पेंटी क्या खूब लग रही थी गीले होने के कारण बिलकुल बदन से चिपक गयी थी , उधर मेरे अचानक से अन्दर घुस जाने से चाची भी सकपका गयी थी हमारी हालत लगभग एक जैसे ही थी उन्होंने जल्दी से अपने बदन पर एक तौलिया लपेटा जो बस नाम मात्र से ही उनके जिस्म को ढक पाया था
माफ़ करना चाची पता नहीं था आप हो मैं भगा वहा से पीछे से वो गालिया बकती रही पर उनको इस तरह से देख कर मजा बहुत आया लंड में तो जैसे तूफ़ान आ गया था पर कॉलेज जाना था तो बस पंहूँचा उधर दरवाजे पर ही नीनू के दर्शन हो गए वो भी बस आई ही थी दुआ सलाम के बाद उसने पुचा आजकल बहुत भागे भागे से लगते हो क्या चक्कर हैं
मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही
वो- थोडा ध्यान हम पर भी दो
मैं- हा हा और अन्दर चल दिया
जैसे तैसे करके टाइम बीता पर फिर नीनू को मैथ का चैप्टर करवाना था तो उसमे लग गए स्कूल तीन बजे छूटता था पर 5 कब बज गए पता ही नहीं चला मैंने कहा आज तो देर हो जाएगी तुम्हे वो बोली कोई बात नहीं मैं चली जाउंगी, तभी उसने अपने बैग से एक टिफिन निकला और मुझे दे दिया
क्या हैं इसमें पुछा मैंने
वो-खोल कर देख लो
मैंने टिफ़िन खोला तो उसने ४-५ लड्डू थे
तुम्हारे लिए हैं कहा उसने
शुक्रिया मैंने कहा , पर किस ख़ुशी में
नीनू- मेरे भाई की डेल्ही पुलिस में नोकरी लग गयी हैं तो कल इसी ख़ुशी में बांटे थे थोड़े तुम्हारे लिए भी ले आई
मैं लड्डू खाते हूँवे- बधाई हो तुम्हे , पर टिफिन तुम्हे कल ही वापिस मिलेगा क्योंकि इतने लड्डू अभी के अबी तो खा नहीं पाउँगा
नीनू हँसते हूँए- हा बाबा, हां ले जाओ और जब जी करे तब वापिस कर देना
शाम तो हो ही गयी थी मैंने सोचा की इसको इसके घर के पास तक छोड़ आता हूँ, वैसे भी कच्चे सुनसान रस्ते से जाती है तो उसके मन करने के बाद भी मैं उसके साथ हो ही लिया साइकिल चलते हूँए बार बार जब वो घंटी बजाती थी तो मुझे बहुत प्यारी लगती उसकी वो हरकत जब उसका घर थोडा पास रह गया तो मैंने कहा अब तुम जाओ मैं वापिस चला वो तो बोल रही थी की चाय पानी पी कर ही जाना पर मैंने कहा फिर कभी और मोड़ दी अपनी साइकिल गाँव की ओर तभी याद आया की आज तो क्रिकेट मैच होना था तो मैंने शॉर्टकट लिया नहर की तरफ और पास वाले जंगल के परली तरफ से होते हूँए ग्राउंड की तरफ चल दिया
नीनू के चक्कर में मैच की बात तो ध्यान से ही निकल गयी थी तेजी से पैडल मारते हूँए मैं चले जा रहा था और फिर जैसे ही जंगल को ख़तम करके मेन सड़क पर आया मेरे साइकिल वाही पर रुक गयी ..
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हुआ पर सामने तो वो ही थी , तुम यहाँ क्या कर रही हो पूछा मैंने
पिस्ता- क्यों, जंगल क्या मोल ले लिया हैं तुमने जो मैं यहाँ पर नहीं आ सकती बताओ कौन सा गुनाह कर दिया तुम्हारी इस मिलकियत में आ कर
मैं- अरे वो बात नहीं है, ऐसे ही चौंक गया तुम्हे इधर देख कर
वो- दरअसल माँ के साथ लकडिया काटने आई थी एक जोड़ी तो माँ लेकर चली गयी मैं भी बस जा ही रही थी की तुम आ धमके वैसे इस समय तुम किधर से आ रहे हो
मैंने सोचा नीनू का जिक्र करना ठीक नहीं होगा तो झूठ बोलते हूँए कह दिया की बस ऐसे ही तफरी मार रहा था जंगल का शांत वातावरण अच्छा लगता है इधर को आ जाया करता हूँ ,
वो- चलो ठीक ही हुआ तुम मिल गए एक काम करो इन लकडियो को अपनी साइकिल पर लाद लो वर्ना इनका बोझ मुझे धोना पड़ता
मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात हैं अभी लो और लाद ली लकडिया
मैं- आज रात को खेत में आओगी क्या
वो- क्यों, मेरा कोई घर बार नहीं हैं क्या जो रातो को भटकती फिरू तुम्हे मिलना हैं तो तुम आओ
मैं- खेत के सिवाय कहा मिल सकते है तुम्हे बता दो
वो- देखो मिल तो अब भी रहे हैं ना , थोड़ी देर इधर ही रुक जाते है करलो तुम्हे जो बाते करनी हैं
मैं- पर यार रात को जब तक तेरा चेहरा न देखूंगा तो नींद नहीं आएगी
वो- तो मैं क्या तुम्हारे लिए नींद की गोली लेकर आउंगी और हसने लगी
मैं- अब आदत हो गयी हैं तुम्हारी
वो- चार दिन हूँए न हमे मिले आदत भी हो गयी वैसे मेरा भी मन तो है तुमसे मिलने का बाते करने का पता नहीं क्यों तुमसे बात करना सुकून सा देता है मुझे पर क्या है न की मैं ठहरी लड़की ऊपर से करेक्टर ढीला अगर आज खेत में आई तो माँ शक कर लेगी फिर बिन बात का कलेश होगा घर में तो मेरी भी मज़बूरी हैं
मैं- तो फिर ठीक हैं सह लेंगे तुम्हारी जुदाई किसी तरह से हम
वो- तुम यार हो चीज़ कमाल के दो दिन से ही तो मिली हूँ तुमसे पर लगता है की बरसो की पहचान हैं अब तुम परेशान हो तो फिर मैं भी परेशान करना पड़ेगा कुछ न कुछ क्या तुम मेरे घर आ सकते हो रात में
मैं- पागल है क्या किसी ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी
वो- कल तो बड़ी बड़ी बात कर रहे थे की दोस्ती की लिए कुछ भी कर दूंगा आज ही घबरा गए तो फिर क्या दोस्ती निभाओगे
मैंने उसकी साइकिल रोकी और उसकी कमर में हाथ डालकर उसको अपने आगोश में भर लिया और उसकी कजरारी आँखों में आँखे डालते हूँए कहा पता नहीं कैसा जादू सा कर दिया है तूने मुझ पर देखा तो पहले भी था तुझे इन राहो में पर हाथ रख मेरे दिल पर और महसूस कर इन दोड़ती धडकनों को बस आरज़ू लिए हैं तेरे दीदार की, तू जो हैं न अब तू नहीं हैं तू बस मैं हूँ तेरी महकती साँसों की लत सी हो गयी हैं मुझे काश मैं शब्दों में ढाल पाता की मेरी साँसों की सरगम तुझसे क्या कहना चाहती हैं हाथ जो थामा हैं तेरा अब जुदा न हो पाउँगा तुझसे
उसके बाद फिर हमारी कुछ बाते ना हूँई आँखों ने आँखों को अपनी भाषा में जो कहा बात दिल तक पहूँच ही गयी थी
उसने भी मेरी बाहों से निकलने की कोई कोशिश नहीं की न उसको किसी का डर था न मुझे किसी का डर हाथ जो थाम लिया था उसका अब जो हो देखा जाये,
वो- अब छोड़ो भी मुझे कब तक ऐसे ही बाँहों में भरे रहोगे
मैं- तुम कहो तो उम्र भर
वो- पर अभी तो छोड़ दो देर हो रही हैं घर पर ढेर सारा काम पड़ा हैं तो फिर कुछ खट्टी-मिट्ठी बाते करते हूँए हम लोग घर आ गए उसके घर के बाहर लकडिया रखवाई मैं वापिस मुदा ही था की उसने कहा सुनो मैं ऊपर चोबारे में सोती हूँ , दूसरी तरफ गली में सीढ़ी लगा दूंगी इंतज़ार करुँगी तुम्हारा आ जाना याद से वर्ना मुझे भी नींद नहीं आएगी
ये बोलकर जो तिरछी निगाहों से देखा जो उसने कसम से दिल साला टुकड़े टुकड़े हो गया मैंने कहा 11 बजे तक पक्का आ जाऊंगा
घर गया तो तगड़ी वाली क्लास लगी आज पूरा दिन से लापता था घर का कोई काम किया नहीं था तो काफ़ी देर तक बस ताने ही सुनता रहा पर अपना ये रोज का काम था तो कोई दिक्कत नहीं थी हाथ मुह धोकर थोड़ी देर किताबो पर नजर मारी फिर खाना- वाना खा लिया था प्लान ये था की खेत पर जाऊँगा और फिर उधर से ही पिस्ता के घर आज से पहले कभी ऐसी गुस्ताखी की नहीं थी तो दिल थोडा घबरा भी रहा था पर जाना था तो जाना ही था
बातो बातो में नो बज गए थे मैंने करी तैयारी घर से निकल ही रहा था की चाची ने टोक दिया बोली कहा जा रहे हो,
मैं- जी खेत में सोने जा रहा हूँ,
चाची- उसकी जरुरत नहीं हैं, तुम्हारे चाचा चले गए है, बोल रहे थे की तुम बस पढाई पर ध्यान दो
उनकी ये बात सुनकर मेरे तो हुआ हाल बुरा , कहा तो प्लान था की दोस्त से मिलके बाते करेंगे कुछ अपनी कहूँगा कुछ उसकी सुनूंगा पर अब करू तो क्या अब पड़े न चैन मुझे मेरा करार तो पिस्ता ले गयी , पर वादा तो वादा करीब 11 बजे घर कमरे से निकला मैं लाइट बंद घर अँधेरे में डूबा सब लोग सोये पड़े थे आहिस्ता से मेन गेट को खोला सुनसान गली में फैला सन्नाटा थोडा डर भी लग रहा था पर अब तो जाना ही था घर से निकल कर चोरी छिपे चल पड़ा उसके घर की तरफ दो गालिया पार की और पहूँच गया उसके घर की पिछली साइड में बस अब थोड़ी देर और फिर उसको भर लेना था अपनी बाहों में .
