Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
11-30-2020, 12:50 PM,
#71
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
एक डाक्टर से अपने गाल की मरहम पट्टी कराकर राज ने उसी के क्लिनिक में अपना बाकी हुलिया सही किया।

क्लिनिक से निकलते वक्त राज का जी चाहा अपनी कार में सवार होकर अलीगढ़ से फौरन कूच कर जाए। वहां ठहरने की एक भी ठोस वजह उसके सामने नहीं थी। लेकिन दूसरों के फटे में टांग अड़ाने की आदत से मजबूर राज को उसके खुराफाती मन ने ऐसा नहीं करने दिया।

वह एस. एच.ओ. समर सिंह चौधरी के ऑफिस पहुंचा। पचासेक वर्षीय चौधरी इकहरे मजबूत जिस्म का रोबीले चेहरे वाला आदमी था।

-“तो तुम तुम हो, राज कुमार। ‘पंजाब केसरी’ के प्रेस रिपोर्टर और मशहूर- ओ मारूफ हस्ती। तशरीफ़ रखो।”

राज उसके डेस्क के संमुख एक कुर्सी पर बैठ गया।

-“थैंक्यु सर।”

-“तुम छलावा किस्म के आदमी हो।”

-“सॉरी सर। काफी भाग-दौड़ करता रहा हूं।”

-“और गिरते-पड़ते भी रहे हो? मारा-मारी भी करते रहे हो?”

राज ने जवाब नहीं दिया।

-“मैं तुम्हारे नाम वारंट इशू करने वाला था।”

-“किस आरोप में?”

-“कुछ भी हो सकता था।”

-“मसलन?”

-“पुलिस के काम में बाधा डालना, कानून को अपने हाथ में लेना, पुलिस ऑफिसर ऑन ड्यूटी के साथ हाथापाई करना वगैरा।”

-“इन्सपैक्टर चौधरी की बात कर रहे हैं?”

-“नहीं, एस. आई. सतीश पाल की बात कर रहा हूं।”

-“सतीश पाल एक गर्म मिजाज ऑफिसर है। अगर वह थोड़ी समझदारी से काम लेता और मुझ पर हावी होने की कोशिश नहीं करता तो वह लड़की भाग नहीं सकती थी।”

-“सतीश भी अब इस बात को महसूस कर रहा है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि तुम्हें वो सब करने की इजाजत मिल जाएगी जो तुम इस शहर में करते रहे हो। अगर मैं तुम्हारी जगह होता मैंने अंधेरी गलियों से दूर रहना था। साथ ही इस बात की चेतावनी भी देना चाहता हूं कि जो हरकत तुमने सतीश के साथ की थी वैसी कोशिश और किसी पुलिस वाले के साथ मत कर बैठना। जानते हो, अभी तक आजाद क्यों घूम रहे हो?”

-“नहीं।”

-“इन्सपैक्टर चौधरी की वजह से।”

राज बुरी तरह चौका।

-“म......मैं समझा नहीं।”

-“चौधरी का कहना है, तुम्हारे काम करने के ढंग से खुश न होने के बावजूद तुमसे नाराज वह नहीं है। तुम इस मामले में उसकी मदद कर रहे हो। एयरबेस पर उस लाल मारुति की सूचना तुम्हीं ने उसे दी थी।”

मन ही मन हैरान राज समझ नहीं पा रहा था चौधरी कैसा आदमी था। एक तरफ तो उसे गिरफ्तार करने की बजाय उसकी तारीफ कर रहा था। उसे क्रेडिट दे रहा था और दूसरी ओर उसकी जान तक लेने पर आमादा हो गया था।

-“क्या सोच रहे हो?” चौधरी ने टोका- “उस मारुति से ही हमें जौनी के बारे में लीड मिली थी।”

-“बवेजा ने भी मुझे यही बताया था। जौनी पकड़ा गया?”

-“अभी नहीं। लेकिन उसकी जन्मपत्री मुझे मिल गई है। उसके गुनाहों की फेहरिस्त खासी लंबी है।” चौधरी ने अपने डेस्क पर पड़ा एक कागज उठा लिया- “छोटी मोटी चोरियां, मार पीट और तोड़ फोड़ उसने तभी शुरू कर दी थी जब स्कूल में पढ़ता था। अगले कई सालों में बार-बार कारें चुराईं, गैर कानूनी तौर पर हथियार रखने लगा। फिर चोरी, डकैती और रहजनी को पेशे के तौर पर अपना लिया। पिछले ग्यारह सालों में से सात साल उसने जेल में गुजारे हैं।”

-“वह रहने वाला कहां का है?”

-“विशालगढ़ का। लेकिन हर बार अलग-अलग शहरों से पकड़ा गया था। आखरी दफा विराटनगर में स्मगल्ड शराब का ट्रक चलाता पकड़ा गया था। जुलाई में जेल से छूटा और इधर आ गया।”

-“बैंक में डकैती उसने अकेले ही डाली थी?”
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11-30-2020, 12:50 PM,
#72
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“अभी तक तो यही समझा जा रहा है वो डकैती वन मैन जॉब था। बैंक की इमारत में भी उस अकेले को ही देखा गया था।”

-“और वह बीस लाख की रकम ले उड़ा?”

-“हां।”

-“अजीब बात है अकेला आदमी बैंक को लूट कर ले गया।”

-“दरअसल वो रकम उसने बैंक से नहीं बल्कि बैंक में उस रकम को अपने अकाउंट से निकलवायी जाने के बाद बाहर ले जा रहे आदमी से लूटा था। लेकिन उस रकम को खर्च वह नहीं कर सका। उसमें ज्यादातर नोट पांच सौ के थे और उनके नंबरों की पूरी लिस्ट बैंक के पास थी। उस लिस्ट की कॉपियां लगभग सभी बड़े शहरी बैंकों में भिजवा दी गई थीं। उन नोटों से उस मारुति को खरीदने में ही उसने एक साथ मोटी रकम खर्च की लगती है। कार तो उसे मिल गई लेकिन पुलिस को भी इसका पता चल गया। और उसे विशालगढ़ से भागना पड़ा। जब पुलिस उस होटल में पहुंची जहां वे ठहरे थे तो पता चला घंटे भर पहले होटल छोड़कर चले गए।”

-“लड़की भी उसके साथ थी?”

-“वे पति-पत्नि के तौर पर वहां ठहरे थे- मिस्टर और मिसेज श्याम कुमार के नाम से।”

-“विशालगढ़ कब छोड़ा था उन्होंने?”

-“छ: हफ्ते पहले- तीन सितंबर को करीमगंज में रकम लूटी थी- सोलह अगस्त को। तीन सितंबर से कल तक वह पूरी तरह गायब रहा था।”

-“पूरी तरह नहीं।”

एस. एच.ओ. ने उसे घूरा।

तुम इस बारे में कुछ और जानते हो?

-“हां। आप जानते हैं, मोती झील कहां है?”

एस. एच.ओ. ने सर हिला कर हामी भरी।

-“हां। क्यों?”

-“इस केस के घटना स्थलों में से एक वो भी है। सितंबर के शुरू में जौनी और लीना कई रोज वहां छिपे रहे थे और मीना बवेजा भी आखरी दफा उसी झील पर देखी गई थी....।”

-“उसका इससे क्या ताल्लुक है?”

-“बड़ा गहरा ताल्लुक है। मैं नहीं जानता उसका पता लगाने की क्या कोशिश की जा रही है। लेकिन हर मुमकिन कोशिश की जानी चाहिए।”

-“कल रात से कोशिशें की जा रही है। अभी नतीजा सामने नहीं आया है।”

-“मेरे विचार से आपको अपनी खोजबीन मोतीझील पर करनी चाहिए।”

-“इसकी कोई खास वजह है?”

