hotaks444
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अनु की मस्ती मेरे साथ पार्ट--1
फ्रेंड्स ये कहानी मेरी नही है मैने इसे नेट से लिया है ये शायद राज शर्मा की कहानी है
कभी कभी जिंदगी मे ऐसा वाक़या आ जाता है का जीने का मतलब ही
बदल जाता है. मैं एक 45 साल का विधुर आदमी जो मुंबई जैसी जगह
मे रह कर भी प्रूफ रीडर जैसा निक्रिस्ट काम करता हो उसके जीवन
मे कोई चमत्कार की कल्पना करना भी व्यर्थ है. मगर होनी को कौन
टाल सकता हैï
मैं राघवेंद्रा दीक्षित 45 साल का मीडियम कद काठी का आदमी हूँ. शक्ल
सूरत वैसे कोई खास नही है. मैं दादर के एक पुरानी जर्जर
बिल्डिंग मे पहली मंज़िल पर रहता हूँ. जब मैं छ्होटा था तब से ही
इस मकान मे रहता आया हूँ. दो कमरे के इस मकान को आज की तारीख मे
और आज की सॅलरी मे अफोर्ड कर पाना मेरे बस का ही नही था. लेकिन
इस पर मेरे पुरखों का हक़ था और मैं बिना कोई किराया दिए उसमे किसी
मकान मलिक की तरह रहता हूँ. यहीं पर जब मेरे 25 बसंत गुज़रे
तो माता पिता ने एक सीधी साधी लड़की से मेरा विवाह कर दिया. 5 साल
तक हुमारी कोई संतान नही हुई. रजनी उदास रहने लगी थी. उसने हर
तरह के पूजा पाठ. हर तरह के डॉक्टर को दिखाया. आख़िर उसकी
उल्टियाँ शुरू हो गयी. वो बहुत खुश हुई. लेकिन ये खुशी मेरी
जिंदगी मे अंधेरा लेकर आई. कभी ना मिटने वाला अंधेरा. जब
बच्चा 8 महीने का था, एक दिन सीढ़ी उतरते समय रजनी का पैर
फिसला और बस सब ख़त्म. जच्चा बच्चा दोनो मुझे इस दुनिया मे
एकद्ूम अकेला छ्चोड़ कर चले गये.
बुजुर्ग माता पिता का साथ भी जल्दी छ्छूट गया. अब मैं उस मकान मे
अकेला ही रहता हूँ. उस दिन प्रेस से लौट ते हुए रात के साढ़े बारह
बज रहे थे. पता नही मन उस दिन क्यों इतना उचट रहा था.. शाम को
काफ़ी बरसात हो चुकी थी इसलिए लोगबाग अपने घरों मे घुसे बैठे
थे.
मेरा अकेले मे मन नही लग रहा था. रात के बारह बज रहे थे. मैं
घर जाने की जगह सी बीच पर टहलने लगा. सामने पार्क था. जिसमे
सुबह छह बजे से जोड़े आलिंगन मे बँधे दिखने शुरू हो जाते हैं.
लेकिन अब एक दम वीरान पड़ा था. मैं कुच्छ देर रेत पर बैठ कर
समुंद्र की तरंगों को अपने कानो मे क़ैद करने लगा. हल्की फुहार वापस
शुरू हो गयी. मैं उठ कर वापस घर की ओर लौटने लगा. पता नही
किस उद्देश्य से मैं पार्क के अंदर चला गया. पार्क की लाइट्स भी
खराब हो रही थी इसलिए अंधेरा था. अचानक मुझे किसी झाड़ी के
पीछे कोई हलचल दिखी. मैं मुस्कुरा दिया "होंगी लैला मजनू की कोई
जोड़ी. अंधेरे का लाभ उठा कर संभोग मे लिप्त होंगे." मैने अपने
हाथ मे पकड़े टॉर्च की ओर देखा फिर बिना कोई आवाज़ किए घूम कर
झाड़ियों की दूसरी तरफ गया. मुझे घास पर कोई मानव आकृति उकड़ू
अवस्था मे अपने को झाड़ी के पीछे छिपाये हुई दिखी.
"ओह्ह" अचानक उस से एके मुँह से आवाज़ निकली. मैं चौंक गया, वो कोई
लड़की थी. मैने उसकी तरफ टॉर्च करके उसे ऑन किया. जैसे ही रोशनी
हुई वो अपने आप मे सिमट गयी. सामने जो कुच्छ था उसे देख कर मेरा
मुँह खुला का खुला रह गया.
एक कोई 30 साल की महिला बिल्कुल नग्न हालत मे अपने बदन को सिकोड
कर अपनी नग्नता को मेरी आँखों से छिपाने का भरसक प्रयत्न कर
रही थी.
"कौन??? कौन है उधरï ??" मैने आवाज़ लगाई.
"छ्चोड़ दो मुझे छ्चोड़ दो." कह कर वो अपने चेहरे को छिपा कर रोने
लगी. उसका शरीर के कुच्छ हिस्से मे कीचड़ लगा था. वो इस दुनिया
के बाहर की कोई जीव लग रही थी. मैने उसे खींच कर उठाया.
"कौन है तू? क्या कर रही है अंधेरे मे? बुलाउ पोलीस को?" एक
साथ मेरे मुँह से कई सवाल निकल पड़े. जवाब मे वो मेरी छाती से
लग कर सुबकने लगी.
