SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:25 PM,
#81
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
रंगीला ने फौरन कार की रफ्तार बढ़ाई और उसे बस से आगे निकाल ले गया।
इर्विन हस्पताल के बस स्टैण्ड से आगे उसने अपनी कार रोक दी। वह फुर्ती से कार से निकला और वापिस बस स्टैण्ड पर आकर खड़ा हो गया।
तभी वही डबल-डैकर बस स्टैण्ड पर आकर रुकी जिसकी खिड़की में से उसे सलमान अली की झलक दिखाई दी थी।
वह बस में सवार हो गया।
बस पर करोलबाग टर्मिनस का बोर्ड लगा हुआ था। रंगीला ने कन्डक्टर से टर्मिनस का टिकट लिया और सीढ़ियां चढ़ कर ऊपरले डैक पर पहुंचा।
ऊपर केवल तीन चार सीटों पर ही मुसाफिर बैठे थे।
सलमान अली आगे एक खिड़की के पास अकेला बैठा था और शायद दिल्ली शहर का आखिरी नजारा कर रहा था।
सलमान अली ने सहज भाव से उसकी तरफ देखा।
रंगीला पर निगाह पड़ते ही उसका चेहरा कागज की तरह सफेद हो गया। उसका शरीर एक बार बड़ी जोर से कांपा। अपनी गोद में रखे अपने सूटकेस को उसने बड़ी मजबूती से अपनी छाती के साथ जकड़ लिया।
“आदाब अर्ज करता हूं, मौलाना।”—रंगीला अपनी आवाज को मिठास का पुट देता बोला।
“तु... तु... तुम!”—उसके मुंह से निकला।
“हां, मैं। मेरा प्रेत नहीं। क्या बात है, मियां? इतने घबरा क्यों रहे हो?”
“म-मैं तो न-नहीं घबरा रहा।”
“जान कर खुशी हुई। अब बताओ तुम्हें खुशी हुई?”
“किस बात की?”
“मुझसे मुलाकात होने की?”
वह खामोश रहा।
“लगता है नहीं हुई।”
“तुम बस में कहां से टपक पड़े?”
“आसमान से। अपना सूटकेस संभाल लो”—एकाएक रंगीला कर्कश स्वर में बोला—“अगले स्टैण्ड पर हमने उतरना है।”
“नहीं।”—सलमान अली जोर से इनकार में गर्दन हिलाता बोला।
“क्या नहीं?”
“अब मैं वापिस नहीं जा सकता। मेरे लिए पीछे कुछ नहीं रखा। मैं अपनी पिछली जिन्दगी से हमेशा के लिए किनारा कर आया हूं।”
“फेथ डायमण्ड अकेले हड़प जाना चाहते हो, मौलाना?”
“वह मैं तुम्हें दे देता हूं। तुम अकेले हड़प लो उसे।”
“बातें मत बनाओ।”
“मैं बातें कहां बना रहा हूं। अगर बात फेथ डायमण्ड की है तो...”
“बात फेथ डायमण्ड की ही नहीं है।”
“तो?”
“तुम कहां जा रहे हो?”
“पाकिस्तान। हमेशा के लिए।”
“कैसे जाओगे? तुम्हारा पासपार्ट तो सरकार ने जब्त किया हुआ है!”
वह खामोश रहा।
“लगता है जाली पासपोर्ट का इन्तजाम हो गया है।”
वह परे देखने लगा।
“अपना पासपोर्ट मुझे दिखाओ।”
“नहीं।”—वह तीखे स्वर में बोला।
“मौलाना, बेवकूफ मत बनो। अभी तुम फेथ डायमण्ड के टुकड़े मुझे सौंप रहे थे यानी वह भी और चोरी का और भी ढेर सारा माल इस वक्त तुम्हारे कब्जे में है। ऊपर से तुम्हारे पास जाली पासपोर्ट है जो कि जरूरी नहीं कि सलमान अली के ही नाम से हो। ऐसे में गिरफ्तार हो गए तो बड़े लम्बे नपोगे, मौलाना।”
“तुम...तुम मुझे गिरफ्तार करवाओंगे?”
“हां।”
“और खुद बच जाओगे?”
“मुझे अपनी परवाह नहीं।”
“बिरादर।”—वह गिड़गिड़ाया—“तुम क्यों एक गरीब आदमी के पीछे पड़े हुए हो?”
“मौलाना, इस वक्त हम दोनों एक ही राह के राही हैं इसलिए शराफत इसी बात में है कि तुम मेरी पीठ खुजाओ और मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊं।”
“मैं क्या करूं?”
“सबसे पहले तो बस से उतरो और वापिस अपने घर चलो।”
“मैं अब लौट कर वहां नहीं जाना चाहता।”
“वहां नहीं जाओगे तो जेल जाओगे। सोच लो।”
“बिरादर, कुछ तो खयाल करो। तुम इश्‍तिहारी मुजरिम बन चुके हो। पुलिस को तुम्हारी तलाश है। क्यों मुझे भी गेहूं के साथ घुन की तरह पीसना चाहते हो?”
“तुम्हें कुछ नहीं होगा। मुझे भी कुछ नहीं होगा।”
“लेकिन फिर भी...”
“बातों में वक्त जाया मत करो, मौलाना।”
“मेरे घर जाने से क्या होगा?”
“तुम्हारा घर आज की तारीख में मेरे लिए इन्तहाई महफूज जगह है।”
“वहम है तुम्हारा। तुम्हारा दोस्त राजन गिरफ्तार है। वह कभी भी मेरे बारे में पुलिस के सामने बक सकता है।”
“अगर उसने तुम्हारे बारे में कुछ बकना होता तो अब तक बक चुका होता। तुमने अखबार पढ़ा ही होगा। उसमें हर बात छपी है लेकिन तुम्हारा जिक्र नहीं छपा।”
“नहीं छपा तो छप जाएगा।”
“नहीं छपेगा।”
“अगर मैं बस से उतरने से इनकार कर दूं तो तुम क्या करोगे?”
“मैं तुम्हें गिरफ्तार करवा दूंगा।”
“चाहे साथ में खुद भी गिरफ्तार हो जाओ?”
“हां।”
“यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?”
“हां।”
“अच्छी बात है। मैं चलता हूं तुम्हारे साथ।”
“शाबाश!”
दोनों अजमेरी गेट के स्टैण्ड पर उतर गए।
एक थ्री-व्हीलर पर सवार होकर वे वापिस लौटे।
सलमान अली ने चाबी लगा कर अपने घर का दरवाजा खोला।
दोनों भीतर दाखिल हुए।
सलमान अली ने भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया।
दोनों पहली मंजिल पर स्थित उसकी वर्कशॉप में पहुंचे।
सलमान अली ने सूटकेस अपने पैरों के पास रख लिया और स्वयं बैंच के सामने एक स्टूल पर बैठ गया।
“अब बोलो क्या कहते हो?”—वह बोला।
“तुम्हारे पास जो पासपोर्ट है”—रंगीला ने सवाल किया—“वह जाली है?”
“हां।”
“कहां से हासिल हुआ?”
“नबी करीम में एक मुसलमान एंग्रेवर है। वही कुछ भरोसे के लोगों के लिए ऐसे काम करता है।”
“मेरे लिए वह एक जाली पासपोर्ट बना देगा?”
“बना देगा। मेरे कहने पर बना देगा।”
“तुम कह दो उसे।”
“मैं उसके नाम तुम्हें चिट्ठी लिख देता हूं।”
उसने एक दराज खोला और उसमें से एक कागज और एक बाल प्वाइन्ट पेन निकाला। कुछ देर वह कागज पर उर्दू में कुछ लिखता रहा। उसने कागज को दो बार तह करके एक लिफाफे में रखा और लिफाफे पर इंगलिश में एक नाम और पता लिख दिया। फिर उसने लिफाफा रंगीला की तरफ बढ़ा दिया।
“यह आदमी”—रंगीला लिफाफा लेता बोला—“पैसे कितने लेगा इस काम के?”
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09-29-2020, 12:26 PM,
#82
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“बीस हजार रुपये।”
“क्या!”
“कम हैं, बिरादर। कम हैं। उसका बनाया पासपोर्ट आज तक पकड़ा नहीं गया है।”
“जरा अपना पासपोर्ट दिखाओ।”
सलमान अली ने हिचकिचाते हुए अपना पासपोर्ट रंगीला को थमा दिया।
रंगीला ने बड़ी बारीकी से पासपोर्ट का मुआयना करना आरम्भ किया।
उसकी समझ में न आया कि पासपोर्ट अगर नकली था तो किधर से नकली था।
“इसको तैयार करने में वह वक्त कितना लगाता है?”
“एक महीना।”
“एक महीना!”
“हां! यह बड़े सब्र और इतमीनान से होने वाला काम है।”
“मैं एक महीना इन्तजार नहीं कर सकता।”
“तो मत करो।”
वह खामोश हो गया और फिर पासपोर्ट का मुआयना करने लगा। उसने बड़े गौर से पासपोर्ट की एक-एक एन्ट्री पढ़ी।
उसने अनुभव किया कि केवल दो तब्दीलियों से वही पासपोर्ट उसके काम आ सकता था।
एक जन्म की तारीख।
सलमान अली की उम्र चालीस साल के करीब थी, जबकि वह खुद अट्ठाइस साल का था। बारह साल का झूठ चलाना मुश्‍किल था।
और दूसरी पासपोर्ट पर लगी तसवीर।
उन दोनों तब्दीलियों में महीना नहीं लग सकता था। वे दोनों तब्दीलियां फौरन की जा सकती थीं।
“मौलाना”—रंगीला निर्णयात्मक स्वर में बोला—“यह पासपोर्ट मुझे चाहिए।”
“यह मेरा पासपोर्ट है।”—वह सकपकाया—“तुम्हारे किस काम का?”
“यह मेरा पासपोर्ट बन सकता है।”
“तुम पागल तो नहीं हो गए हो?”
“नहीं, मैं पागल नहीं हो गया हूं। देखो, मेरे पीछे पुलिस पड़ी हुई है। लेकिन तुम अभी एकदम सेफ हो। इस वक्त पासपोर्ट की तुम्हारी जरूरत से मेरी जरूरत बड़ी है। तुम मुल्क से अपना भागना एक महीने के लिए मुल्तवी कर सकते हो, मैं नहीं कर सकता। इसलिए तुम्हारा पासपोर्ट मैं ले रहा हूं। मैं इसमें दो तब्दीलियां करवाऊंगा और...”
“ऐसी की तैसी तुम्हारी।”—सलमान अली ने एकाएक दराज में हाथ डालकर पिस्तौल निकाल ली—“इधर लाओ पासपोर्ट वर्ना शूट कर दूंगा।”
“मौलाना!”
“सुना नहीं। जल्दी करो। पासपोर्ट इधर फेंको वर्ना मैं गोली चालाता हूं।”
रंगीला ने पासपोर्ट अपनी जेब में रख लिया और आंखें तरेरकर बोला—“तू गोली ही चला ले, साले।”
सलमान अली ने घोड़ा खींचा।
खाली पिस्तौल केवल एक क्लिक की आवाज करके रह गई।
सलमान अली की आंखों में आतंक की छाया तैर गई। वह घबराकर उठ खड़ा हुआ। विक्षिप्तों की तरह उसने गोलियों की तलाश में दराज में हाथ डाला।
रंगीला उस पर झपटा।
बैंच पर एक भारी हथौड़ा पड़ा था जो कि उसके हाथ में आ गया।
गोलियों के साथ सलमान अली का हाथ दराज से बाहर निकला। उसने पिस्तौल को खोलने का उपक्रम किया।
तभी रंगीला उसके सिर पर पहुंच गया। गन्दी गालियां बकते हुए हथौड़े का एक भरपूर प्रहार उसने सलमान अली की खोपड़ी पर किया।
सलमान अली की खोपड़ी तरबूज की तरह फट गई और उसमें से खून का फव्वारा फूट निकला।
फिर वह कटे वृक्ष की तरह धड़ाम से फर्श पर गिरा।
रंगीला ने झुककर उसकी नब्ज टटोली।
नब्ज गायब थी।
सलमान अली अंसारी, उम्र चालीस साल, साकिन लाहौर पाकिस्तान, की इहलीला समाप्त हो चुकी थी। पाकिस्तान पहुंचने के स्थान पर वह परलोक पहुंच चुका था।
रविवार : दोपहरबाद
सबसे पहले रंगीला ने पिस्तौल को अपने अधिकार में किया। उसने पिस्तौल में पूरी गोलियां भर लीं और उसे अपने कोट की भीतरी जेब में रख लिया।
फिर उसने बड़ी बारीकी से अपने कपड़ों का मुआयना किया कि उन पर कहीं सलमान अली के खून के छींटे तो नहीं पड़े थे!