-“हां।”

राज ने सैंडल की हील और लॉज की चाबियां उसे सौंपकर पूरी कहानी सुनानी आरंभ कर दी।
एस. एच.ओ. बेसब्री से सब सुनता रहा।

-“बूढ़ा डेनियल झूठ बोल रहा हो सकता है।” अंत में बोला- “क्या तुम्हें उसकी कहानी मनगढ़ंत नहीं लगती?”

-“मैं मानता हूं कहानी सुनने में लचर लगती है। लेकिन अगर उसने गढ़नी ही थी तो कोई ज्यादा तर्कपूर्ण गढ़ता। दूसरे वो गड्ढा मैंने भी देखा था।”

-“गड्ढा उसने खुद भी तो खोदा हो सकता है।”

-“लेकिन वह झूठ बोलेगा क्यों?”

-“अगर वह लीना का दादा है तो झूठ बोलने की यही वजह उसके लिए काफी है।”

-“लेकिन जब उसने गड्ढा खोदने वाली बात बताई थी तब तक वह जानता ही नहीं था कि लीना मुसीबत में है।”

-“उसने तुम्हें पूरी तरह यकीन दिला दिया लगता है।”

-“आप खुद उससे पूछताछ कर सकते हैं।”

-“चाहता तो मैं भी हूं लेकिन फिलहाल तुम अपना बयान दर्ज करा दो।”

-“मैं इसलिए यहां आया हूं।”

एस. एच.ओ. ने एक स्टेनोग्राफर को टेपरिकॉर्डर सहित बुलवा लिया।

राज ने बोलना शुरू कर दिया।

टेप रिकॉर्डर चालू था। बयान टेप होने लगा साथ ही स्टेनो ने नोट करना भी शुरू कर दिया।

एस. एच.ओ. कमरे में चहल कदमी करने लगा।

कुछ देर बाद उसे बाहर बुला लिया गया।

जब वह वापस लौटा तो आंखें खुशी से चमक रही थीं। उत्तेजनावश नर्वस सा नजर आ रहा था।

बयान टेप करके स्टेनो चला गया।

-“सैनी की एकाउंट बुक्स मैंने सुबह इनकम टैक्स वालों को सौंप दी थी।” चौधरी एकांत पाते ही बोला- “पूरी छानबीन तो अभी सब बुक्स की नहीं हो पायी है लेकिन उन लोगों को यकीन है सैनी उन्हें धोखा देकर टैक्स की चोरी कर रहा था।”

-“कब से?”

-“कई सालों से। बार से उसे तगड़ी आमदनी होती रही थी मगर अपने खातों में इसे दर्ज उसने नहीं किया।”
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11-30-2020, 12:50 PM,
#73
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“वो कमाई गई कहां?”

-“जुए में और औरतों पर। रॉयल क्लब खरीदने के साल भर बाद से ही उसने दो तरह के खाते रखने शुरू कर दिए थे- एक असली और दूसरे आयकर वालों के लिए। उस दौरान मीना बवेजा क्योंकि उसकी सेक्रेटरी थी और एकाउंट भी देखती थी इसलिए जाहिर है इस काम में वह भी उसके साथ शामिल थी। हालांकि आयकर वालों की निगाहें उन पर थीं मगर कोई ठोस सबूत उन्हें नहीं मिल रहा था। उनका कहना है, वे सैनी और मीना को पूछताछ के लिए बुलाने वाले भी थे।”

-“सैनी के यहां से भागने की कोशिश करने की यह भी एक तगड़ी वजह रही हो सकती है।”

-“सतीश सैनी खत्म हो चुका था- आर्थिक, नैतिक और भी हर तरह से। यहां तक कि उसकी विवाहित जिंदगी भी चरमरा रही थी। मैंने कुछ ही देर पहले रजनी से फोन पर बातें की थीं। इस लिहाज से देखा जाए तो रजनी के मुकाबले में वह खुशकिस्मत रहा। सभी जंजालों से छूट गया।”

-“और रजनी?”

-“अगर आयकर वालों ने केस कर दिया तो वह नहीं बच सकेगी। सैनी की ज्वाइंट टैक्स रिटर्न्स पर उसने भी दस्तखत किए थे। जाहिर है वह नहीं जानती थी रिटर्न स्टेटमेंट फर्जी थी। लेकिन अब इस चक्कर में उसके पास जो भी बचा-खुचा है सब चला जाएगा। सैनी के गुनाहों की सजा उसे भुगतनी पड़ेगी।”

बेचारी रजनी। राज ने सोचा। सात साल पहले की गई गलती उसे पूरी तरह तबाह कर डालेगी।

-“यह तो उसके साथ नाइंसाफी होगी।”

-“मुझसे जो बन पड़ेगा करूंगा। वह पूरी तरह भली और शरीफ औरत है।”

रजनी के बारे में उसकी इस राय से सहमत राज नहीं था। मगर बहस नहीं की।

-“मैं भी उसे पसंद करता हूं।”

-“सैनी के अलावा सब उसे पसंद करते रहे हैं। ओह, याद आया, वह तुम्हारे बारे में पूछ रही थी। यहां से जाने के बाद उससे मिल लेना।”

-“घर पर मिलेगी?”

-“हां। एक बात मैंने उसे नहीं बताई है और चाहता भी नहीं उसे या किसी और को इसका पता लगे।“

-“कौन सी बात?”

-“अपने तक ही रखोगे?”

-“वादा करता हूं।”

-“यह बात तुम्हारे उस यकीन से मेल खाती है कि मीना बवेजा का इस केस से गहरा ताल्लुक है। सैनी की एकाउंट स्टेटमेंटों से जाहिर है साल भर से वह हर महीने मीना बवेजा को पचास हजार रुपए देता रहा था।”

मीना बवेजा के फ्लैट में देखे गए उसके रहन-सहन के ठाठ और बैंक बैलेंस का राज अब राज की समझ में आया।

-“किसी मोटल के मैनेजर की यह तनख्वाह बहुत ज्यादा नहीं है?”

-“बेशक है। इतना तो सैनी खुद अपने लिए भी बिजनेस से नहीं निकालता था।”

-“इसका सीधा सा मतलब है- ब्लैकमेल?”

-“यही तर्कपूर्ण लगता है। यह मीना की जुबान बंद रखने की कीमत रही होगी- एकाउंट्स में हेराफेरी के मामले में। बहरहाल जो भी था मीना की हत्या करने के लिए यह सैनी का तगड़ा मोटिव भी रहा हो सकता है। क्या यह तुम्हारे अनुमानों के साथ फिट बैठता है?”

-“जब तक कोई और ठोस बात सामने नहीं आती इस पर विचार किया जा सकता है।”

-“इस पूरे सिलसिले के बारे में मेरा अपना ख्याल है।” चौधरी विचारपूर्वक बोला- “मान लो सैनी ने सोमवार को मीना की हत्या की और किसी तरह लाश ठिकाने लगा दी थी। वह जानता था देर सवेर लाश मिल जाएगी और सीधा शक उसी पर किया जाएगा। वह यह भी जानता था आयकर विभाग वाले उसकी गरदन दबोचने वाले थे। इसलिए उसने भाग जाने का फैसला कर लिया- जितना ज्यादा हो सके पैसा बटोरकर।”

-“और वह लड़की लीना?”

