desiaks
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शहनाज अपने बेटे को किसी अजूबे की तरह देखने लगी कि इसका दिमाग कितनी तेज चलता है। अगले ही पल एक चिंता की लकीर शहनाज़ के चेहरे पर दिखाई पड़ी और वो बोली:"
" तो अब तू क्या रेशमा से भी दोस्ती करेगा क्या ?
शादाब अपनी अम्मी की आंखों में देखते हुए उसका हाथ पकड़ कर बोला:"
" बिल्कुल भी नहीं अम्मी, रेशमा बुआ मुझे फसाना चाह रही थी मैंने उसको ही उल्लू बना दिया।
शहनाज़ अपने बेटे की इस चालाकी और मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी और बोली:"
" तो तो बड़ा तेज निकला बेटा,
और इतना बोलकर उसने थोड़ा आगे होकर उसका माथा चूम लिया। शादाब खुश हो गया और उसने गाड़ी वहीं साइड में लगा दी तो शहनाज़ सोचने लगी कि इसे अचानक से क्या हुआ।
शादाब ने शहनाज़ के मन के से को भांप लिया था। शादाब ने आगे होते हुए अपनी अम्मी को अपनी बांहों में भर लिया और उसकी आंखो में देखते हुए बोला:*
" अम्मी आप ही मेरी पहली और आखिरी दोस्त हो, हम दोनों के बीच बीच कभी कोई नहीं आ सकता।
इतना कहकर शादाब ने उसका गाल चूम लिया। शहनाज़ के मन की सारे शंकाएं, सारे सवाल अपने बेटे के इस एक जवाब से खत्म हो गए। शहनाज़ आज अपने आपको दुनिया की सबसे खुशनसीब समझ रही थी। वो अपने बेटे के मुंह को हाथो में भर कर चूमने लगी।
शादाब :" अम्मी आप मैं आपको घूम घुमाऊंगा, क्योंकि अब दादा और दादी भी नहीं है घर पर इसलिए को चाहे वो कर सकते हैं ।
शहनाज अंदर ही अंदर से बहुत खुश थी कि अब वो दोनो मा बेटे पूरे घर में अकेले रहेंगे। उफ्फ आगे क्या होने वाला है ये सब ख्याल मन में आते ही शहनाज़ की आंखों में लाल डोरे तैरने लगे।।
शादाब अपनी अम्मी से अलग हुआ और गाड़ी आगे बढ़ा दी। आगे उसने एक शानदार होटल देखकर अपनी अम्मी को उनकी मनपसंद बिरयानी खिलाई। शादाब अपनी अम्मी के साथ कुछ फल खरीदने लगा। शहनाज़ को चेरी बहुत पसंद थी इसलिए शादाब ने अपनी अम्मी के लिए दो पैकेट खरीद लिए और फिर दोनो घर की तरफ चल दिए। रात में कोई 11:30 के आस पास दोनो घर पहुंच गए।
आज शहनाज़ बहुत खुश थी क्योंकि उसके बेटे ने आज जो रेशमा के साथ किया था उससे उसे पुरा यकीन हो गया था कि उसका बेटा अब पूरी तरह से सिर्फ उसका हैं। उससे ज्यादा खुशी उसे एक बात की थी कि कितनी सफाई से उसने अपने दादा दादी को रेशमा के यहां छोड़ दिया ताकि वो आराम से मेरे सपने पूरे कर सके। शहनाज ये सब सोच सोच कर खुश हो रही थी और उसे आज सच में अपने पर प्यार अा रहा था। वो अब उसे सिर्फ एक बेटे नहीं बल्कि मर्द की नजर से देख रही थी जो अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए नए नए बहाने खोजता है।
