Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:40 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
नग़मा और शीबा भी अपने कमरे में से आ जाते हैं। जीशान को देखकर जहाँ शीबा की आँखें चमक जाती हैं। वहीं नग़मा लुबना का हाथ पकड़कर उसे अपने रूम में ले जाती है। 

रज़िया-“जीशान बेटा, तुम थक गये होगे, जाओ जाकर फ्रेश हो जाओ…” 

शीबा-“हाँ हाँ चलो जीशान मेरे रूम में बाथरूम में पानी गरम आ रहा है। तुम वहीं फ्रेश हो जाओ…” 

रज़िया-“नहीं , उसे उसके रूम में आराम करने दो शीबा…” 

शीबा बुरा सा मुँह बनाकर रज़िया को देखती रह जाती है। और अपने रूम में जाकर बेड पे लेट जाती है। 

अमन-“पहले मुझे अपने बेटे से तो मिलने दो कितने दिन हो गये मैंने इसे तो जी भरकर देखा भी नहीं …” 

जीशान वहीं अमन के पास सोफे पे बैठ जाता है-“अब्बू आपकी तबीयत तो ठीक है ना? कितने कमजोर दिखाई दे रहे हैं?” 

अमन-“अरे भाई, ये काम के चक्कर में खाने पीने की कहाँ फ़ुर्सत होती है…” 

जीशान-“चिंता मत करो अब्बू , बस कुछ महीनों की तो बात है, फिर तो मैं आपका सारा काम सीखकर उसे संभाल भी लूँगा…” 

रज़िया जूस का ग्लास दोनों को देते हुये उनके पास ही बैठ जाती है-“हाँ जीशान बेटा, तुम्हारे अब्बू आजकल कुछ ज्यादा ही काम कर रहे हैं, जिससे इनकी सेहत पे बुरा असर पड़ रहा है…” 

अमन को झटका लग जाता है। 

जीशान-“अरे अब्बू , ये लीजिये पानी पीजिए…” 

अमन-“उह ऊओ उह ऊओ… पता नहीं , लगता है कुछ चला गया था गले में…” 

रज़िया-“देखकर बेटा, कहीं ऐसे से तकलीफ़ ना बढ़ जाए…” 

जीशान-“अब्बू , मैं अभी आया…” और जीशान उठकर अनुम के पास चला जाता है। 
अनुम उस वक्त बहुत गुस्से में थी। वो किचेन में फ्रूटस काट रही थी। 

जीशान-“अम्मी…” 

अनुम का दिल जोर से धड़कता है और वो बिना मुड़े जवाब देती है-बोलो? 

जीशान-“अस्सलाम-ओ-आलेकुम अम्मी जान…” 

अनुम की आँखें नम हो जाती हैं और वो पलटकर जीशान की तरफ देखने लगती है-“वालेकुम अस्सलाम जीशान मेरे बच्चे…” 

जीशान अपनी अम्मी के गले लग जाता है-“अम्मी मुझे माफ कर दो, मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है ना। मुझे माफ कर दो अम्मी…” 

अनुम-“बस बस बेटा कुछ नहीं किया तूने चुप हो जा…” 

जीशान अनुम को अपनी छाती से इतने कस के गले लगा देता है कि अनुम पूरी तरह जीशान के कब्ज़े में आ जाती है-“अम्मी, मैंने आपको वहाँ बहुत मिस किया…” 

अनुम-“मुझे भी तेरी बहुत याद आ रही थी। तुझे काल करना चाहती थी मगर फिर रुक जाती, इस डर से कहीं तू मुझसे और नाराज ना हो जाये…” 

जीशान-“नहीं अम्मी, मुझे वहाँ जाने के बाद एहसास हुआ की मैं आपको चोट पहुँचा करके कितना गलत कर रहा था…” 

अनुम-“जीशान बेटा…” 

जीशान को सच में एहसास हुआ था कि वो अनुम से इस तरह रहकर खुद को भी और अनुम को भी परेशान कर रहा है। जब से लुबना ने उससे अपनी मोहब्बत का इजहार किया था, उसी दिन से उसे ये एहसास भी हो गया था कि एक बहन के जज़्बात अपने भाई के लिए कितने आसानी से बदल जाते हैं। 

अनुम और अमन की मोहब्बतू भी जीशान को उसी दिन महसूस हुई थी। मगर जीशान उस हद तक भी नहीं सुधरा था कि अपनी हरकतों से बाज आ जाए। आखिरकार खून अपना असर नहीं छोड़ता। 

अनुम-“अब मुझे छोड़ेगा या ऐसे ही खड़ा रखेगा मेरी टाँगे हवा में लटके-लटके अकड़ने लगी हैं…” 

जीशान ने अनुम को अपने सीने से लगाकर कुछ इंच हवा में उठा दिया था-“मुझे नहीं छोड़ना आपको, मुझे यहीं रहना है…” 

अनुम-“अच्छा बाबा, पर मुझे काम भी करना है ना…” 

जीशान-“अपने बेटे से ज्यादा ज़रूर है आपके लिए काम?” 

अनुम-“तुझसे ज्यादा ज़रूर तो मैं भी नहीं हूँ बेटा…” 

जीशान अचानक से अनुम के गाल पे एक छोटी से पप्पी ले लेता है। अनुम चौंक जाती है। क्योंकी अमन के बाद जीशान दूसरा वो मर्द था जिसने अनुम के गाल को चूमा था-ये क्या हरकत है जीशान? 

जीशान-“लो जी इतने दिनों बाद आया हूँ , अपनी अम्मी की एक छोटी से पप्पी भी नहीं ले सकता मैं…” 

अनुम जीशान को घुरने लगती है। 

जीशान-“अच्छा बाबा सारी , लो अपने कान भी पकड़ लिए मैंने। आगे से पप्पी नहीं लूँगा…” 

अनुम-“ठीक है, अब मुझे छोड़ भी…” 

जीशान अनुम को अपने से अलग करते-करते फिर से उसे अपने से कस लेता है, जिससे उसकी चुची जीशान से चिपक जाती है और अनुम के मुँह से एक खौफनाक चीख निकल जाती है-“औउचह…” 

रज़िया-क्या हुआ अनुम? 

अनुम-“क…क …कुछ नहीं अम्मी, पैर फिसल गया था…” 

रज़िया-“संभाल के बेटी …” 

अनुम-“तुम यहाँ से जाते हो या नहीं ?” 

जीशान-“पहले आँखें बंद करो…” 

अनुम-क्यूँ ? 

जीशान-“मैं आपके लिए एक गिफ्ट लाया हूँ समर कैम्प से…” 

अनुम-“अच्छा लो बंद कर ली …” 

जीशान अपने हाथ जिससे उसने अनुम की पीठ पकड़ रखा था उसे धीरे-धीरे नीचे ले जाता है और अचानक से दोनों चूतड़ों पे हाथों को रख कर हल्के से दबाकर फिर से अनुम के गाल को किस करके वहाँ से भाग जाता है। 

अनुम-“तूने प्रोमिस किया था जीशान…” 

जीशान दरवाजे में से-“प्रोमिस पप्पी ना लेने का हुआ था, मैंने जो लिया वो पप्पी नहीं पोपी थी…” 

अनुम-“जीशान के बच्चे…” वो उसे मारने के अंदाज में आगे बढ़ती है। 

और जीशान भागता हुआ अमन के पास आकर बैठ जाता है। 

अनुम आज बहुत खुश थी। उसे जीशान आज उसे अंदाज में दिखाई दे रहा था जैसे वो राज जानने से पहले हुआ करता था। हमेशा वो अनुम को परेशान किया करता था और अनुम उसकी हर छोटी बड़ी गलती माफ कर दिया करती थी। मगर आज का जीशान का विहेब कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया था। इससे पहले उसने कभी अनुम को इस तरह अपनी बाहो में नहीं कसा था, ना ही गाल पे किस किया था। 
मगर इतने दिनों से वो अनुम से बात नहीं कर रहा था, और आज फिर से वही हँसमुख जीशान उसे मिला तो अनुम उसकी ये गुस्ताख़ी भी माफ कर गई और दिल ही दिल में उसके पप्पी और पोपी पे मुश्कुराने लगती है। 

रज़िया-“क्या बात है अनुम, बहुत खुश लग रही हो?” 

अनुम-“जीशान आया था यहाँ, बिल्कुल वही जीशान आज देखा मैंने, जो वो पहले हुआ करता था। बदमाश कहीं का बिल्कुल अपने अब्बू पे गया है अम्मी ये लड़का…” 

रज़िया-“चलो बहुत अच्छा है मेरी दुआ क़ुबूल हो गई। वैसे ऐसी कौन सी बदमाशी की उसने जो तेरे चेहरे पे हँसी नहीं रुक रही है?” 

अनुम-“हेहेहेहे… कुछ नहीं आपको बाद में सुनाती हूँ …” 

रज़िया अपनी बेटी को खुश देखकर बहुत सकून महसूस करती है। 

जीशान-“अब्बू सोफी बाजी नहीं दिखाई दे रही ?” 

अमन-“वो अपने रूम में होगी। अच्छा सुन कल सोफी को देखने लड़के वाले आ रहे हैं। तुम घर पे रहना…” 

जीशान-“सच में… कौन हैं वो? कहाँ रहते हैं? क्या करते हैं? नाम क्या है अब्बू बोलो ना?” 