-“उसके सैनी और जौनी दोनों से ही गहरे ताल्लुकात थे। उन दोनों को उसने एक-दूसरे से मिला दिया। उन्होंने विस्की से लदा ट्रक उड़ाने की योजना बना डाली। जौनी के पास बीस लाख रुपए की ऐसी रकम थी जिसे खर्च वह नहीं कर सकता था। सैनी के अपने ऐसे रसूख थे जिनके दम पर उसने बिना कोई एडवांस पेमेंट किए ट्रक लोड विस्की का ऑर्डर दे दिया। ताकि पूरा ट्रक जौनी के हवाले कर सके। इतना ही नहीं वक्ती तौर पर ट्रक को एयरबेस में छिपाने तक का प्रबंध भी उसने कर दिया। इन तमाम सेवाओं की कीमत जौनी ने लूट की रकम से चुका दी।”
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11-30-2020, 12:50 PM,
#74
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-“जिसे खर्च कर पाना सैनी के लिए भी मुमकिन नहीं था।”

-“प्रत्यक्षत: इस बात की जानकारी सैनी को नहीं थी। जौनी और लीना ने मिलकर उसे बेवकूफ बना दिया और वह बन गया। क्योंकि जौनी उस लड़की को चारे के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था सैनी को फसाने के लिए।”

-“हो सकता है।” राज ने कहा- “लेकिन सैनी के साथ भाग जाना लीना के लिए असलियत थी। वह सैनी को प्यार करती थी।”

चौधरी ने भौंहें चढ़ाईं।

-“तुम यह कैसे कह सकते हो?”

-“लीना की बातों और लहजे से और उन दोनों को साथ-साथ भी मैंने देखा था।”

-“यह कोई ऐसा सबूत नहीं है जिससे साबित किया जा सके लड़की वाकई उससे प्यार करती थी या सैनी उसे साथ लेकर भागने वाला था।”

-“लेकिन इसे नजर अंदाज भी तो नहीं किया जा सकता।”

चौधरी के चेहरे पर अफसराना भाव पैदा हो गए।

-“इस पर बहस हम नहीं करेंगे। अहम बात यह है कि वह मनोहर की हत्या के मामले में इनवाल्व थी।”

-“कैसे?”

-“वह जौनी की साथिन थी। और हम जानते हैं मनोहर की हत्या जौनी ने की थी।”

-“आप यकीनी तौर पर जानते हैं?”

-“मुझे यकीन है मनोहर और सैनी दोनों को उसी ने शूट किया था। उन दोनों की जान लेने वाली गोलियां एक ही गन से चलाई गई थीं। अब जौनी के पुराने रिकॉर्ड पर निगाह डालो। यह महज इत्तेफाक है कि पहले कभी हत्या उसने नहीं की। विस्की के उस ट्रक के लिए हत्या करने को तैयार था। यह उसके लिए पैसे से कहीं ज्यादा बेहतर था। कम से कम उस पैसे से जो उसके पास था। विस्की अच्छी क्वालिटी की थी। वह सही कीमत पर उसे बेच सकता था। और उस पैसे को इत्मीनान से खर्च भी कर सकता था। हमने सभी हाईवेज पैट्रोल और चैक पोस्टों को अलर्ट कर दिया है। जब उस ट्रक को निकालने की कोशिश करेगा। पकड़ा जाएगा। और हमारा केस सुलझ जाएगा।”

-“मुझे नहीं लगता।”

-“क्यों?”

-“आपकी यह थ्योरी तर्कसंगत नहीं है।”

-“कैसे?”

-“आपने कहा- मनोहर और सैनी को एक ही गन से शूट किया गया था।”

-“एस. आई. दिनेश जोशी और बैलास्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट के मुताबिक सैनी की खोपड़ी में धंसी गोली और मनोहर की छाती से निकाली गई गोली दोनों एक ही कैलीबर की थीं और एक ही गन से चलाई गई थीं।”

-“कौन सी गन से?”

-“चौंतीस कैलीबर की रिवाल्वर से।”

-“अगर बैलास्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट सही है तो जौनी ने सैनी को शूट नहीं किया था।”

-“मैं कहता हूं उसी ने शूट किया था।”

-“आप जानते हैं इसका मतलब क्या है?”

-“क्या है?”

-“इसका मतलब है जौनी उस ट्रक को एयरबेस से सीधा डीलक्स मोटल ले गया था- हाईवे से होकर। वो भी उस वक्त जब आपका हर एक पुलिस मैन उसी को ढूंढ रहा था। फिर उसने विस्की लदा वही ट्रक मोटल के बाहर पार्क किया और अंदर जाकर जुर्म में अपने भागीदार की हत्या कर दी। अब सवाल यह पैदा होता है सैनी की हत्या करने का ऐसा क्या तगड़ा मोटिव उसके पास था जिसकी खातिर इतना भारी रिस्क उसने लिया?”

चौधरी अपने डेस्क पर हाथ रखकर तनिक आगे झुक गया।

-“सैनी की मौत के साथ ही जौनी के खिलाफ वह इकलौता गवाह खत्म हो गया जो उसके खिलाफ बेहद खतरनाक साबित होना था जैसे ही उसे पता चलता कि जौनी द्वारा दी गई रकम बेकार थी। खासतौर पर उस सूरत में जबकि सैनी अपनी चहेती के साथ शहर से भाग रहा था।”

-“यह तर्क संगत नहीं है।” राज बोला।

-“कैसे?”

-“जौनी जो चाहता था उसे मिल चुका था और वह उसे लेकर अपनी राह पर निकल गया था। पुलिस को ट्रक की और उसकी तलाश थी यह भी वह जानता था। ऐसे में सैनी की हत्या करने के लिए जानबूझकर पुलिस के जाल में फंसने का खतरा उसने हरगिज़ मोल नहीं लेना था। और अगर उसने सैनी की हत्या नहीं की तो मनोहर का हत्यारा भी वह नहीं था.....बशर्तें कि जोशी और बैलीस्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट सही है।”
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11-30-2020, 12:50 PM,
#75
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“उनकी रिपोर्टों पर मुझे पूरा भरोसा है और मैं कहता हूं दोनों हत्याएं जौनी ने ही की थीं। या फिर मनोहर की हत्या के बाद उसने अपनी गन लीना को दे दी थी और लीना ने सैनी को शूट कर दिया।”

-“यह भी समझ में आने वाली बात नहीं है।”

-“मेरी समझ में आती है। क्योंकि ये ही दो अनुमान ऐसे हैं जो तथ्यों पर फिट बैठते हैं।”

-“सिर्फ उन तथ्यों पर जिनकी जानकारी आपको है। सभी प्राप्त तथ्यों पर नहीं।”

चौधरी की आंखें सिकुड़ गईं।

-“क्या ऐसे भी तथ्य हैं?” राज को घूरकर बोला- “जिनके बारे में मैं नहीं जानता मगर तुम जानते हो।”

राज ने एकदम से जवाब नहीं दिया।

-“हां।” कुछेक पल खामोश रहने के बाद हिचकिचाता सा बोला- “लेकिन दमदार नहीं है।”

-“मुझे बताओ।”

-“बवेजा ने मुझे एक गन के बारे में बताया था। मैं नहीं जानता उस पर यकीन किया जाए या नहीं। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है इसका जिक्र खुद उसने ही किया था। हो सकता है वह जताने की कोशिश कर रहा था कि वो गन गायब हो गई है।”

-“कैसी गन थी?”

-“चौंतीस कैलीबर की रिवाल्वर। उसका कहना है पिछली गर्मियों में वो उसने अपनी बेटी मीना को दी थी। क्योंकि मीना ने मनोहर से अपनी हिफाजत के लिए बवेजा से कोई हथियार मांगा था।”

-“मनोहर से हिफाजत के लिए?”

