[color=rgb(251,]सिद्दीकी
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थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई-
"कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,....नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं,... कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं."
इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं।
फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
वार्ता जारी थी-
"नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरूरत नहीं। नहीं मेरा मतलब,.... अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी॰डी॰ में दर्ज कर दिया है, एफ॰आई॰आर॰ भी लिख ली है। जी,... सेठजी का बयान लेने ही मैं आया था। दफा,... जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी। जी,... उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले। नहीं साहब,.... अरे एकदम छोटा मोटा कोई। नहीं,... कोई गलतफहमी हुई है। ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा."
फोन दो सेकंड के लिए दबाकर उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया-
"साले तेरा बाप है। डी॰बी॰ साहेब का फोन है। ये उनके दोस्त हैं."
थानेदार- "जी हाँ एकदम दुरुस्त." और फोन बंद करके मुझे पकड़ा दिया।
माहौल एकदम बदल गया।
जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकड़े थे और हवाई जहाज, टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनायें बना रहे थे, उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए-
"जी माफ कर दीजिये। ये तो इन दोनों ने। साले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे। थाने के लिए तरस जायेंगे। जूते मार लीजिये साहब। लेकिन."
वो दोनों पोलिस वाले भी मेरे पास खड़े थे, लेकिन चरण कम पड़ रहे थे। इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में-
"माताजी। माताजी हम। पापी हैं हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। लेकिन आप तो दयालु हैं, माफ कर दीजिये, हम कान पकड़ते हैं। बरबाद हो जायेंगे। साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बाल बच्चे वाले हैं हम आपके पैरों के दास बनकर रहेंगे."
फर्क चारों ओर पड़ गया था।
दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेकर आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे।
'छोटा चेतन' जो ओवर कांफिडेंट था, के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार-बार मोबाइल लगाता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की ओर देख रहा था।
यहाँ तक की सेठजी भी एक नई नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे।
छोटा चेतन उन तिलंगों का बास दरवाजे की ओर देख रहा था और मैं भी। मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैं कैसे रोकूंगा?
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तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।
क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।
सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6'4." इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।
खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।
एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।
सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-
"साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल." और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।
सिद्दीकी-
"साले भंड़ुवे, क्या बता रहे थे इसे? छोटा मोटा। सारे थानों में इसका थोबड़ा है और। चलो अब होली लाइन में मनाना। पुलिस लाइन में मसाला पीसना। किसी साहब के मेमसाहब का पेटीकोट साफ करना."
तब तक फिर फोन की घंटी बजी।
डी॰बी॰- "सिद्दीकी पहुँचा?"
मैंने बोला- "हाँ."
डी॰बी॰- "उसको फोन दो ना."
मैंने फोन पकड़ा दिया।
सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान फाड़े सुन रहा था। मैं समझ गया था की पब्लिक जितना डी॰बी॰ के नाम से डरी उससे ज्यादा। सिद्दीकी को देखकर। वो बनारस का 'अब तक छप्पन' होगा।
सिद्दीकी- "जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरूरत नहीं है खाली शुक्ला को। जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा। हाँ एक रिवाल्वर और दो चाकू मिले हैं। जी। मैं साथ में एक वज्र लाया हूँ यहीं लगा दिया, ....रामनगर से दो पी॰ए॰सी॰ की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए,... उन्हें गली के बाहर। डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था, साहब ने पहले ही,... मुझे बहुत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जिस तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर."
और उसने फोन मुझे पास कर दिया।
डी॰बी॰ अभी भी लाइन पर थे, कहा- "अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ। तुम लोग."
मैं- "मोबाइल। मतलब?" मेरी कुछ समझ में नहीं आया।
डी॰बी॰- "अरे पोलिस की गाड़ी। भेज रहा हूँ जाना कहां था." वो बोले।
मैंने बताया की घर जा रहा हूँ बस पकड़ के तो वो फिर बोले
- "अरे खाना वाना खाकर घर जाते बस पकड़कर। लेकिन ये सब. "तो ठीक है सिद्दीकी जैसे निकले उसके बाद। हाँ ये बताने की जरूरत नहीं की किसी को बताना मत कुछ भी और तुम्हारे साथ वही है ना। जिसकी चिट्ठी आती थी?"
मैं- "हाँ वही। गुड्डी."
डी॰बी॰- "अरे यार तुम लोग शाम को घर आते। खैर, लौटकर मिलवाना जरूर."
मैंने फोन बंद किया।
सिद्दीकी अभी भी मुझे देख रहा था-
"साहेब बहुत दिन हो गए मुझे भी गुंडे बदमाश देखे साहब। लेकिन जो हाथ आपने लगाये हैं न। बस सुनते थे या। वो जो चीनी टाइप है हाँ जैकी चान उसकी पिक्चर में देखते थे। सब एकदम सही जगह पड़ा है। अभी से ये हालात है तो जब आप यहाँ आयेंगे तो क्या हाल होगा इन ससुरों का? कैडर तो आप का भी यूपी है ना?"
"मतलब?" पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।
सिद्दीकी बोला-
"अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं."
और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-
"ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) बजर में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना."
जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-
"मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा."
थाने के पोलिस वाले चले गए। तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।
गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।
"किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?" मैंने गुड्डी से पूछा।
"साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है." आगे से ड्राइवर बोला।