ऐसा नहीं था।
उसे सलमान अली की मौत का कोई अफसोस नहीं था। पिस्तौल उसने दराज में पहले से न देख ली होती और उसकी गोलियां न निकाल दी हुई होतीं तो उस वक्त वर्कशॉप के फर्श पर सलमान अली की जगह उसकी लाश पड़ी होती।
सलमान अली की मौत से उसे कई फायदे हुए थे। मसलन :
वह हथियारबन्द हो गया था।
उसके हाथ एक पासपोर्ट आ गया था जो मामूली तब्दीलियों से उसका बन सकता था।
सिर छुपाने के लिए टीना के तम्बू से ज्यादा कारआमद ठिकाना उसके हाथ आ गया था।
दस हजार रुपये नकद उसके हाथ आ गए थे जो कि उसने सलमान अली की जेब में से बरामद किये थे।
जवाहरात उसकी जेबों से बरामद नहीं हुए थे। उसने उसके शरीर के एक-एक कपड़े को, जूतों तक को, बड़ी बारीकी से टटोला था लेकिन जवाहरात उसे कहीं नहीं मिले थे।
जरूर वे सूटकेस में कहीं थे।
सलमान अली की जेब से बरामद चाबियों से उसने सूटकेस का ताला खोला। उसने उसके भीतर मौजूद एक-एक चीज का मुआयना करना आरम्भ किया। पांच मिनट में सूटकेस खाली हो गया लेकिन जवाहरात प्रकट न हुए।
उसने कमरे में से एक डोरी तलाश की और उसकी सहायता से सूटकेस की लम्बाई-चौड़ाई-गहराई को पहले बाहर से और फिर भीतर से नापा।
उसने पाया कि सूटकेस का न तला दोहरा था और न कोई साइड दोहरी थी।
उसने एक बार फिर बड़ी बारीकी से सलमान अली के शरीर को टटोला।
जवाहरात बरामद न हुए।
कमाल था! जब उसका पासपोर्ट, नकदी वगैरह हर चीज वहां थी तो जवाहरात कहां चले गए थे?
वह फिर सूटकेस को यूं घूरने लगा जैसे वह उससे मुंह से बोलने की उम्मीद कर रहा हो कि जवाहरात कहां थे।
तब पहली बार उसका ध्यान सूटकेस के हैंडल की तरफ गया।
उसे हैंडल तनिक बड़ा और मोटा लगा।
उसने हैंडल थामा।
देखने में वह आम हैंडलों जैसा चमड़े का हैंडल ही था।
उसने बैंच पर से एक ब्लेड तलाश किया और हैंडल का चमड़ा काटना आरम्भ कर दिया।
दो मिनट बाद बारिश की बून्द की तरह पहला हीरा हैंडल में से फर्श पर टपका।
हैंडल खोखला था और हीरे जवाहरात उसमें ठूंस-ठूंसकर भरे हुए थे।
उन्हीं में फेथ डायमण्ड के भग्नावशेष भी थे।
रंगीला ने वे तमाम जवाहरात अपनी शनील की थैली के हवाले किये।
अब उसके सामने पासपोर्ट के लिए तसवीर हासिल करने की समस्या थी।
रविवार के दिन उस इलाके में साप्ताहिक छुट्टी होती थी इसलिए किसी फोटोग्राफर की दुकान खुली मिलना उसे मुमकिन नहीं लग रहा था।
लेकिन और कई इलाकों में दुकानें खुली हो सकती थीं।
उसने सलमान अली के सामान में से उसका शेव का सामान निकाला और शेव बनाई।
तसवीर के लिए शेव हुई होनी जरूरी थी।
सलमान अली के सामान में एक रंगीन चश्‍मा भी था जो उसने अपनी नाक पर लगा लिया। सलमान अली की टोपी अपने सिर पर जमाकर उसने शीशे में अपनी सूरत देखी।
उसे बहुत तसल्ली हुई।
अब वह अखबार में छपी अपनी सूरत जैसा कतई नहीं लग रहा था।
वह मकान से बाहर निकला।
मकान को बाहर से ताला लगाकर वह गली में आगे बढ़ा।
वह दरीबे से बाहर निकला।
वहां एक बैंच पर तीन-चार पुलिसिये बैठे थे। उन्होंने एक सरसरी निगाह रंगीला पर डाली और फिर अपनी बातों में मग्न हो गए।
रंगीला को बड़ी राहत महसूस हुई।
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09-29-2020, 12:26 PM,
#83
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
चश्‍मा और टोपी काफी कारआमद साबित हो रहे थे।
वह एक रिक्शा पर सवार हुआ। रिक्शा वाले को उसने इर्विन हस्पताल चलने के लिए कहा।
रिक्शा दरियागंज से गुजरा तो एकाएक उसे एक खयाल आया।
अब तो उसकी बीवी बेखटके अपने यार से मिलती होगी।
उस वक्त उसे वहीं कही श्रीकान्त दिखाई दे जाता तो वह जरूर वहीं उसे गोली मार देता।
रिक्शा ‘गोलचा’ के आगे से गुजरा तो एकाएक वह बोल पड़ा—“रोको।”
रिक्शा रुक गया।
“मैं यहीं उतर रहा हूं।”—रंगीला उसे भाड़ा चुकाता बोला।
सड़क पार करके वह ‘गोलचा’ के पहलू में स्थित गली में घुस गया।
वह कूचा चेलान में पहुंचा।
वहां श्रीकान्त का घर तलाश करने में उसे कोई दिक्कत न हुई। उसने दरवाजा खटखटाया तो एक बुजुर्गवार बाहर निकले। मालूम हुआ कि श्रीकान्त उनका लड़का था और वह उस वक्त घर पर नहीं था।
“कहां गया?”
“मालूम नहीं।”
रंगीला लौट पड़ा।
उसका जी चाहा कि वह अपने घर जाकर देखे कि कहीं वह उसकी बीवी की गोद में तो गर्क नहीं था लेकिन उधर का रुख करने का उसका हौसला न हुआ। मौजूदा हालात में यह हो ही नहीं सकता था कि उसकी गली की, उसके घर की पुलिस निगरानी न कर रही होती।
अपनी बीवी के यार को तन्दूर में लगाने का अपना अरमान अपने मन में ही दबाए वह दोबारा एक रिक्शा पर सवार हो गया।
वह इर्विन हस्पताल के सामने वहां पहुंचा जहां वह चोरी की कार खड़ी करके आया था।
कार यथास्थान खड़ी थी। किसी की उसकी तरफ कोई खास तवज्जो नहीं थी।
फिर भी वह और पांच मिनट कार के पास न फटका।
जब उसे गारण्टी हो गई कि कार किसी की निगाह में नहीं थी तो वह उसमें सवार हुआ।
उसने कार आगे बढ़ाई।
करोलबाग की मार्केट रविवार को खुली होती थी। वहां वह किसी फोटोग्राफर से अपनी तसवीर खिंचवा सकता था।
वह करोलबाग पहुंचा।
उसने कार को एक स्थान पर पार्क किया और किसी फोटोग्राफर की तलाश में पैदल आगे बढ़ा।
उसे एक अपेक्षाकृत कम भीड़भाड़ वाले इलाके में एक फोटोग्राफर की दुकान दिखाई दी जिसका मालिक उसे खाली बैठा लगा।
वह दुकान में दाखिल हुआ।
दुकानदार उसकी तरफ आकर्षित हुआ।
“फोटो खिंचानी है।”—रंगीला बोला—“पासपोर्ट के लिए।”
“भीतर आइए।”
फोटोग्राफर उसे भीतर स्टूडियो में ले आया।
“बैठिए।”—वह कैमरे और लाइटों के सामने पड़ी एक बैंच की तरफ संकेत करता बोला।
“पैसे तो बताए नहीं आपने?”—रंगीला बोला।
“वही सात रुपये। तीन कॉपियों के। सब जगह यही लगते हैं।”
“तसवीर मुझे मिलेगी कब?”
“परसों शाम को।”
“लेकिन मुझे तो कल चाहिए।”
“कल मिल सकती थी लेकिन कल दुकान की छुट्टी का दिन है।”
“तो आज दे दो।”
“आज तो मुश्‍किल है।”
“क्या मुश्‍किल है?”
“अर्जेण्ट के चार्जेज एक्स्ट्रा लगते हैं।”
“कितने?”
“दस रुपये।”
“यानी कि मैं सत्तरह रुपये दूं तो तसवीर आज ही मिल जाएगी?”
“हां।”
“आज कब?”
“शाम सात बजे ले जाना।”
“दुकान कितते बजे बन्द करते हो?”
“आठ बजे।”
“सात बजे तसवीर तैयार मिलेगी न?”
“शर्तिया।”
“ठीक है। मैं सत्तरह रुपये दूंगा। तसवीर आज ही मिल जानी चाहिए।”
“बैठिए।”
वह बैंच पर बैठ गया।
“चश्‍मा और टोपी उतारिए।”
“वह किसलिए?” रंगीला तनिक तीखे स्वर में बोला।
“आपने कहा था कि आपको तसवीर पासपोर्ट के लिए चाहिए।”
“तो?”
“पासपोर्ट फोटो में टोपी और रंगीन चश्‍मा नहीं चलता। पासपोर्ट फोटो को री-टच करने की भी इजाजत नहीं होती है। मैं तो ऐसे ही तसवीर खींच दूंगा लेकिन तसवीर आपके किसी काम नहीं आएगी। पासपोर्ट ऑफिस में रिजेक्ट हो जाएगी ऐसी तसवीर।”
“ओह!”—वह चश्‍मा और टोपी उतारता बोला—“मुझे नहीं मालूम था।”
“तभी तो बताया है। कंघी कर लीजिए।”
रंगीला ने अपने बाल संवारे।
फोटोग्राफर ने तसवीर खींची।
फिर दोनों स्टूडियो से बाहर निकले।
रंगीला ने उसे सत्तरह रुपये दिए।
फोटोग्राफर ने रसीद काटी और पूछा—“आपका नाम?”
“सलमान अली।”—रंगीला बोला।
“पता?”