-“बवेजा ने यही कहा था। वह झूठ बोल रहा हो सकता है।”

-“मैं कुछ समझा नहीं। मैंने सुना था तुम बवेजा की मदद कर रहे हो।”

-“अब नहीं कर रहा। दस साल पहले घटी एक घटना को लेकर हमारे बीच मतभेद पैदा हो गए हैं।”

-“कौन सी घटना?”

-“मैं नहीं जानता आपको जानकारी है या नहीं लेकिन बवेजा को अपनी छोटी बेटी के साथ नाजायज हरकत करने के आरोप में......।”

-“जानता हूं, उन दिनों में सब इन्सपैक्टर था। और यही पोस्टेड था। उस केस की सही मायने में सुनवाई तक नहीं हो पायी। क्योंकि लड़की इतनी ज्यादा भयभीत थी कि बवेजा के खिलाफ आरोप लगाने की हालत में नहीं थी। जज सक्सेना सिर्फ इतना ही कर सका कि बवेजा के घर को लड़की के लिए असुरक्षित घोषित करके उसे बवेजा से अलग करा दिया था।”

-“इस घटना के अलावा बवेजा के बारे में आम राय कैसी है?”

-“जवानी के दौर में बड़ा ही रफ टफ किस्म का आदमी हुआ करता था। मैंने सुना है, आज जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी का मालिक वह है उसे शुरू करने के लिए उसने बरसों पहले स्मगलरों के ट्रक चलाकर पैसा इकट्ठा किया था।”

-“इन्सपैक्टर चौधरी ने ससुराल के लिए अच्छा घर नहीं चुना।”

-“किसी आदमी के बारे में उसके ससुर के आधार पर फैसला नहीं किया जा सकता।“ चौधरी गंभीरतापूर्वक बोला- कौशल ने जब रंजना से शादी की थी बवेजा के बारे में वह सब-कुछ जानता था। उसका असली मकसद उन दोनों लड़कियों को बवेजा की पहुंच से दूर करना था। यह बात एक पार्टी में पीने-पिलाने के दौरान खुद उसी ने मुझे बताई थी।”

-“बवेजा की माली हालत तो बढ़िया है। पैसा और जायदाद काफी है उसके पास।”

चौधरी का चेहरा कठोर हो गया।

-“अगर तुम समझते हो, चौधरी ने उसके पैसे और जायदाद के लालच में उसकी बेटी से शादी की थी तो बिल्कुल गलत समझ रहे हो। चौधरी को पैसे में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही। वह मेहनती, ईमानदार और हालात से संतुष्ट रहने वाला आदमी है। उसे बवेजा की बेटी से प्यार हो गया था इसलिए उससे शादी कर ली। उसे जो ठीक लगता है वही करता है- अंजाम की परवाह किए बगैर।”

-“मेरा भी यही ख्याल था।” राज बोला- “उसका मातहत जोशी कैसा आदमी है?”

-“क्या मतलब?”

-“आपको पूरा भरोसा है, जोशी किसी भी हालत में तथ्यों के साथ अपने ढंग से खिलवाड़ नहीं करेगा?”

-“हां।”

-“चाहे वे तथ्य उसके विभाग के ही किसी आदमी की ओर संकेत क्यों न करें?”

-“तुम्हारा इशारा चौधरी की ओर है?”

-“नहीं।”

-“जोशी की एक ही इच्छा है। वह लगातार तरक्की करके एक बड़ा पुलिस आफिसर बनना चाहता है।”

राज खड़ा हो गया।

-“तो फिर उसे बवेजा के घर भेज दीजिए। बूढ़े ने अपने बेसमेंट में बाकायदा शूटिंग गैलरी बना रखी है। जोशी को चौंतीस कैलीबर की वैसी कुछ और गोलियां वहां मिल सकती है।”

चौधरी ने कुछ नहीं कहा।

राज ऑफिस से निकल गया।

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11-30-2020, 12:50 PM,
#76
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
रजनी फीएट में बैठी इंतजार कर रही थी।

राज ने कार का दरवाजा खोला।

-“मुझे डर था तुम कहीं और न चले जाओ।” वह बोली- “इसलिए टैक्सी से यहां आ पहुंची। मोती झील पर फारेस्ट ऑफिस से डेनियल ने फोन किया था।”

-“मेरे लिए?”

-“हां। वह तुमसे मिलने मेरे घर आ रहा है।”

-“कब?”

-“आज ही। रास्ते में होगा।”

-“किसलिए आ रहा है?”

-“साफ-साफ तो उसने नहीं बताया लेकिन मेरा ख्याल है इसका ताल्लुक उसकी पोती से है। उसने कहा था इस बारे में तुम्हारे अलावा किसी और से कोई जिक्र न करूं।”

राज ने इंजन स्टार्ट करके कार आगे बढ़ा दी।

पार्क में जवान लड़के लड़कियां पिकनिक मना रहे थे। जीन्स खुली शर्टें पहने उन सबके चेहरों से बेफिक्री भरी खुशी और मस्ती झलक रही थी। उनमें से अधिकांश लड़कियां लीना की हम उम्र थीं।

खामोशी से कार ड्राइव करता राज सोचने पर विवश हो गया लीना इन सबसे अलग थी और वजह थी- हालात।

-“जानते हो।” रजनी उसका ध्यान आकर्षित करती हुई बोली- “दस साल पहले मैं भी इन्हीं लड़कियों की तरह थी। शायद इन सबसे ज्यादा खुशकिस्मत। डैडी तब जिंदा थे और मुझे किसी राजकुमारी की तरह रखते थे। मैं सोचा करती थी, मेरी बाकी जिंदगी भी इतनी ही शानो शौकत के साथ गुजरेगी। किसी ने मेरी यह खुश-फहमी दूर क्यों नहीं की?”

-“इसलिए कि कोई नहीं जानता कल कैसा होगा। सब यही उम्मीद करते हैं आज से बेहतर होगा।”

-“मुझे सपनों की दुनिया में रखा गया और यह यकीन दिलाया जाता रहा कि मैं सबसे अलग हूँ।” रजनी के लहजे में कड़वाहट थी- “मेरा कभी कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मैं भी इतनी नासमझ थी कि इसी भ्रम को पाले जीती रही।”

वह गहरी सांस लेकर चुप हो गई।

शेष रास्ता दोनों खामोश रहे।

रजनी के निवास स्थान पर बूढ़े डेनियल के आगमन का कोई चिन्ह नहीं था।

राज, रजनी सहित हवेली में दाखिल हुआ।

बाहर खिली धूप के बावजूद ड्राइंग रूम काफी ठंडा था।

-“हालात मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा खराब है।” सोफे पर राज की बगल में बैठती हुई रजनी बोली- “चौधरी ने तुम्हें बताया था?”

-“कुछ खास नहीं।”

-“सतीश ने मेरे पास कुछ नहीं छोड़ा। चौधरी का कहना है, कई साल का इनकम टैक्स भी मुझसे वसूल किया जा सकता है। इसके बारे में मैं आज से पहले जानती तक नहीं थी।”

-“चौधरी कोशिश करेगा तुम्हें ज्यादा परेशान न किया जाए वह तुम्हारा हमदर्द और दोस्त है।”

-“हां।”

-“लेकिन अगर चौधरी की कोशिश कामयाब नहीं हुई तो तुम्हारी बाकी जायदाद भी चली जाएगी। तब क्या होगा?”

-“मैं कंगाल हो जाऊंगी।”

-“क्या तुम वो सब सह पाओगी?”