दिल में हजार अरमान लिए मैं पहूँच गया पिछली गली में पर जाकर देखा तो सारे अरमानो पर पानी फिर गया गली में सीढ़ी थी ही नहीं अब हूँई जान को मुश्किल करे तो क्या करे आवाज दे सकता नहीं काफ़ी देर हो गयी इंतज़ार करते करते ऊपर से ये डर की कोई पेशाब करने या किसी और काम से घर से बाहर आ न निकले पकडे गए तो फिर आई जान गले में पर करू भी तो क्या करू फिर सोचा की मिलना तो हैं ही अब जो हो देखा जाये पर जाया कैसे जाए ऊपर तक थोडा घूम फिर कर देखा तो पास में टेलीफोन की लाइन का खम्बा था अगर उस पर चढ़ सकू तो काम बन जाये तो किसी तरह से मेहनत करके पिस्ता की दीवार पर चढ़ ही गया उसने बताया था की चोबारे में मिलेगी तो दबे पांव पहूँच गया
दरवाजा खुला हुआ ही था बत्ती बंद बस पंखे की ही आवाज आ रही थी मतबल की सो रही थी थोडा गुस्सा भी आया की इसके लिए इतने पापड़ बेल कर यहाँ तक आया ये सो रही हैं मैंने दीवार पर बल्ब का स्विच तलाशा और लट्टू जलाया पड़ी जो नजर यार पर दिल को करार आया दीन दुनिया से बेखबर नींद की बाँहों में पड़ी थी वो आहिस्ता से जगाया उसे हडबडाते हूँए उठी और पूछा कब आये और कैसे आये मैंने कहा तुम्हारी सीढ़ी तो मिली नहीं तो खम्बा चढ़ कर ही आया हूँ , जम्हाई लेते हूँए वो बोली पता नहीं कैसे नींद लग गयी उसने चोबारे का दरवाजा बंद किया कुण्डी लगायी और आ गयी पास मेरे उसके गुलाबी गाल और भी गुलाबी हो गए थे मंद मंद मुस्कुराते हूँवे कहा उसने यकीन नहीं होता तुम यहाँ पर
मैं- अब तुमने बुलाया तो आना ही था
वो- अच्छा किया बड़ी याद आ रही थी तुम्हारी सच कहू तो सपना भी तुम्हारा ही आ रहा था
मैं- अच्छा जी
मैं- उसका हाथ अपने सीने पर रखते हूँए, देख यार मेरी धडकनों को कितना तेज भाग रही हैं
वो- और जो मेरे चैन को चुरा लिया हैं तुमने उसका क्या
मैंने उसको अपनी और खीच लिया वो मेरी गोदी में सर रख कर लेट गयी चुन्नी सरक गयी साइड में उसके उभारो का नजारा मेरी आँखों में नशा भर रहा था नजरे थम सी गयी थी मैंने अपना हाथ उसके पेट पर रख दिया और सहलाने लगा उसके जिस्म में हरकत होने लगी क्या देख रहे हो पुछा उसने
मैं- तुम्हे
वो- इस तरह से न देखो मुझे
मैं- तो किस तरह से देखू तुम्हे
वो-खैर जाने दो ये बताओ की डर तो नहीं लगा तुम्हे
मैं- डर कैसा कोई चोरी थोड़ी न कर रहा हूँ
वो- चोरी ही तो है देखो चोरी छिपे तुम मुझसे मेरे घर मिलने आ गए हो
मैं अपने दुसरे हाथ से उसके बालो को सहलाते हूँए, तुम भी यार कैसी बाते लेकर बैठ गयी हो
वो- तुम्हे कैसी बाते पसंद हैं
मैं- मत पूछ हाल मेरे दिल का कर सकती है तो महसूस कर ले
वो- एक बात पूछु,
मैं- हां
वो- कभी किस किया है
मैं- किया तो नहीं पर तुम्हे कर लूँगा
वो हँसते हूँए, दीखते हो उतने शरीफ हो नहीं तुम
मैं- अब क्या दोस्त को किस्स नहीं कर सकता क्या
वो- कर तो सकते हो पर अभी मेरा मूड नहीं हैं
मैं- तो कब होगा तुम्हारा मूड
वो-मैं क्या जानू
वो मेरी आँखों में देखते हूँए बोली ना जाने क्यों बहुत अच्छा अच्छा सा लग रहा हैं, तुमसे दो दिन की दोस्ती लगती है जैसे की उम्र भर पुरानी हो, सच्ची कहती हूँ तुम्हारे जैसा ही एक दोस्त ढूंढ रही थी जिस से अपने दिल की बाते कर सकू,
मैं – मैं भी तुम्हे ही ढूंढ रहा था , जिस से दो चार बाते कर सकू तुम्हे पता हैं एक खालीपन सा हैं मेरे अन्दर उस दिन जब खेत में तुमसे बाते की तभी ना जाने क्यों मुझे लगा की तुम एक बेहतर दोस्त हो सकती हो
वो- पर मैं तो बदनाम हूँ, कभी सोचा हैं की मेरे जैसी लड़की के साथ तुम्हारा नाम जुड़ेगा तो .......
