MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:06 PM,
#61
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
राज और निक्की के वहाँ नज़र ना आने से मुझे लगा कि, वो लोग अभी हॉस्पिटल से वापस नही आए है. फिर भी अपनी सोच को पक्का करने के लिए मैने रिया से पूछा.

मैं बोला "क्या राज और निक्की अभी हॉस्पिटल से वापस नही लौटे."

मेरी बात सुनकर रिया ने मुझे ऐसे देखा, जैसे मैने उस से कोई बेतुकी बात पूछ ली हो. फिर उस ने बड़े ही अनमने ढंग से कहा.

रिया बोली "राज तो अभी हॉस्पिटल मे ही है. वो मेहुल के साथ आएगा. निक्की वापस आ गयी है और वो अपने कमरे मे है."

मैं बोला "क्या निक्की खाना नही खाएगी."

रिया ने बड़े अनमने मन से कहा.

रिया बोली "निक्की कह रही थी. उसने हॉस्पिटल मे दिन भर बहुत नाश्ता किया है, इसलिए उसे भूक नही है. वो दिन भर हॉस्पिटल मे रहने से थक गयी है, इसलिए वहाँ से आकर अपने कमरे मे आराम कर रही है."

मुझे रिया का यूँ मूह बना कर जबाब देना समझ मे नही आया, और मैं इसी बारे मे सोचते सोचते पापा के पास वाली खाली सीट पर आकर बैठ गया. मेरा अनुमान था कि रिया जाकर प्रिया के पास वाली सीट पर बैठेगी. लेकिन वो भी मेरे पास वाली सीट पर बैठ गयी.

मेरे पहुचते ही सब ने खाना शुरू कर दिया. दादा जी से मेरी एक दो बातें हुई और उसके बाद उन सब की पापा से बातें होती रही. मैं उन लोगों की बातों पर ध्यान दिए बिना, चुप चाप खाना खाने लगा.

लेकिन मेरे दिमाग़ मे सिर्फ़ निक्की का वो उदास चेहरा घूम रहा था. जो मैने हॉस्पिटल से लौटते समय देखा था. अब मैं ये बात समझने की कोसिस कर रहा था की, यदि निक्की दिन मे मेरे साथ ना आ पाने की वजह से उदास थी तो, फिर अभी मेरे घर मे रहने पर भी, वो मेरे सामने क्यों नही आई.

जहाँ एक ओर मुझे निक्की की ये हरकत समझ मे नही आ रही थी, तो दूसरी तरफ रिया का निक्की का नाम सुन कर, मूह बना कर जबाब देना भी एक पहेली बन गया था. मैं अपनी इन्ही सोचों मे गुम था कि, तभी मैं चौक गया.

रिया ने खाना खाते खाते फिर अपनी हरकत करना शुरू कर दी. वो अपने पैर के पंजे को मेरे पैरों के पंजों पर रगड़ने लगी. उसकी ये हरकत मुझे ज़रा भी अच्छी नही लगी. मैने एक नज़र सबकी तरफ डाली. मुझे डर था कि कही कोई रिया को ये हरकत करते देख ना ले. मगर सभी अपनी बातों मे मगन थे. किसी का भी ध्यान मेरी या रिया की तरफ नही था. शायद इसी बात का रिया फ़ायदा उठा रही थी.

मैने जब देखा कि किसी का ध्यान हमारी तरफ नही है. तब मैने धीरे से रिया के कान मे कहा.

मैं बोला "प्लीज़ यहाँ कोई हरकत मत करो. तुम्हे जो भी हरकत करना हो. अकेले मे किया करना."

मेरी बात सुन कर रिया मुस्कुरा दी और उसने अपनी हरकत बंद कर दी. लेकिन तभी मेरी नज़र सामने बैठी प्रिया पर पड़ी. वो बड़े गौर से मुझे ही देख रही थी. मैने उसे देखा तो मुस्कुरा दिया. प्रिया भी मुझे देख कर मुस्कुराइ और वापस खाना खाने लगी.

लेकिन वो भी मेरे सोचने के लिए एक सवाल खड़ा कर गयी. अब मैं ये सोचने लगा कि प्रिया मुझे इस तरह से क्यों देख रही थी. क्या प्रिया ने रिया को हरकत करते देख लिया था, या फिर उसने सिर्फ़, मुझे रिया के कान मे कुछ कहते देखा है.

मैने कोई चोरी नही की थी. फिर भी किसी चोर की तरह मैं प्रिया से नज़र मिलने से कतराने लगा और चुप चाप सर झुका कर खाना खाने लगा. पहले तो मेरा मूड निक्की के खाना खाने ना आने से कुछ बिगड़ा था और अब प्रिया के इस तरह से घूर कर देखने से और भी बिगड़ गया था.

मैने जल्दी से डिन्नर किया और सब से पहले वहाँ से उठ गया. मेरे साथ साथ प्रिया भी डिन्नर से उठ गयी. मैने सब से हॉस्पिटल जाने के बारे मे जताया और उठ कर बाहर आने को हुआ तो प्रिया ने कहा.

प्रिया बोली "चलो मैं तुम्हे बाहर तक छोड़ देती हूँ."

मैं बोला "इसकी क्या ज़रूरत है. मैं चला जाउन्गा."

प्रिया बोली "मैं कौन सा तुम्हे हाथ पकड़ कर बाहर तक छोड़ने जा रही हूँ. मैं तो तुम्हारे साथ बाहर तक चलने की बात कर रही हूँ."

प्रिया की ये बात सुन कर सब हँसने लगे. उस समय मुझे ना तो प्रिया का ये मज़ाक अच्छा लगा, और ना ही सब का हँसना अच्छा लगा. फिर भी मैने उपरी मन से मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला "चलो."

फिर मैं और प्रिया बाहर आने लगे. मैं मन ही मन सोच रहा था कि, शायद प्रिया मुझसे कुछ पूछेगी मगर उसने कोई सवाल नही किया. मेरा मन हुआ कि मैं उस से ये बात पूछ लूँ कि, वो मुझे घूर कर क्यों देख रही थी. लेकिन मैं उस से ये पूछने की हिम्मत ना कर सका.

हम दोनो घर से बाहर आए तो मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला "अब यदि तुम्हारा घर के बाहर तक छोड़ना हो गया हो तो, अब तुम वापस जा सकती हो. मैं आगे सड़क से टॅक्सी पकड़ कर चला जाउन्गा."

प्रिया ने एक बार घर की अंदर की तरफ देखा और फिर एक दम से अपना सवाल दाग दिया. जिसके लिए वो मुझे बाहर तक छोड़ने आना चाहती थी.

प्रिया बोली "आज तुम्हारे और रिया के बीच मे क्या हुआ."

प्रिया का ये सवाल सुनकर मैं चौक गया. मुझे समझ मे नही आया कि वो किस बारे मे बात कर रही है. मैने उस से उल्टा सवाल किया.

मैं बोला "मैं कुछ समझा नही. तुम किस बारे मे बात कर रही हो ?"

प्रिया बोली "ज़्यादा मत बनो. मैं सब समझती हूँ. आज ज़रूर तुम दोनो के बीच कुछ हुआ है. सच सच बताओ क्या हुआ."

मैं बोला "देखो मुझे तुम्हारी कोई बात समझ मे नही आ रही. तुम जो भी पूछना चाहती हो. ज़रा खुल कर बोलो. मुझे कुछ भी बताने मे कोई परेशानी नही है."

प्रिया बोली "जब हम लोग हॉस्पिटल से वापस आए थे. तब रिया तुम्हारे ही कमरे मे थी. सब से पहले मैं घर के अंदर आई थी, इसलिए बस मैने ही उसे, तुम्हारे कमरे से निकलते देखा था. अब तुम बोलो कि तुम दोनो अकेले मे क्या कर रहे थे.

प्रिया की बात सुनकर तो मेरा दिमाग़ ही घूम गया. मैं समझ नही पाया कि रिया आख़िर मेरे कमरे मे कर क्या रही थी. फिर भी प्रिया की बात का जबाब तो देना ही था. मैने उसे उन लोगों के जाने के बाद रिया के दरवाजा खोल कर सोने वाली बात बताई और कहा.

मैं बोला "इसके बाद मैं सो गया था और फिर पापा के उठाने पर ही जागा हूँ. हो सकता है कि रिया मुझे जगाने ही आई हो. लेकिन जब उसे याद आया हो कि मैने उसे 9:30 बजे के बाद जगाने को कहा है तो, वो मुझे बिना जगाए ही वापस लौट गयी हो."

प्रिया बोली "तुम सच बोल रहे हो."

मैं बोला "मुझे कुछ भी झूठ बोलने की ज़रूरत नही है."

प्रिया बोली "यदि ये सच है तो फिर अभी रिया तुम्हारे पैरों पर पैर क्यों मार रही थी."

प्रिया की ये बात सुनकर मैं सन्न रह गया. मुझे इस बात का अंदाज ज़रा भी नही था कि, प्रिया ने वो सब देख लिया है. अब मुझे उसके घूर कर देखने का मतलब समझ मे आ रहा था. मैने कहा.

मैं बोला "ये बात तुमको मुझसे नही रिया से पूछनी चाहिए थी."

प्रिया बोली "जो कुछ भी चल रहा है. तुम दोनो के बीच ही चल रहा है, तो फिर इस बात से क्या फ़र्क पड़ता है कि, मैं किस से पुच्छू."

मैं बोला "हम दोनो के बीच कुछ भी नही चल रहा है. लेकिन अब तुम इतना खुल कर बोल रही है तो क्या मैं भी तुम से एक बात पुछ सकता हूँ."

प्रिया बोली "एक क्या तुम 100 बात पुच्छ सकते हो."

मैं बोला "यदि तुम जबाब दे दो तो, वही एक बात 100 बात के बराबर होगी."

प्रिया बोली "तुम पुछो. मैं जबाब ज़रूर दुगी."

मैं बोला "तुमने जब रिया को मेरे कमरे से निकलते देखा तो, तुमने क्या सोचा कि, रिया मेरे कमरे मे क्या कर रही थी."

प्रिया बोली "ये भी कोई कहने वाली बात है. एक लड़का लड़की अकेले मे बंद कमरे मे क्या करते है."

मैं बोला "मैं किसी लड़की के साथ अकेले मे बंद कमरे मे कभी रहा नही. इसलिए मुझे ये सब नही मालूम है. यदि तुमको मालूम है तो, तुम ही बता दो कि, एक लड़का लड़की बंद कमरे मे क्या करते है."

ये सब बात मैं गुस्से मे प्रिया से बोल गया था. लेकिन मैं नही जानता था कि, इसका जबाब मुझे वो मिलेगा जो मैं सोच भी नही सकता.

प्रिया बोली "कभी मेरे साथ अकेले बंद कमरे मे रह कर देखो. मैं तुमको सब बता दुगी."

मैं बोला "कभी ऐसा मौका आया तो ज़रूर रहुगा. लेकिन अभी तो मुझे हॉस्पिटल जाने मे देर हो रही है. अब तुम अंदर जाओ, मैं आगे से टेक्सी पकड़ कर निकल जाउन्गा."

प्रिया बोली "ओके बाइ."

मैं बोला "बाइ."

ये बोल कर प्रिया अंदर चली गयी और मैं सड़क पर आ गया. सड़क पर आते ही मुझे एक टॅक्सी मिल गयी और मैं हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ा. टॅक्सी मे बैठते ही मैं फिर अपनी सोच मे गुम हो गया था. प्रिया और रिया की हरकत मेरे दिमाग़ मे घूमने लगी. मुझे उन दोनो की हरकतें बहुत अजीब सी लग रही थी. मैं इस बात को मान नही पा रहा था कि लड़कियाँ इस तरह की भी होती है.

मेरा पाला अभी तक कीर्ति, शिल्पा और नितिका जैसी लड़कियों से पड़ा था. जो चाहे कितने भी आधुनिक कपड़े क्यों ना पहनी हो, पर शरम हया उनकी आँखो और बातों से झलकती थी. मुझे नितिका मे कभी आकर्षण नज़र नही आया था, मगर आज वो मुझे रिया और प्रिया से अच्छी ही समझ मे आ रही थी.

मुझे अचानक ही कीर्ति की बहुत याद आने लगी. मेरा मन कर रहा था कि, कैसे भी मैं अभी उसके पास पहुच जाउ. मुझे अचानक ही कीर्ति की बहुत कमी अखरने लगी थी. मैने कीर्ति को कॉल लगाने के लिए अपना मोबाइल निकाला. तभी टॅक्सी रुक गयी. मैने बाहर देखा तो हॉस्पिटल आ चुका था. मैने वापस अपना मोबाइल अपने जेब मे रखा और टॅक्सी से उतर गया.

टॅक्सी वाले को पैसे देने के बाद मैं हॉस्पिटल के अंदर गया और नीचे ही मेहुल या राज को देखने लगा कि, इस वक्त नीचे कौन है. मुझे वहाँ कोई दिखाई नही दिया तो, मैं समझ गया कि जो भी है, वो इस वक्त बाहर ही समुंदर के किनारे बैठा होगा. ये सोचते हुए मैं बाहर आ गया.

उनको ढूँढते हुए मैं बाहर आया और फिर मेरी नज़र मेहुल पर पड़ी. मेहुल पर नज़र पड़ते ही मैं सोचने लगा कि, रिया ने मुझसे झूठ क्यों कहा था कि, निक्की घर आ गयी है. निक्की तो यहाँ मेहुल के साथ बैठी है. उन दोनो की मेरे तरफ पीठ थी, इसलिए वो लोग मुझे नही देख पाए थे. दोनो ही अपनी बातों मे लगे हुए थे. निक्की शायद मेहुल से कुछ बोल रही थी.

मैने उन दोनो की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए. लेकिन उनके करीब पहुचते ही निक्की की बात मुझे सुनाई पड़ी. जिसे सुनते ही मैं चौक गया और मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयी. मुझे मेरे कानो पर विस्वास नही हुआ. मैने धड़कते दिल से मेहुल को आवाज़ दी.

मेरी आवाज़ सुनते ही दोनो ने पलट कर मेरी तरफ देखा. उनके मेरी तरफ देखते ही, मेरा दिल धक्क करके रह गया. मेरे दिल की धड़कने थम सी गयी थी. मेरी आवाज़ मेरे गले मे ही अटक कर रह गयी. मेरे मूह से कोई बोल नही फुट रहे थे और ना ही मुझे मेरी आँखो पर विस्वास हो रहा था. मैं अपलक निक्की को देखे जा रहा था और फिर अचानक मेरी आँखों मे आँसू झिलमिला उठे.

ये आँसू उस धोके के थे. जो निक्की ने मेरे साथ किया था. मुझे ना तो अपने कानो पर, और ना ही अपनी आँखों पर विस्वास हो रहा था. फिर भी अभी अभी मैने जो कुछ देखा और सुना था. मैं उसे झुटला भी नही सकता था.

मेरी आँखो मे आँसू देखते ही मेहुल उठ कर खड़ा हो गया. उसके साथ साथ निक्की भी खड़ी हो गयी. मगर तब तक मैं अपने आँसुओं को पोछ चुका था. अब मेरी आँखों मे आँसू की जगह गुस्सा था. मेहुल या निक्की के कुछ भी कहने से पहले मैं बोल पड़ा.

मैं बोला "मैं अंकल के पास जा रहा हूँ. उनके पास शायद राज होगा. मैं उसे नीचे भेजता हूँ. तुम लोग घर चले जाना."

मेहुल समझ गया था कि, ये बात मैं गुस्से मे बोल रहा हूँ. उसने मुझसे कहा.

मेहुल बोला "यार मेरी बात तो सुन."

लेकिन मेहुल इसके आगे और कुछ कह पाता. उस से पहले ही मैने उसकी बात को काटते हुए कहा.

मैं बोला "मैं जा रहा हूँ. तुम्हे जो भी बात करना हो कल करना."

इसके बाद मैं मे बिना उनकी तरफ देखे उपर चला गया. उपर जाते जाते मैने अपने आपको सामान्य किया और फिर राज के पास पहुच कर, उस से अंकल का हाल चाल पूछा. फिर मैने राज को घर जाने के लिए बोला तो, उसने मुझे अंकल के बारे मे जानकारी देते हुए कहा.

राज बोला "अंकल अब होश मे है, मगर दवाइयों के असर से सो रहे है. बीच बीच मे वो उठ कर कुछ बात पूछते भी है. अभी वो बोल नही पा रहे है, इसलिए सारी बातें लिख कर कर रहे है. ये नोटबुक और पेन रखा है. जब वो कुछ बोलना चाहे तो, ये उनको दे देना. वो अभी कुछ समय इसी तरह से बात करेगे."

मैं बोला "ठीक है. अब तुम नीचे जाओ. नीचे मेहुल और निक्की तुम्हारा इंतजार कर रहे है."

राज बोला "ओके मैं जाता हूँ. लेकिन यदि तुम्हे रात को यहाँ कोई परेशानी हो तो, तुम मुझे कॉल कर देना. मैं आ जाउन्गा. रात को नीचे की कॅंटीन खुली रहती. तुम को यदि चाय कॉफी पीना हो तो, तुम नर्स को बता कर चले जाना. अब मैं जाता हूँ."

मैं बोला "ओके."

फिर राज नीचे चला गया. नीचे जाकर उसने मुझे फिर कॉल किया कि, वो लोग घर जा रहे है. सुबह मेहुल जल्दी आ जाएगा. इसके बाद वो लोग घर चले गये.

अंकल अभी भी सो रहे थे. मैने टाइम देखा तो, 11:00 बज चुके थे. मेरा मूड अभी भी सही नही था. मेरा मन कीर्ति से बात कर के, अपना मन हल्का करने का हो रहा था. मगर अंकल के पास बैठे होने की वजह से, मैं ऐसा नही कर सकता. मेरे बात करने से उनकी नींद मे खलल पड़ सकता था.

जब मुझे कुछ और नही सूझा तो, मैने अपना मोबाइल निकाला और उस मे कीर्ति के फोटो देखने लगा. उस समय सच मे मुझे कीर्ति का चेहरा देख कर बहुत सुकून मिल रहा था. मैं काफ़ी देर तक कीर्ति के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखता रहा. जिसे देख कर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान वापस आ गयी और मेरा गुस्सा कहीं गायब हो गया.

रात को 11:30 बजे अंकल की नींद खुली. मुझे अपने सामने बैठे देख कर, उन ने मुझसे इशारे से नोटबुक और पेन माँगा. मैने उनके हाथ मे पेन और नोटबुक थमा दिए.

उन्हो ने लिख कर मुझसे मेहुल के जाने के बारे मे पूछा. तो मैने उन से कहा.

मैं बोला "मेहुल अभी कुछ देर पहले ही घर गया है. सुबह जल्दी आ जाएगा. आज से मैं रात को और मेहुल दिन को रुकेगा."

अंकल ने फिर लिख कर पापा के आने के बारे मे बताया. तब मैने उन से कहा.

मैं बोला "मैं पापा से मिल लिया हूँ. पापा राज के दादा जी के कहने पर उनके घर मे ही रुके है."

फिर मैने अंकल से आराम करने को कहा तो, अंकल आँख बंद कर के लेट गये. दवाइयों के असर से उन्हे फिर से नींद आ गयी. थोड़ी देर बाद जब मैने देखा कि, अंकल गहरी नींद मे है. तब मैं कमरे से निकल कर बाहर बने दालान मे आ गया.

कमरे मे लगे काँच से, अंकल मुझे दालान से भी दिख रहे थे. अब 12 बज चुके थे. मैने अपना मोबाइल निकाला और कीर्ति को फोन लगाया. उसने पहली ही रिंग मे मेरा कॉल उठाया और कॉल उठाते ही कहा.

कीर्ति बोली "आइ मिस यू जान."

उसकी आवाज़ मुझे कुछ रुआंसी सी लगी. जैसे कि वो रो रही हो. उसे ऐसा देख कर मुझे उसकी चिंता हुई. मैने उस से कहा.

मैं बोला "तुझे ये क्या हुआ है. तेरा चेहरा ऐसा उतरा हुआ सा क्यों है."

कीर्ति बोली "कहाँ जान. मैं तो अच्छी हूँ. बस तुम्हे मिस कर रही हूँ. तुम मुझे देख नही पा रहे हो इसलिए तुम्हे ऐसा लग रहा है."

मैं बोला "देख झूठ मत बोल. मैं तुझे देख नही पा रहा हूँ तो, क्या हुआ. मैं तेरे चेहरे को तेरी आवाज़ से देख सकता हूँ. अब बता कि तुझे क्या हुआ."

मेरी बात सुनते ही कीर्ति रो पड़ी. मुझे उसके रोने का कारण समझ मे नही आया. लेकिन इतना समझ चुका था कि, ज़रूर कोई बड़ी बात है. नही तो वो इस समय मेरे सामने हरगिज़ ना रोती.

मैं बोला "अरे रोती क्यों है. मैं तो हमेशा तेरे साथ हूँ. मुझे बता ना क्या बात है. जो तुझे इतना परेशान कर रही है."

मेरी बात सुनकर उसने रोना बंद किया और फिर कहा.

कीर्ति बोली "जान आज सुबह मौसी और मौसा जी मे, मुझे लेकर बहुत झगड़ा हुआ."

मैं बोला "क्यों ऐसी क्या बात हो गयी."

कीर्ति बोली "मौसा जी अपनी किसी बिज़्नेस डील की वजह से मुंबई जा रहे थे. उन्हो ने मम्मी से मेरे को भी साथ ले जाने के लिए पूछ लिया था. लेकिन मैने मौसी से कहा कि मैं मुंबई नही जाना चाहती. आप मौसा जी मेरा नाम लिए बिना मना कर दीजिए. तब मौसी ने मौसा जी से कह दिया कि, मैं उनके साथ मुंबई नही जाउन्गी. जिसे लेकर दोनो मे बहुत झगड़ा हुआ."

मैं बोला "इसमे पापा को झगड़ा करने क्या ज़रूरत थी. मुझे तो इसमे झगड़े वाली कोई बात नज़र नही आ रही है."

कीर्ति बोली "मौसा जी को लगा कि मौसी मुझे उनके साथ, इसलिए भेजना नही चाहती, क्योंकि मौसी को उनके उपर विस्वास नही है. इसी बात को लेकर दोनो मे झगड़ा हुआ और फिर मौसा जी अकेले ही चले गये."

मैं बोला "तो तूने पापा के साथ आने से मना क्यों कर दिया. तुझे आ जाना चाहिए था. कम से कम तू मेरे सामने तो रहती."

कीर्ति बोली "मुझे उनके साथ आने मे डर लग रहा था."

मैं बोला "कैसा डर. क्या उन्हो ने तेरे साथ घर मे कोई हरकत की है."

कीर्ति बोली "नही ऐसी कोई बात नही है. बस मुझे ऐसे ही डर लग रहा था."

मैं बोला "देख मुझसे झूठ मत बोल. ज़रूर कोई बात हुई है. तभी तूने पापा के साथ आने से मना किया है. नही तो तू मेरे पास आने की बात को लेकर कभी उनके साथ आने से मना नही करती."

कीर्ति बोली "नही जान कोई बात नही है. मैं तो यहाँ आंटी और मौसी को अकेले छोड़ कर नही आना चाहती."

मैं बोला "ठीक है तुझे नही बताना तो मत बता. मैं तेरा होता ही कौन हूँ, जो तू मुझे अपनी हर बात बताएगी."

कीर्ति बोली "जान ये कैसी बात कर रहे हो. मेरे लिए तो सब कुछ तुम ही हो. तुम से तो मैं अपने दिल की हर बात कर सकती हूँ."

मैं बोला "तो फिर सच सच बता. तूने पापा के साथ आने से क्यों मना कर दिया."

कीर्ति बोली "जान तुमको सुनकर दुख होगा, इसलिए मैं तुम्हे ये बात बताना नही चाहती हूँ."

मैं बोला "मेरा कोई भी दुख, मेरी जान से बढ़ कर नही है. मैं अपना हर दुख सह सकता हूँ. मगर तेरी आँख मे आँसू की एक बूँद भी आए, ये मैं हरगिज़ नही सह सकता. मुझे बता तेरे साथ क्या हुआ."

कीर्ति बोली "अंकल और मेहुल के मुंबई चले के बाद से आंटी बहुत परेशान रह रही थी. कल ऑपरेशन की वजह से वो बहुत भावुक हो रही थी. इसलिए कल मौसी ने उनको अपने पास ही सुला लिया. मौसा जी कल उपर वाले कमरे मे ही सोने आए थे. मैं तो अमि निनी के साथ ही सोती हूँ. देर रात तक तुमसे बात होने के बाद, जब मैं सोने को हुई, तभी मौसा जी हमारे कमरे मे आए. मैं समझी कि वो अमि निमी को देखने आए है. मैं यूँ ही आँख बंद करके लेटी रही. मौसा जी मेरे पास आए और कुछ देर तक मुझे देखते रहे. फिर उन्हो ने मेरे माथे पर हाथ रखा. आँख बंद होने के कारण, मैं ये समझी कि, अमि निमी के सर पर हाथ फेरने के बाद, वो मेरे सर पर भी हाथ फेर रहे है. मैं चुप चाप लेटी रही. लेकिन मौसा जी का हाथ मेरे माथे से सरक कर धीरे धीरे, मेरे चेहरे और गर्दन से होते हुए, मेरे बूब्स तक आ गया. वो कपड़ो के उपर से ही, मेरे बूब्स पर हाथ फेरने लगे. मैं बहुत डर गयी थी. मुझे समझ मे नही आया कि, मैं क्या करूँ. तभी निमी हमेशा की तरह सोते सोते रोने लगी. उसका रोना सुन कर मौसा जी ने अपना हाथ हटा लिया, और फिर अमि के साथ साथ मैं भी उठ कर बैठ गयी."