-“पता नहीं।”

-“तुम्हें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। तुम जवान हो। खूबसूरत और पढ़ी लिखी हो। दुनियादारी का इतना तजुर्बा भी है कि सही फैसला कर सको। सैनी ने अपनी जान गंवाकर तुम्हें आजाद करके तो तुम पर अहसान किया ही है। तुमसे तुम्हारी दौलत छीनकर भी एक तरह से अहसान ही किया है।”

रजनी के चेहरे पर उलझन भरे भाव पैदा हो गए।

-“कैसे?”

-“तुम दोबारा शादी करोगी?”

-“न.....नहीं।”

राज मुस्कराया।

-“तुम्हारी हिचकिचाहट से साफ जाहिर है, करोगी। इस दफा जरूर तुम्हें एक अच्छा और ईमानदार पति मिलेगा- सैनी जैसा लालची और खुदगर्ज नहीं। क्योंकि तुम्हारे पास रूप, गुण और अपने परिवार के नाम की पूंजी होगी। और इस पूंजी के कद्रदान अभी भी बहुत हैं।”

-“हो सकता है।”

-“वैसे जो कुछ सैनी ने तुम्हारे साथ किया कोई नई बात नहीं थी। ऐसा हमेशा होता रहा है और होता रहेगा। मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आई। सैनी ने तो तुम्हारी दौलत की वजह से तुमसे शादी की थी। लेकिन तुमने क्या देखकर सैनी को अपने लिए पसंद किया।”

-“पता नहीं।”

-“उसका कोई दबाव था तुम पर?”

-“नहीं।”

-“फिर वह तुम्हें कैसे पसंद आ गया। तुम दोनों में कोई समानता मुझे तो नजर आई नहीं। यहां तक कि उम्र में भी वह तुमसे पंद्रह साल बड़ा तो रहा होगा।”

-“मेरी बदकिस्मती थी। उसके हाथों बरबाद होना था, हो गई।”

-“बुरा न मानो तो एक बात पूछ सकता हूं।” राज के स्वर में सहानुभूति थी।

-“क्या?”

-“सच-सच बताओगी?”

-“मैं झूठ नहीं बोलती।”
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11-30-2020, 12:50 PM,
#77
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“तुम्हारी जिंदगी में सैनी ही अकेला आदमी था? मेरा मतलब है, क्या तुमने कभी किसी से प्यार नहीं किया?”

रजनी ने सर झुका लिया।

-“किया था।”

-“सैनी से पहले?”

-“हां।”

-“वह भी तुमसे प्यार करता था?”

-“हां।”

-“उसी आर्मी ऑफिसर की बात कर रही हो जो कश्मीर में मारा गया था?”

-“नहीं।”

-“फिर वह कौन बदकिस्मत था जिसने तुम्हें ठुकरा दिया?”

-“बदकिस्मत वह नहीं मैं थी। उसे किसी और से शादी करनी पड़ी।”

राज चकराया।

-“लेकिन तुमने तो कहा है, वह भी तुमसे प्यार करता था।”

-“यह सही है। लेकिन उसके सामने हालात ही ऐसे पैदा हो गए थे।”

-“वह तुम्हारा पहला प्यार था?”

-“हां।”

-“सुना है पहला प्यार कभी नहीं भुलाया जा सकता। तुम अभी भी उसे याद करती हो?”

-“अब इन सब बातों को दोहराने से कोई फायदा नहीं है।”

रजनी ने भारी व्यथीत स्वर में कहा- “जो गुजर गया तो गुजर गया।”

-“क्या वह अपनी पत्नि के साथ सुखी है?”

रजनी ने जवाब नहीं दिया।

-“अच्छा, आखरी सवाल। क्या वह इसी शहर का है?”

रजनी ने गहरी सांस लेकर यूं उसे देखा मानो कह रही थी- बस करो, प्लीज, क्यों मेरे जख्मों को कुरेद रहे हो।

तभी डोर बैल की आवाज गूंजी।

रजनी उठकर दरवाजे की ओर बढ़ गई।

****************
आगंतुक बूढ़ा डेनियल ही था। दोनाली बंदूक कंधे पर लटकाए वह ड्राइंग रूम के बाहर ही रुक गया।
राज उठकर उसके पास पहुंचा।

-“मैं तुमसे अकेले में बातें करने आया हूं।” बूढ़े ने कहा- “आओ बाहर तुम्हारी कार में बैठते हैं।”

-“ठीक है।”

दोनों हवेली से बाहर आ गए।

-“लीना मेरे पास आई थी।” फीएट की अगली सीट पर बैठते ही बूढ़ा बोला।

-“अब कहां है?” राज ने बेसब्री से पूछा- “झील पर?”

-“नहीं, चली गई।”

-“कहां?”

-“वह सारा दिन जौनी की तलाश में पहाड़ों में धक्के खाती रही है। बेहद परेशान और थकी हारी सी थी। मैंने उसे अपने पास रोकने की बहुत कोशिश की मगर वह नहीं मानी।”

-“तो फिर आई किसलिए थी?”

-“प्रतापगढ़ का रास्ता पूछने।”

-“प्रतापगढ़?”

-“ऐसा लगता है जौनी वही है और वह उसे ढूंढने गई है।”

-“यह लीना ने बताया था?”

-“नहीं, उसने यह नहीं कहा वह वहां है। यह नतीजा मैंने निकाला है। सितंबर में जब वे दोनों मेरे पास आए थे मैंने ही उसे बताया था मैं प्रतापगढ़ का रहने वाला हूं- वो अलग-थलग सा एक पहाड़ी गांव है। जौनी ने काफी दिलचस्पी दिखाई और देर तक उसी के बारे में पूछता रहा। मुझे यह बात पहले ही याद आ जानी चाहिए थी- जब झील पर तुमसे बातें कर रहा था।”

-“जौनी ने प्रतापगढ़ के बारे में क्या पूछा था?”

-“कहां है, वहां कैसे पहुंचा जा सकता है बगैरा।”

-“आपने बता दिया?”

-“तब तक इसमें कोई बुराई मुझे नजर नहीं आई थी। प्रतापगढ़ यहां से करीब डेढ़ सौ मील दूर है। हाईवे पर झील की ओर न मुड़कर सीधे चले जाने पर एक छोटा सा कस्बा आता है- इमामबाद। वहां से दस-बारह मील दूर पहाड़ियों में है- प्रतापगढ़।”

-“वहां तक सड़क जाती है?”

-“जौनी भी यही जानना चाहता था। उसका कहना था वह मेरे पुश्तैनी गांव को जरुर देखेगा। सड़क ठीक ही होनी चाहिए लेकिन उस पर जगह-जगह खतरनाक मोड़ और ढलान है।”

-“उस सड़क पर ट्रक ले जाया जा सकता है?”

-“बिल्कुल ले जाया जा सकता है।”

-“और लीना अब उधर ही गई है?”

-“उधर ही गई होनी चाहिए। वह मुझसे बाकायदा नक्शा बनवाकर ले गई थी- वहां तक पहुंचने के लिए।”

-“मेरे लिए भी नक्शा बना दोगे?”

-“नहीं।”

-“क्यों?”

