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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#36
पिताजी तो चले गए थे पर मैं ये नहीं जानता था की आज का दिन बेहद मुश्किल होने वाला था मेरे लिए, क्योंकि उनके जाने के बाद एक और गाड़ी आ रुकी मेरे दर पर जिसकी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी .
एक गाड़ी , उसके बाद एक और उसके बाद एक और तीन गाडियों में लोग भरे हुए थे,
पहली गाड़ी से सुमेर के दोस्त लोग उतरे, सबके हाथो में हथियार थे, मेरे माथे पर बल पड़ गए. मेरा बाप सही चेता के गया था मुझे ,
“तुझे तेरे किये की सजा मिलेगी ” उनमे से एक चिल्लाते हुए बोला
“मैंने नहीं मारा उस को ” मैंने कहा
पर इन्सान की आँखों पर जब नफरत और क्रोध का पर्दा पड़ा हो तो उसे कहा कुछ दिखाई देता है, उनके दिल में बस मुझसे बदला लेना लिखा था .
“मारो साले को, ” उसने अपने साथियों से कहा और मार पिटाई शुरू हो गयी, मैं उन चुतियो को समझाना चाहता था पर उन को तो पड़ी लकड़ी उठानी थी. मुझे भी गुस्सा चढ़ आया था , मार पिटाई में मेरे हाथ भी हथियार लग गया मैं भी पूरी कोशिश करने लगा, पर ये कोई फिल्म तो थी नहीं की सारे गुंडों को पेल दे , और न मैं कोई हीरो, कितना प्रतिरोध कर पाता दर्जन भर लोगो का , मेरे घुटने टिकने लगे थे,
शरीर पर चारो तरफ से मार पड़ रही थी और फिर वो पल भी आया जब पैर लडखडा गए, मैं धरती पर गिर गया.
“उठ साले, उठ अभी तो तुझे और दर्द देना है, हमारे भाई को हमसे छीना है तूने , उसकी चिता ठंडी होने से पहले तेरी चिता जला देंगे हम उठ ” उनमे से एक ने मेरे पेट पर लात मारते हुए कहा .
पसलियों पर पड़ी लात से मैं बुरी तरह बिलबिला उठा . और संभलने का मौका मिलता उस से पहले ही एक के बाद एक लाते पड़ने लगी मेरे जिस्म पर, होंठो से, मुहसे , खून निकलने लगा, आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा. मदद की बहुत जरुरत थी पर दूर दूर तक कोई नहीं था, और वो हरामजादे कहाँ रुकने वाले थे,
धरती मेरे खून से लाल होने लगी थी, अपने बदन में कुछ टूटते हुए मैं महसूस कर रहा था , आँखे बंद हो रही थी सांस जैसे टूटने लगी थी, वो क्या कह रहे थे मुझे कुछ पता नहीं , कुछ खबर नहीं और फिर धीरे धीरे सब शांत हो गया. सन्नाटा छा गया.
दूर कहीं-
मेघा एक ऐसी जगह खड़ी थी जहाँ पर वो पहले कभी नहीं आई थी ,
“सच कहता है कबीर इस जंगल ने न जाने क्या क्या छुपाया हुआ है,” मेघा ने कहा
उसने कुल्हाड़ी से बीच में आई टहनियों को काटा और उन सीढियों पर चढ़ती गयी, टूटी फूटी सीढियों पर चढ़ते हुए आखिर वो छोर पर जा पहुंची और एक पल को उसका सर चकरा गया , ये एक चोकोर घेरा था , बीच में एक गड्ढा था , चारो तरफ पक्की चिनाई , मेघा आंकलन करने में जुटी थी इस जगह की उस बेचारी को तो भान भी नहीं था की वो खुद नहीं बल्कि तकदीर उसे आज उस जगह पर ले आई है .......................
उस सुनसान जगह में एक अद्भुद आकर्षन था जिसने खींच लिया था मेघा को , कभी वो इधर घुमे कभी उधर, पागलो की तरह वो टहनी, झाड़ियो को काट रही थी , फिर उसे कुछ और सीढिया दिखी जो निचे को उतरती थी मेघा ने अपने पैर उधर बढाए, कुछ सीढिया उतरी वो निचे, हर तरफ काई जमी थी, बरसो से कोई नहीं आया था शायद इस तरफ,
पर वो ज्यादा निचे उतर नहीं पायी, एक सरसराहट ने उसका ध्यान खींच लिया और वो वापिस उपर की तरफ आ गयी,
“कोई जानवर होगा, ” अपने आप से बोली
“पर ये जगह क्या है , एक मिनट एक मिनट , ऐसी ही तो किसी जगह की तलाश थी मुझे, जहाँ मैं और कबीर मिल सके , मुझे कबीर को बताना होगा ” मेघा ने कहा
पर उस बेचारी को ये कहाँ मालूम था की कबीर पर क्या बीत रही थी .
मेघा को एक कमरा दिखाई थी, बस कहने को ही कमरा था बाकि खंडहर कहू तो ज्यादा ठीक रहेगा . मेघा ने टूटे दीमक खाए दरवाजे को देखा और उसे हल्का सा धक्का दिया पर वो जरा भी नहीं हिला. मेघा को आश्चर्य हुआ , उसने फिर से धक्का दिया पर दरवाजा टस से मस नहीं नहीं हुआ
“शायद जाम हुआ है ” उसने कहा और वहां से हट गयी पर कमरे के अन्दर देखने की लालसा थी उसके अन्दर, पर वो दरवाजे पर उकेरे गए उन नामो को नहीं देख पायी, जिन पर वक्त की धुल ने कब्ज़ा कर लिया था.
रतनगढ़ में शोक पसरा था, गाँव ने अपने एक बेटे को खोया था, सारे लोग दुखी थे पर वो नहीं जानते थे की रतनगढ़ के लिए आज क़यामत का दिन था, भरी दोपहर में वो पायल की आवाज उस सन्नाटे को बहुत जोर से चीर रही थी ,नंगे पाँव अपनी मस्ती में चूर वो गाँव की तरफ चले जा रही थी .
हवाओ ने उसके आगे सर झुका था, हवा थम गयी थी, पेड़ कुम्हला गए थे गर्मी से, हाथो में बड़ी सी पोटली थामे , जब लोगो की नजरे उस पर पड़ी तो बस नजरे थम सी गयी, उसके काले स्याह कपडे रक्त से लाल सने थे, पूरा बदन उसका खून से सना था ,
ये एक ऐसा वीभत्स द्रश्य था जिसे देख कर अच्छे अच्छे मूत दे, उसके नंगे पैरो के रक्त से सने निशाँ धरती पर अपनी छाप छोड़ गए थे , वो ठीक गाँव के बीच चौपाल पर पहुंची एक नजर उसने गाँव वालो पर डाली और फिर पोटली को खोल दी .
“नहीईईईईईईई , नहीईईईईईईई ”
पोटली का खुलना था की चारो तरफ चीख पुकार मच गयी, बहुत सारे सर थे उस पोटली में, एक लाश को तो रो लिया था रतनगढ़ , विलाप तो उसे अब करना था .
“उठा लो अपने अपनों के सर ” उसने उन्माद भरे स्वर में कहा
“दुबारा किसी ने उस लड़के की तरफ आँख उठा कर भी देखा तो ऐसा दरिया बहा दूंगी खून का , नसले पैदा होने से मना कर देगी तुम्हारी, जितना भी लहू नसों में बह रहा है सुखा दूंगी, अगर उसके बदन पर एक खराश भी आई कसम है मुझे,यहाँ रोने वाला कोई नहीं बचेगा ” किसी शेरनी की दहाड़ थी ये, बहुत से लोगो की धोती गीली हो चली
एक सर को ठोकर मारी उसने और हँसते हुए वापिस मुड ली, पायल की आवाज फिर से सन्नाटे को चिढाने लगी.
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#37
सबके अपने अपने किरदार थे सबके अपने अपने सपने थे, मेघा और कबीर ने एक पौधा बोया था जिसे पेड़ बनाने के लिए न जाने कितने तुफानो से बचाना था, दोनों गाँवो की बरसो से ठंडी पड़ी आग सुलग गयी थी , जिसमे आने वाली पीढ़ी झुलस ने वाली थी, सपने टूटने थे या पुरे होने थे कोई नहीं जानता था सिवाय नियति के , वो नियति जिसने ये सारा खेल रचा था,
रतनगढ़ के लिए ये बहुत गहरा सदमा था, दर्जन भर घरो के दिए आज बुझ गए थे, किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला , जली तो बस चिताए, शमशान में जगह थोड़ी पड़ गयी थी , पूरा गाँव आज एक साथ रोया था , ऐसा रुदन की स्वयं आसमान का कलेजा भी फट गया था वो भी फूट फूट कर रोने लगा था, दर्द बारिश बनकर बरसने लगा था.