अमन-“हमारी फॅक्टरी में काम करता है। नाम खालिद है, अच्छे खानदान से है, और मुझे बहुत पसंद है सोफी के लिए। बस उन लोगों को पसंद आ जाए…” 

जीशान-“क्या अब्बू ? बाजी तो वो हीरा हैं जिसे देखते ही कोई भी पसंद कर ले। मैं अभी उनसे मिलकर आता हूँ …” और जीशान भागता हुआ सोफिया के रूम में चला जाता है। 
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05-19-2019, 01:40 PM,
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सोफिया अपने बेड पे पेट के बल लेटी हुई थी। 

जीशान-“बाजी आप यहाँ है और मैं आपको कहाँ कहाँ नहीं ढूँढा। 

सोफिया-अरे जीशान , तू कब आया और लुबना कहाँ है? 

जीशान-“वो होगी अपने रूम में। आहआहुींम्म मुझे उड़ते-उड़ते कुछ ख़बर मिली है…” 

सोफिया-क्या? 

जीशान धड़ाम से बेड पे लेट जाता है और अपना सर सोफिया की गोद में रख देता है। सोफिया भी अपने एकलौते छोटे भाई से बहुत प्यार करती थी। वो जीशान के घने बालों में हाथ फेरने लगती है। 

जीशान-“यही कि आपके लिए किसी खालिद साहब का रिश्ता आने वाला है बाजी, आपने देखा है उन्हें?” 

सोफिया-तुझे किसने बताया? 

जीशान-अब्बू ने। 

सोफिया-“ओह्ह… पता नहीं मुझे कुछ भी इस बारे में। तू ये बता कैसा रहा तेरा टूर? मजा आया? कहाँ-कहाँ घुमा? 

जीशान उठकर सोफिया के साइड में लेट जाता है। दोनों के चेहरे एक दूसरे के सामने थे-“क्या मजा बाजी, वो लुबना थी ना साथ में सारा मजा किरकिरा हो गया मेरा…” 

सोफिया-“अच्छा, ऐसा क्या किया लुबु ने?” 

जीशान-“हर वक्त शहद की मक्खी की तरह आगे-पीछे भिन-भिन करती घूमती थी। 

किसी से बात करो तो मुश्किल। ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा भाई है और मैं उसकी बहन…” 

सोफिया को हँसी आ जाती है। वो इस तरह बैठी थी की हँसते-हँसते उसकी कमीज का एक साइड का बैंड नीचे सरक जाता है और उसकी एक चुची अचानक से जीशान के सामने आ जाती है। 

सोफिया-“ओह्ह… मुझे माफ कर दो…” वो झट से अपनी कमीज ठीक कर लेती है। 

तभी वहाँ लुबना और नग़मा भी आ धमकते हैं। सोफिया, लुबना और नग़मा से बातें करने लगती है उसकी एक निगाह जीशान की तरफ जाती है तो वो हैरान रह जाती है। जीशान की पैंट में उभार आ चुका था। जीशान कुछ देर उनके पास बैठता है और फिर उठकर अपने रूम में फ्रेश होने चला जाता है। 

रात के खाने के बाद सभी अपने-अपने रूम में सोने चले जाते हैं। नग़मा के एग्जाम हो चुके थे और वो बातें करने के लिए बिल्कुल फ्री थी। वो लुबना के रूम में चली जाती है, जहाँ वो उसे समर कैम्प की और कालेज की फ़िजूल सी बातें कर सके। 

जीशान अपने रूम में खर्राटे मार रहा था। वो थका हुआ था और उसे बेड पे लेटते ही नींद आ गई थी। 

वहीं शीबा आज भी पानी होने के बावजूद प्यासी ही रह गई थी। 

अमन रज़िया और अनुम को ये कहकर रूम से निकल जाता है कि वो शीबा के पास जा रहा है। मगर वो अपने रूम में जाने के बजाए सोफिया के रूम में चला जाता है।
सोफिया का रूम का दरवाजा खुला ही था। वो कुछ पढ़ रही थी। 

अमन रूम का दरवाजा बंद कर देता है। 

सोफिया-“अब्बू चले जाइए मेरे रूम से, मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी…” अमन के सामने सोफिया खड़ी ये सब कह रही थी। 

अमन उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खींच लेता है और बिना बोले उसके होंठों को चूमने लगता है। 

सोफिया-“उम्ह्ह… छोड़िए मुझे और जाइए यहाँ से…” 

अमन-“ये घर भी मेरा है, ये रूम भी मेरा है और तू भी मेरी है। समझी… मेरी प्रॉपटी होकर मुझे बाहर जाने को कहती है?” 

सोफिया-“आप ही मुझे अपना नहीं समझते ना… इसलिए बोल रही हूँ जाओ यहाँ से…” 

अमन सोफिया को अपनी गोद में उठा लेता है। वो नाजुक सी पतली कमर वाली लड़की अपने अब्बू की गोद में ऐसे सिमट जाती है जैसे कोई गुड़िया बच्चे की छाती से चिपकी होती है। 

अमन-“मेरी गुड़िया है तू मैं तुझसे बात करने आया हूँ । पहले एक बार सुन ले उसके बाद मैं तुझे कोई फोर्स नहीं करूँगा…” अमन सोफिया को अपनी गोद में ही बैठाये रखता है। 

दोनों टाँगे इर्द-गिर्द लपेटे सोफिया अपने अब्बू के गले में बाहें डाले हुये उसकी बात सुनने को तैयार थी। मगर अंदर ही अंदर तो चूत भी जाग चुकी थी। चाहे अमन की बात उसे क़ुबूल हो या नहीं हो? मगर आज उसकी चूत अमन के लण्ड को बिना चखे रूम से बाहर जाने देने वाली नहीं थी। इसलिए सोफिया भी ज्यादा नाटक ना करते हुई चुपचाप अमन की बात सुनने लगती है। 

अमन-“सोफी बेटा, खालिद एक बहुत अच्छा लड़का है…” 

सोफिया-“मगर मैं ये… …” 
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05-19-2019, 01:40 PM,
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अमन-“पहले मेरी बात पूरे होने दे। खालिद एक बहुत अच्छा लड़का है। मैं तुम दोनों की शादी करके तुम्हें यहाँ से 5 कि॰मी॰ दूर एक फ्लेट गिफ्ट करने वाला हूँ , जहाँ तुम और सिर्फ़ खालिद रहेंगे। खालिद के अम्मी अब्बू तो उनके बड़े बेटे के साथ रहते हैं। और मेरी बात के आगे वो कैसे जाएँगे मैं उनसे कह दूँगा कि खालिद और सोफिया को अकेले रहने दो। शादी के बाद खालिद जाएगा आउटडोर पे फॅक्टरी के काम से और मेरी बेटी अपने अब्बू की बाहो में होगी। हमेशा-हमेशा के लिए। यही चाहती थी ना तू ? बस बेटी तू शादी के लिए हाँ कह दे। देख। मैं नहीं चाहता कि तू बिना शादी के रहे…” 

सोफिया-“मगर अब्बू , मैं अपने अंदर आपके सिवा और किसी का लेना नहीं चाहती…” 

अमन उसे फिर से चूम लेता है-“जब दिल करे तब लेना खालिद का, वरना साफ मना कर देना। तेरी चूत तो मुझे लगता है दो से भी नहीं मानेगी इसे तो और चाहिए होंगे?” 

सोफिया-“अब्बू , आपको मैं ऐसी लगती हूँ क्या? बाजारू औरत?” 

अमन-“अरे नहीं … मैं तो इसलिए कह रहा था कि जब त बिस्तर पे होती है तो मुझे भी मात दे देती है। पता नहीं क्या खाकर पैदा किया है तुझे रज़िया ने?” 

सोफिया-“हेहेहेहे… आपका मुँह में ज्यादा लेती होगी अम्मी, है ना अब्बू ?” 

अमन-“हाँ… और अब तू लेगी इसे…” फिर कुछ ह देर में दोनों बाप-बेटी पूरे नंगे हो जाते हैं और सोफिया की बेचैन चूत में एक नई उमींग पैदा हो जाती है, अपने अब्बू के लण्ड को लेने की। वो अमन के लण्ड को पूरा मुँह में लेकर चूसने लगती है गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन इतने दिन से सोफिया की चूत के बिना सो रहा था। उसका लण्ड तो सोफिया को छूते ही खड़ा हो गया था। वो ज्यादा सोफिया के मुँह को तकलीफ़ नहीं देता, बल्की उसे लेटाकर अपनी जीभ उसकी चूत में डाल देता है। 

सोफिया-“अह्ह… अब्बू बस-बस… इसे मत छेड़ो, वो पहले से ही सिसक रही है। मुझे अपने अंदर ले लो मेरी जान, मेरे अमन ख़ान, मेरे ख़ान साहब अह्ह…” 

अमन भी अब देर नहीं करना चाहता था। वो सोफिया की जाँघ के पास बैठ जाता है और अपने लण्ड को सोफी की चूत में बिना बोले डाल देता है। चीखते हुये सोफिया अपनी दोनों टाँगे अमन की कमर से लपेट लेती है। 

अमन-“अह्ह… बोल सोफिया, करेगी ना शादी खालिद से… बोल?” 

सोफिया-“उम्ह्ह… एक शर्त पे करूँगी?” 

अमन-“बोल क्या शर्त है तेरी ?” 

