rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
06-16-2017, 11:30 AM,
#11
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
इस बीच मा झारियों की पिच्चे जा चुकी थी, झारिॉयन के इस तरफ
से जो भी झलक मुझे मिल रही वो देख कर मुझे इतना तो पाता चल
ही गया था की मा अब बैठ चुकी है और सयद पेशाब भी कर रही
है. मैने फिर थोरी हिम्मत दिखाई और उठ कर झारियों की तरफ
चल दिया. झारियों के पास पहुच कर नज़ारा कुच्छ साफ दिखने लगा
था. मा आराम से अपनी सारी उठा कर बैठी हुई थी और मूट रही
थी. उसके इस अंदाज़ से बैठने के कारण पिच्चे से उसकी गोरी गोरी
झंघे और तो साफ दिख ही रही थी साथ साथ उसके मक्खन जैसे
चूटरो का निचला भाग भी लग-भाग साफ-साफ दिखाई दे रहा था. ये
देख कर तो मेरा लंड और भी बुरी तरह से अकरने लगा था. हलकी
उसके झाघॉ और चूटरो की झलक देखने का ये पहला मौका नही था,
पर आज और दीनो कुच्छ ज़यादा ही उतेज्ना हो रही थी. उसके पेशाब
करने की आवाज़ तो आग में गीयी का काम कर रही थी. सू सू सुउुुुुउउ
करते हुए किसी औरत के मूतने की आवाज़ में पाता नही क्या आकर्षण
होता है, किशोरे उमर के सारे लरको को अपनी ऊवार खींच लेता है.
मेरा तो बुरा हाल हो रखा था. तभी मैने देखा की मा उठ कर
खरी हो गई. जब वो पलटी तो मुझे देख कर मुस्कुराते हुए
बोली "अर्रे तू भी चला आया, मैने तो तुझे पहले ही कहा था की तू
भी हल्का हो ले", फिर आराम से अपने हाथो को सारी के उपर बर के
रख कर इस तरह से दबाते हुए खुजने लगी जैसे, बर पर लगी
पेशाब को पोच्च रही हो और, मुस्कुराते हुए चल दी जैसे की कुच्छ
हुआ ही नही. मैं एक पल को तो हैरान परेशन सा वही पर खरा
रहा फिर मैं भी झारिॉयन के पिच्चे चला गया और पेशाब करने
लगा. बरी देर तक तो मेरे लंड से पेशाब ही नही निकला, फिर जब
लंड कुच्छ ढीला परा तब जा के पेशाब निकलना शुरू हुआ. मैं
पहशाब करने के बाद वापस, पेर के नीचे चल परा.

पेर के पास पहुच कर मैने देखा मा बैठी हुई थी. मेरे पास
आने पर बोली " आ बैठ, हल्का हो आया " कह कर मुस्कुराने लगी.
मैं भी हल्के हल्के मुस्कुराते कुच्छ सर्माते हुए बोला "हा हल्का हो
आया" और बैठ गया. मेरे बैठने पर मा ने मेरी तोड़ी पकर कर
मेरा सिर उठा दिया और सीधा मेरी आँखो में झँकते हुए बोली "क्यों
रे, उस समय जब मैं च्छू रही थी तब तो बरा भोला बन रहा था,
और जब मैं पेशाब करने गई थी तो वाहा पिच्चे खरा हो के क्या कर
रहा था, शैतान" मैने अपनी तोड़ी पर से मा का हाथ हटते हुए
फिर अपने सिर को नीचे झुका लिया और हकलाते हुए बोला " ओह मा, तुम
भी ना.

"मैने क्या किया" मा ने हल्की सी छपत मेरे गाल प्र लगाई और
पुचछा,

" मा, तुमने खुद ही तो कहा था, हल्का होना है तो आ जाओ," इस पर
मा ने मेरी गालो को हल्के से खिचते हुए कहा, "अच्छा बेटा, मैने
हल्का होने के लिए कहा था, पर तू तो वाहा हल्का होने की जगह
भारी हो रहा था, मुझे पेशाब करते हुए घूर-घूर कर देखने के
लिए तो मैने नही कहा था तुम्हे, फिर तुम क्यों घहोर-घूर कर मज़े
लूट रहे थे.
"ही, मैं कहा मज़ा लूट रहा था, कैसी बाते कर रही हो मा"

"ओह, हो, शैतान अब तो बरा भोला बन रहा है" कह कर हल्के से
मेरे जेंघो को दबा दिया,

"ही, क्या कर र्ही हो"
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06-16-2017, 11:31 AM,
#12
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
पर उन्होने छ्होरा ऩही और मेरी आँखो में झाँकते हुए फिर धीरे से
अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और फुसफुसते हुए पुछि, "फिर से
दबौउ". मेरी तो हालत उनके हाथो छुने भर से फिर से खराब होने
लगी" मेरी समझ में एक डम ऩही आ रहा था की क्या करू, कुच्छ
जवाब देते हुए भी ऩही बन रहा था की क्या जवाब दू. तभी वो हल्का
सा आगे की ओररे सर्की और झुकी, आगे झुकते ही उनका आँचल उनके
ब्लाउस पर से सरक गया. पर उन्होने कोई प्रयास ऩही किया उसको ठीक
करने का. अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी. मेरी आँखो के
सामने उनकी नारियल के जैसी सख़्त चुचिया जिनको सपने में देख कर
मैने ना जाने कितनी बार अपना माल गिराया था और जिनको दूर से देख
कर ही तारपता रहता था नुमाया थी. भले ही चूचुइयाँ अभी भी
ब्लाउस में ही क़ैद थी परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज
उनके उपर से ही लगाया जा सकता था. ब्लाउस के उपरी भाग से उनकी
चुचियों के बीच की खाई का उपरी गोरा गोरा हिस्सा नज़र आ रहा
था.