बारिश की बूंदों ने जब बदन को भिगोया तो होश आया , सर बुरी तरह चकरा रहा था आँखे खुलना नहीं चाहती थी, खांसी उठी कलेजे में, दर्द से भरा था पूरा बदन, बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठा , थोड़ी देर लगी दिमाग को दुरुर्स्त होने में पर जब आँखे कुछ देखने लायक हुई तो मेरी चीख निकल गयी,
उठ कर भाग जाना चाहता था पर पैरो को धरती ने जकड़ लिया था , बारिश के पानी से नहीं ये धरती खून से लाल हुई पड़ी थी , मेरी आँखों के सामने अनगिनत टुकड़े पड़े थे, मांस के टुकड़े , कोई छोटा कोई बड़ा, जैसे कोई कसाई अपना बचा हुआ मीट फेक गया हो, पर ये जानवरों के टुकड़े नहीं थे, ये इंसानों के टुकड़े थे,
“ये किसने किया ” मैंने अपने आप से सवाल किया
पर कोई जवाब नही था , कोई नहीं था सिवाय मेरे और उन टुकडो के , मेरी हड्डियों में एक दवाब महसूस कर रहा था मैं , एक खौफ था मेरे चेहरे पर, जैसे तैसे अपने बदन को घसीटते हुए मैं कमरे के अन्दर आया, और बिस्तर पर बैठ गया. अपनी हालत पर गौर किया तो मैंने पाया की मेरे जख्म, मेरे जख्म काले पड़े थे जैसे किसी ने दाग दिया हो उनको ये एक ऐसी घटना थी जिसने मुझे हिला कर रख दिया था,
अपने कपडे उतार कर मैंने शीशे में देखा, जगह जगह कुछ चिपका था , मैंने उस धूल को हाथ में लेकर सूंघ कर देखा, वो राख थी , गर्म राख, मैं बुरी तरह डर गया, दरवाजा बंद करके बैठ गया. खौफ ने मेरे ऊपर कब्ज़ा कर लिया.
रात के अँधेरे और कुछ घनघोर बरसात , मंदिर किसी खंडहर जैसा लग रहा था , और जब आस पास बिजली कडकती तो ऐसा दीखता की कोई उस पल उसे देखे तो दौरा पड़ जाये, चारो तरफ जब रात और पानी ने अपना कब्ज़ा किया था , लोग अपने अपने घरो में दुबके थे कोई था जो मंदिर में था, माँ तारा की मूर्ति के सामने
“माँ, हाँ न तू सबकी तो फिर मेरी तरफ क्यों नहीं देखती , सबके बारे में सोचती है न तू , तो फिर मेरा ख्याल क्यों नहीं है तुझे , मेरे भाग में ये क्यों लिखा तूने, दुखी तो मैं थी ही न, क्यों मुझे सुख के सपने दिखाए तूने अगर ये दर्द ही देना था, कैसी माँ है तू, क्या तेरा कलेजा नहीं पसीजता मेरी और से ,दुनिया की मन्नते पूरी करती है तू मेरे बारे में कब सोचेगी ” मूर्ति से सवाल कर रही थी वो .
अब भला मूर्ति क्या बोले, वो बस मुस्कुराती रही हमेशा की तरह
“आज तुझे मेरे सवालो का जवाब देना होगा, आज यहाँ से तब तक नहीं जाउंगी मैं जब तक तू मुझे नहीं बताती, आखिर क्या कसूर था मेरा, सबकी तकदीरे तूने लिखी है , मेरे दुःख का कारन भी बता मुझे , देख माँ मुझे मजबूर मत कर ” गुस्से से बोली वो
पर भला एक मूर्ति क्या बोले. बस मुस्कुराती रही जैसा उसे बनाया गया था .
“ठीक है माँ, तू हठ पर है तो अब मेरा हठ भी देख , ” जैसे कोई नागिन फुफकार उठी हो. गुस्से से भरी वो उठी और बाहर की तरफ चल पड़ी जैसे ही वो सीढियों से उतरी, एक तेज रौशनी ने पूरी मंदिर को अपने कब्ज़े में ले लिया. एक पल वो रौशनी चमकी और फिर एक तेज गर्जना हुई , एक बेहद तेज धमाका जिसकी गूँज उस रात जाग रहे हर एक इंसान ने सुनी , मंदिर पर बिजली गिर गई थी, पर उसने मुड कर नहीं देखा बस वो चलती रही .
अपनी खिड़की से बारिश को देखती प्रज्ञा के चेहरे पर मायूसी थी, बारिश उसे थोडा थोडा भिगो रही थी पर उसे परवाह नहीं थी, उसके दिमाग में उलझने थी, आने वाले कल की चिंता थी, आज जो रतनगढ़ में हुआ था उसे भी उसका बहुत दुःख था पर उसे किसी की फ़िक्र भी थी, uffffffffff ये कैसे बंधन थे, कैसे रिश्ते थे जिनके कोई नाम तो नहीं थे पर मान बहुत था उन नातो का
एक ऐसा ही नाता था उसका और कबीर का, जिसे समाज के सामने स्वीकारा नहीं जा सकता था और अपनी रूह से झुठलाया भी नहीं जा सकता था . जिस तरह से वो और कबीर एक दुसरे के करीब आए थे, कबीर केवल प्रज्ञा के लिए जिस्म की आग बुझाने का जरिया नहीं था बल्कि उसके लिए एक दोस्त था, एक ऐसा साथी जो उसे समझता था, प्रज्ञा ये भी जानती थी की आने वाला वक्त उसकी दोस्ती की कड़ी परीक्षा लेगा.
पर एक और थी जिसकी आँखों से भी नींद रूठी हुई थी, जब वो बापिस गाँव आई तो मालूम हुआ क्या काण्ड हुआ है , उसका दिल बैठ गया उसे इन लाशो के गिरने का दुःख था पर फ़िक्र अपने यार की भी थी , ये मेघा थी जो अपने बिस्तर पर बैठे हुए तमाम घटना का अवलोकन कर रही थी, वो भी जानती थी की हालात अब और मुश्किल हो जायेंगे.
तीन अलग अलग लोग जो एक दुसरे से जुड़े थे, एक दुसरे के लिए जीते थे, एक दुसरे संग जीना चाहते थे, एक दुसरे की परवाह करते थे , एक कल का इंतज़ार कर रहे थे , उस कल का जो अपने साथ न जाने क्या लाने वाला था .................
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#38
रात थी बीत गयी , आने वाले एक अच्छे कल की उम्मीद में सवेरा मुस्कुरा रहा था पर लोग थे की मायूस थे , बारिशे थम गयी थी पर दिल जल रहे थे, हर किसी के अपने अपने कारण थे , प्रज्ञा निचे उतर कर आई
“राणाजी से बात हुई ” उसने नौकरों से पूछा
नौकर- जी, रात तक पहुंचेगे,
प्रज्ञा- बच्चे कहाँ है
नौकर- शहर
प्रज्ञा- ठीक ही हैं यहाँ के माहौल से दूर रहेंगे तो ठीक रहेगा . मांजी को नाश्ता करवा देना मैं एक जरुरी काम से जा रही हूँ, जल्दी ही लौटूंगी, गाँव में खबर करवा देना की हर मुश्किल घडी में हवेली के दरवाजे उनके लिए खुले है .
नौकर ने सर हिलाया प्रज्ञा अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गयी .उसे अपने सवालो के जवाब चाहिए थे , प्रज्ञा ने गाड़ी के शीशे को थोडा सा निचे किया पर अब इस हवा में मिटटी की नहीं बल्कि लाशो की महक थी, उसने रफ़्तार थोड़ी बढ़ा दी, पर अभी तो शुरुआत थी आज न जाने क्या क्या देखना था उसे .
जैसे ही वो मंदिर के पास पहुंची , उसके पैर ब्रेक पर कसते गए, अविश्वास , हैरानी लिए अपने चेहरे पर वो गाड़ी से उतरी, उसे आँखों पर यकीं नहीं हो रहा था . उसके सामने मलबे का ढेर पड़ा था, गाँव की आन टूट गयी थी .
“असंभव ” वो बुदबुदाई
कापते पैरो से मंदिर की तरफ बढ़ी, हर तरफ टूटे पत्थर पड़े थे, कल आसमान के कहर को अपने अन्दर समा लिया था मंदिर ने, धडकते दिल के साथ प्रज्ञा जैसे तैसे ऊपर पहुंची , कुछ नहीं बचा था , माँ तारा की मूर्ति आधी थी आधी बिखरी थी ,
“हे, माँ रक्षा करना ” प्रज्ञा ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा , उसकी आँखों से आंसू बहने लगे,
बहुत भारी कदमो से चलते हुए वो गाडी तक पहुंची और मुड गयी कबीर के घर की तरफ
“उठो, उठो ” प्रज्ञा ने मुझे झिंझोड़ कर जगाया तो मैं झटके से उठ गया .
जैसे ही मेरी नजरो ने उसे देखा , मेरी रुलाई छुट गयी, प्रज्ञा ने मुझे अपने आगोश में भर लिया और थाम लिया मुझे, मैं बस रोता रहा , किसी अपने की क्या अहमियत होती है ये मुझे उस वक्त मालूम हुआ था .
“शांत हो जाओ , मैं आ गयी हूँ न , शांत हो जाओ ” उसने मेरी पीठ सहलाते हुए कहा
मैं- मैंने नहीं मारा उनको, मैंने किसी को नहीं मारा
प्रज्ञा- मैं जानती हु कबीर, मैं जानती हूँ , मुझे विश्वास है तुम पर
उसने मेरे माथे को चूमा
प्रज्ञा- कबीर , मेरी बात ध्यान से सुनो, ये बात बहुत जरुरी है, रतनगढ़ वालो को लगता है तुमने ये काण्ड कियाहै , अब उनको यकीन दिलाना होगा न ,ये कठिन समय है कबीर, समय हम सबकी परीक्षा लेने वाला है पर एक दुसरे के साथ से हम जीत जायेंगे , हम जीत जायेंगे कबीर,
मैं- हाँ
प्रज्ञा- मुझे बताओ क्या हुआ था
मैं- कल सुबह सुमेर सिंह के साथियों ने मुझ पर यहाँ हमला किया, मैंने उनको बताया की मैंने नहीं मारा उसे, पर वो नहीं माने मार पिटाई हुई , मुझे बहुत मारा , मेरी आँखे बंद होने तक वो लोग मार रहे थे मुझे, पर जब आँखे खुली तो यहाँ चारो तरफ मांस के टुकड़े पड़े थे,मैं बहुत डर गया था , पूरी रात इधर बैठा रहा , ,मैं बहुत डर गया था प्रज्ञा बहुत जायदा
प्रज्ञा- मैं समझती हु, पर उन लोगो को किसने मारा, तुमने किसी को देखा ,
मैं- नहीं , जब मुझे होश आया तो बस यही नजारा था,
प्रज्ञा- बाहर आओ
मैंने अपने कपडे पहने और उसके साथ बाहर आया , प्रज्ञा ने वो नजारा देखते ही मेरे हाथ को कस के पकड लिया.
