Kamukta Story बदला
08-16-2018, 02:27 PM,
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे..
"ये जगन्नाथ जी हैं,कामिनी जी.",शिवा कामिनी को 1 बुज़ुर्ग से मिलवा रहा
था,"ये सहाय एस्टेट के खेतो का काम देखते हैं & मुझे इन्पर उतना ही भरोसा
है जितना खुद पे."

"जगन्नाथ जी,आप जानते हैं ना आपको क्या करना है?"

"जी हां.आप बेफ़िक्र रहें.मैं आपको अपने घर मे जगह दे दूँगा.मेरी बीवी &
बेटी को मैं सब समझा दूँगा.बाहर वालो के लिए आप मेरे भतीजे की बहू
हैं.भतीजा काम से बाहर गया है इसलिए आपको देख भाल के लिए मेरे परिवार के
साथ छ्चोड़ गया है."

"बहुत अच्छे.आपको मुझे एस्टेट के चप्पे-2 के बारे मे बताना है & हो सके
तो आप अपने मनेजर के बारे मे भी कुच्छ पता लगाइए मगर बिना उसे कोई भी शक़
दिलाए."

"ठीक है.अब मैं चलता हू,शाम ठीक 5 बजे मैं आपको लेने आऊंगा.".जगन्नाथ
जाने लगा,"..अरे हां..",वो पलटा जैसे की कुच्छ भूल गया था,"..शिवा
भाई,मेडम को कपड़ो का इंतेज़ाम करने को बोल देना."

"हां-2 ज़रूर.",शिवा मुस्कुराया.

"कपड़े?कैसे कपड़े?",जगन्नाथ के जाते ही कामिनी ने शिवा से पुचछा.

"कामिनी जी,आपको जगन्नाथ जी की बहू का भेस बदलना होगा & उसके लिए कपड़े
चाहिए जोकि मैने सुखी भाई को लाने के लिए बोला है.बस शाम का इंतेज़ार
कीजिए.",शिवा की असलियत जानने के बाद सुखी & उसकी काफ़ी छनने लगी थी.

"..& ये रखिए.",शिवा ने 1 चाभी कामिनी को थमाई,"..ये चाभी बंगले के पीछे
रसोई के दरवाज़े की है."

"थॅंक्स,शिवा मगर अभी भी 1 परेशानी है?"

"क्या?"

"इंदर के घर का ताला कैसे खुलेगा?"

"इस से मेडम.",मोहसिन जमाल & सुखी कमरे मे दाखिल हुए.

"ये लीजिए,कामिनी जी.",मोहसिन ने चाभियो का 1 बड़ा सा गुच्छा कामिनी को
थमाया,"दुनिया का शायद ही कोई ऐसा ताला हो जो इस गुच्छे की चाभियो से ना
खुले."

"मगर मोहसिन इस गुच्छे मे से चाभी ढूढ़ने मे तो बड़ा वक़्त लगेगा?"

"नही कामिनी जी,ये देखिए हर ताले के साइज़ के हिसाब से चाभीया हैं.सुखी
आपको ये बता देगा की कौन सी चाभीया गुच्छे मे कैसे लगी हैं.बस फिर आप
ताला देखिए & फिर गुच्छे मे से उसमे लग सकने वाली चाभीया अलग कीजिए & बस
मुझे 1 मिनिट से भी कम समय लगता है,आपको शायद 5 लगे."

"ओके,मोहसिन.थॅंक्स.",अब इंदर का बचना नामुमकिन था.कामिनी ने चाभीया अपने
बॅग मे डाली & शाम का इंतेज़ार करने लगी.

रात के 10 बजे से कामिनी सहाय एस्टेट के सर्वेंट क्वॉर्टर्स के सामने बनी
पार्किंग मे खड़ी 4 गाडियो मे से 1 मे च्छूपी बैठी थी.उसका इरादा था की
12 बजे के करीब वो कार से निकल के 1 बार बंगल के अंदर जाए.उसे उमीद नही
थी कि बंगल के अंदर से कोई सुराग मिलने वाला था मगर फिर भी वो 1 बार अंदर
जाके देखना चाहती थी.

कार की पिच्छली सीट पे लेटे-2 उसे नींद आ रही थी मगर किसी तरह उसने उसपे
काबू पाया & जैसे ही रात के 12 बजे वो कार से निकलने लगी मगर तभी आँखो के
कोने से उसे कुछ दिखा.उसने गर्दन घुमाई तो देखा इंदर अपने क्वॉर्टर से
निकल के बाहर आ गया था.कामिनी फ़ौरन झुक गयी & कार के शीशे से उसे देखने
लगी.

इधर-उधर देखता इंदर तेज़ी से बंगल की तरफ बढ़ा & थोड़ी ही देर मे वो बंगल
के पीछे था.कामिनी ने 1 पल इंतेज़ार किया & वो भी फुर्ती से कार से उतर
के उसके पीछे हो ली.

जब वो बंगल के पीछे पहुँची तो देखा की पीछे का रसोई का दरवाज़ा जिसकी
चाभी उसकी जेब मे थी बंद हो रहा था..इंदर के पास यहा की चाभी कैसे आई?..&
आख़िर वो इतनी रात गये घर के अंदर किस लिए गया था?..कही वो आज रात फिर
कुच्छ बुरा तो नही करने वाला?!

कामिनी ने किसी तरह 5 मिनिट इंतेज़ार किया & शिवा की दी चाभी से दरवाज़ा
खोल अंदर दाखिल हो गयी.घर मे इस वक़्त 4 लोग थे देविका,रोमा,इंदर & रोमा
का भाई संजय & चारो उपरी मंज़िल के कमरो मे थे. ये सब उसे जगन्नाथ ने
पंचमहल से आते वक़्त बता दिया था.