हलकी चुचियों को बहुत बरा तो ऩही कहा जा सकता पर, उतनी बरी
तो थी ही जितनी एक स्वस्थ सरीर की मालकिन का हो सकता हाई. मेरा
मतलब हाई की इतनी बरी जितनी की आप के हाथो में ना आए पर इतनी
बरी भी ऩही की आप को दो दो हाथो से पाकरना परे और फिर भी
आपके हाथ ना आए. एक डम किसी भाले की तरह नुकीली लग रही थी
और सामने की ओररे निकली हुई थी. मेरी आँखे तो हटाए ऩही हट रही
थी. तभी मा ने अपने हाथो को मेरे लंड पर थोरा ज़ोर से दबाते
हुए पुचछा "बोल ना दबाउ क्या और"

"ही मा छ्होरो ना" उन्होने ने ज़ोर से मेरे लंड को मुट्ही में भर
लिया,

"ही मा छ्होरो बहुत गुदगुदी होती हाई"

"तो होने दे ना, तू खाली बोल दबौउ या ऩही"

"ही दबाओ, मा मस्लो"

"अब आया ना रास्ते पर"

"ही मा तुम्हारे हाथो में तो जादू हाई"

"जादू हाथो में हाई या, या फिर इसमे हाई (अपने ब्लाउस की तरफ
इशारा कर के पुचछा)

"ही मा तुम तो बस"

"शरमाता क्यों हाई, बोल ना क्या अक्चा लग रहा हाई"

" ही मम्मी मैं क्या बोलू"

"क्यों क्या अक्चा लग रहा हाई", "अर्रे अब बोल भी दे शरमाता क्यों हाई"

"ही मम्मी दोनो अच्छा लग रहा हाई"

"क्या ये दोनो ((अपने ब्लाउस की तरफ इशारा कर के पुचछा)"

"हा, और तुम्हारा दबाना भी"

"तो फिर शर्मा क्यों रहा था बोलने में, ऐसे तो हर रोज घूर घूर
कर मेरे अनरो को देखता रहता हाई" फिर मा ने बरे आराम से मेरे
पूरे लंड को मुति के अंदर क़ैद कर हल्के हल्के अपना हाथ चलना
शुरू कर दिया.

"तू तो पूरा जवान हो गया हाई रे"

"ही मा"

"ही ही क्या कर रहा हाई, पूरा सांड की तरह से जवान हो गया है तू
तो, अब तो बर्दाश्त भी ऩही होता होगा, कैसे करता है"

"क्या मा"

"वही, बर्दाश्त, और क्या, तुझे तो अब च्छेद (होल) चाहिए, समझा
च्छेद मतलब"

"ऩही मा, ऩही समझा"

"क्या उल्लू लरका है रे तू, च्छेद मतलब ऩही सकझता" मैने नाटक
करते हुए कहा "ऩही मा ऩही समझता". इस पर मा हल्के हल्के
मुस्कुराने लगी और बोली "चल समझ जाएगा, अभी तो ये बता की
कभी इसको (लंड की तरफ इशारा करते हुए) मसल मसल के माल
गिराया है".
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06-16-2017, 11:31 AM,
#13
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
"माल मतल्लब क्या होता है मा"

"अर्रे उल्लू, कभी इसमे से पानी गिराया है या ऩही"
"ही वो तो मैं हर रोज़ गिराता हू सुबह शाम दिन भर में चार
पाँच बार, कभी ज़यादा पानी पी लिया तो ज़यादा बार हो जाता है"

"हाई, दिन भार में चार पाँच बार, और पानी पीने से तेरा ज़यादा
बार निकालता है, कही तू पेशाब करने की बात तो ऩही कर रहा"

"हा मा वही तो मैं तो दिन भर में चार पाँच बार पेशाब करने
जाता हू" इस पर मा ने मेरे लंड को छ्होर कर हल्के से मेरे गाल पर
एक झापर लगाया और बोली "उल्लू का उल्लू ही रह गया कया तू" फिर
बोली ठहर जा अभी तुझे दिखती हू माल कैसे निकाला जाता है फिर
उसने अपने हाथो को तेज़ी से मेरे लंड पर चलाने लगी. मारे गुदगुदी
और सनसनी के मेरा तो बुरा हाल हो रखा था. समझ में ऩही आ
रहा था क्या करू, दिल कर रहा था की हाथ को आगे बढ़ा कर मा के
दोनो चुचियों को कस के पकर लू और खूब ज़ोर ज़ोर से दबौउ. रहा
था की कही बुरा ना मान जाए. आइसिस चक्कर में मैने कराहते हुए
सहारा लेने के लिए सामने बैठी मा के कंधे पर अपने दोनो हाथ
रख दिए. वो बोली तो कुच्छ ऩही पर अपनी नज़रे उपर कर के मेरी र
देख कर मुस्कुराते हुए बोली "क्यों मज़ा आ रहा हाई की ऩही""ही, मा
मज़े की तो बस पुच्च्ो मत बहुत मज़ा आ रहा है" मैं बोला. इस पा
मा ने अपने हाथ और तेज़ी से चलना सुरू कर दिया और बोली "साले
हरामी कही का, मैं जब नहाती हू तब घूर घूर के मुझे देखता
रहता है, मैं जब सो रही थी तो मेरे चुचे दबा रहा था और,
और अभी मज़े से मूठ मरवा रहा है, कामीने तेरे को शरम ऩही
आती" मेरा तो होश ही उर गया ये मा क्या बोल रही थी. पर मैने
देखा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाए जा
रहा था. तभी मा मेरे चेहरे के उरे हुए रंग को देख कर हसने
लगी और हसते हुए मेरे गाल पर एक ठप्पर लगा दिया. मैने कभी
भी इस से पहले मा को ना तो ऐसे बोलते देखा था ना ही इस तरह से
बिहेव करते हुए देखा था इसलिए मुझे बरा असचर्या हो रहा था.
पर उनके हसते हुए ठप्पर लगाने पर तो मुझे और भी ज़यादा
असचर्या हुआ की आख़िर ये चाहती क्या है. और मैने बोला की "माफ़ कर
दो मा अगर कोई ग़लती हो गई हो तो" . इस पर मा ने मेरे गालो को
हल्के सहलाते हुए कहा की "ग़लती तो तू कर बैठा है बेटे अब, केवल
ग़लती की सज़ा मिलेगी तुझे," मैने कहा "क्या ग़लती हो गई मेरे से
मा" सबसे बरी ग़लती तो ये हाई की तू खाली घूर घूर के देखता
है बस, करता धर्ता तो कुच्छ है ऩही, खाली घूर घूर के कितने
दिन देखता रहेगा" .

