hotaks444
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चेतावनी ...........दोस्तो ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है
उस प्यार की तलाश में
दोस्तो कहते है ना कि अगर प्यार का रंग जो एक बार किसी पर चढ़ गया तो फिर वो कभी उतारे नहीं उतरता....उस प्यार के रंग के सामने सारे रंग बिल्कुल फीके पड़ जाते है.....और इस प्यार में अगर हवस भी शामिल हो जाए तो फिर.......तब वो प्यार कुछ और ही रूप ले लेता है......फिर सारे रिश्ते नाते, मान मर्यादा ,मान सम्मान, सब कुछ एक पल में मिटाता चला जाता है......तो आइए चलते है उस प्यार की तलाश में जो रिश्तो के बीच शुरू हुआ और ख़तम वहाँ ......जहाँ पर इसकी सारी सीमाए ख़तम हो जाती है......तो आइए मेरे साथ साथ चलिए इस सुनहरे सफ़र पर......उस प्यार की तलाश में .........
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मैं अदिति एक बेहद खूबसूरत लड़की, रंग बिल्कुल दूध की तरफ गोरा और सॉफ.......चिकना बदन........उमर लगभग 20 साल......अभी जवानी मुझ पर पूरे शबाब पर है.......मेरे दिल में भी आज वही अरमान है जो बाकी लड़कियों के होते है इस उमर में......कौन होगा मेरे सपनों का राजकुमार......कैसा दिखता होगा......क्या वो मुझे प्यार करेगा.....कब मिलेगा मुझसे.......मैं उसे इस भीड़ में कैसे पहचानूँगी........कुछ तो ख़ास होगा उसमे.......क्या वो मेरे जज्बातो को समझेगा........क्या मैं उसे खुस रख पाउन्गि........आज भी ये सारे सवाल मुझे पल पल परेशान करते है.......मगर इस दिल में कहीं ना कहीं एक मीठी सी चुभन हमेशा से इस नन्हे से दिल को उस घड़ी के आने का इंतेज़ार करती रहती है.......कब मिलेगा मेरे इन सारे सवालों के जवाब......कब मेरा इंतेज़ार ख़तम होगा........
मैं अपने बिस्तेर पर लेटी हुई अपने हाथ में एक डायरी लेकर इस मीठे से एहसास को उस काग़ज़ के पन्नो पर उतार रही थी.....दिल में हज़ारों सपने लिए और मन में रंगीन ख्वाब लेकर मैं उस आने वाले हसीन पल को शब्दों का रूप दे रही थी......ये एहसास मेरे लिए बिल्कुल नया सा था......अभी तक मेरी ज़िंदगी में किसी लड़के की एंट्री नहीं हुई थी......दोस्ती के ऑफर तो मुझे बहुत आए मगर मैं आज भी उस प्यार को तलाश रही थी जो कभी मैं बचपन से लेकर अब तक अपने सपनों में देखती आ रही थी.....मुझे यकीन था कि मेरे सपनों का राजकुमार मुझे ज़रूर मिलेगा.....मगर कब मिलेगा इसकी ना तो कोई तारीख फिक्स थी और ना ही कोई जगह......
तभी मेरी मम्मी की आवाज़ मेरे कानों में गूँजी और मैं एक बार फिर से अपने सपनों की उस हसीन दुनिया से बाहर निकल गयी.......ये मम्मी का रोज़ का काम था....ख्वमोखवाह वो मेरे सपनों की दुश्मन बनती थी.......मगर कॉलेज भी तो जाना था मुझे.......इस लिए मैं इसी ज़्यादा और कुछ नहीं सोची और फटाफट अपनी डायरी छुपाकर अपने ड्रॉयर में रख दिया और फिर उठकर मैं फ्रेश होने बाथरूम में चल पड़ी......उधेर मम्मी रोज़ की तरह अपना रामायण मुझे सुना रही थी....रोज की उनकी बक बक....मगर वो कितना भी मुझ पर चिल्लाति मुझे उनकी बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता.........