हम सब को जागते देख मौसा जी ने अपनी सफाई दी.

मौसा जी बोले "मैं यहाँ तुम लोगो को देखने आया था. लेकिन निमी शायद कोई बुरा सपना देख कर जाग गयी है."

मैं बोली "आप चिंता ना करे. आप जाइए मैं और अमि मिल कर निमी को चुप करा लेगे."

"मेरी बात सुनकर मौसा जी चले गये और मैं कमरे का दरवाजा बंद कर के निमी को चुप कराने लगी. कल रात निमी का रोना मेरे काम आ गया. नही तो पता नही, कल क्या होता."

कीर्ति की बात सुनकर मुझे पापा की हरकत पर बहुत गुस्सा आया. मैने गुस्से मे पापा को गाली बकते हुए कहा.

मैं बोला "अब तो तूने उस माँ******* की हरकत देख ली. मुझे इसी वजह से उस पर कभी विस्वास नही होता. उसका बस चले तो, वो अमि निमी को भी ना छोड़े. इसी वजह से मैं हमेशा अमि निमी को, उस कमिने से दूर रखता हूँ. मैं कल ही यहाँ उसकी सबके सामने बेज़्जती करूगा. तब उसे पता चलेगा कि, किसी लड़की की इज़्ज़त से खेलने का क्या अंजाम होता है."
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09-09-2020, 01:19 PM,
#62
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मुझे पापा को गाली बकते देख और इतना गुस्से मे देख कीर्ति डर गयी थी. उसने मेरे गुस्से को शांत करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "जान इतना गुस्सा मत करो. तुम्हारे मूह से गाली अच्छी नही लगती."

मैं बोला "गाली नही बकुँ तो क्या उस माँ******* की आरती उतारू. तुझे हाथ लगाने की उसकी हिम्मत कैसे हो गयी."

कीर्ति बोली "प्लीज़ जान गाली मत बको. तुम उन्हे वहाँ कुछ भी नही कहोगे. तुम्हे मेरी कसम है."

मैं बोला "नही तू अपनी कसम वापस ले. मैं उसको छोड़ूँगा नही. जब उसने छोटी मा के साथ धोका किया. तब मैं उनकी कसम की वजह से चुप रह गया. उसी का ये नतीजा है कि, आज उसका हाथ तुझ तक जा पहुचा. मगर अब मैं उसे, उसकी इस हरकत की सज़ा ज़रूर दूँगा. तू अपनी कसम वापस ले"

कीर्ति बोली "नही जान तुम ऐसा कुछ भी नही करोगे. मैं इसीलिए तुम्हे कुछ बताना नही चाहती थी. मैं जानती थी तुम इस बात को सह नही पाओगे."

मैं बोला "तू क्या चाहती है. वो तेरे साथ बदतमीज़ी करे और मैं देखता रहूं. तू मुझे समझती क्या है. मैं बुजदिल नही हूँ. जो किसी से अपने प्यार की रक्षा भी नही कर सकूँ."

कीर्ति बोली "ऐसा कुछ भी नही है जान. मैं जानती हूँ, तुम मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो. लेकिन मेरे साथ साथ बाकी लोगों के बारे मे भी तो सोचो. ज़रा सोचो कि इस बात का जब, मौसी को पता चलेगा तो, उन पर क्या बीतेगी. यदि तुमने वहाँ कुछ उल्टा सीधा किया तो, मेहुल और अंकल पर इसका क्या असर पड़ेगा. ये सब भी तो तुमको देखना पड़ेगा."

मैं बोला "तू क्या चाहती है कि, सबको देखने के चक्कर मे, मैं उसकी मनमानी चलने दूं. वो किसी के साथ कुछ भी करता रहे और मैं चुप चाप तमाशा देखता रहूं."

कीर्ति बोली "जान मैं जानती हूँ कि, ये सुन कर तुम्हे बहुत बुरा लगा है. फिर भी अपनी जान की खातिर तुम्हे अपना गुस्सा पीना पड़ेगा. प्लीज़ जान मेरी खातिर. बस एक बार उनकी ग़लती को भूल जाओ."

मैं बोला "तेरे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ, लेकिन इस बात को कैसे भुला दूं कि, तेरी इज़्ज़त पर हाथ डालने वाला कोई और नही मेरा बाप ही है."

कीर्ति बोली "जान ऐसा कुछ भी तो नही हुआ. तुम इस बात को इतना मत बढ़ाओ."

मैं बोला "उसने तेरे शरीर पर हाथ फेरा, और तू इसे कुछ भी ना होना बोल रही है. हाथ लगाने की बात तो दूर की है. मैं तेरी तरफ गंदी नज़र उठाने वाले की भी जान ले लूँगा."

मुझे अपनी बात ना मानते देख कर कीर्ति सुबकने लगी. मेरे कानों मे उसके रोने की आवाज़ आते ही, मैं अपनी चल रही बात को छोड़ कर, उसके रोने का कारण पूछने लगा.

मैं बोला "तुझे क्या हुआ. तू रो क्यों रही है. मैं तेरे साथ हूँ. मेरे होते तुझे किसी से भी डरने की ज़रूरत नही है."

कीर्ति बोली "मुझे कुछ भी होता रहे, उस से तुमको क्या है. तुम तो वही करो जो तुम्हारा दिल करे."

ये बोल कर वो फिर सिसकने लगी. मैं भला उसका रोना कैसे देख सकता था. वो मेरी जान थी. मुझे अपने हज़ार आँसू बर्दाश्त थे, पर कीर्ति का एक आँसू भी मैं सह नही सकता था. मैने उस से कहा.

मैं बोला "देख रो मत. तू जानती है मैं तेरा रोना नही देख सकता. प्लीज़ रोना बंद कर."

कीर्ति बोली "सब झूठ है. तुम्हे मेरे रोने से कोई फ़र्क नही पड़ता. यदि ऐसा होता तो तुमने मेरी बात ज़रूर मान ली होती."

मैं बोला "तू समझती क्यों नही. मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ. तेरे लिए ही तो कर रहा हूँ."

कीर्ति बोली "फिर झूठ बोल रहे हो. तुम मेरे लिए कुछ नही कर रहे. यदि तुम सच मे मेरे लिए कुछ करना चाहते तो, मेरी बात मान ली होती."

ये बोल कर वो फिर रोने लगी. मैं समझ गया कि कीर्ति ये सब अपनी बात मनवाने के लिए कर रही है. वो जानती है कि उसके रोने के आगे, मुझे झुकना ही पड़ेगा. इसलिए वो जानबूझ कर बस रोए जा रही है. आख़िर मे मुझे उसके रोने के आगे झुकना ही पड़ा. मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "चल अपना नाटक बंद कर. मैं कुछ नही करूगा."

कीर्ति बोली "नही ऐसे नही. मेरी कसम खाकर बोलो."

मैं बोला "तेरी कसम मैं कुछ नही करूगा."

कीर्ति बोली "ये कैसी कसम है. ऐसे नही, ये बोलो कि तुम्हारी कसम मैं तुम्हारी बात की वजह से पापा से कोई लड़ाई झगड़ा नही करूगा."

मैं बोला "ये क्या बात हुई. मैने कसम खाकर बोल तो दिया."

कीर्ति बोली "नही जैसा मैने बोला है, वैसे बोलो."

मैं बोला "तेरी कसम, मैं तेरी बात की वजह से पापा से कोई लड़ाई झगड़ा नही करूगा. अब तो खुश."

कीर्ति बोली "हाँ अब ठीक है."

मैं बोला "क्या तेरा हर बात मे रोना ज़रूरी है."

कीर्ति बोली "मेरे रोए बिना तुम मेरी कोई बात मानते ही नही हो. तुमको मुझे रुलाने मे मज़ा आता है."

मैं बोला "यदि मुझे, तुझे रुलाने मे मज़ा आता तो, मैं तेरी बात मानता ही क्यों. अब ये सब बात छोड़ और ये बता घर मे बाकी सब लोग कैसे है."

कीर्ति बोली "सब ठीक है. बस निमी तुमसे बात करने की ज़िद कर रही थी, मगर तब तुम सो रहे थे, इसलिए मैने तुम्हे फोन नही किया. लेकिन वो कह कर सोई है कि, यदि कल मैने उस से तुम्हारी बात नही करवाई तो, वो कल स्कूल नही जाएगी."

मैं बोला "उसे तो स्कूल ना जाने का बहाना चाहिए. कल यदि मैं उस से बात कर लुगा तो, कहेगी कि भैया ने कहा है कि, आज तुम स्कूल मत जाना."

मेरी बात सुन कर कीर्ति हँसने लगी और फिर बोली.

कीर्ति बोली "बात कुछ भी हो, पर निमी अपने भैया को सच मे बहुत मिस कर रही है. उसकी कोई बात ऐसी नही होती, जिसमे उसके भैया का नाम ना आए. आज तो उसने हद ही कर दी."

मैं बोला "क्यों क्या किया उसने."

कीर्ति बोली "आज आंटी और मौसी ने साथ मिल कर डिन्नर तैयार किया. आंटी ने सबके लिए आलू के पराठे बना दिए. अब जब सब लोग डिन्नर करने बैठे तो, निमी ने आलू के पराठे देखे. बस फिर क्या था. उसने सारे पराठे उठा कर अपने पास रख लिए. जब उस से पुछा गया कि, क्या सारे पराठे वो खुद खाएगी. तो उसने कहा पराठे भैया के मनपसंद है, इसलिए जब तक भैया नही आ जाते. तब तक कोई भी पराठे नही खाएगा. सारे के सारे पराठे रखे रह गये, पर उसने किसी को भी नही खाने दिए."

कीर्ति की बात सुन कर मेरी आँखों मे अमि निमी का चेहरा घूमने लगा. मैने कीर्ति से अमि के बारे मे पूछा.

मैं बोला "अमि कैसी है."

कीर्ति बोली "अमि भी अच्छी है. वो तुम्हारे बारे मे ज़्यादा बोलती तो नही है, पर उसकी अजीब हरकत बताती है कि, वो भी तुम्हे बहुत मिस कर रही है."

मैं बोला "कैसी अजीब हरकत."

कीर्ति बोली "तुम्हारा कमरा तो मैं, अमि निमी के जाने के बाद साफ कर देती हूँ. मगर अमि स्कूल से आते ही, सबसे पहले तुम्हारे कमरे की साफ सफाई मे लग जाती है. मैने जब उस से पूछा कि तू ये सब क्यों कर रही है, तो बोली कि भैया को गंदगी बिल्कुल पसंद नही है. जब भैया आएँगे तो अपने कमरे को गंदा देख कर गुस्सा होगे, इसलिए इसे साफ कर रही हूँ. अब साफ कमरे को साफ करना, अजीब हुआ या नही."

कीर्ति के मूह से अमि निमी की बात सुनकर, मैं बहुत भावुक हो गया. मैने भी उन्हे 3 दिन से देखा नही था. मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "निमी तो शुरू से ही शरारती है, मगर अमि मे ये सब हरकतें निमी के जनम के बाद से आई है. कहने को तो वो बहुत छोटी है, मगर उसकी बातें किसी दादी अम्मा से कम नही है. हमेशा ऐसा जताती है. जैसे घर मे सबसे बड़ी वो ही हो, और उसके सिवा घर मे कोई कुछ जानता ही नही है."

कीर्ति बोली "कुछ भी कहो, पर तुम बहुत खुशकिस्मत हो. जो तुम्हे इतना प्यार करने वाली बहने मिली है."

मैं बोला "वो तो मैं हूँ ही, लेकिन क्या तू खुशकिस्मत नही है. क्या वो तेरी कुछ नही लगती."

कीर्ति बोली "मैं तो डबल खुशकिस्मत हूँ. क्योंकि एक रिश्ते से वो मेरी बहन लगती है और दूसरे रिश्ते से वो मेरी ........"

मैं बोला "आधी बात कह कर क्यों रुक गयी. पूरी बात बोल. दूसरे रिश्ते से वो तेरी क्या लगती है."

कीर्ति उस समय शायद शरारत के मूड मे थी. उसने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली "दूसरे रिश्ते से वो तुम्हारी बहन लगती है."

मैं बोला "ये फालतू की बात छोड़ और अपनी बात को पूरा कर."

कीर्ति बोली "तुम्हे सुनना ही है तो सुनो. दूसरे रिश्ते से वो मेरी ननद लगती है."

मैं बोला "ज़्यादा सपने मत देख. जब सबको तेरे मेरे रिश्ते का पता चलेगा तो, वो हमें धक्के मार कर घर से निकाल देगे."

कीर्ति बोली "मैं भी तो यही चाहती हूँ कि, सब हमें धक्के देकर निकाल दे. फिर हम लोग हमेशा एक दूसरे के साथ ही रहेगे."

मैं बोला "चल अब बहुत रात हो गयी है. अब तुझे आराम करना चाहिए. अब फोन रख."

कीर्ति बोली "पहले मेरी क़िस्सी दो."

मैं बोला "तुझे जब भी फोन रखने को बोलता हूँ, तुझे क़िस्सी ही चाहिए रहती है."

कीर्ति बोली "शाम को मैने किसी कहाँ ली थी. शाम को तो तुमने ली थी."

मैं बोला "तेरे से बातों मे जीतना मेरे बस की बात नही है."

कीर्ति बोली "तो फिर क्यों बहस करते हो. मुझे क़िस्सी दो. मैं फोन रख दूँगी."

मैं बोला "ओके, ये ले तेरी किसी. आइ लव यू जान. मुहह मुहह."

कीर्ति बोली "ऊऊ मेरे अच्छे जानू. आइ लव यू टू मुहह मुहह."

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया. उस से बात करने के बाद मेरे दिल को बहुत राहत मिली थी. मैं वापस अंकल के पास आकर बैठ गया. मैने टाइम देखा तो 1:30 बज चुके थे. वहाँ टाइम पास करने के लिए ऐसा कुछ भी नही था. जिस से कि टाइम पास किया जा सके. मैने फिर मोबाइल निकाला और कीर्ति की फोटो देखने लगा. जिसे देखते देखते 2:30 बज गया.

कुछ देर बाद फिर अंकल की नींद खुल गयी. उन्हो ने मुझे जागते देखा तो, पेन और नोटबुक देने का इशारा किया. मैने उन्हे नोटबुक और पेन दिया तो, उन्हो ने उस पर लिख कर मुझसे सो जाने को कहा. तब मैने उन से कहा.

मैं बोला "अब मुझे नींद नही आएगी. मैं घर से आराम करके ही आ रहा हूँ. आप मेरी चिंता मत कीजिए. आप आराम कर लीजिए."

अंकल ने लिख कर कहा "तुम यहाँ बैठे बैठे बोर हो जाओगे. ऐसा करो कुछ देर नीचे टहल आओ या फिर चाय कॉफी पी आओ."

मैं बोला "नही मैं आपको अकेला छोड़ कर कही नही जाउन्गा."

तभी वहाँ नर्स आ गयी. उसने आकर अंकल की जाँच की फिर अंकल की नोटबुक पर लिखा देख कर मुझसे कहा.

नर्स बोली "यदि आपको चाय कॉफी के लिए नीचे जाना है, तो आप जा सकते है. मेरा कॅबिन सामने ही है. मैं इन पर नज़र रखी रखूँगी."

नर्स की बात सुनकर अंकल ने मुझे जाने का इशारा किया. तब मैने अंकल के मोबाइल मे अपना नंबर नर्स को दिखाते हुए उस से कहा.

मैं बोला "ठीक है, मैं कुछ देर के लिए नीचे होकर आता हूँ. अंकल को यदि इस बीच मेरी ज़रूरत हो तो, मुझे इस नंबर पर कॉल कर दीजिएगा."

नर्स बोली "ओके. वैसे भी आपको इनकी चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है. हम अपने हर मरीज का पूरा ध्यान रखते है."

ये कह कर नर्स अपने कॅबिन मे चली गयी. मैने अंकल से भी यही कहा कि, यदि आपको मेरी ज़रूरत पड़े तो, आप मुझे कॉल लगा देना. ये कह कर मैने अंकल का मोबाइल, अंकल के पास रख दिया. फिर मैं नीचे आ गया.

नीचे आकर मैने कॅंटीन से कॉफी ली और कॉफी लेकर बाहर आ गया. रात के 3 बज चुके थे, इसलिए बाहर भी इस समय सुनसान सा ही था. हॉस्पिटल के एक दो कर्मचारी और खड़ी हुई गाड़ियों के अलावा वहाँ कोई भी नज़र नही आ रहा था.

मैं समुंदर के किनारे आकर बैठ कर, समुंदर की आती जाती लहरों को देखते हुए, कॉफी पीने लगा. मैं समुंदर की लहरों मे खोया कॉफी पी ही रहा था. तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा. उसे देखते ही मैं उठ कर खड़ा हो गया.

वो कोई और नही बल्कि निक्की थी. मुझे निक्की को इतनी रात मे अपने सामने खड़ा देख कर आश्चर्य तो ज़रूर हुआ. मगर उसे देख कर मेरा गुस्सा भी बढ़ गया था. मैने एक नज़र इधर उधर डाली. मुझे लगा शायद कोई उसके साथ होगा. लेकिन वो वहाँ अकेली ही थी.

उसे मेरी आँखों मे अभी भी गुस्सा नज़र आया तो, उसने अपने दोनो हाथों से, अपने दोनो कान पकड़ते हुए कहा.

निक्की बोली "सॉरी, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था."

मैं बोला "आपको सॉरी बोलने की कोई ज़रूरत नही है. आप ने जो कुछ भी किया है. बहुत ही सोच समझ कर किया है. ग़लती तो मुझसे हुई थी. जो मैने बिना कुछ सोचे समझे, एक अंजान लड़की को अपना दोस्त समझ लिया था."

निक्की बोली "प्लीज़ सॉरी यार. मैं दिल से सॉरी बोल रही हूँ. मेरा इरादा आपके दिल को चोट पहुचने का, ज़रा भी नही था. मैं तो आपकी मदद ही करना चाह रही थी. मुझे नही मालूम था कि, आपको ये सब इतना बुरा लगेगा."

मैं बोला "किसी के साथ धोका करने को, आप मदद करना कहती है. आपने जो कुछ किया है, उसे कुछ भी कहा जा सकता है, मगर दोस्ती हरगिज़ नही कहा जा सकता."

निक्की बोली "आप वेवजह बात का बतंगड़ बना रहे है. मेरे कुछ भी करने से आपका कोई बुरा तो नही हुआ. उल्टे इस से आपका फ़ायदा ही हुआ है."

मैं बोला "जो आपकी नज़र मे फ़ायदा है. वो मेरी नज़र मे मेरा नुकसान है."

निक्की बोली "इसी वजह से तो मैं आपसे सॉरी बोल रही हूँ. नही तो मैने आज तक कभी किसी को सॉरी नही कहा."

मैं बोला "कभी किसी से सॉरी ना बोलने का ये मतलब नही की, आपने कभी कोई ग़लती ही नही की है. बल्कि सॉरी ना बोलने का, ये मतलब है कि, आपको कभी अपनी ग़लती को मानना आया ही नही है."

निक्की बोली "हाँ ये बात भी सही है. मेरी ग़लती रही हो या ना रही हो. लेकिन मैने कभी किसी को सॉरी नही बोला. मगर आज तो मैं आपसे, अपनी ग़लती की सॉरी बोल रही हूँ."

मैं बोला "किसी की ग़लती को माफी दी जा सकती है. मगर किसी का दिल तोड़ने की, या किसी के साथ धोका करने की, कोई माफी नही होती. आपको अपना दोस्त मानना मेरी भूल थी."

निक्की बोली "आप मेरी दोस्ती को ग़लत मत समझिए. मैने जो कुछ भी किया है. सिर्फ़ एक दोस्त के नाते से किया है."

मैं बोला "यदि आपके जैसे दोस्त होने लगे तो, फिर किसी को दुश्मन की ज़रूरत ही क्या है. आप जिसे दोस्ती कह रही है. उसे मैं धोका मानता हूँ और धोके की कोई माफी नही होती."

निक्की बोली "यदि आप इसे धोका मानते है तो, जो आपका दिल कहे, आप मुझे वो सज़ा दे दो. लेकिन मुझे माफ़ कर दो."

मैं बोला "मैं आपको क्या सज़ा दूँगा. सज़ा तो मुझे कीर्ति देगी. जब उसे इस सब बात का पता लगेगा."

निक्की बोली "कीर्ति से आपको डरने की ज़रूरत नही है. मैं उस से खुद बात कर लुगी और उस से भी इस बात की माफी माँग लूँगी. आप के उपर कोई बात नही आने दुगी."

मैं बोला "आपको मेरे लिए जो कुछ भी करना था. वो आप पहले ही कर चुकी है. अब आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नही है. आप कीर्ति से दूर ही रहे तो, ये आपकी मेरे उपर बहुत बड़ी मेहरबानी होगी. अब से आपका रास्ता अलग है, और मेरा रास्ता अलग है. आप अपने रास्ते पर जाइए और मैं अपने रास्ते जाता हूँ."

ये कह कर मैने कॉफी का कप वही रखी डस्टबिन मे फेका, और हॉस्पिटल की तरफ बढ़ने लगा. तभी निक्की मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी, और मेरा रास्ता रोक कर कहने लगी.

निक्की बोली "अब तुम अपना घमंड दिखाना बंद करो. एक ज़रा सी बात को इतना बढ़ाए जा रहे हो. जैसे मैने तुम्हारी दुनिया ही लूट ली हो. अरे हज़ार बार कह चुकी हूँ कि, मुझसे ग़लती हो गयी. मुझे माफ़ कर दो. मगर तुम हो कि भाव खाए जा रहे हो."
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09-09-2020, 01:21 PM,
#63
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
56

निक्की अब सीधे आप से तुम पर आ गयी थी. उसका ये अंदाज मनाने से ज़्यादा, ढँकने वाला लग रहा था. जिसे देख कर मुझे और भी ज़्यादा गुस्सा आ रहा था. लेकिन रात के समय किसी लड़की से, इस तरह उलझना मुझे ठीक नही लगा. मैने अपने गुस्से पर काबू करते हुए कहा.

मैं बोला "आप मुझे घमंडी कहे, या जो मर्ज़ी हो वो समझ लें. लेकिन इस वक्त मेरा रास्ता छोड़िए. अंकल इस वक्त उपर अकेले है. मुझे उपर जाना है. आप को जो भी बात करना है. कल सुबह कीजिएगा."

निक्की बोली "नही, जो भी बात होगी, अभी ही होगी. मुझे यदि सुबह तक का इंतेजार करना होता, तो यहाँ रात को रुकने की कोई ज़रूरत नही थी. मैं माफी माँगने के लिए यहाँ रुकी थी, और माफी लेकर ही जाउन्गी."

मैं बोला "आप मुझे किसी बात को करने के लिए मजबूर नही कर सकती. बेहतर यही होगा कि हम कल इस बारे मे बात करे."

निक्की बोली "नही मैं कल का इंतजार नही कर सकती. तुम्हे अभी, इसी वक्त, मुझे माफ़ करना होगा."

निक्की की इस हरकत पर मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था. लेकिन मैं कुछ कर नही सकता था. मैने मजबूर होकर कहा.

मैं बोला "ओके मैने आपको माफ़ किया. अब आप मेरा रास्ता छोड़िए और मुझे जाने दीजिए."

निक्की बोली "नही, इस तरह नही. पहले बोलो कि, जैसे हम सुबह एक दूसरे के दोस्त थे. वैसे आगे भी बने रहेगे."

मेरा मन किया की उस से कह दूं कि, ऐसा नही हो सकता. लेकिन फिर मुझे लगा कि, यदि मैने ऐसा किया तो, ये फिर उसी बात को पकड़ कर मेरा रास्ता रोके रहेगी. इस से अच्छा यही होगा कि, जैसा ये कह रही है. अभी मैं वैसा कहता जाउ. बाद की बाद मे देखुगा. यही सब सोच कर मैने कहा.

मैं बोला "ओके हम आगे भी एक दूसरे के दोस्त बने रहेगे. अब खुश. अब तो मेरा रास्ता छोड़ो और मुझे जाने दो."

मैने समझा की ये कह कर. मैं निक्की से अपना पिछा छुड़ा लुगा. मगर ये इतना आसान नही था. निक्की मेरी चाल को समझ गयी थी. उसने मेरी इस बात को भी काटते हुए कहा.

निक्की बोली "क्या मैं तुम्हे इतनी बड़ी बेवकूफ़ समझ मे आती हूँ. जो तुम्हारी इस बात का यकीन कर लुगी कि, तुमने मुझे माफ़ कर दिया और अब हम दोस्त बने रहेगे."

मैं बोला "आपने जो कहा, वो मैने कर दिया. अब आपको परेशानी क्या है."

निक्की बोली "तुम यही बात कसम खाकर कहो कि, तुमने मुझे माफ़ किया और अब हम पहले की तरह दोस्त बने रहेगे."

मैं बोला "अब आप अपनी हद पार कर रही है. आपको मेरी बात पर यकीन करना हो तो कीजिए, और नही करना है मत कीजिए. लेकिन मैं किसी की कसम वसम नही खाने वाला."

निक्की बोली "तब तुम निक्की को अच्छे से समझे नही हो. निक्की जो चाहती है वो करती है. उसकी मर्ज़ी के आगे किसी की नही चलती. जब मैने कहा है कि, ये बात तुम कसम खाकर बोलो तो, तुम्हे ये बात कसम खाकर बोलनी ही पड़ेगी."