"क्या करू मा, मेरी तो कुच्छ समझ में ऩही आ रहा"

"साले बेवकूफ़ की औलाद, अर्रे करने के लिए इतना कुच्छ है और तुझे
समझ में ही ऩही आ रहा है",

"क्या मा बताओ ना, "

"देख अभी जैसे की तेरा मन कर रहा है की तू मेरे अनारो से खेले,
उन्हे दबाए, मगर तू ऩही वो काम ना कर के केवल मुझे घूरे जा
रहा है, बोल तेरा मन कर रहा है की ऩही, बोल ना"

"हाई, मा मन तो मेरे बहुत कर रहा है,

"तो फिर दबा ना, मैं जैसे तेरे औज़ार से खेल रही हू वैसे ही तू
मेरे समान से खेल, दबा बेटा दबा, बस फिर क्या था मेरी तो बान्छे
खिल गई मैने दोनो हथेलियो में दोनो चुचो को थाम लिया और
हल्के हल्के उन्हे दबाने लगा., मा बोली "सबाश, ऐसे ही दबाने
जितना दबाने का मन उतना दबा ले, कर ले मज़े". मैं फिर पूरे जोश
के साथ हल्के हाथो से उसके चुचियों को दबाने लगा. ऐसी मस्त मस्त
चुचिया पहली बार किसी ऐसे के हाथ लग जाए जिसने पहले किसी
चुचि को दबाना तो दूर छुआ तक ना हो तो बंदा तो जन्नत में
पहुच ही जाएगा ना. मेरा भी वही हाल था, मैने हल्के हाथो से
संभाल संभाल के चुचियों को दबाए जा रहा था. उधर मा के
हाथ तेज़ी से मेरे लंड पर चल रहे थे, तभी मा जो अब तक काफ़ी
उत्तेजित हो चुकी थी ने मेरे चेहरे की ओररे देखते हुए कहा "क्यों
मज़ा आ रहा है ना, ज़ोर से दबा मेरे चुचयों को बेटा तभी पूरा
मज़ा मिलेगा, मसलता जा, देख अभी तेरा माल मैं कैसे निकलती हू".
मैने ज़ोर से चुचियों को दबाना सुरू कर दिया था, मेरा मन कर
रहा था की मैं मा के ब्लाउस खोल के चुचियों को नंगा करके उनको
देखते हुए दबौउ, इसीलये मैने मा से पुचछा "हाई मा तेरा ब्लाउस
खोल दू" इस पर वो मुस्कुराते हुए बोली "ऩही अभी रहने दे, मैं
जानती हू की तेरा बहुत मन कर रहा होगा की तू मेरी नंगी चुचियों
को देखे मगर, अभी रहने दे" मैं बोला ठीक "हाई मा, पर मुझे
लग रहा हाई की मेरे औज़ार से खुच्छ निकालने वाला हाई". इस पर मा
बोली "कोई बात ऩही बेटा निकालने दे, तुझे मज़ा आ रहा हाई ना"
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06-16-2017, 11:31 AM,
#14
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
"हा मा मज़ा तो बहुत आ रहा है"

"अभी क्या मज़ा आया है बेटे अभी तो और आएगा, अभी तेरा माल निकाल
ले फिर देख मैं तुझे कैसे जन्नत की सैर कराती हू"

"हाई मा, ऐसा लगता है जैसे मेरे में से कुच्छ निकालने वाला है,
है निकाल जाएगा"

"तो निकालने दे निकाल जाने दे अपने माल को" कह कर मा ने अपना हाथ
और ज़यादा तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया. मेरे पानी अब बस
निकालने वाला ही था, मैने भी अपना हाथ अब तेज़ी के साथ मा के
अनारो पर चलाना सुरू कर दिया था. मेरा दिल कर रहा था उन प्यारे
प्यारे चुचियों को अपने मुँह में भर के चुसू, लेकिन वो अभी
संभव ऩही था. मुझे केवल चुचियों को दबा दबा के ही संतोष
करना था. ऐसा लग रहा था जैसे की मैं अभी सातवे आसमान पर उर
रहा था, मैं भी खूब ज़ोर ज़ोर सीस्यते हुए बोलने लगा "ओह मा, हा
मा और ज़ोर से मस्लो, और ज़ोर से मूठ मारो, निकाल दो मेरा सारा पानी"
पर तभी मुझे ऐसा लगा जैसे की मा ने लंड पर अपनी पकर ढीली
कर दी है. लंड को छोर कर मेरे आंडो को अपने हाथ से पकर के
सहलाते हुए मा बोली "अब तुझे एक नया मज़ा चखती हू, ठहर जा"
और फिर धीरे धीरे मेरे लंड पर झुकने लगी, लंड को एक हाथ से
पाकरे हुए वो पूरी तरह से मेरे लंड पर झुक गई और अपने होतो को
खोल कर मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया. मेरे मुँह से एक आ
निकाल गई, मुझे विश्वास ऩही हो रहा था की वो ये क्या कर रही है.
मैं बोला "ओह मा ये क्या कर रही हो, है छ्होर ना बहुत गुदगुदी हो
रही है" मगर वो बोली "तो फिर मज़े ले इस गुदगुदी के, करने दे
तुझे अच्छा लगेगा".

"ही, मा क्या इसको मुँह में भी लिया जाता,"