घर जाकर शादाब पूरे दिन का पसीने से भीगा हुआ था इसलिए नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया और जल्दी ही नहाकर बाहर अा गया और तैयार होकर उपर छत पर जाने लगा क्योंकि चांदनी रात में ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थी। शादाब अभी तक रेशमा की चूची के बारे में सोच रहा था क्योंकि उसने पहली बार असल ने किसी की चूची देखी थी। उफ्फ बुआ की चूची गोरी तो थी लेकिन अम्मी तो बुआ से बहुत ज्यादा सुंदर हैं तो अम्मी की चूचियां तो बुआ से कहीं ज्यादा मस्त होनी चाहिए। शादाब के उपर वासना हावी होने लगी तो उसे कल देखी हुई फिल्म याद अा गई और उसने तुरंत मोबाइल में वो मूवी देखनी शुरू कर दी। मूवी देखते हुए शादाब की हालत खराब होने लगी क्योंकि आज पहली बार उसे औरत के जिस्म देखने को मिल रहा था। जैसे ही मूवी में लडके ने सविता की पेंटी नीचे खीची तो शादाब के मुंह से आह निकल पड़ी और उसने पहली बार चूत के दर्शन किए। शादाब को हल्की ठंड में भी पसीना आने लगा और उसका लंड पूरी तरह से तन कर खड़ा हो गया। शादाब मूवी देखता रहा और लड़के ने देखते ही देखते अपनी एक उंगली को सविता की चूत में घुसा दिया तो सविता के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी। फिर उसने उंगली को मुंह में भर कर चूस लिया और मस्ती में आकर उसने आंटी की चूत पर अपने होठ टिका दिए तो आंटी के मुंह से मस्ती भरी सिसकारियां निकलने लगी। शादाब उसे गौर से देख रहा था और औरत के जिस्म के नए नए रहस्यों से आज उसका परिचय हो रहा था।
दूसरी तरफ शहनाज़ नहा चुकी थी और उसने टाइम देखा तो अभी 12 बजने में दस मिनट कम थे। वो रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराई और आज उसने पहली बार अपने बेटे की लाई हुई काले रंग की शॉर्ट ड्रेस पहन ली जिसमें उसके दूध से गोरे चिट्टे कंधे एकदम नंगे थे। शहनाज़ ने अपनी मेक अप किट उठाई और अपने आपको सजाने लगी। दर असल आज शादाब शादाब का जन्म दिन था जिसे वो भूल गया था जबकि शहनाज़ को पूरी तरह से याद था इसलिए वो अपने बेटे को सरप्राइज देना चाहती थी।
" तो अब तू क्या रेशमा से भी दोस्ती करेगा क्या ?
शादाब अपनी अम्मी की आंखों में देखते हुए उसका हाथ पकड़ कर बोला:"
" बिल्कुल भी नहीं अम्मी, रेशमा बुआ मुझे फसाना चाह रही थी मैंने उसको ही उल्लू बना दिया।
शहनाज़ अपने बेटे की इस चालाकी और मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी और बोली:"
" तो तो बड़ा तेज निकला बेटा,
और इतना बोलकर उसने थोड़ा आगे होकर उसका माथा चूम लिया। शादाब खुश हो गया और उसने गाड़ी वहीं साइड में लगा दी तो शहनाज़ सोचने लगी कि इसे अचानक से क्या हुआ।
शादाब ने शहनाज़ के मन के से को भांप लिया था। शादाब ने आगे होते हुए अपनी अम्मी को अपनी बांहों में भर लिया और उसकी आंखो में देखते हुए बोला:*
" अम्मी आप ही मेरी पहली और आखिरी दोस्त हो, हम दोनों के बीच बीच कभी कोई नहीं आ सकता।
इतना कहकर शादाब ने उसका गाल चूम लिया। शहनाज़ के मन की सारे शंकाएं, सारे सवाल अपने बेटे के इस एक जवाब से खत्म हो गए। शहनाज़ आज अपने आपको दुनिया की सबसे खुशनसीब समझ रही थी। वो अपने बेटे के मुंह को हाथो में भर कर चूमने लगी।
शादाब :" अम्मी आप मैं आपको घूम घुमाऊंगा, क्योंकि अब दादा और दादी भी नहीं है घर पर इसलिए को चाहे वो कर सकते हैं ।
शहनाज अंदर ही अंदर से बहुत खुश थी कि अब वो दोनो मा बेटे पूरे घर में अकेले रहेंगे। उफ्फ आगे क्या होने वाला है ये सब ख्याल मन में आते ही शहनाज़ की आंखों में लाल डोरे तैरने लगे।।
