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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 47
गतान्क से आगे...........
"धन्यवाद सोनिया जी...भूल चूक माफ़ करना. आपको अगर कोई भी नयी जानकारी मिले तो मुझे तुरंत इस नंबर पर फोन करना." चौहान ने अपना कार्ड सोनिया को दे दिया.
जाते जाते चौहान ने सोनिया को बाहों मे भरा और बोला,"दोनो होल एक से बढ़ कर एक हैं. गान्ड में पहले भी लिया है क्या कभी."
"पहले ना किया होता तो जाता तुम्हारा इतना मोटा." सोनिया हंस दी.
"दुबारा मेरी सेवा की ज़रूरत हो तो बताना." चौहान ने सोनिया को किस किया और वहाँ से चल दिया.
"अफ बारिश हो रही है...शूकर है गाड़ी नज़दीक खड़ी की मैने." चौहान ने कहा और सोनिया के घर से निकल गया.
चौहान के जाते ही सोनिया ने अपना मोबाइल उठाया और नरेश को फोन लगाया.
"आ जाओ तुम...इनस्पेक्टर चला गया."
............................................................
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मोनिका चाय लाई और राज शर्मा ने चुपचाप दरवाजे पर खड़े खड़े चाय पी बारिश की बूँदो को देखते हुए.
"मोनिका जी मुझे लगता है कि मुझे निकलना चाहिए. मेरा यहाँ रुकना ठीक नही."
" जैसी आपकी मर्ज़ी."
"मेरा नंबर रख लीजिए आपको कुछ और याद आए तो प्लीज़ ज़रूर बताना. उस साइको को पकड़ना बहुत ज़रूरी है."
"जी बिल्कुल"
राज शर्मा बारिश में ही निकल पड़ा. जीप तक पहुँचते-पहुँचते राज शर्मा पूरी तरह भीग गया. जैसे ही वो जीप में बैठा उसका मोबाइल बज उठा.
"हेलो"
"मैं मोनिका बोल रही हूँ...एक बात बताना भूल गयी आपको."
"कुछ इंपॉर्टेंट है क्या."
"हां."
"रूको मोबाइल में आवाज़ सॉफ नही आ रही मैं जीप लेकर वही आता हूँ."
राज शर्मा ने जीप घुमाई और वापिस मोनिका के घर के बाहर आ गया.
राज शर्मा बुरी तरह से भीगा हुआ मोनिका के घर में परवेश करता है.
"एयेए चाइयीयियी....कहिए क्या बात है?" राज शर्मा को छींक आ गयी.
"आप तो पूरे भीग गये हैं...मैं तोलिया लाती हूँ." मोनिका ने कहा.
"वो मेरी जीप ज़रा दूर खड़ी थी. वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते पूरा भीग गया."
मोनिका ने टोलिया ला कर राज शर्मा के हाथ में दे दिया, "लीजिए आप अपना सर सूखा लीजिए"
राज शर्मा ने तोलिया पकड़ा और बोला, "थॅंक यू सो मच. आप बहुत अच्छी हैं"
मोनिका नज़रे झुका कर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली,"आप भी बहुत अच्छे हैं."
"हां तो बोलिए अब. क्या बताना भूल गयी थी आप?" राज शर्मा सर पर तोलिया रगड़ते हुए बोला.
तभी अचानक बहुत ज़ोर की बिजली कदकी. बहुत ही भयानक आवाज़ हुई. मोनिका इतनी डर गयी कि वो फ़ौरन राज शर्मा से चिपक गयी.
"मुझे कोई प्राब्लम नही है आपको गले लगाने में लेकिन आपके कपड़े गीले हो जाएँगे." राज शर्मा ने हंसते हुए कहा.
मोनिका तुरंत राज शर्मा से दूर हो गयी और नज़र झुका कर बोली, "ओह सॉरी मैं बिजली की आवाज़ से डर गयी थी."
राज शर्मा मोनिका के करीब आता है और कहता है, "कोई बात नही मोनिका जी. मुझे अच्छा लगा कि आपने मुझे इस काबिल समझा. आप नज़दीक आई तो सर्दी दूर भाग गयी. एक बात कहु अगर बुरा ना माने तो"
"जी कहिए."
"हमारे बीच बहुत सुंदर संभोग की संभावना बन रही है. मैं आपके लिए बहक रहा हूँ. इस से पहले कि कुछ हो जाए आप मुझे वो बात बता दो ताकि मैं चुपचाप जल्द से जल्द यहाँ से चला जाऊ."
"वही बताने जा रही थी कि कदक्ति बिजली ने डरा दिया."
"कोई बात नही ऐसी बिजली किसी को भी डरा सकती है. एक पल को तो मैं भी डर गया था. लगता है कही नज़दीक ही गिरी है बिजली."
"हां शायद...अच्छा मैं ये बताना चाहती थी कि उस रात भी मैं सुरिंदर के साथ ही थी."
"किस रात की बात कर रही हैं आप" राज शर्मा ने उत्शुक हो कर पूछा.
"जिस रात सुरिंदर ने पोलीस में जाकर झूठी गवाही दी थी."
"ओह...डीटेल में बताओ. ये तो बहुत काम की बात लगती है"
मोनिका विस्तार में बताना शुरू करती है :-
मैं कोई रात के दस बजे पहुँची थी सुरिंदर के घर. मेरे पति घर नही थे इसलिए मैने सारी रात सुरिंदर के घर ही रहने का प्लान बनाया था. डिन्नर भी मैने वही बनाया और हम दोनो ने एक साथ खाया. कुछ देर हम टीवी देखते रहे और फिर बिस्तर पर आ गये. हमने खूब बाते की. अभी हमारे बीच कुछ भी शुरू नही हुआ था. बातो बातो में रात का एक बज गया था. हमारे पास खुला वक्त होता था तो हम अक्सर यू ही मस्ती करते थे. हमारे बीच कामुक पल शुरू होने ही वाले थे कि घर की डोर बेल बज उठी. हम दोनो हैरान थे कि इतनी रात को एक बजे कौन हो सकता है. सुरिंदर ने कपड़े पहने और लाइट बंद कर दी. मैं रज़ाई में दुबक गयी. मुझे कुछ बहुत ही अजीब लग रहा था. मुझे सबसे ज़्यादा ये डर था कि जिसने भी बेल बजाई है वो अंदर ना आ जाए. लेकिन फिर भी मैं चुपचाप मूह ढके पड़ी रही. सुरिंदर दरवाजा खोलने चला गया. बेडरूम ड्रॉयिंग रूम के बिल्कुल नज़दीक था इसलिए मुझे दरवाजा खुलने की आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही थी. सुरिंदर ने दरवाजा खोलते ही कहा, "अब के के तू. इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा है." मुझे बस सुरिंदर की ही आवाज़ सुनाई दी थी. ये के के शायद बहुत धीरे बोल रहा था या फिर हो सकता है की वो सुरिंदर को दरवाजे से दूर बाहर की ओर ले गया हो. जो भी हो मुझे इस के के की कोई आवाज़ सुनाई नही दी.
थोड़ी देर बाद सुरिंदर वापिस आया और दूसरे कपड़े पहन-ने लगा. मैने पूछा कि क्या बात है तो वो बोला कि अभी किसी ज़रूरी काम से बाहर जाना है, थोड़ी देर में लौट अवँगा. मुझे बहुत हैरानी हुई.मैने पूछा सुरिंदर से कि कौन आया था उस से मिलने लेकिन उसने कोई जवाब नही दिया. उसने यही कहा कि वापिस आ कर सब बताएगा. वो चला गया. शायद उसी केके के साथ गया था. मैने बहुत वेट किया सुरिंदर का. वेट करते-करते सुबह के 6 बज गये लेकिन सुरिंदर वापिस नही आया. तक हार कर मैं वापिस अपने घर आ गयी. अगले दिन टी वी पर देखा कि सुरिंदर विटनेस बना हुआ है. मुझे कुछ समझ नही आया. वैसे सुरिंदर मुझसे अपनी जिंदगी की काफ़ी बाते शेर करता था लेकिन ये विटनेस बन-ने वाली बात के बारे में उसने कुछ नही बताया. मैं खुद हैरान थी की ऐसा कैसे हुआ. सुरिंदर तो केके के साथ गया था फिर वो मर्डर सीन पर कैसे पहुँच गया. मैने अगले दिन इस बारे में पूछा भी. मुझे वो पद्मिनी किसी भी आंगल से कातिल नही लगी. लेकिन सुरिंदर ने यही कहा की सब कुछ उसने अपनी आँखो से देखा है और वो सच बोल रहा है. मैने और ज़्यादा इस बारे में बात नहिकी. बाकी मैं बता ही चुकी हूँ. अगले दिन मेरे सुरिंदर के घर से जाने के बाद उसका कतल हो गया.
ये थी वो बात जो आपको बताना चाहती थी. शायद इस से आपको इस केस में कुछ मदद मिले.
राज शर्मा ने बड़े ध्यान से एक एक बात बड़े गौर से सुनी थी. "ह्म्म बहुत ही काम की बात बताई है मोनिका जी आपने. ये सब आपने पहले क्यों नही बताया."
"मैं इस पचदे में नही पड़ना चाहती थी. आपको पता ही है पोलीस के मामलो में अक्सर लोगो को परेशानी ही परेशानी मिलती है. और मैं अपनी मॅरीड लाइफ में कोई ट्रबल नही चाहती. आप मुझे नेक इंसान लगे इसलिए आपको बता दिया. प्लीज़ मेरा नाम कही नही आना चाहिए. पूरे वाक्येसे मेरी इज़्ज़त जुड़ी है."
"मैं समझ सकता हूँ. आपके विस्वास को नही तोड़ूँगा. वैसे आपको क्या लगता है ये के के कौन हो सकता है.?"
"मुझे बिल्कुल आइडिया नही है. पता होता तो आपके पूछने से पहले बता देती. सुरिंदर ने कभी मेरे सामने किसी के के का जीकर नही किया."
"कोई बात नही इस सीसी को भी जल्दी ढूँढ निकालूँगा. हो ना हो वही साइको किल्लर है."
"बिल्कुल मुझे भी ऐसा ही लगता है. जिस तरह से पूरा वाक़या हुआ है उस से तो यही लगता है कि के के ही साइको है."
बारिश और भी ज़्यादा तेज होती जा रही थी और बाहर घने बादलो के कारण अंधेरे जैसी हालत हो गयी थी. अचानक फिर से बिजली कदक्ति है और मोनिका काँप उठती है.
"क्या हुआ मोनिका जी इस बार आप मेरे करीब नही आई. नाराज़ हैं क्या?"
मोनिका शर्मा उठी और बोली, "कैसी बात करते हैं आप."
राज शर्मा मोनिका के नज़दीक आता है और उसकी आँखो में झाँक कर बोलता है.
"मोनिका जी बहुत प्यारा मौसम हो रहा है. बहुत ही सुंदर संभावना बन रही है हमारे बीचसंभोग की. अगर ये संभावना सच हो जाए तो कसम खा कर कहता हूँ बहुत ही भयंकर संभोग होगा हमारे बीच जिसे हम दोनो चाह कर भी नही भूल पाएँगे. मुझे बस आपकी इज़ाज़त की ज़रूरत है. कोई दबाव नही है आप पर. हमारा संभोग बहुत ही सुंदर रहेगा ये यकीन है मुझे. बाकी सब आपके उपर है."
