Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:43 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
शीबा के लाल लाल गाल और सुर्ख हो जाते हैं-थैंक्स बेटा। 

कामरान अपना हाथ का नाप बताइए? 

शीबा-क्यूँ ? 

कामरान बताइए ना? फिर कामरान शीबा का हाथ अपने हाथ में ले लेता है-“मेरा एक दोस्त है जुवैद उसकी चूड़ियों की दुकान है। अम्मी के लिए मैं उसी के पास से चूड़ियाँ लेता हूँ । आपके हाथ सुने-सुने दिखाई दिए तो सोचा क्यों ना आपको भी कुछ चूड़ियाँ दिला दूँ …” 

शीबा-“मेरे पास बहुत चूड़ियाँ है मगर पहनना भूल जाती हूँ …” 


कामरान शीबा के नाजुक हाथों को मसलने लगता है और उससे इधर-उधर की बातें करने लगता है। शीबा बातें तो कामरान से कर रही थी मगर उसके हाथों में पशीना आने लगा था। 

कामरान-आपके हाथ बहुत नाजुक है आंटी । 

शीबा-“ह्म्म्म्म… तो आपको अब बूढ़ी औरतें अच्छी लगने लगी हैं लगता है फ़िज़ा बाजी से बोलकर आपकी शादी की बात करनी पड़ेगी…” 

कामरान एक ऐसी हरकत करता है जिसके बारे में शीबा सोच भी नहीं सकती थी। वो शीबा का हाथ अपनी तरफ खींच लेता है जिससे शीबा कामरान से चिपक जाती है। 

शीबा-“अह्ह… बेटा क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा…” 

कामरान- आपने खुद को बूढ़ी क्यों कहा? इतनी खूबसूरत और जवान तो हो आप। एक बार देखो तो देखता रह जाये बंदा। 

शीबा का दिल जोर से धड़कने लगता है उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज था कामरान। वो अपना हाथ छुड़ाते हुये उसके पास से भाग जाती है। 

कामरान जब भी अपनी अम्मी फ़िज़ा को चोदता था। फ़िज़ा उसे सारी बातें बताती थी, कैसे उसे अमन ने सबसे पहले किया था, अमन विला के हर एक शख्स के बारे में फ़िज़ा कामरान को बता चुकी थी, और नग़मा के बारे में फ़िज़ा जो सोच रही थी बहू बनाने के बारे में, ये बात भी कामरान अच्छी तरह जानता था। एक शातिर मर्द की तरह कामरान इस नतीजे पे पहुँचा था कि अमन विला में एक ही ऐसी औरत है, जो बहुत जल्दी अपनी टाँगें खोल सकती है और वो है शीबा। 

क्योंकी फ़िज़ा की बातों से उसे अंदाज़ा हो चुका था कि रज़िया और अनुम दोनों अमन से कितनी मोहब्बत करती है और उन दोनों पे बुरी नजर डालना मतलब मुशीबत मोल लेना। 

शीबा अपने रूम में जाकर बेड पे बैठ जाती है। उसका जिस्म आज एक और मर्द के तरफ झुकने लगा था। उसका दिल उसे गुनाह करने के लिए मजबूर कर रहा था, मगर शायद अभी वो वक्त नहीं आया था। 

रज़िया के रूम में फ़िज़ा और अनुम तीनो औरतें बातें कर रह थीं, पास में जीशान भी बैठा हुआ था। 

रज़िया-बहुत अच्छा हुआ फ़िज़ा तुम आ गई, घर में बहुत रौनक सी हो गई है। तुम्हारी अम्मी के साथ वो हादसा नहीं हुआ होता तो आज वो भी हमारे साथ होती। 

फ़िज़ा-किस्मत के आगे किसकी चली है बड़ी अम्मी। 

जीशान उठकर सोफिया के रूम में चला जाता है। 

सोफिया अपने हाथों में मेहंदी लगा रही थी। लुबना और नग़मा किचेन में साफ सफाई का काम निपटाने में लगी हुई थीं। 

जीशान धड़ाम से सोफिया के बेड पे आकर बैठ जाता है-“छीः ये क्या गोबर लगा रही हो बाजी?” 

सोफिया-“बेवकूफ़ मेहंदी है ये। तू क्या कर रहा है यहाँ?” 

जीशान-“आपके गोबर लगे हाथों को देखने आया था…” 

सोफिया बुरी तरह चिढ़ जाती है-“देख फिर से इसे… कुछ उल्टा सीधा कहा ना तो मैं अब्बू को आवाज़ दूँगी …” 

जीशान सोफिया के कान के पास आकर धीरे से उसके कान में कहता है-“रात में अमन और दिन में अब्बू … बहुत गलत बात है बाजी…” 

सोफिया की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं-“ तू … तू कहना क्या चाहता है जीशान?” 

जीशान-“मैंने आपके रूम से वो आवाज़ सुनी थी, जब आप अब्बू को अमन कहकर सिसक रह थीं और भी बहुत कुछ सुना है मैंने। बस देखना बाकी रह गया था…” 

सोफिया से कुछ बोला नहीं जाता, वो अपना सर झुका लेती है। 

जीशान-“डरो मत बाजी… ये तो इस घर का दस्तूर रहा है। बेटा अपनी अम्मी के साथ, बेटी अपने अब्बू के साथ। मुझे अमन विला के सारे राज पता हैं और अब मुझे इन सब बातों की आदत सी हो गई है…” 

सोफिया- तू … तू जा यहाँ से। 

जीशान अपना एक हाथ सोफिया की चुची पे रख कर उसे जोर से मसल देता है। 

सोफिया-“उम्ह्ह… जीशान …” मेहंदी लगे हाथों से वो जीशान को कुछ कर भी नहीं सकती थी। उसे भी जीशान के हाथ अपनी चुची पे अच्छे लगे थे और वो अपनी आँखें बंद कर लेती है। 

जीशान-“अब्बू को तो सब कुछ दे चुकी हो, भाई का हक कब अदा करोगी?” 

सोफिया-“तेरा कोई हक नहीं मुझपे, कुछ नहीं दूँगी तुझे। ज्यादा फोर्स करेगा या ब्लैकमेल करेगा ना तो अब्बू को बता दूँगी …” बड़ी हिम्मत करके सोफिया ने जीशान से ये बात कही थी। 

जीशान-“अच्छा ये बात है…” और वो दोनों हाथों से सोफिया की चुची मसलने लगता है-“तुम्हें पता है ना… जब भी मुझे कोई चेलेंज करता है तो मेरे जिस्म में का खून डबल स्पीड से दौड़ने लगता है…” 

सोफिया- तू चला जा यहाँ से।
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05-19-2019, 01:43 PM,
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जीशान सोफिया का चेहरा अपनी तरफ करता है और उसकी बंद आँखों का फायेदा उठाकर उसके होंठों पे अपने होंठ रख देता है। थोड़ी देर चूमने के बाद वो उसके होंठों को आजाद कर देता है। 

जब सोफिया आँखें खोलकर देखती है तो जीशान वहाँ से जा चुका होता है। सोफिया के दिल में जीशान के लिए कुछ भी नहीं था। वो तो अमन से मोहब्बत का दावा करती थी। मगर क्या वो दावे सच थे? ये तो सिर्फ़ वक्त और हालात ही अच्छी तरह बता सकते थे। 

जीशान अपने रूम की तरफ जाने लगता है। तभी उसे लुबना और अनुम रूम में जाते दिखाई देते हैं। वो भी अनुम के रूम में घुस जाता है। 

अनुम-जीशान कुछ काम था? 

जीशान-क्यों, बिना काम के यहाँ आना मना है? 

लुबना-“जी हाँ… देख नहीं रहे दो औरतों बातें कर रही हैं। जाओ ना… अपने लफन्तु दोस्तों के साथ घूमने क्यों नहीं जाते?” 

जीशान-“तेरी जीभ बड़ी कैंची की तरह चलने लगी है, रुक जरा उसे काट के फेंक देता हूँ …” 

अनुम दोनों को डाँटती है-“जीशान, ये क्या शब्द इश्तेमाल करने लगे हो तुम लुबना के साथ? बहन है वो तुम्हारी , कुछ तो शर्म करो। घर में मेहमान हैं…” 

जीशान चुपचाप अनुम के पास बैठ जाता है-“आप इसे क्यों नहीं कहते?” 

अनुम-“उससे भी कहूँ गी और तुमसे भी कह रही हूँ कि दोनों प्यार मोहब्बत से रहो तो घर में सकून भी दिखाई देगा। जब देखो बिल्लियों की तरह लड़ते रहते हो…” 

लुबना-सारी भाई। 

जीशान लुबना को घुरने लगता है। 

अनुम-“अब वो सारी बोल रही है ना…” 

जीशान-“ठीक है, मगर अम्मी आपको ये जितनी भोली दिखाई देते है ना उतनी है नहीं …” 

लुबना-“अम्मी… तुमने अम्मी कहा अभी?” 

अनुम के चेहरे पे मुश्कान आ जाती है। जीशान अनुम को पहले अम्मी नहीं फुफो कहता था। 

जीशान-“हाँ अम्मी कहा मैंने। अब फुफो अम्मी जैसा ख्याल रखती हैं तो अम्मी ही कहूँ गा ना?” 


लुबना-“फिर तो मैं भी फुफो को अम्मी कहूँ गी आज से। क्यों फुफु आपको कोई ऐतराज तो नहीं है ना?” 

अनुम की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो उन्हें छुपाने के लिए दोनों को अपने सीने से लगा लेती है। जहाँ अनुम बहुत खुश थी अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाकर, वहीं जीशान भी अपनी अम्मी के इतने करीब महसूस करके पिघलने लगता है। 

जब दोनों अनुम से अलग होते हैं, उसी वक्त नग़मा लुबना को आवाज़ देती है और लुबना बाहर चली जाती है। 

अनुम-ऐसे क्या देख रहा है? 

जीशान-अम्मी आपके आँखों में आँसू ? 

अनुम-ये खुशी के आँसू है जीशान । 

जीशान-“अम्मी…” वो जज़्बात में अनुम को फिर से अपनी छाती से चिपका लेता है। मगर इस बार वो कुछ ज्यादा ही कसके अनुम से गले मिलता है। जिससे अनुम की दोनों चुचियाँ जीशान की छाती से चिपक जाती हैं। 

अनुम-“अह्ह…” 

जीशान-बहुत सकून मिलता है मुझे आपके पास अम्मी। 

अनुम-“हुींन्नने्…” 

जीशान अपने हाथों को अनुम की पीठ पे घुमाने लगता है। 
और उसकी नीयत को पहचान के अनुम उसे अपने से अलग कर देती है। अनुम उसे घुरने लगती है। उसकी आँखें साफ-साफ जीशान को वार्निग दे रही थी। 

मगर जीशान भी वो सख्श की औलाद था जिसने डरना तो जैसे सीखा ही नहीं था। 

रात के खाने के बाद सभी कमरे में सोने चले जाते हैं। शीबा के साथ उसके रूम में फ़िज़ा और कामरान सोए हुये थे। वही लुबना और नग़मा भी अपने-अपने कमरे में सोने चले जाते हैं। 

अमन सभी की नजरें बचाकर सोफिया के रूम में चला जाता है। 

जीशान हाल में बैठा टीवी देख रहा था तभी उसे रज़िया आवाज़ देती है-“जीशान, आज सर दर्द नहीं कर रहा है क्या?” 