"हा मुँह में भी लिया जाता है और दूसरी जगहो पर भी, अभी तू
मुँह में डालने का मज़ा लूट" कह कर तेज़ी के साथ मेरे लंड को
चूसने लगी, मेरी तो कुच्छ समझ में ऩही आ रहा था, गुदगुदी और
सनसनी के कारण मैं मज़े के सातवे आसमान पर झूल रहा था. मा ने
पहले मेरे लंड के सुपारे को अपने मुँह में भरा और धीरे धीरे
चूसने लगी, और मेरी र बरी सेक्सी अंदाज़ में अपने नज़रो को उठा के
बोली, "कैसा लाल लाल सुपारा है रे तेरा, एक डम पाहरी आलू के
जैसे, लगता है अभी फट जाएगा, इतना लाल लाल सुपरा कुंवारे
लार्को का ही होता है" फिर वो और कस कस के मेरे सुपारे को अपने
होंठो में भर भर के चूसने लगी. नदी के किनारे, पेर की छाव
में मुझे ऐसा मज़ा मिल रहा था जिसकी मैने आज तक कल्पना तक
ऩही की थी. मा अब मेरे आधे से अधिक लौरे को अपने मुँह में भर
चुकी थी और अपने होंठो को कस के मेरे लंड के चारो तरफ से
दब्ए हुए धीरे धीरे उपर सुपारे तक लाती थी और फिर उसी तरह से
सरकते हुए नीचे की तरफ ले जाती थी. उसकी शायद इस बात का अच्छी
तरह से अहसास था की ये मेरा किसी औरत के साथ पहला संबंध है
और मैने आज तक किसी औरत हाथो कॅया स्पर्श अपने लंड पर ऩही
महसूस किया है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वो मेरे लंड
को बीच बीच में ढीला भी छ्होर देती थी और मेरे आंडो को
दबाने लगती थी. वो इस बात का पूरा ध्यान रखे हुए थी की मैं
जल्दी ना झारू. मुझे भी गजब का मज़ा आ रहा था और ऐसा लग
रहा था जैसे की मेरा लंड फट जाएगा मगर. मुझसे अब रहा ऩही
जा रहा था
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06-16-2017, 11:31 AM,
#15
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मैने मा से कहा "ही मा, अब निकाल जाएगा मा, मेरा
माल अब लगता है ऩही रुकेगा". उसने मेरी बातो की ओररे कोई ध्यान
ऩही दिया और अपनी चूसाई जारी रखी. मैने कहा "मा तेरे मुँह में
ही निकाल जाएगा, जल्दी से अपना मुँह हटा लो" इस पर मा ने अपना मुँह
थोरी देर के लिए हटाते हुए कहा की "कोई बात ऩही मेरे मुँह में
ही निकाल मैं देखना चाहती हू की कुंवारे लरके के पानी का स्वाद
कैसा होता है" और फिर अपने मुँह में मेरे लंड को कस के जकरते
हुए उसने अब अपना पूरा ध्यान केवल अब मेरे सुपाअरए पर लगा दिया और
मेरे सुपारे को कस कस के चूसने लगी, उसकी जीभ मेरे सुपारे के
कटाव पर बार बार फिर रही थी. मैं सीस्यते हुए बोलने लगा "ओह
मा पी जाओ तो फिर, चख लो मेरे लंड का सारा पानी, ले लो अपने मुँह
में, ओह ले लो, कितना मज़ा आ रहा है, ही मुझे ऩही पाता था की
इतना मज़ा आता है, ही निकाल गया, निकाल गया, ही मा-
निकला तभी मेरे लंड का फ़ौवारा च्छुत परा और. तेज़ी के साथ
भालभाला कर मेरे लंड से पानी गिरने लगा. मेरे लंड का सारा सारा
पानी सीधे मा के मुँह में गिरता जा रहा था. और वो मज़े से मेरे
लंड को चूसे जा रही थी. कुछ ही देर तक लगातार वो मेरे लंड को
चुस्ती रही, मेरा लॉरा अब पूरी तरह से उसके थूक से भीग कर
गीला हो गया था और धीरे धीरे सिकुर रहा था. पर उसने अब भी
मेरे लंड को अपने मुँह से ऩही निकाला था और धीरे धीरे मेरे
सिकुरे हुए लंड को अपने मुँह में किसी चॉक्लेट की तरह घुमा रही
थी. कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद जब मेरी साँसे भी कुच्छ
सांत हो गई तब मा ने अपना चेहरा मेरे लंड पर से उठा लिया और
अपने मुँह में जमा मेरे वीर्या को अपना मुँह खोल कर दिखाया और
हल्के से हास दी. फिर उसने मेरा सारे पानी गतक लिया और अपने सारी
पल्लू से अपने होंठो को पोचहति हुई बोली, "ही मज़ा आ गया, सच
में कुंवारे लंड का पानी बरा मीठा होता है, मुझे ऩही पाता था
की तेरा पानी इतना मजेदार होगा" फिर मेरे से पुचछा "मज़ा आया की
ऩही", मैं क्या जवाब देता, जोश ठंडा हो जाने के बाद मैने अपने
सिर को नीचे झूहका लिया था, पर गुदगुदी और सनसनी तो अब भी
कायम थी, तभी मा ने मेरे लटके हुए लौरे को अपने हाथो में
पकरा और धीरे से अपने सारी के पल्लू से पोचहति हुई पूच्ची "बोल
ना, मज़ा आया की ऩही," मैने सहरमते हुए जवाब दिया "ही मा बहुत
मज़ा आया, इतना मज़ा कभी ऩही आया था", तब मा ने पुचछा "क्यों
अपने हाथ से भी करता था क्या",

"कभी कभी मा, पर उतना मज़ा ऩही आता था जितना आज आया है"

"औरत के हाथ से करवाने पर तो ज़यादा मज़ा आएगा ही, पर इस बात
का ध्यान राखियो की किसी को पाता ना चले "

"हा मा किसी को पाता ऩही चलेगा"

