Antarvasna kahani नजर का खोट - Page 12 - SexBaba
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Antarvasna kahani नजर का खोट

पहली बार उसकी मुस्कराहट में बेईमानी सी लगी मुझे उसने जिस अदा से देखा था मुझे मेरे दिल ने कुछ कहा मुझसे पर पूजा की आँखों में एक दृढ़ संकल्प दिखा मुझे ,उसने हौले से मेरे सर को थपथपाया और जैसे एक सर्द हवा का झोंका मुझे छू गया

बीते कुछ महीनों में ज़िन्दगी मुझे कहा से कहा ले आयी थी मेरा हर ख्वाब हर तदबीर धुंआ धुंआ हो गयी थी अपने परिवार का काला सच सुनकर मैं इस हद तक टूट गया था की अगर पूजा न होती तो मैं मर ही जाता पर आखिर राणाजी और मेनका को ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी की वो वक़्त के किस पन्ने को पलट देना चाहते थे 

जैसे जैसे समय बीत रहा था एक अनजान भय मेरी रूह को जकड रहा था , अपने आप से भागते हुए दो पल मेरी आँखे बंद हुई और मैंने तभी कुछ ऐसा देखा की एक बार फिर मैं कांप गया मैंने बस उन दो पलो में ऐसा विहंगम द्रश्य देखा 

मैंने देखा की राणाजी का कटा हुआ सर मेरे कदमो में पड़ा है और मेरे हाथ में तलवार और दूसरे में एक लाल ओढ़नी है रक्त रंजित जिसका रक्त मुझे भिगो रहा था माथे पर आ गए पसीने को पोंछ कर कुछ घूंट पानी पिया

पर दिल अभी भी किसी अनजानी आशंका की तरफ इशारा कर रहा था कलाई में बंधी घडी की तरफ मैंने देखा अभी कुछ समय सेष था पर लाल मंदिर का ये हिस्सा पूरी तरह खामोश था तभी पायल की झंकार ने मेरा ध्यान खींचा सीढ़िया चढ़ते हुए पूजा आ रही थी
और मैंने गौर किया पूजा ने ठीक उसी तरह की ओढ़नी ओढ़ी हुई थी जैसे मैंने उस सपने में देखि थी दिल और तेजी से धड़कने लगा 

पूजा- तैयार हो 

मैं- हां 

मैं और पूजा गर्भग्रह में गए और जैसे ही पूजा ने अपना पैर उस चौखट के अंदर रखा उसकी पायल एक झटके से टूट गयी, मंदिर की तमाम घंटिया एक साथ बज उठी और पूजा लगभग चीख ही पड़ी"माँ आअघ्घ"

मैंने तुरंत उसे पकड़ा 

मैं- क्या हुआ पूजा 

वो- ठीक हु शायद कुछ चुभ गया 

जैसे ही हम माता की मूर्ति के पास बैठे हवा का जोर कुछ ज्यादा हो गया था पूजा का पूरा चेहरा पसीने में भीग गया था होंठ कुछ बुदबुदा रहे थे और तभी एक बड़ा सा दिया अपने आप जल गया और हमारा काम शुरू हो गया 

पल पल जैसे भारी हो गया था मैंने देखा की पूजा की हालत कुछ बिगड़ रही है पर उसने इशारे से मुझे शांति से बैठने को कहा और अपने मन्त्र पढ़ने लगी दूर कही कैसे हज़ारो सियार रोने लगे हो ठीक ऐसा ही अनुभव मुझे उस दिन हुआ था जब मैं उस रात खारी बावड़ी में गया था

पुजा ने एक कटारी उठाई और अगले ही पल मेरा सीना चिर गया दर्द में डूबने लगा मैं उसकी उंगलियां मेरे सीने में धंसने लगी और फिर उसने वो रक्त अपनी मांग में भरा और त्तभी पूजा की चीख में मन्दिर की चूले हिला दी

"अअअअअअ आआआह" इतनी बुरी तरह से वो चीख रही थी की जैसे उसे काटा जा रहा हो मैंने उसे अपने आगोश में लिया और मुझे ऐसे लगा की कोई आग मुझसे सटी हुई हो

मेरे सीने से टपकते रक्त से मैंने मूर्ति का अभिषेक शुरू किया पर वो मूर्ति जितना रक्त उस पर पड़ता वो उतना ही पीती जाती पूजा बार बार कुछ चिल्लाती और एक लम्हा ऐसा आया जब मंदिर की हर रौशनी बुझ गयी सिवाय उस एक दीपक के जिसकी लौ रोशन होना हमारी उम्मीद थी

पूजा- कुंदन घबराना नहीं मैं साथ हु तेरे साथ हु 
मैं कुछ कहता उससे पहले ही हमारे चारों तरफ आग लग गयी बदन का मांस जैसे पिघलने लगा मैंने मूर्ति पर और रक्त अर्पण करना शुरू किया पर आग और बढ़ती जा रही थी और ज्यादा इतनी ज्यादा की मेरे पैरों की खाल झुलस कर अपने ही मांस से चिपकने लगी 

पूजा- सिंदूर से रंग दे मुझे कुंदन 

मैंने पास रखी थाली से सिंदूर लिया और पूजा के9 रंग ने लगा आग शांत होने लगी पूजा का नूर वापिस आने लगा मूर्ति कुछ कुछ अब गीली होने लगी थी पूजा का मंत्रोउचारण अब तेज होने लगा था और मेरा रक्त जैसे जमने लगा था पूजा ने ऊपर आसमान की तरफ देखा और फिर अपने कपडे उतारने शुरू किये उसका ऐसा वीभत्स रूप देख कर एक पल तो मैं डर ही गया बुरी तरह से पूजा मेरी पास आई और उसने अपने होंठ मेरे खुले सीने से लगा दिए और मेरा रक्त पीने लगी

जैसे जैसे वो खून पी रही थी मूर्ति भीगने लगी थी पर मेरी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा था कमजोरी चढ़ने लगी थी पैरो की शक्ति कम पड़ने लगी थी पर उसने भी जैसे आज मेरी अंतिम बूँद तक को निचोड़ने का सोच लिया था और तभी कुछ ऐसा हुआ की जो मैंने न कभी देखा न कभी सुना पूजा के आधे बदन में आग लग गयी उसका बायां हिस्सा धु धु करके जलने लगा और उसको दर्द में छटपटाते हुए देख कर मुझसे रहा नहीं गया मैं उसकी आग बुझाना चाहता था पर उसने मुझे कास के पकड़ लिया उसके साथ मैं भी जलने लगा प्रांगण में जलते मांस की दुर्गन्ध भर गयी चारो तरफ धुंआ ही धुंआ और हमारी चीखे साँस न जाने किस पल साथ जोड़ जाए 

धुंआ इतना घना था की कुछ न दिख रहा था और जलते बदन से गिरते मांस के लोथड़े इतना जरूर बता रहे थे की ये कोई ख्वाब नहीं था तो क्या ये ही नियति थी पूजा और कुंदन की क्या यही अंत हो जाना था पर शायद नहीं 

एक तेज धमाके के साथ मूर्ति फट गयी और उसकी जगह एक चमचमाती हुई मूर्ति ने ले ली धमाका इतना तेज था की पूजा मुझसे छिटक गयी और मैं दूर जा गिरा , जब होश आया तो सब कुछ ऐसे था जैसे कुछ हुआ ही न हो सुबह हो चुकी थी पर पूजा साथ नहीं थी
 
हैरान परेशान मैं पूजा को ढूंढते हुए प्रांगण से बाहर आया चारो तरफ एक अजीब सा सन्नाटा था जिसे बस कुछ पक्षियों की आवाज भेद रही थी ऐसा लगता था की बरसो से मंदिर में कोई आवा जाहि न हुई हो
पर मुझे किसी की फ़िक्र थी तो पूजा की मैं उसे ढूंढते हुए नीचे आया तो देखा की बावड़ी के पास एक खम्बे के सहारे वो बैठी हुई थी मैं उसके पास गया उसकी आँखे बंद थी लगता था जैसे कब से थकी हुई हो
मैं भी उसके पास बैठ गया उसने आँखे खोली और बोली-कुंदन , 