जैसे ही मैं अपने बाथरूम के दरवाज़े के पास पहुँची सामने से मुझे विशाल आता हुआ नज़र आया......वो मुझसे एक साल छोटा था.....उससे मेरी कभी नहीं बनती थी......वो हमेशा मुझसे लड़ा करता था.....मैं भी कहाँ उससे पीछे रहती.......वो शेर तो मैं सवा शेर.......मैं उसे देखकर तुरंत बाथरूम में घुस गयी.......विशाल का मूह देखने लायक था.....मुझे तो एक बार उसके चेहरे को देखकर उसपर बड़ी हँसी आई मगर मुझे और लेट नहीं होना था इस लिए मैं जल्दी से फ्रेश होने लगी......विशाल वही अपने सिर के बाल खीचते हुए मेरी मम्मी से मेरी शिकायत कर रहा था....मुझे उसकी बातें सॉफ सुनाई दे रही थी......अंदर ही अंदर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और मेरी हँसी नहीं रुक रही थी.......मुझे विशाल को चिडाने में बड़ा मज़ा आता था.....वो मेरा कुछ बिगाड़ तो नहीं सकता था मगर मुझसे गुस्सा बहुत होता था......और वैसे भी वो मुझसे गुस्सा होकर करता भी क्या.....
खैर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम से बाहर आई तो वो फ़ौरन बाथरूम में घुस गया.....शकल उसकी देखने लायक थी.......उसके चेहरे पर मेरे लिए गुस्सा अब भी था......मैं उसे चिड़ाते हुए बाहर आई और अपने कमरे में चल पड़ी..
थोड़ी देर बाद मैने एक नीले रंग का सूट पहना और नीचे वाइट कलर की लॅयागी......जो मेरे बदन से अब पूरी चिपकी हुई थी......उन कपड़ों में मेरी फिगर का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता था.......वैसे मुझे जीन्स पहनना थोड़ा ऑड लगता था......ज़्यादातर मैं सूट में ही रहती थी.......मैने अपने बाल सवरे जो इस वक़्त पूरे गीले थे नहाने की वजह से.......फिर आँखों पर हल्का सा काजल लगाया और माथे पर उसी रंग की मॅचिंग बिंदिया......थोड़ा मेकप और फाइनल टच देकर मैं अपने कमरे से बाहर निकली और जाकर सीधे ड्रॉयिंग रूम में डाइनिंग चेर पर बैठ गयी और नाश्ता आने का इंतेज़ार करने लगी.......
तभी मुझे विशाल बाथरूम से बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया......अब भी उसका चेहरा गुस्से से लाल था.....वैसे वो मुझे गुस्से में ज़्यादा क्यूट लगता था......थोड़ी देर बाद वो भी वही डाइनिंग टेबल पर आया और मेरे सामने वाले चेर पर आकर बैठ गया......तभी कमरे में मम्मी आई उनकी हाथों में नाश्ते का ट्रे था.......मम्मी की उमर करीब 46 साल.......दिखने में काफ़ी हेल्ती और मोटी थी.........रंग उनका भी गोरा था मेरी तरह......वो भी जवानी के दिनों में बहुत खूबसूरत रही होंगी मगर अब पहले जैसे खूबसूरती उनके चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी.......कुछ घर की ज़िम्मेदारी की वजह से और कुछ हमारी परवरिश के चलते उन्होने कभी अपने उपर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.....मेरी मम्मी का नाम स्वेता था......
स्वेता- क्यों शहज़ादी .......अब तो तुम इतनी बड़ी हो गयी हो........कभी तुम्हारे अंदर ज़िम्मेदारी नाम की कोई चीज़ आएगी भी या नहीं........या सारी उमर ऐसे ही गुज़ारने का इरादा है.....अरे कुछ दिनों में तेरी शादी हो जाएगी क्या तू अपने ससुराल में भी ऐसे ही रहेगी.......तुझे ज़रा भी होश नहीं रहता कि घर पर काम भी होता है.......मैं अकेले थक जाती हूँ......तुझे मेरा हाथ बटाना चाहिए तो तू सुबेह तक सोती रहती है.........आख़िर ऐसा कब तक चलेगा........
अदिति- क्या मोम......आपका ये प्रवचन सुन सुन कर मैं तो तंग आ गयी हूँ.......जब देखो तब मेरी शादी के चक्कर में पड़ी रहती हो....अरे अच्छा ख़ासा आज़ाद हूँ और आप मुझसे मेरी आज़ादी छीनने पर तुली हुई हो.........और आपको क्या लगता है कि मैं अभी से घर की ज़िम्मेदारी अकेले निभा पाउन्गि........देखो मुझे अभी तो मेरी उमर कहाँ हुई है इन सब चीज़ों के लिए......