मोनिका ने राज शर्मा की आँखो में झाँक कर देखा. राज शर्मा तो जैसे मोनिका की झील सी आँखो में खो गया. दोनो चुपचाप खड़े खड़े एक दूसरे को देखते रहे. मोनिका ने राज शर्मा के सवाल का कोई जवाब तो नही दिया लेकिन उसकी आँखे बहुत कुछ कह रही थी जिसे राज शर्मा शायद समझ नही पा रहा था.
"क्या हुआ आपने कुछ जवाब नही दिया." राज शर्मा ने पूछा.
"इन सवालो के जवाब नही होते एक औरत के पास." मोनिका प्यार से बोली.
"चलिए छोड़िए एक चाय ही दे दीजिए ठंड लग रही है."
मोनिका मुस्कुराइ और बोली, "अभी लाती हूँ."
"शायद कुछ संभावनाए, संभावनाए ही रहती हैं" राज शर्मा ने कहा.
"शायद" मोनिका ने कहा और हंसते हुए किचन की तरफ चली गयी.
मोनिका मुस्कुराते हुए हाथ में ट्रे लिए हुए राज शर्मा की तरफ आ रही थी.
राज शर्मा ने उसे मुस्कुराते हुए देख लिया और बोला, "क्या बात है आप मुस्कुरा क्यों रही हैं"
"कुछ नही लीजिए चाय लीजिए"
राज शर्मा ने चाय पकड़ी और चाय का कप ले कर वो दरवाजे पर आ गया.
"उफ्फ ये बारिश तो थमने का नाम ही नही ले रही." राज शर्मा ने चाय की घूँट भर कर कहा.
मोनिका राज शर्मा की बात सुन कर उसके बाजू में आ गयी और बोली," बहुत दिनो बाद ऐसी बारिश हुई है."
"सही कह रही हैं आप. आप अपने लिए चाय नही लाई." राज शर्मा ने पूछा.
"मैं चाय कम ही पीती हूँ."
"अच्छी बात है, कोई हेल्ती चीज़ तो है नही ये." राज शर्मा ने चाय ख़तम की और कप को एक तरफ रख दिया.
"बिल्कुल सही कहा."
"मोनिका जी आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया" राज शर्मा ने मोनिका की आँखो में झाँक कर पूछा.
"कौन सा सवाल" मोनिका ने हंसते हुए कहा.
"सुंदर संभोग की संभावना है हमारे बीच. क्या आप इस संभावना को हक़ीकत करना चाहेंगी."
"आपको क्या लगता है?" मोनिका ने हंसते हुए पूछा.
राज शर्मा ने मोनिका की तरफ कदम बढ़ाए और मोनिका पीछे हटने लगी.
"क्या कर रहे हैं आप." मोनिका दीवार से टकरा कर रुक गयी.
राज शर्मा फिर से उसी पोज़िशन में था जिसमे उसने पहले मोनिका के होंठो को चूमा था.
"मुझे पता नही क्यों ऐसा लगता है कि आप का जवाब हां है लेकिन आप कहना नही चाहती."
"एक बात कहना चाहती हूँ आपसे"
"हां बोलिए."
"मैं हमेशा सुरिंदर के साथ रिस्ते को लेकर व्यथीत रही हूँ. मेरे मन में हमेशा कसंकश रही है. मुझे हमेशा ये अहसास रहा है की मैं अपने पति को धोका दे रही हूँ. मैं सुरिंदर के साथ संबंध ख़तम करना चाहती थी. पर पता नही क्यों कर नही पाई. अब जबकि वो मर चुका है तो ये संबंध अपने आप ख़तम हो गया है. मुझे पता है और यकीन है कि आप मुझे संभोग की असीम गहराईयों में ले जाएँगे. और शायद इस सफ़र में मैं भी जाना चाहती हूँ. लेकिन दिल के एक कोने में मेरे ये अहसास भी है कि ये संभोग हर हाल में ग़लत होगा. मैं दुबारा भटकना नही चाहती. अब आपके सामने हूँ. आप कोशिस करेंगे तो आपको रोकूंगी नही. आप मुझे अच्छे लगे. लेकिन आप भी सच्चे मन से सोचिए की क्या ये सब ठीक है. सुरिंदर से नाता जोड़ के हर पल मैने घुट घुट कर जिया है. अब दुबारा शायद ऐसा हुआ तो मेरा चरित्र पूरी तरह बिखर जाएगा. हालाँकि ये बात बिल्कुल सही है कि हमारे बीच बहुत सुंदर संभोग की संभावना है. लेकिन मेरी परिस्थितियों के कारण ये सुंदरता मुझे नर्क के समान लगती है. यही कारण था कि मैने आपके सवाल का जवाब नही दिया."
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राज शर्मा ये सब सुन कर मोनिका से दूर हट जाता है.
क्रमशः.........................
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 49
गतान्क से आगे...........
मोहित अब बिल्कुल ठीक था. लेकिन उसका दिल बीमार हो गया था शायद. बिके लेकर वो पूजा के कॉलेज के सामने खड़ा था. कॉलेज की लड़किया अंदर बाहर जा रही थी लेकिन पूजा उसे कही नज़र नही आ रही थी. उसके चेहरे पर निराशा उभरने लगी थी.
"कहाँ हो पूजा तुम. हर वक्त क्लास में बैठी रहती हो क्या." मोहित ने सोचा.
तभी उसे दो लड़कियों के साथ कॉलेज के गेट से पूजा निकलती हुई दिखाई दी. मोहित का चेहरा खिल उठा. उसने तुरंत बाइक स्टार्ट की और पूजा के आगे रोक दी. अचानक अपने सामने बाइक देख कर लड़किया थीतक गयी. पूजा की आँखो में खून उतर आया.
"तुम! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" पूजा ने पूछा.
"तुम जानती हो इसे." एक लड़की ने पुछस.
"हां हमारे पड़ोस में रहता है."
"दिल में भी तो नही रहता कहीं...हे...हे...हे." दूसरी लड़की ने चुस्की ली.
"ऐसा कुछ नही है. आइ हटे हिं."
मोहित सब सुन रहा था. "नफ़रत में भी उनकी प्यार नज़र आता है, मैं लाख संभालू दिल को ये उनकी ओर खींचा जाता है."
"ये तो कोई शायर लगता है हे..हे..हे." दोनो लड़किया हँसने लगी.
"चलो यहाँ से ये पागल है." पूजा दोनो को लेकर आगे बढ़ गयी. लेकिन दोनो लड़किया पीछे मूड के मोहित को देखती रही.
"हमें छोड़ के जा रही हो, हम तड़प कर रह जाएँगे
तुम्हारे साथ तो दो कलियाँ हैं हम अकेले रह जाएँगे."
"वाउ सो रोमॅंटिक. देखा वो हमें कलियाँ कह रहा है. रूको ना यार अच्छा बंदा लगता है." एक लड़की ने कहा.
"बहुत बड़ा फ्लर्ट है वो. चलो हमें मूवी के लिए देर हो जाएगी." पूजा ने कहा.
ये बात मोहित ने भी सुन ली. उन तीनो ने एक ऑटो पकड़ा और थियेटर के लिए निकल पड़ी. पीछे पीछे मोहित ने भी अपनी बाइक लगा दी.
"अगर तुम्हे पटा नही पाया तो जिंदगी बेकार है मेरी." मोहित ने सोचा.
थियेटर पहुँच कर तीनो लड़किया अंदर घुस्स गयी. उन्होने मोहित को नही देखा. मोहित भी टिकेट ले करूके पीछे पीछे आ गया.
"हाई...ये तो दीवाना लगता है. तुम्हारे पीछे यहाँ तक आ गया."
"मज़ाक कर रही हो ना कविता?" पूजा ने पूछा.
"मूड के तो देख वो बिल्कुल तेरे पीछे बैठा है." कविता ने कहा.
अभी पिक्चर शुरू नही हुई थी. इसलिए लाइट जली हुई थी.
पूजा ने तुरंत पीछे मूड कर देखा, "तुम यहाँ भी आ गये. क्या चाहते हो तुम."
मोहित पूजा की ओर झुका और बोला, "मुझे जो चाहिए वो तुम्हे पता है. इनके सामने कैसे कहु समझा करो."
"शट उप." पूजा ने डाँट दिया.
"क्या कह रहा था वो चुपके से तुझे?" कविता ने पूछा.
"कुछ नही...तू उस पर ज़्यादा ध्यान मत दे...पागल है वो." पूजा ने कहा.
लाइट बंद हो गयी और पिक्चर शुरू हो गयी. मोहित पूजा की तरफ झुका और बोला, "हम दोनो साथ में देखे ये रोमॅंटिक पिक्चर तो ज़्यादा अच्छा लगेगा. पीछे आ जाओ ना मेरे साथ. मेरे साथ की सीट खाली पड़ी है."
"क्या समझते हो खुद को तुम. तुम बुलाओगे और मैं आ जाउन्गि हा. तुम्हारे पास आएगी मेरी जुत्ति. चुपचाप बैठे रहो वरना चप्पल मारूँगी निकाल के."
"नही नही ऐसा काम मत करना. आज तक मैने चप्पल नही खाई." मोहित ने कहा.
"नही खाई तो अब खाओगे. मुझे गुस्सा मत दिलाओ चुपचाप बैठे रहो"
मोहित वापिस चुपचाप सीट पर बैठ गया.
"क्या करू ये तो आग उगल रही है?" मोहित बड़बड़ाया.
कुछ देर बाद कविता को पता नही क्या सूझी, वो अपनी सीट से उठ कर मोहित के पास आ कर बैठ गयी. पूजा भी ये देख कर हैरान रह गयी. लेकिन वो कुछ नही बोली. मोहित तो हैरान था ही.
"तुम्हारा शायराना अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगा. मेरा नाम कविता है. क्या मुझपे कविता लिखोगे." कविता मोहित के घुटने पर हाथ रख कर बोली.
"मैं कोई शायर नही हूँ देवी जी. वो तो मैं यू ही कुछ जोड़-तोड़ कर बोल रहा था आपकी सहेली के लिए. पूजा से मेरा टांका भिड़वा दो ना." मोहित ने कहा.
"मुझे लगता है उसका तुम्हारे में कोई इंटेरेस्ट नही है. तुम किसी और पर ट्राइ क्यों नही करते."
"किस पर ट्राइ करू आप ही बता दो."
"मैं हूँ ना. तुम शायर हो. मैं तुम्हारी कविता बन जाउन्गि." कविता का हाथ धीरे धीरे मोहित की जाँघ की तरफ बढ़ रहा था.
"ये आप क्या कह रही है." मोहित तो भोंचक्का रह गया. लेकिन उसने कविता का हाथ नही हटाया. हटाता भी क्यों. ऐसा रोज रोज थोडा होता है किसी के साथ.
"आपका हाथ ग़लत जगह पर पहुँच रहा है. आपकी सहेली ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी."
"छोड़िए ना उसे अपनी बात कीजिए." कविता का हाथ मोहित के लंड पर पहुँच गया. लंड पर कविता का हाथ पड़ते ही वो तुरंत हार्ड हो गया.
"आअहह आप तो शीतम ढा रही हैं मुझ पर." मोहित ने कहा.
कविता ने मोहित की पॅंट की ज़िप खोल दी और उसके तने हुए मोटे लंड को बाहर खींच लिया.
