MmsBee कोई तो रोक लो
09-10-2020, 06:05 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कुछ ही देर मे हम सब एरपोर्ट पहुच गये. वहाँ हमारा स्वागत अजय और अमन ने किया. अजय ने मुझे देखते ही अपने गले से लगा लिया. फिर हम सब एरपोर्ट के अंदर आ गये.

अब किसी भी समय हमारी फ्लाइट की घोषणा हो सकती थी. इसलिए मैं और मेहुल सबसे मिल कर विदा लेने मे लग गये. सबसे पहले मैं आकाश अंकल और पद्मिइनी आंटी के पास विदा लेने आया.

उन दोनो की ये जोड़ी प्यार की एक अनोखी मिसाल थी. जिसके आगे मेरा सर श्रद्धा से खुद ब खुद झुकता चला गया. मैने उनके पैर छु कर उनसे आशीर्वाद लिया. दोनो ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे आते रहने को कहा.

मेरी देखा कि मेहुल भी हमारे पास आ गया और अंकल आंटी से आशीर्वाद लेने लगा. मेहुल को अंकल आंटी के पास आया देख कर, मैं अंकल आंटी से विदा लेकर, रिया के पास आ गया.

रिया वो लड़की थी, जिसने पहली बार मेरे अंदर की वासना की आग को भड़काया था और जिसे मैं पहली मुलाकात मे ही अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहता था. मेरे गुप्त-अंग को स्पर्श करने वाली एक्लोति लड़की भी रिया ही थी.

यदि कीर्ति सही समय पर, मेरी जिंदगी मे नही आई होती तो, शायद मैं रिया के साथ और भी आगे बढ़ गया होता. लेकिन रिया को सिर्फ़ इसी वजह से याद रखा जाना, उसके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी करना था.

क्योकि मेरे मुंबई मे कदम रखने के पहले, ना तो राज और रिया के अलावा मैं यहाँ किसी को जानता था और ना कोई मुझे यहा जानता था. ऐसे मे मुझे सिर्फ़ राज और रिया से ही, थोड़ी बहुत मदद मिलने की उम्मीद थी.

मगर हमारे मुंबई मे पहला कदम रखते ही, रिया ने हमारी उम्मीद से कहीं ज़्यादा हमारे लिए कर दिया था. उसने हमे किसी होटेल मे नही रुकने दिया और ज़बरदस्ती अपने घर ले आई थी.

उसके हमे अपने घर ले आने की वजह से ही, हमसे एक के बाद एक, इतने सारे लोग जुड़ते चले गये थे. एक तरह से इस सब की वजह रिया ही थी और उसकी इस बात को किसी भी तरह से अनदेखा नही किया जा सकता था.

यदि रिया हमे पहले दिन ही अपने घर ना ले गयी होती तो, फिर ना ही मेरी निक्की से मुलाकात हो पाती और ना ही मैं इतने सारे लोगों से जुड़ पाता. लेकिन उसके इस साथ के लिए, उसे थॅंक्स कहना, एक तरह से उसे छोटा दिखाना ही था.

मेरे दिल मे रिया के लिए बहुत इज़्ज़त थी और मैं उसके इस साथ को भी छोटा दिखना नही चाहता था. इसलिए मैने रिया के पास आते हुए उस से कहा.

मैं बोला “मैं तुमको थॅंक्स कह कर, तुमको छोटा नही करूगा. लेकिन फिर भी हक़ीकत यही है कि, हम लोगों को मुंबई मे जो भी अपनापन मिला है, उस सबकी वजह सिर्फ़ तुम ही हो. यदि तुम नही होती तो, मैं इन सब से भी, कभी नही मिल पता. इस सब के लिए मैं जिंदगी भर के लिए तुम्हारा कर्ज़दार रहुगा.”

मेरी बात सुनकर, रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.

रिया बोली “ऐसा कुछ भी नही है. तुम और मेहुल हमारे दोस्त हो और फिर तुम दोनो ने भी तो, हम लोगों का वहाँ कितना ख़याल रखा था. ऐसे मे हम लोगों ने यहा तुम्हारा ख़याल रख कर, कोई महान काम नही कर दिया है. जिसके लिए तुम मेरे कर्ज़दार बन गये हो.”

“दोस्ती मे कोई कर्ज़ नही होता. दोस्ती मे सिर्फ़ फर्ज़ होता है और हमने अपना वो ही फर्ज़ निभाया है. इसलिए तुम इन सब फालतू की बातों को सोचना बंद करो और खुशी खुशी अपने घर जाओ. अमि निमी तुमको देखने के लिए तरस रही है. उन दोनो को हम सब की तरफ से प्यार देना और कहना कि, मैं उन दोनो को बहुत याद कर रही थी.”

ये कहते हुए रिया ने एक बॅग मुझे पकड़ा दिया. मैने बॅग ले तो लिया, लेकिन मुझे रिया का ये बॅग देने का मतलब समझ मे नही आ रहा था. रिया ने मेरी इस उलझन को समझ कर, उसे दूर करते हुए मुझसे कहा.

रिया बोली “इसमे ज़्यादा चौकने वाली कोई बात नही है. इस बॅग मे हम सब की तरफ से अमि निमी और बाकी सब के लिए गिफ्ट है. तुमने क्या सोचा था कि, हम लोग उन दोनो शैतानो को इतनी आसानी से भूल जाएगे.”

रिया की ये बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “लेकिन इस सब की क्या ज़रूरत थी. प्रिया ने पहले ही सबके लिए ढेर सारी शॉपिंग करवा दी थी.”

रिया बोली “वो सब तुम्हारी तरफ से थे और ये हमारी तरफ से है. अब इस सब के बारे मे कोई बेकार की बहस सुरू मत करो और मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो. ये माना कि अब तुम्हारे यहाँ बहुत से घर है. लेकिन तुम पर पहला हक़ हमारा ही है. इसलिए तुम जब भी यहाँ आओगे, तुमको हमारे ही घर मे रुकना पड़ेगा.”

रिया की ये बात सुनकर, मैं मुस्कुराए बिना ना रह सका और मैने बिना कोई बहस किए ही, उसकी इस बात की हामी भर दी. तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को देख कर मैने रिया से विदा ली और मैं नेहा के पास आ गया.

नेहा, जिसे पहली मुलाकात मे मैं प्रिया की सहेली के रूप मे जानता था. लेकिन बाद मे बरखा दीदी से मुझे उसके सही रूप की जानकारी मिली थी. वो एक बेहद ही नाकचॅढी और झगड़ालु किस्म की लड़की थी. जो बात बात पर किसी से भी लड़ने लगती थी और दूसरों को नीचा दिखाना उसके स्वाभाव मे शामिल था.

लेकिन इन सब बुराइयों के बाद भी, उसके अंदर एक अच्छाई ऐसी भी थी. जो उसकी इन सब बुराइयों पर परदा डाल देती थी. उसकी वो अच्छाई ये थी कि, वो शिखा दीदी पर जान देती थी और शिखा दीदी की कभी कोई बात नही काटती थी.

वो बचपन से ही शिखा दीदी की लाडली थी और हमेशा साए की तरह उनसे चिपकी रहती थी. वो स्वाभाव से लड़ाकू थी और यदि कोई शिखा दीदी को कुछ ग़लत बात कह दे तो, उसका ये रूप और भी ज़्यादा भयंकर हो जाता था.

उसकी इसी बात ने, मेरे दिल मे उसकी भी एक खास जगह बना दी थी. सलीम वाली बात को लेकर मेरे मन मे उसके लिए कुछ देर के लिए गुस्सा ज़रूर आया था. लेकिन जब मुझे निक्की और प्रिया से पता चला कि, नेहा सलीम को सिर्फ़ हीतू का दोस्त होने की वजह से जानती थी तो, मेरा ये गुस्सा भी ख़तम हो गया था.

मगर शायद नेहा के मन मे अभी भी उस बात को लेकर डर समाया हुआ था. इसलिए वो कल से मेरा सामना करने से बच रही थी. लेकिन मैं जैसे ही उस से विदा लेने उसके पास आया तो, उसने अपनी सफाई देते हुए कहा.

नेहा बोली “तुम मुझे कल की बात को लेकर ग़लत मत समझना. कल जो कुछ भी हुआ था, उसमे मेरी ज़रा भी ग़लती नही थी. मैं तो सलीम से सिर्फ़ हीतू का दोस्त होने की वजह से बात कर रही थी. मुझे नही पता था कि, वो वहाँ ऐसा कुछ कर जाएगा.”

“यदि मुझे इस बात का, पहले से ज़रा भी पता होता तो, मैं तुम लोगों को अपने पास रोकने की ग़लती कभी नही करती और तुमसे पहले, मैं खुद ही उसे इस सब के लिए बुरी तरह से फटकार लगा देती.”

नेहा की इस बात मे सचाई थी और ये बात प्रिया मुझे पहले ही बोल चुकी थी. इसलिए मैने नेहा की बात को सुनकर, मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “तुम कल की बात को लेकर परेशान मत हो. मुझे प्रिया और निक्की ने कल ही सारी सच्चाई बता दी थी. इसलिए मेरे मन मे, कल की बात को लेकर तुम्हारे लिए कोई मैल नही है. हम आज भी वैसे ही दोस्त है, जैसे कल से पहले थे.”

मेरी ये बात सुनकर, नेहा ने सुकून की साँस लेते हुए कहा.

नेहा बोली “थॅंक्स, इन सबने तो मुझे डरा ही दिया था कि, तुम कल की बात को लेकर मुझसे बहुत नाराज़ हो. इसलिए मैं तुम्हारे सामने आने से भी बच रही थी.”

नेहा की इस बात को सुनकर मुझे हँसी आ गयी. लेकिन फिर मैने कुछ गंभीर होते हुए उस से कहा.

मैं बोला “मैं क्या, हम मे से कोई भी तुमसे नाराज़ नही है. सब तुमको इसलिए परेशान कर रहे थे. क्योकि तुम बेवजह सबसे लड़ती रहती हो. मेरी नज़र मे, दोस्ती मे लड़ना झगड़ना कोई बुरी बात नही है.”

“मैं भी मेहुल से हमेशा लड़ता ही रहता हूँ. लेकिन तुम्हारे अंदर की खराबी ये है कि, तुम दोस्ती मे लड़ने झगड़ने के साथ, अपने दोस्त को किसी के भी सामने नीचा दिखाने लगती हो. तुम्हारी इस हरकत को कुछ भी कहा जा सकता है, लेकिन दोस्ती कभी नही कहा जा सकता है.”

मेरी बात सुनकर, नेहा ने अपना सर झुका लिया और कुछ रुआंसा सी होते हुए कहा.

नेहा बोली “मैं इतनी बुरी नही हूँ, जितना तुम सब मुझको समझते हो. मुझे शिखा दीदी के अलावा कोई नही समझता.”

नेहा की इस बात से सॉफ पता चल रहा था कि, मेरी बात से उसके दिल को चोट पहुचि है. मगर मेरा इरादा उसके दिल को चोट पहुचने का हरगिज़ नही था. मैं तो उसे सिर्फ़ सच्चाई का आईना दिखाना चाहता था. ताकि वो दोबारा ऐसी ग़लती को ना दोहराए.

लेकिन शायद मेरा अपनी बात कहने का तरीका ग़लत था. इसलिए मैने अपनी कही हुई बात को संभालते हुए उस से कहा.

मैं बोला “तुम मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल रही हो. मैं तुमको बुरा नही कह रहा हूँ. बल्कि एक सच्चे दोस्त की तरह, तुम्हारी ग़लती तुमको बता कर, उसे सुधारना चाहता हूँ. क्योकि तुम शिखा दीदी की सबसे ज़्यादा लाडली हो. इसलिए मैं तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा होते नही देख सकता.”

“मैं सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ कि, हमे अपने दोस्त की ग़लतियाँ उसके उपर जाहिर करना कोई बुरी बात नही है. लेकिन उन्ही ग़लतियों को किसी दूसरे के सामने बढ़ा चढ़ा कर रखना सिर्फ़ दोस्ती को मिटाने वाला काम है.”

“जैसा उस दिन तुम प्रिया को नीचा दिखा कर कर रही थी. प्रिया तुम्हारी दोस्त है और मान लो, वो यदि वैसा कुछ कर भी रही थी तो, तुमको उसको सबके सामने इस तरह शर्मिंदा करने की कोसिस नही करना चाहिए थी. वो ही बात तुम उस से अकेले मे भी बोल सकती थी.”

“मैने जाते जाते सिर्फ़ इसलिए तुम्हे ये बात समझाना ज़रूरी समझा. ताकि तुम अपनी इस आदत की वजह से कही प्रिया जैसी दोस्त को खो ना दो. फिर भी यदि तुम्हे मेरी ये बात बुरी लगी है तो, इसके लिए मैं तुमसे दिल से माफी चाहता हूँ.”

मेरी इस बात ने नेहा के उपर अपना असर दिखाया और उसने शर्मिंदा होते हुए कहा.

नेहा बोली “नही, तुमको किसी बात के लिए माफी माँगने की ज़रूरत नही है. तुम्हारी ये बात बिल्कुल सही है. उस दिन सच मे मेरी ही ग़लती थी. मैं इसके पहले भी, प्रिया को इस बात को लेकर नीचा दिखाने की कोसिस करती रहती थी.”

“उस दिन जब मैने तुम्हे उसके साथ देखा तो, मुझे लगा कि, वो मुझसे झूठ बोल रही है. इसलिए मैं फिर उसको नीचा दिखाने की कोसिस करने लगी थी. लेकिन अब मैं अपनी इस ग़लती को दोबारा नही दोहराउन्गी. अब जब अगली बार तुम यहाँ आओगे तो, तुमको ऐसा कुछ भी देखने को नही मिलेगा.”

मैं बोला “ये तो बहुत खुशी की बात है. लेकिन अब सिर्फ़ मैं ही यहाँ नही आउगा. बल्कि तुमको भी हमारे यहाँ आना पड़ेगा.”

मेरी इस बात को सुनकर, नेहा ने बड़े ही भोलेपन से कहा.

नेहा बोली “लेकिन मैं वहाँ कैसे आ सकती हूँ.”

मैं बोला “क्यो, इसमे कौन सी बड़ी बात है. मैने प्रिया, शिखा दीदी और बरखा दीदी से कहा है कि, वो जब भी हमारे यहाँ आए, तुमको ज़रूर अपने साथ लेकर आए. अब उनके साथ आने मे तो, तुम्हे कोई परेशानी नही होना चाहिए.”

मेरी बात सुनकर, नेहा के चेहरे पर रौनक आ गयी और उसने मुस्कुराते हुए, सबके साथ आने की हामी भर दी. मेरी अभी नेहा से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल और हीतू आ गये. मेहुल को देख कर, मैने नेहा से विदा ली और मैं हीतू के पास आ गया.

हीतू वो लड़का था, जिसने पहली मुलाकात मे ही, मेरी वजह से बरखा और प्रिया दोनो से थप्पड़ खाए थे. इसके बाद भी, उसने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई थी और फिर शिखा दीदी की शादी मे भी तन मन से मेरा साथ निभाया था.

लेकिन अभी तक मैने उस से इस सब के लिए कुछ भी नही कहा था. मगर अब मैं जा रहा था. ऐसे मे बिना कुछ कहे जाना भी ठीक नही था. इसलिए मैने हीतू के पास आते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी यार, तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया. लेकिन मैने तुम्हे किसी भी बात के लिए थॅंक्स तक नही कहा. तुम भी सोचोगे कि, ये कैसा लड़का है. जिसके लिए मैने इतना सब कुछ किया और इसने मुझे थॅंक्स तक नही कहा.”

मेरी बात को सुनकर, हीतू ने हंसते हुए कहा.

हितेश बोला “तुमने बिल्कुल सही किया. क्योकि दोस्तों को किसी बात के लिए थॅंक्स नही कहा जाता है. दोस्तों से सिर्फ़ गले मिला जाता है.”

ये बोल कर वो मेरी तरफ बढ़ गया और मैने भी आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. अभी मैं हीतू से गले मिल ही रहा था कि तभी हमारे पास राज आ गया.

राज वो लड़का था, जिसे मैं पहली मुलाकात से ही ग़लत समझता चला आ रहा था. लेकिन ये सब सिर्फ़ मेरी नज़रों का धोखा था. राज जैसा खुद को दिखता था, असल मे वो वैसा हरगिज़ नही था.

उसने मेरे सामने शिखा दीदी के बारे मे बहुत कुछ बुरा कहा था. लेकिन जैसे ही, उसे पता चला कि, मैं शिखा को अपनी बहन मानता हूँ तो, उसने इस बात को छुपाने के लिए मुझे बहुत खरी खोटी सुनाई और फिर शिखा दीदी को कहे ग़लत शब्दों के लिए मुझसे माफी भी माँगी.

लेकिन सच्चा दोस्त उसे कहते है, जो दोस्त के साथ, हर अच्छे बुरे समय मे कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहे और ये खूबी राज के अंदर कूट कूट कर भरी थी. उसने शिखा दीदी की शादी मे मुझे कभी भी अकेला महसूस नही होने दिया था.

मेरे लिए ये शहर अंजान था. ऐसे मे शिखा दीदी की शादी की एक छोटी सी भी ज़िम्मेदारी उठा पाना मेरे लिए आसान नही था. लेकिन राज ने शिखा दीदी की शादी के हर छोटे बड़े इंतेजाम को खुद खड़े होकर पूरा करवाया था.

उसके बिना ये सब कर पाना मेरे लिए संभव ही नही था. उसकी इस बात ने मेरा दिल जीत लिया था. वो मेरे पास आया तो, मैने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया. गले मिलने के बाद, राज मुझसे मुंबई आते रहने और फोन पर बात करते रहने की बात करने लगा.

अभी मेरी राज से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को देख कर मैने राज से विदा ली और हेतल दीदी के पास आ गया.

हेतल दीदी, जिनका चेहरा जितना खराब था, उनका व्यक्तित्व उतना ही उजाला और सॉफ था. अपने प्यार की खातिर, उन्हो ने अपना चेहरा खराब कर लिया था. लेकिन जब वो चेहरा सही होने का समय आया तो, उन्हो ने सिर्फ़ अपने भाई की शादी मे शामिल होने के लिए, उस मौके को भी खुशी खुशी लात मार दी थी.

ऐसी बहन किसी किस्मत वाले को ही मिलती. वो बहन के पवित्र प्यार की एक अद्भुत मिसाल थी और मैं खुश-नसीब था कि, मुझे भी उनके इस प्यार मे से कुछ हिस्सा मिला था. उनके सामने आते ही, मेरी आँखों मे नमी आ गयी और मैने उनसे कहा.

मैं बोला “दीदी, जब कभी भी आपकी सर्जरी हो, मुझे बुलाना मत भूलना. मैं आपकी सर्जरी के समय, आपके पास रहना चाहता हूँ.”

मेरी बात सुनकर, हेतल दीदी की आँखों मे भी नमी आ गयी. लेकिन उन्हो ने मुस्कुराते हुए, मुझे अपने गले से लगाते हुए कहा.

हेतल दीदी बोली “तुम फिकर मत करो, मेरी सर्जरी मे तुम ज़रूर मेरे पास रहोगे. यदि भैया ने मेरी सर्जरी के समय तुमको नही बुलाया तो, तुम देखना मैं फिर से सर्जरी करवाने से भाग जाउन्गी.”

ये बोल कर हेतल दीदी हँसने लगी और उनकी इस बात को सुनकर, मैं भी मुस्कुराए बिना ना रह सका. अभी मेरी उनसे बात चल ही रही थी की, तभी मेहुल आ गया और मैं उनसे विदा लेकर आरू के पास आ गया.

आरू वो लड़की थी, जिसके अंदर अज्जि की जान बसती थी. जो परियों की तरह सुंदर और बच्चो की तरह मासूम थी. जिसकी मासूमियत किसी का भी दिल जीत सकती थी और इसका एक नमूना उसने शिखा दीदी के गुस्से पर जीत हासिल करके दिखा दिया था.

मेरी उस से ज़्यादा बात चीत नही होती थी. लेकिन उसकी इस मासूमियत ने मेरा भी दिल जीत लिया था. उसे देखते ही, मेरे चेहरे पर खुद ब खुद मुस्कुराहट आ जाती थी और ऐसा ही कुछ अभी भी हुआ.

मैं जैसे ही आरू के सामने आया, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और मैने मुस्कुराते हुए आरू से कहा.

मैं बोला “तुमने मुझे लेकर प्रिया को बहुत परेशान किया है. क्या तुम निक्की के साथ भी ऐसा ही कर सकती हो.”

मेरी ये बात सुनकर, आरू मुझे हैरानी से देखने लगी. उसे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं किस बात के बारे मे कह रहा हूँ. लेकिन जैसे ही उसे बरखा दीदी के घर वाली बात याद आई. उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

अर्चना बोली “वो तो मैने सीरू दीदी के कहने पर किया था. उस सब से मेरा कुछ भी लेना देना नही था और मैने वो बात निक्की और प्रिया के सामने तभी सॉफ कर दी थी.”

मैं बोला “ये तो मैं उसी समय समझ गया था कि, इस सब मे ज़रूर सीरू दीदी का ही हाथ होगा. लेकिन मेरा सवाल ये था कि, क्या तुम सीरू दीदी के कहने पर, निक्की के साथ भी ऐसा कर सकती हो.”

मेरी ये बात सुनकर, आरू मुस्कुरा कर रह गयी और फिर धीरे से कहा.

अर्चना बोली “सॉरी, वो बस ऐसे ही हो गया था.”

आरू की इस बात पर मैने भी मुस्कुराते हुए कहा

मैं बोला “इसमे सॉरी वाली कोई बात नही है. मैने अपने जाती समय, इस बात को सिर्फ़ इसलिए उखाड़ा है, ताकि तुम को भी पता चल जाए कि, मैं तुम लोगों के बीच पक रही खिचड़ी से अंजान नही हूँ और तुम मेरे जाती समय, फिर से प्रिया को परेशान करने के लिए कोई हरकत ना करो.”

मेरी बात सुनते ही, आरू की हँसी छूट गयी और उसने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.

अर्चना बोली “नही, अब ऐसा नही होगा. निक्की ने उस दिन इस बात को लेकर मेरी बहुत खिचाई की थी. मैने तो उसी दिन ऐसा करने से अपने कान पकड़ लिए थे.”

आरू की ये बात सुनकर, मुझे भी हँसी आ गयी. अभी मेरी आरू से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को आया देख कर, मैने आरू से विदा ली और सेलू दीदी के पास आ गया.

सेलू दीदी, जिनकी रंगत सीरू दीदी और आरू से कहीं ज़्यादा गोरी थी. एक तरफ वो दूध की तरह गोरी दिखती थी तो, दूसरी तरफ बिल्कुल छुईमुई सी नाज़ुक लगती थी. लेकिन उनके रंग से भी ज़्यादा सफेद, उनका मन था.

मैने उन्हे हमेशा सीरू दीदी की परच्छाई की बनकर, उनका साथ निभाते देखा था और उनकी ख़ासियत ये थी कि, वो सीरू दीदी के मन मे चल रही हर बात को, बिना कहे ही, आसानी से समझ जाती थी.

मैने उनको कभी भी, किसी की, किसी बात पर नाराज़ होते नही देखा था. वो ज़्यादातर समय चुप ही रहती थी. लेकिन उनकी कही एक छोटी सी बात भी, सबके उपर बहुत गहरा असर दिखाती थी.

उनको देखते ही, आज भी मेरी आँखों मे, शिखा दीदी के घर पर, उनके शिखा दीदी का नाम लेने पर, अजय का उनके गाल पर तमाचा मारने वाला नज़ारा घूम जाता है. अजय के उस तमाचे से, उनके दूध की तरह गोरे और नाज़ुक गाल, टमाटर की तरह लाल हो गये थे.

लेकिन इसके बाद भी, उनके चेहरे पर एक शिकन नही आई थी और वो पहले की तरह ही मुस्कुराती रही थी. उनके इसी भोलेपन और निश्चल स्वाभाव की वजह से, तीनो बहनो मे, वो ही मुझे सबसे प्यारी लगती थी.

मैं विदा लेने उनके पास पहुचा तो, मुझे देखते ही, उनके चेहरे पर, हमेशा की तरह मुस्कुराहट फैल गयी और उन्हो ने मुझे मजाकिया अंदाज मे चेतावनी देते हुए कहा.

सेलिना बोली “यहाँ से जाते ही, हम लोगों को भूल मत जाना. वरना मैं तुमको परेशान करने के लिए सीरू दीदी को तुम्हारे पिछे लगा दुगी.”

उनकी इस बात पर मैने भी मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, वो कोई पागल ही होगा, जो आप सबको इतनी आसानी से भूल जाए. फिर आप तो मेरी सबसे प्यारी दीदी हो. आपको भूलने का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता है.”

मेरी इस बात पर सेलू दीदी ने मुझे घूरते हुए कहा.

सेलिना बोली “झुटे, जाते जाते मुझे मस्का लगा रहे हो. भला मुझ मे ऐसा है ही क्या, जो मैं तुम्हारी सबसे प्यारी दीदी हो गयी.”

मैं बोला “नही दीदी, मैं कोई मस्का नही लगा रहा हूँ. किसी का दिल जीतने के लिए सीरू दीदी के पास उनका शैतानी दिमाग़ है तो, आरू के पास उसकी मासूमियत है. लेकिन आपके पास किसी का दिल जीतने के लिए, आपका निर्मल मन है. जिसमे सबके लिए एक समान प्यार छुपा है और इसी वजह से आप मेरी सबसे प्यारी दीदी हो.”

मेरी ये बात सुनकर, सेलू दीदी के चेहरे की मुस्कुराहट गहरी हो गयी. वो मुझे अपना ख़याल रखने और उनको कॉल करते रहने को कहने लगी. अभी मेरी उनसे बात चल ही रही थी कि, तभी यहाँ पर भी मेहुल टपक गया.

उसे अपने पास आया देख कर, मैने उसे गुस्से मे घूर कर देखा. लेकिन वो मुझे अनदेखा करके सेलू दीदी से बात करने लगा. उसे सेलू दीदी से बात करता देख कर, मैं सेलू दीदी से विदा लेकर सीरू दीदी की तरफ बढ़ गया.

सीरू दीदी की किसी बात से तारीफ करना, सूरज को चिराग दिखाने जैसा काम था. क्योकि वो किसी तारीफ की मोहताज नही थी. उन्हे शैतानो की नानी मानी जाता था और सब उनके शैतानी दिमाग़ से ख़ौफ़ खाया करते थे.

उनके शैतानी दिमाग़ की सबसे बड़ी ख़ासियत ये थी कि, उन्हे अपनी कोई भी शैतानी करने के लिए पल भर भी सोचना नही पड़ता था. मगर मैने उनकी जितनी भी शैतानी देखी थी. उन सभी शैतानियों से, किसी ना किसी का, कुछ ना कुछ भला होते ही देखा था.

उन्हो ने अपनी शैतानियों से मुझे भी बहुत परेशान किया था. मगर मुझे भी उनकी शैतानियों से कभी कोई नुकसान नही, बल्कि फ़ायदा ही हुआ था. लेकिन जैसे ही मैं शैतानो की नानी कही जाने वाली सीरू दीदी के पास विदा लेने पहुचा तो, उनको देख कर भौचक्का सा रह गया.
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हमेशा किसी कोयल की तरह चहकने वाली सीरू दीदी, निशा भाभी के पास बिल्कुल शांत खड़ी थी. निशा भाभी किसी से फोन पर बात करने मे लगी थी और सीरू दीदी बड़े गौर से मुझे सेलू दीदी से बात करते देख रही थी.

हर समय मुस्कुराते रहने वाली और अपनी शरारतों से मुझे परेशान करने वाली सीरू दीदी की आँखों मे नमी देख कर, मैं भी अपनी आँखों मे नमी आने से ना रोक सका. लेकिन मेरे उनके पास पहुचते ही, उन्हो ने फ़ौरन अपनी आँखों को सॉफ करके, मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए मुझसे कहा.

सीरत बोली “मैने तुमको बहुत परेशान किया है ना. लेकिन वो सब सिर्फ़ एक मज़ाक ही था. फिर भी यदि जाने अंजाने मे मैने तुम्हारे दिल को चोट पहुचा दी हो तो, उसके लिए मैं दिल से माफी चाहती हूँ.”

सीरू दीदी की इन बातों मे मुझे मेरे लिए बेशुमार प्यार दिखाई दे रहा था. उनकी इस बात के जबाब मे, मैने नम आँखों से मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, आप ये कैसी बात कर रही है. आप कभी अंजाने मे भी, किसी के दिल को चोट नही पहुचा सकती. भले ही सब आपके दिमाग़ को शैतानी दिमाग़ कहते हो. लेकिन मैने देखा है कि, आपके इस शैतानी दिमाग़ से हमेशा किसी का, कुछ ना कुछ भला ही होता है.”

“आज भी आपने पराठे वाली बात बोल कर, मुझे परेशानी मे ज़रूर डाल दिया था. लेकिन इस से मेरा भला ही हुआ. मुझे शिखा दीदी का थोड़ा प्यार ऑर मिल गया और शिखा दीदी को भी एक सुकून मिल गया. वरना वो मेरे जाने के बाद, इसी बात को लेकर पछताती रहती कि, उन्हो ने मुझे पराठे बना कर क्यो नही खिलाए.”

मेरी ये बात सुनकर, एक पल के लिए सीरू दीदी के चेहरे की मुस्कुराहट वापस आ गयी और उन्हो ने प्यार से मेरे गाल पर एक चपत लगा दी. लेकिन अगले ही पल वो अपनी आँखों को छलकने से नही रोक पाई.

शायद दिल के रिश्तों की गहराई इसी बात से नापी जा सकती है कि, जो आपको जितना ज़्यादा सताता है, वो आपको उतना ही ज़्यादा प्यार भी करता है. ये ही बात इस वक्त सीरू दीदी के उपर भी लागू हो रही थी.

मुझे परेशान करने मे सबसे आगे रहने वाली सीरू दीदी, आज मुझे विदा करती समय आँसू छल-काने मे भी सबसे आगे थी और मेरी विदाई को लेकर सबसे पहले उनकी आँख से ही आँसू छलक रहे थे.

सीरू दीदी के आँसू देख कर, मैं भी अपनी आँखों को बहने से ना रोक सका. मैं और सीरू दीदी दोनो अपने अपने आँसू पोछ्ने मे लगे थे. तभी निशा भाभी का फोन पर बात करना ख़तम हो गया और वो भी हमारी बातों के बीच मे कूद पड़ी.

निशा भाभी, उनकी खूबियों को गिनना आसमान मे तारे गिनवाने के समान था. मुंबई मे मैं जितने भी लोगों से मिला था. उन सबकी कोई ना कोई खूबी निशा भाभी के अंदर थी. एक तरह से वो सबका मिला जुला रूप थी.

उनकी रंगत सेलू दीदी की तरह गोरी थी तो, अदाएँ रिया की तरह सेक्सी थी. वो सीरू दीदी की तरह शैतान थी तो, शिखा दीदी की तरह बिल्कुल सीधी भी थी. उनके अंदर प्रिया की चंचलता थी तो, निक्की की तरह समझदारी भी थी.

उनके अंदर नेहा वाली जलन भी थी और हेतल दीदी वाली निश्चलता भी थी. वो आरू की तरह मासूम भी थी और बरखा दीदी की तरह बहादुर भी थी. उनके पास अमन की तरह जिंदगी की वास्तविकता से परिचित करने वाला दिमाग़ था तो, अजय की तरह अपनी इच्छा शक्ति से अपनी मंज़िल को पा लेने वाला दिल भी था.