मैं- देख यार, तेरी अपनी ज़िन्दगी हैं जो तू करती है या किया हैं वो तू जाने, मैं क्या कर सकता हूँ तू रुकेगी तो अपनी मर्ज़ी से और इर कमिया तो सबमे होती है मुझे देख सबको लगता है इसकी लाइफ मजे में है सब सेट है पर हकीकत में घर में दो कोडी की भी औकात नहीं है मेरी जिसने जब चाहा सुना दिया कभी ये काम करो कभी वो काम करो , चलो काम तक तो ठीक है पर कोई नहीं समझता वहा मुझे बस रोटियों के टुकड़े डाल दिए और हो गया
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
पिस्ता- तुम क्यों टेंशन लिया करते हो अब मैं हूँ न तुम्हारी दोस्त जो भी दिल में हैं मुझे बता सकते हो तुम्हारी मेरी खूब जमने वाली हैं
मैं – क्या ख़ाक जमेगी , कब से आया हूँ इधर, कम से कम पानी ही पूछ लो
वो- पानी क्या तुम्हारे लिए तो जान दे दू, तुम भी यार कैसी बाते करते हो पेप्सी चलेगी क्या
मैं- तुम्हारे घर आये हैं चाहे तो जहर पिला दो वो भी कबूल हैं
वो- अभी आती हूँ, दो मिनट में
थोड़ी देर बाद वो आई और पेप्सी मुझे देते हूँए बोली लो मैंने कहा ऐसे ना पियूँगा
वो- तो फिर कैसे पियोगे
मैं- तुम्हारे होटो से पिला दो
वो- पक्के कमीने हो तुम, सीधा क्यों नहीं कहते की किस करना है तुमको
मैं- किस को करूँगा ही अब थोडा बहुत हक तो हैं ही तुम पर
वो- क्या तुम थोड़ी जल्दबाजी नहीं कर रहे हो
मैं- तेरी मर्ज़ी है यार, तेरा साथ ही काफी है तो उसने कहा आजाओ फिर करते हैं
मैं- सच्ची में
वो- और क्या मजाक कर रही हूँ अब कम से कम किस तो दे ही सकती हूँ तुम्हे
हम दोनों एक दुसरे के बहुत पास आ गये थे बहुत पास उसने अपने होटो पर जीभ फेरी मैं भी थोडा सा आगे बढ़ा लबो ने लबो को छु लिया इतने कोमल होठ उसके जैसे रेशम के ही हो वो गीलापन लिए हूँए मीठा सा स्वाद मेरे मुह में घुलता सा चला गया मैंने अपने हाथो से उसके चेहरे को थोडा सा ऊपर को किया और चूमने लगा उसका निचला होठ मेरे होटो में दबा हुआ था उसने अपनी आँखे बंद कर ली जब तक साँस न फूल गयी मैं उसके होटो को चूसता ही रहा धड़कने बुरी तरह से तेज हो गयी थी हमारी साँस जब टूटने को आई तो हम अलग हूँए
मजा आया पुछा उसने मैं- बहुत और फिर से एक बार उसको किस करने लगा किस करते करते मैंने अपना हाथ उसकी छातियो पर रख दिया और हलके से दबा दिया उसने तुरंत ही मेरा हाथ हटा दिया और बोली कहा न मैंने अभी किस तक ही ठीक है वैसे भी सेक्स मैं अपनी मर्ज़ी से करती हूँ
मैं- बस एक बार हाथ ही तो लगा रहा था
वो- ना
मैं- तो एक बार दिखा ही दो न
वो- तुम्हे मैं मेरी चाहत हैं या मेरे जिस्म की
मैं- तुम्हारी हसरत हैं मुझे
वो- तो फिर अभी रहने दो जब टाइम आएगा मैं खुद चल कर तुम्हारी बाँहों में आउंगी रात बहुत हो गयी है चाहो तो यहाँ मेरे साथ सो जाओ या फिर घर चले जाओ
मैं- थोडा टाइम और बिता लू तुम्हारे साथ
पिस्ता- तो फिर बिस्तर में आजाओ
बाते करते करते आँख कब लग गयी पता ही नहीं चला जब उसने मुझे जगाया तो सुबह के ४.३० हो रहे थे बाहर अँधेरा ही था उसने फटाफट सीढ़ी लगायी और मैं उतर कर भगा घर की और दबे पांव छुपते छिपाते पंहूँचा पर एक नयी मुसीबत इंतज़ार कर रही थी गेट अन्दर से बंद था अब मैं मरा बुरी तरह से घरवालो में से ही किसी ने गेट को अन्दर से बंद किया था अब हूँई टेंशन अन्दर जाऊ तो कैसे जाना बहुत जरुरी वर्ना बैंड बज गया अपना तो
फिर आईडिया लगाया की बहार चबूतरे पर राखी पानी की टंकी पर चढ़ कर छत पर पहूँच जाऊ अपने ही घर में चोरी की तरह जाना पड़ रहा था मज़बूरी जो थी जैसे तैसे करके चढ़ा पर पांव छिल गया तो खून निकल आया दर्द हो वो अलग अपने कमरे में आकर चैन मिला चद्दर ओढ़ी और दुबक गया बिस्तर में आँख खुली घडी पर नजर गयी तो 11 बज रहे थे कमरे से बाहर आया लंगड़ाते हूँए पैर की चोट अब दर्द दे रही थी घर में कोई दिखा नहीं तो मैं छत पर आ गया धुप में बैठ कर मरहम पट्टी कर ही रहा था की चाची आ गयी बड़ी गहरी नजरो से देखा मुझे और बोली
चाची –आजकल तू कुछ ज्यादा ही बड़ा नहीं हो गया हैं
मैं – जी ऐसी तो कोई बात नहीं हैं
वो- तो फिर घर का जवान लड़का रात रात भर घर से बहार रहता है, तू ही बता क्यों कल जब मैं पानी पीने आई तो गेट खुला था तेरे कमरे में बल्ब जल रहा था मैंने सोचा पढाई कर रहा है देर तक चाय पानी पूछ लेती हूँ पर जनाब तो घर पर थे ही नहीं , और ये पांव में चोट कैसे लगी
मेरी चोरी पकड़ी गयी थी मैं सर को झुका लिया और नीचे के तरफ देखने लगा
चाची- नजरे न फेरो मुझसे और सच सच बताओ वर्ना मैं तुम्हारी मम्मी को बता दूंगी फिर जो होना हैं तुम जानते ही हो
मैं- चाचीजी , वो दरअसल मैं कल अपने एक दोस्त से मिलने गया था उसके घर पर कल विडियो आया था तो बस फिलम देखने चला गया था , आने में देर हो गयी
चाची- सच बोल रहा हैं न , या फिर किसी और चक्कर में तो नहीं पड़ गया हैं देख बीटा आजकल जमाना ख़राब हैं हम जो बार बार टोका ताकि करते हैं तो तुम्हे बुरा लगता है पर तुम्हारे भले के ही लिए कहते हैं अगर कल तुम्हारी मम्मी को पता चलता की बेटा रात भर गायब हैं तो फिर कितना गुस्सा करती
मैंने उसने सॉरी बोला और अपना पिंड छुटाया नाहा धोकर घर से बहार निकला तो बिमला के दर्शन हूँए उसने इशारे से घर के अन्दर आने को कहा और मेरे जाते ही मुझसे लिपट गयी और बोली कमीने मेरी आग भड़का कर कहा गायब हो गया था तू, रात भर मैं तड़पती रही तुम्हारा इंतज़ार करती रही की यही पर सोने के लिए आओगे पर तुम आये ही नहीं
मैं- भाभी वो दरअसल पढाई का थोडा सा टेंसन है तो आ नहीं पाया पर आज रात आपकी ही सेवा करनी है कहने के साथ ही मैंने उसकी चूची को कस कर दबा दिया बिमला मेरे लंड को पेंट के ऊपर से ही दबाते हूँए बोली पक्का आ जाना वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, मैंने एक कास कर चुम्मा लिया और वापिस आ गया पिस्ता के चक्कर में बिमला से ध्यान कब हट गया पता ही नहीं चला बिमला के लिए मेरी हवस थी पिस्ता मेरी दोस्त थी
जिंदगी मुझे किस तरह ले जाने वाली थी क्या पता बस जो भी हो रहा था अच्छा लग रहा था खामोश सी मेरी ज़िन्दगी में एक लहर सी आ गयी थी बिमला, नीनू और पिस्ता सब कुछ इतनी तेजी से हो रहा था की विश्वाश ही नहीं हो रहा था की यही मेरी ज़िन्दगी हैं दिल बड़ा खुश था आज बिमला आगे से चल कर अपने आप को मेरी बाहों में परोसने वाली थी इंतज़ार था तो बस रात का जब मैं भी सेक्स का अनुभव ले ही लूँगा शाम को पिस्ता के घर की तरफ खामखाँ दो तीन चक्कर लगा दिए पर उसके दर्शन आज होने ही नहीं थे रात को खाना खा रहे थे की फ़ोन बजा
