"शुक्र है आप माने तो.. और काम तो काफ़ी सारे हैं, आप कुछ मॅन्यूफॅक्चरिंग का ही कीजिए, आज कल सूरत में काफ़ी मिल्स हैं, वहाँ से कपड़ा लेके यहाँ बेचें.. पैसे का पैसा, इज़्ज़त की इज़्ज़त भी.." रोज़ा ने रॉकी और मुझे कहा.. सीमी ने भी रोज़ा की बात में हामी भरी, और रॉकी तो बस मुझे ही घूर रहा था, जैसे मेरे हां कहने का इंतेज़ार कर रहा हो..
"क्या भाभी.. अच्छा सुनिए, सुन रॉकी.. अब स्मगलिंग के धंधे में काफ़ी किच किच है... रोज़ रोज़ पोलीस से मिलो, और अब काफ़ी लोग इस लाइन में घुस आए हैं.. मैं कल ही सूरत के एक हीरा व्यापारी से मिला हूँ. उसके साथ कुछ दूसरे व्यापारी भी हैं जो वापी के हैं.. हम 4-5 लोग हैं, कुछ शुरुआत में 3 करोड़ जैसा लागत है, हम दोनो को 50-50 लाख निकालने हैं..... मिलके हवाला के धंधे में घुसते हैं.." मैने टेबल पे सब के सामने कहा
"भाई, तू सोचना छोड़ ही दे.. मेरे पास कुछ 55 लाख हैं, अगर 50 लाख लगा दूँगा, तो मेरे पास क्या बचेगा, आगे की ज़िंदगी कैसे कटेगी.. और जो हम ने प्रॉपर्टी देखी है खार में, यह रहे उसके काग़ज़, मैने साइन कर दी है, तुम भी कर दो.. अच्छी प्रॉपर्टी बन जाएगी आने वाली ज़िंदगी के लिए.. हवाला के धंधे में सब कुछ चला गया तो वापस सब शुरुआत से शुरू करना पड़ेगा.. मैं तैयार नहीं हूँ इसके लिए.." रॉकी के इस जवाब ने मेरी सारी उम्मीदों पे पानी फेर दिया....
दूसरे दिन, जब मैं प्रॉपर्टी पेपर पे साइन करके रॉकी के घर पहुँचा तो देखा रॉकी घर नहीं था... शाम भी हो रही थी
"अरे आप, आइए ना.. " रोज़ा ने मुझे बिठाते हुए कहा
"बस भाभी.. यह पेपर्स रॉकी को दे देना, मैं जाता हूँ.." मैने जवाब दिया
"अरे राकेश , आप चाइ पीके जाइए..प्लीज़" कहके रोज़ा किचन में चाइ बनाने लगी..... मैं भी बातें करने रोज़ा के साथ किचन में चला गया.. हम दोनो किचन में खड़े खड़े ही बातें करने लगे और इतने में बारिश होने लगी...
