कुंवारी बुर के छेद का आपरेशन-1 - SexBaba
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कुंवारी बुर के छेद का आपरेशन-1

desiaks

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Aug 28, 2015
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मेरा नाम डॉक्टर संजीव है। मैं मूलरूप से असम के एक गांव प्रीतपुरा का निवासी हूँ। प्रीतपुरा गांव में जंगली आदिवासी लोग रहते हैं। जो कि शहर से करीब 150 किलोमीटर दूर स्थित है।

मेरे पिता भी एक डाक्टर थे जो गांव के लोगों का इलाज जड़ी-बूटी से किया करते थे। लेकिन मेरे पैदा होने के बाद उन्होंने गांव छोड़ दिया और शहर में आकर बस गए।

मेरी शिक्षा-दीक्षा असम के दिसपुर शहर में पूरी हुई। पिताजी डाक्टरी के पेशे से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने मुझे भी डाक्टर बनाने के लिए मेरा दाखिला लन्दन में कर दिया।

मैं लन्दन विश्वविद्यालय से डाक्टरी की डिग्री हासिल की और वापस अपने शहर दिसपुर आ गया लेकिन मेरा मन दिसपुर में नहीं लग रहा था क्योंकि लंदन में पढ़ार्इ के दौरान मेरी कर्इ अच्छी लड़कियां दोस्त बन गई थीं और कर्इ लड़कियों के साथ मैंने शारीरिक संबंध भी बनाए थे।
जिससे मेरा मन भी अब लड़कियों के साथ ही काम करने में लगता था।

काफी दिनों तक मैं खाली समय बैठा रहा। फिर मैंने डाक्टरी में शोध करने का विचार बनाया और मैंने दिसपुर शहर में ही स्त्रियों के शोध के सब्जेक्ट से एडमीशिन ले लिया। जहाँ मैंने स्त्रियों के जननांग, गुप्त रोग, प्रसव, नि:सन्तान संबंधित कर्इ प्रकार के शोध किए।

इस दौरान रोज मुझे स्त्रियों के जननांग को छूने को मिलता। तरह तरह के सवाल जवाब पूछने को मिलते।
मेरे साथ एक लड़की भी शोध कर रही थी तो अब मेरे मन भी लगने लगा था, मैं प्रसन्न रहने लगा।

शोध के दौरान तो कर्इ बार लड़कियों से खूब तफरीह होती थी, लड़कियों की बुर एवं दूध में हाथ लगाकर उन्हें छेड़ता और कहता लाओ तुम्हारी ‘वो’ चैक करूँ कि मासिक धर्म समय से क्यों नहीं आ रहा।

इसी तरह मेरे शोध का समय भी पूरा हो गया और पेपर की डेट आ गई, पेपर होने के बाद मुझे डिग्री भी मिल गई।

फिर मैंने दिसपुर में अपना क्लीनिक खोलने का विचार बनाया लेकिन दिसपुर जैसे छोटे शहर में बहुत से क्लीनिक पहले ही खुले हुए थे..
तो पिताजी ने सलाह दी- बेटा क्यों न तुम अपना क्लीनिक प्रीतपुरा गांव में खोलो। क्योंकि गांव अभी शहर के हिसाब से बहुत पिछड़ा हुआ है वहाँ पर कोर्इ क्लीनिक भी नहीं है। लोगों को इलाज के लिए 150 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। या तो वहीं किसी अनपढ़ डाक्टरों के हाथों इलाज कराना पड़ता है। जिससे कर्इ बार लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। अगर तुम अपना क्लीनिक वहीं पर खोल लोगे.. तो साथ में अपनी जमीन की देखभाल भी हो जाया करेगी।

मैंने पिताजी बात मान ली और अगले दिन ही बस पकड़ कर अपने गांव प्रीतपुरा आ गया।
पिताजी भी साथ में गांव आ गए।

मैं पहली बार गांव पहुँचा तो देखा कि गांव में चारों ओर जंगल ही जंगल है। हर तरफ हरे भरे खेत और खेतों के बीच में ही लोग अपनी झोपड़ी बनाकर रहते हैं, दूर-दूर तक कोर्इ नजर नहीं आ रहा।