तो मैंने ही जहमत उठाई दूसरी तरफ जो आवाज सुनी मेरी तो साँस ही अटक गयी पिस्ता का फ़ोन था उसने कहा – आज रात को खेत पर इंतज़ार करुँगी तुम्हारा
मैंने घरवालो की तरफ देखा और कहा – मेरे दोस्त का फ़ोन हैं दिल ने चोर जो था फिर धीमी आवाज में पुछा तुम्हे नंबर कहा से मिला
वो- ढूँढने वाले तो खुदा को भी तलाश कर लेते हैं नंबर क्या चीज़ हैं मैं ९ बजे तक आ जाउंगी कहकर फ़ोन काट दिया
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
उसको बिस्तर पर पटका मैंने उसने बस इतना कहा – अब देर ना करो जल रही हूँ मैं देर न करो मैंने उसकी सुडोल टांगो को फैलाया और अपने लंड को चूत के मुहाने पर सटा दिया हमारी आँखे मिली उसने मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया और मेरे थोड़े से आगे बढ़ते ही मेरे लंड का सुपाडा थोडा सा उसके अन्दर सरक गया उसके बदन ने झटका सा खाया उसने मेरे हाथो को पकड लिया और रुकने का इशारा किया पर शायद मेरे लिए रुकना मुमकिन नहीं था चूत देखते ही मैं खुद पर काबू कर ही नहीं पाता था
मैंने हल्का सा गैप लिया और फिर धीरे धीरे उसपर झुकने लगा उसकी जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ाया और अबकी बार जो तगड़ा वाला धक्का लगाया और लगभग आधा लंड उस गुलाबी चूत के छेद को फैलाते हुए अपना रास्ता बनाते हुए अन्दर को जाने लगा पिस्ता ने अपने दांतों को भीच लिया और अपने बदन को टाइट कर लिया शायद उसको थोडा दर्द सा हो रहा था मेरा लगभग पूरा वजन उस पर पड़ने ही वाला था बस एक या दो धक्को की ही कसर और थी और मैं उसमे पूरी तरह से समा जाता पिस्ता के लब थोडा सा खुल गए थे बिलकुल किसी तजा गुलाब की पंखुडियो की तरह से
मैंने पूरी ताकत से एक और धक्का लगाया और मेरा लंड जड़ तक पिस्ता की टाइट तंग चूत को चीरता हुआ अन्दर को घुस गया उसके होंठो से क करह फूट पड़ी मेरा जिस्म उसके जिस्म से जा टकराया पिस्ता ने कुछ कहने के लिए अपना मुह खोला ही था की मैंने उसकी आवाज को अपने होंठो की कैद में दबा दिया हम दोनों के जिस्मो से गर्मी फूटने लगी थी जो ठंडक पानी में मिली थी वो खो गयी थी करीब ५ मिनट बाद मैंने उसके लबो को अपने शिकंजे से आजाद किया तो वो बोली – उफ्फ्फ्फ़ कितना मोटा है तुम्हारा दर्द हो गया मुझे
मैं- पहली बार करवा रही हो क्या
वो- पहली तो नहीं है पर इतना दर्द तो तब भी नहीं हुआ था जब मैंने अपनी सील तुडवाई थी
मैं- तो अब क्यों दर्द हो रहा हैं
वो-मुझे क्या पता और ऊपर से कितने भारी हो तुम , बोझ से ही मरगयी मैं तो, जरा उठो ना मेरे उपर से
मैं- ना बाबा ना
वो- बस एक बार
मैं- दो मिनट की बात है यार एक बार तुम्हारी मुनिया सेट हो जाये मेरे मुसल के साइज़ के हिसाब से फिर तो मजे ही मजे है
मेरी बात सुनकर पिस्ता बरबस ही मुस्कुरा पड़ी और बोली- ठीक हैं कर लो अपनी मनमानी
मैं उसकी चूची से खेलते हुए बोला- डार्लिंग मनमानी की बात नहीं है तुम तो पहले भी कर चुकी हो फिर क्यों घबराती हो
पिस्ता बोली- हम्म्म्म घबरा कौन कमबख्त रहा हैं बस एक बार थोड़ी एडजस्ट हो जाऊ फिर तुम्हे दिखाती हूँ नज़ारे
उसकी बात सुनकर मैंने अपने लंड को चूत के मुहाने तक खीचा और फिर एक ही झटके में जड़ तक वापिस अन्दर दाल दिया पिस्ता बोलि- आः रे जालिम मार ही डाला रे तूने तो
मैंने अब बिना उसकी बात सुने धीरे धीरे चूत में घस्से मारने शुरू कर दिए पिस्ता की तानी हुई छातिया मेरे लंड के अन्दर बाहर होने की वजह से बुरी तरह से हिल रही थी पिस्ता ने अपनी टांगो को अब ऊपर उठा कर ऍम शेप में कर लिया और मेरे बालो में हाथ फिराते हुए बोली- अब थोडा ठीक हैं अब आएगा मजा और अपनी टांगो को मेरी कमर पर किसी नागिन की कुंडली की तरह से लपेट लिया उसने अपने चेहरे को थोडा सा ऊपर करके मेरे होंतो को आमंत्रण दिया जिसमे मैंने तुरंत ही स्वीकार कर लिया
कुछ ही देर में उसकी चूत लंड के हिसाब से फ़ैल गयी थी और अपनी चिकनी छोड़ने लगी जिस से लंड सरलता से उसकी चूत की सैर करने लगा पिस्ता का सारा थूक मेरे मुहं में घुल रहा था होंठ ऐसे जुड़ गए थे जैसे की किसी ने फेविकोल से चिपका दिया हो दोनों के बदन की समस्त ऊर्जा एक दुसरे से जुड़ गयी थी कमरे में अजीब सी ख़ामोशी थी पर बिस्तर पर तूफ़ान मचा पड़ा था मैं हूँमच हूँमच कर उसकी मचलती जवानी का रसपान कर रहा था योवन का जाम वो मुझे आज परोस रही थी
अब पिस्ता ने खाई पलटी चूत रस से सना हुआ मेरा लंड चूत से बाहर आते ही गुस्से से फेन फ़ना ने लगा पिस्ता ने नजर भर कर उसकी तरफ देखा और अपने बालो को पीछे की तरफ बांधते हुए अपनी लाल जीभ को बाहर निकाला और लंड पर टूट पड़ी चूत के नमकीन पानी को चख कर पिस्ता और भी मादक हो गयी पर उसने ज्यादा देर नहीं चूसा और फिर लंड को चूत पर रख कर उस पर बैठ गयी तो आलम ये था की देखने से लगता की वो मुझे छोड़ रही हैं अपनी गांड को जब वो लंड पर रगडती तो कसम से इतना मजा आ रहा था की क्या बताऊ
हम दोनों की साँसों की रफ़्तार कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी थी जब जब वो उचालती उसकी छातिया मेरे मुह से टकराती तो मैंने उसकी एक चूची को अपने मुह में भर लिया और चूसने लगा बस मेरी इसी हरकत ने उसके अन्दर आग लगा दी पिस्ता की घायल शेरनी की तरह हो गयी उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था ना वो हार मान रही थी ना मैं बस आँखे अड़ गयी थी आँखों से कभी वो ऊपर कभी मैं पता नहीं कहा कहा चूमा मैंने उसको उसने मुझे बिमला को दो तीन बार चोदा था पिस्ता तो एक आग थी
अब उसने अपनी टांगो को बिलकुल सीध कर के लंड को बुरी तरह से कस लिया और मुझ से चिपक गयी उसकी आहे बढती ही जा रही थी इधर मुझे भी महसूस होने लग गया था की मेरी मंजिल बस आने ही वाली है तभी पिस्ता ने अपनी बाहें मेरे इर्द गिर्द कस ली और उसके चूत के होंठ एक दम से फाड़ फाड़ा उठे वहा पर चिकनाई बहुत बढ़ गयी थी गहरी गहरी साँसे लेते हुए पिस्ता अपने चरम सुख को प्राप्त हो गयी थी वो अब बिलकुल शांत पड़ गयी थी मैंने भी जल्दी जल्दी कुछ घस्से और लगाये और अपना पानी चूत में ही निकाल दिया