जीशान खुश होकर रज़िया की तरफ देखता है-“हाँ, हो रहा है ना…” 

रज़िया-चल तेरा सर दबा देती हूँ । 

जीशान रज़िया के पीछे-पीछे उसके रूम में चला जाता है। अनुम बेड पे बैठी सोने की तैयार कर रही थी। जीशान को रज़िया के पीछे आता देखकर वो थोड़ा हैरत में पड़ जाती है। 

रज़िया अनुम की आँखों में उठते सवाल जा जवाब जीशान से पहले दे देती है-“अरे ये जीशान भी ना… पता नहीं रोज सर दुखा रहा है…” 

अनुम-जीशान सर दर्द कर रहा है तुम्हारा? 

जीशान-हाँ अम्मी। 

अनुम-“इधर आ जा मेरे पास…” अनुम थोड़ा साइड में खिसक के जीशान को अपने पास बुला लेती है। जीशान अनुम की गोद में अपना सर रख देता है। अनुम पूछती है-“कुछ सोच रहा है क्या तू जिससे सर दर्द कर रहा है?” 

जीशान-“नहीं तो, ऐसी तो कोई बात नहीं है…” 

रज़िया भी बेड पे लेट जाती है और अनुम जीशान का सर दबाने लगती है। रज़िया की नजरें आज जीशान के जिस्म पे घूम रही थीं। सर से लेकर पाँव तक वो जीशान को गौर से देखने लगती है, और दिल ही दिल में सोचने लगती है-“बिल्कुल अपने अब्बू की तरह दिखता है जीशान । अगर अपने अब्बू की तरह देखता है तो आदतें भी… मतलब वो सब करने का तरीका भी अमन की तरह ही होगा जीशान का…” 
रज़िया बे-ख्याल में जीशान से पूछ बैठती है-“है ना जीशान ?” 

अनुम और जीशान रज़िया की तरफ देखने लगते हैं 

जीशान-क्या दादी ? 

रज़िया-“ना नहीं कुछ नहीं । मैं कह रही थी कि पढ़ाई की टेंशन से सर दर्द कर रहा होगा बच्चे का…” 

जीशान-दादी , मैं बच्चा नहीं हूँ । 

अनुम और रज़िया दोनों एक दूसरे को देखकर हँसने लगती हैं 

रज़िया-“उफफ्फ़ हो… जीशान बेटा, हमारी नजर में तो तुम अभी बच्चे ह हो ना…” 

जीशान रज़िया की चुची को देखने लगता है। 

रज़िया जीशान की आँखों की तपिश अपनी चुची पे महसूस करके सिहर उठती है। 

जीशान-बस अम्मी, मैं सो जाता हूँ । 

अनुम-ठीक है, तू यहाँ बीच में सो जा। 

जीशान-“नहीं , मैं दादी के पास सोऊूँगा। मुझे नींद में हाथ पैर चलाने की आदत है। आप दोनों को लग गई तो?” 

रज़िया-इधर आ जा मेरे लाल। 

और जीशान अपनी दादी के साइड में आकर लेट जाता है। जीशान उठकर रूम की लाइट बंद कर देता है। पूरे रूम में अंधेरा हो जाता है। 

अनुम-लाइट क्यों बंद कर दिया जीशान? 

जीशान-अम्मी, लाइट आँखों पे आने से और सर दर्द करता है। 

रज़िया-अब सो भी बच्चे। 

जीशान मुस्कुराता हुआ रज़िया के पास आकर बिल्कुल उससे चिपक के लेट जाता है। 
रज़िया भी उसे अपने पास इस तरह चिपक के सोने से मना नहीं करती, बल्की उसके घने बालों में उंगलियाँ फेरने लगती है। 
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उधर शीबा के रूम में-कामरान, फ़िज़ा और शीबा तीनों थोड़े-थोड़े फासले से सोये हुये थे। शीबा के हल्के-हल्के खर्राटे बता रहे थे कि वो गहरी नींद में सो चुकी है फ़िज़ा भी नींद की आगोश में जाने लगती है मगर उसे कामरान वापस उस ख्वाबों की दुनियाँ से हकीकत की दुनियाँ में खींच लाता है, अपना हाथ फ़िज़ा की चुची पे रख कर। 

फ़िज़ा आँखें खोलकर कामरान को देखती है और गर्दन हिलाकर उसे और कुछ करने से मना करती है। मगर कामरान के दिमाग़ में तो उस वक्त कुछ और ही चल रहा था। वो अपने हाथ को घुमाता हुआ फ़िज़ा के चूतड़ों पे रख देता है, और फ़िज़ा के मखमली चूतड़ों को मसलने लगता है। 

फ़िज़ा अपने बेटे के हाथों को अपने चूतड़ों पे घूमता देखकर पहले उसके हाथों को झटक देती है। मगर इरादे के पक्के कामरान को उस वक्त कोई नहीं रोक सकता था। 
कामरान फ़िज़ा की गर्दन खींचकर उसके होंठों को अपने करीब करता है। 

फ़िज़ा बिल्कुल धीमी आवाज़ में उससे कहती है-“शीबा जाग जाएगी कामरान बेटा…” 

कामरान-“मुझे अभी चाहिए…” और ये कहते हुये कामरान अपने होंठों को अपनी अम्मी फ़िज़ा के होंठों से मिला देता है। उसके दोनों हाथ बराबर फ़िज़ा के जिस्म के नाजुक हिस्सों को मसल रहे थे जिसकी वजह से आखिरकार फ़िज़ा अपनी आँखें बंद कर देती है और जो होगा देखा जाएगा सोचकर कामरान से थोड़ा और चिपक जाती है। दोनों माँ-बेटे अपनी जीभ को लड़ाने में लग जाते हैं। 
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05-19-2019, 01:43 PM,
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रूम में चारो तरफ हल्की-हल्की जीरो लाइट की रोशनी बिखरी हुई थी। कामरान फ़िज़ा की नाइटी उसके जिस्म से निकाल देता है, और उसकी पैंट को साइड में सरका के अपनी दो उंगलियाँ फ़िज़ा की चूत में डाल देता है। 

फ़िज़ा-“अह्ह… कम्म ऊऊओ…” 

कामरान सर उठाकर शीबा की तरफ देखता है। शीबा की आँखें अभी भी बंद थीं। मगर हैरत की बात थी कि खर्राटे बंद हो चुके थे। 

फ़िज़ा इतनी ज्यादा गरम हो चुकी थी कि वो कामरान के पैंट की जिप खोलकर उसके लण्ड को बाहर निकाल लेती है। अपने अब्बू अमन ख़ान के लण्ड की तरह खूबसूरत सा कामरान का लण्ड जैसे ही फ़िज़ा के हाथों में आता है, अपनी असल लम्बाई और मोटाई हाँसिल करने लगता है। फ़िज़ा कामरान के ऊपर चढ़ जाती है और उसके होंठों को बे-तहाशा चूमने लगती है। 

कामरान फ़िज़ा की ब्रा खोल देता है और पैंट को एक झटके में टाँगों से अलग कर देता है। 

कहते हैं जब एक चुड़दकड़ औरत किसी दूसरी औरत के सामने सेक्स करती है तो उसकी उत्तेजना का लेवल बहुत हाई हो जाता है। उस वक्त फ़िज़ा का भी यही हाल था। 

उसे कामरान में उस वक्त जीशान नजर आ रहा था। वो कामरान की छाती को चूमती हुई नीचे खिसक जाती है और उसकी पैंट के साथ-साथ अंडरवेअर भी नीचे खींच लेती है। कामरान फ़िज़ा के बाल पकड़कर उसके मुँह को अपने लण्ड पे झुकाता है और फ़िज़ा बिना देर किए कामरान के लण्ड को मुँह में लेकर चूसने लगती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

कामरान थोड़ी देर बाद ह फ़िज़ा को अपने नीचे लेकर उसकी टाँगे खोल देता है और उसकी गर्दन को चूमते हुये धीरे-धीरे अपने लण्ड को फ़िज़ा की चूत में उतारता चला जाता है 

फ़िज़ा-“अह्ह… कम्मो अह्ह…” 

कामरान-“अम्मी जान, आपकी चूत … मुझे रोज चाहिए ऐसे हौ… अपने वादा किया था ना मुझसे रोज मुझे दोगे उम्ह्ह…” 

फ़िज़ा-“हाँने् कामरान बेटा, चोद ना अपनी अम्मी को… ले ना मेरी … तेरी ही तो है मेरे बच्चे अह्ह…” 

कामरान शीबा के चेहरे की तरफ देखते हुये फ़िज़ा की चूत में दनादन अपना लण्ड अंदर-बाहर करने लगता है। 

शीबा की पलकें बंद थी मगर अंदर की पुतलियाँ एक जगह नहीं टिक रही थीं। दिल की धड़कन तेज होने की वजह से दोनों चुचियाँ जोर-जोर से ऊपर-नीचे होने लगती हैं। 

कामरान अपना हाथ शीबा की तरफ बढ़ा देता है और फ़िज़ा को चोदते हुई अपनी दो उंगलियाँ शीबा के होंठों पे फेरने लगता है। शीबा एक पल के लिए आँखें खोलती है और कामरान को अपने चेहरे की तरफ घूर ता देखकर जल्दी से आँखें बंद कर लेती है। कामरान मुश्कुरा देता है और फ़िज़ा के होंठों को चूमते हुई लण्ड को जितना अंदर हो सके उतना अंदर तक घुसाता चला जाता है। 
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उधर सोफिया के रूम में-

सोफिया अपने अब्बू अमन के ऊपर चढ़ि हुई थी। अमन अपनी जवान बेटी की कसी हुई चूत को अपने लण्ड से चौड़ी करने की पुरजोर कोशिश कर रहा था। 

सोफिया-“अह्ह… अमन ख़ान आपका लण्ड अब बिल्कुल मेरी चूत के साइज का हो गया है…” 

अमन मुश्कुराते हुये उसे अपनी छाती से चिपका लेता है और सटासट अपने लण्ड को सोफिया की चूत में घुसाने लगता है-“अभी तेरी चूत का साइज बड़ा हुआ है। सोफिया मेरी बच्ची, एक सुराख का साइज… बड़ा करना बाकी है…” 

सोफिया अमन के कानो में अपनी जीभ डालकर उसके कान की लोलकी चूसने लगती है-“उम्ह्हने्… करो ना अमन… हर सुराख को आपके लण्ड के साइज का कर दो… आपकी सोफिया यही तो चाहती है…” 

अमन अपनी बेटी को इस हद तक गंदे शब्द सिखा चुका था कि अब सोफिया अमन का लण्ड चूत में लेने के बाद उसे अब्बू नहीं , बल्की अमन कहने लगी थी और चूत गाण्ड जैसे शब्द पे वो शरमाती नहीं थी, बल्की उसकी चूत और गाण्ड ऐसे शब्द कहने से और खुलती चली जाती है। अमन का लण्ड अभी सोफिया की चूत को चौड़ा कर रहा था। अभी तो रात बाकी थी और इस रात में सोफिया अपनी गाण्ड को भी अमन से खुलवाने के फिराक में थी। 
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रात गहरी हो चुकी थी। अनुम अपने और अमन के ख्वाबों में खोई हुई थी। मगर रज़िया को नींद नहीं आ रही थी। चूत की बेचैनी दिमाग़ पे हावी होने लगी थी। पास में बेटे का बेटा लेटा हुआ था, मगर दिल के हाथों मजबूर रज़िया कदम बढ़ाती भी तो कैसे? 

