Bhoot bangla-भूत बंगला - Page 2 - SexBaba
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Bhoot bangla-भूत बंगला

भूत बंगला पार्ट-6

गतान्क से आगे...............

भूमिका के लिए आंब्युलेन्स बुलाई गयी और उसके बाद मैं पोलीस स्टेशन से सीधा अपने कोर्ट पहुँचा. 1 बज चुका था और 2 बजे की मेरी एक केस की हियरिंग थी.
कोर्ट से केस निपटने के बाद मैं अपने ऑफीस गया
"आइए आइए" मुझे देखकर प्रिया उठते हुए बोली "तो याद आ गया आपको के आप ऑफीस भी आते हैं?"
उसको देखकर मैं चौंक पड़ा. वो मुस्कुरा रही थी. कल रात वो जिस तरह खामोशी से गयी थी उससे तो मुझे लगा था के वो अब कभी मुझसे बात नही करना चाहेगी और शायद रिज़ाइन ही कर दे. पर वो मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी, ऐसे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. मैने राहत की साँस ली.
"हाँ यार" मैने कहा "वो सुबह सुबह मिश्रा ने बुला लिया था"
"क्या बात है आजकल पोलीस स्टेशन के काफ़ी चक्कर लग रहे हैं?" उसने मुझसे पुचछा
"बताऊँगा बाद मैं" मैने चेर पर बैठते हुए बोला "फिलहाल पानी पिला"
उसके बाद सब कुच्छ नॉर्मल रहा. प्रिया के बर्ताव में कोई बदलाव नही था जिसको लेकर मैं खुश था. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी जिसको मैं खोना नही चाहता था. मेरी हर बात का पूरा ध्यान रखती थी और हमेशा वक़्त पर ऑफीस पहुँच जाती थी. पर जो बात मुझे परेशान कर रही थी वो थी उसका यूँ कुच्छ ना कहना. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या वो कल की बात पर सच में नाराज़ नही है या ड्रामा कर रही है. क्या वो सही में मुस्कुरा रही है या दिल में कुच्छ और दबाए बैठी है. जब बर्दाश्त ना हुआ तो मैने आख़िर सोच ही लिया के मैं ही कोई बात करूँ.
"सुन प्रिया" मैने कहा
उसने गर्दन उठाकर मेरी तरफ देखा
"यार मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. पता नही कैसे......" मैने अपनी बात कह ही रहा था के वो बीच में बोल पड़ी
"इट्स ओके सर" उठकर वो मेरी टेबल पर मेरे सामने आकर बैठ गयी
"नो इट्स नोट. जिस तरह से तू गयी थी मुझे तो लगा था के अब नही आएगी. मैं माफी चाहता हूँ यार" मैने कहा
"अरे इसमें माफी की क्या बात है" वो हस्ते हुए बोली "और फिर आपने कोई ज़बरदस्ती तो नही की थी मेरे साथ. मैं खुद भी तो खामोश खड़ी थी"
ये बात उसने कह तो दी पर फिर खुद ही शर्मा गयी. शरम से उसने नज़र दूसरी तरफ फेर ली और हल्के से मुस्कुराने लगी. मैने इस बारे में आगे कोई बात ना करना ही ठीक समझा. कुच्छ देर तक हम यूँ ही खामोश बैठे रहे
"एक बात बताइए" कुच्छ देर बाद वो खुद ही बोली. मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो शरारत से मुस्कुरा रही थी.
"आपकी नज़र हो या आपका हाथ, दोनो सीधा यहीं क्यूँ पहुँच जाते हैं" कहते हुए उसने एक नज़र से अपनी चूचियो की तरफ इशारा किया
इस बार शरमाने की बारी मेरी थी. कल रात मैने एक हाथ उसकी चूचियो पर रख दिया था और वो उस बारे में ही बात कर रही थी. मुझे शरमाते देखकर वो खिलखिला कर हसी और मुझे छेड़ने लगी.
"बताओ ना सर" कहते हुए वो आगे को झुकी. थोड़ी देर पहले की शरम अब उसकी आँखों और चेहरे से जा चुकी थी.
"क्या बताऊं?" मैने किसी चोर की तरह पुचछा
"यही के क्या है यहाँ ऐसा जो आपकी नज़र यहीं आकर अटक जाती है. और मौका मिलते ही आपका हाथ भी यहीं पहुँच गया"
मैं जवाब में कुच्छ नही कहा पर वो तो जैसे अपनी बात पर आड़ गयी थी. सवाल फिर दोहराया.
"अरे यार" मैने झल्लाते हुए कहा "एक लड़के की नज़र से देख. जवाब मिल जाएगा"
"कैसे देखूं. लड़का तो मैं हूँ नही. वो तो आप हो इसलिए आप ही बता दो" उसने वही शरारत भरी आवाज़ में कहा
"ठीक है सुन" मैने गुस्से में अपने सामने रखी वो फाइल बंद कर दी जिसे देखने का मैं नाटक कर रहा था "लड़को को आम तौर पर बड़ी छातिया पसंद आती है. ऐसी जैसी तेरी हैं. और तूने खुद ही कहा के मैं लड़का हूँ. इसलिए मेरी नज़र बार बार यहाँ अटक जाती है"
"और मौका मिलते ही हाथ भी यहीं अटका दिया?" वो बोली और ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी. उल्टा हो रहा था. लड़की वो थी और शर्मा मैं रहा था.
"अच्छा और क्या है मुझ में ऐसा जो आपको पसंद आता है?" वो हसी रोक कर बोली
"तू जाएगी यहाँ से या नही?" मैने गुस्से में उसको घूरा तो वो सॉरी बोलती वहाँ से उठकर अपनी डेस्क पर जाकर बैठ गयी. आँखो में अब भी वही शरारत थी.

उस रात मैं घर पहुँचा तो घर पर सिर्फ़ देवयानी ही थी.
"आइए आहमेद साहब" वो मुझे देखते हुए बोली "कैसा रहा आपका दिन?"
"कुच्छ ख़ास नही" मैने जवाब दिया "बस वही यूषुयल कोर्ट केसस. रुक्मणी कहाँ है?"
"बाहर गयी है" वो मेरे पास ज़रा अदा से चलते हुए आई "मुझे भी कह रही थी चलने के लिए पर फिर मैने सोचा के अगर मैं भी चली गयी तो आपका घर पर ध्यान कौन रखेगा?"
"मैं कोई छ्होटा बच्चा नही हूँ" मैं ज़रा मुस्कुराते हुए बोला "अपना ध्यान खुद रख सकता हूँ"
"हां रख तो सकते हैं पर आपके पास हाथों से करने को और भी बेहतर काम हैं" वो बोली और हास पड़ी
उसकी कही बात का मतलब मैं एक पल के लिए समझा नही और जब समझा तो जवाब में उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे के मुझे समझ ही ना आया हो
"मैं कुच्छ समझा नही" मैने भोली सी सूरत बनाते हुए कहा
"अब इतने भी भोले नही हैं आप इशान आहमेद" उसने ऐसे कहा जैसे मेरी चोरी पकड़ रही हो
मुझे समझ नही आया के आगे क्या कहूँ. मैं खामोशी से खड़ा हुआ और बॅग उठाकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
"कुच्छ खाओगे?" उसने मुझे जाता देखकर पिछे से कहा
"एक कप कॉफी फिलहाल के लिए" मैने पलटकर कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चला
सर्दियों का मौसम चल रहा था और मेरा पूरा जिस्म दुख रहा था जैसे मुझे बुखार हो गया हो. मैने बॅग रखा और अपने कपड़े उतारकर बाथरूम में दाखिल हुआ. मैं अभी नहा ही रहा था के मेरे कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई.
"इशान कॉफी" आवाज़ देवयानी की थी
"वहीं टेबल पर रख दीजिए" मैने जवाब दिया
कुच्छ ही पल गुज़रे थे के मैने बाथरूम के दरवाज़े पर आहट महसूस की. बाथरूम मेरे कमरे के अंदर ही था इसलिए मैने दरवाज़ा लॉक नही क्या. मेरे पूरे चेहरे पर साबुन लगा हुआ था इसलिए आहट कैसी थी देख नही पाया पर फिर अगले ही पल मुझे एहसास हो गया के दरवाज़ा खोलकर कोई अंदर दाखिल हुआ है.
"कौन?" मैने कहा पर जवाब नही आया. मैने शओवेर ऑन किया और चेहरे से साबुन सॉफ करके दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर देवयानी खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैं उसको यूँ खड़ा देखकर चौंक गया और फिर अगले ही पल मुझे ध्यान आया के मैं बिल्कुल नंगा था. मैने फ़ौरन साइड में लटका टवल खींचा और अपनी कमर पर लपेट लिया.
मैं कुच्छ कहने ही जा रहा था के देवयानी मेरी तरफ आगे बढ़ी. मैं चुप खड़ा उसकी तरफ देख रहा था और वो मेरी तरफ देखते हुए मेरे करीब आ खड़ी हुई. शवर अब भी ओन था इसलिए जब वो मेरे पास आई तो पानी मेरे साथ उसके उपेर भी गिरने लगा. हम दोनो के बीच कोई कुच्छ नही कह रहा था और ना ही अब कोई मुस्कुरा रहा था. बस एक दूसरे की नज़र में नज़र डाले एकदम करीब खड़े हुए थे. अब तक देवयानी भी पूरी तरह भीग चुकी थी और उसकी वाइट कलर की नाइटी उसके जिस्म से चिपक गयी थी. अंदर पहनी ब्लॅक कलर की ब्रा और पॅंटी उसके बाकी जिस्म के साथ सॉफ नज़र आ रही थी.
देवयानी ने अपना एक हाथ उठाकर मेरी छाती पर रखा. जाने क्यूँ पर मैं ऐसे च्चितका जैसे करेंट लगा हो. मैं फ़ौरन 2 कदम पिछे हो गया मानो वो मेरा रेप करने वाली हो. मेरे ऐसा करने पर वो ज़ोर से हस पड़ी.
"क्या हुआ इशान?" वो मुझे देखते हुए बोली "उस दिन किचन में तो मुझे इस तरह पकड़ा था जैसे मेरा रेप ही कर दोगे और आज यूँ दूर हो रहे हो?"
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और एक नज़र उसपर उपेर से नीचे तक डाली. पानी में भीगी हुई वो किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी जो किसी भी ऋषि का ध्यान भंग कर सकती है और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. उसके भीगा हुआ तकरीबन आधा नंगा जिस्म देखकर मेरे दिल और लंड में हरकत होने लगी. मैं अबी सोच ही रहा था के घर के बाहर हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी. गाड़ी रुक्मणी की थी. देवयानी ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा, मुस्कुराइ और बाथरूम से बाहर चली गयी.
डिन्नर टेबल पर हम तीनो ने खामोशी से खाना खाया. खाना ख़तम होने के बाद रुक्मणी उठकर किचन की तरफ गयी.
"15 मिनट हैं तुम्हारे पास. सिर्फ़ 15 मिनट" उसके जाते हो देवानी मुझसे बोली. उसकी बात का मतलब मुझे समझ नही आया और मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा. तभी रुक्मणी किचन से वापिस आ गयी.
"मैं ज़रा वॉक के लिए जा रही हूँ" देवयानी ने कहा "15 मिनट में आ जाऊंगी"
मैं उसकी बात का मतलब समझ गया. वो रुक्मणी के साथ मुझे अकेले में 15 मिनट दे रही है.
उसके घर से बाहर निकलते ही मैने फ़ौरन रुक्मणी को पकड़ा और उसको होंठो पर अपने होंठ रख दिया. वो भी शायद मौके का इंतेज़ार ही कर रही थी और फ़ौरन मेरे चूमने का जवाब दिया. मेरे हाथ उसके चेहरे से होते हुए नीचे सरके और एक हाथ उसकी चूचियो और दूसरा उसकी गांद तक पहुँच गया. उसने एक ब्लू कलर की नाइटी पहेन रखी थी जिसके उपेर से मेरे हाथ उसके जिस्म को नापने लगे. रुक्मणी का अपना भी एक हाथ पाजामे के उपेर से मेरे लंड को टटोल रहा था.
"कपड़े उतारो" मैं उसको चूमता हुआ बोला
"नही" उसने कहा "पूरा कपड़े मत उतारो. देवयानी कभी भी वापिस आ सकती है"
मुझे भी देवयानी की 15 मिनट वाली बात याद आई तो मैने भी ज़िद नही की. उसको पकड़कर सोफे तक लाया और सोफे पर उसको बेतकर खुद उसके सामने खड़ा हो गया. रुक्मणी मेरा इशारा समझ गयी और फिर वो काम करने लगी जिसके लिए मैं उसका कायल था. मेरा पाजामा नीचे सरक चुका था और मेरा लंड उसके मुँह में अंदर बाहर हो रहा था. उसका एक हाथ कभी मेरे लंड को रगड़ता तो कभी मेरी बाल्स को सहलाता. कुच्छ देर लंड चुसवाने के बाद मैने उसको नीचे फ्लोर पर खींचा और घूमकर उसकी गांद अपनी तरफ कर ली. उसने अपने हाथ सोफे पर रखे और घुटनो के बल नीचे फ्लोर पर झुक गयी.
पीछे से उसको यूँ देखकर मेरी नज़रों के सामने फ़ौरन प्रिया की गांद घूमने लगी और मेरे दिल में एक पल के लिए ख्याल आया के अगर प्रिया इस तरह से झुके तो कैसी लगेगी?
"जल्दी करो?" रुक्मणी ने कहा
मैने उसकी नाइटी उठाकर उसकी कमर पर डाल दी और पॅंटी खींच कर नीचे कर दी. उसकी चूत और गांद मेरे सामने खुल गयी. जब भी मैं उसको इस तरह देखता था तो हमेशा मेरा दिल उसकी गांद मारने का करता था और आज भी ऐसा ही हुआ. मैने अपने लंड निकाला और उसकी गांद पर रगड़ने लगा. वो समझ गयी और मेरी तरफ गर्दन घूमकर मुस्कुराइ.
"नही इशान"
"प्लीज़ बस एक बार" मैने ज़िद करते हुए कहा
"दर्द होता है" उसने अपनी आँखें छ्होटी करते हुए कहा
वक़्त ज़्यादा नही था और मैं इस मौके का पूरा फायडा उठना चाहता था इसलिए ज़िद छ्चोड़ दी और अपना लंड उसकी चूत पर रखकर एक झटके में अंदर घुसता चला गया.

भूमिका सोनी का उस दिन पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना पता नही एक नाटक था या हक़ीकत पर मुझे मिश्रा से पता चला के वो ठीक थी और विल सेट्ल करने के लिए मुंबई गयी हुई थी. बॉडी उसने क्लेम कर ली थी और विपिन सोनी का क्रियाकर्म वहीं शहेर के शमशान में कर दिया गया था. उसके अगले दिन तक कुच्छ ख़ास नही हुआ. मेरी रुटीन लाइफ चलती रही. प्रिया के किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी थी इसलिए वो 2 हफ्ते की छुट्टी लेकर गयी हुई थी. मैने अकेला ही ऑफीस में बैठता और घर आ जाता. घर पर भी उस दिन के बाद ना तो मुझे रुक्मणी के साथ कोई मौका मिला और ना ही देवयानी के साथ बात आगे बढ़ी.
ऐसे ही एक सॅटर्डे को मैं घर पर बैठा टीवी देख रहा था के फोन की घंटी बजी. रुक्मणी और देवयानी दोनो ही घर पर नही. मैने फोन उठाया तो दूसरी तरफ मिश्रा था.
"क्या हो रहा है?" मैने पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही यार" उसने जवाब दिया "वही सोनी मर्डर केस में उलझा हुआ हूँ"
"कुच्छ बात आगे बढ़ी?"
"नही यार" मिश्रा ने लंबी साँस लेते हुए जवाब दिया "वहीं अटका हुआ हूँ. एक इंच भी आगे नही बढ़ा"
"उसकी बीवी कहाँ है?" मैने सवाल किया
"मुंबई में ही है फिलहाल तो. एक दो दिन में आएगी वापिस" मिश्रा बोला
"तू एक बार उसके बारे में पता क्यूँ नही करता?" मैने अपना शक जताया
"क्या कहना चाह रहा है?" मिश्रा की आवाज़ से ज़ाहिर था के उसको मेरी बात पर हैरत हुई थी "तुझे लगता है उसने मारा है अपने पति को?"
"हाँ क्यूँ नही हो सकता. वो अभी जवान है और सोनी बुड्ढ़ा था और अमीर भी. उसके मरने से सबसे ज़्यादा फायडा तो भूमिका को ही हुआ है" मैने कहा
"नही यार. मुझे नही लगता" मिश्रा ने मेरा बात को टाल दिया पर मैने अपनी बात पर ज़ोर डाला.
"भले ही ऐसा ना हो पर देखने में क्या हर्ज है. और हो सकता है के यहीं से तुझे कोई और लीड मिल जाए. फिलहाल तो कहीं से भी बात आगे नही बढ़ रही ना"
उसको शायद मेरी बात में दम नज़र आया इसलिए वो मान गया के भूमिका सोनी के बारे में पता करेगा और अगर कुच्छ हाथ लगा तो मुझको भी बताएगा. थोड़ी देर और बात करके हमने फोन रख दिया.
दोपहर के 2 बज चुके थे. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. टीवी देखकर बोर हो चुका था. बाहर कॉलोनी में शमशान जैसा सन्नाटा फेला हुआ था. बाहर बहुत ठंडी हवा चल रही थी और सब अपने घर में घुसे हुए थे. मुझे भी जब कुच्छ समझ नही आया तो मैं वहीं सोफे पर लेट गया और आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा.
ऐसे ही कोई आधा घंटा बीट गया पर मुझे नींद नही आई. जिस्म में एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे बुखार हो गया हो और दिमाग़ सुकून लेने को तैय्यार ही नही. कभी कोई बात तो कभी कोई और पर दिमाग़ में कुच्छ ना कुच्छ चल ही रहा था. मैं पार्शन होकर फिर सोफे पर उठकर बैठ गया और मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी.
वो इस बार भी जैसे कोई लोरी ही गा रही थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रही हो. उस रात की तरह ही मुझे अब भी लोरी के बोल समझ नही आ रहे थे और ना ही कोई म्यूज़िक था. बस एक बहुत मीठी सी हल्की सी आवाज़ जैसे कोई बहुत धीरे धीरे गा रहा हो. अब तो मैं ये भी नही कह सकता था के देवयानी या रुक्मणी गा रही थी क्यूंकी दोनो ही घर में नही था. आवाज़ बहुत धीमी थी इसलिए अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था के किस और से आ रही है पर फिर भी मैने ध्यान से सुनने की कोशिश की.
आवाज़ खिड़की की तरफ से आ रही थी मतलब के बाहर कोई गा रहा था. मैं उठा और अपने घर से निकालकर बाहर रोड पर आया. मुझे उम्मीद थी के बाहर आने पर आवाज़ शायद थोडा सॉफ सुनाई देगी पर ऐसा हुआ नही. अब भी वॉल्यूम उतना ही था. वही धीमी शांत ठहरी सी आवाज़. सड़क सुनसान थी बल्कि उस वक़्त तो पूरी कॉलोनी ही कोई वीराना लग रही थी. चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पेड़ और ठंडी चलती हवा की आवाज़ और उसके बीच आती उस गाने की आवाज़. मैने फिर ध्यान लगाकर सुना तो मुझे आवाज़ अपने घर के सामने के घर से आती हुई महसूस हुई. मैं घर की तरफ बढ़ा पर जैसे जैसे करीब होता गया आवाज़ दूर होती गयी. जब मैं उस घर के सामने पहुँचा तो मुझे लगा के आवाज़ मेरे अपने घर से आ रही है. अपने घर की तरफ पलटा तो लगा के आवाज़ हमारे साइड के घर से आ रही है. जब उस घर की तरफ देखा तो आवाज़ कहीं और से आती महसूस हुई. और उस रात की तरह ही इस बार भी उस गाने का असर होना शुरू हो चुका था. सड़क पर खड़े खड़े ही मेरी आँखें इस तरह भारी होने लगी थी जैसे मैं कई साल से नही सोया. एक पल के लिए मुझे लगने लगा के मैं वहीं सड़क पर लेटकर ही सो जाऊँगा. मैने कदम वापिस अपने घर की तरफ बढ़ाए और अंदर आकर सोफे पर गिर पड़ा. गाने की आवाज़ अब भी सुनाई दे रही थी और मुझे पता ही नही चला के मैं कब नींद के आगोश में चला गया.
 
उसके बाद अगले कुच्छ दीनो तक मेरी ज़िंदगी जैसे एक ही ढर्रे पर चलती रही. मैं सुबह ऑफीस के लिए निकल जाता और शाम को घर आ जाता. रुक्मणी और देवयानी के साथ डिन्नर करता और जाकर सो जाता. देवयानी कब तक यहाँ रहने वाली थी इस बात का ना तो मुझे अंदाज़ा था और ना ही मुझे कुच्छ रुक्मणी से पुछने का मौका मिला पर अब उसके वहाँ होने से मुझे अजीब सी चिड होने लगी थी. वो हमेशा अपनी बहेन से चिपकी रहती और एक पल के लिए भी मुझे रुक्मणी के साथ अकेले ना मिलने देती. उसके उपेर से जब भी मौका मिलता तो वो मुझे छेड़ने से बाज़ नही आती थी. जानकर मेरे सामने ढीले गले के कपड़े पहेनकर आती और मौका मिलते ही झुक जाती ताकि मैं उसके कपड़ो के अंदाज़ का नज़ारा सॉफ देख सकूँ. पर इससे ज़्यादा बात नही बनी. ऑफीस में भी अब प्रिया नही आ रही थी. उसके बड़े भाई की शादी थी जिसके लिए उसने 2 महीने की छुट्टी ली हुई थी. मैं ऑफीस जाता तो वहाँ कोई ना होता और रोज़ रात को मैं बिस्तर पर भी अकेला ही सोता.
विपिन सोनी का खून हुए 2 महीने से भी ज़्यादा वक़्त हो चुका था पर अब भी रोज़ाना ही न्यूसपेपर में उसके बारे में कुच्छ ना कुच्छ होता था. मिश्रा से मेरी बात इस बारे में अब नही होती थी. मैने कई बार उसको फोन करने की कोशिश की पर वो मिला नही और ना ही उसने कभी खुद मुझे फोन किया. धीरे धीरे मेरा इंटेरेस्ट भी केस में ख़तम हो गया और अब मेरे लिए विपिन सोनी का केस सिर्फ़ न्यूसपेपर में छपने वाली एक खबर होता था.
जितना मैने न्यूसपेपर में पढ़ा उस हिसाब से विपिन सोनी कोई बहुत बड़ा आदमी था. एक बहुत ही अमीर इंसान जिसके पास बेशुमार दौलत थी. उसकी पहली बीवी से उसको एक बेटी थी और बीवी के मर जाने के बाद उसने बुढ़ापे में भूमिका से दूसरी शादी की थी. एक ज़माने में वो पॉलिटिक्स में बहुत ज़्यादा इन्वॉल्व्ड था और ये भी कहा जाता था के जिस तरह से माहरॉशट्रे के पोलिटिकल वर्ल्ड में उसकी पकड़ थी, उस तरीके से वो दिन दूर नही जब वो खुद एक दिन माहरॉशट्रे के चीफ मिनिस्टर होता. मुंबई का वो जाना माना बिज़्नेसमॅन था और शायद ही कोई इंडस्ट्री थी जहाँ उसका पैसा नही लगा हुआ था. पर अपनी बीवी के गुज़रने के बाद जैसे उसने अपने आपको दुनिया से अलग सा कर लिया. पॉलिटिक्स से उसने रिश्ता तोड़ दिया और उसका बिज़्नेस भी उसके मॅनेजर्स ही संभालते थे. पता नही कितना सच था पर उसके किसी नौकर के हवाले से एक न्यूसपेपर ने ये भी छपा था के अपनी बीवी के गुज़रने के बाद सोनी जैसे आधा पागल हो गया था और एक साइकिट्रिस्ट के पास भी जाता था.
इन सब बातों का नतीजा ये निकला के मीडीया ने उसके खून के मामले को दबने ना दिया. नेवपपेर्स और टीवी चॅनेल्स तो जैसे दिन गिन रहे थे और रोज़ाना ही ये बात छपती के सोनी का खून हुए इतने दिन हो चुके हैं और पोलीस को उसके खूनी का कोई सुराग अब तक नही मिल पाया है.
ऐसे ही एक दिन मैं अपने ऑफीस में अकेला बैठा था के दरवाज़ा खुला और मिश्रा दाखिल हुआ.
"बड़े दिन बाद" मैं उसको देखकर मुस्कुराता हुआ बाओला "आज इस ग़रीब की याद कैसे आई?"
"पुच्छ मत यार" वो मेरे सामने बैठता हुआ बोला "ज़िंदगी हराम हो रखी है साली"
"क्यूँ क्या हुआ?" मैने पुचछा
"अरे वही विपिन सोनी का केस यार" उसके हाथ में एक न्यूसपेपर था जिसे वो मेरी तरफ बढ़ता हुआ बोला "मेरी जान की आफ़त बन गया है ये केस. वो सला सोनी पोलिटिकली इन्वॉल्व्ड था और कयि बड़े लोगों को जानता था. रोज़ाना ही मेरे ऑफीस में फोन खड़कता रहता है के केस में कोई प्रोग्रेस है के नही"
"ह्म्‍म्म्म" मैने उसके हाथ से न्यूसपेपर लिया
"और उपेर से ये मीडीया वाले" वो अख़बार की तरह इशारा करते हुए बोला "बात को दबने ही नही दे रहे. और आज ये एक नया तमाशा छाप दिया"
"क्या छाप दिया?" मैने अख़बार खोला. उस दिन सुबह मैं कोर्ट के लिए लेट हो रहा था इसलिए न्यूसपेपर उठाने का वक़्त नही मिला था
"खुद पढ़ ले" उसने कहा और सामने रखे ग्लास में पानी डालकर पीने लगा
मैने न्यूसपेपर खोला और हेडलाइन देखकर चौंक पड़ा
"पढ़ता रह" मिश्रा ने कहा
न्यूसपेपर वालो ने खुले तौर पर पोलीस का मज़ाक उड़ाया था और इस बात को के पोलीस 2 महीने में भी खूनी की तलाश नही कर पाई थी पोलीस की नाकामयाबी बताया था. जिस बात को पढ़कर मैं चौंका वो ये थी के न्यूसपेपर में मिश्रा के नाम का सॉफ ज़िक्र था.
"नौकरी पर बन आई है यार" मिश्रा ने आँखें बंद की और कुर्सी पर आराम से फेल गया "समझ नही आता क्या करूँ"


"कोई सुराग नही?" मैने न्यूसपेपर को एक तरफ रखते हुए कहा
मिश्रा ने इनकार में सर हिलाया. मुझे याद था के आखरी बार जब मैने मिश्रा से इस बार में बात की थी तो मैने उसको भूमिका सोनी के बारे में पता करने को कहा था.
"उसकी बीवी के बारे में पता किया तूने?" मैने मिश्रा से सवाल किया
"आबे यार तू यही क्यूँ कहता है के खून उसने किया है?" मिश्रा ने सवाल किया
"मैं ये नही कहता के खून उसकी बीवी ने किया है" मैने जवाब दिया "मैं सिर्फ़ ये कह रहा हा के ऐसा हो सकता है."
"नही यार" मिश्रा ने कहा
"क्यूँ?" मैने पुचछा
"पता किया है मैने. पर्फेक्ट अलिबाइ हैं उसके पास. " मिश्रा बोला. कमरे में कुच्छ देर खामोशी रही
"यार जिस तरह से वो अब तक अपने पति के खून को ले रही है उस हिसाब से मैं तो कहता हूँ के ज़रा भी गम नही है उसको अपने पति की मौत का. और उस दिन यूँ पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना भी सला एक ड्रामा था" मैने अपना शक जताते हुए क़ा
अगले एक घंटे तक मिश्रा मेरे ऑफीस में बैठा रहा और मैं ये कहता रहा के भूमिका ने खून किया हो सकता है पर वो नही माना.
उस रात डिन्नर के बाद मैं घर से थोड़ी देर बाहर घूमने के लिए निकल गया. ऐसे ही टहलता हुआ मैं बंगलो नंबर 13 के सामने से निकला तो एक पल के लिए वही खड़ा होकर उस घर की तरफ देखने लगा. उस घर में 2 खून हो चुके थे. एक आज से कई साल पहले जब एक पति ने गुस्से में अपने बीवी को गोली मार दी थी और जिसके बात ये बात फेल गयी थी के उस घर में उस औरत की आत्मा आज भी भटकती है और दूसरा खून विपिन सोनी का. पहले खून में तो पति को सज़ा हो गयी थी पर सोनी को मारने वाला आज भी फरार था.
थोड़ी देर वहीं रुक कर मैने एक लंबी साँस ली और आगे बढ़ने के लिए कदम उठाए ही थे के फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कान में पड़ी.
आवाज़ अब भी वैसे ही थी. बहुत ही सुरीली और धीमी आवाज़ में कुच्छ गया जा रहा था पर क्या ये समझ अब भी नही आया. फिर ऐसा लगा जैसे कोई माँ अपने बच्चे को एक लोरी गाकर सुला रही है. मैं एक पल के लिए फिर वहीं रुक गया और जब मेरी नज़र बंगलो की तरफ पड़ी तो जैसे मेरी रूह तक काँप गयी.
आवाज़ यक़ीनन बंगलो की तरफ से ही आ रही थी पर जिस बात ने मुझे अंदर तक डरा दिया था वो थी घर के अंदर से आती हुई रोशनी. घर की सारी खिड़कियाँ खुली हुई थी और उनपर पड़े पर्दों के पिछे एक रोशनी एक कमरे से दूसरे कमरे तक आ जा रही थी. लग रहा था जैसे कोई हाथ में एक कॅंडल लिए घर के अंदर एक कमरे से दूसरे कमरे में फिर तीसरा कमरे में घूम रहा है और गाने की आवाज़ भी उसी तरफ से आती जिस तरफ से रोशनी आती. मुझे बंगलो के बारे में सुनी गयी हर वो बात याद आ गयी के इस घर में एक आत्मा भटकती है और लोगों ने अक्सर इस घर में रातों को किसी को गाते हुए सुना है. मैने आज तक कभी इस बात पर यकीन नही किया था और नही ही कभी ये सोचा के ये सच हो सकती है. मैं तो उल्टा ये बात सुनकर हस देता था पर आज जो हो रहा था वो मेरी आँखों के सामने था. बंगलो के अंदर रोशनी मैं अपने आँखो से देख रहा था और गाने की आवाज़ अपने कान से सुन रहा था. मेरे कदम वहीं जमे रह गये और मेरी नज़र उस रोशनी के साथ साथ ही जैसे चलने लगी.
अचानक गाने की आवाज़ रुक गयी और मेरे ठीक पिछे बिल्कुल मेरे कान के पास एक औरत की धीमी सी आवाज़ आई
"इशान"
उसके बाद क्या हुआ मुझे कुच्छ याद नही.