बिस्तर पर एक तूफ़ान आकर गुजर गया था चादर की सिलवटे अभी अभी मुकम्मल हुई कहानी की गवाही दे रही थी पिस्ता मेरी बाँहों में बाहे डाले मेरे आगोश में सिमटी पड़ी थी उसकी महकती साँसे जैसे मीठे शरबत की सुगंध की तरह मेरे चेहरे पर फ़ैल रही थी मैं अपने हाथो से उसकी मुलायम पीठ को सहलाने लगा हमारे रिश्ते ने एक नए मोड़ की शुरुआत कर दी थी काफ़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही एक दुसरे की बाहों में पड़े रहे न कोई चिंता थी न कोई फिकर बस वो थी बस मैं था धड़कने खामोश थी लबो ना कोई बात भी बस ये कमबख्त दिल ही था जो उसके दिल से न जाने क्या बाते कर रहा था चुप वो थी खामोश मैं था कमरे में अगर कुछ था तो हमारी सांसो की आवाज जो पता नहीं क्यों कुछ तेजी से चलने लगी थी
पिस्ता अब खड़ी हुई और सामने लगे शीशे में खुद को निहारने लगी उसकी पीठ मेरी तरफ थी अपने आप में सच में ही किसी क़यामत से कम नहीं थी वो दिलकश हँसीना सच ही तो कहा था उसने की वो नशे की बोतल है दूर रहू उस से , पर मैं कहा मान ने वाला था मैं खड़ा हुआ और उसको पीछे स अपनी बाहों में जकड लिया उसके मांसल कुल्हे मेरे अगले हिस्से से रगड़ खाने लगे पर उस बेफिक्र को परवाह ही कहा थी उसके गीले बालो से आती हो सौंधी सी खुसबू मेरे नाक के रस्ते से होकर फेफड़ो में समाने लगी मैंने उसके कंधे पर हलके से किस किया पिस्ता के बदन में हुई उस कम्पन को महसूस किया मैंने बहुत हलके से अपने प्यासे होंठो को उसके कंधो पर रगड़ रहा था मैं
हरकत बहुत छोटी सी थी पर उसकी दिल में हलचल सी मचने लगी थी पिस्ता ने भी शरारत करते हुए अपने कुलहो को मेरे लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया मस्तिया धीरे धीरे उफान पर आने लगी थी उसकी उस हरकत ने जादू सा किया मेरे लंड में फिर से सिरहन होने लगी उसके कान के पिछले वाले हिस्से को जब मैंने अपने दांतों से काटा तो पिस्ता ने कामुकता से अपनी आँखों को बंद कर लिया उसने मेरे हाथ को पकड़ा और अपनी चूची पर रख दिया और हलके हलके से दबाने लगी पिस्ता के कुलहो की थिरकन को महसूस करते हुए मेरा लंड धीरे धीरे जोश में आने लगा था
उफफ्फ्फ्फ़ कही मैं पागल ना हो जाऊ इस मस्तानी लड़की की सच में बात ही निराली थी अब वो पलटी और मेरी तरफ हो गयी उसकी नुकीली छातिया मेरे सीने में दबने लगी कितनी मुलायम थी वो मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और उसको चिपका लिया अपने से पिस्ता न बिना देर किये अपने गुलाबी लबो को मुझ से जोड़ दिया मैंने थोडा सा मुह खोला और उसने अपनी जीभ मेरे मुह में सरका दी मेरा लंड उसके पेट से टकरा रहा था चूत में घुसने को बेताब हो रहा था किस करते करते मैंने उस के चुतड को मसलना शुरू कर दिया सरगर्मियआ फिर से सर चढ़ने लगी थी
उस बेहद ही गीले और शानदार रसभरे चुम्बन के बाद हम अलग हुए पर बस कुछ पालो के लिए ही पिस्ता ने अपनी टांगो को मेरी पीठ पर लपेटा और मेरी गोद में चढ़ गयी और लगी पागलो की तरह मेरे चेहरे को चूमने , आज दीवानगी की हर हद टूटने वाली थी ना को कम थी ना मैं , मेरा पूरा चेहरा उसके थूक से , उसकी लार से सन चूका था अब मैंने उसे गोद से नीचे उतरा और पास ही खिड़की पर खड़ी कर दिया उसने अपने दोनों हाथो को खिड़की पर रखा और झुक गयी अपने कुलहो को बाहर की तरफ निकाल कर जब वो झुकी तो कसम से मर ही गया मैं तो उस पर
मैंने उसकी टांगो को थोडा सा और फैलाया और अपने लंड पर ढेर सारा थूक लगा ते हुए उसको पिस्ता की चूत के मुहाने पर रख दिया एक हाथ से उसकी कमर को थमा और दुसरे हाथ से उसकी गर्दन को पकड़ा और लगा दिया जोर चूत की बेहद मुलायम रसदार पंखुड़ियों को चीरते हुए लंड महाराज फिर से अपनी साथी में समाते चले गए पिस्ता की पीठ को कस कर जकड लिया मैंने उसने भी दिलदारी दिखाते हुए अपने शारीर को और झुका लिया जल्दी ही लंड को जड़ तक अन्दर उतार दिया मैंने हमारा खेल फिर से शुरू हो चूका था थोड़ी देर बाद उसकी कमर को पकडे हुए मैं तेजी से चोद रहा था उसको
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
पिस्ता हाई अहि उफ़ उफ़ करते हुए फिर से चुदाई का पूरा आनंद उठाने लगी थी उसकी चूत के पानी से भीगा मेरा लंड फच फच करते हुए अन्दर बाहर हो रहा था जोश जोश में मैंने कुछ ज्यादा तेज धक्का लगा दिया तो उसका घुटना दिवार से टकरा गया तो वो कराहते हुए बोली कमीने आराम से और मुझ से अलग हो गयी मेरा लंड बाहर आते ही लहराने लगा पिस्ता वाही खिड़की में बैठ गयी और अपने चेहरे को थोडा सा झुका कर मेरे लंड को अपने मुह में भर लिया और चूस ने लगी मैंने कहा चूस कामिनी देख तेरी चूत के रस से सना है जरा चख कर तो बता चूत कर पानी कैसा लगा तुझे
पिस्ता लंड चूसते हुए- मेरी चूत का पानी है तो मस्त तो होगा ही दुनिया लाइन में लगी है इस चूत के रस को चूसने के लिए तुझे मिल गया तो बात आ गयी और लगी लंड चूस ने को कसम से इस लड़की ने बस कुछ ही दिनों में मुझे पागल ही कर दिया था दो चार मिनट बाद उसने लंड को अपने मुह से बाहर निकला और बेड पर आ गयी इस बार उसने मुझे नीचे पटका और करने लगी मेरी सवारी अब वो घायल शेरनी कहा किसी की बंदिशों को मानती थी मस्तमौला मदमस्त लड़की मैंने अपनी आँखों को मूँद लिया और उसके कुलहो को सहलाते हुए कर दिया उसको खुद के हवाले कर ले तेरी जो भी मनमानी है
वो अब पूरी तरह से मुझ पर चा गयी और फिर से मेरे होंठो को चूमने लगी उसकी कसी हुई चूत में फस मेरा लंड बहुत मजा आ रहा था कसम से हर एक बार जब वो ऊपर से नीचे आती मेरी नसों में भरा खून बहुत तेजी से दोद रहा था पिस्ता के बदन से फूटती गर्मी अब शोलो में बदल गयी थी बहुत देर तक मेरे ऊपर चढ़ी रही मैंने भी कोई जल्दी नहीं की ये अब खेल न होकर एक युद्ध ही हो गया था हमारे लिए मैं सोच ही रहा था उसको अपने नीचे लेने को की तभी पिस्ता एक दम से ढीली पड़ गयी और धम्म से मेरे ऊपर पड़ गयी छुट गयी थी वो
