FreeSexKahani - फागुन के दिन चार - Page 14 - SexBaba
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

[color=rgb(235,]जा रे हट नटखट, न छू रे मेरा घूंघट
[/color]

"लेकिन पहले इनके पैरों में घुंघरू बंधेगा." ये गुड्डी थी। उसने वो बैग खोल लिया जो रीत लायी थी। उस में खूब चौड़े पट्टे में बंधे हुए ढेर सारे घूँघरू।

"एकदम-एकदम." संध्या भाभी ने भी हामी भरी।

मैं फिर पकड़ा गया और चंदा भाभी, संध्या भाभी और गुड्डी ने धर पकड़कर मेरे पैरों में घुंघरू बाँध दी। रीत दूर से मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

मैं क्यों उसे बख्शता। मैंने दूबे भाभी को उकसाया- "आप तो कह रही थी की आपकी ननद रीत बहुत अच्छा डांस कर है तो अभी क्यों?"

लेकिन जवाब रीत ने दिया- "करूँगी। करूँगी मैं लेकिन साथ में नाचना पड़ेगा."

"मंजूर." मैं बोला और रीत ने एक दुएट वाले गाना म्यूजिक सिस्टम पे लगा दिया। होली का पुराना गाना। दूबे भाभी को भी पसंद आये ऐसा। क्लासिकल टाइप नटरंग फिल्म का-

[color=rgb(243,]धागिन धिनक धिन,[/color]
[color=rgb(243,]
धागिन धिनक धिन, धागिन धिनक धिन,

अटक अटक झटपट पनघट पर,

चटक मटक इक नार नवेली,

गोरी-गोरी ग्वालन की छोरी चली,
[/color]
[color=rgb(243,]चोरी चोरी मुख मोरी मोरी मुश्कुये अलबेली।[/color]

दूबे भाभी ढोलक पे थी, संध्या भाभी बड़े-बड़े मंजीरे बजा रही थी, चंदा भाभी हाथ में घुंघरू लेकर बजा रही थी। गुड्डी भी ताल दे रही थी।

[color=rgb(65,]कंकरी गले में मारी

कंकरी कन्हैया ने

पकरी बांह और की अटखेली

भरी पिचकारी मारी

सा रा रा रा रा रा रा रा

भोली पनिहारी बोली

सा रा रा रा रा रा रा रा
[/color]

रीत क्या गजब का डांस कर रही थी। संध्या भाभी की रंग से भीगी झीनी साड़ी उसने उठा ली थी और अपने छलकते उरोजों को आधे तीहे ढंकी ब्रा के ऊपर बस रख लिया था। तोड़ा, टुकड़ा उसके पैर बिजली की तरह चल रहे थे-

[color=rgb(184,]अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा[/color]

सबने धक्का देकर मुझे भी खड़ा कर दिया और अगला पार्ट गाने का मैं पूरा किया-

[color=rgb(41,]आया होली का त्यौहार[/color]

[color=rgb(41,]उड़े रंग की बौछार[/color]

[color=rgb(41,]तू है नार नखरेदार, मतवाली रे[/color]

[color=rgb(41,]आज मीठी लगे है तेरी गाली रे[/color]

[color=rgb(41,]ऊ। हाँ हाँ हाँ आ। हो।[/color]

लेकिन वो चपल चपला, हाथों में उसने पिचकारी लेकर वो अभिनय किया की हम सब भीग गए। खास तौर से तो मैं। उसके नयन बाण कम थे क्या?

[color=rgb(243,]
तक तक न मार पिचकारी की धार

हो। तक तक न मार पिचकारी की धार

कोमल बदन सह सके न ये मार

तू है अनाड़ी बड़ा ही गंवार

कजरे में तुने अबीर दिया डार

तेरी झकझोरी से बाज आई होरी से

चोर तेरी चोरी निराली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा
[/color]

और उसके बाद तो वो फ्री फार आल हुआ की पूछो मत। लेकिन इसके पहले सबने तालियां बजायीं खूब जोर-जोर से सिवाय मेरे और रीत के हमारे हाथ एक दूसरे में फँसे थे। वो मेरी बांहों में थी और मैं उसकी।
 
[color=rgb(243,]होली बनारस की[/color]-[color=rgb(226,]देह की[/color]


जो चुनर उसने डांस के समय ओढ़ रखी थी अपनी ब्रा कम चोली के ऊपर।

वो तो मैंने नाचते नाचते ही उससे छीनकर दूर फेंक दी थी और अब उसके अधखुले उभार एक बार फिर मेरे सीने से दब रहे थे। उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे कंधे पे खरोंचे मार रहे थे।

फगुनाहट सिर्फ हम दोनों पे चढ़ी हो ऐसी बात नहीं थी।

संध्या भाभी अब चंदा भाभी के नीचे थी और चंदा भाभी ने जब उनकी टांगें उठायीं तो साया अपने आप कमर तक उठ गया। उनके भरतपुर के दर्शन हम सबको हो गए।

-- लेकिन अब किसी को उन छोटी मोटी चीजों की परवाह नहीं थी। चंदा भाभी का अंगूठा सीधे उनकी क्लिट पे। और दो उंगलियां अन्दर। माना संध्या भाभी ससुराल से होकर आई थी लेकिन अभी भी उनकी बहुत टाईट थी। जिस तरह से उनकी चीख निकली इससे ये बात साफ जाहिर थी पर चंदा भाभी को तो और मजा आ गया था। वो दोनों उंगलियां जोर-जोर से अन्दर गोल-गोल घुमा रही थी। दूसरा हाथ उनके मस्त गदराये जोबन का रस लूट रहा था।

संध्या भाभी सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी छटक रही थी। कभी मजे से कभी दर्द से।

लेकिन चंदा भाभी बोली-

"अरे ननद रानी ये छिनारपना कहीं और जाकर दिखाना। जब से बचपन में टिकोरे भी नहीं आये थे दबवाना शुरू कर दिया था। शादी के पहले 10-10 लण्ड खा चुकी हो। भूल गई पिछली होली मैंने ही बचाया था दूबे भाभी से। वरना मुट्ठी डालना तो तय था। तुमने वायदा किया था की जब शादी से लौटकर आओगी तो जरूर। और अब दो उंगली में चूतड़ पटक रही हो."

"अरे लेगी-लेगी नहीं लेगी तो जबरदस्ती घुटायेंगे." दूबे भाभी बोली।

वो गुड्डी को अब प्रेम पाठ पढ़ा रही थी। उसका एक किशोर उभार उनके हाथ में था और दूसरी टिट होंठों के बीच कस-कसकर चूसी जाती,

तो कभी दूबे भाभी के हाथ गुड्डी के जोबन को रगड़ते मसलते, और कस के निप पिंच कर लेती। गुड्डी की मस्ती में हालत खराब थी, फ्राक के ऊपर के हिस्से तो पहले ही चंदा भाभी ने चीथड़े चीथड़े कर दिए थे, ब्रा का ढक्कन बचा था, गुड्डी का। चंदा भाभी ने तो ब्रा के अंदर हाथ डाल के और हुक खोल के रंग लगा दिया था, लेकिन रंगो की होली तो कब की ख़तम हो चुकी थी अब तो सिर्फ देह की होली चल रही थी, और दूबे भाभी, दूबे भाभी थीं तो ऊपर झाँपर से उनका काम नहीं चलने वाला और उनके हाथ में ताकत भी बहुत थी, बस कस के ब्रा के बीच से

चरचरर र र

और गुड्डी की ब्रा की दोनों कटोरियाँ दो हिस्से में,

पर दूबे भाभी भी तो बड़ी बड़ी चूँचियाँ भी सिर्फ ब्रा से ढंकी थी, एक हुक रीत ने पहले ही तोड़ दिया था, बस एक हुक के सहारे और गुड्डी ने उसे भी खोल दिया और दूबे भाभी की ३६ ++ बड़ी बड़ी चूँचियाँ अच्छी तरह से रंग से लिपि पुती बाहर आ गयीं, आधे से ज्यादा रंग तो मेरे ही हाथ से लगा था दूबे भौजी के जोबन पे।

और अब मुकबला था ११ वी में पढ़ने वाली की उभरती हुयी चूँचियों और भौजी के पहाड़ों के बीच, गुड्डी नीचे दूबे भौजी ऊपर और जैसे चक्की के दो पाटे चल रहे हों, बीच बीच में वो गुड्डी के कान में कुछ कहती और मेरी ओर देखतीं,

अब मैं समझ गया ये सेक्स एजुकेशन का क्लास मेरे लिए चल रहा था की आज रात मुझे गुड्डी के साथ क्या करना है और आज रात ही क्यों मेरे मन की बात चल जाए तो हर रात,

ये नहीं था की मैं मस्ती नहीं कर रहा था, रीत मेरी गोद में और अब उसकी भी जालीदार ब्रा खुल चुकी थी और वो मुझसे भी एक हाथ आगे अपने चूतड़ों को कस कस के कपड़ो में ढंके मेरे जंगबहादुर पे रगड़ रही थी,

लेकिन दूबे भाभी की मज़बूरी थी, गुड्डी के कमर के नीचे अभी दूकान बंद थी, और असली मजा तो उसी खजाने में है।

चंदा भाभी की उँगलियाँ संध्या भाभी के उस खजाने में सेंध लगा चुकी थी, और संध्या भाभी बार बार सिसक रही थीं तो मन तो दूबे भौजी का भी कर रहा था किसी कच्ची कली के प्रेम गली में होली की सैर करने का,

तो जैसे युद्धबंदियों की अदला बदली होती है तो बस उसी तरह उन्होंने रीत की ओर इशारा किया, और रीत पांच कदम दूबे भाभी की ओर तो गुड्डी पांच कदम मेरी ओर, और थोड़ी देर में गुड्डी मेरी गोद में और रीत और दूबे भाभी की देह की होली शुरू हो गयी थी।

रीत के जिस भरतपुर स्टेशन पे मेरी उँगलियाँ आज सुबह से कई बार चक्कर काट चुकी थीं पर दर्शन नहीं हुआ था,

दूबे भाभी जिंदाबाद उनकी कृपा से भरतपुर का आँखों ने नयन सुख लिया। होली में तब से आज तक कितनी बार देखा है, समझदार भाभियाँ ननद की शलवार हो पाजामी हो, नाड़ा कभी खोलती नहीं, सीधे तोड़ देती हैं और दूबे भाभी ने वही किया, और जब तक रीत समझे,

सररर सररर

दूबे भाभी के हाथ, रीत की पजामी सरक के उसके घुटने तक, और दिख गयी,

गुलाबी गुलाबी चिकनी चिकनी

लेकिन बहुत देर तक नहीं वो दूबे भाभी के होंठों के बीच कैद हो गयी और क्या चूस रही थीं वो, और रीत जोर जोर से सिसक रही थी

और चंदा भाभी ने अब तीसरी उंगली भी संध्या भाभी की चूत में घुसेड़ दी। और क्लिट पे कसकर पिंच करके, मेरी ओर इशारा करके, दिखा के बोली-

"अरे चूत मरानो, इसको देख। अपनी कुँवारी अनचुदी बहन को बस दूबे भाभी और अपनी यार के एक बार कहने पे लेकर आने पे तैयार हो गया है भंड़ुआ, यही नहीं राकी से भी चुदवायेगी वो। और तू ससुराल में दिन रात टांगें उठाये रहती होगी और यहाँ उंगली लेने में चीख रही है."

संध्या भाभी मुश्कुराते हुए बोली- "रात दिन नहीं भाभी सिर्फ रात में। दिन में तो कभी कभी। जब मेरे देवर को मौका मिल जाता था या। नंदोई जी आ जाते थे."