"ओह माइ गॉड इट्स आ वंडरफुल कॉक. इट्स ह्यूज. मैने इतना बड़ा नही देखा आज तक."
"देवी जी कितने देखे हैं आप ने ये भी बता दीजिए."
"मेरे अब तक तीन बाय्फ्रेंड रहे हैं और मैने तीनो के देखे हैं."
"बहुत खूब. देखे ही हैं या लिए भी हैं आपने." मोहित ने चुस्की ली.
"तुम्हे क्या लगता है?"
"नही लिए होंगे. आप सिर्फ़ देखती होंगी उन्हे हैं ना." मोहित ने मज़ाक में कहा.
"नही जनाब तीनो पूरे के पूरे लिए हैं. तुम्हारा क्या विचार है. मुझसे दोस्ती करोगे?"
"मैं पूजा को चाहता हूँ." मोहित ने कहा.
कविता ने मोहित के लंड को ज़ोर से दबाया और बोली, "पूजा को मारिए गोली. वहाँ तुम्हे कुछ नही मिलेगा. देखा नही वो तुमसे बात भी नही कर रही. वो तुम्हे पागल कह रही थी. खुद पागल है वो."
पूजा और दूसरी लड़की रीमा पिक्चर देखने में मगन थे. उन्हे इस बात का अंदाज़ा भी नही था की उनके पीछे कविता मोहित का लंड हाथ में लिए बैठी है.
"मैं तुम्हे वो ख़ुसी दूँगी कि भूल जाओगे सब कुछ." कविता ने कहा और आगे झुक कर मोहित के लंड को अपने होंठो में दबा लिया.
"आअहह पहली बार ये किसी के मूह में गया है."
कविता ने मोहित के लंड से मूह हटाया और बोली, "क्या? इतने सेक्सी डिक को अभी तक ब्लो जॉब नही मिली. आइ कॅंट बिलीव इट."
"नही मिली तो नही मिली अब क्या कर सकते हैं. हर लड़की मूह में नही लेती है."
"मुझसे दोस्ती करोगे तो मज़े में रहोगे. आइ लव टू सक. कोई शायरी कहो ना."
"मेरे लंड को लिया आपने मूह में तो मच्छल उठा हूँ मैं
मगर अगर पूजा ने देख लिया तो बर्बाद हो जाउन्गा."
"ये कैसी शायरी है. पूजा को बीच में क्यों लाते हो." कविता ने कहा और फिर से मोहित के लोंड को मूह में घुसा लिया.
वो दोनो धीरे धीरे बोल रहे थे लेकिन फिर भी डिस्टर्बेन्स हो रही थी पूजा को. उसे समझ तो कुछ नही आ रहा था लेकिन ख़ुसर फुसर से परेशान हो रही थी.
"क्यों बाते कर......" पूजा पीछे मूड कर बोली लेकिन बोलते बोलते रुक गयी क्योंकि वो भोंचक्की रह गयी थी.
मोहित का लंड तो पूजा को नही दिखा. वो तो कविता के मूह में छिपा था. वैसे भी अंधेरा था. पूजा को समझने में देर नही लगी कि उसके बिल्कुल पीछे ब्लो जॉब दी जा रही है. मोहित की आँखे बंद थी. वो तो पहली ब्लो जॉब के सरूर में खोया था. लेकिन कोयिन्सिडेन्स था कि जब पूजा पीछे मूडी उसकी आँखे खुल गयी.
"अरे हटो क्या कर रही हो. मेरी तो आँख ही लग गयी थी. ये सब क्या हो रहा है यहाँ." मोहित ने कविता के सर को धक्का दिया.
कविता ने लंड को मूह से निकाल दिया और बोली, "ये क्या बोल रहे हो?"
तभी उसकी नज़र पूजा पर गयी, "अच्छा पूजा ने देख लिया ह्म्म. हे..हे...हे...पूजा तुम्हे तो कोई दिक्कत नही है ना."
"तुम दोनो भाड़ में जाओ मुझे कुछ नही लेना देना." पूजा वापिस मूड गयी.
"करवा दिया मेरा काम खराब तुमने. अब दुबारा ऐसा मत करना लीव मी अलोन."
"मैं बाहर टाय्लेट में जा रही हूँ. आ जाओ पूरा अंदर ले लूँगी." कविता ने कहा.
"तू तो मुझे भी अंदर ले लेगी पूरा. मुझे माफ़ करो मेरा कोई इंटेरेस्ट नही है. आपने बहुत मनोरंजन कर दिया मेरा अब प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो. मुझे मूवी देखनी है."
"मूवी देखने तो नही आए थे तुम. झूठ बोल रहे हो."
मोहित ने अपने लंड को वापिस पॅंट में डाल लिया और चुपचाप बैठ गया. कविता भी चुपचाप वही बैठी रही.
"पूजा सॉरी, ये सब कविता ने किया. सच में मेरी कोई मर्ज़ी नही थी." मोहित ने पूजा की तरफ झुक कर कहा.
"आइ डोंट गिव ए डॅम अबौट इट. लीव मी अलोन." पूजा ने गुस्से में कहा.
कविता ये देखते हुए भी की मोहित उसमे कोई इंटेरेस्ट नही ले रहा है फिर भी उसके पास से नही उठी. मोहित तो हैरान और परेशान बैठा था. पूजा के सामने उसकी छवि और खराब हो गयी थी.
"लगता है कोई चान्स नही है मेरा अब. अब तो और भी मुस्किल हो गयी है. क्या करू अब?" मोहित सोच में डूबा था.
"तुम कहा खो गये? इस पूजा की चिंता आप मत कीजिए, ये ऐसी ही है तुनक मिज़ाज़."
"फिर किसकी चिंता करू अगर उसकी नही करू तो" मोहित इरिटेटेड टोन में बोला.
"मुझमे क्या कमी है. मुझे तुम्हारा शायराना अंदाज़ पसंद आया. मुझे लगा कि हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं. लेकिन तुम तो खफा ही हो गये."
"देखो मैं सिर्फ़ पूजा के लिए यहाँ बैठा हूँ वरना कब का चला जाता. मुझे अकेला छोड़ दो प्लीज़."
"मज़ा तो तुम्हे खूब आ रहा था जब मैं सक कर रही थी. पूजा ने देख लिया तो तुम अपना मज़ा भूल गये. मैं हर किसी को ब्लो जॉब नही देती हूँ. रही बात पूजा की तो सुनो उसका अफेर है एक लड़के से. खूब अच्छे से देती है ये उसे. तुम उस पर वक्त बर्बाद मत करो. मेरा ब्रेकप हो चुका है और मैं अभी फ्री हूँ. मुझे यकीन है कि हमारी खूब जमेगी."
"किसके साथ अफेर है पूजा...विक्की के साथ?" मोहित ने पूछा.
"हां हां, तुम्हे कैसे पता?"
"तुम्हे उस से कोई लेना देना नही है."
"उफ्फ यही अदा तुम्हारी जान ले रही है. जालिम हो एक नंबर के तुम तो."
"मेरी मा छोड़ दे अकेला मुझे तू अब. मुझे पूजा के साथ सेट्टिंग करनी है जो कि तुम्हारे होते नही हो पाएगी."
"पूजा के चक्कर में तुम वेट आंड हॉट पुश्सी से हाथ धो बैठोगे. आइ आम रेडी फॉर यू. टेक मी."
"माइ गॉड...तुम्हारे जैसी लड़की नही देखी मैने आज तक जो खुद अपनी चूत पारोष दे बिना माँगे."
"अब पारोष दी है तो ये बताओ कि खाओगे की नही."
ना चाहते हुए भी इन बातो से मोहित के अंदर बेचैनी होने लगी थी. उसका लंड हरकत करने लगा था. कविता शायद ये समझ रही थी. उसने मोहित के घुटने पर हाथ रख कर धीरे धीरे हाथ को मोहित के लंड तक सरका लिया था. उसके उत्तेजित लंड को वो महसूस कर रही थी.
क्रमशः.........................
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 50
गतान्क से आगे...........
"मैने जो तुम्हे पारोशा है उसे देख कर मूह में पानी तो आ गया है तुम्हारे लेकिन पूजा के कारण खाने से डर रहे हो. खाना ठंडा हो जाए इस से पहले खा लो. किस्मत वाले हो तुम जो तुम्हे पारोष रही हूँ. हर किसी को नही परोसती मैं."
"यहाँ कैसे खाउ मेरी मा. पूजा ने देख लिया तो रहा सहा चान्स भी ख़तम हो जाएगा. मुझे बहकाओ मत, अगर मैं बहक गया तो बुरा हाल कर दूँगा मैं तुम्हारा."
"थियेटर खाली ही है. पीछे की तरफ चलते हैं...वहाँ तक पूजा की नज़र नही जाएगी." कविता ने कहा.
मोहित फ़ौरन सीट से उठ जाता है. उसे ऐसा लगता है कि अगर कविता के साथ वो बहक गया तो पूजा को पटाना बहुत ही मुस्किल हो जाएगा. वो पूजा के सर के पास झुका और बोला, "कैसी-कैसी थर्कि सहेलिया बना रखी है तुमने. परेशान कर दिया मुझे. जा रहा हूँ मैं ये अच्छी ख़ासी पिक्चर छोड़ के."
"तो जाओ ना हू केर्स." पूजा ने कहा.
"अपने आशिक़ की कभी तो चिंता किया करो." मोहित ने कहा.
"गो टू हेल"
"ओके गोयिंग, मैं हाथ में फूल ले कर इंतज़ार कारूगा वहाँ तुम्हारा. तुम कब आओगी."
"हेल ईज़ फॉर यू, नोट फॉर मी...गेट लॉस्ट."
"बहुत गरम हो भाई, कसम से बदन जल जाएगा मेरा जब मैं तुमसे लिपटुँगा."
"जाते हो कि नही तुम. मुझे पिक्चर देखने दो."
"जा रहा हूँ जी. बहुत बहुत धन्यवाद आपका."
कविता लगातार मोहित को ही देख रही थी. लेकिन वो उसे इग्नोर करके सीधा बाहर आ गया. उसने अपनी बाइक पर बैठ कर बाइक स्टार्ट की ही थी के उसे कविता आती दिखाई थी.
"आ गयी चूत परोसने वाली क्या करू इसका. जल्दी निकलता हूँ यहाँ से"
लेकिन कविता तो तेज़ी से आकर उसके पीछे बैठ गयी.
"अच्छा किया तुमने जो बाहर आ गये. चलो कही और चलते हैं जहा सिर्फ़ हम तुम हो"
"तुम ऐसे नही मानोगी. चल तेरी चूत की आग बुझाता हूँ आज." मोहित बाइक स्टार्ट करते हुए बोला.
"मैं तो कब से तड़प रही हूँ...बुझाओ ना."
"आज तुझे पता चलेगा कि तूने ग़लत बंदे को पारोष दी चूत अपनी. बहुत बुरी तरह खाता हूँ मैं."
"हाई राम मैं तो मर ही जाउन्गि. जैसे भी खाना खाना ज़रूर."
"थर्कि हो तुम...थर्कि"
"ये थर्कि क्या होता है?" कविता ने पूछा.
"खुद को समझ लॉगी तो थर्कि का मतलब जान जाओगी"
"बहुत अकेली थी मैं कुछ दिनो से. तुम मिले तो बहार आ गयी."