मैं बोला "मैं कसम नही खाउन्गा. क्या करेगी आप. मुझे रात भर यही खड़ा रख कर तमाशा करेगी. तो शौक से करिए. मैं भी यही खड़ा हूँ."

निक्की बोली "नही अब मैं कोई तमाशा नही करूगी. तुम्हे जाना है ना. अब तुम जाओ."

ये बोल कर मेरे सामने से हट गयी. मैने भी उसकी कोई परवाह नही की, और हॉस्पिटल की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए. तभी निक्की ने कहा.

निक्की बोली "जाने से पहले एक बात और सुन लो. निक्की ने जिंदगी मे कभी हार नही मानी, और ना ही कभी मानेगी. अब तुम्हे सुबह निक्की नही. निक्की की समुंदर मे तैरती हुई लाश मिलेगी."

निक्की की ये बात सुनकर मेरे हॉस्पिटल की तरफ बढ़त हुए कदम रुक गये. मैने सोचा जो लड़की सिर्फ़ माफी माँगने के लिए, अकेली हॉस्पिटल मे रुक सकती है. वो अपनी ज़िद की खातिर, कुछ भी कर सकती है. ऐसे मे इसे यहाँ छोड़ कर जाना, ख़तरे से खाली नही होगा. कहीं ये सच मे कुछ कर बैठी तो, लेने के देने पड़ जाएगे.

ये सोच कर मैने जैसे ही पिछे पलट कर देखा तो, निक्की वहाँ नही थी. वो समुंदर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी. मैं दौड़ कर उसके पास पहुचा और उसे रोकते हुए कहा.

मैं बोला "ये क्या पागलपन है. किसी को परेशान करने की भी कोई हद होती है. एक तो मेरे साथ विश्वासघात किया. अब यहाँ रात को, ये तमाशा कर रही है. आपको कोई शर्म हया है या नही."

निक्की बोली "हाँ मैं बहुत बेशर्म हूँ. तभी तुम्हारे इतने दुतकारने के बाद भी, तुम्हारे पिछे पड़ी थी. लेकिन अब मैं तुम्हारे रास्ते से हट गयी हूँ. तुम भी मेरे रास्ते से हट जाओ. मैने तुम्हारे साथ जो विस्वासघात किया है. उसकी सज़ा मैं खुद ही अपने आपको दे लुगी."

मैं बोला "अब बहुत हो चुका है. ये नाटक बंद कीजिए और वापस चलिए."

निक्की बोली "नही, अब मैं वापस नही जाउन्गी. तुमको जो कहना था, तुम कह चुके. अब जो मुझे करना है. मैं वो कर के रहूगी."

मैं समझ गया कि, निक्की बिना अपनी ज़िद पूरे किए नही मानेगी. मेरे पास उसके सामने झुकने के सिवा कोई रास्ता ही नही था. मैं ने उस से कहा.

मैं बोला "मैं कीर्ति की कसम खाकर बोलता हूँ कि, मैने आपको माफ़ कर दिया, और हम पहले की तरह ही दोस्त बने रहेगे. अब तो आप खुश. अब वापस चलिए."

निक्की बोली "हाँ अब ठीक है. यही बात तुम पहले सीधे तरीके से बोल देते तो, मुझे ये सब करने की क्या ज़रूरत थी."

ये कहते हुए निक्की मेरे साथ वापस आने के लिए मूड गयी. मैं चुप चाप उसके साथ चलने लगा. मुझे खामोश देख कर उसने कहा.

निक्की बोली "लगता है अभी तक तुम्हारा गुस्सा ख़तम नही हुआ."

सच भी यही था कि, मेरा गुस्सा कम होने की जगह निक्की की इस हरकत से, और भी बढ़ गया था. लेकिन अब मुझे अंकल के पास जाने मे देर हो रही थी. मैने बात को ज़्यादा ना बदलते हुए कहा.

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. मुझे अंकल के पास से आए हुए, काफ़ी देर हो गयी है. इसलिए थोड़ा उलझन हो रही है. अब यदि आप कहे तो, मैं अंकल के पास चला जाउ."

निक्की बोली "हाँ आप अंकल के पास जाइए. मैं उस सामने वाले रूम मे रुकी हूँ."

मैं बोला "क्या हॉस्पिटल मे मरीज के पास रुकने वालो को भी अलग से रूम मिलते है."

निक्की बोली "नही ये हॉस्पिटल के डॉक्टेर्स का रेस्ट रूम है. अमन भैया को पता चला कि, मैं आज रात यहाँ रुक रही हूँ, तो उन्हो ने मेरे लिए, इसे खुलवा दिया. यदि अब आपका नीचे आना हो तो, आप वही आ जाइएगा."

मैं बोला "नही, अब मेरा नीचे आना नही हो पाएगा. आप आराम कीजिए. मैं उपर अंकल के पास जाता हूँ."

ये बोल कर मैं उपर अंकल के पास चला गया. अब 4 बज चुके थे. अंकल अभी भी जाग रहे थे. शायद उन पर से दवाइयों का नशा उतर चुका था. मैने अंकल को जागते हुए देखा तो, उनसे पुछा कि उन्हे कोई तकलीफ़ तो नही है. इस पर अंकल ने इशारे से ना मे जबाब दिया. इसके बाद मैं अंकल को दिन भर की बातें और घर का हाल चाल बताता रहा. जिसमे सुबह के 6 बज गये.

फिर नर्स आई और अंकल को बाथ देने को बोलने लगी. तब मैं अंकल के पास से उठ कर, दालान मे आ गया. मैं दालान मे यहाँ वहाँ टहलने लगा, और सोच रहा था कि, अब शायद कीर्ति जाग गयी होगी. मेरा मन उसे कॉल करने को हुआ, पर मैने सोचा कि यदि वो सो रही होगी तो, बेकार मे उसकी नींद खराब हो जाएगी. यही सोच कर मैने उसे कॉल नही किया.

लेकिन कुछ देर बाद कीर्ति का कॉल आ गया. कीर्ति ने जागते ही मुझे कॉल किया था. मेरी कीर्ति से कुछ बातें हुई. उसने 7 बजे अमि निमी से बात कराने की बात कह कर फोन रख दिया. उसके बाद मैने देखा कि, अंकल को अभी बाथ लेने मे टाइम लगेगा, तो मैं नीचे आ गया.

नीचे अब चहल पहल शुरू हो गयी थी. मैने निक्की के रूम की तरफ देखा. उसका दरवाजा बंद था. मैने सोचा कि वो सो ही रही है. तभी मेरी नज़र अजय की टॅक्सी पर पड़ी. लेकिन अजय उसमे नही था. मैने इधर उधर देखा. मगर अजय कही नज़र नही आया. तब मैं सीधे समुंदर के किनारे की तरफ बढ़ गया.

उस तरफ आते ही मुझे निक्की दिखाई दी. वो अकेली ही वहाँ बैठी समुंदर की लहरों को देख रही थी. उसे देखते ही मैं वापस लौटने लगा. तभी कहीं से अजय मेरे सामने आकर खड़ा हो गया. मुझे देखते ही उसने कहा.

अजय बोला "क्या बात है बाबू साहब. क्या वापस घर जाने की तैयारी मे है."

मैं बोला "नही अभी नही. अभी मेरा दोस्त नही आया है. वो 7-8 बजे तक आएगा. उसके आने के बाद ही मैं जाउन्गा."

अजय बोला "ठीक है. यदि मैं तब यहाँ रहा तो, मैं ही आपको घर छोड़ दूँगा."

मैं अभी उस से कुछ बोलता, तभी उसकी सवारी आ गयी और वो चला गया. उसके जाने के बाद, मैने निक्की की तरफ देखा तो, वो मुझे ही देख रही थी. ऐसे मे मुझे वापस जाना ठीक नही लगा और मैं उसी के पास चला गया. मैने उसके पास आकर उस से कहा.

मैं बोला "आप अभी सोकर उठी है, या फिर मेरी तरह आप भी रात भर सोई ही नही है."

निक्की बोली "मुझे यहाँ नींद ही नही आई. 6 बजे देखा कि यहाँ चहल पहल होने लगी है. तो मन बहलाने के लिए, यहाँ आकर बैठ गयी. सोचा जब आप घर जाएगे तो, मैं भी आपके साथ घर जाकर ही आराम कर लुगी."
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09-09-2020, 01:21 PM,
#64
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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फिर मैं और निक्की मेहुल के आने के बाद घर निकल गये . मैं जाते ही अपने रूम चला गया मेरे दिल पर एक बोझ सा था दिल में कुछ घुटन सी हो रही थी मैने कीर्ति को फ़ोन मिलाया

मैं बोला -जान सॉरी मैं तुम से ढंग से बात नही कर पाया वो मेरे साथ कोई ऑर भी था
कीर्ति बोली "जान मुझे तुम पर पूरा विश्वास है. तुम दोबारा किसी बात के लिए मुझसे सॉरी मत बोलना. मुझे अच्छा नही लगता."

मैं बोला "मैं जानता हूँ कि, तुझे मुझ पर विश्वास है और मैं तेरे इस विश्वास को कभी टूटने नही दूँगा."

कीर्ति बोली "जान बहुत बात हो चुकी है. अब दिल का बोझ उतर गया हो तो सो जाओ."

मैं बोला "नही, अभी मेरी बात पूरी नही हुई है. अभी मैने तुझे सबसे ज़रूरी बात तो बताई ही नही है."

कीर्ति बोली "कौन सी बात."

जो बात मैं कीर्ति से बोलने वाला था. उसे लेकर मैं खुद ही असमंजस मे था. मैं समझ ही नही पा रहा था कि, ये बात कीर्ति से किस तरह बोलूं. मैं ये तो अच्छी तरह से जानता था की, कीर्ति जितनी नटखट है. उतनी ही समझदार भी है. बड़ी से बड़ी बात का सामना करने की, उसके अंदर ताक़त है. जो बात मैं उस से कहने वाला हूँ, वो बात उसके लिए कोई बड़ी बात नही होगी. फिर भी मैं अपनी बात उस से कह नही पा रहा था.

मैं किस मूह से कहता कि मैं अंजाने मे ही सही, मगर उसके प्यार और विश्वास के साथ धोका कर रहा हूँ. मैं उस से बात करते करते अपनी इन्ही सोच मे गुम था. मुझे चुप देख कर, कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली "जान क्या हुआ. किस सोच मे गुम हो गये. जो भी बात बताना है, बता दो. उसमे इतना सोचने वाली क्या बात है."

मैं बोला "सोचु नही तो क्या करूँ. बात इतनी छोटी भी नही है कि, मैं बोल दूं और तू चुप चाप सुन ले. हो सकता है कि, उस बात को सुनकर तू मुझसे नाराज़ हो जाए. मैं भला तेरी नाराज़गी कैसे सह पाउन्गा."

कीर्ति बोली "जान ऐसा क्यों सोचते हो. मैं भला तुम पर क्यों नाराज़ होने लगी."

मैं बोला "बात ही कुछ ऐसी है कि, तू मुझसे नाराज़ हुए बिना ना रहेगी."

कीर्ति बोली "जान अगर ऐसी बात है तो, मत बताओ. मुझे ऐसी बात नही सुननी. जिसे बताने मे तुम्हे परेशानी हो."

मैं बोला "नही, वो बात तो मुझे, हर हाल मे तुझे बताना ही है. क्योंकि मैं तेरे प्यार और विश्वास के साथ कोई धोका नही कर सकता. मैं नही चाहता कि, मुझसे जुड़ी ऐसी कोई बात हो, जो तुझे पता ना हो. लेकिन क्या करूँ, साथ ही साथ मुझे, ये डर भी लगा है कि, कही तू उस बात को सुनकर मेरा साथ ना छोड़ दे."

कीर्ति बोली "जान ऐसा क्यों सचते हो. मैं भी तो तुम्हे अपनी, हर अच्छी बुरी बात बताती हूँ. क्या तुम कभी मेरी किसी बात से नाराज़ होकर, मेरा साथ छोड़ सकते हो."

मैं बोला "मैं तुझसे नाराज़ तो हो सकता हूँ, पर तुझे अपने से अलग कभी नही कर सकता. मैं तेरे बिना जीने की सोच भी नही सकता."

कीर्ति बोली "बस जान. ऐसा ही मेरे साथ भी है. मेरा हँसना रोना, सब कुछ तुमसे ही जुड़ा हुआ है. मैं एक पल भी तुम्हारे बिना नही रह सकती. मैं तुमसे वादा करती हूँ, बात चाहे कितनी ही बुरी क्यों ना हो, पर मैं तुम से नाराज़ नही होउंगी. अब बेफिकर होकर अपनी बात कहो."

मैं बोला "ठीक है, मैं अपनी बात बोलता हूँ, मगर तुझे मेरी एक बात मानना होगी."

कीर्ति बोली "मानूँगी जान. तुम जो भी बोलोगे, तुम्हारी सब बात मानूँगी. बोलो मुझे क्या बात माननी है."

मैं बोला "तुझे वादा करना होगा कि, तुझे यदि मेरी बात बुरी लगेगी तो, तू मुझ पर गुस्सा कर लेगी, पर कोई बात अपने दिल मे मे नही रखेगी."

कीर्ति बोली "जान मैं वादा करती हूँ, ऐसा ही होगा. अब तुम अपनी बात बोलो. मुझे बहुत बेचैनी हो रही है."

उसकी बात सुनने की इस बेचैनी को देखते हुए मैने कहा.

मैं बोला "बात ऐसी है कि, पिच्छले एक दो दिनो से, मेरे साथ ऐसा कुछ हो रहा है. जैसा इसके पहले मेरे साथ कभी नही हुआ. मैं यदि ये बात तुझे नही बताउन्गा. तो शायद तुझे इसका कभी पता भी ना चले. मगर मैं इस बात को छुपा कर, तेरे उस प्यार और विश्वास के साथ कोई धोका करना नही चाहता, जो तू मुझ पर करती है. मेरे साथ इन सब बातों की शुरुआत तब हुई थी. जब रिया हमारे यहाँ आई थी."

इतना कह कर मैने कीर्ति को अपनी बात बताना शुरू कर दिया. ये पहला मौका नही था. जब मेरी कीर्ति से सेक्स को लेकर, कोई बात हो रही थी. हमारे बीच इन बातों का सिलसिला रिया और राज से मिलने के बाद, पूरी तरह से खुल कर नही तो, थोड़ा बहुत चलने लगा था. क्योंकि जिस दिन हम दोनो भाई बहन ने रिया राज को सेक्स करते देखा था. उसके बाद से हमारे बीच भाई बहन होने के बाद भी, इन बातों को लेकर थोड़ी बहुत बातें होने लगी थी.

इसी बीच हम दोनो एक दूसरे मे इतना खो चुके थे कि, अब अपने भाई बहन के रिश्ते को भूल कर, खुद का बनाया रिश्ता निभा रहे थे. हम सेक्स से अंजान नही थे. फिर भी हमारे रिश्ते के बीच, सेक्स की कोई भावना नही थी. हमारे बीच प्यार का एक निर्मल रिश्ता था. जिसने सेक्स की भावनाओ को कभी पनपने ही नही दिया था.

लेकिन मुंबई आने के बाद, मेरे साथ जो कुछ हुआ. उसे मैं कीर्ति से छुपा कर नही रखना चाहता था. इसलिए मैने उसे रिया की वॉटरफॉल मे मेरे लिंग के साथ मस्ती करने से लेकर, टॅक्सी मे मस्ती करने तक की सारी बातें बताई. इसके बाद प्रिया को फ्रॉक मे देख कर, मेरे अंदर जागी उत्तेजना से लेकर, उस से हुई बातों के बारे मे, जस का तस पूरी तरह से खुल कर, बताता चला गया. जिन्हे कीर्ति बड़ी खामोशी से सुनती रही.

जब मेरी बात ख़तम हुई तो, मैं कीर्ति के कुछ बोलने का इंतजार करने लगा. लेकिन वो खामोश ही रही. उसकी खामोशी ने मुझे चिंता मे डाल दिया. मुझे लगा कि वही हुआ, जिस से मैं डर रहा था. मैने धीरे से कीर्ति से कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. मुझ पर नाराज़ हो गयी ना."

मगर कीर्ति खामोश ही थी. उसकी कोई आवाज़ ना आते देख, मुझसे रहा ना गया. मैने फिर उस से कहा.

मैं बोला "देख चुप मत रह. तुझे मुझ पर गुस्सा है तो, तू मुझ पर गुस्सा कर ले. मैने तुझे पहले ही कहा था कि, कोई बात अपने दिल मे मत रखना. तूने मुझसे इसका वादा भी किया था. लेकिन अब तू अपना वादा भूल कर, मुझसे नाराज़ हो गयी."

मेरी बात सुनकर कीर्ति खामोश ना रह सकी. उसने मुझे समझाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "नही जान, ऐसा कुछ भी नही है. तुम्हारे साथ, जो कुछ भी हुआ. वो तुमने मुझे सब कुछ, सच सच बता दिया. मेरे लिए इस से बढ़ कर, खुशी की बात, और क्या हो सकती है. मैं तुमसे किसी भी बात के लिए नाराज़ नही हूँ."

कीर्ति की इस बात से उसकी उदासी साफ झलक रही थी. उसकी उदासी और खामोशी दोनो बता रही थी कि, उसे ये बात सुनकर बहुत ठेस पहुचि है. तभी उसका हंसता खिलखिलाता चेहरा उदास हो गया. मगर मेरी समझ मे, ये बात नही आ रही थी कि, जब कीर्ति को मेरी ये बात बुरी लगी है तो, वो मुझसे इस बात को लेकर कोई बहस, या कोई सवाल, क्यों नही कर रही है. मैने तो उस से, साफ साफ कहा था कि, यदि तुझे मेरी बात बुरी लगे तो, तू मुझ पर गुस्सा कर लेना, पर कोई बात अपने दिल मे मत रखना. बस इसी बात को सोचते हुए मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "तू झूठ बोल रही है. यदि ऐसी बात है तो, फिर मेरी बात सुनकर खामोश क्यों हो गयी थी और जब तू बोली तो तेरी बातों मे, ये उदासी क्यों है. सच बात तो ये है कि, तू मन ही मन मुझसे नाराज़ है."

कीर्ति बोली "जान ऐसी कोई बात नही है. मैं भला अपनी जान से क्यों नाराज़ रहूगी. मैं तो चुप इसलिए थी, क्योंकि तुमने इस तरह की बात, मेरे साथ पहली बार इतनी खुल कर की है. मुझे समझ मे ही नही आया कि, मैं तुमसे क्या बोलूं. अब तुम ये बेकार की बातें सोचना बंद करो, और चुप चाप सो जाओ. रत को तुम्हे फिर जागना है."

मैं बोला "देख मुझे बहलाने की कोसिस करना बेकार है. मैं जानता हूँ, तुझे ये सब सुनकर बहुत बुरा लगा है. मुझे भी तुझसे ये सब बातें करना ज़रा भी अच्छा नही लगा. लेकिन मेरे लिए तुझसे, ये सब बातें करना ज़रूरी था. तू साफ साफ क्यों नही कहती कि, तुझे रिया के साथ मेरा ये सब करना बुरा लगा है."

कीर्ति बोली "जान ऐसा कुछ भी नही है. मुझे तुम्हारी किसी बात का कोई बुरा नही लगा. मैने तो खुद तुमसे कहा था कि, मुझे सिर्फ़ तुम्हारा प्यार चाहिए. तुम जिसे भी अपना बनाना चाहते हो, बना सकते हो. मैं उसे खुशी खुशी स्वीकार कर लूँगी. फिर भला मैं तुम्हारी इस बात का, बुरा कैसे मान सकती हूँ."

कीर्ति के ये बात बोलते ही, मैं समझ गया कि, वो मुझसे कोई बहस, या सवाल, क्यों नही कर रही है. असल मे अपनी कही बात की वजह से, वो मुझ पर अपना कोई हक़ जताना नही चाहती थी. उसके इस तरह से बात करने की वजह, समझ मे आते ही मैने उस से कहा.

मैं बोला "तू ये सब क्या बोले जा रही है. तू अपनी कही किसी बात मे बँध कर, क्या मुझे मेरी मनमानी करने के लिए, अकेला छोड़ देगी."

कीर्ति बोली "जान मैं तुम्हे कहाँ अकेला छोड़ रही हूँ. मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ हूँ. लेकिन जो सच है, वही मैने कहा है. मैने तुम्हारा प्यार पाने के लिए, तुम्हे अपने हर बंधन से आज़ाद किया था. मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूँ."

मैं बोला "ये सब बातें तूने उस समय की थी. जब मैं तेरे प्यार को समझ नही पा रहा था. क्योंकि उस समय मुझे तेरा मेरा प्यार सही नही लग रहा था. मगर जब मैने महसूस किया कि, मैं भी तेरे बिना रह नही सकता. तब से आज तक मैने, तेरे सिवा किसी और के बारे मे सोचा तक नही है. मेरे अंदर, तेरी जितनी समझ नही है. लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि, शर्तों पर प्यार नही होता. इसलिए हमारे प्यार को, किसी शर्त मे मत बाँध. मेरे लिए तो, मेरा सब कुछ तू ही है, और तुझे मेरे उपर पूरा हक़ है. तू ये सब बेकार की बात करके मेरा दिल क्यों दुखा रही है."

कीर्ति बोली "सॉरी जान. मैने तुम्हारा दिल दुखाया है तो, मुझे माफ़ कर दो. लेकिन फिर भी सच यही है कि, मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़कर कुछ नही है. जिस बात मे तुम खुश हो. उसी मे मेरी खुशी भी है. मैं सिर्फ़ अपनी खुशी के लिए, तुम्हारी आज़ादी कैसे छीन सकती हूँ."

मैं बोला "अपनी बड़ी बड़ी बाते अपने पास रख. मुझे कोई आज़ादी नही चाहिए. मैं जिंदगी भर तेरे प्यार के बंधन मे, बँध कर रहना चाहता हूँ. तू यदि मुझ पर गुस्सा है तो, गुस्सा कर ले. मगर मेरी खुशी को, अपनी खुशी से अलग मत समझ, मेरी खुशी भी तेरी खुशी मे है. यदि तू ही खुश नही है तो, फिर मैं कैसे खुश रह सकता हूँ."

कीर्ति बोली "जान तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो. तुम्हारा प्यार मेरे साथ है तो, मैं कैसे खुश नही रहूगी. तुम किसी बात को लेकर, बेकार मे परेशान मत हो. मेरा प्यार हमेशा तुम्हारे साथ है."
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09-09-2020, 01:22 PM,
#65
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कीर्ति ने अपनी बातों से मुझे बहलाने की पूरी कोशिश की, मगर अब मैं उसके दिल की बात को समझ चुका था. अब मैं बस उसके दिल मे छुपी बात को, उसकी ज़ुबान से कहलवाना चाहता था. मगर जानता था कि, वो इस बात को कभी नही कहेगी. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला "तू सच मे खुश है ना. तेरे मन मे मेरी बात को लेकर कोई दर्द नही है."

कीर्ति बोली "हाँ जान, मैं सच मे खुश हूँ. मेरे मान मे तुम्हारी किसी बात से, कोई दर्द नही है."

मैं बोला "तो ठीक है, यदि ऐसा है तो, तू अब इसी बात को मेरी कसम खाकर बोल दे."

मेरी इस बात पर कीर्ति खामोश ही रही. मैं इस खामोशी के पिछे छुपे उसके दर्द को समझ रहा था. मैने फिर उस से कहा.

मैं बोला "अब चुप क्यों हो गयी. मेरी कसम खाकर क्यों नही बोलती."

कीर्ति बोली "जान हर छोटी मोटी बात मे, तुम्हारी कसम खाना, मुझे अच्छा नही लगता. मैं अपनी कसम खाकर कहती हूँ कि, मैं खुश हूँ और मेरे मन मे कोई दर्द नही है."

मैं बोला "जो बात तूने अपनी कसम खाकर बोली है. वही बात तू मेरी कसम खाकर भी बोल सकती थी. मगर तू ये बात मेरी कसम खाकर इसलिए नही बोली, क्योंकि तू मेरी झूठी कसम खा ही नही सकती और सच बात तू बोलना नही चाहती. क्योंकि तुझे लगता है कि, सच बोलकर तू मेरे रास्ते मे रुकावट बन जाएगी."

कीर्ति बोली "जान ये क्या बोले जा रहे हो. ऐसा कुच्छ भी नही है."

मैं बोला ""ठीक है, तू मेरी कसम मत खा. लेकिन मैं अब तुझे अपनी कसम देता हूँ कि, तुझे मेरी कसम है. तेरे दिल मे जो कुछ भी है. तू सब सच सच बोल दे."

मेरी कसम सुनकर एक पल के लिए कीर्ति हड़बड़ा गयी. लेकिन दूसरे ही पल वो मुझ पर बरस पड़ी और गुस्से मे कहा.

कीर्ति बोली "जान ये कैसा मज़ाक है. मुझे ऐसा मज़ाक बिल्कुल पसंद नही. तुम अपनी कसम वापस लो. नही तो मैं अपने आपको सच मे कुछ कर लूँगी."

मैं बोला "तुझे जो कुछ करना है. तू खुशी खुशी कर ले. मगर इतना याद रखना कि, तू जो कुछ भी करेगी, वो मेरी कसम को तोड़ कर ही करेगी. आज मैं भी यही देखना चाहता हूँ कि, तेरे लिए मेरी कसम से बढ़कर क्या है."