मैं- पूजा तू ठीक तो है 

वो- मुझे क्या होना है पगले जब तू साथ है 

मैं-कल क्या हुआ क्या नहीं मुझे नहीं पता पर अभी हमे यहाँ से निकलना होगा

पूजा- हां जाना तो होगा ही चल चलते है क्योंकि अब मेनका और राणाजी चुप नहीं रहेंगे उनकी सब मेहनत बर्बाद हो चुकी है कुंदन अब वो लोग किसी भी हद तक जा सकते है 

मैं- पूजा मैं हर उस हाथ को काट दूंगा जो ये घिनोना खेल खेल रहे है , मैं उक्ता चूका हूँ इस सब से बस अब इंतज़ार है अंत का 

पूजा-कुंदन मेरी बात ध्यान से सुन हमे कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना है जिससे कविता को और खतरा बढे तुम मुझे घर छोड़ दो और जस्सी से मिलो उसकी मदद चाहिए हमको बाकि बाते बाद में करेंगे

मैंने उसके बाद पूजा को उसके घर छोड़ा और अपनी जमीन पर गया तो देखा वहां सब कुछ अस्त व्यस्त था और जुम्मन जमीं पर पड़ा था लहूलुहान 
मैंने संभाला उसे 

मैं- काका क्या हुआ किसने किया ये सब 

वो- अर्जुन गढ़ से कुछ लोग तुम्हे तलाश करते हुए आये थे यहाँ 

मैं- पहले आपको वैद्य जी के पास ले चलता हूं उसके बाद देखता हूं 

मैंने जुम्मन को गाड़ी में पटका और रास्ते में उससे जानकारी ली अर्जुनगढ़ वालो को ठाकुर जगन सिंह की लाश मिल गयी थी पर कुंदन के अहम् को चोट पहुची थी उन्हें जुम्मन पे हमला नहीं करना चाहिए था बिल्कुल नहीं करना था 

वैसे तो मेरी नजर राणाजी को तलाश कर रही थी पर बीच में ये मामला आ गया तो सोचा की आज इस दुश्मनी की आग को सुलटा ही देता हूं मैं घर आया देखा माँ सो रही थी और जस्सी थी नहीं मैंने गाड़ी में हथियार डाल और गाड़ी दौड़ा दी अर्जुनगढ़ की ओर
गुस्से में भभक्ते हुए मेरी गाड़ी चली जा रही थी की तभी मैंने देखा की भाभी की कार मेरी ओर आ रही थी उन्होंने मुझे इशारा किया पर मैंने ध्यान न दिया और जल्दी ही धूल उड़ाती हुई गाडी अर्जुन गढ़ की चौपाल में जाकर रुकी 

मैं- अर्जुनगढ़ वालो बुलाओ अपने उस शेर को जिसने कुंदन ठाकुर की जमीन पर पैर रखने की गुस्ताखी की है जितने जख्म मेरे आदमियो के बदन पे हुए है उतनी लाशें आज यहाँ से लेके जाऊंगा बुलाओ सालो कौन था वो बुलाओ 

पुरे बाजार में जैसे सन्नाटा छा गया सिर्फ एक आवाज गूंज रही थी कुंदन ठाकुर की आवाज वातावरण में गर्मी बढ़ सी गयी थी 

मैं- मैं पूछता हूं आखिर कौन सुरमा पैदा हो गया जिसने मेरी जमीं पर पैर रखा अंगार का हश्र भूल गए क्या सालो तुम आज इतनी लाशें बिछेंगी की बरसो तक अर्जुन गढ़ की मिटटी लाल रहेगी सामने आओ कायरो सामने आओ कायरो देखो कुंदन खुद आया है

"धांय" तभी एक गोली की आवाज गुंजी और मैं दर्द में डूब गया गोली बाजु से रगड़ खाते हुए चली गयी थी

"तो मौत के मुह में तू खुद चला आया कुत्ते , अच्छा है आज इसी वक़्त तेरी समाधी यही बनेगी अर्जुनगढ़ वालो आज तुम सब देखोगे की हमारे से दुश्मनी लेने वालों का अंजाम क्या होता है और इसने तो हमारे पिताजी को मारा है "

मैं- मैंने उसे तो नहीं मारा पर तेरी ये इच्छा जरूर पूरी करूँगा मैं आज

मैं लपका उसकी ओर उसने अपनी बन्दुक मेरी ओर की पर एक और गोली की आवाज हुई और जगन सिंह के लड़के राजू ठाकुर की बन्दुक उसके हाथ से गिर गयी 

"ख़बरदार जो किसी ने भी कोई गुस्ताखी की यहाँ शमशान बनते देर नहीं लगेगी"

मैंने देखा जस्सी भाभी हाथो में बन्दुक लिए खड़ी थी 
राजू- ओह हो तो तुम भी आ गयी देवगढ़ की शान आंन मजा तो अब आएगा जब कुंदन को मारने के बाद तेरे जिस्म को यही नीलाम करूँगा मैं तेरे गोश्त को मेरे पालतू यही उधेड़ेंगे आजा तू भी 

मैं चिल्लाते हुए - राजू यही फाड़ दूंगा तेरा कलेजा साले होश में आ और देख सामने कौन है 

मैंने तुरंत बन्दुक ली और दाग दी गोली पर वो हट गया सामने की दुकान का शीशा चूर चूर हो गया 

जस्सी- ओट ले कुंदन 

मैं और जस्सी गाड़ी की ओट में आ गए और फायरिंग शुरू हो गयी मैंने आज जस्सी भाभी का वो रूप देखा जिसे शायद लोग कयामत कहते थे भाभी ने जैसे आग ही लगा दी थी उस गाँव में कुछ ही मिनटों में चौपाल रक्त धारा से नाहा चुकी थी 

इसी बीच मौका देख कर मैंने राजू को धर लिया और मारने लगा उसको 

जस्सी ने मोर्चा संभाल रखा था इसलिए मुझे समय मिल गया था मैंने राजू को उठा कर पटका तो वो पास ही एक पेड़ से जा टकराया उसकी पसलियों में चोट लगी और मैंने धर लिया उसको एक बार फिर से उसे पटका तो लोहे की जाली से टकरा गया वो उसकी बाह जाली में फस गयी 

मैं- उठ और देख, तेरी सल्तनत कैसे आज जल रही है साले मेरी गांड घस गयी प्रयास करते करते पर तुम लोग समझते नहीं नहीं समझते हो तुम 

मैंने एक लात जो मारी उसको तो मुह से खून फेक दिया उसने 

मैं- देखो अर्जुनगढ़ वालो , तुम्हारे इस नेता को देखो सालो मैं इस कोशिश में लगा की दोनों गाँवोइ भाई चारा हो पर ऐसे लोगो की वजह से नहीं हो पाता पर पिसते हो तुम लोग , मैं इस प्रयास में हु की हर आदमी को समाज के समान दर्ज़ा मिले पर ऐसे लोग ही है जो होने नहीं देते

दो लोगो की दुश्मनी के पीछे दो गाँव क्यों झुलसे इस आग में , पूछो इस राजू से क्या कसूर था उस आदमियो ला जिन्हें ये पीट कर आया था क्या साबित किया इसने मैं तुमसे पूछता हूं गांव वालों कब तक इस नफरत की आग में जलोगे कब तक

अरे ध्यान दो कैसे आने वाले कल को खुशहाल बना सको पर नहीं ये तो मेडल लेंगे दो टाइम की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से होता है और नफरत जन्मो तक निभानी है 

मैं पूछता हूं ये नफरत पेट भरेगी तुम्हारा क्या तुम्हारे बच्चो को एक खुशहाल भविष्य देगी ये नफरत जवाब दो 

जस्सी- कुंदन मार दे इस राजू को अभी के अभी 
मैंने बन्दुक उठाई और राजू के सीने से लगा दी बस एक पल और उसकी लाश धरती पर गिर जानी थी पर मेरे हाथ रुक गए 