और इसके जवाब में चंदा भाभी ने अपनी तीनों उंगलियां बाहर निकल ली और अपने होंठ चिपका दिए संध्या भाभी की चूत पे। दो हाथों से उनकी जांघें कसकर फैलाए हुए थी वो।

चंदा भाभी और संध्या भाभी एक दूसरे की चूत के ऊपर कस-कसकर रगड़ घिस कर रही थी।

रीत और दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी एकदम खुल के मस्ती कर रहे थे, उन्हें कुछ फरक नहीं पड़ रहा था की मैं और गुड्डी बैठे सब देख रहे हैं,

और पहल गुड्डी ने ही की, जरा सा ही सही,

दूबे भाभी के पास से निकलने के समय गुड्डी ने अपनी फटी दो टुकड़ो में बँटी ब्रा को किसी तरह से अपने उभारों पर टिका लिया था, मन तो मेरा बहुत कर रहा था की जैसे दूबे भाभी कस कस के गुड्डी की छोटी छोटी अमिया मसल रही थी, रगड़ रही थी, मैं भी उसी तरह, लेकिन, बस वही

पर गुड्डी, मुझसे भी ज्यादा मुझको जानती थी, और उसने हाथ उठा के बस वहीँ, जैसे उस दिन पिक्चर हाल में, आज से डेढ़ दो साल पहले, जब वो नौवीं में थी और मैंने पहली बार जोबन रस लिया था, भले ही फ्राक के ऊपर से,

और आज तो फ्राक चंदा भाभी ने चीर दी थी और ब्रा दूबे भाभी ने दो टूक कर दी थी,

और जैसे ही मेरा हाथ पड़ा फटी हुयी ब्रा खुद सरक के, उसे मालुम हो गया की इस जोबन का असली मालिक आ गया है और अब मैं कस के खुल के दबा रहा था, मसल रहा था, कभी रीत को रगड़ती दूबे भाभी देख लेती, मुझे देख के मुस्कराती और कभी चंदा भाभी

लेकिन मेरी मस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, और मैंने झुक के गुड्डी के रसीले होंठो को चूम भी लिया, लेकिन गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठेल दी और मैं कस के चूसने लगा,

हाथों को गुड्डी के जोबन रस का सुख मिल रहा था और होंठों को गुड्डी के मुख रस का, और वो भी सबके सामने,

लेकिन तभी छोटा सा विघ्न हो गया, रीत की कोई सहेली आयी थी, वो नीचे से आवाज लगा रही थी, तो रीत और दूबे भाभी दोनों सीढ़ी से उतरकर धड़ धड़ नीचे

पर हम चारों का जोश और बढ़ गया,

चंदा भाभी के तरकस में एक से एक हथियार थे, कभी वो कस कस के संध्या भाभी की चूत कस कस के चाटती और चूस चूस के उन्हें झड़ने के कगार पे ले आती पर जब संध्या भाभी, सिसकती चिरौरी करतीं

" भौजी झाड़ दो, हफ्ता हो गया पानी निकले, मोर भौजी "

बस चंदा भाभी चूसना बंद कर के कस के संध्या भौजी का जोबन रगड़ने लगती, उनके मुंह के ऊपर बैठ के चंदा भाभी अपनी बुर चुसवाती और संध्या भाभी की खूब चासनी से गीली तड़पती, फड़फड़ाती बुर साफ़ साफ़ दिखती और गुड्डी मुझे छेड़ती,

" हे देख तोहरी संध्या भौजी की कितनी रसीली गली है, घुस जाओ न अंदर "

गुड्डी के गाल चूम के मैं बोला " लेकिन मुझे तो इस लड़की की गली में घुसना है "

" तो घुसना न रात भर, मैंने कौन सा मना किया है अरे अभी छुट्टी है वरना यही छत पे तेरी नथ सबके सामने उतार देती " गुड्डी हँसते हुए बोली

संध्या भाभी के ऊपर चढ़ी चंदा भाभी ने गुड्डी को इशारा किया की मेरे मोटे जंगबहादुर को आजाद कर दे, और बस अगले पल वो तन्नाए , फनफनाये बाहर,

और गुड्डी ऊपर से मुठियाते हुए संध्या भाभी को दिखा रही थी, जैसे पूछ रही हो चाहिए क्या,

चंदा भाभी ने संध्या भाभी के मुंह को आजाद कर दिया और अब वो भी गुड्डी के साथ खेल तमाशे में शामिल हो गयीं और संध्या भाभी से बोली

" अरे ननद रानी कुछ मन कर रहा हो तो मांग लो, गुड्डी एकदम मना नहीं करेगी "

" अरे दिलवा दो न अपने यार का " संध्या भाभी मुस्कराते हुए बोली लेकिन गुड्डी कम नहीं थी, मेरे गाल पे खुल के चुम्मा लेते हुए बोली

" यार तो है मेरा, थोड़ा बुद्धू है तो क्या अब मेरी किस्मत में यही है, लेकिन क्या चाहिए ये खुल के बोलिये न "

" लंड चाहिए, इत्ता मोटा लम्बा कड़क है, एक बार चोद देगा तो घिस थोड़े ही जाएगा, हफ्ते भर से उपवास चल रहा है चूत रानी का, गुड्डी तुझे बहुत आशिरवाद मिलेगा, मुझे एक बार दिलवा देगी तो तो तुझे ये हर रोज मिलेगा, जिंदगी भर, सात जनम। "

संध्या भाभी सच में गर्मायी थीं।

लेकिन चंदा भाभी उन्हें अभी और तड़पाना चाहती थी, जैसे मेन कोर्स के चक्कर में लोग स्टार्टर कम खाते हैं एकदम उसी तरह, किनारे पे ले जाके बार बार रुक जाती थीं

चंदा भाभी ने संध्या भाभी को छोड़ दिया और गुड्डी को चुम्मा लेने का, मेरे खूंटे को दिखा के इशारा किया और गुड्डी ने झुक के एक लम्बी सी चुम्मी मेरे सुपाड़े पे जड़ दी।

संध्या भाभी की हालत और खराब हो गयी।

तब तक सीढ़ियों से फिर पदचाप की आवाज सुनाई पड़ी और हम सब के जो भी थोड़े बहुत कपडे थे, देह पर, जंगबहादुर अंदर।

पहले रीत आयी, अपनी उस सहेली को गरियाती और मेरे और गुड्डी के पास बैठ गयी, फिर दूबे भाभी।

हम सब चुप थे, और ये चुप्पी टूटी दूबे भाभी की आवाज से,
 
[color=rgb(41,]. जोगीड़ा
[/color]


और ये टूटा दूबे भाभी की घोषणा के साथ- "अरी छिनारों एक गाना सुनाने के बाद वो भी फिल्मी। चुप हो गए। क्या मुँह में मोटा लण्ड घोंट लिया है। अरे होली है जरा जोगीड़ा हो इस साले को कुछ सुनाओ."

रीत बोलना चाहती थी- "नहीं भाभी लण्ड मुँह में नहीं है कहीं और है."

लेकिन मैंने उसके मुँह पे हाथ रख दिया। और झट से हम दोनों ने कपड़े ठीक किये और इस तरह अलग हो गए जैसे कुछ कर ही नहीं रहे थे।

"भाभी जोगीड़ा सुना तो है लेकिन आता नहीं." रीत बोली।

"अरे बनारस की होकर होली में कबीर जोगीड़ा नहीं। क्या हो गया तुम सबों को, चल मैं गाती हूँ तू सब साथ दे." चंदा भाभी बोली।

गुड्डी और रीत ने तुरंत हामी में सिर हिलाया।

चंदा भाभी और दूबे भाभी चालू हो गईं बाकी सब साथ दे रही थी। यहाँ तक की मुझे भी फोर्स किया गया साथ-साथ गाने के लिए। इन सारंग नयनियों की बात मैं कैसे टाल सकता था।

[color=rgb(243,]अरे होली में आनंद जी की, अरे देवरजी की बहना का सबकोई सुना हाल अरे होली में,[/color]
[color=rgb(243,]
अरे एक तो उनकी चोली पकड़े दूसरा पकड़े गाल,

अरे इनकी बहना का, गुड्डी साली का तिसरा धईले माल। अरे होली में।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कोई उनकी चूची दबलस कोई कटले गाल,

तीन-तीन यारन से चुदवायें तबीयत भई निहाल।

जोगीड़ा सा रा सा रा

अरे हमरे खेत में गन्ना है और खेत में घूंची,

गुड्डी छिनरिया रोज दबवाये भैया से दोनों चूची,

जोगीड़ा सा रा सा रा। अरे देख चली जा।

चारों और लगा पताका और लगी है झंडी,

गुड्डी ननद हैं मशहूर कालीनगंज में रंडी।

चुदवावै सारी रात। जोगीड़ा सा रा रा ओह्ह. सारा।

ओह्ह. जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा।

अरे ओह्ह. जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा। अरे

अरे इनकी बहन की अरे इनकी बहन की बुर से पानी बहता

और गुड्डी की बुर हो गई लासा।

एक ओर से सैंया चोदे एक ओर से भैया।

यारों की लाइन लगी है। जरा सा देख तमाशा
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[color=rgb(243,]जोगीड़ा सा रा सा रा।[/color]

तभी कोई बोला- "अरे डेढ़ बज गए चलो देर हो गई." रीत का चेहरा धुंधला गया। चाँद पे बदली छा गई।

मैंने बात सम्भालने की कोशिश की। दूबे भाभी से मैं बोला- "अरे आप लोगों ने तो गा दिया। लेकिन आपकी इन ननदों ने। सब कहते हैं रीत ये कर सकती है वो कर सकती है."

"मैं फिल्मी गा सकती हूँ होली के भी." रीत बोली।

"नहीं नहीं जोगीड़ा। गा सकती हो तो गाओ वरना चलते हैं देर हो रही है." दूबे भाभी बोली।

"अच्छा चलो। फिल्मी ही लेकिन जोगीड़ा स्टाइल में एकदम खुलकर." मैंने आँख मारकर रीत को इशारा किया। वो समझ गई और बोली ओके चलो तुम्हारे पसंद का।

"मेरा तो फेवरिट वही है, मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त। लेकिन याद रखना होली स्टाइल में." मैं बोला- "और साथ में डांस भी."

फिर तो रीत ने क्या जलवे दिखाए। रवीना टंडन भी पानी भरती।

पहले तो उसने जो घुंघरू मुझे पहनाये गए थे। वो अपने दोनों पैरों में बाँधा और फिर उसने जो चुनरी मैंने हटा दी थी एक बार फिर से अपनी चोली कम ब्रा के ऊपर बस इस तरह ढंकी की एक जोबन तो पूरी तरह खुला था और एक थोड़ा सा चुनर के अन्दर। सिर्फ म्यूजिक उसने स्टार्ट कर दी और साथ में उसके अपने बोल। जो ढप गुड्डी के हाथ में थी वो भी उसने ले ली और चालू हो गई।

[color=rgb(235,]मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त,

नहीं मुझको कोई होश होश, उसपर जोबन का जोश जोश।[/color]

ये कहते हुए उसने चूनर उछाल के सीधे मेरे ऊपर फेंक दी और वो चूचियां उछाली की बिचारे मेरे लण्ड की हालत खराब हो गई। मसल रही थी और जैसे इतना नाकाफी हो मुझे दिखाकर वो अपने दोनों उरोज रगड़ रही थी मसल रही थी।

म्यूजिक आगे बढ़ा।

[color=rgb(184,]नहीं मेरा- कोई दोष दोष मदहोश हूँ मैं हर वक्त वक्त,

मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त।[/color]

बस मैं ये इंतजार कर रहा था की ये इसमें होली का तड़का कैसे लगती है। गाना वैसे भी बहुत भड़काऊ हो रहा था। उसपर जोबन का जोश जोश गाते वो अपनी चोली नीचे कर थोड़ा झुक के चक्कर लेकर चूचियों को बड़ी अदा से पूरी तरह दिखा दे रही थी। फिर उसने अपना हाथ पाजामी की ओर बढ़ाया और थोड़ा और नीचे सरका के वो चूत उभार-उभार के ठुमके लगाये-

[color=rgb(235,]मेरी चूत बड़ी है मस्त मेरी चूत बड़ी है चुस्त चुस्त,

करती है लण्ड को पस्त पस्त। करती है लण्ड को पस्त पस्त।

रख याद मगर तू मेरे दीवाने

तेरा क्या होगा अंजाम न जाने।[/color]

और ये कहते-कहते रीत मेरे पास आ गई और उसने मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। और अपने हाथ से सीधे मेरे लण्ड पे रगड़ते हुए गाने लगी।

[color=rgb(184,]रखूंगी अन्दर हर वक्त वक्त। लण्ड को कर दूंगी एकदम मस्त-मस्त।[/color]

और हम सबने जोरदार ताली बजायी। मेरी ओर विजयी मुश्कान से उसने देखा। मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। संध्या भाभी ने फिर गुहार लगाई। चलो ना। सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।
 
[color=rgb(251,]मेरे कपड़े?
[/color]

सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।

"हे मेरे कपड़े?" मैं जोर से चिल्लाया।

"अरे लाला पहने तो हो, इत्ते मस्त माल लग रहे हो." दूबे भाभी मुश्कुराकर बोली।

"लेकिन इसको पहनकर। अभी मझे गुड्डी के साथ बाजार जाना है फिर रेस्टहाउस। फिर घर." मैं परेशान होकर बोला। अभी तक तो होली का माहौल था लेकिन ये सब चली जायेंगी तो?