कामिनी दबे पाँव उपर गयी.वो पहले भी यहा आ चुकी थी & उसे पता था की
देविका का कमरा आख़िरी वाला है....कही इंदर & रोमा का कोई चक्कर तो
नही?..ख़याल आते ही उसने सबसे पहले उसी के कमरे का दरवाज़ा खोलने की
कोशिश की मगर दरवाज़ा अंदर से बंद था & कोई आवाज़ भी नही आ रही थी.अगले
कमरे मे संजय गहरी नींद मे सोया था & तीसरा कमरा खाली था.

चौथे कमरे के पास पहुँचते ही कामिनी ठिठक गयी-अंदर से रोने की आवाज़ आ
रही थी.कामिनी ने दरवाज़े को धकेला तो पाया कि वो खुला था.दरवाज़े को
थोड़ा सा खोल उसने अंदर देखा तो सन्न रह गयी.बिस्तर पे देविका इंदर की
बाहो मे सूबक रही थी & वो उसे दिलासा दे रहा था.

"चुप हो जाओ,देविका.बस..अब और मत रो.मैं हू ना तुम्हारे साथ. इस मनहूस
जगह से बहुत जल्दी छुट कारा दिलाउन्गा मैं तुम्हे."

"मगर कैसे इंदर?ये सब....",देविका रोते हुए कह रही थी,"..इस सारी जयदाद
का क्या होगा?"

"सब रोमा के नाम कर दो & हम दोनो यहा से चलते हैं."

"क्या?",देविका की सिसकिया अभी भी जारी थी,"..वो बेचारी कैसे संभाल पाएगी ये सब."

"संभाल लेगी. इस तरह ए क्यू नही सोचती.उसका गम तुमसे ज़्यादा नही तो कम
भी तो नही है.कारोबार चलाने से वो मसरूफ़ हो जाएगी & उसका मन भी इस हादसे
से उबर जाएगा."

"बात तो तुम्हारी ठीक लगती है.",देविका की रुलाई अब रुक गयी थी,"..मैं
कामिनी शरण से बात करती हू."

"वो तुम्हे मना कर देगी?"

"मगर क्यू?मेरी जयदाद मैं जिसे मर्ज़ी दू."

"वीरेन सहाय भी तो है,उसे कैसे भूल गयी.या तो बँटवारा हो या फिर वो
तुम्हारी बात मान जाए."

"वो क़ातिल है मेरे बच्चे का!",देविका की आवाज़ तेज़ हो गयी थी.

"& कामिनी शरण उसे ज़मानत दिलवा चुकी है.",इंदर ने अपनी बाहो को थोड़ा और
कसा तो देविका अब उस से पूरी तरह से चिपक गयी.काई दीनो बाद देविका को
अपने बदन मे वही सनसनी महसूस हुई जोकि किसी मर्द के करीब आने से होती
थी,"..& सभी जानते हैं की दोनो के बीच क्या रिश्ता है.ऐसे मे वो तुम्हारी
बात क्यू मानने लगी भला?!"

"तो क्या करू?वकील बदल लू?"

"नही मगर वसीयत तुम्हारी मर्ज़ी की चीज़ है.तुम चाहो सब कुच्छ दान कर
दो,चाहो सब बेच दो.अगर अदालत मे ये साबित हो जाए की वीरेन ने प्रसून का
क़त्ल किया है तो फिर उसे जयदाद से बेदखल करना कोई बड़ी बात नही.उसके बाद
तुम सबकुच्छ रोमा को दे देना & हम दोनो यहा से कही दूर चले जाएँगे..ऐसी
जगह जहा इस दुनिया का शोर-शराबा ना हो ना ही उलझने हो."

"ओह्ह,इंदर.",डेविका ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके सीने मे अपना चेहरा
च्छूपा लिया.इंदर भी उसके बाल चूम रहा था.

ऐसी जगह तो 1 ही है & वो इस दुनिया मे नही है..कामिनी मन ही मन
बुदबुदाई..देविका,बेवकूफी मत करो..ये तुम्हे सच मे वाहा भेजेगा जहा
दुनिया की कोई तकलीफ़ नही होती-जन्नत!..कामिनी जैसे आई थी वैसे ही वापस
जाने लगी.उसका दिल कर रहा था की अंदर जाके इंदर का मुँह नोच उसे 4-5
तमाचे जड़ दे.उसकी ज़ाति ज़िंदगी मे वो कुच्छ भी करती हो मगर अपने पेशे
मे वो कभी कोई समझौता नही करती थी & ये गलिज़ इंसान वीरेन को क़ातिल &
उसे बेईमान बना रहा था देविका की नज़रो मे!अब तो वो इसे सज़ा दिलवा के ही
रहेगी!
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08-16-2018, 02:27 PM,
RE: Kamukta Story बदला
1 बात तो तय थी कि इंदर अभी जल्द ही बंगल से बाहर नही आनेवाला तो ये मौका
अच्छा था की कामिनी उसके क्वॉर्टर को छान मारे.जेब से उसने मोहसिन जमाल
का दिया ड्यूप्लिकेट चाभियो के गुच्छे वाला पाउच निकाला & पहुँच गयी इंदर
के क्वॉर्टर.4 मिनिट मे ही कामिनी क्वार्टरर के अंदर थी मगर अंदर घुसते
ही उसकी सांस अटक गयी.क्वॉर्टर की बाल्कनी का दरवाज़ा खोल कोई अंदर आ रहा
था.

कामिनी झट से मैं दरवाज़े के बाहर हो गयी.अंदर घुप अंधेरा था & उस शख्स
का चेहरा नज़र नही आ रहा था.उसने 1 टॉर्च जलाके क्वॉर्टर की बैठक का
मुआयना किया तो कामिनी ने दरवाज़ा पूरा बंद कर दिया & उसके के होल से
झाँकने लगी.कोई 2 मिनिट बाद उसे अंदर से कोई रोशनी आती नही दिखी तो वो
बड़ी सावधानी से फिर से अंदर घुसी.