मेरी आँख खुली तो मैं हॉस्पिटल में था. मेरा अलावा कमरे में सिर्फ़ एक रुक्मणी थी.
"क्या हुआ?" मैने उठकर बैठने की कोशिश की
"लेते रहो" मुझे होश में देखकर वो फ़ौरन मेरे करीब आई
"हॉस्पिटल कैसे पहुँच गया मैं?" मैने उससे पुचछा
"तुम बंगलो 13 के सामने बेहोश मिले थे हमें" वो मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली "क्या हो गया था?"
मेरे दिमाग़ में सारी बातें एक एक करके घूमती चली गयी. वो गाने की आवाज़, रोशनी और फिर मेरे पिछे से मेरे नाम का पुकारा जाना.
"क्या हो गया था?" रुक्मणी ने सवाल दोहराया
अब मैं उसको कैसे बताता के मैं अपना नाम सुनकर डर के मारे बेहोश हो गया था इसलिए इनकार में सर हिलाने लगा.
"पता नही मैं वॉक कर रहा था के अचानक ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा. उसके बाद कुच्छ याद नही"
एक नज़र मैने घड़ी पर डाली तो सुबह के 7 बज रहे थे.
"कौन लाया मुझे यहाँ" मैने रुक्मणी से पुचछा
"मैं और कौन?" उसने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा "जब तुम 3 घंटे तक वापिस नही आए तो मैं और देवयानी ढूँढने निकले. बंगलो के सामने तो सड़क किनारे बेहोश पड़े थे"
मुझे अपने उपेर और शरम आने लगी. मैं डर के मारे 3 घंटे तक बेहोश पड़ा रहा सड़क पे पर इसके साथ ही कई सारे सवाल फिर से दिमाग़ में घूमने लगे. रोशनी देखी वो तो समझ आता है के कोई बंगलो के अंदर हो सकता है पर वो गाने की आवाज़ और मेरे पिछे से मेरा नाम किसने पुकारा था. मुझे याद था के जिस तरह से मेरा नाम लिया गया था उससे सॉफ ज़ाहिर था के कोई मेरे पिछे बहुत करीब खड़ा था. बरहाल मैने रुक्मणी से इस बात का ज़िक्र ना करना ही ठीक समझा.
डॉक्टर ने मुझे हॉस्पिटल से एक घंटे के अंदर ही डिसचार्ज कर दिया. मैं बिल्कुल ठीक था और ऑफीस जाना चाहता था पर रुक्मणी ने मना कर दिया. उसके हिसाब से मुझे आज आराम करना चाहिए था. मेरी कोर्ट में कोई हियरिंग भी नही थी इसलिए मैने भी ज़िद नही की और घर आ गया.
घर पहुँचा तो देवयानी मुझे देखते ही मुस्कुराइ.
"ठीक हो? मैं तो घबरा ही गयी थी"
पता नही वो सच घबराई थी या ड्रामा कर रही थी पर उसका यूँ पुच्छना मुझे जाने क्यूँ अच्छा लगा.
"मैं ठीक हूँ" मैने कहा और अपने कमरे में आ गया. मैं अभी चेंज ही कर रहा था के मेरा फोन बजने लगा. नंबर प्रिया का था.
"कब आएगी तू?" मैने फोन उठाते ही सीधा सवाल किया
"ना ही ना हेलो सीधा सवाल?" दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई "मैं तो आ चुकी हूँ बॉस पर आप ऑफीस कब आएँगे?"
मैने उसको बताया के आज मेरी तबीयत ठीक नही है इसलिए आ नही सकूँगा. थोड़ी देर बात करके मैने फोन रखा ही था के फोन दोबारा बजने लगा. इस बार मिश्रा था.
"क्या हो गया भाई?" इस बार फोन उठाते ही सवाल उसने कर दिया.
"कहाँ?" मैने सवाल के बदले सवाल किया
"अबे कहाँ नही तुझे क्या हो गया. अभी हॉस्पिटल से फोन आया था के कल रात एक औरत किसी इशान आहमेद नाम के वकील को बेहोशी में लाई थी." उसने कहा "अब इशान आहमेद नाम का वकील तो शहेर में तू ही है"
"किसका फोन था?" मैने पुचछा
"डॉक्टर का" उसने जवाब दिया "कह रहा था के वैसे तुझे कोई चोट नही थी इसलिए कल रात ही फोन नही किया पर जब पता चला के तू सड़क के किनारे पड़ा मिला था तो उसने हमें बताना बेहतर समझा"
"मैं ठीक हूँ यार" मैने कहा "ऐसे ही थोड़ा सर चकरा गया था. एक काम कर आज शाम को डिन्नर करते हैं साथ. फिर बताता हूँ"
मैं मिश्रा से उस रोशनी और गाने के बारे में बात करना चाहता था इसलिए रात को डिन्नर के लिए पास के एक होटेल में मिलने को कहा.

मैं नाहकार कमरे से बाहर जाने की सोची ही रहा था के रुक्मणी कमरे में आ गयी.
"कैसा लग रहा है अब?" उसने मुझसे पुचछा
"मैं ठीक हूँ. वो तो तुम ज़बरदस्ती घर ले आई वरना मैं ऑफीस जा सका था" मैने अपने बालों में कंघा घूमाते हुए कहा
मेरी बात सुनकर वो हस पड़ी.
"इसलिए ले आई क्यूंकी तुम्हारी फिकर है मुझे. कुच्छ चाहिए तो नही?"
इस बार सवाल सुनकर मैं हस पड़ा.
"तुम जानती हो मुझे क्या चाहिए" मैने आँख मारी
"उसका इंतज़ाम तो नही हो सकता" उसने कहा
"देवयानी घर पे है?" मैने पुचछा तो वो इनकार में सर हिलाने लगी
"बाहर गयी है" कहते हुए वो मेरे करीब आई और मेरे गले में बाहें डालकर खड़ी हो गयी
"तो क्यूँ नही हो सकता?" मेरे हाथ उसकी कमर पर आ गये
"आज डेट क्या है भूल गये क्या?" कहते हुए उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए
मुझे याद आया के इन दीनो उसके पीरियड्स होते हैं. देवयानी के घर पर ना होने की बात सुनकर मेरा जो चेहरा खिल गया था वो पीरियड्स की बात सोचकर मुरझा गया
"फिकर मत करो" मेरे चेहरे के बदलते भाव रुक्मणी ने पढ़ लिए "एक इंतज़ाम और है मेरा पास"
कहते हुए उसने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा और मुझे बेड की तरफ धक्का देकर गिरा दिया. मैं समझ गया के वो क्या करने वाली है इसलिए आराम से लेटकर मुस्कुराने लगा. मेरे सामने खड़ी रुक्मणी ने अपनी कमीज़ को उपेर की तरफ खींचा और उतारकर एक तरफ फेंक दिया. फिर खड़े खड़े ही उसके हाथ पिछे गये और अपना ब्रा खोलकर उसने कमीज़ के साथ ही गिरा दिया. उपेर से नंगी होकर वो बिस्तर पर आई और एक हाथ पेंट के उपेर से ही मेरे लंड पर फिराया और मेरे पेट पर किस किया.
"आआहह " उसके यूँ लंड पकड़कर दबाने से मेरे मुँह से आह निकल गयी.
वो मेरे पेट पर किस करती हुई धीरे धीरे उपेर की ओर आने लगी. मेरी च्चती पर किस करते हुए उसके होंठ मेरे निपल्स तक आए और वो मेरे निपल्स चूस्ते हुए उनपर जीभ फिराने लगी. उसकी इस हरकत से मुझे हमेशा गुदगुदी होती थी और इस बार भी ऐसा ही हुआ. मुझे गुदगुदी होने लगी और मैं उसका चेहरा अपने निपल्स से हटाने लगे.
मुझे हस्ते देखकर वो खुद भी हस्ने लगी और फिर अगले ही पल उपेर को होकर अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए.
उसका उस दिन मुझे यूँ चूमना अजीब था. उसके चूमने के अंदाज़ में जैसे सब कुच्छ शामिल था सिवाय वासना के. उसके मेरे लिए प्यार, मेरे लिए फिकर करना, मेरे लिए परेशान होना सब कुच्छ उस एक चुंबन से ज़ाहिर हो रहा था. वो मेरे यूँ बेहोश मिलने से घबरा गयी थी ये बात मैं जानता था. हालाँकि उसने अपने मुँह से कुच्छ नही कहा था पर उसके चेहरे पर मैने सब कुच्छ देख लिया था. और इस वक़्त भी वो मुझे ऐसे चूम रही थी जैसे कोई मुझे उससे छींके ले गया था और वो बढ़ी मुश्किल से अपनी खोई हुई चीज़ वापिस लाई है. वो ऐसी ही थी. कहती नही थी कुच्छ और ना ही मुझपर हक जताती थी पर दिल ही दिल में बहुत ज़्यादा चाहती थी मुझे.
उसके दिल में अपने लिए मोहब्बत देखकर मैने भी पलटकर उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसी तरह से उसको चूमने लगा. उसके होंठ से लेकर उसके चेहरे और गले के हर हिस्से पर मेरे होंठ फिर गये. वो हल्की सी उपेर को हुई और मेरे साइड में लेते लेते अपनी दोनो छातियो मेरे चेहरे के उपेर ले आई. उसके दोनो निपल्स मेरे मुँह के सामने लटक गये जिन्हें मैने फ़ौरन अपने होंठों के बीच क़ैद कर लिया और बारी बारी चूसने लगा. मैने एक निपल चूस्ता तो दूसरी फिर से मेरे जिस्म को चूमती हुई नीचे को जाने लगी. मेरे पेट से होती हुई वो मेरे लंड तक पहुँची और बिना लंड को हाथ लगाए उसके अपनी एक जीब मेरे लंड के नीचे से उपेर तक फिरा दी.
"आआक्कककक रुकी" मैं बिस्तर पर हमेशा उसको प्यार से रुकी बुलाता था और इस वक़्त भी लंड पर उसकी जीभ महसूस होने से मेरे मुँह से उसका वही नाम निकला.
वो कुच्छ देर तक यूँ ही मेरे लंड पर बिना हाथ फिराए जीभ घूमती रही. मेरे पूरा लंड उसकी जीभ से गीला हो चुका था. फिर वो थोड़ा और नीचे हुई और अपने दोनो हाथो से मेरी टांगे फेला दी. आपने चेहरा उसने नीचे को झुकाया और मेरी बॉल्स के ठीक नीचे से अपनी जीभ उपेर मेरे लंड तक फिराने लगी. उसकी इस हरकत से मेरा पूरा जिस्म जैसे काँप उठा और एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में ये ख्याल तक आ गया के आज पीरियड्स में सेक्स करके देख लूँ. ऑफ कोर्स ये ख्याल मैने दिमाग़ से फ़ौरन निकाल भी दिया.
रुक्मणी ने चेहरा उठाकर मेरी और देखा और मुस्कुराइ और मेरे लंड को अपने मुँह में लिया. मुझसे नज़र मिलाए मिलाए ही वो लंड अपने मुँह में लेती चली गयी जब तक के मेरा पूरा लंड उसके मुँह में गले के अंदर तक नही पहुँच गया. लंड यूँ ही मुँह में रखे रखे वो अंदर ही अंदर अपनी जीभ मेरे लंड के निचले हिस्से पर रगड़ने लगी. कुच्छ देर तक यूँ ही करने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और फिर से अपने मुँह ही ले लिया और अंदर बाहर करने लगी. अब उसका एक हाथ भी इस मेरे लंड तक आ चुका था. वो मेरे लंड की उपेर के हिस्से को चूस रही थी और नीचे से हाथ से हिला रही थी. उसका दूसरा हाथ नीचे मेरी बॉल्स को सहला रहा था. कभी वो लंड और हाथ का ऐसे कॉंबिनेशन मिलती के मेरे लिए रोकना मुश्किल हो जाता. लंड मुँह में जाता तो हाथ लंड को नीचे से पकड़ता और जब मुँह से निकलता तो हाथ लंड को सहलाता हुआ उपेर तक आ जाता.
जब रोकना मुश्किल हो गया तो मैने उसका सर अपने हाथों में पकड़ लिया और नीचे से कमर हिलाने लगा. वो इशारा समझ गयी और चूसना बंद करके अपना मुँह पूरा खोल दिया. मैं नीचे से लेटा लेटा ही धक्के मारने लगा और उसके मुँह को चोदने लगा. एक आखरी धक्का मारकर मैने पूरा लंड उसके गले तक उतार दिया और लंड ने पानी छ्चोड़ दिया.


क्रमशः..........................
 
भूत बंगला पार्ट--7



गतान्क से आगे.............


उसी शाम मैं शहेर के एक छ्होटे से रेस्टोरेंट में डिन्नर टेबल पर मिश्रा के सामने बैठा था.
"तबीयत कैसी है तेरी अब?" उसने मुझसे पुचछा
"मुझे कुच्छ नही हुआ है यार. बिल्कुल ठीक हूँ मैं. भला चंगा" मैं मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"अबे तो क्या तू पेट से है जो कल रात बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल पहुँच गया था?"
उसकी बात सुनकर मैं हस पड़ा.
"वो छ्चोड़ "मैने कहा "बाद में बताता हूँ. सोनी मर्डर केस में बात कुच्छ आगे बढ़ी"
"ना" उसने इनकार में सर हिलाया "वही ढाक के तीन पात. वैसे भूमिका सोनी आजकल शहेर में है"
"वो यहाँ क्या कर रही है?" मैने सवाल किया
"मेरे कहने पे है" मिश्रा ने जवाब दिया "मैने उसको कहा है के जब तक मर्डर इन्वेस्टिगेशन चल रही है, वो कुच्छ दिन तक यहीं रहे"
"उससे क्या होगा?" मैने मिश्रा की तरफ देखते हुए कहा
"अब देख यार वो जो भी है, मर्डर का एक मोटिव तो था ही उसके पास. भले मैं उसपर शक नही करता पर इस बात से इनकार मैं भी नही कर सकता के खून करने की सबसे बढ़ी वजह उसकी के पास थी" मिश्रा एक साँस में बोल गया. उसके चेहरे से ही मालूम पड़ रहा था के भूमिका के बारे में ऐसी बात करना उसको अच्छा नही लग रहा था.
"मोटिव? पैसा?" मैने पुचछा
"और पैसा भी थोड़ा बहुत नही मेरे भाई, इतना जितना के तू और मैं सारी ज़िंदगी अपनी घिसते रहें तो भी नही कमा सकते" वो बोला
"मैं सुन रहा हूँ" मैं उनकी बात पर गौर कर रहा था
"देख विपिन सोनी एक खानदानी अमीर था. बहुत बड़ा बिज़्नेस एंपाइयर था उसका एक ज़माने में और खानदानी ज़मीन भी" मिश्रा ने कहा
"ह्म्‍म्म्म "मैने हामी भरी
"पिच्छले कुच्छ सालों में उसने अपना बिज़्नेस समेटना शुरू कर दिया था. फॅक्टरीस और स्टॉक वगेरह सब बेचकर उसने उस सारे पैसे की ज़मीन खरीद कर छ्चोड़ दी थी" मिश्रा ने कहा
"कोई वजह?" मैने पुचछा
"जहाँ तक मुझे पता चला है उससे तो यही लगता है के बीवी की मौत के बाद उसका बिज़्नेस से ध्यान हट गया था. कुच्छ टाइम बाद बिज़्नेस लॉस में जाने लगा तो उसने एक दूसरी तरह की इनवेस्टमेंट सोची. अब ज़मीन से ज़्यादा अच्छी और फ़ायदे वाली इनवेस्टमेंट कौन सी हो सकती है" मिश्रा ने बात जारी रखी
"फिर? " मैने कहा
"तो मतलब ये के जब वो मरा तो अपना बिज़्नेस तो वो पूरी तरह बेच चुका था और सारे पैसे की ज़मीन खरीद ली थी. उसको उसने अपनी आखरी विल में अपनी दूसरी बीवी यानी भूमिका और बेटी में बाट रखा था"
"ओके" मैं बोला
"उसकी एक इन्षुरेन्स पॉलिसी थी. विल के हिसाब से इन्षुरेन्स का सारा पैसा भूमिका को मिलेगा या शायद मिल भी चुका हो"
"कितना?" मैने पुचछा
"25 करोड़" मिश्रा मुस्कुराता हुआ बोला. मेरा मुँह खुला का खुला रह गया
"25 करोड़ ?" मैं सिर्फ़ इतना ही कह सका
"आगे सुनता रह बेटे" मिश्रा बोला "विल के हिसाब से भूमिका को इस पॉलिसी की सारा पैसा, मुंबई में एक आलीशान घर और एक बॅंक अकाउंट में जमा सारे पैसे मिले. घर, पॉलिसी और कॅश सब मिलके पति की मौत की बात भूमिका की झोली में तकरीबन 40 करोड़ आए"
"वाउ" मेरा पहले से खुला मुँह और खुल गया "मैने तो आज तक ज़िंदगी में 1 लाख भी कभी एक साथ नही देखे यार"
"आगे तो सुन" मिश्रा बोला "इसके अलावा सोनी के पास और जो कुच्छ भी था उसने अपने बेटी के नाम कर दिया था"
"और वो और कुच्छ क्या था?" मैं सुनने को बेताब था
"ख़ास कुच्छ नही. मुंबई में 3 कीमती बुगलोव, लोनवला में एक फार्म हाउस, माहरॉशट्रे के कई हिस्सो में फेली हुई ज़मीन, गोआ में एक घर, देश के तकरीबन हर बड़े हिल स्टेशन और हर बड़े बीच रिज़ॉर्ट में एक बड़ा सा घर और सोनी के बाकी अकाउंट्स में जमा सारा पैसा" मिश्रा ने बात पूरी की.
"और ये सब कुल मिलके कितना होता है?" मैने सवाल किया
"एग्ज़ॅक्ट तो मुझे आइडिया नही है पर सोनी के वकील से मेरी बात हुई थी. उसने कहा के ये सब मिलके 700 करोड़ के उपेर है"
मेरे गले का पानी जैसे गले में ही अटक गया.
"तो बात ये है मेरे भाई के अगर 700 करोड़ के मुक़ाबले छ्होटी ही सही पर 40 करोड़ एक बहुत बड़ी रकम है इसलिए भूमिका भी सस्पेक्ट्स की लिस्ट में आती है. इसलिए मैने उसको यहाँ रहने को कहा है" मिश्रा बोला पर मैं तो उसकी बात जैसे सुन ही नही रहा था. मेरा दिमाग़ तो 700 करोड़ में अटका हुआ था.
"यार मिश्रा अगर मुझे पता होता के वो साला सोनी इतना बड़ा अमीर है तो मैं भी उसकी थोड़ी सेवा कर लेता. शायद एक दो करोड़ मेरे नाम भी छ्चोड़ जाता" मैने कहा तो हम दोनो हस पड़े.
डिन्नर ख़तम करके हम दोनो रेस्टोरेंट से निकले. मैं अपनी कार की तरफ बढ़ ही रहा था के पलटा और पोलीस जीप में बैठ चुके मिश्रा से कहा
"यार मिश्रा एक बात हाज़ाम नही हो रही. अगर उसके पास पहले से इतना पैसा था तो इतनी बड़ी इन्षुरेन्स पॉलिसी लेके का क्या तुक था? बिज़्नेस वो बेच चुका था इसलिए लॉस में सब कुच्छ गवा देने कर डर ही नही और वैसे भी 700 करोड़ लॉस में ख़तम होते होते तो उसकी बेटी भी बुद्धि हो जाती. तो इतनी बड़ी इन्षुरेन्स पॉलिसी?"
"बड़े लोगों की बड़ी बातें" मिश्रा ने मुस्कुराते हुए कहा और जीप स्टार्ट करके चला गया.
मैं भी अपनी कार निकालकर घर की तरफ बढ़ा. घड़ी की तरफ नज़र डाली तो शाम के 8 ही बजे था. मैं घर पहुँचने ही वाला था के मेरे फोन की घंटी बजने लगी.
"हेलो इशान" मैने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से एक औरत की आवाज़ आई.
"जी बोल रहा हूँ. आप?" मैने कार साइड में रोकते हुए कहा
"मैं भूमिका बोल रही हूँ इशान" दूसरी तरफ से आवाज़ आई "भूमिका सोनी"
उसका यूँ मुझे फोन करना अजीब लगा. सबसे अजीब बात थी के उसको मेरा नंबर कहाँ से मिला
"हाँ भूमिका जी कहिए" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"मैं सोच रही थी के क्या आप मुझसे मिल सकते हैं?" कुच्छ काम था आपसे" उसने जवाब दिया
"हां ज़रूर. कहिए कब मिलना है?" मैने पुचछा
"अभी. क्या आप मेरे होटेल आ सकते हैं?"
मैं फिर घड़ी की तरफ नज़र डाली. टाइम तो था अभी.
"श्योर. किस होटेल में रुकी हैं आप?"

तकरीबन आधे घंटे बाद मैं शहर के सबसे बड़े होटेल के एक कमरे में भूमिका सोनी के सामने बैठा हुआ था.
पिच्छली बार जिस भूमिका को मैने देखा था और अब जो भूमिका मेरे सामने बैठी थी उन दोनो में ज़मीन आसमान का फरक था. जिसको मैने पोलीस स्टेशन में देखा था वो एक पति की मौत के गम में डूबी हुई औरत थी और अब जो मेरे सामने बैठी थी वो एक सो कॉल्ड हाइ सोसाइटी वुमन थी जिसके एक हाथ में शराब का ग्लास था. जो पिच्छली बार मिली थी वो एक सीधी सादी सी मिड्ल क्लास औरत लगती थी और जो अब मिल रही थी उसके हर अंदाज़ में पैसे की बू आ रही थी. जिस म्र्स सोनी से मैं पहले मिला था वो एक सारी में लिपटी हुई एक विधवा थी जो अपने पति की मौत के बारे में सुनकर पोलीस स्टेशन में ही बेहोश हो गयी थी और अब जो मेरे सामने बैठी थी वो एक वेस्टर्न आउटफिट में लिपटी हुई एक करोड़ पति औरत थी जिसके चेहरे पर गम का कोई निशान नही था.
"पैसा आ जाए तो इंसान के चेहरे पर अपने आप ही नूर आ जाता है" उसको देखकर मैने दिल ही दिल में सोचा
"क्या पिएँगे?" उसने मुझसे पुचछा "विस्की, वाइन, बियर?"
"जी मैं शराब नही पीता" मैने इनकार में सर हिलाते हुए कहा
"ओह हां" उसको जैसे कुच्छ याद आया "आप तो मुस्लिम हैं. क्या इसलिए?"
"जी कुच्छ इसलिए भी और कुच्छ इसलिए के मुझे एक ऐसी चीज़ पीने का मतलब समझ नही आता जो इंसान को इंसान से बंदर बना दे" मैने मुस्कुराते हुए जवाब
"वेल वो तो डिपेंड करता है के आप कैसे पीते हैं और कितनी पीते हैं" उसने कहा
"खैर वो छ्चोड़िए म्र्स सोनी...."मैने कहना शुरू ही किया था के उसने मेरी बात काट दी
"कॉल मी भूमिका"
"ओके" मैने कहा "मुझे कैसे याद किया भूमिका"
"कोई वजह नही है" उसने कहा "आपसे काफ़ी वक़्त से मिली नही थी और आप वो शख्स हैं जो मेरे पति से उनके आखरी वक़्त में मिले थे और शायद अकेले शख्स हैं जिनसे मेरे पति ने अपने आखरी दीनो में बात की थी. तो मैने सोचा के शायद आप मुझे उनके आखरी कुच्छ दीनो के बारे में बता सकें"
मुझे उसकी बात समझ नही आई और जिस तरह से मैने उसकी तरफ देखा उससे वो समझ गयी के मुझे उसकी बात पल्ले नही पड़ी
"यादें यू नो" उसने कहा "मैने अपनी पति के आखरी दीनो की यादें अपने साथ रखना चाहती हूँ"
उसकी बात सुनकर मैने बड़ी मुश्किल से अपनी हसी रोकी. इस औरत को देखकर तो कोई बेवकूफ़ ही कहेगा के इसको अपने पति की मौत का गम है. और एक बार फिर उसने मेरे चेहरे को पढ़ लिया.
"मैं जानती हूं तुम क्या सोच रहे हो इशान" उसने कहा "यही ना के मुझ देखकर तो कोई बेवकूफ़ ही कहेगा के मुझे अपने पति की मौत का गम है. पर वो कहते हैं के जाने वाला तो चला गया. अब उनके पिछे रोते बैठकर मैं कौन सा सावित्री की तरह यम्देव से उनको वापिस ले आओंगी. क्यूँ है ना?"
मैं हां में सर हिलाया
"वैसे वो इनस्पेक्टर, क्या नाम था उसका ...... "
"मिश्रा" मैने याद दिलाया
"हाँ मिश्रा" उसने कहा "कुच्छ सुराग मिला उसको मिस्टर सोनी के खून के बारे में"
"कुच्छ नही" मैने जवाब दिया "ना कुच्छ अब तक पता चला है और सच मानिए भूमिका जी तो जिस हिसाब से सब कुच्छ हो रहा है तो उससे तो मुझे लगता ही नही के मिस्टर सोनी का खूनी कभी पकड़ा जाएगा"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है" उसने अपने खाली हो चुके ग्लास में और वाइन डाली "और शायद आपको पता नही के मैने अपने पति के खूनी के बारे में कोई भी जानकारी देने वाले को 10 लाख का इनाम देने की बात न्यूसपेपर में छपवाई है"
ये सच एक नयी बात थी जिसका मुझे कोई अंदाज़ा नही था
"नही इस बारे में मुझे कोई खबर नही थी" मैने कहा
"वेल अगर 10 लाख का लालच देकर भी कुच्छ पता ना चला तो मैं भी यही कहूँगी के कभी कुच्छ पता नही चलेगा" उसने एक लंबी साँस ली
"शायद" मैने कहा "आपके पति की मौत हुए 2 महीने से ज़्यादा हो गये हैं और हर गुज़रते दिन के साथ खूनी के पकड़े जाने की चान्सस भी कम हो रहे हैं"
"फिर भी मिस्टर सोनी की बेटी को लगता है के वो अपने बाप के खूनी को सज़ा ज़रूर दिलवाएगी" उसने हल्के से हस्ते हुए कहा. मैं चौंक पड़ा
"रश्मि?" मैने पुचछा
"हां" भूमिका बोली "अभी ऑस्ट्रेलिया में ही है वो. कल मेरी फोन पर बात हुई थी. जब तक हम उसको ढूँढ कर उसके बाप की मौत के बारे में बताते तब तक तकरीबन एक महीना गुज़र चुका था. अब वो अगले हफ्ते आ रही. अब वो आगे हफ्ते आ रही है. कह रही थी के हर हाल में अपनी बाप की मौत का बदला लेगी.
"मुझे लगता तो नही के उनको कोई ख़ास कामयाबी मिलेगी" मैने कहा
"आप उसको जानते नही आहमेद साहब. अपने बाप की तरह ज़िद्दी है वो और उनकी तरह ही होशियार भी. जो एक बार करने की ठान लेती है तो फिर चाहे ज़मीन फट पड़े या आसमान गिर जाए, वो करके ही दम लेती है" भूमिका ने वाइन का ग्लास नीचे रखते हुए कहा.

अगले दिन मैं ऑफीस में आके बैठा ही था के प्रिया मेरे सामने आ बैठी.
"सर एक बात करनी थी" उसने मुझसे पुचछा
"हां बोल" मैने सामने रखी एक फाइल पर नज़र डालते हुए कहा. उसने जब देखा के मेरा ध्यान फाइल की तरफ ही है तो आगे बढ़कर फाइल मेरे सामने से हटा दी.
"ऐसे नही. सिर्फ़ मेरी बात सुनिए फिलहाल. काम बाद में करना"
"अच्छा बोल" मैने भी अपने हाथ से पेन एक साइड में रख दिया
"और प्रॉमिस कीजिए आप मेरे हर सवाल का जवाब पूरी ईमानदारी से देंगे और मुझे यहाँ से जाके अपना काम करने को नही कहेंगे"
"क्यूँ ऐसा क्या पुच्छने वाली है तू?"
"आप प्रॉमिस कीजिए बस" उसने बच्ची की तरह ज़िद करते हुए कहा
"अच्छा बाबा प्रॉमिस. अब बोल और जल्दी बोल मुझे थोड़ी देर में कोर्ट के लिए भी जाना है" मैने घड़ी पर एक नज़र डालते हुए कहा
"आप कहते हो ना के मुझे पहले एक लड़की की तरह लगना पड़ेगा उसके बाद ही मुझे कोई लड़का मिलेगा...... "उसने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हाँ तो .... " मैने सवाल किया.
"तो ये के मैं तो हमेशा से ऐसी ही रही हूँ तो मुझे तो कुच्छ पता नही और दोस्त भी नही हैं मेरे कोई एक आपके सिवा. तो मैने सोचा के आपसे ही मदद ली जाए." उसने खुश होते हुए कहा
"किस तरह की मदद?" मैने सवाल किया
"अरे यही के लड़कियों वाले स्टाइल्स कैसे सीखूं, मेक उप वगेरह और दूसरी चीज़ें" उसने कहा
"तुझे नही लगता के तुझे ये बातें अपनी माँ से करनी चाहिए?" मैने कहा
"माँ के साथ वो बात नही आएगी जो एक दोस्त के साथ आती है. आपके साथ मैं एकदम खुलकर बात कर सकती हूँ पर अपनी माँ के साथ इतना फ्री नही" उसने कहा तो मैं भी मुस्कुरा उठा
"अच्छा तो बोल के क्या पुच्छना है?" मैने कहा
"सर ये बताइए के लड़के लड़कियों में क्या देखते हैं?" उसने सवाल किया तो मैं चौंक पड़ा
"ये किस तरह का सवाल था?"
"बताइए ना" उसने कहा
"पहले तू ये बता के इस तरह के सवाल तेरे दिमाग़ में आए कैसे?"
"वो मैं शादी में गयी थी ना?" उसने कहा
"हाँ तो?"
"वहाँ मेरी एक कज़िन मुझे मिली और शादी में एक लड़का हम दोनो को पसंद आया. मेरी कज़िन ने मुझसे शर्त लगाई के वो उस लड़के को खुद पटाएगी और यकीन मानिए सर, वो बहुत छ्होटी सी है हाइट में और बहुत दुबली पतली है. लड़कियों वाली कोई चीज़ नही है उसके पास फिर भी वो लड़का उससे फस गया. इसलिए पुच्छ रही हूँ"
उसकी बात सुनकर मैं हस पड़ा. तभी मेरी टेबल पर रखा फोन बजने लगा. मैने उठाया तो लाइन पर मेरा एक क्लाइंट था जो मुझसे मिलना चाहता था. मैने थोड़ी देर बात करके फोन रख दिया और प्रिया से कहा
"एक काम कर. अभी तो मुझे एक क्लाइंट से मिलने के लिए निकलना है. शाम को डिन्नर साथ करते हैं ऑफीस के बाद. तब बात करते हैं"
उसने भी हाँ में सर हिला दिया तो मैं उठा और कुच्छ पेपर्स बॅग में डालकर ऑफीस से निकल गया.