"लीजिए.. अब तो यहीं रुकना पड़ेगा आपको.." रोज़ा ने हँस के मुझे कहा.. रोज़ा की आँखों को देख के मेरे शरीर में जैसे एक अजीब सी लहेर दौड़ गयी हो... उसकी आँखों में डूबता चला गया. वो समा ही ऐसा हो चुका था कि मैं खुद की भावनाओ को काबू नहीं कर पाया.. मैं धीरे धीरे रोज़ा की तरफ बढ़ा और एक ही पल में उसे अपनी बाहों में भर लिया.. पहले तो रोज़ा ने भी काफ़ी मना किया, लेकिन धीरे धीरे वो मेरा साथ देने लगी... हम दोनो बारिश में बेकाबू से होने लगे.. रॉकी और सीमी को भूल के हम दोनो बस वहीं खड़े खड़े अपने जिस्म की आग की गर्मी में पिघलने लगे.... दूसरे दिन सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैं रॉकी के बिस्तर पे रोज़ा की बाहों में था... रॉकी के साथ मैं बैईमानी नहीं कर सकता, यह सोच के मैं धीरे से रोज़ा से अलग हुआ और कपड़े पहेन के बाहर जा ही रहा था के सामने पड़ी मेज़ पे मेरी नज़र पड़ी... वहाँ पे वो प्रॉपर्टी के पेपर थे जिस पे मेरे और रॉकी के साइन थे, और उसी के पास थी रॉकी की तिजोरी की चाबी.. मैने धीरे से चाबी को उठाया और पास में रखी तिजोरी को खोलने लगा.. रोज़ा अभी भी नींद में थी.. इसलिए मैने आराम से तिजोरी में से सारे पैसे निकाले और प्रॉपर्टी के पेपर्स वापस लेके घर चला आया... सीमी की नज़रों से छुपा के मैने पैसों का ब्रीफ केस अपने कपबोर्ड में छुपा दिया.. अगले दिन रॉकी का फोन आया मुझे
"भाई, घर पे चोरी हो गयी है यार... " रॉकी ने बड़ी हताशा वाली आवाज़ में कहा.. रॉकी की बात सुन मैने कुछ नहीं कहा, इतने में पीछे से रोज़ा की आवाज़ आई
"जब तक राकेश भाई सहाब घर नहीं थे , तब तक सब पैसे तिजोरी में थे.."
"रोज़ा खामोश रहो.. राकेश मेरा दोस्त है, वो कभी ऐसा नहीं करेगा.... भाई , माफ़ कर दे यार... बस तू यहाँ जल्दी से आजा यार..." रॉकी ने सुबक्ती हुई आवाज़ में कहा.. मैं काफ़ी देर तक सोचता रहा और फिर सीमी के साथ उनके घर पहुँच गया.. रॉकी के घर पहुँचते ही रोज़ा ने फिर वोई बात की..
"ओफफो.. रोज़ा, तो तुम क्या कह रही हो.. राकेश यहाँ प्रॉपर्टी के पेपर्स लाया, और तुम्हारे सामने पैसे लेके निकला." रॉकी ने झल्ला के कहा.. रॉकी की यह बात सुन रोज़ा खामोश हो गयी क्यूँ कि पिछली रात हम से जो पाप हुआ था वो दबा के रखना ज़रूरी था हमारे लिए...
"भाई परेशान ना हो... हम कुछ करेंगे..." मैने रॉकी को आश्वासन देके कहा
"कैसे परेशान ना होऊ यार, पोलीस में भी खबर नहीं कर सकते....." रॉकी टूटी हुई आवाज़ में बोलने लगा.. कुछ देर तक मैं और सीमी वहीं बैठे रहे और फिर वापस अपने घर आ गये.. अगले 10 दिन तक मेरी और रॉकी की कोई बात चीत नहीं हुई.. हम स्मगलिंग के काम को छोड़ ही चुके थे.. कुछ बड़ा हो तो मैं करता, वरना रॉकी बिल्कुल नहीं आता कभी मेरे साथ... ठीक 10 दिन बाद रॉकी का फोन आया
"भाई.. जल्दी घर आजा भाभी के साथ..." कहके रॉकी ने फोन कट किया... मैं जल्दी से सीमी के साथ निकला और रॉकी के घर पहुँचा...
"भाई.. बधाई हो... आप तो चाचा बनने वाले हो" रॉकी ने मुझे देख के कहा और मुझसे गले लग गया... रॉकी की यह बात सुन मेरी नज़रें जैसे ही रोज़ा से टकराई, उसने अपनी नज़रें नीची कर ली... उसकी नज़रों से सॉफ पता चल रहा था कि यह रॉकी का नहीं, हमारे किए हुए पाप का बीज है... रॉकी को इतना खुश देख मुझे एक घुटन सी होने लगी....