जीशान के चेहरे से लग रहा था कि वो भी सो चुका है। 

रज़िया अपनी नाइटी को ऊपर से खोल देती है और अपनी दोनों चुचियों को बाहर निकालकर जीशान के मुँह को अपने चुची पे लगा देती है। अचानक उसे झटका सा लगता है… जीशान अपना मुँह खोल देता है और रज़िया का एक निप्पल जीशान के मुँह में अंदर तक चला जाता है। 

रज़िया उस वक्त मैदान छोड़ भी नहीं सकती थी और ना ही वापस हट सकती थी। वो बेचैन अमन की अमानत अपनी दोनों चुचियाँ उस वक्त जीशान के हवाले कर देती है और आँखें बंद करके जीशान के सर को और जोर से अपनी चुचियों पे दबाने लगती है। 


जीशान भी जन्मों का प्यासा बनकर अपनी दादी की नरम -नरम चुचियों को जितना अंदर हो सके उतना अंदर लेकर चूसने लगता है। रज़िया के मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकलने लगतेी हैं, और थोड़ी देर बाद वो जीशान के मुँह को अपनी चुचियों से अलग कर देती है। 

रज़िया-“बस…” 

जीशान-“अपना काम निकल गया तो बस… मुझे और पीना है, वरना अम्मी को उठा दूँगा…” 

रज़िया हल्की सी चपत जीशान के मुँह पे मारती है। कल रज़िया ने जीशान को अनुम का नाम लेकर डराया था और आज जीशान उसी नाम का सहारा लेकर रज़िया को मजबूर कर देता है, अपनी चुचियों को दुबारा जीशान के मुँह में डालने के लिए। 

उस रात जीशान निचोड़-निचोड़ के रज़िया की चुचियों को चूसता रहता है और दोनों की आँखों से नींद गायब हो जाती है। आखिरकार जब रज़िया के दोनों निप्पल चुसाई से एकदम कड़क हो जाते है तो रज़िया निप्पल की जगह अपने होंठ जीशान के हवाले कर देती है। और जीशान अपनी दादी के होंठों पे पहली बार अपने होंठ लगा देता है। मगर जैसे ही वो रज़िया के होंठों को निप्पल की तरह अपने कब्ज़े में लेने लगता है, अनुम करवट बदल देती है और दोनों दादी पोते अलग हो जाते हैं 
रज़िया मुश्कुराते हुये अनुम की तरफ सर करके लेट जाती है और जीशान अपना हाथ रज़िया के चूत ड़ों पे रख देता है।
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सुबह 7:00 बजे-

अमन सोफिया के रूम से निकलकर अपने और अनुम के रूम में चला जाता है। वो जानता था कि अनुम रज़िया के साथ सोई होगी। मगर वो ये नहीं जानता था कि जीशान को बहुत जोर से पेशाब आई हुई थी और वो जब रज़िया के रूम से बाहर निकलता है तो उसे अमन सोफिया के रूम से निकलता हुआ दिखाई देता है। 
जैसे ही अमन अनुम के रूम में जाकर दरवाजा बंद करता है जीशान सोफिया के रूम का दरवाजा खटखटाता है। सोफिया को लगता है अमन वापस आया है। वो सिर्फ़ नाइटी पहने हुई थी। मुश्कुराते हुये वो दरवाजा खोल देती है, और सामने जीशान को देखकर हड़बड़ा जाती है। 

सोफिया-“जीशान तुम?” 

जीशान बेशर्मों की तरह अंदर आ जाता है और अपने पीछे दरवाजा बंद कर देता है-“हाँ… मैं टाय्लेट जाने के लिए उठा था तो देखा अब्बू इस रूम से अपने रूम में जा रहे हैं…” 

सोफिया-“तुम्हें धोखा हुआ होगा, अब्बू यहाँ कहाँ?” 

जीशान आगे बढ़ता है-“मैंने अपने आँखों से देखा है बाजी…” 

सोफिया की पेशानी पे पसीना आने लगता है। वो जानती थी कि जीशान को कुछ-कुछ पता है मगर वो सब कुछ उसे बताना नहीं चाहती थी। अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाकर सोफिया पसीना पोंछने लगती है। 

जीशान जो सिर्फ़ जीन्स पैंट में था, सोफिया का हाथ पकड़कर अपनी तरफ घुमा देता है। 

सोफिया ‘अह्ह’ करती हुई सीधा जीशान की नंगी छाती से जा टकराती है-“ये क्या बदतमीजी है जेशु?” 

जीशान अपने दोनों हाथों में सोफिया का चेहरा थाम लेता है-“मोहब्बत है बाजी आपके लिए…” 

सोफिया के होंठ काँपने लगते हैं। वो भी जवान थी और जीशान भी। दोनों की जवान धड़कनें एक दूसरे से जब भी मिलती, उन दोनों के बीच एक खिंचाव सा पैदा होने लगता। वही खिंचाव जो जीशान को अपनी अम्मी अनुम और लुबना के साथ महसूस होता था। 

जीशान-“बाजी, क्या सिर्फ़ अब्बू का हक है तुमपे?” 

सोफिया-“हाँ सिर्फ़ अब्बू का, और किसी का नहीं …” 

जीशान-मेरा भी नहीं ? 

सोफिया कोई जवाब नहीं देती। 

जीशान-“मैं जानता हूँ कि हमारे खून में जो तपिश है वो दूसरों के खून में नहीं । हम अपनों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं, बाहर वालों की तरफ नहीं । मुझे भी आप बहुत अच्छी लगती हो, अभी से नहीं बचपन से जब हम साथ मिलकर खेला करते थे। और आपको पता है मुझे सबसे ज्यादा क्या पसंद है?” 

सोफिया के काँपते हुये होंठ जीशान से पूछ बैठते हैं-क्या? 

जीशान-“आपके ये होंठ… मैं इन्हें चूमना चाहता हूँ बाजी…” 

सोफिया-“नहीं जीशान, मैं अमन की हो चुकी हूँ …” 

जीशान-“जैसे रज़िया हुई थी, जैसे अनुम हुई थी, और जैसे मैं रज़िया और अनुम दोनों का होना चाहता हूँ ?” 

सोफिया हैरतजदा सी रह जाती है, जीशान के मुँह से ये सुनकर कि वो अपनी दादी और अम्मी के तालुक से क्या सोचता है? रास्ता तो सोफिया ने भी ऐसा चुनी थी जहाँ उसे मोहब्बतू तो मिल सकती थी, मगर उतनी नहीं , जितनी की वो हकदार थी। सोफिया कहती है-“तुम जाओ यहाँ से जीशान …” 

जीशान अपने दोनों हाथ सोफिया की पीठ के पीछे ले जाकर नीचे करते हुये कमर पे टिका देता है और उसकी कमर को अपनी तरफ धक्का देता है, जिससे सोफिया की चूत जो सिर्फ़ एक पतली सी पैंट और पारदश़ी नाइटी के पीछे छुपी हुई थी, जीशान के लण्ड से जा टकराती है। 


सोफिया-“जीशान , छोड़ो मुझे प्लीज़्ज़… कोई आ जाएगा…” 

जीशान-मुझे चूमने दो इन होंठों को। 

सोफिया-“नहीं …” और वो अपने सर को इधर-उधर करने लगती है।
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05-19-2019, 01:43 PM,
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जीशान-“अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिए जरा सी भी मोहब्बत हो, और अगर तुम मुझे अपने दिल के किसी कोने में महसूस करती हो तो तुम मुझे अपने होंठों को चूमने दोगी…” 

सोफिया की दहलती गर्दन रुक जाती है और वो अपनी आँखें बंद कर लेती है। 
जीशान उसके गुलाबी लबों का दीदार करता है और पहली बार सोफिया के होंठ अमन के अलावा किसी और से चिपक जाते हैं। 

जीशान कोई जल्दीबाजी नहीं करता। वो धीरे-धीरे बड़ी मासूमियत से सोफिया के निच ले होंठों को चूसता रहता है और सोफिया भी बिना रुकावट के अपना मुँह खोलती चली जाती है। 

जीशान-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोफिया-“गलप्प्प गलप्प्प उम्ह्ह…” 

सोफिया जो जीशान को इनकार कर रही थी उसके जज़्बात ऐसे उमड़े जीशान पे कि वो अपनी जीभ को उसके मुँह में डालने लगती है, और जीशान अपनी बाजी सोफिया के नरम मखमली जिस्म को अपने आगोश में लेकर उसे अब पूरे तरह दबाते हुये चूमने लगता है। दोनों के मुँह से सलाइवा गिरने लगता है। 15 मिनट से वो एक दूसरे से चिपके होंठ चूम रहे थे। 

बाहर से आती आवाज़ से दोनों होश में आते है और सोफिया जीशान को धक्का देकर बाथरूम में घुस जाती है। आईने के सामने खड़े रहने में भी उसे अब शर्म आ रही थी। सोफिया खुद से कहती है-“बस अब मैं जीशान को कभी कुछ नहीं करने दूँगी …” 

और जीशान अपने मुँह को पोंछते हुये रूम से बाहर निकल जाता है। वो अपने रूम में आकर बेड पे लेट जाता है। आज सनडे था इसलिए वो देर तक सो सकता था। 
……………………..

अनुम फ्रेश होकर जीशान के रूम के सामने से गुजरती है तो उसे जीशान सोया हुआ दिखाई देता है। उसके कदम उसकी तरफ बढ़ जाते हैं। वो बेचारी बहुत कम जीशान को देख पाती थी इस डर से कि कहीं उसे नजर ना लग जाए। जीशान के पास बैठकर वो उसे गौर से देखने लगती है। 

तभी वहाँ लुबना आती है-“क्या हुआ अम्मी? भाई के तबीयत तो ठीक है ना? आप यहाँ क्यों बैठी हैं?” 

अनुम उससे चुप रहने के लिए कहती है, और इशारे से उसे अपने पास बुला लेती है। 

लुबना मुश्कुराती हुई अनुम के पास आकर बैठ जाती है। 

अनुम धीमी आवाज़ में लुबना से कहती है-“देख कितने सकून की नींद सोया है जीशान …” 

लुबना-“हाँ अम्मी, भाई सिर्फ़ नींद में ही अच्छे लगते हैं, वरना जागते हुये तो मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते…” 

अनुम उससे हल्के से मारती है-“चुप कर, लाखों में एक है जीशान …” 

लुबना दिल में सोचने लगती है-“मैं तो बचपन से जानती हूँ मगर ये कम्बख़्त मुझे रेस्पॉन्स ही नहीं देता…” 

अनुम-क्या हुआ? 

लुबना-“कुछ नहीं , अपने नाश्ता किया?” 

अनुम-“हाँ मैं कर चुकी। तू क्या लेगी बता दे, मैं बना देती हूँ …” 

लुबना-“नहीं , आज मैं नाश्ता बनाऊूँगी अपने और भाई के लिए…” 

जीशान धड़ाम से उठकर बेड पे बैठ जाता है-“मुझे फाँसी दे दो, मगर इसके हाथ का खाना मैं नहीं खाउन्गा…” 

दोनों बुरी तरह डर जाते हैं। वो जो गहरी नींद में सोया हुआ था अचानक से ऐसे उठा जैसे किसी ने उसे ये कहा हो कि उठो जलजला आ गया है। 

लुबना-“कितना बुरी तरह डरा दिया मुझे आपने भाई। दिल अब तक धड़क रहा है मेरा। और नहीं खाना तो मत खाओ, मरो मेरी बला से। हुन्ने्…” और वो पैर पटकते हुये वहाँ से चली जाती है। 

अनुम-गलत बात जीशान । 

जीशान उठकर बैठ जाता है और अनुम की आँखों में देखने लगता है। 

अनुम-क्या देख रहा है? 