बुढ़ा मुस्कराया।

-“इसलिए कि मैं तुम्हारे साथ चल रहा हूं। मुझमें ज्यादा ताकत और चुस्ती फुर्ती तो नहीं है मगर अपनी हिफाजत अपने आप कर सकता हूं।”

राज ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।

-“आप यहां आए कैसे थे?”
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11-30-2020, 12:51 PM,
#78
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“फॉरेस्ट ऑफिस की यहां आ रही एक जीप में लिफ्ट लेकर।”

-“ठीक है। मैं रजनी से विदा लेकर आता हूं।”

राज कार से उतरकर हवेली के दरवाजे की ओर बढ़ गया।

*************
शाम घिरनी शुरू हो गई थी।

फीएट शहर से बाहर हाईवे की ओर दौड़ रही थी।

-“आपने मेरे पास आने का फैसला कैसे किया?”
राज ने पूछा।

-“तुम भले आदमी लगते हो। होशियार और हौसलामंद भी। इसलिए तुम पर भरोसा कर लिया। वैसे भी लीना की मदद करने के लिए किसी की मदद तो लेनी ही थी।”

-“मुझसे जो हो सकेगा आप की पोती के लिए करूंगा।”

-“लीना बदमाशों के बीच फंस गई है। मैं चुपचाप बैठा उसे तबाह होती नहीं देख सकता। आज जब वह मेरे पास आई थी। धूल और पसीने से लथ-पथ थी। चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। उससे नाराज होने के बावजूद मेरा दिल पसीज गया और उसकी मदद करने का फैसला कर लिया।”

-“फिक्र मत करो सब ठीक हो जाएगा।”

बूढ़ा सीट में पसर गया। वह पहली बार तनिक राहत महसूस करता नजर आया। राज खामोशी से कार दौड़ाता रहा।

करीब दो घंटे बाद।

एक स्थान पर रुककर उन्होंने खाना खाया। फीएट में पैट्रोल भरवाया और पहियों में हवा चैक करायी।
सफर फिर शुरू हो गया।

लगभग एक घंटे बाद बूढ़े ने घोषणा की।
-“इमामबाद आने वाला है।”

वो सचमुच एक छोटा सा कस्बा निकला। आशा के अनुरूप पैट्रोल पम्प की सुविधा वहां मौजूद थी।

राज ने वहीं ले जाकर कार रोकी।

पम्प अटेंडेंट युवक था।

जब वह फीएट में पैट्रोल डाल चुका तो राज ने कीमत चुकाकर बातचीत आरंभ की।

-“क्या तुम दो सौ रुपए कमाना चाहते हो?”

युवक ने गौर से उसे देखा फिर मुस्करा दिया।

-“नहीं।”

-“क्यों?”

युवक की मुस्कराहट गहरी हो गई।

-“क्योंकि आजकल की महंगाई में दो सौ से कुछ नहीं बनता।”

-“फिर कितने से बनता है?”

-“कम से कम पांच सौ से।”

-“ठीक है।” राज ने जौनी का हुलिया बताकर पूछा- “ऐसे किसी आदमी को इस इलाके में देखा है?”

युवक ने संदेहपूर्वक उसे देखा।

-“आप कौन है?”

-“घबराओ मत। मैं एक प्रेस रिपोर्टर हूं।” राज ने कहा और अपना प्रेस कार्ड उसे दिखाया।

युवक निश्चिंत नजर आया।

-“इस हफ्ते नहीं देखा।”

-“लेकिन देखा था?”

-“अगर वह वाकई वही आदमी है जो कि मैं समझ रहा हूं तो जरूर देखा था। पिछले महीने कई बार यहां आया था- पैट्रोल लेने। इस बार कुछ देर यहां रुककर गया था।”

-“क्या वाहन था उसके पास?”

-“लाल मारुति।”

बूढ़े ने राज को कोहनी से टहोका लगाया।

-“वही है।”

-“कहां ठहरा हुआ था?” राज ने पूछा।

-“यह तो उसने नहीं बताया। लेकिन पहाड़ियों में ही कहीं ठहरा होगा। जब वह पहली बार आया था तो जनरल स्टोर से काफी शापिंग की थी। स्टोव, कुछेक बरतन, खाने-पीने का सामान वगैरा। उसने बताया कि किसी रिसर्च के सिलसिले में आया था। लेकिन मुझे तो कोई खास पढ़ा-लिखा वह नजर नहीं आया.....।”

-“आखरी दफा कब आया था?”

-“पिछले हफ्ते बुधवार या वीरवार को। उस दफा वह इतनी जल्दी में था कि रुका नहीं। कौन है वह? यहां क्या कर रहा था?”

-“छिपा हुआ था।”

-“किससे? पुलिस से?”

-“हो सकता है। मैंने सुना है कल रात चार बजे वह एल्युमीनियम पेंट वाला ट्रक लेकर यहां से गुजरा था।”

-“गुजरा होगा। यह पम्प रात में दस बजे बंद हो जाता है और सुबह सात बजे खुलता है।”

-“आज शाम सफेद मारुति में एक खूबसूरत लड़की को तो देखा होगा।”

- “वह करीब दो घंटे पहले गुजरी थी। यहां नहीं रुकी।”

-“प्रतापगढ़ की सड़क खुली है?” बूढ़े ने राज के ऊपर से झुककर पूछा।

-“खुली होनी चाहिए। अभी यहां बर्फ तो गिरी नहीं है.......ओह, याद आया, वो सड़क खुली है। आज एक ट्रक वहां गया था।”

-“एल्युमीनियम पेंट वाला?”

-“नहीं, नीला था। बड़ा बंद ट्रक। आज करीब चार बजे गया था। दिन में उस सड़क का एक हिस्सा यहां से दिखता है।”

राज ने पांच सौ रुपए उसे दे दिए।

-“अगर आप लोग प्रतापगढ़ जा रहे हैं।” युवक नोट जेब में ठूँसता हुआ बोला- “तो सावधान रहना। ढलान और मोड बहुत खतरनाक है उस सड़क पर।”