एक तरह से यहाँ मौजूद हर किसी की कुछ ना कुछ खूबी निशा भाभी के अंदर थी. इतनी सारी खूबियों से भरी निशा भाभी ने जब मुझे और सीरू दीदी को आँसू बहाते देखा तो, उन्हो ने सीरू दीदी के कंधे पर हाथ रखते हुए, मुझसे कहा.

निशा भाभी बोली “क्यो हीरो, आज तू जाते जाते सीरू को रुला कर, क्या इस से, इसकी शैतानियों का बदला ले रहा है.”

निशा भाभी की बात सुनकर, मैने अपने आँसुओं को पोन्छ्ते हुए उन से कहा.

मैं बोला “भाभी, वो शैतानी भी सीरू दीदी का प्यार था और ये आँसू भी इनका प्यार है. भला प्यार का भी कोई बदला लिया जाता है क्या. प्यार का तो सिर्फ़ कर्ज़ चुकाया जाता है और मैं चाहूं तब भी इन के इस प्यार का कर्ज़ नही उतार सकता.”

ये कहते कहते एक बार फिर मेरी आँखें छलक आई. मेरी बातों से निशा भाभी की आँखों मे भी नमी आ गयी. उन्हो ने मुझे और सीरू दीदी को अपने गले से लगा लिया और हम दोनो समझाने लगी.

निशा भाभी अभी मुझे और सीरू दीदी को समझा ही रही थी कि, तभी मेहुल हमारे पास आ गया. उसे देखते ही मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “अबे तू मेरे पिछे ही क्यो पड़ा हुआ है. यहा इतने सारे लोग है. लेकिन तू है कि, जिस से मिलने मैं जाता हूँ, तू भी मेरे पिछे पिछे उसी से मिलने आ जाता है. जब देख रहा है कि, यहाँ मैं मिल रहा हूँ तो, तू किसी ऑर से जाकर क्यो नही मिल लेता है.”

मेरी बात सुनकर, मेहुल कुछ हैरान सा होकर, अपना सर खुजने लगा. उसे समझ मे ही नही आ रहा था कि, मैं उस पर इस तरह क्यो भड़क रहा हूँ. वो कुछ देर मुझे हैरानी से मुझे देखता रहा और फिर बिना कुछ बोले, हमारे पास से निक्की के पास चला गया.

वही मेरे इस तरह से मेहुल के उपर खिजने से निशा भाभी और सीरू दीदी दोनो की हँसी छूट गयी और मैं उनको मेहुल के बार बार मेरे पिछे आने वाली बात के बारे मे बताने लगा. जिसे सुनकर, वो दोनो और भी ज़्यादा हँसने लगी और मैं उनसे विदा लेकर, बरखा दीदी के पास आ गया.

बरखा दीदी, जिनका शरीर लोहे की तरह शख्त था और बोली भी उतनी ही कड़क थी. यदि वो मेरे जैसे किसी लड़के को अपना एक जोरदार मुक्का जमा दे तो, वो वही खड़े खड़े ढेर हो जाए और दोबारा उठ कर खड़ा भी ना हो पाए.

लेकिन सवाल यहा मेरा था और मेरे लिए उनके दिल मे कितना प्यार है, ये मैने तब जाना था, जब प्रिया के साथ, उन्हो ने भी हीतू को तमाचा जड़ दिया था. प्रिया का तमाचा तो, उसने आराम से झेल लिया था, लेकिन बरखा दीदी का तमाचा जिस गाल पर पड़ा था, उसे वो देर तक सहलाता रहा था.

इसके बाद वो दो दिन तक, बरखा दीदी से इसी बात की शिकायत करता रहा कि, उसके जबड़े मे दर्द हो रहा है और इस बात की खैर माना रहा था कि, बरखा दीदी ने उसे अपने दाहिने हाथ का तमाचा नही मारा, वरना उसका जबड़ा ही बाहर आ गया होता.

वो तो सलीम की किस्मत अच्छी थी कि, जब उसने मेरा सर काटने की बात की थी, तभी मेहुल आ गया था. वरना बरखा दीदी तो उसकी ये बात सुनते ही अपनी आस्तीन उपर करने लगी थी. लेकिन मेहुल का गुस्सा देख कर, वो उस वक्त शांत पड़ गयी थी.

वैसे तो बहन की रक्षा करने के लिए भाई होते है. लेकिन वो एक ऐसी बहन थी, जिन्हे अपनी रक्षा के लिए किस भाई की ज़रूरत नही थी. बल्कि वो उल्टे अपने भाई की रक्षा कर सकती थी.

उनकी कठोरता उनके चेहरे और उनकी बातों से झलकती थी. लेकिन जहाँ मेरा नाम आता था, वहाँ वो बहुत ही नरम पड़ जाती थी और मुझसे बात करते समय उनकी बोली भी बहुत नरम रहती थी.

वो मुझे शिखा दीदी से कम प्यार नही करती थी. ऐसे मे उनसे विदा लेना, मेरे लिए और भी ज़्यादा मुस्किल काम था. मैं उनसे विदा लेने उनके पास आ तो गया. मगर मुझसे उनसे कुछ कहते नही बन रहा था.

वो शायद मेरी इस हालत को अची तरह से समझ रही थी. इसलिए उन ने प्यार से मेरे बलों पर हाथ फेर कर, मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

बरखा बोली “मेरे भाई, अपने आपको बिल्कुल उदास मत करो. हम जल्दी ही फिर से मिलेगे. यदि तुम हम से मिलने यहाँ ना भी आ पाए, तब भी कोई बात नही. हम लोग तुमसे मिलने वहाँ आ जाएगे. इसलिए हंसते हंसते अपने घर जाओ.”

बरखा दीदी की ये बात सुनकर, मैं मुस्कुराने की कोसिस करने लगा. लेकिन मेरे लिए अपने चेहरे पर हँसी का मुखौटा लगाना आसान काम नही था. मैं चाह कर भी मुस्कुरा नही पा रहा था.

मैं जितना भी मुस्कुराने की कोसिस कर रहा था. मेरी आँखों की नमी, उतनी ही बदती जा रही थी. अभी मैं खुद को संभालने की कोसिस मे लगा था कि, तभी किसी ने पिछे से मेरे कंधे पर हाथ रख दिया. मैने पिछे पलट कर देखा तो, ये मेरी प्यारी शिखा दीदी थी.

शिखा दीदी, जिनकी किसी खूबी को बयान करना मेरे बस मे नही था. सूरज रात को दहकना छोड़ देता था और चंद्रमा की चमक दिन मे धूमिल पड़ जाती थी. मगर शिखा दीदी तो प्यार की एक ऐसी जीती जागती गंगा थी, जो रात दिन अपने प्यार से सबको सींचती रहती थी.

शिखा दीदी की जिस चीज़ से तुलना करके, उनकी तारीफ कर सकूँ, इस लायक कोई चीज़ मुझे नज़र ही नही आती थी. उनके बारे मे मैं बस इतना कह सकता था कि, मुझे उन मे अपनी छोटी माँ का ही रूप नज़र आता था.

ये मेरी खुश-किस्मती थी की, इतने थोड़े से दिनो मे ही, मैं उनका सबसे ज़्यादा लाड़ला बन गया था. उन्हो ने एक सगे भाई की तरह ही मेरा ख़याल रहा था और मुझे एक पल के लिए भी, ये महसूस नही होने दिया था कि, मैं इस समय अपने घर मे नही हूँ. लेकिन अब मेरा उनसे विदा लेना का समय आ गया.

मेरे लिए तो बरखा दीदी से विदा लेना ही मुस्किल हो रहा था और मैं अपने आपको संभालने की कोसिस मे लगा था. ऐसे मे जब अचानक शिखा दीदी ने आकर, मेरे कंधे पर हाथ रखा तो, उन पर नज़र पड़ते ही, मेरे सबर का बाँध टूट गया और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे.

मुझे रोता देख कर, उन ने मुझे अपने गले लगा लिया और खुद भी आँसू बहाना सुरू कर दिए. लेकिन हाए रे बहन का दिल, वो खुद को तो चुप करा नही पा रही थी. मगर बार बार मुझे ना रोने के लिए समझा रही थी. उनकी इस कोसिस ने मुझे और भी ज़्यादा रुला कर रख दिया था.

बरखा दीदी हम दोनो को ही समझाने की कोसिस करती रही. लेकिन जब उनकी ये कोसिस कामयाब नही हुई तो, उन्हो ने अजय को बुला लिया. अजय के साथ साथ अमन, निशा भाभी और सीरू दीदी की चौकड़ी भी हमारे पास आ गयी.

वो सब मिल कर हमे समझाने लगे और उनके समझाने पर हम दोनो खुद को संभालने की कोसिस करने लगे. मैं अभी भी बहुत ज़्यादा भावुक था और इसी भावुकता मे बहते हुए, मैने शिखा दीदी से कहा.

मैं बोला “दीदी, यदि आप बुरा ना माने तो, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ.”

शिखा दीदी भी इस समय बहुत भावुक थी. उन्हो ने मेरी ये बात सुनी तो, अपने आपको संभालते हुए मुझसे कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया, आप मेरे लिए भाई की तरह नही, बल्कि मेरे भाई ही हो. आपकी किसी बात का बुरा लगने का सवाल ही पैदा नही होता है. आप मुझसे कोई भी बात बोल सकते है.”

शिखा दीदी की ये बात सुनकर, मैने थोड़ा गंभीर होते हुए उनसे कहा.

मैं बोला “दीदी, अज्जि ने अपने हॉस्पिटल के 7 ट्रस्टीस बनाए है. उन 7 ट्रस्टीस मे आप, निशा भाभी, अमन, बरखा दीदी, सीरू दीदी, सेलू दीदी और हेतल दीदी के नाम है. लेकिन अज्जि और आरू का नाम नही है.”

“अजय ने वो नाम क्यो नही डलवाए थे, ये तो आपको भी मालूम है. लेकिन अब तो सब कुछ सही हो गया है. क्या आपको ऐसा नही लगता कि, अब उन ट्रस्टीस मे अब ये बाकी के नाम भी शामिल हो जाना चाहिए.”

मेरी ये बात सुनकर, वहाँ खड़े सभी लोग मुझे हैरानी से देखने लगी. वही शिखा दीदी ने मेरी इस बात का जबाब मे मुझसे कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया, अभी तक मेरा ध्यान इस बात की तरफ नही गया था. लेकिन आपका कहना ठीक ही है. आप फिकर मत करो, हॉस्पिटल के ट्रस्टीस मे बाकी के नाम भी ज़रूर शामिल होगे. अब तो आप खुश है ना.”

ये बोल कर शिखा दीदी मेरी तरफ गौर से देखने लगी और बाकी सब का ध्यान भी मेरी ही तरफ था. लेकिन अभी भी मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट नही थी. मैने थोड़ा सा गंभीर होते हुए कहा.

मैं बोला “जी दीदी, मैं बहुत खुश हूँ. लेकिन अभी मैं इस से जुड़ी हुई एक बात और कहना चाहता हूँ. यदि आपको मेरी वो बात बुरी लगे तो, छोटा मूह बड़ी बात समझ कर, अपने इस छोटे भाई को माफ़ कर दीजिएगा.”

मेरी इस बात ने सबकी हैरानी को बढ़ा दिया था. लेकिन शिखा दीदी ने बड़ी ही लापरवाही से कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया, मैने आपसे कहा ना कि, मुझे आपकी कोई बात बुरी नही लगेगी. इसलिए आपको जो बोलना है, आप बेफिकर होकर बोल दीजिए.”

शिखा दीदी की इस बात को सुनने के बाद, मैने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, वो हॉस्पिटल अजय के पिताजी का सपना था और उसका नाम अजय के पिताजी के नाम पर ही रखा जाना था. लेकिन फिर अजय ने अपने पिताजी का वो सपना शेखर भैया के नाम पर कर दिया.”

“मैं ये भी अच्छी तरह से जानता हूँ कि, अजय या बाकी लोगों को इस बात से कोई परेशानी नही है. लेकिन ऐसा करने से पहले, किसी ने भी शेखर भैया की खुशी के बारे मे नही सोचा है.”

“ये हॉस्पिटल अजय के पिताजी का सपना था और इस सपने को शेखर भैया के नाम पर कर देने से, ना तो अजय के पिताजी की आत्मा को शांति मिलेगी और ना ही शेखर भैया की आत्मा को कोई खुशी होगी.”

“क्योकि जिस भाई ने अपनी बहनो की खातिर, अपना घर तक नही बसाया और जिंदगी भर, अपनी बहनों को सिर्फ़ देता ही देता रहा है. वो भाई भला अपनी बहन से, ऐसी कोई चीज़ कैसे ले सकता है, जिस पर उसका कोई हक़ ही नही है.”

अपनी इतनी बात बोलकर, मैं चुप हो गया. लेकिन मेरी इस बात को सुनकर, अजय, अमन, निशा भाभी, सीरू दीदी, सेलू, हेतल दीदी और आरू आवक से कभी मुझे तो, कभी शिखा दीदी को देख रहे थे.

मेरी इस बात से वहाँ खड़े सबको जैसे साँप सूंघ गया था. कोई किसी से कुछ नही बोल रहा था. वही शिखा दीदी के साथ साथ, अब बरखा दीदी की आँखों मे भी आँसू झिलमिलाने लगे थे.

सबकी खामोशी और शिखा दीदी, बरखा दीदी के आँसुओं को देख कर, मुझे लग रहा था कि, मैं बहुत ग़लत बात कह गया हूँ. इसलिए मैने इस बात के लिए शिखा दीदी और बरखा दीदी से माफी माँगते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, मुझे लगता है कि, मैने आपके और बरखा दीदी के दिल को दुखाने वाली बात कह दी है. लेकिन मेरे अंदर इतनी समझ नही है कि, मैं सही ग़लत को समझ सकूँ. इसलिए आप दोनो मुझे इस बात को कहने के लिए, अपना छोटा भाई समझ कर माफ़ कर दीजिए.”

इतना बोल कर मैं सर झुका कर खड़ा हो गया. तभी बरखा दीदी मेरे पास आ गयी. उनकी आँखें अब पूरी तरह आँसुओं से भीग चुकी थी. लेकिन उन्हो ने मुस्कुरा कर, मेरे बगल मे खड़े होकर, एक हाथ मेरे बाजुओं पर लाकर, मेरे कंधे को अपने कंधे से सटाते हुए, सबसे कहा.

बरखा दीदी बोली “ये मेरा सच मुच का भाई है.”

इसके आगे वो किसी से कुछ ना बोल पाई और अपने आँसू पोंच्छने लगी. तभी शिखा दीदी भी मेरे पास आ गयी और उन्हो ने एक बार फिर मुझे गले से लगा लिया. लेकिन अब उनकी आँखों मे आँसू कम और चेहरे पर मुस्कान ज़्यादा दिख रही थी.

मुझे अपने गले से लगाने के बाद, उन ने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए मुझसे कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया, बरखा सच कह रही है. आप हमारे सच मुच के भाई हो. शेखर भैया तो बड़े भाई होने की वजह से, हमारी ससुराल का पानी तक ना पीने की बात किया करते थे. ऐसे मे इस बात से, भैया की आत्मा सच मे खुश नही होगी.”

“आपकी बात से मैं भी सहमत हूँ. ये हॉस्पिटल पिताजी का सपना था और अब इस का नाम भी उन्ही के नाम पर ही रखा जाएगा. आपने तो ये बात बोल कर एक भाई का फ़र्ज़ पूरा किया है और मुझे आपको भाई समझने की ज़रूरत नही है, क्योकि आप सच मे मेरे भाई हो.”

शिखा दीदी की ये बात सुनकर सबके चेहरे पर रौनक आ गयी और अजय ने आगे बढ़ कर, मुझे अपने गले से लगा लिया. मेरी इस बात से कहीं ना, उसके दिल को भी एक सुकून सा महसूस हुआ था. जिसकी चमक उसके चेहरे पर नज़र आ रही थी.

उसकी आँखें भी इस समय भीगी हुई थी. लेकन उसके होंठों पर मुस्कुराहट थी. उसने गले मिलने के बाद, मुझसे कहा.

अजय बोला “तुम तो बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगे हो. मैने तो इस बात के बारे मे कभी इतनी गहराई से सोचा ही नही था. मेरा मकसद सिर्फ़ एक हॉस्पिटल बनाने का था और मुझे इस बात से कोई फरक नही पड़ने वाला था कि, हॉस्पिटल का नाम किसके नाम पर रखा जा रहा है.”

“लेकिन ये भी सच है कि, तुम्हारी ये बात सुनकर, दिल को एक सुकून सा मिला है. आज शिखा और बरखा की तरह, मैं भी तुमसे ये ही कहुगा कि, उन्हे तुमको भाई समझने की ज़रूरत नही है. बल्कि तुम सच मे ही उनके भाई हो.”

इतना कह कर, अजय मुझे आते रहने और फोन पर बात करते रहने का कहने लगा. अभी मेरी अजय से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल आ गया. उसे देखते ही निशा भाभी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

निशा भाभी बोली “बस कर हीरो. अब बच्चे की जान लेगा क्या.”

उनकी बात सुनकर, सीरू दीदी भी हँसने लगी और मैं भी हंसते हुए, अमन से मिलने लगा.

अमन, जो अजय का सच्चा दोस्त ही नही, बल्कि एक बहुत ही अच्छा इंसान भी था. जो अपना नाम बिना जाहिर किए ही, कदम कदम पर शिखा दीदी की मदद करता रहा था और आख़िरी मे भी अजय की बारात को शिखा दीदी के घर तक लाने मे उसी का हाथ था.

अमन ने मेरा सीधा सीधा कोई लेना देना नही था. लेकिन फिर भी उसने सिर्फ़ निक्की की वजह से, अंकल के इलाज मे हमारी बहुत मदद की थी. उसके इस उपकर का बदला चुका पाना मेरे लिए किसी भी तरह से संभव नही था.

फिर भी मैने अमन के पास आकर, उसे इस सब के लिए थॅंक्स कहना चाहा तो, उस ने मुझे आगे कुछ बोलने से रोकते हुए कहा.

अमन बोला “तुमको कुछ भी कहने की ज़रूरत नही है. अब तुम मेरे परिवार का एक हिस्सा बन चुके हो और परिवार मे किसी बात के लिए एक दूसरे को थॅंक्स नही जाता है. वैसे तो तुम खुद बहुत समझदार हो. फिर भी मैं तुमसे एक बात ज़रूर कहना चाहूगा.”

“तुम हमेशा अपनी मोम का ख़याल रखना और कभी अपनी किसी बात से उनका दिल मत दुखाना. आज तुम्हे जो इतने लोगों का प्यार मिल रहा है, वो सिर्फ़ उनके दिए संस्कारों की वजह से मिल रहा है. यदि तुमने भूल से भी उनका दिल दुखाया तो, इसके लिए भगवान भी तुमको माफ़ नही करेगा.”

इतना कह कर अमन चुप हो गया. मगर उसकी इन बातों ने मुझे सोच मे डाल दिया था. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, छोटी माँ ने एक ही मुलाकात मे अमन पर ऐसा क्या जादू कर दिया है कि, वो उनकी तारीफ करते नही थकता है.

मैं अभी अमन की इन्ही बातों मे उलझा हुआ था कि, तभी अजय ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए, अमन की बात के समर्थन मे कहा.

अजय बोला “तुमको शायद अमन की बात समझ मे नही आई. क्योकि उसकी कम शब्दों मे गहरी बात करने की आदत है. लेकिन अमन की बातों मे जिंदगी की कड़वी सच्चाई छुपि होती है. मैं तुमको समझाता हूँ कि, अमन तुमसे क्या कहना चाहता है.”

“तुम जानते हो कि, मैने भी अपनी माँ को उसी उमर मे खोया था, जिस उमर मे तुमने अपनी माँ को खोया था. लेकिन तुम खुश-किस्मत निकले कि, तुमने अपनी माँ को खो देने के बाद भी, उन्हे अपनी छोटी माँ के रूप मे दोबारा वापस पा लिया.”

“तुम्हारी छोटी माँ एक ऐसा कोहिनूर है. जिसके मुक़ाबले मे मेरी सारी दौलत की हैसियत ऐसी है, जैसी समुंदर के सामने पानी की एक बूँद की होती है. आज भले ही मेरी गिनती देश के सबसे अमीर आदमियों मे होती हो. लेकिन फिर भी मैं तुम्हारे मुक़ाबले मे कॅंगाल ही हूँ.”

“क्योकि मैं तुम्हारी तरह खुश-किस्मत नही हूँ. मैं अपनी माँ को खो देने के बाद, उसे दोबारा कभी नही पा सका और आज भी अपनी माँ का ममता भरा चेहरा याद करके रोता हूँ.”

ये कहते कहते अजय की आँखें छलक गयी. शायद उसे अपनी माँ की याद आ गयी थी. वो अभी अपनी आँखों को सॉफ करने मे लगा था. तभी आरू उसके सामने आकर खड़ी हो गयी और उसे गौर से देखने लगी.

अजय की नज़र जैसे ही आरू पर पड़ी. उसने आरू को पकड़ कर अपने बगल मे खड़ा करते हुए मुझसे कहा.

अजय बोला “ये लो, मेरी माँ भी आ गयी और ये जानने की कोसिस कर रही है कि, मेरी आँखों मे आँसू क्यों है. अब इसे कौन समझाए कि, जब किसी को विदा करते है तो, अपनी आँखों मे झूठ मूठ के आँसू लाने ही पड़ते है.”

ये कह कर अजय हँसने लगा. अजय की आरू को बहलाने वाली इस हरकत को देख कर, मेरी और अमन की भी हँसी छूट गयी. मगर आरू तो, अजय की सारी बातें पहले ही सुन चुकी थी. इसलिए वो अजय से इस बात को लेकर झगड़ा करने लगी.

उन दोनो की ये नोक झोक देख कर, मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था. लेकिन अब किसी भी समय मेरी फ्लाइट की घोषणा हो सकती थी. इसलिए मैं अजय और अमन से विदा लेकर निक्की के पास आ गया.

निक्की और प्रिया दोनो ही मोहिनी आंटी से, कुछ दूरी पर खड़ी थी और हम सबका मिलना जुलना देख रही थी. लेकिन मैं जैसे ही निक्की के सामने जाकर खड़ा हुआ तो, उसने मुझको देखते ही, सीरू दीदी वाली हरकत को दोहराते हुए, अपनी आँखों से गंगा जमुना बहाना सुरू कर दिया.
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09-11-2020, 11:52 AM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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निक्की एक ऐसी लड़की थी, जिसकी वजह से, मेरा मुंबई का मुस्किल सफ़र भी, इतना आसान हो गया था और मुझे इतने सारे लोगों का प्यार मिला था. वो एक सच्चे दोस्त की तरह, पहले दिन से आज तक, हर कदम, हर बात पर मेरा साथ निभाती चली आ रही थी.

वो एक ऐसी लड़की थी, जिसके चेहरे को देख कर, मेरे मुंबई मे गुज़ारे हर दिन की सुरुआत होती थी और जिसको मेरी इस बात की खबर रहती थी कि, मैं कब, कहाँ, किसके साथ हूँ और क्या कर रहा हूँ.

एक तरह से वो कीर्ति की हम-शकल होने के साथ साथ, उसकी तरह ही मेरा ख़याल भी रख रही थी. मेरी वजह से ही वो अपने स्कूल की छुट्टियों ख़तम होने के बाद भी वापस नही गयी थी.

उसका गुस्सा भी कीर्ति से कुछ कम नही था. प्रिया ने मुझे बताया था कि, निक्की बहुत गुस्से वाली है और मैं खुद भी उसके इस गुस्से का दो तीन बार शिकार बन चुका था. इसलिए मैं उसके गुस्से वाले रूप को भी अच्छे से जानता था.

मैं ये भी अच्छी तरह से जानता था कि, मेरे यहाँ से जाने पर, सबसे ज़्यादा मेरी कमी, निक्की को ही अखरेगी. लेकिन इस बात का तो, मुझे भी अंदाज़ा नही था कि, मेरे जाने पर वो इस तरह से आँसू बहाएगी.

प्रिया उसे खुद को सभालने के लिए कह रही थी. मगर वो खुद को संभाल नही पा रही थी. उसको इस तरह आँसू बहते देख कर, मेरे लिए भी अपने आँसू रोक पाना मुस्किल सा हो गया था.

मगर मैं जाने से पहले उसकी आँखों मे आँसू नही, मुस्कुराहट देखना चाहता था. इसलिए मैने खुद को संभाला और फिर उसका हाथ पकड़ कर अपने हाथ मे लेते हुए उस से कहा.

मैं बोला “मैं तो सोच रहा था कि, मेरे जाने पर प्रिया रोएगी और तुम उसको सम्भालोगी. लेकिन यहाँ तो तुमने उल्टी गंगा बहा दी.”

मेरी ये बात सुनते ही, निक्की का रोना रुक गया और वो हैरानी से इस तरह मेरी तरफ देखने लगी, जैसे उसके कानो ने कोई ग़लत बात सुन ली हो. मैने उसको अपनी तरफ हैरानी देखते देख कर, मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “इसमे हैरान होने वाली बात नही है. तुमने जो सुना है, वो सच है.”

मेरी ये बात सुनते निक्की के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. लेकिन अब प्रिया हैरान होकर गयी. उसे समझ नही आ रहा था कि, मैने ऐसा क्या बोल दिया, जो निक्की का रोना रुक गया और वो रोते रोते मुस्कुराने लगी.

इधर प्रिया हैरानी से हमे देख रही थी और उधर मैने अपनी अधूरी बात को पूरा करते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला “तुमको रोना है तो, मेरे सामने जी भर के रो लो. लेकिन मेरे जाने के बाद बिल्कुल मत रोना. क्योकि मेरे जाने के बाद, तुम्हे उसके आँसू पोंछना पड़ेंगे, जो अभी मुझे मुस्कुरा कर विदा करने वाली है.”

मेरी इस बात का मतलब प्रिया और निक्की दोनो समझ गयी थी. इसलिए मेरी इस बात पर निक्की की मुस्कुराहट गहरी हो गयी और प्रिया ने मुझ पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

प्रिया बोली “हे, मैं कोई नाटक नही कर रही हूँ. जब मेरे आँसू आ ही नही रहे है तो, मैं सबकी तरह आँसू बहाने का नाटक क्यो करूँ.”

प्रिया की बात सुनकर, मैने भोलेपन का नाटक करते हुए कहा.

मैं बोला “तुम कहना क्या चाहती हो. कहीं तुम ये तो नही कह रही हो कि, निक्की आँसू बहाने का नाटक कर रही थी.”

मेरी ये बात सुनते ही, निक्की प्रिया की तरफ देखने लगी और प्रिया ने मुझ पर भड़कते हुए कहा.

प्रिया बोली “हे, तुम हम दोनो के बीच मे झगड़ा लगाने की कोसिस मत करो और सीधे तरह से ये बताओ कि, तुमने निक्की से ऐसा क्या कहा था, जिस से इसका रोना रुक गया और ये रोते रोते मुस्कुराने लगी.”

प्रिया की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “मैने तो जो कुछ भी कहा, तुम्हारे सामने ही कहा है. अब मुझे क्या पता कि, निक्की मेरी बात सुनकर, रोते रोते क्यो मुस्कुराने लगी.”

प्रिया बोली “ज़्यादा भोले बनने की कोसिस मत करो. तुमने मुस्कुराने वाली कोई बात नही की थी. लेकिन तुम्हारी बात को सुनकर, निक्की का रोना रुक गया और उसने तुम्हारी तरफ देखा. जिसके बाद तुमने उस से कहा कि, तुमने जो सुना है, वो सच है.”

“इस बात का सॉफ मतलब है कि, तुम दोनो ने किसी कोड वर्ड मे बात की है और मैं तुम्हारी उस बात को समझ नही पाई हूँ. अब सीधे तरह से मुझे ये बताओ कि, तुम दोनो मे क्या कोड वर्ड मे क्या बात हुई है.”

मैं बोला “अरे तुम तो बेकार मे शक़ कर रही हो. मेरी बात का मतलब वो ही था, जो तुमने सुना है. हम दोनो के बीच मे किसी कोड वर्ड मे कोई बात नही हुई है. तुम चाहो तो, निक्की से पुछ कर देख लो.”

लेकिन प्रिया ने मेरी इस बात पर अपना मूह फूला कर, मुझसे कहा.

प्रिया बोली “नही, अब मुझे किसी से कुछ नही पुच्छना. तुम दोनो मुझे गैर समझते हो तो, मैं क्यो तुम्हारी बातों के बीच मे अपनी टाँग अड़ाऊँ.”

ये कह कर प्रिया हमारी तरफ पीठ कर के खड़ी हो गयी. प्रिया को इस तरह नाराज़ होते देख, निक्की ने अपना चेहरा सॉफ किया और फिर प्रिया का मूह वापस हमारी तरफ घुमा कर उस से कहा.

निक्की बोली “तू जैसा सोच रही है. ऐसी कोई बात नही है. इनकी बात का मतलब सच मे वो ही था, जो इन्हो ने कहा था. मेरा रोना तो इनके उस बात को बोलने के तरीके को सुनकर रुक गया था.”

प्रिया अभी भी निक्की की इस बात का मतलब नही समझ पाई थी. लेकिन इस से पहले कि वो कुछ बोल पाती, मैने निक्की को टोकते हुए कहा.

मैं बोला “अब ये तो तुम ग़लत कर रही हो. तुमने कहा था कि, मैं जिस दिन ऐसा करना बंद कर दूँगा, तुम भी उस दिन से ऐसा करना बंद कर दोगि.”

इस से पहले की निक्की मेरी इस बात के जबाब मे मुझसे कुछ बोल पाती, प्रिया ने हम दोनो पर ही भड़कते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम दोनो मिल कर, मुझे बेवकूफ़ बना रहे हो. मेरे सामने ही कोड वर्ड मे बात कर रहे हो और मुझसे कहते हो कि, ऐसा कुछ नही है.”

प्रिया की इस बात पर निक्की ने मुस्कुरा कर उस से लिपटते हुए कहा.

निक्की बोली “अरे तू अभी भी ग़लत सोच रही है. असल मे बात ये है कि, हम दोनो एक दूसरे को अभी तक आप कह कर बात करते थे. लेकिन अभी इनके मूह से मेरे लिए तुम सुनकर, मैं चौक गयी और मेरा रोना रुक गया था. अब तो तेरी समझ मे इनकी बात आ गयी ना.”

निक्की की ये बात सुनते ही प्रिया का गुस्सा शांत हो गया और वो भी मुस्कुराने लगी. लेकिन मैने अपनी शिकायत को फिर से निक्की के सामने दोहराते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया तो अब बात को समझ गयी है. लेकिन लगता है कि, अभी तक तुम्हारी समझ मे मेरी बात नही आई है. तभी तुम अभी तक इनके इनके कर रही हो.”

मेरी इस बात पर निक्की ने मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “मेरी समझ मे भी बात आ गयी है. लेकिन अब मेरे मूह से ये ही निकल रहा है तो, मैं क्या कर सकती हूँ.”

मैं बोला “ये तो ग़लत बात है. तुमने कहा था कि, जिस दिन मैं तुमको तुम कहने लगुगा, तुम भी मुझे उस दिन से तुम कहना सुरू कर दोगि.”

मेरी बात सुनकर, निक्की कुछ उलझन सी महसूस कर रही थी. उसे उलझन मे पड़े देख कर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “अब दोस्ती की है तो, निभानी ही पड़ेगी.”

प्रिया की बात सुनकर, निक्की ने उसकी पीठ पर प्यार से एक मुक्का मारा और फिर मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

निक्की बोली “ओके ओके, आज से मैं तुमको, तुम ही बोलुगी. अब तो खुश हो ना.”

मैं बोला “हां, अब मैं खुश हूँ. ऐसा लग रहा है, जैसे आज दिल से कोई बोझ उतर गया हो.”