सोफिया-“आपको मुझे इसी तरह चोदना होगा, जब मैं कहूँ तब आना होगा मेरी लेने… और खालिद को ज्यादा से ज्यादा आउटडोर भेजना होगा… बोलो अमन ख़ान मंजूर है? तो मुझे भी शादी मंजूर है अह्ह…” 

अमन-“सोफिया, तू आज से मेरी बेटी नहीं , बीवी हुई। मैंने तुझे क़ुबूल किया…” 

सोफिया-“अह्ह… अमन, मैंने भी आपको क़ुबूल किया…” 

दोनों बाप-बेटी अपने नये रिश्ते को और मजबूत करते हुये रात भर जागते रहते हैं। 
अमन विला में शायद कोई रात नहीं सोता। 

सुबह का सूरज अमन विला पे खुशियाँ लेकर आया था। सुबह से ही घर में तैयारियाँ शुरू थीं। सभी अपने-अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे थे। अनुम और शीबा किचेन संभाले हुई थी। और नग़मा लुबना के साथ सोफिया को और खुद भी तैयार हो रही थी। दोपहर में लंच पे खालिद और उसका परिवार सोफिया को देखने जो आने वाले थे। 

इन सबसे दूर रज़िया अपने रूम में बैठी अपने गुजरे हुये वक्त को याद कर रही थी। अपने और अमन की मोहब्बत को जिस तरह उन दोनों ने अंजाम पहुँचाया था, वो नाकाबिल बात थी। मगर आज उनकी मोहब्बत, उनके जज़्बे की जीती जागती निशानियाँ यहीं अमन विला में मौजूद थी। मगर कहीं ना कहीं रज़िया अमन से नाराज भी थी। उमर के इस पड़ाओ में जहाँ उसे सबसे ज्यादा अमन की ज़रूरत थी। उस वक्त में अमन नई-नई रंगरेलियाँ मनाने में लगा हुआ था। 

आजकल अमन सोफिया के रूम का जिस तरह चक्कर लगा रहा था, ये बात रज़िया से छुपी हुई नहीं थी। आँखों से काजल चुरा लेने वाली रज़िया, दिल का हाल आँखों से पढ़ लेनी वाली रज़िया को पता था कि अमन अब उसमें वो दिलचस्पी नहीं ले रहा है जिसकी वो हकदार थी। मगर वो चुप थी, क्योंकी वो जानती थी कि अमन ने उसे जो खुशी उस वक्त दिया है, अगर वो ना होता तो शायद आज रज़िया भी नहीं होती। 
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अमन सुबह जल्दी फॅक्टरी चला गया था और जीशान फ्रेश हो रहा था। जीशान अपने रूम में आकर कपड़े पहनने लगता है कि तभी उसके दरवाजे दस्तक होती है। वो दरवाजा खोलता है और सामने खड़ी लुबना को देखकर थोड़ा हैरान सा हो जाता है। 

लुबना के चेहरे पे हमेशा की तरह मुश्कुराहट फैल हुई थी-अंदर आना है मुझे, हटो सामने से…” 

जीशान जो लुबना को देखकर हैरान हो गया था, वो दरवाजे के सामने से हट जाता है-क्या है? क्यों आई हो? 

लुबना-“आपको पता है ना आज कौन आने वाले हैं?” 

जीशान-“हाँ पता है तो? 

लुबना-“तो ये जनाब आपके कपड़े प्रेस करने थे मुझे, मेहमानों के सामने ऐसे जाएँगे आप?” 

जीशान तौलिया में खड़ा हुआ था। उसकी छाती के घुंघराले बाल बहुत हसीन लग रहे थे-“तुम क्यों प्रेस कर रही हो? अम्मी कर देगी। जाओ तुम अपना काम करो…” 

लुबना-“वही करने आई हूँ । जब से वापस आए हैं, देख रही हूँ कि ना मुझे देख रहे हैं, ना ठीक से बात कर रहे है। ऐसे नहीं चलेगा समझे आप?” 

जीशान लुबना का हाथ पकड़कर अपनी तरफ घुमा लेता है-“ तू क्या मेरी बीबी है जो मुझसे इस टोन में बात कर रही है?” 

लुबना-“हाई सदके जाऊं सुबह-सुबह इतनी खुशगवार बातें? मुझे संभालिए, कहीं मैं मर ना जाऊूँ?” 

जीशान-“ज्यादा नौटकी नहीं चलेगी लुबना तेरी अब यहाँ पे। बहुत बर्दाश्त कर चुका हूँ मैं तुझे समर कैम्प में…” 

लुबना जीशान के इतने करीब आ जाती है कि जीशान की आँखों की पुतलियों में उसे अपना अक्स दिखाई देने लगता है-“बर्दाश्त और अपने मुझे किया? अच्छा ठीक है। तो वहाँ आप क्या गुलछरे उड़ाकर आए हैं जरा ये अम्मी और अब्बू को बताना पड़ेगा…” 

जीशान लुबना के बाल पकड़कर खींचता है-क्या कहा तूने ? अम्मी को बोलेगी? बोलकर देखा जरा और क्या किया है मैंने, जो तू मुझे धमका रही है…” 

लुबना-“औउचह… जीशान , छोड़िए ना दर्द हो रहा है। अच्छा सॉरी सॉरी … नहीं बोलूँगी मगर छोड़िए तो पहले। 

जीशान बाल छोड़ देता है। लुबना जीशान को बेड पे धक्का देकर उसके ऊपर चढ़ जाती है। दोनों टाँगें उसके इर्द-गिर्द डालकर वो उसकी गर्दन दबाने लगती है। 

जीशान-“ओहुउऊउउ ओहुउउउ…” जीशान चाहता तो एक झटके में लुबना को अपने ऊपर से उठाकर नीचे फेंक देता। मगर शायद वो भी देखना चाहता था कि लुबना क्या करती है? 

लुबना अपने दोनों हाथों से जीशान की गर्दन जोर से दबाने लगती है-“मुझे आपने कोई भीगी बिल्ली समझ के रखा हैं क्या जीशान? जान देने वाली लड़की नहीं हूँ मैं, ना ह आँसू बहा-बहा के तकिया गीला करने वाली लड़कियों में से हूँ । जान ले लूँगी आपकी, अगर दुबारा मुझसे ऐसे नागवार अंदाज में बात किया तो। अच्छे से बात कर रही हूँ आप भी अच्छे से करिए…” 
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05-19-2019, 01:41 PM,
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जीशान अपनी बहन की इतनी हिम्मत देखकर दिल ही दिल में मुश्कुरा देता है। 
और वो जो बिना किसी मकसद के जीशान के ऊपर चढ़ बैठी थी, उसे अपने गलती का एहसास तब होता है कि वो गलत जगह बैठी है, जब जीशान अपने दोनों हाथों से उसके पीठ को पकड़कर अपनी तरफ झुका देता है। 

जीशान-“इतनी हिम्मत तुझमें आई कहाँ से?” 

लुबना का सिर जीशान की चौड़ी चाहती से चिपक चुका था और उसके दिल की धड़कनें वो साफ सुन भी सकती थी और समझ भी सकती थी। लुबना धीरे से कहती है-“ये हिम्मत आपसे मोहब्बत का नतीजा है जीशान …” 

जीशान उसकी कमर पे जोर से थप्पड़ मार के उसे अपने ऊपर से हटा देता है और खड़ा होकर अपनी शर्ट पहनने लगता है। लुबना भीगी पलकों से उसे देखने लगती है। वो जानती थी जिस रास्ते पे वो चल निकली है उसकी मंज़िल बहुत दूर है। 

जीशान अपने कपबोर्ड में से एक नया जोड़ा निकालकर लुबना को दे देता है-“ये ले प्रेस करके यहाँ लगा देना अब निकल यहाँ से…” 

लुबना कपड़े लेकर पैर पटकती हुई बाहर चली जाती है। 

जीशान अनुम को देखने किचेन में जाता है। वो हमेशा घर से निकलने से पहले एक बार अनुम को ज़रूर देखता था, पता नहीं क्यों? मगर ये उसका रोज का काम था। अनुम किचेन में नहीं थी। 

हाँ मगर शीबा कुछ काम कर रही थी। जीशान को किचेन में देखकर वो उसे अपने पास बुला लेती है-“क्या चाहिए जीशान बेटा?” शीबा अपनी चुची को थोड़ा और आगे करती हुई जीशान से पूछने लगती है। 

जीशान-“कुछ नहीं अम्मी, मैं पानी पीने आया था…” 

शीबा-“दूध पिया कर ना बेटा, सेहत अच्छी रहती है…” 

जीशान-“दूध पीने का मूड नहीं है अम्मी…” 

शीबा जीशान को अपने से सटा लेती है-“कल से देख रही हूँ बड़ा दूर -दूर रहने लगा है मेरा जीशान। कहीं वहाँ किसी से आँखें चार तो नहीं कर लिया तूने …” 

जीशान शीबा को अपने से दूर हटा देता है-“अम्मी प्लीज़्ज़…” 

शीबा को गुस्सा आ जाता है-“हाँ हाँ जा… मतलब निकल गया तेरा, अब तुझे मुझमें ऐब ही दिखाई देंगे ना… तू और तेरे अब्बू दोनों एक जैसे हैं… मतलब-परस्त…” 

जीशान-“अम्मी, मैंने आपसे कुछ कहा क्या? जो आप ऐसे बोल रही हैं?” 

अनुम-क्या हुआ जीशान ? 

अनुम को किचेन में देखकर शीबा चुप हो जाती है और अपने काम में लग जाती है। 

जीशान-“कुछ नहीं दादी कहाँ हैं?” 

अनुम-अपने रूम में हैं नाश्ता किया तूने ? 

जीशान-थोड़ा देर से कर लूँगा । 

अनुम-ठीक है, तू जा। मैं थोड़ी देर से तेरे लिए नाश्ता लेकर आती हूँ । 

जीशान रज़िया के रूम में चला जाता है। रज़िया के रूम का दरवाजा थोड़ा बिगड़ा हुआ था एक बार जोर से धकेलने पर वो बंद हो जाता था। जीशान रूम में जाने के बाद अंजाने में दरवाजा धकेल देता है। 

रज़िया-“अरे जीशान , मेरा बच्चा आज सुबह-सुबह दादी के पास… आ जा मेरा बच्चा…” 

जीशान अपनी दादी की गोद में सर रखकरबिस्तर पे लेट जाता है-“कैसी तबीयत है आपकी दादी ?” 