राज कार को घुमाकर वापस सड़क पर ले आया।

-“लीना वही है।” बूढ़े ने कहा।

-“अकेली वह नहीं है। और लोग भी हैं।

*****************
Reply
11-30-2020, 12:51 PM,
#79
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
हाईवे से कुछेक मील तक वो सड़क एकदम सीधी और साफ थी। फिर मोड़ आने शुरू हो गए और जल्दी-जल्दी आते रहे।
राज को धीमी रफ्तार से कार चलानी पड़ रही थी।
सड़क वाकई खतरनाक थी। एक तरफ पहाड़ था और दूसरी ओर सैकड़ों फुट गहरी खाई। सामने ढलान पर रेत फैली नजर आ रही थी।
तभी सामने से हैडलाइट्स की रोशनी आती दिखाई दी।
राज कार रोककर टार्च लिए नीचे उतरा।
बूढ़ा अंदर ही बैठा रहा।
ढलान पर आधी से ज्यादा सड़क पर फैली रेत पर चौड़े टायरों के निशान थे। जो की अनुमानत: किसी ट्रक के ही हो सकते थे। टार्च की रोशनी में और ज्यादा गौर से देखने पर दो तरह के टायरों के निशान नजर आए- एक-दूसरे के ऊपर। लेकिन दोनों ही निशान ताजा थे।
राज की धड़कनें बढ़ गई। सामने से आती हैडलाइट्स की रोशनी के साथ अब इंजन की आवाज भी सुनाई दे रही थी।
राज उसी तरह खड़ा सुनता रहा। जल्दी ही वह समझ गया कोई कार द्वारा पहाड़ से नीचे आ रहा था।
उसने फीएट की लाइटे ऑफ कर दी।
इतना समय नहीं था कि कार को हटाया जा सकता। राज ने अपनी रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली और अगले खुले दरवाजे के पीछे पोजीशन ले ली।
बूढ़े ने पिछली सीट पर पड़ी अपनी बंदूक उठा ली।
सामने से आती हैडलाइट्स की रोशनी खाई के ऊपर से गुजरी फिर पुनः सड़क पर पड़ने लगी।
कार मोड पर घूमी।
सफेद मारुति थी। उसका हार्न गूंजा फिर ब्रेक चीख उठे। तेज रफ्तार में अचानक जोर से ब्रेक लगाए जाने के कारण कार घूमी लगभग उलटती नजर आई फिर ढलान के नीचे सड़क की चौड़ाई में इस ढंग से रुकी कि तकरीबन पूरी सड़क घेर ली।
ड्राइविंग सीट वाला दरवाजा भड़ाक से खुला। एक मानवाकृति लुढ़ककर नीचे आ गिरी और उसी तरह पड़ी रही।
-“लीना है।” बूढ़ा फंसी सी आवाज में बोला।
राज दौड़कर उसके पास पहुंचा। टार्च की रोशनी उस पर डाली।
लीना के ऊपर वाले कटे होंठ से खून बह रहा था। चेहरा सूजा हुआ था। आंखें आतंक से फटी जा रही थीं। लेकिन वह होश में थी।
उसने उठकर बैठने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सकी।
राज ने उसे सहारा देकर बैठाया।
-“म.....मैं.....मेरी हालत बहुत खराब है......उन शैतानों ने मुझे......।”
राज ने उसके होंठ से खून साफ किया। तभी उसे पहली बार पता चला लीना सिर्फ कमीज पहनी थी वो भी साइडों से पूरी लंबाई में फटी हुई। उसकी टांगे नंगी थीं। गालों पर दांतों के निशान और जगह-जगह आई खरोचों से साफ जाहिर था कि उसकी वो हालत कैसे हुई थी।
बूढ़ा भी कार से उतरकर उनके पास आ पहुंचा।
-“तुम जैसी लड़कियों का देर सवेर यही अंजाम होता है।” राज बोला- “और होना भी चाहिए। तुम भी तो दूसरों को तकलीफें पहुंचाती हो।”
-“म.....मैंने कभी किसी को तकलीफ नहीं पहुंचाई।”
-“झूठ मत बोलो। मनोहर तुम्हारी वजह से ही मारा गया था।”
-“नहीं। उस बारे में मैं कुछ नहीं जानती.....खुदा बाप की कसम.....।”
-“खुदा बाप को बीच में मत लाओ।”
-“म.....मैं.....सच कह रही हूं......यकीन करो......।”
-“और सैनी के बारे में क्या कहती हो?”
-“ज.....जब मैं वहां पहुंची वह मरा पड़ा था.....म.....मैंने.....उसे....शूट नहीं किया.....।”
-“फिर किसने किया था?”
-“पता नहीं.....मैं नहीं जानती.....।”
-“कौन जानता है? जौनी?”
-“नहीं, वह भी नहीं जानता। मैंने मोटल में देवा से मिलना था.....हम दोनों शहर से दूर जाने वाले थे....।”
लीना की आंखों से आंसू बह रहे थे।
-“वो रकम कहां गई?” राज ने पूछा- “जो जौनी ने सैनी को दी थी।”
लीना ने जवाब नहीं दिया। राज की बांह का सहारा लिए बैठी सर हिलाने लगी। फिर मारुति की ओर देखा।
-“लीना।” पीछे खड़े बूढ़े ने पूछा- “तुम ठीक हो बेटी?”
लीना ने होठों पर जुबान फिराई।
-“हां....मैं ठीक हूं....सब ठीक है। दादा जी?”
बूढ़े को उसके पास छोड़कर राज ने मारुति की तलाशी ली। अगली सीट के नीचे अखबार में लिपटा और रस्सी से बंधा एक लंबा मोटा सा पैकेट पड़ा था।
राज ने एक कोना फाड़ा। पैकेट में पांच सौ रुपए की गड्डियां थीं। जिस अखबार में लिपटी थी अगस्त की किसी तारीख का था।
राज ने पैकेट को फीएट की डिग्गी में लॉक करके अपने बैग में से एक पजामा निकाल लिया।
लीना अब बूढ़े का सहारा लिए खड़ी थी।
-“वे मुझे घेर कर बैठ गए।” वह कह रही थी- “एक पेटी खोलकर विस्की की बोतल से पीनी शुरू कर दी.....फिर सबने एक-एक करके मुझे रेप करना शुरू कर दिया.....और बार-बार करते रहे.....।”
बूढ़े ने उसके धूल भरे उलझे बालों में हाथ फिराया।
-“मैं उन कमीनो की जान ले लूंगा। कितने हैं वे?”
-“तीन। वे विराटनगर से आए थे विस्की की उन पेटियों को लेने। मुझे तुम्हारे पास ही रहना चाहिए था दादा जी।”
बूढ़े के क्रोधित चेहरे पर उलझन भरे भाव उत्पन्न हो गए।
-“तुम्हारे पति ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की?”
-“जौनी मेरा पति नहीं है। अगर वह रोक सकता होता तो जरूर रोकता। लेकिन उन्होंने पहले ही उसकी रिवाल्वर छीन ली थी और उसे बुरी तरह पीटा भी।”
राज ने लीना को पजामा पहनाकर उसकी पीठ सहलाई।
-“वे लोग अभी भी वही है?”
-“हां। जब मैं वहां से भागी वे ट्रक में विस्की की पेटियां लाद रहे थे। उन्होंने दूसरा ट्रक गांव से बाहर खंडहरों में छिपा रखा है।”
-“हमें वहां ले चलो।”
-“नहीं, मैं वापस नहीं जाऊंगी।”
-“यहां अकेली रुकोगी?”
लीना ने फीएट को देखा फिर सड़क पर दोनों और निगाहें डालीं और निराश भाव से सर हिलाती हुई फीएट की अगली सीट पर जा बैठी।
बूढ़ा उसकी बगल में बैठ गया।
राज ने ड्राइविंग सीट पर बैठकर धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक फीएट को तिरछी खड़ी मारुति और खाई वाले सिरे के बीच से गुजारकर आगे बढ़ाया।
-“क्या तुमने पैसे के लिए सैनी का खून किया था, लीना? राज नहीं पूछा।
-“नहीं, नहीं। मैं वहां उससे मिलने गई थी और उसे मरा पड़ा पाया।”
-“तो फिर वहां से भागी क्यों?”
-“क्योंकि मेरे रुकने पर सबने मुझे ही खूनी समझना था। जैसे तुम समझ रहे हो। जबकि मैंने कुछ नहीं किया। मैं उससे प्यार करती थी।”
बूढ़े ने खिड़की से बाहर थूका।
