पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे - Page 5 - SexBaba
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
CHAPTER-4
गर्भदान
PART-1
वंश वृद्धि के लिए साधन[/font]



[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]दादा गुरु महर्षि अमर मुनि जी बोले कुमारो गर्भदान एक प्राचीन और स्वीकृत परंपरा है। महाराज उस समय उस प्रस्ताव को सुन कर विवेकहीन थे परन्तु शाही परिवार से जुड़े ऐसे नाज़ुक मुद्दों को गुरुओं, साधुओं और तपस्वियों के साथ साझा करने में सुरक्षा थी।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]प्रत्येक शाही परिवार के पास अपने स्वयं के आध्यात्मिक परामर्शदाता होते थे और उन्होंने राज्यों से संरक्षण प्राप्त होता था। दोनों की ये व्यवस्था परस्पर ज़रूरतों को पूरा करती थी और पीढ़ी दर पीढ़ी वफादारी की कसौटी पर खरी उतरती थी। कभी भी किसी भी राजा ने प्रतिद्वंद्वी राजा के गुरु के साथ खिलवाड़ नहीं किया। गुरु और तपस्वी प्रलोभन से ऊपर थे और सैदेव राजा के हित की बात करते थे उसे शिक्षित करते थे और राजा हमेशा उनका मान सममान करते थे और उनकी सलाह के अनुसार चने का प्रयास करते l[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]गुरु और तपस्वियों और साधुओ ने यौन इच्छा कामनाओ सहित सभी पर अपने कठोर तप और साधना से विजय प्राप्त की थी और इस प्रकार यौन शक्ति और कौशल के लिए वह अधिकानाश तौर पर अनिच्छुक हो होते थे। उनके शरीर में योग, ध्यान, शारीरिक फिटनेस और ऊर्जा प्रवाह के उनके गहन अभ्यास से उनके पास अथाह शक्तिया उनके नियंत्रण में होती थी। उनके परिवार होते थे, लेकिन एक आदमी को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, इसके लिए वे सेक्स केवल संतान के लिए करते थे इसके इतर वे संयम का अभ्यास करते थे और शास्त्रों में इस संयम को शक्ति का एक स्रोत माना जाता है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]गुरुओं के आश्रम शहरो के बाहर नदियों के तट पर तलहटी में, या हिमालय या पर्वतो में और जंगलो में होते थे। कुछ गुरुजन पहाड़ों में आगे बढ़ गए और आध्यात्मिक ऊंचाइयों को हासिल किया, जिससे वे कभी वापिस नहीं लौटे।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]और जो गुरु और ऋषि शाही परिवारों के साथ जुड़े हुए थे, वे उन्हें उचित सलाह देते रहते थे और कभी-कभी ही उन्हें नियोग के लिए भी राज परिवार में याद किया जाता था और किसी-किसी मामले में राजवंश में उनका अच्छा खून कभी-कभी वंश वृद्धि के काम लिया जाता था।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]यह सब महाराजा ने एक राजकुमार के रूप में प्रशिक्षण के तहत जाना और सिखा था। लेकिन उन्हों ने कभी नहीं सोचा था कि उनके साथ ऐसा होगा।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]अनिच्छा से, महाराज इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए थे, लेकिन यह सब चुपचाप किया जाना था।
महाराज ने कहा, "हम महारानी और रानियों को-को विश्राम और यज्ञ के लिए गुरुदेव के आश्रम में भेज देते हैं। वहीँ पर गुरु जी की आज्ञा के अनुसार युवराज के लिए साधन किया जाएगा।"[/font]


[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]तो फिर गुरु जी के परामर्श के छ: नौकरानियों की एक छोटी टीम बनायीं गई उनके साथ 12 पुरुष, महाराज राजमाता और महारानी और अन्य चारो जूनियर रानियों के साथ मेरा 'तीर्थयात्रा' पर जाने का कार्यक्रम बना। इस यात्रा में केवल महाराज, मैं, राजमाता और महारानी ही यात्रा का असली उद्देश्य जानते थे। यात्रा में कुछ रात्रि ठहराव शामिल थे और हमे वहाँ 4 से 6 सप्ताह बिताने के लिए निर्धारित किया गया था और हमे रानियों की गर्भावस्था की पुष्टि होने के बाद ही वापस लौटना था।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]सबसे पहले पूरी टीम को गुरूजी के आश्रम जाना था वहाँ पर महाराजा का एक और विवाह होना तय हुआ ... इसके बाद महर्षि ने मुझे, जूही और ऐना को रुकने का ईशारा किया और महाराज, मेरे पिताजी और अन्य सभी लोग महर्षि से आज्ञा और आशीर्वाद ले कर अपने राज्य चले गए।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]महर्षि बोले आप को वंश वृद्धि के लिए गर्भदान साधन और साधना करनी होगीl[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]शास्त्रों में धर्म के साथ-साथ अर्थ, काम तथा मोक्ष को भी महत्त्व दिया गया है। यहाँ काम को भी नकारात्मक रूप में न मान कर सर्जन के लिए आवश्यक माना गया है। हालांकि साथ ही कहा गया है काम को योग के समान ही संयम और धैर्य से साधना चाहिए। यही कारण है कि प्राचीन भारत में काम की पूजा की जाती थी और मदनोत्सव भी मनाया जाता था, जो मनोहारी और अद्भुत होता था।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]प्रेम और काम का देवता माना गया है। उनका स्वरूप युवा और आकर्षक है। वे विवाहित हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]PART-2
[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]नियम[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]दादा गुरु महर्षि अमर मुनि जी बोले काम, कामसूत्र, कामशास्त्र और चार पुरुषर्थों में से काम की बहुत चर्चा होती है। खजुराहो में कामसूत्र से सम्बंधित कई मूर्तियाँ हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या काम का अर्थ सेक्स ही होता है? नहीं, काम का अर्थ होता है कार्य, कामना और कामेच्छा से। वह सारे कार्य जिससे जीवन आनंददायक, सुखी, शुभ और सुंदर बनता है काम के अंतर्गत ही आते हैं।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]कई कहानियों में काम का उल्लेख मिलता है। जितनी भी कहानियों में काम के बारे में जहाँ कहीं भी उल्लेख हुआ है, उन्हें पढ़कर एक बात जो समझ में आती है वह यह कि-कि काम का सम्बंध प्रेम और कामेच्छा से है।
लेकिन असल में काम हैं कौन? क्या वह एक काल्पनिक भाव है जो देव और ऋषियों को सताता रहता था?[/font]


[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]मदन[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]मदन काम भारत के असम राज्य के कामरूप ज़िले में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका निर्माण 9वीं और 10वीं शताब्दी ईसवी में कामरूप के राजवंश द्वारा करा गया था।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]मदन मुख्य मंदिर है और इसके इर्दगिर्द अन्य छोटे-बड़े मंदिरों के खंडहर बिखरे हुए हैं। माना जाता है कि खुदाई से बारह अन्य मंदिर मिल सकते हैं।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]वसंत काम का मित्र है, इसलिए काम का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है। यानी जब काम जब कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज़ नहीं होती है। वसंत ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की अगन को और भड़काता है। तापमान न अधिक ठंडा, न अधिक गर्म। सुहाना समय चारों ओर सुंदर दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक ये सब प्रीत में उत्साह भर देते हैं। यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। यौवन इसमें अँगड़ाई लेता है। दरअसल वसंत ऋतु एक भाव है जो प्रेम में समाहित हो जाता है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]दिल में चुभता प्रेमबाण: जब कोई किसी से प्रेम करने लगता है तो सारी दुनिया में हृदय के चित्र में बाण चुभाने का प्रतीक उपयोग में लाया जाता है। प्रेमबाण यदि आपके हृदय में चुभ जाए तो आपके हृदय में पीड़ा होगी। लेकिन वह पीड़ा ऐसी होगी कि उसे आप छोड़ना नहीं चाहोगे, वह पीड़ा आनंद जैसी होगी। काम का बाण जब हृदय में चुभता है तो कुछ-कुछ होता रहता है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]इसलिए तो बसंत का काम से सम्बंध है, क्योंकि काम बाण का अनुकूल समय वसंत ऋतु होता है। प्रेम के साथ ही बसंत का आगमन हो जाता है। जो प्रेम में है वह दीवाना हो ही जाता है। प्रेम का गणित मस्तिष्क की पकड़ से बाहर रहता है। इसलिए प्रेम का प्रतीक हृदय के चित्र में बाण चुभा बताया जाता है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]PART-3
[/font]


[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]प्रायश्चित[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]दादा गुरु महर्षि अमर मुनि जी बोले मनुष्य बहुधा अनेक भूल और त्रुटियाँ जान एवं अनजान में करता ही रहता है। अनेक बार उससे भयंकर पाप भी बन पड़ते हैं। पापों के फल स्वरूप निश्चित रूप से मनुष्य को नाना प्रकार की नारकीय पीड़ायें चिरकाल तक सहनी पड़ती हैं। पातकी मनुष्य की भूलों का सुधार और प्रायश्चित भी उसी प्रकार सम्भव है, जिस प्रकार स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों के तोड़ने पर रोग हो जाता है और उससे दुःख होता है, तो थोड़ी चिकित्सा आदि से उस रोग का निवारण भी किया जा सकता है। पाप का प्रायश्चित्त करने पर उसके दुष्परिणामों के भार में कमी हो जाती है और कई बार तो पूर्णतः निवृत्ति भी हो जाती है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]उसे बाद गुरुदेव ने प्रायश्चित की पूरी विधि विस्तार से समझायी l[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]इसके बाद महर्षि कुछ कहते तो हमारे कुलगुरु मृदुल मुनि अंदर अनुमति ले कर अंदर आ गए l[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]PART-4[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]गर्भदान के नियम
[/font]