वो अजनबी इंदर के सोने के कमरे को खंगाल रहा था.कामिनी ने उस कमरे के
दरवाज़े से झाँका मगर उसे कुच्छ नज़र नही आया.उसका पहला ख़याल था की ये
कोई इंदर का साथी होगा मगर साथी चोरो की तरह क्यू आएगा?..फिर उसे लगा की
ये शिवा है मगर शिवा तो उसके साथ भी आ सकता था & वैसे भी इस शख्स का
डील-डौल शिवा से छ्होटा था. तो फिर ये था कौन?

वो इंदर की अलमारी खोल कुच्छ देख रहा था.थोड़ी ही देर बाद उसने अलमारी
बंद की तो कामिनी दबे पाँव भागती हुई क्वॉर्टर से बाहर आ गयी.उसे हल्की
सी आवाज़ आई तो वो समझ गयी की वो उसी रास्ते वापस गया है जिस रास्ते आया
था.कामिनी फ़ौरन अंदर गयी & भागती हुई बाल्कनी के दरवाज़े पर
आई.लंबे-लंबे डॅग भरता वो साया पेड़ो के झुर्मुट मे गायब हो गया था.

अब क्वॉर्टर की तलाशी की बारी कामिनी की थी.वो आधे घंटे तक लगी रही मगर
उसे कुच्छ ना मिला.मायूस हो वो क्वॉर्टर से निकल गयी & 1 ठंडी सांस
भरी.अब उसे कल रात तक का इंतेज़ार करना था....ऑफ!उसे फिर से कल दिन भर
घाघरा-चोली पहनना पड़ेगा.यही वो लिबास था जिसमे जगन्नाथ के घर की औरते
रहती थी & उसके भतीजे की बीवी को भी वही पहनना था..घाघरा-चोली तो तब भी
ठीक है मगर वो 4 हाथ लूंबा घूँघट!..आज शाम को आते वक़्त वो 4-5 बार
गिरते-2 बची थी.पता नही क्या मज़ा आता था अच्छी-भली औरतो को अँधा बनाने
मे मर्दो को!कामिनी ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई & जगन्नाथ के घर की ओर बढ़
गयी.

कामिनी के दिमाग़ मे इथल-पुथल मची हुई थी.इंदर के घर मे वो शख्स कौन
था?..होगा तो कोई इंदर का दुश्मन ही लेकिन शिवा तो मोहसिन जमाल के साथ था
फिर ये कौन था?...वीरेन तो नही?..लेकिन उसकी कद-काठी वीरेन जैसी नही
थी..तो फिर कौन था वो?

तभी उसका मोबाइल बजा & वो ख़यालो से बाहर आई,"हाई!वीरेन कैसे हो?"

"कामिनी,मैं इस तरह से चोरो की तरह नही रह सकता!"

"वीरेन,तुम चोर थोड़े ही हो. ये तो बस तुम्हारे भले के लिए ही है."

"मगर फिर भी कुच्छ तो बताओ आख़िर माजरा क्या है?"

"वीरेन,मैं तुम्हे सारी बात अभी नही बात सकती क्यूकी सारा कुच्छ तो मुझे
भी नही पता अभी तक बस इतना जान लो की शिवा का इसमे कोई हाथ नही."

"क्या?!!फिर कौन है?"

"बस आज भर सब्र रखो,वीरेन.कल सब बताउन्गि तुम्हे."

"जैसा तुम कहो कामिनी."

वीरेन के फोन के फ़ौरन बाद मोहसिन का फोन आया,शिवा उस से बात करना चाहता
था,"क्या?!!",शिवा की आवाज़ मे हैरत,गुस्सा & दर्द के भाव मिले हुए
थे.कामिनी ने उसे इंदर & देविका के बारे मे बता दिया था.

"शिवा,मैं तुम्हारे दिल का हाल समझ रही हू लेकिन तुम जज़्बाती होकर कोई
कदम ना उठा लेना."

"हूँ."

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क्रमशः.......................
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08-16-2018, 02:28 PM,
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे..
रात कामिनी फिर से इंदर के पीछे-2 बंगल के अंदर थी.देविका फिर से इंदर की
बाहो मे थी लेकिन आज वो रो नही रही थी.आज फिर वही बात हो रही थी दोनो के
बीच मे.कामिनी को समझ नही आ रहा था की आख़िर इंदर क्यू चाहता था की रोमा
के नाम जयदाद कर दी जाए.कही रोमा भी तो नही मिली हुई इस साज़िश
मे?..लेकिन शिवा क्या 1 ही ग़लती 2 बार कर सकता है?उसने इंदर को पहचानने
मे थोड़ी देर की पर क्या रोमा भी....

इंदर देविका के होंठ चूम रहा था & कामिनी ने देखा की देविका भी बड़ी
बेचैनी से अपने हाथ इंदर की पीठ पे घुमा रही थी.दोनो करवट से लेटे हुए थे
कि इंदर ने करवट बदल देविका को अपने नीचे किया & उसके उपर चढ़ गया.देविका
इंदर की कमीज़ को उसकी पॅंट से निकाल अपने हाथ उसके अंदर घुसा उसकी पीठ
पे चला रही थी.कामिनी समझ गयी की अब आज रात उसे इन दोनो की आहो & मस्त
आवाज़ो के सिवा और कुच्छ सुनने को नही मिलने वाला.वो वाहा से जाने लगी की
तभी रोमा के कमरे के पास उसके कदम ठिठक गये.