“पता क्या करोगे? शाम को तो मैं आ ही रहा हूं।”
“ठीक है।”
फोटोग्राफर ने रसीद फाड़कर रंगीला के हवाले कर दी।
रंगीला वहां से विदा हो गया।
वह टूरिस्ट कैम्प पहुंचा।
टीना का तम्बू उसे खाली मिला।
तम्बू की एक दीवार के साथ सेफ्टी पिन से जुड़ा एक कागज फड़फड़ा रहा था।
वह उसके समीप पहुंचा।
ऊपर अपना ही नाम लिखा देखकर उसने कागज उतार लिया और उसे पढ़ना आरम्भ किया।
लिखा था।
डार्लिंग अली,
मैं जा रही हूं मुझे प्लेन टिकट मिल गया है इसलिए मैं और नहीं रुक सकती। तुमने मेरी मदद की, उसके लिए शुक्रिया। चार दिन और यहां तुम बिना रोक-टोक के रह सकते हो, मैंने चौकीदार को बोल दिया है।
टीना
रंगीला ने कागज का गोला-सा बनाकर उसे एक ओर उछाल दिया।
वहां अकेले रहने का तो कोई मतलब ही नहीं था।
उस जगह से तो सलमान अली का घर अच्छा था।
बाकी का दिन उसने सलमान अली के घर में उसकी लाश के साथ गुजारा।
रविवार : शाम
छ: बज के करीब अन्धेरा हो चुकने के बाद रंगीला सलमान अली के मकान से बाहर निकला। उसने मकान को ताला लगाया और गली में आगे बढ़ा।
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09-29-2020, 12:26 PM,
#84
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
तभी एकाएक जैसे उसे अपनी कोहनी के पास से आवाज आई—“वही है।”
वह हड़बड़ाकर घूमा।
अपने पीछे नीमअन्धेरी गली में उसे दो आदमी दिखाई दिये। उनमें से एक को उसने फौरन पहचाना।
वह जुम्मन नाम का वह आदमी था जो मंगलवार रात को कौशल के पीछे लग लिया था और जिसकी तीनों ने लालकिले के पास धुनाई की थी।
दूसरा आदमी भी जरूर कोई दारा का ही आदमी था।
पता नहीं वे लोग इत्तफाक से उस गली में थे या किसी प्रकार उन्हें उसकी सलमान अली के मकान में मौजूदगी की भनक मिल गई थी।
रंगीला ने पहले वापिस सलमान अली के मकान में घुस जाने का खयाल किया लेकिन फिर उसे वैसा करना नादानी लगा। अब तो वह जान बूझकर चूहे के पिंजरे में फंसने जैसा काम होता। अब जब कि वे लोग उसे पहचान ही गये थे तो वहां तो वे बड़े इतमीनान से उससे खुद भी निपट सकते थे और उसे गिरफ्तार भी करवा सकते थे।
एक क्षण वह वहीं ठिठका खड़ा रहा, फिर वह लम्बे डग भरता गली से बाहर की तरफ चल दिया।
वे दोनों उसके पीछे लपके।
रंगीला समझ गया वे दोनों उसका लिहाज नहीं करने वाले थे। वे जरूर उसे पकड़ लेने की फिराक में थे।
वे जब उसके अपेक्षाकृत करीब पहुंच गये तो रंगीला एकाएक वापिस घूमा और दोनों पर झपट पड़ा। उसकी उस अप्रत्याशित हरकत से दोनों गड़बड़ा गये और उस पर आक्रमण करने के स्थान पर अपने बचाव की कोशिश करने लगे। रंगीला ने दोनों की गरदनें पकड़ लीं और पूरी शक्ति से उनकी खोपड़ियां आपस में टकरा दीं।
फिर वह वहां से भाग निकला।
गली से बाहर उसे दो और ऐसे आदमी दिखाई दिये जो कि जुम्मन के साथी हो सकते थे।
लगता था वह सलमान अली के मकान में दाखिल होता देख लिया गया था और हर कोई उसके बाहर निकलने की ही ताक में वहां मौजूद था।
प्रत्यक्षत: उनका उसको पुलिस के हवाले करने का कोई इरादा नहीं था। ऐसा होता तो वे कब के पुलिस के पास पहुंच चुके होते और उसे गिरफ्तार करवा चुके होते। जरूर वे उससे आसिफ अली रोड वाली चोरी का माल छीनने की फिराक में थे।
ऐसे तो मत छिनवाया मैंने माल—दृढ़ता से वह मन ही मन बोला।
उन दोनों ने उसे दायें बायें से थाम लेने की कोशिश की, लेकिन रंगीला उन्हें डॉज दे गया और दरीबे की तरफ भागा।
वे सब उसके पीछे लपके।
दरीबे की एक एक गली से रंगीला वाकिफ था। बाजार से गुजरने के स्थान पर वह बाजार पार करके एक संकरी गली में घुस गया।
एक आदमी ने गली में उसके पीछे छलांग लगाई। अपने हाथ में थमा डण्डा उसने रंगीला की खोपड़ी को निशाना बनाकर घुमाया। रंगीला झुकाई दे गया। उसने अपना सिर बैल की तरह उसकी छाती में हूला। वह आदमी भरभराकर अपने पीछे मौजूद अपने साथी के ऊपर जाकर गिरा।
रंगीला फिर गली में भागा।
छ: आदमी।
अब तक छ: आदमी उसे अपनी फिराक में दिखाई दे चुके थे और अभी पता नहीं और कितने थे।
कई संकरी गलियों में से गुजरता वह एस्प्लेनेड रोड पर जाकर निकला। उसे देखते ही एक कार में से तीन चार आदमी बाहर निकले और सब उसे घेरने की कोशिश करने लगे।
हे भगवान! वह उनसे अलग भागता हुआ सोचने लगा, क्या दारा का सारा गैंग उसी के पीछे पड़ गया था?
ऐसे लोगों से हिफाजत के लिए लोग पुलिस के पास जाते थे लेकिन वह किसके पास जाता?
वे जानते थे कि वह पुलिस की शरण में नहीं जा सकता था, तभी तो वे इतनी निडरता से उसके पीछे पड़े हुए थे।
अन्धेरे में वह सरपट आगे भागा।
तभी एक खाली टैक्सी उसकी बगल में मे गुजरी।
“टैक्सी!”—वह उच्च स्वर में बोला।
टैक्सी रुक गई।
वह झपटकर टैक्सी में सवार हो गया।
टैक्सी वाले ने हाथ बढ़ाकर मीटर डाउन किया और बोला—“कहां चलूं?”
“करोलबाग!”—रंगीला हांफता हुआ बोला।
टैक्सी आगे दौड़ चली।
रंगीला ने व्याकुल भाव से अपने पीछे देखा।
अपने पीछे उसे दारा का कोई आदमी दिखाई न दिया।
टैक्सी मेन रोड पर पहुंचकर घूमी। आगे लाल किला का चौराहा था। वहां से सिग्नल पर टैक्सी ने यू टर्न काटा और नेताजी सुभाष मार्ग पर दौड़ चली। एकाएक रंगीला की निगाह रियरव्यू मिरर पर पड़ी। उसने देखा टैक्सी वाला शीशे में से बड़ी गौर से उसे ही देख रहा था, शीशे में उससे निगाह मिलते ही उसने फौरन‍ निगाह फिरा ली।
रंगीला के जेहन में खतरे की घण्टियां बजने लगीं।
कहीं टैक्सी वाले ने उसे पहचान तो नहीं लिया था?
आगे दरियागंज का थाना था जहां और दो तीन मिनट में टैक्सी पहुंच जाने वाली थी। थाना मेन रोड पर था। अगर ड्राइवर ने टैक्सी को सीधे थाने ले जाकर खड़ी कर दिया तो?
उसने टैक्सी से उतर जाने का फैसला किया।
तभी दो कारें टैक्सी के दायें बायें प्रकट हुईं और वे टैक्सी को घेरकर किनारे करने की कोशिश करने लगीं।
रंगीला ने घबराकर बारी बारी दोनों कारों की तरफ देखा। दोनों में दर्जन से ज्यादा आदमी लदे हुए थे और वे तकरीबन वही थे, जो पीछे किनारी बाजार में उसे थामने की कोशिश करते रहे थे। उनमें उसे जुम्मन भी दिखाई दिया। एक आदमी कार से बाहर हाथ निकाल कर टैक्सी वाले को रुकने का इशारा कर रहा था।
टैक्सी की रफ्तार कम होने लगी।
“गाड़ी मत रोकना।”—रंगीला आतंकित भाव से चिल्लाया।
“क्यों?”—ड्राइवर बोला।
“उन दोनों गाड़ियों में गुण्डे हैं, वे हमें मार डालेंगे।”
“सिर्फ तुम्हें। मुझे नहीं। एक गाड़ी में मुझे अपना उस्ताद रईस अहमद दिखाई दे रहा है। वह मुझे कुछ नहीं कहने का। उलटे अगर मैं गाड़ी नहीं रोकूंगा तो वह मेरा मुर्दा निकाल देगा।”
रईस अहमद!
वह नाम रंगीला ने सुना हुआ था, उसने कभी रईस अहमद की शक्ल नहीं देखी थी लेकिन उसने सुना हुआ था कि वह दारा के गैंग का कोई महत्वपूर्ण आदमी था।
टैक्सी रफ्तार घटाते घटाते साइड लेने लगी।
बदमाशों की दोनों कारें आगे निकल गईं।
रंगीला ने टैक्सी के रुकने से पहले उसका फुटपाथ की ओर का दरवाजा खोला और बाहर कूद गया। उसका कन्धा सड़क से टकराया, उसने दो लुढ़कनियां खाईं और फिर रबड़ के खिलौने की तरह उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया।
बदमाशों की दोनों गाड़ियां अभी ठीक से रुक भी नहीं पाई थीं कि वह बगूले की तरह शान्ति वन को जाती सड़क पर भागा।
फिर बदमाश भी कारों में से निकलने लगे और दाएं बाएं फैलकर उसके पीछे भागे।
रंगीला लाल किले की तरफ मुड़ गया।
उन लोगों में से कुछ उसके पीछे सड़क पर भागे, कुछ मैदान के टीलों पर चढ़ गए ताकि उन्हें पार करके वे उससे पहले सड़क पर पहुंच सकते। कुछ कार में ही सवार रहे।
भागता हुआ रंगीला उस स्थान पर पहुंचा, जहां उन्होंने जुम्मन की धुनाई की थी।
वह वहां ठिठका।
अपनी धौंकनी की तरह चलती सांस पर काबू पाने की कोशिश करते उसने जेब से सलमान अली की पिस्तौल निकाल ली। पहले भीड़ में पिस्तौल चलाने का हौसला वह नहीं कर सकता था, लेकिन वहां सन्नाटा था, वहां वह निसंकोच गोली चला सकता था।
सबसे पहले जुम्मन और उसका साथी ही उसके सामने पहुंचे।
रंगीला ने पिस्तौल वाला हाथ अपनी पीठ के पीछे कर लिया और स्थिर नेत्रों से उन्हें देखने लगा।
“अब कहां जाएगा, बेटा?”—जुम्मन ललकारभरे स्वर में बोला।
“मैं कहां जाऊंगा!”—रंगीला सहज भाव से बोला—“मैं तो यहीं रहूंगा।”
“देखो तो स्याले को! रस्सी जल गई, बल नहीं गया।”
तभी टीले पर से उतरकर दो आदमी और वहां पहुंच गये। अब जुम्मन शेर हो गया।
“स्साले!”—वह दहाड़कर बोला—“मंगलवार जितनी मार तुम तीन जनों ने मुझे लगाई थी, उतनी मैंने अकेले तुझे न लगाई तो मेरा भी नाम जुम्मन नहीं। पकड़ लो हरामजादे को।”
चारों अर्द्धवृत्त की शक्ल में उसकी तरफ बढ़े।
एकाएक चारों के हाथों में कोई न कोई हथियार प्रकट हुआ। एक के हाथ में लोहे का मुक्का था, दो के पास चाकू थे और खुद जुम्मन के हाथ में साइकिल की चेन थी।
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09-29-2020, 12:26 PM,
#85
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
रंगीला ने पिस्तौल वाला हाथ सामने किया और बड़े इतमीनान से नाल का रुख उनकी तरफ करके एक बार घोड़ा खींचा।
फायर की आवाज हुई। साथ ही जुम्मन की चीख वातावरण में गूंजी। गोली उसके घुटने में लगी थी। उसने अपनी टांग पकड़ ली और फर्श पर लोट गया।
उसकी तरफ बढ़ते साथी बदमाशों को जैसे लकवा मार गया। वे थमककर खड़े हो गये और यूं भौंचक्के से कभी जुम्मन को और कभी रंगीला को देखने लगे जैसे उन्हें अपनी आंखों पर विश्‍वास न हो रहा हो। हवा में उठे उनके हथियारों वाले हाथ जैसे वहीं फ्रीज हो गये।
“आओ, हरामजादो!”—रंगीला कहरभरे स्वर में बोला—“पकड़ो मुझे।”
कोई अपने स्थान से न हिला।
“कौशल को तुम लोगों ने मारा था?”—रंगीला ने सवाल किया।
जवाब न मिला।
उसने फिर फायर किया।
एक और आदमी चीख मारकर जुम्मन की बगल में लोट गया।
बाकी दोनों थर थर कांपने लगे।
“पहलवान खुद ही टें बोल गया था।”—फिर एक जना जल्दी से बोला—“उसको मारने का इरादा किसी का नहीं था।”
“तुम्हारा क्या नाम है?”—रंगीला ने जवाब देने वाले से पूछा।
“राधे।”
“कौशल का माल भी तुम्हीं लोगों ने लूटा था?”