मेरी बात सुनकर प्रिया और निक्की दोनो हँसने लगी. इसके बाद निक्की ने टाइम देखा तो 5 बजने वाला था. इसलिए वो हम लोगों को बात करता हुआ छोड़ कर, फ्लाइट का पता करने चली गयी. निक्की के जाने के बाद प्रिया ने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “तुमने अपने जाने के पहले, निक्की के साथ अपने इस फ़ासले को ख़तम करके बहुत अच्छा किया है. मुझे भी ये देख कर बहुत खुशी हो रही है. निक्की जैसी दोस्त बड़े किस्मत वालो को ही मिलती है.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैने भी मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “तुम्हारी ये बात तो सही है. लेकिन तुम्हारा खुद के बारे मे क्या ख़याल है.”

मेरी ये बात सुनकर, प्रिया ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा.

प्रिया बोली
“कोई तो रोक लो उसको, किसी बहाने से.
निकल ना जाए मेरी जान, उसके जाने से.

बड़ा नादान है वो, उसको तो ये खबर ही नही.
कि उसके बिन मेरी, जिंदगी का कोई सफ़र ही नही.
भटक ना जाउ कहीं मैं, उसके हाथ छुड़ाने से.
कोई तो रोक लो उसको, किसी बहाने से.

ये मानती हूँ कि, उसको मुझसे प्यार नही.
लेकिन बिन उसके, मेरे दिल को कही करार नही.
चलती है साँस मेरी, उसके मुस्कुराने से.
कोई तो रोक लो उसको, किसी बहाने से.

चला गया तो, वो फिर लौट कर ना आएगा.
कि मुझको भूल कर वो, किसी और का हो जाएगा.
मैं मिट ज़ाउन्गी उसके, इस तरह भूलने से.
कोई तो रोक लो उसको, किसी बहाने से.

कोई तो रोक लो उसको, किसी बहाने से.
निकल ना जाए मेरी जान, उसके जाने से.”

इतना बोल कर प्रिया चुप हो गयी और मैं उसकी इस रचना को सुन कर गहरी सोच मे पड़ गया. उसकी इस रचना की हर एक पंक्ति मे, उसके दिल का दर्द, उसकी बेबसी सॉफ नज़र आ रहा थी और उसकी इस बेबसी ने मुझे भी बेबस करके रख दिया था.

मैं उसके इस दर्द को महसूस तो कर सकता था. लेकिन उसके इस दर्द को दूर करने के लिए कुछ कर नही सकता था. मुझसे तो, उसको दिलासा तक देते नही बन रहा था. मैं खामोशी से उसके पास खड़ा रह गया.

लेकिन अब मेरे चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो चुकी थी और उसकी जगह मेरे चेहरे पर मेरी बेबसी सॉफ झलक रही थी. मुझे इस तरह मायूस देख कर, प्रिया ने थोड़ा संजीदा होते हुए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “क्या हुआ, क्या ये रचना तुमको पसंद नही आई.”

प्रिया की इस बात पर मैने हँसने की नाकाम कोसिस करते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “नही, ऐसी बात नही है. लेकिन वो क्या है कि, मुझे ये शेर और शायरी बिल्कुल भी समझ मे नही आती है.”

मेरी इस बात पर प्रिया ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “लेकिन तुम तो कहते थे कि, तुम्हे तृप्ति की हर रचना समझ मे आ जाती है. इसीलिए तो मैने तुम्हे तृप्ति की ही रचना पढ़ कर सुनाई थी.”

प्रिया की इस बात को सुनकर, मैं हैरानी से प्रिया की तरफ देखने लगा. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, प्रिया मुझसे सच कह रही है या फिर मेरी उदासी को देख कर, मेरा दिल बहलाने के लिए, अब बात को बदलने की कोसिस कर रही है.

मुझे इस तरह सोच मे पड़ा देख कर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए, मेरे हाथ मे आज का अख़बार थमा दिया. मैने अख़बार को देखा तो, ये सच मे ही तृप्ति की ताजी रचना थी. जो आज के अख़बार मे छपी थी.

उसकी इस रचना का शीर्षक कोई तो रोक लो था. मैं एक बार फिर तृप्ति की इस रचना को पढ़ने लगा और मुझे उसकी रचना मे एक बार फिर प्रिया का चेहरा नज़र आने लगा. तृप्ति की इस रचना मे प्रिया के दिल की, वो बात छुपि हुई थी. जो प्रिया चाह कर भी मुझसे कह नही सकती थी.

तृप्ति की रचनाओं से मेरा एक रिश्ता सा जुड़ने लगा था. उसकी रचनाओं मे मुझे कभी कीर्ति तो, कभी प्रिया का चेहरा नज़र आता था. ना जाने वो कौन थी, कैसी थी. मगर वो जो भी थी, उसके दिल मे प्यार की एक गहरी तड़प थी. जो उसकी रचनाओं मे सॉफ नज़र आती थी.

मैं अभी तृप्ति की रचना मे खोया हुआ था कि, तभी प्रिया ने मुझे टोकते हुए कहा.

प्रिया बोली “अब ज़्यादा सोचो मत, तुम्हे इसकी रचना पसंद थी और आज तुम जल्दी जल्दी मे अख़बार पढ़ नही पाए थे. इसलिए मैं इसे तुम्हारे लिए ले आई थी. लेकिन मुझे तो ये तृप्ति कोई पागल ही लगती है. पता नही, क्या क्या, लिखती रहती है.”

प्रिया की इस बात को सुनकर, मैं हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा. मैं ये समझने की कोसिस कर रहा था कि, क्या प्रिया को सच मे तृप्ति का रचना समझ मे नही आई है, जो वो मुझसे तृप्ति के बारे मे इस तरह से बोल रही है.

मुझे इस तरफ से खुद को घूरता देख कर, प्रिया ने अपनी कही बात पर, मुझे सफाई हुए कहा.

प्रिया बोलीी “अब तुम मुझे ऐसा क्यो देख रहे हो. मैं तुम्हारी तृप्ति को नही, बल्कि इस अख़बार वाली तृप्ति को पागल कह रही हूँ. तुम अपनी तृप्ति के उपर इस बात को मत ले जाना.”

प्रिया की इस बात को सुनकर, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और मैने उस से कहा.

मैं बोला “नही, मैं ऐसा कुछ नही समझ रहा हूँ. मैं तो ये सोच रहा था कि, तुम्हे इतना अच्छा लिखने वाली लड़की पागल क्यो लगती है.”

प्रिया बोली “उसको पागल नही तो क्या बोलू. तुमने देखा नही है, किसी भी बात पर कितना लंबा लिख देती है. जो भी कहना हो, दो चार लाइन की शायरी मे भी तो कह सकती थी.”

प्रिया की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “अच्छा चलो, मैं मान लेता हूँ कि, तृप्ति पागल है. लेकिन यदि तुमको यदि अपनी बात शायरी मे कहना होती तो, तब तुम भी तो ऐसे ही कहती ना.”

प्रिया बोली “ना, मुझे इतनी लंबी शेर शायरी पसंद नही है और रोने धोने वाली शायरी तो बिल्कुल भी पसंद नही है. यदि मुझे शायरी मे रोने धोने वाली बात भी कहना होती तो, मैं कुछ ऐसी कहती.”
“टूट कर चाहा जिसे, वो मेरा बन पाया नही.
दिल को मेरे, उसके सिवा, कोई दूसरा भाया नही.
प्यार के इस सौदे मे, हम दोनो बराबर ही रहे.
उसने कुछ खोया नही और मैने कुछ पाया नही.”

ये कह कर, प्रिया मुझे देख कर मुस्कुराने लगी. उसने एक बार फिर बात ही बात मे अपने दिल की बात कह दी थी. लेकिन अपनी कहीं बात पर मुस्कुरा कर, वो खुद अपने दर्द का मज़ाक बना रही थी.

ना जाने वो किस मिट्टी की बनी लड़की थी. जिसके अंदर इतना दर्द होने के बाद भी, वो इस तरह से मुस्कुरा लेती थी. लेकिन मैं उसकी तरह का नही था और उसकी इस बात को सुनने के बाद, ना चाहते हुए भी मेरी आँखें आँसुओं से भीग गयी.

मेरी आँखों मे आँसू देखते ही प्रिया के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गयी और उसने मेरे हाथ को थामते हुए कहा.

प्रिया बोली “प्लीज़ अपने आँसू रोको, वरना मैं खुद को संभाल नही पाउन्गी. मेरे दर्द को तुम महसूस करते हो, मेरे लिए इस से बाद कर दुनिया की कोई खुशी नही है. मैं इसी खुशी के साथ, हंसते हंसते तुम्हे यहा से विदा करना चाहती हू. मेरी ये खुशी मुझसे मत छीनो.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मेरे लिए अपने आँसू रोक पाना और भी ज़्यादा मुस्किल हो गया था. लेकिन इस समय प्रिया का दर्द मेरे दर्द से कहीं ज़्यादा था और उसके इस दर्द ने मुझे अपने आपको संभालने पर मजबूर कर दिया.

मगर मैं जाते जाते प्रिया को समझाने की, एक आख़िरी कोसिस और करना चाहता था. इसलिए मैने अपने आँसुओं को पोंच्छ कर, प्रिया पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा

मैं बोला “तुम मेरी बात को समझती क्यो नही हो. मैं तुम्हारी कोई खुशी, नही छीन रहा हूँ और ना ही मेरा तुमसे कोई रिश्ता है, जो मैं तुम्हारे लिए आँसू बहाउन्गा. मैं खुशी खुशी अपनी दुनिया मे वापस जा रहा हूँ और अब कभी यहाँ वापस नही आउगा. इसलिए तुम्हारे लिए बेहतर ये ही होगा कि, तुम भी अपने इस प्यार के पागलपन को भूल कर, अपनी नयी जिंदगी सुरू करो और मुझको हमेशा हमेशा के लिए भूल जाओ. इसी मे तुम्हारी भलाई है.”

ये बात कहते कहते एक बार फिर मेरी आँखें छलक गयी और मैं अपने चेहरे को सॉफ करने लगा. मेरी इस बात के जबाब मे प्रिया ने प्रिया ने फिर एक बार फीकी सी मुस्कुराहट के साथ कहा.

प्रिया बोली
“मेरी रूह मे ना समाए होते, तो भूल जाती तुम्हे.
इतना करीब ना आए होते, तो भूल जाती तुम्हे.
ये कहते हुए कि मेरा, ताल्लुक़ नही तुमसे कोई.
तुम्हारी आँख मे आँसू ना आए होते, तो भूल जाती तुम्हे.”

उसके इस पागलपन को देख कर, मेरी आँखें पूरी तरह आँसुओं से भीग चुकी थी. मैं अब अपने आपको ना रोक सका और मैने आगे बढ़ कर प्रिया को अपने गले से लगा लिया. शायद उसे भी इसी पल का इंतजार था और मेरे उसे गले लगते ही, उसने भी मुझे अपनी बाहों मे जाकड़ लिया.

इस समय मुझे किसी की किसी बात की कोई परवाह नही थी और मैं बस प्रिया से लिपट कर जी भर कर रोना चाहता था. मुझे इस बात तक का ख़याल नही था कि, इस समय मैं कहाँ हूँ और मेरे साथ यहाँ पर कौन कौन है.

लेकिन शायद, निक्की की नज़र हम पर ही टिकी हुई थी. इसलिए जैसे ही मैने प्रिया को गले लगाया. वैसे ही थोड़ी देर बाद, निक्की हमारे पास आ गयी और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

निक्की बोली “बस, अब बहुत गले मिलना हो गया है. यहाँ हम लोगों के अलावा और भी बहुत से लोग है.”

निक्की की बात सुनते ही, मैने प्रिया को छोड़ा और अपने चेहरे को सॉफ करते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला “अब तुम ही इसको कुछ समझाओ. ये तो मेरी कोई बात समझने को तैयार ही नही है.”

मेरी इस बात के जबाब मे निक्की ने बड़ी ही संजीदगी से कहा.

निक्की बोली “कुछ बातें वक्त के हाथों पर ही छोड़ देना सही रहता है. जब सही समय आएगा तो, ये खुद ही सब कुछ समझ जाएगी. इसलिए तुम इसकी बात की ज़रा भी फिकर मत करो. यहाँ पर इसका ख़याल रखने के लिए मैं इसके साथ हूँ.”

अभी मेरी निक्की से बात चल ही रही थी कि, तभी हमारी फ्लाइट की घोषणा हो गयी. मैने पिछे पलट कर सबकी तरफ देखा तो, मुझे कोई भी नज़र नही आया. मैने हैरान होते हुए, निक्की से कहा.

मैं बोला “ये सब अचानक कहाँ गायब हो गये है.”

मेरी बात सुनकर, निक्की ने मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “सीरू दीदी जिंदाबाद, उनके लिए तो पूरा एरपोर्ट भी खाली कराना, कोई बड़ी बात नही है.”

निक्की की बात सुनकर, मैं ये तो समझ गया कि, सीरू दीदी ने फिर अपना कोई दिमाग़ चलाया है. इसलिए मैने हैरान होते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला “मैं कुछ समझा नही, सीरू दीदी ने क्या और क्यो किया.”

मेरी इस बात पर निक्की ने मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “ये सब उन्हो ने मेरे कहने पर किया है. मैं चाहती थी कि, तुम दोनो सुकून से मिल सको. इसलिए मैने सीरू दीदी से सबको यहाँ से गायब करने को कहा और उन्हो ने पालक झपकते ही सबको यहाँ से गायब कर दिया.”

निक्की की बात सुनकर, मेरी भी हँसी छूट गयी. तभी फ्लाइट की घोषणा सुन कर, बाकी सब भी हमारे पास वापस आने लगे. सबको आते देख कर, मैने उदास मन से प्रिया से कहा.

मैं बोला “मेरा फ्लाइट पकड़ने का समय हो गया और अब मुझे जाना होगा. लेकिन तुम अपनी तबीयत को लेकर ज़रा भी लापरवाही मत करना और अपनी तबीयत का पूरा ख़याल रखना.”

मेरी बात के जबाब मे प्रिया ने भी मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “यदि तुम यहाँ से ऐसे मूह लटका कर जाओगे तो, ज़रूर मेरी तबीयत खराब हो जाएगी. यदि तुम मेरी तबीयत को अच्छा देखना चाहते हो तो, हंसते हंसते यहाँ से जाओ.”

प्रिया की बात सुनकर, मैं मुस्कुराने की कोसिस करने लगा. लेकिन ऐसे समय मे मेरे लिए रोने से कहीं ज़्यादा मुश्किल काम मुस्कुराना था. लेकिन फिर भी मैने मुस्कुराते हुए, प्रिया की बात की हामी भर दी.

तभी सब मेरे पास आ गये और मैं सबसे एक बार फिर गले मिल कर विदा लेने लगा. मैं जिस से भी मिलता, वो मुझे आते रहने और अपना ख़याल रखने के लिए कह रहा था. सब से विदा लेने के बाद हम अपनी फ्लाइट की तरफ बढ़ गये.

लेकिन मैं जाते जाते अचानक मुझे ऐसा लगा, जैसे की मैं कुछ भूल गया हूँ. ये ख़याल मेरे दिमाग़ मे आते ही, मैं जाते जाते रुक गया और वापस प्रिया के पास आने लगा.

सब मेरी इस हरकत को हैरानी से देखने लगे. लेकिन मैं अपनी जेब मे यहाँ वहाँ कुछ तलाश करते वापस प्रिया के पास आया और उस से कहा.

मैं बोला “मुझे लगता है कि, मैं कोई ज़रूरी चीज़ भूल गया हूँ.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया कुछ सोच मे पड़ गयी. लेकिन निक्की ने फ़ौरन कहा.

निक्की बोली “हां, वो सीरू दीदी लोगों के गिफ्ट देना था. वो हम घर मे ही भूल आए है.”

निक्की की बात सुनकर, मैने कहा.

मैं बोला “नही, वो नही, गिफ्ट का तो प्रिया ने मुझसे कहा था कि, वो खुद जाकर सीरू दीदी लोगों को ये गिफ्ट देकर आएगी. मुझे लगता है कि, मैं कुछ और भूल गया हूँ.”

मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “तुम इस बात को लेकर परेशान मत हो. मैं घर जाकर, तुम्हारे कमरे मे एक बार फिर से देख लूगी. यदि उधर कुछ मिलता है तो, मैं अपने पास संभाल कर रख लुगी. अब तुम बेफिकर होकर अपने घर जाओ.”

निक्की ने भी प्रिया की बात मे हां मे हां मिलाई. लेकिन मुझे अभी भी ऐसा ही महसूस हो रहा था, जैसे कि मैं अपनी कोई बहुत ही कीमती चीज़ भूल कर जा रहा हूँ. मगर दिमाग़ पर बहुत ज़ोर देने के बाद भी, मुझे याद नही आ रही थी कि, मैं क्या भूल कर जा रहा हूँ.

इसी उलझन के साथ मैं वापस अपनी फ्लाइट की तरफ जाने लगा. मैं जाते जाते भी सबको पलट पलट कर देख रहा था. जहाँ हमारे जाने से सबकी आँखों मे नमी थी, वही प्रिया के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कुराहट थी.

ना जाने कैसा पत्थर दिल था उसका, जो उसने अपनी आँख से एक आँसू भी नही टपकने दिया. लेकिन उसकी इस मुस्कुराहट के पिछे छुपे दर्द को मैं अच्छी तरह से समझ रहा था. मैं जानता था कि, मेरे जाने के बाद, उसका क्या हाल होने वाला है. इस बात को सोचते ही, उसकी मुस्कुराहट को देख, मेरे आँसू निकल आए.

मैं उसकी इसी दर्द भरी मुस्कान को देखते देखते, उसकी आँखों से ओझल हो गया और अपनी फ्लाइट पर आकर बैठ गया. लेकिन अभी भी उसकी ये मुस्कान मुझे दर्द दे रही थी और मैने अपनी सीट पर आते ही, फफक कर रोना सुरू कर दिया.

मुझे रोते देख कर, मोहिनी आंटी मुझे समझाने लगी. मैं एक ऐसा अनोखा बंदा था. जो अपने घर से यहाँ आते समय तो रोया ही था और अब यहाँ से अपने घर वापस जाते समय भी रो रहा था.

मेरी आँखों मे शिखा दीदी से लेकर नेहा तक, हर किसी का चेहरा घूम रहा था. लेकिन जो चेहरा मुझे सबसे ज़्यादा दर्द दे रहा था, वो प्रिया का चेहरा था. क्योकि सबने अपने आँसू और अपने दर्द को मेरे सामने जाहिर कर दिया था.

लेकिन प्रिया किसी पत्थर के बुत की तरह, मेरे सामने हर पल सिर्फ़ मुस्कुराती रही थी. उसकी इस समय बिल्कुल वो ही हालत थी, जो मेरे घर से निकलते समय कीर्ति की हालत थी. लेकिन इसके बाद भी दोनो की हालत मे बहुत फरक था.

क्योकि कीर्ति को मुझसे दूर होते समय इस बात की तसल्ली थी कि, मैं कुछ दिन बाद, उसके पास वापस आ जाउन्गा. लेकिन प्रिया मुझसे दूर होते समय, ये नही जानती थी कि, अब इसके बाद वो मुझे, फिर से दोबारा कब देख पाएगी.

शायद दोनो के बीच के इसी फरक ने, प्रिया के मेरे सामने ना रोने के इरादे को इतना ज़्यादा मजबूत बना दिया था कि, वो मेरे सामने किसी पत्थर के बुत की तरह, हर पल सिर्फ़ मुस्कुराती रही थी.

लेकिन अब उसकी यही मुस्कुराहट मुझे बहुत ज़्यादा दर्द पहुचा रही थी. आज जितना दर्द लेकर, मैं अपने घर वापस जा रहा था. इतना दर्द तो मुझे अपने घर से दूर होते हुए भी महसूस नही हुआ था.
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09-11-2020, 11:53 AM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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इस दर्द के साथ मुझे पता ही नही चला कि, कब मेरी फ्लाइट ने उड़ान भरना सुरू कर दिया और कब उसकी उड़ान ख़तम भी हो गयी. मुझे इस बात का होश तब आया, जब मोहिनी आंटी ने मुझे हिलाकर, मुझसे फ्लाइट से नीचे उतरने को कहा.

मोहिनी आंटी की बात सुनकर, मैने अपने आपको संभाला और उनके साथ प्लेन से नीचे उतर आया. एरपोर्ट टर्मिनल मे अपना समान लेने के बाद, हम वेटिंग लाउंज की तरफ बढ़ गये.

छोटी माँ हम लोगों को लेने आने वाली थी. मैं उदास मन से, वेटिंग लाउंज की तरफ, उनको यहाँ वहाँ देखने लगा. तभी मेरी नज़र हमे आते देख कर, हाथ हिलाती अमि निमी पर पड़ी और उनको देखते ही मेरे चेहरे से, उदासी के बादल ऐसे छन्ट गये, जैसे की सूरज के चमकते ही, आसमान से काले बदल छन्ट जाते है.

उन दोनो को देखते ही, मेरे दिल मे खुशी की एक लहर दौड़ गयी. मैं मुस्कुराते हुए, उनकी तरफ बढ़ने लगा और उन दोनो ने भी मेरी तरफ दौड़ लगा दी. उनके पास आते ही मैने नीचे बैठ कर गले से लगा लिया.

मैं घुटनो के बल बैठे दोनो को गले लगाए हुआ था. अमि तो मुझसे गले मिल कर अपनी खुशी जता रही थी. लेकिन निमी की तो खुशी का ठिकाना ही नही था. वो मेरे घुटने पर पैर रख कर, मेरे कंधे पर चढ़ने की कोसिस कर रही थी.

तभी मेहुल, अंकल, मोहिनी आंटी और नितिका भी हमारे पास आ गये. अंकल ने प्यार से अमि निमी के सर पर हाथ फेरा तो, अमि दादी अम्मा बन कर, उनके ऑपरेशन के बारे मे सवाल करने लगी.

मगर निमी इन सब बातों से बेफिकर, मुझसे झामा झपटी करने मे लगी थी. मोहिनी आंटी और नितिका निमी की हरकतों का मज़ा ले रही थी. लेकिन मेहुल ने मुझ टोकते हुए कहा.

मेहुल बोला “तेरा तो, अभी भी घर जाने का मन नही दिख रहा है. लेकिन अब मुझसे एक पल के लिए भी घर से दूर रहते नही बन रहा है. इसलिए अब तू इनके साथ ये लाड करना बंद कर और जल्दी से घर के लिए चल.”

मेहुल की ये बात सुनकर, मैने उसकी तरफ घूर कर देखा, लेकिन उसने मेरी तरफ ध्यान दिए बिना, अमि से कहा.

मेहुल बोला “तुम दोनो यहाँ किसके साथ आई हो और यहाँ अकेली क्यो हो.”

मेहुल की इस बात के जबाब मे अमि ने कहा.

अमि बोली “हम दीदी के साथ आए है. उनका कोई ज़रूरी कॉल आ गया था, इसलिए वो हमे यहाँ खड़ा करके बात करते करते बाहर निकल गयी.”

अमि की इस बात से, मेहुल को लगा कि, हमे लेने कीर्ति आई है. इसलिए उसने फ़ौरन अपना समान पकड़ा और हम लोगों के चलने का इंतजार किए बिना ही, बाहर की तरफ बढ़ गया.

मेहुल की घर पहुचने की बेसब्री को देख कर, मोहिनी आंटी हँसने लगी और मुझसे जल्दी घर चलने को कहने लगी. उनकी की इस बात को सुनकर, मैने अमि निमी से आगे कोई सवाल नही किया और फिर हम सबके साथ बाहर के लिए चल पड़ा.

लेकिन अभी हम बाहर निकल भी नही पाए थे कि, तभी मेहुल तेज़ी से वापस हमारे पास आते दिखाई दिया. उसने आते ही, अपना समान मुझे पकड़ाया और टाय्लेट जाने की बात बोल कर, एक बॅग अपने साथ लेकर चला गया.

उसकी इस हरकत को देख कर, सबके साथ साथ मैं भी हैरान रह गया. लेकिन इस से पहले की हम मे से कोई, उस से कुछ पुच्छ पाता, वो हमारे पास से जा चुका था. उसकी इस हरकत को सोचते सोचते, हम सब बाहर की तरफ बढ़ गये.

हम सब बाहर पहुचे तो, बाहर छोटी माँ की कार और टाटा सफ़ारी खड़ी थी. हमे देखते ही टाटा सफ़ारी का ड्राइवर, फुर्ती से हमारे पास आ गया और हमारे हाथों से समान लेने लगा.

वही दूसरी तरफ छोटी माँ की कार के पास, वाइट शॉर्ट शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहने, एक लड़की मोबाइल पर बात कर रही थी. उसे देखते ही, मुझे मेहुल के इस तरह भागने की वजह समझ मे आ गयी थी.

लेकिन अब मेरे पास खुद को संभालने का ज़रा भी मौका नही था. क्योकि उसकी नज़र भी हम लोगों पर पड़ चुकी थी. हम पर नज़र पड़ते ही, उसने फ़ौरन ही बात करना बंद किया और मोबाइल अपने जेब मे रख कर, हमारे पास आ गयी.

उसने हमारे पास आकर, एक नज़र मेरे उपर डाली और फिर झुक कर अंकल के पैर छु लिए. अंकल ने उसे आशीर्वाद देने के बाद, उस से कहा.

अंकल बोले “वाणी बेटा, ये क्या है. मैने तुमसे कितनी बार कहा है कि, मुझे बेटियों से अपने पैर पड़वाना पसंद नही है. फिर तुम क्यो बार बार मेरे पैर छुति हो.”

अंकल की इस बात का, वाणी ने बड़ी ही सहजता से जबाब देते हुए कहा.

वाणी बोली “अंकल, आप मेरे लिए, मेरे पिता के समान है और आज कल बेटियाँ, ऐसे नालयक बेटों से कहीं ज़्यादा लायक साबित होती है.”

ये कहते हुए वाणी ने मेरी तरफ इशारा किया था. इसके बाद उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

वाणी बोली “वैसे तो मुझे आपसे बहुत झगड़ा करना था. लेकिन सोचती हूँ, पहले आपकी तबीयत सही हो जाने दूं. उसके बाद आपसे झगड़ा करूगी. लेकिन आपके अलावा किसी को भी, मैं छोड़ने वाली नही हूँ.”

ये कहते हुए वाणी ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा. उसके इस तरह से, मुझे देखने से मैं समझ गया था कि, अब मेरी ही शामत आने मे ज़्यादा देर नही है. लेकिन उसकी अगली हरकत ने मुझे और भी हैरान करके रख दिया.

उसने थोड़ी देर इसी तरह अंकल से नोक झोक की और फिर वो मोहिनी आंटी और नितिका से मिलने लगी. उन से मिलने के बाद, उसने बड़े ही प्यार से, मुझसे कहा.

वाणी बोली “कैसे हो तुम.”

वाणी को इतने प्यार से बात करते देख कर, मुझे कुछ हैरानी तो ज़रूर हो रही थी. लेकिन इस बात की राहत भी महसूस हो रही थी कि, वो मुझसे नाराज़ नही है. इसी खुशी मे मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “मैं अच्छा हूँ दीदी. आप कैसी हो.”

मगर मेरी इस बात के जबाब मे, वाणी ने मुझसे उल्टा ही सवाल करते हुए कहा.

वाणी बोली “सिर्फ़ अच्छे हो या बहुत अच्छे हो.”

मुझे अभी भी उसकी इस बात मे प्यार ही नज़र आ रहा था. इसलिए मैने फिर से मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “जी बहुत अच्छा हूँ.”

मेरा इतना कहना था कि, वाणी ने बंदूक की गोली की तरह मुझ पर फटते हुए कहा.

वाणी बोली “जब बहुत अच्छे हो तो, फिर तुम्हारी शकल के12 क्यो बज रहे है. तुम्हारी शकल देख कर तो, ऐसा लग रहा है कि, जैसे तुम प्लेन मे बैठ कर नही आए हो, बल्कि प्लेन को अपने कंधे पर ढोकर लाए हो.”

लेकिन ये तो कुछ भी नही था. ये सिर्फ़ वाणी के बोलने की सुरुआत थी. उसने मेरे बालों को हाथ लगाते हुए कहा.

वाणी बोली “ये क्या लोफरो की तरह बाल इतने बड़े करके रखे है. क्या मुंबई मे कोई हज्जाम नही था या फिर अपने आपको मुंबई जाकर सलमान ख़ान समझने लगे हो.”

वाणी की ये बातें सुनकर, मेरी हँसी गायब हो गयी थी और मेरी हालत काटो तो खून नही वाली हो गयी थी. वही मोहिनी आंटी का वाणी को हैरानी से देखती रह गयी और उनका मूह खुला का खुला रह गया था.

लेकिन इतना सब सुनने के बाद, भी मैं किसी मुजरिम की तरह खामोशी से सर झुकाए खड़ा था. शायद ऐसा करने मे ही मेरी भलाई थी. क्योकि उसे किसी की सफाई सुनने की आदत नही थी.

बचपन से ही हम मे से किसी को भी, उसका नाम लेने की इजाज़त नही थी और यदि ग़लती से कोई उसका नाम ले लेता था तो, नाम लेने वाले के कान मे घंटियाँ बजने लगती थी. जिस वजह से हम मे से हर एक उसे सिर्फ़ दीदी ही कह कर बुलाता था.

वो एक बच्चो को डरने वाली डायन थी. जिसने बचपन से ही हमारे दिल मे अपने नाम की दहशत पैदा करके रखी थी. बचपन से ही वो हम सब पर किसी रानी की तरह राज़ करती आ रही थी और हम सब उसके सामने किसी गुलाम की तरह ही थे.

हम सबके उस से इतनी दहशत खाने की वजह ये थी कि, वो ताक़त मे बरखा दीदी से कहीं ज़्यादा थी और दिमाग़ मे सीरू दीदी भी उसके सामने कुछ नही थी. लेकिन इस सबसे ज़्यादा ख़तरनाक बात ये थी कि, वो ज़ुबान मे मोहिनी आंटी से भी ज़्यादा ख़तरनाक थी.

यदि मुंबई मे मोहिनी आंटी का सामना सीरू दीदी की जगह, वाणी से हो गया होता तो, वो यक़ीनन अपना मूह खोलने के लिए पछ्ताने के सिवा कुछ नही कर पाती और फिर जिंदगी भर के लिए अपने मूह को ताला लगा लेती.

वाणी पूरी हिट्लर थी और उसके सामने तो मेरे खाड़ुस बाप की ज़ुबान को भी लकवा मार जाता था. ऐसे मे मैं किस खेत की मूली था, जो उस से ज़ुबान लड़ा पाता. मैं चुप चाप सर झुका कर, खड़ा रह जाने के सिवा कुछ भी ना कर सका.

मगर शायद नितिका को मेरी इस हालत पर रहम आ गया और उसने बीच मे आते हुए वाणी से कहा.

नितिका बोली “दीदी, अभी तो हम सब आते जा रहे है. पहले आप सबको घर तो चलने दीजिए, फिर जिस जिस की खबर लेना चाहती है, ले लीजिएगा.”

नितिका कीर्ति की बचपन की सहेली थी. इसलिए वाणी और नितिका एक दूसरे को अच्छे से जानती थी. जिस वजह से नितिका की बात सुनकर, वाणी ने अपने गुस्से को दबाते हुए उस से कहा.

वाणी बोली “तुम कहती हो तो, मैं मान जाती हूँ. लेकिन ये तो एक ही दिख रहा है. वो दूसरा कहाँ है.”