"क्या हुआ तुम्हारे बॉय फ्रेंड का?"
"ब्रेक अप हो गया बताया ना."
"ओह हां तो कोई और बॉय फ्रेंड ढूँढ लो."
"ढूँढ तो लिया... तुम हो ना"
"मैं बिल्कुल नही हूँ समझ लो अच्छे से"
"कोई बात नही आज के लिए तो हो ही."
"बिल्कुल बिल्कुल ये ठीक है"
मोहित का घर वैसे खाली था. लेकिन वो कविता को घर नही ले जाना चाहता था. क्योंकि उसे डर था कि कही रोज ना टपक पड़े वो उसके घर. इसलिए मोहित ने बाइक घने जुंगलो की तरफ मोड़ ली.
"जंगल में मंगल करोगे तुम?" कविता ने पूछा.
"बिल्कुल तुम्हारे जैसी वाइल्ड नेचर की लड़की के लिए ये जंगल ही ठीक है."
मोहित ने बाइक जंगल में घुसा दी और रोक दी. "ज़्यादा अंदर नही जाएँगे यही सड़क के नज़दीक ठीक रहेगा."
"थोड़ा तो आगे चलो...सड़क के किनारे डर लगेगा मुझे."
मोहित ने बाइक वही खड़ी कर दी और कविता का हाथ पकड़ कर थोड़ा और आगे आ गया जंगल में.
"कुछ भयानक सा सन्नाटा है यहाँ. तुम मुझे अपने घर नही ले जा सकते थे क्या? डर लग रहा है मुझे यहाँ." कविता ने कहा.
"डरने की क्या बात है. मैं हूँ ना साथ में."
"फिर भी डर लग रहा है मुझे. प्लीज़ मुझे कही और ले चलो."
"पहले तो बड़ी बेचैन हो रही थी चूत ठुकवाने के लिए...अब तुम्हे डर लग रहा है."
"देखो मुझे पता नही क्यों कुछ अहसास हो रहा है कि यहाँ कुछ गड़बड़ है. देखो ना अजीब सी खामोसी और सन्नाटा है यहाँ. मेरी बात मानो चलो यहाँ से."
"जंगल ऐसे ही होते हैं. यहाँ कोई बॅंड बाजा तो लेकर घूमेगा नही तुम्हारे लिए. अब यहाँ आ गये हैं तो काम करके ही जाएँगे. भड़का दिया है तुमने मुझे अब भुग्तो."
"वो तो मैं भुगत लूँगी पर मेरा यकीन करो यहाँ कुछ अजीब लग रहा है मुझे."
"कुछ अजीब नही है. जल्दी से ये जीन्स नीचे सरकाओ और जो पोज़िशन तुम्हे कंफर्टबल लगे लगा लो. मेरा लंड तैयार है आपके लिए." मोहित ने लंड बाहर खींच लिया.
"इतना प्यारा लंड दिखाओगे तो कोई कैसे थामेगा खुद को. मुझे डर तो लग रहा है. तुम कहते हो तो ठीक है. लेट्स डू इट क्विक्ली."
"क्विक्ली नही देवी जी. अब जब आपने भड़का दिया है मुझे तो बहुत तसल्ली से लूँगा तुम्हारी मैं...जल्दी फ्री नही होने वाली तुम."
"तो फिर घर ले जाते ना मुझे यहाँ क्यों लाए हो. ये जंगल क्या तसल्ली से करने की जगह है."
"तू ख़ामा खा डर रही है. पूरी तरह सेफ है ये .."
"तुम इतने विस्वास से कैसे कह सकते हो."
मोहित के पास कोई जवाब नही था.
.........................................................
राज शर्मा शालिनी के साथ जीप में निकल चुका था. वो ड्राइव कर रहा था और शालिनी साथ बैठी थी.
"ट्रैनिंग कैसी चल रही है तुम्हारी."
"जी मेडम बिल्कुल ठीक चल रही है. चौहान जी बहुत अच्छे से सीखा रहे हैं मुझे." राज शर्मा ने कहा.
"गुड. पद्मिनी को मेरे पास ला कर अच्छा किया था तुमने."
"हां मेडम. मुझे यकीन था कि आप सच को समझेंगी. आप ही के कारण तो ये नौकरी मिली है मुझे. मैं तो चक्कर लगा लगा कर थक गया था. आप ना आती तो मेरी जाय्निंग कभी ना होती."
"ईमानदारी से ड्यूटी करना हमेशा. पोलीस में आकर बिगड़ जाते हैं लोग अक्सर."
"आपको शिकायत का मोका नही दूँगा मेडम. वैसे बाहर में कहाँ जाना चाहेंगी आप"
"वैसे ही राउंड लेने का मन था. पूरे बाहर का चक्कर लगाना है मुझे."
"मेडम जी एक बात पुँच्छू बुरा ना माने तो."
"हां पूछो?"
"आप पोलीस में कैसे आ गयी."
"कैसे आ गयी मतलब. सिविल सर्विस का एग्ज़ॅम पास करके आई हूँ."
"सॉरी मेडम मेरा मतलब ये था कि क्या आपका इंटेरेस्ट था पोलीस में या फिर...."
"आइ एफ एस बन-ना चाहती थी मैं तो बन गयी आइ पी एस पर कोई बात नही दिस ईज़ गुड सर्विस."
"मेरी तो हमेशा से इच्छा थी पोलीस में आने की आपके कारण सपना साकार हुआ मेरा. आपका अहसान जिंदगी भर नही भूलूंगा मैं."
"ये कहाँ आ गये हम ये तो दोनो तरफ जंगल है." शालिनी ने कहा.
"हां मेडम ये बहुत बड़ा जंगल है. इसी रोड पर हादसा हुआ था पद्मिनी जी के साथ."
"ओह हां याद आया. पहली बार आई हूँ मैं इस तरफ."
"बहुत बड़ा जंगल है मेडम ये बाहर के बीच में. क्रिमिनल लोग अच्छा फ़ायडा उठाते होंगे इसका."
"बिल्कुल सही कह रहे हो. ऐसे सुनसान जंगल अक्सर क्राइम का अड्डा बन जाते हैं. वो...वो...कौन हैं जंगल में."
राज शर्मा फ़ौरन जीप रोक देता है.
"कहाँ मेडम...मुझे कुछ दिखाई नही दिया."
"नही मैने देखा अभी एक साए को इस तरफ. शायद उसने भी हमें देखा. वो छुप गया है शायद. चलो देखते हैं." शालिनी जीप से उतर जाती है.
"क्या देख लिया इन मेडम साहिबा ने मुझे कुछ दिखाई नही दिया." राज शर्मा जीप से उतरते वक्त बड़बड़ाया.
शालिनी ने अपनी सर्विस पिस्टल निकाल ली और बोली, "कौन है वहाँ बाहर आ जाओ वरना गोली मार दूँगी."
"किसी जुंगली जानवर को ना मार दे ये कयामत. बैठे बिठाये मुसीबत हो जाएगी."
"मेडम शायद कोई जानवर होगा?"
"शट अप यू ईडियट. मेरी आँखे धोका नही खा सकती. मैने देखा था किसी को....हे कौन हो तुम बाहर आओ."
बाहर तो कोई नही आया लेकिन एक गोली तेज़ी से शालिनी की और आई और उसके सर के बिल्कुल बाजू से निकल गयी. शालिनी फ़ौरन ज़मीन पर लेट गयी. राज शर्मा के पास तो कुछ था नही. वो जीप के पीछे छुप गया."मेडम सही कह रही थी. कौन है ये बंदा जो सारे आम पोलीस पर गोली चला रहा है."
शालिनी धीरे धीरे झुके झुके हाथ में पिस्टल लिए आगे बढ़ रही थी. शालिनी ने फाइयर किया. फाइयर होते ही किसी के भागने की आहट हुई. राज शर्मा भी नीचे झुक कर धीरे धीरे शालिनी के पास आ गया.
"आप सही कह रही थी मेडम"
"मैं हमेशा सही कहती हूँ. आगे से मेरी स्टेट्मेंट पर डाउट किया तो सस्पेंड कर दूँगी"
"नही करूगा मेडम. बिल्कुल नही कारूगा. लगता है वो भाग गया."
"मेरे उपर गोली चलाने वाले को मैं छोड़ूँगी नही...चलो पकड़ते हैं उसे."
"मेडम हम सिर्फ़ 2 हैं. और लोगो को बुला लूँ क्या."
"हां चौहान को फोन करो...तब तक हम कोशिस करते हैं उसे पकड़ने की."
"मेडम देख लो ये जंगल है. वो छुपा बैठा होगा कही और हमें निसाने पर ले लेगा. मेरे पास तो कुछ भी नही है. अभी तक सर्विस पिस्टल नही मिली मुझे."
"तुम मेरे पीछे पीछे आओ मैं हूँ ना साथ"
राज शर्मा चौहान को फोन करता है और उसे सारी सिचुयेशन बता देता है. वो कहता है कि 20 मिनिट में पोलीस की 2 पार्टीस पहुँच जाएँगी वहाँ.
"मेडम कही ये साइको ही तो नही है. बिना सोचे समझे पोलीस पर गोली चला दी इसने. ऐसा कोई पागल ही कर सकता है. उसे बाहर आने को ही तो बोल रही थी आप. कुछ और तो नही कहा था उसे."
"सही कह रहे हो शायद ये साइको ही है." शालिनी का ध्यान बोलते वक्त भटक जाता है और वो एक . से टकरा कर गिरने लगती है. राज शर्मा उसे संभालने की कोशिस करता है लेकिन उसका बॅलेन्स भी डगमगा जाता है और वो शालिनी को संभालने की बजाए उसको साथ लेकर उसके उपर गिरता है. बहुत ही चिंता ज़नक और नाज़ुक स्थिति बन जाती है. ए एस पी साहिबा नीचे पड़ी है और अपना राज शर्मा उसके उपर.
क्रमशः........................
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 53
गतान्क से आगे...........
रात के कोई 2 बजे आँख खुल गयी बेचारी पद्मिनी की. स्वीट ड्रीम्स की जगह वेट ड्रीम्स हो गया था. इस बार फिर कारण राज शर्मा ही था. सपने में पद्मिनी ने देखा कि राज शर्मा उसके उभारो को चूम रहा है और उसने राज शर्मा के सर को थाम रखा है. वो राज शर्मा को बार बार कह रही थी 'आइ लव यू....आइ लव यू'
"उफ्फ फिर से वही भयानक सपना. पर ये सच नही होगा. रात के 2 बजे हैं. सुबह के सपने ही सच होते हैं. पर पहले वाला सपना सुबह आया था. नही नही राज शर्मा के साथ ये सब च्ीी....कभी नही. पता नही ये राज शर्मा मेरे पीछे क्यों पड़ गया है. मैं उसके इरादे कभी कामयाब नही होने दूँगी.
राज शर्मा पद्मिनी को घर छोड़ कर सीधा घर पहुँचा था. घर पहुँचते ही उसे नगमा का फोन आया. "पोलीस वाला बनके तू तो भूल ही गया मुझे."
"नही नगमा तुझे कैसे भूल सकता हूँ. बताओ क्या बात है."
"बापू गये फिर से किसी काम से बाहर आ रही हूँ मैं तेरे पास."
"नही नगमा सुन." पर नगमा फोन काट चुकी थी.
