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desiaks
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
“हाँ... लेकिन घबराने की जरुरत नहीं। और वह तब तक इसे आवाज नहीं देगा जब तक इसका पति इसके सामने गिड़गिड़ा कर माफ़ी नहीं मांगेगा। और अगर दो महीने के भीतर उसने ऐसा नहीं किया तो इसके पति का सारा खानदान नष्ट हो जायेगा। अगिया बेताल किसी को नहीं छोड़ेगा। उन्हें बता देना और जब तक यह काम नहीं होता इसे घर से निकलने न देना वरना सारे गाँव पर आफत आ जाएगी। और तुम लोग तब तक बेताल की पूजा करते रहना...।”
“ज...जी...लेकिन इसका पति... क्या वह मानेगा।”
नहीं मानेगा तो उसके घर का विनाश होगा। बेताल उससे बहुत कुपित है। इसका पति इसे प्यार नहीं करता इसलिए ब्रह्मराक्षस ने धावा बोल दिया... अब बेताल कभी ब्रह्मराक्षस को आने नहीं देगा परन्तु यह तभी हो पायेगा जब इसका पति अपने किये की माफी मांगे---।”
उनके चेहरे लटक गये।
एक चौधरी ने कहा – “घबराता क्यों है धीरू... हम इसके पति को तो क्या उसके बाप को भी खींच लायेंगे... इस काम में सारा गाँव साथ होगा।”
बाकी लोग बूढ़े को समझाने लगे।
फिर बूढ़े ने अपनी पोटली खोली।
“आपकी क्या सेवा करूँ ?”
“कुछ नहीं। दो महीने बाद जब समस्या सुलझ जाय तो बेताल के नाम पर गरीबों को खाना खिला देना।”
“जी – वो तो करूँगा ही – मगर आप -।”
“मुझे कुछ नहीं चाहिए – अब तुम लोग जाओ।”
कुछ देर बाद वे लोग चले गये। मुझे उन अहमकों पर बड़ा तरस आया। अगर मैं उन्हें दूसरे ढंग से समझाता तो शायद उनकी समझ में नहीं आता। लेकिन मैं इस बात से अनभिज्ञ था कि शाम तक यह बात चारों तरफ प्रसिद्ध हो गई थी कि साधुनाथ का बेटा रोहताश तो अपने बाप से एक गज आगे है, उसने “अगिया बेताल” सिद्ध किया है। यह खबर जंगल की आग की तरह फ़ैल गई थी, जबकि मुझे इसकी कोई खबर नहीं थी।
न जाने क्यों बुढ़िया ने भी अपना ताम-झाम समेटा और रात होते-होते घर से खिसक गई।
रात का खाना स्वयं चन्द्रावती परोसने आई।
“क्या आप सचमुच अगिया बेताल के स्वामी है।” उसने घरघराते स्वर में पूछा।
मैं एकदम ठहाका मार कर हँस पड़ा।
उसके चेहरे पर तैरने वाली भय की छाया और भी गहरी हो गई।
“आपको किसने बताया ?”
“दादी कह रही थी – मारे डर के वह यहाँ से चली गई।”
“अरे - कब - ?”
“अभी कुछ देर पहले।”
“सुबह दादी को ले आना... भला मैं शहर में पढने वाला क्या जानूं “अगिया बेताल” क्या है... कमबख्तों ने कैसे-कैसे ढोंग रच रखे है। बड़ी हंसी आती है इन लोगों पर... जाने कौन-सी दुनिया में रहते है।”
“तो क्या यह झूठ है ?”
“हद हो गई – आप भी ऐसी बातों पर विश्वास करती हैं।”
“विश्वास...।” उसकी निगाहें शून्य में ठहर गई – जिसने अपनी आँखों के सामने ऐसी बातें घटती देखी हों, वह भला क्यों विश्वास नहीं करेंगी ?”
मैं भी तनिक मूड में आ गया – “अच्छा, भला बताइए यह ‘अगिया बेताल’ क्या बला है ?”