वाणी का ये इशारा मेहुल की तरफ था. लेकिन इस से पहले कि नितिका उसकी इस बात का कोई जबाब दे पाती, मेहुल किसी जिन्न की तरह, हमारे पास प्रकट होते हुए कहा.

मेहुल बोला “मैं यहाँ हूँ दीदी. मुझे पता होता कि, मेरी प्यारी दीदी हमे लेने आई है तो, मैं आपसे मिलने सबसे पहले भागते हुए आ जाता.”

ये कहते हुए, मेहुल ने वाणी के पैर छु लिए. जिससे वाणी का रहा सहा गुस्सा भी शांत हो गया और उसने मेहुल की तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा.

वाणी बोली “ये देखो, ये कहलाते है संस्कार. अपने से बडो से कैसे मिला जाता है. कुछ इस से सीखो और ज़रा इसकी हालत को भी देखो. ये भी तुम्हारे साथ मुंबई से ही आ रहा है. लेकिन अभी भी बिल्कुल तरो ताज़ा लग रहा है.”

वाणी की ये बात सुनकर, मैं एक बार फिर खून के घूँट पीकर रह गया. लेकिन अब मुझे वाणी से ज़्यादा मेहुल पर गुस्सा आ रहा था. कमीना मुझे फसा कर, खुद बाथरूम मे जाकर, फ्रेश होकर और कपड़े बदल कर आया था.

वाणी के अलावा हर कोई जानता था की, मेहुल अभी अभी फ्रेश होकर और कपड़े बदल कर आया है. ये ही नही, अब ये बात भी सबकी समझ मे आ चुकी थी कि, मेहुल वाणी को देख कर ही वापस भागा था.

लेकिन आगे तो मेहुल ने वाणी की चापलूसी करने की हद ही कर दी. उसने अपने बॅग मे से शिल्पा के लिए खरीदा हुआ, जीन्स और टी-शर्ट निकल कर दिखाते हुए कहा.

मेहुल बोला “दीदी, ये देखो, मैं आपके लिए मुंबई से क्या लेकर आया हूँ. मुझे पता था कि, आप सिर्फ़ ब्रॅंडेड कंपनी के कपड़े ही पहनती हो. इसलिए मैने आपके लिए ये खरीदे है. लेकिन ये उतने महँगे नही है. जितने माहगे आप पहनती हो.”

मेहुल की इस बात पर वाणी ने एक बार फिर मुझे घूरा और फिर मेहुल से कहा.

वाणी बोली “तुम्हे मैं याद रही, मेरे लिए इतना ही बहुत है और गिफ्ट की कीमत नही, बल्कि देने वाले की नियत देखी जाती है. मुझे तुम्हारा ये गिफ्ट बहुत पसंद आया है.”

वाणी को अपने गिफ्ट से खुश होते देख कर, मेहुल और भी ज़्यादा उसकी चापलूसी करने लगा. मेहुल की इस हरकत पर मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था और मेरा दिल कर रहा था कि, मैं अभी इसकी सारी पॉल वाणी के सामने खोल कर रख दूं.

लेकिन मैं अपना मन मार कर रह जाने के सिवा कुछ ना कर सका. खैर मेहुल ने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से वाणी को बहला लिया था. जिसके बाद, वाणी ने किसी पर ज़्यादा गुस्सा नही किया और हमसे जल्दी घर चलने को कहने लगी.

हमारा समान तो गाड़ियों मे रखा जा चुका था. अब सिर्फ़ हम लोगों को गाड़ियों मे बैठना था. छोटी माँ की कार वाणी खुद चला रही थी. ऐसे मे मेरा उसमे बैठने का सवाल ही पैदा नही होता था.

इसलिए वाणी के गाड़ी मे बैठने की बात बोलते ही, मैने अमि निमी का हाथ पकड़ा और टाटा सफ़ारी की तरफ बढ़ने लगा. लेकिन तभी वाणी ने मुझे टोकते हुए कहा.

वाणी बोली “तुम वहाँ कहाँ जा रहे हो. सफ़ारी मे अमि निमी और औक्ले आंटी को जाने दो. तुम दोनो और नितिका मेरे साथ चलोगे.”

वाणी की ये बात सुनकर, जितना खराब मुझे लगा था, उतना ही खराब अमि निमी को भी लग रहा था. यदि ये बात वाणी की जगह किसी और ने कही होती तो, वो दोनो तुरंत ही उस से बहस करने लगती.

लेकिन वाणी की दहशत सब पर एक समान ही थी. उसकी पीठ पिछे चाहे को उसकी कितनी भी बुराई क्यो ना कर ले. मगर उसके सामने जबाब देने की हिम्मत किसी मे भी नही थी.

यही वजह थी कि, वाणी की बात सुनते ही, अमि निमी अनमने मन से टाटा सफ़ारी मे जाकर बैठ गयी और मैं कार मे पिछे की सीट पर आकर बैठ गया. मेरे बैठते ही, नितिका भी मेरे पास ही आकर बैठ गयी और मेहुल आगे वाणी के पास बैठ गया.

हमारे बैठते ही दोनो गाड़ियाँ घर के लिए निकल पड़ी. मुझे छोड़ कर बाकी सब खुश नज़र आ रहे थे. नितिका को भी इस बात की खुशी थी कि, मुंबई मे ना सही, यहाँ तो, उसे कुछ वक्त मेरे साथ बिताने के लिए मिल ही गया है.

नितिका रास्ते भर मुझसे पाटर पाटर करती रही और मैं उसकी बात का एक छोटा सा जबाब देकर चुप हो जाता था. लेकिन मेहुल से बात करते हुए भी, वाणी की नज़र मेरे उपर भी बनी हुई थी.

जिस वजह से मुझे भी अपने आपको नितिका के साथ बातों मे लगा लेना पड़ा. ऐसे ही बात करते करते हम मेहुल के घर पहुच गये. हमारी गाड़ियों की आवाज़ सुनकर, एक एक करके सब घर से बाहर निकल आए.

हम लोग अपनी गाड़ी से उतरे और अंकल के पास आ गये. अंकल के गाड़ी से उतरते ही, उनको सही सलामत देख कर सबकी खुशी का कोई ठिकाना नही था. सब से ज़्यादा खुशी रिचा आंटी के चेहरे पर झलक रही थी.

अंकल को अपने सामने सही सलामत देख कर भी, उनके आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे. हम अंकल को अपने साथ घर के दरवाजे तक लेकर गये. वहाँ आंटी ने उनकी नज़र उतारी और फिर उनसे लिपट कर रोने लगी. अंकल ने उनको दिलासा दिलाया और फिर हम सब घर के अंदर आ गये.

इस समय घर मे छोटी माँ, अनु मौसी, मौसा जी, कमाल, वाणी की मोम और शिल्पा मौजूद थी. इनके अलावा मोहिनी आंटी और नितिका भी हमारे साथ ही थी. रिचा आंटी को रोते देख कर, अनु आंटी और बाकी सब उनको समझा रहे थे.

लेकिन रिचा आंटी के आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे. रिचा आंटी को रोते देख कर, मेहुल और मेरी आँखों मे भी नमी आ गयी. मगर मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, अब आंटी रो क्यो रही है.

जिन आँखों से मेरे लिए हमेशा ही प्यार बरसता था, उन आँखों को बरसते देख, मैं भला अपनी आँखों को बरसने से कैसे रोक सकता था. ना चाहते हुए भी मेरी आँखों ने खुद बा खुद बरसना सुरू कर दिया था.

ऐसी ही कुछ हालत मेहुल की भी थी. लेकिन जब उस से रिचा आंटी का रोना नही देखा गया तो, उसने मुझे धक्का मारते हुए कहा.

मेहुल बोला “अबे साले खड़ा खड़ा तमाशा क्या देख रहा है. देख नही रहा मम्मी कितना रो रही है. उनको जाकर चुप क्यो नही करता है.”

लेकिन आज पहली बार मुझे मेहुल की किसी बात को सुनकर, गुस्सा नही, उस पर बेहद प्यार आया था और मैं खुद ही उस से लिपट कर रोने लगा. मेरा साथ पाकर, उसके भी सबर का बाँध टूट गया और वो भी मुझसे लिपट कर रोने लगा.

अपने जिस दर्द को हमने, मुंबई जाने के पहले, अपने दिल के अंदर दबा कर रखा था, वो अब अपने घर वापस आते ही, आँसू बन कर, हमारी आँखों से बाहर निकलने लगा था.

लेकिन एक माँ की ये ही ख़ासियत होती है कि, उसकी आँखों से चाहे आँसुओं की गंगा जमुना बहती रहे. लेकिन वो अपने बच्चो की आँखों मे एक आँसू नही देख सकती और ये ही रिचा आंटी के साथ भी हुआ.

उन्हो ने जैसे ही मुझे और मेहुल को रोते देखा. उनके आँसू वही के वही थम गये और उन ने हमारे पास आकर, हम दोनो को अपने गले से लगाते हुए कहा.

रिचा आंटी बोली “मेरे बाकचों, तुम क्यो रहे हो. तुम दोनो तो मेरे बहादुर बेटे हो. तुम दोनो को तो आज खुश होना चाहिए. तुमने आज अपनी माँ से किया हुआ वादा पूरा करके दिखा दिया.”

रिचा आंटी की बात सुनकर, हम दोनो उनसे लिपट कर रोने लगे. अब वाहा का नज़ारा बिल्कुल ही उल्टा हो गया था. अभी तक जिन रिचा आंटी के समझ मे किसी की बात नही आ रही थी और वो रोए जा रही थी.

अब वो ही अपने आँसू भूल कर, हम दोनो को दिलासा दे रही थी और हम दोनो रोए जा रहे थे. तभी छोटी माँ ने आकर, हम दोनो के सर पर हाथ फेरा तो, मैने पलट कर, उन्हे देखते ही कहा.

मैं बोला “मम्मी.”

इतना कह कर, मैं उनसे लिपट गया और उन्हो ने भी मुझे अपने सीने से चिपका लिया. उनकी खुद की आँखें भी आँसुओं से भीग चुकी थी. लेकिन मेरे कहे इस एक शब्द से वहाँ बिल्कुल सन्नाटा सा हो गया था. यहाँ तक की मेहुल भी अपना रोना भूल कर मुझे देखने लगा था.

सब बस हैरानी से मुझे ही देख रहे थे और मैं छोटी माँ को बार बार “मम्मी मम्मी” पुकार कर रोए जा रहा था. मैं आज अपनी बरसों की इस प्यास को बुझा लेना चाहता था. इसलिए बार बार सिर्फ़ “मम्मी मम्मी” पुकार रहा था.

ऐसा ही कुछ हाल मेरे मूह से मम्मी सुनने के बाद, छोटी माँ का भी था. वो मेरे मूह से ये शब्द सुनने के बाद, अपने आपको रोक नही पाई और उनकी आँखों ने भी बरसना सुरू कर दिया. कभी वो मुझे अपने सीने से लगा रही थी तो, कभी बार बार “मेरा बेटा” कह कर, मेरे माथे को चूम रही थी.

अमि निमी को कुछ समझ मे नही आया कि, ये क्या हो रहा है. लेकिन मुझे और छोटी माँ को रोता देख कर, उन्हो दोनो ने भी रोना सुरू कर दिया और वो दोनो भी आकर हमसे लिपट कर रोने लगी.

ये नज़ारा देख कर, वहाँ खड़े हर एक की आँखें आँसुओं से भर गयी थी. मगर इस समय कोई भी इस पल को अपनी आँखों से ओझल करना नही चाहता था. इसलिए सब अपने आँसुओं की परवाह किए बिना बस अपलक इस नज़ारे को देखे जा रहे थे.
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कुछ देर के लिए, वक्त जैसे थम सा गया था. लेकिन अमि का रोना और निमी की सिसकियाँ सुनकर, छोटी माँ ने मुझे अपने सीने से अलग किया और फिर उन दोनो को समझाने लगी.

मेरी मासूम बहनें, जो अभी अच्छी तरह से सुख दुख का मतलब भी नही जानती थी. मुझे ज़रा सी भी तकलीफ़ मे देख कर, बिलख पड़ती थी. मेरी दोनो बहने फूल से भी ज़्यादा नाज़ुक थी और उनके आँसू मेरे दिल पर तेज़ाब की तरह असर करते थे.

अमि तो फिर भी थोड़ी बहुत समझदार थी. लेकिन निमी तो अभी बिल्कुल ही ना समझ थी. फिर भी मेरी किसी तकलीफ़ के अहसास से ही, उसकी सिसकियाँ चलना सुरू हो जाती थी. उसे सिसकियाँ भरते देख कर, मेरी जान निकलने लगती थी.

ऐसा ही कुछ अभी भी मेरे साथ हुआ. मैने दोनो को रोते देखा तो, घुटने के बल, उनके सामने बैठ कर, दोनो को अपने गले से लगा लिया और उन्हे समझाने लगा कि, मैं क्यो रो रहा था.

मेरी बात उनके समझ मे आते ही, अगले ही पल दोनो का रोना रुक गया और इसकी जगह उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. अमि निमी को फिर से हंसते खिलखिलाते देख, रिचा आंटी ने छोटी माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए, उन से कहा.

रिचा आंटी बोली “सोनू, मैं इतने दिन तुम्हारे पास रही. लेकिन तुमने मुझे बताया नही कि, ये पुन्नू का तुम्हे मम्मी कहने वाला कमाल कब और कैसे हो गया.”

आंटी की ये बात सुनकर, छोटी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “दीदी, ये पिच्छले सनडे की बात है.”

ये कहते हुए छोटी माँ ने आंटी को प्रिया के हॉस्पिटल मे भरती होने वाली घटना के बारे मे बता दिया. जिसे सुनने के बाद, मेहुल ने थोड़ा हैरान होते हुए, छोटी माँ से कहा.

मेहुल बोला “लेकिन आंटी, ये पिच्छले सनडे की बात है तो, फिर ये शिखा दीदी की शादी मे, आपको मम्मी कह कर क्यो नही बुला रहा था.”

मेहुल की इस बात को सुनते ही, हम सबकी नज़र मेहुल पर से हट कर, अमि निमी की तरफ चली गयी. निमी को तो इस बात मे कुछ खास नज़र नही आ रहा था. लेकिन अमि ज़रूर इस बात को सुनने के बाद, छोटी माँ की तरफ गौर से देखने लगी थी.

लेकिन छोटी माँ ने अमि के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए, मेहुल की बिगड़ी इस बात को, बड़ी ही आसानी से संभालते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “फोन पर तो इसने मुझे उसी दिन से मम्मी कहना सुरू कर दिया था. लेकिन मैं इस पल के लिए बरसों से इंतेजार कर रही थी और इसके मूह से मम्मी सुनकर मैं थोड़ी सी स्वार्थी हो गयी थी.”

“मैं चाहती थी कि, ये तब मुझे मम्मी कह कर पुकारे, जब गले लगाने के लिए, ये मेरे सामने हो और इस पल मे मेरे सभी अपने भी मेरे पास हो. मेरी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए, इसने अभी तक अपने आपको मम्मी कहने से रोका हुआ था और घर वापस आने का इंतजार कर रहा था.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर, अमि के चेहरे की मुस्कुराहट वापस आ गयी. शायद उसे बिना पुच्छे ही, उसके मन मे उठ रहे सवाल का जबाब मिल गया था. वही मेहुल ने भी इस बात से राहत की साँस ली कि, उसकी वजह से छोटी माँ के शिखा दीदी की शादी मे होने का भेद खुलने से बच गया.

छोटी माँ को इस बात से इतना ज़्यादा खुश देख कर, रिचा आंटी ने उन्हे अपने गले से लगा लिया और फिर आंटी ने मुझसे कहा.

आंटी बोली “तो तू आज से सोनू को छोटी माँ की जगह, मम्मी कह कर पुकारा करेगा.”

आंटी की इस बात के जबाब मे मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “नही आंटी, ऐसा कुछ भी नही है. मैं तो इनको हमेशा ही छोटी माँ कह कर बुलाउन्गा.”

मेरी इस बात को सुनकर, रिचा आंटी ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा.

आंटी बोली “लेकिन ऐसा क्यो, अब तो तू सोनू को मम्मी कहने लगा है ना.”

मैं बोला “आंटी, बचपन मे आपने ही, मुझे इनको नयी माँ की जगह छोटी माँ बोलने को कहा था. तब मुझे लगा था कि, ये मेरी माँ से छोटी है, इसलिए आपने इनको छोटी माँ कहने को कहा है. मुझे भी ये नाम अच्छा लगा था और मैं इनको छोटी माँ कहने लगा.”

“लेकिन जब मैने इनको मम्मी कह कर पुकारा, तब मुझे पता चला कि, छोटी माँ तो माँ से भी बड़ी है. मैं जब इनको मम्मी कहता हूँ तो, मुझे इनमे सिर्फ़ मेरी माँ नज़र आती है.”

“मगर जब मैं इनको छोटी माँ कहता हूँ तो, मुझे इनमे एक माँ, एक दोस्त, मेरा सारा बचपन और मैं खुद भी नज़र आता हूँ. दुनिया मे माँ से बढ़कर, कुछ नही होता. लेकिन मेरी छोटी माँ के सामने तो, माँ शब्द भी छोटा पड़ जाता है.”

मेरी बात सुनकर, वहाँ खड़े सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. इसके बाद, सब अंकल के पास आकर, उनका हाल चाल पुच्छने लगे और मेरी नज़र यहाँ वहाँ कीर्ति को तलाश करने लगी.

कीर्ति को यहाँ वहाँ तलाश करते करते, मेरी नज़र मेहुल के कमरे के सामने आकर रुक गयी. कीर्ति सबसे अलग थलग, वही पर, कमरे के दरवाजे से टिक कर खड़ी, अपने आँसू पोन्छ रही थी. शायद यहाँ का नज़ारा देख कर, वो अपने आँसू रोक नही पाई थी.

लेकिन उस पर नज़र पड़ते ही, मेरा दिल धक्क करके रह गया. उसका चेहरा बिल्कुल पीला पड़ा हुआ था और वो बहुत ही ज़्यादा कमजोर नज़र आ रही थी. उसे देख कर, ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसके अंदर, इतनी भी ताक़त नही है कि, वो अपने बल पर ठीक से खड़ी हो सके.

उसकी इस हालत को देख कर मेरा दिल रो उठा. उसकी तबीयत सही नही है, ये बात तो मैं पहले से जानता था. लेकिन उसकी हालत इतनी ज़्यादा गिर गयी है, इसका अंदाज़ा तो मुझे भी नही था.

उसकी इस हालत ने तो मेरी जान ही निकाल कर रख दी थी. वो पिच्छले दो दिन से, मुझसे सही से बात नही कर रही थी और मुझे लग रहा था कि, वो मेरे घर आने के इंतजार मे ऐसा कर रही है. लेकिन यहाँ तो बात ही कुछ अलग थी.

मैं अभी उसकी इस हालत को देख कर गहरे सदमे मे था और उधर कीर्ति ने अपने आँसू पोंछने के बाद, जैसे ही अपना सर उठा कर, मेरी तरफ देखा तो, उसकी नज़र मुझसे टकरा गयी.

मुझसे नज़र मिलते ही, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. लेकिन उसकी इस हालत को देख कर, मैं ना तो मुस्कुराने की हालत मे था और ना ही उस पर गुस्सा कर पाने की हालत मे था.

मैं भाग कर फ़ौरन उसके पास पहुच गया. वो अभी भी मुझे देख कर, मुस्कुराए जा रही थी और मैं उसको लाचार सा बस देखा जा रहा था. मैं उस से पुच्छना चाहता था कि, उसने मेरे साथ ऐसा क्यो किया.

लेकिन मैं ना तो उस से कुछ बोल पा रहा था और ना कुछ पुछ पा रहा था. मैं कुछ देर तक बस उसे चुप चाप खड़ा देखता रहा और फिर बिना कुछ कहे, उसका हाथ पकड़ कर, उसे सहारा देकर, अपने साथ सबके बीच लाने लगा.

वो भी मुस्कुराती हुई मेरे साथ आ गयी. मैने उसे सबके बीच से लाते हुए, सोफे पर लाकर बैठा दिया. कीर्ति को आते देख कर, सबकी नज़र हम दोनो पर ही आकर ठहर गयी थी.

मेहुल और अंकल ने भी जब कीर्ति को देखा तो, वो भी उसकी इस हालत को देख कर, हैरान रह गये. मेहुल फ़ौरन ही, कीर्ति के पास आकर बैठ गया और फिर कुछ परेशान सा होकर, आंटी और छोटी माँ की तरफ देखते हुए कहा.

मेहुल बोला “क्या कोई मुझे बताएगा कि, इसको क्या हुआ है और इसकी ये हालत कैसे हो गयी है.”

मेहुल की इस बात को सुनकर, रिचा आंटी ने उसे कीर्ति की इस हालत के बारे मे बताते हुए कहा.

आंटी बोली “इस को कुछ दिन पहले पीलिया हो गया था. जिसका इलाज चल रहा था और डॉक्टर ने इसको खाने पीने मे परहेज करने को कहा था. लेकिन दो दिन पहले इसने अपनी मम्मी की चोरी से तेल मसाले वाला खाना खा लिया. उसके बाद से ही इसकी हालत ऐसी हुई है.”

रिचा आंटी की ये बात सुनकर, मेहुल ने उनसे कहा.

मेहुल बोला “आप लोगों ने इसका ये क्या हाल बना कर रख दिया है. हम तो इसे हंसता खेलता छोड़ कर गये थे. लेकिन इस से तो अब, ठीक से खड़ा भी नही हुआ जा रहा है. इसकी ऐसी हालत हो गयी और किसी ने हमे बताने तक की भी ज़रूरत नही समझी.”

आंटी बोली “इसी ने हमे अपनी कसम देकर, तुम लोगों को ये बात बताने से रोक दिया था. ताकि तुम लोग इसकी तबीयत को लेकर परेशान ना हो.”

लेकिन कीर्ति की इस हालत को देख कर, अब मेहुल को भी गुस्सा आ रहा था. उसने रिचा आंटी पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा.

मेहुल बोला “इसने कहा और आप लोगों ने इसकी ये बात मान भी ली. आप लोगों ने ये भी नही सोचा कि, हम जब यहाँ आकर इसकी ये हालत देखेगे तो, हमे कितना बड़ा झटका लगेगा. आप लोगों से एक लड़की भी नही संभाली गयी.”

मेहुल की ये बात सुनकर, रिचा आंटी से कोई जबाब देते नही बना. लेकिन कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे मुझे कुछ नही हुआ है. बस थोड़ी सी कमज़ोरी है. वो भी दो तीन दिन मे दूर हो जाएगी.”

लेकिन कीर्ति की ये बात सुनते ही, मेहुल ने उस पर भड़कते हुए कहा.

मेहुल बोला “तुम तो अपना मूह बिल्कुल ही बंद रखो. रोज मुझसे बात करती थी और यहाँ सब ठीक होने की बात कहती थी. लेकिन एक बार भी अपनी ऐसी हालत के बारे मे नही बताया और अब मुझे समझाने चली हो.”

मेहुल को भड़कते देख, कीर्ति भी चुप करके रह गयी. लेकिन वाणी को मेहुल का इस तरह से गुस्सा करना सही नही लगा और उसने मेहुल पर भड़कते हुए कहा.

वाणी बोली “तुम उसको समझदारी की नसीहत करने से पहले, खुद के गिरेबान मे झाँक कर देख लो कि, तुम लोगों ने क्या किया है. यदि तुम लोगों ने अपने मुंबई जाने की बात मुझसे छुपा कर सही किया है तो, उसने भी अपनी तबीयत की बात तुमसे छुपा कर कुछ ग़लत नही किया है.”

वाणी की ये बात सुनकर, होना तो ये चाहिए था कि, मेहुल को चुप हो जाना चाहिए था. क्योकि ये बात सभी अच्छे से जानते थे कि, वाणी कभी भी कीर्ति के खिलाफ कुछ सुनना पसंद नही करती है.

वो कीर्ति की बड़ी से बड़ी ग़लती को भी अनदेखा कर देती थी. लेकिन उसके सामने यदि को कीर्ति को एक शब्द भी कह दे तो, वो उस से उलझ जाती थी. फिर वो चाहे मौसा मौसी ही क्यो ना हो.

लेकिन इस समय कीर्ति की हालत देख कर मेहुल को दिमाग़ ठिकाने नही था और उसने वाणी से उलझते हुए कहा.

मेहुल बोला “दीदी, क्या सही है और क्या ग़लत है. मैं ये सब नही जानता और ना ही मैं ये सब जानना चाहता हूँ. मैं तो बस इतना जानता हूँ कि, जितनी तकलीफ़ आपको हमारे मुंबई जाने की बात छुपाने से हुई है. उस से भी कही ज़्यादा तकलीफ़ मुझे कीर्ति की ये हालत देख कर हो रही है.”

मेहुल को लगा था कि, अपनी ग़लती मान लेने से, वाणी भी कीर्ति की इस ग़लती को मान लेगी. लेकिन इतनी सी बातों से बहाल जाने वाली वाणी नही हो सकती थी. उसने फिर कीर्ति की तरफ़दारी करते हुए कहा.

वाणी बोली “ये तो जिंदगी का उसूल है कि, जिंदगी मे जो भी तुम दूसरों के साथ करोगे, वो तुम्हे कही ना कही से, किसी ना किसी रूप मे वापस ज़रूर मिलेगा. जब तुम्हे अपने करनी पर कोई पछ्तावा नही हुआ तो, फिर कीर्ति की करनी पर दुख क्यो हो रहा है. कीर्ति ने कुछ भी ग़लत नही किया है.”

वाणी की इस बात ने मेहुल को चुप करा कर रख दिया. लेकिन वो एक तरह से मेरे ही दिल की बात कर रहा था. जो मैं कीर्ति की कसम की वजह से, नही कर पा रहा था. इसलिए उसके चुप होते ही, पहली बार मैने इस बात पर अपना मूह खोलते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, आप भले ही मेहुल को ग़लत बोलो. लेकिन मेहुल ज़रा भी ग़लत नही है. आप लोगों को सोचना चाहिए था कि, हम मुंबई मे इतने बड़े बड़े डॉक्टर के बीच मे है. यदि हमे इसकी तबीयत का पता होता तो, हम उनसे इसकी तबीयत की सलाह ले सकते थे.”

“फिर निशा भाभी तो खुद इतनी बड़ी डॉक्टर थी. वो हमे ज़रूर कोई ना कोई सही सलाह देती. उनकी सलाह से इसकी ऐसी हालत नही हो पाती और ये जल्दी ही ठीक हो जाती. लेकिन आप सब ने इस बात को छुपा कर, सिर्फ़ इसकी तबीयत ही खराब नही की है, बल्कि एक बहुत गैर ज़िम्मेदारी वाला काम भी किया है.”

“मेहुल ठीक ही तो कह रहा है कि, आप लोगों से एक लड़की भी नही संभाली गयी. खुद ही देख लो, एक हफ्ते मे इसकी ऐसी हालत करके रख दी है कि, इस से अपने बल पर खड़े तक होते नही बन पा रहा है.”

मेरी इस बात ने ठंडे इस ठंडी सी चल रही बात चीत मे गर्मी लाने वाला काम कर दिया था. अभी तक जो वाणी सिर्फ़ कीर्ति का बचाव करती नज़र आ रही थी. अब उसने सीधे हम पर वार करते हुए कहा.

वाणी बोली “तुम लोग मौसा जी का मुंबई से इलाज करा कर आए हो तो, खुद को बहुत बड़ा तीस मार ख़ान मत समझो. तुम्हे तो हॉस्पिटल मे मौसा जी को एक बार दवा तक नही खिलाना पड़ी होगी.”

“वहाँ मौसा जी की देख भाल के लिए नर्स और डॉक्टर थे. तुम्हारा काम सिर्फ़ मौसा जी के पास बैठे रहने का था और ये करके तुमने कोई बड़ा भारी तीर नही मार दिया. ये काम तो वहाँ कोई भी कर सकता था.”

“अब रही कीर्ति की तबीयत की बात तो, ये मत भूलो कि, जिन लोगों को तुम ये बातें सुना रहे हो. उन्हो ने ही तुम्हे इतना बड़ा किया और ना जाने कितनी बार तुम्हे बीमारी से ठीक करके खड़ा कर दिया है.”

“इसलिए इनको ये सिखाने की कोसिस मत करो कि, इन्हे क्या करना चाहिए था और क्या नही करना चाहिए था. इन्हो ने जो ठीक समझा, वो ही किया और इसके लिए इन्हे तुम लोगों को सफाई देने की कोई ज़रूरत नही है.”

“अपनी सलाह अपने पास ही रखो. वो लड़की बीमार है और तुम दोनो यहाँ उसकी ग़लती ढूँढने मे लगे हो. अब यदि इसके बाद, किसी ने भी कीर्ति को एक शब्द कहा तो, उसका मूह तोड़ कर उसके हाथ मे रख दुगी. ये मत भूलो कि, मुझसे बुरा ना कोई था और ना कोई होगा.”

वाणी की इस बात ने वहाँ के पूरे माहौल मे ही आग लगा दी थी. उसकी ये बात सुनकर, मुझे भी बहुत ज़्यादा गुस्सा आ गया था. लेकिन मैं अपने गुस्से की आग मे अपने अंदर ही अंदर जल कर रह गया.

क्योकि वाणी की बात सुनकर, कीर्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया था और मुझे कुछ बोलने से रोकने के लिए, वो मेरी कलाई पर बड़ी ज़ोर से अपने नाख़ून गढ़ाए जा रही थी. जिस वजह से मुझे अपना गुस्सा पी जाना पड़ा.

हमारी इस बहस को देख कर, मोहिनी आंटी भी सन्न रह गयी थी. वही छोटी माँ और रिचा आंटी ने इस माहौल को फ़ौरन संभालने की कोसिस करते हुए हम लोगों से कहा.

आंटी बोली “अरे तुम लोग क्यो बेकार की इस बहस मे फँस रहे हो. तुम लोग थके हुए सफ़र से आए हो और आते ही आपसा मे लड़ने लगे. जाओ और जाकर फ्रेश हो जाओ. तब तक मैं सबके खाने की तैयारी करती हूँ.”

वही दूसरी तरफ छोटी माँ ने वाणी को समझाते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “वाणी बेटा, तू तो समझदार है. तू क्यो इनके साथ बेकार की बातों मे उलझ रही है. अपना दिमाग़ खराब मत कर और जाकर मूह हाथ धो ले. तब तक हम लोग, तुम सबके लिए खाना लगाने की तैयारी करते है.”

लेकिन शायद वाणी का दिमाग़ अभी भी गरम था. उसने छोटी माँ की इस बात के जबाब मे उन से कहा.

वाणी बोली “नही मौसी, मैं खाना नही खाउन्गी. मैं मामा के साथ एक पार्टी मे जा रही हूँ. मेरी तरफ से आप इन दोनो को पेट भर कर खाना खिलाइए.”

वाणी की इस बात से सॉफ समझ मे आ गया था कि, उसका हमारे उपर गुस्सा अभी ख़तम नही हुआ है. उसका गुस्सा कम करने के लिए छोटी माँ ने उस से कहा.

छोटी माँ बोली “तू भी किन की बातों का बुरा मान रही है. ये तो मेरे साथ भी ऐसे झगड़ा करते रहते है. तू इनकी बात का बुरा मत मान और अपना गुस्सा ख़तम कर दे. ये भी तो तेरे छोटे भाई ही है ना.”

छोटी माँ की इस बात ने वाणी के दिल पर थोड़ा बहुत असर किया और उसने कुछ नरम पड़ते हुए कहा.

वाणी बोली “छोटे भाई है, इसलिए छोड़ देती हूँ. वरना इनकी क्या मज़ाल कि, बित्ते भर के छोकरे और मुझसे ज़ुबान लड़ा सके. एक कान के नीचे जमाती तो, सीटियाँ बजने लगती.”