“वह रईस अहमद का काम था। हममें से कोई उसके साथ नहीं था।”
“लेकिन हो तो तुम एक ही थैली के चट्टे बट्टे! हो तो तुम सभी दारा के आदमी!”
जवाब न मिला।
“हरामजादो! पहलवान जैसे मजबूत और सख्तजान आदमी को तुमने कितना मारा होगा, जो कि उसके प्राण निकल गए। क्यों? उसे क्यों मारा इतना?”
“वह अपने साथियों के बारे में नहीं बता रहा था।”—राधे दबे स्वर में बोला—“वह बाकी माल के बारे में नहीं बता रहा था। वह...”
“बको मत।”
राधे ने होंठ भींच लिए।
“अपना चाकू खाई में फेंको।”
राधे ने तुरन्त आज्ञा का पालन किया।
“अपने साथियों के हथियार भी खाई में फेंको।”
बाकी के हथियार भी लाल किले की दीवार के साथ बनी गहरी खाई में जाकर गिरे।
“अपने घायल साथियों को उठाओ और टीले पर जाकर बैठ जाओ।”
दोनों ने ऐसा ही किया।
“मैं जा रहा हूं।”—चारों टीले पर दिखाई देने लगे तो वह बोला—“जिसने गोली खानी हो वह शौक से मेरे पीछे आये। कोई मनाही नहीं है। कोई पाबन्दी नहीं है।”
कोई कुछ न बोला। उनकी निगाहें दूर दूर तक अपने साथियों को तलाश कर रही थीं जो कि कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे।
रंगीला ने सड़क छोड़ दी। उस पर वह न आगे बढ़ा और न वापस लौटा। दोनों ही तरफ से उसे कार वालों से आमना-सामना हो जाने का अंदेशा था।
मेन रोड और किले के बीच में फैले विशाल मैदान में से होता वह आगे बढ़ा।
वह निर्विघ्न अगली सड़क तक पहुंच गया।
तब कहीं जाकर उसने पिस्तौल अपनी जेब में रखी।
इस वक्त—वह मन ही मन बोला—कहीं कोमल का यार भी मिल जाए तो मजा आ जाए। लगे हाथों उसका भी काम कर दूं।
वह बस स्टैण्ड पर जाकर खड़ा हुआ।
जो पहली बस वहां आकर रुकी, वह उस पर सवार हो गया।
वहां से हर बस कम से कम दिल्ली गेट तक जरूर जाती थी।
उसे मालूम हुआ कि वह कालकाजी की बस थी।
बहरहाल बस कहीं की भी थी, अहम बात यह थी कि वह उस इलाके में से निकल रहा था जहां कि वह दारा के आदमियों के हत्थे चढ़ सकता था।
सुप्रीम कोर्ट के स्टैण्ड पर वह बस से उतरा।
तब तक सात बज चुके थे।
लेकिन फोटोग्राफर ने कहा था कि वह आठ बजे तक दुकान खोलता था—उसने अपने आपको तसल्ली दी।
वह वहां से एक आटो पर सवार हुआ और करोलबाग पहुंचा।
फोटोग्राफर की दुकान खुली थी।
पहली बार वह बिना दुकान के आगे ठिठके वहां से गुजर गया।
उसे कोई संदिग्ध व्यक्ति दुकान के आसपास न दिखाई दिया।
वह दुकान के सामने पहुंचा।
वहां भी वह भीतर दाखिल होने से पहले थोड़ी देर शो विन्डो के आगे खड़ा रहा। शो विन्डो में दुकानदार की फोटोग्राफी कला के कुछ नमूने और कुछ कैमरे, फ्लैश लाइट, एलबम वगैरह जैसा सामान पड़ा था। एक फ्लैश लाइट अपने पैकिंग के डिब्बे के ऊपर पड़ी थी और उससे सम्बद्ध तार भीतर कहीं जाती दिखाई दे रही थी।
शायद वह चार्ज होने के लिए वहां रखी थी।
एक सरसरी निगाह फिर अपने गिर्द डाल कर वह दुकान में दाखिल हुआ।
दुकानदार एक काउन्टर के पीछे बैठा था।
वह उसे देखते ही उठ खड़ा हुआ और अपेक्षाकृत उच्च स्वर में बोला—“आइए। आइए, साहब। आपकी तसवीर तैयार है।”
साथ ही उसने अपने हाथ में थमा एक बैलपुश जैसा बटन दबाया।
रंगीला ने देखा, उस बटन से एक तार निकल कर शो विन्डो में रखी फ्लैश लाइट तक पहुंच रही थी।
वह फ्लैश लाइट एक बार जोर से चमकी।
तुरन्त बाद आनन फानन कई व्यक्ति दुकान में घुस आए।
रंगीला बुरी तरह बौखलाया। उसका हाथ अपने आप ही अपनी जेब में रखी पिस्तौल की मूठ पर सरक गया।
क्या हो रहा था?
भीतर घुस आए आदमियों में से कोई पुलिस की वर्दी में नहीं था लेकिन जो अधेड़ावस्था का, निहायत रौब दाब वाला व्यक्ति सबसे आगे था, उसका एक एक हाव भाव उसके पुलिसिया होने की चुगली कर रहा था।
फिर रंगीला ने उस आदमी को पहचान लिया।
उस रोज के अखबार में उसकी फोटो छपी थी।
वह असिस्टेंन्ट कमिश्‍नर आफ पुलिस भजनलाल था।
जरूर फोटोग्राफर ने तसवीर खींचते वक्त उसे पहचान लिया था और उसके वहां से जाते ही पुलिस को उसके बारे में खबर कर दी थी। शो विन्डो में रखी चालू फ्लैश का इन्तजाम पुलिस को इशारा करने के लिए किया गया था।
रंगीला व्याकुल भाव से सोचने लगा :
क्या वह इतने लोगों के बीच में से हथियारबन्द होते हुए भी भाग सकता था?
उसके दिल ने यही जवाब दिया कि वह नहीं भाग सकता था।
खामखाह कुत्ते की मौत मरने का क्या फायदा?
कामिनी देवी का खून उसके हाथों से हुआ साबित नहीं किया जा सकता था। उसकी गर्दन कौशल ने दबाई थी और कौशल मर चुका था। इतनी अक्ल तो राजन से भी अपेक्षित थी कि मौजूदा हालात में कामिनी देवी का कत्ल कौशल पर ही थोपने में उन दोनों की भलाई थी।
सलमान अली पर उसने आत्मरक्षा के लिए आक्रमण किया था।
दारा के आदमी कभी अपनी जुबान से यह कबूल नहीं कर सकते थे कि रंगीला ने उन पर गोली चलाई थी।
यानी—रंगीला ने अपने आपको तसल्ली दी—उस पर केवल एक ही इलजाम था जो साबित हो सकता था।
कामिनी देवी के यहां चोरी का इलजाम।
यानी—उसने आगे सोचा—छ: सात साल की कैद की सजा पाकर वह छूट सकता था। या उसे बड़ी हद उम्रकैद भी हो जाती तो भी अभी उसके आगे बहुत जिन्दगी पड़ी थी।
वास्तव में उसकी उस वक्त की विचारधारा एक कायर आदमी की अपने आपको तसल्ली थी जो कि उसे आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित कर रही थी।
तब तक पुलिसियों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था।
उसने जेब में ही पिस्तौल का रुख घुमाया और उसे नाल की तरफ से पकड़ लिया। फिर उसने हाथ जेब से निकाला और पिस्तौल को भजनलाल की तरफ बढ़ा दिया।
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09-29-2020, 12:26 PM,
#86
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“शाबाश!”—भजनलाल बोला—“दैट्स ए गुड ब्वाय। तुम्हारा नाम रंगीला है न?”
रंगीला ने सहमति में सिर हिलाया और बोला—“दारा के आदमी मेरे खून के प्यासे हो उठे थे। यह पिस्तौल मैंने उनसे अपनी हिफाजत के लिए रखी हुई थी।”
“अब वे लोग तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। उलटे तुम हमारी मदद करोगे तो हम उन सबकी गरदनें भी नाप लेंगे।”
“मैं आपकी हर मुमकिन मदद करूंगा।”
“शाबाश! हम तुम्हें गिरफ्तार कर रहे हैं। तुम्हें कोई एतराज?”
रंगीला ने इन्कार में सिर हिलाया।
“तुम्हें मालूम है तुम क्यों गिरफ्तार किए जा रहे हो?”
“जी हां।”
“तुम अपना अपराध कबूल करते हो?”
रंगीला हिचकिचाया।
“तुम्हारा राजन नाम का साथी अपना अपराध पहले ही कबूल कर चुका है”—भजनलाल सख्त स्वर में बोला—“और वह आसिफ अली रोड वाली चोरी के सिलसिले में अपने साथी के तौर पर तुम्हारा नाम ले भी चुका है।”
“मैं अपना अपराध कबूल करता हूं।”—रंगीला तनिक हड़बड़ाए स्वर में बोला।
“शाबाश!”
तुरन्त उसके हाथों में हथकड़ियां भर दी गईं।
उसने एक निगाह फोटोग्राफर पर डाली।
फोटोग्राफर भीगी बिल्ली बना काउन्टर के पीछे खड़ा था और पूरी कोशिश कर रहा था कि रंगीला से उसकी निगाह न मिलने पाती।
फिर उसकी तलाशी ली गई।
जवाहरात से भरी शनील की थैली और सारा नकद रुपया पुलिस ने अपने अधिकार में ले लिया।
रंगीला के मुंह से एक आह निकल गई।
कितने बखेड़े हो गए थे प्रत्यक्षत: इन्तहाई आसान लगने वाले काम में!
भजनलाल उसकी जेब से बरामद हुई उस चिट्ठी को उलट पलट रहा था, जो सलमान अली ने उसे नबी करीम वाले एनग्रेवर के नाम लिखकर दी थी।
“तुम उर्दू जानते हो?”—भजनलाल ने पूछा।
रंगीला ने इनकार में सिर हिलाया।
“यानी तुम्हें नहीं मालूम कि इसमें क्या लिखा है?”
रंगीला खामोश। वह सोच रहा था कि उसमें जाली पासपोर्ट के बारे में जो कुछ लिखा था, वह क्या उस पर अलग से कोई इलजाम बन सकता था?