“हे, माँ ” वो लरजे स्वर में बस इतना ही बोली
प्रज्ञा- कबीर, मेरी बात सुनो , ये जगह सुरक्षित नहीं है तुम्हारे लिए, तुम अभी अपने घर चले जाओ
मैं- मेरा घर यही है , मैं यही ठीक हु
प्रज्ञा- तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा, खैर, मैं तुम्हारे रहने की कही और वयवस्था करवा देती हु, तुम सुरक्षा में रहोगे तो मेरी एक फ़िक्र तो ख़त्म रहेगी,
मैं- पर
प्रज्ञा- मैंने कहा न, रतनगढ़ वाले चुप नहीं बैठेंगे और तुम कितनो को रोक पाओगे, कोई न कोई तुम तक पहुच जायेगा और तुम्हे कुछ हो ये मैं हरगिज नहीं चाहती, राणाजी आज रत तक वापिस आ जायेंगे, मैं नहीं चाहती कबीर, मैं नहीं चाहती की और बुरा हो ,
मैं-पर मैंने कुछ नहीं किया
प्रज्ञा- ये मैं जानती हूँ दुनिया नहीं , और दुनिया तब तक तुम्हे निर्दोष नहीं मानेगी जब तक की तुम्हारे पास कोई सबूत न हो , तुम्हारी और सुमेर की दुश्मनी को हर कोई अपने हिसाब दे देखेगा , जितने मुह उतनी बाते, अफवाहों पर कौन रोक लगा सकता है , मेरी बात मानो कबीर ,मैं जानती हूँ की राणाजी सबसे पहले यही आयेंगे
मैं- समझता हूँ तुम्हारी मनोदशा , पर मैं क्या करू
प्रज्ञा- वही करो जो मैं तुमसे कह रही हु,
मैं- प्रज्ञा, पर एक न एक दिन वो मुझे ढूंढ लेगे
प्रज्ञा- तब की तब देखेंगे
मैं- तुम उस समय किसे चुनोगी
प्रज्ञा- तुम्हे क्या लगता है
मैं-तुम बताओ
प्रज्ञा- उस वक्त मैं दोराहे पर रहूंगी, एक तरफ मेरी आन तुम और दूजे तरफ मेरा मान मेरे राणाजी , और तुम दोनों में से कोई भी मेरे बारे में नहीं सोचेगा, तुम मर्दों के झूठे अहंकार की कीमत हम औरतो को ही चुकानी पड़ती है, मेरी दुआ है की ये चुनाव करने वाला दिन मेरी जिन्दगी में कभी नहीं आएगा
मैं- तुम राणाजी से बात कर सकती हो
प्रज्ञा- वो मेरी नहीं सुनेंगे, अब नहीं सुनेंगे , तुम ये चाबिया रखो ये उसी ठिकाने की है , तमाम चीजे तुम्हे वहीँ मिल जाएँगी, मैं जल्दी ही मिलूंगी
प्रज्ञा ने मेरे माथे को चूमा और चल पड़ी और तभी वो बापिस मुड़ी और बोली-एक बात पुछू
मैं- दो पूछो
प्रज्ञा- रातो को क्यों भटकते हो तुम , उस रात तुम मंदिर में क्या कर रहे थे
मैं- प्रीत की डोर तलाशने
प्रज्ञा- तुम्हे क्या लगता है मैं क्या सुनना चाहूंगी , सच बताओ मुझे, अपने दोस्त से झूठ बोल कर उसका मान कम कर रहे हो तुम
मैं- प्रेम
प्रज्ञा- क्या
मैं- प्रेम करता हूँ मैं किसी से , उस से मिलने जाता हु
प्रज्ञा की आँखे बड़ी हो गयी ,
प्रज्ञा- कौन है वो , हमारे गाँव की हैं
मैं- हाँ, जल्दी ही मिलवाता हु उस से तुम्हे .
न जाने क्यों उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी
“अपना ख्याल रखना ” उसने बस इतना कहा और चली गई
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#39
अपनी वापसी में तमाम रस्ते प्रज्ञा सोचती रही की कौन लड़की होगी जिसको कबीर से मुहब्बत हुई होगी, जिसके बारे में कभी उसने बताया नहीं,पर वो ये क्यों सोच रही है उसके दिल ने पूछा उस से और बस उसने गहरी साँस ली .
वो सीधा मंदिर गयी, गाँव से और भी लोग आ गए थे उसने मलबे को साफ़ करवाना शुरू किया , स्तिथि का जायजा लेने लगी,
दूसरी तरफ अर्जुनगढ़ में भी गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था , कबीर के पिता दो चार और लोगो के साथ बैठे थे, रतनगढ़ में हुए काण्ड की खबर इधर भी आ गयी थी .
मास्टर- हुकुम, मामला बहुत संगीन है , आप कहे तो पंचायत बुला ले
ठाकुर- नहीं, पंचायत के बस का नहीं ये सब , राणा वैसे भी कुछ नहीं सुनेगा
मास्टर- तो आगे क्या
ठाकुर- अपने हर एक आदमी की सुरक्षा की जिम्मेवारी मेरी है
गाँव वाला- हुकुम आपकी दया है , पर कुंवर सा से बात करनी भी जरुरी है
ठाकुर- हम देखेंगे
मास्टर- मुझे नहीं लगता कबीर अकेला इतना सब कर सकता है , उसके पास पूरा मौका था सुमेर को मारने का और उस दिन उसे कोई भी नहीं रोकता तो फिर वो क्यों मारेगा उसे, हाँ उसका दिन रात रतनगढ़ में जाना संदेह पैदा करता है पर एक अकेला दर्जन भर से ज्यादा लोगो को ऐसे नहीं मार सकता
गाँव वालो ने भी हामी भरी
ठाकुर- इस छोकरे ने जीना दूभर कर दिया है, कुछ करना होगा जल्दी ही
मैंने अपने कमरे पर ताला लगाया और प्रज्ञा के बाग़ वाले ठिकाने की तरफ चल दिया , मैंने एक दूसरा रास्ता लिया , मैं फिलहाल किसी से भी उलझना नहीं चाहता था . मैंने घने जंगल की तरफ से जाने का सोचा था , आहिस्ता आहिस्ता मैं चले जा रहा था , झाडिया घनी होने लगी थी
“अनजान इलाको में यु बेमतलब नहीं घूमना चाहिए मुसाफिर ” मेरे कानो में ये आवाज पड़ी और मैं रुक गया , ये आवाज मेघा की थी मैंने मुड कर देखा
मैं- तुम यहाँ , कैसे
वो- तुम्हे नहीं मालूम
मैं- पर तुम्हे कैसे मालूम मैं ये रास्ता लूँगा, और किधर जा रहा हूँ
मेघा-किस्मत, मेरे राजा किस्मत, मैंने खुद ये रास्ता लिया ताकि तुम्हारे पास आ सकू, तुमसे मिलना बेहद जरुरी था.
मैं- मैं भी तुमसे मिलना चाहता था तुम्हे कुछ बताना चाहता था
मेघा- वो बाद में, मेरे साथ चलो अभी
मैं- पर कहाँ
मेघा- आओ तो सही तुम
करीब बीस पच्चीस मिनट बाद हम उस जगह पर खड़े थे जिसे मेघा ने खोजा था और मैं उसे दाद दिए बिना नहीं रह सका
“बहुत बढ़िया, दूर है पर सुरक्षित है और सबसे बड़ा सवाल किसकी है ये जगह ” मैंने कहा
मेघा- मैं क्या जानू
मेघा मुझे उस कमरे तक ले आई,
“मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश की थी पर खुला नहीं मुझसे ” उसने कहा
मैं- हटो देखता हूँ
मैंने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया और वो बड़े आराम से खुल गया
“कल तो नहीं खुला था ” मेघा ने जैसे शिकायत करते हुए कहा
हम अन्दर गए, हालत बहुत खस्ता थी , एक चारपाई थी टूटी सी, सडा बिस्तर था उस पर , जिसे दीमक चाट गयी थी लगभग, दीवारों पर जालो की भरमार थी , मैंने थोड़ी सी सफाई की फिर छानबीन शुरू की , दीवारों में छोटे छोटे आले थे, एक में कुछ कपडे रखे थे जिन्हें मैं टुकड़े कहू तो ज्यादा ठीक रहे गा .
“न जाने कितने दिनों से बंद पड़ा है ये ” मेघा बोली
मैं- सो तो है
हमने देखा दिवार पर कुछ तस्वीरे थी जो वक्त की मार आगे धुंधला गयी थी
“साफ करके देखो जरा ” मैंने मेघा से कहा
उसने सर हिलाया और तस्वीरों को लेकर बाहर चली गयी . मैं और देखने लगा कोने में कुछ बक्से थे मैंने उत्सुकता वश उन्हें खोला और मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी,
“मेघा ,जल्दी आ ” मैंने चिल्लाते हुए कहा
“क्या हुआ , अरे ये ”
...........................