मेरी ये बात सुनते ही, कीर्ति का गुस्सा शांत पड़ गया. अब उसने मुझसे विनती करने वाले अंदाज मे कहा.

कीर्ति बोली "प्लीज़ जान, ऐसा मत करो. मुझे मेरी ही नज़रों मे मत गिराओ. मेरे प्यार को स्वार्थी मत बनाओ. मैं तुम्हे कुछ भी करने से रोकना नही चाहती. तुम अपनी कसम वापस ले लो."

मैं बोला "तुझे कुछ नही कहना तो मत कह, पर मैं अपनी कसम, किसी भी कीमत पर वापस नही लूँगा. अब ये तेरी मर्ज़ी है कि, तू चाहे तो मेरी कसम को माने, या फिर मेरी कसम को तोड़ दे."

कीर्ति बार बार मुझसे कसम वापस लेने को बोलती रही, पर मैं अपनी ज़िद पर अड़ा रहा. मुझे अपनी कसम वापस ना लेने की ज़िद पर अड़ा देख कर, कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली "जान तुमने अपनी कसम देकर अच्छा नही किया. मैं तुम्हे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती हूँ. फिर भी मैं तुम्हे कभी हासिल नही कर सकती. तुम मेरे लिए उस चाँद की तरह हो. जिसके प्यार की चाँदनी मे, मैं नहा तो सकती हूँ. लेकिन उस चाँद को कभी अपनी बाँहों मे नही ले सकती."

मैं बोला "तू मुझे इतना प्यार करती है तो, फिर ये सब फालतू की बातें क्यों कर रही है."

कीर्ति बोली "जान ये फालतू की बात नही है. ये ही हमारा सच है. भले ही हम एक दूसरे को अपनी जान से ज़्यादा प्यार करते है. लेकिन इस सच को भी तो, नही झुठला सकते कि, हम एक दूसरे के भाई बहन है. फिर भला मैं तुम्हे किसी के साथ, कुछ करने से क्यों रोकू. तुम्हे किसी से भी अपनी खुशी हासिल करने का पूरा हक़ है. मैं तुम्हारे प्यार पर तो, अपना हक़ जता सकती हूँ. मगर तुम पर मेरा हक़ नही है. इसीलिए तो मैने तुमसे कहा था कि, तुम जिस से शादी करना चाहो कर लेना."

मैं बोला "ना ना, तूने ये नही कहा था. तूने कहा था कि, मुझे किसी से शादी करना हो तो मैं कर लूँ. तू मुझे शादी करने से नही रोकेगी, पर तू मेरे सिवा किसी को अपना नही बना सकती. क्या मैं कुछ ग़लत बोल रहा हूँ."

मैं कीर्ति के मन से उस बात को निकल देना चाहता. जिस बात मे बँध कर, कीर्ति मुझसे अपने दिल की बात, नही कह पा रही थी. मगर कीर्ति मेरे इस बात को, करने का मतलब समझ नही पाई थी कि, मैं बोलना क्या चाहता हूँ. उसने मेरी हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "हाँ मैने ये ही कहा था और मैने जो भी कहा था, बहुत सोच समझ कर कहा था."

मैं बोला "मैं भी तुझसे यही सुनना चाहता था कि, तूने जो भी कहा था बहुत सोच समझ कर कहा था. मैं तेरी इस बात को मानता हूँ कि, तू मेरी बहन है, इसलिए तू मुझे शादी करने, या किसी के साथ रहने से नही रोक सकती. लेकिन अब मुझे इस बात का जबाब भी दे दे कि, तू मेरे सिवा किसी और को अपना क्यों नही बना सकती. जब मैं शादी कर सकता हूँ तो, फिर तू क्यों नही कर सकती."

मेरी इस बात का कीर्ति के पास कोई जबाब नही था. वो अब भी खामोश ही रही. उसे खामोश देख कर मैने कहा.

मैं बोला "तू इसका कोई जबाब नही दे पाएगी. क्योंकि तेरे पास इसका कोई जबाब है ही नही. मगर मेरे पास तेरी इस बात का जबाब है कि, तू ऐसा क्यों नही कर सकती. तू ऐसा इसलिए नही कर सकती. क्योंकि तू ये ही मानती है कि, तेरे तन मन पर सिर्फ़ मेरा ही हक़ है. तेरा दिल मुझे ही अपना सब कुछ मानता है, पर तू मुझसे ऐसा बोल नही सकती. क्योंकि तू अभी भी हमारे भाई बहन के रिश्ते की कशमकश से बाहर नही निकल पाई है. बोल मैं सच बोल रहा हूँ ना."

लेकिन कीर्ति अभी भी चुप ही रही. मैने उसे चुप देख कर फिर कहा.

मैं बोला "देख तुझे मैने अपनी कसम दी है. यदि तू अब भी कुछ ना बोली तो, मेरा मरा हुआ मूह देखेगी."

मेरी बात सुनते ही कीर्ति के सब्र का बाँध टूट चुका था. वो अपने आँसुओं को बहने से रोक नही पाई. उसके आँसू बहते रहे और वो सिसकते हुए बोलती चली गयी.

कीटी बोली "हाँ ये सब सच है. मेरे लिए मेरा सब कुछ, तुम ही हो. मैं तुम्हारे सिवा किसी को अपना बनाने की, सोच भी नही सकती. मेरे तन मन पर सिर्फ़ तुम्हारा ही हक़ है. मैं अपने जीते जी, ये हक़ किसी को नही दे सकती."

मैं बोला "जब ऐसा है तो, तू मुझे क्यों कहती है कि, मैं जिस से चाहूं, उस से शादी कर लूँ. क्या तू मुझे किसी और का होते देख सकती है. क्या तुझे रिया और प्रिया की बात सुनकर बुरा नही लगा."

कीर्ति बोली "मैं क्या कर सकती हूँ. तुम्हे पाना मेरे नसीब मे ही नही है. क्योंकि तुम मेरे भाई हो. मैं इस बात को समझती हूँ, मगर मेरा दिल मेरी इस बात को नही मानता. ये रात दिन बस तुम्हे ही माँगता रहता है. ये दिल तुम्हे किसी और का होते कभी नही देख सकता. आज जब मैने तुमसे रिया और प्रिया की बातें सुनी तो, मेरे तन बदन मे आग लग गयी. मुझे ना तो तुम्हारे साथ, रिया का वो सब करना पसंद आया, और ना ही तुम्हारा प्रिया को देख कर, वो सब सोचना पसंद आया. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कि रिया और प्रिया मिल कर, तुम्हे मुझसे च्चीं रही हो. जब इतनी सी बात मे मेरा ये हाल है. तब भला मैं तुम्हे किसी और का होते कैसे देख सकुगी. मैं कुछ भी कहूँ, पर मेरा दिल नही चाहता कि, तुम मेरे सिवा किसी और के बनो."

इतनी बात बोल कर वो फिर सिसकने लगी. मैने भी उसे रोने दिया. मैं चाहता था कि, उसके मन का सारा गुबार निकल जाए. थोड़ी देर वो इसी तरह से सिसकती रही. जब उसे अहसास हुआ कि, मैं कुछ नही बोल रहा हू तो, तब उसने सिसकना बंद किया और मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "तुम्हे यदि मेरी बात बुरी लगी हो तो सॉरी, पर तुम किसी बात को लेकर, अपने आपको ज़रा भी दुखी मत करना. मैं तुम्हे ज़रा भी दुखी नही देख सकती."

मैं बोला "नही, मुझे तेरी किसी बात का कोई बुरा नही लगा. लेकिन इस बात का दुख ज़रूर हुआ कि, तूने मुझे इस लायक भी नही समझा कि, तू मुझ पर अपना हक़ जता सके. मुझे किसी बात को करने से रोक सके, और एक मैं था जो हमेशा तुझ पर अपना हक़ जताता रहा."

कीर्ति बोली "जान प्लीज़ नाराज़ मत हो. मैं सिर्फ़ तुम्हारी खुशी चाहती थी. फिर भला जिस बात से तुम्हे खुशी मिले. उस बात से मैं तुम्हे कैसे रोक सकती थी."

मैं बोला "बड़ी आई मेरी खुशी की परवाह करने वाली. इतना तो समझी नही कि, मेरी खुशी सिर्फ़ तू और तेरा प्यार है. मेरे उपर तेरे सिवा किसी का भी हक़ नही है. इतनी सी बात तो समझी नही, और अपने आपको बड़ा समझदार समझती है. जा मैं तुझसे कोई बात नही करता."

मगर अब कीर्ति के दिल का बोझ उतर चुका था. उसके मन का वो सारा गुबार बाहर निकल चुका था. जिसे वो ना जाने कब से अपने अंदर छुपाए रखी थी. इस गुबार के निकल जाने के बाद अब वो अपने उसी शरारती अंदाज मे वापस आ गयी थी, जिसके आगे मैं कभी टिक नही पाता हूँ. मगर मुझे कीर्ति के मूड का अंदाज़ा नही था. उसने अपने उसी शरारत भरे अंदाज मे मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "सच बोल रहे हो ना जान. मुझे तुम्हारे उपर पूरा हक़ है ना."

मैं बोला "हाँ. क्या तुझे अभी भी मेरी बात पर यकीन नही है."

कीर्ति बोली "जान यकीन बोल देने बस से नही आता. यकीन तो दिलाने से आता है."

मैं बोला "तू बोल मैं क्या करूँ. जो तुझे मेरी बात पर यकीन हो जाए."

कीर्ति बोली "मुझे वो दिखा दो. जो रिया ने देखा है."

कीर्ति बड़े भोलेपन से अपनी शरारत कर रही थी. मगर मैं उसकी इस शरारत को समझ नही पाया और मैने उस से कहा.

मैं बोला "क्या देखा था रिया. मैं कुछ समझा नही. ज़रा खुल कर बोल."

कीर्ति बोली "अरे वही जो पहले रिया के हाथ फेरने से और फिर प्रिया को फ्रॉक मे देख कर टनटना कर खड़ा हो गया था."

ये बोल कर वो खिलखिला कर हँसने लगी. उसकी बात का मतलब समझ मे आते ही मैं समझ गया कि, अब ये शरारत करने के मूड मे है. मैं उस पर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला "तुझे शरम नही आती. मुहसे ऐसी बात करते हुए."

कीर्ति बोली "अरे वाह, मेरी चीज़ के पीछे लुटेरे पड़े हुए और मैं शर्म कर के बैठी रहूं. कहीं मेरा माल, वो ही हजम कर गये तो, मैं तो बैठी रह जाउन्गी."

मैं बोला "ये क्या बके जा रही है. चुप कर."

मगर अब कीर्ति कहाँ रुकने वाली थी. उसने चिडाने वाले अंदाज मे फिर कहा.

कीर्ति बोली "उऊहहुन मुझे देखना है. दिखाओ ना प्लीज़."

मैं बोला "तू पागल हो गयी है क्या. ये क्या फालतू की बकवास किए जा रही है."

कीर्ति बोली "हाँ मैं पागल हो गयी हूँ. मेरी चीज़ है, आज मैं देख कर ही रहूगी."

मैं जानता था कि, अब कीर्ति को उसके मज़ाक से रोक पाना मेरे बस की बात नही है. इसलिए मैने बात को बदलते हुए कहा.

मैं बोला "ये फालतू की बात छोड़. अभी मुझे तुझको एक बात और बतानी है. तू ये बोल अभी तेरे पास समय है या नही."

कीर्ति बोली "जान यदि बहुत ज़रूरी बात है तो बोल दो. नही तो हम बाद मे बात कर लेगे. मुझे उपर आए बहुत देर हो गयी है. मैं मौसी से 5 मिंट का बोल कर उपर आई थी. अब तो पूरा 1 घंटा होने वाला है. मुझे मौसी के पास जाना भी ज़रूरी है."

मैं बोला "नही इतनी भी ज़रूरी बात नही है. हम शाम को या रात को बात कर लेगे."

कीर्ति बोली "ठीक है जान. अब तुम आराम करो. जब सोकर उठना और फ्री होना तो मुझे कॉल कर लेना."

मैं बोला "ओके मुउउहह."

कीर्ति बोली "आइ लव यू जान मुउहह."
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09-09-2020, 01:22 PM,
#66
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मैं बेमन से अपने बिस्तर से उठा और दरवाजा खोला. दरवाजा खोलते ही मुझे सामने प्रिया नज़र आई. उसे देखते ही मेरे चेहरे पर हँसी आ गयी. मैने अपने मन मे कहा.

मैं मन मे "ये लड़की कपड़े पहनती ही क्यों है. जब इसके कपड़े पहनने के बाद भी इसका सब कुछ साफ साफ नज़र आता."

असल मे वो इस समय पर्पल कलर की सिल्क की शॉर्ट नाइटी मे थी. जो उसकी फ्रॉक से भी छोटी थी. जिसमे से उसके बदन का हर अंग साफ साफ झलक रहा था. उसे देख कर ऐसा लग रहा था. जैसे किसी ने उसे अभी अभी सोते से जगाया हो, और वो उठ कर सीधे मेरे पास आ गयी हो. क्योंकि वो अभी भी उनीदी सी थी. ऐसी हालत मे वो और भी ज़्यादा सेक्सी लग रही थी.

इस हालत मे यदि उसे मेरी जगह कोई दूसरा देख लेता. तो उसका लिंग ज़रूर पानी छोड़ देता. लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नही हुआ. क्योंकि अब मेरे दिल दिमाग़ मे कीर्ति की तस्वीर घूम रही थी. जिसके सामने प्रिया का ये रूप भी फीका था. इसलिए अब उसे देख कर मेरा मन ज़रा भी मैला नही हुआ. उसके हाथ मे चाय नाश्ते की ट्रे थी. जिसे देख कर मैने कहा.

मैं बोला "मैने तो चाय नाश्ते का नही बोला."

लेकिन मेरी इस बात के जबाब मे प्रिया कुछ नही बोली. जैसे उसने मेरी बात सुनी ही ना हो. वो बिना कुछ कहे, मेरे कमरे के अंदर आई. उसने मेरे बेड के पास रखी टेबल पर नाश्ता रखा, और फिर मेरे बेड पर ही धम्म से लेट गयी. उसके इस तरह से लेटने से उसकी नाइटी पेट के उपर तक सरक गयी, और उसकी वाइट पैंटी साफ साफ नज़र आने लगी.

मैं कुछ समझ पाता की, ये क्या कर रही है. उस से पहले ही उसकी आँख बंद हो चुकी थी. उसकी ऐसी हालत मे, मेरी हिम्मत उसके पास जाने की नही हुई. मैने दरवाजे के पास खड़े खड़े ही, उसे दो बार प्रिया प्रिया करके आवाज़ लगाई. मगर प्रिया कुछ नही बोली. वो शायद सो चुकी थी.

मैं अजीब उलझन मे फसा हुआ था. मुझे समझ मे ही नही आ रहा था कि, अब मैं क्या करूँ. जब मेरे कुछ समझ मे नही आया तो, मैं कमरे से बाहर निकल आया. कमरे से बाहर आकर मैने दरवाजा बंद किया और हॉल मे आ गया.

हॉल मे निक्की चहल कदमी कर रही थी. वो शायद प्रिया के वापस लौटने का इंतजार कर रही थी. लेकिन प्रिया की जगह उसने मुझे कमरे से बाहर निकलते देखा तो, वो मेरे पास चली आई और पुछा.

निक्की बोली "क्या हुआ. आप बाहर क्यों आ गये. प्रिया तो आपको नाश्ता देने गयी थी ना."

मैं बोला "हाँ नाश्ता देने तो आई थी, मगर नाश्ता देकर वो वहीं सो भी गयी. लगता है आप ने ही उसे नाश्ता लेकर मेरे पास भेजा था."

निक्की बोली "हाँ मैने ही उसे भेजा था. क्या आपने उसे जगाया नही."

मैं बोला "मैने उसे जगाने की कोशिस तो की थी, मगर लगता है आपने उसे बहुत गहरी नींद से जगा दिया है. इसलिए उसे कुछ होश नही है."

निक्की बोली "हाँ जब मैने उसे जगाया था. तब वो बहुत गहरी नींद मे थी. शायद इसीलिए वो आपके कमरे मे बेड देखते ही सो गयी होगी. ये तो इसकी बचपन की आदत है."

मैं बोला "कैसी आदत."

निक्की बोली "यदि इसे गहरी नींद से ज़बरदस्ती जगा दो तो, ये जहाँ भी सोने की जगह देखती है. वही पर सो जाती है. ये इसकी बचपन की आदत है."

मैं बोला "यदि ऐसी बात थी तो, आपने इसे जगाया ही क्यों था."

निक्की बोली "मुझे क्या मालूम था कि, इसकी बचपन की आदत अभी तक नही गयी है. यदि मुझे मालूम होता तो मैं इसे नाश्ता लेकर नही भेजती."

मैं बोला "कोई बात नही. किसी किसी के साथ ऐसा होता है. आप चल कर उसे जगा दीजिए."

मेरी बात सुनकर निक्की मेरे साथ मेरे कमरे तक आई. मगर मैं प्रिया की ऐसी हालत मे, अंदर नही जाना चाहता था. मैं कमरे के बाहर ही रुक गया. निक्की ने कमरे मे जाकर प्रिया को जगाने की कोशिस की, लेकिन प्रिया जागने का नाम ही नही ले रही थी. तब निक्की नाश्ते की ट्रे लेकर बाहर आई और मुझसे कहने लगी.

निक्की बोली "आप ऐसा कीजिए डाइनिंग रूम मे चल कर नाश्ता कीजिए. तब तक मैं इसे जागती हूँ."

ये कह कर वो मुझे डाइनिंग रूम मे ले आई. मैं वहाँ बैठ कर चाय नाश्ता करने लगा और निक्की प्रिया को जगाने चली गयी. थोड़ी देर बाद मैने देखा कि, निक्की प्रिया को पकड़ कर उपर उसके रूम मे ले जा रही है. प्रिया अभी भी आधी नींद मे ही लग रही थी.

मैं अभी नाश्ता कर ही रहा था. तभी रिया के पापा आ गये. वो शायद ऑफीस जाने की तैयारी मे थे. मैने उनसे गुड मॉर्निंग किया तो, उन ने गुड मॉर्निंग का जबाब दिया और मेरे पास ही बैठ गये. तब तक निक्की भी प्रिया को छोड़ कर आ चुकी थी. निक्की ने अंकल को बैठे देखा तो, वो जाकर उनके लिए भी चाय नाश्ता ले आई. अंकल ने इस बीच मेरी थोड़ी बहुत बात हुई. फिर अंकल नाश्ता करने के बाद ऑफीस चले गये.

अब मैं और निक्की अकेले ही वहाँ बैठे थे. मैं भी नाश्ता कर चुका था. लेकिन निक्की अभी नाश्ता कर रही थी. जिस वजह से मुझे वहाँ बैठना पड़ा. मेरा उस से अभी भी बात करने का मन नही था. फिर भी मैने बेमन से निक्की से पुछा.

मैं बोला "घर के बाकी लोग कहाँ है."

निक्की बोली "प्रिया और अंकल से तो आप मिल ही चुके है. राज और रिया 9 बजे के बाद ही सोकर उठेगे."

मैं बोला "क्या दादा जी और आंटी भी देर से उठते है."

निक्की बोली "नही दादा जी और आंटी जल्दी उठ जाते है. आज सोमवार है तो, वो दोनो मंदिर दर्शन के लिए गये है. वो हर सोमवार को मंदिर जाते है. वो अब आने ही वाले होंगे."

तब तक निक्की का भी नाश्ता हो चुका था. मैं अब मैं उस से अपना पिछा छुड़ाना चाहता था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला "क्या आपको सोना नही है."

निक्की बोली "मैं आपको और अंकल को नाश्ता देने के लिए रुकी हुई थी. अब मैं भी जाकर सोउंगी."

मैं बोला "ठीक है. अब आप भी आराम कीजिए. मुझे भी बहुत नींद आ रही है."

ये कह कर मैं अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर मैं बिस्तर पर लेट गया और कुछ ही देर मे मुझे नींद आ गयी. मैं कीर्ति के बारे मे सोचते हुए सोया था. इसलिए मुझे उसका ही सपना आया. मगर सपने मे उसके साथ अमि निमी भी थी. निमी रोए जा रही थी. कीर्ति और अमि उस से रोने की वजह पुछ रही थी. निमी रोने की वजह बताने ही जा रही थी. तभी मेरी नींद खुल गयी.

निमी को सपने मे रोते देख कर मेरा मूड खराब हो गया. मैने टाइम देखा तो शाम के 4:30 बज गये थे. मैने घर कॉल लगाने के लिए मोबाइल उठाया तो, उसमे करीब 2 बजे के आस पास कीर्ति के 15 मिस्ड कॉल थे. मैने कीर्ति को कॉल लगाया. लेकिन उसका मोबाइल ऑफ बता रहा था. ये देख कर मुझे और भी चिंता होने लगी.

तब मैने छोटी माँ के मोबाइल पर कॉल किया. लेकिन उनके मोबाइल पर रिंग तो जा रही थी पर कॉल नही उठ रहा था. इस से मेरी चिंता और बढ़ गयी, और फिर मैने आंटी के मोबाइल पर कॉल किया. आंटी ने कॉल उठा लिया. उनके कॉल उठाते ही मैने उनसे पुछा.

मैं बोला "आंटी घर मे सब ठीक तो है ना."

आंटी बोली - "हाँ सब ठीक है. तू ऐसा क्यों पुछ रहा है."

मैने आंटी को अपने सपने वाली बात बताई. फिर छोटी माँ और कीर्ति को कॉल लगाने वाली बात बताई. तब आंटी ने कहा.

आंटी बोली "चिंता की कोई बात नही है. बस निमी को स्कूल मे बुखार आ गया था. अब वो ठीक है, और तेरे कमरे मे आराम कर रही है. हम सब भी यही है. सुनीता का मोबाइल उसके कमरे मे रखा है. इसलिए वो तेरा कॉल नही उठा पाई."

मैं बोला "निमी को डॉक्टर. को दिखाया या नही."

आंटी बोली "अरे क्या तुझी को बस उसका ख़याल है. हम सब यहाँ है ना. हम ने उसे डॉक्टर को दिखा दिया है. डॉक्टर. ने कहा है है कि, चिंता की कोई बात नही है. बस ऐसे ही मौसमी बुखार है. शाम तक वो बिल्कुल ठीक हो जाएगी. अभी दबा खाकर वो सो रही है."

मैं बोला "ठीक है. यदि कीर्ति आपके पास हो तो, उस से मेरी बात करा दीजिए."

आंटी बोली "हाँ वो यही है. मैं उसे फोन देती हूँ."

ये कह कर आंटी ने कीर्ति को फोन दे दिया. कीर्ति के फोन पर आते ही, मैने कीर्ति से पुछा.

मैं बोला "अचानक निमी को बुखार कैसे आ गया. सुबह जब मुझसे बात हुई थी. तब तो वो अच्छी भली लग रही थी."

कीर्ति बोली "आज सुबह वो तबीयत सही ना होने की बात बोल,कर स्कूल ना जाने की ज़िद कर रही थी. हम सब ने सोचा की वो, हमेशा की तरह बहाना कर रही है. इसलिए उसकी बात नही मानी, और उसे स्कूल भेज दिया. 11 बजे उसकी स्कूल से फोन आया की, उसकी तबीयत सही नही है. कोई उसे आकर घर ले जाए. तब मैं उसे स्कूल लेने गयी. रास्ते मे मैने उसे डॉक्टर. को दिखाया और फिर घर ले आई. तब से वो आराम ही कर रही है."

मैं बोला "जब वो स्कूल जाना नही चाहती थी. तब तुम लोगों ने उसे स्कूल भेजा ही क्यों था. उसके एक दिन स्कूल ना जाने से, ऐसा क्या बिगड़ जाता."

कीर्ति बोली "तुम ही तो सुबह बोल रहे थे कि, उसे तो स्कूल ना जाने का बहाना चाहिए. यदि तुम उस से बात कर लोगे तो, वो कहेगी कि भैया ने कहा है कि, आज तुम स्कूल मत जाना. मुझे यही लगा कि तुम्हारी बात सही निकल रही है. तुमसे बात होते ही वो बोलने लगी कि, भैया कह रहे है आज तुम स्कूल मत जाना."

कीर्ति की ये बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया. मैं ने उसे चिल्लाते हुए कहा.

मैं बोला "मेरी बात सही होने का क्या मतलब है. तेरे पास कुछ अपना दिमाग़ है या नही है. या सारे समय बस मुझसे बात करने मे ही लगा रहता है. मैं तुझे अपनी बहनों के पास इसलिए छोड़ कर आया था कि, मैं उन से बेफिकर होकर यहाँ रह सकूँ. लेकिन तुझसे तो ये काम भी अच्छे से नही हुआ. 2 दिन मे मेरी बहन की तबीयत खराब कर के रख दी."

कीर्ति बोली "इस मे मेरी क्या ग़लती है. ये तो मौसमी बुखार था. इसे मैं आने से कैसे रोक सकती हूँ."

मैं बोला "ग़लती तेरी नही मेरी थी. जो मैने तुझ पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा कर लिया, और निमी से बात करने तक का टाइम नही निकाला. यदि मैं उस से बात करता होता तो, उसकी तबीयत कभी खराब नही होती."

कीर्ति को भी मेरी बात पर गुस्सा आ गया. उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "मैने कब तुम्हे तुम्हारी बहन से बात करने से मना किया था. उल्टे तुम्हारे पास ही उस से बात करने का समय नही था. मैने तो खुद तुम्हारी सुबह उस से बात कराई थी."