"भाई, अब मेरे पास तो पैसा है नहीं, और हवाला के पैसे के लिए चाहिए 1 करोड़... तो स्मगलिंग का कुछ वापस करना पड़ेगा... पर तब तक जब तक रोज़ा हमारे बच्चे को जनम नहीं दे देती.. जैसे ही मेरा बच्चा होगा, मैं उस दिन से कसम ख़ाता हूँ, हराम के पैसे को चुकाउन्गा तक नहीं.." रॉकी ने सब के सामने कहा... रॉकी को ऐसे देख मैने कुछ नहीं कहा और बस उसकी हां में हां भारी.. रॉकी को बताए बिना मैने सूरत और वापी के व्यापारियों से संपर्क किया और उन्हे एक करोड़ दे दिया हवाला में घुमाने के लिए...
"पैसे देने की हिम्मत रखता हूँ, तो वापस लेने का जिगरा भी है सेठ.. आज से ठीक तीन महीने बाद आपसे मिलूँगा, अपना हिस्सा लेने के लिए" मैने सूरत के व्यापारी को पैसा देते हुए कहा..
इधर रॉकी और मैं फिर से स्मगलिंग के काम में लग गये... स्मगलिंग में पहले जैसे पैसे नहीं थे.. सरकार ने काफ़ी चीज़ों से इम्पोर्ट रिस्ट्रिक्षन हटा लिया था, इसलिए काफ़ी चीज़े तो इंडिया में लीगली आ जाती. पैसा मिलता तो बस ड्रग्स की स्मगलिंग से.. लेकिन ड्रग्स में ख़तरा काफ़ी था, इसलिए ड्रग्स बेचने वाले कम थे.. जब भी कोई काम मिलता, तो उसमे इतने पैसे नहीं आते.. तीन महीने गुज़रे पर हवाला से भी कुछ पैसा नहीं आया..
"देख भाया... यह धंधा ही ऐसा है, आज नहीं आया तो कुछ वक़्त के बाद आएगा.. अगर तुझे मारे पे विश्वास ना है, तो ले ले अपना 1 करोड़ और चलता बन.. और रुकना है तो थोड़ा रुक जा.. मारवाड़ी सेठ की ज़बान है, 1 करोड़ का 3 करोड़ दूँगा अगर और 6 महीने दिए तो.." सूरत के व्यापारी ने मुझे कहा.. उसकी बात सुन मैं फिर सोचता रह गया.. जी मार के भी मैने उसे हां कह दिया और फिर रॉकी को जाय्न कर लिया.. इधर रोज़ा की डेलिवरी डेट भी नज़दीक आ रही थी.. हम दोनो हमारी पुरानी बात को भूलने की कोशिश कर रहे थे, और रोज़ा भी धीरे धीरे सब भूलने लगी थी... रोज़ा की डेलिवरी के ठीक दो दिन पहल रॉकी और मैं मिले थे
"यार, एक बड़ा कन्साइनमेंट है कल. अगर वो कन्साइनमेंट कल ठीक तरह से मैने पहुँचा दिया तो मुझे काफ़ी पैसे मिलने वाले हैं.. यूँ समझ ले, चोरी हुई रकम से दो गुना पैसा आ जाएगा मेरे पास. और डेलिवरी परसो की, मतलब ठीक वक़्त पे पैसे आ जाएँगे और मेरी कसम भी रह जाएगी " रॉकी ने खुश होके कहा
"ठीक है दोस्त... सब पैसा तेरा, मुझे उसमे से कुछ भी नहीं चाहिए..." कहके मैने रॉकी से अलविदा लिया और घर निकल आया.. दूसरी शाम को रॉकी और मैं वो कन्साइनमेंट लेने गये.. ठीक तरह से हम ने माल ले तो लिया, पर जैसे ही हम डेलिवरी के लिए निकले, पोलीस हमारे पीछे लग गयी.. पोलीस और हमारे बीच काफ़ी देर तक दौड़ भाग हुई... इसी दौरान रॉकी को गोली लग गयी और वो ऑन दा स्पॉट मर गया... रॉकी को हॉस्पिटल ले जाने के बदले, मैं पहले ड्रग्स को पहुँचाना चाहता था, क्यूँ कि रकम काफ़ी बड़ी थी.. करीब 2 घंटे बाद जब पोलीस से हम दूर निकले तब मैने लालच में आके पहले माल डेलिवर किया.. फिर जब तक रॉकी को हॉस्पिटल ले गया, तब तक रॉकी अपनी साँसें तोड़ चुका था... जिस हॉस्पिटल में रॉकी को ले गया, रोज़ा भी वहीं अड्मिट थी.. इसलिए मैं रोज़ा के पास पहुँचा तो पता चला उसकी डेलिवरी भी आज ही थी.. उधर सीमी मौजूद थी तो मैने कुछ नहीं कहा और बस रोज़ा की डेलिवरी का इंतेज़ार करने लगा..