[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]कुलगुरु मृदुल ने महर्षि को प्रणाम किया और बोला गुरुदेव महारानी ने प्राथना की है कि सबसे पहले गर्भदान का अवसर उन्हें मिलना चाहिए क्योंकि महाराज ने उनसे वाद किया है कि महारानी की ही संतान युवराज होगी तो मैंने उन्हें बोला महर्षि ने आप को बताया था कि गर्भदान के क्या नियम है महारानी विवाहित है और कुमार अविवाहित हैं इसलिए ये संभव नहीं है।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]महर्षि गुरुदेव बोले इसीलिए हमने महाराज को एक कुंवारी कन्या से विवाह करने का निर्देश दिया है जिसका गर्भदान कुमार के साथ होगा अन्यथा ये गर्भदान निष्फल रहता, अच्छा हुआ तुम ये प्रश्न किया ... इसका दूसरा हिस्सा ये है कि कुमार को भी पहले गर्भदान के बाद विवाह करना होगा और अपनी पत्नी के साथ मिलन के बाद ही बाक़ी रानियों के साथ कुमार गर्भदान कर सकेंगे[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]महर्षि गुरुदेव बोले प्रिय मृदुल बिलकुल ठीक समय पर आये हो अब मैं कुमार को साधना की नियम बताने वाला था इन्हीं नियमो का पालन महाराज को उनकी रानियों को और राजकुमारी को भी करना होगा जिससे महाराज का विवाह होना हैं।[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]किसी भी साधना मैं सबसे महत्त्वपुर्ण भाग उसके नियम हैं। सामान्यता सभी साधना में एक जैसे नियम होते हैं।
उसे बाद गुरुदेव ने पूरी विधि और नियम विस्तार से समझायी l[/font]


[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]महाराज को एक कुंवारी कन्या से विवाह करने का निर्देश दिया है जिसका गर्भदान कुमार के साथ होगा अन्यथा ये गर्भदान निष्फल रहता है। कुमार को भी पहले गर्भदान के बाद विवाह करना होगा और अपनी पत्नी के साथ मिलन के बाद ही बाक़ी रानियों के साथ कुमार गर्भदान कर सकेंगे l[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]इस प्रकार कार्य को पूजा समझ कर आरम्भ करे और शुद्ध ह्रदय से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करे तो ये कार्य पवित्र रहेगा और उत्तम फल प्रदान करेगा l[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]इसके बाद कुलगुरु मृदुल जी बोले धन्यवाद गुरु जी, महाराज हिमालय की रियासत के महाराज वीरसेन दर्शनों के लिए आये है और आज्ञा प्रदान करे l[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]तो महृषि बोले मुझे उनका ही इंतज़ार था उन्हें सादर ले आओ l
[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]कहानी जारी रहेगी[/font]

[font=ProximaNovaMedium, Arial, sans-serif]दीपक कुमार[/font]
 
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CHAPTER- 4

कामदेव की उपासना

PART-5


कामरूप क्षेत्र की राजकुमारी से भेंट[/font]



[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]हिमालय की रियासत के महाराज वीरसेन की राज्य की सीमा ही महर्षि अमर गुरुदेव जी का स्थान था . महाराज वीरसेन महर्षि अमर गुरुदेव जी के शिष्य थे .. उनके साथ उनकी महारानी और उनका परम मित्र और उनका परिवार था

महाराज वीरसेन ने पहले गुरुदेव के चरणों में प्रणाम किया और फिर बारे बारी से उनके साथ आये हुए लोगो ने भी गुरुदेव को प्रणाम किया फिर गुरुदेव ने मुझे सम्भोदित करते हुए कहाः कुमार आप महाराज वीरसेन को प्रणाम करिये.

मैंने महाराज वीरसेन और पत्नी महारानी को प्रणाम किया तो महाराज वीरसेन मुझे देख कर बोल पड़े आप तो हमारे होने वाले जमाता महाराज हरमोहिंदर जी हैं अच्छा हुआ आप भी यहीं मिल गए .. इनसे मिलिए ये हैं मेरे अभिन्न मित्र बिलकुल छोटे भाई जैसे कामरूप क्षेत्र के (आसाम ) के महाराज उमानाथ उनकी पत्नी महारानी चित्रां देवी और इनके साथ इनके पुत्र हैं राजकुमार महीपनाथ और इनकी पुत्री है राजकुमारी ज्योत्सना .

तो महर्षि ने कहा महाराज वीरसेन ये कुमार दीपक है महाराज हरमोहिंदर जी का चचेरा भाई .. फिर गुरुदेव महर्षि मुझ से बोले कुमार दीपक महाराज वीरसेन की पुत्री से ही महाराज हरमोहिंदर का विवाह होना तय हुआ है ..

तो महाराज वीरसेन बोले क्षमा कीजिये कुमार आप दोनों भाई देखने में एक जैसे लगते हैं और ये हमारे पहली भेट है इसीलिए मुझ से ये भूल हुई .. कृपया इसके लिए मुझे क्षमा कर दीजिये

तो मैंने कहा नहीं महाराज ये भूल तो किसी से भी हो सकती है इसके लिए आप बिलकुल दोषी नहीं हैं . यहाँ तक की मैं भी अपने पिताजी जैसा ही दीखता हूँ और अगर हम तीनो( पिताजी , महाराज और मैं ) एक साथ खड़े हो तो आपको लगेगा एक ही व्यक्ति के आप अधेड़ आयुष्मान और युवा रूप एक साथ देख रहे हैं .. इसके लिए आप मन में कोई अपराध भाव न रखें ..

उसके बाद और इनके साथ इनके पुत्र राजकुमार महीपनाथ और इनकी पुत्री राजकुमारी ज्योत्सना का अभिवादन किया .

फिर मैंने उन्हें सादर आसन ग्रहण करने को कहा इसके बाद मेरी नजरे राजकुमारी ज्योत्सना पर टिक गयी .... गोरा रंग लम्बी पतली सुन्दर मांसल शारीर, उन्नत एवं सुडौल वक्ष: स्थल, काले घने और लंबे बाल, सजीव एवं माधुर्य पूर्ण आँखों का जादू मन को मुग्ध कर देने वाली मुस्कान दिल को गुदगुदा देने वाला अंदाज यौवन भर से लदी हुई ज्योत्सना ने मेरे मन को विचिलित कर दिया मैं ज्योत्सना की देह यष्टि से प्रवाहित दिव्य गंध से आकर्षित उसे अपलक देखता रहा .

महाराज उमा नाथ की पुत्री राजकुमारी , ज्योत्सना बहुत शिष्ट और मर्यादित मणि के जैसी अनुपम सौंदर्य कि स्वामिनी सम्पूर्ण प्रकृति सौंदर्य को समेत कर यदि साकार रूप दिया तो उसका नाम ज्योत्सना होगा |

ज्योत्सना ने भी मुझे देखा और अपनी आँखे शर्मा कर नीचे झुका ली .


कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार[/font]
 
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CHAPTER- 4

गर्भदान

PART-6


राजकुमारी - सपनो की रानी 
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]राजकुमारी ज्योत्सना बहुत सुन्दर लग रही थी उसका सुन्दर अण्डाकार गुलाबी रंग का चेहरा, मन-मोहिनी, मुख पर साल की जो आभूषण धारण किए हुए, उन्नत गुलाब जैसी रंगत वाले स्तन धारण करने वाली कमसिन कन्या , जिसके स्तन चुमने और पीने योग्य थे । जिसका कमर और नितम्बों का आकार सुराई की भांति थी । जिसकी आखें सम्मोहन युक्त, खंजर के समान, कमल नयन और जिसकी तरफ वो एक नजर देख लें वो उसके मोहपाश में बन्ध जाए। गुलाबी वस्त्रों को धारण करने साक्षात अप्सरा जैसी राजकुमारी ज्योत्सना को मैं देखता ही रह गया ?

ज्योत्सना से भी ज्यादा सुंदर, ज्योत्सना से भी ज्यादा कोमल और ज्योत्सना से ज्यादा योवनवति न कमसिन और प्यारी कन्या या युवती है ही नही, उसका सौन्दर्य है ही इतना अद्वितीय और सच में इतनी सुंदर साक्षात अप्सरा जैसी कन्या मैंने पहले कभी नहीं देखी थी.

उसकी कमर इतनी नाजुक है कि एक बार उसको जो भी देख ले वह उसको जिंदगी भर नही भुला सकता. सच में तो मिस यूनिवर्स भी राजकुमारी ज्योत्सना के सामने पानी भरती नजर आती वह 18 वर्ष की उम्र की अन्नहड़ मदमस्ति और यौवन रस से परिपूर्ण संसार के द्वितीय सौन्दर्य की सम्राजञी राजकुमारी ज्योत्सना को देखते ही मेरे होश गुम हो गए.

ऐसा लग रहा था काम देव ने अपनेसारे बाण मेरे ऊपर छोड़ दिए थे

गोरा अण्डाकार चेहरा, गौरा रंग ऐसा, कि जैसे स्वच्छ दुध में केसर मिला दी हो, लम्बे और एडियों को छूते हुए घने सुनहरे केश, बड़ी-बड़ी खजन पक्षी की तरह आखें जो हर क्षण गहन जिज्ञासा लिए हुए इधर उधर देखती है, छोटी चुम्बक, सुंदर और गुलाबी होठ, आकर्षक चेहरा और अद्वितीय आाभा मे युक्त शरीर राजकुमारी ज्योत्सना आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और पुष्प धारण किये हुए , सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित दर और बेहद आकर्षक...थी

सब मिल कर एक ऐसा सौन्दर्य जो उंगली लगने पर मैला हो जाए ।उसका फिगर 34 28 34 होगा, जवानी टूट कर उस पर आई थी उसकी कमसिन काया गोल गोल भरे बूब्स, गोरा रंग, उसकी नाज़ुक सी पतली कमर उस पर उभरे गुंदाज़ कूल्हे और भरी गांड देखकर मेरा मन और लंड दोनों मचलने लगे

मेरे मन राजकुमारी ज्योत्स्ना को देख बेकाबू हो रहा था. उनकी गोल गोल बूब्स से भरी उसकी छाती और भरे भरे गालों के साथ उसकी नशीली आंखें मुझे नशे में कर रही थी। उसके होठों की बनावट तो ऐसी थी, अगर कोई एक बार उनका रस चूसना शुरू करे तो रूकने का नाम ही न ले।

सपाट पेट, लहराती हुई कमर, गहरी नाभि और बूब्स पर तनी हुई निपल्स, आँखे अधमुंदी चेहरा अब मेरा मन तो कर रहा था कि बस उसके रस भरे ओंठो और स्तनों को को चूमता और चूसता और चूमता, चाटता रहूँ और अपनी बाहों में जकड़ कर मसल डालूँ और जिंदगी भर ऐसे ही पड़ा रहूँ और उफ क्या-क्या नहीं करूँ?

मैं ऐसे ही कामुक खयालो में खो गया था और मैंने देखा राजकुमारी भी झुकी हुई आँखों से मुझे चोरी चोरी देखती थी और जब मुझे उन्हें ही देखते हुए पा कर फिर आँखे झुका लेती थी ऐसे में महाराज ने मुझसे मेरे चचेरे बहाई के बारे में कुछ पुछा जो मुझे सुनाई नहीं दिया क्योंकि मेरा पूरा ध्यान तो राजकुमारी पर था .