मैं बोला "चल अपनी सफाई अपने पास रख. ना तूने कभी किसी बात मे अपनी ग़लती मानी थी, और ना ही कभी किसी बात मे अपनी ग़लती मानेगी. लेकिन सच ये ही है कि, निमी की तबीयत तेरी ही लापरवाही की वजह से खराब हुई है."

कीर्ति बोली "तुम मुझे वेवजह निमी की तबीयत के लिए दोषी बना रहे हो. इस सब मे मेरी कोई ग़लती नही है. यदि ग़लती है तो इस मे खुद निमी की ग़लती है. वो रात से ही स्कूल ना जाने के लिए कोई ना कोई बहाना बोलते आ रही थी. अब मुझे कोई सपना हो रहा था कि, स्कूल जाने से उसकी तबीयत खराब हो जाएगी. वैसे भी उसे ज़बरदस्ती स्कूल मैने नही, मौसी ने भेजा था. तुम्हे जो भी कहना है. मौसी से कहो."

मैं बोला "मुझे भी तुझसे कोई बात नही करनी. छोटी माँ को फोन दो. मैं उन्ही से बात करूगा."

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने छोटी माँ को फोन दे दिया. छोटी माँ शायद हमारा लड़ाई झगड़ा सुन चुकी थी. उन ने फोन लेते ही कहा.

छोटी माँ बोली "कीर्ति पर क्यों गुस्सा हो रहा है. क्या तू अपनी लाडली को नही जानता. उसकी तो स्कूल ना जाने के लिए, आए दिन कोई ना कोई बहाना बनाने की आदत ही है. ऐसे मे हम लोगों को क्या मालूम कि, उसको स्कूल भेजने से उसकी तबीयत ही खराब हो जाएगी."

मैं बोला "कुछ भी हो छोटी माँ, पर निमी की तबीयत आप लोगों की वजह से ही खराब हुई है. आप लोगों ने मेरी गैर हाज़िरी मे उसका ज़रा भी ध्यान नही रखा."

छोटी माँ बोली "उसकी तबीयत खराब होने की वजह कोई दूसरा नही बल्कि तू खुद ही है."

छोटी माँ की ये बात मेरी समझ मे नही आई. लेकिन इसे सुनकर मेरा गुस्सा शांत हो गया. मैने कहा.

मैं बोला "ये आप क्या बोल रही है. मैं भला निमी की तबीयत खराब होने की वजह कैसे हूँ."

छोटी माँ बोली "तू पूरा बुद्धू है. अरे इतना भी नही समझता. तेरी बहन तुझसे कभी दूर नही रही. अब तू उसके सामने नही है तो, वो तुझे बहुत मिस कर रही है. इसलिए वो बीमार पड़ गयी. नही तो इतने सालों मे तूने कभी उसे बीमार पड़ते देखा है."

छोटी माँ की ये बात मुझे सही लगी. आज तक मैं कभी अमि निमी की नज़रों से दूर नही रहा था. यहाँ तक कि जब कभी छोटी माँ अपने मायके जाती तो, अमि निमी की वजह से मैं भी उनके साथ जाता था. छोटी माँ की बात मेरी समझ मे आ चुकी थी और, मेरा गुस्सा पूरी तरह से शांत हो चुका था. मैने उनसे कहा.

मैं बोला "शायद आप ठीक कह रही है. मुझे खुद उनके बिना यहाँ सूना सूना लग रहा है. फिर तो अमि निमी अभी बहुत छोटी है. यदि अमि वहाँ हो तो, ज़रा उसे फोन देना. मुझे उस से बात करना है."

अमि उधर पर ही थी. छोटी माँ ने उसे फोन पकड़ा दिया. अमि के फोन पर आते ही मैने उस से कहा.

मैं बोला "मेरी इतनी ज़्यादा समझदार अमि के रहते, निमी की तबीयत कैसे खराब हो गयी."

अमि बोली "भैया मैं तो निमी को कितना समझाती हूँ कि, कुछ भी उल्टा सीधा ना खाया करे. लेकिन निमी मानती ही नही है. जब देखो कुछ ना कुछ खाती ही रहती है. अब ऐसे मे बीमार नही पड़ेगी तो और क्या होगा."

मैं बोला "तू तो बड़ी है ना. तो फिर तू उसे पिटाई क्यों नही लगाती."

अमि बोली "भैया जब वो कुछ खाती है तो, उसमे से मुझे भी खिलाती है. फिर मैं उसको पिटाई कैसे लगा सकती हूँ."

मैं बोला "ये तो ग़लत बात है. यदि निमी कोई ग़लती करती है तो, तुझे उसको ग़लती करने से रोकना चाहिए. खुद ही उसकी ग़लती मे शामिल नही हो जाना चाहिए. जब तू खुद ग़लती कर रही है तो, फिर तू उसे ग़लती करने से कैसे रोक पाएगी."

अमि बोली "ठीक है भैया. आज से मैं ये ग़लती नही करूगी. लेकिन आप कब आ रहे हो. निमी आपको बहुत याद करती है."

मैं बोला "अंकल के ठीक होते ही आ जाउन्गा. लेकिन जब तक मैं नही आ रहा हूँ. तू निमी, और बाकी सबका ख़याल रखना."

अमि बोली "भैया ख़याल तो मैं सबका रखती हूँ, पर आपके बिना ज़रा भी अच्छा नही लग रहा है. अब तो अंकल का ऑपरेशन भी हो गया है, और वहाँ पापा भी पहुच गये है. आप पापा को अंकल के पास छोड़ कर आ जाओ ना."

अमि की बात सुनकर मेरा भी मन उसे देखने के लिए तड़प उठा. मैने किसी तरह से अपने को संभाला और अमि से कहा.

मैं बोला "मेरी प्यारी आमो. ऐसा नही कहते. देख पापा यहा किसी काम से आए है. वो अपना काम कर के एक दो दिन मे तुम लोगों के पास आ जाएगे. फिर अंकल और मेहुल भैया का ख़याल कौन रखेगा. उनका ख़याल रखने के लिए मुझे तो उनके पास रहना चाहिए ना."

लेकिन अमि के छोटे से दिमाग़ मे मेरी बात नही आई. वो उल्टा मुझे समझाते हुए बोलने लगी.

अमि बोली "भैया अभी तो पापा वहाँ है. जब तक के लिए पापा वहाँ है. तब तक के लिए तो आप यहाँ आ ही सकते है. जब पापा यहाँ आने लगे. तब आप वहाँ चले जाना. ऐसा करने मे अंकल को भी परेसानी नही होगी और हम लोग आप को देख भी लेगे."

मैं जानता था की निमी को समझाना आसान है पर अमि को समझाना इतना आसान नही है. उसके पास हर बात का कोई तोड़ होता ही है. इसलिए मैने उसे समझाने की जगह बहलाना ही ठीक समझा. मैने उस से कहा.

मैं बोला "देख मैं तुझे एक राज की बात बताता हूँ. मगर पहले तू वादा कर कि तू ये बात किसी को नही बताएगी और इसमे मेरा साथ देगी."

अमि को जैसे ही लगा की कोई राज की बात मैं सिर्फ़ उसे बता रहा हूँ, तो उसने झट से कहा.

अमि बोली "मैं वादा करती हूँ कि मैं ये बात किसी से नही कहुगी, और आपका साथ दूँगी."

मैं बोला "गुड. अब पहले बता कि कोई हमारी बात सुन तो नही रहा है."

अमि बोली "नही, कोई नही सुन रहा है."

मैं बोला "देख मैं यहा अंकल की तबीयत के साथ साथ एक दूसरे काम से भी रुका हुआ हूँ. मैं अपना दूसरा काम सिर्फ़ तुझे बता रहा हूँ. तू ये बात किसी को मत बताना."

अमि बोली "आप बिल्कुल चिंता मत करो. मैं ये राज की बात किसी को भी पता नही चलने दूँगी."

मैं बोला "तो सुन. कुछ दिन बाद तेरा और निमी का जनम दिन है ना."

अमि बोली "हाँ है."

मैं बोला "मैं उसी वजह से यहाँ रुका हुआ हूँ. यहा बहुत अच्छे खिलौने और कपड़े मिलते है. एक दो दिन मे अंकल की तबीयत थोड़ी सुधर जाएगी. तब मैं यहाँ रोज थोड़ी थोड़ी खरीदी करूगा. अभी अंकल की तबीयत सही नही है. ऐसे मे क्या बाजार जाना सही रहेगा."

अमि बोली "नही भैया ऐसे मे बाजार जाना ठीक नही है."

मैं बोला "तो फिर तू समझ गयी ना कि, मैं अभी क्यों नही आ रहा हूँ."

अमि बोली "नही भैया, मुझे कोई खिलोने नही चाहिए. मुझे बस आप चाहिए."

मैं बोला "मुझे मालूम है कि, तुझे कुछ नही चाहिए. लेकिन तू निमी की भी सोच ना. निमी ये सब देख कर कितना खुश होगी. क्या तू नही चाहती तेरी छोटी बहन खुश हो."

अमि बोली "चाहती हूँ भैया."

मैं बोला "तो फिर इस सब मे मेरा साथ दे. जब तक मैं नही आ जाता निमी को खेल मे लगाए रह. उसको मेरी कमी ज़रा भी महसूस मत होने दे. हमारे बीच हुई बात को राज ही रखना. इसका किसी को पता नही चलना चाहिए."

अमि बोली "ठीक है भैया मैं आपका साथ दुगी. लेकिन आपको भी मेरी एक बात मानना होगी."

मैं बोला "मैं अपनी आमो की सब बात मानूँगा. तू बोल तो सही."

अमि बोली "आप जब तक नही आ रहे हो. तब तक मुझसे और निमी से रोज बात करोगे."

मैं बोला "बिल्कुल करूगा. मैं खुद अपनी अमि निमी से बात किए बिना नही रह सकता. अब तू ऐसा कर कीर्ति को फोन दे. मुझे उस से कुछ ज़रूरी बात करनी है."

अमि बोली "भैया कीर्ति दीदी तो यहाँ नही है. वो शायद किसी काम से नीचे चली गयी है. मैं क्या नीचे जाकर उनसे आपकी बात करवाउँ."

मैं बोला "नही रहने दे. वो ज़रूर कोई काम कर रही होगी. वो जब आए तो उस से कहना कि मुझसे बात कर ले."

अमि बोली "ठीक है भैया."

मैं बोला "ठीक है, अब फोन छोटी माँ को दे."

इसके बाद अमि ने फोन छोटी माँ को दे दिया. मेरी छोटी माँ से निमी को लेकर थोड़ी बहुत बात हुई. मैने निमी के जागने पर उस से बात करने को कहा, और फोन रख दिया. फोन रखने के बाद मैं फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद मैने मोबाइल देखा कि शायद कीर्ति का कॉल आया हो. लेकिन उसका कोई कॉल नही था.

मैने उसे कॉल लगाया, पर उसका मोबाइल अभी भी बंद था. मुझे उसके मोबाइल बंद होने का कारण भी समझ मे नही आ रहा था. मैने उसे वेवजह गुस्सा किया था. यही बात अब मुझे परेशान करने लगी. मैं यही सब सोचते सोचते तैयार होने लगा.

तैयार होने के बाद मैने टाइम देखा तो अब 5:15 बज गये थे. अब मुझे बहुत ज़ोर से चाय की तलब लग रही थी. लेकिन मुझे किसी से चाय के लिए बोलना अच्छा नही लग रहा था. इसलिए मैं आराम से अपने बेड पर बैठ कर, किसी के आने का इंतजार करने लगा कि, शायद कोई खुद ही मुझसे पुच्छने आ जाए.

अभी मुझे इंतजार करते थोड़ी ही देर हुई थी. तभी किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटा दिया. मेरा अंदाज़ा था कि, हो ना हो ये निक्की ही होगी. ये सोचते हुए मैं दरवाजा खोलने चला गया. मैने दरवाजा खोला तो, सामने निक्की थी. वो चाय लेकर आई थी.

मेरे दरवाजा खोलते ही वो कमरे के अंदर आकर बेड पर बैठ गयी. अभी वो वाइट टॉप और ब्लॅक स्कर्ट पहनी थी. उसे इन कपड़ों मे देखते ही मुझे कीर्ति की याद आ गयी, और मेरा मन उदास हो गया.

मैने उसे कॉल लगाया, पर उसका मोबाइल अभी भी बंद था. मुझे उसके मोबाइल बंद होने का कारण भी समझ मे नही आ रहा था. मैने उसे वेवजह गुस्सा किया था. यही बात अब मुझे परेशान करने लगी. मैं यही सब सोचते सोचते तैयार होने लगा.

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09-09-2020, 01:24 PM,
#67
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मेरे दरवाजा खोलते ही वो कमरे के अंदर आकर बेड पर बैठ गयी. अभी वो वाइट टॉप और ब्लॅक स्कर्ट पहनी थी. उसे इन कपड़ों मे देखते ही मुझे कीर्ति की याद आ गयी, और मेरा मन उदास हो गया.

मैं अभी भी दरवाजे के पास ही खड़ा था. मुझे दरवाजे के पास खड़ा देख कर, निक्की मुस्कुराइ और मुझे आँख मारते हुए कहने लगी.

निक्की बोली "आप घबराईए नही, मैं प्रिया की तरह कुछ भी नही करूगी. मैं तो बस आपके साथ चाय पीने के लिए बैठ गयी हूँ. यदि आप कहेगे तो चली जाउन्गी."

मेरा मन अभी भी निक्की से बात करने का नही था. मैं उसको उसकी ग़लती के लिए माफ़ तो कर चुका था. मगर उसकी ग़लती को दिल से नही निकाल पाया था. उसे देखते ही मुझे, उसकी ग़लती याद आ जाती, और मेरे मन मे उसके लिए गुस्सा भर जाता था.

यदि मैं उसकी इस एक ग़लती को भूल जाता तो, मेरे लिए वहाँ पर उस से बढ़ कर दोस्त कोई दूसरा नही था. लेकिन चाह कर भी मैं, ऐसा नही कर पा रहा था. जिसकी वजह से मुझे उसकी हर अच्छी बात भी बुरी लग रही थी.

जैसे कि अभी मुझे निक्की को इन कपड़ो मे देख कर, बहुत ज़ोर से चिड छूट रही थी. एक तो वो कीर्ति की हमशक्ल थी. उपर से अब वो बिल्कुल उसी की तरह के कपड़े पहन कर मेरे सामने बैठी थी. जिस से मुझे और भी ज़्यादा कीर्ति की याद आने लगी थी. मुझे बार बार अपनी ग़लती का अहसास हो रहा था कि, मैने वेवजह कीर्ति के उपर गुस्सा कर दिया है. इस बात की वजह से, अब मेरी चाय की तलब भी ख़तम हो चुकी थी.

मैं निक्की की बात सुनकर, दरवाजे के पास से हट कर, उसके सामने रखी हुई चेयर पर बैठ गया. लेकिन जब निक्की ने मुझे चाय दी. तब मैने चाय पीने से मना कर दिया. मैने उस से कहा.

मैं बोला "आप चाय पीजिए. मेरा चाय पीने का ज़रा भी मन नही है."

निक्की बोली "लेकिन मेहुल बोल रहा था कि, आपको सोकर उठते ही चाय पीने की आदत है. तभी तो मैं आपके उठते ही चाय लेकर आई हूँ."

मैं बोला "आप मेहुल की बात मे मत आइए. उसका क्या है. वो तो कुछ भी बोलता रहता है. मुझे सच मे चाय नही पीनी."

निक्की बोली "ओके यदि आप चाय नही पिएगे तो, फिर मैं भी चाय नही पियुगी. अब अच्छा यही है कि, आप चाय पी लीजिए."

ये कहते हुए निक्की ने चाय का कप मेरी तरफ बढ़ा दिया. मैने बेमन से चुप चाप चाय ले ली और पीने लगा. तभी मेरे दिमाग़ मे बात आई कि, निक्की को कैसे मालूम पड़ा कि, मैं सोकर उठ गया हूँ. यही बात जानने के लिए मैने निक्की से कहा.

मैं बोला "आपको कैसे पता चला कि, मैं जाग गया हूँ."

निक्की बोली "अभी कुछ देर पहले मैं ये देखने आई थी कि, आप जाग गये है या नही. तभी मैने आपको किसी पर गुस्सा होते सुना. शायद आप फोन पर किसी को डाँट रहे थे. आपकी आवाज़ सुनकर मैं समझ गयी कि, आप जाग चुके है, और मैं वापस चाय लेने चली गयी."

मैं पापा और बाकी लोगों के बारे मे जानना चाहता था कि, इस वक्त कौन कहाँ है. लेकिन निक्की के साथ अपनी बात का सिलसिला बढ़ाना नही चाहता था. इसलिए मैने फिर कुछ नही कहा और चुप चाप चाय पीता रहा. मुझे कोई बात ना करते देख कर, निक्की ने खुद ही बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

निक्की बोली "आप सोच रहे होंगे कि, ये लड़की सुबह से शाम तक मेरे पिछे ही पड़ी रहती है. लेकिन ऐसी बात नही है. इस वक्त घर मे आपके, मेरे और आंटी के सिवा कोई नही है. इसलिए मुझे चाय लेकर आना पड़ा."

मैं बोला "क्यों प्रिया और रिया कहाँ है. क्या वो हॉस्पिटल मे है."

निक्की बोली "नही वो लोग दोपहर तक हॉस्पिटल मे थी. लेकिन उसके बाद वो लोग हॉस्पिटल से ही आपके पापा को, मुंबई घुमाने चली गयी. अभी हॉस्पिटल मे मेहुल और राज है."

पापा के बारे मे सुनते ही मैने मन मे सोचा कि, मेरा बाप कितना बड़ा कमीना है. सारी मुंबई घुमा हुआ है. फिर भी कम उमर की लड़कियाँ देखते ही, मुंबई घूमने का शौक चढ़ गया. अपना ध्यान अपने पापा की तरफ से हटाने के लिए मैने निक्की से पुछा.

मैं बोला "दादा जी कहाँ है."

निक्की बोली "दादा जी तो अपने दोस्तों के साथ, ईव्निंग वॉक पर निकल गये है. अब वो 7 बजे ही लौटेगे."

मैं बोला "क्या आप सब की स्कूल की छुट्टियाँ चल रही. मैने अभी तक आप लोगों को स्कूल जाते नही देखा है."

निक्की बोली "हाँ अभी छुट्टियाँ चल रही है. इसी वजह से मैं यहाँ आई हूँ. जब छुट्टियाँ नही रहती. तब मैं हॉस्टिल मे ही रहती हूँ."

अभी हमारी बात चल ही रही थी. हमारी चाय भी अभी ख़तम नही हुई थी. तभी प्रिया दौड़ते हुए आई और निक्की से कहने लगी.

प्रिया बोली "तू यहाँ आराम से बैठ कर चाय पी रही है. मैं तुझे सारे घर मे ढूढ़ रही हूँ. जल्दी से उठ, मुझे तुझको एक ज़रूरी चीज़ दिखाना है."

निक्की बोली "ऐसी कौन सी चीज़ है. जिसको दिखाने के लिए तू इतनी उतावली है. मुझे चाय तो पी लेने दे."

मगर प्रिया उसकी कोई बात सुनने को तैयार नही थी. उसने उसके हाथ से चाय का कप लेकर टेबल पर रखा, और उसे ज़बरदस्ती उठाने लगी. उस समय ना जाने मुझे क्या हुआ. मैने प्रिया का हाथ पकड़ लिया और बड़े ही रूखे पन से, उस से कहा.

मैं बोला "रूको, तुम्हे जो दिखाना है, बाद मे दिखा लेना. पहले इसे अपनी चाय ख़तम कर लेने दो. फिर तुम इसे जहाँ ले जाना चाहो ले जाना."

मेरी इस बात को सुन कर प्रिया ही नही बल्कि निक्की भी चौक गयी. दोनो को मुझसे ऐसी उम्मीद नही थी. प्रिया ने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर निक्की का हाथ छोड़ कर गुस्से मे बाहर निकल गयी. उसके जाने के बाद मुझे अहसास हुआ कि, मैने क्या कर दिया.

अपनी ग़लती का अहसास होते ही, मैं चुप चाप चाय पीने लगा. निक्की ने भी अपना चाय का कप उठाया और चाय पीने लगी. लेकिन अब वो मुझे बड़े गौर से देख रही थी. शायद वो मेरी इस हरकत को समझने की कोसिस कर रही थी. जब उसके कुछ समझ मे नही आया तो, वो मुझसे पुच्छ बैठी.

निक्की बोली "आपने ऐसा क्यों किया. प्रिया को बुरा लग गया होगा."

अब मैं निक्की से कैसे कहता कि, ये सब मुझसे कीर्ति के धोके मे हो गया. मुझे लग रहा था कि, वो कीर्ति को ज़बरदस्ती पकड़ कर ले जा रही है. इसी गुस्से मे मैने प्रिया को ये सब बोल दिया. अब ये बात मैं निक्की से तो बोल नही सकता था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला "मुझे प्रिया का यू ज़बरदस्ती करना अच्छा नही लगा. वो आपके चाय पी लेने का इंतजार भी तो कर सकती थी."

निक्की बोली "नही, ऐसी बात नही है. यदि ये ही बात होती तो, आप उस पर इस तरहा गुस्सा नही होते. आप उसे ये बात प्यार से भी बोल सकते थे. मुझे लग रहा है कि, आपने उसे किसी और वजह से डाँट दिया है."

मैं बोला "नही, जो मैं कह रहा हूँ, वही वजह है. इसके सिवा और क्या वजह हो सकती है."

निक्की बोली "मुझे आपकी बातों से ऐसा लगा. जैसे आपने मुझसे कीर्ति समझ कर उसे डाँट दिया है. आपको लग रहा था कि, वो कीर्ति के साथ जबरदती कर रही है. तभी आपने उस से ये कहा कि, पहले इसे अपनी चाय ख़तम कर लेने दो. फिर तुम इसे जहाँ ले जाना चाहो ले जाना. यदि आप मेरे बारे मे ये बात बोलते तो, आपने उस से कहा होता कि, पहले इन्हे अपनी चाय ख़तम कर लेने दो. फिर तुम इन्हे जहाँ ले जाना चाहो ले जाना.

मैं बोला "नही, ऐसी कोई बात नही है. मेरे मूह से गुस्से मे, आपके लिए, इन्हे की जगह, इसे निकल गया. अब गुस्से मे तो किसी की ज़ुबान पर काबू नही रहता. आप भी तो गुस्से मे मुझे, आप की जगह तुम कह रही थी."

निक्की बोली "ओके गुस्से मे कभी कभी ऐसा हो जाता है. आप प्रिया की चिंता मत कीजिए. मैं उसको समझा लुगी. अब मैं चलती हूँ. नही तो आपके साथ साथ वो मेरे उपर भी नाराज़ हो जाएगी."

ये कह कर निक्की ने चाय की ट्रे उठाई और कमरे से बाहर निकल गयी. उसके जाते ही मैने दरवाजा बंद किया और वापस बेड पर आकर लेट गया. मैने टाइम देखा तो अभी सिर्फ़ 5:45 ही हुआ था. मैने मोबाइल उठाया और कीर्ति को कॉल लगाया. लेकिन अभी भी उसका मोबाइल बंद था.

मुझे घर मे बात किए हुए. एक घंटे से उपर हो गया था. तब से लेकर अब तक कीर्ति का मोबाइल बंद रहना. मेरी समझ के बाहर था. जब उसका मोबाइल 6 बजे तक चालू नही हुआ. तब मैने फिर से आंटी के मोबाइल पर कॉल लगाया. आंटी ने कॉल उठाया तो मैने कहा.

मैं बोला "आंटी निमी जागी या नही."

आंटी बोली "नही, अभी वो सो ही रही है. तू परेशान मत हो. वो जैसे ही जागेगी. मैं तेरी उस से बात करा दुगी."

मैं बोला "कीर्ति कहाँ है."

आंटी बोली "उसे कोई ज़रूरी काम था. इसलिए वो अपने घर गयी है."

मैं बोला "उसे अचानक ऐसा क्या काम आ गया. जो वो निमी की बीमारी की हालत मे भी घर चली गयी.."

आंटी बोली "वो कुछ बता कर नही गयी. वो जाती समय बस इतना बोल कर गयी है कि, उसे घर मे कोई ज़रूरी काम है."

इसके बाद मेरी आंटी से, अंकल की तबीयत के बारे मे थोड़ी बहुत बात हुई. जिसके बाद मैने फोन रख दिया. मेरा मन आंटी से, कीर्ति के मोबाइल बंद रहने की बात, पूछने का भी कर रहा था. लेकिन फिर मुझे ये सब आंटी से पूछना अच्छा नही लगा.

पहले तो मुझे कीर्ति के मोबाइल बंद रहने की बात समझ मे नही आ रही थी. अब एक दूसरी बात भी पैदा हो गयी थी. जिसने मुझे चिंता मे डाल दिया था. कीर्ति का अचानक इस तरह घर चले जाने से, मेरे मन मे ये बात भी आ रही थी कि, कीर्ति मुझसे गुस्सा होकर तो, घर नही चली गयी. लेकिन मुझे उस पर पूरा विस्वास था. वो मुझसे गुस्सा तो हो सकती है. मगर निमी को ऐसी हालत मे छोड़ कर नही जा सकती है. फिर उसके अचानक इस तरह से घर जाने की क्या वजह रही होगी.