शादाब अपनी अम्मी से अलग हुआ और गाड़ी आगे बढ़ा दी। आगे उसने एक शानदार होटल देखकर अपनी अम्मी को उनकी मनपसंद बिरयानी खिलाई। शादाब अपनी अम्मी के साथ कुछ फल खरीदने लगा। शहनाज़ को चेरी बहुत पसंद थी इसलिए शादाब ने अपनी अम्मी के लिए दो पैकेट खरीद लिए और फिर दोनो घर की तरफ चल दिए। रात में कोई 11:30 के आस पास दोनो घर पहुंच गए।
आज शहनाज़ बहुत खुश थी क्योंकि उसके बेटे ने आज जो रेशमा के साथ किया था उससे उसे पुरा यकीन हो गया था कि उसका बेटा अब पूरी तरह से सिर्फ उसका हैं। उससे ज्यादा खुशी उसे एक बात की थी कि कितनी सफाई से उसने अपने दादा दादी को रेशमा के यहां छोड़ दिया ताकि वो आराम से मेरे सपने पूरे कर सके। शहनाज ये सब सोच सोच कर खुश हो रही थी और उसे आज सच में अपने पर प्यार अा रहा था। वो अब उसे सिर्फ एक बेटे नहीं बल्कि मर्द की नजर से देख रही थी जो अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए नए नए बहाने खोजता है।
घर जाकर शादाब पूरे दिन का पसीने से भीगा हुआ था इसलिए नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया और जल्दी ही नहाकर बाहर अा गया और तैयार होकर उपर छत पर जाने लगा क्योंकि चांदनी रात में ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थी। शादाब अभी तक रेशमा की चूची के बारे में सोच रहा था क्योंकि उसने पहली बार असल ने किसी की चूची देखी थी। उफ्फ बुआ की चूची गोरी तो थी लेकिन अम्मी तो बुआ से बहुत ज्यादा सुंदर हैं तो अम्मी की चूचियां तो बुआ से कहीं ज्यादा मस्त होनी चाहिए। शादाब के उपर वासना हावी होने लगी तो उसे कल देखी हुई फिल्म याद अा गई और उसने तुरंत मोबाइल में वो मूवी देखनी शुरू कर दी। मूवी देखते हुए शादाब की हालत खराब होने लगी क्योंकि आज पहली बार उसे औरत के जिस्म देखने को मिल रहा था। जैसे ही मूवी में लडके ने सविता की पेंटी नीचे खीची तो शादाब के मुंह से आह निकल पड़ी और उसने पहली बार चूत के दर्शन किए। शादाब को हल्की ठंड में भी पसीना आने लगा और उसका लंड पूरी तरह से तन कर खड़ा हो गया। शादाब मूवी देखता रहा और लड़के ने देखते ही देखते अपनी एक उंगली को सविता की चूत में घुसा दिया तो सविता के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी। फिर उसने उंगली को मुंह में भर कर चूस लिया और मस्ती में आकर उसने आंटी की चूत पर अपने होठ टिका दिए तो आंटी के मुंह से मस्ती भरी सिसकारियां निकलने लगी। शादाब उसे गौर से देख रहा था और औरत के जिस्म के नए नए रहस्यों से आज उसका परिचय हो रहा था।
दूसरी तरफ शहनाज़ नहा चुकी थी और उसने टाइम देखा तो अभी 12 बजने में दस मिनट कम थे। वो रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराई और आज उसने पहली बार अपने बेटे की लाई हुई काले रंग की शॉर्ट ड्रेस पहन ली जिसमें उसके दूध से गोरे चिट्टे कंधे एकदम नंगे थे। शहनाज़ ने अपनी मेक अप किट उठाई और अपने आपको सजाने लगी। दर असल आज शादाब शादाब का जन्म दिन था जिसे वो भूल गया था जबकि शहनाज़ को पूरी तरह से याद था इसलिए वो अपने बेटे को सरप्राइज देना चाहती थी।