मैं- राजू, तेरे बाप को मैंने नहीं मारा तू मान चाहे न मान चाहु तो अभी एक नया शमशान अभी यही बना सकता हु पर मैं नहीं चाहता की बरसो से चली आ रही इस नफरत में और घी डाला जाए पुरखो की गलतियों को सुधारने का समय है दोनों गांव मिल कर एक नयी दुनिया बसा सकते है मैं फैसला तुम्हारे हाथ छोड़ता हु बाकि कुंदन अगर सर झुका सकता है तो सर काट भी सकता है 

तूने मेरी भाभी को नीलाम करने की बात की मेरे सामने चाहू तो अभी तेरी खाल उतार के उसके कदमो में डाल दू पर मैं नफरत की नहीं प्यार की बात करता हु इसलिए माफ़ करता हु तुझे 

मैंने उसे छोड़ा और जस्सी की तरफ चल पड़ा मैं उसके पास पंहुचा ही था की उसने मुझे धक्का दिया और उसकी बन्दुक से निकली गोली राजू का सीना चीर गयी, पीछे से वो मुझ पर गोली चलाने वाला था 
जस्सी- कुंदन आँख मीच कर भरोसा करना बंद करो तुम,

जस्सी- तो यही औकात है तुम लोगो की मेरा देवर तो झुक गया था न पर तुम अगर नफरत ही चाहते हो तो जस्सी ठकुराइन का वादा है जल्दी ही अर्जुनगढ़ में कुछ नहीं बचेगा सिवाय इन खाली मकानों के ये हमारा तोहफा है इस गांव को

और अगले ही पल जब भाभी की बात खत्म हुई वहा मौजूद हर सक्श अपने घुटनों पर बैठ गया जस्सी ने जीत लिया था अर्जुन गढ़ को बिना कुछ कहे हम अपनी अपनी गाड़ी में बैठे और वापस देव गढ़ के लिए चल दिए पर हमारी हद आते ही जस्सी ने अपनी गाड़ी अड़ा दी मेरी गाड़ी के आगे
 
बिजली की रफ्तार से वो उतरी और मुझे बाहर खींच लिया अगले ही पल एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर आ पड़ा 
जस्सी- समझते क्या हो तुम खुद को , दिक्कत क्या है तुम्हारी , ये जो महान बनने का ठेका ले रखा है न कुछ नहीं मिलेगा इसमें क्या जरूरत थी इतना फसाद करने की पहले ही क्या कम परेशानिया है जो और बढ़ा रहे हो

मैं- मेरे आदमियो को मार के गए थे वो लोग ,

जस्सी- क्या हमें परवाह है कुछ लोगो की वो भी जब, तब हालात इतने संगीन है 

मैं- जानता हूं पर समय पर मेरा ज़ोर नहीं 

जस्सी- समय पर किसी का कोई जोर नहीं होता मैं तुम्हे तब ये बताना चाह रही थी की मुझे पता चला था की राणाजी को मेनका के साथ नदी वाले शिवाने पर कल रात देखा गया था मैं चाहती थी की तुम साथ चलो पर तुमने तो नयी आफत मोल ले ली

मैं- परवाह नहीं है मुझे किसी की भी 

जस्सी- पर मुझे तुम्हारी परवाह है और तुम हो के समझते नहीं हो

मैं- क्या 

जस्सी- यही की तुम्हारे अलावा कौन है मेरा अगर तुम्हे कुछ हो गया तो मैं टूट जाउंगी बिखर जाउंगी मैं 

भाभी की आँखों में पानी भर आया कुछ देर के लिए गहरी ख़ामोशी छा गयी जज्बात बाहर आने को छटपटा रहे थे पर शब्द शायद हिम्मत हार गए थे मैंने बस भाभी को अपने गले लगा लिया ये कुछ ऐसे कमजोर लम्हे थे जब मैं कमजोर पड़ने लगा था पर सच को हम दोनों ठुकरा भी तो नहीं सकते थे ना 

भाभी- हमे अभी शिवाने पर जाना होगा 

मैं - चलो 

करीब आधा घंटे बाद हम वहां पहुचे तो देख की पता चलता था की वहां क्या हुआ होगा आस पास सिंदूर और कुछ चीज़े बिखरी हुई थी , पर जिसको देख कर मैं बुरी तरह घबरा गया वो थी गर्म राख जिसमे से अभी भी कुछ चिंगारिया निकल रही थी मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा 

भाभी- कुंदन राख गर्म है 

मैं- ये नहीं हो सकता ,कही कविता को तो 

भाभी- नहीं ऐसा नहीं हो सकता 

मैंने अपने हाथ राख में डाले तो कुछ बची हड्डिया मेरे हाथ में आ गयी 

मैं- ये किसको जलाया गया होगा अगर ये जीजी हुआ तो सौगंध है आज राणाजी अपनी अंतिम सांस लेंगे 

भाभी के माथे पर गहरी चिंता की लकीरें उभर आई थी पल भर में चेहरे का नूर गायब हो गया था क्योंकि उन्हें भी भान हो गया था की वक़्त किस ओर करवट ले रहा है 

भाभी- देखो कुंदन, मेरी बात सुनो ,

मैं- नहीं मुझे बस जीजी चाहिए किसी भी कीमत पर अगर ये राख मेरी बहन की निकली तो हर तरफ राख ही राख होगी एक नया शमशान बना दूंगा

मेरी आँखों में उतर आये खून को देख कर भाभी फिर कुछ कह न सकी मेरा दिल बुरी तरह से टूट चुका था दिल में बस सवाल था कि आखिर क्यों कविता जीजी की ज़िंदगी नर्क बना दी गयी क्यों , आखिर ऐसा क्या गुनाह किया था उसने जो ये सब दुःख भोगने पड़े उसे

मैं बस राणाजी को तलाश करना चाहता था और शायद आज किस्मत मेरी मुझ पर मेहरबान थी , अचानक मुझे याद आया की लाल मंदिर में मेरी घडी छूट गयी थी तो मैं वहाँ चल दिया और मंदिर से कुछ दूरी पर ही मैंने एक चमचमाती हुई कार देखि 
ये राणाजी की गाड़ी थी मैंने अपनी गाड़ी उसकी तरफ मोड़ दी पर गाड़ी में कोई नहीं था कुछ दूर मुझे एक तिबारा सा दिखा तो मैं उस ओर बढ़ गया और मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब मैंने मेनका और राणाजी को देखा पर उन्होंने मुझे देख कर कुछ खास तवज्जो न दी

मैं- जीजी कहा है 

दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला

मैं- मैंने कहा, मेरी बहन कहा है 

एक बार फिर कोई जवाब न मिला और अब मुझे सब्र था नहीं मैंने अपने कदम राणाजी की ओर बढ़ाये की मेनका बीच में आ गयी

मेनका - कुंदन मेरी बात सुनो 

मैं - जहा खड़ी हो वही रहो आज कोई लिहाज नहीं करूँगा 

मेनका- मेरी बात तो सुनो एक बार 

मैं- कहा न 

राणाजी किसी बूत की तरह शांत बैठे थे एक शब्द भी न बोले 

मैं- राणा हुकुम सिंह मैं अपनी बहन से मिलना चाहता हु अभी के अभी 

राणाजी- अब ये संभव नहीं वो जा चुकी है 

मैं- क्या मतलब जा चुकी है , कहा

राणाजी- कल मौत हो गयी उसकी 

राणाजी के होंठो से निकले इन शब्दों ने जैसे वज्रपात कर दिया मुझ पर तो मैं ठीक ही समझा था मैंने राणाजी का गिरेबां पकड़ लिया और दिवार से लगा दिया

मैं- अगर मेरी बहन को कुछ भी हुआ तो आज आपकी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा बहुत हुआ ये तमाशा जीजी को मेरे हवाले कर दो 

राणाजी- अब वो वापिस नहीं आ सकती 

मैंने राणाजी को धक्का दिया वो कुछ दूर जा गिरे 

मैं- अभी इसी वक़्त मैं आपको चुनोती देता हूं उसी जमीन पर आपके भाग्य का फैसला होगा मैं लालमन्दिर में इंतज़ार करूँगा और जरा भी गैरत हो तो आना क्योंकि तुमको यहाँ मारूँगा तो कुछ नहीं पर वहां मरोगे तो लोगो को भी पता चलेगा कि तुम हो कौन तुम्हारी औकात क्या है
 