रज़िया-“मुझे क्या हुआ है, अच्छी भली तो हूँ …” 

जीशान-“हाँ वो तो देख ह रहा हूँ … अच्छा दादी , एक बात कहूँ आप बुरा तो नहीं मानेंगी?” 

रज़िया-“बोल ना तेरी बात का बुरा मान ह नहीं सकती मैं। बोल क्या बात है?” 

जीशान-“घर में सबसे हसीन औरत? पता है कौन है?” 

रज़िया-कौन? 

जीशान-अरे आप दादी । 

रज़िया-“चल हट बदमाश कहीं का। अब तेरी दादी बूढ़ी हो गई है। हाँ तेरी अम्मी बहुत हसीन है और लुबना भी…” 

जीशान-“अम्मी तक तो ठीक है मगर लुबु… वो तो मुझे चुड़ैल से कम नहीं दिखती…” 

रज़िया-“ऐसा मत बोल जीशान , बहन है वो तेरी …” 

जीशान-हाँ जानता हूँ । 

रज़िया-“बड़ा कमजोर दिख रहा है मुझे तो तू , पता नहीं वहाँ ठीक से खाता भी था कि नहीं ? लुबना ख्याल नहीं रखती थी क्या तेरा?” 

जीशान-“सब आपके और अम्मी के वजह से मैं ऐसा कमजोर हूँ …” 

रज़िया-“मेरे और अनुम की वजह से, वो कैसे बता जरा?” 

जीशान-“मैं जानता हूँ मुझे अम्मी ने शायद बचपन में दूध नहीं पिलाया होगा। और आप तो सोफिया बाजी को दूध पिलाती होंगी इसीलिए मैं कमजोर हूँ …” 

रज़िया-“किसने कहा तुझसे? अरे बदमाश घर में सबसे ज्यादा दूध अगर किसी ने पिया है तो वो तू है…” 

जीशान-“झूठ… सरासर झूठ…” 

रज़िया जीशान के बालों में उंगलियाँ फेरती हुई उसे बताती है-“तुझे पता है तेरी और सोफिया के पैदाइश में ज्यादा फ़र्क नहीं है, बस कुछ महीने बड़ी है वो तुझसे…” 

जीशान-“हाँ… तो इससे क्या साबित होता है?” 

रज़िया-“तो ये कि सोफिया बहुत कम दूध पीती थी। सारा दूध तो तू पी जाता था। बेचारी रात में उठकर रोने लगती चथ तो उसे गाय का दूध पिलाना पड़ता था। 

जीशान-“इसका मतलब आपने भी मुझे दूध पिलाया?” 

रज़िया शरमा जाती है-“हाँ पगले… अनुम की छाती से अलग होता तो मुझसे चिपक जाता था तू । पूरे 3 साल तक दूध पिया है तूने मेरा और अनुम का…” 

जीशान-“3 साल… मुझे यकीन नहीं आता दादी …” 

रज़िया-“तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ ?” 

जीशान-दादी एक बात कहूँ ? 

रज़िया-ह्म्म्म्मम। 

जीशान-मुझे दूध पीना है। 

रज़िया-क्या? 

जीशान-“हाँ दादी , बचपन का मुझे याद नहीं … एक बार अब पीकर देखूँगा तो शायद कुछ याद आ जाए…” 

रज़िया-“नहीं नहीं पागल हो गया है क्या तू लड़के? चल हट मुझे बहुत काम है…” 

जीशान-“कुछ काम वाम नहीं है। मुझे पीना है मतलब पीना है…” 


रज़िया-“मारूँगी मैं तुझे जीशान , ऐसी बातें करेगा तो। बच्चा नहीं है तू , अब बड़ा हो गया है। बंद कर ऐसी हरकतें…” 

जीशान-“जान गया हूँ मैं आप झूठ बोल रही थीं मुझसे। कोई दूध नहीं पिलाया मुझे किसी ने…” 

रज़िया-“तो क्या तू हवा खाकर बड़ा हो गया है और ये तुझे हो क्या गया है अचानक से?” 

जीशान-“कुछ नहीं हुआ मुझे? मुझे पता है मुझे आपकी बहू शीबा ने फीडिंग करवाई होगी, अपने नहीं …” 

रज़िया-“क्या कहा तूने ? शीबा… अरे वो वो तो तुझे अपने पास फटकने भी नहीं देती थी। ये जो तेरे कंधे पे जलने का निशान है ना ये भी तुझे शीबा ने दिया है। बचपन में तू उससे किसी बात पे ज़िद कर रहा था तो उसने तुझे माचिस चटका दी थी। वो दूध पिलाएगी तुझे?” 

जीशान-“दादी एक बार थोड़ा सा ऐसा समझो कि मैं आपका वही छोटा सा जीशान हूँ …” 

रज़िया-“नहीं , मतलब नहीं …” 

जीशान रज़िया के गोद पर से अपना सर उठा लेता है और बैठ जाता है। उसके भोलेपन पे रज़िया को बेशुमार प्यार आ जाता है। रज़िया थी है एमोशनल। जिस तरह अमन ने बर्थ-डे का बहाना बनाकर उसे किसिंग करके सिडयूस किया था, आज उसी रास्ते पे जीशान भी खड़ा था। 

रज़िया-क्या हुआ जीशान नाराज है? 

जीशान कोई जवाब नहीं देता। 

रज़िया अपनी नाइटी के सामने के दोनों बटन खोल देती है और एक चुची को बाहर निकाल लेती है। जीशान को पता नहीं था कि पीछे क्या हो रहा है। रज़िया जीशान का सर पकड़कर जैसे ही घूमती है उसके मुँह के सामने रज़िया की गोरी -गोरी चुची और गुलाबी निपल्स आ जाते हैं जीशान अपना मुँह खोलता चला जाता है और रज़िया निचोड़ते हुये अपने चुची को जीशान के मुँह में डालने लगती है। 

जीशान-“गलप्प्प गलप्प्प गलप्प्प…” 

रज़िया को महसूस होता है जैसे अमन अपनी जवानी के जोश में उसकी चुची को खींच-खींचकर निचोड़ रहा है-अह्ह… जीशान आराम से… दूध नहीं निकलेगा उसमें से अब्बू अह्ह…” 

जीशान-“मैं निकाल लूँगा दादी गलप्प्प गलप्प्प…” 

रज़िया दोनों हाथों से जीशान के सर को चुची पे दबाती है। इस उमर में भी वो बिल्कुल कसी हुई थी। बड़ी-बड़ी चुचियों की मालकिन रज़िया इस उमर में भी किसी भी लौंडे को अपने बस में करने की ताकत रखती थी। बेचैन हो चुका बच्चा अपनी ताकत से चुची को खींचता दाँत से काटता हुआ पूरा मुँह में भरकर चूसने लगता है। 

उसके निप्पल को काटने से रज़िया की चूत में चिंगारियाँ फूट ने लगती हैं। कितने दिनों बाद आज उसे फिर से वही जोश, वही जुनून महसूस हो रहा था जो रज़िया को अमन के साथ 20 साल पहले महसूस हुआ करता था। 

रज़िया-“अह्ह… अह्ह… काटो मत… काटो मत अह्ह…” 

जीशान रज़िया के कंधे पर से नाइटी निकाल देता है और दोनों चुचियों को एक साथ मरोड़-मरोड़ के उनमें से दूध निकालने की नाकाम कोशिश करने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

रज़िया से बर्दाश्त नहीं होता और वो जीशान को अपनी छाती से अलग कर देती है और उसी वक्त दरवाजा पे किसी की दस्तक होती है। दोनों खुद को ठीक करके बैठ जाते हैं। 

अनुम-“अम्मी दरवाजा अंदर से बंद है शायद…” 

जीशान दरवाजा खोलता है। सामने अनुम हाथ में नाश्ते की प्लेट लिए खड़ी थी। 

रज़िया-“हाँ… शायद वो जीशान ने जोर से दरवाजा धकेल दिया होगा…” 

अनुम-“जीशान नाश्ता कर लो। अम्मी आप भी साथ में कर लीजिये …” 

रज़िया-तुमने किया बेटी ? 

अनुम जाते-जाते-“हाँ मैं कर चुकी हूँ आज बहुत काम है…” 

रज़िया घूर ते हुई जीशान को देखती है और जीशान हँसता चला जाता है। दोनों साथ मिलकर नाश्ता करते हैं और जीशान भी घर के कुछ हल्के-फुल्के काम निपटाने लगता है। दोपहर में अमन भी घर आ चुका था और मेहमान भी। 


खालिद और उसके अम्मी अब्बू आये हुये थे। लंच के बाद सोफिया को उन लोगों के सामने पेश किया जाता है। खालिद तो सोफिया को देखते ही हाँ में मुश्कुरा देता है। खालिद के अम्मी अब्बू को भला इतने बड़े घर की लड़की और इतनी खूबसूरत सोफिया को अपने घर की बहू बनाने में क्या ऐतराज हो सकता था। कुछ बातें करने के बाद खालिद के खालिद साहब अमन से रिश्ते की कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिए कहते हैं। उनकी तरफ से ये रिश्ता पक्का था और अमन तो यही चाहता था। 

लुबना और नग़मा को एक दूसरे रूम में बंद करके रखा गया था। ताकी वो मेहमानों के सामने आकर अपने हुश्न की नुमायश ना कर सकें। बेचार दोनों लड़कियाँ खालिद को जाते हुये ही देख पाई थीं। वो सोफिया से उसके रूम में जाकर पूछने लगती हैं। 

नग़मा-“आपी, आपी कैसे लगे जीज ?” 