"हा, मैं वही कह रही हू की, किसी को अगर पाता चलेगा तो लोग क्या
क्या सोचेंगे और हमारी तुम्हारी बदनामी हो जाएगी, क्यों की हमारे
समाज में एक मा और बेटे के बीच इस तरह का संबंध उचित ऩही
माना जाता है, समझा" मैने भी अब अपने सरं के बंधन को छ्होर
कर जवाब दिया "हा मा मैं समझता हू, और हम दोनो ने जो कुच्छ भी
किया है उसका मैं किसी को पाता ऩही चलने दूँगा". तब मा उठ कर
खरी हो गई, अपने सारी के पल्लू को और मेरे द्वारा मसले गये ब्लाउस
को ठीक किया और मेरी ओररे देख कर मुस्कुराते हुए अपने बर के अपने
सारी को हल्के से दबाया और सारी को चूत के उपर ऐसे रग्रा जैसे
की पानी पोच्च रही हो. मैं उसकी इस क्रिया को बरे गौर से देख रहा
था. मेरे ध्यान से देखने पर वो हसते हुए बोली "मैं ज़रा पेशाब
कर के आती हू, तुझे भी अगर करना है तो चल अब तो कोई शरम
ऩही है"
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06-16-2017, 11:31 AM,
#16
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मैं हल्के से शरमाते हुए मुस्कुरा दिया तो बोली "क्यों अब
भी शर्मा रहा है क्या". मैने इस पर कुच्छ ऩही कहा और चुप चाप
उठ कर खरा हो गया. वो आगे चल दी और मैं उसके पिच्चे-पिच्चे
चल दिया. झारियों तक की डूस कदम की ये दूरी मैने मा के पिच्चे
पिच्चे चलते हुए उसके गोल मटोल गदराए हुए चूटरो पर नज़रे
गढ़ाए हुए तै की. उसके चलने का अंदाज़ इतना मदहोश कर देने वाला
था. आज मेरे देखने का अंदाज़ भी बदला हुआ था शायद इसलिए मुझे
उसके चलने का अंदाज़ गजब का लग रहा था. चलते वाक़ूत उसके दोनो
चूतर बरे नशीले अंदाज़ में हिल रहे थे और उसके सारी उसके दोनो
चूटरो के बीच में फस गई थी, जिसको उसने अपने हाथ पिच्चे ले जा
कर निकाला. जब हम झारियों के पास पहुच गये तो मा ने एक बार
पिच्चे मूर कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरई फिर झारियों के पिच्चे
पहुच कर बिना कुच्छ बोले अपने सारी उठा के पेशाब करने बैठ गई.
उसकी दोनो गोरी गोरी जंघे उपर तक नंगी हो चुकी थी और उसने
शायद अपने सारी को थोरा जान भुज कर पिच्चे से उपर उठा दिया था
जिस के कारण उसके दोनो चूतर भी नुमाया हो रहे थे. ये सीन देख
कर मेरा लंड फिर से फुफ्करने लगा. उसका गोरे गोरे चूतर बरे कमाल
के लग रहे थे. मा ने अपने चूटरो को थोरा सा उचकाया हुआ था जिस
के कारण उसके गांद की खाई भी धीख रही थी. हल्के भूरे रंग की
गांद की खाई देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा उस गांद
की खाई में धीरे धीरे उंगली चलौ और गांद की भूरे रंग की
च्छेद को अपनी उंगली से च्चेरू और देखु की कैसे पाक-पकती है.
तभी मा पेशाब कर के उठ खरी हुई और मेरी तरफ घूम गई. उसेन
अभी तक सारी को अपने जेंघो तक उठा रखा था. मेरी ओर देख कर
मुस्कुराते हुए उसने अपने सारी को छ्होर दिया और नीचे गिरने दिया, फिर
एक हाथ को अपनी चूत पर सारी के उपर से ले जा के रगार्ने लगी
जैसे की पेशाब पोच्च रही हो और बोली "चल तू भी पेशाब कर ले
खरा खरा मुँह क्या तक रहा है". मैं जो की अभी तक इस शानदार
नज़ारे में खोया हुआ था थोरा सा चौंक गया पर फिर और हकलाते
हुए बोला "हा हा अभी करता हू,,,,,, मैने सोचा पहले तुम कर लो
इसलिए रुका था". फिर मैने अपने पाजामा के नारे को खोला और सीधा
खरे खरे ही मूतने की कोशिश करने लगा. मेरा लंड तो फिर से
खरा हो चुक्का था और खरे लंड से पेशाब ही ऩही निकाल रहा था.
मैने अपनी गांद तक का ज़ोर लगा दिया पेशाब करने के चक्कर में.
मा वही बगल में खरी हो कर मुझे देखे जा रही थी. मेरे खरे
लंड को देख कर वो हसते हुए बोली "चल जल्दी से कर ले पेशाब, देर
हो रही है घर भी जाना है" मैं क्या बोलता पेशाब तो निकाल ऩही
रहा था. तभी मा ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को अपने हाथो में
पकर लिया और बोली "फिर से खरा कर लिया, अब पेशाब कैसे उतरेगा'
कह कर लंड को हल्के हल्के सहलाने लगी, अब तो लंड और टाइट हो
गया पर मेरे ज़ोर लगाने पर पेशाब की एक आध बूंदे नीचे गिर गई,
मैने मा से कहा "अर्रे तुम छ्होरो ना इसको, तुमहरे पकरने से तो ये
और खरा हो जाएगा, ही छ्होरो" और मा का हाथ अपने लंड पर से
झतकने की कोशिश करने लगा, इस पर मा ने हसते हुए कहा "मैं तो
छ्होर देती हू पर पहले ये तो बता की खरा क्यों किया था, अभी दो
मिनिट पहले ही तो तेरा पानी निकाला था मैने, और तूने फिर से खरा
कर लिया, कमाल का लरका है तू तो". मैं खुच्छ ऩही बोला, अब लंड
थोरा ढीला पर गया था और मैने पेशाब कर लिया. मूतने के बाद
जल्दी से पाजामा के नारे को बाँध कर मैं मा के साथ झारियों के
पिच्चे से निकाल आया, मा के चेहरे पर अब भी मंद मंद मुस्कान आ
रही थी. मैं जल्दी जल्दी चलते हुए आगे बढ़ा और कापरे के गत्थर
को उठा कर अपने माथे पर रख लिया, मा ने भी एक गथर को उठा
लिया और अब हम दोनो मा बेटे जल्दी जल्दी गाँव के पगडंडी वाले
रास्ते पर चलने लगे. गर्मी के दिन थे अभी भी सूरज चमक रहा
था थोरी दूर चलने के बाद ही मेरे माथे से पसीना च्चालकने लगा.
मैं जान भुज कर मा के पिच्चे पिच्चे चल रहा था ताकि मा के
मटकते हुए चूटरो कॅया आनंद लूट साकु और...
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06-16-2017, 11:31 AM,
#17