“उसका मजाक न उड़ाओ रोहताश ! तुम्हारे पिता उसे सिद्ध करते-करते पागल हो गए थे और अगर वे पागल ना होते तो शायद उनकी जगह ठाकुर प्रताप ने ले ली होती... ठाकुर चिरकाल के लिये इस दुनिया से बिदा हो चुके होते, किन्तु भैरव ने ऐसा नहीं होने दिया और तुम्हारे पिता की मृत्यु हो गई।”
“क्या मतलब- क्या मेरे पिता को ठाकुर ने मारा है।”
“हाँ.. जादू-टोने में बहुत शक्ति है। यह बात हर कोई मुँह पर लाने से डरता है, पर मैं क्यों डरूं... मेरा जीवन तो उसने नष्ट कर दिया है। मैं तो अब मरी सामान हूँ। अगर मेरा वश चलता तो उस ठाकुर के बच्चे का खून पी जाती। लेकिन मैं स्त्री हूँ जिसे बोलने का भी अधिकार नहीं।”
“लेकिन किसी की हत्या करना कानूनन जुर्म है।”
“कानून सिर्फ शहरों में बसता है... यहाँ इतनी हिम्मत किसमें है जो गढ़ी वालों से दुश्मनी मोल ले।”
“क्या गढ़ी वाले आज भी इतने शक्तिशाली हैं।”
“ओह ! रोहताश – मैं भी कैसी बहकी-बहकी बातें करने लगी जब मुझे मालूम हुआ कि तुमने “अगिया बेताल” सिद्ध कर रखा है तो वे बातें याद आ गई। मैंने सोचा कहीं गढ़ी वाले तुम्हारे भी शत्रु न हो जायें, इसलिए मैं डर गयी थी – अभी तुमको काफी लम्बा जीवन जीना है। सिर्फ मुझे यह बातें नहीं छेड़नी चाहिए थी। रोहताश ! तुम भी उन बातों को भूल जाओ।”
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
एक तीव्र कम्पन के साथ मेरी आँख खुल गई, मैं एकदम उठ कर बैठ गया और आँखे मलने लगा।
वह कैसा कम्पन था। मेरे कान अब भी झनझना रहे थे। ऐसे जैसे शीशे का फानूस फर्श पर आ गिरा हो और टुकड़े-टुकड़े हो गया हो। कुछ इसी प्रकार की आवाज़ थी। शरीर का रोम-रोम झनझना उठा था।
मैंने अन्धकार में डूबे कमरे को देखा और उस आवाज के बारे में सोचने लगा, जिसने मुझे झकझोर कर जगा दिया था। अभी मैं इस बारे में निर्णय भी नहीं कर पाया था कि कोई घुटी-घुटी चीख मेरे कानों में पड़ी। यह चीख निश्चय ही बाहर से उत्पन्न हुई थी। मैं अपने आपको बिस्तरे में अधिक देर तक न रोक सका, तुरंत दरवाजे की तरफ बढ़ा।
जैसे ही मैंने द्वार खोलना चाहा मुझे यह जानकार आश्चर्य हुआ कि दरवाज़ा बाहर से बंद है। मेरे दिल की धड़कने तेज़ हो गई।
मैं हड़बड़ाया सा पलटा और खिड़की के पास आ पहुंचा। मैंने तुरन्त खिड़की खोल दी। हवा का एक तेज़ झोंका मेरे चेहरे पर पड़ा और मैंने एक मशाल जलती देखी। एक लम्बे कद का इंसान मकान के पिछले हिस्से की तरफ खड़ा था और सर पर पग्गड़ था... चेहरा कपडे में छिपा हुआ।
फिर मुझे दो तीन साए और दिखाई पड़े।
“क्या हो रहा है ?” मैंने मन ही मन कहा – “ये लोग कौन है ?”
अचानक मुझे विचित्र सी गंध का आभास हुआ। यह गंध निश्चित रूप से पेट्रोल की थी। मेरा मस्तिष्क एकदम जाग उठा।
ख़तरा... मेरे दिमाग में एक ही शब्द गूजा... जो कुछ होने का अंदेशा था, उससे मन काँप उठा। ह्रदय बैठने लगा।
अचानक मुझे ध्यान आया कि भीतर के कमरे में वह अभागी स्त्री सो रही है... और कुछ क्षणों के फासले पर मौत नाच रही है। न जाने कितने सेकंड शेष थे... पर मिनट की दूरी कदापि नहीं थी। मुझे बंद दरवाजे का ख्याल आया और समझते देर नहीं लगी कि दरवाज़ा क्यों बंद किया गया, ताकि मैं कमरे से बाहर निकल ही न सकूँ...।
आखिर क्यों...?
यह सब क्यों हो रहा है?