क्लाइंट के साथ मेरी मीटिंग काफ़ी लंबी चली और उसके बाद कोर्ट में हियरिंग में भी काफ़ी वक़्त लग गया. उस वक़्त वो केस मेरा सबसे बड़ा केस था क्यूंकी उसमें उसमें शहेर के एक जाने माने आदमी का बेटा इन्वॉल्व्ड था. ये केस बिल्कुल एक हिन्दी फिल्म की कहानी की तरह था इल्ज़ाम था रेप का. उस लड़के के ऑफीस में ही काम करने वाली एक लड़की ने इल्ज़ाम लगाया था ऑफीस के बाद काम के बहाने लड़के ने उस लड़की को ऑफीस में रोका और बाद में उसके साथ सेक्स करने की कोशिश की. लड़की ने जब इनकार किया तो लड़के ने उसके साथ ज़बरदस्ती की. मेडिकल टेस्ट में ये साबित हो चुका था लड़का और लड़की ने आपस में सेक्स किया था पर लड़के का दावा था के लड़की अपनी मर्ज़ी से उसके साथ सोई और बाद में उससे पैसे लेने के लिए ब्लॅकमेल करने की कोशिश की. लड़के ने जब मना किया तो लड़की ने उसपर रेप केस कर दिया.
मैं वो केस लड़की की तरफ से लड़ रहा था. लड़की के घर पर उसके माँ बाप के सिवाय कोई नही था इसलिए इस केस में मेरे लिए पैसा तो कोई ख़ास नही था पर शहेर का दूसरा कोई भी वकील ये केस लेने को तैय्यार नही था. रुक्मणी ने कहा के अगर मैं ये केस ले लूँ तो भले बाद में हार ही जाऊं, पर इससे मेरा नाम फेलेगा जो मेरे लिए अच्छा साबित हो सकता था. मैं इस मामले ज़्यादा श्योर तो नही था पर उसके कहने पर मैने ये केस ले लिए.
मेरे पास साबित करने को ज़्यादा ख़ास कुच्छ था नही. सारे सबूत खुद लड़की के खिलाफ थी. जैसा की हिन्दी फिल्म्स में होता है, लड़के ने बड़ी आसानी से ऑफीस के दूसरे लोगों से ये गवाही दिलवा दी थी के लड़की बदचलन थी और दूसरे कई लोगों के साथ सो चुकी थी. शुरू शुरू में तो मुझे लगा था के ये केस मैं बहुत जल्द ही हार जाऊँगा पर केस में जान तब पड़ गयी तब उस ऑफीस में शाम को ऑफीस बंद होने के बाद सफाई करने वाले एक आदमी ने मेरे कहने पर ये गवाही दे दी के उसने लड़की के चीखने चिल्लाने की आवाज़ सुनी थी.
केस अभी भी चल रहा था और मैं उसी की हियरिंग से निपटकर कोर्ट से निकला और ऑफीस की तरफ बढ़ा.
"हेलो" मेरा फोन बजा तो मैने उठाया. कॉल किसी अंजान नंबर से थी.
"इशान आहमेद?" दूसरी तरफ से एक अजनबी आवाज़ आई
"जी बोल रहा हूँ. आप कौन?" मैं पुचछा
"मैं कौन हूँ ये ज़रूरी नही. ज़रूरी ये है के तुम कोई ऐसी रकम बताओ जो आज तब तुमने सिर्फ़ सोची हो, पर देखी ना हो" उस अजनबी ने कहा
"मैं कुच्छ समझा नही"
"बात सॉफ है वकील साहब. आप एक रकम कहिए, आपके घर पहुँच जाएगी और बदले में आप ये केस हार जाइए"
मैं दिल ही दिल में हस पड़ा. एक फिल्मी कहानी में एक और फिल्मी मोड़. वकील को खरीदने की कोशिश.
"मैं फोन रख रहा हूँ. खुदा हाफ़िज़" मैने हस्ते हुए कहा.
उस आदमी को शायद मुझसे ये उम्मीद नही थी. एक तो ये झटका के मैं फोन रख रहा हूँ और दूसरा ये के मैं हस भी रहा हूँ.
"सुन बे वकील" अब वो बदतमीज़ी पर आ गया "साले या तो केस से पिछे हट जा वरना तेरी कबर खोदने में ज़्यादा वक़्त नही लगेगा हमें"
"कब्र खोदने का काम करते हो तुम?" मैने मज़ाक उड़ाते हुए कहा
"मज़ाक करता है मेरे साथ?" उसने कहा "साले तो उस लड़की का रेप केस लड़ रहा है ना? जानता है तेरे घर की हर औरत को, तेरी मा बहेन को इसके बदले में बीच बज़ार नंगा घुमा सकता हूँ मैं"
मेरा दिमाग़ सनना गया. खून जैसे सर चढ़ गया
"अब तू मेरी सुन. जो फोन पर धमकी देते हैं उनकी औकात मेरे लिए गली में भौकने वाले कुत्ते से ज़्यादा नही. साले अगर तू रंडी की औलाद नही है तो सामने आके बोल. मेरा नाम जानता है तो तू मेरा ऑफीस भी जानता होगा. सुबह 9 से लेके शाम 5 तक वहीं होता हूँ. है अगर तुझ में इतना गुर्दा हो तो आ जा"
ये कहकर मैने फोन काट दिया. मुझे इस फोन के आने की उम्मीद बहुत पहले थी इसलिए ना तो मैं इस फोन के आने से हैरान हुआ और ना ही डरा. पर मेरी मा बहेन को जो उसने गाली दी थी उस बात को लेकर मेरा दिमाग़ खराब हो गया था. थोड़ी देर रुक कर मैं वहीं कार में आँखें बंद किए बैठा रहा और गुस्सा ठंडा होने पर फिर ऑफीस की तरफ बढ़ा.
ऑफीस पहुँचा तो प्रिया जैसे मेरे इंतेज़ार में ही बैठी थी. शाम के अभी सिर्फ़ 6 बजे थे इसलिए डिन्नर का तो सवाल ही पैदा नही होता था. हम लोग ऑफीस के पास ही बने एक कॉफी शॉप में जाके बैठ गये. पर वहाँ काफ़ी भीड़ थी इसलिए प्रिया को वहाँ बात करना ठीक नही लगा. उसके कहने पर हम लोग वहाँ से निकले और पास में बने एक पार्क में आकर बैठ गये. हल्का हल्का अंधेरा फेल चुका था इसलिए पार्क में ज़्यादा लोग नही थे.
"हाँ बताइए" उसने बैठते ही पुचछा
"क्या बताऊं?" मैने कहा
"अरे वही जो मैने आपसे पुचछा था. लड़के लड़कियों में क्या देखते हैं?"
"प्रिया ये काफ़ी मुश्किल सवाल है यार" मैने कहा
"मुश्किल क्यूँ?"
"क्यूंकी ये बात लड़के या लड़की की नही है. ये बात है इंसान की. हर इंसान की अपनी अलग पसंद होती है. किसी को कुच्छ पसंद आता है तो किसी को कुच्छ और" मैने कहा
"मैं जनरली पुच्छ रही हूँ" उसने कहा
"अगेन ये भी डिपेंड करता है के वो लड़का कौन है और किस तरह का है" मैने कहा
"ओफहो" वो चिड गयी "अच्छा कोई भी लड़का छ्चोड़िए और अपना ही एग्ज़ॅंपल लीजिए. आप सबसे पहले लड़की में क्या देखते हैं?"
उसने सवाल किया. मैने सोचने लगा और इससे पहले के कोई जवाब देता वो हस्ने लगी.
"हस क्यूँ रही हो?" मैने पुचछा तो वो मुस्कुरकर बोली
"क्यूंकी मैं जवाब खुद जानती हूँ"
"क्या?"
"यही के आप लड़की में सबसे पहले ये देखते हैं" उसने अपनी चूचियो की तरफ इशारा किया
जाने क्यूँ पर मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया
"ऐसी बात नही है यार" मैने कहा
"और नही तो क्या. ऐसी ही बात है. आपकी नज़र हर बार मेरी छातियो पर ही अटक जाती है आकर" वो हर बार की तरह बिल्कुल बेशरम होकर बोले जा रही थी. मैने कोई जवाब नही दिया.
"देख ये डिपेंड करता है" आख़िर में मैने बोला "अगर लड़का शरिफ्फ सा है, तो वो उसुअल्ली लड़की का चेहरा ही देखगा या उसका नेचर. अगर लड़के के दिमाग़ में कुच्छ और चल रहा है तो वो कहीं और ही देखेगा"
"तो आपके दिमाग़ में क्या था सर?" उसने फिर वही शरारत आँखों में लिए कहा
"मतलब?"
"मतलब ये के आपनी नज़र तो मेरी छातियो पर थी. तो आपके दिमाग़ में क्या चल रहा था" उसने कहा
मुझे लगा जैसे मैं एक कोर्ट में खड़ा हूँ और सामने वाले वकील ने ऐसी बात कह दी जिसका मेरे पास कोई जवाब नही था.
"अरे यार" मैने संभालते हुए कहा "तेरे साथ वो बात नही है. तेरा चेहरा ही देख रहा था मैं पिच्छले 6 महीने से से. और तेरे बारे में ऐसा कुछ भी मेरे दिल में कभी था नही. तूने कभी नोटीस किया उस दिन से पहले के मैं तेरी छातियो की तरफ घूर रहा था?"
उसने इनकार में सर हिलाया
"एग्ज़ॅक्ट्ली" मैने जैसे अपनी दलील पेश की "क्यूंकी मैं नही घूर रहा था. पर आख़िर हूँ तो लड़का ही ना यार. ऑपोसिट सेक्स हमेशा अट्रॅक्ट करता है. उस दिन तू मेरे सामने पहली बार यूँ ब्रा में आ खड़ी हुई तो मेरी नज़र पड़ गयी वहाँ"
उसने जैसे मेरी बात समझते हुए सर हिलाया. फिर कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के मैं पहले बोल पड़ा.
"आंड फॉर युवर इन्फर्मेशन, मुझे लड़कियों में सबसे ज़्यादा छातिया पसंद नही हैं"
"तो फिर?" उसने फ़ौरन सवाल दाग दिया
हम जहाँ बैठे थे वहीं एक लॅंप पोस्ट भी था इसलिए वहाँ पर रोशनी थी. इसकी वजह से एक फॅमिली अपने बच्चो के साथ वहीं घास में आकर बैठ गयी. हमारे लिए अब इस बारे में खुलकर बात करना मुमकिन नही था इसलिए हमने फिर कभी इस बारे में बात करने का फ़ैसला किया. पार्क से बाहर निकलकर मैने प्रिया के लिए एक ऑटो रोका और उसके जाने के बाद कार लेकर घर की तरफ निकल गया. हैरत की बात ये थी के उस दिन फोन पर मिली धमकी को मैं पूरी तरह भूल चुका था.
विपिन सोनी के मर्डर को अब तकरीबन 3 महीने हो चले थे. ना तो क़ातिल का कुच्छ पता चल पाया था और ना ही किसी का कोई सुराग मिल सका था. न्यूसपेपर्स भी अब इस बारे में बात कर करके थक चुके थे और रोज़ाना जिस तरह से वो इस बारे में शोर मचा रहे थे अब वो भी धीरे धीरे हल्का पड़ता जा रहा था. धीरे धीरे जब किसी का कुच्छ पता ना चला तो लोगों ने बंगलो के भूत को विपिन सोनी का हत्यारा मान लिया और बात फेल गयी के विपिन सोनी ने जाकर ऐसे घर में आसरा लिया जहाँ की प्रेत आत्मा वास करती है और जब सोनी ने वहाँ से निकालने का नाम नही लिया तो उस आत्मा ने उसका खून कर दिया.
अब हमारी कॉलोनी में भी हर कोई ये बात जान गया था के मरने वाला एक बहुत ही अमीर आदमी था जिसकी एक बहुत ही सुंदर सी जवान बीवी थी. हर कोई जानता था के वो अपनी बीवी से अलग हो गया था और कोई दुश्मन ना होते हुए भी यहाँ डरा सहमा सा पड़ा रहता था. लोगों का मानना ये था के विपिन सोनी एक पागल था पर उसका पागल होना भी उसकी मौत की वजह नही बता सकता था.
खून होने का सबसे ज़्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ तो वो बंगलो नो 13 और उसके मालिक को हुआ. वो घर जो पहले से बदनाम था अब और बदनाम हो गया. लोग अक्सर आते और घर के बाहर खड़े होकर उसको देखते. सब देखना चाहते थे के भूत बंगलो कैसा होता है और शाद कुच्छ इस उम्मीद से भी आते थे के कोई भूत शायद उनको नज़र आ जाए. किसको नज़र आया और किसको नही ये तो मुझे नही पता पर मेरे साथ जो हो रहा था वो खुद बड़ा अजीब था.
वो गाने की आवाज़ जो मुझे पहले कभी कभी सुनाई देती थी अब जैसे हर रात सुनाई देने लगी थी. मैं बिस्तर पर आता ही था के उस औरत की आवाज़ मेरे कानो में आने लगती जैसे कोई मुझे लोरी गाकर सुलाने की कोशिश कर रहा हो. मैने कई बार उस आवाज़ को रात में ही फॉलो करने की कोशिश की पर या तो वो मुझे हर तरफ से आती हुई महसूस होने लगती या फिर मेरी तलाश बंगलो नो 13 के सामने आकर ख़तम हो जाती. वो आवाज़ सॉफ तौर पर घर के अंदर से ही आती थी पर हैरत की बात ये थी के यहाँ से मुझे मेरे कमरे तक सुनाई देती थी. लोग कहते थे के उस घर में एक भूतनि रहती है पर ये कितना सच था मैं नही जानता था. फिर भी इस बात से इनकार नही कर सकता था के मैने खुद अपनी आँखों से घर में एक औरत को घूमते देखा है, और एक बार कुच्छ लोगों को अंदर देखा था जो मेरे अंदर जाने पर गायब हो गये थे और इस बात से तो मैं अंजाने में भी इनकार नही कर सकता था के मुझे एक औरत के गाने की आवाज़ सुनाई देती थी.
मेरे अलावा वो आवाज़ किसी और को आती थी या नही इसकी मुझे कोई खबर नही थी और ना ही मैने इसका किसी से ज़िकार किया. एक बार मैने रात को रेस्टोरेंट में मिश्रा से इस बारे में बात करने की सोची ज़रूर थी पर फिर इरादा बदल दिया था ये सोचकर के वो मुझे पागल समझेगा.
विपिन सोनी के बाद उस घर में कोई रहने नही आया. मकान मलिक ने न्यूसपेपर में घर के खाली होने का आड़ ज़रूर दिया था पर मुझे यकीन था के लोग उसको पढ़कर शायद हसे ही होंगे. भला भूत बंगलो में रहने की हिम्मत कौन कर सकता था. घर के बाहर अब एक बड़ा सा ताला पड़ा रहता. अंदर जितना भी फर्निचर सोनी ने खरीद कर रखा था वो सब भूमिका बेच चुकी थी. लोग अक्सर घर के सामने से अगर निकलते तो जितना दूर हो सके उतनी दूर से निकलते. पर इस सबके बावजूद अजीब बात ये थी के उस बंगलो के दोनो तरफ के घरों में लोग रहते थे. वो कभी खाली नही हुए और ना ही उनके साथ कोई अजीब हरकत हुई. लोग उनके घर ज़रूर आते पर बंगलो 13 की तरफ कोई नज़र उठाकर ना देखता. अजीब था के उस घर के दोनो तरफ के लोगों को भूत बिल्कुल परेशान नही करता था पर उस घर में रहने वाले को ज़िंदा नही छ्चोड़ता था. खुद मेरे घर की छत से भी उस बंगलो का एक हिस्सा नज़र आता था और सोनी के खून से पहले मैने बीते सालों में कुच्छ भी अजीब नही देखा था वहाँ.
सोनी के खून से जिन लोगों को फायडा हुआ था उनमें खुद एक रुक्मणी भी थी. अब उसके पास बताने को और नयी कहानियाँ मिल गयी थी जिन्हें वो अक्सर बैठकर मुझे और देवयानी को बताया करती थी और नुकसान जिन लोगों को हुआ था उनमें एक मिश्रा भी था. भले उसकी नौकरी नही गयी थी पर एक ऐसा आदमी जिसकी वर्दी पर कोई दाग नही था और जिसने अपने हिस्से में आने वाले हर केस को सॉल्व किया था, उस आदमी के हिस्से में अब एक ऐसा केस आ गया था जिसको वो सॉल्व नही कर सका था.
इसी तरह से तकरीबन एक महीना और गुज़र गया. सर्दियाँ जा चुकी थी पर देवयानी अब भी वहीं घर में ही टिकी हुई थी जिसकी वजह से मुझे अकेला रहने की आदत पड़ गयी. अब उस गाने की आवाज़ मुझे परेशान नही करती थी बल्कि मैं तो अक्सर हर रात इंतेज़ार करता था के वो औरत गाए और मुझे चेन की नींद आ जाए. कोर्ट में वो रेप केस अब भी चल रहा था और अब सिर्फ़ तारीख ही मिला करती थी. लड़का बेल पर बाहर आ चुका था पर लड़की केस कंटिन्यू करना चाहती थी. उसके बाद ना ही कभी मुझे कोई धमकी फोन पर मिली.
मिश्रा से ही मुझे पता चला के रश्मि इंडिया आ चुकी थी और अब यहीं मुंबई में ही सेटल्ड थी. मिश्रा के सस्पेक्ट्स की लिस्ट में उसका भी नाम था पर उसके खिलाफ भी वो कोई सबूत नही जुटा पाया था. ऐसी ही एक मुलाक़ात में उसने मुझको बताया के सोनी मर्डर केस अब सीबीआइ को दिया जा रहा है और इसके लिए उसने भी हाँ कर दी.
"क्या?" मैने हैरत से पुचछा "तूने हार मान ली?"
उसने हाँ में सर हिलाया
"10 लाख का नुकसान?" मैने भूमिका सोनी के अनाउन्स किए हुए इनाम की तरफ इशारा किया
"अबे 10 करोड़ भी देती तो कुच्छ नही होने वाला था यार. मुझे नही लगता के वो हत्यारा कभी पकड़ा जाएगा" उसने सिगेरेत्टे जलाते हुए कहा
"सही कह रहा है" मैने उसकी हाँ में हाँ मिलाई. इसके बाद मेरे और मिश्रा के बीच काफ़ी टाइम तक इस केस के बारे में कोई बात नही हुई. हम दोनो अपने दिल में ये बात मान चुके थे के सोनी का हत्यारा जो कोई भी था, वो बचकर निकल चुका है.



क्रमशः.......................
 
भूत बंगला पार्ट--8

गतान्क से आगे.....................

उसी शाम डिन्नर टेबल पर रुक्मणी ने मुझे और देवयानी को फिर से बंगलो के भूत के बारे में कहानी सुननी शुरू कर दी.

"गले पर उंगलियों के नीले पड़ चुके निशान, आँखों में खून उतरा हुआ, चेहरे पर डर और घर अंदर से बंद, इसको देखकर तो कोई बच्चा भी बता सकता है के खून एक भूत ने ही किया है" वो बोली

"रुक्मणी तुम भूल गयी शायद पर सोनी का खून एक खंजर से हुआ था" मैने हस्ते हुए कहा

"तुम्हें कैसे पता के वो खंजर था?" उसने मुझे पुचछा "क्या खंजर मिला कभी? नही मिला ना. यकीन करो इशान वो हथ्यार उस आत्मा का ही था"

"वेल उस केस में तो फाँसी भी नही हो सकती उसको. जो मर गयी अब उसको सरकार दोबारा कैसे मारेगी?" मैं अब भी हस रहा था "कम ओन रुक्मणी. मुझे हैरत होती है के तुम जैसी समझदार औरत इस बकवास पर यकीन करती है"

"मुझसे भी ज़्यादा समझदार लोग करते हैं" उसने रोटियाँ मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा "वेद पुराणो में भी प्रेत आत्माओं का ज़िक्र है. तुम मुस्लिम्स में भी तो है के जिन्न और प्रेत होते हैं"

"श्योर लगती हो?" मैने कहा "मैं एक पूरी रात उस बंगलो में जाकर सो जाता हूँ और देखना मुझे कुच्छ नही होगा"

मेरा इतना कहना ही था के रुक्मणी के मुँह से चीख निकल गयी. देवयानी के चेहरे पर भी ख़ौफ्फ सॉफ दिखाई दे रहा था

"तुम ऐसा कुच्छ नही करोगे इशान" वो लगभग चीखते हुए बोली

"ओके ओके" मैने कहा "मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रहा था"

थोड़ी देर के लिए हम सब खामोश हो गये. किसी ने कुच्छ ना कहा और चुपचाप खाना खाते रहे. थोड़ी देर बाद खामोशी रुक्मणी ने ही तोड़ी.

"उस घर में जो रोशनी दिखाई देती है, उसके बारे में का कहना है तुम्हारा?" उसने मुझसे पुचछा.

इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नही था. रोशनी वाली बात से मैं भी इनकार नही कर सकता था क्यूंकी वो मैने भी देखी थी, खुद अपनी आँखों से. मैने कोई जवाब नही दिया.

"मेरा यकीन करो इशान. अदिति की आत्मा आज भी भटकती है वहाँ"

"अदिति?" नाम सुनकर मैने रुक्मणी की तरफ देखा

"हाँ. यही नाम था उस औरत का जिसका खून आज से कई साल पहले उस बंगलो में हुआ था" रुक्मणी ने कहा

"वही जिसको उसके पति ने मार दिया था?" मैने पुचछा तो रुक्मणी हाँ में सर हिलाने लगी.

वो हमारे देश के उन हज़ारों बच्चो में से एक थी जिन्हें ज़िंदगी बचपन में ही ये एहसास करा देती है के दुनिया में ज़िंदा रहना कुच्छ लोगों के लिए कितना मुश्किल होता है. उसके माँ बाप बचपन में ही गुज़र गये थे और पिछे रह गयी थी वो अकेली. उस वक़्त वो बमुश्किल 5 बरस की थी. रिश्तेदारों के नाम पर दूर दूर तक कोई नही था सिवाय एक चाचा के जिसने उसको अपने साथ ही रख लिया. उसके चाचा की अपनी कोई औलाद नही थी इसलिए सबने सोचा के अपने भाई की बच्ची को वो अपनी बच्ची की तरह रखेगा. खुद उसको भी अपने चाचा के घर में ही रहना अच्छा लगा. पर जैसे जैसे वो बड़ी होती गयी ये भरम ख़तम होता चला गया. उसके आने के एक साल बाद ही चाचा की यहाँ भी अपनी एक औलाद हो गयी, एक बेटा और उसके बाद उसकी अपने ही चाचा के घर में एक नौकरानी से ज़्यादा हालत नही बची. घर का सारा काम वो अकेली करती. खाना बनाने से लेकर घर की सॉफ सफाई और कपड़े धोना तक उसी के ज़िम्मे था. सुबह से शाम तक वो एक मज़दूर की तरह घर के काम में लगी रहती.

यूँ तो दिखाने को उसके चाचा ने उसको स्कूल में दाखिल करा दिया था और दुनिया वालो के सामने वो उनकी अपनी बेटी थी पर घर की दीवारों के अंदर कहानी कुच्छ और ही थी. वो स्कूल से आती और आते ही उसको घर पर 10 काम तैय्यार मिलते. किताब खोलने का काम सिर्फ़ स्कूल में ही होता था. शाम तक वो इतना तक जाती के बिस्तर पर गिरते ही फिर उसको अपना होश ना रहता. बिस्तर भी क्या था सिर्फ़ घर के स्टोर रूम में पड़ी एक टूटी हुई चारपाई थी. रात भर स्टोर रूम में मच्च्छार उसका खून चूस्ते रहते पर वो इतनी गहरी नींद में होती के उसको इस बात का एहसास तक ना होता.

टॉर्चर क्या होता है ये बात शायद एक ऐसे क्रिमिनल से जिसने पोलीस रेमंड रूम में वक़्त बिताया हो, उससे ज़्यादा वो खुद जानती थी. अक्सर छ्होटी छ्होटी ग़लतियों पर उसको मारा पीटा जाता. कभी कभी तो इस क़दर मारा जाता के वो मार खाते खाते बेहोश हो जाती. कभी कभी उसको 2-3- दिन तक भूखी रखा जाता. अगर ग़लती उसके चाचा चाची की नज़र में बड़ी हो तो कभी कभी उसको गरम लोहे से जलाया भी जाता तो कभी कॅंडल जलाकर उसके जिस्म पर पिघलता हुआ मो'म डाला जाता.

उसके पिता उस इलाक़े के जाने माने आदमी थे और उनका अच्छा कारोबार था. उसका चाचा एक अय्याश आदमी था जिसने कारोबार पर कभी ध्यान नही दिया. उसने तो बल्कि शादी भी एक रंडी से की थी जो उसके बाद एक कोठे से उठकर सीधा महल जैसे घर में आ बैठी थी. इस बात पर दोनो भाइयों में झगड़ा हुआ और इसका नतीजा ये निकला के चाचा को घर छ्चोड़कर जाना पड़ा. पर बड़े भाई की मौत उसके लिए एक वरदान साबित हुई. सारी जायदाद का वो अकेला वारिस साबित हुआ जिसको हड़पने में उसने देर नही लगाई.

जैसे जैसे वो बड़ी होती गयी वैसे वैसे उसको भी इस बात का एहसास हो गया के उसको इस घर में इसलिए रखा गया के जायदाद का और कोई हिस्सेदार ना हो और सारी उसके चाचा के पास ही रहे. उसकी चाची भले एक कोठे से उठकर एक भले घर में आ गयी थी पर उसके अंदर की रांड़ अब भी मरी नही थी. बात बात पर वो उसको ऐसी ऐसी गालियाँ देती के सुनने वालो के कानो में से खून उतर जाए. पर अपने बेटे को वो किसी नवाब से कम नही रखती थी. उसका हर शौक पूरा किया जाता. हर चीज़ उसके लिए लाई जाती और हर ज़िद उसकी पूरी होती और दूसरी तरफ उस बेचारी को 2 वक़्त की रोटी भी मज़दूरी करने के बाद मिलती और वो भी इस तरह जैसे उसपर कोई एहसान किया गया हो.

उसकी इन मुसीबतो में एक मुसीबत और शामिल थी. और वो था उसका चाचा. बचपन से ही उसके चाचा ने उसका ग़लत फयडा उठना शुरू कर दिया था. उसको एक नया खेल सीखा दिया. अक्सर जब घर पर कोई ना होता तो उसका चाचा बंद कमरे में उस ज़रा सी बच्ची के साथ गंदी हरकतें करता.

वो अपनी ज़िंदगी से हार मान चुकी थी. एक ऐसी उमर में जब उसको अपनी ज़िंदगी ज़ीनी शुरू करनी थी, वो थक चुकी थी. उसको लगता था के उसने अपने ज़िंदगी के कुच्छ ज़रा से सालों में एक बहुत लंबा अरसा जी लिया है. दिल में कहीं मौत की ख्वाहिश भी थी पर अपनी जान लेने की हिम्मत उसके अंदर अभी आई नही थी. ज़िंदगी ने वक़्त से बहुत पहले उसको पूरी तरह से समझदार कर दिया था.

स्कूल में भी वो चुप चुप सी रहती. ना वो किसी से बात करती थी और ना ही कोई उसका दोस्त था. सब उसका मज़ाक उड़ते और कहते के वो पागल है. उसके टीचर अक्सर उसके चाचा से इस बारे में बात करते पर वो हमेशा हॅस्कर ये बात टाल देता.

दोस्त के नाम पर बस एक वो ही था उसकी ज़िंदगी में था. वो कौन था ये तो उसको पता नही था पर अक्सर वो उससे मिला करती . वो गाओं में ही कहीं रहता था और उसके स्कूल के बाहर उसका अक्सर इंतेज़ार करता. वो कहीं किसी खेत में अकेले में मिलते और साथ बैठकर घंटो तक बातें करते, साथ में खेलते. उसके साथ बिताए कुच्छ लम्हो में वो जैसे रोज़ाना अपनी पूरी ज़िंदगी जिया करती थी और हर रात अगले दिन उससे मिलने का इंतेज़ार करती थी. उस एक लड़के के चारो तरफ ही उसकी दुनिया जैसे सिमटकर रह गयी थी.

कारोबार जिस तरह से उसके बाप ने संभाल रखा था उसका चाचा ना संभाल पाया. नतीजा ये हुआ के जब तक वो 16 साल की हुई, तब तक सारा कारोबार बिक चुका था और वो लोग एक महेल जैसे घर से निकलकर एक झोपडे में आ बसे थे. उसका चाचा जो कभी पंखे की हवा के नीचे बैठकर दूसरे आदमियों पर हुकुम चलाता था अब खुद मज़दूरी करके अपना घर चला रहा था.

इस सारी मुसीबत में एक वो लड़का ही था जिसको वो अपना कहती थी. वो अजनबी होते हुए भी उसका अपना था जिसके साथ वो खुद को महफूज़ महसूस करती थी.

उस शाम भी वो उस लड़के का इंतेज़ार करती थी. वो उसको कभी अपना नाम नही बताता था. वो पुछ्ति तो हॅस्कर टाल दिया करता. और ना ही कभी उस लड़के ने उससे उसका नाम पुचछा. उनमें बस एक खामोश रिश्ता था जो वो दोनो बखूबी निभा रहे थे.

उसके 10थ के एग्ज़ॅम्स अभी अभी ख़तम हुए थे और स्कूल की छुट्टिया चल रही थी इसलिए स्कूल से आते हुए उस लड़के से मिलने का सिलसिला रुक गया था. फिर भी वो कभी कभी जब घर में कोई ना होता तो उस जगह पर आती जहाँ वो मिला करते थे और जाने कैसे पर वो लड़का हमेशा उसको वहाँ मिलता जैसे उसको पता हो के वो आने वाली है.

आज भी ऐसा ही हुआ. उसका चाचा मज़दूरी पर गया था और उसकी चाची अपनी किसी सहेली के यहाँ गयी हुई थी. उसके चाचा का बेटा पड़ोस के लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने गया हुआ था. वो घर पर अकेली थी इसलिए जल्दी जल्दी घर के सारे काम निपटाकर अपने दोस्त उस लड़के से मिलने पहुँची.

पर आज उसके हाथ मायूसी ही लगी. आज पहली बार ऐसा हुआ था के वो वहाँ पहुँची और वो लड़का नही मिला. एक घिसी हुई शर्ट और पुरानी सी पेंट पहने वो उसी जगह पर बैठी आधे घंटे तक उसका इंतेज़ार करती रही पर जब वो नही आया तो मायूस होकर अपने घर की और चल दी. रास्ते में उसका दिल एक तरफ तो उस लड़के के ना आने की शिकायत करता रहा और दूसरी तरफ वो खुद अपने ही दिल को समझती रही के भला उसको कैसे पता होगा के वो आने वाली है जो वो यहाँ पहुँच जाता.