रोमा के कमरे से बातो की आवाज़े आ रही थी..इतनी रात गये उसके कमरे मे था
कौन?कामिनी पलटी तो देखा की संजय अपने कमरे मे नही है.दोनो भाई-बेहन इतनी
रात गये क्या बात कर रहे थे.लकड़ी के भारी-भरकम दरवाज़े के बंद होने के
कारण उसे कुच्छ सुनाई नही दे रहा था.कामिनी का दिमाग़ तेज़ी से दौड़ने
लगा तो उसे याद आया की पीछे के लॉन की तरफ उपरी मंज़िल के 2 कमरो की
बाल्कनी दिखती थी,1 पहले कमरे की & 1 आख़िरी कमरे की.पहला कमरा रोमा का
था & आख़िरी देविका का.

कामिनी फ़ौरन बंगल के बाहर गयी & लॉन मे खड़ी हो रोमा के कमरे को देखने
लगी.बाल्कनी का दरवाज़ा खुला था....किसी तरह वो बाल्कनी पे पहुँच
जाए..बस!वो इधर-उधर देखने लगी तो उसे 1 छ्होटा सा स्टोर रूम दिखा जिसमे
बाग़बानी का समान रखा था.वाहा उसे 1 सीढ़ि मिल गयी.कामिनी ने सीधी को
बाल्कनी से लगाया & कुच्छ ही देर मे वो बाल्कनी पे थी.हवा से हिलते पर्दे
की ओट से उसने अंदर का नज़ारा देखा तो उसकी आँखे फटी रह गयी.

रोमा बिस्तर पे नंगी पड़ी थी & संजय उसकी फैली टाँगो के बीच सर घुसाए
उसकी चूत चाट रहा था,"आन्न्न्नह.....संजू....वॉवववव..!!",रोमा उसके बाल
खींच रही थी.रोमा कमर उचका रही थी & आहे भरे जा रही थी.कामिनी समझ गयी थी
की रोमा झाड़ रही थी.उसके झाड़ते ही संजय उपर हुआ & अपना लंड उसकी चूत मे
घुसा दिया,"हाअन्न्न्न....संजू...आहह..कितने दीनो
बाद..तुम्हारा...ऊओवव्वव...लंड मेरे अंदर है जान.....!"

कामिनी की समझ मे कुच्छ नही आ रहा था.भाई-बेहन के बीच ऐसा रिश्ता.कितने
घिनोने लोग थे ये!

"ओवववव......संजू...धीरे चोदो ना!..बच्चे का तो ख़याल करो..आनह..!",रोमा
ने उसे अपने उपर से उठाया तो संजय अपने हाथो पे अपना वज़न संभाल उसके
सीने & पेट से अपने बदन को उठा धक्के लगाने लगा.

"वो पागल रोज़ चोद्ता था तुम्हे?"

"हां.",संजय के धक्के और तेज़ हो गये.

"हाईईइ..आराम से करो ना!",रोमा ने उसके निपल्स को नोच लिया.

"आह..",संजय करहा,"..तुम्हे मज़ा आता था?"

"बहुत मेरी जान.जब तक ना काहु तब तक नही झाड़ता था वो
पागल...आईइईयईए..!",संजय गुस्से से पागल हो
गया,"..संजू...प्लीज़....जानते हो ना..ये बच्चा कितना ज़रूरी है हमारे
लिए..आनह...हां..ऐसे ही करो...मैं तो छेड़ रही थी तुम्हे जानू.",रोमा ने
प्यार से उसके बालो मे हाथ फिराए & उसे अपने खींच के चूमने लगी,"..जानती
हू तुम कितना तडपे होगे पर ये ज़रूरी था ना संजू हमारे इन्तेक़ाम के
लिए."

इन्तेक़ाम..कामिनी के माथे पे बल पड़ गये पर तभी उसके सर पे पीछे से बहुत
ज़ोर से किसी ने मारा & वो बेहोश हो गयी.

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कामिनी को जैसे बहुत दूर से कोई आवाज़े आती सुनाई दे रही थी,"..सब बिगड़
दिया इसने..तो अब क्या होगा....कुच्छ नही..इसे ठिकाने लगा
देंगे....",कामिनी को जैसे-2 होश आया तो उसने पाया की वो किसी बिस्तर पे
पेट के बल पड़ी थी & उसके हाथ पीछे करके बँधे हुए थे साथ ही उसके पैर
भी.1 आवाज़ तो रोमा की थी & दूसरी संजय की मगर ये तीसरी आवाज़ किसकी
थी..ये इंदर नही था..कौन था ये?वो दिमाग़ पे ज़ोर डालने लगी तो उसे लगा
की दर्द से उसका सर फॅट जाएगा लेकिन आवाज़ थी जानी-पहचानी,उसने सुनी थी
ये आवाज़ कही.

"तो क्या करेंगे?..इसे भी देविका के साथ.."

"नही..",उस जानी-पहचानी आवाज़ ने कहा,"..इसे किसी और तरकीब से ठिकाने
लगाएँगे पर पहले इंदर को बुलाओ."

"भाय्या तो इस वक़्त देविका के साथ होगा.",रोमा ने कहा.

"तो देखो उसके कमरे मे."

थोड़ी ही देर बाद इंदर भी उनके साथ था,"ये यहा कैसे आ गयी?"

"पहले ये बताओ की देविका को तो शक़ नही हुआ अभी?"

"नही,वो तो गहरी नींद मे सो रही है."

"बहुत बढ़िया.तुमने दस्तख़त ले लिए उसके?"

"जी.ये रही उसकी वसीयत.",ये कब किया इंदर ने..कामिनी सोच रही थी.

"वेरी गुड.अब तुम लोग यही बैठो मैं अभी आता हू.",दरवाज़े के खुलने बंद
होने की आवाज़ से कामिनी समझ गयी को वो शख्स कमरे से बाहर निकल गया है.