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मटकते हुए चूटरो के पिच्चे चलने का एक अपना ही आनंद है आप सोचते रहते हो की "हाई कैसे दिखते होंगे ये चूतर बिना कपरो के" या फिर आपका दिल करता हाई की आप चुपके से पिच्चे से जाओ और उन चूटरो को अपने हथेलियों में दबा लो और हल्के मस्लो और सहलाओ फिर हल्के से उन चूटरो के बीच की खाई यानी की गांद के गड्ढे पर अपना लंड सीधा खरा कर के सता दो और हल्के से रगर्ते हुए प्यार से गर्देन पर चुम्मिया लो. ये सोच आपको इतना उत्तेजित कर देती जितना शायद अगर आपको सही में चूतर मिले भी अगर मसल्ने और सहलाने को तो शायद उतना उत्तेजित ना कर पाए. चलो बहुत बकवास हो गई आगे की कहानी लिखते हाई, तो मैं अपना लंड पाजामा में खरा किए हुए अपनी लालची नज़रो को मा के चूटरो पर टिकाए हुए चल रहा था. मा ने मूठ मार कर मेरा पानी तो निकाल ही दिया था इस कारण अब उतनी बेचैनी ऩही थी, बल्कि एक मीठी मीठी सी कसक उठ रही थी, और दिमाग़ बस एक ही जगह पर अटका परा था. तभी मा पिच्चे मूर कर देखते हुए बोली "क्यों रे पिच्चे पिच्चे क्यों चल रहा हाई, हर रोज़ तो तू घोरे की तरह आगे आगे भागता फिरता रहता था" मैं ने शर्मिंदगी में अपने सिर को नीचे झुका लिया, हालाँकि अब शर्म आने जैसी कोई बात तो थी ऩही हर कुच्छ खुलाम खुला हो चुक्का था मगर फिर भी मेरे दिल में अब भी थोरी बहुत हिचक तो बाकी थी ही. मा ने फिर कुरेदते हुए पुचछा "क्यों क्या बात हाई तक गया हाई क्या" मैने कहा "ऩही मा ऐसी कोई बात तो हाई ऩही, बस ऐसे ही पिच्चे चल रहा हू". तभी मा ने अपनी चल धीमी कर दी और अब वो मेरे साथ साथ चल रही थी. मेरी र अपनी तिरच्चि नज़रो से देखते हुए बोली " मैं भी अब तेरे को थोरा बहुत समझने लगी हू, तू कहा अपनी नज़रे गाराए हुए हाई ये मेरी समझ में आ रहा हाई, पर अब साथ-साथ चल मेरे पिच्चे पिच्चे मत चल, क्यों की गाओं नज़दीक आ गया हाई कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा" कह कर मुस्कुराने लगी. मैने भी समझदार बच्चो की तरह अपना सिर हिला दिया और साथ साथ चलने लगा. मा धीरे से फुसफुसते हुए बोलने लगी, "घर चल तेरा बापू तो आज घर पर हाई ऩही फिर आराम से जो भी देखना होगा देखते रहना". मैं हल्के से विरोध किया "क्या मा, मैं कहा कुच्छ देख रहा था, तुम तो ऐसे ही बस, तभी से मेरे पिच्चे पारी हो". इस पर मा बोली "लालू मैं पिच्चे पारी हू या तू पिच्चे परा हाई इसका फ़ैसला तो घर चल के कर लेना. फिर सिर पर रखे कपरो के गत्थर को एक हाथ उठा कर सीधा किया तो उसकी कांख दिखने लगी. ब्लाउस उसने आधे बाँह का पहन रखा था, गर्मी के कारण उसकी कांख में पसीना आ गया था और पसीने से भीगी उसकी कनखे देखने में बरी मदमस्त लग रही थी. मेरा मन उन कनखो को चूम लेने का करने लगा था. एक हाथ को उपर रखने से उसकी सारी भी उसके चुचियों पर से थोरी सी हट गई थी और थोरा बहुत उसके गोरे गोरे पेट भी दिख रहे थे, इसलिए चलने की ये पोज़िशन भी मेरे लिए बहुत अच्छी थी और मैं आराम से वासना में डूबा हुआ अपनी मा के साथ चलने लगा.
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06-16-2017, 11:31 AM,
#18
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
शाम होते होते तक हम अपने घर पहुच चुके थे. कपरो के गथर को इस्त्री करने वाले कमरे में रखने के बाद हुँने हाथ मुँह धोया और फिर मा ने कहा की बेटा चल कुच्छ खा पी ले. भूख तो वैसे मुझे खुच खास लगी ऩही थी (दिमाग़ में जब सेक्स का भूत सॉवॅर हो तो भूख तो वैसे भी मार जाती हाई) पर फिर भी मैने अपना सिर सहमति में हिला दिया. मा ने अब तक अपने कपरो को बदल लिया था, मैने भी अपने पाजामा को खोल कर उसकी जगह पर लूँगी पहन ली क्यों की गर्मी के दीनो में लूँगी ज़यादा आराम दायक होती हाई. मा रसोई घर में चली गई और मैं क्योले की अंगीठी को जलाने के लिए इस्त्री करने वाले कमरे में चला गया ताकि इस्त्री का काम भी कर साकु. अंगीठी जला कर मैं रसोई में घुसा तो देखा मा वही एक मोढ़े पर बैठ कर ताजी रोटिया सेक रही थी. मुझे देखते ही बोली "जल्दी से आ दो रोटी खा ले फिर रात का खाना भी बना दूँगी". मैं जल्दी से वही मोढ़े (वुडन प्लांक) पर बैठ गया सामने मा ने थोरी सी सब्जी और दो रोटिया दे दी. मैं चुप चाप खाने लगा. मा ने भी अपने लिए थोरी सी सब्जी और रोटी निकाल ली और खाने लगी. रसोई घर में गर्मी काफ़ी थी इस कारण उसके माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहने लगी. मैं भी पसीने से नहा गया था. मा ने मेरे चेहरे की र देखते हुए कहा "बहुत गर्मी हाई" मैने कहा "हा" और अपने पैरो को उठा के अपने लूँगी को उठा के पूरा जाँघो के बीच में कर लिया. मा मेरे इस हरकत पर मुस्कुराने लगी पर बोली कुच्छ ऩही, वो चुकी घुटने मोर कर बैठी थी इसलिए उसने पेटिकोट को उठा कर घुटनो तक कर दिया और आराम से खाने लगी. उसके गोरे पिंदलियो और घुटनो का नज़ारा करते हुए मैं भी खाना खाने लगा. लंड की तो ये हालत थी अभी की मा को देख लेने भर से उसमे सुरसुरी होने लगती थी, यहा मा मस्ती में दोनो पैर फैला कर घुटनो से थोरा उपर तक सारी उठा कर दिखा रही थी. मैने मा से कहा "एक रोटी और दे"
"ऩही अब और ऩही, फिर रात में भी खाना तो खाना हाई, आक्ची सब्ज़ी बना देती हू, अभी हल्का खा ले"