एकाएक मुझे अपनी और चन्द्रा की जिंदगी का ख्याल आया। मेरे भीतर छिपे पुरुष ने मुझे ललकारा, क्या तबाही बच सकती है।
एक ही उपाय और एक ही रास्ता था।
खिड़की से नीचे जमीन की दूरी लगभग पंद्रह गज थी... यह मेरा अंदाजा था... उस वक़्त यह दूरी अगर पचास गज भी होती तो भी मेरा निर्णय नहीं बदल सकता था।
मैंने एकदम अँधेरे में ही खिड़की पर लटकने का प्रयास किया और जरा भी विलम्ब किये बिना नीचे कूद गया।
संयोगवश नीचे घास थी... सूखी घास... ओर मैं न सिर्फ चोट खाने से बचा अपितु मेरे कूदने की आवाज भी उत्पन्न नहीं हुई।
मैं घास से बाहर निकला और अपने आपको अन्धकार में छिपाता हुआ उस तरफ भागा जहाँ मशालची खड़ा था।
मैंने यह भी देख लिया था कि तीन आदमी मकान के चारो तरफ दीवारों पर पेट्रोल छिड़क रहें हैं। यह अनुमान तो मुझे पहले ही हो गया था की वे मकान पर आग लगाने आये हैं।
मशालची शायद इस बात का इंतज़ार कर रहा था, जब पेट्रोल छिड़कने वाले अपना काम समाप्त करके अलग हट जाए और वह अपना काम कर दे। मेरी समझ में नहीं आया कि वे लोग कौन है... और ऐसा भयंकर कृत्य क्यों कर रहें है... क्या वे हमें ज़िंदा जला देने का इरादा रखते हैं।
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10-26-2020, 12:42 PM,
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
यह मकान भी तो ऐसी जगह था,जिसके पीछे कोई आबादी नहीं थी और छोटी-बड़ी झाड़ियों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता था
एक घुटी-घुटी आवाज फिर सुनाई दी... जो हवा के साथ घुल मिल गई। यह आवाज काफी पीछे कड़ी झाडी के पीछे से आई थी। किन्तु आवाज इतनी अस्पष्ट थी की उसके बारे में कोई अनुमान लगा पाना कठिन था, बस इतना आभास होता था, जैसे किसी का मुँह बंधा हो और वह पुरजोर शक्ति से चीखने का प्रयास कर रहा हो।
मेरा ध्यान मशालची की ओर एकाग्र हो गया। अचानक मैं उसके पीछे पहुँचकर ठिठक गया और उसके साथी आ गये थे।
“हो गया।” किसी ने पूछा।
“हाँ...।” जवाब मिला।
“अब तुम लोग पीछे हट जाओ... मैं आता हूँ।”
वे लोग एक दिशा में बढ़ गये। मशालची ने दायें- बाएं देखा फिर जैसे आगे बढ़ा मैंने अपना दिल मजबूत करके पीछे से उसकी गर्दन दबोच ली। फिर सारी शक्ति लगाकर उसे झाड़ी की तरफ धकेल दिया।
वह झाड़ी की तरफ लड़खड़ाया अवश्य पर मेरा हमला उसके लिए इतना जबरदस्त सिद्ध न हुआ जितना मैं समझता था मेरा ख्याल था कि जैसे ही वह झाड़ी में गिरेगा मैं उसे दबोच लूँगा।
लेकिन जो कुछ मैंने सोचा था, वह नहीं हुआ, अलबत्ता वह सावधान हो गया। मैं दूसरी बार शोर मचाता हुआ उसकी तरफ झपटा। जैसे ही मैं उसके करीब पहुंचा, उसने मशाल की भरपूर चोट मेरी पीठ पर मारी और मैं बिल-बिला उठा। अवसर पाते ही उसने मशाल मकान की तरफ उछाल दी। आग का एक भभका उठा और चंद क्षणों में ही मकान पर आग की लपटें चढ़ने लगी।
मैं उसे रोक पाने में असफल रहा और न अब आग पर काबू पाया जा सकता था। अपना काम ख़त्म करके वह व्यक्ति भागा। आग की लपटों को देखता हुआ मैं कराह कर खड़ा हो गया।
मैंने उस शैतान का पीछा पकड़ लिया। अब तक मैं यह समझ चुका था कि मैंने जो घुटी -घुटी चीख सुनी थी वह निश्चित रूप से चन्द्रावती की थी। इसका अर्थ यह था कि वे लोग चन्द्रावती का अपहरण करके ले गए हैं। इसका एक प्रमाण यह भी था कि इतना शोर मचने के बाद भी मकान के भीतर वैसा ही सन्नाटा छाया था, जबकि आस-पड़ोस के लोग जाग चुके थे और सारे कस्बे में आग-आग का शोर गूंज रहा था।