“सुनो, क्या लिखा है चिट्ठी में!”—भजनलाल बोला—“इसमें लिखा है—पत्रवाहक का नाम रंगीला कुमार है। यह सोमवार रात को आसिफ अली रोड पर हुई कामिनी देवी की हत्या और उसके बेशकीमती जवाहरात की चोरी के लिए जिम्मेदार है। यह फरार अपराधी है और पुलिस को इसकी तलाश है। यह तुम्हारे पास आए तो इसे बहाने से अटकाए रखना और फिर पुलिस को खबर करके इसे गिरफ्तार करवा देना।”
रंगीला सन्नाटे में आ गया।
कितना बड़ा धोखा देने जा रहा था मौलाना उसे।
“हूं।”—भजनलाल बोला—“तुम्हारी सूरत बता रही है कि चिट्ठी में तुम्हें यह सब लिखा होने की उम्मीद नहीं थी।”
रंगीला खामोश रहा।
लेकिन अब वह सन्तुष्ट था कि मौलाना जैसा दगाबाज आदमी मर चुका था।
उस क्षण उसे अगर अफसोस था तो सिर्फ इस बात का था कि वह अपनी बीवी के यार से बदला नहीं ले सका था।
वह श्रीकान्त को तन्दूर में नहीं लगा सका था।
और अब कहानी
जुए की महफिल
मैं कोई जुआरी नहीं लेकिन कभी-कभार तीज-त्यौहार में ताश खेल लेने से परहेज नहीं करता। दीवाली पर तो मैं आफिस में या किसी दोस्त के घर जरूर ही जुए की बैठक में शामिल होता हूं लेकिन जिस जुए की महफिल में मैं इस दीवाली पर शामिल हुआ, वह मेरी कल्पना से परे थी। जिन चार सज्जनों के साथ मैंने जुआ खेला उनमें से एक को मैंने पहले कभी नहीं देखा था, एक को मैं केवल सूरत से पहचानता था और बाकी दो मेरे दोस्त थे — ऐसे दोस्त जिनसे आजकल उठना बैठना कम था लेकिन बचपन में वे मेरे सहपाठी और जिगरी दोस्त रह चुके थे।उनके नाम थे शामनाथ और बिकेंद्र। अन्य दो सज्जन उन्हीं के दोस्त थे। मेरे लिए जो नितान्त अजनबी था, उसका नाम खुल्लर था और चौथे साहब थे कृष्ण बिहारी।
जुए के लिए जो स्थान चुना गया था उसकी कल्पना मैंने नहीं की थी। उन्होंने, रणजीत होटल में एक दो कमरों का सुइट बुक करवाया हुआ था। मुझे बड़ी झिझक हुई। रख-रखाव से ऐसा लग रहा था जैसे बहुत ऊंचे दर्जे के जुए का प्रोग्राम था जबकि ऊंचे दर्जे का जुआ खेलने लायक न मुझमें हौसला था और न मेरे पास पैसा था। लेकिन अब ऐन मौके पर मैं अपनी इन कमियों को उन लोगों की निगाहों में नहीं आने देना चाहता था, इसलिये मैं उनमे जम गया।
रात को दस बजे मैं शामनाथ के साथ वहां पहुंचा। बाकी के तीन सज्जन वहां पहले ही मौजूद थे। हमारे वहां पहुंचने के लगभग फौरन बाद फ्लैश का खेल शुरू हो गया।
मैंने सुना था कि बिकेंद्र पेशेवर जुआरी था और खुल्लर और कृष्ण बिहारी के बारे में मुझे तब बताया गया कि वे दोनों बड़े उस्ताद खिलाड़ी समझे जाते थे। लेकिन मुझे उन चारों में से किसी में भी कोई उस्तादी वाली बात नहीं दिखाई दी। मैं मामूली खिलाड़ी था जो जीतने की तो कभी कल्पना ही नहीं करता था, इत्तफाक से कभी जीत जाऊं, यह दूसरी बात थी वर्ना मैं कभी यह दावा नहीं कर सकता था कि मैं बड़ा होशियार खिलाड़ी था इसलिए मेरा जीतना एक असाधारण घटना थी। मैं तो जश्न में शामिल होने के अन्दाज से एक निश्चित रकम हारने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करके जुआ खेलता था लेकिन उस दिन यह खुद मेरे लिए हैरानी की बात थी मैं उन जैसे उस्ताद खिलाड़ियों से जीत रहा था और वह भी पत्ते के जोर पर नहीं, ब्लफ के दम पर।
अन्त में मैं इसी नतीजे पर पहुंचा कि उन लोगों का मन खेल में नहीं था और इसीलिए मेरी बन रही थी।
एक बजे तक मैं कोई नौ हजार रूपये जीत में था।
लगभग दो बजे खेल में अस्थायी व्यवधान आया। सुइट के दूसरे कमरे में खाने पीने का तगड़ा इन्तजाम था। बिकेंद्र और खुल्लर इन्तजाम करने के लिए दूसरे कमरे में चले गये। उनकी गैरहाजिरी में कोई पांच-सात मिनट हम तीन जने ताश खेलते रहे। फिर वे भी जुए की मेज पर आ गये और हम पांचों खेलने लगे।
उसके बाद मुझे लगा कि अब उन लोगों के खेल में से पहले वाला अनमनापन गायब हो गया था। अब वे बड़ा चौकस खेल खेल रहे थे और अब लग रहा था कि वे उस्ताद खिलाड़ी थे। नतीजा यह हुआ कि सुबह सात बजे जब हम लोगों ने खेल खत्म किया तब मैं जीते हुये नौ हजार रुपयों के साथ अपनी जेब से भी दो सौ रुपये हार चुका था।
मैं घर पहुंचा और सीधा बिस्तर के हवाले हो गया।
उसी शाम को ईवनिंग न्यूज में मैंने एक बड़ी सनसनी खेज खबर पढ़ी थी। उस रोज सुबह दस बजे के करीब सतीश कुमार नाम का एक युवक अपने कालकाजी स्थित फ्लैट में मरा पाया गया था। किसी ने उसकी हत्या कर दी थी और सरकारी डाक्टर के अनुसार हत्या पिछली रात लगभग दो बजे हुई थी।
मैं सतीश कुमार को जानता था। वह भी जुए का बहुत शौकीन था और मैंने सुना था कि वह पेशेवर जुआरियों के साथ बहुत बड़ा जुआ खेलता था और उस पर कई लोगों का उधार चढ़ा हुआ था। मैंने यह भी सुना था कि उस पर उधार की रकमें अब इतनी चढ़ गई थीं कि जुआरियों ने उसे धमकी दी हुई थी कि अगर उसने फौरन उनका पैसा न अदा किया तो उसका अन्जाम बुरा होगा।
मैंने एक बार खुद बिकेंद्र के ही मुंह से सुना था कि अरविन्द ने बिकेंद्र का भी बहुत पैसा देना था।
रात के दो बजे उसकी हत्या हुई थी और लगभग उसी समय हमारी जुए की बैठक का मध्यान्तर हुआ था।
मेरे दिल में एक अंजानी सी चिन्ता घर करने लगी। पता नहीं क्यों मेरा मन गवाही देने लगा कि पिछली रात की जुए की महफिल में और सतीश कुमार की हत्या में कोई सम्बन्ध था।
अगले दिन सुबह मुझे पुलिस हैडक्वार्टर से बुलावा आ गया।
जब मैं पुलिस इन्स्पेक्टर एन.एस. अमीठिया के कमरे में पहुंचा तो मैंने अपने चारों जुए के साथियों को वहां पहले ही मौजूद पाया।
“तुम भी इन लोगों के साथी हो?” — अमिठिया शिकायतभरे स्वर में बोला।
“क्या मतलब?” — मैं हैरानी से बोला।
अमीठिया कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला — “तुम्हें मालूम है कि ये चारों पेशेवर जुआरी हैं और नगर में गुप्त रूप से जुए के अड्डे चलाते हैं?”
मेरे होंठ भिंच गये। मैंने बारी-बारी चारों की तरफ देखा और फिर दबे स्वर में बोला — “बिकेंद्र के बारे में तो मुझे ऐसा कुछ मालूम था लेकिन यह मुझे इसके बारे में भी नहीं मालूम था कि यह जुए का अड्डा चलाता था।”
“तुम सतीश कुमार को जानते हो?”
“मामूली जान पहचान थी।”
“यानी कि उसकी हत्या की खबर पढ़ चुके हो?”
“हां।”
“तुम्हारी जानकारी के लिये हमें तुम्हारे इन साथियों पर उसकी हत्या का सन्देह है। सतीश कुमार पर इन चारों का ही कर्जा चढ़ा हुआ है। जिन लोगों ने उसे भयंकर अंजाम की धमकी दी थी, उनमें ये चारों भी शामिल थे।”
“लेकिन क्या उसका कत्ल कर देने से इन लोगों का पैसा वसूल हो जायेगा?”
“तुम इन जुआरियों की कार्यप्रणाली को नहीं समझते। ऐसी एक हत्या हो जाने से उन और लोगों को भी सबक हो जाता है जिन्होंने इन लोगों के पैसे देने होते हैं।”
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09-29-2020, 12:26 PM,
#87
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“ओह!”
“इन लोगों को हत्या के सन्देह में यहां बुलवाया गया था लेकिन ये लोग हत्या के समय की बड़ी अकाट्य एलीबाई के रूप में तुम्हारा नाम ले रहे हैं। क्या यह सच है कि ये चारों ही पिछली सारी रात तुम्हारे साथ थे?”
“सच है। परसों रात दस बजे से लेकर सुबह सात बजे तक हम पांचों होटल रणजीत के एक सुइट में ताश खेलते रहे थे। उस समय इन चारों में से कोई मेरी निगाहों से ओझल नहीं हुआ था और अगर निगाहों से ओझल हुआ भी था तो मुझे मालूम था कि वह कहां था। जैसे कभी कोई पेशाब करने क्लॉक रूम गया था तो कोई एक पैग विस्की या कोई खाने की चीज लेने सुइट के दूसरे कमरे में गया था। दो कमरों के उस सुइट के एक कमरे में हमने ताश की मेज जमाई हुई थी और दूसरे में खाने पीने का सामान रखा था। खाने-पीने का सामान पहले ही मंगाकर रख लिया गया था ताकि आधी रात को होटल वालों को परेशान न करना पड़े। दो बजे के करीब खेल में थोड़ी देर के लिए व्यवधान आया था। मैं, शामनाथ और कृष्ण बिहारी ताश खेलते रहे थे और बिकेंद्र और खुल्लर हम सबके लिए खाने पीने का सामान तैयार करने बगल के कमरे में चले गये थे। उन्होंने बगल के कमरे में सैंडविच और काफी वगैरह तैयार करने में कोई दस मिनट लगाए थे। उस दौरान वे दोनों चाहे मेरी निगाह के सामने नहीं थे लेकिन मुझे उनके बातें करने की आवाजें निरन्तर आ रही थीं। एक-दो बार उन्होंने भीतर से पुकार कर हमसे सवाल भी किये थे, जैसे कौन काफी कैसे चाहता था या कौन साथ में ब्रान्डी भी चाहता था, वगैरह।”
“इसका मतलब यह हुआ कि इन चारों में से कोई एक क्षण के लिए भी सुइट से बाहर नहीं गया था?”
“ऐसा ही मालूम होता है।”
“बगल के कमरे से चुपचाप खिसक जाने का कोई और रास्ता भी है?”
“नहीं! बगल के कमरे का इकलौता दरवाजा ताश वाले कमरे में खुलता था।”
“इन्स्पेक्टर” — बिकेंद्र आवेशपूर्ण स्वर में बोला — “आप तो लगता है, हमें फंसाने के लिए बहाना तलाश कर रहे हैं। होटल रणजीत में और कालकाजी में स्थित सतीश कुमार के फ्लैट में कम से कम बारह मील का फासला है। मैं और खुल्लर केवल दस मिनट के लिए बगल वाले कमरे में गए थे। अगर हम वहां से चुपचाप निकल भी सकते होते तो भी क्या हम दस मिनट के भीतर-भीतर कालकाजी पहुंच कर सतीश कुमार का कत्ल करके वापस आ सकते थे?”
“शायद समय के मामले में पाठक का अन्दाजा गलत हो!”