"मुझे कोई परेशानी नहीं है अगर आप ये सब पहनकर बाजार चलेंगे। जोगीड़े में तो लड़के लड़कियां बनते ही हैं। लौंडे के नाच में भी। तो लोग सोचेंगे होगा कोई स्साला चिकना नमकीन लौंडा " गुड्डी हँसकर बोली।

रीत ने भी टुकड़ा लगाया- "हे, अगर गुड्डी को आपको साथ ले जाने में परेशानी नहीं है तो फिर किस बात का डर?"

"हे मैंने तुमको दिए थे ना प्लीज दिलवा दो." मैं गुड्डी से गिड़गिड़ा रहा था।

"वो तो मैंने रीत को दे दिए थे बताया तो था ना." गुड्डी खिलखिलाती हुई बोली।

"अरे कुछ माँगना हो तो ऐसे थोड़े ही माँगते हैं। मांग लो ढंग से। दे देगी." संध्या भाभी ने आँख मारकर मुझसे कहा।

"एकदम." रीत ने हँसकर कहा।

मैं- "तो फिर कैसे मांगूं?"

"अरे पैर पड़ो। हाथ जोड़ो। दिल पसीज जाएगा तो दे देगी। अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल." दूबे भाभी बोली।
खैर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। मैंने पूछा- "क्यों दंडवत हो जाऊं?"

और रीत संध्या भाभी और गुड्डी खिलखिला के हँस पड़ी। संध्या भाभी बोली- "क्या बोले। लण्डवत?" और तीनों फिर खिलखिला के हँस पड़ी।

रीत बोली- "अरे इसके लिए तो मैं तुरंत मान जाती। चल गुड्डी.दे देते हैं, जब ढोलक मजीरा और घुंघरू आये थे तो रीत एक बैग भी लाद के ले आयी थी।

और उधर चन्दा, संध्या और दूबे भाभी ने मेरा फिर से चीर हरण शुरू कर दिया। साड़ी, गहने, सब उतार दिए गए लेकिन जो महावर चुन चुन के संध्या भाभी ने लगाया था वो तो पंद्रह दिन से पहले नहीं उतरने वाला था, वही हालत उन दोनों शैतानों के किये मेक अप की थी। इसके साथ मैंने अब देखा, मेरी नाभि के किनारे और जगह-जगह दोनों ने टैटू भी बना दिए थे।

हाँ, पायल और बिछुए, दूबे भाभी ने मना कर दिए उतारने से ये कहकर की सुहाग की निशानी हैं और नथ और कान के झुमके भी नहीं उतरे की ये सब तो आजकल लड़के भी पहनते हैं बल्की साफ-साफ बोलू तो चंदा भाभी ने कहा, जितने चिकने नमकीन लौंडे है सब पहनते हैं, गान्डूओं की निशानी है।

मैंने बहुत जोर दिया की महंगे होंगे तो हँसकर बोली, रीत से कहना। ये सब उसी की कारस्तानी है। लेकिन मैं बताऊं सब 20 आने वाला माल है।

तब तक रीत और गुड्डी ने जादूगर की तरह उस बैग में से हाथ डाल के साथ साथ निकाला।

एक के हाथ में मेरी पैंट और दूसरे के हाथ में शर्ट थी।

"हे भाभी किसे 20 आने वाला माल कह रही हो। कहीं मुझे तो नहीं." हँसकर रीत ने पूछा।

"हिम्मत है किसी की जो मेरी इतनी प्यारी सेक्सी मस्त ननद को 20 आने वाला माल कह दे। जिसके पीछे सारा बनारस पड़ा हो." चंदा भाभी बोली।

"पीछे मतलब। मैं तो सोचती थी की इसकी आगे वाली चीज मस्त-मस्त है." संध्या भाभी भी रीत को चिढ़ाने में शामिल हो गईं।

"अरे आगे-पीछे इसकी सब मस्त-मस्त है। लेकिन इत्ते मस्त गोल-गोल चूतड़ हों तो पीछे से लेने में और मजा आएगा ना। चूची चूतड़ दोनों का साथ-साथ। क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं."

मेरी और देखते हुए चंदा भाभी ने अपनी बात में मुझे भी लपेट लिया।

रीत की बड़ी-बड़ी हँसती नाचती कजरारी आँखें मुझे ही देख रही थी।

मैं शर्मा गया।

रीत शर्ट लेकर मेरी और बढ़ी- "चलो पहनो."

शर्ट तो मेरी ही थी लेकिन रंग बदल चुका था जहां वो पहले झ्क्काक सफेद होती थी अब लाल नीले पीले पता नहीं कितने रंगों की डिजाइन।

मैंने 34सी साइज वाली जो ब्रा मुझे पहनाई गई थी और उसमें भरे रंग के गुब्बारों की ओर इशारा किया- "अरे यार इन्हें तो पहले उतारो."

"क्यों क्या बुरा है इनमें अच्छे तो लग रहे हो." गुड्डी ने आँख नचाकर कहा।

"हे बाबू ये सोचना भी मत। मैंने अपने हाथ से पहनाया है इसको हाथ भी लगाया ना तो बस टापते रह जाओगे." रीत ने जो धमकी दी तो फिर मेरी क्या औकात थी।

"वैसे भी बनियान नहीं है तो शर्ट के नीचे ठीक तो लग रही है." गुड्डी ने समझाया और मुझे याद आया।

मैं- "हाँ मेरी बनयान और चड्ढी। वो."

"अरे जो मिल रहा है ले लो। तुम लड़कों की तो यही एक बुरी आदत है। एक से संतोष नहीं है। एक मिलेगा तो दूसरी पे आँख गड़ाएंगे और तीसरी का नंबर लगाकर रखेंगे." रीत बोली और शर्ट पीछे कर लिया।

मैं सच में घबड़ा गया। इन बनारस की ठग से कौन लगे- "अच्छा चलो रहने दो। ऊपर से ही शर्ट पहना दो." मैं हार कर बोला।

"अरे ब्रा पहनने का बहुत शौक है तुम्हें लगता है। बचपन से घर में किसकी पहनते थे या लण्ड में लगाकर मुट्ठ मारते थे। लाला." संध्या भाभी बोली। चित भी उनकी पट भी उनकी।

रीत ने शर्ट पहना ली तब मैंने देखा। होली मैं जैसे ठप्पे लगाते हैं ना। बस वैसे। लेकिन। रीत के यहाँ ब्लाक प्रिंटिंग होती थी और वो खुद कम कलाकार थोड़े ही थी।

रीत और गुड्डी ने मिलकर मुझे शर्ट पहनाई।

गुड्डी आगे से जब बटन बंद कर रही थी तब मैंने देखा उसपर लाल गुलाबी रंग में मोटा-मोटा लिखा था- "बहनचोद। "

इत्ता बड़ा बड़ा की बहुत दूर से भी साफ दिखे." और उससे थोड़े ही छोटे अक्षरों में उसके नीचे काही रंग में लिखा था-

"बहन का भंड़ुआ। होली डिस्काउंट। बनारस वालों के लिए खास."

और सबसे नीचे मेरे शहर का नाम लिखा था और मेरी ममेरी बहन गुड्डी का स्कूल का नाम रंजीता (गुड्डी) लिखा था। लेकिन सबसे ज्यादा मैं जो चौंका। वो साइड में उंगली से जैसे किसी ने कालिख से लिख दिया हो,

लिखा था रेट लिस्ट पीछे।

अब तक मैंने पीछे नहीं देखा था। जब उधर ध्यान दिया तो मेरी तो बस फट ही गई। जैसे कोई सस्ते विज्ञापन। ऊपर लिखा था-

[color=rgb(51,]खुल गई। चोद लो। मार लो। और उसके नीचे,--- गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।[/color]

उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-

[color=rgb(243,]चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया

चूची मिजवायी- 40 रूपया

चुसवायी- 50 रूपया

चुदवाई- 75 रूपया

सारी रात 150 रूपया।
[/color]

और सबसे खतरनाक बात ये थी की नीचे दो मोबाइल नंबर लिखे थे। बस गनीमत ये थी की सिर्फ 9 नंबर ही दिए गए थे। एक तो मैंने पहचान लिया मेरा ही था। लेकिन दूसरा?

मेरे पूछने के पहले ही रीत बोली- "मेरा है." गुड्डी तो तुम्हारे साथ चली जायेगी तो मैंने सोचा की मैं ही उसकी बुकिंग कर लेती हूँ आखीरकार, तुम्हारी बहन है पहली बार बनारस का रस लूटेगी तो कुछ आमदनी भी हो जाय उसकी और आज कल अच्छा से अच्छा माल बिना ऐड के कहाँ बिकता है?

"तो उस साली का नम्बर क्यों नहीं दिया?" संध्या भाभी ने पूछा।

"अरे तो इस भंड़ुए का क्या होता। मेरे ये कहाँ से नोट गिनते." गुड्डी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा।

"नहीं यार संध्या दी ठीक कह रही हैं। अरे उसके पास भी तो कुछ मेसेज होली के मिलेंगे। मैं तेरा काम आसान कर रही हूँ। जब उसे मालूम होगा की यहाँ कमाई का इतना स्कोप है तो खड़ी तैयार हो जायेगी आने के लिए। तुझे ज्यादा पटाना नहीं पड़ेगा छिनार को। अरे यहाँ ज्यादा लोग है बनारस के लोग रसिया भी होते हैं। डिमांड ज्यादा होगी होली में। टर्न ओवर की बात है। बोल?"

रीत वास्तव में बी॰काम॰ में पढ़ने लायक थी। उसका बिजनेस सेन्स गजब का था।

और जब तक मैं रोकूँ रोकूँ, ...गुड्डी ने दनदनाते हुए। नंबर लिखवा दिया और रीत ने आगे और पीछे जहाँ उसका नाम लिखा था उसके नीचे लिख दिया-
तब तक मुझे ध्यान आया, गुड्डी ने तो पूरा ही दसों नंबर बता दिया।

"हे हे हे ये क्या किया तुम दोनों ने?" मैंने बोला।

गुड्डी को भी लगा तो वो रीत से बोली- "हे यार उसका तो पूरा नम्बर लिख गया। एक मिटा दे ना."

रीत सीधी होती हुई बोली- "अब कुछ नहीं हो सकता। ये ना मिटने वाली स्याही है." और ये नम्बर सबसे ज्यादा बोल्ड और चटख थे।

पैंट पहनने के लिए मेरा साया उतार दिया गया। मैं हाथ जोड़ता रहा- "हे प्लीज बनयान नहीं तो कम से कम चड्ढी तो वापस कर दो."

"बता दूं किसके पास है?" गुड्डी ने आँख नचाकर रीत से पूछा।

"बता दो यार अब ये तो वैसे भी जाने वाले हैं." हँसकर अदा से रीत बोली।

"तुम्हारी सबसे छोटी साली के पास है। गुंजा के पास वो पहनकर स्कूल गई है। कह रही थी की उसे तुम्हारी फील आएगी और वैसे भी उसने तुम्हें अपनी रात भर की पहनी हुई टाप और बर्मुडा दिया था। तो क्या सोचते हो ऐसे ही। एक्सचेंज प्रोग्राम था."

गुड्डी ने हँसते हुए राज खोला।

पैंट पे भी वैसे ही कलाकारी की गई थी।

गनीमत था की पैंट नीली थी लेकिन उसपे सफेद, गोल्डेन पेंट से।

पीछे मेरे चूतड़ पे खूब बड़े लेटर्स में गान्डू लिखा था। आगे भंड़ुआ, गंडुआ और भी बनारसी गालियां। शर्ट मैंने पैंट के अन्दर कर ली की कुछ कलाकारी छिप जाय लेकिन गुड्डी और रीत की कम्बाइंड शरारत के आगे, उन दुष्टों ने इस तरह लिखा था की इसके बावजूद वो नंबर दिख ही रहे थे।

"चलो न अब नीचे नहाने बहुत देर हो रही है। और इनको गुड्डी को जाना भी है." संध्या भाभी बोली और जिस तरह से उन्होंने दूबे भाभी का हाथ पकड़ रखा था उन्हें देख रही थी। एक अजीब तरह की चमक। और वही चमक दूबे भाभी की आँखों में।

और दूबे भाभी ने रीत को भी पकड़ लिया- "चल तू भी."