सोफिया अपनी आँखों में अमन का चेहरा लाती हुई-बहुत खूबसूरत हैं तेरे जीजू । 
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05-19-2019, 01:41 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
नग़मा-“आपी शर्म करो, इतनी बेशर्मी अच्छी नहीं …” 

लुबना-“क्या आपी… हम दोनों को रूम में बंद कर दिया ये अच्छी बात है क्या?” 

जीशान वहाँ आ जाता है-“बहुत अच्छा किया हम लोगों ने, वरना तुम दोनों मेंढकियों की तरह इधर से उधर उछलती फिरती…” 

लुबना जीशान को घुरने लगती है। 

लाइट पिंक कलर की शर्ट और काल जीन्स में जीशान बहुत खूबसूरत लग रहा था। लुबना चाहकर भी अपना गुस्सा नहीं दिखा पाई और जीशान के हुश्न के आगे हार मानकर वहाँ से नग़मा को लेकर चली जाती है। 

जीशान-“बहुत-बहुत मुबारक हो बाजी…” और जीशान सोफिया को गले लगा लेता है। 

सोफिया अपने भाई के जिस्म से चिपक के खुद को बहुत हल्की-फुल्की महसूस करती है और उसके हाथ जीशान की पीठ पे कस जाते हैं। कुछ पलों के लिए जीशान अपने सिर को सोफिया की गर्दन की तरफ बढ़ाकर हल्के से उसके कान में सरगोशी करता है। 

जीशान की बात सुनकर सोफिया सिहर उठती है। सोफिया जीशान को धक्का दे देती है-“जब देखो मजाक करता रहता है…” 

जीशान-“लो जी, अपनी बाजी से बंदा मजाक भी नहीं कर सकता। अब आपकी शादी होगी तो एक से दो होंगे और फिर दो से तीन होने में दिन ही कितने लगते हैं? 

सोफिया-“जीशान बाज आ जा अपनी हरकतों से वरना बहुत मार पड़ेगी तुझे…” 

जीशान-“मार मुझे… कौन मारेगा मुझे बोलो?” 

सोफिया-“मैं ऐसे ऐसे… वो अपने नाजुक से हाथों से जीशान को कंधे पे हल्की-हल्की चपत मारने लगती है। 

तभी अचानक जीशान सोफिया के दोनों हाथों को पकड़कर उन्हें ऊपर कर देता है जिससे सोफिया की चुची सामने की तरफ आ जाती है। 

सोफिया-“बड़ी ताकत आ गई है तुझमें। अभी बताती हूँ रुक जरा…” मगर सोफिया जीशान की मर्दाना ताकत के सामने कुछ नहीं कर पाती और सिटपिटाकर रह जाती है। 

जीशान उसकी कलाई मोड़कर हाथ पीछे की तरफ घुमा देता है, जिससे सोफिया को दर्द होने लगता है। 

सोफिया-“अह्ह… अह्ह… जीशान दर्द होता है ना… छोड़ मुझे…” 


जीशान-पहले माफी माँगो। 

सोफिया-माफी और तुझसे? मैं नहीं मांगती जा जो करना है कर ले। 

जीशान-माफी तो माँगनी पड़ेगी तुम्हें। 

सोफिया-किस बात की माफी? हाँ बोल…” 

जीशान-“मुझे इस तरह मारने के लिए, बिना गलती हाथ उठाने के लिए, चलो अच्छी बच्ची की तरह सॉरी बोल दो…” 

सोफिया-“हेहेहेहे… खुद मुझे सॉरी बोल रहा है। जा नहीं बोलती…” 

जीशान अपना एक हाथ सोफिया की कमर में डालकर उसे अपने से चिपका लेता है और एक हाथ से उसके पेट पे गुदगुदी करने लगता है। 

सोफिया की ये कमजोर थी। जब भी बचपन में जीशान उसे गुदगुदी करता था 
सोफिया झट से हार मान जाती थी। आज भी जीशान वही करने लगता है। 

पर वो नहीं जानता था कि वो सब बचपन की बातें थीं। गुड़िया कब की जवान हो चुकी है और अब उसके जिस्म को अगर मर्द का हाथ लगे तो वो हँसती नहीं बल्की सोफिया जीशान से और बुरी तरह चिपक सी जाते है। और उसके सर को पकड़कर अपनी गर्दन पे झुका देती है जिससे जीशान के होंठ ना चाहते हुये भी सोफिया की गर्दन को चूम लेते है। 

हँसी मजाक में शुरू हुआ ये खेल अचानक ही सीरियस रुख़ ले चुका था। जहाँ जीशान अपने किए पे शर्मिंदा सा हो जाता है और सोफिया को सॉरी कहकर उसके रूम से निकल जाता है। वहीं सोफिया के चेहरे पे मुस्कान आ जाती है। सोफिया खुद से बातें करने लगती है-“बदमाश कहीं का…” 

मेहमानों के जाने के बाद परिवार के सभी मेंबर हाल में बैठकर बातें कर रहे थे। जब जीशान उनके पास आकर बैठ जाता है। 

अमन-कैसे लगे तुम्हें खालिद जीशान बेटा? 

जीशान-“खालिद भाई बहुत सुलझे हुये लगे मुझे। काफी अच्छी पर्सनल्टी के मालिक हैं…” 

अमन-“ सही कहा, बहुत मेहनती लकड़ा है खालिद…” 

रज़िया-“ऊपर वाले का शुकर है, जो घर बैठे इतना अच्छा रिश्ता मिल गया। अब तो बस लुबु और नग़मा की फिकर है…” 

लुबना बुरा सा मुँह बनाकर अपनी दादी की तरफ देखने लगती है-“मेरी फिकर करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मुझे नहीं करने शादी वादी …” 

रज़िया-“बस कर बेटी , शादी तो हर लड़की को करनी ही पड़ती है…” 

जीशान-“अरे दादी , रहने दो ना क्यों किसी बेचारे की किस्मत खराब करने पे तुले हुई हो आप…” 

सभी हँसने लगते हैं। 

लुबना जीशान के कंधे पे मुक्का मार देती है-“कुछ कर नहीं सकते तो अपना मुँह तो मत खोल…” वो इतनी धीमी आवाज़ में बोली थी कि सिर्फ़ जीशान ही सुन पाया था और सुनकर वो लुबना को घुरने लगता है। 

अनुम-“आज तो बहुत थक गई भाई मैं तो। थोड़ा आराम कर लेती हूँ …” और अनुम उठकर अपने रूम में चली जाती है। 

शीबा की नजरें जीशान पे टिकी हुई थीं। मगर जीशान था कि शीबा की तरफ देखने को भी तैयार नहीं था। आखिरकार शीबा का मूड आफ हो जाता है और वो नग़मा को अपने पैर दबाने के लिए कहकर उसे अपने रूम में ले जाती है। 

अमन और लुबना आपस में बातें करने लगते हैं और इधर रज़िया और जीशान की आँखें चार हो जाती हैं। रज़िया को अपने पोते से आँखें मिलाने में पहली बार शर्म महसूस हो रही थी। मगर जीशान बेशर्म की तरह एकटक रज़िया के चेहरे को, उसके चुची को देख रहा था। जीशान खुद हैरान था अपनी इस हालत पे मगर कहीं ना कहीं उसे इस सब में बहुत मजा आ रहा था। 

रज़िया-“जीशान बेटा, तुम भी आराम कर लो अपने रूम में जाकर…” 

जीशान-दादी मुझे भूक लगी है। 

रज़िया-“तूने अभी तक खाना नहीं खाया क्या?” 

जीशान-“खाया ना दादी , मगर दिल मिचला रहा है सोचता हूँ थोड़ा दूध पी लूँ…” 

रज़िया का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है। 20 साल पहले अमन जब उससे इस तरह की बातें किया करता था उस वक्त रज़िया की जो हालत हुआ करती थी, आज भी वही वो महसूस कर रही थी। रज़िया के लिए वहाँ एक पल भी रुकना मोहाल था। वो उठकर अपने रूम में चली जाती है। 

अमन-“जीशान भूक लगी है तो थोड़ा बहुत खा लो…” 

लुबना-“गले तक ठूँसेंगे तो जी तो मिचलाएगा हिना…” 

जीशान-“गले तक तू खाती होगी मोटी भैंस…” 

लुबना-“अब्बू देखो ना… भाई मुझे कालेज में भी मेरी दोस्तों के सामने भैंस बुलाते हैं…” 
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05-19-2019, 01:41 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान की आँखें फटी की फटी रही जाती है। लुबना ने फुल बाउन्सर मारी थी, एक सोचा समझा सफेद झूठ। 

अमन-“ये क्या हरकत है जीशान, मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं है… अपनी बहन का ख्याल रखने के बजाए तुम उसे गलत नाम से बुलाते हो… वो भी उसके दोस्तों के सामने। आइन्दा ऐसी कोई बात मेरे कानों तक नहीं आनी चाहिए जीशान…”

जीशान- सॉरी अब्बू । 

अमन उठकर चला जाता है 

और लुबना जीशान के कंधे पे सर रख कर झूठ मूठ का रोने की एक्टिंग करने लगती है। 

जीशान-“दूर हट कम्बख़्त कहीं की। अब तू झूठ भी बोलने लगी है ना… आज के बाद मैं तुझसे कभी बात नहीं करूँगा…” 

लुबना अपना एक हाथ उसके लबों पे रख देती है-“चाहे तो जान ले लो, मगर बात बंद करने की बात मत करना मुझसे…” 

जीशान उसका हाथ झटक देता है। और उठकर अपने रूम में जाने लगता है। उसका चेहरा सीरियस था। 

लुबना का दिल तड़प उठता है। वो भागती हुई जीशान से पहले उसके रूम में पहुँच जाती है। और जैसे ही जीशान रूम में पहुँचता है वो उसके सामने घुटनों पर बैठकर अपने दोनों कान पकड़ लेती है-“ सॉरी भाई, मुझे माफ कर दो, आइन्दा ऐसी गलती नहीं करूँगी…” 

जीशान-“मुझे तेरी सूरत भी नहीं देखनी। लुबना निकल जा अभी के अभी यहाँ से…” 

लुबना की आँखों में बादल उमड़ आते हैं वो भी काले घने… जो बस किसी भी पल मूसलाधार बारिश कर सकते थे। 

शायद जीशान ने वो देख लिया था। वो लुबना को खड़ी रहने के लिए कहता है। 
लुबना खुश होकर कि चलो जीशान ने उसे माफ कर दिया, सोचकर खड़ी हो जाती है। 

जीशान-“एक शर्त पे माफ करूँगा। अगर तुम 25 बार उठक बैठक करोगी और हर बार अपने दोनों गालों पे चपत मारके ये बोलोगी मुझे माफ कर दो…” 

लुबना का मुँह खुला का खुला रह जाता है-“इतनी बड़े शर्त… ये शर्त है या सजा है?” 