जल्दी ही मैं इंतज़ार कर रहा था पर दोपहर से रात होने को आई वो न आया, आयी तो जस्सी भाभी 

भाभी- गज़ब हो गया कुंदन गजब हो गया

मैं- क्या 

भाभी- उन दोनों ने आत्हत्या कर ली लाशें मिली है खारी बावड़ी में

मैं- नहीं राणा हुकुम सिंह इतना कायर नहीं हो सकता ,नहीं हो सकता इतना बेगैरत की चूहे की तरह मौत को गले लगाले वो उसे मरणा तो होगा पर मेरे हाथ से कह दो की आप झूठ बोल रही हो

भाभी- तुम्हे चलना होगा मेरे साथ अभी

मैं- ऐसा नहीं हो सकता वो इंसान ऐसे कायरो की तरह नहीं मर सकता ,नहीं मर सकता उसकी मौत मेरे हाथों से लिखी है मेरी चुनोती को यु नहीं ठुकरा सकता है वो

भाभी- शांत कुंदन शांत शायद ये सब ऐसे ही समाप्त होना था 

मैं- नहीं , और उन सवालो का क्या जी राणाजी का कलेजा चीर कर जवाब लेने थे क्या कसूर था तुम्हारा, क्या कसूर था कविता का जो सबकी जिंदगी नर्क बना गया वो 

भाभी- शायद इसे ही तकदीर कहते है कुंदन 

भाभी ने बहुत जोर दिया पर मैं न उन लोगो के अंतिम दर्शन के लिए गया न अंतिम संस्कार में अंदर ही अंदर जैसे टूट सा गया था मैं , उनके मरने का रत्ती भर भी दुःख नही था मुझे मलाल तो बस ये था कि क्यों आखिर क्यों ये सब षड्यंत्र हुआ 
अब मेरा ज्यादातर समय अपने खेत पर ही गुजरता था ,

मैं और पूजा घंटो बैठ कर बस अपनी फसल को देखते थे जो धीरे धीरे बड़ी हो रही थी सर्दियों की शाम में हलके कोहरे में पूजा बहुत सुंदर लगती थी ,चाय की चुस्कियां लेते हुए जब वो हल्का हल्का सा काँपती तो उसके होंठ लरजते तो दिल में एक हुक सी जाग उठती थी

बस अब यही ज़िन्दगी थी, मैं था पूजा थी और दिल में छज्जे वाली के लिए एक तड़प मैं चाहता तो दो लुगाई कर सकता था पर ये उन दोनों के साथ ही अन्याय होता और मैं अपने वचन के साथ पूजा से बंधा था उसकी मांग में मेरे नाम का सिंदूर था भाभी ने बहुत जोर दिया था कि मैं वापिस घर आ जाऊ और राणाजी के कारोबार को आगे संभालू

पर अब दिल साला कही लगता नहीं था मैंने सब कुछ भाभी को ही रखने को कहा राणाजी की मौत की खबर पाकर चंदा चाची के पति भी विदेश से लौट आये थे तो कारोबार में वो मदद करने लगे थे कभी कभी भाभी के पास रहने को दिल करता पर अब उनकी तरफ देखु तो किस नजर से भाभी या बहन सब कुछ उलझ सा गया था


दिन बस गुजर रहे थे और दिमाग अभी भी सोचता था उन अनकहे सवालो के बारे में ,मैं अक्सर उन सभी जगहों की तलाश में निकल जाता था जहाँ ये उम्मीद लगती की कुछ हासिल हो सकता था क्योंकि राज़ बहुत गहरा था जिसे राणाजी ने छुपाया था दुनिया से

शायद किस्मत ने सोच लिया था कुंदन पे मेहरबान होने का उस दोपहर जब वकील आया तो अपने साथ कुछ लेता आया

वकील- कैसे है ठाकुर साहब

मैं-ठीक हु आप कैसे यहाँ , सारे मामले तो भाभी सा ही संभालती है न

वकील- दुरुस्त कहा आपने, वैसे तो प्रोपेर्टी की सभी डिटेल्स मैं ठकुराईन जी को दे चुका हूं पर कुछ दिन पहले ही ठाकुर साहब ने एक पुराणी प्रॉपर्टी को आपके नाम करवाया था ईस हिदायत के साथ की सिर्फ आपको ही ये बात पता हो 

मैं- ऐसा क्या दे गए वकील साहब 

वकील- आप खुद ही देखिये 

उसने दस्तावेज मेरे हाथ में रख दिया, पता नहीं क्यों मेरी उत्सुकता बढ़ सी गयी मैंने वो पढ़ना शुरू किया और मुझे बहुत हैरत हुई दरअसल यहाँ से करीब 40 कोस दूर सरहदी इलाके में नदी के पास एक मकान था जिसे वो मेरे नाम कर गए थे 

वकील- कुछ खास लगा आपको 

मैं- नहीं राणाजी ने ख़रीदा होगा कभी

वकील- मैंने सूत्रों से पता किया है ठाकुर साहब जिस जगह ये मकान है वहां पर और कोई आबादी नहीं है एक तरफ नदी है और दूसरी तरफ रेत के टीले

मैं- कोई न मैं देख लूंगा और कोई काम हो तो बताइए

वकील- नहीं जी बस ये आपको देना था 

मैं- ठीक है 

वकील के जाने के बाद मैंने उस दस्तावेजो को फिर से पढ़ा ये जो जगह थी न एक रात उसके आस पास मैं और पूजा घूमते घूमते वहाँ गये थे, बल्कि पूजा ही मुझे ले गयी थी उस रात को ,मेरे मनइ ख्याल आया की ये बस एक इत्तेफाक है या फिर पूजा ने भी मुझसे कुछ छुपाया है

नही पूजा को मुझसे कुछ छुपाने की जरुरत नहीं है पर राणाजी ने ये मकान मेरे लिए क्यों छोड़ा ये यक्ष प्रश्न था जिसका जवाब सिर्फ इसी जगह पर जाकर मिल सकता था मेरा मन था की पूजा को साथ ले जाऊ पर फिर सोचा की जस्सी को साथ ले जाता हूं
दोपहर बाद मैं जब घर पंहुचा तो चंदा चाची से पता चला की जस्सी ने राणाजी की शराब की फैक्ट्री को बेच दिया है उसकी कार्यवाही के लिए कचहरी गयी है कब तक आएगी मालूम नहीं मतलब आज तो जस्सी के साथ मैं वहां नहीं जा पाउँगा

जब मैं वापिस आ रहा था तो गांव से बाहर निकलते ही मुझे छज्जे वाली मिल गयी मैंने गाड़ी रोकी वो भी रुक गयी 

मैं- कैसी हो 

वो- जी,ठीक हु 

मैं- अच्छा लगा सुनके, कहा जा रही हो 

वो- सोचा खेत की तरफ घूम आऊ

मैं- आओ मैं छोड़ देता हूं 

उसने अपनी सायकिल वही एक पेड़ के पास छोड़ दी और गाड़ी में बैठ गयी कुछ देर कोई बात न हुई फिर वो बोली- बुरा लगा सरपंच जी की मौत का सुनके

मैं चुप रहा 

वो-मुश्किल हालात होंगे न परिवार के लिए

मैं- पता नहीं, मैं घर पे नहीं रहता अलग रहता हूं 

वो- आपकी बीवी के साथ 
 
जब उसने मेरी आँखों में देखते हुए ये सवाल किया तो मेरे सीने में जलन सी होने लगी 
मैं- नहीं अभी साथ नहीं है 

वो- क्यों

मैं- बस ऐसे ही

वो- सब ठीक है न 

मैं- हां, सब ठीक है तुम बताओ कुछ

वो- कुछ नहीं मेरे पास बताने को आपसे कुछ छुपा भी नहीं 

मैं- समझता हूं तुम्हारे दुःख का कारन मैं ही तो हु 

वो- ऐसा मत कहिये 

बातो बातो में उसका खेत आ गया था मैंने गाड़ी रोकी वो उतरी तभी मैंने कहा - एक मदद करोगी मेरी 