रीत की निगाहें मेरी और गड़ी थी।

और दूबे भाभी भी दुविधा में थी- "मन तो नहीं कर रहा है इस मस्त माल मीठे रसगुल्ले को छोड़कर जाने के लिए." मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए वो बोली।

"अरे आएगा वो हफ्ते भरकर अन्दर। फिर तो तीन-चार दिन रहेगा ना। बनारस का फागुन तो रंग पंचमी तक चलता है." चंदा भाभी ने उन्हें समझाया।

तय ये हुआ की रीत, चंदा भाभी, दूबे भाभी, और संध्या सब दूबे भाभी के यहाँ नहायेंगी। गुड्डी को तो अलग नहाना था और उसे आज बाल धोकर नहाना था, ज्यादा टाइम भी लगना था की उसके "वो पांच दिन." खतम हो रहे थे। इसलिए वो ऊपर चंदा भाभी के यहाँ जो अलग से बाथरूम था उसमें नहा लेगी।

"और मैं?" मैं फिर बोला।

"अरे इनको भी ले चलते हैं ना अपने साथ नीचे। रंग वंग." लेकिन रीत की बात खतम होने के पहले संध्या भाभी ने काट दी।
"अरे ये तो वैसे ही मस्त माल लग रहे हैं लाल गुलाबी। फिर पहले रंग लगाओ और फिर साफ करो। जा तो रहे हैं अपने मायके। अपनी उस एलवल वाली बहन से साफ करवा लेंगे."

चंदा भाभी ने मेरे कान में कुछ कहा। कुछ मेरे पल्ले पड़ा कुछ नहीं पड़ा। मेरे आँख कान बने उस समय रीत की अनकही बातों का रस पी रहे थे।

तय ये हुआ की मैं छत पे ही रंग साफ कर लूँगा और उसके बाद चंदा भाभी के बेडरूम से लगे बाथरूम में। भाभी मुझे टावल साबुन और कुछ और चीजें दे गईं।

सब लोग निकल गए लेकिन रीत रुकी रही। जाते-जाते मेरा हाथ दबाकर बोली,..... मिलते हैं ब्रेक के बाद.
 
[color=rgb(184,]फागुन के दिन चार -भाग १८[/color]

[color=rgb(184,]मस्ती होली की, बनारस की[/color]



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रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।

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"अकेले अकले." दोनों ने एक साथ मुझे और गुड्डी को देखकर बोला।

"एकदम नहीं." और मैं गुझिया की प्लेट लेकर रीत के पास पहुँच गया। मैंने उसे गुझिया आफर की लेकिन जैसे ही वो बढ़ी मैंने उसे अपने मुँह में गपक ली।

"बड़ा बुरा सा मुँह बनाया." तुम दिखाते हो ललचाते हो लेकिन देने के समय बिदक जाते हो." वो बोली।

चंदा भाभी गुड्डी को लेकर अपने कमरे में चली गयी, कुछ उसे नहाने का सामन देना था। संध्या भाभी और दूबे भाभी पहले ही नीचे चले गए थे, छत पे सिर्फ मैं और रीत बचे थे और मुझे गुड्डी की आठवें जन्म वाली बात याद आ रही थी, न तुझे छोडूंगी, न तेरी माँ बहनो को न सहेलियों को।

"तुम्हीं से सीखा है." गुझिया खाते हुए मैंने बोला।

"लेकिन मैं जबरदस्ती ले लेती हूँ."

हँसकर वो बोली और जब तक मैं कुछ समझूँ समझूँ। उसके दोनों हाथ मेरे सिर पे थे, होंठ मेरे होंठ पे थे और जीभ मुँह में।

जैसे मैंने गुड्डी के साथ किया था वैसे ही बल्की उससे भी ज्यादा जोर जबरदस्ती से। मेरे मुँह की कुचली, अधखाई रस से लिथड़ी गुझिया उसके मुँह में। तब भी उसके होंठ मेरे होंठों से लाक ही रहे।

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[color=rgb(235,]गुंजा
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खुला दरवाजा निकली- गुंजा।

भूत.,,,नहीं सारी, चुड़ैल लग रही थी।

सुबह कैसी चिकनी विकनी होकर गई थी। गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट, बालों में भी। एक इंच जगह नहीं बची थी, चेहरे पे, यहां तक की मोती ऐसे सफ़ेद दांत भी लाल, बैंगनी। कई कोट रंग लगे थे ,



लेकिन स्कूल यूनिफार्म करीब करीब बची, सिवाय,. सही समझा

सबसे जबर्दस्त लग रहा था उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म वाले ब्लाउज़ पे ठीक उसके उरोज पे, उभरती हुई चूची पे किसी ने लगता है निशाना लगाकर रंग भरा गुब्बारा फेंका था। फच्चाक।

और एकदम सही लगा था,. साइड से। लाल गुलाबी रंग। और चारों ओर फैले छींटे। सफ़ेद ब्लाउज यूनिफार्म का एकदम गीला, जुबना से चपका, उभार न सिर्फ साफ़ साफ़ झलक रहे थे बल्कि उस नौवीं वाली के उभार का कटाव, कड़ापन, साइज सब खुल के, मैं उसे दुआ दे रहा था जिसने इतना तक के गुब्बारा मारा था

गुड्डी की निगाह भी वहीं थी।

"ये किसने किया?" हँसकर उसने पूछा। आखीरकार, वो भी तो उसी स्कूल की थी।

"और कौन करेगा?" गुंजा बोली।

"रजउ." गुड्डी बोली और वो दोनों साथ-साथ हँसने लगी।

पता ये चला की इनके स्कूल के सामने एक रोड साइड लोफर है। हर लड़की को देखकर बस ये पूछता है- "का हो रज्जउ। देबू की ना। देबू देबू की चलबू थाना में." और लड़कियों ने उसका नाम रजउ रख दिया है। छोटा मोटा गुंडा भी है। इसलिए कोई उसके मुँह नहीं लगता।

"हे टाइटिल क्या मिली?" गुड्डी ने पूछा।

"धत्त बाद में." उसकी निगाहे मेरी ओर थी।

"अरे जीजू से क्या शर्माना। दे ना तेरे लिए एक गुड न्यूज भी है चल." गुड्डी बोली।

गुंजा ने टाइटिल वाला कागज अपने सीने के पास छिपाने की कोशिश की। और वही उसकी गलती हो गई। मैंने कागज तो छीना ही। साथ में जोबन मर्दन भी कर दिया।
[color=rgb(209,]
"हमने माना हम पे साजन जोबनवा भरपूर है."
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मैंने सस्वर पाठ किया। सही तो है उसकी उठती चूचियों को देखते हुए मैंने कहा।

"बस साजन की जगह जीजा होना चाहिए." गुड्डी ने टुकड़ा लगाया।

"जाइए मैं नहीं बोलती। लेकिन वैसे जीजू आप अच्छे हैं मेरे लिए रुके रहे, लेकिन वो गुड न्यूज क्या है." गुंजा मुश्कुराकर बोली।


"वही तो तेरे जीजा इत्ते फिदा हो गए तेरे ऊपर की रंग पंचमी में हम लोगों के साथ ही रहेंगे और वो भी दो दिन पहले आ जायेंगे। है ना गुड न्यूज." गुड्डी हँसकर बोली।

"अरे ये तो बहुत बहुत अच्छी मस्त न्यूज है। एकदम." और गुंजा आकर मुझसे चिपट गई।

उसकी ठुड्डी उठाकर मैं बोला- "तो फिर कुछ मीठा हो जाए."

"एकदम." वो बोली और उसके होंठ सीधे मेरे होंठों पर।

और मैं सुबह की याद कर रहा था इस स्वॉट सेक्सी टीनेजर ने कैसे मुझसे प्रॉमिस करवाया था और मेरी उँगलियों को बदले में अपनी हवा मिठाई का स्वाद,

मैं गुंजा को प्रॉमिस कर रहा था, पक्का तेरा वेट करूँगा, तेरे स्कूल से तेरे आने के बाद ही, तुझसे होली खेल के ही जाऊँगा , श्योर कसम से

लेकिन गूंजा हड़काते हुए बोली,

" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "

और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,

मेरे दोनों हाथों में गोल गोल हवा मिठाई,


मेरे हाथ अब हलके हलके उन बस आते हुए उरोजों को सहला रहे थे, कभी कस के भी दबा देते तो उसकी हल्की सी सिसकी निकल जाती, तर्जनी से मैं बस उभर रहे निप्स को फ्लिक कर देता और मस्ती से जोबन पथरा रहे थे , उसकी लम्बी लम्बी चल रही थीं, साफ़ था पहली बार किसी लड़के का हाथ वहां पड़ा था।

" बोलो न प्रॉमिस करो न " हलके हलके गूंजा की आवाज निकल रही थी।

मैं बोला ,

" एकदम तुम्हारा वेट करूँगा, बिना तुझसे होली खेले नहीं जाऊँगा, पक्का। जब भी स्कूल से लौटोगी तब तक, प्रॉमिस, पिंकी प्रॉमिस, , फिर थोड़ा सा टोन बदल के कस के पूरी ताकत से उसकी चूँची रगड़ के मैंने पूछा उससे हामी भरवाई,

" मेरा जहाँ मन करेगा, मैं वहां रंग लगाऊंगा, फिर गाली मत देना, गुस्सा मत होना, "

और गुंजा भी, गुड्डी से भी चार हाथ आगे, मुड़ी और मेरे होंठों पर पहले होंठ रखे फिर बोली,
" आप को जहाँ मन करेगा लगाईयेगा लेकिन मेरा भी जहाँ मन करेगा लगाउंगी, और मन भर लगाउंगी, चुप चाप लगवा लीजियेगा, "


जितने जोर से मैं उसे नहीं चूम रहा था उससे ज्यादा जोर से वो मेरे होंठ चूस रही, अपने भीगे गीले झलकते उभार मेरे खुले सीने पे वो टीनेजर रगड़ रही थी,

गुड्डी दूर खड़ी देख रही थी, मुश्कुरा रही थी। मानो कह रही हो, देख लो तुम कह रहे थे ना। बच्ची है। कोई बच्ची वच्ची नहीं है। तुम्हीं बुद्धू हो।

और गुड्डी की बात की ताईद गुंजा के नव अंकुरित उभारकर रहे थे जो मेरे सीने में दब रहे थे। मैंने गुंजा को और कसकर भींच लीया और मैंने भी पहले तो उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबाकर चूसा और फिर उसके गाल पे भी एक छोटा सा किस किया और उसके फूले फूले गालों को मुँह में भरकर हल्के से काट लिया।

उईई वो चीखी। कुछ दर्द से कुछ अदा से। फिर गुड्डी को देखकर बोली-

"देख दीदी जीजू ने काट लिया। कटखने."

गुड्डी उसे देखती मुश्कुराती रही और बोली- "तुम सबसे छोटी साली हो, तुम जानो ये जाने। बिचारे तुम्हारे आने का इंतेजार कर रहे थे तो कुछ तो."

तभी गुड्डी को कुछ याद आया, बोली,

" हे माना यूनिफार्म पे रंग नहीं है लेकिन अंदर, ...?"