घर पहुँची तो उसके हाथ पावं काँप गये. उसका चाचा घर पर आ चुका था. वो जानती थी के चाचा को उसका यूँ घर से बाहर भटकना पसंद नही है इसलिए वो समझ गयी के अब उसके साथ मार पीट की जाएगी. पर अब उसको इसका फरक पड़ना बंद सा हो गया था. वो तकरीबन हर दूसरे दिन किसी जानवर की तरह मार खाती. अब ना तो उसके जिस्म को दर्द का एहसास होता था और ना ही उसके दिमाग़ को. वो उसको मार पीट कर थक जाते और वो चुप खड़ी मार खाती रहती.

"कहाँ से तशरीफ़ आ रही है?" उसके चाचा ने उसको देखकर पुचछा. वो एक चारपाई पर लूँगी बाँधे पड़ा हुआ था. चाची अभी तक नही आई थी.

उससे जवाब देते ना बना. वो तो बस खामोश खड़ी मार खाने का इंतेज़ार कर रही थी पर उसको हैरत तब हुई जब चाचा चारपाई से उठा नही.

"दरवाज़ा बंद कर और यहाँ मेरे पास आ" उसने चाचा ने हुकुम दिया

वो ये बात पहले भी कई बार सुन चुकी थी, बचपन से सुनती आ रही थी. दरवाज़ा बंद कर और मेरे पास आ, ये लाइन उसके ज़हेन में बस गयी थी. इस बार भी वो समझ गयी के अब क्या होने वाला है.घर पर उन दोनो के सिवा कोई नही था और इस बात का मतलब वो समझती थी.

वो चुपचाप दरवाज़ा बंद करके अपने चाचा की चारपाई के साथ जा खड़ी हुई. चाचा ने लूँगी खोली और अपना लंड बाहर निकाल दिया. ये लंड वो बचपन से देखती आ रही थी इसलिए कोई नयी चीज़ नही था उसके लिए. वो ये भी जानती थी के अब उसने आगे क्या करना है. आख़िर बचपन से कर रही थी और अब तो वो 18 साल की होने वाली थी. वो चुपचाप चारपाई पर चाचा के पैरों के पास बैठ गयी और लंड अपने हाथ में लेकर हिलाना शुरू कर दिया. हमेशा यही होता था और इतना ही होता था. अकेले होते ही चाचा उसके हाथ में अपना लंड थमा देता जिसे वो तब तक हिलाती जब तक के उसका पानी ना निकल जाता. इससे ज़्यादा हरकत उसके साथ कभी की नही गयी और अब तो उसको इस बात का डर भी लगना बंद हो गया था.

वो चुपचाप बैठी लंड को उपेर नीचे कर रही थी. चाचा अपनी आँखें बंद किए आराम से लेटा था और आआह आह की आवाज़ें निकाल रहा था.

"तेल लगाके हिला" उसने आँखें बंद किए हुए ही बोला

वो ये भी पहले कई बार कर चुकी थी. अक्सर उसका चाचा उसको लंड पर तेल लगाके हिलाने को कहता. वो पास पड़ी एक तेल की शीशी उठा लाई और थोड़ा सा तेल अपने हाथ पर लेकर लंड पर लगाया और फिर से हिलाना शुरू कर दिया. अब वो ये अच्छी तरह सीख चुकी थी. अपने चाचा के मुँह से आती हुई आवाज़ों के साथ वो समझ जाती थी के कब उसको तेज़ी से हिलाना है और कब धीरे. उसकी कोशिश खुद भी यही रहती के वो ये काम अच्छे से कर ताकि जल्दी से चाचा का पानी निकले और उसकी जान च्छुटे.

पर आज उसको हिलाते हिलाते काफ़ी देर हो चुकी थी पर लंड पानी ही नही छ्चोड़ रहा था. चाचा की आवाज़ से वो अंदाज़ा लगा सकती थी के अभी और काफ़ी देर तक पानी नही निकलने वाला है पर मुसीबत ये थी के उसका अपना हाथ अब दुखने लगा था.

चाचा ने अपनी आँखें खोली और एक नज़र उसपर डाली और उसका हाथ लंड से हटा दिया. उसने हैरत से अपने चाचा की तरफ देखा जो अब चारपाई से उठ रहा था. खड़ा होकर चाचा ने उसका हाथ पकड़कर उसको खड़ा किया और झोपडे के साथ दीवार से लगाकर खड़ा कर दिया. उसका चेहरा दीवार की तरफ था और कमर चाचा की तरफ. चाचा पिछे से उसके साथ लग कर खड़ा हो गया. उसका खड़ा हुआ लंड वो अपनी गांद पर महसूस कर रही थी और दिल के कहीं किसी कोने में उसको डर लगने लगा था. उसको समझ नही आ रहा था के चाचा क्या कर रहा है क्यूंकी उसने पहले कभी ऐसा नही किया था. आजतक तो वो सिर्फ़ लंड हिलाया करती थी पर आज कुच्छ और भी हो रहा था.

उसको झटका तब लगा जब चाचा का एक हाथ उसकी घिसी हुई पुरानी पेंट के उपेर से उसकी टाँगो के बीच आ गया.

"चाचा जी" उसने सिर्फ़ इतना ही कहा

"डर मत" चाचा ने धीरे से कहा "कुच्छ नही होगा"

भले ये बात धीरे से कही गयी थी पर उसके अंदर के जानवर को उसने सुन लिया था. वो जानती थी के अगर अब उसके एक शब्द भी बोला तो उसके फिर बुरी तरह से मारा पीटा जाएगा इसलिए वो खामोशी से खड़ी हो गयी. उसके पिछे खाड़ा चाचा थोड़ी देर उसकी जाँघो के बीच अपना हाथ फिराता रहा और पिछे से लंड उसकी गांद पर रगड़ता रहा. फिर उस वक़्त तो हद ही हो गयी जब उसने पेंट के हुक्स खोलकर पेंट को नीचे खींच दिया और उसको नीचे से नंगी कर दिया. वो शरम से जैसे वहीं गड़ गयी और आँखो से आँसू आ गये. वो एक लड़की थी और यूँ अपने ही चाचा के सामने नंगी कर दिए जाना उसके लिए मौत से भी कहीं बढ़कर था.

चाचा उससे एक पल के लिए दूर हुआ. उसने आँख बचाकर देखा तो वो खड़ा अपने लंड पर और भी तेल लगा रहा था. लंड पर अच्छी तरह तेल लगाने के बाद वो फिर उसके नज़दीक आया और अपने घुटने मॉड्कर लंड को उसकी गांद के बराबर लाया. चाचा का लंड उसको एक पल के लिए अपनी गांद पर महसूस हुआ और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती, एक दर्द की तेज़ लहर उसके जिस्म में उठ गयी. उसकी गांद के अंदर एक मोटी सी चीज़ घुसती चली गयी और वो जानती थी के ये उसके चाचा का लंड है. दर्द की शिद्दत जब बर्दाश्त से बाहर हो गयी तो वो चीख पड़ी और फिर उसके बाद उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाता चला गया.

वर्तमान मे....................

उस सॅटर्डे सुबह मेरी आँख फोन की घंटी से खुली. ऑफीस मैने जाना नही था इसलिए सुबह के 9 बजे भी पड़ा सो रहा था.

"हेलो" मैने नींद से भारी आवाज़ में कहा.

"ई आम सॉरी. मैं नही जानती थी के आप देर तक सोते हैं वरना लेट फोन करती. ई आम सॉरी टू डिस्टर्ब यू" दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज़ आई. वो आवाज़ इतनी खूबसूरत थी के मुझे लगा के शायद मैं अब भी ख्वाब में ही हूँ. एकदम ठहरी हुई जैसे एक एक लफ्ज़ को बहुत ही ध्यान से उठाके ज़ुबान पर रखा जा रहा हो के कहीं लफ्ज़ टूट ना जाए. उस आवाज़ की कशिश ऐसी थी के अगले ही पल मेरी नींद पूरी तरह खुल चुकी थी.

"हेलो?" मैने कुच्छ नही कहा तो आवाज़ दोबारा आई.

"यॅ हाई" मैं जैसे एक बार फिर नींद से जगा "नही कोई बात नही. मैं वैसे भी उठने ही वाला था. कहिए"

"इशान आहमेद?" उसने मेरा नाम कन्फर्म किया

"जी हां मैं ही बोल रहा हूँ"

"आहमेद साहब मेरा नाम रश्मि है. रश्मि सोनी" कहकर वो चुप हो गयी

एक पल के लिए मुझे दिमाग़ पर ज़ोर डालना पड़ा के ये नाम मैने कहाँ सुना है और दूसरे ही पल सब ध्यान आ गया. रश्मि सोनी, विपिन सोनी की बेटी.

"हाँ रश्मि जी कहिए" मैने फ़ौरन जवाब दिया

"मेरा ख्याल है के आपने अब तक मेरा ज़िक्र तो सुना ही होगा" उसने दोबारा कुच्छ कहने से पहले कन्फर्म करना चाहा.

"जी हाँ. आप मिस्टर. विपिन सोनी की बेटी हैं. राइट?" मैने कहा. दिल ही दिल में मुझे हैरानी हो रही थी के उसने मुझे फोन क्यूँ किया.

"राइट" दूसरी तरफ से आवाज़ "मैं आपसे मिलना चाह रही थी. क्या वक़्त निकल पाएँगे आप?"

मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा था वो मुझसे मिलना क्यूँ चाहती है.

"जी किस सिलसिले में?" मैने पुचछा

"मिलकर बताऊं तो ठीक रहेगा?"

"श्योर" मैने कहा "आप मंडे मेरे ऑफीस में ....."

"मैं अकेले में मिलना चाह रही थी" उसने मेरी बात काट दी

"तो आप बताइए" मैने कहा तो एक पल के लिए वो चुप हो गयी.

"आप आज शाम मेरे होटेल में आ सकेंगे? डिन्नर साथ में करते हैं"

उसके फोन रखने के काफ़ी देर बाद तक मैं यही सोचता रहा के वो मुझसे मिलना क्यूँ चाहती है. मैने हां तो कर दिया था पर सोच रहा था के क्या मुझसे उससे मिलना चाहिए? मैं ऑलरेडी इस मर्डर केस में काफ़ी इन्वॉल्व्ड था और ज़्यादा फसना नही चाहता था. सीबीआइ अब इस केस को हॅंडल कर रही थी और क्यूंकी मैं वो शख़्श था जो उसके मर्डर की रात उसके घर में गया था, इस बात को लेकर सीबीआइ वाले मुझे भी लपेट सकते थे. पर इन सब बातों के बावजूद मैने उसको हाँ कह दी थी और उस रात डिन्नर उसके साथ करने की बात पर हाँ कह दी थी.

सबसे ज़्यादा ख़ास बात जो मुझे लगी वो थी रश्मि की आवाज़. उस आवाज़ से ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था के उसकी मालकिन कितनी खूबसूरत हो सकती है. उस आवाज़ में वही ठहराव था, वही खूबी थी, वही मीठास था जू..............

जू .............

और मेरा दिमाग़ घूम सा गया. उस आवाज़ में वही मीठास था जो उस गाने की आवाज़ में था जिसे मैं तकरीबन हर रात सुनने लगा था. अगर ध्यान से सुना जाए तो ये दोनो आवाज़ें बिल्कुल एक जैसी थी. और दोनो ही आवाज़ों को सुनकर मेरा दिमाग़ में एक सुकून सा आ जाता है.

फिर अपनी ही बात सोचकर मुझे हसी आ गयी. रश्मि सोनी ऑस्ट्रेलिया में थी तो यहाँ मेरे कान में गाना कैसे गा रही हो सकती है?

"ये अदिति केस के बारे में तू क्या जानता है?" शाम को रश्मि से मिलने जाने से पहले मैने मिश्रा को फोन किया. मैने सोचा तो ये था के उसको बता दूँगा के मैं रश्मि से मिलने जा रहा हूँ पर फिर मैं ये सोचकर चुप हो गया के पहले उससे मिलके ये जान लूँ के वो मुझसे मिलना चाहती क्यूँ है. थोड़ी देर इधर उधर की बातें करके मैं फोन रखने ही वाला था के मुझे बंगलो 13 में हुए पहले खून की बात याद आ गयी.

"कौन अदिति?" मिश्रा ने पुचछा

"अरे वही जिसका बंगलो नो. 13 में खून हुआ था, सोनी से पहले" मैने कहा

"अच्छा वो" वो अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालता हुआ बोला "वो तो काफ़ी पुरानी बात है यार. तब तो शायद मैं पोलीस में भरती हुआ भी नही था. तू क्यूँ जानना चाहता है"

"ऐसे ही. क्यूर्षसिटी" मैने कहा

"देख भाई ज़्यादा तो मैं कुच्छ जानता नही" उसने कहा "पोलीस फाइल्स में इतना ही पढ़ा है के ये बंगलो पहले उसके पति का ही था. जब उसने अपनी बीवी को मार दिया तो उसको जैल हो गयी और उसके घरवालों ने बंगलो काफ़ी सस्ते में बेच दिया"

"और अदिति. उसके बारे में?" मैने फिर पुचछा

"ज़्यादा कुच्छ नही. यही के वो एक बहुत ग़रीब घर से थी, माँ बाप उसके मार गये और थे और किसी रिश्तेदार ने ही पाला था. नौकरी की तलाश में शहेर आई थी और यहाँ उसने जिसके यहाँ नौकरी की उसी से शादी कर ली. तो वो भी ग़रीब से अमीर हो गयी"

"लव मॅरेज?" मैने पुचछा

"हाँ शायद" मिश्रा बोला

"और उसके पति ने बताया के उसने खून क्यूँ किया था?"

"हाँ उसके स्टेट्मेंट में था. खून के बाद उसने खुद ही पोलीस को सरेंडर कर दिया था. उसका कहना था के उसकी बीवी का कोई आशिक़ भी था जो उसका कोई बचपन का दोस्त था. पहले तो उसको अपनी बीवी पर शक था पर फिर उस दिन उसने उन दोनो को बिस्तर में रंगे हाथ पकड़ लिया. लड़का तो भाग गया और गुस्से में उसने अपनी बीवी का खून कर दिया" मिश्रा बोला

"और वो लड़का मिला कभी?"

"नही" मिश्रा बोला "फाइल्स में तो यही लिखा है के पोलीस ने ढूँढने की कोशिश की पर उन्हें कोई सुराग नही मिला. अब कितना ढूँढा था ये मुझे भी नही पता. वैसे तुझे इतना इंटेरेस्ट क्यूँ है इसमें?"

"कुच्छ नही यार. ऐसे ही इतनी कहानियाँ उड़ती हैं तो मैने सोचा के मैं बंगलो के उपेर एक किताब लिख दूँ" मैं मज़ाक करता हुआ बोला

"अगर ये बात है तो अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक चला जा" उसने भी मज़ाक करते हुए कहा

"अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक?"

"हाँ. पोलीस फाइल्स में लिखा है के वो वहीं पर बच्चो को म्यूज़िक सिखाया करती थी" मिश्रा बोला "कहते हैं के वो गाती बहुत अच्छा थी. आवाज़ में जादू था उसकी. जब गाती थी तो उसकी आवाज़ सुनकर परेशान आदमी को सुकून मिल जाए, आदमी बस जैसे कहीं खो जाए और रोता हुआ बच्चा सो जाए"

लड़की की कहानी.......................................................

"तुम इतने दिन से क्यूँ नही आए थे?" वो फिर उस लड़के के साथ बैठी थी और उससे सवाल कर रही थी.

"कुच्छ काम आ गया था. तुमने मेरा इंतेज़ार किया था?" लड़के ने सवाल किया

"हां और नही तो क्या?" वो बोली " अभी भी बस यूँ ही आई हूँ थोड़ी देर के लिए. चाची कभी भी वापिस आ सकती हैं. ज़्यादा देर नही रुक सकती"

वो बड़ी मुस्किल से घर से निकल पाई थी. पिच्छले 1 महीने से वो तकरीबन रोज़ाना ही उस जगह पर आती थी और थोड़ी देर इंतेज़ार करके चली जाती थी पर वो लड़का उससे मिलने नही आ रहा था. आज जब उसको वहाँ खड़ा देखा तो जैसे उसकी जान में जान आई थी.

"तुम्हारा स्कूल बंद होने से काफ़ी मुश्किल हो गयी है. वरना आराम से मिल लेते थे" वो लड़का कह रहा था

"तुम्हारा भी मुझसे मिलने का दिल करता है?" वो मुस्कुराते हुए बोली

"हाँ और नही तो क्या यहाँ मैं क्यूँ आता हूँ?"

"अच्छा तो इतने दिन से आए क्यूँ नही थे झूठे?" वो ऐसे इठला रही थी जैसे कोई नयी दुल्हन अपनी पति के सामने नखरे करती हो

"कहा ना कुच्छ काम आ गया था वरना तुमसे मिलने तो मैं रोज़ आता"

"इतनी अच्छी लगती हो मैं तुम्हें?"

लड़के ने हाँ में सर हिलाया.

"क्या अच्छा लगता है तुम्हें मुझ में?" उसने फिर सवाल किया

"सब कुच्छ" लड़के ने कहा

"जैसे?" उसका दिल कर रहा था के वो लड़का उसकी तारीफ करे

"सबसे ज़्यादा तुम्हारी बातें. मेरा दिल करता है के तुम्हारे सामने बैठकर तुम्हारी बातें सुनता रहूं"

"बस मेरी बातें?" वो बोली

"और तुम्हारे हाथ, तुम्हारी आँखें, तुम्हारा चेहरा" लड़का मुस्कुरा कर कह रहा था

"मेरा चेहरा?" उसने पुचछा

"हां और नही तो क्या. तुम बहुत सुंदर हो. बस अगर थोडा सा बन संवार जाओ तो गाओं में सबसे सुंदर लगोगी"

"वो कैसे होगा. मेरा पास तो और कपड़े हैं भी नही" वो अपने घिसे हुए कपड़ो की तरफ इशारा करते हुए कह रही थी

"तुम जैसी भी हो मुझे पसंद हो" लड़के ने कहा तो वो हस पड़ी

"झूठे" उसने कहा "तुमने तो मुझे आज तक अपना नाम नही बताया"

"वक़्त आने पर बता दूँगा और उसी दिन मैं तुमसे तुम्हारा नाम भी पुच्हूंगा" लड़के ने कहा

"और वक़्त कब आएगा?" वो दिल ही दिल में चाहती थी के लड़का उससे कह दे के वक़्त अभी आ गया है.

"वक़्त तब आएगा जब मैं और तुम्हें यहाँ से बहुत दूर शहेर चले जाएँगे. सबसे दूर. सिर्फ़ तुम और मैं" लड़के ने कहा तो उसके खुद के दिल में भी उम्मीद की शमा जल उठी.

"और वहाँ क्या करेंगे?" उसने कहा

"वही रहेंगे. अपना घर बनाएँगे और हमेशा साथ रहेंगे" वो लड़का कह रहा था और उसको ये सब एक सपना लग रहा था. वो हमेशा इसी सपने में रहना चाहती थी उसके साथ.

क्रमशः.........................
 
भूत बंगला पार्ट--9


गतान्क से आगे...............
लड़की की कहानी जारी है ..........................
वो वापिस घर पहुँची. दरवाज़ा खोलने ही वाली थी के उसके कदम वहीं जम गये. अंदर से किसी मर्द की आवाज़ आ रही थी. यानी चाचा जी वापिस आ गये? उसके अंदर ख़ौफ्फ की एक ल़हेर दौड़ गयी. वो जानती थी के अगर उसके चाचा ने देखा के वो इस वक़्त बाहर घूम रही है तो उसको बहुत मारेगा.
तभी उसके दिमाग़ में ख्याल आया के अगर चाची अंदर ना हुई तो? ये सोचते ही उसका रोम रोम काँप उठा. अगर चाची ना हुई तो चाचा और वो घर पर अकेले होंगे और चाचा जी फिर उसके साथ कुच्छ कर सकते हैं. उसने डर के मारे अंदर जाने से पहले ये पता करने की सोची के चाची वापिस आई हैं या नही?

दरवाज़ा खोले बिना ही उसने दरवाज़े और दीवार के बीच एक छ्होटी सी खुली हुई जगह पर अपनी आँख लगाई और अंदर झाँकने लगी. अंदर नज़र पड़ी तो उसने फ़ौरन एक पल के लिए नज़र वहाँ से हटा ली. एक पल के लिए समझ नही आया के उसने क्या देखा और वो क्या करे. फिर ये पक्का करने के लिए के उसने सही देखा है, उसने फिर अंदर देखा.
उसकी चाची पूरी तरह से नंगी नीचे ज़मीन पर बिछि हुई चादर पर पड़ी हुई थी. जिस्म पर एक भी कपड़ा नही था. जहाँ वो खुद खड़ी हुई थी वहाँ से उसको चाची की बड़ी बड़ी चूचिया सॉफ नज़र आ रही थी और नज़र आ रहा था वो चेहरा जो उन चूचियो को चूस रहा था. वो चेहरा जो उसके चाचा का नही था.

वो आदमी उसकी चाची के साइड में लेटा बारी बारी दोनो निपल्स चूस रहा था. उसने देखा के आदमी का एक हाथ चाची की जाँघो के बीच था और वहाँ पर बालों के बीच कुच्छ कर रहा था. उसको समझ ना आया के वहाँ से हट जाए या खड़ी रहे. वो जानती थी के चाची जो कर रही थी वो ग़लत था और उसका ये देखना भी ग़लत था पर वो जैसे वहीं जम गयी थी. नज़र वहीं चाची के नंगे जिस्म पर जम गयी थी.
"तुम भी ना" चाची कह रही थी "अभी थोड़ी देर पहले ही तो चोद्के हटे हो और अब फिर शुरू हो गये?"
इसपर वो आदमी हसा और बोला
"क्या करूँ जानेमन. तू है ही इतनी मस्त के दिल करता है लंड तेरे अंदर डालकर ज़िंदगी भर के लिए भूल जाऊं"

वो जानती थी के वो आदमी क्या कह रहा था. वो उसकी चाची के नंगे पड़े जिस्म की तारीफ कर रहा था. ये बात सुनकर उसका खुद का ध्यान भी चाची की तरफ गया. उसने एक नज़र अपनी चाची पर उपेर से नीचे तक डाली. उसकी चाची हल्की सी मोटी थी पर अंदर से बिल्कुल गोरी थी. बड़ी बड़ी चूचिया, भरा भरा जिस्म और जाँघो के बीच हल्के हल्के बाल. वो बार बार अपनी चाची को उपेर से नीचे तक देखती रही पर हर बार उसकी नज़र चाची की चूचियो पर आकर ही अटक जाती. उसका एक हाथ अपने आप उसके अपने सीने पर आ गया और वो सोचने लगी के उसकी ऐसी बड़ी बड़ी चूचिया क्यूँ नही हैं?

तभी वो आदमी हल्का सा उठा और उसकी चाची के उपेर को आया और फिर उसकी नज़र कहीं और अटक गयी. इस बार वो देख रही थी वो चीज़ जो उसकी चाची ने अपने हाथ में पकड़ रखी थी, उस आदमी का लंड जो वो हिला रही थी. ये देखकर उसको खुद भी याद आ गया के चाचा भी उससे अपने लंड यूँ ही हिलवाया करता था. तो क्या इस आदमी के लंड में से भी चाचा जी की तरह कुच्छ निकलेगा?

"अंदर ले" वो आदमी चाची से कह रहा था
"अभी नही" चाची ने कहा "थोड़ा गीली करो. मैं इतनी जल्दी तैय्यार नही हो जाती दोबारा. टाइम लगता है मुझे"
उस आदमी ने दोबारा अपना हाथ चाची की टाँगो के बीच रखा तो चाची ने मुस्कुराते हुए हाथ हटा दिया.
"मुँह से" चाची ने कहा

ये सुनकर वो आदमी नीचे को सरका और अपना मुँह उसकी चाची की टाँगो के बीच घुसा दिया. वो चुप खड़ी सोच रही थी के वो आदमी क्या कर रहा है? वो बड़े ध्यान से देख रही थी पर समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है. चाची ने अपनी टांगे उपेर को उठा ली थी और आँखें बंद करके आह आह कर रही थी. ये सब देखकर उसके खुद के जिस्म में भी एक अजीब सी ल़हेर उठ रही थी. उसने चाचा का लंड देखा हुआ था इसलिए उस आदमी का लंड देखकर उसको कुच्छ भी नया ना लगा. पर वो पहली बार किसी पूरी औरत को इस तरह से नंगी देख रही थी और सामने का नज़ारा जैसे उसपर जादू सा कर रहा था.

"आ जाओ" चाची ने कहा तो वो आदमी उपेर को आया. चाची ने अपनी ज़ुबान पर हाथ लगाया और थोडा सा थूक हाथ पर लगाकर लंड पर रगड़ने लगी.
"झुक जा" आदमी ने कहा तो चाची फिर हस पड़ी.
"तुम्हारा भी एक से काम नही चलता. हर बार तुम्हें आगे पिछे दोनो जगह घुसाना होता है, है ना?
"अरे चूत तो तेरी अभी थोड़ी देर पहले ही ली थी ना, अब थोडा गांद का मज़ा भी ले लेने दे जान"
उसकी अब भी समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है और क्या होने वाला है. चाची अब अपने घुटनो पर किसी कुतिया की तरह झुक गयी थी. वो वहाँ खड़ी कभी नीचे लटकी हुई चाची की चूचियो को देखती तो कभी उपेर को उठाई हुई चाची की गांद को. वो आदमी अब लंड पर तेल लगा रहा था और चाची उसको देख कर मुस्कुरा रही थी. तेल लगाने के बाद वो फिर चाची की पिछे आया और लंड चाची की गांद पर रखा. अगले ही पल वो समझ गयी के वो आदमी क्या करने वाला है. जो उस दिन चाचा जी ने किया था वो आदमी भी वैसा ही चाची के साथ करेगा. उसको अपना उस दिन का दर्द याद आ गया और वो काँप उठी. वो उम्मीद कर रही थी के अब चाची भी यूँ ही दर्द से चिल्लाएगी और रोएगी पर उसकी उमीद के बिल्कुल उल्टा हुआ. चाची ने बस एक हल्की से आह भारी और उसके देखते ही देखते लंड पूरा चाची की गांद में घुस गया.

वो मुँह खोले सब देखती रही. वो आदमी अब उसकी चाची की गांद में लंड अंदर बाहर कर रहा था. उसको याद नही था के उस दिन लंड घुसने के बाद चाचा ने उसके साथ क्या किया था पर शायद ऐसा ही कुच्छ किया होगा. आदमी चाची की गांद पर ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था और सबसे ज़्यादा हैरत थी के चाची बिल्कुल नही रो रही थी. वो तो बल्कि ऐसे कर रही थी जैसे उसको भी अच्छा लग रहा हो.

थोड़ी देर बाद वो आदमी थकने सा लगा और ज़ोर ज़ोर से लंड उसकी चाची की गांद में घुसाने लगा.
"निकलने वाला है. कहाँ?" आदमी ने पुचछा
"तू कहाँ चाहता है?" चाची ने अपनी आह आह की आवाज़ के बीच पुचछा
"पी ले" आदमी ने कहा तो चाची ने हाँ में सर हिला दिया.
थोड़ी देर अंदर बाहर करने के बाद उस आदमी ने अचानक लंड बाहर निकाल लिया. लंड बाहर निकलते ही चाची फ़ौरन पलटी और उसकी तरफ घूमकर लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. देखते ही देखते उस आदमी के लंड में से भी वही सफेद सी चीज़ निकली जो चाचा के लंड से निकलती थी और उसकी चाची के मुँह पर गिरने लगी.
इशान की कहानी जारी है.................................
उसी शाम मैं रश्मि से मिलने के लिए घर से निकला और आधे रास्ते ही पहुँचा था के मेरी कार मुझे धोखा दे गयी. एक पल के लिए मैने सोचा के मेकॅनिक का इंतज़ाम करूँ पर रश्मि से मिलने के लिए मैं लेट हो रहा था इसलिए गाड़ी वहीं साइड में पार्क करके एक टॅक्सी में बैठकर होटेल की तरफ चल पड़ा.

टॅक्सी में बैठे बैठे मेरे मेरे दिमाग़ में फिर सारे ख्याल एक एक करके दौड़ने लगे. शुरू से लेकर आख़िर तक सब कुच्छ एक पहेली जैसा था जो सुलझने का नाम नही ले रहा था और अचानक इन सब के चक्कर में मेरी आराम से चलती ज़िंदगी भी एकदम से तेज़ हो गयी थी. हर एक वो सवाल जिसका जवाब अब तक मुझे मिला नही था मेरे दिमाग़ में आने लगा. कौन थे वो दो लोग जिन्हें मैने उस रात बंगलो में बाहर से देखा पर अंदर जाते ही गायब हो गये, कैसे मारा गया सोनी को और क्यूँ मारा गया, क्या उसकी बीवी ने मारा हो सकता है या कोई बिज़्नेस डील थी और क्यूँ मुझे बार बार उस गाने की आवाज़ सुनाई देती है? ये सब सोचते सोचते मेरे सर में दर्द होने लगा और मैने अपनी आँखें पल भर के लिए बंद की. वो आवाज़ जैसे मेरे आँखें बंद करने का इंतेज़ार कर रही थी और आँखें बंद होते ही फिर वो हल्की सी लोरी की आवाज़ मेरे कानो में आने लगी. जैसे कोई बड़े प्यार से मुझे सुलाने की कोशिश कर रही हो. और हमेशा की तरह उस आवाज़ के मेरे कान तक पहुँचते ही मैं फिर नींद के आगोश में चला गया.

"उठिए साहब, होटेल आ गया" टॅक्सी ड्राइवर की आवाज़ पर मेरी नींद खुली तो देखा के हम लोग होटेल के बाहर ही खड़े थे.
टॅक्सी वाले को पैसे देकर मैं होटेल के अंदर आया और रश्मि के बताए कमरे के सामने पहुँचकर रूम की घंटी बजाई.

कमरा जिस औरत ने खोला उसको देख कर जैसे मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. उससे ज़्यादा खूबसूरत औरत मैने यक़ीनन अपनी ज़िंदगी में नही देखी थी. गोरी चित्ति, हल्के भूरे बॉल, नीली आँखें, सुडोल बदन, मेरे सामने खड़ी वो लड़की जैसे कोई लड़की नही अप्सरा थी. वो ऐसी थी के अगर उसके इश्क़ में कोई जान भी दे दे तो ज़रा भी अफ़सोस ना हो.

"मिस्टर आहमेद?" उसने मुझसे पुचछा तो मैं जैसे फिर नींद से जागा.
"यस" मैने कहा "रश्मि सोनी?"
"जी हाँ. अंदर आइए" उसने मेरे लिए जगह बनाई और मेरे अंदर आने पर दरवाज़ा बंद कर दिया.
"कुछ लेंगे आप?" वो पुच्छ रही थी पर मैं तो किसी पागल की तरह उसकी सूरत ही देखे जा रहा था. मेरा हाल उस पतंगे जैसा हो गया था जो कमरे में जलती रोशनी की तरफ एकटक देखता रहता है और बार बार जाकर उसी से टकराने की कोशिश करता है. जिस तरह उस रोशनी के सिवा ना तो उस पतंगे को कुच्छ दिखाई देता है और ना सुनाई देता है, ठीक उसी तरह मुझे भी उस वक़्त कुच्छ नही सूझ रहा था.