पिताजी गांव पहुँचते ही लोग डॉक्टर बाबू कहकर हाथ-पैर जोड़ने लगे, वे सभी कहने लगे- जब से आप गए हैं। गांव का इलाज करने वाला कोर्इ नहीं है। कर्इ लोग इलाज के अभाव में अपनी जान गवां चुके हैं।
पिताजी ने सांत्वना देते हुए कहा- अब चिंता करने की कोर्इ बात नहीं है।

वे मुझे लेकर घर की ओर चल दिए। मैंने पहली बार अपना घर देखा। घर बहुत बड़ा बना हुआ था, जिसमें कर्इ सारे कमरे बने हुए थे। लेकिन किसी के न रहने के कारण पूरा अस्त-व्यस्त था।
 
पिताजी ने कुछ लोगों को बुलाकर घर की साफ-सफार्इ करवाई और पूरे गांव के लोगों से कहा- यह मेरे बेटा संजीव है। जो कि लंदन से डाक्टरी करके आया है, अब तुम लोगों का यही इलाज करेगा।
मैंने भी सिर हिलाकर सबको आश्वासन दिया।

अगले दिन पिता जी शहर चले गए क्योंकि मां अकेली थीं, शहर में उन्हें कुछ काम भी था।
पिताजी गांव के लोगों से मेरा ख्याल रखने को कह गए। जिस पर लोग मुझे सुबह-शाम खाना एवं नाश्ता का इंतजाम कर देते थे।
मैंने घर के बाहर वाले कमरे में अपना क्लीनिक बनाया और बगल वाले दो कमरों का दरवाजा भी इसी कमरे में कर दिया.. जिसमें कर्इ सारी मशीनें व इलाज में प्रयोग होने वाले सामान उसमें रखे।
अब मैंने घर के आगे वाले हिस्से को पूरा अस्पताल बना दिया और लोगों का इलाज शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे गांव के अलावा अन्य गांवों के लोग भी मेरे क्लीनिक पर आने लगे। मेरा क्लीनिक खूब चलने लगा और आमदनी भी ठीक-ठाक होने लगी।
क्लीनिक में आने वाली महिलाओं और लड़कियों के हाथ पकड़ता तो करेंट सा दौड़ने लगता। आला लगाने के बहाने लड़कियों के सीने को छूता तो लंड खड़ा हो जाता। कभी-कभी तो लड़कियां को मेरा लंड छू भी जाता था।
ऐसे ही कर्इ दिन बीत गए लेकिन चुदार्इ करने को नहीं मिल रहा था।

एक दिन सुबह पड़ोस की चाची नाश्ता लेकर आई और कहने लगीं- बेटा अगर कोर्इ डाक्टर और हो तो बताओ?
मैंने कहा- क्यों क्या हुआ। मैं हूँ तो.. कहो क्या तबीयत खराब है?
तो चाची बोलीं- नहीं बेटा.. मेरी तबीयत नहीं खराब है मेरी बेटी गीता को दिक्कत है।
मैंने कहा- क्या हुआ गीता को?
तो बोलीं- अब क्या बताऊँ बेटा.. मुझसे कहा नहीं जाता है।
मैंने कहा- अगर बताओगी नहीं तो इलाज कैसे होगा.. और मैं एक डाक्टर हूँ। डाक्टर से कैसा शर्माना?

चाची बोलीं- गीता की शादी तय हो गई है और उसे मासिक धर्म आने के समय पेट में बहुत दर्द होता है और खून भी रुक-रुककर आता है। मैं तो बहुत परेशान हूँ। गीता भी बहुत परेशान है कि कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं है।
मैं पूरी बात समझ गया था, मैंने चाची से कहा- चिंता करने की कोर्इ बात नहीं है, गीता को ले आओ, मैंने स्त्री रोग विशेषज्ञ की ही पढ़ार्इ कर रखी है। किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है, चुपचाप आज दोपहर को लेकर आना।
मैंने चाची को सारी मशीनें दिखाईं और कहा- ये सब मशीनें इसी सबके लिए हैं।
चाची चुपचाप रोती हुई चली गईं।

दोपहर को वे गीता को लेकर क्लीनिक पर आ गईं।
गीता को देखते ही मेरे होश उड़ने लगे, 18 साल की उभार लेती जवानी मेरे सामने खड़ी थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसकी चूचियां शरीर से बाहर निकल कर फट ही जाएंगी।