वाणी की बात को सुनकर, मैं एक बार फिर तिलमिला कर रहा गया. लेकिन कीर्ति अभी भी मेरे हाथ को पकड़े, मुझे अपने नाख़ून गढ़ाए जा रही थी. वो बेचारी भी अजीब परेशानी मे फँसी हुई थी.

जिन दो लोगों को वो सबसे ज़्यादा प्यार करती थी. वो दोनो ही आज आपस मे एक दूसरे से, उसके लिए ही लड़े जा रहे थे और वो चाह कर भी दोनो मे से किसी का भी साथ नही दे सकती थी.

ये उसका हम दोनो के लिए प्यार ही था, जो वो मुझे वाणी से, कुछ भी बोलने से रोक रही थी और उसकी ये कोसिस कामयाब भी हो रही थी कि, तभी इतनी देर से शांति से सब कुछ देख रही नितिका ने, वाणी की बात सुनकर, एक ऐसा बॉम्ब फोड़ दिया. जिसकी गूँज से मेरा और मेहुल का चेहरा भी, कीर्ति की तरह पीला पड़ गया.
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09-11-2020, 11:53 AM,
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वाणी के हमारे कान के नीचे जमा देने की बात सुनकर, पता नही नितिका को क्या हुआ था कि, वो अपने आपको रोक नही पाई और उसने जोश मे आते हुए वाणी से कहा.

नितिका बोली “दीदी, आप जिन्हे बित्ते भर के छोकरे कह रही है. उन दोनो ने मुंबई के डॉन खालिद के भाई को मारा है और खालिद से भी लड़ने से पिछे नही हटे थे.”

नितिका की इस बात ने जहाँ मेरे और मेहुल के होश उड़ा दिए थे. वही वाणी के साथ साथ बाकी सब भी हैरानी से हमारी तरफ देखने लगे थे. इस बात से सबसे ज़्यादा घबराहट छोटी माँ के चेहरे पर नज़र आ रही थी.

लेकिन इस से पहले की वो अपनी इस घबराहट को जाहिर कर पाती, वाणी ने नितिका की इस बात को सुनकर, उसका मज़ाक बनाते हुए कहा.

वाणी बोली “तू जानती भी है कि, तू क्या कह रही है. खालिद का सामना करना तो दूर की बात है. खालिद का नाम सुनकर ही, इन के जैसे लड़को की पॅंट गीली हो जाती है.”

वाणी की इस बात से नितिका को ऐसा लगा कि, वाणी को उसकी बात पर यकीन नही हो रहा है. इसलिए वो वाणी को यकीन दिलाने के लिए उसे वहाँ की सारी बातें बताने लगी. वाणी के साथ साथ सब उसकी बातें सुनने मे लगे थे.

लेकिन नितिका की इस हरकत ने मेरी परेशानी बढ़ा कर रख दी. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, अब मैं छोटी माँ को कैसे समझा पाउन्गा. मैने इसी गुस्से मे अपने पास बैठी कीर्ति से कहा.

मैं बोला “तुम्हारी ये नितिका तो मेहुल से भी ज़्यादा गयी गुज़री निकली.”

मेरी ये बात सुनते ही, मेरे पास खड़े मेहुल ने भनकते हुए कहा.

मेहुल बोला “अबे मेरा नाम क्यो ले रहा है. मैने तो धोके से मुंबई का नाम ले दिया था. लेकिन ये तो कैसे हंसते हंसते सारी पोल खोले जा रही है. उसके तो ये तक समझ मे नही आया कि, वाणी दीदी ने उसकी बात पर यकीन ना आने का नाटक, सिर्फ़ उस से ये सारी बात उगलवाने के लिए किया था.”

मेहुल की इस बात के जबाब मे मैने उस पर चिड़चिड़ाते हुए कहा.

मैं बोला “इस बात के पता चल जाने से तेरा तो कुछ नही बिगड़ेगा. लेकिन अब मुझे छोटी माँ के गुस्से से कोई नही बचा पाएगा. उन्हो ने मुंबई से वापस आते समय, मुझे बार बार समझाया था कि, मैं किसी से लड़ाई झगड़ा ना करूँ. मगर अब ये सब सुनने के बाद, पता नही, वो मेरा क्या हाल करेगी.”

मेरी इस बात को सुनकर, कीर्ति ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा.

कीर्ति बोली “वो तो कुछ बाद मे करेगी. लेकिन मुझे लगता है कि, वाणी दीदी ज़रूर कुछ करने वाली है. वो देखो, तुम दोनो को कैसे घूर कर देख रही है.”

कीर्ति की बात सुनते ही, मेरी नज़र वाणी की तरफ चली गयी. वो नितिका से बात करते करते हमारी तरफ ही देख रही थी. नितिका की बात ख़तम होते ही, वाणी ने छोटी माँ से कहा.

वाणी बोली “आपने सुन लिया ना मौसी, ये लोग मुंबई मे क्या गुल खिला कर आए है. जिस खालिद की बात अभी नितिका बता रही थी, वो सिर्फ़ मुंबई का डॉन नही है. बल्कि उसके नाम का सिक्का तो, हमारे पूना (पुणे) तक मे चलता है.”

“आप नही जानती कि, ये लोग कितनी बड़ी मुसीबत से बच कर आए है. ये तो इन लोगों की किस्मत अच्छी थी कि, ये सही सलामत हमारे सामने बैठे है. वरना इनकी इस हरकत से, कोई बहुत बड़ी अनहोनी भी हो सकती थी.”

वाणी की इस बात ने, नितिका की लगाई आग मे घी का काम कर दिया था और छोटी माँ का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था. वो मुझे गुस्से मे देखने लगी तो, मेरा सर खुद ही शर्मिंदगी से झुक गया.

कहाँ तो मेरी घर वापसी पर घर मे खुशियों का माहौल होना था और अब कहाँ मैं अपनी घर वापसी पर डर से सहमा हुआ बैठा था. ये सब सिर्फ़ वाणी की वजह से हो रहा था. यदि वो यहाँ ना होती तो, शायद यहा इतना धमाल भी नही हुआ होता.

लेकिन अब सवाल यहाँ पर वाणी के धमाल का नही था. बल्कि सवाल अब छोटी माँ के गुस्से का हो गया था. छोटी माँ मुझसे कभी भी किसी बात पर जल्दी नाराज़ नही होती थी. लेकिन यदि वो नाराज़ हो जाए तो, फिर उनको मनाना बहुत मुश्किल हो जाता था.

वो किसी से भी गुस्सा होती थी तो, उसे इतना बोलती बकती थी कि, उसके लिए उनका सामना करना भी मुश्किल हो जाता था. इसलिए छोटी माँ के गुस्से से सभी डरते थे. लेकिन मेरे मामले मे उनका गुस्सा दूसरी तरह का ही होता था.

वो जब कभी किसी बात पर मुझसे नाराज़ होती थी तो, मुझे कुछ बोलती, बकती नही थी. बल्कि बिल्कुल शांत हो जाती थी और किसी से भी ज़्यादा बात नही करती थी. ऐसा ही कुछ मुझे अभी भी होते नज़र आ रहा था.

नितिका और वाणी की बात को सुनकर, छोटी माँ का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था और वो मुझे घूर रही थी. लेकिन इसके बाद भी उन्हो ने, किसी से एक शब्द नही कहा था और गुस्से मे मुझे देखे जा रही थी.

उनके इस तरह देखने से, मुझे समझ मे आ गया था कि, वो मुझसे बहुत ज़्यादा नाराज़ है. जिस वजह से मैं उन से ज़्यादा देर तक नज़र नही मिला पाया था और मेरा सर शर्मिंदगी से झुक गया था.

लेकिन वाणी को ये बात समझ मे नही आई थी कि, मेरे बारे मे इतना सब सुन लेने के बाद भी, छोटी माँ ने मुझे कुछ कहा क्यो नही. इसलिए उसने छोटी माँ से कहा.

वाणी बोली “ये क्या बात हुई मौसी, इनकी सारी हरकत सुन लेने के बाद भी, आपने इन लोगों को कुछ नही कहा. आपकी इसी बात ने इन लोगों को सर पर चढ़ा लिया है.”

वाणी की ये बात सुनकर, मुझे थोड़ी तसल्ली हुई कि, अब शायद वाणी की बात को सुनकर, छोटी माँ मुझे थोड़ा बहुत बोल बक लेगी और उनका गुस्सा यही पर ख़तम हो जाएगा.

लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ. हुआ वही, जिसका मुझे डर था. वाणी की बात सुनने के बाद, छोटी माँ ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए सब से कहा.

छोटी माँ बोली “डिन्नर का टाइम हो रहा है. मैं डिन्नर की तैयारी करती हूँ. तब तक बाकी सब भी डिन्नर करने के लिए तैयार हो जाए.”

इतना कह कर छोटी माँ, किसी की बात सुने बिना ही किचन की तरफ चली गयी. उनके इस तरह हम लोगों को बिना कुछ कहे चले जाने से, वाणी हैरान रह गयी. उसने छोटी माँ के गुस्से का भयानक रूप देखा था.

लेकिन वो ये नही जानती थी कि, छोटी माँ का मुझ पर गुस्सा करने का, ये सबसे ख़तरनाक तरीका था. जिसमे वो मुझे बिना कुछ बोले बेक ही, मेरा जीना हराम कर देती थी.

उधर वाणी छोटी माँ के मुझ पर गुस्सा ना करने से हैरान थी तो, इधर मुझे छोटी माँ के गुस्सा ना करने ने परेशान कर दिया था. कुछ देर के लिए बिल्कुल सन्नाटा सा छा गया था.

इस सन्नाटे को देख कर, मोहिनी आंटी अपने घर जाने की इजाज़त माँगने लगी. लेकिन रिचा आंटी उनसे यही खाना खाने के लिए कहने लगी. मगर मोहिनी आंटी ने इसके लिए मना कर दिया और फिर नितिका के साथ घर अपने घर चली गयी.

उनके जाने के बाद, मौसा जी, अनु मौसी, कमाल, वाणी और वाणी दीदी की मोम भी रिचा आंटी से जाने की इजाज़त माँगने लगे. रिचा आंटी ने उन लोगों के सामने भी खाना खा कर, जाने की बात रख दी.

लेकिन मौसा जी ने बताया कि, आज उनके एक दोस्त के यहाँ पार्टी है. वो सब वही जा रहे है. इस बात को सुनने के बाद, रिचा आंटी ने भी उनको रोकना ठीक नही समझा और उनको जाने की इजाज़त दे दी.

लेकिन सबके साथ, वाणी के भी जाने की बात सुनकर, मुझे अच्छा नही लगा. वाणी चाहे कितनी भी बदमिज़ाज क्यो ना हो. लेकिन उसका एक सच ये भी था कि, यदि कीर्ति के बाद वो किसी को सबसे ज़्यादा प्यार करती थी तो, वो मैं था.

मैं और कीर्ति उसके प्यार के दो पहलू थे. एक पर वो ज़रूरत से ज़्यादा प्यार लुटाती थी तो, दूसरे पर ज़रूरत से ज़्यादा गुस्सा करती थी. लेकिन इसके बाद भी इस सच्चाई को झुठलाया नही जा सकता था कि, वो मुझे बहुत प्यार करती थी.

यही वजह थी कि, वो मुझसे नाराज़ होने के बाद भी, खुद मुझे लेने एरपोर्ट आई थी. ये ही नही, उसकी यहाँ आने पर आदत थी कि, वो कभी भी मेरे या कीर्ति बिना कहीं नही जाती थी.

अब कीर्ति की तो तबीयत खराब थी. ऐसे मे वाणी का उसे अपने साथ ले जाने का कोई सवाल ही पैदा नही होता था. लेकिन उसके मौसा जी लोगों के साथ जाती समय, मुझसे एक बार भी चलने के लिए ना बोलना यही बता रहा था कि, वो मुझसे सच मे बहुत नाराज़ है.

ऐसे मे छोटी माँ के साथ साथ, वाणी की नाराज़गी ने भी मुझे परेशान करके रख दिया. अब छोटी माँ को तो अभी मनाया नही जा सकता था. लेकिन वाणी को मनाने की कोसिस ज़रूर की जा सकती थी. यही सोच कर, मैने वाणी को जाने से रोकते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, पार्टी तो मौसा जी के दोस्त की है. ऐसे मे आप वहाँ जाकर क्या करेगी. आप यहाँ हम लोगों के साथ ही खाना खा लीजिए ना.”

मेरी बात सुनकर, वाणी ने गौर से मेरी तरफ देखते हुए कहा.

वाणी बोली “मुझे ज़्यादा मस्का लगाने की कोसिस मत करो. ये मत सोचो कि, ये मीठी मीठी बात करके, तुम मेरा गुस्सा ख़तम कर सकते हो.”

वाणी की इस बात के जबाब मे मैने बड़े ही ठंडे दिमाग़ से कहा.

मैं बोला “दीदी, मुझे आपको मस्का लगाने की कोई ज़रूरत नही है. मैने ग़लती की है और इसके लिए आप मुझे जो सज़ा देना चाहो, दे सकती हो. मैं खुशी खुशी आपकी दी हुई, हर सज़ा के लिए तैयार हूँ. लेकिन सिर्फ़ सज़ा के डर से, मैं आपके साथ रहने का मौका छोड़ने को तैयार नही हूँ. यदि आप यहाँ रुकना नही चाहती तो, फिर आप मुझे अपने साथ लेकर चलिए.”

मेरी बात सुनकर, वाणी कुछ सोचने लगी. फिर उसने उसने मौसा जी के साथ जाने से मना कर दिया और मौसा जी लोग वाणी के बिना ही पार्टी मे चले गये. उनके जाने के बाद वाणी ने मुझसे कहा.

वाणी बोली “मेरे रुकने का ये मतलब नही है कि, मैने तुमको माफ़ कर दिया है. तुमको तुम्हारी ग़लती की सज़ा ज़रूर मिलेगी.”

वाणी की बात के जबाब मे मैने उस से कहा.

मैं बोला “दीदी, मैने कहा ना कि, आप मुझे जो सज़ा देना चाहे, दे सकती है. मैं आपकी हर सज़ा के लिए तैयार हूँ.”

वाणी बोली “ठीक है, तुम्हारी सज़ा का फ़ैसला कल करूगी. अभी तो तुम जाओ और डिन्नर के लिए फ्रेश होकर आओ.”

वाणी की बात सुनकर, मेरे और कीर्ति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. लेकिन मेहुल के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गयी और वो मुझे गुस्से मे घूर कर देखने लगा.

लेकिन मैने उसके इस तरह से घूर्ने की परवाह नही की और मैं वापस कीर्ति के पास जाने के लिए पलट गया. लेकिन तब तक कीर्ति के पास, मेरी जगह पर शिल्पा आकर बैठ चुकी थी.

शिल्पा को कीर्ति के पास बैठा देख कर, मैं कीर्ति के पास ना जाकर सीधे मेहुल के कमरे मे चला गया. मेरे कमरे मे पहुचते ही, मेहुल भी मेरे पिछे पिछे भन्नाता हुआ वहाँ आ गया और फिर से मुझे फिर से गुस्से मे घूर कर देखने लगा.

वो मुझे इसलिए घूर कर देख रहा था. ताकि मैं उस से उसके इस तरह से घूर्ने का मतलब पुछु. लेकिन मैं उसके इस तरह से घूर्ने का मतलब अच्छी तरह से जानता था. इसलिए मैं उस से कुछ पुच्छ नही रहा था.

उसके इस तरह से घूर्ने की वजह ये थी कि, आज उसे इतने दिनो बाद शिल्पा से मिलने का मौका मिला था और शिल्पा अभी उसके सामने भी थी. लेकिन मैने वाणी को रोक कर उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था.

अब वो वाणी के यहाँ होने की वजह से शिल्पा के उसके सामने होते हुए भी, उस से नही मिल सकता था. मुझे मेहुल की इस हालत पर हँसी आ रही थी और अपनी इस हँसी को छुपाने के लिए, मैं बेड पर, उसकी तरफ पीठ करके लेट गया.

इस से पहले की मेहुल मुझे कुछ बोल बक पाता, हमारे कमरे मे कीर्ति और शिल्पा आ गयी. कीर्ति को आते देख कर, मैं उसको बैठने की जगह देने के लिए उठ कर बैठ गया. कीर्ति ने मेरे पास आकर बैठते हुए कहा.

कीर्ति बोली “नितिका का कॉल आया था. वहाँ से शिखा दीदी तुम लोगों को कॉल लगा रही है. मगर तुम दोनो के ही मोबाइल बंद आ रहे है. इसलिए उन्हो ने नितिका को कॉल लगाया था.”

कीर्ति की बात सुनते ही, मैने अपने मोबाइल निकल लिए. मैने प्लेन मे अपने मोबाइल बंद कर दिए थे. लेकिन प्लेन से उतरने के बाद मैं अपने मोबाइल चालू करना भूल गया था.

मैने अपने मोबाइल चालू किए और समय देखा तो, अब 9 बज गये थे. मेहुल अभी भी हमारे पास ही खड़ा हुआ था. उसे इस तरह से खड़ा देख कर, मैने गुस्से मे उस से कहा.

मैं बोला “अबे यहा खड़े खड़े मेरा मूह क्यो देख रहा है. क्या मुझे भी अपने साथ फ्रेश होने लेकर जाने की सोच रहा है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति और शिल्पा हँसने लगी और मेहुल मुझे आँख निकाल कर देखने लगा. लेकिन फिर कीर्ति और शिल्पा को देख कर, पैर पटकता हुआ, फ्रेश होने बाथरूम मे चला गया.

उसके जाते ही, मैने मुस्कुराते हुए, शिखा दीदी को कॉल लगा दिया. मेरा कॉल जाते ही, शिखा दीदी ने फ़ौरन ही मेरा कॉल उठा लिया और मुझसे शिकायत करते हुए कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया ये क्या है. मैं जब भी आपको कॉल करती हूँ, आपका कॉल ही नही लगता.”

शिखा दीदी की इस बात पर मैने उन से माफी माँगते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी दीदी, वो क्या है कि, प्लेन से उतरने के बाद, मैं मोबाइल चालू करना भूल गया था. अभी पता चला कि, आप मुझे कॉल लगा रही है तो, मैने फ़ौरन मोबाइल चालू करके, आपको कॉल लगा दिया.”

शिखा दीदी बोली “चलो कोई बात नही, घर मे सब अच्छे तो है ना.”

मैं बोला “दीदी, घर मे सब अच्छे है. लेकिन अभी तक मैं अपने घर नही पहुचा हूँ. अभी तो मैं मेहुल के घर पर ही हूँ.”

शिखा दीदी बोली “लेकिन ये तो ग़लत बात है ना. घर मे सब आपका रास्ता देख रहे होगे.”

शिखा दीदी की इस बात पर मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, मेरा सारा घर उठ कर तो यही आ गया है. छोटी माँ, अमि, निमी सब यहीं पर है. अब यहाँ से खाना खाने के बाद ही, हम घर जाएगे.”

शिखा दीदी बोली “चलो, ये तो और भी अच्छा है. इतने दिन बाद, सब लोग एक साथ मिल कर खाना खाएगे. आंटी तो आज आपको अपने हाथ से ही खाना खिलाएगी.”

शिखा दीदी की ये बात सुनते ही, मैने थोड़ा उदास होते हुए कहा.

मैं बोला “कहा दीदी, खाना खिलाना तो दूर की बात है. अब वो मुझसे अच्छे से बात ही कर ले. मेरे लिए ये ही बड़ी बात है.”

मेरी बात सुनकर, शिखा दीदी ने थोड़ा परेशान होते हुए कहा.

शिखा दीदी बोली “क्यो, क्या हुआ. क्या आंटी किसी बात से आपसे नाराज़ हो गयी है.”

मैं बोला “हां दीदी, वो नीति ने यहाँ आते ही, उनको खालिद वाली बात बता दी. जिसे सुनकर, वो मुझसे बहुत ज़्यादा नाराज़ है.”

ये कहते हुए मैने शिखा दीदी को यहाँ हुई सारी बात बता दी. जिसे सुनने के बाद, उन्हो ने भी नितिका पर गुस्सा निकालते हुए कहा.

शिखा दीदी बोली “ये नीति पागल है क्या. इसे आंटी को ये सब बताने की क्या ज़रूरत थी. अब आप आंटी को सॉरी बोल कर, उनको जल्दी से मना लो.”

मैं बोला “दीदी, यदि उनको मनाना इतना ही आसान होता तो, अब तक मैं उनको मना चुका होता. लेकिन अब वो तो मुझे अपनी सफाई देने का भी कोई मौका नही देगी. पता नही अब उनका ये गुस्सा कब और कैसे ख़तम होगा.”

मेरी ये बात सुनकर, शिखा दीदी भी परेशान हो गयी. अभी मेरी उन से इसी बारे मे बात चल ही रही थी कि, तभी उनके पास कोई आ गया और उन्हो ने मुझसे कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया, हम सब डिन्नर कर रहे है. सीरू दीदी भी यही है और वो आपसे बात करना चाहती है. ये लीजिए, आप उनसे बात कर लीजिए.”

ये कहते हुए निशा दीदी ने सीरू दीदी को मोबाइल पकड़ा दिया. सीरू दीदी शायद मेरी और शिखा दीदी की बातें सुन चुकी थी. इसलिए उन्हो ने फोन लेते ही मुझसे कहा.

सीरत बोली “ये मैं क्या सुन रही हूँ. तुमने वाहा पहुचते ही ऐसा कौन सा बॉम्ब फोड़ दिया, जो आंटी तुमसे नाराज़ हो गयी.”

मैं बोला “दीदी, मैने यहाँ कोई बॉम्ब नही फोड़ा. ये तो उस बॉम्ब की गूँज है, जो मैने मुंबई मे फोड़ा था.”

ये कहते हुए मैने सीरू दीदी को भी नितिका वाली बात बता दी. जिसे सुनने के बाद, उन्हो ने हंसते हुए कहा.

सीरत बोली “अरे तो इसमे इतनी परेशानी वाली क्या बात है. तुम खाना पीना छोड़ दो. उनका गुस्सा खुद ख़तम हो जाएगा और वो उल्टा तुमको मनाने लगेगी.”

सीरू दीदी की ये बात सुनकर, मैने उनकी बात का मज़ाक उड़ाते हुए कहा.

मैं बोला “आप से मुझे ऐसी बच्कानी बात की उम्मीद नही थी. मेरी मों मेरी अच्छी बुरी हर आदत को जानती है. यदि मैने ऐसा कुछ किया तो, वो मुझे कुछ नही कहेगी. लेकिन मेरी जो दो छोटी बहनें है ना, उनसे कहेगी कि, तुम्हारा भाई खाना नही खा रहा और तुम दोनो बेशर्मो की तरह खाना खा रही हो.”

“इतना कह कर, वो तो शांत हो जाएगी. मगर मेरी दोनो बहनें खाना खाना छोड़ देगी और फिर मैं दस सर का भी हो जाउ तो, वो मेरे खाना खाए बिना, एक निबाला भी अपने मूह मे डालने वाली नही है. आपकी ये सलाह मेरी परेशानी को कम करने वाली नही, बल्कि मेरी परेशानी को बढ़ा देने वाली सलाह है.”

मेरी इस बात को सुनकर, सीरू दीदी ने हंसते हुए कहा.

सीरत बोली “लगता है कि, तुम इस तरीके को पहले ही आजमा कर देख चुके हो.”

मैं बोला “हां, आजमा कर देखा था. तभी तो बताया कि, मेरे ऐसा करने से क्या होगा.”

सीरत बोली “फिकर मत करो. तुम निशा भाभी से करो, तब तक मैं तुम्हारा ये मामला रफ़ा दफ़ा कर देती हूँ.”

ये कहते हुए सीरू दीदी ने फोन निशा भाभी को दे दिया. निशा भाभी ने फोन लेते ही कहा.

निशा भाभी बोली “क्या हीरो, यहाँ से जाते ही, यहा सब सूना सूना कर दिया. सब तुमको यहाँ बहुत याद कर रहे है.”

मैं बोला “भाभी, याद तो मुझे भी आप लोगों की बहुत आ रही है. आप सबके बिना मुझे भी यहाँ बहुत सूना सूना लग रहा है.”

निशा भाभी बोली “कोई बात नही. दो चार दिन मे सब सही हो जाएगा. लेकिन तुमने जाते ही, बरखा के साथ बहुत बुरा किया.”

निशा भाभी की बात सुनकर, मैने थोड़ा परेशान होते हुए कहा.

मैं बोला “क्यो भाभी, मैने बरखा दीदी के साथ ऐसा क्या कर दिया.”

मुझे इस तरह परेशान होते देख कर, निशा भाभी ने हंसते हुए कहा.

निशा भाभी बोली “अरे वो बेचारी कितना तुमको कॉल लगाती रही. लेकिन तुम हो कि, अपना मोबाइल चालू करने को ही तैयार नही थे. वो अभी कुछ देर पहले ही, तुमको याद करते करते घर गयी है.”

मैं बोला “सॉरी भाभी, मैं अभी थोड़ी देर बाद बरखा दीदी से भी बात कर लुगा.”

इसके बाद, निशा भाभी ने अमन को फोन दे दिया. अमन से बात करने के बाद, मैने अजय और बाकी सब से भी थोड़ी बहुत बात कि और फिर वापस फोन सीरू दीदी के हाथ मे आ गया. सीरू दीदी ने फोन पर आते ही कहा.

सीरत बोली “ये लो, मैने आंटी से बात करके तुम्हारा सारा मामला रफ़ा दफ़ा कर दिया.”

सीरू दीदी की ये बात सुनकर, मैने हैरान होते हुए कहा.

मैं बोला “क्या आप सच कह रही हो दीदी. लेकिन आपने छोटी माँ को इतनी जल्दी कैसे मना लिया.”

सीरत बोली “तुम आम खाओ, पेड़ मत जीनो और दोबारा फिर कभी ऐसी मुसीबत आए तो, सिर्फ़ सीरू देवी के नाम की माला जपना. वो तुम्हारे सारे कष्ट दूर करेगी बच्चा.”

ये बोल कर सीरू दीदी हँसने लगी और उनके साथ साथ मेरी भी हँसी छूट गयी. घर वापस आने के बाद, ये पहला मौका था, जब मैं खुल कर हंसा था. मुझे हंसते देख, कीर्ति के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी और उसने धीरे से शिल्पा के कान मे कुछ कहा, जिसे सुन ने के बाद, शिल्पा कमरे से बाहर चली गयी.

सीरू दीदी से थोड़ी बहुत बात और करने के बाद, मैने कॉल रख दिया. मेरे कॉल रखते ही, कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ये सीरू दीदी भी कमाल है. वहाँ बैठे बैठे ही, तुम्हारी इतनी बड़ी परेशानी को, चुटकी बजाते ही हाल कर दिया और तुम्हारे चेहरे की हँसी भी वापस ले आई.”

मैं बोला “उनको शैतानो की नानी ऐसे ही नही कहा जाता. हर कोई उनके शैतानी दिमाग़ से डरता है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने सवालिया नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्यो, क्या हमारी वाणी दीदी किसी से कम है. उनसे भी तो हर कोई डरता है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “हमारी वाणी दीदी किसी से कम नही, बल्कि बहुत ज़्यादा है. उनके पास सीरू दीदी से ज़्यादा तेज दिमाग़ और बरखा दीदी से ज़्यादा ताक़त है. सुंदरता मे तो, तू भी उनके सामने फीकी पड़ जाती है.”

“लेकिन उनकी सबसे बुरी बात ये है कि, उनका नाम भले ही वाणी हो, मगर काम बिल्कुल सूनामी वाला है. वो खराब ज़ुबान के मामले मे तो मोहिनी आंटी को भी बहुत पिछे छोड़ देती है.”

“यदि उनके पास मोहिनी आंटी की जगह शिखा दीदी वाली ज़ुबान होती तो, वो दुनिया की सबसे अच्छी दीदी कहलाती. मगर वो है कि, उन्हो ने तेरे सिवा किसी पर प्यार लुटाना सीखा ही नही है.”

“मुझे तो आज तक ये बात हजम नही हुई कि, हमारी दीदी किसी को लव करती है और उस से लव मॅरेज करने जा रही है. मुझे तो लगता है कि, हमारे होने वाले जीजू को हमारी दीदी ने ही “आइ लव यू” बोला होगा और हमारे जीजू बेचारे की उनको ना बोलने की हिम्मत ही ना हुई होगी.”

“तू देखना कि दीदी की शादी के बाद, यूएसए इंडिया मे ही आ जाएगा और हमारे जीजू नृ से इंडियन बन कर रह जाएगे. हमारे जीजू की किस्मत………”


अभी मैं अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था कि, धडाम की आवाज़ सुनकर, मेरी बात अधूरी छूट गयी. मैने और कीर्ति ने पलट कर देखा तो, मेहुल चारों खाने चित ज़मीन पर पड़ा था.

लेकिन उस से भी ज़्यादा डरने वाली बात ये थी कि, मेहुल के पास वाणी खड़ी थी और गुस्से मे मेरी तरफ ही देख रही थी. वाणी को इस तरह से अपने सामने पाकर, मेरे तो तोते ही उड़ गये.

मेहुल को क्या हुआ, कैसे हुआ, ये सब सोचने, समझने या किसी से पुच्छने की, अब मेरे अंदर ताक़त ही नही बची थी. वाणी के डर से मेरी ज़ुबान को लकवा मार गया था और मेरा कलेजा मूह को आने लगा.
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09-11-2020, 11:53 AM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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उसके खाने मे उबले आलू, पालक का सूप और चपाती थी. वो खाने की बहुत शौकीन थी और इस सब खाने को देखते ही, उसकी जान निकलने लगती थी. ऐसे मे उसे ये सब खाते देख कर, मेरी भूख ही मर गयी.

मैने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखों मे नमी को आने से रोका. लेकिन फिर मैं चाह कर भी, दोबारा अपने खाने को हाथ नही लगा पाया. मुझे एक बार फिर खाना ना खाते देख, कीर्ति फिर इशारे से इसकी वजह पुछने लगी.

लेकिन मैने मुस्कुराते हुए, ना मे सर हिलाया और फिर उसके सामने रखी आलू और चपाती उठाने लगा. वो शायद मेरे ऐसा करने का मतलब समझ गयी थी. इसलिए उसने मुझे ऐसा करने से रोकने के लिए मेरा हाथ पकड़ लिया.

उसके मेरा हाथ पकड़ते ही, मैने उसे गुस्से मे घूर कर देखा. मेरे घूर कर देखते ही, उसने मूह बनाते हुए, मेरा हाथ छोड़ दिया. उसके मेरा हाथ छोड़ते ही, मैं आलू और चपाती अपनी प्लेट मे रख कर खाने लगा.

कीर्ति को शायद मेरा ये सब खाना अच्छा नही लग रहा था और वो मूह बना कर बैठी थी. मैने उसे अपने हाथ की कोहनी मार कर, खाना खाने का इशारा किया तो, वो बुरा सा मूह बना कर खाना खाने लगी.

इस समय मैं तीन चार काम एक साथ कर रहा था. सबसे पहले तो मैं इस समय खाना खा रहा था और बरखा दीदी से फोन पर बात भी कर रहा था. इसके अलावा मैं अपने आस पास सब पर नज़र रखते हुए, कीर्ति को तंग करने मे भी लगा हुआ था.

मैं अपने आस पास के सभी लोगों पर नज़र रखे हुए था. लेकिन मेरी नज़र, मेरे बगल मे बैठी, अमि पर ज़रा भी नही थी. अचानक ही अमि पर कीर्ति की नज़र पड़ी और उसने मुझे अमि की तरफ देखने का इशारा किया.