राज शर्मा तो पद्मिनी जी के ख़यालो में खोया था. वो परेशान हो रहा था कि पता नही क्यों पद्मिनी जी उस से ऐसा बर्ताव करती हैं जबकि उसकी इंटेन्षन तो हमेशा उनकी मदद करने की रहती है. बार-बार पद्मिनी जी का चेहरा उसकी आँखो में घूम जाता है. वो कुछ हैरान सा है कि ऐसा क्यों हो रहा है. लेकिन पद्मिनी जी के रूप का जादू कुछ अजीब सा असर कर रहा था राज शर्मा के दिलो दीमाग पर. हालाँकि अपना राज शर्मा इन बातों से बिल्कुल बेख़बर था.
नगमा ने दरवाजा खड़काया तो राज शर्मा परेशान हो गया. दरअसल पता नही क्यों वो अकेला रहना चाहता था. खूबसूरत ख़यालो में जो खोया था.
"खोलता हूँ बाबा."
दरवाजा खुलते ही नगमा राज शर्मा से लिपट गयी.
"बहुत दिन हो गये तुमसे मिले राज शर्मा. तुमसे मिलने आई हूँ मैं आज."
"ग़लत वक्त पर आई है तू. थोड़ा परेशान सा था मैं."
"क्या हुआ मेरे राज शर्मा को?"
"कुछ नही बस यू ही."
"अभी इलाज़ करती हूँ मैं तेरा. चल बिस्तर पर."
"नही नगमा आज कुछ मूड नही है."
"बहुत दिन हो गये तू मुझसे एक बार भी नही मिला और आज मूड नही है तेरा. कोई बहाना नही चलेगा तेरा. और हां मुझे कुछ नही चाहिए तुझसे. कुछ देना ही चाहती हूँ तुझे."
"क्या देना चाहती हो नगमा?"
"चलो तो सही बिस्तर पे बताती हूँ."
नगमा राज शर्मा को पीछे धक्का देते हुए बिस्तर के नज़दीक ले आती है और फिर उसे धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा देती है. वो राज शर्मा की टाँगो के बीच बैठ जाती है और उसकी ज़िप खोलने लगती है.
"क्या कर रही है. मेरा सच में मूड नही है."
"रुक तो सही देखता जा मैं क्या करती हूँ."
नगमा राज शर्मा का लंड निकाल लेती है बाहर. "ये तो शोया पड़ा है. पहले तो मेरा हाथ लगते ही उठ जाता था. चलो कोई बात नही अभी जाग जाएगा ये."
नगमा शोए हुए, मुरझाए हुए लंड को मूह में ले लेती है और चूसने लगती है.
"तू तो कभी नही लेती थी मूह में. आज क्या हो गया."
"वो कमीना भोलू काई बार चुस्वा चुका है मुझसे. जब उसका चूस लिया तो क्या मेरे राज शर्मा का नही चुसुन्गि क्या?"
"ग़लत टाइम पे आई तू ये करने आज थोड़ा व्यथित हूँ मैं."
नगमा राज शर्मा के लंड को मूह से निकाल कर उसके उपर लेट जाती है और उसकी आँखो में झाँक कर पूछती है, "क्या हुआ मेरे राज शर्मा को. बताओ मुझे."
"कुछ नही तू नही समझेगी."
"समझूंगी क्यों नही तू बता तो."
"आज पद्मिनी जी से मिला था. पता नही क्यों. वो मुझसे सीधे मूह बात ही नही करती." राज शर्मा पूरी बात बताता है नगमा को.
"बस इतनी सी बात है. अरे वो डरती होगी कि कही तुम किसी दिन झुका कर उसे उसकी गान्ड ना मार लो. सब बता रखा है मैने उसे की कैसे झुका कर लेते हो तुम...हा...हा...हा...हे...हे."
"क्या! कैसी कैसी बाते बता रखी हैं तूने मेरे बारे में पद्मिनी जी को. तभी कहु वो इतना दूर क्यों भागती है मुझसे."
"छोड़ ना उसे तू. क्यों बेकार में परेशान हो रहा है उसके लिए. मैं तेरे लिए कुछ अलग करने आई थी और तू ये रोना लेकर बैठ गया. चल मुख मैथुन का आनंद ले." नगमा वापिस आ कर राज शर्मा के लंड पर झुक गयी और उसे मूह में लेकर चूसने लगी.
"और क्या बता रखा है मेरे बारे में तूने?"
नगमा राज शर्मा का लंड मूह से निकालती है और कहती है, "तेरे लंड का साइज़, तेरे प्यार करने का तरीका सब बता रखा है. ये भी बता रखा है कि कैसे गान्ड पकड़ कर तुम चूत में लंड घुसाते हो. और ये भी बता रखा है कि तुम चुचियों को बहुत अच्छे से चूस्ते हो. तुम्हारे बारे में बातो बातो में सब बता रखा है."
"मतलब कि बहुत अच्छे तरीके से मिट्टी पलीट कर रखी है तूने मेरी. तुझे शरम नही आई उनसे ये बाते करते हुए. वो तो ये बाते सुनती ही नही होंगी. तूने ज़बरदस्ती सुनाई होंगी."
"मुझे बोलने की आदत है. बोल दिया सब बातो बातो में. क्यों परेशान हो रहे हो."
"परेशान होने की बात ही है. मेरी छवि खराब हो रखी है उनकी नज़रो में.. सीधे मूह बात भी नही करती वो मुझसे. आज बहुत दुख हुआ मुझे तू नही समझेगी."
"मैं सब समझ गयी. तेरा मन मुझसे भर गया है और अब तू पद्मिनी जी की लेना चाहता है. हां मानती हूँ बहुत सुंदर है वो लेकिन जैसा मज़ा मैं देती हूँ तुझे वो सात जनम भी नही दे सकती."
"नगमा! चुप रहो." राज शर्मा चिल्लाता है. "कुछ भी बोल देती हो. मैं बहुत इज़्ज़त करता हूँ उनकी. ऐसा कुछ नही है जो तू समझ रही है."
"बस अब यही कमी रह गयी थी. अब पद्मिनी के लिए मुझे डाँट भी पड़ रही है. ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने तुझ पर. सच सच बता तू कही प्यार तो नही करने लगा पद्मिनी जी को."
"प्यार नाम के शब्द से भी कोसो दूर रहता हूँ मैं तू ये अच्छे से जानती है. मैने पद्मिनी जैसी लड़की नही देखी दुनिया में कही. मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ बस."
"राज शर्मा मैने कभी प्यार नही पाया किसी का. कोई मिला ही नही जो मुझे प्यार करे. सब मेरे शरीर के पीछे थे. मैने भी कोशिस नही की प्यार पाने की. पर प्यार के अहसास को समझती हूँ मैं. हिन्दी फ़िल्मो में खूब देखा है प्यार का जलवा मैने. तुम्हारी बातो से यही लगता है कि तुम पद्मिनी को चाहने लगे हो. वरना तुम भला क्यों परवाह करोगे कि वो तुम्हारे बारे में क्या सोचती है. जिस तरह से तुम बाते कर रहे हो, कोई भी बता सकता है कि तुम पद्मिनी के प्रेम-जाल में फँस चुके हो. मेरा अब यहाँ कोई काम नही है. मैं चलती हूँ. अपना ख्याल रखना."
नगमा उठ कर चल देती है.
राज शर्मा अपने लिंग को वापिस पंत में डालता है और उठ कर नगमा का हाथ पकड़ लेता है.
"तू तो नाराज़ हो गयी. बहुत बड़ी बड़ी बाते कर रही है पगली कही की. चल आ बैठ तो सही."
"नही राज शर्मा, तुम्हारी आँखो में अब पद्मिनी का चेहरा दीख रहा है मुझे. तुम खुद सोच कर देखो. क्यों करते हो इतनी परवाह और चिंता पद्मिनी की तुम."
"शायद इंसानियत के नाते."
"आज क्यों गये थे पद्मिनी के ऑफीस तुम."
"मुझे उनकी चिंता हो रही थी. मुझे डर था की कही साइको उन्हे नुकसान ना पहुँचा दे."
"पूरे पोलीस महकमे में तुम्हे ही ये ख़याल आया. क्या कोई और नही है पोलीस में जिसे पद्मिनी की चिंता हो."
"कैसी बाते करती है. मुझे उनका ख़याल आया और मैं चला गया. हर कोई पद्मिनी जी की चिंता क्यों करेगा."
"वही तो मैं कहना चाहती हूँ. दिल में बस चुकी है पद्मिनी तुम्हारे. अपने आप को धोका मत दो."
राज शर्मा का सर घूमने लगता है और वो वापिस बिस्तर पर आकर सर पकड़ कर बैठ जाता है. नगमा राज शर्मा के पास आती है और उसके सर पर हाथ रखती है.
"क्या हुआ राज शर्मा?"
"सर घूम रहा है मेरा. कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या कह रही हो तुम."
"मुझे जो लगा मैने बोल दिया. मैं ग़लत भी हो सकती हूँ. असली बात तो तुम ही जानते हो."
"मुझे कुछ नही पता नगमा, सच में कुछ नही पता."
"क्या मैं यही रुक जाऊ तेरे पास. मुझे तेरी चिंता हो रही है. परेशान नही कारूगी बिल्कुल भी. आओ तुम्हारे सर की मालिस किए देती हूँ. अभी ठीक हो जाएगा."
"नगमा बुरा मत मान-ना. तुम्हारी बातो ने मुझे झकझोर दिया है. मैं अकेला रहना चाहता हूँ."
"मुबारक हो. मैं बिल्कुल सही थी. तुम्हे सच में प्यार हो गया है. प्यार में डूबे आशिक अक्सर ऐसी बाते बोलते हैं. ठीक है अपना ख़याल रखना. कोई भी बात हो मुझे फोन कर देना मैं तुरंत आ जाउन्गि."
"मैं तुम्हे छोड़ आउ."
"नही मैं चली जवँगी. अभी तो 9 ही बजे हैं."
नगमा चली गयी और राज शर्मा किन्ही गहरे ख़यालो में खो गया. कब उसने बाहों में तकिया दबोच लिया उसे पता ही नही चला. "पद्मिनी जी ठीक से कुछ कह नही सकता. पर हां शायद आपसे प्यार हो गया है. भगवान भली करें अब मेरी. फिर से कही मैं बर्बाद ना हो जाऊ प्यार में."
राज शर्मा को तो नींद ही नही आई सारी रात. ताकिया बाहों में दबाए कभी इस करवे कभी उस करवट. "राज शर्मा सो जा आराम से कुछ मिलने वाला नही है प्यार में. पहले जब ये आया था जिंदगी में तो बहुत गहरी चोट दे गया था. अब क्या सितम ढाएगा पता नही. पद्मिनी जी तुझे पसंद नही करती हैं समझ ले. तू उनके लायक भी नही है. ऐसे में क्यों सर दर्द मोल लेते हो. जिंदगी जैसी चल रही है चलने दो. कोई ख़तरनाक एक्सपेरिमेंट करने की ज़रूरत नही है, जान पर बन सकती है. सो जाओ कल को ड्यूटी पर भी जाना है. रात के 2 बज गये हैं....उफ्फ."
राज शर्मा ये सब सोच रहा था और उसी वक्त पद्मिनी फिर से एक वेट ड्रीम के कारण उठ बैठी थी अपने बिस्तर पर. सपने में राज शर्मा उसके उभारो का रस पान कर रहा था और वो उसका सर पकड़ कर आइ लव यू कह रही थी.