जीशान-“5 गिनने तक अगर तुम शुरू नहीं हुई तो मुझसे बुरा कोई नहीं -एक-दो-तीन-चार-

लुबना-“आपसे बुरा भला कोई हो भी नहीं सकता भाई। और वो शुरू हो जाती है। और हर बार जैसा जीशान ने उसे कहने के लिए कहा था वैसे ही करने लगती है। 

वो 10 तक ही पहुँची थी कि वहाँ सोफिया और नग़मा भी आ धमकते हैं। उन्हें देख लुबना बुरी तरह शरमा जाती है। तीनो बुरी तरह हँसने लगते हैं। 

मगर लुबना उठक बैठक बंद नहीं करती ये सोचते हुई की अगर जीशान ने उससे सच में बात बंद कर दिया तो? 
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रात के खाने के बाद सभी अपने-अपने कमरे में चले जाते हैं। अनुम रज़िया के साथ उसके रूम में सोने चले जाते हैं। आज अनुम ने बहुत काम किया था। इसलिए वो बहुत थक चुकी थी। 

अमन अपने नई नवेली दुल्हन बिटिया के रूम में सोने चला जाता है। सोफिया उसी का इंतजार कर रही थी। 
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शीबा एक घायल शेरनी की तरह अपने आख़िरी वार का इंतजार कर रही थी। 
उसके सबर का पैमाना किसी भी वक्त छलक सकता था। एक तरफ अमन उससे दूर -दूर रहने लगा था, दूसरी तरफ उसे जिस जीशान पे भरोसा था, वही बेमुरब्बत निकला था। 

जीशान को अपने रूम में नींद नहीं … बार-बार उसके आँखें बंद करते ही उसे रज़िया का चेहरा नजर आता था। वो उठकर बैठ जाता है और अपने दादी के रूम को खटखटाता है। 

रज़िया दरवाजा खोलती है और सामने जीशान को देखकर हैरान रह जाती है। 

जीशान-दादी मुझे नींद नहीं आ रही थी, सर भी दर्द कर रहा है तो क्या मैं यहाँ आपके रूम में सो सकता हूँ ? 

रज़िया-आओ अंदर आओ। अनुम अभी-अभी लेटी है…” एक किंग साइज बेड पे एक तरफ अनुम, बीच में रज़िया और उसके पास में जीशान लेट जाते हैं। रज़िया अपने नाजुक हाथों से जीशान का सर दबाने लगती है। 
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05-19-2019, 01:41 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सोफिया अपने अब्बू को देखते ही उनसे चिपक जाती है। 

अमन-“कैसे है मेरी शहज़ादी ?” 

सोफिया-“खुद देख लीजिये कैसे हूँ ? आपने तो मुझे घर से निकालने का पूरा इंतज़ाम कर ही दिया ना…” 

अमन-“घर से निकालने का नहीं गुड्डो, घर बसाने का… वो भी मेरे साथ…” 

सोफिया-“आप मुझे भूल तो नहीं जाएँगे ना अमन…” 

अमन-“बिल्कुल नहीं , वैसे आज तू बहुत बातें कर रही है …” 

सोफिया-“मुँह बंद कर दो मेरा…” 

अमन अपनी पैंट नीचे गिरा देता है और देखते ही देखते सोफिया भी कपड़ों से आजाद हो जाती है। अमन उसे बेड पे लेटाकर अपना लण्ड जैसे ही उसके मुँह में डालता है, हवस के मारे सोफिया उसे पूरा का पूरा मुँह में गटक जाती है। अमन का लण्ड बहुत कम इतने अंदर तक गया था। रज़िया कभी कभार उसे इतने अंदर ले पाती थी। मगर कुछ ही दिनों में ये लड़की अपनी अम्मी और वाला से हर मामले में आगे निकलती जा रही थी और इसी वजह से वो अमन के दिल पे बहुत तेजी से चढ़ती भी जा रही थी। 

थोड़े देर में ही अमन का लण्ड खड़ा हो जाता है। वो सोफिया को लेटाकर उसकी गुलाबी चूत की पंखुड़ियाँ चूमने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोफिया-“अह्ह… अमन अह्ह… मेरे शौहर आपने मुझे क़ुबूल कर लिया… मैंने आपको क़ुबूल कर लिया। मुझे आपसे एक तोहफा चाहिए अह्ह…” 

अमन सोफिया के ऊपर चढ़ जाता है और अपने लण्ड को उसकी चूत पे घिसने लगता है-“क्या चाहिए तुझे सोफिया बोल?” 

सोफिया-“मुझे हमारे प्यार की निशानी दे दो अमन। मुझे अपनी बेटी से अपने बच्चे की अम्मी बना दो। अपने शौहर के बजाए मैं आपसे अपना पहला बच्चा चाहती हूँ । मेरी कोख भर दो अमन। मुझे प्रेगनेंट कर दो…” 


अमन अपने लण्ड को किसी तलवार की तरह एक ही बार में सोफिया की चूत की गहराईयों में उतार देता है-“अह्ह… तुझे मैं इतना चोदुन्गा कि तू मुझसे प्रेग्नेंट हो जायेगी। बस एक बार शादी की तारीख फ़िक्स होने दे सोफिया। तुझे मैं ही ये तोहफा दे दूँगा अह्ह…” 

अमन अपने वादे का पक्का था ये बात घर में हर कोई जानता था। 
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सर दबाते-दबाते रज़िया को नींद आ जाती है। मगर जीशान नहीं सो पाता। वो धीरे से अपना एक हाथ अपने दादी की कमर पे रख देता है। जीरो लाइट की रोशनी में रज़िया का चेहरा गुलाब की तरह चमक रहा था अनुम दूसरी तरफ करवट लेकर सोई हुई थी। और रज़िया का चेहरा जीशान की तरफ था। रज़िया ने एक नाइटी पहने हुई थी अंदर ब्रा थी। 

जीशान अपने होंठ रज़िया की चुची पे रख देता है और ब्रा के ऊपर से ही उसे चूमने चूसने और काटने लगता है। रज़िया कुछ ही देर में अपने चुची पे किसी के होंठ महसूस करके उठ जाती है और जीशान को ऐसा करता देखकर पहले तो डर जाती है। रज़िया जीशान का मुँह अपनी चुची पे से हटा देती है और उसका मुँह दबाकर दाँत पीसती हुई धीमी आवाज़ में उसे कहती है-आइन्दा ऐसी हरकत मत करना। 

जीशान रज़िया की चुचियों को अपने हाथ के मजबूत पींजे में भर लेता है-“नहीं तो क्या करेंगी आप दादी ?” 

रज़िया जीशान की हिम्मत देखकर हैरान थी। कुछ पलों के लिए वो भूल गई थी कि जीशान किसका खून है। वो अपनी करवट दूसरे तरफ कर लेती है। उस वक्त जीशान से बात करना बेकार था। 

जीशान थोड़ी देर इंतजार करता है और फिर पूरी ताकत से बिना आवाज़ किए रज़िया को वापस अपनी तरफ घुमा लेता है। 

रज़िया-“क्या है, क्या चाहिए तुझे?” 

जीशान-“दूध पीना है, भूक लगी है…” 

रज़िया एक चपत जीशान के गाल पे मार देती है-और चाहिए? 

जीशान एक बार और जोर से रज़िया की चुची मरोड़ देता है-हाँ और चाहिए। 

रज़िया समझ जाती है की इसे समझाया नहीं जा सकता। वो अपनी नाइटी के ऊपर के दोनों बटन खोल देती है, और दोनों चुचियों को बाहर निकालकर एक करवट लेट जाती है-“ले पी मनहूस कहीं का… कभी नहीं सुधरेगा…” 

जीशान अपना मुँह रज़िया के एक निप्पल पे लगाकर दूध के नाम पर चुची को मसलने लगता है। रज़िया अपने होश में रहने की पूरी कोशिश करती है। मगर जिस अंदाज में जीशान उसकी निपल्स को काट-काट के चूसरहा था, उसका संभालना बहुत मुश्किल था। रज़िया को जब महसूस होता है कि अब वो बर्दाश्त नहीं कर पायेगी वो जीशान के मुँह में से निप्पल को खींच लेती है। और जल्दी से दूसरी तरफ करवट मार लेती है। 

इससे पहले कि जीशान कुछ कर पाता, वो जीशान को धमका देती है-अनुम के नाम से। 

अनुम का नाम सुनते ही जीशान भीगी बिल्ली के तरह चुपचाप सो जाता है। 
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सुबह 7:00 बजे-अनुम जब नींद से जागती है तो रज़िया के पास में जीशान को देखकर हैरान हो जाती है। थकान की वजह से अनुम आज लेट उठी थी। जीशान गहरी नींद में सोया हुआ था उसका एक पैर रज़िया के पैर पे था और घुटना रज़िया की जाँघ में घुसा हुआ था। 

रज़िया की नाइटी के बटन खुले हुये थे। ये सब अनुम को अजीब लगता है वो रज़िया को धीरे से जगा देती है। रज़िया आँखें खोलकर जब जीशान को अपने पास इस तरह लेटा हुआ देखती है तो फौरन खुद के कपड़े ठीक करती है। 

अनुम-“अम्मी जीशान यहाँ कब आया था?” 