“ये तो, ये तो सोना है कबीर ” मेघा ने कहा
मैं- हाँ ये सोना है
उन बक्सों में बहुत सा सोना था, दरअसल वो बक्से भरे थे सोने की ईंटो से, जैसी ईंटो को हम मकान बनाने में इस्तेमाल करते है वैसी ईंटो से, इतने सोने ने हमारे दिमाग को भन्ना दिया .
हमने एक एक ईंट उठाई और देखने लगे, पुराणी ईंटे थी पर क्या फर्क पड़ता है सोना तो सोना ही होता है .
“तुम सही कहते हो कबीर, इस जंगल ने न जाने क्या क्या छुपाया हुआ है ” बोली वो
मैं- किसका होगा ये
मेघा- किसी का भी हो, अपने को क्या वैसे भी सोना मिलना शुभ नहीं होता , इन्हें वापिस रख दो .
हम बाहर आके बैठ गए.
मैं- मेघा मुझे कुछ कहना है
वो- सुन रही हूँ
मैं- ये जो हालात हुए है , मैं तुम्हारी कसम खाके कहता हूँ मैंने नहीं मारा सुमेर को और उन बाकियों को
मेघा- जानती हूँ इसीलिए तुम्हारे साथ हूँ
उसने मेरा हाथ थामा और बोली- हर कदम तुम्हारे साथ रहूंगी, जितना तुमको जाना है जानती हु तुम कुछ गलत नहीं करोगे, पर सवाल ये है की उनको किसी ने तो मारा है सुमेर का तो मालूम नहीं पर उन बाकियों को किसी औरत ने मारा है,
मेघा ने मुझे रतनगढ़ में हुए वाकये को बताया
मैं- तुमने देखा उसे
मेघा- नहीं मुझे किसी और से मालूम हुआ ये
मैं तो अब उसे ढूँढना पड़ेगा. इस प्रीत की डोर ने ऐसा उलझाया है की अब क्या कहूँ
मेघा- पर उसने हमारी डोर भी तो बाँधी है , हमें भी तो इस कहानी ने ही मिलाया है न , पर फ़िलहाल हमें इस जगह को ऐसा बनाना होगा की हम यहाँ जी सके, कुछ लम्हे साथ बिता सके,
मैं- हाँ
दूर रतनगढ़ में फ़ोन की घंटी बज रही थी , नौकर ने फोन उठाया
“मालकिन शहर से फ़ोन है ”
प्रज्ञा ने जैसे ही दूसरी तरफ से बात सुनी उसके माथे पर पसीने आ गए.
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#40
दूसरी तरफ से जो कुछ भी कहा गया , प्रज्ञा के चेहरे के भाव बता रहे थे की बिलकुल भी अच्छी खबर नहीं थी
“और आप मुझे ये अब बता रहे है , हद होती है लापरवाही की वैसे ही मेरी जान को कम परेशानी नहीं थी और अब ये एक और , खैर जैसे ही कुछ पता लगे मुझे तुरंत सूचना दे, सिर्फ मुझे ” झल्लाते हुए प्रज्ञा ने फ़ोन काटा और माथा पकड़ के बैठ गयी.
“मैं क्या करती सरकार, कोई और चारा भी तो नहीं था , वो मार देते उसे , लगभग मर ही गया था वो , जानती हु मैंने गलत किया पर क्या करती ” दिवार की तरफ देखते हुए उसने कहा .
“मैं जानती हु, इस गलती की और सजा मिलेगी मुझे, ऐसे लोगो के बीच नहीं जाना चाहिए था , पर उसे नहीं बचाती तो भी गलत होता, तुम तो जानते हो ” उसने अपनी बात पूरी की .
“मुझसे नहीं होता, मैं करू तो क्या करू, ये तन्हाई बर्दाश्त नहीं होती, तमाम वादे झूठे लगने लगे है जी तो करता जिस आग में मैं जल रही हूँ ज़माने को जला दूँ उसमे, रस्मे, कसमे सब बेमानी है तुम भी मैं भी ” हताश स्वर में बोली वो
उसके रुदन में बहुत दर्द था ऐसा दर्द जिसे समझने वाला कोई नहीं था
दूसरी तरफ रतनगढ़ में ._
सारा गाँव चौपाल पर जमा था, राणा तमाम लोगो के बीच बैठा था ,
राणा- जो भी हुआ है वो नहीं होना था , बहुत गलत हुआ है और मैं आप सब गाँव वालो को विश्वास दिलाता हूँ इसका बदला लिया जायेगा, रतनगढ़ की तरफ जो भी आँख उठेगी हम उस सर को ही काट देंगे, आज हमारे रोने का दिन है , पर वो दिन भी आएगा जब हम हसेंगे, और दुनिया रोएगी, उस लड़के की तलाश करो , उसे घसीटते हुए यहाँ लाओ,
“हुकुम, एक औरत थी वो, वो ही लायी थी यहाँ सरो की पोटली . ” एक गाँव वाला बोला
राणा की आँखे अचम्भे से फ़ैल गयी
राणा- एक औरत, तुम कह रहे हो एक औरत हमारे लडको के कटे सर यहाँ लायी और तुम सब देखते रहे, हिजड़ो के तरह, क्या तुम्हारा खून उबला नहीं, एक औरत , एक औरत ऐसी गुस्ताखी कर गयी और तुम सब देखते रहे ,
“उस लड़के की साथी ही रही होगी वो , ढूंढो उसे भी , शुरू उन्होंने किया है खत्म हम करेंगे ” राणा ने गरजते हुए कहा
“मैत्री की जो छोटी सी कोशिश हुई थी अर्जुनगढ़ से वो खत्म समझो, उधर का कुत्ता भी अगर मिल जाए, मार डालो उसें, मेरे एक एक आदमी के बदले दस दस सर भेजो उन्हें, ”
क्रोध, इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है , क्रोध मानव को प्रेरित करता है बिना सोचे निर्णय लेने के , और अक्सर वो निर्णय उसके खिलाफ ही जाती है , राणा को उस समय ऐसा निर्णय करना था जो दोनों गाँवो की की नफरत को भुलाने में मदद कर सकता था , यदि वो न्याय कर्ता था तो ये कैसा न्याय था जिसमे बिना दुसरे पक्ष को सुने फैसला दिया था उसने,
जब वो हवेली पहुंचा तो रात आधी बीतने को थी पर प्रज्ञा को चैन नहीं था, बेचैनी ने जगाया था उसे, जैसे ही मालूम हुआ राणा लौट आया हैं,नंगे पाँव ही वो दौड़ पड़ी और बस राणा के सीने से लग गयी, उफनती सांसो ने राणा के दिल में खलबली मचा दी .
“ठीक है हम, ” उसने बस इतना कहा
पर काश वो उस घड़ी प्रज्ञा की सवाल पूछती धडकनों को समझ सकता तो उसे अहसास होता दिल अपने थे प्रीत पराई हो गयी थी , राणा की आँखों के सामने प्रज्ञा के रूप में वो आइना था जिसका सच वो कभी नहीं देखना चाहेगा.
“क्या हुआ वहां ” घबराई आवाज में पूछा प्रज्ञा ने
राणा- अभी कहा कुछ हुआ, आगे होगा, उन लडको की मौत जाया नहीं जाएगी
प्रज्ञा- गुस्ताखी माफ़, हुकुम हो तो कुछ कहूँ
राणा- तुम्हे इजाजत मांगने की कब से जरुरत हो गयी
प्रज्ञा- क्योंकि मैं अपने पति से नहीं राणाजी से बात कर रही हूँ इस वक्त
राणा- कहो क्या कहना है .
प्रज्ञा- मैं नहीं जानती आपने क्या फैसला किया है गाँव में, आपने जो निर्णय लिया है उस पर हमेशा की तरह कोई शक नहीं मुझे, पर फिर भी मेरा एक सवाल है , क्या आपको लगता है वो एक लड़का इतने लोगो को मार डालेगा.
राणा- अकेला नहीं था वो, उसकी एक साथी भी थी
प्रज्ञा के सामने राणा ने जैसे बम फोड़ दिया था . कबीर की साथी .......... कौन उसके दिमाग में हलचल होने लगी थी .
राणा- तुम्हारे हाथो की चाय पीने का मन है, छत पर है हम,
राणा आगे बढ़ गया रह गयी प्रज्ञा अपना माथा पकडे, उसके दिल दिमाग में बस एक सवाल था कौन थी कबीर की साथी, या वो लड़की जिसके बारे में कबीर ने उसे इशारा किया था . खैर चाय लिए वो छत पर पहुंची , उसने देखा राणा एक टक चाँद को देखे जा रहा था .
“क्या देख रहे हो उस चाँद में ” पूछा प्रज्ञा ने
राणा- बस तुम्हारी ही बात पर विचार कर रहा था
प्रज्ञा ने उसे कप दिया और बोली- मेरी बात पर
राणा- हाँ, तुम्हारी बात पर, तुम्हारी बात वैसे है गौर करने लायक, उस लड़के के पास पूरा मौका था , तीज वाले दिन यदि वो चाहता तो सुमेर को सबके सामने मार देता, पर उसने ऐसा नहीं किया , उसके कहे शब्द मेरे कानो में आज भी गूँज रहे है
प्रज्ञा- कैसे शब्द,
राणा- उसने कहा था की मैं इसे मारना नहीं चाहता, मेरा कोई बैर नहीं इस से , मैं बस उस अहंकार को हराना चाहता हूँ जो नफरत बनकर तुम सब के दिलो में बैठा है ”
उसकी बाते बहुत गहरी थी , प्रज्ञा, बहुत गहरी, और साथ ही मेरे पास उसपर शक करने का कारण भी है, उसने ये भी कहा था की सुमेर ये ज़ख्म उधार रहा . . ..