जीशान-“देख रहा हूँ कि इन आँखों में किसका अक्स है?” 

अनुम-तेरे अब्बू का। 

जीशान-और अब्बू की आँखों में? 

अनुम चुप हो जाती है। 

जीशान-सोफिया बाजी का। 

अनुम जीशान के चेहरे को देखती रह जाती है-“बच्चा है बच्चों जैसे बातें ही अच्छी लगते हैं तेरे मुँह से…” 

जीशान-“अम्मी इधर देखो, अब्बू आपको भूल ते चले जा रहे हैं…” 

अनुम-“मैंने कहा ना जीशान बस कर…” 

जीशान-“मैं सब कुछ देख सकता हूँ मगर आपको यूँ कुढ़ते मरते नहीं देख सकता। आप अब्बू से बात क्यों नहीं करते?” 

अनुम सटाक्क से एक चपत जीशान के गाल पे मार देती है, और अगले ही पल उसे अपनी छाती से लगा लेती है। 

जीशान-“ये गुस्सा मेरे लिए नहीं बल्की अब्बू के लिए है, मैं जानता हूँ । मगर आप जैसे अब्बू से प्यार करती हैं, वैसे मुझसे नहीं करती…” 

अनुम आँसू वाली आँखों से जीशान को देखने लगती है-“वो प्यार मैं किसी के साथ नहीं कर सकती…” 

जीशान-“और अगर आपके दिल में मैंने वो मोहब्बत जगा दिया तो?” 

अनुम-“इम्पॉसिबल जीशान …” 

जीशान-“अम्मी, ये ‘इम्पॉसिबल’ शब्द ख़ुद भी कहता है कि “आइ एम पॉसिबल…” 

लुबना हाथ में प्लेट लिए रूम में दाखिल होती है और उसे देखकर अनुम बोलते-बोलते रुक जाती है। 

जीशान-मेरे लिए नहीं लाई? 

लुबना-“लो कल्लो बात… आप तो मेरे हाथ का नाश्ता खाने से अच्छा मरना पसंद करेंगे ना?” 

जीशान-“अगर तू जहर भी खिला दे अपने हाथों से तो वो भी खा लूँ मैं…” ये जीशान अनुम की तरफ देखकर कहता है।

और अनुम वहाँ से चली जाती है। 

लुबना का सारा गुस्सा ये सुनकर उड़न- छु हो जाता है और वो निवाला तोड़कर जीशान की तरफ बढ़ती है। 

जीशान भी बिना कोई ह ला-हवाला किए मुँह खोल देता है। 
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शीबा और फ़िज़ा रूम में बैठी हुई थीं। कामरान हाल में अमन के साथ बातें कर रहा था। 

शीबा मुश्कुराते हुये-“रात भर मुझे नींद नहीं आई फ़िज़ा…” 

फ़िज़ा हँस देती है-भला वो क्यूँ ? 

शीबा को चिमटी काटते हुये-“माँ बेटे की कुश्ती देखती रही । 

फ़िज़ा इधर-उधर देखकर शीबा के निप्पल को जो उसने कमीज के नीचे ढक रखे थे मसल देती है-“ तू खेलेगी मेरे बेटे के साथ कुश्ती?” 

शीबा का सर शर्म के मारे झुक जाता है और फ़िज़ा उसके कान में कुछ कहती है, जिससे शीबा के होंठ काँप जाते हैं। और दोनों एक दूसरे को गले लगा लेती हैं। 

नाश्ता करने के बाद जीशान सीधा रज़िया के पास जाता है, जो अभी-अभी नहाकर आई थी और आईने के सामने बैठी बाल सँवार रही थी। जीशान के अक्स को आईने में देखकर उसके गालों पे लाली फैल जाती है, रात का मंज़र आँखों में घूम जाता है। 

रज़िया-क्या है? 

जीशान-कुछ नहीं । 

रज़िया-“इधर आ, पहले दरवाजा बंद कर दे…” 

जीशान दरवाजा बंद करके रज़िया के करीब आ जाता है। 

रज़िया पानी में गीले बालों को जीशान के मुँह पे मारते हुये वो जीशान से कहती है-“तेरी शैतानियाँ बढ़ती ही जा रही हैं शादी की बात करनी हो तो बता दे। कहीं बात करते हैं तेरे बारे में…” 

जीशान-“दादी मुझे सेक्स के बारे में कुछ नहीं मालूम । पहले किसी मेच्योर औरत से ट्यूशन लेनी पड़ेगी, उसके बाद शादी करूँगा…” 

रज़िया के होश उड़ जाते हैं। वो सोच भी नहीं सकती थी कि जीशान अपने बाप अमन से भी बड़ा बेशरम इंसान है। वो जीशान को घूर ती रह जाती है। 

जीशान-“दादी कुछ खाने को मिले गा? बड़ी भूक लगी है…” 

रज़िया-“निकल रूम के बाहर… सब जानती हूँ क्या चाहिए तुझे?” 
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05-19-2019, 01:43 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान रज़िया के बेड पे लेट जाता है-मैं कहीं नहीं जाने वाला। 

रज़िया उसका हाथ पकड़कर उसे उठाने लगती है-“कितना बड़ा हो गया है जीशान तू ?” 

जीशान रज़िया का हाथ पकड़कर वापस उसे अपनी तरफ खींच लेता है। 
और रज़िया जीशान के ऊपर गिर जाती है-“मार खायेगा जीशान तू किसी दिन मेरे हाथों…” 

जीशान रज़िया के हाथ अपने हाथ में थाम लेता है-“इन हाथों से मारना चाहती हो ना दादी आप मुझे…” 

रज़िया-हाँ इन्ही हाथों से। 

जीशान रज़िया के हाथों को चूम लेता है और दो उंगलियाँ अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है-“गलप्प्प बहुत मीठी हो आप दादी …” 

रज़िया की आँखें नशीली हो जाती हैं, बदन में अकड़न सी होने लगती है। जवान मर्द के पास उसे भी बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। 

जीशान-दादी मुझे आपको चूमना है। 

रज़िया-“तेरे अब्बू ने भी पहली बार मुझसे यही कहा था और मैं उसके जाल में फँस गई। ये गलती मैं दुबारा नहीं करूँगी…” 

जीशान रज़िया को अपने नीचे झुका लेता है-“मुझे नहीं पता… मैं आपके बारे में ऐसा कैसे सोच सकता हूँ , मगर सच यही है दादी कि मैं आपको अब बहुत पसंद करने लगा हूँ । मैं हमेशा आपके साथ रहना चाहता हूँ …” 

रज़िया-“मैं तेरे अब्बू की अमानत हूँ उसमें ख्यानत नहीं कर सकती…” 

जीशान-“बाप का सब कुछ बेटे का ही तो होता है, अब्बू की हर चीज पे मेरा भी उतना ही हक है…” 

रज़िया-क्या चाहता है तू ? 

जीशान-आपको चूमना बस और कुछ नहीं । 

रज़िया-“एक बूढ़ी औरत में तुझे क्या अच्छा लगने लगा है, जो तू मुझे चूमने के लिए बेसबरा हो रहा है?” 

जीशान-“मुझे नहीं पता… मैं भी देखना चाहता हूँ इन होंठों की ताकत जिसने मेरे अब्बू को आपके इतना करीब कर दिया कि वो अपनी अम्मी के दिवाने हो गये थे…” 

रज़िया-मैं कुछ नहीं दूँगी तुझे। 

जीशान-मैं लेकर रहूँ गा। 

रज़िया-मैं चिल्लाउन्गी। 

जीशान-“चिल्ला…” और जीशान अपने होंठ रज़िया के होंठों पे रख देता है। दादी पोते आज अपने सीमा क्रॉस कर गए थे। 

रज़िया का जिस्म तो उसी दिन जीशान का हो गया था जिस दिन जीशान ने अपनी दादी के निपल्स को अपने मुँह में लेकर चूसा था। जरा सी झिझक दिमाग़ में बाकी थी जो आज जीशान ने अपने होंठों से दूर कर दिया था। रज़िया हमेशा से ही एक सेक्सी औरत रही है। सही वक्त पे अगर अमन उसे हाँसिल नहीं करता तो वो शायद बाहर वाले से अपने जिस्म की आग बुझा लेती। उसके पहले शौहर और अमन के अब्बू ने कभी रज़िया की सेक्स अपील को समझा ही नहीं । 

अमन भी कुछ साल रज़िया के आगोश में सकून पाता रहा। मगर उसे भी अनुम और शीबा को संभालना पड़ता था। रज़िया अपने जिस्म की नुमाइश नहीं करती थी मगर वो थी नुमाइश के काबिल औरत। उमर के इस पड़ाओ में भी जिस्म पे कुछ झुर्रियों के अलावा उसके अरमान जवान थे। उस में अभी भी वही जज़्बा था जो कुँवारेपन में अमन के अब्बू के सामने और अमन के नीचे हुआ करता था। अपने मुँह को पूरी तरह खोलकर वो जीशान को जीभ और अंदर डालने की जगह देती जाती है और जीशान अपनी खूबसूरत दादी के जिस्म को अपने आगोश में लेकर उसे चूमता चला जाता है। 

रज़िया-“बस अब और नहीं … तुझे जो चाहिए था मैंने दे दिया, आइन्दा और कोई भी डिमांड तेरी नहीं सुनने वाली मैं जीशान …” 

जीशान-“बहुत-बहुत शुक्रिया रज़िया…” 

रज़िया-क्या कहा तूने ? 

जीशान उसकी आँखों में देखते हुये बड़ी जानदार से कहता है-“रज़िया…” 

रज़िया उसे फिर से अपने ऊपर खींच लेती है-“चूम मुझे एक बार और खुलकर…” 

जीशान फिर से अपने होंठ रज़िया के होंठों से मिला देता है। मगर इस बार रज़िया जीशान पे हावी हो जाती है और उसके होंठों को, जीभ को चाटने लगती है, अपना सलाइवा जीशान के मुँह में उड़ेलकर उसे भी अपना रस पिलाने लगती है। दोनों एक दूसरे को कस के पकड़कर अपने होंठों को सकून पहुँचाने लगते हैं। 
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उधर अमन किसी से फोन पे बात कर रहा था। फोन रखने के बाद वो अनुम के पास जाता है। 

अनुम-क्या हुआ जी, परेशान लग रहे हो? 

अमन-“खालिद के अब्बू का फोन आया था। खालिद की अम्मी की तबीयत खराब है, उन्हें हॉस्पीटल में एडमिट किया है…” 

अनुम-“क्या? हमें चलना चाहिए। मैं अम्मी को बता देती हूँ …” और वो रज़िया के रूम की तरफ बढ़ते है। 

जीशान रज़िया के होंठों को आजाद करके खड़ा होता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे। रज़िया जीशान से कुछ कहने ह वाली थी कि अनुम दरवाजा खटखटाती है। 

जीशान दरवाजा खोलता है तो अनुम रज़िया को सारा माजरा बताती है। रज़िया अमन शीबा और अनुम को हॉस्पीटल जाने के लिए कहती है। खालिद की अम्मी को हार्ट अटक आया था। अमन शीबा और अनुम के साथ हॉस्पीटल के लिए रवाना हो जाता है। 
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जीशान अपने रूम में जाकर कंप्यूटर पे कुछ नोट्स बनाने लगता है। मगर उसका दिल उसमें नहीं लगता। उसे बार-बार रज़िया के होंठ नजर आते हैं। 
वो उठकर रज़िया के रूम की तरफ जाने लगता है तभी उसे लुबना, नग़मा और सोफिया बातें करती हुई दिखाई देती हैं। वो बहुत जोर-जोर से हँस-हँस के बातें कर रहे थे। 

जीशान को अच्छा नहीं लगता। खालिद इस घर का होने वाला दामाद था उसकी अम्मी के तबीयत खराब थी और ये तीनो लड़कियाँ हँसी मजाक कर रही थी वो उनके तरफ बढ़ जाता है, और कहता है-“चुप हो जाओ नालायकों, ये क्या खी - खी लगा रखी है तुम लोगों ने?” 