रोज़ा ने दो लड़कियों को जन्म दिया था... लेकिन डेलिवरी के वक़्त रोज़ा को काफ़ी प्राब्लम हुई इसलिए वो डेलिवरी के बाद काफ़ी देर बेहोश रही.. मैने सीमी को भी घर भेज दिया ये कहके कि मैं भी जल्द ही घर आउन्गा... सीमी के घर जाते ही मैं रोज़ा के डेलिवरी रूम में गया.. रोज़ा अब तक बेहोश थी, लेकिन उसके पास दो बच्चियाँ देख मेरा दिल रो पड़ा.. ना तो रोज़ा के पास पैसे थे, और ना ही उसके पति का सहारा.. दो बच्चियों को पालना मुश्किल हो जाएगा.. इसलिए मैने उसके बगल से एक लड़की को अपनी गोद में उठाया और चुरा के उसे अपने घर ले आया.. घर ले आके मैने सीमी को सारी सच्चाई बता दी.. काफ़ी देर तक सीमी ने भी मुझे खरा खोटा कहा, और गुस्सा भी हुई... लेकिन सीमी मुझसे काफ़ी प्यार करती थी... इसलिए वो मुझे छोड़ भी नहीं सकती थी...
"ठीक है.. लेकिन इस बच्ची को हम नहीं पाल सकते, तो अब यह बच्ची पलेगि हमारी नज़र में ही.. लेकिन हमारे घर नहीं.. कहीं और" सीमी ने मुझे अपना फ़ैसला सुनाया.. मैं उस वक़्त काफ़ी परेशान था तो सीमी की हां में हां भर दी... दूसरे दिन जब रोज़ा को पता चला कि उसके पति की मौत हो चुकी है, और उसकी एक बच्ची भी गायब है तो वो भी हॉस्पिटल में फूट फूट के रोने लगी.. काफ़ी वक़्त बाद जब रोज़ा ने खुद को संभाला, तब सीमी ने रोज़ा से बात की
"रोज़ा... हम तुम्हें ऐसे नहीं देख सकते.... इसलिए राकेश ने तुम्हारे लिए एक फ्लॅट खरीदा है, दोस्ती का फ़र्ज़ निभाने दो हमे प्लीज़.. आज से तुम वहाँ रहोगी, और इस बच्ची की परवरिश भी हमारी निगरानी में होगी.."सीमी ने रोज़ा से कहा, लेकिन उसे अब तक नहीं बताया कि रॉकी की मौत और पैसों का ज़िम्मेदार मैं था.. रोज़ा ने काफ़ी देर हमारी बात नहीं मानी, पर अंत में वो हमारे दिए हुए फ्लॅट में रहने लगी.. मैने हवाले में जो एक करोड़ लगाया था वो 9 महीने बाद 3 नहीं, बल्कि 4 करोड़ हुआ.. 1985 से लेके 1995 तक मैं उस 3 करोड़ का 300 करोड़ बना चुका था.. पूरा का पूरा ब्लॅक....