"ओह्ह..भाय्या!आख़िर हमारा बदला पूरा हो ही जाएगा अब!",रोमा की आवाज़ से
खुशी झलक रही थी.

"हां,रोमा & इसके लिए तुझे बहुत बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ी है & तुम्हे भी
संजय.",तो रोमा इंदर की बेहन थी..कामिनी सब आँखे बंद किए सुन रही थी.

"भाय्या,हमारे मा-बाप को झेलना पड़ा उसके सामने तो ये कुच्छ भी नही."

"तुम्हे तो इसमे पड़ने की कोई ज़रूरत भी नही थी संजय फिर भी तुमने हमारी मदद की."

"आपने तो मुझे पल मे पराया कर दिया इंदर भाय्या.क्या रोमा का पति होने के
नाते मैं आपके परिवार का हिस्सा नही?",अब तो कामिनी की हैरत का ठिकाना ही
नही था..तो संजय रोमा का भाई नही पति था!..कितना बड़ा खेल खेला था इन
लोगो ने!

"ये बदबू कैसी?"

"हूँ.कुच्छ जल रहा है शायद.मैं देखता हू.",इंदर दरवाज़े की तरफ बढ़ा,"अरे
दरवाज़ा तो बंद है!ऐसा कैसे हुआ!"

"भाय्या,धुआँ कमरे के अंदर आ रहा है."

"ये दरवाज़ा बंद कैसे हुआ?मौसा जी को फोन लगाओ रोमा,जल्दी!",वो तीनो नही
समझे मगर कामिनी समझ गयी थी."मौसा जी" ने वसीयत ले ली थी & अब बंगले मे
आग लगा दी थी.थोड़ी ही देर मे सहाय परिवार का अंत हो जाएगा & उसके साथ ही
इस साज़िश मे शामिल सभी लोगो का भी मगर वो ये मौत नही मरना चाहती थी.

कमरे के अंदर बहुत धुआँ भर गया था....ये सब बाल्कनी के रास्ते क्यू नही
भाग रहे?कामिनी को तीनो के खांसने की आवाज़ से ख़याल आया.उसका भी बुरा
हाल था.उसने गर्दन घुमाई & ज़ोर लगाके करवट ली तो देखा कि वो रोमा के
कमरे मे नही थी बल्कि शायद संजय के कमरे मे थी जिसमे कोई बाल्कनी थी ही
नही.कामिनी चिल्ला के उन्हे अपनी रस्सी खोलने को कहने लगी मगर तीनो धुए
से बेदम थे.

उस वक़्त कामिनी को 1 फिल्म का सीन याद आया & वो घुटने मोड़ अपनी टाँगे
अपने बँधे हाथो से निकालने लगी.रोज़ की जॉगिंग & वर्ज़िश के कारण अभी भी
उसके बदन मे लोच था & थोड़ी ही देर मे टाँगे निकल गयी & उसके बँधे हाथ अब
आगे की ओर थे.कामिनी ने बँधे हाथो से ही पैरो के बंधन खोले & कमरे के
दरवाज़े को बँधे हाथो से ही खींचने लगी लेकिन कोई फ़ायदा नही.

उसने इंदर को हिलाया,"इंदर..उठो..यहा से निकलना है हमे तुम्हारे मौसा को
पकड़ना है हमे.",मगर धुआ अब इंदर के फेफड़ो मे भर चुका था.कामिनी उसकी
जेबे टटोलने लगी & उसके हाथो मे इंदर का लाइटर आ गया.कामिनी ने फ़ौरन उसे
जलाया & उसकी लौ अपने हाथो के बंधन की गाँठ पे लगाई.उसके हाथ जल रहे थे
मगर उसकी उसे परवाह नही थी.

क्रमशः......
Reply
08-16-2018, 02:28 PM,
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे..

रस्सी जलने तक कमरे का हाल तो बिल्कुल ही बुरा हो चुका था.आग भी दरवाज़े
तक पहुँच गयी थी & वहाँ से निकलना अब नामुमकिन था मगर कामिनी हार मानने
वालो मे से नई थी.उसने पलंग पे पड़ी चादर उठाई & उसे बाथरूम मे ले जाके
पानी से पूरा भीगा के अपने मुँह पे लपेट लिया & कमरे की खिड़की के पास
गयी जिसे खोलते-2 संजय वही गिर गया था.खिड़की मे लोहे का ग्रिल लगा था &
अब कामिनी के पास बचाव के लिए चिल्लाने के अल्वा & कोई रास्ता नही था.

नीचे लोगो की भीड़ जमा थी मगर सब देखने चिल्लाने के अलावा & कुच्छ नही कर
रहे थे & तभी कमरे का दरवाज़ा गिरने की आवाज़ आई.वो पलटी तो देखा की 1
कंबल लपेटे 1 आदमी अंदर गिरता हुआ दाखिल हुआ,"चलिए कामिनी जी.",ये शिवा
था.

"मगर शिवा,आग बहुत तेज़ है!",शिवा ने साथ लाया कंबल कामिनी को ओढ़ाया &
उसे पकड़ के आग के बीच से दौड़ता हुआ कमरे से बाहर निकला.कामिनी ने देखा
की पूरा बंगला जल रहा रहा था.नीचे जाना तो नामुमकिन था क्यूकी सीढ़ियो पे
भयंकर आग थी.शिवा उसे ले उपर की तरफ भाग रहा था छत पे.कामिनी की समझ मे
कुच्छ नही आ रहा था.छत पे आ उसे राहत महसूस मिली.धुए से भरे उसके फेफड़ो
मे ताज़ी हवा गयी & आग की झुलसाहट से उसे निजात मिली.

वो अपनी सांस संभाल ही रही थी कि अचानक शिवा ने उसे गोद मे उठाया & छत से
कूद गया.कामिनी की चीख निकल गयी लेकिन अगले ही पल वो 1 बड़े से जाल पे
झूल रही थी.