वो- आपके लिए जान दे दू मदद कहके शर्मिंदा ना कीजिये 

मैं- कल मेरे साथ कही चलोगी 

वो- हाँ, चल पड़ूँगी 

मैं- पर लौटने में देर सवेर हो सकती है 

वो- मैं देख लुंगी

मैं- कल दोपहर को यही मिलना 

वो- ठीक है 

छज्जे वाली से विदा लेके मैं सीधा पूजा के घर पंहुचा तो वो मेरा ही इंतज़ार कर रही थी 

पूजा- कुंदन आज मेरे साथ अर्जुनगढ़ चल 

मैं- क्यों, कैसे, अचानक

पूजा- सब बताती हु चल तो सही
पूजा के चेहरे पर एक अलग सा नूर आ गया था जिसे देखने को मैं पिछले कुछ दिनों से तरस सा गया था ,और जिस तरह से उसने अर्जुनगढ़ चलने की बात कही थी मामला अलग सा लगा मैं 

मैं- आज खुद ले जा रही हो

पूजा- मैंने कहा था न की सही समय पर मैं खुद ले जाउंगी कुंदन , और मेरा मन भी है 

मैं- चल फिर अब तेरे कहे को मैं कैसे टाल सकता हु 

पूजा मेरी गोद में आके बैठ गयी उसकी गर्म सांसे मेरे माथे को चूमने लगी, उसकी उंगलियां किसी सर्प की तरह मेरे सीने पर रेंगने लगी और फिर उसने अपने चेहरे को झुकाया और अपने नर्म होंठ मेरे लबो पर लगा दिए,

जैसे कोई शर्बत का प्याला पीने लगी हो वो आज उसका अंदाज कुछ अलग सा लगा मुझे पर महक गया मैं अंदर तक, कुछ पलों के लिए धड़कने बेकाबू सी हो गयी थी , तभी बाहर बादल गरजने की आवाज सी आयी, मौसम ने भी करवट ले ली थी इस सर्द मौसम में बरसात संजोग कुछ कहानी लिखने का हो रहा था 

पूजा- मैं खाना बना लेती हूं खाके चलेंगे

मैं- ठीक है मेरी जान 

मैं वही चूल्हे के पास बैठ गया और उसको देखता रहा उसकी चूड़ियों की खनक मुझ पर जैसे जादू सा कर देती थी, मंद आंच में उसका सिंदूरी रूप एक अलग आभा लेता था उसके गुलाबी गाल आज जैसे न जाने किस हया से और गुलाबी हुए जा रहे थे,

पूजा बार बार मेरी ओर देख के मुस्कुराती आज उसके होंठो पे वो मुस्कान थी जो हमारी पहली मुलाकात पे थी , जल्दी ही हम अपनी अपनी थाली लेके बैठे थे, उसने एक निवाला तोडा और मेरी तरफ बढ़ाया उस निवाले से साथ मेरे होंठो ने उसकी रेशमी उंगलियो को हलके से चुम लिया ,

केहने को ये बस कुछ छोटी मोटी बाते थी पर अपने साथ ढेर सारी मोहब्बत लिए थी कभी वो मुझे खिलाती कभी मैं बरसात भी अब जोर पकड़ने लगी थी और शायद अरमान भी

पूजा- चले 

मैं- हाँ

मैंने अपने साथ उसे लिया और गाड़ी अर्जुनगढ़ की तरफ बढ़ चली, रस्ते भर वो मेरे काँधे पर अपना सर रखे बैठी रही, मैंने सीशा कुछ नीचे को सरका लिया बरसात की वो नन्ही बूंदे जब मेरे चेहरे पर पड़ती बस जैसे कोई अपना छू रहा हो,

पूरा गांव जैसे सोया हुआ था और बरसात का शोर कान फोड़ रहा था उस बड़ी सी हवेली का जर्जर दरवाजा खुला हुआ था गाडी रेंगते हुए बड़े दरवाजे तक आयी , हल्का सा भीगते हुए हम दोनों अंदर आये पूजा ने मेरा हाथ कस के पकड़ा और एक तरफ ले चली 
उसने एक कमरे को खोला और हम अंदर आये माचिस की तिल्ली से कमरे में रौशनी हुई पूजा ने मोमबती जलायी 


पूजा- मेरा कमरा है 

मैं- अच्छा है 

वो- तुम बैठो मैं बस अभी आती हु 

मैं- कहा जा रही हो 

पूजा- आती हु बस दो मिनट में 

पूजा कमरे से बाहर चली गयी मैं पलंग पर बैठा इधर उधर नजर घुमाने लगा सिरहाने पर पूजा की वैसी ही तस्वीर थी जो राणाजी के तहखाने में थी वही मोतियों सी मुस्कान जो सीधा मेरे दिल में उतरती थी

मैंने वो तस्वीर उठा ली और देखने लगा , तभी पायल की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा तो मैंने देखा दरवाजे पर पूजा थी, और अब मुझे समझ आया की उसका मकसद क्या था दुल्हन के उसी जोड़े में पूजा खड़ी थी ,

इतनी सुंदरता, इतनी मोहकता उसको ऐसे इस रूप में देख कर लगा की कोई अप्सरा ही उतर आई हो इस धरती पर जैसे 

पूजा- ऐसे ना देखो मुझे 

मैं- जानती हो आज तुम्हे यु देख कर मैं कितना खुश हूं इस से बेहतर कोई तोहफा नहीं मेरे लिए 
वो मेरे पास आई और सिंदूर की डिब्बी मेरे हाथ में देते हुए बोली- कर दो मुझे सिंदूरी आज अपनी बना लो, आज अपनी हकदार बना दो मुझे

मैंने चुटकी भर सिंदूर लिया और उसकी मांग को भर दिया पूजा का सारा अस्तित्व ही मेरी बाहो में सिमट गया सिंदूर उसको अपने साथ सिंदूरी कर गया था 

पूजा- आज मैं बहुत खुश हूं कुंदन आज मैं पूरी जो होने जा रही हु 

मैं- मेरी ज़िंदगी को अपने रंग में रंगने के लिए शुक्रिया तुम्हारा तुम न होती तो कभी ऐसे जी न पाता मैं 

मेरे हाथ उसकी पीठ से होते हुए उसके नितंबो तक आ पहुचे थे और जैसे ही मैंने उसके कूल्हों को दबाया उसने अपनी गर्दन उचकायी और होंठ होंठो से जा मिले ,बदन जो हल्का सा काँप रहा था गर्मी की राहत सी मिली वो जो एक हल्का से मीठा सा अहसास मेरी जीभ से होते हुए दिल तक दस्तक दे रहा था और पूजा मुझमे ऐसे घुल रही थी जैसे दूध में चुटकी भर केसर ।

पूजा- इसलिए तुम्हे रोकती थी यहाँ आने से क्योंकि मैं चाहती थी इस खूबसूरत तोहफे के साथ तुम्हे यहाँ लेके आउ मेरे सरताज 

मैं- तुम साथ हो मेरे पास हो अब किसी और तोहफे की चाहत नहीं कुंदन का जीवन बस तुमसे शुरू और तुमसे ख़तम 

पूजा- शायद यही मोहब्बत है वही मोहब्त जो किस्से कहानियो में पढ़ी, सुनी जो महकते फूलो में सूंघी, जो अहसास ये हवा कभी अपने साथ लायी जो आधी रातो को बेमतलब जाग के महसूस किया वो मोहब्बत आज तुम्हारे रूप में मैंने पा ली है कुंदन मैंने पा ली है 

मैं- हरपल जिसके लिए मैं तरसा हर लम्हा जिसकी तमन्ना थी मुझे हर दिन हर रात जिस अकेलेपन से मैं परेशां था एक झोंके की तरह तुम आयी और मुझे महका गयी 

पूजा- तो क्यों देर करते हो , आज इस बरसात की तरह बरस जाओ और मुझ बंजर भूमि की प्यास बुझाओ, आज तर कर दो मुझे मेरे राजा
 