उसकी गदर जवानी को देखकर मेरा लंड उछाल मारने लगा।
थोड़ी देर तक तो मैं गीता को देखता ही रहा है और उसे चोदने का प्लान बनाने लगा।

चाची बोलीं- बेटा, मैं गीता को लेकर आ गई, अब तुम ही इसका इलाज कर सकते हो।
चाची फिर से रोने लगी।

मैंने चाची को चुप कराया और गीता से मासिक धर्म संबंधित कुछ सवाल पूछे तो गीता ने कोर्इ जवाब नहीं दिया।
मैंने कहा- देखो गीता.. अगर बताओगी नहीं तो इलाज कैसे होगा।
गीता ने शर्म से सिर नीचे कर लिया।
 
मैंने चाची से कहा- शायद यह आपके सामने कुछ नहीं बताना चाहती। आप थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाइए।
चाची बाहर चली गईं।

मैंने गीता का मुँह पकड़ा और ऊपर करते हुए फिर से पूछा- बताओ क्या परेशानी है?
गीता ने फिर कोर्इ जवाब नहीं दिया।

तो मैंने कहा- चाची कह रही थीं कि मासिक धर्म के समय तुम्हारे अन्दर से खून नहीं निकलता है?
तो उसने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
मैंने कहा- जब तक कुछ मुँह से कहोगी नहीं, तो कैसे पता चलेगा।

फिर गीता ने कुछ मुँह से बुदबुदाया।
मैंने कहा- यहाँ कोर्इ नहीं है। दरवाजा भी बंद है.. जोर से कहो।
तो गीता ने कहा- मुझे शर्म आ रही है।
मैंने कहा- तुम्हें शर्माने की कोर्इ जरूरत नहीं है। मैं एक डाक्टर हूँ और डाक्टर का काम लोगों का इलाज करना है।

तब गीता ने कहा- मेरी पेशाब ठीक से नहीं होती है और मासिक धर्म के समय बहुत कम खून निकलता है।
मैंने कहा- यह बहुत ही गंभीर बीमारी है। इसका लिए तुमको इलाज कराना ही होगा।
मैंने चाची को कमरे में बुलाया और कहा- इसका चैकअप करना होगा।

मैं गीता को जहाँ सारी मशीनें लगी थीं उस कमरे में लेकर गया। मैंने गीता से सलवार उतारकर मेज पर लेट जाने को कहा।
गीता ने कोर्इ जवाब नहीं दिया, वह शर्मा रही थी।
मैंने गुस्से से कहा- तुम्हारा चैकअप होगा और कुछ नहीं करूँगा।

तो गीता डर गई और पीछे मुँह करके सलवार का नाड़ा खोलने लगी। वो धीरे-धीरे सलवार को नीचे सरकाने लगी। सलवार के नीचे सरकते ही उसकी गांड दिखने लगी। जिसे देखकर मेरी उत्तेजना बढ़नी लगी।
अब गीता की सलवार खिसक कर उसके पैरों के पास पड़ी हुई थी और गीता पेंटी पहने हुई खड़ी थी। मैं चुपके से गीता के पास गया और उसके कमर पर हाथ रखा.. तो गीता एकदम से उछल गई और आगे की तरफ बढ़कर मेरे हाथों पर अपने हाथ रख दिया।
मैंने उसकी कमर पर हाथ सहलाते हुए गीता से कहा- यहाँ कोर्इ नहीं है.. शर्म मत करो।
मैं अपने हाथों को कमर से सहलाते हुए उसके बुरड़ पर ले जाकर उसकी चड्डी को उतारने लगा।

गीता के सुबकने की आवाज आने लगी, उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे।
मैंने गीता को चुप कराया और कहा- अगर चैकअप नहीं होगा तो इलाज कैसे होगा।

मैंने यह कहते ही गीता की चड्डी पकड़कर नीचे सरका दी।
अब मेरे सामने गीता नंगी खड़ी थी जिसे देखकर मेरा लंड बार-बार झटके मार रहा था और गीता की गांड से बार-बार टच कर रहा था। जिसका अनुभव शायद गीता भी कर रही थी।