पद्मिनी दिल पर हाथ रख कर बैठी थी. उसकी हालत देखने वाली थी. "क्या हो रहा है मेरे साथ ये. क्यों आ रहे हैं ये गंदे और भयानक सपने मुझे. राज शर्मा को तो मैं कभी माफ़ नही कारूगी. बदतमीज़ कही का. उसे कोई हक़ नही है मुझे छूने का चाहे वो हक़ीकत हो या सपना."" पद्मिनी ने कहा.
पद्मिनी उठी और पानी पिया. पानी पी कर वो खिड़की पर आ गयी. उसने बाहर झाँक कर देखा. बहुत भयानक सन्नाटा था बाहर. एक ही कॉन्स्टेबल नज़र आ रहा था उसे अपने घर के बाहर. "एक ही खड़ा है ये तो. बाकी के तीन कही दिखाई नही दे रहे. पता नही कैसी शूरक्षा है ये."
पद्मिनी वापिस आ कर लेट गयी. लेकिन दुबारा उसे नींद नही आई.
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..................................
रात बीत गयी और सुबह ने दस्तक दी. राज शर्मा तो एक पल भी नही शोया था. वो नहा धो कर वर्दी पहन कर मोहित के घर की तरफ निकल पड़ा. दिल जब बहुत बेचैन हो किसी बात को लेकर तो अक्सर एक अच्छे दोस्त की याद आती है जिसके साथ अपना गम बाँटने की इच्छा रहती है.
"राज शर्मा तू...सुबह सुबह आज कैसे याद आ गयी मेरी." मोहित ने पूछा.
"पहले ये बता कल क्या तमासा लगा रखा था जंगल में. शूकर मनाओ की मैं साथ था ए एस पी साहिबा के वरना तुम जैल मे पड़े होते अभी. कौन थी वो लड़की और उसे जंगल में क्यों ले गये थे तुम."
"पूछ मत यार. आ बैठ. वर्दी बहुत जच रही है तुझ पे."
राज शर्मा कुर्सी पर बैठ जाता है और मोहित अपने बिस्तर पर.
"हां बताओ अब गुरु क्या मामला था."
"कल पूजा के कॉलेज गया था. अब यार कुछ तो करना होगा ना पूजा को पटाने के लिए. पूजा के साथ दो लड़किया थी. उनमे से एक कविता थी. उसने सारा मामला बिगाड़ दिया मेरा." मोहित पूरी बात डीटेल में बताता है.
"बस मैं उस कविता को मज़ा चखाने के लिए उसकी गान्ड में डाल रहा था. बस फिर तुम लोग आ गये. बहुत अच्छी फ़ज़ीहत हुई मेरी. कही मूह दिखाने लायक नही रहा."
"शूकर मना उस कविता ने बोल दिया कि तुम रेप नही कर रहे थे वरना ए एस पी साहिबा जैल में डाल देती तुम्हे."
"ये तो है...बाल-बाल बचा हूँ मैं. शुक्रिया तेरा दोस्त. अच्छा ये बता कैसा चल रहा है. कल से मैं भी जा रहा हूँ जॉब पर."
"कौन सी जॉब?" राज शर्मा ने पूछा.
"एक प्राइवेट डीटेक्टिव एजेन्सी जाय्न कर ली है मैने. कल से मैं भी बिज़ी रहूँगा."
"बहुत अच्छी बात है ये तो गुरु. मैं पोलीस तुम डीटेक्टिव."
"और बताओ क्या चल रहा है." मोहित ने कहा
"पूछ मत गुरु, एक अजीब मुसीबत में पड़ गया हूँ मैं. कल सारी रात सो भी नही पाया."
"ऐसा क्या हो गया राज शर्मा." मोहित ने पूछा
"लगता है फिर से प्यार हो गया है मुझे."
"क्या बात कर रहा है, कौन है वो बदनसीब?"
"मज़ाक मत करो गुरु. ये मज़ाक की बात नही है." राज शर्मा के चेहरे पर गंभीर भाव थे.
"तूने भी तो मुझे यही कहा था जब मैं हॉस्पिटल में था. कुछ याद आया. अच्छा चल छोड़. बताओ कौन है वो हसीना जो तेरा दिल ले उड़ी."
"पद्मिनी जी...पर किसी को बताना मत." राज शर्मा ने कहा.
"क्या! तुझे पद्मिनी से प्यार हो गया...... क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहा है."
"मैं पहले ही परेशान हू गुरु अब और परेशान मत करो."
"तूने कुछ कहा अभी तक उसे?"
"पागल हो क्या, ज़ुबान खींच लेंगी वो मेरी. कुछ कहूँगा नही कभी. बस अपने दिल तक ही शिमित रखूँगा इस प्यार को मैं."
"फिर तो परेशानी की कोई बात ही नही है, क्यों परेशान हो फिर."
"कल रात नींद नही आई भाई इस चक्कर में. बताओ मैं क्या करू."
"ऐसा है तो बोल दो जाके अपने दिल का हाल पद्मिनी को. दिक्कत क्या है."
"नही गुरु उन्हे कुछ नही कह पाउन्गा. मैं तो बस तुम्हे बता रहा था. मेरा कोई इरादा नही है कि लव के पछदे में पडू फिर से."
क्रमशः.........................
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 54
गतान्क से आगे...........
"पछदे में तो तू पड़ ही चुका है. तेरा दिल पद्मिनी ले गयी मेरा दिल पूजा ले गयी. हम दोनो ही फँस गये यार."
"तेरा तो कुछ हो भी सकता है. मेरा तो दिल ऐसी जगह लगा है जहा कोई चान्स नही है. अच्छा मैं चलता हूँ. 9 बज रहे हैं, ड्यूटी के लिए लेट हो रहा हूँ. अरे हां एक बात और करनी थी."
"हां बोलो."
"मुझे लगता है जंगल में कुछ गड़बड़ है. वो साइको जंगल के पास ही वारदात करता है अधिकतर. तुझे क्या लगता है क्या कारण हो सकता है."
"बात तो सही कह रहे हो...हो सकता है कि कुछ राज छुपा हो जंगल में." मोहित ने कहा.
तभी मोहित के रूम का दरवाजा खड़का. मोहित ने आकर देखा. वो तो भोंचक्का रह गया.
"तुम! यहाँ कैसे."
"पूजा से अड्रेस लिया तुम्हारा और पहुँच गयी." कविता ने कहा और कमरे में घुस्स गयी. उसने राज शर्मा को पहचान लिया. वो बोली, "ओह आप भी यहाँ है, कल आप ना आते वक्त पर तो ये हमें मार डालते."
राज शर्मा फ़ौरन खड़ा हो गया और चल दिया, "अच्छा गुरु मैं चलता हूँ."
"राज शर्मा रूको यार अकेला छोड़ कर मत जाओ मुझे." मोहित ने कहा.
"हन रुक जाओ ना आप...मेरे आते ही क्यों भाग रहे हैं." कविता ने कहा.
"मोहतार्मा अभी हमारा मन ज़रा व्यथित है वरना आपका वो हाल करते कि आप हमें कभी रुकने को ना कहती. गुरु सम्भालो इस जंजाल को मैं लेट हो रहा हूँ." राज शर्मा कह कर कमरे से निकल जाता है.
"तुम्हारा दोस्त तो बड़ा आरोगेंट है. तमीज़ ही नही बात करने की." कविता बोली.
"यहाँ क्यों आई हो अब मेरी मा. ले तो ली थी कल तुम्हारी मैने. अड्रेस भी पूजा से लेकर आई हो. क्यों बिगाड़ने पे तूलि हो मेरा काम तुम. तुम्हे क्या कमी है लड़को की जो मेरे पीछे पड़ गयी."
"लड़के तो बहुत हैं पर आप जैसा शायर नही मिला कोई."
"मैं कोई शायर नही हूँ...वो तो यू ही बोल दी थी कुछ लाइन्स मैने."
दरवाजा खुला ही था. नगमा आ गयी अंदर.
"अरे नगमा तुम आओ...आओ बहुत अच्छे वक्त पर आई हो." मोहित तो खुस हो गया नगमा को देख कर.
"ये कौन है?" कविता ने पूछा. कविता पूजा की बहन से मिली नही थी इसलिए नगमा को नही जानती थी.
"ये मेरी गर्ल फ्रेंड है...नगमा"
"गुड फिर तो बहुत अच्छी ऑपर्चुनिटी है. लेट्स हॅव आ फन टुगेदर."
"क्या बकवास कर रही हो. मेरी गर्ल फ्रेंड के सामने ऐसी बाते मत करो." मोहित ने कहा और नगमा के पास आकर उसके कान में कहा,"इस से छुटकारा दिलवा तो नगमा, मेरे पीछे पड़ी है."
नगमा कविता के पास आई और बोली, "चली जाओ यहाँ से, मेरे बॉय फ्रेंड को अकेला छोड़ दो."
"तू भी यहाँ मस्ती करने आई है ना. साथ में मस्ती करते हैं. हम आपस में भी कुछ....." कविता नगमा की तरफ बढ़ी.
"एक साथ मस्ती, ये क्या बकवास है. दफ़ा हो जाओ यहाँ से." नगमा ने पीछे हट-ते हुए कहा.
लेकिन नगमा दीवार से टकरा कर रुक गयी. कविता उसके बहुत करीब आ गयी. इतना करीब की दोनो के बूब्स आपस में टकरा रहे थे. नगमा की तो हालत पतली हो गयी. इस से पहले की वो कुछ कर पाती कविता ने उसके होंठो पर अपने होन्ट टिका दिए. नगमा तो सकपका गयी और उसने कविता को ज़ोर से धक्का मारा. कविता फर्श पर गिर गयी.
"उफ्फ ये क्या बला है...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये करने की." नगमा ने कहा और टूट पड़ी कविता पर. बाल नोच लिए उसने उसके.
"बच्चाओ मुझे आअहह." कविता मोहित की तरफ देख कर गिड़गिडाई.
"भुग्तो अब...मेरी गर्ल फ्रेंड को लेज़्बीयन आक्ट बिल्कुल पसंद नही है" मोहित ने कहा.
"छोड़ तो मुझे आअहह." कविता ने कहा.
"मेरी किस क्यों ली तूने बता मुझे. जींदा नही छोड़ूँगी तुझे मैं." नगमा ने कहा.
नगमा तो छोड़ ही नही रही थी कविता को. मामला गंभीर होता देख मोहित ने नगमा को पकड़ कर कविता के उपर से खींच लिया. "छोड़ दो बहुत हो गया. सारे बाल नोच लोगि
क्या बेचारी के."
कविता फ़ौरन उठी और वहाँ से रफू चक्कर हो गयी. उसने पीछे मूड कर भी नही देखा. कविता नाम की बला मोहित के सर से शायद टल गयी थी.
"बहुत बहुत शुक्रिया तुम्हारा नगमा. वो तो पीछे ही पड़ गयी थी मेरे."
"तुम ना हटाते मुझे तो जान से मार देती कुतिया को. सारा मूड खराब कर दिया मेरा."
मोहित ने दरवाजा बंद किया और नगमा का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर ले आया. "अब शांत हो जाओ...पानी दू क्या?"
"नही मैं ठीक हूँ. कौन थी वैसे ये छिनाल."