-“तुम सैनी के ऑफिस से रकम लेकर भागी थी।” राज बोला।
Reply
11-30-2020, 12:51 PM,
#80
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“हां, रकम मैं ले आई थी। उस पर मेरा हक था। देवा मर चुका था। उसके किसी काम वो नहीं आनी थी। मैंने फर्श पर पड़ी रकम उठाई। वहीं खड़ी कार लेकर भाग आई और जौनी को ढूंढने लगी। मैं सिर्फ भागना चाहती थी।”
-“रकम साथ लेकर?”
-“हां।”
-“क्या तुमसे जौनी ने कहा था।” राज ने सावधानीपूर्वक मोड़ काटते हुए पूछा- “कि रकम लेकर उससे जा मिलना?”
-“नहीं, ऐसा कुछ नहीं था। मैं देवा के साथ भागने वाली थी। मुझे पता भी नहीं था जौनी कहां है।”
-“यह सच है।” बूढ़ा बोला- “मैंने भी तुम्हें यही बताया था।”
लीना ने राज की ओर गरदन घुमाई।
-“मुझे जाने क्यों नहीं देते? मैंने कोई गलत काम नहीं किया है। रकम वहां पड़ी थी मैं उठा लायी। तुम चाहो तो उस रकम को ले सकते हो। किसी को पता नहीं चलेगा। दादाजी किसी को नहीं बताएंगे।”
-“क्या तुम नहीं जानती, वो रकम किसी के काम नहीं आ सकती?”
-“क्या मतलब?”
-“वो रकम बैंक से लूटी गई थी। इसलिए जौनी उसे खर्च नहीं कर सका। उन नोटों के नंबरों की लिस्ट पुलिस के पास भी है। जो भी खर्च करेगा पकड़ा जाएगा।”
-“मैं नहीं मान सकती। जौनी ने ऐसा नहीं करना था।”
-“उसी ने किया था। वह सैनी को बेवकूफ बना रहा था।
-“तुम पागल हो।”
-“पागल मैं नहीं, तुम हो। इतनी सीधी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही कि अगर बीस लाख की वो रकम सही होती तो क्या जौनी उसे खुद ही खर्च नहीं करता? पैसे के लिए विस्की के ट्रक के झमेले में पड़ने की क्या जरूरत थी?”
लीना कुछ नहीं बोली। उसके चेहरे पर व्याप्त भावों से जाहिर था, असलियत को समझकर पचाने की कोशिश कर रही थी।
-“अगर यह सही है तो मुझे खुशी है उन शैतानों ने जौनी की पिटाई की। उसके साथ यही होना चाहिए था। मुझे खुशी है उस दगाबाज के साथ उन शैतानों ने भी दगाबाजी की।”
सामने चढ़ाई थी। राज दूसरे गीयर में धीरे-धीरे कार को ऊपर ले जाने लगा।
-“लीना?”
-“मैं यहीं हूं। कहीं गई नहीं।”
-“कल रात तुमने कहा था, तुम्हें मनोहर का ट्रक रुकवाने के लिए चुना गया था फिर किसी वजह से योजना बदल गई। वो क्या वजह थी?”
-“देवा यह रिस्क मुझे लेने नहीं देना चाहता था। असली बात यही थी।”
-“दूसरी बातें क्या थीं?”
-“उसने अपने एक दोस्त की मदद की थी। फिर उस दोस्त ने उसकी मदद कर दी।”
-“सैनी की?”
-“हां।”
-“ट्रक रोककर और मनोहर को शूट करके?”
-“ट्रक को रोका ही जाना था। देवा की योजना में किसी को शूट करना शामिल नहीं था लेकिन उस दोस्त ने देवा के साथ दगा कर दी।”
-“मनोहर को शूट करके?”
-“हां।”
-“सैनी का वो दोस्त कौन था?”
-“देवा ने नाम नहीं बताया। उसका कहना था कम से कम जानना ही मेरे हक में बेहतर होगा। वह चाहता था, अगर योजना कामयाब न हो सके तो मुझ पर कोई बात ना आए।”
-“क्या वह कौशल चौधरी था? पुलिस इन्सपैक्टर?”
उसने जवाब नहीं दिया।
-“बवेजा था?”
अभी भी खामोश रही।
-“सैनी ने अपने उस दोस्त की क्या मदद की थी?”
-“यह सब जौनी से पूछना। वही इसमें शामिल था सोमवार रात में वह देवा के साथ पहाड़ियों में गया था।”
-“पहाड़ियों में वे क्या करने गए थे?”
-“लंबी कहानी है।”
-“बता दो बेटी।” बूढ़ा हस्तक्षेप करता हुआ बोला- “खुद को बचाने के लिए तुम्हें सब-कुछ बता देना चाहिए।”
-“खुद को बचाने के लिए। मैं तो साफ बची हुई हूं। मेरा कोई संबंध इससे नहीं था। मैं बस वही जानती हूं जो मुझे बताया था।”
-“किसने?” राज ने पूछा।
-“पहले मनोहर ने फिर देवा ने।”
-“मनोहर ने इतवार रात में क्या बताया था?”
-“देवा ने कहा था मुझे इस बारे में खामोश ही रहना चाहिए। लेकिन वह मर चुका है इसलिए मैं नहीं समझती अब इससे कोई फर्क पड़ेगा।” लीना ने कहा- “मनोहर ने शनिवार को मोती झील तक मीना बवेजा का पीछा किया था। वह देवा की पत्नी की लॉज में किसी आदमी के साथ थी। और मनोहर खिड़की से छुपकर देख रहा था। यह बात मेरी समझ में तो आई नहीं। मामूली बात थी। पता नहीं क्यों इसे अहमियत दी गई।”
-“मनोहर ने क्या देखा था ?”
-“वही, जो मीना बवेजा और वह आदमी वहां कर रहे थे। क्या कर रहे थे, यह भी खोल कर बताना होगा?”
-“नहीं! आदमी कौन था उसके साथ?”
-“यह मनोहर ने नहीं बताया। मेरा ख्याल है, मुझे बताने में वह डर रहा था। इस बात ने उसके छक्के छुड़ाकर रख दिए थे। वह खुद मीना बवेजा का दीवाना था और जब उसने मीना को फर्श पर मरी पड़ी देखा.....।
-“उसने मीना को मरी पड़ी देखा था?”
-“मुझे तो उसने यही बताया था।”
-“शनिवार रात में?”
-“इतवार को। वह इतवार को दोबारा वहां गया था। उसने खिड़की से देखा तो वह मरी पड़ी थी। कम से कम मुझसे तो उसने यही कहा था।”
-“उसे कैसे पता चला मीना मर चुकी थी?”
-“यह मैंने उससे नहीं पूछा। मुझे लगा खुद उसी ने मीना को मार डाला हो सकता था। आखिरकार मीना के पीछे पागल तो वह था ही।”
-“इस मामले में जरूर कोई झूठ बोल रहा है, लीना। मीना बवेजा सोमवार तक जिंदा थी। तुम्हारे दादा ने सोमवार को तीसरे पहर सैनी के साथ देखा था।”
-“मैंने ऐसा कोई दावा नहीं किया कि वह वही थी।” बूढ़ा बोला।
-“वही रही होनी चाहिए। वो हील उसी के सैंडल से उखड़ी थी। मनोहर को जरूर धोखा हुआ था। उसे किसी वजह से वहम हो गया था कि मीना मर चुकी थी। फिर शराब के नशे में उसका वहम यकीन में बदल गया। इतवार को वह काफी पिए हुए था न?”
-“बेशक मनोहर नशे में धुत था।” लीना ने कहा- “लेकिन यह उसका वहम नहीं था। सोमवार को मैंने देवा को इस बारे में बताया तो वह खुद अपनी कार से वहां गया और जैसा कि मनोहर ने बताया लाश वही पड़ी थी।”
-“लाश अब कहां है?”
-“पहाड़ियों में ही कहीं है। देवा मीना की कार में डालकर उसे ले गया था और वही छोड़ आया।”
-“क्या यही वो मदद थी जो सैनी ने अपने उस दोस्त की की थी?”
-“ऐसा ही लगता है। हालांकि उसने कहा था उसे यह करना पड़ा। लाश को अपनी लॉज में वह नहीं छोड़ सकता था। उसे डर था, पुलिस उसी पर हत्या का आरोप लगा देगी।”
-“लाश को पहाड़ियों में कहां छोड़ा था उसने?”
-“पता नहीं। मैं उसके साथ नहीं थी।”
-“जौनी था?”
-“हां। वह देवा की कार में उसके पीछे गया था फिर देवा को कार से वापस ले आया।”
*********
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