रज़िया मुश्कुराते हुये-“ये पगला रात में आया था। तू सो गई थी। मुझसे बोला दादी मुझे नींद नहीं आ रही है और सर भी दर्द कर रहा है। कुछ देर इसका सर दबाने के बाद पता नहीं मुझे कब नींद लग गई। 


अनुम-“ओह्ह… अच्छा मैं फ्रेश हो जाती हूँ …” और अनुम अपने रूम में फ्रेश होने चली जाती है। 

रज़िया जब जीशान के चेहरे की तरफ देखती है तो उसे उसके भोले से चेहरे में अमन की झलक नजर आती है। उसके जजबात उसे कमजोर कर रहे थे। उसकी मोहब्बत जिसका वो दावा करती थी कि सिर्फ़ अमन के लिए है कम होती जा रही थी। 

एक दादी की मोहब्बत अपने पोते के लिए सिर्फ़ पोते तक ही रहते तो ठीक था। मगर ये अमन के जर्खीज जमीन में जिसमें अमन ने तकरीबन हर रोज हल चलाया था और बीज बोया था, आज उस जमीन में हलचल सी होने लगी थी। वो दिल जो सिर्फ़ अमन के लिए धड़कता था। आज क्यों जीशान को देखने के बाद उस नाजुक दिल में फिर से 20 साल पहले वाले जज़्बात अंगड़ाइयाँ लेने लगे थे। उसकी मनमौजी हरकतों पे नाराज होने के बजाए उस नामुराद दिल को उन हरकतों पे प्यार क्यों आने लगा था? यही सारे सवालात रज़िया को परेशान करने लगे थे। 
और कहीं ना कहीं इन सवालों के जवाब रज़िया बखूबी जानती भी थी। मगर वो अपनी मोहब्बत और अमन की बेरुख़ी की इंतिहा देखना चाहती थी। रज़िया जीशान की पेशानी को अपने लबों से तर करके बाथरूम में चली जाती है। 


जीशान आँखें खोल देता है और उसके लबों पे एक दिलफरेब मुस्कान फैल जाती है। 
नाश्ते के टेबल पर आज पूरा परिवार साथ बैठकर नाश्ता कर रहा था। कई दिनों से अंधेरे को अपना आशियाना बनाने वाली सोफिया ने भी सूरज की पहली किरण की हँसते हुये खुशामदीद की थी। अपने अब्बू के बगल की चेयर पे बैठी सोफिया का हुश्न आज अपनी चमक से अमन विला में एक अलग ही रोशनी बिखेर रहा था। 

नाश्ता करते-करते कई बार जीशान और सोफिया की नजरें टकरा जाती और हर बार दोनों के दिल कुछ और रफ़्तार से धड़कने लगते। 

अमन-“अरे जीशान बेटा, जरा अपने आंटी फ़िज़ा को फोन लगाना तो…” 

जीशान फ़िज़ा को काल करता है और बेल बजने के बाद फोन अमन को दे देता है। 

अमन-“वालेकुम अस्सलाम…” 

अमन के हेलो कहने के बाद उसकी आवाज़ पहचानकर फ़िज़ा सलाम करती है-“आज हम ग़रीबों की कैसे याद आ गई जनाब को?” 

अमन हँसते हुये-“वो आपको और आपके परिवार को इन्वाइट करने के लिए काल किया था। सोफिया की इंगेजमेंट तय हो गई है तो आप जल्दी से जल्दी यहाँ आ जाए। 

फ़िज़ा-कहाँ? किससे? 

अमन-“यहाँ आएँ तो सही पहले, सार बातें आराम से करेंगे। अच्छा खुदा हाफिज़…” 
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05-19-2019, 01:41 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
फ़िज़ा अमन की चाची रेहाना की बेटी थी। जो शादी के बाद बहुत कम अमन विला में आती थी। 

अमन कुछ देर बाद अपने ऑफिस चला जाता है। आज वो रज़िया, अनुम या शीबा से मिलकर दुआ सलाम करके नहीं , बल्की सोफिया के लबों को गीला करके उसके रूम से सीधा ऑफिस के लिए निकला था। 

जीशान और लुबना भी अपने कालेज के लिए निकल जाते हैं। लुबना जीशान की बाइक पे बैठ जाती है और उसे पीछे से कस के पकड़ लेती है। 

जीशान-“अरे मोटी भैंस, अभी बाइक स्टार्ट भी नहीं किया मैंने और तू सींग मारने लगी। दूर हट…” 

लुबना-“भाई मैंने रात में ना एक बहुत खौफनाक ख्वाब देखा उसमें ना मैं आपके बाइक से नीचे गिर गई थी। मुझे तबसे बहुत डर लग रहा है। मैं तो ऐसे ही बैठूँगी…” 

जीशान-“तो तू ट्रक के नीचे गिरी थी या टैंकर के? 

लुबना जीशान के कंधे पे मुक्का जड़ देती है-“ मरे मेरे दुश्मन भाई…” 
जीशान मुँह ही मुँह में बड़बड़ाता हुआ बाइक कालेज की तरफ रवाना कर देता है। 
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अनुम रज़िया के पास हाल में बैठी हुई थी-“अम्मी, अपने देखा ना आज क्या हुआ?” 

रज़िया-क्या हुआ अनुम? 

अनुम-“बनिये मत अम्मी, आपको सब पता है कि अमन क्या कर रहे हैं आजकल…” 

रज़िया-“जब तू जानती है कि मुझे भी पता है तो पूछ क्यों रही है? हाँ देख रही हूँ सब मैं। 

अनुम-“अमन ऐसा कैसे कर सकते हैं अम्मी? 

रज़िया-“बेटी , ये मर्द भी उस चिड़िया की तरह होते हैं, जहाँ भी शख्स-ए-गुल दिखे झूला डाल देते हैं…” 

अनुम-“अम्मी अगर अमन ने मेरा भरोसा तोड़ा ना तो सुन लीजिये … या तो वो रहेंगे इस दुनियाँ में या मैं…” 

रज़िया अनुम को अपने रूम में जाता देखती रह जाती है और दिल ही दिल में सोचने लगती है-“मैं तो हमेशा दुआ करूँगी बेटी कि तेरा अमन, तुझे रुसवा ना होने दे…” 

कालेज में रूबी जीशान के साथ एक बेंच पे बैठी अपना हाथ उसके बगल में दबाए बातें कर रही थी। 

रूबी-आप घर कब आने वाले हैं? 

जीशान-“हाहाहाहा… क्यों, तेरी अम्मी ने बुलाया है क्या?” 

रूबी शरमा जाती है-“नहीं , मुझे तुम्हारी याद नहीं आ सकती क्या?” 

जीशान-“अब इतने पास बैठी है, बातें कर रही है, गोद में बैठेगी मेरे?” 

रूबी-नहीं आपके ऊपर। 

लुबना-“क्या ऊपर-नीचे हो रहा है रूबी?” 

अपने पीछे खड़ी लुबना की आवाज़ सुनकर रूबी बुरी तरह डर जाती है और झट से जीशान से अलग हो जाती है-“वो लुबना बाजी, मैं तो ऊपर के फ्लोर पे जो लाइब्रेरी है, वहाँ चलकर पढ़ने की बात कर रही थी…” 

लुबना-“जितना ऊपर जाएगी ना रूबी, गिरने पे उतनी ही गहरी चोट लगेगी। जरा संभाल के। चल अब निकल ले, मुझे भाई से बात करनी है…” 

रूबी जीशान को खुदा हाफिज़ करके वहाँ से चली जाती है। 

जीशान-“बेशर्म तो तू थी ही , अब बदतमीज भी बन गई…” 

लुबना अपने बड़े भाई जीशान की गर्दन पे अपने अंगूठे का नाखून जो उसने काफी हद तक बढ़ा लिया था, रख देती है-“गले में उतार दूँगी ये नाखून , भाई बोल देती हूँ … ज्यादा चिपको मत इस छिपकली से वरना आपके नाम का वारंट अब्बू के पास पहुँच जाएगा…” 

जीशान लुबना के बाल खींचकर उसका सर अपनी गोद में गिरा देता है-“एनफ्फफ इज एनफ्फफ… लुबना, आइन्दा मेरे और मेरे पर्सनल मामलों के बीच में अपनी ये नाक अड़ाई ना तो बहुत बुरा होगा, बोल देता हूँ …” 

लुबना-“अपनी ये धमकियाँ अपने पास रखना मिस्टर जीशान ख़ान … और एक औरत पे जुल्म करने से तुम्हारी मर्दानगी साबित नहीं हो जाएगी। मर्द वो होता है जो औरत की हिफ़ाजत में अपने जान दे दे। छोड़ो मेरे बाल…” 

जीशान वहाँ से उठकर अपनी क्लास में चला जाता है। 

इस तरह हर बार लुबना का बीच में आकर टाँग अड़ाना जीशान को बहुत टॉर्चर करने लगा था। वो उकता गया था लुबना की इन हरकतों से। मगर वो उसे मार भी नहीं सकता था। उसके दिल के एक कोने में वो भी कायम पज़ीर थी। दोपहर के खाने तक जीशान और लुबना कालेज से घर आ चुके थे। वो बस खाना खाने के लिए बैठ ही रहे थे कि फ़िज़ा घर में दाखिल होती है। 
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05-19-2019, 01:42 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
***** *****फ़िज़ा-उम्र 39 साल गोरा जिस्म, उभरी हुई गाण्ड, गोल सुडौल चुचियाँ , लाल गुल्लाबी गाल और चमकते हुये होंठ वाली फ़िज़ा अपनी उमर से बहुत कम नजर आती थी। इसके पीछे किसका हाथ था ये तो उस वक्त फ़िज़ा ही बेहतर जानती थी। फ़िज़ा के साथ उसका बेटा कामरान भी आया हुआ था। 

***** *****कामरान-एक 20 साल का हट्टा-कट्टा गबरू जवान था जिस्म के लिहाज से देखा जाए तो उसकी बाडी अमन और जीशान से बहुत मिलती जुलती थी। आँखों में वही चमक जो अमन और जीशान के दिखाई देती थी। 

फ़िज़ा और कामरान सभी से मिलते हैं। मगर जब फ़िज़ा की नजर जीशान पर और कामरान की निगाह नग़मा पर पड़ती है तो दोनों की पलकें झपकना बंद हो जाती हैं। 

फ़िज़ा-जीशान बेटा, अपने फुफो से नहीं मिले गा? 