अब मैं उस व्यक्ति का पीछा उसे पकड़ने के इरादे से नहीं कर रहा था, बल्कि यह जानना चाहता था कि इन लोगो का ठिकाना कहाँ है और इस भयंकर कृत्य के पीछे किसका हाथ है। अगर मैं यह सब जान जाता तो पुलिस कार्यवाही करने में आसानी होती साथ ही चन्द्रावती को उन जालिमों के पंजे से मुक्त किया जा सकता था।
वह व्यक्ति झाड़ियाँ फलांगता हुआ आगे बढ़ता रहा। पहले उसकी गति तेज रही फिर जैसे-जैसे वह घटना स्थल से दूर होता गया उसकी गति में धीमापन आता गया।
वह एक बीहड़ मार्ग से चलता हुआ सूरजगढ़ी के पार्श्व भाग में पहुँच गया। जैसे ही वह सूरज गढ़ी की विशालकाय दीवार के साए में रूका – मैं चौंक पड़ा।
तो क्या इन घटनाओं के पीछे गढ़ी वालों का हाथ है ?
ठाकुर घराने का ध्यान आते ही मेरा रोम-रोम काँप उठा। वह व्यक्ति दीवार के साए में धीरे-धीरे चलने लगा। फिर वह एक खंडहर जैसे स्थान में जा कर गायब हो गया।
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10-26-2020, 12:43 PM,
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
“तुम तो डॉक्टर हो, इतना अधिक निराश होने से बात नहीं बनेगी... आजकल तो आँखें कोई बड़ी समस्या नहीं। इंसान यदि जन्मजात अँधा न हो तो उसे नेत्र ज्योति दी जा सकती है। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि लम्बी बेहोशी या बीमारी में कोई अंग काम करना बंद कर देता है पर वह अस्थाई होता है, परन्तु इलाज़ करने से हल निकल आता है। इस बारे में तुम तो मुझसे अधिक जानते होगे। मैं तो इतना जानता हूँ इसी प्रकार एक बार मेरा दायाँ हाथ बेकार हो गया था पर दो महीने बाद ठीक हो गया। हौसला छोड़ने से काम नहीं बनता।”
वह मुझे सान्त्वना देता रहा।
कुछ समय बाद उत्तेजना कम हुई और बुद्धि काबू में आई।
“हम आज ही सूरज गढ़ के लिए रवाना हो जाते है।”
“तुम मेरे साथ क्यों कष्ट कर रहे हो ?”
“यह कष्ट नहीं कर्त्तव्य है। आज की दुनिया में तो इश्वर भी इतना व्यस्त हो गया है कि वह अपने बन्दों को कर्त्तव्य निभाने का अवसर ही नहीं देता और जब देता है तो इंसान कर्त्तव्य भूल कर अपने स्वार्थ में डूबा रहता है या उसे अपने ही कामों से फुर्सत नहीं मिलती और वह नरक का भोगी बन जाता है। क्या जाने यह मेरी परीक्षा ही हो... क्या जाने तुम्हारे स्वर्गीय पिता की आत्मा ने मुझे तुम्हारी सहायता के लिए प्रेरित किया हो।”
“तुम बहुत अच्छे विचारों के आदमी मालूम पड़ते हो, काश कि मैं तुम्हें देख सकता।”
“देखने में मेरे पास कोई ख़ास बात नहीं। न मैं बांका छबीला नौजवान हूँ और न बड़ी दाढ़ी और लम्बी बाल वाला धर्मात्मा... मैं तो चेहरे से खूसट नजर आने वाला व्यक्ति हूँ... जिसके चेहरे पर दाढ़ी की जगह झाड़ी के सूखे तिनके है... और भद्दी मूंछे.... गाल पर बारूद से जल जाने के कारण धब्बा है और आँखे किसी क्रूर फौजी जनरल जैसी... शरीर पर खाकी पोशाक है... हाथ में बन्दूक... मेरा हुलिया एक डकैत से भी बदतर है... हाँ शारीर मजबूत अवश्य है, इसलिए जंगली जानवरों से नहीं डरता।”
“काफी दिलचस्प आदमी लगते हो।”
“हद से अधिक जानवर भी यही सोचते है, इसलिए पास भी नहीं फटकते... अच्छा तुम थोड़ी देर आराम करो, इतने मे मैं तैयारी करता हूँ।
मेरी पीठ के नीचे रबर के तकिये रख कर वह कहीं चला गया।
शाम को हमने यात्रा शुरू की और अगले दिन सूरजगढ़ पहुँच गए। मेरे बताये पते के अनुसार वह कस्बे में गया। इस बीच उसने मुझे कस्बे से बाहर ही छोड़े रखा।
जब वह लौटा तो बोला – “तुमने सच कहा। वह मकान जल कर राख हो गया है। कोई आदमी कुछ बताता ही नहीं। क्या सूरज गढ़ी के ठाकुर का इतना दबदबा है ?”