“मेरा अन्दाजा गलत नहीं है” — मैं धीरे से बोला — “ये दोनों दस मिनट से ज्यादा बगल वाले कमरे में नहीं रहे थे। और यह भी सम्भव नहीं कि इन दोनों में से कोई कमरे से बाहर गया हो। मैं ताश वाले कमरे में इस ढंग से बैठा हुआ था कि दोनों कमरों को जोड़ने वाला बीच का दरवाजा मेरे एकदम सामने पड़ता था। अगर वहां से इन दोनों में से कोई जाता तो उस दरवाजे में से ही निकलकर जाता और मुझे जरूर दिखाई देता। एक बार खुल्लर दरवाजे पर आया था और उसने हमसे पूछा कि हम लोग काफी कैसी-कैसी पियेंगे। शामनाथ ने कहा था कि उसकी काफी में दूध न डाला जाये तो भीतर से बिकेंद्र ने आवाज देकर पूछा था कि चीनी कितनी डालनी थी! शामनाथ ने कहा था दो चम्मच। फिर बिकेंद्र ने ब्रांडी के बारे में पूछा था तो शामनाथ ने कहा था कि वह बोतल ही साथ लेता आये। उस वक्त चाहे बिकेंद्र दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन यह वार्तालाप इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि वह भीतर था। और फिर बिकेंद्र ने यह भी गलत नहीं कहा है कि दस मिनट में तो होटल रणजीत से कालकाजी पहुंचा भी नहीं जा सकता, उतने समय में अरविंद कुमार का कत्ल करके वहां से लौट कर आना तो असम्भव काम है।”
“ओके! ओके!” — अमीठिया बोला फिर वह चारों की ओर घूमा — “तुम लोगों की तकदीर ही अच्छी थी जो कल तुम्हारे साथ पाठक मौजूद था। मुझे तुम चारों का धेले का विश्वास नहीं लेकिन मुझे पाठक का विश्वास है। फिलहाल मैं तुम चारों को सन्देह से मुक्त कर रहा हूं लेकिन तुम में से कहीं कोई खिसक न जाये। मुझे तुम लोगों की दोबारा जरूरत पड़ सकती है। समझ गये?”
सबने हामी भरी। फिर वे चारों वहां से चले गये।
अमीठिया कुछ क्षण बैठा मेज ठकठकाता रहा फिर बोला — “इन चारों की एलीबाई बड़ी ठोस है लेकिन मेरा दावा है कि कत्ल इन्हीं में से किसी ने किया है।”
“यह असम्भव है।” — मैं बोला।
“तुम ठीक कह रहे हो लेकिन...”
“क्या यह नहीं हो सकता कि कत्ल इन्होंने किसी से करवाया हो?”
“नहीं हो सकता। यह कत्ल इन लोगों की खातिर इनके किसी पट्ठे ने नहीं किया। ऐसी बातों की जानकारी के मेरे अपने गुप्त साधन हैं। मैं निर्विवाद रूप से जानता हूं कि यह किसी किराये के आदमी का काम नहीं। अगर कत्ल के साथ इन लोगों का रिश्ता है तो कत्ल इन्हीं चारों में से किसी ने किया है।”
“यह हो ही नहीं सकता। वे चारों हर क्षण होटल में मौजूद थे।”
“क्या तुम इनके साथ अक्सर उठते बैठते हो?”
“नहीं। परसों ही पता नहीं कैसे बैठक हो गई। इन लोगों ने इतनी जिद की कि मैं इन्कार न कर सका।”
“मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम्हें आमन्त्रित करने के पीछे इनका कोई उद्देश्य था। शायद इन्हें मालूम था कि उस रात सतीश कुमार की हत्या होने वाली थी इसलिए इन्होंने तुम्हारे माध्यम से अपने लिये बड़ी अकाट्य एलीबाई का इन्तजाम किया था। इन्हें मालूम था कि मैं इनकी बात का विश्वास नहीं करने वाला था।”
“अजीब गोरखधन्धा है। मैं कहता हूं कि कत्ल ये लोग नहीं कर सकते थे। तुम कहते हो कि यह हो ही नहीं सकता कि कत्ल इन लोगों के अलावा किसी और ने किया हो। दोनों बातें कैसे सम्भव हो सकती हैं?”
“हां, यही तो समस्या है।”
मैं कुछ क्षण चुप बैठा रहा और फिर बोला — “मैं अब चलूं?”
“हां” — अमीठिया तनिक हड़बड़ा कर बोला — “लेकिन मेरी राय मानो। ऐसे लोगों की सोहबत मत किया करो।”
“मुझे नहीं मालूम था कि ये लोग पेशेवर जुआरी हैं। मैं आइन्दा खयाल रखूंगा।”
मैंने अमीठिया से हाथ मिलाया और वहां से निकल आया।
मैं एक आटो पर सवार हुआ और होटल रणजीत पहुंचा। मैं होटल में दाखिल हुआ और बिना रिसैप्शन की ओर निगाह उठाये सीधा सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। रिसैप्शनिस्ट ने भी मेरी ओर ध्यान न दिया।
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09-29-2020, 12:26 PM,
#88
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
जिस सुइट में जुए की महफिल जमी थी, वह दूसरी मंजिल पर था और उसका नम्बर 203 था। मैं उसके सामने पहुंचा। मैंने दायें बायें देखा। उस वक्त गलियारा खाली था। मैंने उसका हैंडल घुमाया तो मुझे मालूम हुआ कि उसे ताला नहीं लगा हुआ था। मैं चुपचाप भीतर दाखिल हुआ। जिस कमरे में जुए की महफिल जमी थी, मैं उसमें रुकने का उपक्रम किए बिना सीधा भीतरी कमरे में पहुंचा। परसों रात जब मैं वहां आया था तो मैंने कमरे के साजोसामान और जुगराफिये की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया था। लेकिन तब मैंने बड़ी बारीकी से वहां का मुआयना किया। मुझे कोई विशेष बात नहीं दिखाई दी। फिर मैंने कमरे की इकलौती खिड़की खोली और बाहर झांका। मेरा माथा ठनका। उस खिड़की की बगल से ही फायरएस्केप की लोहे की घुमावदार सीढ़ियां गुजरती थीं और सीधे पिछवाड़े की सड़क तक जाती थीं।
मैं वहां से निकला और अमीठिया से मिला।
“अमीठिया” — मैं बोला — “मुझे पूरा विश्वास है कि हत्या इन्हीं लोगों में से किसी ने की है लेकिन कैसे की है, यह मेरी समझ से बाहर है। मेरा खयाल है कि तुम्हारे पुलिस के डाक्टर से कोई गलती हुई है। वह कहता है कि हत्या रात को दो बजे के करीब हुई है लेकिन मेरे खयाल से हत्या या तो दस बजे से पहले हुई है या सुबह सात बजे के बाद यानी कि या तो जुए की महफिल की शुरुआत से पहले या समाप्ति के बाद हई है। अगर हत्या उन चारों में से किसी ने की है तो यह सम्भव नहीं कि वह रात के दो बजे हुई हो।”
“हत्या दो बजे के आसपास ही हुई है। हमारा पुलिस का डाक्टर गारंटी करता है।”
“मैंने सुना है कि हत्या के समय के मामले में पुलिस को धोखा दिया जा सकता है।”
“कैसे?”
“जैसे हत्या के बाद लाश को रेफ्रिजरेटर में बन्द करके रख दिया जाए और बहुत बाद में किसी समय निकाला जाए। जब वह वातावरण वाले तापमान पर पहुंचेगी तो ऐसा लगेगा जैसे हत्या थोड़ी देर पहले ही हुई हो जब कि वह कई घन्टों पहले हुई होगी।”
“इस केस में ऐसा नहीं हुआ।”
“क्यों नहीं हुआ?”
“क्योंकि हमने हत्या की रात सतीश कुमार की एक-एक गतिविधि की जानकारी हासिल की है। उसने परसों शाम सात बजे नेशनल रेस्टोरेन्ट में खाना खाया था। इस आधार पर हम उसके खाना खाने के समय के साथ-साथ डाक्टर को यह भी बता सके थे कि उसने क्या खाया था। खाने के पेट में पचने का हिसाब होता है जो ये चीर फाड़ करने वाले पुलिस के डाक्टर जानते होते हैं। उसने भोजन में चिकन खाया था। डाक्टर ने पेट खोल कर चिकन के उन अवशेषों का मुआयना किया था तो अभी तक पूरी तरह पच नहीं पाये थे और उसी के आधार पर उसने कहा था कि उसकी हत्या उसके भोजन करने के कोई सात घन्टे बाद हुई थी। यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।”
“लेकिन....”
“और इस बात की कोई सम्भावना नहीं है कि हमारा डाक्टर उन बदमाशों से मिला हुआ हो और उनकी खातिर झूठ बोल रहा हो। उसकी तीस साल की पुलिस की एकदम बेदाग नौकरी है। पाठक साहब, हत्या तो रात दो बजे के करीब ही हुई है। यह अलग बात है कि हत्या उन्होंने की है या नहीं।”
“अगर हत्या रात के दो बजे हुई है तो यह उन्होंने नहीं की हो सकती। उनके पास वहां से खिसक कर हत्या कर आने का न वक्त था और न इस बात की कोई सम्भावना दिखाई देती है।”
“तो फिर उन्होंने हत्या नहीं की होगी।”
“यह भी नहीं हो सकता। उनका मुझे जुए की महफिल में शामिल करना ही इस बात की चुगली कर रहा है कि उन्हें खबर थी की सतीश कुमार की हत्या होने वाली थी। वे लोग मेरे माध्यम से अपने लिए एक मजबूत एलीबाई गढ़ना चाहते थे। तुम कहते हो कि हत्या उन्होंने करवाई भी नहीं है। उन्होंने हत्या खुद की हो यह सम्भव नहीं लगता, तो हत्या हुई कैसे?”
“यही तो समस्या है जो समझ में नहीं आ रही।”
“तुम्हें हत्या की खबर कैसे लगी थी?”
“लाश बरामद की थी एक सुनीता नाम की लड़की ने। मालूम हुआ है कि वह सतीश कुमार की गर्लफ्रैंड थी। परसों शाम को सतीश कुमार ने उसी के साथ डिनर लिया था। बाद में वह सुनीता को ‘अलका’ में छोड़ कर आया था जहां कि सुनीता कैब्रे करती है। उसका कहना है कि रात को सतीश कुमार उसके फ्लैट पर अपेक्षित था लेकिन वह आया नहीं था। उत्सुकतावश ही वह अगली सुबह कालकाजी स्थित उसके फ्लैट पर गई थी, यह जानने के लिए कि वह पिछली रात उसके यहां क्यों नहीं आया था।”
“आई सी। यह सुनीता रहती कहां है?”
सुनीता माता सुन्दरी रोड की चौदह नम्बर इमारत में रहती थी। मैं वहां पहुंचा। मैंने बड़ी आसानी से चौदह नम्बर इमारत तलाश कर ली। वह होटल रणजीत से मुश्किल से कोई एक सौ गज दूर थी। उसके सामने एक खाली आटो खड़ा था। मेरे देखते-देखते इमारत के भीतर से शामनाथ बाहर निकला और आटो की तरफ बढ़ा।
“हल्लो, शामनाथ” — मैं बोला — “तुम क्या अब यहीं रहने लगे हो?”
“नहीं, नहीं।” — शामनाथ हड़बड़ाकर बोला — “यहां तो मैं किसी से मिलने आया था।”
“सुनीता से?”
“तुम क्या मेरा पीछा करते रहे हो?” — वह तनिक क्रोधित स्वर में बोला।
“नहीं तो।” — मैं सहज भाव से बोला।
“तुम यहां कैसे आये?”
“सुनीता से ही मिलने आया हूं।”
उसके माथे पर बल पड़ गए।
“क्यों?” — उसने पूछा।
“सतीश कुमार की मौत का समय उसकी गवाही के आधार पर निश्चित किया गया है। लेकिन मेरा खयाल है वह झूठ बोल रही है ताकि यह समझ लिया जाये कि हत्या रात दस और सुबह सात बजे के बीच हुई थी। मेरे खयाल से उसकी हत्या दस बजे से पहले हुई थी। इस हिसाब से उसने सुनीता के साथ चिकन सात बजे नहीं तीन बजे से पहले खाया होगा। मैं इसी उम्मीद में आया हूं कि शायद उससे उसका झूठ उगलवा सकूं।”
“तुम जासूस कब से हो गये हो?”