उस रात बरसात भी अपने उफान पे थी हम भी एक होके अपने विवाहित जीवन की शुरुआत कर रहे थे , हमारी मोहब्बत का तूफान आकर थम चूका था पर ये बारिश न थमी थी ,सुबह जब मेरी आँखे खुली तो मैंने देखा की पलंग पर मेरे साथ पूजा नहीं थी,
आँखे मलते हुए मैं उठा और देखा की बाहर अभी भी तेज बारिश हो रही है मैंने कपडे पहने और पूजा को आवाज दी पर हवेली मेंरी आवाज ही लौट के आयी जवाब न लायी साथ में, अब ये कहा गयी

बार बार उसको आवाज दी पर हवेली जैसे हमेशा की तरह उसी गहरे सन्नाटे में डूबी हुई थी, कुछ चिंता सी हुई मुझे पर पूजा अक्सर पहले भी ऐसे ही चली जाती थी तो मैंने ध्यान न दिया मैं वापिस कमरे में आया तो देखा की कल उसने जो दुल्हन का जोड़ा पहना था वो पास ही एक मेज पर रखा था ,

पता नहीं क्यों मेरे अंडर से एक आवाज सी आ रही थी की हवेली की तलाशी ली जाये पर मुझे याद आया की छज्जे वाली मेरा इंतज़ार कर रही होगी वैसे तो जबर बरसात हो रही तो पर दिल के रहा था की वो होगी वही पे,

तो मैंने गाड़ी ली और कुछ ही समय पश्चात मैं वही पहुच गया जहाँ उससे मिलने का वादा किया था,उसी तिबारे के नीचे वो मेरा इंतज़ार कर रही थी मैंने गाड़ी का दरवाजा खोला और वो बैठ गयी

मैं- बारिश की वजह से थोड़ी देर हो गयी 

वो- कोई नहीं, वैसे हम जा कहा रहे है

मैं- एक तलाश पर 

वो- कैसी तलाश 

मैं- बताता हु 

और फिर उस घर तक के सफर में मैंने उसे शुरू से लेके आज तक की पूरी बात बता दी की कैसे ये सब आया हुआ, कैसे ज़िन्दगी के सब रंग धूमिल हो गए कैसे सब उजड़ गया।

वो बेहद ख़ामोशी से सब सुनती रही जैसे समझने का प्रयास कर रही हो , और फिर मौसम ने भी जैसे आज ठान ही लिया था कि आज वो अपनी ताकत दिखा के रहेगा जैसे तैसे हम वहाँ तक पहुचे गाड़ी से उतरने और दरवाजे तक पहुचने में ही हम भीग गए थे,
ताला तोड़के हम अंदर आये ये तीन कमरो का एक मकान था और देख कर लगता था की कई दिनों से कोई आया नहीं था यहाँ, धूल भरे जाले चारो तरफ थे हमने टोर्च जलायी और आस पास देखने लगे,

वो- यहाँ तो कुछ भी नहीं 

मैं- अक्सर जो होता है वो दीखता नहीं राणाजी ने यहाँ का पता दिया तो कुछ सोच कर ही दिया होगा

वो- हम्म, एक एक कमरे को अच्छे से देखना पड़ेगा फिर तो 

मैं- हां, चलो शुरू करते है , बस कोई सुराग मिल जाए

पहले दो कमरों में सिवाय धुल और पुराने कमरे के कुछ न मिला पर तीसरे कमरे ने हमारे होश उड़ा दिए, उसने सोचने पे मजबूर कर दिया ये पूरा कमरा साफ सुथरा था , हर चीज़ सलीके से रखी गयी थी


छज्जे वाली- कोई रहता था यहाँ

मैं- हां 

तभी मुझे दिवार पे कुछ तस्वीरें थी ये बिलकुल वैसे ही थी जैसे राणाजी के तहखाने में थी राणाजी, अर्जुन, पद्मिनी और मेनका उनके जवानी के दिन अब राणाजी को आखिर क्या लगाव था इन तस्वीरो से ,

मैं गौर से पद्मिनी की तस्वीर को देख रहा था पूजा काफी हद तक वैसे ही दिखती थी उत्सुकता वश मैंने वो तस्वीर उतार ली और तभी उसके साथ एक डायरी सी भी नीचे गिर पड़ी मैंने तस्वीर को पलंग पर रखा और डायरी को उठाया 

कुछ पन्ने खाली थे और फिर राणाजी की लिखाई शुरू हुई

"कुंदन," हमे मालूम है की जब ये डायरी तुम्हारे हाथो में आएगी तो तुम किस हद तक बेचैन रहोगे, पर हमारे पास वो हिम्मत नहीं थी की तमाम सच तुम्हारी आँखों में आँखे डाल कर बता सके , इसलिए इन कागज़ों का सहारा लेना पड़े , हो सकता है कि जब ये दस्तावेज तुम तक पहुचे हम रहे न रहे पर इतना जरूर होगा की सच तुम्हारे पास होगा,

तुम्हारी ही तरह ठीक तुम्हारी ही तरह मैं भी ऐसा था, अल्हड मस्तमौल्ला मेरे जीवन में अगर कुछ था तो मेरा मित्र अर्जुन , जिंदगी के न जाने कितने पल हमने साथ जिए पर समय से साथ हमे एक ऐसी लत लग गयी जिससे हमारे कदम सिर्फ बर्बादी की ओर बढ़े
अपनी हवस में हमने न जाने कितनी ज़िन्दगानिया बर्बाद कर दी, 

पर वक्त ने हमे भी मौका दिया हमारे जीवन में प्रेम आया और हम दोनों दोस्तों ने फैसला किया की चीज़ों को सुधारने की और जीवन को एक नए सिरे से शुरू करने की, अरजून पद्मिनी के साथ ग्रहस्थी बसा चूका था, पर हमारे नसीब में कुछ और था ,तुम्हारे दादाजी के दवाब में तुम्हारी माँ से ब्याह करना पड़ा,


पर मन में मेनका बसी थी जीवन बस अस्त व्यस्त होने को था पर अर्जुन और पद्मिनी ने एक रास्ता निकाला की मेनका से विवाह कर लूं कर उसे दुनिया से छुपा कर रखा जाये और ऐसा ही हुआ, हमारी दोहरी ज़िंदगी शुरू हो गयी थी

पर हमारी नसों में जो जहर भरा था उसका मोह न टुटा हम सुधर न पाये कभी और हमारे अंदर के जानवर ने एक बार हमें उसी रास्ते पर धकेल दिया हर नारी हमे बस भोग की वस्तु लगती , हवस जैसे सांसो जितनी ही जरुरी हो गयी हमारे लिए ,

जिसमे हर रिश्तो की मर्यादा टूटती गयी, बिखरती गयी पर समय बढ़ता गया अर्जुन भी एक बेटी का पिता बन चूका था तुम्हारे भाई बहन भी इस दुनिया में आ चुके थे,

पर मेरे दिल में बोझ था एक दोहरी ज़िन्दगी का जिसे मैं उतार के फेंक देना चाहता था, पर क्या ये सब आसान था, इस बीच एक ऐसी घटना हो गयी जिसने सब कुछ बदल दिया पद्मिनी की मौत हो गयी, किसी ने कहा कोई सिद्धि में चूकने से हुआ तो किसी ने कहा कि आत्महत्या कहा पर आजतक कोई न जान पाया 

पर उसके जाने का असर हम सबपे हुआ, खासकर अर्जुन पे उसने खुद को डूबा लिया शराब में उसे खुद का होश न था परिवार को क्या देखता, बहुत समझाया बहुत मिन्नते की पर वो अपने गम में डूबता ही गया शराब और शबाब इसके सिवा अब कोई साथी न था उसका और हम चाह कर भी कुछ न कर सके

पर उसकी ये हालात भी देखे न जाते थे समय गुजरता गया तुम आ चुके थे औलादे बड़ी हो रही थी तो करीब तेरह साल पहले की बात है ये एक तूफ़ान ऐसा आया की जिसने सब बर्बाद कर दिया लोग सोचते है की दो दोस्त दो भाई कैसे दुश्मन बन गए की एक ने दूसरे की जान ले ली और तुम्हे भी इस प्रश्न ने अवश्य परेशान किया होगा तो आज इसका जवाब तुम्हे देता हूं