मेरी ये हालत छुपी नहीं रही और जब गुरु जी को ये कहते हुए सुना की भाई महाराज हरमोहिंदर और महाराज वीरसेन की सुपत्री का विवाह आज से 15 दिन के बाद महाराज वीरसेन के महल में हिमालय नगरी में होगा और फिर गुरुदेव ने मुझे विवाह से दो दिन पहले उनके आश्रम में आने की आज्ञा दी ताकि शुद्धिकरन की प्रक्रिया पूरी की जाए .

जूही और ऐना वही रुक गए और मैं अगले दिन सुबह तक वापिस अपने घर सूरत लौट आया .. पर मेरे दिल और दिमाग में राजकुमारी ज्योत्सना ही घूम रही थी और मैं सोच रहा था किस प्रकार उससे मुलाकात की जाये .

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार[/font]
 
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

CHAPTER- 5

रुपाली - मेरी पड़ोसन

PART-1

कामुक दृश्यमं[/font]


[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]
मेरे दिल और दिमाग में राजकुमारी ज्योत्सना ही घूम रही थी और मैं सोच रहा था किस प्रकार उससे मुलाकात की जाये . रूबी, रोजी, मोना और टीना सूरत पहुंच गयी थी सोमवार को हिमालय में महर्षि के आश्रम से लौटने के बाद मैंने उस फ्लैट के निकटवर्ती बंगले की खरीद प्रक्रिया पूरी की और शेष राशि का भुगतान किया। वे चारो अगले कुछ दिनों तक होटल में रहे और मैंने बंगलदे की मरम्मत और नवीनीकरण के लिए एक कंपनी से अनुबंध कर लिया । जब तक वे चारो सूरत में रही मैंने उन चार लड़कियों को जोरदार तरीके से चोदने का मज़ा लिया और उसके बाद वे वापस लौट गयी ,.

सोमवार से रूपाली भाभी ने मेरे घरेलू मामलों की जिम्मेदारी संभाल ली । अब, वह मेरे फ्लैट का ध्यान रखने वाली महिला थी। हर सुबह, वह फ्लैट में प्रवेश करती थी, घर की सफाई करती थी, और मुझे अपने बिस्तर से जगा कर पहले एक कप गर्म कॉफी परोसती थी।

आज भी जब मैं रुपाली और मानवी इन दोनों महिलाओं की तुलना करता हूँ, तो रूपाली मुझे मानवी से ज्यादा सुंदर, छोटी और सेक्सी लगती है । रूपाली केवल 36 वर्ष की थी, दो युवा लड़कियों की माँ, लेकिन वह अपनी स्लिमनेस के कारण बहुत आकर्षक दिखती थी, और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली एक छात्रा की तरह दिखती थी।

मैंने सोमवार की सुबह, जागने के बाद, मैंने बिस्तर के किनारे रूपाली को तारो ताजा आपने पास पाया । उसने बड़ी मुस्कुराहट के साथ मुझे गुड मॉर्निंग बोला , उसके होंठों की गुलाबी पंखुड़ियों को खोल दिया, और उसे सफेद प्रमुख दांतों के मोती दिखाए। मैं उसकी सुंदरता से रूबरू हो गया और उसके दिन और रात के लिए तरस गया। यह अचानक परिवर्तन माणवी की मेरी नियमित चुदाई के कारण हो सकता है जिसके लिए मैं ऊब गया था, और मेरे मन में, शायद, मैं कुछ बदलाव, नयापन चाहता था, और एक नई चूत के लिए तरस रहा था और राजकुमारी ज्योत्सना की सुंदरता के बारे में भी सोच रहा था ।

मैंने एक योजना तैयार की। मैंने तय किया कि सुबह, मैं रूपाली को अपना विशाल लंड दिखाऊंगा, जैसा कि मैंने मनवी को किया था, और उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए जैसा कि मैं इस तथ्य से अच्छी तरह से वाकिफ था कि मानवी की तरह रूपाली भी एक सेक्स भूखी औरत थी जिसकी चूत सूखी होनी चाहिए इतने सालों से।

अगली सुबह, मैं जल्दी उठा। मैंने उसके मुख्य द्वार को खोलते हुए सुना, और तुरंत ही मेरी लुंगी के नीचे एक बड़ी मुश्किल से कूद पड़ा। मैं उसकी चूड़ियों की खनखनाहट सुन सकती थी क्योंकि वह दूसरे कमरों में सफाई कर रही थी। फिर मैंने उसके कदमों को अपने बिस्तर के पास आते हुए सुना।

मैंने पहले ही अपनी लुंगी को अलग कर लिया था, और अपने डिक को इस तरह से बाहर लटका दिया कि वह मेरे डिक के बारे में स्पष्ट सोच रख सके। मैंने हल्की आवाज में खर्राटे का बहाना करते हुए गहरी नींद की नींद उड़ा दी। मेरी आंशिक रूप से खोली गई आँखों के कोने से, मैं स्पष्ट रूप से देख सकता था कि उसने पूरे डिक को बाहर लटका हुआ देखा था, और वह इस शो की उम्मीद नहीं कर रही थी जो अचानक हुआ था। वह हतप्रभ थी, यह अप्रत्याशित था। एक धीमी गति के साथ, एक ध्वनिहीन तरीके से, वह एनवाई डिक के बहुत करीब आ गई, मुझे उसके नक्शेकदम पर नहीं जगाने की कोशिश कर रही थी।

वह एक बड़े, लंबे, मोटे और काले रंग के विशाल डिक को गौर से देख रही थी। उसने अपने जीवन में कभी इतने विशालकाय डिक को नहीं देखा था। वह गोल सूजी हुई मखमली उभरी हुई बुर के उभरे हुए मस्तक को देखकर चकित रह गई, जो सुबह की रोशनी में जगमगा रही थी। दो बड़ी गेंदें पेंडुलम की तरह डिक के नीचे लटकी हुई थीं। पूरा क्षेत्र काले जघन बाल की झाड़ी से ढंका हुआ था। जब उसने अपने पति के डिक की कल्पना की, तो उसने अपने पति के डिक की तुलना इस विशालकाय मुर्गा के आधे हिस्से से कम की। विशाल स्तंभ लोहे की तरह बहुत कठोर था जैसा कि उसने ग्रहण किया था और उसकी ओर धड़कता था। एक पल के लिए, उसे इसे छूने का आग्रह किया गया, उसे हौसला दिया, लेकिन उसने खुद को नियंत्रित किया, और आगे कुछ भी करने के लिए खुद को मना कर दिया। उसने तुरंत अपनी साड़ी के ऊपर से अपनी चूत को छुआ जो पहले से ही गीली थी। मैं उसकी हर हरकत को ध्यान से देख रहा था।

मैं उसके अगले कदम के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा था। कुछ देर बाद, वह कॉफी के कप के साथ आई, मेरे बिस्तर के पास कप रख दिया। मेरा इरेक्ट डिक उसी स्थिति में बना हुआ था। फिर, वह इसे और अधिक ध्यान और जिज्ञासा के साथ देखती रही, और फिर अचानक, उसने इसे मेरी भागती हुई लुंगी से ढक दिया। रूपाली को इस तथ्य के बारे में पता था कि सुबह के समय में, एक पुरुष व्यक्ति का डिक इरेक्ट हो जाता था, और नींद की स्थिति बदलने के कारण, कभी-कभी इरेक्ट डिक लुंगी के सिरों से बाहर आ जाता था, जो केवल कमर के आसपास होता था। । उसने अपने पति की ऐसी ही स्थिति का सामना किया था।

फिर, मीठी आवाज़ में, उसने कहा, "काका, उठो, यह पहले से ही सुबह है।"

मैंने अपनी आँखों को पोंछते हुए एक गहरी नींद से जागने का नाटक किया। उसने बहुत ही सामान्य तरीके से सुबह की मुस्कुराहट के साथ मेरा अभिवादन किया जैसे कि कुछ पल पहले कुछ भी नहीं हुआ हो।

लेकिन रूपाली पूरे दिन मानसिक रूप से बहुत परेशान थी; वह अपना काम ठीक से नहीं कर पाती। उस विशाल डिक का फ्लैश हर सेकेंड में उसकी याद में आ जाता था, और उसे लगता था कि इतने सालों के बाद उसका यौन आग्रह प्रज्वलित हो गया था। उसने अपने पूरे शरीर में आग लगा ली, और अपने आप को नियंत्रित नहीं कर सकी, और अपने योनी को तब तक फेंटना शुरू कर दिया जब तक कि वह अपने संभोग तक नहीं पहुंच गई। इसी तरह, मैं भी पूरे दिन अपने कार्यालय में बेचैन रहा।

तब से मैं अक्सर रूपाली को अपने डिक को फ्लैश करता था, नियमित रूप से नहीं जैसा कि मेरा कार्य रूपाली द्वारा जानबूझकर पकड़ा जा सकता था, लेकिन उस सप्ताह में दो या तीन बार।

कुछ दिनों के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मानवी के विपरीत, रूपाली कभी भी कुछ भी करने के लिए खुद से आगे नहीं आएगी। वह बस मेरे डिक को देखकर आनंद लेती है, और शायद बाद में खुद को छूती है।

जैसा कि नियति ने सब कुछ तय किया, एक और घटना ने दोनों में आग लगा दी।

शनिवार की रात में मैं अपने फ्लैट के पास आवारा कुत्तों के भौंकने के शोर के कारण सो नहीं सका। आधी रात में मैं बालकनी में कुत्तों के भौंकने के कारण की जांच करने कमरे से टार्च ले आया । फिर मुझे सड़क की झाड़ी के पास एक कुतिया और 4-5 कुत्ते दिखाई दिए जो आपस में लड़ रहे थे । एक कुत्ता जो उनमें बड़ा और मजबूत लग रहा था उसने सब कुत्तो को जैसे पराजित कर दिया तो बाकी सब मिमियाए लगे , वह कुतिया के पास आया और उसके पीछे सूँघने लगा बाकी कुत्ते चुपचाप देखते रहे। कुछ मिनट के लिए सूँघने के बाद, कुत्ता कुतिया के पीछे चढ़ गया। मेरी उत्सुकता बढ़ गई और मैंने उसकी दिशा में टोर्च की रौशनी डाली और सामने से पूरी क्रिया को पूरी तरह से देख रहा था। मैंने देखा कि कुत्ते ने अपने दोनों पैरों को कुतिया की कमर से पकड़ रखा था। कुत्ते का लाल रंग का फूला हुआ नुकीला लिंग कुतिया के योनी छेद के प्रवेश द्वार के चारों ओर घूमता रहा। फिर अगले कुछ ही पलों में मैंने कुत्ते के लिंग को कुतिया की योनी में प्रवेश करते देखा। अब कुत्ते पूरे जोश के साथ अपनी कमर को आगे पीछे कर रहा था। धक्कों की गति इतनी तेज थी कि मैं अवाक रह गया। इन सभी क्रियाओं में, मैंने देखा कि कुतिया बिल्कुल भी विरोध नहीं कर रही थी, ऐसा लग रहा था कि यह सब कुतिया की सहमति से हो रहा है और उसके साथ हो रही इस क्रिया से काफी खुश हैं। लगभग 5 - 6 मिनट की इस असभ्य कार्रवाई के बाद, वह कुत्ता कुतिया के पीछे से उतरा लेकिन यह क्या ! कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी में फंस गया था। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए थे और अपनी लंबी जीभ बाहर निकाल रहे थे।