“जासूस नहीं हुआ हूं। जासूसी नावल तो लिखता ही हूं! ऐसे ही मुझे मेरी रचनाओं के लिए मसाला मिलता है।”
“ऐसा मसाला ढूंढ़ते- ढूंढ़ते किसी दिन खुद मसाला मत बन जाना, दोस्त।”
“दोस्त का लफ्ज ही इस्तेमाल कर रहे हो, शामनाथ।” — मैं शिकायतभरे स्वर में बोला — “लेकिन तुम्हारी बातों से दोस्ती की बू नहीं आ रही है।”
शामनाथ कुछ क्षण कहरभरी निगाहों से मुझे घूरता रहा, फिर वह प्रतीक्षारत आटो में सवार हुआ और वहां से चला गया।
मैं आटो के निगाहों से ओझल होने तक वहीं खड़ा रहा फिर इमारत में दाखिल हुआ।
सुनीता का फ्लैट दूसरी मंजिल पर था। जिस लड़की ने दरवाजा खोला, वह निहायत खूबसूरत थी। उसके शरीर में कैब्रे डान्सर जैसा सन्तुलन था, यह उसके शरीर पर उस समय मौजूद सैक्सी ड्रेस से भी साफ दिखाई दे रहा था।
“आप का नाम सुनीता है?” — मैं बोला।
उसने हामी भरी और उलझनपूर्ण ढंग से मेरी ओर देखा।
“मैं एक फ्री-लांस जर्नलिस्ट हूं। मैं सतीश कुमार के बारे मैं आप से बात करना चाहता हूं।”
“ओह! आइये।” — वह एक ओर हटती बोली।
मैं भीतर दाखिल हुआ। उसके फ्लैट की सजावट से ऐश्वर्य की बू आ रही थी। मैं मन ही मन सोचने लगा, इस फ्लैट की सजावट में उसकी कमाई लगी हुई थी या यार लोगों की!
“क्या पूछना चाहते हैं आप सतीश कुमार के बारे में?” — उसने पूछा।
“मैंने ‘अलका’ में आपका डांस देखा है।” — मैंने झूठ बोला — “आप बहुत अच्छा नाचती हैं।”
मेरी तारीफ का उस पर कोई असर न हुआ। उसके चेहरे पर कोई भाव न आया।
“आप सतीश कुमार के बारे में कुछ जानना चाहते थे!” — वह बोली।
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09-29-2020, 12:26 PM,
#89
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
मैंने एक गहरी सांस ली और पूछा — “आपका उससे क्या सम्बन्ध था?”
“वह मेरा ब्वाय-फ्रैंड था।” — वह बेहिचक बोली।
“आपको उसकी मौत का कोई भारी अफसोस हुआ हो, आपकी सूरत देखकर ऐसा तो नहीं लगता!”
“नहीं लगता होगा। आपको क्या फर्क पड़ता है इससे?”
“मैंने यह बात इसलिए कही कि शायद अफसोस आपने तब मना लिया हो जब शामनाथ ने आपको बताया हो कि सतीश कुमार की हत्या होने वाली थी और उसके साथियों की सलामती के लिए आपने झूठ गवाही देनी थी।”
“क्या मतलब? क्या कह रहे हैं आप?”
“मैंने अभी शामनाथ को यहां से निकलते देखा था। शायद वह आपको आपकी झूठी गवाही का मेहताना देने आया था।”
“कैसी झूठी गवाही?”
“कि सतीश कुमार ने अपना आखिरी भोजन रात सात बजे किया था, जबकि वह भोजन वास्तव में उसने तीन बजे से पहले किया था।”
वह एकाएक उछल कर खड़ी हो गई। उसका वक्ष जोरों से उठने गिरने लगा।
“लगता है मैंने आपको भीतर आने देकर गलती की।” — वह क्रोधित स्वर में बोली — “आप तशरीफ ले जाइये यहां से।”
मैंने देखा कि जब उसका वक्ष उठता था तो उसकी ड्रेस में से किसी नीली सी चीज का किनारा बाहर झांकने लगता था।
“रिश्वत ऐसी खूबसूरत खिड़की में से बाहर झांक रही है कि जी चाह रहा है कि...”
मैंने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
उसका हाथ फौरन अपने वक्ष पर पड़ा और उसने अपना गिरहबान ऊपर को खींचा।
“जिस चीज की झलक मुझे अभी दिखाई दी थी, वह सौ के नोट का एक कोना था। ऐसे कितने नोट इस खूबसूरत पिटारे में मौजूद हैं?”
“गो टु हैल।”
“आई वुड रादर गो टु पुलिस।” — मैं बोला।
मैं अपने स्थान से उठा और दृढ़ कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ा।
“सुनो!” — वह कम्पित स्वर में बोली।
मैं चौखट के पास ठिठका, घूमा।
“शामनाथ ने मुझे कुछ रुपये दिये हैं।” — वह बोली — “लेकिन मैं ईश्वर की सौगन्ध खाकर कहती हूं कि उनका अरविन्द की मौत से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही मैंने कोई झूठी गवाही दी है।”
“कितने?”
“पांच हजार।” — वह बोली और उसने मुझे अपने वक्ष की घाटियों में से सौ-सौ के नोट निकाल कर दिखाये।
“इस रकम का अरविन्द की मौत से कोई सम्बन्ध नहीं है।” — उसने दोहराया — “और मैंने कोई झूठी गवाही नहीं दी। मैंने और अरविन्द ने सच ही शाम सात बजे ‘नेशनल’ में खाना खाया था। आठ बजे मैं उससे जुदा हो गई थी। उसके बाद मैंने अगले दिन ही उसको देखा था...मेरा मतलब है उसकी लाश को देखा था।”
“शामनाथ ने पांच हजार रुपये क्यों दिए तुम्हें? और वह भी सतीश कुमार की मौत के फौरन बाद?”
“इनका कत्ल से कोई सम्बन्ध नहीं और न ही मैंने झूठी गवाही दी है।”
“वह बात तुम कई बार कह चुकी हो, लेकिन यह मेरे सवाल का जवाब नहीं।”
“दरअसल एक और बात थी जिसका कि कत्ल से कोई रिश्ता नहीं था और जो मैंने पुलिस को नहीं बतायी थी। मुझे खूब मालूम है कि शामनाथ का कत्ल से कोई सम्बन्ध नहीं। उसने मुझे वह बात पुलिस को न बताने के पांच हजार रुपये दिए हैं।”
“वह बात है क्या?”
वह हिचकिचायी।
“कम आन, कम आन!” — मैं उतावले स्वर में बोला।
“सुनो।” — वह धीरे से बोली — “तुम जानते हो मेरा पेशा क्या है! मैं एक कैब्रे डांसर हूं। किसी से मेरी मुहब्बत में कितनी संजीदगी हो सकती है इसका अन्दाजा तुम खूब लगा सकते हो। सतीश कुमार से मेरी मतलब की यारी थी। उसे मेरे जिस्म से मुहब्बत थी और मुझे उसके पैसे से। लेकिन अब उसका पैसा खल्लास हो चुका था और मैं किसी भी क्षण उससे रिश्ता तोड़ देने वाली थी।”
“ठीक है। मैं समझता हूं। आगे बढ़ो। शामनाथ ने तुम्हे क्यों दिये थे पांच हजार रुपये?”
“दरअसल पहले मुझे मालूम नहीं था कि सतीश कुमार अपना सारा पैसा जुए में उजाड़ चुका था और उस पर पेशेवर जुआरियों के कर्जे की मोटी-मोटी रकमें चढ़ी हुई थी। हाल में एक बार शामनाथ मुझसे मिला था और उसने मुझे यह बात बताई थी साथ ही उसने कहा था कि उसे कहीं से पता लगा था कि अरविन्द के पास कुछ प्रसिद्ध कम्पनियों के शेयर थे जो उसने कहीं बड़ी सावधानी से छुपा कर रखे हुए थे ताकि किसी को उनकी खबर न लग पाती। शामनाथ मेरे माध्यम से यह जानकारी चाहता था कि क्या वाकई अरविन्द के पास ऐसे कोई शेयर थे? अगर उसे यह बात मालूम हो जाती तो उसे अपनी तथा अपने दोस्तों की कर्जे की रकम की वसूली होने की नयी सूरत दिखाई दे जाती। उसी ने मुझे बताया था कि अरविन्द ने उसका, बिकेंद्र का, खुल्लर का और कृष्णबिहारी का कोई दो लाख रुपया देना था और वह अपने आपको कंगाल बता रहा था। अगर उन्हें पक्का पता लग जाता कि उसके पास कोई शेयर थे तो वे उस पर नये सिरे से दबाव डालना आरम्भ कर सकते थे। शामनाथ ने कहा था कि अगर मैं उन्हें पता करके बता सकूं कि अरविन्द के पास शेयरों के रूप में ऐसा कोई पैसा था तो वह मुझे दस हजार रुपया देगा, लेकिन अगर मैं उन्हें यह बताऊं कि उनके पास ऐसा कोई पैसा नहीं था तो वह मुझे पांच हजार रुपये देगा।”
“उसने तुम्हें पांच हजार रुपये दिये हैं, इसका मतलब यह हुआ कि उसके पास पैसा नहीं था?”
“पैसा तो था लेकिन जितने की वह उम्मीद कर रहे थे, उतना नहीं था। उसके पास केवल साठ हजार रुपये के शेयर थे जिनसे उनका मतलब हल नहीं होता था।”
“आई सी।”
“जब अरविन्द की हत्या हो गई तो शामनाथ ने अनुभव किया कि यह बात पुलिस को मालूम हो जाने पर उस पर खामखाह शक किया जा सकता था। हत्या की खबर लगते ही उसने मुझे फोन किया था कि मैं इस बारे में पुलिस को कुछ न बताऊं।”
“और अब वह तुम्हें दूसरी बार पांच हजार रुपये देने आया था?”
“नहीं! ये पांच हजार रुपये तो वही थे जो उसने मुझे जानकारी के बदले में देने थे।”
“वह कत्ल के बारे में क्या कहता है?”
“कहता है कि कत्ल से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है और अपने को निर्दोष सिद्ध करने ले लिए उसके पास बड़ी ठोस एलीबाई है, जिसमें स्वयं पुलिस इन्स्पेक्टर अमीठिया भी कोई नुक्स नहीं निकाल सका है।”
“मैं जानता हूं उसकी एलीबाई को और यह भी जानता हूं कि वह कितनी ठोस है।”
“वह कहता है कि कोई इन्स्पेक्टर अमीठिया का ही दोस्त... सुनो, तुमने मुझे अपना नाम तो बताया ही नहीं!”
मैंने उसे अपना नाम बताया।
“हे भगवान!” — वह बोली — “तुम्हीं तो हो उसकी एलीबाई और तुम तो कह रहे थे कि तुम फ्री-लांस जर्नलिस्ट हो।”
“तो क्या गलत कह रहा था मैं! एलीबाई देना क्या किसी आदमी का पेशा होता है?”
उसने कुछ कहने ले लिये मुंह खोला और फिर चुप हो गयी।
“और क्या कहा था शामनाथ ने?”
“उसने मुझे यह दी थी कि अगर मैंने पुलिस को बताया कि जिस समय सतीश कुमार की मौत हुई थी, ठीक उस समय वह यहां मेरे फ्लैट पर अपेक्षित था तो पुलिस मुझसे बहुत अनाप-शनाप सवाल पूछेगी और मुझे बहुत परेशान करेगी।”
“क्या मतलब? उस रात को दो बजे सतीश कुमार यहां आने वाला था।”
“शुक्रवार रात को वह हमेशा ही यहां आता था। मैं डेढ़ बजे ‘अलका’ से आखिरी शो करके फ्री होती हूं। दस पन्द्रह मिनट मुझे यहां पहुंचने में लगते हैं। जब से मेरी सतीश कुमार से दोस्ती हुई है, तभी से यह सिलसिला नियमित रूप से चलता चला आ रहा है कि शुक्रवार रात को ठीक दो बजे वह यहां मेरे फ्लैट पर आ जाता है।”
“यह बात शामनाथ को कैसे मालूम थी?”