कीर्ति का इशारा समझ मे आते ही, मैने पलट कर अमि की तरफ देखा तो, वो बड़े गौर से मुझे आलू और चपाती खाते देख रही थी. उसे इस तरह हैरान देख कर, मैने उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ बेटू, तू खाना क्यो नही खा रही है.”

मेरी बात सुनकर, अमि ने आलू और चपाती की तरफ इशारा करते हुए कहा.

अमि बोली “भैया, मुझे भी ये खाना है.”

उसकी इस बात के जबाब मे मैने उसको समझाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “बेटू, ये कीर्ति का खाना है. इस मे मिर्च मसाला कुछ भी नही है. इसे तू नही खा पाएगी.”

लेकिन अमि ने मेरी बात को काट कर ज़िद करते हुए कहा.

अमि बोली “नही, जब आप इसे खा सकते हो, तो मैं भी खा सकती हूँ. मुझे भी ये ही खाना है.”

उसकी बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए, आलू और चपाती उठा कर उसकी प्लेट मे डाल दिए. अमि को आलू चपाती खाते देख, निमी भी पिछे ना रही और वो भी खाने की ज़िद करने लगी.

आख़िर मे मुझे उसे भी वो सब देना पड़ गया. सब अमि निमी को ये सब खाते देख रहे थे. सब को अपनी तरफ देखते पाकर, निमी ने अपनी आदत के अनुसार, खाने की तारीफ करते हुए छोटी माँ से कहा.

निमी बोली “वा मम्मी, आप कितने टेस्टी आलू बनाती है. ये तो बिल्कुल गुलाब जामुन की तरह टेस्टी लग रहे है.”

निमी की ये बात सुनते ही, सब लोग हँसने लगे. लेकिन कीर्ति को ज़ोर का ठन्सका लग गया. मैने उसे उठा कर पानी दिया तो, उसने पानी पीते हुए, धीरे से मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “ये दोनो कितनी नौटंकी करती है. कल तक मेरा यही खाना देख कर, दोनो नाक मूह बनाया करती थी और आज देखो कैसे मज़े ले लेकर खा रही है. जैसे इस से ज़्यादा स्वादिष्ट कुछ हो ही ना.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “तू कहाँ इनकी बातों मे आती है. मैं जो कुछ भी खाउन्गा, वो खाना अमि की आदत है और अमि की नकल करना निमी की आदत है. लेकिन निमी की आदत ये भी है कि, वो हमेशा इस बात को छुपाने की कोसिस करती है कि, वो अमि की देखा निमी ऐसा कर रही है.”

“इसलिए वो जब कभी भी ऐसा कोई काम करती है तो, वो उस काम की दिल खोल कर तारीफ करती है और तारीफ करने मे ज़रा भी कंजूसी नही करती है. ताकि सबको ऐसा लगे कि, ये काम निमी को बहुत पसंद है और वो अमि की नकल नही कर रही है. अब ये बात अलग है कि, उसकी की गयी तारीफ किसी को हजम नही होती है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति खिलखिलाने लगी. इसी तरह आपस मे हँसी मज़ाक करते करते हम सब का खाना हो गया. खाने के बाद, मैने बरखा दीदी का कॉल रखा और फिर वाणी को उसका ब्लूटूथ हेडफोन्स वापस करने लगा.

लेकिन वाणी ने मुझसे अपना हेडफोन्स वापस लेने से मना कर दिया. वाणी को मुझसे अपना हेडफोन्स वापस लेते ना देख कर, कीर्ति उसे अपना हेडफोन्स वापस लेने के लिए भड़काने लगी.

मगर वाणी ने ये कह कर, मुझसे हेडफोन्स वापस लेने से मना कर दिया कि, वो हेडफोन्स का इस्तेमाल नही करती है. मैं कीर्ति की इस हरकत का मतलब अच्छे से समझ रहा था. वाणी के उसके पास से हटते ही, मैने कीर्ति को छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “खुद तो, हेडफोन्स लगा कर बात करती रहती है और अब यदि वाणी दीदी ने मुझे भी हेडफोन्स दे दिया है तो, जल जल कर आधी हुई जा रही है. अब तो मैं भी हेडफोन्स लगा कर ही बात किया करूगा.”

मेरी इस बात को सुनकर, कीर्ति ने गुस्से मे, मेरे हाथ से ज़बरदस्ती हेडफोन्स छीन लिया और मुझे धमकाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “इस हेडफोन्स को मैं आग लगा दुगी, लेकिन तुमको वापस नही करूगी. जब मैने एक बार कह दिया कि, तुम मुझसे हेडफोन्स लगा कर बात नही करोगे तो, मतलब नही करोगे.”

ये कह कर, वो मुझ पर बड़बड़ाते हुए, नितिका और शिल्पा के पास चली गयी. उसकी इस हरकत पर मैं मुस्कुरा कर रह गया. इसके बाद, हम लोगों ने अंकल आंटी से विदा ली और अपने घर के लिए निकल पड़े.

रात को 11:00 बजे हम अपने घर पहुच गये. घर मे चंदा मौसी बड़ी बेसब्री से हमारे आने का इंतजार कर रही थी. वैसे तो उनकी आदत रोज 11 बजे के पहले ही सो जाने की थी.

लेकिन आज शायद मेरे घर वापस आने की वजह से वो अभी तक जाग रही थी. मैने उनको देखते ही, उनके पास जाकर उनके पैर छुये तो, उन्हो ने मेरी बालाएँ लेते हुए, मुझे अपने गले से लगा लिया.

चंदा मौसी को जब पता चला कि, मैं मेहुल के घर से खाने के बाद, बिना चाय पिए ही घर आ गया हूँ तो, वो मेरे बार बार मना करने के बाद भी, मेरे लिए चाय बनाने चली गयी.

वाणी ने चंदा मौसी से चाय के लिए मना किया और अपने लिए दूध भेजने का बोल कर, अपने कमरे मे चली गयी. चंदा मौसी ने मुझे चाय दी और फिर वाणी के लिए दूध लेकर उपर जाने लगी. लेकिन कीर्ति ने उनको रोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे मौसी आप बेकार मे क्यो परेशान हो रही है. ये दूध मुझे दे दीजिए, मैं उपर जाउन्गी तो, दीदी को दे दूँगी.”

कीर्ति की बात सुनकर, चंदा मौसी ने दूध का गिलास कीर्ति के पास लाकर रख दिया और वो अपने कमरे मे चली गयी. चाय पीने के बाद, हम सब उपर आ गये. अमि निमी और कीर्ति मुझे गुड नाइट बोल कर, अपने अपने कमरे मे चली गयी.

उनके जाने के बाद, मैं भी अपने कमरे मे आ गया. अपने कमरे को देख कर, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मेरे कमरे की हर चीज़ सलीके से सजी हुई रखी थी और कमरा बहुत ज़्यादा सॉफ सुथरा नज़र आ रहा था.

मैं मुस्कुराते हुए मूह हाथ धोने चला गया. मूह हाथ धोने के बाद, मैने नाइट सूट पहना और बेड पर आकर लेट गया. मेरी आँखों मे बार बार कीर्ति का चेहरा आ रहा था और मेरा मन उसके पास जाने का कर रहा था.

लेकिन वाणी के होने की वजह से, कीर्ति के पास जाने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी. कीर्ति भी शायद इसी वजह से मुझे गुड नाइट कह कर सोने चली गयी थी और आज उसके मेरे पास सोने आने की कोई उम्मीद नही थी.

मेरा दिल इस समय कीर्ति के लिए बहुत ज़्यादा बेचैन था और मैं उसे अपने सीने से लगाने के लिए तड़प रहा था. अपनी इसी तड़प मे मैने अपना मोबाइल निकाला और कीर्ति को कॉल लगाने लगा.

लेकिन मेरे कॉल लगाने के पहले ही, कीर्ति का कॉल आने लगा. मेरे कॉल उठाते ही, उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “जल्दी से दरवाजा खोलो, मैं बाहर खड़ी हूँ.”

इतना बोल कर, उसने कॉल काट दिया. उसके कॉल काटते ही, मैने मोबाइल बिस्तर पर फेका और फ़ौरन दरवाजा खोलने के लिए दौड़ लगा दी. मेरे दरवाजा खोलते ही, कीर्ति जल्दी से अंदर आई और फिर उसने खुद ही दरवाजा बंद कर दिया.

दरवाजा बंद करने के बाद, वो सीधे मुझसे आकर लिपट गयी. मैं इस एक पल के लिए, ना जाने कब से तड़प रहा था और ना जाने कब तक ऐसे ही तड़प्ता रहता. लेकिन कीर्ति ने एक ही पल मे मेरी सारी तड़प को ख़तम कर दिया था.

कीर्ति के मेरे सीने से लगते ही मेरे तन मन मे सुकून की एक लहर सी दौड़ गयी और मैने भी उसे अपनी बाहों मे ज़ोर से जाकड़ लिया. कुछ देर के लिए हम दोनो एक दूसरे की बाहों मे खो से गये.

ना तो कीर्ति कुछ बोल रही थी और ना ही मैं कुछ बोल रहा था. लेकिन ऐसे ही खड़े खड़े कीर्ति थक गयी और उसने अपना वजन मेरी बाहों मे डाल दिया. उसकी इस बात से मुझे मुझे अहसास हुआ कि, अभी उसकी तबीयत सही नही है.

इस बात का अहसास होते ही, मैने फ़ौरन कीर्ति को अपनी बाहों से आज़ाद किया और उसे बेड पर लाकर बैठा कर, मैं खुद उसके सामने ज़मीन पर बैठ गया. मैने उसका हाथ, अपने हाथ मे थामते हुए उस से कहा.

मैं बोला “ये तूने अपनी क्या हालत बना ली है. तूने तो मेरी जान निकाल कर रख दी है.”

मेरी इस बात पर कीर्ति ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “मेरी जान तो तुम हो. जब मेरी जान ही मेरे पास नही थी तो, मेरी तबीयत को खराब होना ही था. लेकिन अब तुम आ गये हो तो, देखना मेरी तबीयत भी बिल्कुल ठीक हो जाएगी.”

मैं बोला “लेकिन तूने मुझसे वादा किया था कि, तू मेरे आने तक, मेरी जान का ख़याल रखेगी. मगर तूने अपना वादा नही निभाया.”

मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने बड़े ही भोलेपन से कहा.

कीर्ति बोली “इसमे मेरी ज़रा भी ग़लती नही है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने उस पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “इसमे तेरी ग़लती नही है तो, क्या इस सब मे मेरी ग़लती है.”

कीर्ति बोली “हां, ये सब तुम्हारी ही वजह से हुआ है. तुम बात बात पर मेरी झूठी कसम खाते रहते हो और फिर ज़रा सा भी गुस्सा आने पर मेरी कसम को तोड़ देते हो.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैं हैरानी से उसको देखता रह गया. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, अब ये कौन सी कसम ना मानने की बात कर रही है. इसलिए मैने कीर्ति से इस बात को पुछ्ते हुए कहा.

मैं बोला “तू किस कसम की बात कर रही है. अब मैने तेरी कौन सी कसम को नही माना है.”

कीर्ति बोली “क्यो इतनी जल्दी भूल गये. तुमने जाती समय मुझसे कहा था कि, तुम कभी किसी बात पर मुझ पर गुस्सा नही करोगे. लेकिन तुमने इसके बाद भी मुझ पर बार बार गुस्सा किया और यहाँ आकर मेरी कसम खाने के बाद भी, तुमने दोबारा शराब को हाथ लगाया.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो गया. वो ग़लत नही कह रही थी. इसलिए मैने इस बात के लिए उस से माफी माँगते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी, मुझसे सच मे बहुत बड़ी ग़लती हुई है. लेकिन तू अपनी खुद की ग़लती क्यो नही देखती है. तू खुद ही तो, मुझे गुस्सा दिलाने वाली हरकत करती रहती है.”

मेरी इस बात को सुनकर, कीर्ति ने अपनी ग़लती से सॉफ सॉफ मुकरते हुए कहा.

कीर्ति बोली “नही, मैने तुमको गुस्सा दिलाने वाली कोई हरकत नही की है. तुम ही बेकार मे मुझ पर गुस्सा करते रहते हो.”

अपनी ग़लती से कीर्ति को सॉफ मुकरते देख कर, मैने उसको उसकी ग़लती याद दिलाते हुए कहा.

मैं बोला “तो फिर मुझसे जितने की बात पर झगड़ा करना किसने सुरू किया था. मुझे तो अभी तक, वो तेरे झूठा गुस्सा करने की बात समझ मे नही आई है.”

मेरे मूह से ये बात सुनकर, कीर्ति ने उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हां हां, मुझे कुछ समझाने की कोशिस मत करो. मैं सब समझ गयी हूँ. मैं ही हर बार ग़लत होती हूँ. तुम्हारी तो कहीं कोई ग़लती होती ही नही है. मैं ही तुमको ज़बरदस्ती कसम दिलाती हू और फिर मैं ही तुम्हे कसम तोड़ने के लिए मजबूर कर देती हूँ.”

इतना बोल कर वो मूह फूला कर बैठ गयी. मैं तो बस उसे अपनी बात की सफाई देना चाहता था. मेरा इरादा उसे नाराज़ करने का हरगिज़ नही था. मैने उसे अपनी बात से इस तरह नाराज़ होते देखा तो, मैने उसे मनाते हुए कहा.

मैं बोला “देख, मैं तेरी किसी बात मे कोई ग़लती नही गिना रहा हूँ. मुझे पता है कि, तू जो भी करती है, मेरे लिए ही करती है. मैं ही पागल हूँ, जो तेरी किसी बात को समझ नही पाता हूँ और तुझ पर गुस्सा करने लगता हूँ.”

“लेकिन अब तू इस ज़रा सी बात को लेकर, ऐसे मूह फूला कर मत बैठ. मुझसे तेरा ऐसा उतरा हुआ चेहरा नही देखा जाता है. थोड़ी देर के लिए मिली है और उस पर भी मूह फूला कर बैठ गयी है.”

मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने मेरी बात को काटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “थोड़ी देर के लिए नही, मैं सारी रात तुम्हारे साथ हूँ.”

मैं बोला “पागल मत बन, अभी वाणी दीदी यहाँ पर है और ऐसे मे तेरा मेरे साथ रहना ठीक नही है.”

कीर्ति बोली “तुम उनकी चिंता मत करो. मैने उनके दूध मे नींद की गोलियाँ मिला दी है. अब वो सुबह के पहले नींद से नही जागेगी.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मैं हँसे बिना नही रह सका. मैने हंसते हुए उस से कहा.

मैं बोला “तू नही सुधरेगी, तूने वाणी दीदी को भी नही छोड़ा.”

कीर्ति बोली “मैं ऐसा नही करती तो, वाणी दीदी रात को उठ उठ कर मुझे देखने आती रहती. मेरे पास ऐसा करने के सिवा, तुमसे मिलने का कोई दूसरा रास्ता ही नही था.”

कीर्ति की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “चल ठीक है, अब ये सब बेकार की बातें छोड़ और मुझे एक प्यारी सी क़िस्सी दे दे.”

ये कहते हुए, मैं कीर्ति के पास आकर, बैठ गया. लेकिन उसने मुझे किस देने से मना करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मेरी तबीयत खराब है और तुमको किसी लेने की पड़ी है.”

मैं बोला “अरे मैने ऐसा क्या बुरी बात कह दी है. एक क़िस्सी देने से तेरी तबीयत को कुछ नही होने वाला है.”

कीर्ति बोली “मुझे मेरी ज़रा भी फिकर नही है. लेकिन किसी देने से मेरी बीमारी तुमको लग सकती है. इसलिए जब तक मैं पूरी तरह से ठीक नही हो जाती, तब तक तुमको कोई किसी नही मिलेगी.”

कीर्ति अपनी धुन मे अपनी बात कहे जा रही थी की, मैने उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए. लेकिन कीर्ति ने जल्दी से अपने आपको मुझसे छुड़ाया और फिर प्यार से मेरे सीने पर घूसों की बरसात करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुम मुंबई जाकर बहुत गंदे हो गये हो. मेरी एक भी बात नही मानते.”

उसकी इस हरकत पर मैने हंसते हुए, उसे खीच कर, अपने सीने से लगा लिया. कीर्ति ने भी मुझे अपनी बाहों मे जाकड़ लिया. अभी हम दोनो एक दूसरे की बाहों मे थे कि, तभी किसी ने मेरा दरवाजा खटखटा दिया.

दरवाजे पर खटखटाने की आवाज़ सुनते ही, हम दोनो चौक गये और हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे. इतने समय दरवाजे पर वाणी के अलावा किसी और के होने का सवाल ही पैदा नही होता था.

ये बात समझ मे आते ही, कीर्ति ने मेरे कान मे कुछ कहा और वो भाग कर बाथरूम मे चली गयी. उसके बाथरूम मे जाते ही, मैने उठ कर दरवाजा खोला तो, सामने वाणी ही खड़ी थी.

वाणी का चेहरा गुस्से मे लाल था. उसने एक नज़र मुझे उपर से नीचे तक देखा और फिर गुस्से मे मुझसे कहा.

वाणी बोली “मुझे अभी मेहुल से बात करना है. उसका कोई दूसरा नंबर हो तो मुझे दो.”

मैं बोला “नही दीदी, उसके पास एक ही नंबर है. आप उसी पर कॉल कर लीजिए.”

वाणी बोली “उसका वो नंबर बंद है. तुम उस से बात करने की कोसिस करो, तब तक मैं एक ज़रूरी कॉल करके आती हूँ.”

ये कह कर वाणी वापस चली गयी. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, वाणी इतना गुस्से मे क्यो है. वाणी के मेरे पास से जाते ही, कीर्ति बाथरूम से बाहर निकल कर आ गयी.

वो शायद मेरी और वाणी की सारी बातें सुन चुकी थी. इसलिए उसने बाहर आते ही, मुझसे सवाल करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या हुआ, वाणी दीदी इतने गुस्से मे क्यो थी.”

मैं बोला “मुझे क्या पता. उनकी बातों से तो ऐसा लगता है कि, मेहुल ने कुछ किया है और अब अपना मोबाइल बंद करके बैठ गया है. वाणी दीदी मेहुल से बात करने के चक्कर मे तेरे पास भी आ सकती है. तू उनके लौट कर आने के पहले अपने कमरे चली जा. वरना मेहुल के चक्कर मे हम लोग भी फस सकते है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति जल्दी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी और मैं बाहर निकल कर उसे जाते हुए देखने लगा. वाणी और कीर्ति का कमरा आमने सामने था. मगर दरवाजा आमने सामने नही था.

अभी कीर्ति अपने कमरे के दरवाजे को खोल ही रही थी कि, तभी वाणी अपने कमरे से बाहर निकल आई. उसने कीर्ति को दरवाजे पर खड़ी देखा तो, वो समझ नही पाई कि, कीर्ति अपने कमरे से बाहर आ रही है या कमरे के अंदर जा रही है. इसलिए उसने कीर्ति को देख कर, उस से कहा.

वाणी बोली “क्या हुआ, तू इतनी रात को कहाँ जा रही है.”

वाणी को इस तरह से अचानक अपने सामने देख कर, एक पल के लिए कीर्ति हड़बड़ा गयी और उसने पलट कर, मेरी तरफ देखा. मैं भी वाणी के ऐसे अचानक आ जाने से हड़बड़ा गया था.

अब मुझे इस बात का पछतावा हो रहा था कि, मैने कीर्ति को बाथरूम मे ही क्यो नही रहने दिया. मैने उसे इस समय अपने कमरे मे वापस जाने के लिए क्यो बोला. मेरी वजह से वो वाणी के सामने फस चुकी थी.

लेकिन कीर्ति वाणी के इस सवाल से ज़रा भी नही घबराई. उसने वाणी की इस बात के जबाब मे मुस्कुराते हुए उस से कहा.

कीर्ति बोली “दीदी, मैने अभी किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज़ सुनी थी. मैं ये ही देखने बाहर आई थी कि, इतनी रात को कौन, किसका दरवाजा खटखटा रहा है. वो क्या है ना कि, यदि निमी नींद से जाग जाती है तो, फिर वो पूरी रात परेशान करती है.”

कीर्ति का ये जबाब सुनकर, मैने सुकून की साँस ली. वही वाणी के चेहरे से ऐसा लगा, जैसे की, उसने कोई ग़लती कर दी हो. उसने कीर्ति की बात के जबाब मे उस से कहा.

वाणी बोली “सॉरी, वो मैं ही पुन्नू को जगा रही थी. तू परेशान मत हो और जाकर सो जा. तेरा इतनी रात तक जागना ठीक नही है.”

कीर्ति बोली “ठीक है दीदी, मैं अभी जाकर सो जाती हूँ. लेकिन आप अभी तक क्यों जाग रही है और इतनी रात को आपको पुन्नू से क्या काम पड़ गया था. यदि मेरे लायक काम हो तो, मुझे बता दीजिए.”

वाणी बोली “नही, कोई खास काम नही है. मुझे बस मेहुल से बात करना है.”

कीर्ति बोली “लेकिन दीदी, मेहुल तो जल्दी सो जाता है और अपना मोबाइल भी बंद करके रख देता है. इतनी समय तो, आपकी उस से बात हो पाना मुश्किल है.”

कीर्ति की बात सुनकर, वाणी ने कुछ सोचा और फिर कीर्ति से कहा.

वाणी बोली “चल ठीक है. मैं कल उस से बात कर लूँगी. तुम लोग जाकर सो जाओ.”

मगर कीर्ति ने बात को कुरेदते हुए वाणी से कहा.

कीर्ति बोली “लेकिन दीदी, आप मेहुल से इतनी रात को क्यों बात करना चाहती है. क्या मेहुल से कोई ग़लती हो गयी है.”

कीर्ति का ये तीर सही निशाने पर लगा. कीर्ति की इस बात को सुनकर, वाणी ने मेहुल के उपर भन्नाते हुए कहा.

वाणी बोली “तू खुद चल कर देख ले कि, उस नालयक ने मेरे साथ क्या हरकत की है.”

ये कहते हुए वाणी कीर्ति को अपने साथ, अपने कमरे मे लेकर चली गयी. वाणी की बात से ये तो सॉफ हो गया था कि, मेहुल ने कुछ किया है और वो ही दिखाने के लिए वाणी कीर्ति को अपने साथ अपने कमरे मे लेकर गयी है.

ये बात समझ मे आ जाने के बाद भी, मेहुल के कारनामे को जानने के लिए, वाणी के कमरे मे जाने की मेरी हिम्मत नही हुई. क्योकि वाणी से ज़्यादा डर, मुझे मेहुल के दिमाग़ से लगता था.

मेहुल का दिमाग़ दो धारी तलवार था. उसके दिमाग़ मे बहुत धमाकेदार आइडिया आते थे. उसके इन धमाकेदार आइडिया से सामने वाला घायल हो या ना हो. लेकिन खुद के घायल होने की पूरी उम्मीद रहती थी.

बचपन से लेकर अभी तक, मेहुल के ये धमाकेदार आइडिया अपने धमाको मे मुझे ही उड़ाते आ रहे थे. इसलिए मैने मेहुल के किए इस नये कांड से दूर रहने मे ही अपनी भलाई समझी और मैं अपने कमरे के बाहर ही खड़ा रहा.

मैं अपने कमरे के बाहर खड़ा कीर्ति के आने का इंतजार कर रहा था. तभी मेरे मोबाइल की एसएमएस टोन बजने लगी. एसएमएस टोन सुनकर, मुझे लगा कि, कहीं कीर्ति ने कुछ कहने के लिए एसएमएस किया हो.

ये बात दिमाग़ मे आते ही, मैं फ़ौरन अपने मोबाइल के पास आ गया और मैं मोबाइल उठा कर एसएमएस देखने लगा. लेकिन ये कीर्ति का नही, प्रिया का एसएमएस आया था. मैं प्रिया का एसएमएस पढ़ने लगा.

प्रिया का एस एम एस
“वादा करके निभाना उनकी आदत हो ज़रूरी तो नही.
भूल जाना मेरी फ़ितरत हो ज़रूरी तो नही.
मेरी तनहाईयाँ करती है जिन्हे याद सदा,
उनको भी मेरी ज़रूरत हो ज़रूरी तो नही.”
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09-11-2020, 11:54 AM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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प्रिया के इस एस एम एस को देख कर, मुझे याद आया कि, जब कीर्ति ने प्रिया से एस एम एस मे बात की थी. तब प्रिया ने अपने एस एम एस मे कहा था कि, “मैं जाकर खाना खा लेती हूँ. लेकिन तुम अपना वादा मत भूलना.”

मैं ये तो नही जानता था कि, कीर्ति ने प्रिया से क्या वादा किया है. लेकिन इतना ज़रूर जानता था कि, कीर्ति ने प्रिया से जो भी वादा किया है, वो वादा एस एम एस मे किया है. इसलिए मैं उस वादे को जानने के लिए, प्रिया वाला मोबाइल देखने लगा.

लेकिन प्रिया वाला मोबाइल मैं अपनी पॅंट्स की जेब से निकालना भूल गया था और वो अभी मेरी पॅंट्स की जेब मे ही था. मैं उठ कर, अपनी पॅंट्स की जेब से प्रिया वाला मोबाइल निकालने लगा.

तभी कीर्ति वापस आ गयी. उसने कमरे मे आते ही, दरवाजा बंद किया और मेरे हाथ मे पॅंट को देख कर कहा.

कीर्ति बोली “क्या हुआ, अब इतनी रात को कहाँ जाने की तैयारी कर रहे हो.”

उसकी बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “मैं कहीं नही जा रहा. ये प्रिया वाला मोबाइल मेरी जेब मे ही रह गया था. उसे निकाल रहा था.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति बेड पर आकर, टेक लगा कर बैठ गयी और फिर मेरी तरफ शरारत भरी नज़रों से देखते हुए कहा.

कीर्ति बोली “सब ख़ैरियत तो है ना. तुम्हे इतनी रात को प्रिया वाले मोबाइल की ज़रूरत क्यो पड़ गयी.”

कीर्ति ये बात सिर्फ़ मुझे तंग करने के लिए, बोल रही थी. उसने यदि ये बात किसी और समय मुझसे बोली होती तो, मैने यक़ीनन उसकी इस बात पर, उसे अपनी सफाई देना सुरू कर दिया होता.

लेकिन इस समय मेरे दिमाग़ मे, वाणी का गुस्से वाला चेहरा घूम रहा था और अभी कीर्ति का इस तरह मेरे पास बेफिकर होकर, बैठना यही बता रहा था कि, वो सब कुछ ठीक करके आ रही है.

उसकी इस बेफिक्री ने मेरे अंदर की उत्सुकता को बढ़ा दिया था. मैने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और फिर उसके पास आकर बैठते हुए कहा.

मैं बोला “तू अपनी ये सब बातें बाद मे कर लेना. सबसे पहले मुझे ये बता कि, वाणी दीदी इतनी ज़्यादा किस बात के लिए मेहुल पर भड़क रही थी. आख़िर मेहुल ने क्या किया था.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा.

कीर्ति बोली “कुछ मत पुछो, बस इतना समझ लो कि, मैने बड़ी मुश्किल से वाणी दीदी को समझाया है. वरना मेहुल के तो लेने के देने पड़ गये होते.”

मैं बोला “ज़्यादा पहेलियाँ मत बुझा और सीधी तरह से बता कि, मेहुल ने क्या किया है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मेहुल ने वाणी दीदी को लड़कियों वाले कपड़े दिए थे.”

कीर्ति की इस बात पर मैने लापरवाही से कहा.

मैं बोला “तो इसमे गुस्सा होने वाली बात क्या थी. उसने तो वो कपड़े सबके सामने दिए थे और वाणी दीदी तो उसकी बहुत तारीफ कर रही थी.”

मेरी इस बात पर कीर्ति ने एक नज़र मुझे गौर से देखा और फिर अपनी बात को समझाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे तुम मेरी बात को ब्लिकुल भी नही समझे. मेहुल ने वाणी दीदी को लड़कियों के अंदर पहनने वाले कपड़े भी दिए है.”

कीर्ति की इस बात पर मुझे एक ज़ोर का झटका सा लगा. मैने हैरान होते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “तेरा कहने का मतलब है कि, मेहुल ने वाणी दीदी को ब्रा और पैंटी दी है.”

मेरी बात सुनते ही, कीर्ति ने मेरी पीठ पर मुक्का मारते हुए कहा.

कीर्ति बोली “छि… गंदे, जो भी मूह मे आता है, बोलते चले जाते हो.”

मैं बोला “इसमे गंदा क्या है. क्या मेहुल ने ये नही दिया.”

कीर्ति बोली “मेहुल ने ये ही दिया है. लेकिन मेरे सामने इनका नाम लेते हुए तुमको ज़रा भी शरम नही आई.”

कीर्ति की ये बात सुनकर मैं हैरानी से उसको देखने लगा. मेरी हैरानी की वजह ये थी कि, मैने आज तक कीर्ति को किसी बात के लिए इस तरह से झिझकते नही देखा था. मेरे और उसके बीच बहुत बार सेक्स से जुड़ी बातें भी हो चुकी थी.

इसी वजह से मैं इस बात को बिना किसी हिचक के कह गया था. लेकिन इस सब मे एक सच ये भी था कि, हर बार ये बात मेरी ही तरफ से की गयी थी. कीर्ति ने कभी इस तरह की कोई बात नही की थी.

मुझे उसका इस बात पर शरमाना अच्छा लगा था. कीर्ति बेड पर पैर फैला कर, टिक कर बैठी हुई थी और मैं बेड से नीचे पैर लटका का बैठा हुआ था. मेरा मन कीर्ति के साथ शरारत करने कर रहा था.

इसलिए मैने कीर्ति को छेड़ने के लिए, अपनी पीठ कीर्ति की तरफ की और अपने दोनो हाथ पर अपने सर को टिका कर बैठते हुए खुद से कहा.

मैं बोला “हे भगवान, मेरी तो किस्मत ही फुट गयी.”

कीर्ति मेरी इस शरारत को समझ नही पाई और उठ कर मेरे पास आ गयी. उसने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “ये अचानक तुमको क्या हो गया. तुम अपनी फूटी किस्मत का रोना क्यो रो रहे हो.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर, मैने बड़ी ही गंभीरता से कहा.

मैं बोला “मैं अपनी फूटी किस्मत का रोना ना रोऊ तो, और क्या करू. जो लड़की ब्रा और पैंटी का नाम लेने से ही शरमाती है, वो भला मुझे बुबू कैसे पिलाएगी.”

मेरा इतना कहना था कि, कीर्ति ने धमा-धम मेरी पीठ पर घूसों की बरसात कर दी. लेकिन मैं था कि, अपना पेट पकड़ कर हंसता जा रहा था. वो जब मुझे पीटती पीटती थक गयी तो, उसने अपने दोनो हाथों से मेरे कंधों को थाम कर, मेरी पीठ पर अपना सर टिका लिया.

उसका सर मेरी पीठ से लगते ही, मुझे उसके हांपने का अहसास हुआ. वो शायद मुझे इतना सा पीटने मे ही बहुत थक गयी थी और वो अब मेरी पीठ पर सर रख कर, अपनी साँसों पर काबू पाने की कोसिस कर रही थी.

मैं भी खामोश बैठा बस उसकी इस हरकत को मेहूसुस कर रहा था. कुछ देर बाद, जब उसकी साँसे सामान्य हुई तो, उसने बड़े प्यार से मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “तुम मुंबई जाकर सच मे बहुत बिगड़ गये हो. ये सब रिया की ही संगत का असर है. जो तुम इतना सब कुछ बोलने लगे हो.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मुझे रिया की बात याद आ गयी. लेकिन इस समय मैं किसी और की बात करके इस लम्हे को किसी भी हालत मे खोना नही चाहता था. इसलिए मैने बात को बदलते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “अपना दोष किसी दूसरे के सर पर डालने की कोसिस मत कर, ये सब तेरी संगत का असर है. तूने ही मुझे बिगाड़ा है.”