नर कुत्तों में उनके लिंग के आधार पर एक बल्ब होता है। लिंग कभी-कभी यौन उत्तेजना के दौरान शिश्न के म्यान से निकलता है। सहवास या संभोग के दौरान बल्ब में सूजन आ जाती है और इसके परिणामस्वरूप होता है और नर कुत्ते का लंड मादा की छूट में फस जाता है । मादा कुतिया की योनि में पेशियाँ सिकुड़ कर संकुचन में सहायता करती हैं।

प्रवेश के समय जब नर कुत्ता पैठ प्राप्त करता है, तो वह आमतौर पर मादा को जोर से दबाता है। यह इस समय के दौरान है कि पुरुष कुत्ते के लिंग का विस्तार होता है और यह महत्वपूर्ण है कि मादा के लिए पुरुष कुत्ते के लिंग की बल्ब ग्रंथि काफी अंदर हो ताकि वह उसे फंसा सके। मानव संभोग के विपरीत, जहां पुरुष लिंग आमतौर पर महिला में प्रवेश करने से पहले सीधा हो जाता है, कुत्तो के मैथुन में कुत्ते को पहले कुतिया को भेदन करना होता है, जिसके बाद लिंग में सूजन आ जाती है, जो आमतौर पर काफी तेजी से होती है

थोड़ी देर के लिए, मैं उसी स्थिति में वहाँ खड़ा हो गया और फिर मैंने बगल की बालकनी से रूपाली की चूड़ियों की आवाज़ सुनी, रूपाली भाभी भी वहाँ खड़ी कुत्तों के यौन कृत्य को खुले मुँह से देख रही थी मैंने उसके ऊपर टॉर्च की रोशनी फेंक दी। वह शरमायी और अपना चेहरा उसके हाथों में छुपा लिया लेकिन अंदर नहीं गयी मुझे भी अजीब लगा लेकिन दोनों ने एक शब्द नहीं कहा और कुत्तों को मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे।

मैंने अपनी टोर्च को कुत्तों पर घुमाया। कुत्ते का लंड कुतिया की योनि में फस चूका था और बाकी कुत्ते दोनों को छेड़ रहे थे जिसका समभोग में लिप्त कुत्ता और कुतिया प्रतिरोध कर रहे थे, जिसके कारण से घर्षण उत्पन्न हो रहा था। लगभग 15 मिनट के बाद उस बड़े कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी से निकला, हे भगवान! लगभग 4 ”लंबा और 2” मोटा लाल-लाल लिंग कुत्ते के नीचे झूल रहा था और उसमें से रस टपक रहा था। इतने बड़े लिंग को कुतिया आराम से सहलाने और चाटने लगी । अब दूसरा कुत्ता उस कुतिया पर चढ़ गया , उफ़ क्या दृश्य था, और फिर जो पहले कुत्ते और कुतिया ने किया था वो सब दोहराया गया, बाकी कुत्तो ने उन दोनों को घेर लिया था, यह सब इतना रोमांचक था। जब तीसरे ने दूसरे के बाद चढ़ाई शुरू की, तो कुतिया भागना चाहती थी, लेकिन बाकि कुत्तो से घिरी होने के कारण वह भाग नहीं सकी, तो उसने समर्पण कर दिया और तीसरे कुत्ते ने भी अपनी इच्छा को सफलतापूर्वक पूरा किया और फिर चौथे ने भी उसके बाद जल्दी से अपने लिंग के उस कुतिया की योनि में भर दिया और कुतिया को अपने लिंग से बांध दिया और कुत्ते ने अपनी कामेच्छा को शांत किया।

कुत्तों की तो कामेच्छा शांत हो गयी थी लेकिन हमारी दोनों की कामेच्छा जागृत हो गयी थी । रूपाली और मैं दोनों क्रमशः अपनी चूत और लंड पर एक हाथ से कुत्तों के उस यौन सहवास को देखते हुए सहला रहे थे। कुछ समय बाद कुत्तों ने कुतिया को छोड़ दिया और वहां से चले गए । इसलिए मैं और रूपाली भी अपने कमरे में वापिस चले गए। मैं सोच रहा था कि निश्चित रूप से रूपाली को सेक्स सीन देखना पसंद है।

सुबह नियमित रूप से, रूपाली ने चाय के कप के साथ मेरे बेडरूम में प्रवेश किया। मैं अपनी पीठ के बल सपाट सो रहा था। सुबह के समय में, सपनो में सुन्दर लड़कियों का संसर्ग करने के सपनो के कारण और शायद जो कुत्तो का जबरदस्त सहवास मैंने देखा था उसके कारण, एक जवान पुरुष का लंड पूर्ण सीमा तक खड़ा था । मैंने लुंगी ( कमर के चारों ओर पहना जाने वाला एक पारंपरिक परिधान) पहना हुआ था और मेरे लंड के उत्तेजित हो खड़े होने के कारण लुंगी में से पूरा लंड बाहर आ गया। रूपाली ने अपने जीवन में 9 इंच लंबे इतने बड़े लंड को कभी नहीं देखा था। वह पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो उसे देखती रही । उसे बहुत आश्चर्य हुआ और उसने सोचा कि उसके पति का लंड तो इस विशालकाय लंड के आधे से भी कम आकार का होगा।

रूपाली और उसके पति के बीच दो कारणों से वस्तुतः सेक्स रुक गया था । एक तो , उसके पति छह महीने में एक बार आते थे, और बढ़ती हुई उम्र और थकान के कारण वो सेक्स के लिए कोई पहल नहीं करता था। दूसरे, एक छोटे से दो कमरों वाले फ्लैट में बेटीयो के बड़े होने के साथ, मुक्त तरीके से सेक्स संभव नहीं था। रूपाली निश्चित तौर पर एक सेक्स के लिए तरसती हुई एक सुन्दर महिला थी।

आगे आप पढ़ेंगे मेरे लंड को देख कर मेरे और रुपाली के बीच क्या क्या हुआ

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार[/font]
 
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

CHAPTER- 5

रुपाली - मेरी पड़ोसन

PART-2

बल्ब फ्यूज हो गया
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]मैं इस तथ्य से अवगत हो गया था की रूपाली भाबी फिल्मो की शौकीन थी, लेकिन सूरत में अपने छोटे से प्रवास के दौरान उसका पति शायद ही उसके साथ फिल्म थियेटर में जाता था। इसलिए, हर सप्ताह के अंत में रविवार को या फिर शनिवार को , मैं रूपाली को मूवी थियेटर ले जाने लगा और हम रूपाली की पसंद के अनुसार फिल्म देखने लगे । रूपाली की पसंद, बंगाली, गुजराती और हिंदी फिल्मों से लेकर हॉलीवुड की फिल्में भी। फिल्म देखने का पूरा खर्च मेरे द्वारा ही वहन किया जाता था ।

उस दिन शनिवार की सुबह थी। अब तक ये लगभग मेरे लिए एक प्रथा बन गयी थी कि मैं रूपाली को उसकी पसंद की फिल्म देखने के लिए हर शनिवार या रविवार को मूवी थियेटर ले जाता था ।

सुबह में कॉफी परोसते हुए, रूपाली ने कहा, "काका, आज हम जेम्स कैमरन द्वारा निर्देशित, लिखित, निर्मित और सह-संपादित फिल्म 3 डी मूवी अवतार देखेंगे।"

"श्योर, डियर," मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। फिर मैंने उसे बताया कि मैं कुत्तों के शोर की वजह से हुई गड़बड़ी के कारण कल रात को ठीक से सो नहीं पाया था। रूपालीइसके प्रतियुत्तर में केवल शर्मायी और उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने कहा कि अब मैं अपने बिस्तर के कमरे में कुछ साउंड प्रूफिंग करवाऊंगा ।

जब कॉन्ट्रैक्टर जो मेरे द्वारा ख़रीदे गए पड़ोस के बंगले की मरम्मत का कार्य कर रहा था, साउंड प्रूफिंग के कार्य पर चर्चा के लिए आया तो मुझे एक और विचार आया। मैंने उसे अपने द्वारा अधिग्रहित बंगले और इस फ्लैट को जोड़ने के लिए एक गुप्त दरवाजा बनाने के लिए कहा और बेड रूम में विधिवत छिपा हुआ रहेगा दिया और जो मुझे बंगले तक गुप्त पहुँच प्रदान करेगा।

चूंकि शनिवार का दिन था, मैं उस रात ठीक से सोया नहीं था इसलिए फ्लैट में आराम कर रहा था। मानवी ने सुबह मुझे सूचित किया कि वह अपने एक सहेली से मिलने जा रही है और रात में वापस आएगी। राजन अपनी ट्यूशन के लिए कोचिंग सेंटर गया था। तीनों लड़कियाँ पास के पार्क में खेलने और अपना समय गुजारने के लिए गई थीं जहाँ मैं और मानवी भाभी अपनी शाम की सैर किया करतेा थे।

मुझे फिर राजकुमारी ज्योत्सना की याद आने लगी और उसे याद करके मेरा लंड कड़क होने लगा और तभी मेरे पास ऐना का फ़ोन आया और उसने बोला गुरु जी आज्ञा दी है की आप लगभग २ महीनो के लिए अपने कार्यालय से अवकाश ले ले और जो आपको समय बताया गया है उस पर गुरूजी के आश्रम में पहुँच जाए . आगे की सूचना आपको आश्रम आने पर में गुरूजी स्वयं देंगे .