फ्रेंड्स ये कहानी मेरी नही है मैने इसे नेट से लिया है ये शायद राज शर्मा की कहानी है
कभी कभी जिंदगी मे ऐसा वाक़या आ जाता है का जीने का मतलब ही
बदल जाता है. मैं एक 45 साल का विधुर आदमी जो मुंबई जैसी जगह
मे रह कर भी प्रूफ रीडर जैसा निक्रिस्ट काम करता हो उसके जीवन
मे कोई चमत्कार की कल्पना करना भी व्यर्थ है. मगर होनी को कौन
टाल सकता हैï
मैं राघवेंद्रा दीक्षित 45 साल का मीडियम कद काठी का आदमी हूँ. शक्ल
सूरत वैसे कोई खास नही है. मैं दादर के एक पुरानी जर्जर
बिल्डिंग मे पहली मंज़िल पर रहता हूँ. जब मैं छ्होटा था तब से ही
इस मकान मे रहता आया हूँ. दो कमरे के इस मकान को आज की तारीख मे
और आज की सॅलरी मे अफोर्ड कर पाना मेरे बस का ही नही था. लेकिन
इस पर मेरे पुरखों का हक़ था और मैं बिना कोई किराया दिए उसमे किसी
मकान मलिक की तरह रहता हूँ. यहीं पर जब मेरे 25 बसंत गुज़रे
तो माता पिता ने एक सीधी साधी लड़की से मेरा विवाह कर दिया. 5 साल
तक हुमारी कोई संतान नही हुई. रजनी उदास रहने लगी थी. उसने हर
तरह के पूजा पाठ. हर तरह के डॉक्टर को दिखाया. आख़िर उसकी
उल्टियाँ शुरू हो गयी. वो बहुत खुश हुई. लेकिन ये खुशी मेरी
जिंदगी मे अंधेरा लेकर आई. कभी ना मिटने वाला अंधेरा. जब
बच्चा 8 महीने का था, एक दिन सीढ़ी उतरते समय रजनी का पैर
फिसला और बस सब ख़त्म. जच्चा बच्चा दोनो मुझे इस दुनिया मे
एकद्ूम अकेला छ्चोड़ कर चले गये.
बुजुर्ग माता पिता का साथ भी जल्दी छ्छूट गया. अब मैं उस मकान मे
अकेला ही रहता हूँ. उस दिन प्रेस से लौट ते हुए रात के साढ़े बारह
बज रहे थे. पता नही मन उस दिन क्यों इतना उचट रहा था.. शाम को
काफ़ी बरसात हो चुकी थी इसलिए लोगबाग अपने घरों मे घुसे बैठे
थे.
मेरा अकेले मे मन नही लग रहा था. रात के बारह बज रहे थे. मैं
घर जाने की जगह सी बीच पर टहलने लगा. सामने पार्क था. जिसमे
सुबह छह बजे से जोड़े आलिंगन मे बँधे दिखने शुरू हो जाते हैं.
लेकिन अब एक दम वीरान पड़ा था. मैं कुच्छ देर रेत पर बैठ कर
समुंद्र की तरंगों को अपने कानो मे क़ैद करने लगा. हल्की फुहार वापस
शुरू हो गयी. मैं उठ कर वापस घर की ओर लौटने लगा. पता नही
किस उद्देश्य से मैं पार्क के अंदर चला गया. पार्क की लाइट्स भी
खराब हो रही थी इसलिए अंधेरा था. अचानक मुझे किसी झाड़ी के
पीछे कोई हलचल दिखी. मैं मुस्कुरा दिया "होंगी लैला मजनू की कोई
जोड़ी. अंधेरे का लाभ उठा कर संभोग मे लिप्त होंगे." मैने अपने
हाथ मे पकड़े टॉर्च की ओर देखा फिर बिना कोई आवाज़ किए घूम कर
झाड़ियों की दूसरी तरफ गया. मुझे घास पर कोई मानव आकृति उकड़ू
अवस्था मे अपने को झाड़ी के पीछे छिपाये हुई दिखी.
"ओह्ह" अचानक उस से एके मुँह से आवाज़ निकली. मैं चौंक गया, वो कोई
लड़की थी. मैने उसकी तरफ टॉर्च करके उसे ऑन किया. जैसे ही रोशनी
हुई वो अपने आप मे सिमट गयी. सामने जो कुच्छ था उसे देख कर मेरा
मुँह खुला का खुला रह गया.
एक कोई 30 साल की महिला बिल्कुल नग्न हालत मे अपने बदन को सिकोड
कर अपनी नग्नता को मेरी आँखों से छिपाने का भरसक प्रयत्न कर
रही थी.
"कौन??? कौन है उधरï ??" मैने आवाज़ लगाई.
"छ्चोड़ दो मुझे छ्चोड़ दो." कह कर वो अपने चेहरे को छिपा कर रोने
लगी. उसका शरीर के कुच्छ हिस्से मे कीचड़ लगा था. वो इस दुनिया
के बाहर की कोई जीव लग रही थी. मैने उसे खींच कर उठाया.
"कौन है तू? क्या कर रही है अंधेरे मे? बुलाउ पोलीस को?" एक
साथ मेरे मुँह से कई सवाल निकल पड़े. जवाब मे वो मेरी छाती से
लग कर सुबकने लगी.