“मैं पहले ही कह चुका था।”
“न जाने तुम्हारी सौतेली मां का क्या हुआ... खैर... विक्रमगंज चलते है।वहीं थाना पड़ता है... वहाँ एक हाकिम से मेरी जान पहचान है। मैं नहीं चाहता की तुम्हें पुनः कोई चोट पहुंचे और रहा मेरा सवाल... तो मैं तब तक शिकार पर हाथ नहीं डालता जब तक उसकी ताकत का पूरा-पूरा हिसाब-किताब न लगा लूँ... मैं तो फौजी उसूलों पर चलता हूँ... वार सही जगह होनी चाहिये... फिर बड़े से बड़ा महारथी धराशाई हो जाता है।”
हम लोग विक्रमगंज की ओर चल पड़े। उसके पास अपनी जीप थी, जिसमे सभी जरूरी सामान हर समय रहता था। मेरे शरीर में हल्की-हल्की पीड़ा उस वक़्त भी थी।
हमने विक्रमगंज के थाने में रिपोर्ट लिखवाई। वे लोग गढ़ी वालों के खिलाफ कोई रिपोर्ट लिखने के लिए तैयार नहीं थे। परन्तु मेरे उस दोस्त ने फौजी रुआब दिखाया तो वे मान गए।
“अब मैं अपने उस हाकिम दोस्त से मिलूँगा –अरे हाँ... तुम यहीं तो रहते हो... मैं चाहता हूँ अब तुम आराम करो... यह दौड़धूप मैं कर लूंगा।
मैंने अपना पता बता दिया।
उस वक़्त मैं दो कमरों के एक सरकारी मकान में अकेला रहता था। अभी मैं यहाँ नया-नया आया था... नौकर नहीं रखा था... वहां मुझे बहुत कम लोग जानते थे। इन दिनों मैं पंद्रह रोज की छुट्टी पर था।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
एक महीना बीत गया। मेरे कष्टप्रद दिनों का एक माह... यह तीस दिन तीस साल से भी अधिक भयानक थे। इस बीच मैंने अपनी आँखों की रौशनी पाने के लिए हर चंद दौडधूप की थी। पर कोई नतीजा नहीं निकला। जिस नेत्र विशेषज्ञ ने देखा , मेरी आँखों को सामान्य बताया और जब नेत्र सामान्य थे तो अंधेरा कैसा... मेरे केस को देखकर बड़े-बड़े डॉक्टर अचंभित हो गये थे।
इस बारे में मैंने चाचा जी को कोई खबर नहीं दी थी। मेरे साथ अर्जुन ने काफी दौड़धूप की थी, पर वह निराशावादी नहीं था।
एक दिन मैंने उससे कहा –
“अब तुम क्यों मेरे साथ समय नष्ट कर रहे हो... मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो अर्जुन।”
“मैंने आज तक हार नहीं मानी... और अब भी नहीं मानूंगा... मैं जानता हूँ इश्वर इतना बेरहम नहीं है... एक दिन तुम्हारी आँखों में रौशनी लौट आएगी।”
“हां सो तो है... फिर भी मैं अपना पता छोड़े जा रहा हूँ... तुम कहीं न जाना दोस्त और कोई मुसीबत हो तो किसी से पत्र लिखवाकर डाल देना... हालाँकि मैं घुमक्कड़ हूँ फिर भी जो पता छोड़ रहा हूँ , वहां से तुरंत मुझ तक खबर पहुँच जायेगी।”
अर्जुनदेव चला गया। मेरे लिए तो वह अब तक भी अजनबी था। वह मेरे उस वक़्त का मित्र था, जब मेरे नेत्रों की ज्योति छिन गई थी। मुसीबत के दिनों का साथी भुलाए नहीं भूलता। अर्जुनदेव तो एक अच्छा दोस्त था। वह मेरी डायरी में अपना पता अंकित कर गया था।
अर्जुनदेव के जाने के बाद तीन दिन बीते थे, कि एक पुलिस कांस्टेबल मेरे पास आया।