तो मैंने कहाः ठीक है जैसा महर्षि जी की आज्ञा है वैसा ही करूंगा .. और फिर मैंने कहा क्या वो मुझे राजकुमारी ज्योत्स्ना का कोई मोबाइल नंबर या संपर्क करने का नंबर दे सकती हैं मुझे उसने बात करनी है तो ऐना बोली उसे ये नंबर गुरूजी या जूही से प्राप्त करना होगा और उसके बाद ये नंबर वो मुझे भेज देगी .

उसके बाद फोन कट गया और थोड़ी देर बाद ऐना ने राजकुमारी ज्योत्सना का फ़ोन नंबर मुझे भेज दिया

समय लगभग 10.30 बजे था। तभी अचानक, मैंने अपने दरवाजे पर दस्तक सुनी। मैंने दरवाजा खोला और दरवाजे पर पसीने से तरबतर रूपाली को पाया। वह पसीना बहा रही थी या कहिये पसीने में नहायी हुई थी, पसीने की बूंदें उसके चेहरे से टपकती हुई गहरी नाभि तक पेट के क्षेत्र में गिर रही थीं, शायद, रूपाली अपने घरेलू कामों में बहुत व्यस्त थी । आमतौर पर, घर की गृहिणीया घर के कामों के दौरान अपने ब्लाउज के अंदर ब्रा कम ही पहनती हैं ।

उसकी साड़ी का पल्लू उसके दाएं-बाएं कंधे पर इस तरह से लापरवाही से लिपटा हुआ था कि उसके बाईं ओर के स्तन उसके ब्लाउज से बाहर की ओर निकले हुए थे। उसके पसीने से भीगे हुए ब्लाउज में से उसके बड़े बड़े निप्पल नजर आ रहे थे। उसके बांह के गड्ढों के नीचे ब्लाउज में पसीने के धब्बे साफ दिख रहे थे। वो मेरे बहुत करीब खड़ी थी; हम दोनों के बीच की दूरी एक फुट से भी कम ही रही होगी ।

मैंने उसे अंदर बुलाया वो अंदर आयी तो कमरे में उसके शरीर की पसीने से सराबोर सेक्सी गंध फैल गई, और इस सुगंध ने मेरे नथुने में प्रवेश किया, और मैंने इसे जितना संभव हो स्का गहरे साँस लेने की कोशिश की जैसे कि मैं उस गंध के कारण नशे में होने की कोशिश कर रहा हूँ । मैं अपने आप को उसके स्तनो को घूरने से रोक नहीं पाया और मेरी इस हरकत को रूपाली ने देख लिया पर मैंने भी अपनी नज़रे नहीं हटाई बल्कि रुपाली भाभी के मैं और पास आ गया ताकि उसकी उस सुगंध का और आनद ले सकूं .

फिर जानबूझकर या अनजाने में , रुपाली भाबी ने अपने दाहिने तरफ के कंधे से अपना पल्लू खिसकाया और ठीक किया , और ऐसा करने के दौरान उसके दोनों स्तन, और अपने निपल्स के साथ मेरे सामने प्रदर्शित हो गए , वह जानती था कि मैं उसे कामुक नजरो से देख रहा था तो उसके स्तन और निप्पल उत्तेजना के साथ दृढ हो गए थे ।

मैं भाभी को सर से पैर तक उसके स्तनों के बीच की दरार (क्लीवेज) के मध्य से उस अद्भुत और सुन्दर दृश्य को देखा। उसकी चोली उसके स्तनो को अच्छी तरह से संभालने का असफल यत्न कर रही थी तो भाभी ने अपने बाईं ओर के स्तन को उसके ब्लाउज के अंदर धक्का दिया, जिससे और वे और बड़े लगने लगे । उसने मुझे मुस्कुराते हुए और घूरते हुए पकड़ लिया।

वो शरारत भरे अंदाज में बोली काका अब आपको जल्दी ही शादी कर लेनी चाहिए आजकल आपकी नज़रे बहुत भटकने लगी हैं या फिर आप कोई गर्ल फ्रेंड बना लीजिये

मैंने बोलै भाभी आप तो जानती हो यहाँ मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है और फिर हम दोनों हसने लगे

फिर उसने अनुरोध किया "काका, मुझे थोड़ी समस्या है, क्या आप मेरी रसोई के कमरे के अंदर एक छोटे से काम में मदद कर सकते हैं?" ।

"ज़रूर, लेकिन समस्या क्या है?" मैंने पूछ लिया

"अभी-अभी, मेरे रसोई का बिजली का बल्ब फ्यूज हो गया। मेरा अभी बहुत सारा काम करने के लिए बचा हुआ है आपके और बच्चों के लिए दोपहर का भोजन तैयार करने के लिए बहुत सारे काम बाकी हैं। खिड़की से बहुत प्रकाश आने के कारण इस समय वहां अंधेरा है।

मेरे पास एक नया बल्ब है म, लेकिन मैं इसे बदल नहीं सकती क्योंकि मैं स्टूल पर नहीं चढ़ सकती और बिजली वाले को फ़ोन किया तो उसे आने में समय लगेगा । " उसने हताश होकर कहा।

भाभीआप कोई चिंता मत करो जो जरूरत होगी वो मैं करूँगा मैंने कहा

वह अपने फ्लैट के अंदर वापस चली गई, और मैं उसके पीछे हो लिया । वो मुझे अपने रसोई में ले गयी तो मैं उसकी मटकी हुए गांड और कूल्हे देखता रहा । उसके नितम्बो के गाल जानबूझकर लहरा रहे थे जिसने मेरे दिमाग को मेरे और रूपाली के विभिन्न कामुक दृश्यों से भर दिया था।

मैंने रसोई के कमरे में पहुँच कर बल्ब का सर्वेक्षण किया। बिजली का बल्ब छत के बीच लगा हुआ था जो जमीन से काफी ऊंचाई पर था। और किसी भी परिस्थिति में, मेरा हाथ उस उच्चाई पर बिना स्टूल मेज या सीढ़ी की सहायता के नहीं पहुँच सकता था ।

"रूपाली भाभी, क्या आपके पास इस काम के लिए कोई स्टूल या सीढ़ी है ?" मैंने पूछा।

"काका, पिछले साल, जब हमने अपने फ्लैट की आंतरिक दीवार को पेंट करने के लिए एक पेंटर के सेवाएं ली थी तो हमने एक स्टूल खरीदा था मैं उसे लाती हूँ ।" रूपाली ने जवाब दिया।

फिर वह एक ऊँचा सा स्टूल ले आई। मैंने उस स्टूल की जांच की। स्टूल की ऊंचाई लगभग 3 फीट थी। उस पर सीढ़ी के चरणों से मिलते-जुलते लकड़ी के 3. मजबूत तख्ते लगे हुए थे। स्टूल के शीर्ष पर स्थित सीट केवल 1 फीट की थी , जहां केवल दो पैरों को समायोजित कर खड़ा हुआ जा सकता था।

यह पेशेवर पेंटर के लिए उपयुक्त स्टूल था ।

तब मैंने कहा, "रूपाली भाभी, मैं जो कह रहा हूँ उसे आप ध्यान से सुनो ।स्टूल की सतह बहुत छोटी है जहाँ मैं केवल अपने दो पैरों को ही रख सकता हूँ, इस स्टूल पर अपने शरीर का संतुलन बनाए रखना तब तक बहुत मुश्किल है जब तक कि मुझे सहारा न दिया जाए, । मैंने स्टूल के पैरों की जांच की है जो बराबर और स्थिर नहीं हैं, और जब मैं स्टूल पर चढूँगा और एक बार स्टूल के किसी भी पैर के अस्थिर होने पर, मैं अपने शरीर का संतुलन खो दूंगा, और मैं नीचे गिर जाऊंगा, मेरी कई हड्डियां टूट सकती हैं। और मुझे गंभीर चोट भी लग सकती है । इसलिए, उचित संतुलन बनाये रखने के लिए मेरे पैरों के पास आपको अपने दोनों हाथों से स्टूल की सीट को बहुत कसकर पकड़ना पड़ेगा ताकि मैं उस बल्ब तक पहुंचने के लिए ठीक से खड़ा हो सकूं, और फ्यूज्ड बल्ब को हटा कर नए बल्ब को लगा सकू । रूपाली भाभी आप समझ गयी आपको क्या करना है ? "

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार[/font]
 
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CHAPTER- 5

रुपाली - मेरी पड़ोसन

PART-3

स्टूल (छोटी मेज)
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]रूपाली ने जवाब दिया, "काका, मैं इस समस्या को समझती हूँ, और तदनुसार मैं आपकी मदद करूँगी।"

मैंने स्टूल छत में बल्ब जिस जगह फिट था उसके ठीक नीचे रखा । मैंने अपनी लुंगी को घुटने तक मोड़ लिया। हमेशा की तरह मैंने लुंगी के नीचे कोई अंडरवियर नहीं पहना हुआ था। रूपाली ने स्टूल की सीट को बहुत कसकर पकड़ लिया। मैंने अपने एक पैर को स्टूल के दो पैरों के बीच बनी हुई सीढ़ी नुमा तख़्त पर रखा और ऊपर चढ़ने के लिए अपने बाएँ हाथ से स्टूल की सीट को पकड़ लिया, लेकिन मुझे दाहिने हाथ के समर्थन की आवश्यकता थी ताकि संतुलन बना रहे ।

मैंने कहा, "रूपाली भाभी, स्टूल की सीट पर चढ़ने के लिए, मुझे अपने दाहिने हाथ में सहारे की ज़रूरत है। क्या मैं अपना दायाँ हाथ आपके बाएँ कंधे पर रख सकता हूँ ?"