कीर्ति बोली “झूठे, मैने तुमको कब और कैसे बिगाड़ा है.”

मैं बोला “तू ही तो मुझसे बात बात पर क़िस्सी मांगती रहती है और अब खुद ही पुच्छ रही है कि, मैने तुमको कब और कैसे बिगाड़ा है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति मेरी चाल को समझ नही पाई और उसने बड़े भोलेपन से अपनी सफाई देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हां, मैं तुमसे किस्सी मांगती हूँ. लेकिन तुमको वो सब गंदी बातें मैने तो नही सिखाई है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने भी भोलेपन का नाटक करते हुए कहा.

मैं बोला “अरे इसमे गंदी वाली बात क्या है. तू तो किस्सी मे मेरी सारी ताक़त चूस लेती है. मुझे भी तो ताक़त के लिए बुबू पीना मिलना चाहिए ना.”

मेरी इस बात को सुनकर, कीर्ति को मेरी शरारत समझ मे आ चुकी थी. उसने दोबारा मेरी पीठ पर, प्यार से एक मुक्का मारा और फिर अपने दोनो हाथ आगे करके, मुझे अपनी बाहों मे जाकड़ कर, फिर से अपना सर मेरी पीठ पर टिकाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “आज तुमको बहुत शरारत सूझ रही है. लेकिन यदि मैने शरारत करना सुरू कर दिया तो, फिर तुम भागते हुए नज़र आओगे.”

ये कह कर उसने मुझे और भी ज़ोर से अपनी बाहों मे जाकड़ लिया. उसके इस तरह से मुझे जकड़ने से, मुझे उसके बूब्स का अहसास, मेरी पीठ पर होने लगा था. मैने फिर से उसे छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “ये क्या कर रही है. क्या तुझे ये भी नही पता कि, बुबू कैसे पिलाया जाता है.”

कीर्ति मेरी इस बात का मतलब समझ गयी थी. उसने मेरी बात सुनते ही, मेरे कंधे पर, अपने दाँत गढ़ा दिए. जिस वजह से मैं खुद को उस से छुड़ाने की कोसिस करने लगा. लेकिन कीर्ति ने मुझ पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अपनी हरकत से बाज आ जाओ, वरना बाद मे बहुत पछ्ताओगे.”

लेकिन उसकी इस धमकी के बाद भी मैने उसे तंग करना बंद नही किया और उसे फिर से छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “अपना खाना तुझे याद रहता है. कभी कभी मेरे पीने का भी कुछ ख़याल कर लिया कर ना.”

मेरी ये बात सुनते ही, कीर्ति ने इस बार मेरी गर्दन पर अपने दाँत गढ़ा दिए. लेकिन इस बार वो यही पर नही रुकी और मेरी गर्दन पर दाँत गढ़ाने के बाद, अपने बूब्स मेरी पीठ पर रगड़ने लगी.

उसकी इस हरकत से मैं सिहर उठा और सच मे मेरी हालत खराब होने लगी. अब यदि मेरे परेशान होने की बात उस पर जाहिर होती तो, वो मुझे परेशान करने से बाज आने वाली नही थी. इसलिए मैने बड़ी ही होशियारी से उसका ध्यान इस बात पर से हटाते हुए कहा.

मैं बोला “ऐसे बात बात पर काटती क्यो है. मैं तो बस तुझे थोड़ा सा तंग कर रहा था. चल अब मज़ाक करना बहुत हो गया. अब मुझे ये बता कि, तूने वाणी दीदी के गुस्से को कैसे शांत किया.”

मेरी इस बात क सुनकर, सच मे ही कीर्ति का ध्यान इस बात पर से हट गया और उसने अपनी हरकत बंद कर के, फिर से मेरी पीठ पर सर टिकाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “इसमे करना क्या था. मैने उन्हे सच बता दिया कि, मेहुल शिल्पा से प्यार करता है और वो ये अंदर के कपड़े शिल्पा के लिए ही लाया होगा. वो शायद उन कपड़ो को आपके कपड़ो मे छुपा कर ला रहा होगा. मगर आपको कपड़े देती समय उसे ये बात याद नही रही होगी.”

मैं बोला “कमीना अपनी होशियारी मे खुद ही मर गया. उसने वाणी दीदी के गुस्से से बचने के लिए, उनको शिल्पा के लिए खरीदे हुए, जीन्स और टी-शर्ट दे दिए थे. अब अपने बिच्छाए जाल मे खुद ही फस गया. आख़िर उसे ये सब फालतू की चीज़ें खरीदने की ज़रूरत ही क्या थी.”

मेरी ये बात सुनकर, कीर्ति ने मेहुल का बचाव करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हां, तुम्हारी ये बात सही है कि, मेहुल की ज़रूरत से ज़्यादा होशियारी ने उसे फसा कर रख दिया है. लेकिन तुम्हारी ये बात सही नही है कि, मेहुल ने कुछ फालतू का समान खरीदा था. आज कल तो हर लड़का अपनी गर्लफ्रेंड के लिए, ये ही सब चीज़ें खरीदता है.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मैने मन ही मन मेहुल को हज़ारों गालियाँ दी कि, खुद तो, इन चीज़ों को खरीदने की वजह से फस गया है और अब मुझे इन चीज़ों को ना खरीदने की वजह से फसाने जा रहा है.

अब यदि मैं इस बात को लेकर, कीर्ति से बहस करता तो, वो मुझ पर ही उल्टी चढ़ाई कर देती. इसलिए मैने मेहुल की बात से किनारा कर लेने मे ही अपनी भलाई समझी और बात का रुख़ बदलते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “चल मैं तेरी ये बात मान लेता हूँ. लेकिन अभी भी एक बात मेरी समझ ने नही आ रही कि, तूने तो वाणी दीदी के दूध मे नींद की गोलियाँ मिला दी थी. फिर वो अभी तक कैसे जाग रही थी.”

कीर्ति बोली “मैने उनके दूध मे नींद की सिर्फ़ एक गोली ही मिलाई थी. लेकिन मुझे क्या पता था कि, उन्हे रोज नींद की दो गोलियाँ खा कर सोने की आदत है. जिस वजह से उन्हे नींद की एक गोली का असर ही नही हुआ था.”

कीर्ति की इस बात पर मैने थोड़ा परेशान होते हुए कहा.

मैं बोला “फिर तो वो अभी भी जाग रही होगी. ऐसे मे तुझे यहाँ वापस नही आना चाहिए था.”

कीर्ति बोली “अब उन्हे नींद के फरिश्ते भी जगाए तो, वो नही जागने वाली है. उन्हो ने मेरे सामने ही नींद की दो गोलियाँ गटक ली है.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर, मैने घबराते हुए कहा.

मैं बोला “अबे ये तूने क्या किया. तूने उन्हे दोबारा गोलियाँ खाने से रोका क्यो नही. कहीं कुछ उल्टा सीधा ना हो जाए.”

कीर्ति बोली “तुम बेकार मे परेशान मत हो. दीदी रोज दो गोलियाँ खाती है. एक गोली ज़्यादा खा लेने से उनका कोई नुकसान नही होगा. लेकिन उनके एक गोली ज़्यादा खा लेने से हमारा ये फ़ायदा ज़रूर हो गया है कि, अब हम बेफिकर होकर एक दूसरे के साथ रह सकते है.”

इतना कहकर, वो अपने गाल मेरी पीठ पर रगड़ने लगी और मैं भी खामोशी से उसकी हरकत को महसूस करने लगा. वो शायद आँख बंद करके, मेरी पीठ पर सर टिका कर बैठी हुई थी.

मैं उसका चेहरा नही देख पा रहा था. क्योकि उसने मुझे अपनी बाहों मे इस तरह से जकड़ा हुआ था, जैसे की उसके छोड़ने ही, मैं उठ कर कही चला ना जाउन्गा. शायद वो इस तरह मुझे अपने सीने से लगा कर, इतने दिन तक मुझसे दूर रहने की कमी को पूरा करना चाह रही थी.

हम दोनो खामोशी से एक दूसरे के दिल की धड़कन को महसूस करने मे लगे थे. तभी बिस्तर पर पड़े मेरे मोबाइल की एस एम एस टोन बजने लगी. मेरे मोबाइल की एस एम एस टोन सुनकर, कीर्ति ने कुन्मूनाते हुए, मोबाइल उठा कर, मेरे हाथ मे थमाया और मुझे फिर से पहले की तरह जकड कर बैठते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ज़रूर प्रिया का एस एम एस होगा.”

मैने मोबाइल मे एस एम एस देखते हुए उस से कहा.

मैं बोला “नही, ये निक्की का एस एम एस आया है.”

इतना बोल कर मैं कीर्ति को निक्की का एस एम एस पढ़ कर सुनाने लगा.

निक्की का एस एम एस
“आपसे दूर होने का इरादा ना था.
सदा साथ रहने का वादा ना था.
आप याद ना करोगे, ये जानते थे हम,
पर इतनी जल्दी भूल जाओगे अंदाज़ा ना था.”

अभी मैं कीर्ति को निक्की का एस एम एस पढ़ कर सुना ही रहा था कि, मेरे पास रखे प्रिया वाले मोबाइल की भी एस एम एस टोन बजने लगी. जिसे सुनते ही कीर्ति ने मेरी पीठ पर चुटकी काटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “लो अब प्रिया का एस एम एस भी आ गया है.”

निक्की का एस एम एस पढ़ कर सुनाने के बाद, मैने प्रिया वाले मोबाइल का एस एम एस देखा और फिर वो एस एम एस भी कीर्ति को पढ़ कर सुनाने लगा.

प्रिया का एस एम एस
“तुम अगर याद रखोगे तो इनायत होगी.
वरना हमको कहाँ तुमसे शिकायत होगी.
ये तो बेवफा लोगों की दुनिया है.
तुम अगर भूल भी जाओ तो रिवायत होगी.”

प्रिया का एस एम एस सुनते ही, कीर्ति ने खिलखिलाते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “लगता है, तुमने अभी तक इन दोनो को कॉल नही किया है. वो दोनो बेचारी तुमसे बात करने के लिए तड़प रही है और तुम यहाँ आते ही, उनको भूल कर अपने मे मस्त हो गये. तुम सच मे बहुत बेवफा हो.”

ये कहते हुए, उसने मेरे गाल पर काट लिया. मगर इस बार उसने मुझे सिर्फ़ नाम के लिए नही काटा था. बल्कि सच मे बड़ी ज़ोर से काटा था. उसके अचानक इतनी ज़ोर से काट लेने से मैं हड़बड़ा कर रह गया.

इसी हड़बड़ाहट मे मैने कीर्ति को अपने पास से दूर धकेला और अपने गाल को सहलाते हुए, उसे गुस्से मे घूर कर देखने लगा. मुझे इस तरह से बौखलाता देख कर, कीर्ति और भी ज़्यादा ज़ोर से खिलखिला कर हँसने लगी.
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09-11-2020, 11:54 AM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मुझे भी उसकी इन हरकतों से बेहद सुकून मिल रहा था. इसलिए मैने उस पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “पागल हो गयी है क्या. कब से मुझे बेमतलब मे काटे जा रही है. अब तेरा यदि मुझे काटने से दिल भर गया हो तो, ये बता कि, तूने प्रिया को क्या एस एम एस किया था. ये देख उसका इसके पहले भी एक एस एम एस आया था.”

ये कहते हुए मैं कीर्ति को प्रिया का पहले वाला एस एम एस दिखाने लगा. जिसे देखने के बाद, कीर्ति ने थोड़ा संजीदा होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मैने प्रिया को एस एम एस से बताया था कि, तुम अभी मेहुल के घर पर ही हो. अपने घर पहुचते ही तुम उसको कॉल करोगे. वो इसी शर्त पर खाना खाने गयी थी कि, तुम घर पहुचते ही उसे कॉल करोगे.”

“वो शायद अभी तुम्हारे ही कॉल का इंतजार कर रही है. तुम ऐसा करो, पहले उस से बात कर लो. मैं अपना डिन्नर बाद मे कर लुगी.”

ये कहते हुए, वो शरारत भरी नज़रो से मुझे देखने लगी. मैने मूह बना कर उसकी तरफ देखा तो, वो मुझे कॉल लगाने का इशारा करके, मेरे सीने मे सर रख कर, लेट गयी.

अभी मैं निक्की को कॉल लगाने ही वाला था कि, तभी कीर्ति ने अपनी हॅंड फ्री मेरे हाथ मे थमा दी. मैने हॅंड फ्री लगाई और जैसे ही निक्की को कॉल लगाने को हुआ. कीर्ति ने मेरे एक कान से हॅंड फ्री को निकाल कर, अपने कान मे लगा लिया.

उसकी इस हरकत पर मुझे हँसी आ गयी और मैने मुस्कुराते हुए, निक्की को कॉल लगा दिया. मेरा कॉल जाते ही, निक्की ने फ़ौरन मेरा कॉल उठाते हुए कहा.

निक्की बोली “आप तो सच मे बहुत मतलबी निकले. यहाँ से जाते ही, हमे भूल गये.”

निक्की की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “मैं तो किसी को भी नही भुला हूँ. लेकिन तुम ज़रूर मेरे वहाँ से आते ही, मुझे और मेरी बात को भूल गयी हो. वरना अभी भी मुझे आप आप कह कर नही पुकार रही होती.”

मेरी बात सुनकर, निक्की के हँसने की आवाज़ आई और फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “किसी आदत को जाने मे थोड़ा वक्त तो लगता ही है. लेकिन मेरी इस आदत की आड लेकर, तुम अपनी ग़लती पर परदा डालने की कोसिस मत करो. यदि मैने अभी तुमको एस एम एस नही किया होता तो, तुमने अभी भी मुझे कॉल नही लगाया होता.”

मैं बोला “ऐसी बात नही है. मैं तो यहाँ आते ही, सबको कॉल लगाना चाहता था. लेकिन यहाँ आने के बाद, मुझे समय ही नही मिल पा रहा था.”

ये कहते हुए मैं उसे अपने यहाँ आने के बाद के हालत बताने लगा. मेरी अभी निक्की से बात चल ही रही थी कि, तभी प्रिया का कॉल आने लगा. प्रिया का कॉल आते देख कर, मैने ये बात निक्की को बताई और उसे गुड नाइट बोल कर कॉल रख दिया.

मेरे कॉल रखते ही, कीर्ति ने मेरे सीने से अपना सर उठा कर, मुझे हैरानी से देखते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे तुमने कॉल क्यो रख दिया. लगे हाथ प्रिया से भी बात कर लेना था ना.”

मैं बोला “प्रिया से बात करने के लिए ही तो, मैने कॉल रखा है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुझे मुस्कुरा कर देखा और अपना सर ना मे हिलाते हुए, वापस मेरे सीने पर सर टिका कर बैठ गयी. मुझे उसके इस तरह से मुस्कुराने का मतलब समझ मे नही आया तो, मैने उस से पुछा.

मैं बोला “तू इस बात पर इस तरह से क्यो हंस रही है. क्या मैने कोई ग़लत बात कह दी.”

कीर्ति बोली “तुम बिल्कुल बुद्धू हो. उनके एक साथ आए एस एम एस को देख कर भी, इतनी सी बात तुम्हारी समझ मे नही आई कि, वो दोनो इस समय एक साथ है. अब बेकार की बातों मे समय बर्बाद मत करो और प्रिया से भी बात कर लो.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए, प्रिया को कॉल लगा दिया. मेरा कॉल जाते ही, प्रिया ने फ़ौरन कॉल उठाते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम बहुत बड़े झूठे हो. जब तुम्हे मुझसे बात करनी ही नही थी तो, झूठा वादा करने की क्या ज़रूरत थी. क्या किसी को इस तरह इंतजार करवाना अच्छी बात है.”

प्रिया की इस बात सुनकर, कीर्ति के साथ साथ मुझे भी हँसी आ गयी. कीर्ति इसलिए हंस रही थी, क्योकि कुछ देर पहले उसने भी प्रिया को लेकर, मुझसे यही बात कही थी. मैने हंसते हुए प्रिया की इस बात पर सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “तुम ग़लत सोचती हो. यदि मुझे तुमसे बात नही करनी होती तो, मैं अभी भी तुमको कॉल नही लगाता. मुझे अभी भी तुमको कॉल करने की क्या ज़रूरत थी.”

प्रिया बोली “अब अपनी सफाई देने की कोसिस मत करो. सच तो ये है कि, तुमको मुझसे बात ही नही करनी थी. वो तो मैने तुमको किसी के साथ बात करते रंगे हाथों पकड़ लिया है. वरना तुम बाद मे मुझसे कह देते कि, तुम्हारी नींद लग गयी थी.”

मैं बोला “अब तुम फिर ग़लत सोच रही हो. अभी मैं किसी और से नही, बल्कि निक्की से बात कर रहा था. तुम चाहो तो अभी निक्की से ये बात पुछ सकती हो.”

प्रिया बोली “मुझे किसी से कुछ नही पुच्छना. तुम्हारी ये बात यदि सच भी है. तब भी इसका मतलब ये ही होता है कि, तुम्हे सबसे आख़िरी मे मुझसे बात करने की याद आई है.”

मैं बोला “यार ऐसा कुछ नही है. तुम ज़रा मेरी परेशानी को भी समझने की कोसिस करो.”

ये कहते हुए, मैं निक्की की तरह प्रिया को भी अपने यहाँ आने के बाद की बातें बताने लगा. जिसे सुनने के बाद, प्रिया ने हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “नीति दीदी ने तुम्हारी सिर्फ़ वहाँ ही नही, बल्कि यहाँ भी तुम्हारी पोल खोल कर रख दी है.”

प्रिया की इस बात को सुनकर, मैने हैरान होते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला “क्यो, क्या हुआ. अब नीति ने वहाँ मेरे बारे मे क्या बोल दिया.”

मेरी इस बात पर प्रिया ने हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “नीति दीदी से यहाँ सबको पता चल गया है कि, तुम प्लेन बैठते ही, लड़कियों की तरह फुट फुट कर रोने लगे थे.”

ये बात बोल कर, प्रिया एक बार फिर खिलखिला कर हँसने लगी. वही कीर्ति अपने मूह पर हाथ रख कर अपने आपको हँसने से रोकने की कोसिस करने लगी. प्रिया और कीर्ति दोनो को नीति की इस हरकत पर हँसी आ रही थी.

मगर मुझे नीति की इस हरकत पर चिड छूट रही थी. लेकिन मैने अपनी इस बात पर परदा डालते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला “अपनो से दूर होने का दर्द किसे नही होता है. मुझे भी अपनो से दूर होने का दर्द हुआ और इस दर्द ने मुझे आँसू बहाने के लिए मजबूर कर दिया. अब कोई इसे लड़कियों वाली बात समझे तो, मैं क्या कर सकता हूँ.”

“लेकिन मैने देखा है कि, कुछ लड़कियाँ ऐसी भी होती है. जिन्हे किसी से दूर होने पर कोई फरक नही पड़ता. उनकी आँख मे तो किसी से दूर होते समय एक आँसू भी नही आता है. अब क्या ऐसे मे, इसे तुम लड़को वाली बात कहोगी.”

मेरी ये बात सुनकर, प्रिया समझ गयी कि, मेरा ये इशारा उसी की तरफ है. उसने मेरी इस बात पर भनभनाते हुए कहा.

प्रिया बोली “हे, ये तुम घुमा फिरा कर मुझे ताने क्यो मार रहे हो. अब मुझे तुम्हारे जाने पर रोना नही आया तो, क्या मैं ज़बरदस्ती रोने को बैठ जाती. मैं तो तुमको सिर्फ़ नीति दीदी की बात बता रही थी और तुम मुझे ही ताना मारने लगे.”

मैं बोला “मैने तो वो ही बात कही है, जो सच है. अब सच बात बुरी तो लग ही जाती है.”

मेरी इस बात के जबाब मे प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “अच्छा, ऐसी बात है. तो लो, अब बुरा मानने की तुम्हारी बारी है.”

प्रिया की इस बात पर मैने चौन्कते हुए कहा.

मैं बोला “क्या मतलब.?”

लेकिन मेरी इस बात के जबाब मे प्रिया ने एक शायरी करते हुए कहा.

प्रिया की शायरी
“केयी जख्म ऐसे होते है, जो दिखाए नही जाते.
केयी राज़ ऐसे होते है जो, बताए नही जाते.
कुछ लोग होते है, जिंदगी मे खास इतने.
कि उनके सामने आँसू कभी, बहाए नही जाते.”

प्रिया की शायरी सुनते ही, मुझे उसके बुरा मानने वाली बात का मतलब समझ मे आ गया था और मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “मैने तुमको……...”

अभी मैं अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था कि, प्रिया ने मेरी बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.

प्रिया बोली “मैने तुमको कितनी बार बोला है कि, मुझे ये शेर और शायरी बिल्कुल भी समझ मे नही आती.”

इतना बोल कर, वो अपनी कही बात पर खुद ही खिलखिला कर हँसने लगी और उसके साथ साथ मेरे और कीर्ति के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी. उसे हंसता हुआ देख कर, मेरे दिल को भी सुकून महसूस हो रहा था. इसलिए मैने इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “अच्छी बात है. अभी तो तुम शायरी की बात पर मेरा मज़ाक उड़ा लो. लेकिन मैं भी तृप्ति का पता लगा कर, उस से शेर और शायरी सीख कर, तुम्हे इसका जबाब ज़रूर दूँगा. तब देखुगा कि, तुम मेरा मज़ाक कैसे बना पाती हो.”

मेरी इस बात पर प्रिया ने मुझे छेड़ते हुए कहा.

प्रिया बोली “हे, यदि तुमने उस पागल तृप्ति का पता लगाने की कोसिस की तो, मैं तुम्हारी तृप्ति को भड़का दुगी. फिर शेर और शायरी सीखना तो दूर की बात है. तुम्हे जो गाना गाना आता है, तुम वो भी भूल जाओगे.”

प्रिया की इस बात पर मैने भी डरने का नाटक करते हुए कहा.

मैं बोला “अरे, मैं तुमसे सिर्फ़ मज़ाक कर रहा था. तुम नीति की तरह कहीं सच मे आग लगाने का काम मत कर देना. वरना इस बात को सुनकर, तृप्ति तो मेरी जान ही ले लेगी.”

मेरी बात को सुनकर, प्रिया फिर खिलखिलाने लगी और कीर्ति मेरे सीने से अपने सर को उठा कर, मेरा चेहरा देखने लगी. मैने मुस्कुराते हुए, कीर्ति का चेहरा वापस अपने सीने पर रख लिया और उसके सर पर हाथ फेरने लगा.

वही जब प्रिया का खिलखिलाना थमा तो, उसने कुछ संजीदा होकर, तृप्ति की वकालत करते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम तृप्ति को बेकार मे बदनाम कर रहे हो. वो बिल्कुल भी ऐसी नही है. तुम बहुत किस्मत वाले हो, जो तुम्हे तृप्ति जैसी प्यार करने वाली लड़की मिली है.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मेरे हाथ, कीर्ति के सर पर चलते चलते रुक गये. मुझे कीर्ति के प्यार के बारे मे किसी से जानने की कोई ज़रूरत नही थी. लेकिन प्रिया की इस बात ने मुझे उसके ख़याल जानने को मजबूर कर दिया और मैने उस से कहा.

मैं बोला “तुम्हारी तो उस से सिर्फ़ एक बार बात हुई है. फिर तुम उसके बारे मे, ये बात इतने यकीन से कैसे कह सकती हो.”

प्रिया बोली “तुम्हारी खुशी के लिए उसने मुझसे बात की थी. इस से बढ़ कर, उसके प्यार का तुम्हे और क्या सबूत चाहिए.”

प्रिया की इस बात मे बहुत दम था. फिर भी मैने इस बात को टालते हुए कहा.

मैं बोला “तुमसे बात करने की उसकी खुद की मर्ज़ी थी. मैने उसे तुमसे बात करने को नही कहा था. फिर इसमे मेरी खुशी कहाँ से आ गयी.”

प्रिया बोली “हां, तुम्हारी ये बात सही हो सकती है. लेकिन भगवान ने तुम्हे महसूस करने के लिए दिल और बहाने के लिए सिर्फ़ आँसू ही नही दिए. बल्कि तुम्हारी खोपड़ी मे एक 50 ग्राम का भेजा भी दिया है.”

“कभी कभी तुम अपने उस भेजे का भी इस्तेमाल कर लिया करो. उसके इस्तेमाल करने से वो घट नही जाएगा. बल्कि तुम ऐसे बेतुके सवाल करने से बच जाओगे.”

प्रिया की ये बात सुनकर, कीर्ति की हँसी छूट गयी और उसने अपना चेहरा मेरे सीने मे छुपा लिया. वही मैं प्रिया की इस बात को सुन कर सन्न रह गया. उसने एक तीर से दो निशाने लगा दिए थे.

एक तो उसने मेरी बात का जबाब दे दिया था और दूसरा कुछ देर पहले मैने उसे जो ना रोने का ताना मारा था, उसका बदला भी ले लिया था. कीर्ति को प्रिया की इन बातों मे मज़ा आ रहा था. इसलिए मैने भी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम कहना क्या चाहती हो. जो कहना है, सॉफ सॉफ क्यो नही कह देती.”

प्रिया बोली “तुमको सॉफ सॉफ ही सुनना है तो, वो भी सुन लो. दुनिया की ऐसी कौन सी लड़की होगी, जो उस लड़की से खुशी खुशी बात करना चाहेगी, जो लड़की उसके बाय्फ्रेंड से प्यार करती हो.”

“तृप्ति ने तुमको मेरी नाराज़गी की वजह से परेशान देखा होगा. जिस वजह से उसने तुम्हारी खुशी के लिए, खुद से मेरे से बात की और फिर तुम्हे मुंबई दिखाने के बहाने से, मेरे साथ घूमने की इजाज़त भी दे दी.”

“जितना प्यार वो तुमको करती है, उतना प्यार तुम्हे कोई नही कर सकता. वो सिर्फ़ तुमसे ही नही, बल्कि तुमसे जुड़ी हर चीज़ से प्यार करती है. अब मेरी बात तुम्हारी समझ मे आई या फिर मैं इस बात को और भी ज़्यादा सॉफ करके बताऊ.”

प्रिया की इस बात पर मैने हंसते हुए उस से कहा.

मैं बोला “हां, हां, मेरी समझ मे सब कुछ आ गया है. लेकिन अब रात बहुत ज़्यादा हो गयी है. अब यदि तुम्हारा बात करना हो गया हो तो, हमें सो जाना चाहिए.”

प्रिया बोली “ओके, अपना और तृप्ति का ख़याल रखना. गुड नाइट.”

मैं बोला “ओके कल बात करते है. गुड नाइट.”

इतना बोल कर मैने प्रिया का कॉल रख दिया. प्रिया का कॉल रखने के बाद, मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला “ये ले, मेरी प्रिया से भी बात हो गयी. अब तू बता कि, क्या तुझे अभी भी लगता है कि, प्रिया और निक्की अभी एक साथ है.”

मेरी ये बात सुनकर, कीर्ति ने हँसना सुरू कर दिया और मेरे गाल पर चुटकी काटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हां, वो दोनो एक साथ ही है. तभी तो निक्की से बात करते समय प्रिया का कॉल भी आ गया था.”

मैं बोला “ये तो उसने ये देखने के लिए लगाया था कि, मैं उसे कॉल क्यो नही कर रहा हूँ.”

कीर्ति बोली “नही, ऐसा नही है. निक्की से तुम्हारी ज़्यादा लंबी बात चलती देख कर ही, प्रिया ने तुम्हे कॉल लगाया था. ताकि तुम निक्की का कॉल रख कर, उस से बात करो. यदि ऐसा नही होता तो, तुम्हारा कॉल बिज़ी देख कर, उसे ये लगता कि, तुम मुझसे बात कर रहे हो.”

“ऐसे मे उसे हमारी बात मे रुकावट डालने का पछ्तावा होता और वो सबसे पहले तुमसे हमारी बात मे रुकावट डालने के लिए सॉरी बोलती. लेकिन उसकी बातों से ऐसा कुछ भी समझ मे नही आ रहा था.”

कीर्ति की बात सुनकर मैं हैरानी से उसको देखने लगा. लेकिन मुझसे ऐसा होने मे भी कोई बड़ी भारी बात नज़र नही आ रही थी. इसलिए मैने कीर्ति की इस बात को काटते हुए उस से कहा.

मैं बोला “चल मैं मान लेता हूँ कि, इस समय प्रिया और निक्की एक साथ है. लेकिन उनका एक साथ रहना कोई बड़ी बात नही है. क्योकि निक्की प्रिया की वजह से ही उसके घर मे रहती है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुमको क्या लगता है कि, तुमको वहाँ पर इतने सारे लोगों का प्यार और साथ किसकी वजह से मिला है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने बिना एक पल की देर किए ही, उस से कहा.

मैं बोला “इसमे लगना क्या है. तू खुद जानती है कि, ये सब रिया और निक्की की वजह से ही हुआ है. यदि रिया मुझे अपने घर नही ले गयी होती और वहाँ मेरी निक्की से मुलाकात नही होती तो, मैं इतने लोगों से कभी नही मिल पाता.”

मेरी इस बात पर कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या तुमने कभी इस बात को सोचा है कि, जब पहले दिन ही तुमने निक्की के साथ झगड़ा कर लिया था तो, फिर वो दूसरे दिन खुद से तुम्हारी मदद करने के लिए क्यो आकर खड़ी हो गयी थी.”

मैं बोला “इसमे सोचना क्या है. उसने खुद बताया था कि, उस हॉस्पिटल मे उसकी एक फ्रेंड के भाई डॉक्टर. है. वो उन्हे भाई मानती है और उन से हम लोगों को बहुत मदद मिल जाएगी. जिस वजह से वो हमारे साथ गयी थी.”

कीर्ति बोली “पहले मुझे भी निक्की की ये बात सही लग रही थी. लेकिन प्रिया तुम्हे कब से प्यार करती है. ये बात जानने के बाद, अब मुझे इन सब बातों की सच्चाई कुछ और ही नज़र आ रही है.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर, मैं समझ गया था कि, उसका इशारा किस तरफ है. इसलिए मैने चौन्कते हुए कहा.

मैं बोला “तू कहना क्या चाहती. कहीं तुझे इस सबके पिछे प्रिया तो नज़र नही आ रही है.”

कीर्ति बोली “हां, सच यही है कि, इस सब के पिछे प्रिया ही है. जिस दिन तुम्हारे मुंबई जाने की बात तय हुई थी. तुमने उसी दिन रिया को बता दिया था कि, तुम मुंबई आ रहे हो. ये बात अगले दिन रिया ने अपने घर वालों को बताई होगी.”

“प्रिया ने तो तुम्हारी तस्वीर पहले ही रिया के मोबाइल मे देख ली थी. जब उसे पता चला होगा कि, तुम आ रहे हो तो, उसने किसी तरह से तुम लोगों को अपने घर मे रुकवाने के लिए अपने घर वालों को तैयार कर लिया होगा.”

“फिर वहाँ पर तुम्हारे निक्की से झगड़ा कर लेने के बाद भी, उसने निक्की को तुम्हारे साथ जाने के लिए मजबूर किया होगा. जिसके बाद तुम्हारी निक्की से दोस्ती हो गयी और हम हर बात होने की वजह निक्की को ही समझने लगे थे.”

इतना बोल कर कीर्ति चुप हो गयी. लेकिन उसकी इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था. लेकिन अभी भी मेरे मन मे कुछ ऐसे सवाल थे. जिनकी वजह से मई कीर्ति की इस बात को सच मानने के लिए तैयार नही था.