“आपको थाने बुलाया है।” उसने कहा।
“क्यों ?” मैंने पूछा।
“आपने जो रिपोर्ट दर्ज कराई थी,उस सम्बन्ध में दरोगा जी आपसे बात करना चाहते हैं।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा और थाने पहुँच गया। मेरे साथ मेरा स्थानीय दोस्त भी था। मैं जसवीर सिंह नामक थानेदार के सामने जा पहुंचा। उसने मुझे बैठने के लिए कहा।
“मैंने उस केस की जांच पूरी कर ली है।” वह बोला “मैंने तो उसी रोज इशारा किया था कि कोई लाभ न होगा। लेकिन आपने हमारे एस० पी० से संपर्क करके जांच के लिए विवश करवाया और अब जांच पूरी हो गई है।”
“मैं जानना चाहता हूँ”
“इसीलिए बुलाया है। आपकी सौतेली मां चन्द्रावती का पता लग गया है। वह अपने नए मकान में रह रही है। उसके बयानों से आपकी रिपोर्ट झूठी साबित होती है।”
“जी...।”
“जी हाँ... चन्द्रावती का बयान है की आग उसकी गलती से लग गयी थी। हवा के कारण लालटेन कपड़ों के ढेर पर गिर गई थी और जब उसकी आँख खुली तो आग बेकाबू हो चुकी थी। किसी तरह वह अपनी जान बचा कर बाहर निकलने में सफल हो सकी। उसका कथन है कि उस रात तुम घर मे मौजूद नहीं थे।”
कुछ पल रुक कर वह बोला –
“और घर जल जाने के कारण वह अपने किसी रिश्तेदार के पास चली गई थी। कस्बे में उसका कहीं ठिकाना नहीं था। कुछ दिन बाद वह लौट आई और नए मकान में रहने लगी।
“तुम्हारी रिपोर्ट में जो बातें दर्ज है वह उस रात की घटना से कोई तालमेल नहीं रखती, ऐसा लगता है तुमने वह रिपोर्ट ठाकुर से व्यक्तिगत रंजिश के कारण लिखवाई है”
“ऐसा नहीं है... हरगिज नहीं।” मैंने मुट्ठियाँ भींचकर कहा।
“उत्तेजित होने की आवश्यकता नहीं।”
“इंस्पेक्टर साहब ! आप मेरी आँखे देख रहें है – इन आँखों ने उस रात के बाद कोई दृश्य नहीं देखा। इन आँखों में आग का वह दृश्य आज भी मौजूद है, ये आँखें उस रात की घटना की साक्षी है।”
“मुझे तुमसे सहानुभूति है। कोई दूसरा होता तो मैं झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने के आरोप में उसे गिरफ्तार कर लेता।”
“मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता, उसने ऐसा बयान क्यों दिया ?”
“मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैंने अपनी छानबीन पूरी कर ली – तुम्हें यही सूचित करना था। अब तुम जा सकते हो।”
मेरे पास चारा भी क्या था, लेकिन मैं थाने से निकलते वक़्त बहुत उत्तेजित था। मेरा सर घूम रहा था और टांगे कांप रही थी। अगर मेरा दोस्त मुझे सहारा न दिया होता तो मैं लड़खड़ा कर गिर पड़ता। धीरे-धीरे लाठी का सहारा ले कर मैं गेट तक पहुंचा तभी जीप रुकने की आवाज सुनाई दी। जीप थाने से निकल रही थी, वह पीछे से आई थी।
“सुनो।” उसी थानेदार का स्वर सुनाई पड़ा।
मैं ठिठक कर रुक गया, शायद मुझे ही पुकारा हो।
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