सोफिया-क्या हुआ जीशान ? 

जीशान-“आपको क्या हुआ है क्या आपको पता नहीं खालिद भाई की अम्मी की तबीयत खराब है और अम्मी अब्बू उन्हें देखने गये हैं…” 

सोफिया को तो फिकर तब होती, जब उसे इस शादी की परवाह होती। वो तो अमन की हो चुकी थी-“हमें पता है, तुम्हें याद दिलाने के ज़रूरत नहीं …” सोफिया तड़क के कहती है। 

जीशान-“जब ससुराल जाओगी ना, तब दाल आटे का भाव पता चलेगा आपको?” 

लुबना-“काश लड़के अम्मी-अब्बू का घर छोड़कर बीवी के घर जा सकते? हाँ, क्या कहते हैं उसे-घर जमाई…” और तीनों लड़कियाँ खिलखिलाकर हँसने लगती हैं। 

जीशान लुबना के सर पे चपत मारके वहाँ से रज़िया की तरफ चल देता है। वो सोफिया के रूम से बाहर निकलता ही है कि फ़िज़ा उससे टकरा जाती है। 

फ़िज़ा-ऊऊचह। 

जीशान-सारी आंटी । 

फ़िज़ा मुश्कुरा देती है-“बड़े जल्दी में हो जी। बेटा, अपनी फुफु के पास बैठने की भी फुरसत नहीं तुम्हारे पास…” 

जीशान-अरे, ऐसी बात नहीं है फुफु। 

फ़िज़ा-“अच्छा तो फिर चलो मेरे साथ…” और फ़िज़ा जीशान का हाथ पकड़कर उसे शीबा के रूम में ले जाती है। वहाँ कामरान बेड पे गहरी नींद में सो रहा था। वो दोनों सोफे पे बैठ जाते हैं फ़िज़ा उससे बिल्कुल सटकर बैठ जाती है। जीशान को थोड़ा अजीब ज़रूर लगता है मगर वो कुछ नहीं कहता। 

फ़िज़ा-एक बात कहूँ जीशान ? 

जीशान-हाँ, कहें ना फुफु।
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05-19-2019, 01:43 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
फ़िज़ा-“तुम ना बिल्कुल अपने अब्बू जैसे हो…” 

जीशान-“अरे वाह… ये तो मेरे लिए बड़े फख्र की बात है कि बेटा अपने अब्बू के जैसा दिखाई देता है…” 

फ़िज़ा-“हाँ ऊपर से तो तुम बिल्कुल अपने अब्बू जैसे हो, पता नहीं अंदर क्या हाल है?” 

जीशान का माथा ठनकता है-क्या मतलब? 

फ़िज़ा-नहीं , कुछ नहीं । 

जीशान-कुछ तो है फुफु, बताइए ना? 

फ़िज़ा-“अभी नहीं , वक्त आने पे सब कुछ बता दूँगी …” 

जीशान-अभी बताइए ना मैं किसी को कुछ नहीं कहूँ गा। 

फ़िज़ा-कहीं तुम डर ना जाओ? 

जीशान-नहीं डरुन्गा, आप बताओ। 

फ़िज़ा-“ठीक है, मैंने सुना है कि तुम और तुम्हारी शीबा अम्मी दोनों… …” 

जीशान-“ह्म्म्म्मम… तो आपको अम्मी ने सब बता है दिया…” 

फ़िज़ा-“बेटा, तुम्हें तो पता होगा ना कि औरतों के पेट में कोई भी बात नहीं टिकती…” 

जीशान फ़िज़ा को ऊपर से नीचे तक देखने लगता है-“एक बात पूछूँ फुफु?” 

फ़िज़ा-हाँ पूछो ना। 

जीशान फ़िज़ा से कुछ पूछने ही वाला था कि जीशान का सेल फोन बजता है। 

जीशान-हेलो… जी हाँ… मैं… हाँ जीशान ख़ान बोल रहा हूँ । आगे वो कुछ नहीं बोल पाता, और उसके हाथों से सेलफोन नीचे गिर जाता है। 

रज़िया जो अपने रूम से बाहर निकल रही थी, जीशान को ऐसा देखकर घबरा जाती है और जीशान से पूछने लगती है-“क्या बात है जीशान, क्या हुआ सब ख़ैरियत तो है ना?” 

जीशान की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो रज़िया की तरफ देखते हुये कहता है-“अब्बू की कार का एक्सीडेंट हो गया है…” 

रज़िया का मुँह खुला का खुला रह जाता है-“क्याआअ?” 

तीनों लड़कियाँ-फ़िज़ा, जीशान और रज़िया की आवाज़ सुनकर उनके पास चली आती हैं। 

सोफिया-“क्या हुआ दादी , जीशान रो क्यों रहा है?” 

रज़िया-“तेरे अब्बू की कार का एक्सीडेंट हो गया है। 

सोफिया चीख पड़ती है-“कब? कहाँ? कैसे है वो सब?” 

रज़िया जीशान का कंधा हिलाने लगती है-“जेशु बेटा, अमन कैसे हैं? अनुम शीबा कैसे है? कुछ तो बोल बेटा…” 

जीशान-“उन्हें सिटी हॉस्पीटल ले जाया गया है। वहीं से काल आया था। हमें चलना चाहिए…” 

सभी जीशान के साथ हॉस्पीटल के लिए रवाना हो जाते हैं। रास्ते में सभी औरतों तो का रो-रोकर बुरा हाल था। वहीं जीशान को बस एक फिकर सताए जा रही थी कि कोई ज्यादा घायल ना हो गया हो। जब वो हॉस्पीटल पहुँचते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि अमन, अनुम और शीबा आपरेशन थियेटर में हैं। अब वो सब बस इंतजार कर सकते थे। 

तकरीबन एक घंटे बाद आपरेशन ख़तम होता है और डाक्टर बाहर आते हैं। 
हॉस्पीटल के डाक्टर अमन और उसके परिवार को अच्छी तरह जानते थे। 

रज़िया भागकर डाक्टर के पास जाती है-कैसे हैं मेरे बच्चे डाक्टर साहब? 

डाक्टर-देखिये, हिम्मत से काम लीजिये । 

जीशान-डाक्टर बताइए ना मेरे अम्मी अब्बू कैसे हैं? 

डाक्टर-“आई आम सारी … हम तुम्हारे अम्मी अब्बू को बचा नहीं सके… तुम्हारी फुफु की टाँग की एक हड्डी फ्रैक्चर हो गई है, मगर अब वो ख़तरे से बाहर हैं…” 

पूरे खानदान के लिए ये एक शाकिंग ख़बर थी। अमन ख़ान और शीबा अब इस दुनियाँ में नहीं रहे थे। एक शेर का बहुत खौफनाक अंत हुआ था, जिसकी आवाज़ से पूरा अमन विला काँप उठता था। जिसने अपनी मोहब्बत को पाने के लिए दुनियाँ की भी कोई परवाह नहीं किया। अमन विला का वो शेर अब कभी अपनी आँखें खोलने वाला नहीं था। 

रज़िया अंदर तक टूट जाती है। उसे यकीन नहीं हो रहा था। अभी-अभी जो शख्स उससे मिलकर गया था, जिसके चेहरे को देखकर रज़िया की सुबह होते थी, जिसके बाहो में उसकी रातें कटतेी थीं, वो कभी नहीं दिखाई देगा। 

जीशान अपने अब्बू और अम्मी शीबा की मौत के गम में इस कदर गमगीन हो जाता है कि उससे कुछ बोला भी नहीं जाता, बेसुध वो हॉस्पीटल की जमीन पर बैठ जाता है। ना वो कुछ बोल पा रहा था और ना उसकी आँखों से कोई आँसू निकल रहे थे। बस एक टकटकी लगाए वो रज़िया के रोते चेहरे को देख रहा था। 

कामरान और फ़िज़ा का भी बुरा हाल था। 

नग़मा और लुबना बुरी तरह सिसक-सिसक के रो रही थी। 

सोफिया के सारे अरमान टूटकर बिखर चुके थे। उसका अमन उसे बीच रास्ते में छोड़कर चला गया था। 

अनुम बेड पर लेटी हुई थी, जब उसे अमन और शीबा की खबर मिलती है तो वो फूट -फूट के रो पड़ती है। आँसू लगातार आँखों से बह रहे थे। अपने महबूब को खोने का गम उससे ज्यादा भला कौन समझ सकता था। रज़िया जितना उसे समझाने की कोशिश करती, वो उतना रो पड़ती। साथ में रज़िया भी बिलख पड़ती। 

नग़मा जिसने अभी दुनियाँ की खूबसूरती भी नहीं देखी थी, जिसके अरमान अभी तक जवान भी नहीं हुये थे, उसके लिए अपने अम्मी अब्बू को खो देना मौत से कम नहीं था। नग़मा को ऐसे महसूस हो रहा था जैसे किसी ने उसके जिस्म से रूह खींच ली हो। 

अमन ख़ान और शीबा के मृत- शरीर को अमन विला लाया जाता है। खालिद और उसके अब्बू भी वहाँ पहुँच जाते हैं। सभी फॅक्टरी के स्टाफ, सभी वर्कर्स अमन के इस आख़िरी सफर में उसका साथ देने पहुँच जाते हैं। खालिद और कामरान जीशान को हिम्मत देते हैं मगर सब बेकार दिखाई देता है। वो सदमे की हालत में था, जहाँ इंसान बिल्कुल बेजान सा हो जाता है। 

अनुम, रज़िया और घर की सारी औरतें अमन और शीबा के मुर्दा जिस्म पे लिपट -लिपट के रोये जा रहे थे। 

मगर वो जो इस दुनियाँ से उस दुनियाँ में चले जाते हैं कभी वापस नहीं आते। 
खालिद, कामरान और कुछ मर्द मिलकर अमन और शीबा के आख़िरी सफर की तैयारी करते हैं। जब अमन और शीबा का जनाजा अमन विला से निकलने लगता है तो रज़िया और अनुम की रूह भी जैसे अमन के साथ चली जाती है।

अमन और शीबा को सुपुर्द-ए- खाक कर दिया जाता है। 

फ़िज़ा रज़िया के पास आकर बैठती है-“चाची बस भी कीजिए, आपके रोने से वो वापस तो नहीं आएँगे ना… अपने आपको संभालिए। अगर आप ऐसा करेंगी तो बच्चों को कौन संभालेगा? देखिये जीशान की हालत, उसके पास जाइए, उसे आपकी बहुत ज़रूरत है…” 