" क्या, मा तुम तो पूरा खाने भी ऩही देती, अभी खा लूँगा तो क्या तो हो जाएगा"


"जब जिस चीज़ का टाइम हो तभी वो करना चाहिए, अभी तो हल्का फूलका खा लो, रात में पूरा खाना"


मैं इस पर बुदबुदाते हुए बोला " सुबह से तो खाली हल्का फूलका ही खाए जा रहा हू, पूरा खाना तो पाता ऩही कब खाने को मिलेगा" ये
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06-16-2017, 11:32 AM,
#19
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
बात बोलते हुए मेरी नज़रे उसके दोनो जाँघो के बीच में गड़ी हुई थी.
हम दोनो मा बेटे को शायद द्वियार्थी बातो को करने में महारत हासिल
हो गई थी. हर बात में दो दो अर्थ निकल आते थे. मा भी इसको
आक्ची तरह से समझती थी इसलिए मुस्कुराते हुए बोली " एक बार पूरा
पेट भर के खा लेगा तो फिर चला भी ना जाएगा, आराम से धीरे धीरे
खा" . मैं इस पर गहरी सांस लेते हुए बोला " हा अब तो इसी आशा में
रात का इंतेज़ार करूँगा की शायद तब पेट भर खाने को मिल जाए" मा
मेरी तरप का मज़ा लेते हुए बोली " उम्मीद पर तो दुनिया कायम है जब
इतनी देर तक इंतेज़ार किया तो थोरा और कर ले आराम से खाना, अपने
बाप की तरह जल्दी क्यों करता है," मैं ने तब तक खाना ख़तम कर
लिया था और उठ कर लूँगी में हाथ पोच्च कर रसोई से बाहर निकाल
गया. मा ने भी खाना ख़तम कर लिया था. मैं इस्त्री वाले कमरे आ
गया और देखा की अंगीठी पूरी लाल हो चुकी है. मैं इस्त्री गरम
करने को डाल दी और अपने लूँगी को मोर कर घुटनो के उपर तक कर
लिया. बनियान भी मैने उतार दी और इस्त्री करने के काम में लग गया.
हालाँकि मेरा मन अभी भी रसोई घर में ही अटका परा था और जी कर
रहा था मैं मा के आस पास ही मंडराता राहु मगर, क्या कर सकता
था काम तो करना ही था. थोरी देर तक रसोई घर में खत-पट की
आवाज़े आती रही. मेरा ध्यान अभी भी रसोई घर की तरफ ही था. पूरे
वातावरण में ऐसा लगता था की एक अज़ीब सी खुश्बू समाई हुई है.
आँखो के आगे बार बार वही मा की चुचियों को मसलने वाला दृश्या
तैर रहा था. हाथो में अभी भी उसका अहसास बाकी था. हाथ तो मेरा
कपरो को इस्त्री कर रहे थे परंतु दिमाग़ में दिन भर की घटनाए
घूम रही थी.


मेरा मन तो काम करने में ऩही लग रहा था पर क्या करता. तभी मा
के कदमो की आहत सुनाई दी. मैने मूर कर देखा तो पाया की मा मेरे
पास ही आ रही थी. उसके हाथ में हसिया(सब्जी काटने के लिए गाओं
में इस्तेमाल होने वाली च्छेज़) और सब्जी का टोकरा था. मैने मा की ओर
देखा, वो मेरे ओर देख के मुस्कुराते हुए वही पर बैठ गई. फिर उसने
पुचछा "कौन सी सब्जी खाएगा". मैने कहा "जो सब्जी तुम बना दोगि
वही खा लूँगा". इस पर मा ने फिर ज़ोर दे के पुचछा "अर्रे बता तो, आज
सारी च्चेज़े तेरी पसंद की बनाती हू, तेरा बापू तो आज है ऩही, तेरी
ही पसंद का तो ख्याल रखना है". तब मैने कहा "जब बापू ऩही है
तो फिर आज केले या बैगान की सब्जी बना ले, हम दोनो वही खा लेंगे,
तुझे भी तो पसंद है इसकी सब्जी". मा ने मुस्कुराते हुए कहा "चल
ठीक है वही बना देती हू". और वही बैठ के सब्जिया काटने लगी.
सब्जी काटने के लिए जब वो बैठी थी तब उसने अपना एक पैर मोर कर
ज़मीन पर रख दिया था और दूसरा पैर मोर कर अपनी छाति से टिका
रखा था, और गर्दन झुकाए सब्जिया काट रही थी. उसके इस तरह से
बैठने के कारण उसकी एक चुचि जो की उसके एक घुटने से दब रही थी
ब्लाउस के बाहर निकलने लगी और उपर से झाकने लगी. गोरी-गोरी चुचि
और उस पर की नीली नीली रेखाए सब नुमाया हो रही थी . मेरी नज़र
तो वही पर जा के ठहर गई थी. मा ने मुझे देखा, हम दोनो की
नज़रे आपस में मिली, और मैने झेप कर अपनी नज़र नीचे कर ली और
इस्त्री करने लगा. इस पर मा ने हसते हुए कहा "चोरी चोरी देखने की
आदत गई ऩही, दिन में इतना सब कुछ हो गया अब भी...........".
मैने कुच्छ ऩही कहा और अपने काम में लगा रहा. तभी मा ने सब्जी
काटना बंद कर दिया और उठ कर खरी हो गई और बोली, "खाना बना
देती हू, तू तब तक छत पर बिच्छवान लगा दे बरी गर्मी है आज तो,
इस्त्री छ्होर कल सुबह उठ के कर लेना". मैने ने कहा "बस थोरा सा
और कर दू फिर बाकी तो कल ही करूँगा". मैं इस्त्री करने में लग गया
और, रसोई घर से फिर खाट पट की आवाज़े आने लगी यानी की मा ने
खाना बनाना शुरू कर दिया था. मैने जल्दी से कुछ कपरो को इस्त्री
की, फिर अंगीठी बुझाई और अपने तौलिए से पसीना पोचहता हुआ बाहर
निकाल आया. हॅंडपंप के ठंडे पानी से अपना मुँह हाथो को धोने के
बाद, मैने बिचवान लिया और छत पर चला गया . और दिन तो तीन
लोगो का बिच्छवान लगता था पर आज तो दो का ही लगाना था. मैने वही
ज़मीन पर पहले चटाई बिच्चाई और फिर दो लोगो के लिए बिच्छवान लगा
कर नीचे आ गया. मा अभी भी रसोई में ही थी. मैं भी रसोई घर
में घुस गया.
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06-16-2017, 11:32 AM,
#20
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मा ने सारी उतार दिया था और अब वो केवल पेटिकोट और ब्लाउस में ही
खाना बना रही थी. उसने अपने कंधे पर एक छ्होटा सा तौलिया राक
लिया था और उसी से अपने माथे का पसीना पोच्च रही थी. मैं जब वाहा
पहुचा तो मा सब्जी को काल्च्चि से चला रही थी और दूसरी तरफ
रोटिया भी सेक रही थी. मैने कहा "कौन सी सब्जी बना रही हो केले
या बैगान की" मा ने कहा "खुद ही देख ले कौन

सी है".


"खुसभू तो बरी आक्ची आ रही है, ओह लगता है दो दो सब्जी बनी है"


"खा के बताना कैसी बनी है"


"ठीक है मा, बेटा और कुच्छ तो ऩही करना" कहते कहते मैं एक दम
मा के पास आ के बैठ गया था. मा मोढ़े पर अपने पैरो को मोर के
और अपने पेटिकोट को जाँघो के बीच समेत कर बैठी थी. उसके बदन
से पसीने की अज़ीब सी खुसबु आ रही थी. मेरा पूरा ध्यान उसके जाँघो
पर ही चला गया था. मा ने मेरी र देखते हुए कहा "ज़रा खीरा
काट के सलाद भी बना ले".