"कुच्छ लेंगे आप?" उसने अपना सवाल दोहराया तो मैने इनकार में सर हिला दिया. मेरी ज़ुबान तो जैसे उसको देखकर मेरे मुँह में चिपक सी गयी थी. शब्द ही नही मिल रहे थे बोलने के लिए.

उसका हर अंदाज़ा किसी राजकुमारी जैसा था. पता नही उसके पास इतना पैसा था इसलिए या फिर कुदरत ने ही उसको ऐसा बनाया था. उसके बोलने का अंदाज़, चलने का अंदाज़, मुस्कुराने की अदा और लिबास, सब कुच्छ देखकर ऐसा लगता था जैसे मैं किसी रानी के सामने खड़ा हूँ. पर एक बात जो उस चाँद में दाग लगा रही थी वो थी उसके चेहरे पर फेली उदासी जो उसके मुस्कुराने में भी सॉफ झलक रही थी.

"मिस्टर आहमेद सबसे पहले आइ वुड लाइक टू थॅंक यू के आपने मेरे लिए टाइम निकाला" हमारे बैठने के बाद वो बोली "आप शायद सोच रहे होंगे के मुझे आपका नाम और नंबर कहाँ से मिला"
"शुरू में थोड़ा अजीब लगा था" मैने मुस्कुराते हुए कहा "पर फिर मैं जान गया के आपको नंबर तो किसी भी फोन डाइरेक्टरी से मिल सकता है और मेरा नाम उन पोलीस फाइल्स में लिखा हुआ है जो आपको फादर के मौत से रिलेटेड हैं"
"यू आर ए स्मार्ट मॅन" मैने गौर किया के वो अपनी आधी बात इंग्लीश में और आधी हिन्दी में कहती थी.शायद इतने वक़्त से ऑस्ट्रेलिया में थी इसलिए
"रिपोर्ट्स में लिखा था के मरने से पहले मेरे डॅड आपसे ही आखरी बार मिले थे. मैने पता लगाया तो मालूम हुआ के आप शहेर के एक काबिल वकील हैं जो इस वक़्त एक ऐसा रेप केस लड़ रहे हैं जिसको कोई दूसरा वकील हाथ लगाने को तैय्यार ही नही था.
"नही इतना भी काबिल नही हूँ मैं" जवाब में मैने मुस्कुराते हुए कहा "और जहाँ तक मेरा ख्याल है के आप भी अपने पिता के आखरी दीनो के बारे में मुझसे बात करना चाहती हैं"
"मैं भी मतलब?" उसने हैरानी से पुचछा
"आपकी स्टेपमदर, भूमिका सोनी, वो भी मिली थी मुझसे. वो अपने पति के आखरी दीनो के बारे में बात करना चाहती थी" मैने कहा
"तो वो मिल चुकी है आपसे" रश्मि ने इतना ही कहा और कमरे में खामोशी छा गयी. अपनी सौतेली माँ के नाम भर से ही उसके चेहरे के अंदाज़ जैसे बदले थे वो मुझसे छिप नही पाए थे.
"नही आहमेद साहब" थोड़ी देर बाद वो बोली "मैं ये नही चाहती. मैं चाहती हूँ के आप मेरे पिता के क़ातिल को ढूँढने में मेरी मदद करें. कीमत जो आप कहें"
उसकी बात सुनकर मैं जैसे सन्न रह गया. समझ नही आया के वो एग्ज़ॅक्ट्ली चाहती क्या है और मैं क्या जवाब दूँ.
"जी?" मैं बस इतना ही कह सका
"जी हाँ" उसने जवाब दिया "मैं अपने डॅड की मौत को यूँ ही दफ़न नही होने दूँगी. मैं चाहती हूँ के आप मेरी मदद करें और क़ातिल को सज़ा दिलवाएँ. कीमत जितनी आप कहें उतनी और जब आप कहें तब"

उसकी बात सुनकर मैं फिर से खामोश हो गया. वो एक ऐसी औरत थी जिसको इनकार दुनिया का कोई भी मर्द नही कर सकता था, भले वो जान ही क्यूँ ना माँग ले. पर मेरे दिमाग़ का कोई हिस्सा मुझे इस लफदे में पड़ने से रोक रहा था. ये सारा का सारा केस सीबीआइ मुझपर भी थोप सकती थी.

"आइ आम सॉरी पर इस मामले में मैं आपकी कोई मदद नही कर पाऊँगा" मैने बिना उसकी तरफ देखे ही कहा
"सो यू आर रेफ्यूसिंग टू हेल्प मी?" थोड़ी देर बाद वो बोली
"ई आम नोट" मैने कहा "पर मैं एक वकील हूँ कोई जासूस नही. आपको मदद के लिए पोलीस के पास जाना चाहिए और अगर आपको तसल्ली ना ही तो कोई प्राइवेट डीटेक्टिव हाइयर कर लीजिए"
उसकी चेहरे पर फेली उदासी मेरा इनकार सुनकर और बढ़ गयी और मेरा कलेजा मेरे मुँह को आ गया. उस चाँद से चेहरे पर वो गम देखते ही मेरा दिल किया के मैं आगे बढ़कर उसको अपनी बाहों में ले लूँ.
"दे से दट ए वुमन'स विट कॅन डू मोरे दॅन ए मॅन'स लॉजिक." वो बोली "इसलिए मुझे लगता है के अगर मैं और आप साथ मिलका सोचें तो शायद क़ातिल को पकड़ सकते हैं"
मैं कुच्छ ना बोला. मुझे खामोश देखकर उसने दूसरा सवाल किया
"आपको शक है किसी पर?"
जाने क्यूँ पर मैने हाँ में सर हिला दिया
"मुझे भी" वो बोली और फिर ना जाने कैसे पर शब्द मेरे मुँह से मानो अपने आप ही निकलते चले गया
"भूमिका?" मैने पुचछा तो उसने फ़ौरन मेरी तरफ देखा
"आपको कैसे पता के मुझे भूमिका पर शक है?" वो बोली
"क्यूंकी मुझे भी उसी पर शक है" मैं जैसे किसी पिंजरे में बैठे तोते की तरह सब गा गाकर सुना रहा था.
"अपने सही सोचा" वो पक्के इरादे से बोली "मुझे शक नही पूरा यकीन के उस औरत जो अपने आप को मेरी माँ कहती है, उसी ने मेरे डॅडी को मारा है"
"मेरा ख्याल है के आप ग़लत सोच रही हैं" मैने कहा
"पर अभी तो आप कह रहे थे के आपको खुद भी शक है भूमिका पर"
"है नही था" मैने बात बदलते हुए कहा "पर हमारे पास इस बात के सबूत हैं के खून के वक़्त वो कहीं और मौजूद थी"
"लाइक नेयरो फिडलिंग वेन रोम वाज़ बर्निंग" वो हल्के गुस्से से बोली "आप मेरी बात का मतलब नही समझे. मैं ये नही कहती के भूमिका ने खुद ही मेरे डॅडी को मारा है पर मरवाया उसी ने है"
"और किससे मरवाया?" मैने सवाल किया
"उस हैदर रहमान से" जवाब मेरे सवाल के साथी ही आया
"हैदर रहमान?" मैने नाम दोहराया
"हाँ. एक कश्मीरी और मेरी सौतेली माँ का लवर बॉय"

"मुझे पूरा यकीन है के उस हैदर रहमान और भूमिका ने ही मिलके मेरे डॅडी को मारा है" रश्मि ने कहा.
"मेरे ख्याल से हमें इतनी जल्दी किसी नतीजे पर नही पहुँचना चाहिए और इस वक़्त तो मुझे इस हैदर रहमान के बारे में भी कुच्छ नही पता" मैने कहा
"उसके बारे में आपको सब कुच्छ मैं बता दूँगी पर काफ़ी लंबी कहानी है"
"जितनी लंबी और डीटेल में ही उतना ही अच्छा है" मुझे खुद को खबर नही थी के मैं ये सब क्यूँ पुच्छ रहा था.
"मेरे पापा कुच्छ साल पहले घूमने के लिए कश्मीर गये थे, मैं भी साथ थी और वहीं उनकी मुलाक़ात भूमिका और उसके बाप से हुई. इन फॅक्ट जब वो पहली बार उनसे मिले तो मैं साथी ही थी" रश्मि ने कहा
"और आपको भूमिका कैसी लगी?" मैने पुछा
"कैसी लगी?" रश्मि ने कहा "वो और उसका बाप दोनो ही जैल से भागे हुए मुजरिम लगे मुझे और भूमिका लुक्ड सो पाठेटिक"

वो फिर आधी इंग्लीश और हिन्दी में बोल रही थी और भूमिका के बारे में बताते हुए उसके चेहरे पर गुस्से के भाव फिर भड़के जा रहे थे.
"वो एक ऐसी औरत है जो अपनी ज़ुबान से किसी को भी पागल कर सकती है और यही उसने मेरे डॅड के साथ भी किया. पहले मुझे इस बात पर मजबूर कर दिया के मैं घर छ्चोड़कर चली जाऊं और फिर मेरे बेचारे पापा को उनके अपने ही घर से निकाल दिया. शी ईज़ आ विच, एक चुड़ैल है वो और मैं उससे नफ़रत करती हूँ इशान. आइ हेट हर विथ ऑल माइ हार्ट आंड सौल"

बात ख़तम करते करते रश्मि तकरीबन गुस्से में चीखने लगी थी. गुस्सा उसकी आँखों में उतर गया था और उसके हाथों की दोनो मुत्ठियाँ बंद हो चुकी थी. अब तक वो मुझे मिस्टर आहमेद के नाम से बुला रही थी पर गुस्से में उसने मुझे पहली बार इशान कहा था. पर उस गुस्से ने भी जैसे उसके हुस्न में चार चाँद लगा दिए थे. उस वक़्त उसको देख कर मुझे एक पुराना शेर याद आ गया.


जब कोई नज़नीं, बिगड़ी हुई बात पर,
ज़ुलफ बिखेरकर,
यूँ बिगड़ी बिगड़ी सी होती है,
तो ये ख्याल आता है,
कम्बख़्त मौत भी कितनी हसीन होती है


मुझे अपनी तरफ यूँ देखता पाकर वो संभाल गयी और हल्के से शरमाई. उसका वो शरमाना था के मेरे दिल पर तो जैसे बिजली ही गिर पड़ी. और फिर वो हल्के से हस दी.
"मैं मानती हूँ के मैं भी कोई कम नही हूँ" वो हस्ते हुए बोली "गुस्से में ऐसी ही हो जाती हूँ पर क्या करूँ, उस औरत के बारे में सोचती हूँ तो दिमाग़ फटने लगता है जैसे"
"फिलहाल के लिए आप अपनी नफ़रत भूल जाएँ और मुझे सब ठंडे दिमाग़ से बताएँ" मैने कहा तो उसने हाँ में गर्दन हिला दी.

"मोम की डेत के बाद डॅडी काफ़ी परेशान से रहने लगे थे और उनकी तबीयत भी ठीक नही रहती थी" उसने बताना शुरू किया "काफ़ी चाहते थे वो मोम को इसलिए उनके जाने के बाद टूट से गये थे. जब एक बार उनकी तबीयत थोड़ा ज़्यादा खराब हुई तो डॉक्टर्स ने उन्हें कुच्छ दिन के लिए मुंबई से दूर किसी हिल स्टेशन में जाने की सलाह दी. और यही वो मनहूस घड़ी थी जब मैने और डॅडी ने कश्मीर जाने का फ़ैसला किया. वहाँ गुलमर्ग में हमारा एक घर है"
उसने कहा तो मुझे मिश्रा की कही वो बात याद आई के इस लड़की के पास देश के तकरीबन हर बड़े हिल स्टेशन में एक बड़ा सा घर है.
"उस वक़्त डॅडी की हालत काफ़ी खराब थी और वो बहुत ज़्यादा शराब पीने लगे थे और मुझे शक था के वो ड्रग्स के चक्कर में भी पड़ गये थे. मुझे लगा के गुलमर्ग में कुच्छ दिन मेरे साथ रहेंगे अकेले तो वहाँ मैं उनको शराब पीने से रोक सकती हूँ. एक ऐसी ही मनहूस शाम को हम स्रीनगार आए थे और वहीं एक रेस्टोरेंट में हमारी मुलाकात भूमिका और उसके बाप से हुई. उस वक़्त उसकी शादी हैदर रहमान से होने वाली थी"

"शादी?" मैं चौंक पड़ा "भूमिका की?"
"हाँ" रश्मि ने कहा "उस वक़्त उसके बाप और भूमिका ने हम पर ऐसे ज़ाहिर किया जैसे के वो लोग बहुत अमीर हैं पर पापा के साथ उसकी शादी के बाद ही मुझे पता चला वो सब दिखावा था. वो हैदर रहमान किसी नवाब के खानदान से है इसलिए पैसे के चक्कर में पहले भूमिका उससे शादी कर रही थी पर जब मेरे पापा से मिली और ज़्यादा दौलत दिखी तो उसने हैदर रहमान को छ्चोड़ मेरे पापा को अपने जाल में फसा लिया"
"वो प्यार करती थी उस हैदर से?" मैने सवाल किया
"करती थी नही, अब भी करती है" रश्मि ने नफ़रत से कहा.
"तो उसने शादी से इनकार क्यूँ किया?"
"दौलत के आगे प्यार अपना रंग खो देता है मिस्टर आहमेद" रश्मि बोली
"प्लीज़ कॉल मे इशान" मैने हल्के से हस्ते हुए कहा "और वो भूमिका अब भी मिलती है हैदर से?"

"जी हाँ" मेरे अपने नाम से बुलाए जाने की बात पर भूमिका मुस्कुराइ "पर उस वक़्त उसने अपनी खूबसूरती का जाल मेरे पापा के चारों तरफ ऐसा बिच्छाया के वो बेचारे फस गये. हम लोग गुलमर्ग में 4 महीने रहे और उन 4 महीनो में भूमिका म्र्स विपिन सोनी बन चुकी थी. उसके बाद हम लोग वापिस मुंबई आ गये और इस बार हमारे साथ भूमिका भी थी. वो मेरे डॅडी की हर कमज़ोरी जानती थी पर उसके रास्ते में सबसे बड़ी मुश्किल में थी. वापिस आकर उस औरत ने मुझे इतना परेशान कर दिया के मैं अक्सर घर से बाहर ही रहने लगी और एक दिन परेशान होकर घर छ्चोड़कर ही चली गयी"

"मतलब उनकी शादी नही चली?" मैने पुचछा
"शादी तो मेरे ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले ही ख़तम हो चुकी थी. शी ओपन्ली इग्नोर्ड माइ फादर इन हिज़ ओन हाउस व्हेन ही ट्राइड टू मेक हर कंडक्ट इन आ मोर बिकमिंग मॅनर, लाइक आ नोबल लेडी. हर बात पर उनसे लड़ती थी. पापा ने जब देखा के वो उस औरत के सामने कमज़ोर पड़ रहे हैं तो वो फिर से शराब पीने लगे और ज़्यादा वक़्त किताबें पढ़ते हुए बिताते. मेरे ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद मुझे कुच्छ फ्रेंड्स के लेटर आते थे के भूमिका मेरे जाने के बाद भी पापा को वैसे ही परेशान करती थी"


क्रमशः............................
 
भूत बंगला पार्ट--10

गतान्क से आगे...................

"फिर एक दिन मुझे पता चला कि मेरे जाने के बाद उसने उस हैदर रहमान को सरे आम घर पर बुलाना शुरू कर दिया था. पापा ने रोकने की कोशिश की या नही ये तो मैं जानती नही पर उसके बाद शायद वो भूमिका तो जैसे पापा के मरने का इंतेज़ार ही करती होगी ताकि वो उस हैदर से शादी कर सके. और इसी बीच मेरे पापा भी घर छ्चोड़कर चले गये, शायद अपनी बीवी को अपने ही घर में किसी और के साथ देखना बर्दाश्त नही हुआ उनसे"
"ऐसा आपको लगता है पर फिर भी हम पक्के तौर पर नही कह सकते के आपके पापा ने घर क्यूँ छ्चोड़ा था" मैने शक जताते हुए कहा
"वो भूमिका क्या कहती है?" रश्मि ने पुचछा
"कोई साफ वजह तो वो भी नही बता पा रही पर......."
"कोई और वजह होगी तो बताएगी ना" रश्मि ने मेरी बात काट दी "मेरी बात मानो इशान उसी ने पापा को मरवाया है"
"हमारे पास कोई सबूत नही है" मैने कहा
"हम ढूँढ सकते हैं" रश्मि बोली
"मुझे नही लगता" मैने इनकार में सर हिलाया
"अगर हम उस घर की तलाशी लें जहाँ पापा रह रहे थे?" रश्मि ने पुचछा
"वो काम पोलीस ऑलरेडी कर चुकी है और मैं भी उस वक़्त साथ था वहीं. यकीन जानिए घर में कुच्छ हासिल नही हुआ" मैने कहा
"मैं खुद एक बार देखना चाहूँगी" रश्मि ने कहा

उस वक़्त उसके चेहरे पर जो एक्सप्रेशन थे उनको देखकर वो अगर मेरी जान भी माँग लेती तो मैं हरगिज़ इनकार ना करता. आँखों में हल्की सी नमी लिए वो मेरी तरफ ऐसी उम्मीद भरी नज़र से देख रही थी जैसे मैं ही अब वो एक आखरी इंसान हूँ जिसपर वो भरोसा कर सकती है. मैं अगर चाहता भी तो ना नही कह सकता था और हुआ भी वही, मैं ना नही कह सका.

मैने रश्मि से कहा के मैं बंगलो 13 के मालिक से बात करके उसको फोन करूँगा. हम थोड़ी देर तक और बैठे बातें करते रहे और फिर मैं होटेल से निकल आया. बाहर रात का अंधेरा घिर चुका था और सड़क सुनसान हो चली थी. मेरी कार खराब कहीं खड़ी थी इसलिए मेरे पास इस बात के अलावा कोई चारा नही था के मैं टॅक्सी से ही घर वापिस जाऊं.

सड़क पर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद भी जब मुझे कोई टॅक्सी नज़र नही आई मैने पैदल ही घर की तरफ चलने का इशारा किया. सड़क के किनारे पर थोड़ी दूर एक टॅक्सी खड़ी ज़ावरूर थी पर उसके खिड़की दरवाज़े सब बंद थे और ना ही ड्राइवर कहीं नज़र आ रहा था. मैने अपना फोन जेब से निकाला और कानो में इयरफोन लगाकर गाने सुनता हुआ पैदल ही घर की तरफ चल पड़ा. मुझे म्यूज़िक हमेशा लाउड वॉल्यूम पर सुनने की आदत थी इसलिए उस वक़्त मुझे इयरफोन से आते हुए गाने के साइवा कुच्छ सुनाई नही दे रहा था.उस वक़्त तक होटेल के बाहर जो एक दो गाड़ियाँ थी वो भी जा चुकी थी और सड़क पर ट्रॅफिक ना के बराबर था.

मुश्किल से मैं 10 कदम ही चला था के मुझे अपने पिछे हेडलाइट्स की रोशनी दिखाई दी. पलटकर देखा तो जो टॅक्सी सड़क के किनारे बंद खड़ी थी मेरी तरफ बढ़ रही थी. मैने राहत की साँस ली के टॅक्सी के लिए भटकना नही पड़ा. हाथ दिखाकर मैने टॅक्सी को रुकने का इशारा किया. टॅक्सी की स्पीड धीमी हुई और वो सड़क के किनारे पर मेरी तरफ बढ़ी. हेडलाइट्स की रोशनी सीधी मेरी आँखों पर पड़ रही थी जिसकी वजह से मुझे टॅक्सी सॉफ दिखाई नही दे रही थी और इसलिए टॅक्सी में बैठा वो दूसरा आदमी मुझे तब तक दिखाई नही दिया जब तक के टॅक्सी मेरे काफ़ी करीब नही आ गयी. मुझसे कुच्छ मीटर्स के फ़ासले पर टॅक्सी की खिड़की से एक हाथ बाहर को निकला.
और उसी वक़्त एक ही पल में बहुत कुच्छ एक साथ हुआ.

टॅक्सी मेरे काफ़ी करीब आ चुकी थी. एक हाथ टॅक्सी से निकला और मुझे उसमें कुच्छ चमकती हुई सी चीज़ नज़र आई.
तभी टॅक्सी ड्राइवर ने हेडलाइट्स हाइ बीम पर कर दी जिससे मेरी आँखें एक पल के लिए बंद हो गयी.
म्यूज़िक अब भी मेरे कानो में फुल वॉल्यूम पर बज रहा था पर फिर भी उसके बीच भी वो आवाज़ मुझे सॉफ सुनाई दी.
"इशान......."
एक ही पल में मैं पहचान गया के ये उसी औरत की आवाज़ है जिसे मैं अक्सर गाता हुआ सुनता हूँ. आवाज़ फिर मेरे ठीक पिछे से आ रही थी. मैं चौंक कर फ़ौरन एक कदम पिछे को हुआ और पलटकर अपने पिछे देखा.
उसी पल टॅक्सी मेरे पिछे से गुज़री और मुझ अपने कंधे पर तेज़ दर्द महसूस हुआ जैसे को जलती हुई चीज़ मेरे अंदर उतार दी गयी हो.
वो औरत मेरे पिछे नही थी.
मैने हाथ अपने कंधे पर रखा और फिर सड़क की तरफ पलटा.
टॅक्सी मुझसे अब दूर जा रही थी. एक हाथ मुझे टॅक्सी के अंदर वापिस जाता हुआ दिखाई दिया जिसमें एक खून से सना हुआ चाकू था. मेरे खून से सना हुआ.
लड़की की कहानी जारी है .......................
हल्की सी आहट से उसकी आँख खुली. वो फ़ौरन बिस्तर में उठकर बैठ गयी और ध्यान से सुनने लगी के आवाज़ क्या थी. कुच्छ देर तक कान लगाकर सुनने के बाद उसको एहसास हो गया के शायद वो कोई सपना देख रही थी और फिर बिस्तर पर करवट लेकर लेट गयी.

वो घर के सामने बने छ्होटे से आँगन में चारपाई डालकर सोती थी. गर्मी हो या सर्दी, उसको वहीं सोना पड़ता था और हाल ये था के अगर बारिश हो जाए, तो वो रात भर नही सो पाती थी क्यूंकी घर के दरवाज़े फिर भी उसके लिए नही खुलते थे और ना ही उसकी हिम्मत होती थी के नॉक करे. बस कहीं एक कोने में बारिश से बचने के लिए छुप जाती थी.

ये सिलसिला कुच्छ साल पहले शुरू हुआ था और इसकी वजह भी वो अच्छी तरह से जानती थी. चाचा चाची का वो खेल जो वो अक्सर रात को खेला करते थे. बचपन से ही वो ये खेल अक्सर हर दूसरी रात देखा करती थी. अक्सर रात में किसी आहट से उसकी आँख खुलती और अंधेरे में जब वो गौर से देखती तो अपने चाची को टांगे फेलाए लेटा हुआ पाती और चाचा उनके उपेर चढ़े हुए टाँगो के बीच उपेर नीचे हो रहे होते. कमरे के अंधेरे में कुच्छ ख़ास नज़र तो नही आता था पर जितना भी दिखाई देता था उसको देखकर उसके दिल में एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. वो अक्सर रात को उस खेल का इंतेज़ार किया करती थी और इसी चक्कर में देर रात तक जागती रहती थी. वो अच्छी तरह से जानती थी के जो कुच्छ भी वो खेल था, वो उसके देखने के लिए नही था इसलिए अक्सर रात को चाचा उसकी चाची से कहता था के थोड़ी देर रुक जाए ताकि सब सो जाएँ.

और फिर एक दिन जब उसको बाहर सोने के लिए कहा गया तो जैसे उसका दिल ही टूट गया. उसके हर रात वो खेल देखने की आदत सी हो गयी थी. वो जानती थी के ये वही खेल है जो चाचा अक्सर दिन में अकेले में उसके साथ खेला करता था और रात को चाची के साथ. पर चाची के साथ वो थोड़ा अलग होता था. उसके साथ तो चाचा सिर्फ़ उसको लंड हिलने को कहता था पर चाची के साथ तो जाने क्या क्या करता था. अंधेरे में वो बस उन दोनो को उपेर नीचे होता हुआ देखता रहती थी. और फिर जबसे वो बाहर सोने लगी तबसे चाचा चाची का वो खेल देखना उसके लिए बंद हो गया.

फिर जब चाचा ने एक दिन उसके पिछे अपना वो घुसाया तो वो समझ गयी के वो चाची के साथ रात को क्या करता था. पर उसको हैरत थी के चाची कुच्छ नही कहता थी जबकि उसे तो कितना दर्द हुआ था. वो दर्द के मारे बेहोश हो गयी थी और बाद में उसको बुखार भी हो गया था. वो ठीक से चल भी नही पा रही थी. इसका नतीजा ये हुआ के चाचा खुद बहुत डर गया था और फिर उसने दोबारा ये कोशिश नही की और फिर से उस खेल को सिर्फ़ लंड हिलाने तक ही सीमित रखा.

"सुनो" आवाज़ सुनकर उसके कान खड़े हो गये. आवाज़ चाची की थी जो कमरे के अंदर से आ रही थी.
थोड़ी देर तक खामोशी रही.
"सुनो ना" चाची की आवाज़ दोबारा आई.
"क्या है?" चाचा की नींद से भरी गुस्से में आवाज़ आई.
"छोड़ो ना. मैं गरम हो गयी हूँ. नींद भी नही आ रही इस वजह से" चाची ने कहा तो वो फ़ौरन समझ गयी के वही खेल दोबारा शुरू होने वाला है. पर अफ़सोस के वो ये खेल देख नही सकती थी.
"उपेर आओ ना" थोड़ी देर बाद फिर से चाची की आवाज़.
उसके बाद जवाब में उसको कुच्छ अजीब सी आआवाज़ आई जैसे चाची को मारा हो या धक्का दिया हो और फिर चाची के करहने की आवाज़ से उसको पता चल गया के ऐसा ही हुआ है.
"रांड़ साली सोने दे" चाचा की आवाज़ फिर गुस्से में थी "जब देखो चूत खोले पड़ी रहती है"

उसको बाद फिर थोड़ी देर तक कोई आवाज़ नही आई. वो भी समझ गयी थी के हमेशा की तरह चाची ही ये खेल खेलना चाहती है पर आज रात चाचा मना कर रहा है. हर रात यही होता था. पहेल उसकी चाची ही करती थी और थोड़ी देर तक उसको चाचा को मनाती रहती थी खेल के लिए.

कुच्छ पल बाद कमरे का दरवाज़ा खुला. उसने फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर ली और फिर हल्की सी खोलकर दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर चाची खड़ी थी और उनके हाथ में एक चादर और तकिया था.

"मरो अकेले अंदर" कहते हुए चाची ने दरवाज़ा बंद कर दिया और फिर उसकी चारपाई के पास ही नीचे ज़मीन में चादर बिछाकर लेट गयी.

चाँदनी रात थी इसलिए हर तरफ रोशनी थी. चाची उसकी चारपाई के पास ही नीचे लेटी हुई थी इसलिए वो आसानी से उनको देख सकती थी. आँखें हल्की सी खोले हुए उसने एक नज़र चाची पर उपेर से नीचे तक डाली.

वो एक ब्लाउस और नीचे पेटिकट पहने उल्टी लेटी हुई थी. चाची हल्की सी मोटी थी पर बहुत ज़्यादा नही. कमर के दोनो तरह हल्की सी चर्बी थी और गांद एकदम उपेर को उठी हुई. उस वक़्त उल्टी लेटी होने की वजह से उनके पेटिकट में उनकी गंद पूरी तरह उभर कर सामने आई हुई थी. वो बस चुपचाप नज़र गड़ाए एकटूक चाची की गांद की तरफ देखती रही.

यूँ तो उसने अपनी चाची को कई बार रात के खेल में पूरी तरह नंगी देखा था पर उस वक़्त कमरे में बिल्कुल अंधेरा होता था. वो सिर्फ़ उनके जिस्म को देखकर ये अंदाज़ा लगा लेती थी के दोनो चाचा चाची नंगे हैं पर वो नज़र नही आते थे. अंधेरे में बस उनकी जिस्म का काला अक्स ही दिखाई देता था. उससे पहले भी घर में अक्सर काम करते वक़्त जब चाची झुकती तो उनकी बड़ी बड़ी छातिया जैसे ब्लाउस से बाहर गिरने को तैय्यार रहती जिन्हें वो अक्सर छुप्कर देखा करती. चाची को देख कर उसके दिमाग़ में अक्सर ये ख्याल आता था के उसकी खुद की इतनी बड़ी क्यूँ नही हैं.

पर उस दिन शाम को जब वो वापिस आई थी तब उसने पहली बार चाची को पूरी तरह नंगी देखा था जब वो उस आदमी के साथ वही खेल खेल रही थी और बस देखती रह गयी थी. चाचा का लंड वो अक्सर देखा करती थी इसलिए उसमें उसके लिए कुच्छ नया नही था पर पहली बार वो एक पूरी जवान औरत को पूरी तरह से नंगी देख रही थी. वो नज़ारा जैसे उसके दिमाग़ पर छप सा गया था. उसके बाद भी कई दिन तक वो जब चाची की तरफ देखती तो उसको वही टांगे फेलाए नंगी पड़ी चाची ही दिखाई देती. हाल ये हो गया था के खाना खाते वक़्त जब चाची मुँह खोलती तो उसको यही याद आता था के कैसे चाची ने उस आदमी के सामने मुँह खोला था और कैसे उसने लंड में से वो सफेद सी चीज़ उनके मुँह में गिराई थी.

पर उस सारे खेल में भी जो एक हिस्सा वो नही देख पाई थी वो थी चाची की गांद. चाची पूरे खेल में इस तरह से रही के एक बार भी उनकी गांद पूरी तरह से उसके सामने नही आई. अब भी चाची की तरफ देखती हुई वो यही सोच रही थी के चाची की नंगी गांद कैसी दिखती होगी और कहीं दिल में ये चाह रही थी के कास ये पेटिकट हट जाता.

चाची ने हल्की सी हरकत की तो उसने फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर ली और फिर थोड़ी देर बाद हल्की सी खोली. अब सामने नज़ारा हल्का सा बदल चुका था. चाची अब भी उसी तरह उल्टी पड़ी हुई थी पर उनकी गांद हल्की सी हवा में उठी गयी थी. उसके दिल की धड़कन तब एकदम रुक सी गयी जब उसने देखा के उनका पेटिकट उपेर तक सरका हुआ था. इतना उपेर तक के उनकी जाँघो का पिच्छा हिस्सा पूरा नंगा था और पेटिकट बस गांद को ही ढके हुए हल्का सा नीचे तक जा रहा था. वो हैरत में पड़ी देखती रही के चाची क्या कर रही है. चाची के घुटने मुड़े हुए थे जिसकी वजह से गांद हल्की हवा में थी और जब उसने ध्यान दिया तो देखा के चाची का एक हाथ नीचे था. सामने की तरफ से ब्लाउस पूरा उपेर तक उठा हुआ था और चाची का एक हाथ उनकी टाँगो के बीच हिल रहा था. उसको कुच्छ समझ नही आया के क्या हो रहा है और चाची क्या कर रही है.