"हाँ काका, " रूपाली ने जवाब दिया।

स्टूल सीट के किनारे को अपने बायाँ हाथ से पकड़ कर, और अपना दाहिना हाथ उसके कंधे पर रखकर, संतुलन बनाकर मैं ऊपर चढ़ गया, और सीट की सतह पर पहुँच गया। ऊपर पहुँचते ही, मुझे अपनी दाहिनी हथेली में कपास की गेंद जैसी कोमलता महसूस हुई। जब मैंने मेरी दाहिनी हथेली की ओर देखा गया, तो मुझे लगा कि मैंने रूपाली के बाएं स्तन को पकड़ लिया है क्योंकि मेरा हाथ उसके पसीने के कारण भीगे और चिकने कंधे से फिसल उसके स्तन पर पहुँच गया था । मेरी हथेली उसके निप्पल की कठोरता को महसूस कर रही थी । मेरा लंड तो पहले से खड़ा ही था।

"रूपाली भाभी , मुझे खेद है। मेरा हाथ फिसल गया," मैंने माफी मांगी।

"इट्स ओके," रूपाली ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया क्योंकि उसे अपने स्तन को निचोड़वाने में मज़ा आया था।

मैं रूपाली भाभी के सामने वाली स्टूल की सीट पर बैठ था । चूँकि मेरी लुंगी मुड़ी हुई थी, और लुंगी के नीचे कोई अंडरवियर नहीं था,ऐसे में रूपाली भाभी मेरे बड़े और खड़े हो चुके लण्ड को देख सकती थीं जो उसके चेहरे से कुछ इंच की दूरी पर जोर से धड़क रहा था। और हम इस समय इतने नजदीक थे कि वह खींचे हुए चमड़ी के कारण उभरे हुए लाल उभरे हुए लंडमुंड की सेक्सी गंध को भी सूँघ सकती थी।

अब, मुझे छत में फ्यूज्ड बल्ब तक पहुंचने के लिए सीधे खड़ा होना था। इसलिए, मैंने रूपाली भाभी के कंधों पर फिर अपने दोनों हाथ रख दिए, और अपनी अकड़ू बैठक की पोजीशन से सीधे खड़े होने की कोशिश की, जबकि भाबी ने मेरी मदद के लिए स्टूल सीट के किनारे की कस कर पकड़ रखा था । मैं छत तक पहुँचने के लिए उस ऊँचे स्टूल पर चढ़ गया, बल्ब वास्तव में बहुत ऊँचा था, और मैं छत पर बल्ब की पकड़ तक पहुँच गया और इस प्रक्रिया में मेरा खड़ा हुआ बड़ा लण्ड रुपाली भाभी के चेहरे को बस गलती से छू गया। मेरा बड़ा झूलता हुआ लण्ड उसके नथुने के ठीक नीचे और उसके ऊपरी होंठ के ऊपर छु रहा था और धड़क रहा था।

जैसा ही मैंने एक हाथ में फ्यूज्ड बल्ब को उतारा, मैंने अपना सिर नीचे झुका लिया, तो मैंने स्पष्ट रूप से स्तनों की दरार के माध्यम से रुपाली भाई के गोल स्तन देखे , उसके भूरे रंग के नुकीले और काले रंग के गोल छेद के आसपास के निपल्स भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे। और उन्हें देख कर मेरे लंड ने भाई के मुँह पर एक चुम्बन किया उधर मैंने अपने दूसरे हाथ को संतुलन के लिए रुपाली भाभी के कंधे पर रखा जो अंततः फिसल कर फिर उसके बूब पर चला गया और मैंने सीटें की पकड़ कर निचोड़ दिया । मैंने स्तन को तब तक वहीं निचोड़ता रहा जब तक कि मैं फिर से स्टूल पर नहीं बैठ गया।

रूपाली भाभी के शरीर के अंदर भी यौन तनाव बढ़ रहा था क्योंकि बड़ा लण्ड झूलता हुआ उसके चेहरे को छू रहा था, और दूसरी तरफ, मेरा हाथ उसके बूब को पकड़ दबा और निचोड़ रहा था। उसके निप्पल सख्त हो गए थे और हथेली में महसूस हो रहे थे। ऐसेमे उसकी हलकी सी कराह निकली और उसे अपनी चूत के अंदर गीलापन महसूस हुआ।

रूपाली भाभी ने फिर मुझ से पुराना फ्यूज बल्ब ले लिया और मुझे नया बल्ब सौंप दिया, और फिर से मैं नए बल्ब को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ गया। मैंने नए बल्ब को ठीकसे लगाया किया और प्रकाश चालू हो गया, मैंने दुबारा नीचे देखा तो उजाले में भाबही का चमकता हुआ बदन देख मेरे लंड ने भाभी के मुँह पर एक जोर दार थापड़ सा मार कर सलाम किया और इस समय रूपाली मेरे बड़े लंड को देखने और छूने से इतनी कामुकता से चार्ज हो गई थी कि वह बेकाबू हो गई, स्टूल पर उसकी पकड़ ढीली हो गई, और स्टूल के पैर हिले और स्टूल असंतुलित हो गया और जोर से हिलने लगा और जिसके कारण मैं भी हिलने लगा और लंड जोर जोर से भाभी के मुँह से टकराने लगा ।

दोनों इस परिस्तिथि में चिंतित हो गए थे और लग रहा था अब मैं गिरने हो वाला हूँ हम दोनों इस बात का एहसास कर सकते थे। मैंने कहाः रुपाली भाभी आपने स्टूल क्यों छोड़ दिया उसे पकड़ो ..!!

उसने मुझे एक चीख के साथ चेतावनी दी, "काका, आप नीचे गिर रहे हैं, आप मुझे अपने हाथों से पकड़ लो ।" अचानक डरने के साथ ऐसा होने के कारण रुपाली भाभी का मुँह पूरा खुल गया।

ठीक उसी समय मुझे भी लगा कि मैं स्टूल से अपना संतुलन खो रहा हूं, और मेरे पैर स्टूल से फिसल रहे थे, मैं घबरा गया और मेरे हाथ रूपाली भाभी का सिर से होकर उसके कंधों पर आ गए । मेरे हाथो ने उसके कंधे को इतना कस कर पकड़ा और गिरने लगा इस कारण मैंने भाभी के पुराने इस्तेमाल किए गए ब्लाउज को और कस कर पकड़ लिया और दबाब पड़ने से पसीने से लथपथ ब्लाउज के कंधे के हिस्से फट गए और ब्लाउज बीच से दो टुकड़े हो गया । उसके दो गोल स्तन बाहर निकल आये और तुरंत मेरे दोनों हाथों ने सहारे के लिए स्तनों को पकड़ लिया। इस अचानक झटके के कारण अचानक मेरा खड़ा लण्ड रूपाली भाभी के खुले मुँह में घुस गया। उसने मुझे और मेरी लुंगी को पकड़ा और खुद को गिरने से बचाने के लिए लुंगी को और कस कर पकड़ा और खींचा और उस स्थिति में ही हम दोनों जमीन पर गिर गए।

भगवान हमेशा मुझ दयालु रहे हैं, इस हादसे या दुर्घटना में दोनों को कोई चोट नहीं लगी। लेकिन इस हादसे के कारण हमारे शरीर की स्थिति गड़बड़ा गई थी। रूपाली फर्श पर फैली हुई थी, उसकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी, वो कमर के नीचे नग्न हो गयी थी और उसकी मांसल टांगों के बीच उसकी चूत मेरे सामने नग्न हो गयी थी और यहाँ स्तन भी खुल कर नग्न हो गए थे और ब्लाउज फट गया था थे, मैं भी अपनी कमर से नीचे पूरी तरह से नंगा था क्योंकि मेरी लुंगी भी इस दुर्घटना में दुर्घटनाग्रस्त हो खुल गयी थी हो गई थी। । मेरा बड़ा लण्ड रूपाली के मुँह के अंदर चला गया था। रूपाली की चूत के बाहरी होठ जो घने बालों की मोटी झाड़ियों से घिरे हुए थे उनमे मेरी एक हाथ की दो उंगलियाँ घुसी हुई थीं। मेरे दूसरे हाथ ने रूपाली के एक बूब्स को पकड़ लिया था। हमारी आँखें बंद थीं।


कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार[/font]
 
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

CHAPTER- 5

रुपाली - मेरी पड़ोसन

PART-4

वास्तविकता या एक सपना 
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]इस तरह से जब हम दोनों गिर गए, हम दोनों कुछ सेकंड के लिए बेहोश हो गए थे, हम में से कोई भी इस स्थिति से अवगत नहीं था कि हम दुर्घटना के बाद किस स्थिति में थे। कुछ सेकंड के बाद, हम दोनों ने अपनी आँखें खोली, और होश में आ गए। मैंने अपने लंड को एक गर्म गुफा के अंदर है ऐसा महसूस किया, और जैसे ही मेरे लंड पर दांतों का दबाब महसूस किया तुरंत, मैंने अपने लंड की ओर देखा, तो पाया कि मेरा लंड रूपाली भाभी के मुंह के अंदर था।

एक सेकंड के लिए मैं विश्वास नहीं कर पाया कि यह एक वास्तविकता थी या एक सपना था, भगवान मेरे साथ ऐसा अजीब खेल कैसे खेल सकते हैं। तभी मुझे घुटनो पर कुछ दर्द महसूस हुआ तो मुझे विश्वास हो गया ये हक़िक़्क़त ही है इसके बाद, मैंने महसूस किया कि मेरे बाएं हाथ की मेरी दो उंगलियां किसी मखमली पदार्थ में डूबी हुई हैं, मैंने शरीर को हिलाए बिना यह कल्पना करने की पूरी कोशिश की कि के ये क्या था, और फिर अंगूठे सहित मेरी अन्य उंगलियों ने कुछ रेशमी बालों को महसूस किया। अब, मैंने अनुमान लगाया कि यह रूपाली भाभी की चूत थी और तब मुझे लगा कि मेरी दाहिनी हथेली एक बहुत ही मुलायम और चिकनी वस्तु को पकडे हुई है . जैसे मैंने उसे बहुत हल्के से दबाया तो मेरी तर्जनी ने कठोर निप्पल को छुआ और उसे महसूस किया तो, "ओह्ह ... माय गॉड," यह रूपाली का बूब था।

रूपाली भी तब तक अपने होश में आ गयी थी और वह घुटन महसूस कर रही थी और उसकी सांस फूल रही थी क्योंकि उसके मुंह में बहुत बड़ी, मोटी और मांसल चीज घुसी हुई थी . उसकी जीभ को एक गोल मखमली नरम वस्तु महसूस हुई जो वास्तव में मेरे लण्ड की घुंडी थी। फिर, उसने महसूस किया जो की एक हाथ उसके एक स्तन को सहला रहा था और उसके कठोर निप्पल को निचोड़ रहा था। लेकिन उसे आश्चर्य तब हुआ जब उसे लगा कि उसकी गीली चूत के छेद में दो उंगलियाँ घुसी हुई हैं।


वो सोच रही थी ये क्या हुआ तो उसे याद आया कि अचानक मैं उस स्टूल से फिसल गया था , और फिर दोनों जमीन पर गिर गए, और अब मैं उसके ऊपर था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि दुर्घटना के बाद अब क्या हो रहा है, यह कैसे हुआ? फिर उसने अपनी याद को याद किया कि गिरते हुए , कैसे मेरा विशाल लंड अचानक उसके मुँह के अंदर घुसा, और अब उसे महसूस हुआ कि मेरा बड़ा लंड अभी भी उसके मुँह के अंदर था। उसने साँस ली तो उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी क्योंकि मेरा लंड अभी भी उसके मुँह में घुसा हुआ था ।