फिर मैंने गीता को उठाकर मेज पर लेटा दिया, गीता चुपचाप लेट गई, मैंने उसके पैरों को पकड़ कर फैलाया तो बुर, पंखुड़ियों की तरह आपस में चिपकी हुई नजर आ रही थी।
मैंने गीता की तरफ देखा तो गीता अपनी आंखों की हाथों से बंद किए हुए थी। मैं धीरे-धीरे अपने हाथ उसके पैरों पर फेरते हुए उसकी जांघों की ओर ले जाने लगा तो गीता का हाथ मेरे हाथों को रोकने लगा।
लेकिन मैंने आहिस्ता-आहिस्ता उसके हाथों को नजरअंदाज करते हुए अपने हाथ उसकी दोनों जांघों के मध्य ले गया और उसकी बुर के ऊपरी उभार पर हाथ लगा दिया।
गीता एकदम से उछल गई और मेरा हाथ रोकने का प्रयास करने लगी।
 
मैं उसके हाथ को हटाकर बुर पर हाथ फेरने लगा। फिर मैंने अपनी एक उंगली उसकी बुर की दोनों पंखुड़ियों के बीच रखकर हल्का सा अन्दर को दबाव बनाया तो उंगली दोनों पंखुड़ियों के बीच फंस गई।
तभी एक तेज गंध गीता से बुर से बाहर से ओर निकली जो मेरे नाकों को मदहोश करने लगी। फिर मैं अंगूठे के सहारे बुर की पंखुड़ियों को फैलाने लगा। पंखुड़ियों के फैलते ही गीता की बुर के अन्दर का हिस्सा दिखने लगा। जोकि एकदम लाल था। बुर के ऊपरी हिस्से में एक छोटा सा उभार दिखने लगा.. जिसे लोग भगनासा कहते है। निचले हिस्से में एक बहुत छोटा सा छिद्र दिखार्इ पड़ रहा था।
छिद्र देखते ही मैं समझ गया कि गीता की बुर का छिद्र काफी छोटा है। जिसके कारण गीता न ही ठीक से पेशाब कर पाती है और न ही मासिक धर्म के समय उसकी बुर से गंदा खून निकलता है। जिससे उसको दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

मैंने गीता की बुर के अन्दर उंगली हल्के से अन्दर-बाहर करते हुए कहा- गीता तुम्हारी पेशाब का छेद बंद है.. इसे आपरेशन करके खोलना पड़ेगा।
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गीता आपरेशन का नाम सुनते ही चौंक गई और बोली- नहीं डाक्टर साहब मैं आपरेशन नहीं करवाऊँगी। मुझे बहुत दर्द होगा।
मैंने कहा- बगैर आपरेशन के तुम्हारा इलाज नहीं हो पाएगा।
तो उसने कहा- डाक्टर साहब कोर्इ दूसरा उपाय नहीं है?
मैंने कहा- नहीं इसका तो आपरेशन ही करना पड़ेगा। मैं चाची से बात करके आता हूँ।

मैं बाहर जाकर चाची से झूठ बोला- मैंने गीता का चैकअप मशीन लगाकर कर लिया है। दरअसल गीता की अन्दर की एक नली बंद है.. जो मशीन द्वारा एक छोटे से आपरेशन से खोलना पड़ेगा।
चाची बोलीं- उसमें खर्चा कितना आएगा और समय कितना लगेगा। मुझे तो बाजार जाना है।

मैंने कहा- चाची खर्चा बिल्कुल नहीं आएगा। आप बाजार जाइए.. आपरेशन में करीब एक घंटा का समय लगेगा। जो मैं अभी करके गीता को घर भेज दूंगा।
चाची बाजार के लिए चली गईं और मैंने क्लीनिक को बंदकर अन्दर गीता के पास जाकर बोला- देखो गीता मैंने चाची से बात कर ली है। तुम्हारी पेशाब का छिद्र आपरेशन करके ही खोलना पड़ेगा। वरना शादी के बाद तुम कभी बच्चे को जन्म नहीं दे पाओगी और न ही तुम..
अधूरी बात कहकर मैं रुक गया।
गीता मेरी तरफ मुँह करके मुझे समझने की कोशिश कर रही थी कि और क्या समस्या हो सकती है।
कहानी के अगले भाग में आपको गीता की बुर के छेद के ऑपरेशन की पूरी दास्तान सुनाता हूँ, आप अपने मेल मुझे जरूर भेजिएगा।
 
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