सच बहुत घिनोना होता है कुंदन इतना घिनोना की सोच से परे एक ऐसा ही सच है जो या तो अर्जुन अपने साथ ले गया या मेरे सीने में दफन है पर आज तुम्हे बता रहा हु, अर्जुन की बेटी साक्षात् पद्मिनी की ही छाया थी तरुण अवस्था में थी वो उन दिनों उस क़यामत की रात वो अपने नशे में चूर पिता को भोजन पकड़ाने गयी थी और नशे में चूर हवसी अर्जुन के हाथों ये अनर्थ हो गया ,

अपने अंश को रौंद दिया उसने अपनी ही बेटी का बलात्कार किया उसने और जब उसे होश हुआ की क्या किया उसने देर हो चुकी थी ,पद्मिनी को बहन माना था मैंने जब उसके अंश के साथ हुए इस अन्याय के बारे में मुझे पता चला तो हर रिश्ते की बेड़िया टूट पड़ी गुस्से में भरे हुए मैंने अर्जुन को ललकारा 

और उसने बस इतना ही कहा मुक्त करदो मुझे इस पाप से, उस दिन अर्जुन के साथ मेरी मृत्यु भी हो गयी थी मैं तो बस उस दिन के बाद बस सांसे ही ले रहा था सब बर्बाद हो गया था मैंने बेटी को बहुत तलाशा पर न जाने कहा गायब हो गयी वो , कोई कहा मर गयी कोई बोला चली गयी पिछले 13 साल से उसकी तलाश ने जिन्दा रखा हमे पर कामयाब ना हुए पद्मिनी के अंश की हिफाज़त न कर सके हम

तमाम उम्र उस बच्ची की तलाश करते रहे पर मिली नहीं वो पर वक़्त हर किसी को एक मौका और देता है मेनका भी तंत्र ज्ञाता थी किसी पुराणी सूत्र से उसे एक ऐसी सिद्धि का पता चला जिसमे 
सिद्ध होने से वक़्त के कुछ पलों को बदला जा सकता है 

सुनने में अजीब है पर हमने चूँकि पद्मिनी को देखा था तो दिल में आस जागी पर ये सिद्धि ऐसे नहीं हो सकती थी इसमें किसी पुरुष को अपनी ही बेटीयो से सम्भोग कर उस रस का भोग देना होता था शुरूआती चरण में बार बार ये ही प्रकिर्या दोहरायी जाती 
पर चूँकि पद्मिनी को वचन दिया था कि उसकी औलाद की हिफाज़त हमारी जिम्मेदारी थी और ठाकुर हुकुम सिंह वचन की रक्षा न करने का बोझ लिए मरना नहीं चाहते थे तो हमने अपनी गैरत अपना सर्वस्व सब दांव पे लगा दिया और बुरे हद से ज्यादा बुरे बन गए

अपनी बेटी कविता के साथ हम बिस्तर हुए, हमे हर पल मालूम था जस्सी हमारा ही खून है पर हिमे उसे बहु बनाके लाये और फिर उसे भी मजबूर किया पर वो हमारे प्रयोजन को भांप गयी और हमने ही मेनका को तुम्हारे साथ वो सब करने को कहा था 
तुम्हारी नजरो में ये सब गलत है पर ये जीवन बहुत ही क्रूर होता है हमारी दुनिया थी ही कहा अर्जुन के बिना ये जो बोझ लेकर मैं पल पल मर रहा था न बूढ़े होते काँधे अब थकने लगे थे मैं सब कुछ सही कर देना चाहता था ववत के उस एक लम्हे को बदल के पर किसी वीरांगना ने वो प्रयास विफल कर दिया 

और ये साधना बस एक बार ही करी जा सकती है हुआ तो ठीक नहीं तो नसीब ,मैंने अपना सब कुछ लगा दिया पर किसी के सशक्त प्रयास मेरी आस तोड़ दी, अब इस जीवन का क्या फायदा जब प्रयोजन ही नहीं रहा तुमने जब लाल मंदिर की चुनोती दी मैंने तुम्हारी सुलगी आँखों में खुद की छवि देखि पर मेरी इतनी हिम्मत नहीं थी की आँखों में आँखे डाल के तुम्हारा सामना कर सकू, ये सब तुम्हे बता सकू 

पर गर्व है की मेरी विरासत काबिल हाथो में देके जा रहा हु, मैं समझता हूं दो दो बेटियों का जीवन बर्बाद करके एक बेटी को पाना मूर्खतापूर्ण ही है पर शायद मैं पद्मिनी का क़र्ज़ चूका पाता जो राखी के रूप में मेरी कलाई पे बंधा था, अगर मैं खुद बर्बाद होकर भी उसके अंश को आबाद कर पाता तो खुद को सफल मानता पर कुंदन अब तुम्हे उसे तलाशना होगा उसे उसका हक़ देना होगा यही मेरी अरदास है तुमसे, आयात को ढूंढो आयात को घर ले आओ , ले आओ उसे 

इसी के साथ डायरी मेरे हाथों से छूट के गिर गयी आँखों से अश्रुधारा बह चली सोचने समझने की क्षमता ने जैसे जवाब दे दिया था छज्जे वाली ने डायरी उठाई और अपनी ऊँगली दरवाजे के पास करते हुए बोली- ये आयत है 
मैंने देखा उसका इशारा पूजा की तस्वीर की ओर था 

मैं- ये नहीं है ये तो पूजा है आयत तो तुम हो न 

वो- किसने कहा मैं तो पूजा हु , आयात तो ये है न ये मुझे मिल चुकी है करवा चौथ की रात और फिर उसने उसकी और पूजा( आयात) के बीच हुई मुलाकात के बारे में बताया 

मैं तो जैसे बेहोश ही होने को आया ये कैसे हो सकतस था जिसे मैं आयात समझता था वो पूजा थी और पूजा आयत ,ये कैसा खेल खेला था उसने मेरे साथ 

मैं- झूठ कहती हो तुम 

पूजा- मुझे क्या मिलेगा आपसे ऐसा कहके 

पर मेरे पास और भी तरीके थे ये साबित करने के की मैं सही था मैंने छज्जेवाली को लिया और साथ में दरवाजे के पास लगी तस्वीर भी ले ली और गाड़ी को ले उड़ा घंटे भर बाद हम उस कैसेट वाले के पास थे 

कैसेट वाला- आओ ठाकुर साहब आज यहाँ का रास्ता कैसे भूल गए

मैं- गौर से देख इस लड़की को ये ही वो आयात है न जो कैसेट भरवाने आती थी 

वो- न जी ये तो पूजा है आप तो जानते ही है न 

मैंने तस्वीर रखी और वो तुरंत बोला- ये ही है आयात 
 
मैंने अपना सर पकड़ लिया और वही बैठ गया ये कैसे हो सकता था दोनों लड़कियों के नाम बदल कैसे सकते थे सर जैसे फ़टने को था पहले राणाजी की डायरी और अब ये झोल मैंने थोड़ा पानी पिया और फिर छज्जे वाली को घर जाने को कहा पर उसने साथ रहने की जिद की 

अब बस पूजा या आयात जो भी थी वो ही मेरे सवालो का जवाब दे सकती थी तो हम उसके घर ही जा रहे थे पर जब हम वहाँ पहुचे तो एक झटका और लगा आज ये घर वैसा नहीं था जैसा मैं इसे देखता आया था 
अब सब बेहद खस्ता हाल था न दरवाजा था न कोई ताला था कल ही तो मैंने यहाँ बैठ के खाना खाया था पर अब खंडहर था सब कुछ, दीवारे टूटी हुई छप्पर टुटा हुआ 

मैं- ये कैसे हो सकता है, कैसे हो सकता है ये क्या हो रहा है मेरे साथ, आज कुंदन जैसे पागल ही हो जाना था 

छज्जेवाली रोने लगी- ये क्या हो रहा है आपको 

मैं- कल तक , कल तक यहाँ एक घर होता था जिसमे मैं उसके साथ रहता था आज ये खंडहर कैसे हो गया , पूजा पूजा मैं चिल्लाने लगा जोर जोर से 