जीशान चुपचाप अपने रूम में बैठा हुआ था। 

रज़िया उसके पास जाकर बैठती है-“जीशान , मेरे बच्चे, तेरे अम्मी अब्बू मर गये बेटा। वो कभी वापस नहीं आएँगे। अमन चला गया मुझे, तुझे, अनुम और सबको छोड़कर। बेटा हम सब अकेले हो गये हैं जीशान । रज़िया जीशान के कंधे पे सर रख कर रो पड़ती है और जीशान के सबर का बाँध टूट जाता है और वो चीख-चीख के रो पड़ता है, उसके कलेजे से निकलती हुई हर आह्ह उस वक्त अमन विला में मौजूद हर एक शख्स के दिल को लरजा देती है। 

जीशान-“अब्बू अब्बू अब्बू उउ… अम्मी जीईई मुझसे एक बार तो बात कर लेते? मुझे अपने सीने से लगा लेते, मुझे यतीम करके क्यों चले गये आप अब्बू उउ…” 
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Reply
05-19-2019, 01:44 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अमन विला खामोश था और उसमें रहने वाले सभी जानदार भी गमगीन थे। उस वक्त उन सभी को सिर्फ़ एक चीज संभाल सकती थी और वो था वक्त। कहते हैं कि वक्त वो मरहम है, जो बड़े से बड़े जख़्म को ठीक कर देता है। मिनट घंटो में बदले और घंटे दिनों में। 

देखते ही देखते अमन और शीबा को गुजरे एक साल हो जाता है। अमन अपने कालेज की पढ़ाई करते हुये फॅक्टरी जाय्न कर लेता है। 

सोफिया और खालिद की शादी स्थगित कर दी जाती है। 

अनुम अब ज्यादातर खामोश रहने लगी थी। वही हाल रज़िया का भी था। ज्यादातर समय वो दोनों अपने रूम में गुजारते थे। 

सोफिया ने घर के सारे कामों की ज़िम्मेदार अपने सर ले ली थी। वो किसी भी तरह घर के काम करके अपनी यादों को भूल ना चाहती थी। मगर ये बात उसके लिए ना-मुमकिन साबित हो रही थी। 

फ़िज़ा और कामरान अपने घर में उसी तरह जिंदगी गुजार रहे थे। कुछ दिन उन्हें अफसोस रहा मगर फिर वो अपनी दुनियाँ में चले गये। 

लुबना भी जीशान के साथ फॅक्टरी का काम संभालने लगती है। और नग़मा अपने अम्मी अब्बू को खोने के बाद अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखती हुई कालेज जाय्न कर लेती है। सभी एक दूसरे के सामने मुश्कुराकर ये दिखाना चाहते थे कि वो खुश हैं, मगर दिल का हाल हर कोई बखूबी जानता था। 


***** *****अमन और शीबा के गुजरने के एक साल बाद-


अमन विला रात 7:00 बजे-

लुबना और जीशान फॅक्टरी से वापस आ चुके थे। लुबना सोफिया के साथ किचेन में खाना बनाने में मदद कर रही थी। जीशान टीवी देख रहा था। अनुम अपने रूम में लेटी हुई थी। 

रज़िया जीशान के पास आकर बैठ जाती है-कब आए बेटा फॅक्टरी से? 

जीशान-अभी आया दादी । 

रज़िया-“जीशान बेटा, मैं सोच रही थी कि सोफिया की बात जो अमन ने खालिद के साथ की थी उसे अंजाम तक पहुँचा देते हैं…” 

जीशान-“आप ठीक कह रही हैं दादी । आप बाजी से बात कीजिए मैं खालिद भाई से बात करूँगा…” 

रज़िया-“एक और बात बेटा, मैं चाहती हूँ तुम्हारे भी शादी अगर हो जाये तो…” 

जीशान-“दादी मुझे अभी शादी नहीं करनी…” 

सोफिया जिसके कानों तक ये बात पहुँच जाती है वो अपने आँसू पोंछते हुये रज़िया से कहती है-“दादी , मैं आपको छोड़कर इतनी जल्दी कहीं नहीं जाने वाली । मुझे भगाने के बारे में अभी सोचिएगा भी मत…” 

रज़िया-“सोफिया बेटा, कैसी बात कर रही है? तू तो इस घर की जान है। बस अमन का आख़िरी काम अधूरा ना रह जाये। मेरे मरने से पहले मैं तुझे दुल्हन बने देखना चाहती हूँ …” 

जीशान रज़िया के होंठों पे अपना हाथ रख देता है-“दादी , मैं बहुत कुछ खो चुका हूँ अब किसी को खोना नहीं चाहता। प्लीज़्ज़… ऐसी बात मुँह से कभी मत निकालना…” 

रज़िया की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो जीशान को अपनी बाहो में भर लेती है। एक साल बाद पहली बार रज़िया और जीशान इतने करीब आए थे। ना चाहते हुये भी दोनों को कुछ महसूस हुआ था, मगर दोनों अपने जज़्बात छुपा लेते हैं। 
पूरे एक साल बाद रज़िया की आँखों में जीशान ने वो चमक देखी थी जो उसके अब्बू के हयात के वक्त हुआ करती थी।


लुबना-“किसकी शादी की बात हो रह है दादी ?” लुबना अपने कमरे में बैठी हुई थी जब उसके कानों तक शादी की गूँज पहुँची तो उससे रहा नहीं गया। 

जीशान-मेरी शादी की बात हो रही है। 

लुबना-“ आपकी शादी भाई… फिर तो हमें जू वालों को बोलना पड़ेगा, कोई अच्छी सी बंदरिया देखने के लिए…” 

रज़िया और सोफिया खिलखिला के हँसने लगती हैं। और जीशान लुबना के पीछे उसे मारने लपकता है। मगर हिरनी की तरह उछलती हुई लुबना उससे पहले अपने रूम में पहुँच जाती है। वो रूम का दरवाजा लाक करने ही वाली थी कि जीशान अपनी ताकत से दरवाजा खोल देता है। 

लुबना जीशान को अपनी तरफ बढ़ता देखकर अपने कान पकड़ लेती है-“हमका माफी दे दो मालिक, हमसे भूल हो गई…” 

जीशान-“मेरी शादी बदरिया से करवाएगी तू अच्छा?” वो अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसे पकड़ने लगता है। मगर लुबना पूरे कमरे में उसे चकमा देती जाती है 

रज़िया सोफिया को देखते हुये कहती है-“बहुत दिनों बाद इस घर में हँसी गूँजी है। बस मैं तो दुआ करती हूँ कि तुम सब इसी तरह हँसते खेलते रहो…” 

सोफिया-“हाँ अम्मी, आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं। बस मुझे फिकर अनुम फुफु की है, अपने कमरे में बहुत ज्यादा रहने लगी हैं वो…” 

जीशान लुबना के रूम का दरवाजा बंद कर देता है ताकी वो बाहर भाग ना सके। 

लुबना-“भाई आप मुझे छू भी नहीं सकते…” वो जीभ बाहर निकालकर जीशान को चिढ़ाती है। 

जीशान उसके बेड पे चढ़ जाता है और उसका हाथ पकड़कर उसे बेड पे गिरा देता है-“देख पकड़ी गई। अब बोल क्या बोल रही थी तू वहाँ?” 

लुबना-“सारी भाई, आपके लिए बंदरिया नहीं बल्की उल्ल की पट्ठी लाएँगे…” 

जीशान ये सुनकर और तिलमिला जाता है और लुबना के कान खींचने लगता है। 

लुबना-“अह्ह… भाई दर्द होता है ना… सारी सारी उल्ल की पट्ठी नहीं ?” 

जीशान-हाँ अब ठीक है। 

लुबना-“मैंने कहा उल्ल की पट्ठी नहीं बल्की कोई चम्पैन्जी की बेटी हेहेहेहे…” 

अब जीशान को बहुत गुस्सा आ जाता है और वो लुबना की नाक अपने हाथ से बंद करने लगता है, जिससे लुबना को साँस लेने में तकलीफ़ होने लगती है-“तब तक नहीं छोड़ूँगा जब तक तू कान पकड़कर उठक बैठक नहीं करती…” 

लुबना-करती हूँ ना। 

जैसे ही जीशान उसकी नाक छोड़ता है, लुबना जीशान को गुदगुदी करना शुरू कर देती है। उसकी देखा-देखी जीशान भी लुबना को गुदगुदी करने लगता है। दोनों एक दूसरे में इतने गुत्थम-गुत्था हो जाते हैं कि अचानक लुबना की टीशर्ट थोड़ा नीचे उतर जाती है। इससे पहले भी जीशान के साथ ऐसा ही हादसा हुआ था। लुबना जीशान की आँखों में देखने लगती है, और अपने दोनों हाथ जीशान की पीठ पे लेजाकर उसे अपने करीब करने लगती है। 

जीशान उठकर बैठ जाता है-“कपड़े ठीक से पहना कर लुबु…” 

लुबना अपने टीशर्ट ठीक करती है-“सारी , वो घर में थी तो…” 

जीशान उठकर बाहर जाने लगता है। मगर लुबना उसका हाथ पकड़ लेती है। आज कई दिनों बाद वो दोनों बिल्कुल अकेले थे, वरना जीशान तो काम-काम और बस काम। लुबना अपने भाई के करीब आती है-“जीशान भाई, मुझे अपने सीने से लगा लो मुझे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा है…” 

जीशान लुबना की तरफ देखता है। उसकी आँखें झुकी हुई थीं। उसे लगता है शायद लुबना को अब्बू की याद आ रह होगी। वो अपनी बाहें खोल देता है और लुबना उनमें समाते चली जाती है। 

लुबना-“भाई मुझे यहाँ बहुत सकून मिलता है… मैं जिंदगी भर यहीं रहना चाहती हूँ , मुझे अपने से कभी अलग मत करना भाई…” 

जीशान ये सुनकर उसे अपने से अलग कर देता है-“बचपना छोड़ लुबु, क्या पागलों जैसे बातें कर रही है? तेरे लिए मैंने रिश्ते ढूँढना शुरू कर दिया है…” 

लुबना-“मर जाउन्गी, मगर शादी नहीं करूँगी…” 

जीशान को लगने लगा था कि अमन और शीबा की मौत के बाद शायद लुबना का दिमाग़ ठिकाने आ गया होगा। मगर वो तो अभी भी वहीं थी, जहाँ जीशान उसे छोड़कर आगे बढ़ गया था। 

जीशान-“देख मुझे गुस्सा मत दिला लुबु, तू अच्छे से जानती है, अगर मुझे गुस्सा आ गया ना तो…” 

लुबना जीशान को देखती हुई अपने कपबोर्ड में से एक छोटा सा मगर तेज चाकू निकालकर जीशान के सामने आकर खड़ी हो जाती है। 

जीशान-क्या करेगी? मुझे मारेगी इस चाकू से? 