शरारत से आँखे नचा के वो मेरी वाली बोली, आखिर वो भी तो उसी स्कूल में पढ़ती थी, बस गुंजा से दो ही क्लास आगे

' कमीनी सब छोड़तीं और वो शाजिया,... " खिलखिलाते हुए गुंजा बोली,

"दिखाओ दिखाओ दिखाओ,... "

मैं गुंजा को गुदगुदी लगाने लगा, लेकिन गुड्डी ने मुझे इशारा किया, सुबह से बनारस की होली खेल के मैं पक्का हो गया था, होली में कुछ भी चलता है और अगर दो एक ओर हों तो, बस पीछे से मैंने उस चंचल रंगी पुती किशोरी की नरम नरम कलाइयां कस के दबोच ली,

और गुड्डी ने आराम से धीरे धीरे, उस का स्कूल का सफ़ेद टॉप उतार के छत के एक कोने में फेंक दिया।

मैं तो पीछे से गुंजा की कलाई पकडे थे लेकिन पीठ पे ही जितना रंग लगा था उसी से मैं चौंक गया, जबरदस्त होली हुयी थी गुंजा की क्लास में।


" हे ये किसके निशान हैं ?" गुड्डी ने सामने से पूछा और गुंजा खिलखिलाती रही, पर गुड्डी बिना मुझे हड़काये कैसे रह सकती थी, तो बोली,

" छोटी स्साली से खाली होली खेलने का शौक है, पूछा नहीं कुछ खाया की नहीं, भूखी तो नहीं है " और गुंजा से बोली,

" बहुत जीजा जीजा करती हो न, देख लो अपने जीजा को, ....चलो मैं लाती हूँ"

चलने के पहले गुंजा को गुड्डी ने हल्का सा धक्का दिया और गुंजा मेरे ऊपर, और मैं नीच।

हम दोनों चौखट के पास बैठे, गुंजा, मेरी साली मेरी गोद में,

और तब मैंने देखा उसकी सहेलियों की बदमाशी, इतना तो मुझे भी अंदाज था मौका पाके लड़कियां टॉप के ऊपर से कभी दबा देती हैं या टॉप की एक दो बटन खोल के ऊपर से अबीर, गुलाल,

लेकिन गुंजा के उभार एक तो वैसे ही जबरदस्त, ऊपर से लाल, काही, नीला, कई कोट रंग अच्छी तरह से उसकी सहेलियों ने रगड़ा पर सबसे मजेदार बात थी

उसकी किसी सहेली के दोनों हाथ के निशान, लगता है गोल्डन पेण्ट दोनों हाथ में लगा के, हथेली फैला के, दोनों उभारों पे पांच पांच उँगलियाँ, जैसे कोई कस कस के उसकी उभरती चूँचीयो पे ,

सुबह स्कूल जाने के पहले इसी टॉप के अंदर छुप छुप के मेरी उँगलियों ने खूब छुआ छुववल खेली थी, हल्के से भी भी दबाया था और कस के रगड़ा भी था,

लेकिन अब एकदम सामने, मैंने गुंजा की कमर को दोनों हाथों से पकड़ रखा था

लेकिन गुंजा, गुंजा थी, गुड्डी की असली छोटी बहन, खुद खींच के उसने मेरे दोनों हाथ अपने रसीले मस्त मस्त किशोर उभारों पर रख के दबा दिए, फिर मैं क्यों छोड़ता, अगर कोई साली खुद अपने हाथ से मीठा मीठा मालपूआ अपने जीजा को खिलाये तो कौन जीजा छोड़ सकता है,

लेकिन, गुंजा के कान पे हलकी सी चुम्मी लेते हुए मैं बोला, " सुन यार, मैं तो पहले से ही टॉपलेस था, सिर्फ छोटी सी तौलिया, और तू भी टॉपलेस हो गयी तो क्या "

गुंजा को जो मैंने और गुड्डी ने मिल के उसके दूनो जुबना को आजाद कर दिया था, उसपे कोई एतराज नहीं था, हाँ मेरे टॉवेल पे शायद था।

उसने अपने छोटे छोटे चूतड़ जरा सा रगड़ा और मेरे जंगबहादुर एक बार फिर से फनफना के तौलिये से बाहर निकल आये, हल्की सी तो गाँठ थी, वो भी ढीली पड़ गयी। मेरी छोटी स्साली उन्ह कर के जरा सा उठी और फिर बैठ गयी, इसी में उसका स्कर्ट पीछे से कमर तक उठ गया और

मेरे मूसल राज की किस्मत खुल गयी। नीचे भी कोई ढक्कन नहीं था। मेरे पहलवान की गुंजा की सहेली से मुलाकात हो गयी।

मुझसे पहले वो खुद हलके हलके अपनी कमर आगे पीछे करने लगी, मोटा खुला सुपाड़ा, आप ही सोचिये किसी गोरी बारी उमरिया वाली दर्जा नौ वाली की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ा जाएगा तो क्या हालत होगी, और साथ में मेरे हाथ भी, साली के जोबन मुट्ठी में होंगे तो रस लेने को कौन जीजा छोड़ देगा, ऊपर से मेरी गुड्डी ने बोल ही दिया की पहली बात गुंजा छोटी नहीं है और दूसरी बात, साली कभी छोटी नहीं होती, साली होती है। और उभार मेरी साली के सच में गुड्डी से थोड़े ही छोटे होंगे, ३० ++,... कम से कम,

तभी तो उसे टाइटल मिली, हम ने माना हम पर साजन जोबनवा भरपूर है,

वो मिडल ऑफ टीन वाली टीनेजर, सिसक रही थी, मेरे गाल पे अपना गाल रगड़ रही थी,

उसके दोनों हाथ मेरे हाथों को हलके हलके दबा रहे थे जिनमे गुंजा के रसकलश थे, जाँघे गुंजा की हल्के फ़ैल रही थी और कमर भी हिल रही थी। और मेरे लिंगराज भी इतनी लिफ्ट पाके हलके हलके ठीक दोनों दोनों फांको के बीच धक्के लगा रहे थे,

मुझे पता था की इस किशोरी की अब क्या चाहिए था, स्कूल की लड़कियों के साथ होली ने इसे एकदम गर्मा दिया था।

और तभी गुड्डी आ गयी, बियर की बोतले और एक प्लेट में वही भांग वाली गुझिया, बियर मैंने उस शोख टीनेजर अपनी साली की ओर बढ़ाई, तो उसने हलके से बोली , मैंने कभी पहले नहीं पी, बुदबुदा के बोली, और मैंने मुंह में लगा के एक तिहाई बियर खुद, तबतक गुड्डी उसे हड़काते बोली

" अरे कैसी साली हो, जो जीजा को मना करती हो, अरे जो चीज पहले कभी नहीं घोंटी वही तो जीजा घोटात्ते हैं "


" तो घोटाये न मैं कब मना कर रही हूँ, देखिये दीदी, आप भी अब अपने वाले की ओर से बोल रही हैं, पहली बात तो मैं उन सालियों में नहीं जो मना करती हैं , मेरी तो एडवांस में हाँ हर चीज के लिए। लेकिन उससे बड़ी दूसरी बात, वो जीजा कौन जो साली के मना करने पे मान पे जाए, जबरदस्ती न, "

खिलखिलाती मेरी छोटी साली बोली,

" स्साली पूरा बोल न,... जबरदस्ती न पेल दे "

हंसती हुयी गुड्डी बोली और कस के एक धौल गुंजा की पीठ पे

और मैंने गुंजा का सर कस के अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुंह में अपना मुंह चिपका के, मेरे मुंह की सारी बियर अब उस कच्ची काली के मुंह में और वो गट गट कर के पी गयी और मेरे हाथ से बियर की बोतल ले एक बार और,

कस के सुड़क गयी,
 
[color=rgb(65,]स्कूल में होली[/color]

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" हे तेरे स्कूल में होली जबरदस्त हुयी " मैंने कस के दोनों उभारों को मसलते हुए पूछा, जहाँ उसकी सहेलियों ने जम के रंग लगाया था।

गुंजा जोर से खिलखिलाई और गुड्डी की ओर इशारा करते बोली,

" अपनी दिलजनिया से पूछिए न, वो भी तो उसी स्कूल में हैं और दो दिन पहले जब ११ वी की छुट्टी हुयी तो क्या मस्ती काटी इनलोगो ने "

गुड्डी ने गुझिया मुझे खिलाते हुए गुंजा को बनावटी गुस्से से हड़काया, " हे ' अपनी ' का क्या मतलब, तू इनकी नहीं है कुछ क्या ?"

अपना हक़ जताते हुए मेरे खड़े खूंटे पे कस कस के अपने छोटे छोटे खुले चूतड़ गुंजा ने कस के रगड़ा, और बोली,

" एकदम हूँ, और साली का हक़ तो पहले होता है वो भी छोटी साली का, इसलिए तो मैं गोद में बैठी हूँ, क्यों जीजू "

और गुंजा ने कस के चुम्मी ली और अबकी गुंजा के मुंह से , उसके मुख रस के स्वाद के साथ बियर मेरे मुंह में।

और गुड्डी ने सुनाना शुरू किया लेकिन हंसी के मारे, वो बोली, एक तो हम दोनों के स्कुल का नाम ऐसे और फिर ही ही ही

बात गुंजा ने पूरी की और आगे होली के बदलते नियमो की बात भी

एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,

लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने अपने हाथ से बियर मुझे पिलाते हुए हंस के बोला,

" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"

" तो चुदवा ले न , देख बेचारे इतनी दुर्गत सह के भी छोटी साली के लिए रुके थे "


गुड्डी ने मेरी ओर देखते हुए गुंजा को चढ़ाया,

गुंजा ने बड़े प्यार से मेरे गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बोली, मेरे जीजू चाहे जो करें और गुड्डी ने स्कूल की होली का किस्सा शुरू किया।

पहले रूल्स बहुत स्ट्रिक्ट थे, जब गुड्डी क्लास ८ में थी, होली एकदम मना थी, लेकिन लड़कियां कहाँ मानती थीं तो जबतक गुड्डी नौ में पहुंची तो अबीर गुलाल की होली परमिट हो गयी लेकिन क्लास में नहीं, और वो भी सिर्फ टीका लगा के,

" दी उसमें क्या मजा आता होगा, जबतक अंदर हाथ डाल के गुब्बारे न रगड़े जाएँ " गुंजा ने बियर की एक घूँट लेते हुए कहा।


गुड्डी उसे देख के मुस्करा रही थी, बोली,

" तू क्या सोचती है, मैं थी न। मैं घर से तो गुलाल ही ले गयी घर पे भी नोटिस आयी थी अगर कोई लड़की रंग लाते हुए पकड़ी गयी या उसके बैग में रंग मिला तो फाइन। लेकिन मैं भी, रस्ते में एक दूकान से पूरे ढाई सौ ग्राम पक्का लाल रंग , ये बोल के की दुपटा रंगना है, और उसी गुलाल में मिला दिया और गुलाल का पैकेट फिर से बंद। स्कूल में भी सब के बैग चेक हुए दो चार के बैग में रंग पकड़ा गया तो वहीँ सब के सामने कान पकड़ के,... और सब पैकेट जब्त। "

फिर मैंने हुंकारी भरते हुए गुड्डी की ओर तारीफ़ की नजर से देखा और गुंजा ने अपने हाथ की बियर की बॉटल से मुझे बियर पिलाया।

असल में बियर पिलाने का कभी अपने मुंह से कभी बियर की बॉटल से गुंजा कर रही थी और भांग वाली गुझिया खिलाने का काम गुड्डी

मेरी तो मज़बूरी थी, दोनों हाथ फंसे थे, बिजी थे, उस सेक्सी किशोरी के उभरते हुए उभारों को मसलने रगड़ने में

और गुड्डी ने जब वो गुंजा की क्लास में थी उस समय की होली का किस्सा आगे बढ़ाया,

गुड्डी बोली,

" तो मेरा और मेरी और छह साथ सहेलियों के पास ' असली गुलाल ' वाला पैकेट था, फिर तो वही पक्का रंग मिला गुलाल, जबतक कोई टीचर देखती तो बस माथे पे और बहुत हुआ तो गाल पे, और टीचर भी तो कभी हम लोगो की तरह थीं तो जहां वो निकलीं,...

बस दो लड़कियां पीछे से हाथ पकड़ती और मैं यूनिफार्म वाले ब्लाउज के खोल के सीधे कबूतरों पे वो वाला गुलाल, और आराम से सहलाना मसलना और साथ में गरियाना भी,

"स्साली जाके अपने भाइयों से चूँची मिजवाओगी, रगड़वाओगी और हम लोगो से मसलवाने में शर्म आ रही है "



" दी एकदम सही कह रही हैं मेरी क्लास में भी करीब आधे से ज्यादा तो अपने भाइयों के साथ ही, ....दो चार तो सगे,रोज घपाघप करवाती हैं, बिना नागा और,... अगले दिन हम लोगो को जलाती हैं। ""

गुंजा मुझे बियर पिलाते बोली।

" लेकिन तब भी तो सूखा रंग ही रहा न, झाड़ झुड़ के " मेरे समझ में अभी गुड्डी की पूरी प्लानिंग नहीं आयी तो मैंने पूछ लिया।

" अरे तो फिर रंगरेज के यहाँ से दुपट्टे रंगने वाले रंग लेने का फायदा क्या, "

गुड्डी मुझे घूरते बोली, फिर उसने राज खोला,

उसकी और सहेलियों ने , कुछ ने रुमाल तो कुछ ने दुप्पट्टे ही स्कूल से निकलने के पहले गीले कर लिए थे और फिर निकलते समय फिर वही, एक ने पीछे से दोनों कलाई पकड़ी और गीली रुमाल या गीले दुपट्टे से तो टॉप के अंदर डाल के निचोड़ दिया, सूखा रंग गीला हो गया, और उसके बाद रगड़ रगड़ के फिर से दोनों गुब्बारे,



ज्यादातर लड़कियां जब हफ्ते भर की होली की छुट्टी के बाद लौटी तब भी उनके रंग पूरी तरह नहीं छूटे थे।