"वा मा, आज तो लगता है तू सारी ठंडी चीज़े ही खाएगी"


"हा, आज सारी गर्मी उतार दूँगी मैं"


"ठीक है मा, जल्दी से खाना खा के छत पर चलते है, बरी आक्ची
हवा चल रही है"
"ठीक है मा, जल्दी से खाना खा के छत पर चलते है, बरी आक्ची
हवा चल रही है"


मा ने जल्दी से थाली निकाली सब्जी वाले चूल्‍हे को बंद कर दिया, अब
बस एक या दो रोटिया ही बची थी, उसने जल्दी जल्दी हाथ चलना शुरू
कर दिया. मैने भी खीरा और टमाटर काट के सलाद बना लिया. मा ने
रोटी बनाना ख़तम कर के कहा "चल खाना निकाल देती हू बाहर आँगन
में मोढ़े पर बैठ के खाएँगे". मैने दोनो परोसी हुई तालिया उठाई
और आँगन में आ गया . मा वही आँगन में एक कोने पर अपना हाथ
मुँह धोने लगी. फिर अपने छ्होटे तौलिए से पोचहते हुए मेरे सामने
रखे मोढ़े पर आ के बैठ गई. हम दोनो ने खाना सुरू कर दिया. मेरी
नज़रे मा को उपर से नीचे तक घूर रही थी. मा ने फिर से अपने
पेटिकोट को अपने घुटनो के बीच में समेत लिया था और इस बार
शायद पेटिकोट कुछ ज़यादा ही उपर उठा दिया था. चुचिया एक दम
मेरे सामने तन के खरी खरी दिख रही थी. बिना ब्रा के भी मा की
चुचिया ऐसी तनी रहती थी जैसे की दोनो तरफ दो नारियल लगा दिए
गये हो. इतना उमर बीत जाने के बाद भी थोरा सा भी ढलकाव ऩही
था. जंघे बिना किसी रोए के, एक दम चिकनी और गोरी और मांसल थी.
पेट पर उमर के साथ थोरा सा मोटापा आ गया था जिसके कारण पेट में
एक दो फोल्ड परने लगे थे, जो देकने में और ज़यादा सुंदर लगते थे.
आज पेटिकोट भी नाभि के नीचे बँधा गया था इस कारण से उसकी
गहरी गोल नाभि भी नज़र आ रही थी. थोरी देर बैठने के बाद ही
मा को पसीना आने लगा और उसके गर्दन से पसीना लुढ़क कर उसके
ब्लाउस के बीच वाली घाटी में उतरता जा रहा था, वाहा से वो पसीना
लुढ़क कर उसके पेट पर भी एक लकीर बना रहा था और धीरे धीरे
उसकी गहरी नाभि में जमा हो रहा था मैं इन सब चीज़ो को बरे गौर
से देख रहा था. मा ने जब मुझे ऐसे घूरते हुए देखा तो हसते हुए
बोली "चुप चाप ध्यान लगा के खाना खा समझा" और फिर अपने छ्होटे
वाले तौलिए से अपना पसीना पोच्छने लगी. मैं खाना खाने लगा और
बोला "मा सब्जी तो बहुत ही अच्छी बनी है". मा ने कहा "चल तुझे
पसंद आई यही बहुत बरी बात है मेरे लिए, ऩही तो आज कल के
लार्को को घर का कुच्छ भी पसंद ही ऩही आता". मैने कहा "ऩही मा
ऐसी बात ऩही है, मुझे तो घर का माल ही पसंद है," ये माल साबद
मैने बरे धीमे स्वर में कहा था, की कही मा ना सुन ले. मा को
लगा की शायद मैने बोला है घर की दाल इसलिए वो बोली "मैं जानती
हू मेरा बेटा बहुत समझदार है और वो घर के दाल चावल से काम
चला सकता है उसको बाहर के मालपुए (एक प्रकार की खाने वाली चीज़,
जो की मैदे और चीनी की सहायता से बनाई जाती है और फूली हू पॅव की
तरह से दिखती है) से कोई मतलब ऩही है". मा ने मालपुआ साबद पर
सहायद ज़यादा ही ज़ोर दिया था और मैने इस शब्द को पकर लिया. मैने
कहा "पर मा तुझे मालपुआ बनाए काफ़ी दिन हो गये, कल मालपुआ बना
ना" मा ने कहा "मालपुआ तुझे बहुत अक्चा लगता है मुझे पाता है
मगर इधर इतना टाइम कहा मिलता था जो मालपुआ बना साकु, पर अब
मुझे लगता है तुझे मालपुआ खिलाना ही परेगा". मैने ने कहा "जल्दी
खिलाना मा", और हाथ धोने के लिए उठ गया मा भी हाथ धोने के
लिए उठ गई. हाथ मुँह धोने के बाद मा फिर रसोई में चली गई और
बिखरे परे सामानो को सम्भलने लगी मैने कहा "छ्होरो ना मा, चलो
सोने जल्दी से, यहा बहुत गर्मी लग रही है" मा ने कहा "तू जा ना
मैं अभी आती, रसोई गंदा छ्होरना अच्छी बात ऩही है". मुझे तो
जल्दी से मा के साथ सोने की हारबारी थी की कैसे मा से चिपक के
उसके मांसल बदन का रस ले साकु पर मा रसोई साफ करने में जुटी
हुई थी. मैने भी रसोई का समान संभालने में उसकी मदद करनी
शुरू कर दी. कुच्छ ही देर में सारा समान जब ठीक तक हो गया तो
हम दोनो रसोई से बाहर आ गये. मा ने कहा "जा दरवाजा बंद कर दे".
मैं दौर कर गया और दरवाजा बंद कर आया अभी ज़यादा देर तो ऩही
हुआ था रात के 9:30 ही बजे थे. पर गाँव में तो ऐसे भी लोग जल्दी
ही सो जया करते है. हम दोनो मा बेटे छत पर आके बिच्छवान पर
लेट गये.
बिच्छवान पर मेरे पास ही मा भी आके लेट गई थी. मा के इतने पास
लेटने भर से मेरे सरीर में एक गुदगुदी सी दौर गई. उसके बदन से
उठने वाली खुसबु मेरी सांसो में भरने लगी और मैं बेकाबू होने
लगा था. मेरा लंड धीरे धीरे अपना सिर उठाने लगा था. तभी मा
मेरी ओररे करवट कर के घूमी और पुचछा "बहुत तक गये हो ना"
"हा, मा "
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