उसकी चूचिया बहुत तेजी से हिल रही थी पसीना बह रहा था पुरे चेहरे से दरअसल कब बिजली चली गयी पता ही नहीं चला था हमे, पर ऐसे एक दम से चूत से लंड जो बाहर निकल आया था तो ठीक नहीं लगा मैंने तुरंत उसकी जांघो को फैलाया और फिर से अपने मुसल को उतार दिया उसकी चिकनी चूत में और लगा उसको चोदने मेरे नीचे पड़ी वो अब बुरी तरह से हाई हाई करने लगी थी उसका काम तमाम होते ही अब वोचाह रही थी की मैं बस उतर जाऊ उसके ऊपर से पर मेरा छुटे तब हटू मैं भी पिस्ता मेरे बालो को नोचने लगी , अपने नाखून मेरे कंधो पर रगड़ने लगी पर मैं लगा रहा वो बोली कमीने साँस तो लेने दे पर मैं अब रुक नहीं सकता था जोर आजमाइश उफान पर थी झीना झपटी में उसका नाखून मेरे चेहरे पर लग गया और लगा भी काफी जोर से एक लाइन सी बन गयी थी पर मैंने तब भी उसको नहीं छोड़ा पिस्ता की शकल ऐसी हो गयी थी जैसे की बस अब रोई अब रोई मेरी मंजिल भी बस थोड़ी ही दूर थी
पिस्ता मेरी छाती पर मुक्के मरते हुए बोली छोड़ दे न पेशाब आ रहा है दो मिनट की बात है छोड़ दे न मैंने हांफते हुए कहा बस थोड़ी देर रुक पर उसका मूत रुकना मुश्किल था आखिर उसने मुझे हटा ही दिया और हटाया भी बिलकुल गलत टाइम पर मैं बस झड ही रहा था लंड ने बाहर आते ही वीर्य की पिचकारी छोड़ दी जो बिस्तर पर यहाँ वहा गिरने लगी पिस्ता तुरंत बेड से उतरी और फर्श पर बैठ कर मूतने लगी कमरे में सुर्र्र्रर्र्र्र सुर्र्र्र की आवाज फ़ैल गयी पेशाब की एक मोटी धार फैलने लगी पेहली बार मैंने किसी लड़की को मूत ते हुए देखा था बड़ा अच्छा लग रहा था पिस्ता काफ़ी देर तक मूत टी रही पर मुझे ठीक से झड न पाने का दुःख था पर अब क्या किया जा सकता था
थोडा सा थक गया था तो मैं बिस्तर पर पड़ गया पिस्ता भी मूत कर मेरे पास ही लत गयी और आँख बंद कर के पड़ गयी आँख कब लग गयी पता ही नहीं चला जब आँख खुली तो शाम ढल गयी थी टाइम 7 से ऊपर हो रहा था मैं फटाफट से उठा वो बेसुध सी सोयी पड़ी थी उसको भी जगाया बिना कुछ कहे मैं भगा वहा से सीधा अपने घर की और आज तो गया मैं काम से लेट हो गया था घर पर डांट खानी पक्की थी पिताजी भी आ चुके होंगे दफ्तर से डर भी लग रहा था पर घर भी जाना तो था ही तो डरते डरते कदम रखा घर की देहलीज पर पर इस जनम में चैन था ही कहा मुझे
घर में घुसते ही प्यारी चाची जी के दर्शन हुए ना जाने मुझसे इतना किलस्ती क्यों थी वो
चाची- हां, तो साहब जी को घर की याद आ गयी अभी भी आने की क्या जरुरत थी और आवारागर्दी कर लेते आजकल मैं देख रही हूँ कुछ ज्यादा ही तुम्हारे पाँव निकल गए हैं पहले तो पढाई से आते ही बस घर रहते थे पर आजकल जनाब के तेवर बदल गए है बात क्या है जरा हमे भी तो बताओ
मैं हकलाते हुए- कुछ नहीं चाची जी, वो दरअसल आज क्रिकेट का मैच था तो आने में देर हो गयी
चाची- झूठ थोडा कम बोला करो तुम, कोई मैच नहीं था तुम्हारा खेलने का सामान तो घर पर ही रखा है
मेरी समझ में आ ही नहीं रहा था की अब क्या बोलू कुछ सूझा नहीं तो बस नजरे नीचे करके खड़ा हो गया अब करता भी तो क्या
चाची बोली- बीटा हम लोग तुम्हारे दुश्मन नहीं है, कभी कभी कुछ बोलते हैं तो तुम्हारे भले के लिए ही देखो अब तुम बड़े हो गए हो, पर दुनिया दारी बहुत बड़ी है आजकल जमाना ख़राब है फिर तुम घर के इकलोते वारिस हो हमे फिकर हैं तुम्हारी , जब कही तुम्हे जरा सी भी देर हो जाती है तो सब लोग थोडा घबरा जाते हैं आज माफ़ करती हूँ, कल से सांझ से पहले घर आ जाना
मैंने हां में गर्दन झुलाई और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा चाची ने पीछे से कहा तुम्हारी पसंद के चावल बनाये है खा लेना और आज रात खेत पर जाना होगा तुम्हे, तुम्हारे चाचा कुछ काम से बाहर गए है
आज तो मेहरबानी हो गयी मुझ पर पसंद का खाना और खेत में भी जाना पिस्ता से मिलने का चांस मिला मेरी ख़ुशी छुपाये नहीं चुप रही थी, होंठो पर एक मुस्कान सी आ गयी थी जिसे मैं चाह कर भी रोक नहीं पा रहा था , दूध पीते पीते मुझे मुस्कुराते देख कर पिताजी ने पूछ ही लिया हैं की भाई क्या बात हैं आज कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा ही रहे हो क्या हुआ जरा हमे भी तो बताओ
मैंने कहा – जी, कुछ नहीं ऐसे ही कुछ याद आ गया था तो बस ....
पिताजी- बेटे इस उम्र में अक्सर इश्क- मुश्क का जिनपर असर हुआ वो ही बिना बात के मुस्कुराया करते है
पिताजी की बात सुनते ही मुझे खांसी आ गयी गिलास से थोडा दूध छलक गया पिताजी मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले – आराम से बेटे, मैं तो बस तुम्हे ऐसे ही छेड़ रहा था आराम से दूध पीओ
मैं खेत पर हूँ ये बात पिस्ता को बताना चाहता था पर घर से फ़ोन कर नहीं सकता था तो अब करू क्या फिर सोचा की अड्डे पर जो एसटीडी है उधर से ही फ़ोन करता हूँ जेब में हाथ दिया तो वो खाली थी अब घरवालो से पैसे मांगू कैसे पर पिस्ता को भी बताना जरुरी था तो हिम्मत करके पिताजी से दस रूपये मांगे उन्होंने बेहिचक दे दिए कसम से बड़ी ख़ुशी मिली
पैसे मिलते ही साइकिल उठाई और पहूँच गया एसटीडी पर वो दुकान बंद करने ही वाला था मिन्नतें करके एक फ़ोन का जुगाड़ किया और पिस्ता को बताया की आज कुए पर ही सोना है मुझे तो उसने कहा की दस बजे बाद उसके खेत पर मिलु मैं तो तय हो गया की आज की रात दिलरुबा के नाम 5 रूपये दिए दुकान वाले को और पांच की खरीदी बलुश्याही और साइकिल को धूम स्टाइल में उड़ाते हुए पहूँच गया खेत पर
मोसम में थोड़ी गर्मी सी थी तो उतारे कपडे और कच्छे-बनियान में ही घूमने लगा सब्जियों में पानी दिया तो ठन्डे पानी को देख कर मन बहक गया सोचा नाहा ही लेता हूँ और पाइप से खद क भिगोने लगा बड़ा मजा सा आने लगा गाँव की मिटटी की भी बात ही निराली होती हैं दुनिया में कही भी घूम आओ पर जो सुकून यहाँ पर मिटा है वो कहीं नहीं हैं वाही खेत के कीचड में लेट गया मैं तो मिटटी की वो अपनी सी खुसबू तन बदन में बसती चली गयी
बहुत देर तक पानी के पाइप को सीने से लगाये पड़ा रहा मैं, लगा रूह को थोडा सा चैन मिल गया मुझे तभी किसी ने आवाज दी तो देखा मैंने पिस्ता पानी के होद के पास कड़ी थी कीचड से सने मुझ को देखते हुए बोली वो – गजब हो यार तुम तुम्हारे हर रोज काफ़ी रंग देखती हूँ मैं मैं वैसी ही हालत में उसके पास गया और बोला – कुछ दिन गुजार लो साथ सब समझ जाओगी , एक काम करो अन्दर से चारपाई निकाल लो बैठो मैं नाहा लेता हूँ फिर बात करते है पर वो बोली- ना, ,ना आज इधर नहीं मेरे खेत पर चलेंगे वाही बैठे,गे, बाते करेंगे