थोड़ी देर तक चाची उसी पोज़िशन में रही. उल्टी पड़ी हुई, घुटने हल्के मुड़े हुए, गांद हल्की सी हवा में उठी हुई, मुँह तकिया में घुसा हुआ, पिछे से बाल बिखरे हुए और एक हाथ सामने से नीचे उनकी टाँगो के बीच घुसा हुआ. वो देखती रही के चाची के हाथ की हरकत तेज़ होती जा रही थी और उनकी गांद भी हल्की सी हिल रही थी. तभी उन्होने एक तेज़ झटका मारा और उनका पूरा जिस्म काँप गया और वो पल था जब शायद भगवान ने उसके दिल की सुन ली थी.

यूँ झटका लगने के कारण पेटिकट का वो हिस्सा जो गांद को ढके हुए था और सरक गया. चाची की गांद उपेर को उठी हुई थी इसलिए पेटिकट सरक कर उनकी कमर तक आ गया और अगले ही पल चाची कमर के नीचे पूरी तरह नंगी हो गयी. उसकी तो जैसे दिल की मुराद पूरी हो गयी. चाची की गांद आज पहली बार पूरी तरह उसके सामने नंगी थी जिसे वो हैरत से देखे जा रही थी. जितनी बड़ी बड़ी चाची की छातिया थी उतनी ही बड़ी उनकी गांद भी थी. हवा में उठी हुई उनकी भारी गांद को धीरे धीरे हिलता हुआ देखकर उसका कलेजा जैसे उसके मुँह को आ गया थी. पर एक चीज़ जो उसको अब भी नज़र नही आ रही थी के चाची हाथ से क्या कर रही है. पेटिकोट कमर पर पड़ा होने के कारण उनका हाथ पेटिकोट में घुसा हुआ था जिसको वो देख नही पा रही थी.

अचानक चाची फिर से कराही, बदन काँपा था और वो फिर से पूरी तरह सीधी लेट गयी. घुटने सीधे कर लिए पर पेटिकोट नीचे नही किया जिसकी वजह से उनकी गांद अब भी उसके सामने थी. वो उपेर चारपाई पर पड़ी नीचे लेटी अपनी चाची को कभी हैरत से देखती तो कभी यूँ सोचती के उसका खुद का जिस्म ऐसा क्यूँ नही है.
"हे भगवान" चाची ने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हों.
और फिर चाची पलटी और सीधी होकर लेट गयी. उनके सीधे होते ही उसने फिर से आँखें बंद कर ली और फिर थोड़ी देर बाद हल्की सी खोलकर चाची पर नज़र डाली. सामने का मंज़र फिर बदल चुका था. अब चाची सीधी लेटी हुई थी पर नीचे से अब भी नंगी थी. पेटिकोट कमर तक चढ़ा हुआ था और सामने से उनके पेट पर पड़ा हुआ था. चाची के घुटने मुड़े हुए थे और दोनो टांगे हल्की सी हवा में उठी हुई थी. एक हाथ अब भी टाँगो के बीच हिल रहा था जिसे वो इस बार भी पेटिकोट की वजह से देख नही पा रही थी. वो उस अजीब से अंदाज़ में पड़ी अपनी चाची को बस देखती रही जिनका एक हाथ टाँगो के बीच हिल रहा था और दूसरा उनकी चूचियो को एक एक करके दबा रहा था. चाची के मुँह से अजीब सी आह आह की आवाज़ आ रही थी जो उनकी हाथ की तेज़ी के साथ ही कभी बढ़ती तो कभी कम हो जाती.

वर्तमान मे.............................
उस रात ज़ख़्म खाने के बाद मैं एक दूसरी टॅक्सी लेकर घर वापिस आया था. मेरे कंधे पर टॅक्सी में बैठे उस दूसरे आदमी ने चाकू से वार किया था जो किस्मत से ज़्यादा गहरा नही हुआ. बस चाकू कंधे को च्छुकर निकल गया था जिसकी वजह से कंधे पर एक लंबा सा कट आ गया था. मेरा खून बह रहा था और शर्ट खून से सनी हुई थी. वहाँ से मैं टॅक्सी लेकर एक डॉक्टर के पास गया जो मेरी पहचान का था. उसको मैने ये बहाना मार दिया के किसी से झगड़ा हो गया था और क्यूंकी मैं उसको जानता था इसलिए उसने पोलीस को फोन भी नही किया.

एक पल को मेरे दिमाग़ में ये ख्याल आया के मैं मिश्रा को फोन करके सब बता दूँ पर फिर मैने इरादा बदल दिया. मेरे ऐसा करने से काफ़ी सवाल उठ सकते थे जैसे के मैं वहाँ क्या कर रहा था और रश्मि से मिलने क्यूँ गया था. मिश्रा मेरा दोस्त सही पर एक ईमानदार पोलिसेवला था और मैं जानता था के अगर उसको मुझपर खून का शक हुआ तो वो मुझे अरेस्ट करने से भी नही रुकेगा.

रात को मैं घर पहुँचा तो देवयानी और रुक्मणी दोनो सो चुके थे. ये भी अच्छा ही हुआ वरना मुझे उनको बताना पड़ता के मेरी शर्ट खून से सनी हुई क्यूँ है. घर पहुँचकर मैने अपने लिए एक कप कॉफी बनाई और उस दिन की घटना के बारे में सोचने लगा था.

ये बात ज़ाहिर थी के वो जो कोई भी टॅक्सी में था, मुझपर हमले के इरादे से ही आया था इसलिए होटेल के बाहर टॅक्सी में मेरा इंतेज़ार कर रहा था. पर सवाल ये था के वो कौन था और ऐसा क्यूँ चाहता था और मुझे एक चाकू मारकर क्या साबित करना चाहता था? या उसका इरादा कुच्छ और था? क्या वो मुझे सिर्फ़ चाकू मारना चाहता था या मेरा खेल ही ख़तम करना चाहता था?

और तभी मेरे दिमाग़ में जो ख्याल आया उसे सोचकर मैं खुद ही सिहर उठा. उस आदमी के हाथ में जो चाकू था वो यक़ीनन काफ़ी बड़ा और ख़तरनाक था. वो चाकू मेरे कंधे के पिच्छले हिस्से पर बस लगा ही था पर जहाँ तक वो मेरे कंधे पर खींचा, वहीं तक काट दिया. जब वो टॅक्सी मेरी तरफ बढ़ी थी उस वक़्त मैं सीधा खड़ा था तो इसका मतलब अगर मैं पलटा आखरी सेकेंड पर एक कदम पिछे होकर पलटा ना होता तो वो चाकू का वार सीधा मेरी गर्दन पर पड़ता और ज़ाहिर है के वो चाकू अगर मेरी गर्दन पर खींच दिया गया होता तो मैं वहीं किसी बकरे की तरह हलाल हो जाता.

फिर मेरा ध्यान अपने पिछे से आई उस आवाज़ की तरफ गया. वो आवाज़ ठीक उसी वक़्त आई थी जब ड्राइवर ने लाइट्स को हाइ बीम पर किया था. मतलब वार होने से बस कुच्छ सेकेंड्स पहले. और उसी आवाज़ की वजह से ही मैं पलटा था. अगर वो औरत मेरे पिछे से मेरा नाम ना बुलाती तो मैं वैसा ही खड़ा रहता और वार सीधा मेरी गर्दन पर होता. मतलब देखा जाए तो वो आवाज़ ही थी जिसकी वजह से मैं अब तक यहाँ ज़िंदा बैठा था.

मेरा दिमाग़ घूमने लगा. कुच्छ समझ नही आ रहा था. क्या है ये आवाज़? शायद मैं एक पल के लिए इसको अपना भ्रम मान भी लेता पर आज जिस तरह से उस आवाज़ ने मेरी जान बचाई थी, उससे इस बात को नही नकारा जा सकता था के ये सिर्फ़ मेरा वहाँ नही है. पर अगर भ्रम नही है तो क्या है?
और मुझपर हमला? कोई मेरी जान क्यूँ लेना चाहेगा? मेरा तो किसी से झगड़ा भी नही.

और फिर जैसे मुझे मेरे सवाल का जवाब खुद ही मिल गया. वो रेप केस जिसमें मैं इन्वॉल्व्ड था. मुझे एक धमकी भरा फोन आया था जिसको मैं पूरी तरह भूल चुका था. मेरे जान लेने की धमकी मुझे दी गयी थी और फिर कोशिश भी की गयी. पर क्या वो लोग इतने बेवकूफ़ हैं के वकील को यूँ सरे आम मार देंगे? इससे तो बल्कि प्रॉसिक्यूशन का केस और भी मज़बूत हो जाएगा और ये बात अपने आप में उनके खिलाफ एक सबूत बन जाएगी.

सोचते सोचते मेरे सर में दर्द होने लगा तो मैं उठकर बिस्तर पर आ गया और आँखें बंद कर ली. पर नींद तो जैसे आँखों से बहुत दूर थी. मुझे समझ नही आ रहा था के मिश्रा को सब बताउ या ना बताउ? और तभी फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कानो में आई. एक पल के लिए मैने सोचा के उठकर देखूं के ये आख़िर है तो क्या है पर मैं उस वक़्त काफ़ी थका हुआ था. और फिर वही हुआ जो हमेशा होता था, मैं अगले कुच्छ मिनिट्स के अंदर ही नींद के आगोश में जा चुका था.

क्रमशः...............................
 
भूत बंगला पार्ट--11

गतान्क से आगे................

इशान

सुबह मेरी आँख खुली तो मेरा वो कंधा जहाँ चाकू का घाव था बुरी तरह आकड़ा हुआ था. मुझे हाथ सीधा करने में तकलीफ़ हो रही थी पर मैं जानता था के अगर रुक्मणी को पता चला तो वो फ़िज़ूल परेशान होगी. और अगर उसको ज़रा भी ये भनक लग गयी के मैं बंगलो में हुए खून के चक्कर में पड़ा हुआ हूँ तो वो मुझे खुद ही जान से मार देगी इसलिए मेरे लिए ये बहुत ज़रूरी था के कल रात की घटना का ज़िक्र उससे बिल्कुल ना करूँ.

मैं तैय्यर होकर अपने कमरे से बाहर आया तो ड्रॉयिंग रूम में कोई नही था. आम तौर पर इस वक़्त रुक्मणी घर की सफाई में लगी होती थी या किचन में खड़ी दिखाई देती थी पर उस वक़्त वहाँ कोई नही था. मुझे लगा के वो अब तक सो रही है और ये सोचकर मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ा.

कमरे का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था. मैने हल्के से नॉक किया तो अंदर से कोई जवाब नही आया. मैने हल्का सा धक्का दिया तो दरवाज़ा खुलता चला गया. मैं कमरे के अंदर दाखिल हुआ और एक नज़र बेड पर डाली. वो एक किंगसिज़े बेड था जिसपर रुक्मणी और देवयानी साथ सोते थे. यूँ तो घर में और भी कई कमरे थे पर दोनो बहने साथ सोती थी ताकि देर रात तक गप्पे लड़ा सकें. उस वक़्त बेड बिल्कुल खाली था. मैने कमरे में चारो तरफ नज़र डाली और जब नज़र अटॅच्ड बाथरूम की तरफ गयी तो बस वहीं जम कर रह गयी.

बाथरूम का दरवाज़ा पूरी तरह खुला हुआ था और अंदर एक औरत का पूरा नंगा जिस्म मेरी नज़र के सामने था. वो मेरी तरफ पीठ किए खड़ी थी और शवर से गिरता हुआ पानी उसके जिस्म को भीगो रहा था. एक नज़र उसपर पड़ते ही मैं समझ गया के वो देवयानी है. यूँ तो मुझे फ़ौरन अपनी नज़र उसपर से हटा लेनी चाहिए थी पर उस वक़्त का वो नज़ारा ऐसा था के मेरे पावं जैसे वहीं जाम गये. सामने खड़े उस नंगे जिस्म को मैं उपेर से नीचे तक निहारता रहा. रुक्मणी और देवयानी में शकल के सिवा एक फरक ये भी था के देवयानी जिम और एरोबिक्स क्लास के लिए जाती थी जिसकी वजह से उसका पूरा जिस्म गाथा हुआ था. कहीं भी ज़रा सी चर्बी फालतू नही थी जबकि रुक्मणी एक घरेलू औरत थी. चर्बी उसपर भी नही थी पर जो कसाव देवयानी के जिस्म में था वो रुक्मणी के जिस्म में नही था. उसकी कमर 26 से ज़्यादा नही थी पर गांद में बला का उठान था. उसका पूरा शरीर जैसे एक साँचे में ढला हुआ था.

"क्या देख रहे हो इशान?"
मैं उसको देखता हुआ अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था के देवयानी की आवाज़ सुनकर जैसे नींद से जागा. वो जानती थी के पिछे खड़ा मैं उसको नंगी देख रहा हूँ. ये ख्याल आते ही मैं जैसे शरम से ज़मीन में गड़ गया.. अचानक वो मेरी तरफ पलटी और उसके साथ ही मैं भी दूसरी तरफ पलट गया. अब मेरी पीठ उसकी तरफ थी और वो मेरी तरफ देख रही थी.

"क्या देख रहे थे?" उसने फिर से सवाल किया
"आपको दरवाज़ा बंद कर लेना चाहिए था. मैं रुक्मणी को ढूंढता हुआ अंदर आ गया और बाथरूम का दरवाज़ा भी खुला हुआ था इसलिए ....... " मुझे समझ नही आया के इससे आगे क्या कहूँ.

"रुक्मणी तो सुबह सुबह ही मंदिर चली गयी थी और रही दरवाज़े की बात, घर में तुम्हारे सिवा कोई और है ही नही तो दरवाज़ा क्या बंद करना. और तुम? तुमसे भला कैसी शरम" वो मेरे पिछे से बोली
"मतलब?" मैने सवाल किया
"इतने भी भोले मत बनो इशान" उसकी आवाज़ से लग रहा था के वो अब ठीक मेरे पिछे खड़ी थी "मैं जानती हूँ के तुम्हारे और मेरी बहेन के बीच क्या रिश्ता है. उसने मुझे नही बताया पर बच्ची नही हूँ मैं. इतने बड़े घर में तुम फ्री में रहते हो और किराए के बदले मेरी बहेन को क्या देते हो ये भी जानती हूँ मैं"

उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया. ये बात वो एक बार पहले भी कह चुकी थी और इस बार ना जाने क्यूँ मैने उसको जवाब देने का फ़ैसला कर लिया और इसी इरादे से मैं उसकी तरफ पलटा.

मुझे उम्मीद थी के मुझे वहाँ खड़ा देखकर उसने कुच्छ पहेन लिए होगा पर पलटकर देखते ही मेरा ख्याल ग़लत साबित हो गया. वो बिना कुच्छ पहने वैसे ही नंगी बाथरूम से बाहर आ गयी थी और मेरे पिछे खड़ी थी. उसको नंगी देखकर मैं फ़ौरन फिर से दूसरी तरफ पलट गया. यूँ तो मैने बस एक पल के लिए ही नज़र उसपर डाली थी पर उस पल में ही मेरी नज़र उसकी चूचियो से होकर उसकी टाँगो के बीच काले बालों तक हो आई थी.
"क्या हुआ?" वो बोली "पलट क्यूँ गये? मेरी बहेन पसंद है, मैं पसंद नही आई?"
मैने जवाब नही दिया
"देखो मेरी तरफ इशान" उसने दोबारा कहा

अगर मैं चाहता तो उसको वहीं बिस्तर पर पटक कर चोद सकता था और एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में ऐसा करने का ख्याल आया भी. पर सवाल रुक्मणी का था. मैं जानता था के वो मुझे बहुत चाहती है और अगर अपनी बहेन के साथ मेरे रिश्ते की भनक भी उसको पड़ गयी तो उसका दिल टूट जाएगा. रुक्मणी के दिल से ज़्यादा फिकर मुझे इस बात की थी के वो मुझे घर से निकाल देगी और इतने आलीशान में फ्री का रहना खाना हाथ से निकल जाएगा. एक चूत के लिए इतना सब क़ुरबान करना मुझे मंज़ूर नही था.

देवयानी पिछे से मेरे बिल्कुल मेरे करीब आ गयी. उसका एक हाथ मेरी साइड से होता हुआ सीधा पेंट के उपेर से मेरे लंड पर आ टीका.

"मैं जानती हूँ के तुम भी यही चाहते हो" कहते हुए उसने अपना सर मेरे कंधे पर पिछे से टीका दिया, ठीक उस जगह जहाँ कल रात चाकू की वजह से घाव था.
दर्द की एक तेज़ ल़हेर मेरे जिस्म में दौड़ गयी और जैसे उसके साथ ही मैं ख्यालों की दुनिया से बाहर आ गया. मैं दर्द से कराह उठा जिसकी वजह से देवयानी भी चौंक कर एक कदम पिछे हो गयी.
"क्या हुआ?" उसने पुचछा
"मैं चलता हूँ" मैने कहा और उसको यूँ ही परेशान हालत में छ्चोड़कर बिना उसपर नज़र डाले कमरे से निकल आया.
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"कैसे आना हुआ?" मिश्रा ने चाय का कप मेरे सामने रखते हुए पुचछा
उस दिन कोर्ट में मेरी कोई हियरिंग नही थी इसलिए पूरा दिन मेरे पास था. ऑफीस जाने के बजे मैने प्रिया को फोन करके कहा के मैं थोड़ा देर से आऊंगा और सीधा पोलीस स्टेशन जा पहुँचा.

"वो तुझे बताया था ना मैने के बंगलो 13 के बारे में एक बुक लिखने की सोच रहा हूँ?" मैने कहा
मिश्रा ने हां में सर हिलाया
"तो मैं सोच रहा था के उसके पुराने मलिक के बारे मीं कुच्छ पता करूँ और वहाँ हुए पहले खून के बारे में कुच्छ और जानकारी हासिल करूँ" मैने कहा
मिश्रा ने सवालिया नज़र से मेरी तरफ देखा जैसे पुच्छ रहा हो के मैं उससे क्या चाहता हूँ.

"तो मैं सोच रहा था के क्या मैं अदिति मर्डर केस की फाइल पर एक नज़र डाल सकता हूँ?" मैने पुचछा
मिश्रा ने थोड़ी देर तक जवाब नही दिया. बस मेरी तरफ खामोशी से देखता रहा.
"पक्का किताब के लिए ही चाहिए ना इन्फर्मेशन?" उसने पुचछा
"नही. गाड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए चाहिए. अदिति के भूत से प्यार हो गया है मुझे" मैने कहा तो हम दोनो ही हस पड़े.
"पुचछा पड़ता है यार. क्लासिफाइड इन्फर्मेशन है और साले तू दोस्त है इसलिए तुझे दे रहा हूँ. आए काम कर इधर आ" मिश्रा ने एक कॉन्स्टेबल को आवाज़ दी

मिश्रा के कहने पर वो कॉन्स्टेबल मुझे लेकर रेकॉर्ड रूम में आ गया. अदिति मर्डर केस बहुत पुराना था इसलिए वो फाइल ढूँढने में हम दोनो को एक घंटे से ज़्यादा लग गया. फाइल मिलने पर मैं वहीं एक डेस्क पर उसको पढ़ने बैठ गया और जो इन्फर्मेशन मेरे काम को हो सकती थी वो सब अलग लिखने लग गया. मुझे कोई अंदाज़ा नही था के मैं ये सब क्यूँ कर रहा था. सोनी मर्डर केस का इस मर्डर से कोई लेना देना नही था सिवाय इसके के दोनो एक ही घर में हुए थे. सोनी मर्डर पर मेरी मदद रश्मि सोनी को चाहिए थी पर अदिति मर्डर केस में मुझसे किसी ने मदद नही माँगी थी और इतनी पुरानी फाइल्स खोलने के मेरे पास कोई वजह भी नही थी सिवाय इसके के उस बंगलो में अक्सर रातों में लोगों ने किसी को गाते सुना था और आजकल मुझे भी एक गाने की आवाज़ तकरीबन हर रोज़ सुनाई देती थी.

आधे घंटे की मेहनत के बाद मैने फाइल बंद कर दी. जो इन्फर्मेशन मुझे अपने काम की लगी और जो मैने लिख ली वो कुच्छ यूँ थी.

* अदिति कौन थी और कहाँ से आई थी ये कोई नही जानता था. उसके बारे में जो कुच्छ भी फाइल्स में था वो बस वही था जितना उसने अपने पति को खुद बताया था.
* फाइल्स के मुताबिक अदिति के पति ने पोलीस को बताया था के अदिति कहीं किसी गाओं से आई थी. उसके माँ बाप बचपन में ही मर गये थे और किसी रिश्तेदार ने उसको पालकर बड़ा किया था. पर वो उसके साथ मार पीट करते थे इसलिए वो वहाँ से शहेर भाग आई थी ताकि कुच्छ काम कर सके.
* वो देखने में बला की खूबसूरत थी. यूँ तो पोलीस फाइल्स में उसकी एक ब्लॅक & वाइट फोटो भी लगी हुई थी पर उसमें कुच्छ भी नज़र नही आ रहा था. बस एक धुँधला सा चेहरा.
* उसकी खूबसूरती की वजह से उसको नौकरी ढूँढने में कोई परेशानी नही हुई. बंगलो 13 में उसने सॉफ सफाई का काम कर लिया और बाद में उसके मालिक से शादी भी कर ली.
* उसके पति के हिसाब से शादी की 2 वजह थी. एक तो उसकी खूबसूरती और दूसरा उनके बीच बन चुका नाजायज़ रिश्ता. वो घर में सफाई के साथ बंगलो के मालिक का बिस्तर भी गरम करती थी. मलिक एक बहुत ही शरिफ्फ किस्म का इंसान था और उसको लगा के उसने बेचारी उस लड़की का फयडा उठाया है इसलिए अपने गुनाह को मिटाने के लिए उसने घर की नौकरानी को घर की मालकिन बना दिया.
* उसके पति के हिसाब से शादी के बाद ही अदिति के रंग ढंग बदल गये थे. जो एक बात अदिति ने खुद ही उसके सामने कबूल की थी वो ये थी के वो पहले भी किसी के साथ हमबिस्तर हो चुकी थी पर कौन ये नही बताया और ना ही उसके पति ने जाने की कोशिश की क्यूंकी वो गुज़रे कल को कुरेदने की कोशिश नही करना चाहता था.
* अदिति का नेचर बहुत वाय्लेंट था. वो ज़रा सी बात पर भड़क जाती और उसके सर पर जैसे खून सवार हो जाता था. इस बात का पता पोलीस को पड़ोसियों से भी चला था.
* उसके पति ने बताया था के शादी के बाद एक बार खुद अदिति ने ये बात कबुली थी के उसका कहीं पोलीस रेकॉर्ड भी रह चुका था. कहाँ और क्यूँ ये उसने नही बताया.

और सबसे ख़ास बातें

* अदिति की लाश पोलीस को कभी नही मिली. उसके पति के हिसाब से उसने उसको मारा, फिर काटकर छ्होटे छ्होटे टुकड़े किए और जला दिया. ये बात एकीन करने के लायक नही थी क्यूंकी हर किसी ने उस वक़्त इस बात की गवाही दी थी के अदिति का पति बहुत ही शांत नेचर का आदमी था.
* अदिति का खून हुआ इस बात का फ़ैसला सिर्फ़ इस बिना पर हुआ था के उसके पति के जुर्म कबूल किया था पर और वो हथ्यार पेश किया था जिसपर अदिति के खून के दाग थे.
* अदिति गाती बहुत अच्छा थी. उसके पति के हिसाब से हर रात उसके गाने की आवाज़ से ही उसको नींद आती थी.
* आखरी कुच्छ दीनो में उसके पति को शक हो चला था के अदिति का कहीं और चक्कर भी है. अदिति ने अक्सर अपने पति को अपने गाओं के एक दोस्त के बारे में बताया था जिसके साथ वो शहेर आई थी पर खून के बाद पोलीस उस आदमी का कुच्छ पता नही लगा सकी.
* उसके पति के हिसाब से, अदिति को उसकी जानकारी के बाहर एक बच्चा भी था, शायद एक बेटी क्यूंकी उसे लगा था के उसने अदिति को अक्सर किसी छ्होटी बच्ची के लिए चीज़ें खरीदते देखा था.

मैं पोलीस रेकॉर्ड रूम से बाहर आया तो मिश्रा कहीं गया हुआ था. पोलीस स्टेशन से निकलकर मैं अपनी गाड़ी में आ बैठा और ऑफीस की तरफ बढ़ गया.

पोलीस स्टेशन से मैं ऑफीस पहुँचा तो प्रिया जैसे मेरे इंतेज़ार में ही बैठी थी.
"कहाँ रह गये थे? कहीं डेट मारके आ रहे हो क्या?" मुझे देखते ही वो बोल पड़ी

मैने एक नज़र उसपर डाली तो बस देखता ही रह गया. ये तो नही कह सकता के वो बहुत सुंदर लग रही थी पर हां मुझे यकीन था के अगर वो उस हालत में सड़क पर चलती तो शायद हर मर्द पलटकर उसको ही देखता. उसने ब्लू कलर की एक शॉर्ट शर्ट पहनी हुई थी और नीचे एक ब्लॅक कलर की जीन्स. वो शर्ट ज़ाहिर था के उसकी बड़ी बड़ी चूचियो की वजह से उसके जिस्म पर काफ़ी टाइट थी और सामने से काफ़ी खींच कर बटन्स बंद किए गये थे. उसको देखने से लग रहा था के शर्ट के बटन अभी टूट जाएँगे और च्चातियाँ खुलकर सामने आ जाएँगी. यही हाल नीचे उसकी जीन्स का भी था. वो बहुत ज़्यादा टाइट थी जिसमें उसकी गांद यूँ उभर कर सामने आ रही थी के अगर वो प्रिया की जगह कोई और होती तो शायद मैं किसी जानवर की तरह उसपर टूट पड़ता.

मेरे दिमाग़ में अब भी अदिति के बारे में वो बातें घूम रही थी इसलिए मैं बस उसको देखकर मुस्कुराया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया. मेरे यूँ खामोशी से जाकर बैठ जाने की वजह से उसको लगा के मैं किसी बात को लेकर परेशान हूँ इसलिए वो मेरी डेस्क के सामने आकर बैठ गयी.

"कुच्छ नही ऐसे ही" मैने उसको कहा "तुमने खाना खाया?"
"मूड खराब है?" उसने सवाल किया "या थके हुए हो?"
"नही ऐसा कुच्छ नही है" मैने हस्ने की फ़िज़ूल कोशिश की जो शायद उससे भी छुप नही सकी.
"मैं जानती हूँ के आपकी थकान कैसे दूर करनी है" कहते हुए वो उठी और घूमकर मेरी टेबल के उस तरफ आई जिधर मैं बैठा हुआ था. ये उसकी आदत थी के जब मैं थका होता तो अक्सर मेरे पिछे खड़े होकर मेरा सर दबाती थी और उसकी ये हरकत असर भी करती थी. उसके हाथों में एक जादू सा था और पल भर में मेरी थकान दूर हो जाती थी.

पर जाने क्यूँ उस वक़्त मेरा मंन हुआ के मैं उसको रोक दूं इसलिए जैसे ही वो मेरी तरफ आई मैने अपना चेहरा उठाकर उसकी तरफ देखा. पर उस वक़्त तक वो मेरे काफ़ी करीब आ चुकी थी और जैसे ही मैने चेहरा उसकी तरफ उठाया तो मेरा मुँह सीधा उसकी एक चूची से जा लगा. लगना क्या यूँ कहिए के पूरा उसकी छाती में ही जा घुसा.
"आइ आम सॉरी" मैने जल्दी से कहा.
"अब सीधे बैठिए" उसने ऐसे कहा जैसे उसको इस बात का कोई फरक ही ना पड़ा हो और मेरे पिछे आ खड़ी हुई.

थोड़ी ही देर बाद मैं आँखें बंद किए बैठा और उसके मुलायम हाथ मेरे सर पर धीरे धीरे मसाज कर रहे थे. कई बार वो मसाज करते हुए आगे को होती या मेरा सर हल्का पिछे होता तो मुझे उसकी चूचिया सर के पिच्छले हिस्से पर महसूस होती. ये एक दो तरफ़ा तकरीना साबित हुआ मेरी थकान उतारने का. एक तो उसका यूँ सर दबाना और पिछे से मेरे सर और गले पर महसूस होती उसकी चूचिया. पता नही वो ये जान भूझकर कर रही थी या अंजाने में या उसको इस बात का एहसास था भी या नही.

"बेटर लग रहा है?" उसने मुझे पुचछा तो मैने हां में सर हिला दिया
थोड़ी देर बाद मेरा सर दबाने के बाद उसके हाथ मेरे फोर्हेड पर आ गये और वो दो उंगलियों से मेरा माथा दबाने लगी. ऐसे करने के लिए उसको मेरा सर पिछे करके मेरा चेहरा उपेर की ओर करना पड़ा. ऐसा करने का सीधा असर ये हुआ के मेरा सर जो पहले उसकी चूचियो पर कभी कभी ही दब रहा था अब सीधा दोनो चूचियो के बीच जा लगा, जैसे किसी तकिये पर रख दिया गया हो. मेरी आँखें बंद थी इसलिए बता नही सकता के उस वक़्त प्रिया के दिमाग़ में क्या चल रहा था या उसके चेहरे के एक्सप्रेशन्स क्या थे पर मैं तो जैसे जन्नत में था. एक पल के लिए मैने सोचा के आँखें खोलकर उसकी तरफ देखूं पर फिर ये सोचकर ख्याल बदल दिया के शायद वो फिर शर्मा कर हट जाए. दूसरी तरफ मुझे खुद पर यकीन नही हो रहा था के मेरी वो सेक्रेटरी जिसे मैं एक पागल लड़की समझता आज उसी को देख कर मैं सिड्यूस हो रहा था.
 
वो काफ़ी देर से मेरा सर दबा रही थी. ऐसा अक्सर होता नही था. वो 5 या 10 मीं मेरा सर दबाके हट जाती थी पर इस बार 20 मिनट से ज़्यादा हो चुके थे. ना इस दौरान मैने ही कुच्छ कहा और ना ही उसने खुद हटने की कोशिश की. अब मेरा सर लगातार उसकी चूचियो पर ही टीका हुआ था और बीच बीचे में उसके मेरे सर पर हाथ से ज़ोर डालने की वजह से चूचियो पर दबने भी लगता था. ऐसा होने पर वो मेरे सर को कुच्छ पल के लिए यूँ ही दबाके रखती और उसकी इस हरकत से मुझे शक होने लगा था के वो ये जान भूझकर कर रही थी.