प्रज्ञा- वैसे तो आपसे इस विषय पर कोई भी बात करना मेरे अधिकार के बाहर है , मुझे ये भी विश्वास है की आपके हाथो से कभी कोई गलत फैसला नहीं होगा, पर एक सच ये भी है की सुमेर और उसके दोस्त लोग आवारा थे,नालायक थे उनके बहुत से किस्से आप जानते है
राणा- पर थे तो अपने ही , ये सारा गाँव एक परिवार है और मुखिया होने के नाते मुझे सबका सोचना नहीं
प्रज्ञा- वो लड़का बस मंदिर आना चाहता था, ऐसा सुना मैंने
राणा- तुम जानती हो न , हमने कभी किसी में भेदभाव किया नहीं , उस से भी नहीं करते, उसे हमारे पास आना चाहिए था .
प्रज्ञा- सो तो है
राणा- ये अर्जुन्ग्गढ़ वाले हमेशा से ऐसी हरकते करते आये है की फिर खून खराबा ही हुआ है ,
प्रज्ञा ने आगे कुछ नहीं कहा, अपने वो नहीं चाहती थी की उसकी किसी भी बात से राणा को ऐसा न लगे की वो कबीर का पक्ष ले रही थी , बस वो भी उस चाँद को देखती रही .
मेरी आँख अचानक से खुल गयी , शायद कोइ सपना देखा था मैंने, बदन पसीना पसीना हुआ था , बाहर आके मैंने पानी पिने के लिए मटका देखा पर वो खाली था , शायद नौकरानी उसे भरना भूल गयी थी
मैंने बाग़ का दरवाजा खोला और बाहर आया, चारो तरफ एक ख़ामोशी थी , रात न जाने कितनी बीती थी कितनी बाकी थी, चाँद पूरा रोशन था, कुछ देर खड़ा रहा और फिर वापिस जाने लगा ही था की ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरे कानो ने कुछ सुना, ये कैसी आवाज थी ......................
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#41
बिस्तर पर करवटे बदलते हुए प्रज्ञा गहरी सोच में डूबी थी उसके दिमाग में बस एक लाइन गूँज रही थी .
“राणाजी और मुझ में से किसको चुनोगी तुम ”
“मैं किसे चुनुंगी , मैं अपनी बेबसी को चुनुंगी ” उसने अपने आप से कहा
एक उसका पति था जिसके साथ २०-२२ साल का नाता था एक उसका दोस्त था जिस से कुछ महीनो की जान पहचान में वो इतना जुड़ गयी थी , प्रज्ञा के मन में द्वंद शुरू हो गया था जिसका अंत न जाने कैसे होने वाला था .
उसने आँखे बंद कर सोने की कोशिश की पर फिर उसका ध्यान सुबह आये फोन की तरफ चल गया, वो और गहरी चिंता में डूब गई, ऐसा कैसे हो सकता है, सब गलती मेरी ही हैं मैंने ध्यान नहीं दिया, कहीं कुछ उल्टा सीधा हो गया तो मैं राणा जी को क्या जवाब दूंगी, सोच ने प्रज्ञा को बहुत परेशां कर दिया था .
रात जवान थी, हवा ठहरी थी पर फिर भी ये जंगल , कसम से मुझे हमेशा लगता था ये अपने आप में बहुत कुछ छुपाये हुए था , ये ऐसी आवाजे थी जैसे कोई कुछ बजा रहा हो, और सब से पहला सवाल भी यही था की इतनी रात को कोई क्यों संगीत यंत्र बजाएगा. और हमारा चुतियापा तो देखो, जहाँ किसी का कुछ लेना देना नहीं , हमें वहा नाक घुसानी जरुरी .
उस लहर का पीछा करने लगा मैं, जैसे वो खींच रही थी मुझे अपनी और, उस धुन में एक अजीब सा सकूं था जैसे सब कुछ भूल कर बस मैं उसे ही सुनता रहूँ, जैसे मेरे अकेलेपन का करार हो ऐसा लगा मुझे, जैसे कोई हिरन कुलांचे भर रहा हो ऐसे उछलते हुए, उस धुन में बहते हुए मैं बस दौड़े जा रहा था ,
मुझे होश आया जब अचानक से वो धुन बंद हो गयी, अब मैं हुआ हक्का बक्का, क्योंकि उस चाँद की रौशनी में मैंने जो देखा , मुझे पसीना सा आ गया मैंने देखा मैं उस जगह खड़ा हूँ जहाँ दिन में मेघा मुझे लायी थी .
मेरे साथ न जाने क्या हो रहा था , ये क्या पहेली थी दिन में मेघा मुझे यहाँ लाती है और रात को ये अनजानी धुन जो बस मुझे खींच लायी थी इस जगह पर, मैंने एक गहरी सांस ली और सीढिया चढ़ने लगा, आखिर ये कैसी डोर थी , जिसका मैं बस एक सिरा था, मेरे दिमाग में पहला ख्याल था ये सब उस दिन से शुरू हुआ था जब मैं पहली बार मेघा से मिला था ,
सबसे बड़ा सवाल ये की इस वक्त मेरा यहाँ होने का का प्रयोजन था, क्या ये कोई जाल था जिसमे मैं फंसे जा रहा था, ये सब सोचते हुए सीढिया चढ़कर मैं ऊपर गया मैंने देखा ऊपर फर्श के बीचो बीच कोई बैठा है , चाँद की रौशनी में उसके काले कपड़ो में लगे शीशे चमक बिखेर रहे थे,
“कौन है ये, ” मैंने खुद से पूछा
उसकी पीठ मेरी तरफ थी, मैं कुछ कदम उसकी तरफ बढ़ा की एक तेज स्वर ने मुझे हिला दिया, ऐसा संगीत जो आपको मंत्रमुग्ध कर दे, आपके कदमो को थाम दे कसम से आप यदि देखते उस पल को, आप जीते उस पल को तो महसूस करते की मैं क्या देख सुन रहा था .
चांदनी जैसे नाच उठी थी, उस ख़ामोशी ने उन बिखरे स्वरों से जैसे लय लगा थी,उस जगह पर जिन्दगी को महसूस किया मैंने, एक के बाद एक दिए जल उठे थे जैसे दिवाली की रात हम अपने घर, अपनी छत अपनी सीढियों, को सजा देते है रौशनी के दियो से ठीक वैसे ही वो जगह झिलमिला उठी थी , ऐसा विश्म्य्कारी द्रश्य देख कर कोई और होता तो ना जाने क्या कर बैठता पर मेरी जिन्दगी में तो जैसे रोज का ही ये ड्रामा हो गया था ,
“सुनो, कौन हो तुम ” मेरे मुह से आखिर निकल ही गया .
उसकी धुन थम गई, पीछे मुड कर देखा उसने
“अंधेरो में यूँ भटकना नहीं चाहिए, अक्सर ये अँधेरे लील जाते है इंसानों को , ये अँधेरे गहरे होते है उजालो से अपने अंदर बहुत कुछ छुपाये रहते है , ” एक सर्द आवाज मेरे कानो से टकराई
वो एक औरत थी, बेशक चांदनी थी पर मैं उसके चेहरे को ठीक से देख नहीं पा रहा था उसके घूँघट की वजह से.
“बेशक, आपने सही कहा पर न जाने क्यों इन अंधेरो से मेरा पुराना वास्ता है , ऐसा लगता है मुझे ” मैंने कहा
वो- वाह क्या बात है , बहुत खूब कही, तो फिर ये भी जानते होंगे इन अंधेरो ने क्या छुपाया है अपने अन्दर.
मैं- फिलहाल तो मैं जानना चाहता हु, आप कौन हो, यहाँ क्या कर रहे हो
वो - उफ़ ये सवाल, जानते हो ये जो सवाल होते हैं न अपने आप में जवाब में होते है बस लोग समझ नहीं पाते
बेपरवाही से उसने फिर से अपने रुबाब को उठा लिया और जैसे उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा था मेरी मोजुदगी से, अपनी आँखे मूंदे वो बस अपनी धुन बजाती रही . मैं वाही बैठ गया बस उसे देखता रहा , जैसे बरसो की जान पहचान हो.
कुछ लम्हों के लिए मेरी आंख भी बंद सी हो गयी, और जब आँख खुली तो मैंने कोसा खुद को , गुस्सा बहुत आया मुझे, मैंने एक मौका खो दिया था , दिन निकल आया था सूरज चमक रहा था , वहां कोई नहीं था कुछ नहीं था, सिवाय उस रुबाब के जो गवाह था की ये सब कोई ख्वाब नहीं था, हकीकत थी . ऐसी हकीकत जो मुझे परेशां कर रही थी .
बस एक रुबाब उसके सिवा कुछ नहीं , न उन जलते दियो के निशान न कोई और कुछ नहीं , अब करे तो क्या करे, कहे तो किस से कहे , बताये तो किसे बताये , सवाल बहुत जवाब एक भी नहीं , वो कौन थी , उसका ये रुबाब बजाना क्या संकेत था, जी चाहता था सामने उस दिवार पर सर पटक लू अपना, कोई तो आये मेरी उलझन सुलझाए .
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#43
प्रज्ञा को उसके यहाँ होने की बिलकुल उम्मीद नहीं थी , उसे देखते ही उसका गुस्सा जैसे छूमंतर हो गया .