"शिवा..",हान्फ्ते हुए उसने अपने कंबल & चादर को खुद से अलग किया,"..देविका जी.."

"मैं यहा हू.कामिनी जी.",आवाज़ सुन कामिनी घूमी तो देखा की कालिख & पसीने
से आटे चेहरे वाली देविका उसके पीछे खड़ी है.

"देविका जी,आपके खिलाफ बहुत बड़ी साज़िश रची गयी थी!"

"मुझे पता है.आप पहले इधर आइए.",फाइयर ब्रिगेड,पोलीस & आंब्युलेन्स बंगल
के अहाते मे आ रही थी.देविका शिवा के साथ कामिनी को आंब्युलेन्स मे ले जा
रही थी.

"मैं ठीक हू."

"हां,मैं जानती हू.मैं भी आपके साथ हॉस्पिटल चल रही हू.चेक-अप ज़रूरी है
आपका.",तीनो के बैठते ही दरवाज़ा बंद हुआ & साइरन बजाती आंब्युलेन्स वाहा
से निकल गयी.आंब्युलेन्स की खिड़की से कामिनी ने देखा की पोलीस 2 लाशो का
मुआयना कर रही है...लेकिन रोमा,संजय & इंदर तो अभी उपर कमरे मे ही थे.अभी
आग बुझी भी नही थी फिर ये.."शिवा ये कौन हैं?"

शिवा ने देविका को देखा.दोनो के चेहरो पे अजीब सी उलझन थी,"क्या बात
है?बोलते क्यू नही!"

"वीरेन की &..",आगे की बात सुनने से पहले ही कामिनी बेहोश हो गयी.

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वो बादलो पे लेटी थी,कितना सुकून था यहा..हर तरफ बस ठंडक & उजाला,आहट हुई
तो उसने गर्दन घुमाई,सफेद कपड़ो मे वीरेन और भी सजीला दिख रहा था.वो
मुस्कुराइ & अपनी बाहे फैला दी.वीरेन उसकी तरफ आ रहा था मुस्कुराता
हुआ,उसके बाल हवा मे लहरा रहे थे.बस थोड़ी ही देर मे वो उसकी बाहो मे
होगी....मगर वो पास क्यू नही आ रहा था.वीरेन चल रहा था मगर उसके करीब नही
आ रहा था,"..वीरेन..",वो अब धुँधला हो रहा था,"..वीरेन.."वो चीखी मगर वो
बदलो मे गुम हो चुका था,"वीरेन!"

आँखे खुली तो देखा की चंद्रा साहब उसके पास बैठे हैं & बीप-2 की आवाज़ आ
रही है.उसने गर्दन घुमा के कमरे का जायज़ा लिया.वो 1 हॉस्पिटल के कमरे मे
थी & हार्ट रेट मॉनिटर बीप कर रहा था.चंद्रा साहब डॉक्टर को बुला रहे
थे.डॉक्टर आया & उसकी आँखे देखी & उसे 1 इंजेक्षन दिया & वो फिर नींद के
आगोश मे चली गयी.

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

"गुड मॉर्निंग!",1 भले चेहरे वाली नर्स उसके पास बैठी थी.

"गुड मॉर्निंग.",कामिनी ने उठने की कोशिश की तो नर्स ने उसे मना किया &
फिर लीवर दबा के उसके बेड के उपरी हिस्से को उठा दिया तो कामिनी बैठ
गयी.1 डॉक्टर आया & उसकी सेहत के बारे मे पुच्छ के उसका चेक-अप
किया,"डॉक्टर."

"कोई मेरी जान-पहचान वाला है यहा?"

"हां,मैं 1-1 करके सबको भेजता हू."

"अच्छा लग रहा है?",सबसे पहले चंद्रा साहब आए & उसके सर पे प्यार से हाथ
फेरा & उसका माथा चूमा.कामिनी को बहुत अच्छा लगा उनका एहसास मगर उसी
एहसास ने उसे वीरेन की याद दिला दी,"वीरेन.."

चंद्रा साहब ने बस हा मे सर हिलाया & कामिनी के आँसू बह चले,"इन्हे उसके
लिए ज़ाया मत करो,कामिनी.",वो उनके सीने से लगी रो रही थी पर उनकी बात
सुन वो झटके से उठी,"क्या कह रहे हैं आप?"

"हां,जिसे तुमने दिलोजान से चाहा परसो रात उसी ने तुम्हे मारने की कोशिश की थी."

"क्या?!"

"जी,हां.",क्षोटन चौबे कमरे मे आया.


"आप तो इंदर को बदमाश समझ रही थी ना?",चौबे 1 कुर्सी पे बैठ गया.

"हां & वो था भी,रोमा उसकी बेहन थी &..-"

"..संजय उसका पति.",चौबे ने बात पूरी की,"..इंदर फाइयर ब्रिगेड वालो को
जिंदा मिला था & कल दिन मे उसको थोड़ी देर के लिए होश आया तो अपना बयान
भी दे दिया ऊ."

"क्या बोला वो?"

"कहानी लंबी है,असल मे इंदर,रोमा & संजय मुफ़्त मे मारे गये."

"मतलब इंदर अब ज़िंदा नही है?"

"नही.अब सुनिए पूरा बात.इंदर & रोमा बहुत छ्होटे थे जब दोनो के माता-पिता
का देहांत हुआ.जब इंदर बड़ा हुआ तो 1 दिन उसके हाथ घर का समान ठीक करते
हुए 1 खत लगा.ये खत उसकी मा को कोई लिखा था & खत से साफ-2 पता चलता था की
उसकी मा का आशिक़ है.खत लिखने वाले के नाम के जगह बस स लिखा था.."