जाने ये खेल और कितनी देर तक चलता या फिर कहाँ तक जाता पर तभी मेरे सामने रखे फोन की घंटी बजने लगी. घंटी की आवाज़ सुनते ही मैने फ़ौरन अपनी आँखें खोली और प्रिया मुझे एक झटके से दूर हो गयी, जैसे नींद से जागी हो.
"हेलो" मैने फोन उठाया. प्रिया वापिस अपनी डेस्क पर जाकर बैठ चुकी थी.
"मिस्टर आहमेद" दूसरी तरफ से वही आवाज़ आई जिसे सुनकर मैं दीवाना सा हो गया था "मैं रश्मि सोनी बोल रही हूँ"
"हाँ रश्मि जी" मैने कहा
"मैं सोच रही के के क्या आपको बंगलो 13 से बात करने का मौका मिला?"
मैं इस बारे में भूल ही चुका था. मुझे उसको बंगलो दिखाने ले जाना था.
"मैं आपको शाम को फोन करता हूँ" मैने कहा.
फोन रखने के बाद मैं प्रिया की तरफ पलटा तो वो मुस्कुरा रही थी.
"रश्मीईीईईईईई" उसने जैसे गाना सा गया
"सिर्फ़ क्लाइंट है" मैने जवाब दिया
"तो चेहरा इतना चमक क्यूँ रहा है उसकी आवाज़ सुनके" प्रिया बोली तो मैं किसी नयी दुल्हन की तरह शर्मा गया.

ये प्यार भी साला एक अजीब बला होती है. वैसा ही जैसा घालिब जे अपनी एक गाज़ल में कहा था "ये इश्क़ नही आसान बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरिया है और डूबके जाना है". मेरे साथ भी कुच्छ ऐसा ही हो रहा था. रश्मि का ख्याल आते ही समझ नही आता था के हसु या रो पदू. दिल में दोनो तरह की फीलिंग्स एक साथ होती थी. अजीब गुदगुदी सी महसूस होती थी जबकि उससे मिले मुझे अभी सिर्फ़ एक दिन ही हुआ था. उसका वो मासूम खूबसूरत चेहरा मेरे आँखों के सामने आते ही मुझे अजीब सा सुकून मिलता था और उसी के साथ दिल में बेचैनी भी उठ जाती थी.
मैं जब लॉ पढ़ रहा था उस वक़्त एक हॉस्टिल में रहता था.

हॉस्टिल एक ईईडC नाम की कमिट चलती थी. इंडियन इस्लामिक डेवेलपमेंट कमिटी के नाम से वो ऑरजिसेशन उन मुस्सेलमान लड़के और लड़कियों की मदद के लिए बनाई गयी थी जो अपनी पढ़ाई का खर्चा खुद नही उठा सकते थे. मैं जब शहेर आया था तो जेब में बस इतने ही पैसे थे के अपने कॉलेज की फीस भर सकूँ, रहने खाने का कोई ठिकाना नही था. एक शाम मस्जिद के आगे परेशान बैठा था तो वहाँ नमाज़ पढ़ने आए एक आदमी ने मुझे इस कमिटी के बारे में बताया. एक छ्होटे से इंटरव्यू के बाद मुझे हॉस्टिल में अड्मिशन मिल गया. रहना खाना वहाँ फ्री था और पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए मैने एक गॅरेज में हेलपर की नौकरी कर ली.

वो हॉस्टिल मस्जिद में जमा चंदे के पैसे से चलाया जाता था पर वहाँ अड्मिशन की बस एक ही कंडीशन थी, आप इंटेलिजेंट हों और अपने फ्यूचर के लिए सीरीयस हों तो आपको मदद मिल सकती है. सिर्फ़ मुस्सेलमान हों ऐसी कोई कंडीशन नही थी जिसकी वजह से हॉस्टिल में एक मिला जुला क्राउड था. हर मज़हब के लोग वहाँ मौजूद थे. लड़के भी और लड़कियाँ भी.

मुस्लिम ऑर्गनाइज़ेशन का कंट्रोल होने की वजह से वहाँ लड़के और लड़कियों को साथ में रहने की इजाज़त नही थी. लड़कियों का हॉस्टिल वहाँ से थोड़ी दूर पर था और वहाँ ना जाने की हिदायत हर लड़के को दी गयी थी. जो कोई भी हॉस्टिल के रूल्स तोड़ता था उसको वहाँ से निकाल दिया जाता था.

वहाँ मौजूद लड़को मे ज़्यादातर ऐसे थे जो अपने फ्यूचर को लेकर काफ़ी सीरीयस थे और ये बात जानते थे के अगर हॉस्टिल से निकाले गये तो बस अल्लाह ही मालिक है. इन सबका नतीजा ये हुआ के मैं कभी किसी लड़की से दोस्ती नही कर सका. कॉलेज में कुच्छ थी साथ में पढ़ने वाली पर वहाँ किसी से बात नही हो सकी. कॉलेज के बाद मुझे नौकरी पर जाना होता था और वहाँ से वापिस आते ही बिस्तर पकड़ लेता था. उस तेज़ी से भागती ज़िंदगी में प्यार किस चिड़या का नाम है कभी पता ही ना चला. किसी लड़की के साथ हम-बिस्तर होना तो दूर की बात थी, मैने तो कभी किसी लड़की का हाथ तक नही पकड़ा था. रुक्मणी वो पहली औरत थी जिससे मेरा जिस्मानी रिश्ता बना और काफ़ी टाइम तक मेरी ज़िंदगी में बस वही एक औरत रही.

रश्मि को देखकर मुझे लगा के मैं समझ गया के प्यार क्या होता है पर अभी भी कन्फ्यूज़्ड था के ये प्यार ही है ये यूँ बस अट्रॅक्षन. परेशान इसलिए था के वो इतनी खूबसूरत है तो ज़रूर उसका कोई चाहने वाला भी होगा जिसका मतलब ये है के मेरा कोई चान्स नही था. कहते हैं के प्यार एक झलक में ही हो जाता है. मेरा इसमें कभी यकीन नही था पर शायद अब मैं अपने आपको ही ग़लत साबित कर रहा था. मेरी ज़िंदगी में औरतें थी उस वक़्त, रुक्मणी, देवयानी और प्रिया और तीनो के साथ किसी ना किसी लम्हे मेरा एक जिस्मानी तार जुड़ा ज़रूर था पर उन तीनो में से किसी के लिए भी मुझे अपने दिल में वो महसूस ना हुआ जो रश्मि को बस एक बार देखने भर से हो गया था.

मैं एक वकील था और एक लड़की पर बुरी तरह मर मिटा था पर इसके बावजूद मैं ये जानता था के जो मैं कर रहा हूँ वो मेरे लिए भी ख़तरनाक साबित हो सकता है. बिना हाँ बोले ही मैने रश्मि की मदद के लिए उसको हाँ बोल दी थी. वो एक लड़की थी जो अपने बाप की मौत का बदला लेना चाहती थी पर मुझे समझ नही आ रहा था के इसमें मेरे लिए क्या है? पैसा पर वो उस रिस्क के मामले में कुच्छ भी नही जो मैने ली है. उपेर से मेरे कानो में गूँजती वो गाने की आवाज़ जिसके वजह से मैने अदिति केस के गाड़े मुर्दे उखाड़ने शुरू कर दिए थे. जिसकी वजह से मुझे लगने लगा था के कहीं मैं पागल तो नही हो रहा. मेरा खामोश चलती ज़िंदगी अचानक इतनी तेज़ी से भागने लगी थी के मेरे लिए उसके साथ चलना मुश्किल हो गया था.

उसी शाम मैने बंगलो के मालिक से बात की. वो मुझे जानता था इसलिए काफ़ी आसानी से मुझे बंगलो की चाबी दे दी. मैने रश्मि को फोन करने की सोची पर फिर अपना ख्याल बदल कर एक मेसेज उसके सेल पर भेज दिया के वो मुझे कल सुबह 10 बजे बंगलो के पास मिले. उसका थॅंक यू मेसेज आया तो मेरा दिल जैसे एक बार फिर भांगड़ा करने लगा.

शाम को मुझे पता चला के रुक्मणी और देवयानी दोनो किसी किटी पार्टी में जा रही हैं और रात को घर वापिस नही आएँगी. उनके जाने के बाद मैं थोड़ी देर यूँ ही घर में अकेला बैठा बोर होता रहा. जिस हॉस्टिल में मैं रहता था वहाँ कोई टीवी नही था और बचपन में मेरे घर पर भी कोई टीवी नही था. पड़ोसी के यहाँ मैं कभी कभी टीवी देखने चला जाता था इसलिए जब रुक्मणी के यहाँ शिफ्ट किया तो वहाँ एक अपने टीवी पाकर मुझे बहुत खुशी हुई थी. मैं घंटो तक बैठा टीवी देखता रहता था और कभी कभी तो पूरी रात टीवी के सामने गुज़र जाती थी. पर उस वक़्त तो टीवी देखना भी जैसे एक बोरिंग लग रहा था. मैं बेसब्री से अगले दिन का इंतेज़ार कर रहा था ताकि मैं सुबह सुबह रश्मि से जाकर मिल सकूँ.

शाम के 8 बजे मैने स्विम्मिंग के लिए जाने का फ़ैसला किया. कॉलोनी में एक स्विम्मिंग पूल था जो रात को 10 बजे तक खुला रहता था इसलिए मेरे पास 2 घंटे थे. पहले मैं वहाँ तकरीबन हर रोज़ शाम को ऑफीस के बाद जाया करता था पर पिच्छले कुच्छ दिन से गया नही था. मैने अपने कपड़े बदले और बॅग उठाकर पैदल ही स्विम्मिंग पूल की तरफ निकल पड़ा.

आधे रास्ते में मेरे फोन की घंटी बजने लगी. नंबर प्रिया का था.
"हाँ बोल" मैने फोन उठाते ही कहा
"कल रात क्या कर रहे हो?" उसने मुझसे पुचछा
"कल रात?" मुझे कुच्छ समझ नही आया
"हाँ. मैं चाहती हूँ के कल रात का डिन्नर आप मेरे घर पर करें. मम्मी डॅडी से मैने बात कर ली है" वो खुश होते हुए बोली
"यार कल रात तो .........."
"प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़"
मैने कुच्छ कहना शुरू ही किया था के उसने इतना लंबा प्लीज़ कहा के मैं इनकार नही कर सका और अगले दिन शाम को ऑफीस के बाद उसके घर पर डिन्नर के लिए मान गया.

जब मैं स्विम्मिंग पूल पहुँचा तो एक पल के लिए अपना स्विम्मिंग का इरादा बदलने की सोची. आम तौर पर रात को उस टाइम ज़्यादा लोग नही होते थे और पूल तकरीबन खाली होता था पर उस दिन तो जैसे पूल में कोई मेला लगा हुआ था. कुच्छ पल वहीं खड़े रहने के बाद मैने फ़ैसला किया के अब आ ही गया हूं तो थोड़ी देर स्विम कर ही लेता हूँ और कपड़े बदलकर पानी में उतर गया.

तकरीबन अगले आधे घंटे तक मैं कॉन्टिनोसली स्विम करता रहा. पूल के एक कोने से दूसरे कोने तक लगातार चक्कर लगता रहा और इसके साथ ही पूल में लोगों की भीड़ कम होती चली गयी. जब पूल में मौजूद आखरी आदमी बाहर निकला तो मैने वहीं साइड में लगी एक वॉल क्लॉक पर नज़र डाली. 9.30 हो रहे थे यानी मेरे पास अभी और आधा घंटा था पर एक घंटे की कॉन्टिनोस स्विम्मिंग के बाद मैं बुरी तरह थक चुका था. वहीं पूल के साइड में रखे एक छ्होटे से वॉटर कुशन को मैने पानी में खींचा और उसपर चढ़कर आराम से स्विम्मिंग पूल के बीच में आँखें बंद करके लेट गया.
मैं थका हुआ था इसलिए आँखें बंद करते ही मुझे लगा के मैं कहीं यहीं सो ना जाऊं. मेरे पेर अब भी पानी के अंदर थे और चारो तरफ एक अजीब सी खामोशी फेल चुकी थी. बस एक पानी के हिलने की आवाज़ आ रही थी. पूल में उस वक़्त कोई भी नही था सिवाय उस वॉचमन के जो गेट के बाहर बैठा था. मुझे खामोशी में यूँ घंटो बेते रहने की आदत थी पर उस वक़्त वो खामोशी बहुत अजीब सी लग रही थी, दिल को परेशान कर रही थी. मैने पूल से निकल कर घर जाने का फ़ैसला किया. मैं अभी निकलने के बारे में सोच ही रहा था के फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी और जैसे सारी बेचैनी और परेशानी एक सेकेंड में हवा हो गयी. आँखें बंद किए किए में कुच्छ ही मिनिट्स में नींद के आगोश में चला गया.

तभी पानी में हुई कुच्छ हलचल से मेरी नींद फ़ौरन खुल गयी. मैने आँखें खोलकर चारो तरफ देखा ही था के जैसे किसी ने मेरा पेर पकड़ा और मुझे पानी में खींच लिया. पानी में गिरते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैं स्विम करना भूल गया हूँ और मेरा वज़न कई गुना बढ़ गया जिसकी वजह से मैं पानी में डूबता चला गया. जब मेरे पावं नीचे पूल के फ्लोर से जाके लगे तो मैने अपनी सारी ताक़त दोबारा जोड़ी और फिर से उपेर की तरफ स्विम करना शुरू किया. जो एक रोशनी पानी में से मुझे नज़र आ रही थी वो आसमान में चाँद की थी और मैं बस उसको देखते हुए ही पूरी हिम्मत से उपेर को तैरता रहा. पर पानी तो जैसे ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा था. मैं उपेर को उठता जा रहा था पर पानी से बाहर नही निकल पा रहा था जैसे मैं किसी समुंदर की गहराई में जा फसा था. मेरा दम घुटने लगा था और मैं जानता था के अगर पानी से बाहर नही निकला तो यहीं मर जाऊँगा.

पानी अब भी मेरे उपेर उतना ही था और चाँद था के करीब आने का नाम ही नही ले रहा था. लग रहा था जैसे मैं एक ही जगह पर हाथ पावं मार रहा हूँ जबकि मैं जानता था के मैं उपेर उठ रहा हूँ क्यूंकी पूल का फ्लोर मुझे अब दिखाई नही दे रहा था. मेरे उपेर भी पानी था और नीचे भी. साँस और रोके रखना अब नामुमकिन हो गया था. मेरे लंग्ज़ जैसे फटने लगे थे. आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा था और लग रहा था जैसे दिमाग़ में कोई हथोदे मार रहा है. मैं समझ गया के मेरा आखरी वक़्त आ गया है.

तभी ऐसा लगा जैसे चाँद टूट कर पूल में ही आ गिरा और पानी में रोशनी फेल गयी. मुझसे कुच्छ दूर पानी में कुच्छ बहुत तेज़ चमक रहा था. मैं एकटूक उसकी तरफ देखता रह गया और तभी मुझे एहसास हुआ के मेरा दम अब घुट नही रहा था और ना ही मुझे साँस लेने की ज़रूरत महसूस हो रही थी. मैं बिल्कुल ऐसे था जैसे मैं ज़मीन पर चल रहा हूँ. फिर भी मैने हल्की सी साँस अंदर ली तो उम्मीद के खिलाफ मुझे अपने लंग्ज़ में पानी भरता महसूस ना हुआ. सिर्फ़ हवा ही अंदर गयी और मैं बेझिझक साँस लेने लगा. मैं अब उपेर उठने की कोशिश नही कर रहा था. बस पानी में एक जगह पर रुका हुआ था पर उसके बावजूद भी डूब नही रहा था. किसी फिश की तरह मैं पानी में बस एक जगह पर रुका हुआ अपने सामने पानी में उस सफेद रोशनी को देख रहा था.

तभी मुझे फिर वही गाने की आवाज़ पानी में सुनाई दी. आवाज़ उस सफेद रोशनी की तरफ से ही आ रही थी. और उस गाने के साथी ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे चारो तरफ पानी में कॅंडल्स जल गयी हो. पानी में हर तरफ रोशनी ही रोशनी थी. लाल, नीली, हरी, हर तरह की रोशनी.

गाने की आवाज़ अब तेज़ हो चली थी और थोड़ी देर बाद इतनी तेज़ हो गयी थी के मुझे अपने कानो पर हाथ रखने पड़े. वो क्या गा रही थी ये तो अब भी समझ नही आ रहा था पर एक हाइ पिच की आवाज़ मेरे कान के पर्दे फाड़ने लगी. आवाज़ इतनी तेज़ हो गयी थी के मेरे लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था. वो अब एक मधुर गाने की आवाज़ ना बनकर एक ऐसा शोर बन गयी थी जो मुझे पागल कर रहा था. मैने अपने कानो पर हाथ रखकर अपनी आँखें बंद की और एक ज़ोर से चीख मारी. इसके साथ ही शोर रुक गया और मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे मुँह पर पानी फेंका हो.

पानी मुँह पर गिरते ही मेरी आँख खुल गयी और मैं जैसे एक बहुत लंबी नींद से जागा. मैं अब भी पानी में था और मेरा सर पानी के बाहर था.आसमान पर सूरज ही हल्की सी रोशनी फेल चुकी थी. मैने हैरान होकर घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 6 बज रहे थे. मेरा दिमाग़ घूम सा गया. मैं पूरी रात यहीं पूल में सोता रहा था और पानी में गिरने की वजह से मेरी आँख खुली. परेशान मैं पानी से निकला और चेंज करके गेट तक पहुँचा. गेट लॉक्ड था. मैं अभी सोच ही रहा था के क्या करूँ के तभी दरवाज़ा खुला. वो वॉचमन था जो मुझे यूँ अंदर देखकर परेशान हो उठा. वो रात को 10 बजे पूल बंद करके घर चला जाता था और सुबह 6 बजे आकर खोलता था. मैने उसको बताया के रात उसने मुझे रात अंदर ही बंद कर दिया था. उसने फ़ौरन मेरे पावं पकड़ लिए के मैं किसी को ये बात ना बताऊं वरना उसकी नौकरी जाएगी. उसके हिसाब से उसने लॉक करने से पहले पूरे पूल का चक्कर लगाया था और मैं कहीं भी उसको नज़र नही आया था.
मैने उसको भरोसा दिलाया के मैं किसी से नही कहूँगा और घर की तरफ बढ़ा. वापिस जाते हुए मेरे दिमाग़ में बस एक ही ख्याल था. वो क्या सपना था जो मैं पूल में सोते हुए देख रहा था. वो रोशनी और उस आवाज़ का इस तरह तेज़ हो जाना. और ऐसा कैसे हुआ के मैं आराम से पूल के बीचो बीच उस कुशन पर पड़ा सोता रहा और पूरी रात मुझे इस बात का एहसास भी नही हुआ जबकि मेरी नींद तो हल्की सी आवाज़ से भी खुल जाती थी. और सबसे बड़ी बात ये के जब उस वॉचमन ने पूल का चक्कर लगाया तो मैं पूल के बीचो बीच उसको सोता हुआ नज़र क्यूँ नही आया.


क्रमशः.........................
 
भूत बंगला पार्ट--12

गतान्क से आगे................

लड़की की कहानी जारी है........................
वो खामोशी से नीचे ज़मीन पर बैठी हुई थी. चेर पर उसका चाचा नंगा टांगे फेलाए बैठा था जिसके खड़े हुए लंड को वो अपने हाथ से पकड़े उपेर नीचे हिला रही थी. पास ही आयिल की एक बॉटल रखी हुई थी जिसमें से वो थोड़ा थोडा आयिल निकालकर लंड पर डालती रहती थी.

"ज़ोर से हिला और हाथ उपेर से नीचे तक पूरा ला" चाचा ने आँखें बंद किए किए ही कहा.
उनके बताए मुताबिक ही उसने अपना हाथ की स्पीड बढ़ा दी और हाथ लंड के उपेर से लेके नीचे तक रगड़ने लगी. चाचा के चेहरे पर एक नज़र डालके वो बता सकती थी के उन्हें बहुत मज़ा आ रहा था. उनके चेहरे पर अजीब से भाव थे और बीच बीच में वो अपनी कमर को उपेर नीचे हिलाने लगते.

आज जाने क्यूँ उसको इस खेल में मज़ा आ रहा था. अब तक वो सिर्फ़ अपने चाचा के कहने पर उनका लंड हिलाती थी वो भी आधे मंन से पर आज उसको भी इस काम में मज़ा आ रहा था. आज चाचा के लंड पर पहली नज़र पड़ते ही सबसे पहले उसके दिमाग़ में उस आदमी का लंड आया था जो उस दिन चाची के साथ ये खेल खेल रहा था. वो आपस में दोनो लंड मिलाने लगी. उस आदमी का लंड चाचा के लंड से मोटा भी था और लंबा भी और चाची दोनो के साथ ही खेलती थी. पर उस दिन की चाची की आवाज़ों से उसको समझ आ गया था के चाची को उस आदमी के साथ ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

उस रात के बाद जब उसने अपनी चाची को नंगी देखा था वो बस इसी मौके की तलाश में रहती थी के किसी तरह चाची के नंगे जिस्म की एक झलक मिल जाए. पर ये मौका उसके हाथ आया नही. एक दो बार जब चाची झुकी तो उसको उनकी चूचिया ज़रूर नज़र आई पर उनके जिस्म को वो हिस्सा जो उसको सबसे अच्छा लगता था, उनकी गांद वो दोबारा देख नही सकी. साथ साथ उसके दिल में ये भी एक अजीब सी क्यूरीयासिटी थी के उस दिन चाची टाँगो के बीच हाथ डालकर क्या कर रही थी.

चाचा की सांसो अब भारी हो चली थी और उनके चेहरे के एक्सप्रेशन और भी ज़्यादा इनटेन्स हो गये थे. वो समझ गयी थी के अब क्या होने वाला है. जब चाचा के लंड से वो सफेद सी चीज़ निकलने वाली होती थी तब उनका चेहरा ऐसा ही हो जाता था.
पहली बार जब उसने लंड हिलाया तो वो सफेद सी चीज़ ठीक उसके उपेर आ गिरी थी और उसको बहुत घिंन आई थी. उसके बाद वो होशियार रहने लगी थी. जब भी चाचा का चेहरा सख़्त होता, वो साइड होकर लंड हिलाती ताकि लंड से निकलता पानी उसके उपेर ना गिरे. पर आज ऐसा ना हुआ. उसको वो मंज़र याद आया जब उस आदमी ने चाची के मुँह में अपने लंड से सफेद पानी गिराया था. उसको समझ नही आया के चाची ऐसा क्यूँ कर रही थी पर वो अब ये खुद करके देखना चाहती थी.

उसने अपने हाथ की स्पीड बढ़ा दी और तेज़ी से लंड हिलाने लगी. 10-12 बार हाथ उपेर नीचे हुआ ही था के चाचा की कमर ने एक झटका मारा और लंड ने धार छ्चोड़ दी. वो सफेद सी चीज़ लंड से निकलकर उसके उपेर गिरने लगी. कुच्छ उसके बालों में, कुच्छ कपड़ो पर और कुच्छ सीधा उसके मुँह पर. पानी की कुच्छ बूँदें उसके होंठो पर थी जिसको उसने जीभ फिराकर टेस्ट करके देखा और अगले ही पल लगा के उसको उल्टी हो जाएगी. उसने फ़ौरन बाहर थूक दिया. उसकी इस हरकत पर चाचा ने आँखें खोली और उसकी तरफ देखकर हस पड़े. पर उसके दिमाग़ में उस वक़्त कुच्छ और ही सवाल गूँज रहा था.

"क्या उस लड़के का भी ऐसा ही लंड होगा जिससे वो मिलने जाती थी और क्या उसके लंड से भी ऐसे ही पानी निकलता होगा?"

"एक बात बतानी थी तुम्हें. काफ़ी दिन से सोच रही थी के बताऊं पर हिम्मत नही कर पाई"उसने कहा

उस शाम वो फिर उस लड़के से मिलने पहुँची. उसके दिल में एक सवाल था के उसके चाचा चाची आपस में करते क्या हैं. उसका कोई दोस्त नही था उस लड़के के सिवा इसलिए उसने उससे ही पूछना बेहतर समझा.

"हाँ बोलो" लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा
कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"बोलो ना" लड़के ने दोबारा कहा
"समझ नही आ रहा कैसे बताऊं." वो शरमाती हुई बोली
"मुँह से बताओ और कैसे बतओगि" कहकर वो लड़का हस पड़ा.

अगले आधे घंटे तक वो उससे बार बार वही सवाल करता रहा और वो बताने में शरमाती रही. आख़िरकार उसने फ़ैसला किया के उसको पुच्छ ही लेना चाहिए.
"अक्सर रात को मेरे चाची चाची जब सब सो जाते हैं ना, उसके बाद वो ....... अंधेरे में....." इससे आगे की बात वो कह नही पाई
"आपस में लिपटकर कुच्छ करते हैं?" अधूरी बात लड़के ने पूरी कर दी.
उसने चौंक कर लड़के की तरफ देखा
"तुम्हें कैसे पता?"
"अरे सब करते हैं" लड़का मुस्कुराता हुआ बोला
"सब मतलब?" उसकी समझ नही आया

"सब मतलब पूरी दुनिया. इसको सेक्स करना कहते हैं. दुनिया का हर मर्द औरत ये करता है. जानवर भी करते हैं. इसे से तो बच्चे पैदा होते हैं" लड़के ने कहा
वो हैरानी से आँखें खोले उसकी तरफ देख रही थी. जानवर भी ये काम करते हैं? और बच्चे?
"बच्चे?" उसके मुँह से निकला
"हाँ. जब औरत मर्द आपस में ये करते हैं तो दोनो को बहुत मज़ा आता है और ऐसा करने के बाद ही औरत के पेट में बच्चा आता है" लड़के ने हॅस्कर जवाब दिया

मज़ा आता है ये बात तो वो अच्छी तरह जानती थी क्यूंकी चाचा और चाची को उसने कई बार कहते सुना था के बहुत मज़ा आ रहा है. पर बच्चे वाली बात अब भी उसके पल्ले नही पड़ रही थी.

"क्या कर रहा है बे?" आवाज़ सुनकर उसने लड़के की तरफ देखा तो डर से काँप गयी. वहाँ 3 लड़के और खड़े थे और उसके दोस्त को कॉलर से पकड़ रखा था.
"क्या कर रहा है यहाँ?" उन 3 लड़कों में से एक ने कहा
"कुच्छ नही. बस ऐसे ही बातें कर रहे थे" उसके दोस्त उस लड़के ने हकलाते हुए कहा
"अच्छा?" 3 लड़को में से एक दूसरे ने कहा "हमें पता है के तू यहाँ क्या कर रहा है"

इसके बाद क्या हुआ उसको कुच्छ समझ नही आया. उन तीनो ने मिलकर उस लड़के को मारना शुरू कर दिया. वो उसको नीचे गिराकर उसपर लातें बरसाने लगे. उसकी अपनी भी अजीब हालत हो रही थी. उसके मुँह से चीखे निकल रही थी और वो उन लड़को पर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी जिसका उनपर कोई असर नही हो रहा था. उस लड़के के जिस्म से कई जहा से खून निकल रहा था जिसको देखकर उसका दिल जैसे रो उठा. उसको लग रहा था के ये चोट उसको खुद को लगी हैं और दर्द का एहसास उसके अपने जिस्म में हो रहा है.

फिर जाने उसमें कहाँ से अजीब सी ताक़त आ गयी. उसने पास पड़ा एक बड़ा सा पथर उठाया और पूरी ताक़त से एक लड़के की तरफ फेंका. पत्थर सीधा उसके माथे पर लगा और वो पिछे को जा गिरा. सब कुच्छ जैसे एक पल के लिए रुक सा गया. बाकी के दोनो लड़के एक कदम पिछे को हट गये. उसका दोस्त वो लड़का ज़मीन पर पड़ा हैरत से उसकी तरफ देखने लगा..
जिस लड़के के माथे पर पथर पर लगा था वो अभी भी उल्टा ज़मीन पर गिरा पड़ा था.

"ये उठ क्यूँ नही रहा. मर गया क्या?" उन बाकी बचे 2 लड़को में से एक ना कहा
"मर गया क्या?" ये शब्द उसके खुद के कान में किसी निडल की तरह चुभ गये. ऐसा तो वो नही चाहती थी. वो तो बस अपने दोस्त को बचाना चाहती थी. अगर चाचा चाची को पता लगा तो? उसकी रूह डर के मारे काँप गयी और वो सबको वहीं छ्चोड़ पागलों की तरह अपने घर की तरफ भागने लगी.

वर्तमान मे इशान की कहानी..........................


इस बात को शायद मैं अपने दिल ही दिल में मान चुका था के मैं रश्मि से प्यार करता हूँ. ऐसा क्यूँ था था ये मैं नही जानता था. उस औरत से मैं सिर्फ़ एक ही बार मिला था और जबसे उससे मिला था शायद हर पल उसी के बारे में सोचता था. उसके खूबसूरत ने मेरे दिल और ज़हेन में एक जगह बना ली थी जैसे. आँखें बंद करता तो उसका चेहरा दिखाई देता, आँखें खोलता तो उसका ख्याल दिमाग़ में शोर करने लगता. मेरी अकेली ज़िंदगी को जैसे एक मकसद मिल गया था और वो था रश्मि को हासिल करना.

पर इसके लिए मेरा उसको चाहना काफ़ी नही था ये बात भी मैं जानता था. अगर उसे मेरी होना है तो इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी ये है के वो भी मुझे चाहे. शकल सूरत से मैं बुरा नही था पर क्या ये काफ़ी था. वो एक बहुत अमीर लड़की थी. शायद हिन्दुस्तान की सबसे अमीर लड़की जिसके अपने पास इतनी बेशुमार दौलत थी जितनी मैं 7 जन्मो में भी नही कमा सकता था. और मैं जानता था के जिस तरह से हमारी मुलाक़ात का मुझपे असर हुआ है शायद हर उस मर्द पर होता होगा जो उससे मिलता होगा और जाने कितने यही ख्वाब देखते होंगे के उसको हासिल करें. और अब जबकि उसके पास इतनी दौलत है, अब तो जाने कितने उसके पिछे भाग रहे होंगे. और मुझे तो ये भी नही पता था के क्या उसकी ज़िंदगी में मुझे पहले कोई और है या नही.

अगले दिन वादे के मुताबिक मैं बंगलो नो 13 के सामने खड़ा रश्मि का इंतेज़ार कर रहा था. उसने मुझसे कहा था के वो बंगलो को खुद एक बार देखना चाहती है और इसके लिए मैने बंगलो के मालिक से बात कर ली थी. घर की चाबी उस नौकरानी के पास थी जो वहाँ सफाई करने आती थी. मैं वहाँ खड़ा बेसब्री से रश्मि का इंतेज़ार कर रहा था और मेरे दिमाग़ में सिर्फ़ एक सवाल चल रहा था, मैं ये क्यूँ कर रहा हूं? मैं एक वकील से एक जासूस कब हो गया?
थोड़ी ही देर बाद एक बीएमडब्लू मेरे सामने आकर रुकी और उसमें से रश्मि बाहर निकली. उसको फिर से देखा तो एक पल के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं वहीं चक्कर खाकर गिर जाऊँगा. ब्लॅक कलर के फुल लेंग्थ स्कर्ट और उसकी कलर के टॉप में वो बिना किसी मेक अप के भी किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी.