“छोड़ो मुझे, मैं नाराज हु तुमसे ” वो बोली
“जानती हु, ” जवाब आया
प्रज्ञा- अभी तुम्हारे कालेज से होकर आ रही हु, ये क्या किया हुआ है तुमने, जानती हो न डॉक्टर की पढाई है तुम्हारी और तुम हो की क्लास से गायब हो जाती हो, ये तो शुक्र है की तुम्हारे कालेज से फ़ोन आया तो हमें मालूम हुआ वर्ना हमें तो खबर नही की हमारी होनहार औलाद पीठ पीछे क्या कर रही है ,
“आपकी नाराजगी समझती हु माँ ” उसने कहा
प्रज्ञा- तो फिर बताओ क्लास बंक करने का क्या कारन है
“कोई कारण नहीं , ” उसने कहा
प्रज्ञा- तुम्हारी यही गोल मोल बाते हमें समझ नहीं आती , कभी सीधे मुह जवाब भी दे दिया करो हमारा बस एक ही सपना है कितुम डॉक्टर बनो ,अब माँ- बाप का औलाद के लिए सपने देखना भी गुनाह हो गया क्या. जानती हो जबसे तुम्हारे कालेज से फोन आया है , कितना परेशां थी मैं , ये तो शुक्र करो तुम्हारे पिता का रुतबा है वर्ना अब तक नाम कट गया होता तुम्हारा.
“कब तक मुझे माँ-बाप के नाम के सहारे जीना पड़ेगा मेरा खुद का वजूद जैसा कुछ है या नहीं ” उसने जैसे शिकायत की
प्रज्ञा- मालूम नहीं आजकल के बच्चो को क्या हो गया है , खैर, ये समय नहीं है इन बातो का हम बस इतना चाहते है की तुम अपनी पढाई पर ध्यान दो. तुम जानती हो गाँव के हालात , कुछ बताने, समझाने की जरुरत नहीं, शहर में इसी लिए तो भेजा है की तुम सुरक्षित रहो. दुश्मनों की नजरो से दूर रहो. हम तुम्हारी सुरक्षा में कुछ लोग तैनात कर देते है
“ये ज्यादती है माँ, ” तुनकते हुए उसने कहा
प्रज्ञा- जानते है हम पर क्या करे, काश तुम समझ सकती
“मैं समझती हूँ माँ, मैं सब समझती हूँ पर आप भी जानती है ये जिन्दगी मुझे कैसे जीनी हिया , ये बंदिशे रोक नही पाएंगी मुझे ” उसने प्रतिकार किया
प्रज्ञा- तब तुम खुद जिम्मेदार होंगी अपने पिता को जवाब देने के लिए, बेशक ये बंदिशे तुम्हे सजा लगती है पर यकीं मानो तुम्हारे भले के लिए ही है ये सब .
पर इस से पहले प्रज्ञा अपनी बात पूरी कर पाती उसकी बेटी उठ खड़ी हुई और गुस्से से दरवाजे को बंद करते हुए बाहर चली गयी .प्रज्ञा बस उसे देखते रह गयी,जवान बच्चो पर माँ- बाप ज्यादा जोर चला भी तो नहीं सकते
दरसल अब प्रज्ञा भी कहे तो क्या , करे तो क्या , सब कुछ उलझ गया था उसकी जिन्दगी में इतनी मुसीबते आ गयी थी , पर इन मुसीबतों की कुछ अच्छी बाते भी थी, इसने सबको आपस में जोड़ा हुआ था , प्रज्ञा, कबीर, मेघा और तमाम लोगो को . पर वो ये नहीं जानते थे की नियति उनकी तकदीरो में ऐसे लेख लिखना शुरू कर चुकी है जो उनकी जिंदगियो को ऐसे भंवर में फंसा देगा , जिसे पार करना बहुत मुश्किल होगा .
ठाकुर- मास्टर, कबीर का कुछ पता चला
मास्टर- नहीं हुकुम, जहाँ जहाँ संभवना थी तलाश किया पर नहीं मिला हाँ एक खबर और है , रतनगढ़ के मंदिर पर बिजली गिर गई .
ठाकुर के पेशानी पर बल पड़ गए ये खबर सुनकर.
“कबीर को तलाश करो , उसे लेके आओ यहाँ ” वो बस इतना कह पाया.
इधर कबीर को कहाँ चैन था , एक तो रात वाली घटना फिर मेघा का नहीं मीलना दिमाग को हिला गया था, अब मेघा को कहाँ तलाश करूँ, उसका कोई और ठिकाना मालुम भी तो नहीं उसे, हार कर वो उसी जगह आ गया सब कुछ वैसा ही था जैसे वो छोड़ कर गया था , दिन के उजाले में उसने और छानबीन करने का सोचा, जबकि कुछ घंटे पहले वो कर चूका था .
वो बड़े गौर से उन तस्वीरों को देख रहा था , चेहरे पहचानने की कोशिश कर रहा था , पर बेकार वक्त की मार पड़ चुकी थी उन चेहरों पर, आखिर कुछ सोचकर उसने अपनी जेब से वो फ़ोन निकाला जो प्रज्ञा ने उसे दिया था . उसने फ़ोन किया
“कबीर, तुम ठीक तो हो न , ” पहली साँस में प्रज्ञा पूछ बैठी
मैं- ठीक हूँ , सुनो मुझे अभी मिलना है
प्रज्ञा- मैं जल्दी ही आउंगी कबीर, थोड़े से काम निपटा लूँ
मैं- मेरी बात समझो मुझे तुम्हारी मदद की जरुरत है
प्रज्ञा- चंपा से बात कराओ, जो भी तुम्हे चाहिए मी जायेगा
मैं- तुम समझ नही रही हो, मेरे पास कुछ है , दरसल मेरी मदद सिर्फ तुम ही कर सकती हो, प
प्रज्ञा- कबीर, मैं इस वक्त होटल में हूँ , मुझे समय लग जायेगा आने में , इतना इंतजार करना होगा
मैं- नहीं मुझे भी तुम्हे लेके शहर ही जाना था , मैं जल्दी ही होटल पहुँचता हु ,
मैंने फोन रखा और तुरंत ही शहर के लिए निकल गया . और पहुचते ही सीधा होटल गया मुझे देखते ही वो खुश हो गयी
प्रज्ञा- ओह, कबीर,
मैं- सुनो तुम्हे मेरे साथ चलना होगा,
प्रज्ञा- कहाँ
मैंने झोले से वो तस्वीरे निकाली ,
मैं- मुझे मालूम करना है की ये किसकी है
प्रज्ञा- पर इनकी हालत तो बहुत खस्ता है
मैं- तभी तो तुम्हारी मदद चाहिए, कोई स्टूडियो वाला, कोई फोटोग्राफर ढूँढना होगा जो इन्हें देखने लायक बना दे.
प्रज्ञा- तुम्हारा क्या लेना देना है इस तस्वीर से .
मैं- मालूम नहीं , पर कुछ तो सम्बन्ध है .
मैं और प्रज्ञा ने कई जगह चक्कर लगाये पर काम नहीं बना , तस्वीरो की हालत बहुत बुरी थी , पर तभी मुझे एक बात और सूझी मैं प्रज्ञा को लेकर हमारे वकील के घर गया पर वहां एक मुसीबत और जैसे हमारा ही इंतज़ार कर रही थी .
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
44
मालूम हुआ की कुछ रोज पहले ही उसकी मौत हो गयी है , मैंने अपना माथा पीट लिया. जिस भी रस्ते पर चलने की कोशिश करता था तक़दीर उसे झट से बंद कर देती थी , खैर हम वापिस होटल आये. प्रज्ञा ने खाना मंगवा लिया, भूख तो लग ही रही थी तो मैंने भी छक से खाना खाया .
प्रज्ञा- मैं तुम्हे छोड़ दूंगी थोड़ी देर में निकलते है
मैं- ठीक है ,
प्रज्ञा- पर मैं तुमसे बहुत कुछ पूछना चाहती हु,
मैं- बताता हूँ,
मैंने उसे सब बाते बताई बस उस नयी जगह के बारे में छुपा लिया. बहुत देर तक वो सोचती रही उन तस्वीरों को देखती रही
“कुछ दिखाऊ तुम्हे ” मैंने कहा
प्रज्ञा- क्या
मैंने जेब से सोने का एक छोटा टुकड़ा निकाला और उसकी हथेली पर रख दिया
प्रज्ञा- ये कहाँ से लाये तुम
मैं- मिला मुझे
प्रज्ञा- कबीर, सोने का मिलना शुभ नहीं होता दुर्भाग्य लाता है , जिसने भी इसका लालच किया है बर्बादी को गले लगाया है , जहाँ से मिला था ये वाही फेक देना इसे,
मैं - जानता हु पर तुम इसे देखो गौर से. क्या ये पुराना सोना नहीं है
प्रज्ञा ने उसे देखा और फिर बोली- तुम्हे ये कहाँ से मिला,
“बस ऐसे ही रस्ते पर मिला,” मैंने झूठ बोला
प्रज्ञा- जानते हो पड़े सोने को सुभ क्यों नहीं मानते
मैं- नहीं , तुम बताओ
प्रज्ञा- लोगो का ऐसा मानना है बल्कि ऐसी कई धारणाओं में बताया है की सोने का इस्तेमाल तंत्र विद्या में किया जाता है , कारण इसकी शुद्धता, सोना, मांस और शराब तन्त्र में इनका इस्तेमाल इसलिए ही करते है क्योंकि ये शुद्ध होते है . इसी अंदेशे के साथ की कही ये तंत्र में इस्तेमाल न हुआ हो , लोग परहेज करते है मिले सोने को अपनाने से
मैं- हम्म
प्रज्ञा- कबीर, परेशानिया सबके जीवन में होती है , मेरे तुम्हारे, लेकिन मुझे ऐसा लगता है तुमने एक सुनी सुनाई कहानी को बहुत ज्यादा सीरियस ले लिया है ,
मैं- मेरा तुमसे मिलना, मेरी जिन्दगी में यूँ तुम्हारा आना , हमारा रिश्ता ऐसा होना क्या लगता है ये सब कहानी है , मेरी हकीकत जानते हुए भी तुम मेरी जिन्दगी में ऐसे आई की ये जिन्दगी , इस जिन्दगी का अहम् हिस्स्सा तुम हो गयी हो. मेरे होने में तुम्हारा भी हिस्सा है प्रज्ञा, क्या ये भी एक कहानी है, और मेरा ये मानना है की हर कहानी कभी न कभी तो हकीकत रही ही होगी,
और ये कहानी, अब मेरी जिन्दगी का एक ऐसा सच बन चुकी है जिसको जानना मेरे लिए बहुत जरुरी है , मेरे भाग ने मुझे जब इस से जोड़ा है तो कुछ सोच कर ही जोड़ा होगा न
प्रज्ञा- जानते हो कबीर,तुम मुझे इतने अच्छे क्यों लगते हो क्योंकि तुम मैं हूँ मैं तुम्हारे अंदर खुद को देखती हूँ,
कुछ देर बाद हम लोग शहर से निकल गए. सुनी सड़क पर गाड़ी सरपट दौड़ रही थी , मैंने शीशा थोडा निचे किया और हवा को आजादी दी मेरे चेहरे को चूमने की, मैंने प्रज्ञा से कहा की मुझे टूटे चबूतरे पर छोड़ दे दरअसल मैं उसी जगह फिर जाना चाहता था , वो मान नहीं रही थी पर मैंने जिद की और वही उतर गया .