"छोड़ो उसे ये बताओ आज मेरी याद कैसे आई तुम्हे."
"बापू घर पर नही है. तुम्हे वादा कर रखा था कभी..इसलिए आई थी...पर सारा मूड खराब कर दिया उसने."
"उसे गोली मारो तुम...आओ हम अपना काम करते हैं. वैसे आजकल मेरा दिल एक लड़की में अटका है...इसलिए मन नही होता किसी के साथ कुछ करने का. लेकिन अपनी बहुत पहले बात हुई थी इसलिए उसे पूरा करते हैं आज."
"राज शर्मा का दिल भी कही अटका है, तुम्हारा भी अटका है...हो क्या रहा है. राज शर्मा तो पद्मिनी के जाल में फँस गया. तुम्हारा दिल कौन ले उड़ी." नगमा ने पूछा.
अब मोहित कैसे बताए पूजा का नाम. दिक्कत हो जाएगी. "छोड़ ना ये बाते मूड ही खराब होगा."
"शूकर है...मतलब कि तुम्हारा मूड है."
"और नही तो क्या?"
"मैं तो डर ही गयी थी...एक काम करने का मन है...करू"
"हां-हां करो."
"सीधे लेट जाओ फिर." नगमा ने कहा.
मोहित लाते गया और नगमा उसकी टाँगो के बीच बैठ गयी. उसने मोहित की पॅंट की ज़िप खोली और मोहित का लंड बाहर निकाल लिया. वो काले नाग की तरह फन-फ़ना रहा था.नगमा ने लंड को मूह में ले लिया और चूसने लगी.
"कहा तो ब्लो जॉब मिलती नही थी अब लड़किया खुद मेहरबान हो रही हैं. वाउ बहुत अच्छा चूस रही हो नगमा. लगी रहो."
नगमा कुछ देर तक यू ही चूस्ति रही लंड और मोहित उसके सर को सहलाता रहा. कुछ देर बाद नगमा ने अपनी सलवार का नाडा खोला और लंड को सीधा पकड़ कर उस पर अपनी चूत टिका दी.
"पहली बार तुम्हारा लंड चूत में ले रही हूँ...देखते हैं कैसा लगता है."
नगमा ने अपनी गान्ड को नीचे की तरफ पुश किया और मोहित का लंड नगमा की चूत में घुसता चला गया.
"अच्छी चूत है तुम्हारी...पकड़ अच्छी है लंड पर...गुड...पूरा घुसा लो अंदर आआहह." मोहित कराह उठा. नगमा ने पूरा अंदर ले लिया था.
अब वो धीरे धीरे मोहित के लंड को चूत में फँसाए हुए अपनी गान्ड को उछालने लगी.
"आआअहह अच्छा लग रहा है ये लंड चूत में. गांद में तो बहुत दर्द दिया था इसने आअहह." नगमा आँखे बंद किए हुए मोहित के उपर उछल रही थी.
जल्दी ही मोहित ने नगमा को पकड़ा और उसे अपने नीचे ले आया. इस दौरान लंड चूत में ही फँसा रहा. नगमा को नीचे लाकर मोहित ने उसकी टाँगो को कंधे पर रखा और धक्को की बोछार शुरू कर दी नगमा की चूत में.
नगमा तो लगातार काई बार झड़ी. उसकी शिसकिया कमरे में गूँज रही थी. अचानक मोहित ने स्पीड बहुत तेज बढ़ा दी. और वो कुछ देर बाद ढेर हो गया नगमा के उपर.
"कैसा लगा मेरा लंड तुम्हारी चूत को."
"बहुत अच्छा लगा. एक बार फिर से करना पड़ेगा तुम्हे."
"करूँगा ज़रूर करूँगा. एक बात कहु"
"हां कहो."
"काश तुम पर ही दिल आ जाता मेरा. तुम अच्छी लड़की हो." मोहित ने कहा.
"अगर ऐसा होता तो मैं सब कुछ छोड़ देती तुम्हारे लिए. पर प्यार कहा अपनी किस्मत में. अपनी किस्मत में तो लंड के धक्के लिखे हैं."
"शादी कब कर रही हो तुम."
"शादी और मैं, ये सवाल मत पूछो तुम."
"क्यों क्या हुआ, शादी की उमर तो है तुम्हारी. शादी नही करना चाहती क्या. या फिर यू ही मज़े लोगि तुम"
"तुम नही समझोगे रहने दो"
"क्या बात है बताओ तो" मोहित ने उत्शुकता से पूछा.
"दहेज के लिए पैसा कहाँ है बापू के पास जो शादी होगी. वैसे भी मेरा मन नही है शादी करने का. मेरी बहन पूजा की शादी हो जाए बस कही अच्छी जगह. उसी के लिए दुवा करती हूँ. बापू हम दोनो का बोझ नही उठा सकते मोहित. एक की ही शादी हो सकती है. और मैं चाहती हूँ कि पूजा का घर बस जाए. मेरा क्या है...मेरा चरित्र तो बीवी बन-ने लायक रहा भी नही है. क्यों किसी को धोका दू." कहते-कहते नगमा की आँखे भर आई थी.
मोहित नगमा के उपर था और अभी भी उसमें समाया हुआ था. वो तो नगमा को देखता ही रह गया. उसने नगमा के होंठो को किस किया और बोला, "मुझे नही पता था कि नगमा ऐसी बाते भी कर सकती है."
"मैं क्या इंसान नही हूँ" नगमा ने सवाल किया.
"मेरा वो मतलब नही है."
"निकाल लो बाहर मोहित. थोड़ा सा भावुक हो गयी हूँ. मन हुआ तो थोड़ी देर में करेंगे." नगमा ने कहा.
"ओह हां सॉरी...." मोहित ने लिंग बाहर खींच लिया.
"मुझे गर्व है खुद पे की मैने तुम्हारे साथ संभोग किया नगमा." मोहित ने कहा.
दोनो एक दूसरे से लिपट गये और खो गये कही अपने बीच उभरे जज्बातो में. दोनो लिपटे ही रहे कुछ कर नही पाए बाद में. शायद एक दूसरे से लिपटे रहना ज़्यादा अच्छा लग रहा था दोनो को.
"नगमा मैं तो तुम्हे बहुत बुरी समझता था. लेकिन आज मेरा नज़रिया बदल गया." मोहित ने कहा.
"बुरी तो मैं हूँ ही. तुम ठीक ही समझते थे. जानते तो हो ही मेरे बारे में सब." नगमा ने कहा.
"हां जानता हूँ. पर तुम्हारा ये जज्बाती रूप नही देखा था मैने. तुम उतनी बुरी नही हो जितना मैं समझता था. तुम अच्छी लड़की हो."
"अच्छी हूँ तो क्या प्यार कर सकते हो मुझसे" नगमा ने मोहित की आँखो में झाँक कर पूछा.
"चाहने लगा हूँ किसी और को वरना कर लेता तुझे प्यार." मोहित ने कहा.
"अच्छा छोड़ो उसका नाम तो बताओ, कौन है वो, कहा रहती है, क्या करती है. कुछ तो बताओ."
"अभी कुछ नही बता सकता...सॉरी...अच्छा ये बता तेरा बापू कहाँ चला जाता है बार-बार...काम पर ध्यान देगा वो तो अच्छा कमा लेगा."
"छोटी सी पान की दुकान है बापू की. क्या कमाएँगे. गाँव में खेत है छोटा सा उसकी देख रेख के लिए जाते रहते हैं वो."
"ह्म्म...चल चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा."
"तुम्हारे लंड में हरकत हो रही है, कुछ करने का मन है क्या?" नगमा ने मोहित से पूछा.
"मन कैसे नही होगा तू इतने पास जो पड़ी है." मोहित ने कहा.
"आ जाओ फिर. मुझे गम भुलाने के लिए एक तूफान की ज़रूरत है. मचा दो तूफान मेरे अंदर." नगमा ने कहा.
क्रमशः........................
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01-01-2019, 12:22 PM,
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 55
गतान्क से आगे...........
मोहित का लंड ये सुनते ही फूँकारे मारने लगा. वो नगमा के उपर आ गया और लंड को उसकी चूत पर रख दिया. "डाल दू एक झटके में."
"जैसे मर्ज़ी करो मुझे बस एक तूफान चाहिए हमारे बीच."
ये सुनते ही मोहित ने एक झटके में पूरा लंड नगमा की चूत में डाल दिया. नगमा कराह उठी, "आआहह"
"पहले से ज़्यादा अच्छी एंट्री दी है चूत ने तुम्हारी...क्या कारण है."
"प्यारी बाते करके कर रहे हैं ना हम शायद इसलिए. करो ज़ोर ज़ोर से मैं खो जाना चाहती हूँ आआअहह"
कमरे में वाकाई में तूफान आ गया था. नगमा ने मोहित की कमर में अपने नाख़ून गाढ दिए थे उत्तेजना में. मोहित इतने जोरो से लंड धकैल रहा था नगमा की चूत में की बेड भी चर-चर की आवाज़ करने लगा था.
तूफान जब थमा तो दोनो यू ही एक दूसरे में समाए हुए चुपचाप पड़े रहे. कब नींद आ गयी पता ही नही चला उन्हे.
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....................................
राज शर्मा ने थाने पहुँच कर चौहान से पद्मिनी के लिए 2 और कॉन्स्टेबल की माँग की जो उसे ऑफीस से घर और घर से ऑफीस छोड़ेंगे.
"जिन्हे ऑफीस के बाहर लगाया है वो ही पद्मिनी के साथ चले जाया करेंगे. इसमे दिक्कत क्या है."
"बिल्कुल ठीक है सर. मैं ज़रा ए एस पी साहिबा से मिल आउ." राज शर्मा ने कहा.
"बिल्कुल मिल आओ. हम तो दूर ही रहते हैं ऐसी कयामत से."
राज शर्मा शालिनी के कमरे में आता है.
"मिल गयी रेवोल्वेर तुम्हे?" शालिनी ने पूछा.
"मिल गयी मेडम, थॅंक यू वेरी मच. मेडम आपसे कुछ बात करनी थी."
"थोड़ा बिज़ी हो...बहुत ज़रूरी हो तो बोलो." शालिनी ने कहा.
"मेडम...साइको के बारे में है ये."
"क्या है...बैठो और बताओ क्या बात है."
"मेडम मैने नोट किया है कि साइको ने अधिकतर वारदात जंगल के आस-पास ही की है."
"आज की वारदात का पता चला तुम्हे."
"नही मेडम क्या हुआ."
"पद्मिनी के ऑफीस के ठीक बाहर मर्डर हुआ है कल कहाँ रहते हो तुम. ऐसे ही करोगे क्या नौकरी."
"क्या! मुझे ये किसी ने नही बताया." राज शर्मा ने कहा.
"आस पास क्या हो रहा है उसकी खबर रखना तुम्हारी ड्यूटी है. ऐसे बेख़बर रहोगे तो सस्पेंड कर दूँगी तुम्हे."
राज शर्मा का तो चेहरा ही उतर गया.
"मुझे लगता है वो साइको पद्मिनी के लिए ही आया था वहाँ. लेकिन किसी कारण वश वो पद्मिनी को नुकसान नही पहुँचा सका."
"इसका मतलब पद्मिनी जी को और ज़्यादा प्रोटेक्षन की ज़रूरत है."