रोज़ा की बच्ची मेरी बच्ची थी, इसलिए उसकी शादी तक की ज़िम्मेदारी मैने निभाई... आज से कुछ 4 महीने पहले जब मुझे और सीमी को पता चला कि रोज़ा भी बस मौत के नज़दीक है, तब हम उससे मिलने पहुँचे.. मरते वक़्त भी रोज़ा हमारा शुक्र मना रही थी कि हम ने उसकी इतनी मदद की... जब सीमी से देखा नहीं गया, तो रोज़ा और उसकी लड़की की मौजूदगी में सीमी ने उन्हे सारी सच्चाई बता दी... यह सब बातें सुन रोज़ा का तो मानो जैसे दिल ही बंद हो गया हो... हमारी बात सुनने के करीन 10 मिनट बाद रोज़ा ने अपनी आखरी साँस ली.. बचपन से लेके आज से 4 महीना पहले तक, हम ने रोज़ा की एक लड़की को पाला , पोसा और उसे हर वो चीज़ दी जो उसके लिए ज़रूरी थी और आश्वासन रखा इस बात का कि उसे कभी एहसास ना हो के उसके साथ सौतेला व्यवहार हुआ है...
इस वाक्य के बाद राकेश खामोश हो गया था... उसने फिर से अपने स्पेक्स पहेन लिए और भारत को देखने लगा.... यह सब सुन के भारत को विश्वास नहीं हो रहा था कि राकेश का पास्ट इतना काला था...भारत ने पूरी बात को हजम करने की कोशिश की, लेकिन फिर एक जगह पे आके उसका दिमाग़ रुका और उसने राकेश से कहा
"डॅड... आपके पार्ट्नर की बीवी की दो लड़कियाँ... एक की शादी आपने करवाई, और शायद उसी की मौजूदगी में आपने रोज़ा से सच्चाई कही थी.. राइट " भारत ने बड़े ही कॅल्क्युलेटिव तरीके से कहा
"यस सन.. राइट.." राकेश ने भारी आवाज़ से कहा
"ओके डॅड, तो जो बच्ची आपने चुराई..वो आपने कहा कि मोम ने उसे पालने से मना कर दिया, लेकिन वो पली आपकी निगरानी में ही.. तो फिर वो लड़की कहाँ गयी..." भारत ने अपने शब्दों को अपनी जगह पे रखने की कोशिश की... "और डॅड.... इससे पहले प्लीज़ आप मुझे बताइए, यह सब मुझे आप आज ही क्यूँ बताना चाहते थे..." भारत ने बड़े आश्चर्या चकित होके पूछा
"भारत, तुम में मैं खुद को देख रहा हूँ.. पैसे की माया में जैसे मैं अँधा था वैसे ही तुम बन गये हो.. जैसे मैने कभी दोस्तों रिश्तेदारों की परवाह नहीं की, तुम भी वैसे ही कर रहे हो.. हर वो चीज़ जो मैं अपनी जवानी में कर चुका हूँ, तुम भी ठीक उस राह पे जा रहे हो.. फरक यह है कि मैने सब काम ब्लॅक किया था, और तुम कॉर्पोरेट कल्चर में जाके वाइट कॉलर में कर रहे हो.." राकेश ने भारत की आँखों में देख कहा
"कम ऑन डॅड... मैं किसी के कंधों पे या किसी के विश्वास को मार के उपर नहीं जा रहा..." भारत ने भी बराबरी बनाते कहा
"जेपीएम इंडिया के सेल्स फिगर कैसे निकाले तुमने.. मैं अच्छी तरह जानता हूँ बेटे..." राकेश ने एक शैतान हँसी के साथ कहा.. राकेश की यह बात सुन भारत खामोश रहा, लेकिन उसे यह समझ नहीं आया कि राकेश को कैसे पता चला इन सब के बारे में.. उसे भरोसा था कि शालिनी कभी किसी से यह सब बातें शेअर नहीं करेगी...