अँधेरे में मैं टहलते हुए उसी जगह पर आ गया पर वहां ख़ामोशी छाई हुई थी , मैंने कमरे को खोल कर देखा, और फिर बाहर आकर सीढियों पर देखा , एक गहरी ख़ामोशी जिसे बस मेरी सांसे चुनोती दे रही थी ,सब कुछ मेरे सामने हो कर भी छुपा हुआ था, करने को कुछ था नहीं मैं थोड़ी देर जमीन पर लेट सा गया . खाना थोडा ज्यादा खा लिया था मैंने तो नींद सी आ गयी.
न जाने कितनी देर मैं सोया था पर उसी रुबाब की आवाज से मैं जाग गया, मेरी आँखों के सामने वही नजारा था वो ठीक उसी जगह बैठी थी , बस आज कोई दिए नहीं जल रहे थे, क्या मालूम उसे मेरी मोजुदगी का भान था या नहीं या उसे परवाह नहीं थी , बस वो खोयी थी खुद में
और मैं इतंजार करता रहा की कब वो उसे बजाना बंद करेगी, पर जैसे घंटे बीते वो न रुके .
और फिर जैसे ही चाँद को आगोश में लिया बादलो ने उसकी उंगलिया हट गयी रुबाब से.
“दुसरो की चीज़े लेना ठीक नहीं होती , ” उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा
तो उसे मालूम था की मैं वहां हु,
“माफ़ी चाहूँगा ” कहते हुए मैं उसके पास गया और वो सोने का टुकड़ा उसके सामने रख दिया
वो- ufffffffffff ये इन्सान की मोहमाया, न जाने क्यों हम इन बेतुकी चीजों पर मरते है , मेरा जो लिया है वो दो
मैं- क्या ,
वो- तस्वीरे
मैं- ओह, मैंने झोले से वो तस्वीरे निकाली और रख दी,
“मैं बस मालूम करना चाहता था की ये किसकी तस्वीरे है ” मैंने कहा
वो- हम्म, वो क्या करोगे जानकर तुम, सुनो तुम्हे सोना चाहिए तो ले लो यहाँ से और फिर मत आना यहाँ , मैं हर बार इतनी सरल नहीं होती .
मैं- लालच होता तो पहले ही ले गया होता इस माया को,
वो- क्या चाहिए फिर
मैं- अधूरी कहानी पूरा करना चाहता हूँ
मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर ना जाने क्यों हंसी आ गयी ,और फिर वो पागलो की तरह हसने लगी , जोर जोर से बहुत देर तक हंसती रही फिर बोली- इस जहाँ में कुछ भी मुकम्मल नहीं है , न मैं न तुम न वो बाते, न फरियादे, न मोहब्बते, सब एक मोह है , तुम जाओ यहाँ से और अपनी उस माशूका को भी कह देना की यहाँ न आये, एक और प्रेम कहानी की शुरुआत यहाँ से हो मैं नहीं चाहती,
“और ये जो ताबीज तुमने गले में पहना है , इसका बोझ नहीं उठा पाओगे तुम, जहाँ से लिया था वही रख देना उसे, ” उसने अपनी बात पूरी की
मैं- कौन हो आप,
वो- दास्ताँ जिसे भुला दिया .............
दो पल के लिए मेरी पलके झपकी और वहां कोई नहीं था , सिवाय मेरे,
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#45
कोई और होता तो पागल हो जाता, मर जाता पर ये मैं था अपने आप से जूझते हुए कहे तो किस से कहे, ले देकर बस एक प्रज्ञा थी और एक मेघा थी , जो न जाने कहाँ गुम थी , आँखों आँखों में रात कट गयी , सुबह से भी कोई खास उम्मीद नहीं थी , मैं चबूतरे पर आया, उसने कहा था उस ताबीज को मैं वही रख दूँ , पर वहां जाके ना जाने क्यों मैंने अपने निर्णय बदल दिया ,
जरुर इस चबूतरे का कुछ तो सम्बन्ध था उस औरत से, पर बस एक टूटे चबूतरे से भला क्या रिश्ता रहा होगा, मैंने गौर किया और पाया की मेरे जीवन में भी इस चबूतरे का नाता था, चबूतरा मंदिर, और अब वो नयी जगह , एक समानता और थी इन तीनो जगहों में दिए, दो जगह दिए जलते थे एक जगह नहीं , और फिर मुझे उस जगह का ध्यान भी आया जो मेरे गाँव में थी वहां पर भी मुझे एक दिया जलता मिला था , जैसे ये कोई सेरिज हो, अवश्य ही कुछ तो रहा होगा उस जगह से भी लेना देना , मैं तुरंत ही गाँव के लिए निकल पड़ा
पर वहां जाकर भी निराशा ही हाथ लगी कुछ नहीं था सिवाय जमीन के , मेरे सर में बहुत दर्द हो रहा था , मुझे मेघा की जरुरत थी , पर जरुरत के समय कौन किसे मिलता है , गाँव में जाके मैं दुकानों पर बैठ गया ,पर अब ये गाँव भी कहाँ अपना रहा था , दुनिया बस उस जंगल और दो गाँवो के बीच सिमट कर रह गयी थी ,
“उसका बोझ तुम उठा नहीं पाओगे ” उसके कहे शब्द मेरे कानो में गूँज रहे थे आखिर क्या मतलब था उनका, मैंने ताबीज को गले से उतार कर हथेली में रखा, मुश्किल से बीसों ग्राम का होगा या तीस का तो फिर क्या बोझ था उसमे, मैंने लोकेट खोल कर उन दो तस्वीरों को देखा , पर क्या देखा, देखने लायक थी ही नहीं वो.
मौसम बदल रहा था बारिशे ठंड की तरफ बढ़ रही थी और हमारी उलझन थी की कोई सुलझाता नहीं था .
“भैया, दो समोसे और एक चाय, ”
ये आवाज सुनते ही जैसे मैं घबरा गया मुझे सपनो में भी दूर दूर तक उम्मीद नहीं थी मैं मेरा मतलब अब क्या कहूँ , मैंने नजर उठा कर देखा, वो मेरे सामने खड़ी थी .
रात वाले कपड़ो से बिलकुल अलग, उसे देख कर लगा की वो बहुत अमीर होगी ,
“आप यहाँ कैसे ” मैं बस इतना कह पाया
“क्यों, यहाँ क्या ठाकुरों का ही आना जाना है , ” उसने मेरे पास बैठते हुए कहा .
मैं- नहीं मेरा मतलब वो नहीं था .
वो- हाँ, अक्सर मैं कुछ खाने पीने इस बाजार आ जाती हु, पुराना नाता है , स्वाद लगा हैं यहाँ का जुबान को ,
उसने मेरे हाथ में लॉकेट देखा और बोली- मैंने कहा था न इसे वहां छोड़ देना
मैं- नहीं, मैं पहनूंगा इसे
वो- किसी ने तुम्हे बताया नहीं की हर चीज़ की कीमत होती है चूका देगा तू
मैंने उसको बड़े गौर से देखा, एक अजीब सी बेतकल्लुफी थी, उसने माथे की लट को हटाया और समोसे के टुकड़े को होंठो से लगा लिया.
मैं- क्या कीमत है इसकी, कितने का है .
वो - पैसे ही कीमत नहीं होती बरखुरदार
मैं- तो क्या है कीमत इस छोटी सी चीज़ की
मैंने उसके अहंकार पर चोट करते हुए कहा
उसने चाय की चुस्की ली और बोली- अच्छी कोशिश है पर मुझे कोई अहंकार नहीं , कोई मोह नहीं
न जाने कैसे वो समझ गयी थी मेरे अंदेशे को
वो- मेरे एक सवाल का जवाब दे,
मैं - जी,
वो- तू जान दे सकता है किसी के लिए
ये एक अत्याप्र्तियाषित सवाल था ,मैं क्या कहता अब उसे
मैं-निर्भर करता है , अगर मेरे जान देने से किसी की जान बचती है तो बेशक
वो-उफ्फ्फ ये आदर्श भरी झूठी बाते, ये ज़माने के तमाम अफसाने
मैं- मैं आपको जानना चाहता हु, आपके बारे में मेरा मतलब
वो- कुछ नहीं बताने को , कहने को तो मैं ही तुम हूँ तुम ही मैं हु पर ये सब बाते है , सच तो ये है मुसाफिर तुम हो मुसाफिर हम है ,
उसके चेहरे पर एक भाव आया जिसे मैंने पकड लिया
मैं- मंदिर में वो भेस करके आप ही आती थी न, आप ही थी वो , आप ही थी न
उसने मुस्का कर मुझे देखा और बोली- मैं नहीं चाहती थी की तुम्हारी मासूमियत नष्ट हो, तुम्हारी पवित्रता बनी रहे, मैं नहीं चाहती थी की इन हाथो पर और खून लगे, बेशक ये हाथ पहले ही खून से रंगे है .