मैं अभी इन्ही सब बातों मे खोया हुआ था. तभी किसी ने मेरा दरवाजा खटखटा दिया. मैने दरवाजा खोला तो, सामने प्रिया थी. उसका चेहरा कुछ बुझा सा लग रहा था. उसके उतरे हुए चेहरे को देख कर, मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो रहा था. इसलिए मैं इतने तनाव मे होने के बाद भी उसे देख कर मुस्कुरा दिया. लेकिन उस पर मेरी इस मुस्कुराहट का कोई असर नही हुआ. उसने बड़े ही उदासी भरे शब्दों मे मुझसे पुछा.

प्रिया बोली "क्या मैं अंदर आ सकती हूँ."

मैने हंसते हुए कहा "हाँ आ सकती हो. तुम्हे अंदर आने के लिए पुच्छने की ज़रूरत कब से पड़ने लगी."

मगर वो उदासी भरे मे स्वर मे बोली "मैं जानती हूँ, तुम ये बात मुझे ताने मारने के लिए कह रहे हो. मैं बिना पुच्छे ही, जब चाहे तुम्हारे कमरे मे घुस आती हूँ. जिस से तुम्हे परेशानी होती है. इसलिए तुमने अभी निक्की के सामने मुझे गुस्सा भी किया था."

मुझे अपनी ग़लती की वजह से उसका यू उदास रहना अच्छा नही लग रहा था. इसलिए मैने उसकी इस बात का जबाब भी हंसते हुए ही दिया.

मैं बोला "मुझे कभी भी तुम्हारे आने जाने से, कोई परेशानी नही होती है. तुम्हारे मन मे ये सब बेकार की बातें आई कैसे."

प्रिया बोली "निक्की ने कहा है. वो बता रही थी कि, सुबह भी मैने तुमको परेशान किया था. अभी भी तुम उस से अंकल की तबीयत को लेकर बात कर रहे थे. ऐसे मे मैं बिना ये जाने कि, तुम लोगों के बीच क्या बात चल रही है. निक्की को ले जाने लगी. जिस की वजह से तुमने मुझ पर गुस्सा कर दिया था."

मैं समझ गया कि निक्की ने उसको ये सब बात समझाई है. मगर मुझे उस समय सच मे अपने बर्ताव पर पछ्तावा हो रहा था. मैं उसके मन से इस बात को निकालना चाहता था. मैने उस से पुछा.

मैं बोला "क्या तुम्हे मेरा गुस्सा करना बहुत ज़्यादा बुरा लगा."

प्रिया बोली "बुरा क्यों नही लगेगा. आज तक मुझसे किसी ने ऐसे बात नही की है. तुम खुद याद करो. तुमने मुझे कितनी बुरी तरह से झिड़का था."

मैं बोला "मुझे कुछ याद करने की ज़रूरत नही है. मैने जो किया मुझे सब याद है. मुझे अपने बर्ताव का पछ्तावा भी बहुत है. अब तुम बोलो मैं ऐसा क्या करूँ. जिस से तुम्हारे मन से ये बात निकल जाए. कान पकड़ कर सॉरी बोलूं या फिर कुछ और करूँ."

प्रिया बोली "सॉरी तो मैं बोलने आई हूँ. अब मैं आज के बाद तुमको परेशान करने, तुम्हारे कमरे मे नही आउन्गी."

मैं बोला "लगता है तुमने, अभी तक मुझे माफ़ नही किया है. अगर ऐसी बात है तो, मैं आज ही तुम्हारे घर से चला जाउन्गा."

प्रिया बोली "अजीब आदमी हो. जब मैं तुम्हारे कमरे मे आती हूँ. तब तुम्हे परेशानी होती है. जब मैं तुम्हारे कमरे मे नही आ रही हूँ. तब भी तुम्हे परेशानी हो रही है."

मैं बोला "मैं ऐसा ही हूँ. अब एक सच बात सुनो. तुम जब चाहे, जैसे चाहे मेरे कमरे मे आ सकती हो. मुझे तुम्हारे आने से कोई परेशानी नही है."

प्रिया बोली "जैसे से तुम्हारा क्या मतलब है. कहीं तुम सुबह वाली बात तो नही कर रहे हो."

मैं बोला "हाँ मैं सुबह वाली ही बात कर रहा हूँ. लेकिन सुबह क्या हुआ था. मुझे कुछ याद नही है. क्या तुम्हे कुछ याद है."

मेरी बात सुनकर प्रिया के चेहरे की उदासी भाग गयी. वो शर्मा गयी और कहने लगी.

प्रिया बोली "मुझे नही मालूम सुबह क्या हुआ था. मैं तो नींद मे थी."

मैं बोला "निक्की को मालूम है. चलो हम उस से चल कर पुछ्ते है."

प्रिया बोली "तुमको शरम नही आती. ऐसी बात निक्की से करोगे. वो क्या सोचेगी."

मैं बोला "सुबह क्या हुआ था. ये ना तो तुम्हे मालूम है और ना मुझे मालूम है. ये बात सिर्फ़ निक्की को मालूम है. अब यदि हम ये बात उस से पुछ्ते है तो, इसमे शरम की क्या बात हो गयी. क्या सुबह कोई शरम वाली बात हुई थी."

प्रिया बोली "ज़्यादा मत बनो. सुबह क्या हुआ था. मुझे निक्की ने सब बता दिया है."

मैं बोला "नही, मुझे सच मे कुछ नही मालूम. अब तुम्हे निक्की से पता चल गया है तो, तुम मुझे भी बता दो, सुबह क्या हुआ था."

प्रिया बोली "तुमको ये अचानक क्या हो गया. तुम्हे मुझसे ऐसी बात करते हुए शरम आनी चाहिए. मैं तो तुमको बहुत सीधा समझी थी."

मैं बोला "अच्छा, मुझे ये बात करने मे शरम आना चाहिए. फिर कल तुम्हे, मुझसे ऐसी बात करते हुए शरम क्यों नही आई. क्या तब मैं तुम्हे सीधा नही लग रहा था."
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09-09-2020, 01:24 PM,
#68
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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अब प्रिया की उदासी पूरी तरह से भाग चुकी थी. वो समझ चुकी थी कि, मैं कल की बात को लेकर उसकी खिचाई कर रहा हूँ. अब वो भी अपने पुराने अंदाज मे वापस आ चुकी थी. वो चहकते हुए बोली.

प्रिया बोली "अच्छा, तो तुम मुझसे कल वाली बात का बदला ले रहे हो."

मैं बोला "इसमे बदला लेने वाली बात कहाँ से आ गयी. कल तुमने जो मुझसे कहा था. मैं तो बस वो ही तुम्हे याद दिला रहा हूँ."

प्रिया बोली "यदि ऐसा ही था तो, फिर तुमने कुछ किया क्यों नही. मुझे कमरे मे अकेला देख कर भाग क्यों गये थे. बात तो हम दोनो के अकेले रहने की थी."

मैं बोला "नही, सिखाने की बात तो तुमने की थी. जब सिखाने वाला ही सो रहा हो तो, फिर सीखने वाला भागेगा नही तो, और क्या करेगा."

प्रिया बोली "ये क्यों नही कहते कि, मुझे देख के ही तुम्हारे होश उड़ गये थे. इसीलिए तुम भाग गये थे."

मैं बोला "होश उड़ने की बात तो तब आती. जब मैने कुछ देखा होता. मैने तो कुछ देखा ही नही है. जब दिखाने वाला ही होश मे ना हो तो, फिर कुछ देखने का क्या फ़ायदा है."

प्रिया बोली "ज़्यादा बड़ी बड़ी बातें मत करो. जब सच मे सब कुछ देखोगे तो, तुम्हारी सारी बोलती बंद हो जाएगी."

प्रिया की इन बातों मे मैं इतना खो गया था कि, मुझे याद ही नही रहा, मैं किस से क्या बात कर रहा हूँ. मुझे उस के साथ इस तकरार मे मज़ा आ रहा था. मैने भी उसकी बात का जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला "बोलती बंद होने की बात तो, कुछ देखने के बाद की है. पहले तुम कुछ दिखाओ तो सही."

प्रिया बोली "तुमको सब कुछ देखने का बहुत शौक लगा है. लगता है तुमने कुछ करने का इरादा बना लिया है."

मैं बोला "मुझे ना कुछ देखने का कोई शौक है, और ना ही मेरा कुछ करने का इरादा है. मगर जब तुम एक लड़की होकर दिखाने से पिछे नही हटना चाहती. तब मैं एक लड़का होकर देखने से क्यों पिछे हटु."

प्रिया बोली "मैं पिछे हटने वाली लड़की नही हूँ. मगर सोच लो, कही ऐसा ना हो कि, जब मैं दिखाने लगूँ तो, तुम फिर से भाग खड़े हो."

मैं बोला "मैं भागने वालो मे से नही हूँ. लो मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ. अब तुम दिखाओ."

प्रिया बोली "नही, अभी नही. अभी थोड़ा इंतजार करो. फिर सब दिखा दुगी."

अभी हम दोनो की, ये देखने दिखाने वाली बात चल ही रही थी. तभी रिया और निक्की आ गयी. उन्हो ने शायद प्रिया की बात सुन ली थी. रिया ने उस से पुछा.

रिया बोली "क्या दिखाने के लिए इंतजार करने को बोल रही है. ज़रा मैं भी तो सुनू."

रिया और निक्की को देख कर प्रिया की जान सूख गयी. उसके चेहरे की मुस्कान कहीं गायब हो गयी थी. उसे लगा कि रिया और निक्की ने उंसकी सारी बात सुन ली है. उसे कुछ सूझ ही नही रहा था कि, वो उनको क्या जबाब दे. लेकिन मैं समझ गया था कि उन लोगों ने सिर्फ़ प्रिया की आख़िरी बात ही सुनी है. तब मैने रिया से कहा.

मैं बोला "कुछ नही. प्रिया पुछ रही थी कि, हमारा घर कैसा लगा. तो मैने कहा कि अभी मैने तुम्हारा घर देखा ही कहाँ है. वो इसी बात को बोल रही थी कि थोड़ा इंतजार करो सब दिखा दूँगी."

मेरी बात सुन कर प्रिया ने राहत की साँस ली. मेरी इस बात से उसे रिया के सवालों का जबाब जो मिल चुका था. उसके चेहरे की खोई हुई मुस्कुराहट, फिर वापस आ गयी थी. इधर मेरी बात सुनने के बाद रिया ने प्रिया से कहा.

रिया बोली "इसमे इंतजार करवाने वाली बात क्या है. अभी ले जाकर सारा घर दिखा दे."

प्रिया बोली "दी अभी मेरा कमरा फैला हुआ है. मैं चाहती हूँ कि पहले मैं अपना कमरा साफ कर लूँ. फिर पुन्नू को सारा घर दिखा दूँगी. इसलिए थोड़ा इंतजार करने को कहा है."

रिया बोली "तेरा कमरा तो कभी सही हो ही सकता. कभी तू किसी चीज़ को सही जगह पर रखती भी है. जो तेरा कमरा सही होगा. तेरे कमरे के सही होने के इंतजार मे तो ये कभी भी घर को नही देख सकेगा."

प्रिया बोली "दी आप चिंता मत करो. कल तक मैं अपना कमरा सही कर लुगी, और कल ही पुन्नू को घर भी दिखा दुगी."

लेकिन रिया ने प्रिया की बात को अनसुना करते हुए, मुझसे कहा.

रिया बोली "तुम्हे घर ही देखना है तो, चलो मैं तुम्हे घर दिखा देती हूँ. तुम इसके चक्कर मे रहे तो, कभी घर नही देख पाओगे."

मैं बोला "नही, अब घर दिखाने की बात मेरी प्रिया से हो चुकी है. इसलिए अब जब प्रिया घर दिखाएगी. तभी मैं घर देखुगा."

रिया बोली "तब तो प्रिया ने तुम्हे घर दिखा दिया और तुमने देख लिया."

अभी रिया कुछ और बात बोल पाती. उस से पहले ही निक्की ने उसे टोकते हुए कहा.

निक्की बोली "तू भी कहाँ प्रिया की बातों के चक्कर मे पड़ गयी है. वो बात कर जिसके लिए यहाँ आई है."

निक्की बात सुनकर जैसे ही रिया को, उसके मेरे पास आने की वजह याद आई. वो मुझसे कहने लगी.

रिया बोली "हाँ मैं इसके चक्कर मे अपनी बात को तो भूल ही गयी थी. मैं तुमसे ये पुच्छने आई थी कि, आज रात का खाना तुम हमारे साथ रेस्टोरेंट मे खाना पसंद करोगे या फिर घर मे ही खाओगे."

मैं बोला "क्या आज कोई खास बात है. जो रेस्टोरेंट मे खाना खाया जा रहा है."

रिया बोली "कोई खास बात नही है. तुम्हारे पापा ने हम लोगों को, रात के खाने के लिए, जिस होटेल मे वो रुके है. वहाँ इन्वाइट किया है. अब दादा जी और मोम तो सोमवार होने की वजह से आज बाहर का कुछ खाएगे नही, और पापा का कोई पक्का नही रहता कि, वो रात को कब तक लौटेगे. इसलिए हम तीनो ही वहाँ जाएगे."

पापा का नाम सुनते ही मेरा मूड खराब हो चुका था. मैने रिया से कहा.

मैं बोला "नही, मैं घर मे ही खाना खाउन्गा. लेकिन पापा होटेल कब चले गये."

रिया बोली "तुम भी अजीब हो. तुम्हारे पापा है और तुम्हे ही नही मालूम कि वो होटेल मे रुके हुए है. वो तो कल दादा जी के कहने पर डिन्नर करने आ गये थे. दादा जी ने उन्हे यहाँ रुकने के लिए बहुत कहा, मगर वो रुकने के लिए तैयार ही नही हुए. कल डिन्नर के बाद वो वापस अपने होटेल चले गये थे."

मैं बोला "मेरी उनसे कल डिन्नर के बाद से मुलाकात ही कहाँ हुई है. जो मुझे उनके बारे मे कुछ मालूम होगा."

रिया बोली "हाँ तुम्हारी ये बात भी सही है. वैसे भी अंकल ने कहा था कि, हम तुम से, साथ आने के लिए ज़बरदस्ती ना करे. क्योंकि अभी तुम्हे रात को हॉस्पिटल मे रुकना पड़ रहा है. ऐसे मे तुम्हे समय पर सब कुछ करना बहुत ज़रूरी है. होटेल आने जाने से तुम्हारा वक्त ही बर्बाद होगा."

मैने अपने मन मे सोचा, समझदार को इशारा काफ़ी होता है. मेरा बाप खुद भी नही चाहता कि, मैं उसके साथ डिन्नर करूँ. लेकिन वो रिया लोगों से इसके लिए, साफ साफ तो मना नही कर सकता. इसलिए उसने ये हॉस्पिटल का बहाना लगा दिया है. नही तो क्या मैं होटेल से डिन्नर कर के, सीधे हॉस्पिटल नही जा सकता था. मैं यही सब सोच रहा था. तभी प्रिया ने मुझे टोक दिया.

प्रिया बोली "तुम अकेले घर मे क्यों रुकना चाहते हो. तुम भी हमारे साथ चलो. मुझे तुमको इस तरह से घर मे छोड़ कर जाना अच्छा नही लग रहा है."

मैं बोला "मैं अकेला कहाँ हूँ. घर मे आंटी और दादा जी तो है. मैं यदि तुम लोगों के साथ चला गया तो, मुझे हॉस्पिटल पहुचने मे देर हो जाएगी. मेहुल सुबह से वहाँ रुका हुआ है. ऐसे मे मुझे समय पर पहुचना भी ज़रूरी है."

प्रिया बोली "हॉस्पिटल तो तुम होटेल से भी जा सकते हो. वैसे भी तुम्हे रात को 10 बजे हॉस्पिटल जाना है. तब तक तो हम लोगों का डिन्नर ख़तम भी हो चुका होगा."

प्रिया का इस तरह से मुझे अपने साथ चलने के लिए कहना, मुझे अच्छा तो लगा. अगर बात सिर्फ़ पापा के ना चाहने की होती तो, मैं उन लोगों के साथ जाने को ज़रूर तैयार हो जाता. लेकिन यहाँ बात पापा की नही थी. यहाँ मेरे उन लोगों के साथ ना जाने की वजह निमी की तबीयत खराब होना थी. जब मैने देखा कि प्रिया साथ चलने की ज़िद किए ही जा रही है. तब मैने उसको समझाते हुए कहा.

मैं बोला "तुम्हरा कहना ठीक है, लेकिन सच बात ये है कि, आज मेरा मूड खाना खाने का ही नही हो रहा है. फिर होटेल मे डिन्नर करने की तो बात ही दूर की है."

अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि, रिया ने मेरी बात काटते हुए कहा.

रिया बोली "क्यों तुम्हारे मूड को क्या हुआ. क्या हम मे से किसी की, कोई बात बुरी लगी है."

मैं बोला "जैसा तुम सोच रही हो. ऐसी कोई बात नही है. असल मे बात ये है कि, आज मेरी छोटी बहन निमी की तबीयत ठीक नही है. ऐसे मे मेरा किसी भी बात मे मन नही लग रहा है. यदि मुझे हॉस्पिटल ना जाना होता तो, शायद आज मैं घर से बाहर ही नही निकलता."

मेरी बात सुनकर निक्की के मन मे ना जाने क्या आया. वो मुझसे पुछ बैठी.

निक्की बोली "जब ऐसी ही बात है तो, फिर आपके पापा ने हम सब को डिन्नर पर क्यों बुलाया है. क्या उन्हे इस बारे मे कुछ नही पता."

अब मैं निक्की को ये बात कैसे बताता कि, मेरे बाप के सीने मे दिल नही है. वो तो एक हवस का पुजारी है. जिसे हर लड़की अपनी हवस पूरा करने का ज़रिया नज़र आती है. जो आदमी अपनी बेटी समान लड़की पर गंदी नियत रखता हो. वो भला अपनी बेटी का सगा कैसे हो सकता है. मेरे मन मे तो ये सब बातें थी. लेकिन मैने अपने मन की भावना को छुपाते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला "हो सकता है कि पापा को ये बात किसी ने ना बताई हो. वैसे भी निमी की इतनी ज़्यादा तबीयत खराब नही है. उसे बस थोड़ा मौसमी बुखार आ गया है. लेकिन मुझे उसकी ज़रा सी भी तकलीफ़ सहन नही होती. अभी भी मैं उसी के फोन आने का इंतजार कर रहा हूँ."

रिया बोली "तुम कैसे भाई हो. एक तरफ कहते हो कि, तुम्हे निमी की तकलीफ़ ज़रा भी सहन नही होती. दूसरी तरफ उसको कॉल ना लगा कर, उल्टे उसके कॉल आने का इंतजार कर रहे हो. तुम खुद ही उसे कॉल लगा कर बात क्यों नही कर लेते."

मैं बोला "तुम मेरी बात का मतलब नही समझी. मैं घर पर दो बार कॉल कर चुका हूँ. अभी निमी दवा खाकर सो रही है. अब उसके उठने पर ही मेरी उस से बात हो सकेगी. अब जब तक मेरी उस से बात नही हो जाती. तब तक मेरा किसी बात मे मन नही लगेगा."

मेरी बात सुन कर उन तीनो का भी, डिन्नर के लिए जाने का जोश ठंडा पड़ गया था. उन सब के चेहरे उतर गये थे. मुझे उन सबका इस तरह से चेहरे उतार लेना अच्छा नही लगा. मैने उन लोगों को बहलाने के लिए कहा.

मैं बोला "अब तुम लोग बेकार की सोच मे क्यों पड़ गयी. मेरी तो अमि निमी से जुड़ी, हर छोटी सी बात को भी, बड़ा बना देने की आदत है. तुम लोग बेकार मे परेशान मत हो. अभी उसका फोन आ जाएगा तो, मेरा मूड खुद ही ठीक हो जाएगा. तुम लोग जाकर अपने डिन्नर पर जाने की तैयारी करो."

रिया बोली "ये कोई छोटी बात नही है. उधर निमी की तबीयत खराब है. इधर हम सब पार्टी करे. ये कोई अच्छी बात नही हुई. हम लोग अंकल को मना कर देगे कि, आज हम लोग डिन्नर के लिए नही आ सकते."

रिया की ये बात सुनने के बाद, मैं उन लोगों को बहुत समझाने की कॉसिश करता रहा. लेकिन तीनो मे से किसी ने भी मेरी बात नही मानी. वो भी मेरे साथ निमी का कॉल आने के वेट करने लगी. आख़िर मे 6:45 बजे छोटी माँ के मोबाइल से मेरे पास कॉल आया.

मैं कॉल उठाने को हुआ. तभी रिया बोल पड़ी.

रिया बोली "प्लीज़ यदि तुम्हे बुरा ना लगे तो स्पीकर ऑन कर दो. हम भी निमी की आवाज़ सुनना चाहते है."

मैं बोला "इसमे बुरा मानने की क्या बात है. मैं स्पीकर ऑन कर देता हूँ."

ये कह कर मैने कॉल उठाया और स्पीकर ऑन करते हुए कहा.

मैं बोला "हाँ छोटी माँ, क्या निमी उठ गयी."

दूसरी तरफ से आवाज़ आई "हाँ बेटा वो उठ गयी है. लेकिन वो तुमसे नाराज़ है. वो तुमसे बात नही करेगी."

ये आवाज़ छोटी माँ की नही बल्कि खुद निमी की थी. उसकी आवाज़ सुनते ही रिया सहित सभी समझ गये कि ये निमी है. उसकी बात सुनते ही सबके चेहरे पर हँसी आ गयी थी. मैने उस से कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. मेरी निम्मो किस बात पर इतनी नाराज़ है कि, अपने भैया से बात ही नही करना चाहती."

निमी बोली "मेरी इतनी तबीयत खराब थी और आपने दिन मे फोन ही नही उठाया. जाओ मैं आपसे बात नही करती."

मैं बोला "सॉरी बाबा. मुझसे ग़लती हो गयी. देख मैं अपने कान पकड़ कर सॉरी बोल रहा हूँ. अब तो मुझे माफ़ कर दे."

निमी बोली "नही पहले ये बताइए आपने दिन मे फोन क्यों नही उठाया. तब मैं माफ़ करूगी."

मैं बोला "मैं हॉस्पिटल से आने के बाद सो गया था. कल मेरी नींद पूरी नही हो पाई थी. इसलिए मुझे इतनी गहरी नींद आई कि, मुझे पता ही नही चला कि, तेरा फोन आ रहा है. लेकिन अब दोबारा ऐसा नही होगा. मैं कितनी ही गहरी नींद मे क्यों ना रहूं, पर तू जब भी कॉल लगाएगी. मैं ज़रूर उठाउंगा."

निमी बोली "मैं आपको माफ़ कर दूँगी. लेकिन मेरी दो शर्त है."

मैं बोला "मुझे तेरी हर शर्त मंजूर है. तू बता तेरी क्या शर्त है."

निमी बोली "पहली शर्त है कि आप मुझे एक मोबाइल दिलाओगे."

मैं बोला "अभी तू बहुत छोटी है. अभी तो अमि की उमर नही मोबाइल रखने की फिर तू मोबाइल रख कर क्या करेगी. नही, मैं तुझे मोबाइल नही दिला सकता. नही तो अमि भी बोलेगी कि उसे भी मोबाइल चाहिए. तू कुछ और चीज़ बोल. मैं तुझे दिला दूँगा."

निमी बोली "नही, मुझे मोबाइल के सिवा कुछ नही चाहिए. आपने कहा है कि, आप मेरी हर शर्त मनोगे."

मैं बोला "तू अभी छोटी है. तू मोबाइल का क्या करेगी."

निमी बोली "आज कल मोबाइल मे बहुत सारे गेम आते है. मैं गेम खेलूगी."

मैं बोला "तुझे गेम ही खेलना है तो, मैं तुझे वीडियो गेम दिला देता हूँ. उसमे मोबाइल से भी ज़्यादा गेम होते हैं . मोबाइल मे तो बहुत कम गेम होते हैं

निमी बोली –ठीक है भैया .

मैं बोला – अब ये बता तेरी तबीयत कैसी है बेटा .

फिर निमी ने बताया कि वो अब बिल्कुल ठीक है . फिर कुछ देर और बात करके मैने निमी को आराम करने का बोल कर फोन बंद कर दिया . मेरी और निमी की बातें सुनकर रिया और निक्की मुस्कुरा रही थी . फिर वो तीनो तैयार होने के लिए चली गई

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09-09-2020, 01:25 PM,
#69
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
62

फिर 7:45 बजे रिया लोग मेरे कमरे मे आई. वो लोग डिन्नर पर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी. बस मुझे बाइ कहने के लिए आई थी. मैं उन लोगों को बाहर तक छोड़ने आया. उन्हे टॅक्सी मिलने मे मुस्किल से 5 मिनट का समय लगा. उनके जाने के बाद मैं वापस अपने कमरे मे आ गया.

अभी सिर्फ़ 8 बजे थे और मुझे हॉस्पिटल 10 बजे पहुचना था. मैं चाहता था कि इस बीच मेरी कीर्ति से बात हो जाए. यदि मैने कीर्ति को गुस्सा नही किया होता और उसका मोबाइल बंद नही होता. तब मुझे उस से बात करने की इतनी बेचैनी नही होती. लेकिन एक साथ हुई इतनी बातों ने, मेरी बेचैनी को बहुत बढ़ा दिया था. अब मैं हर हाल मे, बस कीर्ति की आवाज़ सुनना चाहता था. लेकिन कैसे करूँ ये समझ नही पा रहा था.