लुबना-“ये आपके लिए नहीं है। मैं आपको सिर्फ़ ये दिखाना चाहती हूँ कि अगर अपने मेरी शादी की बात दुबारा मुझसे किया तो…” वो उस चाकू को अपनी कलाई पे रखकरबस चलाने ह वाली थी कि जीशान उसका हाथ खींच लेता है। मगर फिर भी थोड़े सी चमड़ी कट गई थी। 

जीशान उसके हाथ से चाकू लेकर अपने पास रख लेता है-“अगर तूने दुबारा ऐसी कोई भी हरकत की ना लुबु तो मैं अम्मी को बोल दूँगा…” 

लुबना-“बोल दो, जो करना है करो। मगर आप मेरे दिल से मोहब्बत को कभी नहीं निकल पाओगे वो मोहब्बत जो मैं आपसे करती हूँ और मरते दम तक करती रहूंगी …” 

जीशान उसे बेड पे पटक के बाहर निकल जाता है। 

अमन के जाने के बाद तो लुबना की हिम्मत और भी ज्यादा बढ़ गई थी। उसे अपने आप पे और अपने मोहब्बत पे पूरा यकीन था। 
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रज़िया और सोफिया को बातें करता देखकर जीशान मूड ठीक करने उनके पास आकर बैठ जाता है। 

रज़िया-“जीशान बेटा, अपनी अम्मी को थोड़ा समझाकर देख दिन भर रूम में बंद रहने लगी है…” 

सोफिया-“हाँ जीशान , ऐसा कब तक चलेगा? वो जो हमें इस तरह बीच मझदार में छोड़ गये हैं उनकी यादों के सहारे हम ये लंबा सफर नहीं काट सकते। बस तुम्ह हो जिसकी बात फुफु सुनेंगी…” 

जीशान-“ठीक है…” कहकर वो अनुम के रूम में चला जाता है। 

अनुम चेयर पे बैठी हुई थी जीशान को देखकर वो हल्के से स्माइल देती है और उसे अपने पास बैठा देती है। 

जीशान-“अम्मी, मैं आपसे बहुत नाराज हूँ …” 

अनुम-“क्यों जीशान बेटा क्या हुआ?” 

जीशान-“अब्बू के जाने के बाद फॅक्टरी का सारा काम मेरे ऊपर आ गया है। लुबना तो किसी काम की नहीं है। मुझे आपसे उम्मीद थी क्योंकी आप तो ग्रेजुयेट हो और आपको फॅक्टरी के बारे में बहुत कुछ पता भी है। मैंने सोचा था कि आप मेरे साथ फॅक्टरी आएँगी और अब्बू की और आपकी फॅक्टरी को और आगे तक लेकर जाएँगी। मगर आपने मेरा और फॅक्टरी का कभी साथ नहीं दिया…” 

अनुम-“मुझे तूने ये बात पहले क्यों नहीं बताई?” 

जीशान-“तो क्या आप मेरे साथ फॅक्टरी चलेंगी रोज?” 

अनुम-हाँ चलूंगी । 

जीशान खुशी के मारे अनुम के हाथ चूम लेता है। 

अनुम-“बदमाश… तू बिल्कुल अपने अब्बू जैसा है। वो जब भी मुझे खामोश देखते थे तो इसी तरह गोल-मोल बातें करके मेरा दिमाग़ दूसरी तरफ भटका देते थे, और मैं वो बात भूल जाती थी। मगर तेरे अब्बू … मेरी जान थे। मुझे फॅक्टरी ले जाकर तुझे क्या लगता है कि मैं अमन के बारे में सोचना बंद कर दूँगी …” 
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05-19-2019, 01:44 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान अपनी अम्मी के बात पे मुश्कुरा देता है-“आप बहुत होशियार हो अम्मी…” 

अनुम-“तुझे क्या लगा मैं तेरी तरह हूँ ?” 

जीशान-“अम्मी, एक बात बताएँ?” 

अनुम-क्या? 

जीशान-“अब्बू आपकी जान थे तो मैं आपकी जान नहीं हूँ ?” 

अनुम-“तू भी है। अगर मैं जिंदा हूँ तो सिर्फ़ तेरे और लुबना के लिए…” 

जीशान उसका हाथ अपने हाथ में ले लेता है-“और अगर मैं जिंदा हूँ तो सिर्फ़ आपके लिए। मेरी जिंदगी का मकसद अब सिर्फ़ एक रह गया है…” 

अनुम-क्या? 

जीशान-“वो मैं आपको वक्त आने पर बताऊँगा अम्मी… हाँ मगर आपको मुझसे एक वादा करना होगा…" 

अनुम-क्या? 

जीशान-“आप मेरे साथ फॅक्टरी रोज आएँगी और मैं जैसी ड्रेस आपके लिए पसंद करूँगा, आपको वही पहनना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता कि लोग मुझे कहें कि कितनी बूढ़ी गलतफ्रेंड है मेरी …” 

अनुम आँखें निकालकर जीशान के कान खींचती है-“अच्छा बच्चू , अब मैं अम्मी से गलतफ्रेंड बन गई तेरी ? मारु क्या?” 

जीशान हँसने लगता है-“अम्मी, अब्बू की हर चीज मेरी ही तो है…” 

अनुम-क्या मतलब? 

जीशान-ये घर किसका था? 

अनुम-तेरे अब्बू का। 

जीशान-और अब किसका है? 

अनुम-तेरा। 

जीशान-बाहर खड़ी कार किसकी है अब? 

अनुम-तेरी बाबा। 

जीशान-फॅक्टरी का कौन मालिक है अब? 

अनुम-“उफफ्फ़ हो तू है…” 

जीशान-“इसका मतलब… हर वो चीज जो पहले अब्बू की थी, अब मेरी है। तो आप भी मेरी हुई आज से…” 

अनुम अपनी नजरें झुका लेती है-“मैं तेरी अम्मी हूँ , कोई चीज नहीं ?” 

जीशान-“मुझे पता है, मैं बस आपको उदाहरण दे रहा था…” 

अनुम-“मैं सिर्फ़ अमन ख़ान की हूँ …” 

जीशान अनुम का हाथ पकड़कर उसे अपने करीब कर लेता है-“अमन ख़ान अब इस दुनियाँ में नहीं रहे। और मैं आपको उनकी यादों में मरते हुई नहीं देख सकता…” 

अनुम-“तुझे क्या लगता है कि अमन चले गये तो तेरा चान्स बन जाएगा? मैं वो औरत नहीं , जो मर्द की बाहों में पिघल जाऊूँ…” 

जीशान-“मैं भी अब्बू और आपका खून हूँ । जब तक मैं आपको अपना बना नहीं लूँगा, मैं शादी नहीं करूँगा…” ये कहकर वो वहाँ रुका नहीं , बल्की रूम से बाहर चला गया। 

अनुम-“जीशान …” 

आज जीशान ने वो कसम खाया था जिसके बारे में सोचकर अनुम के रोंगटे खड़े हो गये थे। 

रज़िया जीशान को पूछने लगती है-“क्या बात हुई अनुम से?” 

जीशान-“अरे दादी , मैं मनाऊूँ और सामने वाला नहीं माने, ऐसा हो सकता है क्या? वो कल से फॅक्टरी आएँगी और जब बाहर निकलेंगी तो धीरे-धीरे सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा…” 

रज़िया खुश हो जाती है और अपने पोते की पेशानी चूम लेती है-“मुझे तुझसे यही उम्मीद थी जीशान …” 

जीशान-“मगर मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी…” 


रज़िया-क्या मतलब? 

जीशान-“मतलब ये कि मैंने इतना बड़ा काम किया तो मुझे आपने सिर्फ़ पेशानी पे चूमा होंठों पर नहीं …” 

रज़िया शरमा जाती है। 

उसका शरमाना जीशान को कत्ल कर देता है, और वो रज़िया के चेहरे को अपनी तरफ घुमाकर उसकी आँखों में देखने लगता है-“क्या मैं इन्हें चूम सकता हूँ दादी ?” 

रज़िया के होंठ काँप जाते हैं, और आँखें बंद हो जाती हैं। जैसे ही जीशान अपने होंठ रज़िया के होंठों पे रख कर उन्हें चूमना शुरू करता है। 

तभी दरवाजा खुलता है और नग़मा के साथ सोफिया अंदर दाखिल हो जाती है। नग़मा और सोफिया के मुँह से चीख निकल पड़ती है। 

और जीशान रज़िया को छोड़ देता है। 

दोनों लड़कियाँ अपने रूम में भाग जाती हैं। 

रज़िया जीशान को धक्का देकर अपने रूम से बाहर निकाल देती है-“अब क्या होगा, मैं उन दोनों के सामने कैसे जाउन्गी?” यही बात रज़िया को परेशान करने लगती है। 

कुछ देर बाद जीशान सोफिया के रूम में जाता है। नग़मा जीशान को रूम में आता देखकर अपने मुँह पे हाथ रख कर हँसते हुये बाहर भाग जाती है। सोफिया भी हँसने लगती है। जीशान सर खुजाता हुआ सोफिया के पास आकर बैठ जाता है 

सोफिया-“ओऽ ओऽ ओह ओऽ …” 

जीशान-क्या हुआ बाजी? 

सोफिया-“वही तो हम जानना चाहते हैं कि क्या हो गया है तुझे? जो तू दादी के साथ हेहेहेहे” जीशान को ऐसे लगता है जैसे सोफिया उसका मजाक उड़ा रही है। 
सोफिया खड़ी हो जाती है और बाहर जाने लगती है। 

मगर जीशान उसका हाथ पकड़ लेता है और अपनी तरफ घुमा लेता है-“जब आप एक 40 साल के मर्द के साथ सब कुछ कर सकती हैं, तो मैं अपनी दादी के साथ कुछ क्यों नहीं कर सकता?” 

सोफिया की पलकें झुक जाती हैं, वो कुछ नहीं बोल पाती। 

जीशान उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपने से चिपका लेता है-“वैसे वो सब मैं आपके साथ करना चाहता था। कोई बात नहीं अम्मी ना सही उनके बेटी ही सही …” 

सोफिया जैसे ही अपनी आँखें ऊपर करके जीशान को कुछ बोलना चाहती है, जीशान सोफिया को चूमने लगता है। एक साल से जलती सोफिया किस तरह अपनी रातें गुजार रही थी, ये वो ही जानती थी। जीशान की सूरत में उसे अमन नजर आने लगा था और जीशान की हरकतें तो उसे पहले से ही बहुत अच्छी लगती थीं। पता नहीं क्या था जीशान के होंठों में कि सोफिया भी उसके होंठों को चूमती चली जाती है। मगर अचानक पता नहीं उसे क्या हो जाता है और वो जीशान को धक्का दे देती है। 

सोफिया-“जो करना है वो कर, मेरे साथ कोई हरकत नहीं चलेगी…” 

जीशान सोफिया के कान पकड़ लेता है-“देखो, मैंने तो कान भी पकड़ लिए सारी …” 

सोफिया को हँसी आ जाती है और वो दो-तीन मुक्के जीशान की छाती पे जड़ देती है-
“चल खाना खाते हैं…” और सोफिया जीशान का हाथ पकड़कर उसे खाना खाने ले चलती है। 

रात के डिनर के बाद सभी कुछ देर हाल में बातें करते हैं, और एक-एक करके सभी अपने-अपने कमरे में सोने चले जाते हैं। 

सोफिया अपने रूम में जाते-जाते जहाँ जीशान को एक कातिलाना स्माइल देती जाती है। 

वहीं लुबना जीशान को खा जा ने वाली नजरों से बड़े गुस्से में देखती हुई मुँह ही मुँह में बड़बड़ाती हुई सोने चले जाती है। 

नग़मा तो बहुत जल्दी सो जाती थी। वो सबसे पहले हाल खाली करती है। 

जीशान, रज़िया और अनुम तीनो बातें कर रहे थे। 

जीशान-“दादी , अम्मी कल से मेरे साथ फॅक्टरी जाने वाली है…” 

रज़िया-सच अनुम? 

अनुम-“हाँ अम्मी, ये जीशान भी ना मुझे कहता है कि मैं उसकी हेल्प नहीं करती हूँ …” 

रज़िया-“बात तो सोलह आने सही कहता है जीशान । तुम्हें उसकी हेल्प करनी चाहिए, हर मामले में…” 

“हर मामले में…” सुनकर अनुम और जीशान दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं। 


अनुम अपनी गर्दन नीचे झुका लेती है-“मैं सोने जा रही हूँ , सुबह जल्दी उठना भी है…” 

जीशान-“अम्मी, मैं आपके रूम में आपके साथ सोने आ जाऊूँ?” 