मैं हैरान हो गया, वो सब जानती थी सब कुछ
“जब इतना जानती हो तो ये भी जानती होगी की क्या परिस्तिथि थी वो ” मैंने कहा
वो- मैंने कहा था न मैं इतनी भी सरल नहीं रहती, खैर मेरे जाने का समय हो गया. खैर, अब जब तुमने फैसला किया है ये लॉकेट नहीं लौटने का तो इसकी कीमत चूका देना .
मैं- पर क्या
वो- वहां जाओ जिसे सबने भुला दिया, जहाँ से अलख जगी थी जहाँ से प्रीत बाँधी गयी थी , वहां जाके धागा बांधना
उसने इतना कहा और मुड कर चल पड़ी, मैं बस आवाजे देता रह गया
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12-07-2020, 12:16 PM,
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desiaks
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#46
कभी सोचा नहीं था की जिंदगी ऐसी परीक्षा लेगी, जब सारी दुनिया अपने आप में मग्न थी मैं इस अजीब से चुतियापे में उलझा था जिसके बारे में सब कुछ अधुरा था ,जो भी मिलता था उसका अपना ही रंडी- रोना था . मैं बस ये सब सोच ही रहा था की फोन बज उठा मैंने देखा प्रज्ञा थी .
मैंने फ़ोन उठाया
“कैसे हो ” पूछा उसने
मैं- जैसा तुम छोड़ के गयी थी
वो-मेरा भी हाल कुछ तुम्हारे जैसा ही है , मंदिर दुबारा बनाने के लिए निर्णय हुआ है आज, उसी में व्यस्त थी
मैं- अच्छी बात है मैं भी थोडा योगदान देना चाहूँगा अगर ......
मैंने जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी
प्रज्ञा- समझती हूँ , पर वो सब राणाजी का मामला है और तुम जानते हो की मैं उनके मामले में दखल नहीं देती .
मैं- एक अच्छी पत्नी की यही निशानी होती है ,
प्रज्ञा- और सुनाओ, क्या हाल है तुम्हारी वाली का, मिले क्या उस से
मैं- नहीं, मिली नहीं वो , तुम मिलना चाहोगी उस से
वो- क्यों नहीं, मैं भी तो देखू, कौन है वो
उसने हँसते हुए कहा
मैं- तुमसे मिलने की हसरत है
वो - अभी तो मुमकिन नहीं
मैं- जानता हु , पर अब हसरतो पर किसका बस
वो- ये हसरत जान ले जाएगी तुम्हारी
मैं- तुमने पहले ही ले ली जान हमारी
वो- अच्छा, तो ये बाते बोलकर ही पटा लिया किसी बेचारी को
मैं- सच ही तो कहा, इस दिल में जितना हिस्सा तुम्हारा है उतना किसी और का हो नहीं सकता , ये बात और है तुम किसी और की हो .
प्रज्ञा- सच तो यही है मेरे दोस्त. मैं तुम्हारी हमनवा तो हो सकती हु हमसफ़र नहीं, तुम्हारी अपनी मजबुरिया है मेरे अपने बंधन है .
मैं- ये तुम्हारा बड़प्पन है , तुमने इस काबिल समझा मुझे
प्रज्ञा- क्योंकि मैं तुम्हारे अन्दर खुद को देखती हु,
मैं- फिर कब मिलोगी,
वो- देखती हु, वैसे कबीर मैं तुमसे एक वादा करती हु, की चाहे जो भी हालात रहे जब तुम उस लड़की से शादी करोगे तो मैं जरुर आउंगी , तुम्हारा गठबंधन मैं करुँगी
मैं- ऐसा कुछ मत कहो जो बूते के बाहर हो
वो-तुम जानते हो न मैं कौन हु, बेशक अब हमारे जिस्मानी तालुक्कात है पर अगर मैं कभी तीसरी औलाद पैदा करती तो मेरी दुआ यही होती की वो तुम जैसी होती, ये रिश्ते नाते तो सब इंसानों के बनाये है कबीर, पर तुम और मैं समझते है अपने इस रिश्ते को ,
मैं- अब इतना भी मत कहो, मैं पिघलने लगा हु, तुमसे मिलने की हसरत और बढ़ जाएगी
वो- मेरी आदत मत डालो
मैं- क्या करू, तुम्हारे सिवा मेरा है ही कौन
वो- अपनी प्रेमिका के साथ भी रहो, उसे समय दो,
मैं- क्या मालूम कब दीदार होगा उसका
वो- चलो रखती हु, फिर बात करते, जल्दी ही मिलूंगी .
फ़ोन तो रख दिया था उसने पर मेरे जेहन में बहुत देर तक बनी रही प्रज्ञा
दूर कही,
मेघा अपना झोला उठाये आ पहुंची थी उसी जगह पर ,न जाने क्या ढूंढ रही थी वो वहां पर अँधेरा घिर सा आया था उसने जेब से एक दिया निकाला और रौशनी की , मेघा न जाने क्या सोच रही थी , फिर उठ कर वो उस कमरे के अन्दर गयी , कुछ नहीं था सिवाय अँधेरे के .
“क्यों लगता है की इस जगह से कोई सम्बन्ध है , अरे ये क्या रखा है ” मेघा ने अन्दर रौशनी करते हुए कहा
उसकी नजर उस रुबाब पर पड़ी, उसने उसे हाथो में लिया
“ये कौन लाया यहाँ ” अपने आप से सवाल किया उसने और उस रुबाब को बाहर ले आई, उसकी उंगलियों ने छेड़ दिया किसी धुन को. ऐसा नहीं था की मेघा ने पहले कभी रुबाब बजाया वो पर जैसे वो रुबाब खुद खेल रहा था उसकी उंगलियों से ,
“किसी ने बताया नहीं तुझे छोरी, दुसरो की मिलकियत में चोरी छिपे नहीं आते, और न दुसरो की चीजे छेड़ते है, मैंने उस लड़के को कहा था की तू यहाँ नहीं आणि चाहिए , उसने नहीं बताया तुझे, ” गुस्से से भरी आवाज जैसे मेघा की रीढ़ में उतर गयी .
उसने पीछे मुड कर देखा और उसी पल उसके हाथ से दिया निचे गिर गया .
“कौन है आप ” उसने धीरे से पूछा
“मेरी छोड़ , अपनी देख , ये मोहब्बत की जगह है और तेरी कोई जरुरत नहीं यहाँ ” जवाब आया
मेघा- मैंने भी इसी जगह को शायद इसलिए ही चुना ताकि ज़माने से दूर अपने प्रेम से मिल सकू
वो मेघा के पास आई और बोली- धडकने तो कुछ और कह रही है तेरी, मुझे कुछ और बू आ रही है , जो खेल तू खेल रही हैं न , कीमत जानती है उसकी,
मेघा- क्या कह रही है आप
वो- उफ्फ्फ ये खूबसूरत चेहरों की झूठ बोलने की कला. चल मैं ही बताति हु, सप्त सिद्धि के बारे में बात कर रही हूँ मैं
जैसे ही उसने मेघा के सामने ये बात कही, मेघा के चेहरे का नूर उड़ गया
मेघा- आपको कैसे
वो- मेरी छोड़ , बताऊ तुझे तेरे छल के बारे में, तू क्या जानेगी मोहब्बत को तू तो छलिया है ,
मेघा ने अपना सर निचे झुका लिया
वो- मोहब्बत, बस मजाक बनाके रख दिया तेरे जैसी ने , जो अपने साथी को अपनी हकीकत नहीं बता पाई, तू क्या हाथ पकड़ेगी उसका, तेरी बाते, तेरे वादे सब बेमानी हो जायेंगे जब परीक्षा की घडी आएगी,
मेघा- मैं उसका साथ कभी नहीं छोडूंगी , जियूंगी तो उसके साथ और मरूंगी तो उसके लिए
वो- मार तो दिया ही था तूने उसे , तुझे क्या लगता है तेरी सिद्धि ने बचाया था उसे, उसकी डोर तू नहीं थाम पाई थी .
मेघा के लिए ये एक और हैरान करने वाली बात थी .
वो- तू नादान लड़की , तेरी अधूरी शिक्षा , और वो पाने की चाह , जानती है कितना बड़ा पाप हुआ था तुझसे .
मेघा- मानती हु मेरी गलती थी , और पश्चाताप की आग में जल भी रही हु,
वो- नसीब तेरा, अब तू जा यहाँ से और मुड कर मत आना
मेघा- आप मुझे नहीं रोक सकती
वो- मैं नहीं मेरी तलवार रोकेगी
मेघा- मैं भी पीछे नहीं हटूंगी फिर, मैं ये तो नहीं जानती की आपका इस जगह से क्या नाता है पर मेरी मोहब्बत की दास्ताँ के किस्से यही लिखे जायेंगे.
वो- तेरा नसीब, छोरी
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