जीशान आगे बढ़कर फ़िज़ा को जैसे ही अपनी छाती से लगाता है, उसे ऐसा महसूस होता है जैसे कोई मखमल की चादर उसके जिस्म पे लिपटी हुई है। अचानक उसके हाथ फ़िज़ा की गाण्ड के थोड़ा ऊपर रुक जाते हैं वहाँ सबकी मौजूदगी को ध्यान में रखते हुये जीशान ने शायद ये कदम उठाया था। 

मगर फ़िज़ा को बहुत अच्छा लगा था अपना भतीजा। 

सोफिया, जीशान और लुबना कामरान से मिलते हैं। कामरान सोफिया को मुबारकबाद देता है। और सोफिया शर्म-ओ-हया का बखूबी मुजाहिरा करते हुये अपने रूम में चली जाती है। 

कामरान-कैसी हो नग़मा? 

नग़मा-मैं ठीक हूँ , आप कैसे हैं? 

कामरान और नग़मा बचपन से एक दूसरे से बहुत कम बातें करते थे। मगर एक कशिश उन दोनों के बीच हमेशा देखने को मिलती थी। 

नग़मा बहुत दिनों के बाद कामरान को देख रही थी। कामरान दूसरे शहर में पढ़ाई करता था। जब भी नग़मा फ़िज़ा के घर जाती, कामरान अपने होस्टल में होता। 
पिछले महीने ही वो अपनी ग्रेजुयेशन कम्पलीट करके घर वापस आया था। 

फ़िज़ा अनुम से बातें ही कर रही थी कि पीछे से अमन की आवाज़ सुनकर उसके होंठों पे लरज़िश आ जाती है। वो अमन को सलाम करती है और अमन फ़िज़ा को देखकर उसे अपने गले से लगा लेता है। अमन फ़िज़ा के साथ बातें करते-करते अपने रूम में चला जाता है। 

अमन-कैसी हो फ़िज़ा? 

फ़िज़ा-आपके बिना बिल्कुल ठीक नहीं हूँ । 

अमन-“कामरान तो बिल्कुल…” 

फ़िज़ा-“अपने अब्बू के जैसा दिख रहा है, यही ना? आपका खून है तो आपके जैसा ही देखेगा ना…” 

अमन-तुम्हारे शौहर नहीं आए? 

फ़िज़ा-“पिछले 3 महीनों से चेन्नई की खाक छान रहे हैं। वहाँ कोई प्रॉजेक्ट मिला है उन्हें…” 

अमन-“भाई इंजीनियर से शादी करने का एक नुकसान तो यही है…” 

फ़िज़ा-हाँ, आपने नहीं किया तो नुकसान तो झेलना ही पड़ेगा। 

शीबा उन दोनों के पास आकर खड़ी हो जाती है। 

अमन-“तुम दोनों बातें करो मैं अभी आता हूँ …” 

शीबा-“फ़िज़ा, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा तुझे देखकर। क्या नूर नजर आ रहा है तेरे चेहरे पे। क्या बात है? मैंने सुना है भाई साहब तो चेन्नई में है फिर ये तेज किसका है?” 

फ़िज़ा शीबा को अपनी छाती से चिपकाकर उसे अपनी सुडौल चुची का साइज बताने लगती है-“शौहर ना सही बेटा तो है मेरा…” 

शीबा का मुँह खुला का खुला रह जाता है-“कामरान्न्न्न…” 

फ़िज़ा उसके मुँह पे हाथ रख देती है। 

शीबा-ओह्ह। 

फ़िज़ा-धीरे, कोई सुन लेगा। 

शीबा को हँसी आ जाती है-“मतलब अब आप भी उसी रास्ते पे चल निकले हैं, जहाँ से शुरूआत की थी…” 

फ़िज़ा-“क्या करूँ शीबा? शौहर घर पे रहते नहीं , बाहर के किसी भी मर्द से मैं रिलेशन बनाना नहीं चाहती। अमन तो आप सब में खोए रहते हैं। इसलिए कामरान के साथ…” वो बोलते-बोलते चुप हो गई। 

शीबा उसका झुका हुआ चेहरा अपने हाथ से उठाकर उसकी पेशानी चूम लेती है-“मैं जानती हूँ बिना मर्द के औरत की क्या हालत होती है? मगर कामरान राजी कैसे हुआ?” 

फ़िज़ा इतराते हुये-“अमन की औलाद है ना… जहाँ औरत देखी नहीं कि चढ़ना चाहता है। जरा अपनी जवानी की नुमाइश की उसके सामने तो पीछे-पीछे दुम हिलाता हुआ बेडरूम तक चला आया…” 

शीबा-“बिस्तर में कैसा है कामरान?” 

फ़िज़ा-“अपने अब्बू जैसा एकदम मस्त। रात भर सोने नहीं देता कमीना…” 

शीबा-“हाई रे किस्मत… और एक मैं हूँ , शौहर को भी दूसरी औरतों के साथ बाँटना पड़ता है…” 

फ़िज़ा-“अपनी-अपनी किस्मत है। वैसे जीशान भी तो जवान है…” 

शीबा-“क्या बताऊँ बाजी… वो भी कमीना निकला। सोची थी काम आएगा, मगर दो-तीन बार के बाद ऐसा बदला कि देखता भी नहीं …” 

फ़िज़ा-तो क्या जीशान के साथ तुम भी? 

शीबा-“हाँ, क्या करती? अमन तो अपनी अम्मी और बहन के साथ सोते हैं। कभी-कभी आते हैं बेडरूम में। कब तक अपने हाथ को तकलीफ़ देती? एक दिन खींच लिया जीशान को अपने ऊपर…” 

फ़िज़ा-एक बात कहूँ शीबा? 

शीबा-ह्म्म्म्म। 

फ़िज़ा-“मुझे ना नग़मा बहुत पसंद है। कामरान के लिए लड़की की जब भी बात निकलती है, मुझे तेरी बेटी याद आती है। अगर वो मेरे घर की बहू बन जाए तो मुझे बहुत खुशी होगी…” 
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05-19-2019, 01:43 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
शीबा फ़िज़ा को गले लगा लेती है-“सच बाजी, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा कि आप कामरान के लिए नग़मा का हाथ माँग रही हैं…” 

फ़िज़ा-“हाँ… मगर बदले में मुझे रिश्वत लगेगी…” 

शीबा-“रिश्वत… बोलिए क्या चाहिए? मैं अपनी बेटी की खुशी के लिए कुछ भी देने को तैयार हूँ …” 

फ़िज़ा-जीशान मुझे चाहिए। 

शीबा के चेहरे पे मुस्कान फैल जाती है-“अच्छा… तो बूढ़ी चूत को भी जवान लण्ड का चस्का लग ही गया। मिल जाएगा, मगर मैं उससे बात नहीं करूँगी। ये काम आपको करना होगा। हाँ थोड़ा बहुत मदद मैं कर दूँगी …” 

फ़िज़ा-“तो ठीक है, जब जीशान मुझे मिले गा तभी कामरान और नग़मा की बात आगे बढ़ेगी…” 

दोनों चुदासी औरतों के बीच एक ऐसा समझोता हुआ था, जो आगे चलकर दोनों खानदान को फिर से एक करने वाला था। मगर दोनों इस बात से अंजान थीं कि इस सब में कितनी चूतें पिसेंगी। 

कामरान और नग़मा बालकनी में खड़े बातें कर रहे थे। 

कामरान-पेपर्स कैसे गये तुम्हारे? 

नग़मा-जी, बहुत अच्छे गये हैं। 

कामरान-चलो अच्छा है। आगे पढ़ने का इरादा है या नहीं ? 

नग़मा-मुझे नहीं पता, सब अम्मी और अब्बू डिसाइड करेंगे। 


वो ऐसे ही इधर-उधर की बातें कर रहे थे कि वहाँ शीबा आ जाती है-“कामरान बेटा, खाना तैयार है भूक लगी हो तो मैं खाना लगा दूँ …” 

कामरान-शीबा की गोल-गोल चुचियों को देखते हुये कहता है-“नहीं आंटी , अभी भूक नहीं है। लगेगी तो आपको बोल दूँगा…” 

शीबा दिल में सोचने लगती है-“इसे पटाने में फ़िज़ा को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी होगी। कमीना कैसे घूर रहा है। पक्का अपने अब्बू अमन पे गया है…” 

शीबा-“नग़मा, देख तो किचेन में क्या चल रहा है?” 

नग़मा किचेन में चली जाती है। 

कामरान आंटी , आप वक्त के साथ-साथ और खूबसूरत होती जा रही हैं। 
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