"आइ आम सो सॉरी" आते ही उसने कहा "रास्ते में ट्रॅफिक काफ़ी ज़्यादा था"
"कोई बात नही" मैने मुस्कुराते हुए कहा "सुबह के वक़्त यहाँ ऐसा ही होता है. छ्होटे शहेर की छ्होटी सड़कें और उसपर रोज़ाना बढ़ता ट्रॅफिक"
"आइ अग्री" कहते हुए उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया.
मैं हाथ मिलने की लिए जब उसका हाथ अपने हाथ में लिए तो शायद वो मेरी ज़िंदगी को सबसे यादगार पल बन गया. उसका मुलायम हाथ जब मेरे हाथ में आया तो ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया मिल गयी मुझे.
"अंदर चलें?" उसने पुचछा तो मैं अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया.
"श्योर" कहते हुए मैने बंगलो के गेट की तरफ उसके साथ कदम बढ़ाए.

कल जब मैने बंगलो के मालिक से चाबी माँगने के लिए फोन पर बात की थी तो उसने मुझे बताया था के तकरीबन जिस वक़्त हम लोग वहाँ जाने वाले थे उसी वक़्त नौकरानी भी वहाँ सफाई करने आती थी. तो हम लोगों को वो अंदर ही मिल जाएगी.
"कोई घर दोबारा किराए पर ले रहा है क्या जो सफाई करवा रहे हैं?" मैने हस्ते पुचछा था
"आपके मुँह में घी शक्कर" मकान मालिक ने कहा "पर आप चाभी क्यूँ माँग रहे हो? आप ही किराए पर ले रहे हो क्या?
"नही नही" मैने उसको बताया "मैं असल में उस घर को सिर्फ़ देखना चाहता हूँ. शायद मर्डर से रिलेटेड कुच्छ मिल जाए"
"वहाँ कुच्छ नही है आहमेद साहब" मकान मलिक ने कहा था "उस घर को अंदर बाहर से तलाश किया जा चुका है. कुच्छ नही मिला वहाँ. जाने कौन और कैसे मार गया उस आदमी को. काश उसने मरने के लिए कोई और जगह चुनी होती मेरे घर के सिवा"

"चाबी?" घर के सामने पहुँच कर रश्मि ने मेरी और देखते हुए सवाल किया
"चाबी घर की नौकरानी के पास ही है जो इस वक़्त अंदर सफाई कर रही है" कहते हुए मैने दरवाज़े पर नॉक किया.

"नौकरानी? सफाई?" रश्मि ने पुचछा "डिड ही गेट ए न्यू टेनेंट?"
"नही फिलहाल तो नही पर मालिक चाहता है के घर सॉफ सुथरा रहे जस्ट इन केस इफ़ सम्वन डिसाइडेड टू मूव इन" मैने जवाब दिया
"नाम क्या है इस नौकरानी का" उसने अजीब सा सवाल पुचछा
"श्यामला बाई" कहते हुए मैने फिर से नॉक किया
"ये वही औरत है जो मेरे डॅडी के टाइम पे घर की सफाई करती थी?" उसने पुचछा तो मैने हाँ में सर हिला दिया.

"यही थी ना वो जिसने मेरे डॅडी को सबसे पहले मरी हुई हालत में देखा था?"
इस बार भी मैं जवाब ना दे सका. बस हाँ में सर हिला दिया और दरवाज़ा तीसरी बार नॉक किया
"इससे ज़्यादा सवाल मत करना आप" मैने रश्मि से कहा
"क्यूँ?" पहले उसने मुझसे पुचछा और फिर खुद ही जवाब दे दिया "ओह आपको लगता है के ये मेरे डॅडी के बारे में कुच्छ ग़लत बोलेगी जिसका आइ माइट फील बॅड"
मैने जवाब नही दिया तो वो समझ गयी के मेरा जवाब हाँ था.

"आइ आम प्रिपेर्ड फॉर ऑल दट. आइ डॉन'ट ब्लेम हिम सो मच अस दोज़ हू ड्रोव हिम टू इनटेंपरेन्स " वो ऑस्ट्रेलियन आक्सेंट में बोली
तभी घर का दरवाज़ा खुला और हमारे सामने एक करीब 40 साल की औरत खड़ी थी. श्यामला बाई की शकल देखकर ही लगता था के वो एक बहुत खड़ूस औरत है, ऐसी जो अपने सामने किसी और को बोलने ना दे और अगर कोई बोल पड़े तो फिर खुद ही पछ्ताये.

"क्या चाहिए?" उसने हम दोनो से सवाल किया
"घर देखना है" मैने जवाब दिया "मालिक से मेरी बात हो चुकी है"
"और ये मैं कैसे मान लूँ?" उस खड़ूस औरत ने पुचछा
"क्यूँ मैं कह रहा हूँ" मैने हैरत से जवाब दिया
"और क्यूंकी मैं मिस्टर सोनी की बेटी हूँ" कहते हुए रश्मि आगे बढ़ी और बिना उस औरत से बात किए घर के अंदर दाखिल हो गयी. एक पल के लिए और श्यामला बाई दोनो हैरत से उसको देखते रह गयी.

"आप मनचंदा साहब की बेटी हैं" श्यामला बाई ने एक तरफ होते हुए कहा "मनचंदा या सोनी जो भी नाम था उनका"
"हाँ" रश्मि ने जवाब दिया
"अब तो यहाँ कुच्छ नही मिलेगा आपको उनका. लाश पोलीस ले गयी, समान कोई और ले गया"
रश्मि ने कुच्छ नही कहा और घर पर एक नज़र डाली.

"हाँ अपने बाप के खून के धब्बे ज़रूर मिल जाएँगे आपको यहाँ" वो कम्बख़्त काम वाली फिर बोली "वहाँ कार्पेट पर और उसके नीचे शायद फ्लोर पर अब भी खून का हल्का सा निशान हो"
रश्मि ने मेरी तरफ देखा. अपने बाप के बारे में ऐसी बात सुनकर उसके चेहरा पीला पड़ गया था. मेरा दिल किया के उस श्यामला बाई का खून भी उसी जगह पर बहा दूँ जिस तरफ वो इशारा कर रही थी.
"बकवास बंद करो और जाकर अपना काम करो"
"हां जा रही हूँ" वो मेरी तरफ घूरते हुए बोली और फिर रश्मि की तरफ पलटी "वैसे अगर आप एक 100 का नोट मुझे दे दो तो घर मैं आपको खुद ही दिखा दूँगी"
"मेरी माँ मैं तुझे चुप रहने के 200 दूँगा. अब जाओ यहाँ से" मैने दरवाज़े की तरफ इशारा किया
"200 के लिए तो मैं कुच्छ भी कर सकती हूँ" वो खुश होते हुए बोली "और एक प्रेमी जोड़े को अकेला में छ्चोड़ने के लिए 200 मिले तो क्या बुरा है. वैसे ज़्यादा देर मत लगाना तुम दोनो. जल्दी काम ख़तम कर लेना"

उसकी ये बात सुनकर मैं जैसे शरम से ज़मीन में गड़ गया और रश्मि ने तो अपनी नज़र दूसरी तरफ फेर ली.
"बहुत हुआ" कहते हुए मैं श्यामला बाई की तरफ बढ़ा "दफ़ा हो जाओ यहाँ से"
उसको किचन की तरफ धकेल कर मैं वापिस रश्मि के पास पहुँचा जो उसकी कोने में खड़ी थी जहाँ उस नौकरानी ने इशारा किया था. घर की ब्लू कलर की कार्पेट पर एक जगह गहरा लाल रंग का निशान था और मैं जानता था के वो क्या है. रश्मि एकटूक उस निशान को देखे जा रही थी.
"रश्मि शायद इस घर में आने का आपका ख्याल इतना ठीक नही था. हमें चलना चाहिए यहाँ से" मैं उसके चेहरे को देखते हुए बोला जो पीला पड़ चुका था
"नही" कहते हुए रश्मि ने मेरी तरफ देखा "जब तक मैं इस घर का हर कोना नही देख लेती तब तक नही"

मैं उसको चाहता था. उस वक़्त अगर वो जान भी मांगती तो इनकार की कोई गुंज़ाइश ही नही थी. जब उसने घर की तलाशी लिए बिना वहाँ से ना जाने का फ़ैसला किया तो मैने भी हाँ में सर हिला दिया. खामोशी के साथ हम दोनो काफ़ी देर तेक एक कमरे से दूसरे कमरे तक जाते रहे और किसी ऐसी चीज़ को ढूँढते रहे जिससे हमें सोनी मर्डर केस में कुच्छ मादा मिल सके. हर कमरा खाली था और कुच्छ कमरो में तो अब तक धूल थी जिसको देखकर ये अंदाज़ा हो जाता था के श्यामला बाई यहाँ कितना अच्छा काम कर रही है.

रश्मि ने हर कमरे को अच्छी तरह तलाशा यहाँ तक की खिड़कियो का भी काफ़ी बारीकी से मुआयना किया पर कहीं कुच्छ नही मिला. हम लोग नीचे बस्मेंट में पहुँचे. बस्मेंट की और जाती सीढ़ियों के पास ही एक दरवाजा था जो बंगलो के पिछे की तरफ के लॉन में खुलता रहा. दरवाज़े को देखकर इस बात का अंदाज़ा होता था के वो काफ़ी दिन से बंद नही था और हाल फिलहाल में ही उसको खोला गया था. रश्मि ने फ़ौरन मेरा ध्यान दरवाज़े की तरफ खींचा पर मैने उसको बताया के ये दरवाज़ा मैने और मिश्रा ने खोला था जब हम इससे पहले एक बार घर की तलाशी लेने आए थे. मैने ये भी बताया के उस वक़्त इस दरवाज़े को खोलने में हम दोनो को ख़ासी परेशानी हुई थी क्यूंकी ये दरवाज़ा जाने कितने सालों से बंद था.

"तो फिर वो लोग आए कहाँ से थे मेरे डॅड को मारने के लिए?" रश्मि एक सोफे पर बैठते हुए बोली
"वो लोग?" मैं भी उसके सामने बैठ गया "मतलब एक से ज़्यादा?"
"क्यूंकी मुझे यकीन है के भूमिका और उसके आशिक़ हैदर रहमान ने मिलकर मेरे डॅड को मारा है" रश्मि हाँ में सर हिलाते हुए बोली
"मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ के जिस रात खून हुआ वो यहाँ नही थी" मैने कहा
"मैं जानती हूँ पर मैं ये भी जानती हूँ के उसी ने हैदर को भेजा था डॅड को मारने के लिए. और मैं एक से ज़्यादा लोग इसलिए कह रही हूँ क्यूंकी हैदर को भेजने के बाद वो भी तो खून की उतनी ही ज़िम्मेदार हुई जितना हैदर" रश्मि बोली
"हमारे पास इस वक़्त इस बात का कोई सबूत नही है रश्मि"

"मैं जानती हूँ" कहते हुए वो खड़ी हो गयी और किचन की तरफ बढ़ चली. मैं भी उठकर उसके पिछे पिछे किचन तक पहुँचा.

उस घर में भले कोई रहता नही था पर इंसान की हर ज़रूरत की मॉडर्न चीज़ वहाँ पर थी. एक बड़ा ही स्टाइलिश गॅस स्टोव से लेकर ओवेन और एक किंगसिज़े फ्रिड्ज तक सब था. हमारे किचन में पहुँचते ही श्यामला बाई ने एक बार हमारी तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गयी. रश्मि खामोशी से किचन का जायज़ा लेने लगी.

"ये फ्रिड्ज खराब है क्या?" उसने श्यामला से पुचछा
"नही तो" श्यामला बाई ने इतनी जल्दी जवाब दिया जैसे उसपर फ्रिड्ज खराब करने का इल्ज़ाम लगा दिया गया हो "क्यूँ?"
"इसके ये सारी ट्रेस यहाँ बाहर क्यूँ रखी हैं?" रश्मि ने कहा

वो उस फ्रिड्ज के अंदर लगी ज़ालिया और ट्रेस की तरफ इशारा कर रही थी जिनपर फ्रिड्ज के अंदर समान रखा जाता है और जो इस वक़्त फ्रिज के उपेर रखी थी.
"वो मैं सफाई करने के बाद लगा दूँगी. आप लोगों को क्या चाहिए?" श्यामला बाई चिढ़ते हुए हमारी तरफ चेहरा करके खड़ी हो गयी.

उसका हमारी तरफ पलटा ही था के रश्मि ने एक पल के लिए तो उसको ऐसे देखा जैसे भूत देख लिया हो और फिर अगले ही पल तेज़ी से उसके करीब हो गयी.
"ये रिब्बन कहाँ से मिला तुम्हें?" उसने श्यामला के सर पर बँधे एक लाल रंग के रिब्बन की तरफ इशारा किया जिससे श्यामला ने अपने बॉल बाँध रखे थे.

"यहीं घर में ही पड़ा मिला" श्यामला थोडा पिछे होते हुए बोली "बेकार घर में पड़ा था तो मैने अपने सर पर बाँध लिया"

रश्मि ने तो जैसे उसकी बात सुनी ही नही. उसने अगले ही पल आगे बढ़कर श्यामला के सर से वो रिब्बन खोल लिया और मुझे दिखाने को मेरी तरफ बढ़ा दिया. वो एक लाल रंग का रिब्बन था जिसको देखने से ही पता चलता था के वो बहुत महेंगा था, वजह थी उसके उपेर की गयी कारिगिरी. उस पूरे रिब्बन पर जैसे एक डिज़ाइन सा बना हुआ था, एक नक्काशी की तरह जिसकी वजह से वो बहुत ही एलिगेंट और खूबसूरत लग रहा था.

"ये वही रिब्बन है इशान" वो मेरी और देखते हुए बोली "वही रिब्बन जो मैने कश्मीर में खरीदा था"
"और उससे क्या साबित होता है?" मैने पुचछा

"जिस दुकान से मैने ये रिब्बन लिया था वो एक आंटीक शॉप थी. उसी दुकान से मेरे डॅडी ने एक खंजर खरीदा था जो उन्हें बहुत पसंद आया था. जब उन्होने खंजर ले लिया तो मेरी नज़र इस रिब्बन पर पड़ी. मुझे लगा के ये उस खंजर के साथ अच्छा लगेगा इसलिए मैने खरीद कर उस रिब्बन के हॅंडल के पास बाँध दिया था. ये रिब्बन यहाँ है इसका मतलब ये के वो खंजर भी यहीं था. मेरे डॅड को उनके अपने ही खंजर से मारा गया इशान" कहते हुए वो रो पड़ी.
 
भूत बंगला पार्ट--13

गतान्क से आगे............

रश्मि ने जो कहा वो सुनकर कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा च्छा गया. ना वो खुद कुच्छ बोली, ना मैं और श्यामला बाई तो बस खड़े खड़े हम दोनो का चेहरा ही देख रही थी. आख़िर में वो चुप्पी श्यामला बाई ने ही तोड़ी.

"अगर आपको ये रिब्बन चाहिए तो एक 100 के नोट के बदले में मैं ये आपको दे सकती हूँ. इन साहब ने मुझे चुप रहने को जो 200 देने थे वो मिलके 300 हो जाएँगे"
"तू मेरी ही चीज़ मुझे बेचने की कोशिश कर रही है?" रश्मि अपने फिर से उस मा काली के रूप में आ गयी "तेरी हिम्मत कैसे हुई इसको अपने पास रखने की? अगर तू ये पोलीस को दिखा देती तो शायद अब तक वो खूनी पकड़ा जाता"

कहते हुए रश्मि श्यामला की तरफ ऐसे बढ़ी जैसे उसको थप्पड़ मारने वाली है और शायद मार भी देती अगर मैं उसको रोकता नही
"एक मिनट रश्मि" मैने बीचे में आते हुए कहा "अगर ये रिब्बन पोलीस को मिल भी जाता तो कुच्छ ना होता क्यूंकी सिर्फ़ आपको पता था के ये रिब्बन उस खंजर पर बँधा हुआ था और आप तो ऑस्ट्रेलिया में थी"

मेरी बात सुनकर वो चुप हो गयी और रिब्बन की तरफ देखने लगी
"अच्छा आपने आखरी बार वो खंजर कहाँ देखा था?" मैने सवाल किया
"मुंबई के घर में जो डॅड की लाइब्ररी है वहीं दीवार पर टंगा हुआ था" उसने जवाब दिया

"और आपको पूरा यकीन है के ये वही रिब्बन है" मैने कन्फर्म करना चाहा
"मेरी निगाहें धोखा नही खा सकती" वो रिब्बन की और इशारा करते हुए बोली "रंग वही है, पॅटर्न भी वही है. कहाँ मिला था तुझे ये?" रश्मि ने श्यामला से सवाल किया

"कहा तो किचन के घर में पड़ा मिला था" श्यामला बोली
"कुच्छ और मिला वहाँ" मैने पुचछा तो श्यामला ने इनकार में सर हिला दिया
"कोई खंजर नही मिला?" कहते हुए रश्मि ने रिब्बन अपनी जेब में रख लिया
"खंजर वंजर मुझे कुच्छ नही मिला" श्यामला रश्मि को घूरते हुए बोली "बस ये एक मेरा रिब्बन ही मिला था जो अब ये मेमसाहब अपना बताकर ले जा रही हैं"
"वो रिब्बन तेरा नही है" रश्मि ने कहा

"जो चीज़ जिसको मिलती है वो उसी की होती है" श्यामला भी पिछे हटने को तैय्यार नही थी
"मेरा ख्याल है के इसको नाराज़ नही करना चाहिए" मैने धीरे से रश्मि के कान में कहा "इससे कुच्छ और फयडे की बात भी मालूम ही सकती है"
मेरा बात शायद रश्मि को ठीक लगी. उसने एक नज़र श्यामला पर उपेर से नीचे तक डाली और अपने पर्स में हाथ डालकर 500 के दो नोट निकले और श्यामला की तरफ बढ़ा दिए.

"रिब्बन के लिए" उसने श्यामला से कहा तो वो खुशी से उच्छल पड़ी
"भगवान आपका भला कर मेमसाहब. मेरा आजा का दिन ही अच्छा है. एक दिन 1200 कमा लिए"
"वो 1200 नही 1000 हैं" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"आअप भूल रहे हैं साहब" वो भी वैसे ही मुस्कुराते हुए बोली "आपने अभी मुझे चुप रहने के 200 भी तो देने हैं"

"काफ़ी होशियार हो तुम" कहते हुए रश्मि ने फिर अपने बॅग में हाथ डाला और खुद ही 200 और दे दिए "ये लो और अगर और चाहिए तो इस घर में कुच्छ भी तुम्हें सफाई करते हुए मिले तो फ़ौरन इन साहब के घर पर जाकर दे आना"

श्यामला ने फ़ौरन हाँ में सर हिला दिया. वो रिब्बन लेकर हम बंगलो से बाहर निकले.
"अजीब घर है" रश्मि कार की तरफ कदम बढ़ाती बोली "अंदर अजीब सा डर लगता है"
"कहते हैं के इसमें किसी औरत का भूत रहता है" मैने हस्ते हुए कहा "वैसे अब क्या इरादा है इस रिब्बन के लेकर?"

"फिलहाल मैं अगली फ्लाइट से मुंबई जा रही हूँ. अगर वो खंजर लाइब्ररी में ही है तो वो रिब्बन भी वहीं होगा और तब मैं मान लूँगी के मेरी नज़र धोखा खा रही है. पर अगर वो खंजर वहाँ ना हुआ तो ये प्रूव हो जाएगा के ये वही रिब्बन है"
"और अगर खंजर हुआ पर रिब्बन नही?" मैने सवाल किया

"फिर भी इससे ये तो साबित हो ही जाएगा के खंजर यहाँ लाया गया था तभी तो ये रिब्बन यहाँ पहुँचा. और अगर ऐसा हुआ तो मैं वापिस आकर आपसे बात करूँगी"
"मुझसे जो बन सका वो मैं करूँगा" मैने कहा.

वो अपनी कार में जा बैठी.
"आपको बेकार परेशान कर रही हूँ ना मैं" खिड़की का शीशा नीचे करते हुए उसने किसी छ्होटी बच्ची की तरह मुझसे कहा.
"आपको मुझे परेशान करने का पूरा हक है" ये कहते ही मैने अपनी ज़ुबान अपने ही दांतो के नीचे दबा ली और एक पल के लिए रश्मि के चेहरे पर जो एक्सप्रेशन आकर गया, उससे मुझे पता चल गया के वो समझ गयी के मैं क्या कह रहा हूं.

"मेरा मतलब है के मैं एक वकील हूँ और आपके पिता को मैं खुद भी जानता था इसलिए मेरा फ़र्ज़ है के आपकी मदद करूँ" मैने बात फ़ौरन संभालने की कोशिश की पर मेरे इस अंदाज़ ने मेरी पहले कही गयी बात को और साफ कर दिया
"आपकी फीस?" उसने सवाल किया
"जिस दिन आपके डॅड का खूनी पकड़ा गया उस दिन वो भी देख लेंगे" मैने हस्ते हुए कहा

"तो मैं चलती हूँ" कहते हुए उसने अपना हाथ पिछे को खींचा तो मुझे एहसास हुआ के मैं तबसे उसका हाथ पकड़े खड़ा था जबसे उसने मुझसे कार में बैठने के बाद जाने के लिए हाथ मिलाया था.

घर से मैं रुक्मणी को ये बताकर निकला था के मैं ऑफीस जा रहा हूँ पर उस दिन शाम को प्रिया के यहाँ डिन्नर था इसलिए डिन्नर की तैय्यारि का बहाना बनाकर वो ऑफीस आई नही. मेरी कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मेरा भी ऑफीस में अकेले जाके बैठने का दिल नही किया. ऑफीस जाने के बजाय मैने गाड़ी वापिस घर के तरफ मोड़ दी.

घर पहुँचकर मैं डोर बेल बजाने ही वाला था के फिर इरादा बदलकर अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर दाखिल हो गया.
घर में अजीब सी खामोशी थी वरना यूष्यूयली इस वक़्त ड्रॉयिंग रूम में रखा टीवी ऑन होता है और रुक्मणी और देवयानी सामने बैठी या तो गप्पे लड़ा रही होती हैं या पत्ते खेल रही होती हैं. रुक्मणी की कार घर के बाहर ही खड़ी थी इसलिए मुझे लगा था के वो दोनो घर पर ही होंगी. पर फिर ये सोचकर के शायद दोनो बिना कार के ही कहीं चली गयी मैं अपने कमरे की तरफ बढ़ा.

मैं अपने कमरे का दरवाज़ा कभी लॉक नही करता था. ज़रूरत ही नही थी. कमरे में कुच्छ भी ऐसा नही था जिसको छुपाने की कोशिश की जाए और ना ही घर में कोई ऐसा था जिससे छुपाया जाए. रुक्मणी तो वैसे भी देवयानी के आने से पहले मेरे एक तरह से मेरे ही कमरे में रहती थी.

जब मैं कमरे के सामने पहुँचा तो कमरे का दरवाज़ा हल्का सा खुला हुआ था और अंदर से किसी के बात करने की आवाज़ आ रही थी.
"ये दोनो मेरे कमरे में क्या कर रही हैं" ये सोचकर मुझे कुच्छ शक सा हुआ और अंदर दाखिल होने के बजाय मैने कान लगाकर सुनना शुरू किया और खुले हुए हिस्से से कमरे के अंदर झाँका.

अंदर मैने जो देखा वो देखकर मेरी आँखें फेल्ती चली गयी. कमरे में मेरे बिस्तर पर रुक्मणी और देवयानी दोनो लेटी हुई थी. उस वक़्त वो दोनो जिस हालत में थी वो देखकर मेरे जिस्म का हर हिस्सा में एक लहर सी दौड़ गयी. अपनी ज़िंदगी में पहली बार मैं 2 औरतों को काम लीला करते हुए देख रहा था.

रुक्मणी के जिस्म पर उपेर सिर्फ़ एक लाल रंग की ब्रा और नीचे एक सलवार थी और देवयानी तो पूरी तरह नंगी थी. रुकमी बिस्तर पर सीधी लेटी हुई थी और देवयानी उसके साइड में लेटी उसपर झुकी हुई उसके होंठ चूस रही थी. मुझे समझ नही आया के क्या हो रहा है और क्यूँ हो रहा है और काब्से हो रहा है. दोनो बहानो के बीच ये रिश्ता भी था इसका मुझे कोई अंदाज़ा नही था और अगर आज इस तरह अचानक घर ना आ जाता तो शायद पता भी ना लगता.

देवयानी रुक्मणी पर झुकी हुई कुच्छ देर राक उसके होंठ चूस्ति रही. दूसरे हाथ से वो रुक्मणी की दोनो चूचिया ब्रा के उपेर से ही दबा रही थी. दोनो औरतों को देखकर ही पता चलता था के वो बुरी तरह से गरम थी.

"फिर?" देवयानी ने रुक्मणी के होंठ से अपने होंठ हटाकर कहा.
रुक्मणी ने जवाब में कुच्छ ना कहा. बस तेज़ी से साँस लेती रही. देवयानी का एक हाथ अब भी लगातार उसकी चूचिया मसल रहा था.
"बता ना" देवयानी ने फिर पुचछा
"फिर धीरे धीरे नीचे जाना शुरू करता है" रुक्मणी ने लंबी साँसे लेते कहा. उसकी बात मुझे समझ नही आई.
"साइड लेटके या उपेर चढ़के?" देवयानी ने सवाल किया
"उपेर चढ़के" रुक्मणी ने जवाब दिया
"ऐसे?" कहते हुए देवयानी रुक्मणी के उपेर चढ़ गयी और अपनी दोनो टाँगें उसके दोनो तरफ करके झुक कर दोनो चूचिया फिर दबाने लगी.
"नही मेरे उपेर लेट जाता है और मेरी टाँगो के बीच होता है" रुक्मणी ने फिर आँखें बंद किए हुए ही कहा
उसकी ये बात सुनकर मुझे दूसरा झटका लगा. वो मेरी बात कर रही थी और रुक्मणी देवयानी को ये बता रही थी के मैं उसको चोदता कैसे हूँ.

मैं खामोश खड़ा कमरे के अंदर जो भी हो रहा था उसको देख रहा था. आँखों पर यकीन नही हो रहा था के 2 बहनो में ऐसा भी रिश्ता हो सकता है.
देवयानी अब रुक्मणी के उपेर चढ़ि हुई उसके गले को चूम रही थी और दोनो हाथों से उसकी चूचिया ऐसे दबा रही थी जैसे आटा गूँध रही हो. रुक्मणी की दोनो टांगे फेली हुई हल्की सी हवा में थी.

"ऐसे ही करता है वो?" देवयानी ने रुक्मणी की छातियो पर ज़ोर डालते हुए कहा
"नही और ज़ोर से दबाता है" रुक्मणी ने उखड़ी हुई सांसो के बीच कहा. उसकी दोनो आँखें बंद थी और अपने हाथों से वो उपेर चढ़ि हुई देवयानी का जिस्म सहला रही थी.

"ऐसे?" देवयानी ने उसकी छातियो पर ज़ोर बढ़ाते हुए कहा
"और ज़ोर से" रुक्मणी ने जवाब दिया
"ऐसे?" देवयानी ने इस बार पूरे ज़ोर से रुक्मणी की चूचिया मसल दी.
"आआहह" रुक्मणी के मुँह से आह निकल गयी "हाँ ऐसे ही"

देवयानी ने उसी तरह से ब्रा के उपेर से ही देवयानी की चूचियो को बुरी तरह मसलना शुरू कर दिया. कभी वो उसके होंठ चूस्ति तो कभी गले के उपेर जीभ फिराती. खुद रुक्मणी के हाथ देवयानी की नंगी गांद पर थे और वो उसको और अपनी तरह खींच रही थी, ठीक उसी तरह जैसे वो मेरी गांद पकड़कर मुझे आगे को खींचती थी जब मेरा लंड उसकी चूत में होता था.

"और वो नीचे से कपड़ो के उपेर से ही लंड नीचे को दबाता रहता है" रुक्मणी ने देवयानी के चेहरे को चूमते हुए कहा.
देवयानी उसकी बात सुनकर मुस्कुराइ और अपने घुटने अड्जस्ट करके रुक्मणी की टाँगो को मॉड्कर और हवा में उठा दिया. फिर उसके बाद जो हुआ वो देखकर मेरे जिस्म जैसे सिहर सा उठा. वो रुक्मणी के उपेर लेटी हुई अपनी गांद हिलने लगी और उसकी चूत पर ऐसे धक्के मारने लगी जैसे उसको चोद रही हो.

"ऐसे?" उसने रुक्मणी से पुचछा तो रुक्मणी ने हाँ में सर हिला दिया
अजीब मंज़र था. मेरे सामने एक नंगी औरत अपनी आधी नंगी बहेन पर चढ़ि हुई उसकी टाँगो के बीच धक्के मार रही थी.
"फिर क्या करता है?" देवयानी ने पुचछा

"मुझे उल्टी कर देता है और मेरी कमर पर चूमता है और फिर ब्रा खोल देता है. और जैसे तू आगे से कमर हिला रही है वैसे ही पिछे लंड रगड़ता है" रुक्मणी ने कहा.

मेरे देखते ही देखते देवयानी ने रुक्मणी को उल्टा कर दिया और उसकी कमर को उपर से नीचे तक चूमने लगी. उसके दोनो हाथ रुक्मणी की कमर को सहलाते हुए उसके ब्रा के हुक्स तक पहुँचे जिनको खोलने में एक सेकेंड से भी कम का वक़्त लगा. हुक्स खुलने के बाद देवयानी रुक्मणी के उपेर उल्टी लेट गयी और उसकी गांद पर अपनी कमर हिलाकर ऐसे धक्के मारने लगी जैसे अपनी बहेन की गांद मार रही हो.
"फिर सीधी लिटाकर तेरे निपल्स चूस्ता होगा" इस बार देवयानी ने खुद ही पुचछा तो रुक्मणी ने हाँ में सर हिला दिया.

देवयानी हल्की सी उपेर को हुई और रुक्मणी को अपने नीचे सीधा कर दिया. रुक्मणी का खुला हुआ ब्रा उसकी बड़ी बड़ी चूचियो पर ढीला सा पड़ा हुआ था जिसको देवयानी ने एक झटके में हटाकर एक तरफ फेंक दिया. अपनी बहेन की दोनो चूचिया खुलते ही वो उनपर ऐसे टूट पड़ी जैसे ज़िदगी में पहली बार किसी औरत की चूचिया देख रही हो. जैसे उसके खुद के पास तो चूचिया हैं ही नही. वो एक एक करके रुक्मणी के दोनो निपल्स कभी चूस्ति तो कभी ज़ुबान से चाटने लगती. दोनो हाथ अब भी बुरी तरह से चूचिया दबा रहे थे और खुद रुक्मणी के हाथ भी अपने उपेर चढ़ि हुई अपनी बहेन की छातियो से खेल रहे थे. उसकी दोनो टाँगो के बीच देवयानी के झटके वैसे ही चालू थे जैसे वो उसको चोद रही हो.
 
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