"हैरान नहीं हो भारत. बाप हूँ मैं तुम्हारा, और तुम्हे क्या लगता है, हवाला के धंधे में मेरा काफ़ी स्ट्रॉंग नेटवर्क था... विक्रम कोहली बहुत पुराना खिलाड़ी है इन सब का... विक्रम कोहली मुझ से पहले हवाले के धंधे से निकल चुका था.. अगर वो कॉर्पोरेट में है तो बस दुनिया से अपना कला धन छुपाने के लिए.. अगर तुम मेरे बेटे ना होते तो विक्रम कब का अपनी चाल चल चुका होता, लेकिन जैसे ही विक्रम को पता चला के तुम मेरे लड़के हो उसने मुझसे बात की और मेरे कहने पे ही वो अब तक खामोश है..." राकेश ने भारत के कंधे पे हाथ रख के कहा
"डॅड वो खामोश है के नहीं, वो कहानी मैं आप को बाद में बताता हूँ.. पर उससे पहले मुझे बताइए.. कहीं उन दो लड़कियों का नाम इस लिस्ट में सब से उपर तो नहीं" भारत ने राकेश को उसकी बनाई हुई लिस्ट हाथ में देते हुए कहा
भारत के हाथ से वो लिस्ट लेके राकेश ने जब उसे देखा, तो उसे कुछ समझ नहीं आया.. उसने ध्यान से लिस्ट को देखा , फिर कहा
"यह दो पहले नाम... और विक्रम कोहली का नाम इसमे क्या कर रहा है.. और यह मेहुल, यह शायद वोही आदमी है जो बॅंक लूट में फसा था राइट... और यह सिद्धार्थ कौन है ?" राकेश ने हैरानी से पूछा
"डॅड, बस आपको पहले दो नाम ही बताने थे, बाकी की बातें आपको घर चल के क्लॅरिफाइ करता हूँ... हां लेकिन अब तक ,मुझे आपने नहीं बताया, कि यह सब आपने आज ही क्यूँ बताया.. आइ मीन डॅड, देअर इस डेफनेट्ली आ स्पेसिफिक रीज़न राइट... कम ऑन, स्पिल दा बीन्स आउट नाउ..." भारत ने औथोरटिव वे में राकेश से कहा... राकेश और भारत बातें करते करते आगे बढ़ने लगे और राकेश ने उसे सब बता दिया..
"ओके डॅड.. नो इश्यूस, चलिए यह भी देख लेंगे, फिलहाल तो घर चलते हैं, हम दोनो की बीवियाँ काफ़ी चिंता में होंगी..." भारत ने मज़ाक में कहा
"यार इतनी टेन्षन वाली बात है, और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है.. अब क्या करें इसका पहले वो तो बताओ..." राकेश ने फिर भारत से सवाल पूछा
"डॅड, आप की पहचान है कोई यूएस में.." भारत ने सवाल का जवाब सवाल से दिया
"हां भारत, आइ हॅव आ फ्रेंड...क्यूँ" राकेश और भारत आगे बढ़ते बढ़ते ही बातें कर रहे थे
"कॉल हिम नाउ प्लीज़... उधर तो अभी शाम ही हुई होगी..." कहके भारत ने अपना फोन राकेश को दिया, और बिना कुछ पूछे, राकेश ने अपने दोस्त का नंबर मिलाया.. कुछ रिंग्स के बाद जब राकेश के दोस्त ने फोन उठाया, थोड़ी ही हेलो के बाद राकेश ने भारत को फोन दिया
"हेलो सर... आइ गेस आप न्यू जेर्सी में हैं अभी." भारत ने आगे बढ़ते हुए कहा
"अरे नहीं बेटा, आइ स्टे देअर. आज कुछ काम से न्यू यॉर्क में ही हूँ, बोलो, हाउ कॅन आइ हेल्प यू." राकेश के फ्रेंड ने हँस के कहा
"सर, न्यू यॉर्क डोव्न्टोव्न, स्ट्रीट नो 4 पे ब्लॉक 2 में दो इंडियन्स रहते थे.. सिद्धार्ता आंड रूबी.. सिद्धार्ता तो इंडिया आ गया है, बट आइ डाउट रूबी ईज़ इन सम डेंजर.. तो आप ज़रा लोकल पोलीस से कॉपरेट कर सकते हैं, रूबी ईज़ आ फॅमिली.." भारत के कदम एक दम राकेश के कदमों से मिलकर आगे बढ़ रहे थे...