तभी मेरे दिमाग़ मे एक बात आई. जिसके आते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मगर मैं ये नही जानता था कि, ये मुस्कुराहट मेरे चेहरे पर, सिर्फ़ कुछ देर के लिए मेहमान बनकर आई है. जाते जाते ये मुस्कुराहट, मुझे ऐसा दर्द देने वाली है. जिसे मैं लाख कोशिस करने के बाद भी सह नही पाउन्गा.

मैने अंजानी सी खुशी के जोश मे अपना मोबाइल उठा लिया. मैं कॉल लगाने को ही था. तभी किसी ने फिर मेरा दरवाजा खटखटा दिया. अब रिया निक्की और प्रिया तो डिन्नर को जा चुकी थी. ऐसे मे आंटी के सिवा किसी और के होने की कोई उम्मीद नही थी. इसलिए मैने जल्दी से जाकर दरवाजा खोला.

दरवाजा खोलते ही मुझे दादा जी नज़र आए. उन्हे देखते ही मैने उनको अंदर आने को कहा, वो अंदर आ कर खाली पड़ी चेयर पर बैठ गये. मैने उनसे कहा.

मैं बोला "दादा जी आपको आने की क्या ज़रूरत थी. यदि आपको मुझसे कोई काम था तो मुझे बुला लिया होता. मैं आपके पास चला जाता."

दादा जी बोले "देखो बेटे ये दुनिया की रिवायत है. कुआ खुद चल कर प्यासे के पास नही आता. प्यासे को ही खुद चलकर कुआ के पास जाना पड़ता है."

मैं बोला "दादा जी आप मुझसे बड़े है. आपको मुझे अपने पास बुलाने का पूरा हक़ है, फिर चाहे वो काम आपका ही क्यों ना हो."

दादा जी बोले "चलो अगली बार से तुम्हारी इस बात को याद रखूँगा. अब मैं अपनी बात पर आता हूँ. मुझे तुमसे एक बहुत ज़रूरी काम है. इसलिए मैं खुद चल कर तुम्हारे पास आया हूँ. ये काम यदि मैं तुम्हारे दोस्त मेहुल, या किसी और से बोलता तो, वो खुशी खुशी कर देता. लेकिन हो सकता है कि मेरी बात सुनने के बाद, तुम इस काम को करने से मना कर दो."

मैं बोला "ऐसा क्यों सोचते है दादा जी. मैं आपके किसी काम को करने के लिए मना नही करूगा. लेकिन एक बात बताइए, जब वो काम मेहुल या कोई और कर सकता है. तब आपने उस काम के लिए मुझे ही क्यों चुना है."

दादा जी बोले "मैने दुनिया देखी है. मैं लोगों को देख के पहचान जाता हूँ कि, किस के मन मे क्या है. ऐसे ही मैने तुम्हारे मन को भी पहचाना है. तुम एक बेहद ही भोले भाले और संवेदनशील लड़के हो. जिसके हाथ से कभी किसी का बुरा नही हो सकता."

मैं बोला "ऐसा नही है दादा जी. मैं कोई भोला भला नही हूँ. मेरे अंदर घमंड कूट कूट कर भरा है. मैं अपने सिवा किसी की बात नही सुनता."

दादा जी बोले "यही तो तुम्हारा भोला पन है. तुम घमंड और स्वाभिमान मे अंतर ही नही समझ सकते. जिसे तुम अपना घमंड बोल रहे हो. वो तुम्हारा स्वाभिमान है. स्वाभिमानी आदमी सिर्फ़ अपने बनाए आदर्शों पर चलता है. वो दूसरो के दिखाए रास्ते पर नही चलता इसलिए लोग उसे घमंडी कहते है."

मैं बोला "इन सब बातों का आपके काम से क्या लेना है."

दादा जी बोले "लेना है बेटा. तभी तो सबको छोड़ कर तुम्हे अपने काम के लिए चुना है."

मैं बोला "आप अपना काम बताइए. मैं उसे पूरा करने की पूरी कोसिस करूगा.

दादा जी बोले "ये काम मेरे घर की इज़्ज़त से जुड़ा हुआ है. इसलिए मैं चाहता हूँ कि, चाहे तुम मेरा काम करो, या ना करो. लेकिन हमारे बीच मे जो ये सब बातें हो रही है. उन बातों का पता किसी को भी नही चलना चाहिए. क्योंकि इस बात के किसी और को पता चलने से, इस घर की इज़्ज़त मिट्टी मे मिल जाएगी."

मैं बोला "आप बेफिकर रहे दादा जी. ये बात किसी को भी पता नही चलेगी. आपके और मेरे बीच हुई बात, हमेशा के लिए मेरे सीने मे दफ़न हो जाएगी."

दादा जी बोले "हो सकता है कि, ये काम सुनने के बाद, तुम मेरा काम करने के लिए मना कर दो. यदि तुम ऐसा करते हो तो भी, मेरे मन मे तुम्हारे लिए कोई बुराई नही राहगी. तुम भी इस काम को सुनने के बाद अपने मन मे, हमारे परिवार के लिए कोई मैल मत आने देना."

मैं बोला "आप चिंता ना करे दादा जी. आपकी कही किसी बात से मेरे मन मे, आपके परिवार के लिए कोई मैल नही आएगा. यदि कोई बात मेरे मन मे आती भी है तो, मैं उसे आपसे कर के, अपने मन का मैल निकाल लुगा. आप अब अपनी बात बताइए."

दादा जी बोले "बेटा ये बात मैं तुझसे दादा जी बनकर नही, बल्कि तेरा दोस्त बनकर कर रहा हूँ. तू भी मुझसे किसी दोस्त की तरह बात करना. इस से ना तो तेरे दिल पर कोई बोझ पड़ेगा, और ना ही मेरे दिल पर कोई बोझ पड़ेगा."

मैं बोला "जी दादा जी. जैसा आप चाहते है ऐसा ही होगा. हम एक दूसरे के दोस्त बनकर बात करेगे."

दादा जी बोले "अब हम दोस्त बन गये है तो, दोस्तों की तरह ही बातें करते है. अब तू मुझे दादा जी की जगह सिर्फ़ दादू ही कहना."

मैं बोला "ओके दादू."

दादा जी बोले "अब हम सेक्स और लड़कियों से जुड़ी बाते करेगे. तू मुझे अपना दोस्त समझ कर ये बाते खुल के कर पाएगा."

मैं बोला "अब दादू को दोस्त बनाया है तो, दोस्त की तरह बात तो करना ही पड़ेगा. मैं कर लूँगा दादू. मगर किसी बात पर मेरी हँसी मत उड़ाना."

दादा जी बोले "अरे दोस्तों के बीच तो हँसी मज़ाक चलता रहता है. तू इस हँसी मज़ाक का बुरा मत मानना. अब ये बता तेरी कोई गर्लफ्रेंड है."

मैं बोला "नही, मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है."

दादा जी बोले "ये तो तू झूठ बोल रहा है. तेरे जैसे लड़के की कोई गर्लफ्रेंड ना हो. ये मैं मान ही नही सकता."

मैं बोला "सच मे दादू. मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है. यदि होती तो बताने मे क्या हर्ज था."

दादा जी बोले "चल मान लेता हूँ की तेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है. मगर क्यों नही है. क्या कोई पसंद नही आई, या किसी को तू अभी तक पटा ही नही पाया है."

मैं बोला "कोई पसंद ही नही आई दादू."

दादा जी बोले "अच्छा ये बता, तुझे रिया प्रिया और निक्की मे कौन ज़्यादा सुंदर है."

मैं बोला "ये क्या फालतू की बात पूछ रहे हो दादू. अपने काम की बात करो ना."

दादा जी बोले "वही बात करने की तैयारी कर रहा हूँ. लेकिन जब तक तू अपने दोस्त से खुलेगा नही. तब तक तेरा दोस्त तुझसे वो बात नही कर पाएगा."

मैं बोला "ओके मुझे रिया प्रिया निक्की मे निक्की ज़्यादा सुंदर लगती है."

दादा जी बोले "उन तीनो मे ज़्यादा सेक्सी कौन है."

मैं बोला "रिया सबसे ज़्यादा सेक्सी है. वो कुछ भी पहन ले सेक्सी ही लगती है."

दादा जी बोले "अच्छा ये बता तुझे तीनो मे से सबसे ज़्यादा कौन पसंद है."

मैं बोला "प्रिया, वो हमेशा हँसती खिलखिलाती रहती है. उसके अंदर अभी भी बच्पना भरा हुआ है."

दादा जी बोले "तेरी नज़र बहुत अच्छी है. हर किसी की खूबी को बड़ी आसानी से पकड़ लिया. जब तेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है. तो तू इनमे से किसी को गर्लफ्रेंड क्यों नही बना लेता."

मैं बोला "इनको गर्लफ्रेंड बना कर क्या करूगा दादू. मुझे कौन सा यहाँ रहना है. कुछ दिन बाद तो मैं वापस चला जाउन्गा. गर्लफ्रेंड बाय्फ्रेंड अपने सहर मे ही बनाना अच्छा रहता है. ये तो मेरी दोस्त ही ठीक है."

दादा जी बोले "बात तो तेरी सही है. लेकिन तुझे एक गर्लफ्रेंड तो बनानी ही चाहिए. तभी तो लाइफ का कुछ मज़ा है."

मैं बोला "दादू मेरी लाइफ मे तो बिना गर्लफ्रेंड के भी मज़ा है. मुझे किसी गर्लफ्रेंड की ज़रूरत नही है."

दादा जी बोले "जब तेरी गर्लफ्रेंड ही नही है तो, तुझे गर्लफ्रेंड वाले मज़े का पता कैसे चलेगा."

मैं बोला "क्यों गर्लफ्रेंड मे ऐसा क्या मज़ा है. ज़रा मुझे भी बताओ."

दादा जी बोले "तूने कभी किसी के साथ सेक्स किया है."

मैं बोला "नही किया."

दादा जी बोले "यही तो वो मज़ा है, जो गर्लफ्रेंड से मिलता है. तेरी उमर मे तो मेरी 3-4 गर्लफ्रेंड थी. जिनसे मैने सेक्स भी किया था. अब तेरी गर्लफ्रेंड ही नही है तो, तू सेक्स कैसे कर सकता है. मगर तूने हस्तमैंतुन तो ज़रूर किया होगा."

मैं बोला "ये क्या होता है और इसको करने से क्या होता है."

दादा जी बोले "इसका मतलब तूने ये भी नही किया. इसके लिए तो गर्लफ्रेंड बनाने की ज़रूरत भी नही होती. जब भी किसी सुंदर और सेक्सी लड़की को देखकर शरीर मे उत्तेजना जागती है. तब लिंग अकड़ कर खड़ा हो जाता है. ऐसे समय मे उसे शांत करने के लिए, उसे अपने हाथों मे लेकर उपर नीचे करते है. जिस को करने से लिंग मे से वीर्य की पिचकारी छूटती है और लिंग शांत हो जाता है. इसे हस्तमैंतुन कहते है."

दादा जी की बात मेरे समझ मे आ गयी थी. मैं हस्तमैंतुन का मतलब तो नही जानता था, लेकिन अब समझ मे आया कि, अपने कमरे मे रिया को सोचते हुए, मैने जो सब कुछ किया था. वो हस्तमैंतुन ही था. अचानक ही मैं बोल पड़ा.

मैं बोला "ये तो मैं एक बार कर चुका हूँ दादू."

अपनी बात बोल जाने के बाद मुझे ये अहसास हुआ कि, मुझे ये बात नही कहनी थी. इसलिए मेरा सर शरम से झुक गया. लेकिन दादू मेरी बात सुन चुके थे. वो पुराने खिलाड़ी थे. उन्हो ने मुझसे कहा"

दादा जी बोले "कौन थी वो लड़की. जिसके नाम से तुमने हस्थ मैन्थुन किया था."

मैं बोला "लड़की कोई नही थी. वो तो मैने ऐसे ही कर लिया था."

दादा जी बोले "बेटा ये लिंग किसी लड़की को देख कर ही आकड़ा होगा. फिर तुमने उसी लड़की का नाम ले ले कर इसे अपने हाथों से शांत कराया होगा. अब हम जब अपने घर का राज तुम्हे बता रहे है. तो तुम भी अपना राज हमें बता दो."

मैं बोला "वो सब अचानक ही हो गया था. मैं करना नही चाहता था."

दादा जी बोले "इस तरह सफाई देने का मतलब तो यही है कि, वो इसी घर की कोई लड़की है."

मैं बोला "नही वो हस्तमैंतुन तो मैने घर मे किया था. हम लोग वाट्टरफॉल गये थे. वही मैने एक लड़की को स्वीमिंग करते देखा था. वो बहुत सेक्सी लग रही थी. उसके बाद मुझसे रहा नही गया और घर आकर मैने ये सब किया.

दादा जी बोले "स्वीमिंग पर तो तुम्हारे साथ रिया थी."

मैं बोला "क्या दादू आप तो इस घर के पीछे ही पड़ गये, इस घर की कोई लड़की नही थी,.

दादा जी बोले "जहाँ तक मुझे रिया ने बताया था. वहाँ तुम्हारे साथ तुम्हारी 3 बहने राज रिया मेहुल और मेहुल की गर्ल फ्रेंड थी. तुम्हारी 3 बहनो और मेहुल की गर्लफ्रेंड के बारे मे तो तुम ऐसा सोच नही सकते. तब तो तुम्हारे ऐसा करने के लिए रिया ही बचती है.

दादा जी की इस बात ने मेरी बोलती ही बंद कर दी थी. मैं अपने बचाव का रास्ता ढूँढ रहा था. तभी मेरे दिमाग़ मे नितिका का ख़याल आ गया. मैने उन से कहा.

मैं बोला "इनके अलावा एक लड़की नितिका भी थी. उसी को देख के मेरे मन मे ये ख़याल आ गया."

बात तो मैने अपने तरफ से सही ही की थी. लेकिन मेरे दिमाग़ मे उस समय ये बात नही आई कि, नितिका भी दादा जी के दूसरे लड़के की बेटी है. इसलिए मेरी बात सुन कर दादा जी हंस पड़े और कहने लगे.

दादा जी बोले "तेरी पसंद भी अजीब है. तुझे ये जन्नत की पारिया छोड़ कर, वो छुयि मुई सी नितिका पसंद आई. मैने तो उसे सलवार सूट के सिवा, कभी किसी लिबास मे नही देखा. लेकिन ये बात तो मानना पड़ेगा वो बहुत सीधी और सरीफ़ लड़की है. इसीलिए जब तूने उसे स्वीमिंग करते ही देखा होगा तो, तू ये सब करने पर मजबूर हो गया. लेकिन तू ये क्यूँ भूल रहा है कि, नितिका इसी घर की बच्ची है."

मैं बोला "सॉरी दादू. मैने जानबूझ कर ऐसा नही किया था. अचानक मे पहली बार मेरे साथ ऐसा हुआ था,"

दादा जी बोले "इसमे सॉरी बोलने की कोई ज़रूरत नही है. ये तो इस उमर मे सबके साथ होता है. क्या तुझे नितिका बहुत पसंद है. यदि पसंद है तो बोल दे. मैं तेरी शादी अभी से उसके साथ फिक्स करवा दूँगा,"

मैं बोला "नही दादू, ऐसी कोई बात नही है. मैं तो लड़कियों से दूर ही रहता हूँ."

दादा जी बोले "ठीक है अगर कभी तेरा इरादा हो, निकिता से शादी बनाने का तो, मुझे बोल देना. मेरी बात को कोई नही तलेगा.

मैं बोला "ठीक है दादू. अब आप अपनी वो बात बताइए, जिसके लिए आप यहाँ मेरे पास आए है.

दादा जी बोले "ठीक है सुन, मगर मेरी बात सुनकर तुम एक दम से चौकना मत. बल्कि मेरी पूरी बात को समझने की कोशिश करना."

मैं बोला "ओके दादू. अब आप अपनी बात शुरू कीजिए."

दादा जी बोले "बात ये है कि पिच्छले कुछ समय से मेरी बहू की तबीयत ठीक नही रहती है. मुझे उसके इलाज के लिए तेरी मदद की ज़रूरत है."

मैं बोला "आप बोलिए दादू मुझे क्या मदद करना है. मैं आंटी के इलाज के लिए आपकी हर मदद करूगा."

दादू बोले "तुझे उसके साथ सेक्स करना है."

दादा जी की ये बात सुनकर मैं चौके बिना, ना रह सका. मुझे अपने कानों पर विस्वास ही नही आ रहा था कि, मैं जो कुछ भी सुन रहा हूँ. वो सब सच ही सुन रहा हूँ. मैं इस राज को जानने के लिए बेचैन हो गया. आख़िर दादू ने ये बात क्यों कही. मैने उनसे इस बात का मतलब जानने के लिए पुछा.

मैं बोला "दादू आप ये सब क्या बोल रहे है. आंटी मेरी माँ के बराबर है. उनके साथ ये सब करना तो दूर की बात है. मेरे लिए ऐसा सोचना भी पाप है. आप जानते है ये सब ग़लत है. फिर भी आप ऐसी बात बोल रहे है."

दादा जी बोले "मैं जानता हूँ कि ये सब ग़लत है. फिर भी मुझे अपनी बहू की खुशी के लिए तुमसे ये सब कहना पड़ा. वो तो इस बारे मे कुछ जानती ही नही है. मैने पहले तुमसे बात करना ठीक समझा. यदि तुम हाँ कहते हो तो मैं उस से बात करूगा."

मैं बोला "नही दादू. मैं ऐसा कोई काम नही कर सकता. जिससे मेरे चरित्र पर दाग लगे. मैं आपकी हर तरह की मदद करने को तैयार हूँ. मगर मुझसे आपकी ये मदद नही होगी."

दादा जी बोले "कहीं तुम इस वजह से मना तो नही कर रहे हो. क्योंकि देवकी एक लड़की ना होकर एक औरत है. जबकि तुम अपना पहला सेक्स किसी लड़की से करना चाहते हो."

मैं बोला "नही दादू. ऐसी कोई बात नही है. मैने आपसे झूठ कहा था कि मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है. मेरी एक गर्लफ्रेंड है और मैं उसे बेहद प्यार करता हूँ. वो भी मुझे बहुत प्यार करती है. वो मेरे सिवा किसी के बारे मे सोचती ही नही है. हमारे बीच सिर्फ़ प्यार का पवित्र रिश्ता है. हमारे रिश्ते के बीच सेक्स कभी आया ही नही है. जब उसके साथ अभी तक मैने सेक्स नही किया है तो, फिर किसी और लड़की के साथ सेक्स करने के बारे मे सोच भी कैसे सकता हूँ. अब यदि मैं ऐसा कुछ करता हूँ तो, ये उसके प्यार और विस्वास के साथ धोका करना होगा. अब आप ही बताओ. क्या उसके साथ धोका करना ठीक होगा."

दादा जी बोले "नही किसी के प्यार और विस्वास के साथ कभी धोका नही करना चाहिए. फिर भी यदि तुम्हे उस पर विस्वास है और तुम्हे लगता है कि वो हमारी बात को किसी से नही कहेगी. तब तुम चाहो तो, उस से एक बार पुच्छ कर देख सकते हो. हो सकता है कि, वो तुम्हे इस बात की इजाज़त दे दे."

मैं बोला "दादू मुझे उस पर पूरा विस्वास है. मैं उस से जो भी बात करता हूँ. वो उन बातों को कभी किसी से नही कहती. लेकिन मैं उसे जानता हूँ. वो इस बात के लिए कभी तैयार नही होगी. प्लीज़ दादू मुझे ये काम ना करने के लिए माफ़ कर दो. आप चाहो तो अपना ये काम मेहुल से करवा लो. वो बहुत अच्छा लड़का है."

दादा जी बोले "नही बेटा. मैं जानता हू की मेहुल अच्छा लड़का है. लेकिन उसके अंदर किसी बात को राज रखने की क़ाबलियत मुझे नज़र नही आती. वो इस बात को राज नही रख पाएगा और मेरे परिवार की इज़्ज़त खराब हो जाएगी."

मैं बोला "आपकी सोच सही है दादू. मेहुल किसी बात को अपने पेट मे पचा नही पाता है. लेकिन मेरे समझ मे ये बात नही आ रही है कि, अंकल के होते हुए आप को ये सब करवाने की ज़रूरत क्या है. क्या आप मुझे वो वजह बताएगे."

दादा जी बोले "मुझे तुम पर पूरा विस्वास है. इसलिए मैं तुम्हे अपने ऐसा करने की वजह बताता हूँ. जिस से तुम्हे तुम्हारे मन मे उठ रहे सारे सवालों का जबाब मिल जाएगा. तब तुम मुझे बताना कि, क्या मैं कुछ ग़लत कर रहा हूँ."

इसके बाद दादा जी मुझे उस राज के बारे मे बताने लगे. जिस की वजह से उन्हो ने ये सब बातें मुझ से कही थी. मैं उन की बातें बड़ी ही मन लगा कर सुनता रहा. अपनी बात ख़तम करने के बाद वो मेरा चेहरा देखने लगे. लेकिन मैं चुप ही रहा. तब उन ने फिर मुझसे पुछा.

दादा जी बोले "मैं जानता हू. तुम्हे ये सब जानकर मुझसे और मेरे परिवार से नफ़रत हो रही होगी. लेकिन मैने तुम्हे जो कुछ भी बताया है. वो सब सच है. अब इसे तुम चाहे तो मेरी बदक़िस्मती मान सकते हो, या फिर इसे मेरी मजबूरी का नाम दे सकते हो. लेकिन मैने जो कुछ भी किया. उस समय मुझे ये सब करना ठीक लगा था, लेकिन अब मुझे इस बात को लेकर मन ही मन पछतावा भी होता है."

मैं अभी भी उनकी बात को खामोशी से सुने जा रहा था. दादा जी की किसी बात का मेरे पास कोई जबाब नही था. दादा जी ने दुनिया देखी थी. इसलिए उनकी किसी बात पर उंगली उठा पाना मेरे बस की बात नही थी. फिर भी मैने उन से कहा.

मैं बोला "दादू मुझे इन सब बातों की इतनी समझ नही है. लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि, कोई भी काम यदि किसी की भलाई के लिए किया गया हो तो, वो बुरा नही होता. फिर इसमे तो आपके सारे परिवार की खुशी छुपि हुई थी. दुनिया चाहे इस बारे मे कुछ भी सोचती हो. लेकिन मेरी नज़र मे आपने कुछ ग़लत नही किया. मुझे आप से या आपके परिवार से कोई नफ़रत नही है."

दादा जी बोले "बस बेटा, तुमने मेरी बात को समझा. मेरे लिए इतना ही बहुत है. यदि तुम्हारी गर्लफ्रेंड इस बात के लिए तैयार हो जाए तो मुझे ज़रूर बताना."

मैं बोला "ज़रूर दादा जी. यदि वो इस बात के लिए मान गयी तो, मैं आपको ज़रूर बताउन्गा."

दादा जी बोले "चल अब बात बहुत हो गयी है. अब चल कर डिन्नर कर ले. फिर तुझे हॉस्पिटल भी जाना है."

मैं बोला "आप चलो दादू. मैं अभी आता हूँ."
Reply
09-09-2020, 01:26 PM,
#70
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरी बात सुनकर, दादा जी मेरे कमरे से बाहर चले गये. दादा जी के जाने के बाद मैं फ्रेश हुआ और फिर तैयार होने लगा. तैयार होते होते मुझे 9 बज गये थे. तैयार होने के बाद मैं डाइनिंग रूम मे आ गया. दादा जी और आंटी वहाँ पहले से ही बैठे हुए थे. मुझे आया देख आंटी डिन्नर लगाने लगी.

आज पहली बार मैं आंटी को इतने ध्यान से देख रहा था. उनकी उमर कोई 40 के आस पास ही होगी. उन्हे देख कर कोई कह नही सकता था कि, वो 3 जवान बच्चो की माँ है. वो इस समय येल्लो कलर की साड़ी पहने हुई थी. जिसमे उनका दूध की तरह गोरा रंग और भी दमक रहा था. उनकी साड़ी का पल्लू उनकी कमर पर ख़ुसा हुआ था. जिस वजह से उनका पेट और नाभि साफ साफ नज़र आ रही थी.

शृंगार के नाम पर उनके गले मे एक सोने का हार था और कमर मे चाँदी का कमर बँध बँधा हुआ था. कानों मे सोने की बड़ी बड़ी बलियाँ थी. जो उनके काम करने पर इधर उधर झूल रही थी. अपने बालों को उन्हो ने एक चोटी बनाकर बाँधा हुआ था. फिर भी उनके कानों के किनारे के कुछ बाल, बाँधने से बचे हुए थे. जो उनके गालों पर आ रहे थे. जिससे उनकी सुंदरता और भी बढ़ जाती थी.

उनके मान्थे पर एक छोटी सी बिंदी थी और माँग मे सिंदूर की लालिमा थी. जो उनके पतिव्रता होने की निशानी थी. वो इस समय सुंदरता की जीती जागती मूरत नज़र आ रही थी. मुझे ये भी याद नही रहा कि दादा जी भी मेरे साथ बैठे है. ऐसे मे वो या आंटी खुद मुझे इस तरह से घूरते देखेगे तो, मेरे बारे मे क्या सोचेगे. मैं इन सब बातों से अंजान, आंटी को एक टक देखे ही जा रहा था.