छज्जेवाली- मैं आपके पास ही तो हु 

अब मैं कहता भी तो क्या कहता उस से, की मेरे साथ क्या हुआ है 
तभी हमने जुम्मन को अपनी ओर आते देखा 

जुम्मन- आप यहाँ क्या कर रहे है , बड़ी बहुरानी आपकी सुबह से राह देख रही है 

मैं- काका , ये पूजा का घर एक दिन में खंडहर कैसे हो गया 

जुम्मन ने मेरी तरफ देखा और बोला- बेटा ये तो हमेशा से ही ऐसा है 

मैं- होश में हो न अब ये मत कहना की आपने पूजा को नहीं देखा 

काका- क्यों न देखा जब जब वो खेत पे आती थी देखता तो था न 
अब मुझे थोड़ा चैन मिला 

मैं- तो काका जब कई बार आप उसे छोड़ने आते थे तो यही तो आते थे न 

काका- नहीं वो हर बार उस पिछले मोड़ से ही मुझे वापिस कर देती थी 

मैं- कैसे हो सकता है ये सब कैसे, कितनी रात मैं यहाँ रहा हु उसके साथ कितने पल मैंने यहाँ इस घर में बिताए है और आप कुछ ओर कह रहे है 

काका- बेटा ये घर बरसो से खंडहर है 


मैं अंदर गया पर कोई सामान नहीं था कोई भी ऐसा सबूत नहीं जिससे साबित हो की पूजा यहाँ थी मेरे साथ, और वो खुद लापता हो गयी थी अब सिर्फ अर्जुनगढ़ की हवेली बची थी देखना था कि वहां भी सब बदल गया या नहीं

छज्जेवाली ने तो जिद ही कर ली मजबूरन उसे भी साथ लाना पड़ा हम उसी कमरे में आये ही थे जहाँ कल मैंने और उसने सुहागरात मनायी थी की पीछे से जस्सी और जुम्मन भी आ गए, वो ले आया था भाभी को ,

जस्सी- क्या हुआ कुंदन 

मैंने ज्यो का त्यों उसे पूरी बात बता दी और उसके चेहरे का रंग उड़ गया 

जस्सी- ऐसा कैसे हो सकता है 

मैं- मेरा यकीन करो, कल हम इसी पलंग पर थे और वो दुल्हन का जोड़ा कहा गया यही कही तो रखा था 

छज्जेवाली- एक मिनट कही ये वो तो नहीं

उसने अपने बैग से वो ही जोड़ा निकाला 

मैं- तुम्हारे पास कैसे

वो- सुबह जब आपका इंतजार कर रही थी तब आयत मिली थी और वो ही दे गयी बोली तोहफा है रख लो

भाभी- एक मिनट क्या नाम लिया तुमने 

वो- जी आयत,

भाभी- पर आयत तो, आयत तो अर्जुन सिंह की बेटी थी न 

मैं- भाभी आयात ये है 

छज्जेवाली- मैं पूजा हु कितनी बार कहु, भाभीसा आप ही बताइए न

भाभी- ये सही कह रही है 

छज्जेवाली- और कैसेट वाले ने भी सच बता तो दिया 

मैं- भाभी जब हम दोनों रेडियो सुनते थे तो वो फरमाइये याद है 

भाभी- तभी तो मैं कहती थी की आयत कुछ अपना सा लगता है 

मैं- ठीक है वो आयत है पर अब कहा गयी वो 

कमरे में अजीब सी चुप्पी छा गयी इसका जवाब किसी के पास नहीं था

मेरी आँखों में आंसू आ गए ये कैसा छल कर गयी थी वो मेरे साथ , क्या ये ही मोहब्बत थी उसकी 
जस्सी ने कमरे की तलाशी निकली तो उसमें वो सभी सामान निकला जिसे वो उस घर में यूज़ करती थी इसका मतलब वो भी थी , थी वो भी 

मैं- तू चाहे पूजा हो या आयत पर तुझे कसम है मेरे उस प्यार की, कसम है उस नाते की जो तेरे मेरे बीच है तुझे कसम है मेरी अगर आज अभी तू मेरे पास न आयी तो कुंदन का मरा मुह देखेगी, मैं जान दे दूंगा ये सौगंध है मेरी, अगर तेरी मेरी मोहब्बत रुस्वा हुई आज तो कुंदन मौत को गले लगायेगा तूने ही कहा था न की तेरे रहते कुंदन कभी रुस्वा नहीं होगा तो आज तू ही ऐसा कर रही है 
कुछ देर मेरी आवाज गूंजती रही और फिर सब शांत हो गया मरघट सी शांति

वो सब लोग मुझे देखते रहे सोचने लगे की कही कुंदन पगला तो न गया 

और फिर छम्म छम्म पायल की आवाज हुई और मेरे होंठो से निकला- वो आ गयी, वो आ गयी,

पल पल पायल की आवाज तेज होती गयी और फिर मैंने उसे देखा जैसे हमेशा देखा था ऐसे ही मुस्कुराते हुए एक पल वो रुकी और फिर भागते हुए सीधा मेरे सीने से लगी 

आयत- तुझे रुस्वा कैसे कर सकती हूं मैं मेरे सरताज 

मैं- कहा गयी थी तू और ये क्या माजरा है 

वो- बताती हु सब बताती हु , पर मुझे मेरे झूठो के लिए माफ़ करना मेरा नाम आयात ही है , कुछ चीज़ों पे विश्वास करना मुश्किल होता है मैं समझती हूं ये लोग नहीं समझेंगे पर गलती मेरी ही तो थी जो तेरे मोह में पड़ गयी,

मैं तो बस भटकती रहती थी दिन रात यहाँ से वहां पर उस रात जब तेरी मेरी मुलाकात हुई न जाने तू क्या जादू कर गया की तुझे भूल न पायी और कही तेरा साथ न छुटे इस वजह से सच बोल न पायी तू किसी रंग सा मेरे पास आया और रंग गयी मैं, 

और अनजाने में ही जब मेरी मांग भरी गयी मेरे लिए समस्या हो गयी मैं महा प्रेतनी तू मानव पर प्रेम कहा जाने 

तेरी जिद तेरी मासूमियत तेरी हर परेशानी को मैंने अपना समझ लिया ये जानते हुए की एक दिन जब सच तू जानेगा तो क्या होगा

मैं- पर तू प्रेतनी कैसे , वो तो डरावने होते है न 

वो- तूने भी तो देखा था मेरा डरावना रूप जलते हुए वो मेरी ही राख थी कुंदन पर पल पल तेरे प्रेम ने मुझे वो सपने दिखाने शुरू कर दिए जो मुमकिन ही न थे ये तेरा प्रेम ही था कि मैं एक प्रेतनी होकर भी माता के दरबार में जा सकी सुहागन जो थी तेरी 
और आज मेरा समय भी हो गया था तुझसे विदा लेने का पर ये तेरे प्यार का असर है और तुम्हारे पिता का अहसान,

जस्सी जो हैरान थी बोली- कैसा अहसान 

आयत्त- जब उनकी सिद्धि पूर्ण न हुई तो उन्होंने कारण ढूंढा और मेनका सब जान गयी तो राणाजी ने धर्मराज के चालक से अपने वचन की दुहाई देकर एक अंतिम प्रार्थना की और अपने प्राणों को मोल करके मुझे शरीर दिलाया इतना बड़ा त्याग किया उन्होंने 

छज्जेवाली- तो इसका मतलब अब आप

आयत- हां अब मैं पूर्ण नारी हु 

मैं- मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता बस तुम मेरी हो मेरी हो 

आयत- हां मैं बस तुम्हारी हु पर इस लड़की के हक़ का क्या 

पूजा- आप खुश रहे बस इतनी कामना है मेरी 

आयत- नहीं कुंदन तुम्हे भी मिलेगा क्यों कुंदन दो पत्नियों से तुम्हे आपत्ति तो नहीं 

मैं- तुम कहो तो जो ही सही 

जस्सी- तो ठीक है अब सब घर चलो यकीन नहीं होता पर मोहब्बत आज समझी हु , चलो सब 
उसके बाद कुंदन अपनी दोनों पत्नियों के साथ रहने लगा और जस्सी का। 
सदा उसने मान रखा
 
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