अचानक, मैंने रूपाली की खांसी की आवाज़ सुनी, और महसूस किया कि उसने मेरे विशाल लंड के मुँह में फसे होने की वजह से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी ; मैंने अपने लंड के आधे हिस्से को उसके मुँह से वापस पपीचे किया या ताकि उसे साँस लेने में आसानी हो लेकिन मैंने पूरा लंड वापस नहीं निकाला । उसका मुँह लार से भरा था, जिसकी बूँदें उसके मुँह से टपक रही थीं और मेरा बड़ा और काला लंड उसकी लार से भीगा हुआ दमक रहा था।

उसकी चुत के अंदर मेरे उंगलियों का स्पर्श हो रहा था। मैंने धीरे से उसकी चूत में उंगलियाँ घुसा दी।

" ओह्ह और गरररर " वह कराह उठी , उसकी आवाज में आनंद ज्यादा था लज्जा कम थी और उसकी उत्तेजना हर गुजरते पल के साथ बढ़ रही थी ।

मैंने ऊँगली से उसकी योनि को सहला दिया, और मैंने उसके लंड के होंठों को रगड़ना जारी रखा, और अपनी उंगलियों की धीरे धीरे आगे पीछे कर उसे चोदता रहा। मैंने फिर अपनी उंगली को उसकी योनि में थोड़ा तेजी से अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया, और वह वहां इतनी गीली हो गई थी कि मेरी उंगली बिना किसी प्रयास के पूरी अंदर धंस गई। इसने अपने कूल्हे मेरे योनि की और करके मुझे उँगलियों को और गहराई से डालने के लिए प्रेरित किया। मेरी उंगलियाँ उसकी भीगती हुई चूत को और भी ज्यादा गहराई तक सहला रही थीं।

मैंने अपनी जो उंगलियाँ बाहर थी वो हिलाईं और रुपाली भाभी की चूत के होंठ महसूस करने लगा और अंगूठे से योनि के दाने को छेड़ने लगा । वो महसूस कर सकती थी कि वह कितनी गीली थी। मेरी उंगलियाँ और अंगूठे उसकी सूजी हुई क्लिट पर छोटे-छोटे घेरे में घूमती रहीं। रुपाली भाभी को लग रहा था कि वह वो उत्तेजना और आंनद से बेहोश होने वाली है क्योंकि उसे इस में बहुत आनंद आ रहा था ।

मेरी जो उंगलिया नादर थी उन्हें मैंने उसकी योनि के अंदर ही गोल घुमाया और उसकी योनि के अंदर छेड़खानी करने के लिए किया तो आह उह ओह्ह हाँ हाँ की आवाज के साथ उसका कराहना और तेज हो गया. उसका मुंह आह करने के लिए खुला तो लंड अंदर घुस गया और उसका मुँह मेरे लंड से भर गया था इधर रूपाली की योनि का रस अब सच में बहने लगा था, और उसने अपनी योनि को को मेरी उँगलियों से मिलाने के लिए अपने कूल्हों को ऊँगली के हिलने की गति के अनुसार हिलाना शुरू कर दिया।

उसने मेरे दुसरे हाथ की और देखा और अपने स्तन को भी मेरे हाथ की तरफ आगे बढ़ाया। उसके निप्पल अब उसके बायें स्तन पर और मेरे हाथ के बीच जोर से दब रहे थे। मैंने उसके दोनों निप्पलों को छुआ रूपाली के दोनों स्तन छूने को तड़प रहे हैं। उसके स्तन में एक झुनझुनी आयी, और उसके निप्पल स्पर्श से कठोर हो गए। उसने खिड़की के अपने प्रतिबिंब में देखा कि उसके दोनों स्तनों के निप्पल कितने उभरे हुए और कठोर हो गए थे। वह एक साथ शर्मिंदा और उत्तेजित महसूस कर रही थी।

"उम्म", उसने एक कराह छोड़ी । उसकी चूत के अंदर मेरी उंगलियों के घर्षण से हो रहा आनंद उसके लिए असहनीय हो रहा था। मेर दाहिने हाथ की उंगली ने उसके निप्पल को थोड़ा दबा कर उसके स्तन में घुसा दिया। वो कराह उठी आह !

मैंने अपने कूल्हों को उसके चेहरे की तरफ जोर से दबाया जिससे मेरा मोटा लंड उसके होठों से दब गया। हालाँकि उसने कुछ दिन सुबह सुबह मेरे लंड को कई बार देखा है लेकिन उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरा लंड कितना कठोर और लंबा है। रूपाली ने अपना मुँह अभी तक नपूरा नहीं हीं खोला था बस अपने होंठ मेरे लंड को सरका रही थी। मेरा हाथ उसके बूब पर से होते हुए उसकी ठुड्डी तक पहुँच गया, और आगे पीछे करते हुए उसके जबड़े को खोल दिया। मेरा लंड अब उसके मुंह में, आराम से चला गया और उसकी जीभ पर से होते हुए गले तक चला गया । मैंने अपने कूल्हों को तब तक आगे बढ़ाया, जब तक कि लंड की पूरी लंबाई उसके मुंह के अंदर नहीं आ गई। रूपाली अपनी आँखें बंद करके बेहोश होने का अभिनय करने की कोशिश करने लगी , लेकिन मेरे लंड जैसे ही उसकी जीभ के पिछले हिस्से से टकराया, उसने जोर से खांस दिया। मैं उससे हतोत्साहित नहीं नहीं हुआ और अपने लंड को उसके मुँह के अंदर बाहर करता रहा ।

, "रूपाली भाभी अपनी जीभ को आगे पीछे करो।" मैंने ये शब्द बोलकर चुप्पी तोड़ी

रूपाली मेरे बोलने के लिए तैयार नहीं थी। वह नहीं जानती थी कि अब उसे क्या करना है। उसका दिमाग जम गया। उसकी पहली बार कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, यह सोचकर कि अगर वह अनुपालन करती है, तो इसमें कोई संदेह नहीं होगा कि वह भी उस अचानक हुई दुर्घटना के कारण जो भी हुआ उसके लिए बहुत इच्छुक थी ।

लेकिन फिर मैंने दोहराया 'भाभी अपनी जीभ को मेरे लंड पर आगे पीछे करो'। अब दो ही रास्ते थे या तो वो ये करे या इसके बारे में मुझ से बात करे, और इस बारे में बात करना वह आखिरी चीज थी जी वो बिलकुल नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसने अपने उतावलेपन को नियंत्रित करते हुए मेरे लंड के निचले हिस्से को अपनी जीभ से टटोलना शुरू कर दिया।

अब अगर मैं पीछे देखता हूँ तो मुझे लगता है इन घटनाओं ने हमारे यौन संबंधों के बाकी हिस्सों के लिए टोन को सेट किया। मैं उसे जो भी बताता था कि मैं क्या चाहता हूँ और वह हमेशा उसका अनुपालन कर देती थी ।

तो वह अब मेरे लंड को चूस रही थी जिसे उसने सुबह बिस्तर पर इतने दिनों तक तना हुआ देखा था .. हम जिस स्थिति में थे मैं उसके ऊपर था और मे लंड उसके मुँह के अंदर था और भाभी ने लंड को अपनी जीभ से नीचे की ओर से दबाने से मेरा लंड उसके मुंह में तालु पे जा रहा था जिससे घुटन होने से बचना मुश्किल हो गया।

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार[/font]
 
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

CHAPTER- 5

रुपाली - मेरी पड़ोसन

PART-5

69[/font]


[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]रुपाली भाबी अब मजे लेती धीरे-धीरे कराह रही थी, वो अभी भी वास्तव में स्टूल पर अपनी पकड़ ढीली करने के के कारण हुए हादसे से बहुत शर्मिंदा थी, लेकिन बहुत उत्तेजित ही चकी थी इसलिए वो चुपचाप मेरी बात मान गयी ।

रूपाली की टाइट जवान चूत में मैंने अपनी बीच की और चौथी उंगली को हिलाया था, लेकिन अब उसे कुछ नया सिखाने का समय आ गया था। मैंने अपनी चौथी उंगली को केवल थोड़ी देर के लिए निकाला और इस बार तर्जनी के साथ-साथ अपनी मध्यमा ऊँगली को भी योनि के अंदर खिसका दिया। मैंने उसे धक्का दिया और कुछ बार आगे पीछे करने से वो रूपाली के रस से भीग गयी । रुपाली अब जोर जोर से सांस ले रही थी क्योंकि मेरी मोटी उंगलियाँ उसकी चूत को चोद रही थी ।

उंगलियाँ पूरी की पूरी और अन्दर-बाहर हो रही थीं और उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि एक छोटा लंड उसे चोद रहा है। उसकी गीली चूत को उंगली से छोड़ने पर हुआ छप छप की आवाज आ रही थी । उसने भी अपनी चूत से आती हुई इन आवाज़ो को सुना ।

मैं अब उसकी चूत पर चूमा फिर योनि की ओंठो को मेरी जीभ के साथ चाटा। उसने वापस फ्लेक्स किया, मेरे चेहरे को उसके गर्म गुफा में आगे दफनाने की कोशिश कर रही थी। "ओह्ह्ह्ह ओह्ह यस्सस्सस्स!" वह कराहते हुए, उसके हाथ मेरे सर पर आये , और उसने मुझे अपनी योनी में खींच लिया।

जैसे ही मैंने उसके योनि के दाने को चाटा मेरी जीभ ने अपना काम किया। जैसे-जैसे मैंने अपने जबड़े और जीभ को उसकी चूत के ऊपर घुमाया, और मैंने जीभ से उसे चोदा, मैंने इस 36 साल की दो बड़े होते बच्चों की माँ के रस का स्वाद चखते हुए मैंने जैसे ही मेरी जीभ की योनि के अन्दरं डाला। उसकी सांस तेज हो गई, और उसकी कूल्हे की गति अधिक तेज हो गई, और उसने अपने ऊपर अपना नियंत्रण खोना शुरू कर दिया । मेरी जीभ अब उसकी चूत में गहराई तक समा गई थी। उसकी चूत कसी हुई थी उसकी चुत में स्पंदन होना शुरू हो गया फिर मेरी उँगलियाँ चटक रही थी क्योंकि उसे तीव्र ओर्गास्म हो रहा था।

उसने अपना सारा नियंत्रण खो दिया, और वह चिल्लाने लगी, "ओह हाँ ओह हाँ हाँ ओह हाँ हाँ ... ओह हाँ हाँ हाँ!" कहते हुए उसका शरीर पूरी तरह से संभोग सुख में हिलने लगा ।