मैं आंटी के इस मन मोहक रूप मे खो सा गया था. मेरे मन मे वासना नाम की कोई बात नही थी. ना ही आंटी को लेकर मेरे मन मे, कोई ग़लत विचार आ रहा था. लेकिन मुझे इस तरह आंटी को घूरते हुए देख कर आंटी ने कहा.

आंटी बोली "क्या हुआ बेटा. मुझे ऐसे क्यों देख रहा है. क्या तुझे ये डिन्नर पसंद नही है."

मैं बोला "नही आंटी ऐसी कोई बात नही है. डिन्नर अच्छा है. मैं तो ये देख रहा हूँ कि, आपके अंदर सब के लिए कितनी ममता है. आप हम सब का कितना ख़याल रखती है. इतना सब करने के बाद भी आपके चेहरे पर थकान का नामो निशान तक नही है."

आंटी बोली "चल हट पागल. माँ अपने बच्चो का ख़याल नही रखेगी तो और कौन रखेगा. कोई भी माँ अपने घर के काम काज को करने से कभी नही थकती. तेरी माँ भी तो घर मे तेरे लिए यही सब करती होगी. क्या तूने उसे कभी थकते देखा है."

आंटी की बात सुनकर दादा जी बोल पड़े.

दादा जी बोले "बहू पुन्नू की माँ नही है. वो अपनी सौतेली माँ के साथ रहता है. फिर भला वो इन सब बातों को कैसे समझेगा."

दादा जी की बात सुनकर आंटी ने कहा.

आंटी बोली "सॉरी बेटा, मेरे दिमाग़ से ये बात निकल गयी थी. मेरी बात यदि तुम्हे बुरी लगी हो तो, उसके लिए मैं माफी चाहती हूँ. सौतेली माँ से तो तुम्हे कभी माँ का प्यार मिला ही नही होगा. क्योंकि कोई भी सौतेली माँ कभी सग़ी माँ की जगह नही ले सकती."

मुझे आंटी की मेरी माँ ना होने वाली बात का ज़रा भी बुरा नही लगा. लेकिन जब उन्हो ने कहा कि कोई भी सौतेली माँ सग़ी माँ की जगह नही ले सकती. तब मुझसे रहा नही गया. मैने उनकी इस बात का जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला "नही आंटी इसमे माफी माँगने वाली कोई बात नही है. मुझे जनम देने वाली माँ सच मे इस दुनिया मे नही है. लेकिन फिर भी मेरी माँ है. मेरी छोटी माँ ने कभी भी मुझे अपनी माँ की कमी महसूस नही होने दी. वो मुझे इतना प्यार करती है. जितना कोई सग़ी माँ भी अपने बेटे को नही करती होगी. उनने सिर्फ़ मेरी वजह से मेरे बाप के दिए हर दर्द को सहा है. नही तो वो कब का मेरे बाप को छोड़ कर चली गयी होती. वो मेरे लिए मेरी सग़ी माँ से भी बढ़ कर है. मैं अपनी सग़ी माँ को तो कब का भूल चुका हूँ. लेकिन मेरी छोटी माँ हमेशा मेरे दिल मे रहती है."

दादा जी बोले "सॉरी बेटा, जो मैने तुम्हारी छोटी माँ को सौतेली माँ कहा. शायद तुम्हे इस बात का बुरा लग गया."

मैं बोला "दादू इसमे सॉरी बोलने वाली कोई बात नही है. लोग अक्सर सौतेली माँ को बुरा ही समझते है. लेकिन मेरे लिए मेरी छोटी माँ देवी है. उन्हे मेरी हर छोटी से छोटी बात की फिकर रहती है. यहाँ भी उनका फोन बराबर आता रहता है. उन्हे चिंता लगी रहती है कि, मैने खाना खाया या नही. कही रात को जागने की वजह से मेरी तबीयत तो खराब नही हो गयी. अब क्या इसके बाद भी आप लोगों को लगता है कि कोई सौतेली माँ सग़ी माँ की जगह नही ले सकती."

मेरी बात सुनकर दादा जी कुछ नही बोले. शायद उनके पास मेरी इस बात का कोई जबाब नही था. लेकिन आंटी ने मेरी बात सुनकर कहा.

आंटी बोली "बेटा तुम सच मे बहुत किस्मत वाले हो. जो तुम्हे ऐसी माँ मिली. तुम्हारी माँ सच मे देवी ही है. जो तुम्हे इतना प्यार करती है. क्या तुम्हारे घर मे तुम्हारे कोई भाई बहन भी है."

मैं बोला "हाँ आंटी है. मेरे घर मे मेरे छोटी माँ और पापा के अलावा मेरी दो छोटी बहने भी है. एक का नाम अमिता है. हम उसे प्यार से अमि बुलाते है. वो अभी तीसरी कक्षा मे पढ़ रही है. दूसरी का नाम नमिता है. हम उसे प्यार से निमी बुलाते है. उसने इसी साल से स्कूल जाना शुरू किया है. दोनो ही एक से बढ़ कर एक है. उनकी शैतानियों से हमारे घर मे हँसी खुशी हमेशा ही बनी रहती है. जितना प्यार मैं उन दोनो से करता हूँ. उस से भी ज़्यादा प्यार वो दोनो मुझसे करती है. यदि उनका बस चलता तो वो भी मेरे साथ यहाँ आ गयी होती."

आंटी बोली "तब तो दोनो तुम्हे बहुत मिस कर रही होगी."

मैं बोला "हाँ आंटी, दोनो ही बहुत मिस कर रही है. निमी को तो बुखार तक आ गया है. अब उसने शर्त रखी है कि, मैं रोज उस से 3 बार बात करूगा, नही तो वो खाना नही खाएगी."

आंटी बोली "और अमि क्या कहती है."

मैं बोला "अमि उस से बड़ी है, इसलिए उसने इस से भी बड़ी बात की है. उसने कहा कि अंकल का ऑपरेशन तो हो चुका है और अभी पापा भी वही है. ऐसे मे कुछ दिन के लिए मैं घर आ जाउ."

आंटी बोली "सच मे तुम बहुत किस्मत वाले हो. जो तुम्हे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है."

मैं बोला "हाँ आंटी वो तो मैं हूँ. लेकिन आप भी कम किस्मत वाली नही है जिसे इतना अच्छा परिवार मिला है."

मेरी बात सुनकर आंटी का चेहरा उतर सा गया था. लेकिन फिर भी वो मुस्कुराते हुए कहने लगी.

आंटी बोली "सच है ऐसा परिवार किस्मत वालों को ही मिलता है. अब तुम ये बातें छोड़ो और डिन्नर करो. नही तो फिर पहुचने मे देर हो जाएगी."

मैं बोला "जी आंटी."

इसके बाद कोई कुछ नही बोला. सब खोमोशी से डिन्नर करते रहे. मैं मन ही मन आंटी से खुसकिस्मत होने वाली बात बोलने के लिए खुद को कोष रहा था. कुछ देर बाद हम सब डिन्नर कर चुके थे. अब मैने टाइम देखा तो 9:30 बज चुके था. तब मैने दादा जी और आंटी से हॉस्पिटल जाने के लिए इजाज़त माँगी और फिर मैं बाहर आ गया.

बाहर आकर मैने टॅक्सी ली और हॉस्पिटल के लिए निकल गया. मैं 10 बजे हॉस्पिटल पहुच चुका था. मैने देखा तो नीचे राज बैठा था. मैने उस से कहा.

मैं बोला "अब अंकल की तबीयत कैसी है."

राज बोला "अब उनकी तबीयत पहले से बेहतर है. डॉक्टर. ने उन्हे ज़्यादा से ज़्यादा वॉक करने को कहा है."

मैं बोला "ऐसी हालत मे क्या अंकल का वॉक करना ठीक रहेगा."

राज बोला "यही बात मैने डॉक्टर, से भी पुछि थी. उसका कहना था कि इनकी जो सर्जरी की गयी है. उसके लिए इनका वॉक करना ज़रूरी है. इससे इनकी सभी कोशिकाएँ सही तरीके से काम करने लगेगी और इनकी हालत मे भी सुधार जल्दी आ जाएगा."

मैं बोला "ओके डॉक्टर,. ने कहा है तो सोच समझ कर ही कहा होगा. लेकिन क्या अंकल बिस्तेर से उठने लगे है."

राज बोला "हाँ अब वो बिस्तर से उठने लगे है. मैने खुद उन्हे वॉक कराया था और अभी मेहुल उन्हे वॉक करा रहा है. वो खुद ही वॉक भी कर सकते है. मगर अभी उन्हे ड्रिप लगी हुई है. जिस वजह से किसी एक का उनके साथ होना ज़रूरी है. रात को यदि अंकल तुम्हे वॉक के लिए बोले तो, तुम उनकी ड्रिप को पकड़ लेना बाकी वॉक वो खुद कर लेगे. उन्हे वॉक करने मे कोई परेशानी नही है."

मैं बोला "ओके यदि अब अंकल का वॉक हो गया हो तो, मेहुल को बुला लो. तुम लोगों को अब घर जाना चाहिए."

राज बोला "ओके मैं अभी मेहुल को कॉल करता हूँ."

ये कह कर राज ने मेहुल को कॉल किया. कुछ देर बाद मेहुल नीचे आ गया. नीचे आते ही वो मेरे गले से लग गया और कहने लगा.

मेहुल बोला "भाई यहाँ के डॉक्टर. सच मे कमाल के है. उन्होने पापा को 2 दिन मे ही खड़ा कर दिया. मैं तो सोच रहा था कि ना जाने अभी पापा कितने दिन यू ही बेड पर लेटे रहेगे. लेकिन आज उन्हे चलते हुए देख कर मुझे बहुत खुशी हुई. अब लग रहा है कि पापा जल्दी ही ठीक हो जाएगे."

मैं बोला "अब तो तू खुश है ना. अब बस हमें कुछ दिन यहाँ अंकल की सेवा और करना है. फिर हम खुशी खुशी अपने घर लेकर चलेगे."

मेहुल बोला "पर भाई अभी वो कुछ खा नही पा रहे है. उन्हे जो भी दिया जा रहा है. राइस ट्यूब से दिया जा रहा है."

मैं बोला "हमारे जाने से पहले वो भी दूर हो जाएगी. अंकल के गले का ओपरेशन हुआ है. इसलिए उन्हे खाने पीने मे परेशानी है. इसी वजह से उन्हे इस तरह खाना दिया जा रहा है. लेकिन कुछ दिन मे उनके जख्म भरते ही उन्हे फिर वैसे ही खाना दिया जाने लगेगा. अब तू इस बारे मे ज़्यादा मत सोच. धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा."

मेहुल बोला "भगवान करे जैसा तू बोल रहा है. सब वैसा ही हो."

मैं बोला "सब वैसा ही होगा. अब तुम लोग यहाँ की चिंता मत करो. मैं यहाँ सब संभाल लुगा. अब तुम लोग घर जाओ."

मेरी बात सुनने के बाद उन्हो ने मुझे कुछ बातें बताई और फिर दोनो घर चले गये. उनके जाने के बाद मैं उपर अंकल के पास चला गया. वो अभी भी बात नही कर पा रहे थे, इसलिए वो मुझसे नोटबुक पर लिख कर बातें करने लगे. कुछ देर बाद वो सोने की बोल कर आँख बंद कर के लेट गये. थोड़ी ही देर मे उन्हे नींद भी आ गयी.

उनके सोने के कुछ देर बाद तक मैं उनके पास बैठा रहा. फिर 11:30 बजे मैं नर्स को बता कर नीचे आ गया. नीचे आकर मैने कॉफी ली और फिर बाहर आकर बैठ गया. शाम को 6 बजे के बाद से अब मुझे खुद के लिए फ़ुर्सत मिली थी. नही तो अभी तक मैं किसी ना किसी के साथ बिज़ी ही था.

अब मैने जैसे ही खुद को अकेला पाया तो सब से पहले कीर्ति को कॉल किया. उसका मोबाइल अभी भी बंद मिला तो फिर मैने वही करने की ठान ली. जो मैं दादा जी के अपने कमरे मे आने के पहले करने वाला था. मैने मौसी के मोबाइल का नंबर लगाया. रिंग जा रही थी लेकिन कोई कॉल नही उठा रहा था. मैने दो तीन बार कॉल किया लेकिन कॉल नही उठा.

अब मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. कीर्ति के बिना बहुत सुना सुना लग रहा था. तभी मुझे लगा कि शायद वो घर वापस आ गयी हो. मुझे निमी से भी बात करना था. इसलिए मैने सीधे छोटी माँ को कॉल किया. छोटी माँ से बात होने के बाद मेरी निमी से थोड़ी बहुत बात हुई. उसके बाद मैने छोटी माँ से कीर्ति के बारे मे पुछा, तो उन्हो ने बताया.

छोटी माँ बोली "कीर्ति तो जब से घर गयी है. तब से वापस ही नही लौटी है."

मैं बोला "वो कुछ बता कर नही गयी कि, वो घर क्यों जा रही है."

छोटी माँ बोली "नही उसने ऐसा कुछ खास नही बताया. उसने बस इतना कहा था कि घर से मम्मी का फोन आया है और उसे ज़रूरी काम से बुलाया है."

छोटी माँ के इस जबाब से मुझे बहुत निराशा हुई. मैने उनसे एक दो इधर उधर की बात की फिर फोन रख दिया. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि कीर्ति ऐसा क्यों कर रही है. वो यदि मुझसे गुस्सा है तो उसे मुझ पर गुस्सा कर लेना था. लेकिन कम से कम मुझसे बात तो कर लेना था. क्या मुझे उस पर गुस्सा करने का भी हक़ नही है. जो वो इस तरह से मुझे तडपा रही है. उपर से उसका मोबाइल भी बंद जा रहा है. उसका मोबाइल तो मेरे गुस्सा करने से पहले ही बंद था.

कीर्ति से जुड़ी हर बात मेरी समझ के बाहर जा रही थी. मैं इनकी कड़ी से कड़ी जोड़ने की कोसिस कर रहा था. तभी मेरे मोबाइल पर मौसी का फोन आने लगा. उनका फोन आते देख मेरे चेहरे पर चमक आ गयी. मैने खुशी खुशी फोन उठाते हुए कहा.

मैं बोला "क्या मौसी कभी कभी तो मैं कॉल लगाता हूँ. उस पर भी मेरा कॉल नही उठाती हो."

मौसी बोली "ऐसी बात नही है रे. घर मे कुछ मेहमान आए हुए है. उन्ही की देख भाल मे फसि हुई हूँ. इसी वजह से तेरा कॉल नही उठा पाई थी. लेकिन देख जैसे ही मेहमानो से फ़ुर्सत मिली, सब से पहले तुझे ही कॉल लगाया है."

मैं बोला "कैसे मेहमान मौसी. क्या मौसा जी के ऑफीस से कोई आया है. या फिर कोई पार्टी वार्टी कर रही हो."

मौसी बोली "जैसा तू सोच रहा है. ऐसा कुछ भी नही है. ये बात तुझे ऐसे समझ मे नही आएगी. तू लौट के आजा फिर मैं तुझे सब कुछ समझा दुगी."

मैं बोला "क्या मौसी आप कभी मुझे अपना बेटा नही मानती. इसलिए कोई भी बात मुझे नही बताती."

मौसी बोली "तू तो मेरा राजा बेटा है रे, और तू ही इस घर का बड़ा बेटा भी है. सब कुछ तुझको ही तो संभालना है."

मैं बोला "रहने दो मौसी मुझे बातों मे मत बहलाओ. यदि सच बात नही बताना है तो मत बताओ."

मौसी बोली "तू इतना ज़िद कर रहा है तो, मैं तुझे सच बात बता देती हूँ. लेकिन देख ये बात तू अपनी छोटी माँ को मत बताना. नही तो वो मुझ पर नाराज़ हो जाएगी."

मैं बोला "आप कहती हो तो बिल्कुल नही बताउन्गा. अब बताइए तो कि कौन से खास मेहमान आए है. जिनकी इतनी ज़्यादा आवभगत चल रही है."

मौसी बोली "कीर्ति को देखने वाले आए हुए है. हम आज कीर्ति की सगाई कर रहे है."

मौसी की इस बात को सुनते ही मेरे कान के पर्दे ही फट गये. मुझे कुछ भी सुनाई देना बंद हो गया. मेरे दिल की धड़कने थम गयी. जिस की कल्पना मैने सपने मे भी नही की थी. वो सब हो रहा था. कीर्ति मुझे दुल्हन बनी नज़र आ रही थी. मुझे ऐसे लग रहा था. जैसे कोई मेरा दिल मेरे सीने से निकाल कर ले जा रहा हो. मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े. निकलते भी क्यों ना. कीर्ति ही मेरी सब कुछ थी और अब उसी को मुझसे छीना जा रहा था.

मेरे मूह से मौसी की इस बात को सुनने के बाद कोई बोल ही ना फूटे. मैं कहता भी तो क्या कहता. मुझे चुप देख मौसी ने कहा.

मौसी बोली "देख मैने ये बात तेरे सिवा किसी भी नही बताई है. सुनीता को भी कुछ नही मालूम है. यदि उसे बताती तो वो ये सब होने ही नही देती. बेकार का लड़ाई झगड़ा लगा देती."

मेरे दिल की दुनिया लुट रही थी. मेरी प्यार की कश्ती डूब रही थी. डूबने वाला बचने के लिए हाथ पैर तो चलाता ही है. मैने भी एक नाकाम कोसिस करते हुए कहा.

मैं बोला "मौसी ये कैसे हो सकता है. कीर्ति की अभी शादी की उमर ही कहाँ हुई है. अभी तो उसके पढ़ने लिखने के दिन है. कम से कम उसकी पढ़ाई तो पूरी हो जाने दो"

मौसी बोली "उन लोगों को कीर्ति के पढ़ने लिखने से कोई आपत्ति नही है. कीर्ति यदि शादी के बाद पढ़ना चाहती है तो, वो उसे पढ़ने से नही रोकेगे."

मैं बोला "फिर भी मौसी कीर्ति की अभी शादी की उमर नही है. आप बहुत जल्दबाज़ी कर रही है."

मौसी बोली "देख अब तू भी सुनीता की तरह मुझे समझाने की कोशिश मत कर. मैने उसे इसीलिए नही बताया क्योंकि वो ये सब होने नही देती. मुझे लड़का पसंद आ गया, और मैं नही चाहती थी कि, कीर्ति की जगह और किसी से उसकी शादी हो."

मैं जानता था कि मौसी को उनकी मनमानी करने से सिर्फ़ छोटी माँ के सिवा कोई नही रोक सकता था. लेकिन उन्हो ने छोटी माँ को ही इस सब से दूर रखा हुआ था. मेरी कुछ समझ मे नही आया कि मैं क्या करूँ. मैने मौसी से पुछा.

मैं बोला "मौसी कहीं आप कीर्ति के साथ ज़बरदस्ती तो नही कर रही है. क्या आपने उसकी मर्ज़ी जान ली है."

मौसी बोली "कैसी बात कर रहा है. मैं कीर्ति की माँ हूँ. उसकी दुश्मन थोड़े ही हूँ. उसकी सहमति से ही सब कुछ हो रहा है."

मुझे मौसी की इस बात पर ज़रा भी भरोसा नही हो रहा था. मैं जानता था कि कीर्ति शादी के लिए कभी हाँ नही कह सकती. मैं मौसी से बोल पड़ा.

मैं बोला "मौसी कही आप झूठ तो नही बोल रही. कीर्ति भला शादी के लिए इतनी जल्दी कैसे तैयार हो सकती है. मुझे तो लग रहा है कि आप उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती कर रही है."

मौसी बोली "नही रे, ये तू कैसी बात कर रहा है. मैं भला कीर्ति के साथ क्यों कोई ज़ोर ज़बरदस्ती करूगी. अपने दोनो बच्चों की कसम खा कर बोलती हूँ कि, ये सब कीर्ति की मर्ज़ी से ही हो रहा है. मैं झूठ नही बोल रही. पहले कीर्ति ने शादी के लिए ना नुकुर ज़रूर की थी. लेकिन जब मैने उसे लड़के और लड़के के परिवार के बारे मे सब कुछ बताया. तब वो भी इस शादी के लिए तैयार हो गयी. देख अब मेहमानो के जाने का समय हो रहा है. मैं तुझसे बाद मे बात करती हूँ. अब मैं रखती हूँ."

ये कह कर मौसी ने फोन रख दिया. लेकिन मौसी की इस बात से मेरा कलेजा छल्नि हो गया था. अब मुझे मौसी से कोई शिकायत नही रह गयी थी. शिकायत थी तो सिर्फ़ कीर्ति से थी. वो इस शादी के लिए कैसे तैयार हो गयी थी. क्या उसे एक पल के लिए भी मेरा ख़याल नही आया. ये सारे सवाल मेरे सीने मे उछल रहे थे, और मेरे दिल को लहुलुहन किए जा रहे थे.

मैने अपने आपको इतना बेबस कभी नही पाया था. जितना कि आज महसूस कर रहा था. मेरी आँखों के सामने कीर्ति का चेहरा आ रहा था और मैं रोए जा रहा था. लेकिन ना तो वहाँ कोई मेरा रोना देखने वाला था, और ना ही मेरे आँसू पोछने वाला था.

मैं कीर्ति के सिवा सब कुछ भूल चुका था. मुझे हर तरफ कीर्ति ही नज़र आ रही थी. मैं उस से रोते हुए कहते जा रहा था.

जान तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया. तुम्हे मुझसे धोका करने की क्या ज़रूरत थी. तुम एक बार मुझसे कहती कि, तुम्हे कोई और पसंद आ गया है. मैं खुद हंसते हंसते तुम्हे उसके साथ विदा कर देता. तुम्हे मेरे साथ ये धोका नही करना चाहिए था. तुम मेरी जान थी. तुम्हारी खुशी मे ही मेरी खुशी थी. तुम्हे एक बार तो मुझसे कह कर देखना था. मैं खुशी खुशी तुम्हारे रास्ते से हट जाता. तुम तो कहती थी कि, तुम मेरे सिवा किसी को अपना नही बनोगी. फिर तुम्हारे उस वादे का क्या हुआ. तुम तो कहती थी, तुम मेरे बिना जी नही सकोगी, तो तुम्हारी उस कसम का क्या हो गया. मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता जान. मैं तुम्हारे बिना मर जाउन्गा."

मैं तुम्हारे बिन मर जाउन्गा जान. जैसे इन शब्दों ने मुझे सारे दर्द से निजात दिला दी हो. सच मे उस समय जीने से ज़्यादा मुझे मरने के नाम से सुकून मिला था. मैने फ़ैसला कर लिया कि अब मैं ज़िंदा नही रहुगा. मैने अपना मोबाइल निकाला और कीर्ति के बंद मोबाइल पर कॉल लगाया. मोबाइल अभी भी बंद था. मेरे चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आई. ये मुस्कान मेरे प्यार की हार के लिए थी. जो मोबाइल रात को 11 के बाद कभी बंद नही रहता था. वो आज मेरे मरने के समय पर भी बंद था.

मैने कीर्ति को एक मेसेज टाइप किया.

"जान ये तुम्हरे लिए मेरा आख़िरी मेसेज है. माफी चाहता हूँ कि तुम्हारी खुशियों से भरी जिंदगी को देख कर मैं अपने आपको खुश नही रख सका. मगर क्या करूँ. मेरे लिए मेरा सब कुछ तुम ही थी. जब तुम्हे ही मेरा साथ पसंद नही है. तब भला मैं जीकर क्या करूगा. मेरे दिल मे आख़िरी बार तुमसे बात करने की हसरत थी. लेकिन मेरी हसरत मेरे दिल मे ही दब कर रह गयी. तुम अपनी खुशियों मे इतनी खोई रही कि तुम्हे मैं याद ही ना रहा. लेकिन अब मैं तुम्हे याद आना भी नही चाहता. मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए जा रहा हूँ. मैं अपनी इस जिंदगी को आज अभी ख़तम कर रहा हूँ. आइ लव यू जान."

मैने कीर्ति के बंद मोबाइल पर मेसेज सेंड किया और फिर समुंदर की तरफ बढ़ चला. अब ना तो मेरे पास जीने का कोई मकसद बचा था. ना ही किसी की मुझे कोई परवाह थी. मुझे सिर्फ़ कीर्ति का मुझसे दूर जाना नज़र आ रहा था. जिस से बचने के लिए मेरे पास मौत के सिवा कोई दूसरा रास्ता नही था. इसलिए मैं अपनी मौत की तरफ बढ़ा चला जा रहा था.

लेकिन मेरे उपर अभी किसी के प्यार का क़र्ज़ बाकी था. उसे उतारे बिना मारना मेरे नसीब मे नही था. मेरे कदम रात के सन्नाटे मे समुंदर की तरफ बढ़े चले जा रहे थे. तभी मेरा मोबाइल बज उठा. मैने कॉल देखा तो कीर्ति का कॉल था. मैने कॉल काट दिया. लेकिन फिर मोबाइल बज उठा. मैने जितनी बार कॉल काटता. उतनी बार कॉल आता.

जब मैने कॉल नही उठाया तो कुछ देर बाद मेरे पास मेसेज आया. मैने बेमन से मेसेज पढ़ा. लेकिन मेसेज पढ़ते ही मेरे कदम जहाँ के तहाँ रुक गये. मेरी समझ मे नही आया कि ये सब कैसे हो गया. मैं वापस आकर अपनी जगह पर बैठ गया. कॉल अभी भी आए जा रहे थे. लेकिन अब मेरे अंदर कॉल उठाने की हिम्मत नही थी. मैं सोच रहा था क्या करूँ और क्या ना करूँ.
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