मैं – ठीक हैं पर तुम दो मिनट ठहरो बस अभी नाहा लेता हूँ फिर साथ चलते है वो मुस्कुराई मैंने जल्दी से नहाया और कपडे पहन कर उसके साथ चल कर खेत में पहूँच गया मेरे खेत से अगला तो था ही उसका , खेत पर बने कमरे से थोड़ी दूर एक नीम का पेड़ था थोडा बड़ा सा उसके पास ही उसने खाट लगायी हुई थी उसने कहा तुम बैठो जरा मैं अभी आती हूँ, मैंने कहा कहा जा रही हो , ना जाओ वो बोली बस १ मिनट में आई
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
आँखों में आँखे तेरी, बाते सोगाते तेरी मेरा ना मुझमे कुछ रहा बाकी शायद ऐसा ही कुछ वो गाना था जो रेडियो की मद्धम मद्धम आवाज में बज रहा था हम दोनों और हमारी आवारगी पता नहीं तकदीर का कौन सा वो मोड़ था जहा हम दो मनचले टकरा गए थे, मैंने कभी सोचा ही नहीं था की पिस्ता से इस तरह मेरा रिश्ता जुड़ जायेगा आज मैंने जाना था की सची में किस्मत जैसा भी कुछ होता हैं पिस्ता मेरी बाँहों में चैन की नींद सोयी पड़ी थी
पर पता नहीं क्यों मेरी आँखों में नींद नहीं थी पता नहीं साली क्या प्रॉब्लम सी थी कभी खुश रह ही नहीं पाता था मैं ये कैसा उदासी का आवरण था मेरे चारो और जिसे मैंचाह कर भी भेद नहीं पता था रात कितनी गयी कितनी बची थी कुछ पता नहीं था मुझे हवा में कुछ ठंडक सी हो गयी थी आहिशता से पिस्ता के सरको अपनी बाह पर से हटाया मैंने और उठा खड़ा हुआ दूर दूर तक बस सन्नाटा फैला हुआ था
पानी के जग को देखा तो पानी था नहीं तो मैं चल पड़ा कुए की तरफ ठंडा पानी गले से उतरा तो चैन मिला कुछ देर मैं उधर ही मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा अपने बारे में आनी वाले कल के बारे में ज़िन्दगी ने पिछले एक दो महीने में बहुत ज्यादा उतार चढाव आ गया था कहा तो बस मैं ऐसे ही खाली टाइम पास कर रहा था जाने अनजाने बिमला से जुडाव हो गया और फिर रेगिस्तान में किसी बेईमान बारिश की तरह पिस्ता आ गयी
नीनू, भी थी एक दोस्त जो थोडा बहुत समझती थी मुझे अपने ख्यालो में मशगूल मैं खोया था उस चमकते चाँद की तरह वो भी खामोश था मैं भी खामोश ये भी एक अलग सा ही रिश्ता बन गया था उस चाँद से भी ना जाने कितनी राते उसको तकते तकते गुजर जाया करती थी हालाँकि ये ज़िन्दगी की शुरुआत ही थी पर ऐसा लगता था की सफ़र पर निकले हुए कितना समय बीत गया पता ही नहीं चला कब पिस्ता मेरे पास आकर बैठ गया
सोये नहीं अभी तक पुछा उसने
मैं- यार, नींद आई ही नहीं
वो- कोई परेशानी है क्या
मैं- पता नहीं
वो – फिर क्यों भला
मैं- सची में पता नहीं यार बस कभी कभी एक उदासी सी छा जाती है फिर काफ़ी देर तक परेशान होना पड़ता है
इधर आओ मेरे पास मेरी गोद में सर रख कर लेट जाओ
उसकी बाहों में सच में ही सुकून मिलता था मुझे हौले हौले वो मेरे सर को सहलाने लगी बड़ी राहत मिली मुझे फिर ना जाने कब आँख लग गयी मेरी होश जब आया तो देखा वो जगा रही थी मुझे पिस्ता बोली- चलो उठो भी अब देखो दिन निकलने वाला है थोई देर में मैं चलती हूँ अब मै उसकी गोदी में ही सोया पा था मैंने कहा खाट पर नहीं गए क्या वो बोली तुम सो गए थे तो मैं बैठी रही ऐसे ही उसकी बात दिल को छु गयी
पिस्ता डगमग डगमग करते हुए चली गयी मैं भी अपने खेत पर चल पड़ा वहा जाकर थोड़ी देर ही हुई थी की पिताजी पहूँच गए मैंने मन ही मन भगवान् का शुकर किया की ये रात को नहीं आये वर्ना मेरी तो गांड मर जनि थी पिताजी से बात चीत हुई वो खेतो का निरिक्षण करने लगे मैं भी साथ हो लिया एक जगह वो रुक गए और बोले – बेटे क्या चल रहा हैं आज कल
मैं – जी बस पढाई ही चल्र रही हैं थोडा क्रिकेट खेल लेता हूँ बस बाकि टाइम घर के कामो में चला जाता हैं
पिताजी- मुझे लगा की तुमसे थोड़ी बाते करनी चाहिए बाप बेटे की बाते कुछ ऐसी ही होती हैं तो घर वालो के सामने कर नहीं सकता था इसीलिए यहाँ ठीक हैं
मुझे मन ही मन लगने लगा था की कुछ सीरियस टाइप ही है किसी न किसी ने चुगली कर दी होगी
पिताजी- तुम्हारे मास्टर जी से बात हुई थी वो बता रहे थे की आजकल तुम क्लास अटेंड नहीं कर रहे हो
मैं- जी पिछले कुछ दिनों से जा नहीं पा रहा हूँ पर कल से रेगुलर हो जाऊंगा बीच में छुट्टिया हो गयी थी तो चंडीगढ़ चला गया था फिर कुछ कल्चरल एक्टिविटीज थी तो पढाई हो नहीं रही थी बस इसीलिए
पिताजी- तुम्हारी माँ कह रही थी की आज कल तुम टाइम से घर नहीं आते हो और एक पूरी रात तुम घर से बाहर थे
मैं- वो पिताजी एक दोस्त के घर विडियो लाये थे तो फिलम देखने चला गया था
पिताजी- मैं तुम्हारा जवाब नहीं मांग रहा हूँ बल्कि तुम्हे समझा रहा हूँ की देखो तुम अपनी लाइफ की शुरुआत करने जा रहे हो बचपन बीत गया जवानी आई ये जो अल्हड उम्र होती है न इसमें खून थोडा ज्यादा जोर मारता है , इंसान के बगावती तेवर होते है मैं जानता हूँ की जब भी घरवाले कोई टोका टोकी करते है तो तुम्हे बहुत बुरा लगता है पर वो सब तुम्हारे भले के लिए ही है
इस उम्र में हमारा मन अक्सर गलत रास्तो की तरफ भागता हैं गलतिया भी होती है कुछ माफ़ हो जाती है कुछ सारी उम्र हमे सालती रहती है माँ- बाप जो होते हैं न उन्हें अपने बच्चो की हर बात पता होती हैं जैसे की अभी तुमने झूठ बोल दिया की दोस्त के घर गए थे
मैं बाप हूँ तुम्हारा पाला है तुम्हे, मुझे नहीं पता क्या तुम्हारे कितने दोस्त है पर मैं तुम्हे बाध्य भी नहीं करूँगा की तुम मुझे बताओ उस रात तुम कहा थे बस इतना ही चाहूँगा की जो भी समाज में पहचान तुम्हारे बाप ने मेहनत करके बनायीं है कोई ऐसा काम न करना की इस बाप की नजरे नीची हो पढाई पर ध्यान दो घर पर समय दो बैठो कभी परिवार के साथ थोडा जानो हमे, कितने दिन हो जाते है हाय हेल्लो से आगे हम बढ़ नहीं पाते है
अपने ही घर में अजनबियों की तरह रहते हो कल तुम्हारी माँ ने तुम्हारे कमरे की सफाई की थी उन्हें कुछ ऐसा सामान भी मिला है जो शायद अभी तुम्हारे पास नहीं होना चाहिए था , पर चलो कोई बात नहीं समझदार को इशारा ही बहुत होता है मेरी बात पर थोडा गोर करना और समझना तुम अब बड़े हो रहे हो घर की जिम्मेदारी लेना सीखो बस यही कहना था मुझे
मैं नजरे झुकाए उनकी हर बात को सुनता रहा ऐसा एजी रहा था की जैसे किसी ने भरे बाजार में नंगा कर दिया हो मुझे पर उनकी हर बात सही थी फिर करीब घंटे भर बाद ही हम साथ साथ घर आ गए मैं सोच रहा था दिन की शुरुआत ऐसी हुई हैं तो दिन कैसे कटेगा बस यही देखना था ..