मान गया गुड्डी को मैं,

हम तीनो खूब हँसे, और गुंजा ने जोड़ा,

"तभी दीदी,. पिछले साल से जब आप दसवीं में थी, मुझे याद है , रंग परमिट हो गया था आखिरी दिन लेकिन बस अब दो कंडीशन है, यूनिफार्म पे रंग नहीं पड़ना चाहिए और क्लास में होली नहीं होगी, बाकी कुछ भी कर लो। अब तो आखिरी पीरियड में टीचर सब हर क्लास की, बस अटेंडेंस लेके चली जाती हैं टीचर रूम में और घंटे भर हम लोगों की मस्ती, और आज तो मस्ती हुयी, ....इंटरवल के बाद ही हम लोगो की टीचर चली गयी, बस दो घण्टे,"

"और ये किसने किया,"... गुड्डी ने एक भांग वाली गुझिया को सीधे गुंजा के मुंह में डालते हुए पूछा, "

गुड्डी का इशारा गुंजा के दोनों उभारों पर उँगलियों के निशानों पर था,

" और कौन करेगा, " गुझिया खाते हुए गुंजा बोली और फिर जोड़ा,

' वही शाजिया,



और अकेले पार तो पा नहीं सकती मुझसे तो वो कमीनी छिनार महक, उसने मेरे दोनों हाथ पीछे से पकड़ के अपने दुपट्टे से बाँध दिया और शाजिया ने गोल्डन पेण्ट अपने हाथ में लगा के, पूरे पांच मिनट तक दबाती रही, और बोली, यार तेरे जोबन इत्ते जबरदस्त हैं, जो भी तेरा यार होगा कम से कम मेरा इसी बहाने नाम पूछेगा "

" सच में दोनों बहने होली में एकदम पागल हो जाती हैं " मेरी कुछ समझ में नहीं आया तो गुड्डी ने मैं कुछ बोलूं, उसके पहले एक बियर की बोतल खोल के मेरे मुंह में, और बोलना शुरू कर दी,

" नादिया, ...नादिया है शाजिया की बड़ी बहन, मेरी अच्छी दोस्त है। वो और श्वेता, होली में ऐसे दोनों बौरातीं हैं, लड़कियां तो छोड़, लड़के भी उन दोनों से पनाह मानते हैं, श्वेता से तो कल वीडियो काल पे मिले थे, छुटकी के साथ,... "


और मैंने एक फैसला कर लिया।

गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहनों का तो कानपुर से होली के बाद लौटने का रिजर्वेशन तो कराना ही है , श्वेता का एकदम पक्का, उसने गुड्डी की दोनों बहनों के साथ होली आफ्टर होली में मेरा बटवारा कर लिया था, सर से कमर तक छुटकी के हिस्से, घुटने के नीचे दोनों पैर मंझली के हवाले और कमर से लेकर घुटने तक श्वेता के कब्जे में।

और गुझिया ख़तम कर के गुंजा ने अपने क्लास की होली की हाल बतानी शुरू की, लेकिन उसके पहले गुड्डी ने पूछ लिया और गाने में कौन जीता, और ये बात भी मेरे समझ में नहीं आयी।
 
[color=rgb(243,]होली की मस्ती -[/color][color=rgb(65,]गुंजा की क्लास[/color]


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" और कौन जीतेगा, मेरे प्यारे जीजू की छोटी साली, मेरे और शाजिया के आगे कौन टिकता स्साली छिनार ९ बी वालों की हम लोगो ने फाड़ के रख दी, पहला गाना मैंने शुरू किया,

[color=rgb(226,]"आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."[/color]

कुछ समझ गया और कुछ गुड्डी ने समझा दिया,

क्लास नौ में दो सेक्शन हैं ९ ए और ९ बी, बस टीचर विचर के जाने के बाद, ये मुकाबला पहले तो दोनों ओर से पांच पांच गाने, फिर खुल के गालियां, दोनों क्लास की लड़कियों की ओर से फिर दोनों ओर की दो दो लड़किया और जब दो दो लड़कियों का मुकाबला होगा तो गाली एकदम नयी होनी चाहिए, घिसी पिटी नहीं

और आगे की बात गुंजा ने सम्हाली,

गाली के मामले में जैसे श्वेता है न आपकी सहेली,... वैसी ही शाजिया, और अब उसकी संगत में मैं भी भी , ...एक से एक नई नयी गाली, उधर से पूनम और चंदा थी तो बस शाजिया बोली,

'पूनम की माँ के भोंसडे में छाता डाल के खोल दूंगी" तो चंदा मेरे पीछे पड़ गयी,

'गुंजा के माँ के भोसड़े में छाते की दुकान '

तो शाजिया ने जवाब दिया तेरी माँ की गांड में झाड़ू पेल दूंगी, मोर बन के नाचेंगी,


लेकिन अंत में जीत मेरी ही वजह से मिली, वो सब बस माँ के पीछे, तेरी माँ के बुर में, ये तो हम लोग जैसे हम लोगो ने बोला की

पूनम और चंदा की माँ के भोंसडे में गोदौलिया तो वो सब बोली की

तेरी और शाजिया की माँ के भोंसडे में पूरा बनारस, तो शाजिया बोली की तुम दोनों छिनरों की माँ के भोंसडे में पूरा यूपी और उधर से जैसे जवाब आया तो मैं पहले से तैयार थी बोल दी,

तेरी माँ के भोंसडे में मेरी माँ ,.... बस हम सब जीत गए।

....

मेरी साली इस बेस्ट कह के मैंने कस के गुंजा को चूम लिया

लेकिन गुड्डी शरारत भरी मुस्कान से मुझे और गुंजा को देख रही थी और गुंजा को उकसाते हुए बोली,

"और तेरे जीजा की माँ के, ...."

और बात गुंजा के पाले में छोड़ दी।

गुंजा बदमाशी से अपनी शोख निगाहों से मुझे देखती रही फिर बोली,

"जीजू की माँ के भोसड़े में, जीजू तुम ही बोलो,... क्या जाएगा" और फिर झट्ट से बड़ी बड़ी आँखे नचाती, मुझे दिखाती वो शरारती बोली,

"जीजू की माँ के भोसड़े में, मेरे जीजू का,..."

और कुछ रुक के बात पूरी की

"जीजू के माँ के भोसड़े में मेरे जीजू का लंड. "



और हँसते हुए बोली, "अरे इनकी माँ का ही फायदा करा रही हूँ,"

बात टालने के लिए अब मुझे कुछ करना था वरना ये दोनों मिल के,... तो मैंने गुंजा से उसके क्लास की होली के बारे में पुछा और वो चालू हो गयी।

" वही साली सुनितवा,....



मैंने और महक ने तय कर रखा था आज कुछ भी हो कमीनी को पकड़ेंगे और सबसे कस के रगड़ेंगे, हर बार बच के निकल जाती थी .."

गुंजा ने अपने क्लास की होली का हाल सुनाना शुरू किया, गुड्डी मुस्करा रही थी लेकिन तभी गुंजा को याद आया की मुझे उसकी क्लास की लड़कियों के बारे में तो मालूम नहीं है तो उसने पात्र परिचय कराना शुरू कर दिया,

" अरे जीजू सुनितवा, मेरे क्लास की सबसे बड़ी लंडखोर,"

साफ़ था क्लास की होली के बाद बियर और भांग का असर भी चढ़ गया था उस पे, और बियर की बोतल खाली कर के आगे बढ़ायी बात उसने,

" सबसे पहले उसकी चिड़िया उडी मेरे क्लास, में जानते हैं दो चार महीने पहले नहीं,... पूरे डेढ़ साल पहले "

मेरे मन में उत्सुकता जग गयी, और मैं पूछ बैठा,

" किसके साथ " तो गुंजा बड़े जोर से मुस्करायी और बड़ी बड़ी आँख नचा के, खिलखिलाती हुयी बोली,

" और किसके साथ,... " फिर मामला साफ़ किया,



" जीजा, वो भी कोई सगे रिश्ते के नहीं,... अरे स्साली छिनार खुद ही गर्मायी थी, चूत में आग लगी थी, पड़ोस के मोहल्ले की एक दीदीथीं , पांच छह महीने पहले शादी हुयी थी, बस होली में, ....और ये भी पहुँच गयी, तो जीजू आप ही बताइये, अरे सामने रखी थाली और होली में साली कोई छोड़ता है, ...तो बस उसके जीजू ने भी नहीं छोड़ा, पेल दिया। तो चलिए पेलवा लिया कोई बात नहीं, जीजा साली की बात, लेकिन होली के बाद जब स्कूल खुला तो हम लोगो को इत्ता जलाया,

' अरे यार बड़ा मजा आया जीजा के साथ, ऐसा था वैसा था,"

और उससे भी बढ़ के अपनी बुलबुल खोल के दिखाया, देख जीजू ने धक्के मार मार के कितना लाल कर दिया है। सच में हम लोगो की फांके जैसे चिपकी रहती हैं वैसी नहीं थी, हलकी सी दरार, और सुनीता ने फैला के भी दिखाया, आराम से फ़ैल गयी। "

और वो फिर चुप हो गयी और कभी गुड्डी को देख के, कभी मुझे देख के मुस्कराने लगी, लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन गुंजा खुद ही मुस्करा के कस के मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,

..." उसी दिन मैं आके गुड्डी दी से बोली, दी पटाना आप, ...मजे मैं करुँगी,... छोडूंगी नहीं अभी से बोल दे रही हूँ। "

गुड्डी भी मीठा मीठा मुस्करा रही थी, डेढ़ साल पहले मैंने झट्ट से जोड़ लिया, उस समय तो मेरा गुड्डी का कस के, मामला थोड़ा बहुत देह तक पहुंच गया था, उसकी उँगलियों ने मेरे जंगबहादुर की नाप जोख कर ली थी।

मैं गुंजा या गुड्डी से कुछ बोलता उसके पहले गुंजा सुनीता के बारे में और किस्से चालु कर दी।

" जीजू, चलिए जीजा के साथ तो, ....और साली तो साली होती, छोटी बड़ी नहीं होती,... लेकिन उसके महीने भर के अंदर ही उसके एक फुफेरे भाई थे उससे पूरे सात साल बड़े, बस उसपे सुनीता ने लाइन मारनी शुरू कर दी और उनके साथ भी,... और फिर आके बताती, ...अभी तो चार पांच यार हैं उसके, कोई हफ्ता नहीं जाता जब कुटवाती नहीं और फिर आके हम लोगो को ललचाती है, ख़ास तौर से मुझे महक और शाजिया को, हम तीनो का क्लास में फेविकोल का जोड़ है.,... और अब खाली हम छह सात ही बची हैं "

लेकिन गुड्डी को होली का किस्सा सुनना था, वो भी उसी स्कूल में पढ़ती थी तो उसने कहानी को एड लगायी,

" अरे वो स्साली,सुनीता होली में फसी कैसे,तुम लोगो से "

"मैंने शाजिया और महक ने तय कर लिया था कुछ और लड़कियों से मिल के,.... आज होली में इस स्साली सुनीता की बुलबुल को हवा खिलाएंगे, लेकिन महक जानती थी की वो स्साली जरूर भागने की कोशिश करेगी, पीछे वाली सीढ़ी से, बस मैं और शाजिया तो नौ बी वालो की माँ बहन कर रहे थे,

लेकिन महक की नजर बाज ऐसी सीधे सुनीता पे, और जैसे सुनीता ने क्लास के पीछे वाले दरवाजे से निकलने की कोशिश की वो पंजाबन उड़ के क्या झपट्टा मारा, और फिर दो तीन लड़कियां और, और इधर हम लोग भी जीत गए थे, फिर तो मैं और शाजिया भी, "

मैं और गुड्डी दोनों ध्यान लगा के सुन रहे थे, गुंजा मुस्कराते हुए मेरी आँख में आँख डाल के बोली,

" जीजू, शाजिया, कभी मिलवाउंगी आपसे, ....पक्की कमीनी, लेकिन वो और महक मेरी पक्की दोस्त दर्जा ४ से,...