"..इंदर & रोमा का रिश्तेदार के नाम पे बस 1 मौसा था तो इंदर चिट्ठी लेके
उसके पास गया तो उसका मौसा उसको बताया कि उसकी मा का इस स से चक्कर था
जिसके कारण उसका बाप ख़ुदकुशी कर लिया था & बाद मे जब उसकी मा इस स से
शादी करने को बोली तो उसको दुतकार दिया.."

"..उसकी मा ये बर्दाश्त नही की & जाके रेल लाइन पे लेट गयी.इंदर ये सुन
के गुस्सा से पागल हो गया & मौसा से स का पूरा नाम पुचछा तो वो बोला की स
सुरेन सहाय था.अब इंदर & रोमा उस से बदला लेने को पागला गये तो उसका मौसा
बोला कि हम तुमलोग का मदद करेंगे.."

"..फिर ये सारा खेल हुआ.सुरेन जी को दवाई बदल के मारा..",कामिनी के चेहरे
पे सवालिया भाव उभरे,"..हां-2 शिवा भी हमलॉग को सब बता दिया है.बहुत
बहादुर आदमी है.ऊ नही होता तो आपका & देविका जी का जान बचना मुश्किल
था.."

"हां तो..मौसा का प्लान था की रोमा के पेट मे प्रसून का बच्चा आ जाएगा तो
प्रसून को मार देंगे फिर सब कुच्छ प्रसून का बच्चा का हो जाएगा.दोनो
भाई-बेहन झाँसे मे आ गये जबकि मौसा का असली प्लान था अपने पार्ट्नर के
साथ मिलके सारा जयदाद हड़प लेना & दोनो भाई बेहन & संजय को मार देना.."

"..पर 2 लोग उसका प्लान चौपट कर दिए.1 तो शिवा जोकि परसो रात आपका बात
नही माना & भला हो उसका एस्टेट आ गया."

"& दूसरा?"

"दूसरा हम.हमको मॅनेजर'स कॉटेज से 1 पॅंट का टुकड़ा मिला था & सारा छनबीन
से यही लगा था कि कोई वीरेन को फँसा रहा है तो हम कुच्छ अपना प्राइवेट
इन्वेस्टिगेशन कर रहे थे.उस रात को आप भी तो वही कर रही थी."

"तो इंदर के क्वॉर्टर मे आप थे?"

"हां & हमको भी वोही सब पता चला जो आपको.दूसरी रात हम बस इंदर का ऊ फटा
पॅंट ऐसी जगह रखने आए थे की अगले सुबह जब हम तलाशी लेने आए तो वो साला
उसे च्छूपा नही पाए.लेकिन ई सारा कांड घट गया."

"इंदर का मौसा कौन था & उसका पार्ट्नर का क्या नाम था?",पार्ट्नर का नाम
तो कामिनी को पता ही था मगर दिल के किसी कोने मे 1 उमीद थी की हो सकता है
चौबे किसी और का नाम ले ले.

"मौसा थे एस्टेट के भुत्पुर्व मॅनेजर शाम लाल जी & उसके पार्ट्नर थे
वीरेन सहाय.",कामिनी को वो जानी पहचानी आवाज़ याद आ गयी-प्रसून की शादी
के वक़्त उसने उनसे बात की थी.वो कुच्छ नही बोली बस उसकी आँखो से आँसू
बहने लगे.

"अच्छा.हम चलते हैं.सब बदमाश तो मर ही गया है जो भी काम बाकी होगा ऊ हम
आपसे मिलके बाद मे कर लेंगे.",चौबे वाहा से निकल गया.

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्रमशः.
Reply
08-16-2018, 02:28 PM,
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे..
"मैं वीरेन का पहला प्यार थी,कामिनी.",देविका उसके बेड पे उसका हाथ थामे
बैठी थी,"..लेकिन जब उसने मुझसे कहा की उसे कारोबार मे कोई दिलचस्पी नही
& वो मेरे साथ पॅरिस जाके पैंटिंग के बारे मे जितना चाहे सीखना चाहता है
तो मुझे ये बात ज़रा भी अच्छी नही लगी.मेरे लिए वीरेन से भी ज़्यादा उसकी
दौलत अहम थी.मैं ऐशोआरम की ज़िंदगी गुज़रना चाहती थी.इधर वीरेन 2 महीनो
के लिए विदेश गया,उसका प्रोग्राम था की वो सब इंतेज़ाम कर के आएगा फिर हम
शादी कर यहा से चले जाएँगे,उधर सुरेन जी मेरे इश्क़ मे पड़ गये.."

"..पहल मैने नही की थी मगर मैने उन्हे रोका भी नही & कुच्छ ही दीनो मे
हमारी शादी हो गयी.वीरेन ने इस बात का कभी मुझसे कोई शिकवा नही किया मगर
उसके अंदर ही अंदर ये लावा उबल रहा था.उसे हमेशा यही लगता रहा कि मैने ना
केवल उसे धोखा दिया बल्कि उसके परिवार को भी उस से अलग किया.."

"..इसी नफ़रत ने उस से ये सब करवाया.",देविका की आँखे नम हो गयी.

"शाम लाल जी भी लालची आदमी थे मगर सुरेन जी 1 बहुत पहुँचे कारोबारी थी &
वो उन्हे धोखा नही दे पा रहे थे.इत्तेफ़ाक़न उनकी & वीरेन की मुलाकात हो
गयी & दोनो ने 1 दूसरे से अपने दिल की बात कह दी & ये सब प्लान
बनाया.",शिवा बात आगे बढ़ा रहा था,"..वो जो इंदर को खत मिला था ना उस खत
वाला स और कोई नही शाम लाल खुद थे.अपनी साली को उन्होने शादी के पहले ही
अपने जाल मे फँसा लिया था & बाद मे जब वो अपने पति की मौत हो जाने के बाद
उनपे शादी के लिए दबाव डालने लगी तो उसे रेल लाइन पे फेंक आए.."