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
नास्ता पानी करके मैं अपने कमरे में गया और धोने के लिए कपडे इकट्ठे करने लगा थोड़ी चीजे इधर उधर बिखरी पड़ी थी उनको जमाया करीब दस बज गए थे माँ को कुछ काम से मामा के जाना पड़ा तो वो पिताजी के साथ ही निकल गयी थी कपड़ो का ढेर उठा कर मैं बाहर जा ही रहा था की तभी फ़ोन की रिंग बजी मेरे कान खड़े हो गए दो बार रिंग आकर कट गयी तीसरी बार में मैंने उठाया उधर पिस्ता थी उसने बताया की वो कुछ काम से सहर तक जा रही है चलोगे क्या , पर मैंने मन कर दिया क्योंकि मुझे कपडे धोने थे तो उसने कहा की वो फिर शाम को जंगल में लकड़ी काटने जाएगी तो मैं उसको 4 बजे मिलु उधर मैंने हाँ कर दी
घर के बाहर पड़े पट्टी पर मैं कपडे धो रहा था की बिमला निकल आई- उसने पुचा कहा रहते हो आज कल
मैं- बस भाभी आजकल थोडा टाइम का प्रॉब्लम हैं
बिमला- पर पढने तो जाते नहीं हो , घर पर मिलते नहीं हो तो फिर रहते किधर हो
अब मैं क्या बताता उसको की आजकल असल में हो क्या रहा था मेरे साथ तो बोला भाभी बस पूछो न किधर रहता हूँ बस इतना जान लो कट रही है अपनी भी
बिमला- मुझे लग रहा की किसी न किसी को फांस लिया हैं तुमने जैसे मुझे जाल में फसाया तुमने, अब तभी तो मेरी याद नहीं आती तुम्हे
मैं- पेंट को ब्रश से घिसते हुए- कमाल करते हो भाभी आप भी, बोला न आजकल थोडा टाइम का लोचा है
बिमला- बच्चे स्कूल गए है मैं अकेली ही हूँ देख लो फिर ना कहना की भाभी ने काम नहीं किया
मैं- कपडे धो कर आता हूँ
बिमला कातिल मुस्कान बिखेरते हुए, पक्का आ जाना और चली गयी ना जाने क्यों उसकी चाल कुछ ज्यादा ही लहराती सी लगी मुझे
आधे कपडे धोये ही थे की मोहल्ले का एक लड़का आया और बोला- भाई, गाँव की टीम का फाइनल मैच हैं आज तेरी जरुरत है बस ये मैच निकल वादे कुछ भी करके हार गए तो पडोसी गाँव में बहुत चीच्लेदार होगी अब क्रिकेट का जूनून अपने को कुछ ज्यादा ही था तो बस कपड़ो को छोड़ा वाही पर और अपना किट लेकर लादा उसको और साइकिल से पहूँच गए नीनू के गाँव उसके घर से बस थोड़ी ही दूर पर खाली साइड में ग्राउंड बनाया हुआ था
फाइनल मैच था तो शुरू होते होते देर हो गयी फिर ऐसे मैच में थोड़ी तना तानी तो होती ही हैं खेल ख़तम होते होते शाम ढल आई जीतने के बाद मैं अपना सामान समेट कर घर की और चला ही था की कच्चे रस्ते को पार करते ही नीनू मिल गयी सर पर घास का गठर लिए हुए, मुझे देख कर उसने घास को नीचे रख दिया और बोली- तुम यहाँ इस वक़्त
मैं- वो आज मैच खेलने आया था
वो हँसी और बोली- पढने क्यों नहीं आते आजकल
मैं- कल से आऊंगा कुछ काम थे तो छुट्टी की हुई थी
वो- मैं सोच रही थी की कहीं बीमार विमर तो नहीं हो गयी दर्शन ही दुर्लभ हो गए तुम्हारे आओ घर चलो चाय पीकर जाना
मैं- नहीं रे वैसे ही लेट हो रहा है , फिर कभी पक्का आऊंगा अभी चलता हूँ कल फुर्सत से बाते करेंगे वो बोली ठीक है
घर पहूँचते पहूँचते अँधेरा घिर आया था चाचा घर के बाहर ही बैठे थे थोडा गुस्से में लग रहे थे पूछा कहा से आ रहे हो
मैं- जी पड़ोस के गाँव में मैच खेलने गया था
चाचा- घर पे बता के गए थे
मैं- चुप रहा
चाचा – बहुत बिगड़ गया हैं तू आज तेरा इलाज करना ही पड़ेगा और दिया एक खीच कर थप्पड़
मैं फिर भी चुप चाप खड़ा रहा दो- तीन थप्पड़ लगातार टिक गए
पर हद तो जब हुई जब उन्होंने मेरा बैट तोड़ दिया गुस बहुत आया मुझे उस पल पर वो बड़े थे तो बस सब्र कर लिया वो तो चले गए थे पर मैं रह गया था उन लकड़ी के टुकडो के साथ वहा पर आँखों से कुछ आंसू टपक पड़े वो शाम मैंने अपनी लाइफ का आखिरी मैच खेला था बैट के टुकडो को अलमारी में रखा और घर से बाहर आ गया चाची ने रोटी के लिए आवाज दी पर भूख नहीं थी दिमाग हद से ज्यादा ख़राब हो गया था मेरा
पर किसी पर जोर भी तो नहीं चलता था मेरा रोने को दिल कर रहा था पर रो न सका कल पढने भी जाना था तो दुकान पर पंहूँचा पेन लेने के लिए रस्ते में पिस्ता मिल गयी पुछा आया क्यों नहीं जंगल में कितनी बाट जोही मैंने
मैं- कुछ काम हो गया था तो ना आ सका
वो- कोई बात नहीं होता है कुछ उदास से दीखते हो
क्या हुआ
मैं- कुछ नहीं
वो- मेरे साथ आओ फिर बात करते हैं
उसके घर आ गए , वो बोली- तुम्हारी शकल से दिख रहा है उदास हो अब बताओ भी न क्या बात है
दुखी मन से मैंने उसको सारी बात बताई तो वो एक ठंडी सांस लेकर बोली कोई ना यार होता है दिल पे मत लो ये जो घरवाले होते हैं ना ये बड़े अजीब टाइप लोग होते है इनको ज्यादा सीरियस ना लेना चाहिए इनका काम ही बस फालतू बातो का रोना रोना होता हैं ये अपने जैसे लोगो की फीलिंग्स को कभी नहीं समझ सकते इनको इनके हाल पे छोड़ दो और मस्त रहो
आज आलू के परांठे बनाये है आओ साथ साथ खाते है मैंने कहा भूख नहीं है तो वो बोली- ज्यादा ना बनो आओ खालो चुपचाप
गरमा गरम परांठे और देसी घी में बनी लाल मिर्च की चटनी मजा ही आ गया 4-५ परांठे लपेट दिए मजे मजे में मैंने पूछा अब क्या वो बोली अब बस सोना ही हैं कल मेरी माँ आ जाएगी तो थोडा कम टाइम मिलेगा फिर ऊपर से मेरा भाई भी आने वाला है छुट्टी क्या पता इस बार उसकी शादी का जुगाड़ हो जाये
मैं- तो अपना मिलना मुश्किल होगा क्या
वो- ना रे, कर लेंगे कुछ न कुछ जुगाड़ पर भाई होगा घर पे तो थोडा सावधान तो रहना ही पड़ेगा ना अब उसकी फीलिंग्स का भी तो ख्याल रखना पड़ेगा न मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से उसको कोई टेंशन हो वैसे भी एक दो दिन अपन ना मिलेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा
मैं- बात तो सही हैं कोई ना नजरे तो है ही न आते जाते दुआ सलाम होती रहेगी
वो हस पड़ी मेरी इस बात पे मैं अपने घर आ गया और बिस्तर पकड़ लिया थोड़ी देर बाद ध्यान आया की बिमला के घर सोना है तो फिर पहूँच गया और खडका दिया दरवाजा उसका
दो चार बार दरवाजऐ की कुण्डी खडकी तब जाकर बिमना ने दरवाजा खोला मुझे देखते ही उसके रसीले होंतो पर एक चिर परिचीत मुस्कराहट आ गयी घागरा- चोली में बड़ी कसी हुई लग रही थी वो मुझे उसने घर के अंदर लिया और हम बैठक में आ गए मैंने तुरंत ही उसको अपनी बाँहों में ले लिया और उसके बोबो से खिलवाड़ करने लगा बिमला बोली- आज जब खुद की गरज हैं तो आ गए मुझे बिगाड़ कर दूर दूर भागते हो
मैं- ऐसी बात नहीं हैं भाभी पर आप समझो जरा आजकल बहुत काम है मुझे तो बिलकुल भी टाइम नहीं मिल रहा पर आज रात तो हैं न अपने पास जी भर कर खुश करूँगा आप को , अब टाइम ख़राब ना करो आओ भी ना बहुत दिन हुए आपके हूँस्न के दीदार ना किये है
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