बस होली में कोई शाजिया की पकड़ में आ जाए,... महक और बाकी लड़कियों ने पीछे से हाथ पकड़ रखा था सुनीता का और शाजिया ने आराम से स्कर्ट उठा के धीरे धीरे चड्ढी खोली सुनीता की, दो टुकड़े किये और अपने बैग में रख ली, और जीजू आप मानेंगे नहीं, शाजिया ने उसकी बिल फैलाई तो भरभरा के सफेदा, और चारो ओर भी, मतलब स्कूल के रस्ते में किसी से चुदवा के आ रही थीं।

कम से कम पांच कोट रंग का और शाजिया ने कस के दो ऊँगली एक साथ उस की बिल में पेल दी, ऊपर वाला हिस्सा मेरे हिस्से में, ...चड्ढी शाजिया ने लूटी और ब्रा मैंने,... फिर मैंने भी खूब कस के रंग पेण्ट सब लगाया।

उस के साथ तो जो होली शुरू हुयी, आज पूरे दो घंटे थे, सीढ़ी वाले रास्ते से कोई जा नहीं सकता था महक उधर ही थी और जब तक फाइनल छुट्टी का घंटा नहीं बजता बाहर का गेट खुलता नहीं। इसलिए खूब जम के अबकी होली हुयी, ब्रा चड्ढी तो सबकी लूटी भी फटी भी, मैंने खुद तीन लूटीं, "

"लेकिन ये बताओ," मैंने उसके उभारो पर बने उँगलियों के निशानों की ओर इशारा किया ये

वो जोर से खिलखिलाई, " मन कर रहा है आपका शाजिया से मिलने का, बताया तो शाजिया के हाथ के निशान हैं लेकिन पहले मैंने ही, मैं सफ़ेद वार्निश वाली ३-४ डिब्बी ले गयी थी बस वही उसकी दोनों चूँचियों पे, एकदम इसी तरह, उसके भी और महक के भी, और शाजिया के तो पिछवाड़े भी, वहां तो छुड़ाने में भी उसकी हालत खराब हो जायेगी। "

हम तीनो ने मिल के चार बियर बॉटल और आधी दर्जन भांग वाली गुझिया ख़त्म कर दी थी और ज्यादा ही दोनों जीजा साली ने,

गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "
 
[color=rgb(243,]गुंजा संग होली की मस्ती
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गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "

"अभी, और कस के, ... अच्छा हुआ ये नहा वहा के थोड़े बहुत चिकने मुकने हो गये हैं, जितना आप छह लोगों ने मिल के लगाया होगा, उससे ज्यादा रगडूंगी, और जब होली के हफ्ते बाद लौटेंगे न तब भी छोटी साली का लगाया रंग नहीं छूटेगा। और कोई जगह नहीं बचेगी, बल्कि अंदर तक, "

दो ऊँगली मेरी ओर दिखा की उसे शोख, शरारती साली ने अपना इरादा साफ़ किया और स्कूल का बैग खोल लिया।

और गुंजा के बैग खोलते ही मैं सहम गया,

बैग खूब फूला हुआ लेकिन, न एक कॉपी, न एक किताब, न पेन न पेन्सिल। सिर्फ रंग, पेण्ट और वार्निश की ढेर सारी डिबिया, एक दो खुली, सफेद चांदी के रंग की, और बाकी बंद।

उस टीनेजर ने मुड़ के अपनी चपल निगाहों से मुझे देखा और हलके से मुस्करायी, फिर रंग का सब भण्डार खाली करने में जुट गयी, सच में जितना रीत, संध्या भाभी, चंदा भाभी और दूबे भाभी ने मिल के लगाया था उससे ज्यादा मेरी छोटी साली ले के आयी थी।

और मेरे पास रंग की एक पुड़िया भी नहीं, लेकिन मुझे दूबे भाभी की सीख याद आयी,

" अरे स्साली, सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत पड़ती है क्या, एकदम बौरहे हो। गाल लाल करो चूम के, चूँची रंगो रगड़ के और बुरिया रंग डालो चोद चोद के "

और मैंने गुंजा को पीछे से धर दबोचा और उस किशोरी के मुलायम मुलायम मक्खन से गालों पर, कस के पहले चुम्मा, फिर होंठों के बीच में दबा के चूसना शुरू कर दिया, और हाथ मेरे कम लालची थे क्या और किस जवान मर्द की उँगलियाँ न होंगी जो दर्जा नौ वाली के छोटे छोटे बस आये आये टिकोरों को न छूना चाहें और यहाँ तो कच्ची मसलने का मौका था, तो गुंजा के छोटे छोटे उभार मेरी हथेलियों में, ... मसला सुबह भी था, लेकिन कपड़ो के अंदर से, थोड़ा सहमति झिझकते,

गुंजा गरमा रही थी, मस्ता रही थी, पीछे से अपने स्कर्ट में ढंके चूतड़ मेरे खड़े पागल खूंटे पे रगड़ रही थी पर हाथ उसके , हाथों में रंग लगाने पेण्ट के डिब्बे खोल के तैयारी करने में लगे थे।

लेकिन मन मेरा भी कर रहा था, यार एक दो लाल रंग की पुड़िया ही मिल जाती कहीं से,

गुंजा छुड़ाते हुए मुझे याद करती, फिर कुछ सोच के वो रंग छोड़ देती,... उसकी सहेलियां उसे चिढ़ाती, ' हे ये रंग किसने लगाया, हमने तो नहीं लगाया,"

और वो छेड़ती सहेलियों को अदा से बोलती, " नहीं बताउंगी, है न कोई ,... एकदम खास वाला। "

एक चीज मैंने जिंदगी में सीख ली थी की जब कहीं से भी मदद मिलने की उम्मीद बंद हो जाए, कोई चांस न बचे तो, ... गुड्डी मदद करती है, और बिना कहे। मेरी हरचीज बिना मेरे कहे उसे जादूगरनी को पता चल जाती है, जो बोलने की मेरी हिम्मत भी नहीं पड़ती वो भी,

तो गुड्डी ने मेरे हाथ में पक्के वाले गुलाबी रंग की एक डिबिया और काही रंग की दी चार पुड़िया कहीं से निकाल के पकड़ा दी , और जब कृपा बरसती है तो हर ओर से, मेरी छोटी साली जब रंगों का जखिरा सम्हाल रही थी तो सफ़ेद वार्निश की एक डिबिया लुढ़की और मेरे हाथ में ,

और होली मैंने ही शुरू कर दी,

और गुड्डी ने हड़का लिया, " हे वो छोटी है, पहले उसे लगाने दो "
लेकिन कहते हैं जब बीबी का मूड खराब हो तो साली काम आती है और मेरी साली तो बहुत ही काम वाली, वो मेरी ओर से बोली,

" लगाइये न जीजू,... दी, लगाने दो इनको, जब मैं लगाउंगी न तो उसके बाद बेचारे लगाने लायक नहीं रहेंगे, इनकी बहिन महतारी सब कर दूंगी आज, ...अभी एकलौती छोटी साली हूँ , "


और जब साली हाँ कर दे, वो भी एक सेक्सी टीनेजर चढ़ती उम्र वाली तो कौन जीजा छोड़ेगा, आठ दस कोट रंग के तो गुंजा पहले ही लगवा के आयी थी, अपनी सहेलियों से , बस मैंने वही वार्निश वाला डिब्बा खोला, और आराम से अपने दोनों हाथों में लगाया फिर,..

उस शोख, चढ़ती उमरिया वाली कोरी कच्ची कली के दोनों गाल मेरे हाथों में,...

रंग वंग तो बस,... असली मजा तो उंगलियों को उन कोमल, पुरइन के पात ऐसे चिकने गालों को छूने में सहलाने में आते हैं, जिन स्निग्ध, मालपुआ ऐसे गालों को छू के जब नजर फिसल जाती है तो उसी में मूसल चंद बौरा जाते हैं, ...आज तो वो गाल मेरे हाथ में थे।

सुबह की होली के बाद जिस तरह से संध्या भाभी और दूबे भाभी ने मुझे रंग लगाया था और नहाने में, छुड़ाने में जो हालत हुयी थी मैं भी कुछ कुछ सीख गया था, ऐसी जगह रंग लगाना जहाँ पहली बात तो जल्दी दिखाई न पड़े और दूसरी बात छुड़ाते समय वहां ठीक से हाथ भी न पहुंचे, तो एक बार वार्निश का कोट उस कोमलांगी के चन्द्रबदन पर लगाने के बाद, मैंने कान के पीछे और ईयर लोब्स पे, गर्दन के पीछे, कन्धों पर, नाक के किनारे किनारे, उन जगहों पर ढूंढ ढूंढ के वार्निश के कोट,

और थोड़ी देर तक उस शोख ने मेरे हाथों को पकड़ने की छुड़ाने की कोशिश भी की, लेकिन फिर बोली,

" ठीक है, जीजू मेरी बारी आएगी न तो मैं भी ऐसी ऐसी जगह लगाउंगी न की आप भी याद करेंगे बनारस में एक साली मिली थी, "

" वो तो हरदम याद रहेगी, छोटी साली वो भी मेरी गुंजा जैसी,... कोई भूल सकता है क्या "मैंने गुंजा को मक्खन लगाया

लेकिन साली तो साली होती है, और मेरी वाली बदमाश नहीं महाबदमाश,

दोनों हाथ तो उसने मेरे छोड़ दिए लेकिन उसके चूतड़ अब खुल के कस के टॉवेल में छुपे ढंके मूसलचंद को रगड़ने लगे, और ये आदत उसकी एकदम उसकी दी गुड्डी पे, दोनों को मुझसे ज्यादा जंगबहादुर से लगाव था और दोनों चाहती थी की वो खुली हवा में सांस ले, पिंजड़े में न रहे, इसलिए वो मुझसे ज्यादा अब वो गुड्डी की बात मानते थे और अब गुंजा की भी।

उस शरारती टीनेजर की शरारत का दो असर हुआ, मूसलचंद फनफनाने लगे और तौलिया सरसराकर नीचे,

" हे उठाने की नहीं होती, "

गुंजा और गुड्डी दोनों एक साथ बोलीं,


लेकिन मैंने भी जब तक गुंजा मेरी अगले कदम के बारे में सोचे हाथ सरक कर सीधे साली की पतली कटीली कमरिया पे, और स्कर्ट भी तौलिये के साथ दोस्ती निभा रही थी,

" जीजू बहुत महंगा पड़ेगा और अब चेहरे से आप का हाथ हट गया है तो दुबारा नहीं जा सकता " गुंजा खिलखिलाते हुए बोल।

और अब चेहरे पर मैं जाना भी नहीं चाहता था,

पहली बात वार्निश की एक ही डिबिया और मैं पूरी की पूरी उसे उस चंद्रमुखी के चेहरे पर खाली कर चुका था और हाथ ललचा रहे थे उस किशोरी के बस आते हुए जुबना का रस लेने को,

वार्निश ख़तम हो गयी थी तो गुड्डी का दिया रंग तो था, तो बस मैंने आराम से हाथ अब रंग पोता, और दोनों जोबन पे,, बस मैं यही सोच रहा था साली हो तो गुंजा ऐसी और ससुराल हो तो गुड्डी के मायके जैसी।

होली में कभी टॉप के ऊपर से हलके से किसी टीनेजर साली के आते हुए उभार छूने का मौका मिल जाए, अगर साथ देने वाली सलहज हो , साली के हाथ पैर पकड़ने को तैयार तो कभी टॉप के अंदर सेंध लगा के उभारो के ऊपरी हिस्से को भी जीजा छू ले तो बस लगता है होली सफल हो गयी, और वैसी साली की जिंदगी भर गुलामी करने को तैयार,

पर यहाँ तो खुद साली अपने हाथ से,

और उभार भी कैसे, एकदम गुदाज, मुलायम, टेनिस बाल की तरह स्पंजी कड़े कड़े भी और मुलायम भी,



मेरे हाथ कुछ देर तक तो मुरव्वत करते रहे फिर कस के कभी दबाते, कभी रगड़ते और थोड़ी देर में पूरा रंग, लेकिन तभी गुड्डी बोली

जैसे क्रिकट के मैच में जिस बाल पर बैट्समन बोल्ड हो जाये, बॉलर खुशिया मनाये लेकिन नो बाल का हूटर बज जाए, एकदम उसी तरह

" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "
 
[color=rgb(61,]गुंजा[/color]


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" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "

मेरी हिम्मत जो गुड्डी की बात नहीं मानता और मैं अलग, वैसे भी गुड्डी का दिया रंग ख़तम हो गया और गुंजा की निगाहें मुझे चिढ़ा रही थीं छेड़ रही थी और मुझे दिखा दिखा के नीले, काही और बैंगनी रंग की कॉकटेल अपने हाथों पे बना रही थी, और फिर वो हाथ मेरे चेहरे पे

और अब मुझे समझ में आया, गुड्डी की बात,

अबतक तो मैं गुंजा को मैं पीछे से पकड़ के रंग लगा रहा था, मूसल चंद भी चूतड़ों के रस में डुबकी लगा रहे थे और अब तो गुंजा सामने थी,