"तुम्हे ये सब कैसे पता?"

"वो मेरे ही हाथो मरा था इसलिए."

"क्या?"

"जी.उस रात वीरेन अपने गुस्से मे पागल देविका को अपने हाथो से मारने के
लिए एस्टेट आ पहुँचा था.इसी ग़लती ने उनका खेल बिगाड़ा.मैने वीरेन की
गाड़ी देखी तो उनके पास जाने लगा मगर जब उन्हे शाम लाल से बात करते सुना
तो मुझे सब समझ आ गया.घर मे आग लगी थी & वीरेन उसमे घुस गया.शाम लाल उसे
रोक रहा था मगर वो गुस्से मे पागल था.मैं भी दोनो के पीछे घुसा & देविका
को निकाल लाया.."

"..उसी हाथापाई मे शाम लाल मेरे हाथो मरा & वीरेन.."

"& वीरेन?",कामिनी के रुँधे गले से बड़ी मुश्किल से 2 लफ्ज़ निकले.इतना
बड़ा धोखा..उसे सब समझ आ गया था-वीरेन ने उसका इस्तेमाल किया था केवल
इसलिए की वो सहाय परिवार की वकील थी.

"मैने देविका को बचाने के लिए उसे परे धकेला तो वो गिर गया & जब मैं बंगल
से बाहर भाग रहा था देविका के साथ तो वो हमारे पीछे थे लेकिन बंगल के
दरवाज़े के पास उसका पैर कही फँसा & वो गिरा & आग की लपटो ने उसे घेर
लिया."

"प्रसून को किसने मारा?"

"सारा प्लान शाम लाल का था.रोमा ने प्रसून को नीचे भेजा & इंदर उसे फुसला
के मॅनेजर'स कॉटेज ले गया & उसका क़त्ल कर दिया.",देविका की सिसकिया कमरे
मे गूँज उठी तो शिवा ने उसे बाहो मे भर लिया.

"मैं प्रसून की शादी के बाद वीरेन के साथ उसके कॉटेज मे रुकी थी & किसी
ने कॉटेज मे झाँका था.लगता है वो इंदर ही था."

"नही कामिनी,वो शाम लाल था."

"आपको कैसे पता देविका जी?"

"क्यूकी रजनी वापस आ गयी है & उसने मुझे सब बताया है."


"रजनी कौन है?"

"मेरी नौकरानी.इंदर ने उसे अपने प्यार के जाल मे फँसाया & फिर हर रात
उसके जिस्म से खेलता.उसी ने उसकी अर्ज़ी भी यहा तक पहुचाई थी & वोही उसे
हमारी बाते भी बताती थी क्यूकी उस बेचारी को क्या पता था कि जिस से वो
शादी के सपने देख रही थी वो दर-असल बस उसका इस्तेमाल कर रहा था.."

"..प्रसून की शादी के वक़्त शाम लाल यही था & उन दीनो रजनी भी यही
थी.रजनी का कहना है कि जब तक वो यहाँ थी हर रात इंदर ने उसी के साथ
गुज़ारी थी तो और कोई बचता ही नही."

सारी बाते सॉफ हो गयी थी सारे राज़ खुल गये थे रह गया था तो सिर्फ़ दर्द
दोनो औरतो के दिलो मे.कामिनी ने देविका की ओर देखा,वो छली गयी थी लेकिन
शिवा था उसके साथ उसका सहारा बनके मगर उसके पास कौन था?..वो तो फिर अकेली
हो गयी थी..1 बार फिर छली गयी थी वो 1 मर्द के हाथो से....& फिर उसकी
निगाह पड़ी कमरे मे दोबारा दाखिल होते हुए चंद्रा साहब पे.जब देविका आई
थी तो वो बाहर चले गये थे.

यही 1 मर्द था जिसने उसे कभी धोखा नही दिया & यही 1 मर्द था जो इस वक़्त
भी उसके साथ खड़ा था.कामिनी के दिल मे फिर से उमीद जाग गयी.वो खुद को
इतना अकेला इतना कमज़ोर क्यू समझ रही थी.क्या कमी थी उसकी ज़िंदगी मे?..1
बुरा इंसान आया तो उसे भी अपने किए की सज़ा मिल गयी & चंद्रा साहब तो थे
ही उसके साथ.हमेशा.

उसने देविका को देखा.शिवा ने उसके कंधे पे हाथ रखा & दोनो उस से विदा ले
रहे थे,"..आप जल्दी से ठीक हो जाइए & मेरी सारी जयदाद को दान करने मे
मेरी मदद कीजिए.",देविका उसका हाथ पकड़े हुए थी.

"फिर आप क्या करेंगी?"

"इस बार वो ग़लती नही दोहराउंगी जो शादी के पहले की थी,कामिनी जी.उपरवाले
ने मुझे दूसरी ज़िंदगी दी है.अब ये ज़िंदगी बस शिवा की बाहो मे गुज़ार
दूँगी."

"बेस्ट ऑफ लक."

"थॅंक्स.",& दोनो प्रेमी बाहर चले गये.

कामिनी ने चंद्रा साहब को देखा & मुस्कुराइ.ज़िंदगी कितनी हसीन थी & वो
जवान.1 बुरा सपना था जो अब बीत चुका था,हक़ीक़त यहा सामने कहदी थी.उसने
अपना हाथ अपने गुरु की ओर बढ़ा दिया & उनके चेहरे पे भी मुस्कान फैल गयी.
दोस्तो कैसी लगी कहानी बताना मत भूलिएगा आपका दोस्त राज शर्मा
=============================================================
समाप्त
दा एंड
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