कीर्ति को भी शायद ये बात महसूस हो गयी थी कि, मुझे उसकी इस बात पर यकीन नही हो रहा है. इसलिए उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “क्या हुआ.? क्या तुम्हे मेरी ये बात सही नही लग रही है.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा.

मैं बोला “तू शायद भूल गयी है कि, मेरे किसी लड़की को प्यार करने वाली बात, निक्की को पहले दिन ही पता चल गयी थी. जबकि प्रिया को ये बात मेरे जनमदिन के दिन पता चली थी.”

“यदि निक्की प्रिया की वजह से ही मेरा साथ दे रही होती तो, उसने ये बात पहले दिन ही प्रिया को बता दी होती. लेकिन निक्की ने ऐसा कुछ भी नही किया. जिसका मतलब सॉफ है कि, जैसा तू कह रही है, वैसा कुछ भी नही है.”

मेरी इस बात को सुनकर, कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “भूल मैं नही रही हूँ. भूल तो तुम रहे हो कि, प्रिया एक दिल की मरीज है और तुम्हारे घर छोड़ कर चले जाने से ही, उसकी क्या हालत हो गयी थी. इन्ही सब बातों से बचने के लिए ही, निक्की ने प्रिया से ये बात छुपा कर रखी होगी.”

“वरना तुम खुद सोच कर देखो कि, जो निक्की तुमसे दोस्ती निभाने मे पिछे नही हटी. वो अपनी बचपन की सहेली के साथ दोस्ती मे कैसे धोखा कर सकती है. तुम मानो या ना मानो, लेकिन सच वो ही निकलेगा, जो मैने तुमसे बताया है.”

इतना बोल कर कीर्ति चुप हो गयी. लेकिन अब मुझे भी उसकी इन बातों पर यकीन होने लगा था. इसलिए मैने उस से सीकायत करते हुए कहा.

मैं बोला “जब तुझे इन सब बातों का अहसास पहले से ही था तो, तूने मुझे ये बात पहले क्यो नही बताई.”

कीर्ति बोली “नही, मुझे इन बातों का अहसास पहले से नही था. मेरे दिमाग़ मे ये बातें तब आई, जब मुझे पता चला कि, प्रिया तुम्हे पिच्छले एक साल से जानती है. इसी वजह से मैने प्रिया से अंकिता नही तृप्ति बन कर बात की थी.”

“ताकि देर सवेर यदि उसे निक्की से, इस बात का पता चल भी जाए कि, तुम किस लड़की को प्यार करते हो तो, उसके दिल को इस बात की ठेस ना लगे कि, तुमने किसी ग़लत लड़की से उसकी बात करवाई थी.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मुझे प्रिया की कही बात याद आ गयी कि, तृप्ति सिर्फ़ तुमसे ही नही, बल्कि तुमसे जुड़ी हर चीज़ से प्यार करती है. ये बात याद आते ही, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी.

मैं मुस्कुराते हुए बड़े गौर से उसका चेहरा देखने लगा. मुझे इतनी गौर से अपना चेहरा देखते देख कर, कीर्ति ने मुझे टोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या हुआ.? मुझे देख कर क्यो मुस्कुरा रहे हो.”

मैं बोला “कुछ नही, मैं ये देख रहा हूँ कि, आज तेरी आँखों मे नींद नही है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुझे ज़ोर से अपनी बाहों मे जाकड़ लिया और फिर धीरे से कहा.

कीर्ति बोली “नही, आज मुझे नही सोना, आज तो हम सारी रात बात करेगे.”

मैं बोला “नही, अभी तेरी तबीयत सही नही है. अभी तेरा ज़्यादा जागना ठीक नही है. अब बहुत रात हो गयी है. अब तू सो जा.”

ये कहते हुए मैने कीर्ति की आँखों पर हथेली फेर कर, उसकी आँखें बंद कर दी और फिर उसके सर पर हाथ फेरने लगा. उसने अपनी आँखे नही खोली. लेकिन धीरे से मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “एक बात पुछु.”

मैं बोला “तुझसे कहा ना, अब कोई बात नही. बाकी की बात कल करेगे.”

कीर्ति बोली “सिर्फ़ एक आख़िरी बात.”

मैं बोला “चल पुछ ले.”

कीर्ति बोली “तुम जब से आए हो. तुम्हे एक बार भी मौसा जी दिखाई नही दिए है. तब भी तुमने किसी से इसके बारे मे नही पुछा. क्या तुमको पता है कि, मौसा जी कहाँ है.”

मैं बोला “मुझे नही पता कि, वो कहाँ है और ना ही मुझे इसके बारे मे पता करने की ज़रूरत है. मगर मैं इतना ज़रूर जानता हूँ कि, वाणी दीदी के आते ही, उनका कोई ना कोई बिज़्नेस टूर निकल आता है. अभी भी शायद वो किसी बिज़्नेस टूर पर ही चले गये होगे.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी. लेकिन मेरी बात के जबाब मे उसने कुछ भी नही कहा. जिसका मतलब सॉफ था कि, मैने अभी जो बात कही है, वो पूरी तरह से सही है.

इसके बाद ना तो कीर्ति ने कुछ कहा और ना ही मैने उस से कुछ कहा. वो मुझे मुझे पकड़ कर लेटी रही और मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा. कुछ ही देर मे उसकी नींद लग गयी और उसका चेहरा देखते देखते पता नही कब मेरी भी नींद लग गयी.

सुबह कीर्ति की आवाज़ सुनकर मेरी नींद खुल गयी. लेकिन मुझे अभी भी बहुत नींद आ रही थी. फिर भी कीर्ति की आवाज़ सुनकर, मैने आँख खोली तो, वो मेरे कमरे के दरवाजे पर खड़ी, चंदा मौसी को आवाज़ लगा रही थी.

मैने उसे इस तरह अपने दरवाजे पर खड़े होकर चिल्लाते देखा तो, उस पर छिड़-चिड़ाते हुए कहा.

मैं बोला “ये तू सुबह सुबह अपना गला फाड़ कर चिल्लाना बंद कर और मुझे चैन से सोने दे.”

इतना बोल कर, मैने फिर से सोने के लिए अपनी आँख बंद कर ली. लेकिन मेरी आवाज़ सुनते ही, कीर्ति मेरे पास आ गयी और मुझे हिलाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुम घोड़े बेच कर बड़े आराम से सो रहे हो. ज़रा उठ कर देखो कि, तुम्हारी लाडली ने, तुम्हारे कमरे के साथ साथ, पूरे घर का क्या हाल बना कर रख दिया है.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैने फिर से आँख खोली और कमरे मे यहाँ वहाँ देखने लगा. लेकिन मुझे कहीं कोई बात नज़र नही आई. मगर जैसे ही मेरी नज़र फर्श पर पड़ी, एक पल मे ही मेरी सारी नींद गायब हो गयी और मैं हड़बड़ा कर, उठ कर बैठ गया.
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09-11-2020, 11:54 AM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
193
मेरे पूरे कमरे मे पानी भरा हुआ था. जब मुझे इसकी वजह समझ मे नही आई तो, मैने कीर्ति से पुछा.

मैं बोला “ये सब क्या है.? ये किसने किया है.?”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ये सारी करामात तुम्हारी लाडली निमी की है. उसने ही सारे घर को पानी से भर कर रख दिया है.”

कीर्ति की बात सुनकर मैने चौुक्ते हुए कहा.

मैं बोला “लेकिन निमी मेरे कमरे मे क्या कर रही थी और उसने ये सब क्यो किया.”

कीर्ति बोली “आज उसे स्विम्मिंग पूल मे नहाने का शौक चढ़ा था. वो अपने बाथरूम मे स्विम्मिंग पूल बनाना चाहती थी. लेकिन अमि ने उसे ऐसा नही करने दिया. मैं अपना मोबाइल तुम्हारे कमरे मे भूल गयी थी और उसी समय अपना मोबाइल लेकर तुम्हारे कमरे से निकल रही थी.”

“निमी ने मुझे तुम्हारे कमरे से बाहर निकलते देख लिया और मेरे बाद वो तुम्हारे कमरे मे घुस गयी. फिर उसने तुम्हारे बाथरूम मे पानी की निकासी को कपड़े से बंद कर दिया और बाथरूम को पानी से भर कर नहाने लगी.”

“उसने सोचा होगा कि, कपड़े लगा देने से, पानी बाहर नही आएगा. लेकिन पानी पहले तुम्हारे कमरे मे फैला और फिर धीरे धीरे तुम्हारे कमरे से बाहर निकल कर सीडियों से नीचे जाने लगा. नीचे पानी आता देख कर, चंदा मौसी भागती हुई उपर आ गयी.”

“उसी समय मैं भी अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गयी. मैने चंदा मौसी को उपर आते देखा और तुम्हारे कमरे से पानी बाहर निकलते देखा तो, चंदा मौसी के साथ मैं भी तुम्हारे कमरे मे आ गयी. तुम्हारे कमरे मे आकर हम ने देखा कि, पानी तुम्हारे बाथरूम से निकल रहा है और बाथरूम के अंदर कोई है.”

“हम लोगों ने आवाज़ लगा कर दरवाजा खुलवाया और निमी के दरवाजा खोलते ही, बहुत सारा पानी बाहर निकल कर तुम्हारे कमरे मे भर गया. तभी मौसी भी उपर आ गयी थी और गुस्से मे निमी को पकड़ कर नीचे ले गयी है.”

कीर्ति की ये बात सुनते ही, मैं फ़ौरन उठ कर खड़ा हो गया और कमरे से बाहर जाने लगा. मुझे कमरे से बाहर जाते देख, कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “अब तुम कहाँ जा रहे हो.”

मैं बोला “मैं उस निमी की बच्ची की खबर लेने जा रहा हूँ. उसने मेरे कमरे का क्या हाल बना कर रख दिया है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “रहने दो, ये तुमसे नही होगा. तुम्हारे जाने से मौसी भी उसे कुछ नही बोल पाएगी.”

लेकिन मैने कीर्ति की बातों को अनसुना कर दिया और कमरे से बाहर जाने लगा. मुझे नीचे जाते देख कर, कीर्ति भी भागते हुए, मेरे पिछे पिछे आ गयी. हम दोनो नीचे पहुचे तो, छोटी माँ निमी पर गुस्सा कर रही थी.

निमी सिर्फ़ एक अंडरवेर मे उनके सामने सर झुका कर खड़ी छोटी माँ की डाँट सुन रही थी. लेकिन जैसे ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ी, वो भागते हुए मेरे पास आ गयी. मेरे पास आते ही, उसने सिसकना सुरू कर दिया.

अपनी मासूम बहन को सिसकते देख, मेरा दिल भर आया और मैं अपना सारा गुस्सा भूल गया. मैने फ़ौरन उसे अपनी गोद मे उठा लिया और उसे बहलाते हुए चुप कराने की कोसिस करने लगा.

छोटी माँ ने मुझे निमी को चुप करते देखा तो, वो निमी का गुस्सा मुझ पर उतारने लगी. लेकिन मैं उनके गुस्से को अनदेखा करके, निमी को अपने साथ अपने कमरे मे लेकर आ आया.

मेरे साथ साथ कीर्ति और अमि भी उपर आ गयी. उपर आकर मैने किसी तरह निमी को चुप कराया और फिर उसे बहला कर अमि के साथ उसके कमरे मे भेज दिया. उनके मेरे कमरे से जाने के बाद, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मुझे पहले ही पता था कि, तुम निमी को कुछ नही कह पाओगे और तुम्हारे नीचे पहुच जाने से मौसी भी निमी को कुछ नही कह पाएगी.”

कीर्ति की इस बात पर मैने उसे झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “ये सब तेरा ही किया हुआ है. ना तू निमी के सामने मेरे कमरे से बाहर निकलती और ना ही ये सब हुआ होता.”

मेरी इस बात पर कीर्ति ने तुनकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “उल्टा चोर, कोतवाल को डान्टे. तुम्हारे कमरे मे इतना सब होता रहा और तुम बड़े घोड़े बेच कर, आराम से सोते रहे. अब सारा दोष मुझको दे रहे हो. यदि ये सब मेरे तुम्हारे कमरे मे आने की वजह से हुआ है तो, मैं आज के बाद तुम्हारे कमरे मे नही आउगि.”

मैने कीर्ति की इस बात को सुनकर, अपनी सफाई देना चाहा. लेकिन वो मेरी बात को अनसुना करके, मेरे कमरे से बाहर निकल गयी. मैं तो मज़ाक मे उसे छेड़ रहा था. लेकिन वो सच मे नाराज़ हो गयी थी.

कुछ देर मैं कीर्ति की नाराज़गी के बारे मे सोचता रहा और फिर उठ कर फ्रेश होने चला गया. मैं फ्रेश होकर आया तो, चंदा मौसी चाय नाश्ता लेकर आ गयी. चाय नाश्ता करने के बाद, मैं तैयार होकर नीचे आ गया.

मैं नीचे पहुचा तो, कीर्ति अकेली बैठी थी. मुझे देखते ही, उसने मूह फूला लिया. छोटी माँ किचन मे कीर्ति का नाश्ता बनाने की तैयारी का रही थी. मैने उनके पास आकर उन से कहा.

मैं बोला “छोटी माँ, आज कीर्ति का नाश्ता मैं तैयार करूगा. आप जाकर बाहर बैठिए.”

मेरी बात सुनकर, छोटी माँ हँसने लगी और मुझे बाहर जाने के लिए समझने लगी. लेकिन मैने उनकी कोई बात नही सुनी और उन्हे किचन से जाना ही पड़ गया. उनके जाने के बाद, मैं नाश्ता तैयार करने मे लग गया.

छोटी माँ ने शायद, बाहर जाकर ये बात कीर्ति को बता दी थी. इसलिए थोड़ी ही देर बाद, वो किचन मे आ गयी. उसने अपनी नाराज़गी को भुला कर मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या मौसी के नाश्ते से मैं कम परेशान थी, जो अब तुम भी मुझे परेशान करने के लिए नाश्ता बनाने मे लग गये.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “कभी तूने मेरे हाथ का बना नाश्ता नही किया है. इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है. आज तू मेरे हाथ का बना नाश्ता करके देख, तुझे तेल मसाले वाला खाना भी फीका लगने लगेगा.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति हँसने लगी. फिर वो मेरे पास ही बैठ गयी और मुझे नाश्ता बनाते हुए देखने लगी. कीर्ति से बात करते करते, मैने नाश्ता तैयार कर लिया और फिर कीर्ति को बाहर चल कर बैठने को कहा.

कीर्ति के बाहर जाने के बाद, मैने नाश्ता लगाया और नाश्ता लेकर बाहर आ गया. कीर्ति, छोटी माँ और वाणी के साथ बैठी थी. मुझे नाश्ता लाते देख कर, कीर्ति और छोटी माँ हँसने लगी.

उसी समय चंदा मौसी उपर से अमि निमी को लेकर आ गयी. वो दोनो हुम्हारे पास चुप चाप खड़ी होकर देखने लगी कि, यहाँ पर क्या चल रहा. वही वाणी ने जब मुझे नाश्ता लाते देखा तो, मुझे फटकारते हुए कहा.

वाणी बोली “क्या तुम मुंबई ये सब ही सीखने गये थे, जो वहाँ से आते ही नयी बहू की तरह किचन संभाल लिया. एक लड़का होकर, लड़कियों वाले काम करते, तुमको शरम आनी चाहिए. लेकिन तुम तो अपनी सारी शरम बेच खाई है.”

वाणी की बात सुनकर, मैने नाश्ता कीर्ति के सामने रख कर, उसे नाश्ता करने को कहा और फिर वाणी की इस बात का जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, जब लड़कियों के लड़कों वाले काम करने मे कोई शरम वाली बात नही होती है तो, फिर लड़कों के लड़कियों वाले काम करने मे शरम वाली बात कैसे हो गयी.”

“वैसे भी छोटी माँ कहती है कि, लड़का हो या लड़की दोनो एक समान है. जब लड़कियाँ लड़कों के काम करने मे पिछे नही रहती है तो, फिर लड़कों को भी किसी काम मे लड़कियों से पिछे नही रहना चाहिए.”

“मैने ये सब मुंबई से नही, बल्कि छोटी माँ से सीखा है. मुंबई जाकर तो, मैने सिर्फ़ इतना जाना है कि, मेरी छोटी माँ दुनिया की सबसे अच्छी माँ है और उनकी सिखाई किसी बात के लिए, मुझे शरम महसूस करने की ज़रूरत नही है.”

इतना कह कर मैं मुस्कुराते हुए, वाणी के पास बैठी छोटी माँ के पास आ गया और उनके गले मे बाहें डाल कर उन से लिपट गया. वाणी ने मेरी बात सुनने के बाद, एक नज़र नाश्ते की तरफ देखा और फिर मुझसे कहा.

वाणी बोली “लेकिन तुमको मालूम है कि, अभी कीर्ति की तबीयत सही नही है और उसके लिए ये सब खाना माना है. ऐसे मे तुमको उसके लिए, ये सब नही बनाना चाहिए था.”

वाणी की बात सुनते ही, अमि की समझ मे आ गया कि, कीर्ति का नाश्ता मैने बनाया है और उसी बात पर वाणी मुझे फटकार लगा रही है. ये बात समझ मे आते ही, अमि नाश्ते के उपर झुक कर, उसकी खुश्बू लेने लगी.

अमि की इस हरकत से, सब हैरानी से उसकी को देखने लगे. अमि ने नाश्ते की खुश्बू को सूँघा और फिर वाणी से मेरा बचाव करते हुए कहा.

अमि बोली “दीदी, ये तो दलिया, पपीता और नीबू पानी है. मम्मी भी तो कीर्ति दीदी को नाश्ते मे ये ही सब बना कर खिलाती है. भैया ने इनको दूसरे तरीके से बनाया है. इसलिए ये ऐसे दिख रहे है.”

“हम लोग तो इसे बहुत बार खा चुके है और हमें ये बहुत ज़्यादा पसंद है. आप भी यदि एक बार भैया के हाथ का बना दलिया खा लोगि तो, आप अपनी बिरयानी को खाना भूल जाओगी.”

अमि की बात सुनकर, वाणी गौर से अमि का चेहरा देखने लगी. सभी जानते थे कि, वाणी को बिरयानी बहुत पसंद है. इसलिए अमि ने उसे बिरयानी की मिसाल दी थी. लेकिन अब जब अमि मेरे बनाए नाश्ते की तारीफ कर रही थी तो, ऐसे मे निमी का इस काम मे पिछे रहने का सवाल ही पैदा नही होता था.

निमी ने भी फ़ौरन अमि की तरह आगे आकर, पहले नाश्ते की खुश्बू लेने का नाटक किया और फिर वाणी से कहा.

निमी बोली “दीदी, भैया के हाथ का बना दलिया इतना टेस्टी होता है कि, उसके सामने हलवा भी फैल है. मैं तो अपने जनमदिन मे सबको यही दलिया बनवा कर खिलाउन्गी.”

निमी की ये बात सुनते ही, सबके साथ साथ वाणी की भी हँसी छूट गयी. लेकिन निमी मे इतना दिमाग़ नही था कि, वो हमारे हँसने का मतलब समझ सके. इसलिए उसने हमारी हँसी को अनदेखा कर, कीर्ति के पास बैठते हुए, उस से कहा.

निमी बोली “दीदी, मुझे भी आपका नाश्ता करना है.”

निमी की बात सुनकर, कीर्ति उसकी तरफ नाश्ता बढ़ाने लगी. लेकिन मैने कीर्ति को ऐसा करने से रोकते हुए कहा.

मैं बोला “तू इनकी फिकर मत कर, मुझे पहले से ही पता था कि, ये दोनो ज़रूर ऐसा कुछ करेगी. इसलिए मैने इनके लिए भी नाश्ता बना लिया था. तू अपना नाश्ता कर, मैं इनके लिए नाश्ता लेकर आता हूँ.”

ये कहते हुए मैं अमि निमी के लिए नाश्ता लेने जाने लगा. लेकिन तभी वाणी ने मुझे टोकते हुए कहा.

वाणी बोली “अभी मैने भी नाश्ता नही किया है. मेरे लिए भी थोडा नाश्ता ले आना.”

वाणी की बात सुनते ही, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और मैं नाश्ता लेने किचन मे चला गया. मैने सबको नाश्ता लाकर दिया और फिर छोटी माँ के पास बैठ कर, सबको नाश्ता करते देखने लगा.

अमि, निमी और कीर्ति ने तो, नाश्ता मूह मे रखते ही, नाश्ते की तारीफ करना सुरू कर दिया. अमि निमी तो ऐसी थी कि, यदि मैं उन्हे नमक का पानी भी शरबत बोल कर दे देता तो, वो दोनो इसी बात पर बहस करती नज़र आती की, उन दोनो मे से किसका शरबत ज़्यादा मीठा है.

इसके बाद रही कीर्ति की बात तो, उसके लिए, ये ही बहुत खुशी की बात हो गयी थी कि, मैने उसके लिए अपने हाथों से नाश्ता तैयार किया है. वो तो मेरे दिए दर्द मे भी, कभी कोई नुखश नही निकालती थी, फिर मेरी दी हुई खुशी मे उसके कोई नुखश निकालने का सवाल ही पैदा नही होता था.

इन तीनो से ही, मेरे बनाए नाश्ते मे कोई कमी जान पाना, बिल्कुल समुंदर मे गिरी पानी की बूँद को दूधने जैसा था. जिस वजह से इन तीनो से अपने नाश्ते की तारीफ सुन लेने के बाद भी, मेरी नज़र वाणी पर ही टिकी हुई थी.

मगर जब नाश्ता हो जाने के बाद भी वाणी ने नाश्ते के बारे मे कुछ नही बोला तो, मैने खुद ही वाणी से कहा.

मैं बोला “दीदी, आपको नाश्ता कैसा लगा.”

मेरी बात सुनकर, वाणी ने अपने चेहरे पर बिना किसी भाव को लाए, एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर खड़े होते हुए कहा.

वाणी बोली “ठीक ही है, मेरे जाने के पहले मुझे बिरयानी बना कर भी खिला देना.”

इतना बोल कर वाणी अपने कमरे की तरफ चली गयी. लेकिन वाणी के मूह से इतना सुनते ही, मेरा चेहरा खिल उठा. क्योकि वाणी एक हंसनी की तरह थी. जो दूध मे मिले पानी मे से सिर्फ़ दूध को ही पीटी थी और पानी को छोड़ देती थी.

वो चाँद मे भी दाग ढूँढ निकालने वाली थी. ऐसे मे उसके मूह से मेरे हाथ के नाश्ते का ठीक होना और मेरे हाथ की बिरयानी खाने की बात निकलना भी, किसी तारीफ से कम नही था.

मैं तो वाणी की इतनी ही बात से खुश हो गया था. वाणी के हमारे पास से जाने के बाद, मैने पलट कर कीर्ति की तरफ देखा. लेकिन वो अमि निमी को गौर से देखने मे लगी थी. कीर्ति के साथ साथ मेरी नज़र भी अमि निमी की तरफ चली गयी.

अमि निमी गुस्से मे वाणी को जाते हुए देख रही थी. उनको शायद वाणी की बात पसंद नही आई थी. वाणी के जाते ही, छोटी माँ ने अमि निमी को टोकते हुए, तैयार होने को कहा और अपने साथ ले गयी.

उनके जाने के बाद, कीर्ति उठ कर मेरे पास आ गयी और फिर छोटी माँ के कमरे मे जाती, अमि निमी की तरफ देखते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुमने अमि निमी का गुस्सा देखा. वो वाणी दीदी को कैसे गुस्से मे घूर कर देख रही थी.”


कीर्ति की इस बात पर मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “इसमे इतना हैरान होने वाली कोई बात नही है. उन दोनो के सामने यदि कोई मुझसे अकड़ दिखा कर बात करता है या फिर मेरी बात का सही से जबाब नही देता है तो, उनको गुस्सा आ ही जाता है.”

“लेकिन हमारे लिए खुशी की बात ये है कि, अब वो दोनो पहले वाली अमि निमी नही रह गयी है. उन्हे अपने गुस्से पर काबू पाना आ गया है. वरना यदि वो पहले वाली अमि निमी होती तो, अभी तक वाणी दीदी से झगड़ना सुरू कर देती.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुम जैसा सोच रहे हो, वैसा कुछ भी नही है. वो दोनो अभी भी तुम्हारे खिलाफ कुछ नही सुन सकती है. लेकिन ये उन दोनो की मजबूरी है कि, वो चाह कर भी वाणी दीदी से झगड़ा नही कर पा रही है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने हैरान होते हुए उस से कहा.

मैं बोला “क्यो, क्या हुआ. क्या किसी ने उनसे कुछ कहा है.”

कीर्ति बोली “वाणी दीदी ने यहाँ आते ही, गुस्से मे तुम्हे बहुत भला बुरा बोलना सुरू कर दिया था. ये बात अमि निमी को सहन नही हुई. उन दोनो ने वाणी दीदी से झगड़ा करना सुरू कर दिया.”

“मौसी दोनो को चुप करने की कोसिस करती रही. लेकिन जब दोनो चुप नही हुई तो, मौसी ने गुस्से मे उन पर हाथ उठा लिया. लेकिन वाणी दीदी ने मौसी को निमी पर हाथ उठाने से रोक दिया.”

“इसके बाद वाणी दीदी ने उन दोनो को धमकी दी कि, अब यदि दोनो मे से किसी ने भी, उनके साथ बदतमीज़ी करने या उन से ज़ुबान लड़ाने की कोसिस भी की तो, वो उन दोनो को तो, कुछ नही कहेगी. लेकिन तुम्हे अपने साथ पूना लेकर चली जाएगी.”

“उस समय मौसी ने भी वाणी दीदी की हां मे हां मिलते हुए उनसे कह दिया कि, अब यदि वो दोनो वाणी दीदी के साथ कोई बदतमीज़ी करती है तो, वाणी दीदी को तुम्हे अपने साथ पूना ले जाने की पूरी छूट है.”

“इसी वजह से वो दोनो वाणी दीदी की किसी बात को सुनकर भी उनके साथ कोई बदतमीज़ी नही कर रही है और ना ही उन से ज़ुबान लड़ने की ग़लती कर रही है.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मैं सोच मे पड़ गया. मुझे सोच मे पड़ा देख कर कीर्ति ने इसकी वजह पुछि तो, मैने उस से कहा.

मैं बोला “अब मुझे समझ मे आ रहा है कि, एरपोर्ट से लेकर अभी तक अमि निमी, वाणी दीदी की हर बात को सुनकर भी चुप क्यो है. लेकिन ये सिर्फ़ तूफान के आने के पहले की शांति है. वो इतनी जल्दी हार मानने वालों मे से नही है.”

मेरी इस बात पर कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुम बिल्कुल सही सोच रहे हो. मैने उन दोनो की बातें सुनी थी. वो दोनो सिर्फ़ तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी और अब तुम्हारे साथ मिल कर वाणी दीदी को सबक सिखाएगी.”

“अभी उनको तुमसे बात करने का मौका नही मिला है. इसलिए वो अभी तक शांत चल रही है. लेकिन तुमसे बात होते ही, वो तुम्हारे सामने सबसे पहले वाणी दीदी को सबक सिखाने वाली बात रखने वाली है.”

इतनी बात बोल कर कीर्ति फिर से खिलखिलाने लगी. लेकिन उसकी इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा सोच मे डाल दिया था. मुझे सोच मे पड़ा देख कर, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अभी तो जंग सुरू भी नही हुई और तुम अभी से सोच मे पड़ गये.”

मैं बोला “तुझे मज़ाक सूझ रहा है. तू नही जानती कि, अमि निमी मुझे वाणी दीदी को सबक सिखाने के लिए किस किस तरीके से तैयार करेगी और क्या तू वाणी दीदी के गुस्से को नही जानती कि, वो ज़रा सी बदतमीज़ी सहन नही करती है.’

“तूने देखा तो था कि, कैसे उन्हो ने मेहुल को पता चले बिना ही, उसे धूल चटा दी. अब पता नही मेरा क्या हाल होने वाला है. मैं तो यहाँ वापस आकर फस गया हूँ. इस से अच्छा तो ये ही होता कि, मैं कुछ दिन मुंबई मे और रुक जाता.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति फिर से खिलखिला कर हँसने लगी. लेकिन मैं उसे कुछ बोल पाता, उस से पहले ही, मेहुल का कॉल आने लगा. मैने अपना गुस्सा उस पर उतारना चाहता था. मगर मेरे कुछ बोल पाने के पहले ही, उसने मुझसे कहा.

मेहुल बोला “सुन, मैं कुछ दिन के लिए मामा के घर जा रहा हूँ और मेरा नंबर बंद रहेगा.”

मेहुल की बात सुनकर, मुझे समझ मे आ गया कि, वो अचानक मामा के घर क्यो भाग रहा है. मैने कीर्ति को मेहुल के जाने की बात बताई तो, उसने मेरे हाथ से मोबाइल ले लिए और मेहुल से बात करने लगी.

कीर्ति ने मेहुल को समझा दिया कि, उसने वाणी दीदी को सब समझा दिया. वो उनसे फोन पर बात करके उनसे सॉरी बोल दे तो, वाणी का रहा सहा गुस्सा भी ख़तम हो जाएगा और उसे उनसे मूह नही छुपाना पड़ेगा.

मेहुल की वाणी को कॉल करने की हिम्मत तो नही हो रही थी. फिर भी कीर्ति के समझाने पर उसने ऐसा करने की हामी भर दी. मेहुल के कॉल रखने के बाद, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “वाणी दीदी को देखते ही, सब के सब घर छोड़ कर भागने की क्यो सोचने लगती है.”

मैं कीर्ति की बात सुनकर, उस पर गुस्सा करने लगा और वो मुझे इसी बात को लेकर परेशान करने लगी. तभी छोटी माँ अमि निमी के साथ आ गयी. वो शायद कहीं जाने की तैयारी मे थी.

अभी मैं उनसे इसके बारे मे पुच्छ पाता कि, तभी वाणी भी नीचे आ गयी. वो भी कहीं जाने की तैयारी मे लग रही थी. वाणी को आते देख कर छोटी माँ ने मुझसे कहा.

छोटी माँ बोली “मैं अमि निमी के साथ कीर्ति को डॉक्टर को दिखाने ले जा रही हूँ. वाणी अपने काम से बॅंक जा रही है. तुम भी वाणी के साथ बॅंक चले जाओ और तुम्हारे खाते मे, जितने भी पैसे है. उनमे से दस हज़ार छोड़ कर, बाकी सब मेरे खाते मे डाल दो.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर, मैने चौकते हुए उनसे कहा.

मैं बोला “लेकिन छोटी माँ मेरे खाते में पहले से ही डेढ़ लाख रुपये से ज़्यादा थे. मैं ऐसा करता हूँ कि, डेढ़ लाख रुपये अपने खाते मे छोड़ कर, बाकी आपके खाते मे डाल देता हूँ.”

लेकिन छोटी माँ ने मेरी बात को काटते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “मैने तुमसे जितना करने को कहा है, सिर्फ़ उतना करो. मुझे कुछ समझाने की कोसिस मत करो.”

मैं बोला “लेकिन छोटी माँ….”

मगर छोटी माँ ने मेरी बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “तुमने सुना नही, मैने क्या कहा. अब इसके बाद मैं कुछ भी सुनना नही चाहती.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर, मैं चुप करके रह गया. अपनी बात कहने के बाद, छोटी माँ, कीर्ति लोगों को लेकर चली गयी. लेकिन जाते जाते वो मेरा सारा मूड खराब कर गयी थी और एक पल मे ही मुझे कॅंगाल बना गयी थी.
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