अनुम-“कोई ज़रूरत नहीं , अपने रूम में जाकर सो जाओ…” जीशान छोटा सा मुँह बना लेता है और अनुम उसके सर पे थप्पड़ मारकर अपने रूम में चली जाती है। 
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05-19-2019, 01:44 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान अपनी गर्दन मोड़कर रज़िया की तरफ देखने लगता है, जो काफी देर से उसे ही देख रही थी। रज़िया उसकी आँखों में उठते सवाल को पढ़कर मुश्कुरा देती है। 
रज़िया कहती है-“एक शर्त पे सो सकते हो कि तुम कोई बदमाशी नहीं करोगे…” 

जीशान-“और अगर आपने मेरे साथ कुछ बदमाशी की तो?” 

रज़िया-“क्या? रुक जा बदमाश अपनी दादी को ऐसा कहता है?” वो जीशान को मारने के लिए आगे बढ़ती है। 

मगर उसे पहले जीशान रज़िया के रूम में चला जाता है। रज़िया रूम में आने के बाद दरवाजा लाक कर देती है और लाइट बंद कर देती है। 

जीशान-लाइट क्यों आफ कर दिया? 

रज़िया-मुझे चेंज करना है। 

जीशान दिल में सोचने लगता है-“ओन ही रहने देते…” 

थोड़े देर बाद जब लाइट ओन होती है तो जीशान के होश उड़ते देर नहीं लगती। 
रज़िया नाइटी में बेहद सेक्सी लग रही थी। ये नाइटी रज़िया उस वक्त पहनती थी, जब अमन उसके पास होता था। तकरीबन एक साल बाद उसने ये नाइटी बाहर निकाली थी। 

उस वक्त रज़िया के दिल का हाल कोई नहीं जान सकता था। एक मेच्योर औरत, जो अपने जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देख चुकी थी। जो अपना एक नहीं , बल्की दो शौहर खो चुकी थी। मगर जिसके जिस्म में अब भी इतनी गर्मी थी कि एक 20 साल के मर्द की ख्वाहिशों को बड़े आराम से पूरा कर दे। जिसकी चूत अब भी अंदर से उतनी पकड़ रखती थी कि किसी भी लण्ड को एक बार अपने अंदर जकड़ ले तो बिना पानी निकाले उसे बाहर ना आने दे। 

जीशान अपनी दादी के हुश्न को देखकर धीरे से कहता है-“मैं तेरा कौन सा नाम रखूं ? सुबहे बनारस रखूं या फिर रखूं अवध की शाम?” 
मैं तेरा कौन सा रखूं नाम, 
बाहर से तू फूल की जैसे परी है और सुंदर है, 
अंदर से बागवान है जाने फूल है या पत्थर है। 
गुल मोहर गुलनार चमेली , या गुलाब की पर या सहेली , 
तुझको फूलों में फूलों की रानी कैसे मानूं, 
मेरे मन के आँगन में एक बार खेलो तो जानूँ । 

रज़िया दिल में जितनी ज्यादा खुश हुई थी, उतना ही बनावटी गुस्सा वो जीशान को दिखाते हुई उसे घुरने लगती है, और जीशान हँसता चला जाता है। दोनों थोड़े फासले से एक ही बेड पे लेट जाते हैं। रज़िया जानती थी कि जीशान कोई ना कोई बदमाशी तो ज़रूर करेगा। वो खुद को संभाल रही थी कि किसी भी तरह वो जीशान को अपने ऊपर हावी नहीं होने देगी। उन्हें बेड पे लेटे हुई एक घंटे से ऊपर हो चुका था। मगर दोनों की पलकें एक मिनट के लिए भी बंद नहीं हुई थीं। 

जीशान-“दादी , मुझे नींद नहीं आ रही है …” 

रज़िया उसकी तरफ चेहरा करके लेट जाती है-“आँखें बंद करके सोने के कोशिश कर, आ जाएगी…” 

जीशान-“नहीं आ रही । मैं जब भी अपने आँखें बंद करता हूँ ना मुझे एक तस्वीर नजर आती है…” 

रज़िया-किसकी जीशान ? 

जीशान-आपकी। 

रज़िया शरमा जाती है और चूमते हुये जीशान के गाल पे काट लेती है। रज़िया के शरमाने का फायेदा उठाकर जीशान अपना हाथ रज़िया की गर्दन पर रख देता है। दोनों की नजरें एक दूसरे से मिल जाती हैं और जीशान अपने हाथ से रज़िया की गर्दन को सहलाने लगता है। 

रूम में सन्नाटा पसरा हुआ था। बस दोनों की साँसों की आवाज़ आ रही थी, जो धीरे-धीरे बढ़ते ही जा रही थी। 

रज़िया-“मत कर ऐसा जीशान …” 

जीशान कुछ नहीं कहता और अपने होंठों को आगे बढ़ाते हुये रज़िया के होंठों के पास ले आता है। रज़िया अपने होंठ बंद कर लेती है। जीशान अब भी उसके गर्दन को सहलाना नहीं छोड़ता। पिछले एक साल से अपनी चूत की आग में झुलसती रज़िया खुद को कब तक कंट्रोल कर पाती। वो आँखें बंद कर लेती है और अपने होंठ थोड़े से जीशान के तरफ बढ़ा देती है। 

बस उसी पल जीशान अपने होंठों को रज़िया के होंठों से चिपका लेता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 
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05-19-2019, 01:44 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
रज़िया की नाक से निकलती साँसें जीशान की नाक में जाने लगती हैं, मुँह से निकलता सलाइवा जीशान चाटने लगता है, और अपने हाथों से उसके नरम जिस्म को कसने लगता है। रज़िया अब पूरे तरह जीशान के कब्ज़े में आ चुकी थी। 

बिना रज़िया से इजाजत लिए जीशान उसकी नाइटी को खोलने लगता है। रज़िया थोड़ा ऐतराज दिखाते हुये उसके हाथ को पकड़ लेती है। 

जीशान आज सोचकर आया था कि वो रज़िया के दिल के साथ उसका जिस्म भी जीत लेगा। वो जानता था कि अब उसे ह इस घर को और इस घर की औरतों का ख्याल रखना है, और इस काम को बखूबी निभाते हुये आज वो अपनी दादी को अपने काबू में कर रहा था। 

रज़िया जीशान के इस तरह से मसलने से बेचैन वो उठी थी। वो जीशान के होंठों को अब अपने मुँह में खींचकर उसे चूसने लगती है। जीशान रज़िया की नाइटी निकाल देता है और उसकी दोनों चुचियाँ जीशान के सामने आ जाती हैं। उसने शायद कभी इतनी खूबसूरत चुचियाँ नहीं देखी थी। इसलिए वो कुछ देर के लिए सब कुछ भूल कर उन्हें देखता रह जाता है। 

रज़िया जीशान के सर को पकड़कर उसे अपने चुचियों पे झुकाती है-“ले, अपनी रज़िया का दूध पी जा… आज से तू कभी भूका नहीं सोएगा जीशान…” 

जीशान अपना मुँह खोलकर रज़िया की चुचियों को अपने मुँह में खींच लेता है और उसे चूसता चला जाता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” और कभी होंठों को तो कभी निपल्स को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है। मगर जीशान भी अमन का बेटा था-जल्दबाज। 

अपनी दादी को हाँसिल करने की जल्दी में वो अपना एक हाथ रज़िया की चूत पे रख कर दबा देता है और उसी पल रज़िया उसे धक्का देकर अपने से अलग कर देती है। 

रज़िया-“ उंगली क्या दी तुम तो पूरा हाथ खींच रहे हो, चले जाओ यहाँ से…” 

जीशान-मगर? 

रज़िया-“अगर मगर कुछ नहीं , मैंने कहा ना चले जाओ यहाँ से…” 

जीशान को बुरी तरह गुस्सा आ जाता है और वो रज़िया के रूम से निकलकर अपने रूम में चला जाता है। उसके जाने के बाद रज़िया अपनी पैंटी निकालकर देखती है। वो पूरी की पूरी गीली हो चुकी थी और यही वजह थी रज़िया के इस तरह विहेब करने की। पानी निकलने के बाद तो शेर भी ढेर हो जाता है, फिर शेरनी क्या चीज है। 

जीशान को समझ में नहीं आ रहा था कि रज़िया ने ऐसा क्यों किया? कभी उसे लगता था कि रज़िया उसे सब कुछ दे देगी और कभी रज़िया उसके साथ गैरों जैसा बर्ताव करती थी। 

रात काटना उसके लिए बहुत मोहाल साबित हुआ। खड़े लण्ड के साथ सोना जीशान को नहीं आता था। 

सुबह 7:00 बजे- 

जीशान फ्रेश होकर बाहर गार्डन एरिया में जाने लगता है। वो भी अमन की तरह अपने फिटनेस पे बहुत ध्यान देता था। 

अनुम और सोफिया उससे पहले ही जाग चुकी थीं। और सुबह के नाश्ते की तैयार करने में लगी हुई थी। लुबना घोड़े बेच के सो रही थी। 

एक बार तो जीशान का दिल किया कि वो रज़िया के रूम में जाकर देखे। मगर फिर वो खुद को गालियाँ देते हुये आगे बढ़ जाता है वो। नग़मा के रूम के सामने उसे आवाज़ सुनाई देती है तो वो नग़मा के रूम में चला जाता है। आवाज़ नग़मा के बाथरूम में से आ रही थी। नग़मा ने बाथरूम का दरवाजा लाक नहीं किया था। और अंदर का नजारा जीशान साफ-साफ देख सकता था। 

नग़मा गाना गुनगुना रही थी और शावर से नहा रही थी। बिना ब्रा वाली उस टीशर्ट में से नग़मा की भरी हुई दोनों चुचियाँ देखकर जीशान को पहले तो हैरानी होती है कि ये नग़मा ही है ना? वो ब्रा और पारदर्शी पैंटी में नहा रही थी। 

अचानक नग़मा को एहसास होता है कि कोई उसे देख रहा है। मगर वो उस तरफ ना देखते हुये घूम जाती है और उस देखने वाले को अपने गाण्ड दिखाती हुई वो टीशर्ट उतार देती है। चिकनी पीठ और उसपे से गिरता हुआ पानी जो उसकी पैंटी को गीला कर रहा था, जिसकी वजह से पैंटी में से झाँक ती हुई चूत तड़प रही थी, जीशान के दीदार करने के लिए। नग़मा गाना गुनगुनाते हुये घूमती है और झुक के अपनी पैंटी भी निकाल देती है। उसके बाद नग़मा वो करती है जो जीशान ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था… वो अपनी कुँवारी चूत को दोनों हाथों से मसलने लगती है। 

जीशान नग़मा की कुँवारी चूत को देखकर पागल सा हो जाता है और उसका लण्ड उसके पैंट में झटके खाने लगता है। सामने हुश्न की मलिका खड़ी हुई उसे अपनी तरफ खींच रही थी। मगर जीशान जानता था कि अगर अभी कोई कदम उठाया तो गलत हो सकता है। वो अपने लण्ड को अपने पैंट में अड्जस्ट करता हुआ बाहर निकल जाता है। 

उसके बाहर जाते ही नग़मा दरवाजा की तरफ देखकर मुश्कुरा देती है। 
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