"बिल्कुल. आज से तुम उसके साथ 24 घंटे रहोगे. पद्मिनी की रक्षा करना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है अब. मैने पद्मिनी को भी बता दी है ये बात. पता नही वो क्यों कह रही थी कि तुम्हारी जगह किसी और को रखा जाए उसके साथ. लेकिन कुछ कारनो से मुझे किसी और पर विस्वास नही है अभी."
"ऐसा क्यों मेडम?"
"जो गोली चलाई थी उस साइको ने मेरी तरफ सड़क पर वो पोलीस महकमे की है. वो गोली जीप में घुस्स गयी थी. जाँच कराई मैने उसकी."
"ये तो बहुत गंभीर बात है मेडम. आपने इतनी बड़ी बात मुझे बताई. क्या आपको विस्वास है मुझ पर."
"है लेकिन अगर तुम ऐसे बेख़बर रहोगे तो विस्वास खो दोगे मेरा. बहुत अलर्ट रहने की ज़रूरत है तुम्हे."
"समझ गया मेडम."
"जाओ अब से तुम्हारी ड्यूटी बस पद्मिनी की प्रोटेक्षन की है. उसका जींदा रहना ज़रूरी है अगर साइको को पकड़ना है तो."
"वो जींदा रहेंगी तभी मैं भी जींदा रहूँगा." राज शर्मा बहुत धीरे से बोला.
"कुछ कहा तुमने?"
"नही मेडम, आपकी इज़ाज़त हो तो मैं चलु."
"हां जाओ. और हन सारे कॉन्स्टेबल जो पद्मिनी की शूरक्षा के लिए लगे हैं वो सब तुम्हारे अंडर हैं अब. डू युवर जॉब प्रॉपर्ली वरना."
"सस्पेंड नही होना मुझे.... समझ गया मैं मेडम." राज शर्मा ने कहा.
"ओके दॅन डू युवर ड्यूटी." शालिनी ने कहा.
"थॅंक यू मेडम" राज शर्मा बाहर आ जाता है.
"पद्मिनी जी के साथ 24 घंटे. इस से अच्छा कुछ नही हो सकता मेरे लिए. पर पद्मिनी जी पता नही कैसे लेंगी इस बात को." राज शर्मा थाने से बाहर निकलते हुए सोच रहा है.
राज शर्मा जीप में बैठा पद्मिनी के ऑफीस की तरफ बढ़ रहा था. "इस वक्त तो ऑफीस में ही होंगी पद्मिनी जी. पता नही कैसे रिक्ट करेंगी मुझे देख कर. पर ये गोली वाला मसला तो बहुत गंभीर है. मडड़म साहिबा का मतलब क्या था. क्या साइको पोलीस वाला? या फिर वो ब्लॅक मार्केट से पोलीस की गोलिया खरीद कर पोलीस पर ही बरसा रहा है. गोली पोलीस महकमे की होने से ये साबित नही होता की वो पोलीस वाला है. लेकिन जो भी हो ये मुद्दा है बहुत गंभीर. मुझे अलर्ट रहना होगा. मेरे होते हुए पद्मिनी जी को कोई भी ज़रा सा भी नुकसान नही पहुँचा सकता."
पद्मिनी के ऑफीस पहुँच कर राज शर्मा एक कॉन्स्टेबल से पूछता है. "कहाँ हुआ खून कल रात."
"सर जहा आप खड़े हैं बिल्कुल यही मिली थी लाश."
"क्या! यहाँ." राज शर्मा तुरंत वहाँ से हट जाता है.
"तुम लोगो ने देखा कुछ?" राज शर्मा ने पूछा.
"सर उन मेडम के जाने के बाद हम भी चले गये थे. हमने कुछ नही देखा."
"ह्म्म...मेरी ड्यूटी भी अब मेडम को प्रोटेक्ट करने की है. मुझे बताए बिना इधर उधर मत जाना. मेरा मोबाइल नंबर ले लो. कोई भी बात हो तो तुरंत मुझे कॉल करना."
"जी सर बिल्कुल" दोनो कॉन्स्टेबल्स ने जवाब दिया.
राज शर्मा ने ऑफीस के बाहर अच्छी तरह मूवाईना किया. पहले तो पद्मिनी के कारण ऑफीस के अंदर जाने की उसकी हिम्मत नही हुई. लेकिन फिर वो हिम्मत करके घुस्स ही गया. "कोई और रास्ता है ऑफीस में घुसने का." राज शर्मा ने चौकीदार से पूछा.
"नही साहिब बस यही एक रास्ता है जहा से आप आए हैं."
"पिछली तरफ तो कोई गेट नही है ना." राज शर्मा ने पूछा.
"नही साहिब पीछे कोई गेट नही है"
पद्मिनी एक फाइल हाथ में लिए अपने बॉस के कॅबिन की तरफ बढ़ रही थी. सामने से राज शर्मा चौकीदार से बाते करता हुआ आ रहा था. दोनो का ध्यान एक दूसरे पर नही गया. टक्कर हो ही जाती वो तो आखरी मोमेंट पर पद्मिनी ने देख लिया राज शर्मा को. "तुम ऑफीस में क्या कर रहे हो?"
"पद्मिनी जी आपकी शूरक्षा के लिए मूवाईना कर रहा था ऑफीस का मैं. देख लिया मैने सब कुछ. यहाँ अंदर कोई ख़तरा नही है आपको. बाहर हम हैं ही."
"अच्छी बात है, इसका मतलब तुम बाहर ही रहोगे. शूकर है...." पद्मिनी ने कहा.
"हां मैं बाहर ही रहूँगा, कोई भी बात हो तो आप तुरंत फोन करना मुझे."
"हां ये ठीक है. बाहर ही रहो तुम. अंदर मत आना बार-बार ऑफीस के काम में डिस्टर्बेन्स होती है."
"आप चिंता ना करो पद्मिनी जी. मेरी वजह से कोई परेशानी नही होगी आपको."
राज शर्मा बाहर आ गया ऑफीस से और ऑफीस के सामने खड़ी अपनी जीप में बैठ गया.
"बहुत सुंदर लग रही थी आज भी पद्मिनी जी. चेहरे पर गुस्सा था मुझे देख कर. भगवान हसीन लोगों को इतना गुस्सैल क्यों बनाते हैं."
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अंधेरा था चारो तरफ. घनघोर अंधेरा. उसकी आँख खुली तो वो बहुत घबरा गयी. पहले तो उसे लगा कि ये एक सपना है मगर नही ये सपना नही था. वो अंधेरे में हाथ मारते हुए उठ गयी. "कहा हूँ मैं" उसने सोचा.
वो अंधेरे में हाथ मारते हुए इधर उधर भटक रही थी. अचानक वो किसी से टकरा गयी. "क...क...कौन है" और वो वहाँ से पीछे हट गयी.
"पहले तुम बताओ तुम कौन हो?" उसे आवाज़ आई.
"क्या मज़ाक है ये. मैं यहाँ कैसे आई."
"क्या तुम्हारी आँख भी यही खुली है. मुझे भी अभी होश आया और खुद को इस अंधेरी जगह पाया."
तभी एक बल्ब वहाँ जगमगा उठा और कमरे में रोशनी हो गयी. दोनो की नज़र एक दूसरे पर पड़ी. लड़की जवान थी. कोई 21-22 साल की होगी. आदमी 40-45 का लगता था. उन्होने एक दूसरे को देखा और काई सवाल उनके मन में उभर आए.
"वेलकम हियर. स्वागत है आप दोनो का यहाँ." कुर्सी पर बैठा नकाब पोश बोला.
दोनो ये सुन कर हैरान रह गये. उन्हे लगा था कि वो दोनो वहाँ अकेले हैं.
"कौन हो तुम भाई और हमे यहाँ क्यों लाया गया है." आदमी ने पूछा.
"साइको किल्लर से उसकी पहचान पूछते हो. ज़्यादा सवाल करोगे तो अभी काट डालूँगा."
दोनो ये सुनते ही थर थर काँपने लगते हैं.
"क्या चाहते हैं आप हमसे?" आदमी ने पूछा.
"इस लड़की का रेप करो. ये लड़की बचने को कोशिस करेगी. तुम रेप करने में कामयाब रहे तो तुम्हे छोड़ दूँगा और इस लड़की को काट डालूँगा. अगर ये तुम्हारे रेप अटम्ट से बच जाएगी तो इसे यहाँ से जाने दूँगा और तुम्हे काट डालूँगा. सिंपल सी गेम है चलो शुरू हो जाओ." साइको ने कहा.
दोनो ये सुन कर भोंचके रह गये. "ये क्या बकवास है, तुम ऐसा नही कर सकते हमारे साथ." लड़की ने कहा.
"एक घंटे का वक्त है तुम दोनो के पास ये गेम खेलने का. नही खेलोगे तो दोनो मरोगे. खेल में एक की जान बच सकती है." साइको ने कहा.
"देखो मैं ऐसा नही कर सकता...प्लीज़ हमें जाने दो."
साइको ने बंदूक निकाल ली और आदमी को निसाना बनाया.
"रूको....मैं कोशिस करूगा." आदमी ने कहा.
"व्हाट! तुम मेरा रेप करोगे इस साइको से डर कर. मैं ये हरगिज़ नही होने दूँगी."
"हा...हा...हा...हे...हे...यही तो सारी गेम है. ये लड़की तो बड़ी जल्दी समझ गयी." साइको क्रूरता से हंस कर बोला. "वक्त बर्बाद मत करो वरना दोनो मारे जाओगे."
आदमी लड़की के पास आया और उसे दबोच लिया, "मुझे यहाँ से जींदा निकलना है."
लड़की ने उसे ज़ोर से धक्का मारा और वो दूर जा कर गिरा. "पागल मत बनो. ये वैसे भी हमें छोड़ने वाला नही है."
लेकिन आदमी उठ कर इस बार बुरी तरह टूट पड़ा लड़की पर. उसने इतना मारा उसे कि वो गिर गयी ज़मीन पर ."मुझे माफ़ करना पर मैं मरना नही चाहता"
लड़की जीन्स पहने थी. आदमी ने जीन्स के बटन खोल कर जीन्स नीचे सरका दी.
"नही रुक जाओ. पागल मत बनो. आइ आम वर्जिन. ऐसा मत करो."
आदमी ने चार पाँच थप्पड़ जड़ दिए लड़की के मूह पर. "समझने की कोशिस करो मैं मरना नही चाहता.
"बहुत खूब. तुम यहाँ से बाहर ज़रूर निकलोगे." साइको ने कहा.
आदमी ने जीन्स निकाल दी लड़की की और उसकी पॅंटी भी खींच कर फुर्ती से उसके शरीर से अलग कर दी. उसने अपने लंड को बाहर निकाला और लड़की की टांगे फैला कर.................................
"आआअहह नहियीईईईईईईईईईई" लड़की दर्द से कराह उठी.
लेकिन अगले ही पल वो आदमी भी दर्द से चिल्लाया.
"ओह...नो." उसकी गर्दन में चाकू गोंप दिया था साइको ने.
लड़की ने ये सब अपनी आँखो से देखा. इतना शॉक लगा उसे कि वो बेहोश हो गयी.
"ये काम अच्छा है. शिकार को यहाँ लाओ उठा कर और आराम से जब मन करे काट डालो. ये लड़की तो बेहोश हो गयी शायद. बहुत काम आएगी ये....हे...हे...हे"
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क्रमशः.........................
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