उसके दोनों हाथ मेरे चेहरे पे बिजी, एकदम मुझसे चिपकी, अपने जोबन को मेरे सीने पे रगड़ती और उस पे जो मैंने रंग अभी पोता था वो मेरी चौड़ी छाती पे,

गुंजा की कोमल मुलायम उँगलियाँ मेरे चेहरे पे, किसी गोरी कुँवारी किशोरी की ऊँगली कहीं गलती से भी इधर उधर लग जाए तो लगता है की किसी बिच्छी ने डंक मार दिया, पूरी देह झनझना उठती है और अब मेरे गालों पे, पूरे चेहरे पे, वही बिच्छियां इधर उधर रेंग रही थी, सरसरा रही थीं, उस टीनेजर के कोमल कपोत, मुलायम सफ़ेद पंख मेरे सीने में रगड़ रहे थे और मैं उड़ रहा था,



नीले, काही और बैंगनी रंगों का खतरनाक कॉकटेल, और ऊपर से उस चतुर सुजान का हाथ,

कोई जगह नहीं बच रही थी, नाक के किनारे, कानों के पीछे, और कम से कम दो चार कोट, लेकिन ये तो रंगों का बेस था,

उसके बाद गुंजा ने डिब्बे पे डिब्बे खोलने शुरू किये, सफ़ेद वार्निश के, मुझे तो चोरी से एक मिल गया था, वो कोई दूकान लूट के लायी थी,बीसों, और वो मेरे चेहरे पे, और जो जगहें मैं सोच भी नहीं सकता था,

आँखें बंद करवा के, पलकों और भौंहो तक पे, क्या कोई कोई ब्यूटी पार्लर बाला आयी शैडो और मस्कारा लगाएगी, और गालों पर तो पता नहीं कितनी बार , लेकिन रंग तो बहाना था असली मजा तो गालों को रगड़ने मीसने का है, वार्निश के साथ उस किशोरी के हाथों के रस भी मेरे गालो पे,

पोता चेहरा जा रहा था पर होली तो पूरी देह की हो रही थी,

कभी उसके जोबन, नशीले मतवाले, बरछी ऐसे मेरे सीने में चुभ जाते, धंस जाते कभी वो जान बुझ के अपनी चूँचियों को रंगड़ देती, दबा देती, ये चढ़ती जवानी और उभरते जोबन वाली छोरियां, देखन में छोटे लगे गाह्व करे गंभीर, और जब वो इतनी नजदीक होती तो मेरे बावरे हुरियार मूसल चंद को भी अपनी गुलाबी सहेली को चुम्मा लेने का मौका मिल ही जाता

और अब मुझसे नहीं रहा गया,

मैंने कस के अपनी छोटी साली को गुंजा को दबोच लिया, कस कर मतलब, कस कर, खूब कस के, भींच के

और वो शोख चिंगारी भी लता की तरह लिपट गयी, मुझसे भी कस के, हाँ उसके हाथ दोनों अभी भी मेरे चेहरे पे वार्निश की चौथी कोट कर रहे थे पर अब उसके किशोर ३० सी उभार खुल के मेरे सीने में धंसे हुए रगड़ रहे थे, उसने अपनी दोनों लम्बी टांगों से मेरी टांगों को बाँध लिया था, नागपाश की तरह और कुछ अपनी चुनमुनिया, रस टपकाती जलेबी, मेरे बौराये खूंटे पे, खुले सुपाड़े पे रगड़ रही थी।

और मैं बस पागल नहीं हुआ,

मेरे दोनों हाथ कभी गुंजा की गोरी, खुली चिकनी पीठ पे टहलता तो कभी नीचे चक्कर लगा कर उस कमसिन के छोटे छोटे चूतड़ों को कस के दबोच लेता, आज होली के तरह तरह के रस मिले थे लेकिन ये बिना चढ़ती जवानी वाली छोटी साली से होलिका जो रस मिल रहा था वो सबसे अलग था। जितना मैं गुंजा की पीठ को कस के पकड़ के अपनी ओर खींचता उसके दूने जोर से वो अपनी कच्ची अमिया मेरी छाती में धंसाती, रगड़ती।

मेरे मन के सबसे भीतरी परत में जो बात दबी रहती है, जिसे मुझसे मेरा मन मुझसे भी बोलते सहमता है, वो गुड्डी न सिर्फ सुन लेती है बल्कि कर भी डालती है और तभी मेरा मन उसका बेखरीदा गुलाम है।

गुड्डी ने मेरे हाथों को खोला और आपने हाथों से ढेर सारा गाढ़ा ललाल रंग मेरी हथेलियों में लगा दिया,

और होली दो तरफा शुरू हो गयी, गुंजा की पीठ, कमर, पेट और सबसे ज्यादा मेरा मन जिसके लिए ललचा रहा था , जिसे ठुमका के वो चलती तो उसके मोहल्ले से स्कूल तक सारे लौंडो की पेंट टाइट हो जाती, उस किशोरी के छोटे लेकिन एकदम कसे चूतड़ , बार बार मेरे हाथ वही, और लाल रंग बीच की दरार में भी,

सफ़ेद पेण्ट की गुंजा को कोई कमी तो थी नहीं तो चेहरे के बाद, छाती, कन्धा पेट, पीठ यहाँ तक की हाथ पैर की उँगलियों के बीच और पैरों के तलुवे में भी, फिर वो गुड्डी से बोली,

" दी जरा निहराओ न इनको "


गुंजा के साथ गुड्डी और बौरा जाती है, जैसे सुबह इन दोनों ने मिल के मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिला के मेरी बुरी हालत कर दी थी, वही हाल फिर हो रही थी, दस गुना ज्यादा, वो मुझसे बोली,

' अबे स्साले निहुर, मेरी बहन कुछ कह रही है,... हाँ चूतड़ ऊपर और उठा, टांग फैलाओ कस के जैसे, " और कस के एक हाथ मेरे पिछवाड़े,

" अरे दी साफ़ साफ़ बोलिये न, जैसे, ...कह के क्यों छोड़ दिया, "

खिलखिलाते हुए पिछवाड़े सफेद वार्निश पोतते गुंजा ने गुड्डी को उकसाया।

गुंजा की हंसी, जैसे किसी ने दर्जनों मोती जमीन पर लुढ़का

" तुही बोल दे न, तेरी बात का ज्यादा असर होगा " गुड्डी ने गुंजा को लहकाया,

भांग और बियर का असर मुझसे और गुड्डी से ज्यादा असर गुंजा पे पड़ रहा था, वो मेरे नितम्बो के बीच की दरार पे रंग रगड़ते बोली,

" जीजू जैसे, फिर एक पल के लिए रुक गयी और हंस के बोली, ..."जैसे गाँड़ मरवाने के लिए उठाते हैं, हाँ ऐसे ही " और

जो काम रीत नहीं कर पायी, नौ इंच का डिलडो बाँध के आयी थी,... पर दूबे भाभी ने बचा लिया, ये कह के की अरे छुआ के सगुन कर दो, बाकी का जब होली के बाद आएंगे, तब तो असली वाले से,...वो गुंजा ने कर दिया
,

और गुंजा की ऊँगली गप्प से पूरी की पूरी अंदर,

फिर बाहर निकली तो उसके नीचे दूसरी ऊँगली लगा के, ...वो गुड्डी से बोली

" दी जरा कस के चियारना इनकी,,,,, और जोर लगाओ न " और गुड्डी एकदम गुंजा के साथ, वो दोनों मिल जाए तो किसी की भी ऐसी की तैसी कर दें,

और गुड्डी ने एक खुश खबरी गुंजा को सुनाई,

"तेरे जीजू जब होली के बाद आएंगे तीन चार दिन के लिए तो अपने साथ अपनी ममेरी बहन को ले आएंगे, अब उनकी कोई सगी तो है नहीं तो वो सगी से भी बढ़के,..."

" वाह जीजू हों तो है ऐसे " गुंजा खुश होके बोली, पर गुड्डी ने उसे गरियाया,

" अरे स्साली, जीजू की चमची, पूरी बात तो सुन ली, अपना जो रॉकी है न, दूबे भाभी वाला, उस से गाँठ बँधवायेगी वो, "



गुंजा मुंह फुला के बोली,

" दी आप भी न ऐसे जीजू किस के होंगे, लोग साले सालियों की भी परवाह नहीं करते, ये तो राकी तक की, और वो बेचारा कितना उदास भी रहता है, खाली कातिक में मजा ले पाता था, "

" और क्या इनकी बहिनिया तो हरदम पनियाई रहती है " गुड्डी ने गुंजा की बात में बात मिलाई, लेकिन मुझे पता चला की पिछवाड़े का गुंजा गुड्डी का प्रोग्राम कुछ और भी था, रंग का,

" दी जरा और कस के " कभी गुंजा की आवाज सुनाई पड़ती,

" ये वाला भी " कभी गुड्डी की भी आवाज,

" थोड़ा सा और " गुंजा गुड्डी की सलाह मांगती,

" और क्या, इनकी बहन रॉकी का मुट्ठी इतना मोटा, जब गाँठ अंदर बनालेगा तो हंस हंस के घोंटेंगी,... तो ये थोड़ा सा और "

गुड्डी उसे और भड़काती, लेकिन मुझे खाली सुनाई पड़ रहा था, समझ में कुछ नहीं आ रहा था, क्योंकि बीच बीच में गुंजा की टीनेजर उँगलियाँ, लम्बे नाख़ून बस मेरे पागल खूंटे को कभी छू देती, कभी सहला देतीं,

और दोनों ने मिल के मुझे खड़ा कर दिया,

" क्यों मस्त लग रहे हैं न आपके मनमोहन,' गुंजा ने हँसते हुए गुड्डी से पूछ।

एकदम चांदी की मूरत, बालों तक में सफेद वार्निश और एक नहीं कई कोट,

इसलिए उसने कसम धरवाई थी की जीजू मेरे साथ बिना होली खेले, बिना मुझसे मिले वापस न जाइयेगा,

और फिर स्नैप स्नैप, मेरे मोबाइल से ही दर्जन भर फोटो, और फिर सबके मोबाईल में, गुंजा का जवाब नहीं था

" हे वो जगह क्यों छोड़ दिया " और गुड्डी ने गुंजा के कान में कुछ बोला और वो पहले तो झेंपी फिर खिलखिलाने लगी,

सच में वो आठ नौ इंच एकदम खड़ा, खूब मोटा, उस पे पेण्ट का एक टुकड़ा भी नहीं

" उस की तो अच्छी से और खास रगड़ाई करुँगी, आखिर आज रात भर मेरी दीदी के साथ मजे लेगा, मजे देगा वो "

गुंजा ने गुड्डी को छेड़ा और जब तक गुड्डी एक कस के धौल जमाती, गुंजा छटक के दूर,

" हे चल एक सेल्फी तो ले ले उस के साथ " गुड्डी ने गुंजा को चढ़ाया

" एकदम सही आइडिया तभी तो आप मेरी अच्छी वाली दी हो " गुंजा मुस्करा के बोली और ' उसे पकड़ के एक जबरदस्त सेल्फी , फिर खुले सुपाड़े पे चुम्मी लेते सेल्फी ,

गुड्डी समझ रही थी अब देह की होली का नंबर आ गया है और गुंजा को तो फरक नहीं पड़ता था लेकिन वो जानती थी की मैं किसी के सामने नहीं कर पाऊंगा,एकदम से असहज हो जाऊँगा तो एक घिसा पिटा बहाना बनाया और डांट पड़ी मुझे

लेकिन जो भी जिंदगी भर का अरेंजमेंट चाहते हैं ये पहले से जानते हैं की डांट वांट तो माना हुआ रिस्क है लेकिन उस मजे के आगे

तो अब गुड्डी अगर घंटे दो घंटे में मुझे एक बार कस के नहीं डांटती थी तो मुझे लगता है की ये सारंगनयनी, मेरी मनमोहिनी या तो नाराज है या इसकी तबियत नहीं ठीक है,

" यार तेरे चक्कर में, जल्दी बाजी के, ....अरे नहाने के बाद मैं कपडे धोना भूल गयी, और वो पांच दिन के बाद वाले कपडे, बस आती हूँ "

और वो छत से वापस, कमरे में और दरवाजा भी बंद, लेकिन दरवाजा बंद करने पहले गुंन्जा की ओर दिखा के ऊँगली से गोल बना के उसके अंदर दूसरी उंगल से अंदर बाहर कर के, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल दिखा के अपने मन की बात कह गयी। दरवाजा सिर्फ बंद नहीं हुआ अब्ल्कि अंदर से सिटकिनी लगने की भी आवाज आयी, फटाक।

नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी,

मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
 
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