“कभी वार्तालाप के दौरान मैंने ही बताई थी। मैंने ही उसे कहा था कि शुक्रवार रात को जब अरविन्द मेरे फ्लैट पर आता था, तभी उससे सहूलियत से जाना जा सकता था कि उसके पास कोई भारी रकम के शेयर थे या नहीं।”
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09-29-2020, 12:27 PM,
#90
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“तो शामनाथ ने तुम्हें राय दी थी कि तुम पुलिस को अरविन्द के इस साप्ताहिक, नियमित आगमन के बारे में कुछ न बताओ?”
“हां।”
“तुम्हें यह बात अजीब नहीं लगी?”
“नहीं। वह तो मेरे ही फायदे की बात कह रहा था। और फिर उसने तो कत्ल किया नहीं था जो कि तुम्हारी अपनी गवाही से जाहिर है। मुझे ऐसी कोई राय देने में उसे तो कोई फायदा था नहीं।”
“लेकिन अगर यह बात पुलिस को अब मालूम हो गयी तो वे लोग तुम्हें और भी ज्यादा तंग करेंगे।”
वह भयभीत लगने लगी।
“क्या तुम पुलिस को यह बात बताओगे?”
“अगर तुम्हारा कत्ल से कोई वास्ता नहीं है तो नहीं बताऊंगा।” — मैं बोला — “और कुछ?”
“और कुछ क्या? शुक्रवार रात आठ बजे अरविन्द मुझे अपनी कार पर ‘अलका’ के सामने छोड़ गया था। उसी रात दो बजे वह मुझे यहां मिलने वाला था। जब वह सारी रात यहां न आया तो मुझे चिन्ता होने लगी क्योंकि ऐसा आज तक नहीं हुआ था कि वह शुक्रवार रात दो बजे यहां न आया हो। वह उसका मेरे साथ तफरीह का पूर्वनिर्धारित साप्ताहिक दिन था। उस दिन के इन्तजार में तो वह तड़फता रहा करता था और अपने हजार काम छोड़कर आया करता था। इसीलिए मैं हैरान होने लगी थी कि आखिर वह क्यों नहीं आया था। इसीलिए मैं अगली सुबह उसके कालकाजी स्थित फ्लैट पर गई थी, जहां कि मुझे उसकी लाश पड़ी मिली थी। किसी ने उस शूट कर दिया था।”
“कोई और बात?”
“बस।...क्या तुम वाकई समझते हो कि शामनाथ ने कत्ल किया है?”
“उसने नहीं किया तो उसके साथियों में से किसी ने किया है। बहरहाल यह काम है उन चारों में से ही किसी का। लेकिन यह बात मेरी समझ से बाहर है कि उनमें से किसी ने रात दो बजे एक आदमी की हत्या कैसे कर दी जबकि उस समय से चार घण्टे पहले तक और पांच घण्टे बाद तक हर क्षण वे मेरे साथ मौजूद थे?”
वह चुप रही।
“यह मेरा कार्ड है।” — मैं उसे एक कार्ड थमाता बोला — “इस पर मेरे घर और दफ्तर दोनों जगहों का टेलीफोन नम्बर है। और कोई बात सूझे तो मुझे फोन कर देना, ओके?”
“ओके।”
मैं वहां से विदा हो गया।
उसी रोज कोई रात नौ बजे के करीब मेरे घर के टेलीफोन की घण्टी बजी। मैंने फोन उठाया। फोन सुनीता का था, उसके स्वर में भय का पुट था।
“वे लोग मेरे पीछे पड़े हुए हैं।”
“कौन लोग?” — मैंने पूछा।
“शामनाथ वगैरह। तुम्हारे जाते ही शामनाथ ने मुझे फोन करके पूछा था कि तुम मुझसे क्या चाहते थे? उसके बाद अभी थोड़ी देर पहले खुल्लर मुझसे मिलने आया था। मैंने उसे भी यही कहा कि मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया लेकिन किसी को भी मेरी बात पर विश्वास हुआ नहीं लगता। अगर शामनाथ को मेरी बात पर विश्वास आ गया होता तो वह खुल्लर को मेरे फ्लैट पर न भेजता। वह... वह मेरे साथ बहुत बेहूदगी से पेश आया। उसने मुझे थप्पड़ भी मारा।”
“क्यों?”
“क्योंकि उसे विश्वास नहीं कि मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया। वह हम दोनों के बीच हुए वार्तालाप का एक एक शब्द सुनना चाहता था।”
“तुमने उसे सब कुछ बता दिया?”
“न बताती तो वह मुझे और मारता।”
“चलो, ठीक है। कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तुम भयभीत क्यों हो?”
“मुझे लग रहा है कि वे लोग मेरी हत्या कर देंगे।”
“क्यों? क्या खुल्लर ने कोई ऐसी धमकी दी है तुम्हें?”
“साफ-साफ शब्दों में तो नहीं दी लेकिन उसकी सूरत से मुझे यही लग रहा था कि मेरी खैर नहीं और उसने मुझे यह चेतावनी भी दी कि मैं भविष्य में फिर कभी तुमसे बात न करूं। क्या इसी से यह जाहिर नहीं होता कि वह जानता है कि मुझे तुमसे या किसी से भी फिर बात करने का मौका हासिल नहीं होगा।”
“तुम आज कैब्रे के लिए होटल नहीं गयीं?”
“मेरी फ्लैट से बाहर कदम रखने की हिम्मत नहीं हो रही। मुझे लग रहा है कि मेरी निगरानी हो रही है। मेरे फ्लैट के सामने की सड़क पर दोपहर से ही एक कार खड़ी है जिसके भीतर एक आदमी बैठा है।”
“तुम उसे पहचानती हो?”
“यहां से उसकी सूरत नहीं दिखाई दे रही।”
“तुमने पुलिस को खबर की?”
“नहीं, पुलिस को खबर करने का हौसला मैं अपने में जमा नहीं कर पा रही।”
“तुमने मुझे क्यों फोन किया है?”
“तुम मेरी कोई मदद करो।”
“क्या मदद करूं?”
“मुझे यहां से किसी प्रकार बाहर निकलवा दो। फिर मैं इस शहर से ही कूच कर जाऊंगी।”
मैं कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला — “तुम फ्लैट को बन्द करके रखो, मैं आधे पौन घण्टे में वहां पहुंचता हूं।”
मैंने टेलीफोन बन्द कर दिया।
आधे घण्टे में मैं माता सुन्दरी रोड पर पहुंच गया। मैंने देखा कि सड़क पर सुनीता के फ्लैट के सामने या आसपास कोई कार नहीं खड़ी थी। शायद उसकी निगरानी करने को तैनात आदमी वापिस बुला लिया गया था। मुझे दूर-दूर तक कोई संदिग्ध प्राणी न दिखाई दिया।
मैं इमारत की दूसरी मन्जिल पर पहुंचा। मैंने घण्टी बजाई। सुनीता ने फौरन दरवाजा खोला। मुझे तभी शक हो जाना चाहिए था। जिस लड़की को अपना कत्ल हो जाने की चिन्ता खा रही हो, वह बिना यह मालूम किए कि बाहर कौन आया था, दरवाजा नहीं खोल सकती थी। लेकिन पता नहीं क्यों उस वक्त मेरी अक्ल घास चरने गयी हुई थी। अपनी इस लापरवाही का खामियाजा मुझे उसके फ्लैट में कदम रखते ही भुगतना पड़ा।
सुनीता के मेरे पीछे दरवाजा बन्द करते ही मुझे एक आवाज सुनाई दी — “हिलना नहीं, पाठक।”
मैं एकदम ठिठक कर खड़ा हो गया। मैंने देखा बैडरूम के दरवाजे पर हाथ में रिवॉल्वर लिए खुल्लर खड़ा था। उसके पीछे कृष्ण बिहारी मौजूद था।
मैंने सुनीता की ओर देखा।
“इन्होंने मुझे रिवॉल्वर दिखा कर तुम्हें फोन करने के लिए मजबूर किया था” — वह भयभीत भाव से जल्दी से बोली — “अगर मैं तुम्हें फोन करके यहां न बुलाती तो खुल्लर मुझे शूट कर देता।”
“शट अप!” — खुल्लर घुड़क कर बोला — “इसकी तलाशी लो।”
खुल्लर मुझे रिवॉल्वर से कवर किये रहा। कृष्ण बिहारी मेरी तलाशी लेने लगा।
“क्लीन।” — थोड़ी देर बाद वह बोला।
“तुम इस लड़की के साथ जाओ” — खुल्लर बोला — “और कार को इमारत के सामने लेकर आओ। मैं इसे लेकर आता हूं।”
सुनीता और कृष्ण बिहारी फ्लैट के बाहर निकल गये।
खुल्लर मेरी ओर रिवॉल्वर ताने खड़ा रहा।
थोड़ी देर बाद बाहर से धीरे से हार्न बजने की आवाज आयी।
“चलो।” — खुल्लर बोला।
मैं घूम कर बाहर की ओर बढ़ा। खुल्लर मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। उसने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ अपने कोट की जेब में डाल लिया लेकिन मैं जानता था कि कोई शरारत करने पर वह जेब में से ही मुझे शूट कर सकता था।
हम नीचे पहुंचे। नीचे सड़क पर खड़ी एक कार में ड्राइविंग सीट पर कृष्ण बिहारी बैठा था और पिछली सीट पर भय से सिकुड़ी सी सुनीता बैठी थी। खुल्लर के संकेत पर मैं सुनीता की बगल में जा बैठा और स्वयं खुल्लर अगली सीट पर बैठ गया। उसके संकेत पर कृष्ण बिहारी ने कार आगे बढ़ा दी। खुल्लर ने रिवॉल्वर निकालकर फिर हाथ में ले ली थी और अब वह बड़ी सावधानी से मुझे और सुनीता को कवर किये हुए था।
“तुम लोग अपने व्यवहार से एक तरह कबूल कर रहे हो” — मैं बोला — “कि सतीश कुमार का कत्ल तुम्हीं में से किसी ने किया है। बराय मेहरबानी यह भी बता डालो कि ऐसा तुम कैसे कर पाये?”
“हमारे पास जादू की छड़ी है” — खुल्लर बोला — “यह उसी की करामात है। अब अपना थोबड़ा बन्द रखो और चुपचाप बैठे रहो।”
मैं चुप हो गया।
कार ओखला से आगे निकल आयी।
एक स्थान पर खुल्लर के संकेत पर कृष्ण बिहारी ने कार को एक कच्ची सड़क पर उतार दिया। थोड़ी दूर एक सुनसान जगह पर उसने कार रोकी।
“बाहर निकलो।” — खुल्लर ने आदेश दिया।
मैं बाहर निकला। मेरे बाद खुल्लर और फिर सुनीता और कृष्ण बिहारी भी बाहर निकल आए। कृष्ण बिहारी ने कार की डिकी में से एक फावड़ा निकाला और मेरे सामने जमीन पर रख दिया।
“फावड़ा संभाल लो” — खुल्लर बोला — “और वहां सामने एक इतनी बड़ी कब्र खोदनी आरम्भ कर दो जिसमें तुम दोनों समा सको।”
सुनीता के मुंह से एक भयभरी चीख निकल गई। उसके हाथ छाती पर बंधे थे और नेत्र फटे पड़ रहे थे।
“तुम हमें मार कर यहां दफनाना चाहते हो?” — मैंने पूछा।
“समझदार आदमी हो।” — खुल्लर बोला।
“तो फिर मैं अपनी कब्र आप क्यों खोदूं? तुम मारना चाहते हो तो मार दो हमें। बाद में हमें दफनाने के लिए खुद कब्र खोदते रहना।”
खुल्लर सकपकाया। उसकी कृष्ण बिहारी से निगाह मिली।
“क्या तुम अपनी आंखों के सामने इस लड़की को बेइज्जत होते देखना पसन्द करोगे?” — कृष्ण बिहारी बोला।
मैं चुप रहा। फिर मुझे एक खयाल आया।
“अच्छी बात है।” — मैं बोला।
“शाबाश!” — कृष्ण बिहारी बोला।
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