उसने मेरा मुँह अपने रस से भिगो दिया , पहले उसने कभी भी इस आनंद को महसूस नहीं किया था , और उसे कई ओर्गास्म हुए । उसने कामोन्माद के उत्कर्ष का ये आनंद एक मिनट से अधिक समय तक रहा।

मेरे लण्ड से मेरा पूर्व वीर्य द्रव उसकी जीभ पर रिस रहा था। यह अविश्वसनीय उत्साह का मिश्रण था, और उसके ओर्गास्म्स के बाद, जहां वह कांप रही थी। वह मेरे लंड को अपने मुँह में फूला हुआ महसूस कर रही थी, जब मने ढाका दिया तो मेरे बालों वाले अंडकोषों उसकी ठोड़ी से टकराये उसने और मैंने मेरे लंड को उसके मुंह से बाहर निकाल दिया ।

मैंने अपने लिंग को तब इतना ही बाहर निकाला कि अब केवल फूला हुआ लंडमुंड ही उसके मुंह में था, और मैं कराह उठा , " भाभी अब बस लंडमुंड चूसो ... ओह, हाँ ... यह .. आप उस पर अपनी जीभ का उपयोग करें ... ओह, हाँ, यह अच्छा लगता है ... "

मेरे लंड का प्लम के आकार का लनसमुन्द मेरे लंड से बड़ा हो गया था, इसलिए एक बार उसके सामने के दांतों मेरे लंड पर लगे तो मैंने अपना लंड बाहर निकाल लिया, और उसके दांतों से बचा कर चूसने के लिए लिए सख्ती से फुसफुसाया। तो उसने लंड के अपने मुँह से मुक्त कर दिया और ऐसा करने पर उसके मुँह से बोतल का ढक्कन खुलने जैसे पॉप को आवाज आयी .

वो अपनी आँखें बंद करके, अपना मुँह खोल कर मज़े ले रही थी, और मेरे लंड उसके मुँह के बाहर था । वह अपने अगले भोजन के लिए भीख माँगती चिड़िया के बच्ची की तरह लग रही थी। मैंने लंड को उस खाली जगह में वापस धकेल दिया, और वह वापस अपनी जीभ से लंड के सिर को रगड़ती चली गई। अब वो मेरे लंड को एक लोली पॉप की तरह से जीभ फिरा कर चूसने लगी. अब उसके मुँह की लार से वह वास्तव में मेरे लंड को स्पॉन्ज कर रही थी, और जिस तरह से उसकी लार और मुँह के तरल पदार्थ मेरे लंड पर लेप कर रहे थे, उससे उसके मुंह में दर्द महसूस हो रहा था।

थोड़ी देर तक ऐसा करने के बाद, मैंने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी, और अपने लंड को उसके मुंह में ज्यादा से ज्यादा घुसेड़ दिया। इससे उसे इस बात का अहसास हुआ कि इस दर पर, मैं बहुत जल्द उसके मुंह में पिचकारियां मारूंगा । वह यह सोचने की कोशिश करने लगी कि ऐसा होने पर वह क्या कर सकती है। उसने सोचा कि जब मैं झड़ते हुए पिचकारियां मारना शुरू करूंगा तब वह उसे अपने होठों से रगड़ते हुए लंड को बाहर निकाल देगी ।

वह मेरे वीर्य को इतने करीब से निकलते हुए देखने की संभावनाओं से उल्लेखनीय रूप से उत्साहित थी । मैं उसके चेहरे पर पिचकारी मारूंगा ये तथ्य उसे परेशान नहीं कर रहा था बल्कि उसे लगा यह देखना रोमांचकारी होगा, और उसे लगा कि वह बाद में सफाई कर सकती है। उसे लगा वो मेरे बड़े लंड से उसके मुँह में निकलनेवाले मेरे वीर्य को अपने गले से नीचे नहीं उतार पाएगी और ऐसा होने पर वो इसे संभाल नहीं सकती थी।

अब मेरा लंड और कठोर हो गया था और लंड का सर भी फूल कर उसकी जीभ से भी बड़ा हो गया ठा । उस समय मई पूरा लंड उसके मुँह में घुसा देता था, लेकिन केवल आंशिक रूप से बाहर खींच रहा था। मैंने अपने हाथों को उसके सिर से हटा दिया, और उसने सोचा कि यह मेरे झड़ने पर मेरे लंड को बाहर निकालने में मदद करेगा। अचानक, मैंने अपने शरीर के वजन का उपयोग करते हुए उसे अपनी पीठ पलट दिया जिससे मेरी जाएंगे उसके सर के ऊपर आ गयी और मेरी भारी जांघों को उसके कंधों पर रख दिया । वह डर और बेचैनी से अधिक उत्साह से कराहने लगी और मैं उसके चेहरे पर धक्के मारने लगा, मेरे पैर उसी तरह से हिलना शुरू हो गए जिस तरह से उसके हिले थे जब वो झड़ रही थी और जब वह कुछ ही पल पहले मेरे मुंह में झड़ गयी थी ।
वह घबराहट की स्थिति में थी, लेकिन कम से कम इस बार उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे लगा कि बिना कोई हंगामें खड़ा किये , वह इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकती है हंगामा तो वो अभी बिलकुल नहीं चाहती थी, इसलिए उसने मेरे शुक्राणु को निगलने से अच्छी शुरुआत की थी।

मेरा लंड का मुँह उस समय उसके गले के प्रवेश द्वार के ठीक सामने था मैं उत्कर्ष पर पहुंचा और उसके मुँह में पिचकारी मार दी । वीर्य की बड़ी धार उसके गले के ठीक जा कर लगी , और वही चिपक गयी , और वह तुरंत उस गाड़े और मोटी गोली को को निगलने की कोशिश करने लगी । एकमात्र समस्या यह थी कि इसकी चिपचिपाहट के कारण, वह वीर्य जिस गति से निकलन रहा था उस गति से वो वीर्य की निगल नहीं पायी ।

साथ ही मैं लंड को आगे पीछे भी कर रहा था जिससे मेरे अंडकोष उसकी नाक से टकरा कर नाक को भी दबा रहे थे, उसके मुँह में मर्रा लंड ठूसा हुआ था इसलिए वो केवल नाक से ही या जब लंड बाहर निकलता था तब ही साँस ले सकती थी । मैं उसकी सांस लेने की तक अपने शुक्राणु की पिचारी मार रहा था ।

जब उसे सांस लेने में दिक्कत हुए तो वो खाँसने लगी , तो उसकी नाक से मेरे वीर्य निकल आया, मैंने उसके मुँह के अंदर पम्पिंग करनी और पिचकारियां मारनी जारी रखि । बलगम और शुक्राणु से उसका नाक मुँह और गला भर गया जिससे खांसी होती थी, और अब निगलना और भी कठिन हो गया । उसने कातर निगाहो से मेरी और देखा तो मैंने लंड बाहर निकाल लिया और आखरी कुछ पिचकारियां उसके मग पर मार दी जिससे मेरे वीर्य उसके मुँह आँखो गालो माथे और बालो तक फ़ैल गया

कुछ पलों के बाद, हम दोनों एक दुसरे को सहारा देकर दोनों फर्श से उठे और आपसमे लिपट गए फिर जैसे क्या हुआ ये एहसास हुआ तो अलग हुए और अपने कपड़े पहनना शुरू किया। कपडे जब पहन लिए तो मुझे अचानक मुझे रूपाली की सुबकमे की आवाज सुनाई दी। हम दोनों स्थिति का विश्लेषण कर रहे थे और अब पछता रहे थे।

मैंने कहा, "प्रिय रूपाली भाभी, हम दोनों के बीच जो भी हुआ, उसके लिए मुझे बहुत दुख है और मैं पछतावा कर रहा हूं। मैंने इस सब के लिए आपसे क्षमा माँगता हूँ , क्योंकि मैंने ही सब कुछ शुरू किया था । जैसा कि आप जानते हैं कि मैं अविवाहित हूँ और इस दुर्घटना ने मेरे अंदर आग लगा दी थी मेरे भीतर मौन रहने वाली यौन इच्छा की आग भड़क गयी थी । मेरे प्रिय, मैंने यह जानबूझकर नहीं किया था, और यह सिर्फ आपके साथ अंतरंग स्पर्श के प्रवाह के कारण हुआ। मुझे फिर से खेद है, और इसके लिए मैं ही दोषी हूँ इसमें आपका कोई दोष नहीं है ।

" रूपाली ने सुबकना बंद कर दीया , और उसकी आँखों से आंसू गिर रहे थे और उसे बहुत शर्म आ रही थी और उसने एक नरम लहजे में जवाब दिया, "नहीं ... काका, इसमें आप अपने आप को अकेला दोषी मत मानो , मैं भी इसके लिए समान रूप से जिम्मेदार हूं। अगर मैंने स्टूल को ढीला नहीं किया होता तो शायद यह दुर्घटना नहीं हुई होती , इसलिए मैं भी इस पूरे प्रकरण के लिए समान रूप से दोषी हूँ । मारे बीच जो भी हुआ वो क्षणिक उत्तेजना के कारण हुआ , मैंने भी सहयोग किया, और आपको प्रोत्साहित किया । "

लेकिन हमारे दिलों के अंदर, हम दोनों इस सुखद दुर्घटना से बहुत खुश थे, लेकिन एक-दूसरे के प्रति मासूमियत, सदाचार और विनम्रता का भाव दिखा रहे थे।

मैंने कहा भाभी आप इस का जिक्र किसी से भी मत करियेगा और मैं भी वादा करता हूँ ये एक राज ही रहेगी अब आप अपने आप को सम्भालिये .. तो उसके बाद भाभी बाथरूम में जा कर खुद को साफ़ करने लगी और उसने दूसरी चोली पहन ली क्योंकि पहली चोली इस दुर्घटना में फट गयी थी ..

इस बीच, प्रवेश द्वार पर घंटी बजी क्योंकि बच्चे पार्क से लौट आए थे। दोपहर 2 बजे के आसपास, रूपाली ने मुझे अपने फ्लैट में दोपहर का भोजन परोसा, और हमने बहुत ही सामान्य अभिनय किया जैसे कि हमारे बीच कुछ भी नहीं हुआ हो, लेकिन हम दोनों एक-दूसरे के प्रति यौन रूप से इतने आकर्षित थे कि एक-दूसरे को देखकर हमारे यौन अंग जल रहे थे। लंच करने के बाद मैं झपकी लेने जा रहा था।


कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार
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