उस प्यार की तलाश में
दोस्तो कहते है ना कि अगर प्यार का रंग जो एक बार किसी पर चढ़ गया तो फिर वो कभी उतारे नहीं उतरता....उस प्यार के रंग के सामने सारे रंग बिल्कुल फीके पड़ जाते है.....और इस प्यार में अगर हवस भी शामिल हो जाए तो फिर.......तब वो प्यार कुछ और ही रूप ले लेता है......फिर सारे रिश्ते नाते, मान मर्यादा ,मान सम्मान, सब कुछ एक पल में मिटाता चला जाता है......तो आइए चलते है उस प्यार की तलाश में जो रिश्तो के बीच शुरू हुआ और ख़तम वहाँ ......जहाँ पर इसकी सारी सीमाए ख़तम हो जाती है......तो आइए मेरे साथ साथ चलिए इस सुनहरे सफ़र पर......उस प्यार की तलाश में .........
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मैं अदिति एक बेहद खूबसूरत लड़की, रंग बिल्कुल दूध की तरफ गोरा और सॉफ.......चिकना बदन........उमर लगभग 20 साल......अभी जवानी मुझ पर पूरे शबाब पर है.......मेरे दिल में भी आज वही अरमान है जो बाकी लड़कियों के होते है इस उमर में......कौन होगा मेरे सपनों का राजकुमार......कैसा दिखता होगा......क्या वो मुझे प्यार करेगा.....कब मिलेगा मुझसे.......मैं उसे इस भीड़ में कैसे पहचानूँगी........कुछ तो ख़ास होगा उसमे.......क्या वो मेरे जज्बातो को समझेगा........क्या मैं उसे खुस रख पाउन्गि........आज भी ये सारे सवाल मुझे पल पल परेशान करते है.......मगर इस दिल में कहीं ना कहीं एक मीठी सी चुभन हमेशा से इस नन्हे से दिल को उस घड़ी के आने का इंतेज़ार करती रहती है.......कब मिलेगा मेरे इन सारे सवालों के जवाब......कब मेरा इंतेज़ार ख़तम होगा........
मैं अपने बिस्तेर पर लेटी हुई अपने हाथ में एक डायरी लेकर इस मीठे से एहसास को उस काग़ज़ के पन्नो पर उतार रही थी.....दिल में हज़ारों सपने लिए और मन में रंगीन ख्वाब लेकर मैं उस आने वाले हसीन पल को शब्दों का रूप दे रही थी......ये एहसास मेरे लिए बिल्कुल नया सा था......अभी तक मेरी ज़िंदगी में किसी लड़के की एंट्री नहीं हुई थी......दोस्ती के ऑफर तो मुझे बहुत आए मगर मैं आज भी उस प्यार को तलाश रही थी जो कभी मैं बचपन से लेकर अब तक अपने सपनों में देखती आ रही थी.....मुझे यकीन था कि मेरे सपनों का राजकुमार मुझे ज़रूर मिलेगा.....मगर कब मिलेगा इसकी ना तो कोई तारीख फिक्स थी और ना ही कोई जगह......
तभी मेरी मम्मी की आवाज़ मेरे कानों में गूँजी और मैं एक बार फिर से अपने सपनों की उस हसीन दुनिया से बाहर निकल गयी.......ये मम्मी का रोज़ का काम था....ख्वमोखवाह वो मेरे सपनों की दुश्मन बनती थी.......मगर कॉलेज भी तो जाना था मुझे.......इस लिए मैं इसी ज़्यादा और कुछ नहीं सोची और फटाफट अपनी डायरी छुपाकर अपने ड्रॉयर में रख दिया और फिर उठकर मैं फ्रेश होने बाथरूम में चल पड़ी......उधेर मम्मी रोज़ की तरह अपना रामायण मुझे सुना रही थी....रोज की उनकी बक बक....मगर वो कितना भी मुझ पर चिल्लाति मुझे उनकी बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता.........
जैसे ही मैं अपने बाथरूम के दरवाज़े के पास पहुँची सामने से मुझे विशाल आता हुआ नज़र आया......वो मुझसे एक साल छोटा था.....उससे मेरी कभी नहीं बनती थी......वो हमेशा मुझसे लड़ा करता था.....मैं भी कहाँ उससे पीछे रहती.......वो शेर तो मैं सवा शेर.......मैं उसे देखकर तुरंत बाथरूम में घुस गयी.......विशाल का मूह देखने लायक था.....मुझे तो एक बार उसके चेहरे को देखकर उसपर बड़ी हँसी आई मगर मुझे और लेट नहीं होना था इस लिए मैं जल्दी से फ्रेश होने लगी......विशाल वही अपने सिर के बाल खीचते हुए मेरी मम्मी से मेरी शिकायत कर रहा था....मुझे उसकी बातें सॉफ सुनाई दे रही थी......अंदर ही अंदर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और मेरी हँसी नहीं रुक रही थी.......मुझे विशाल को चिडाने में बड़ा मज़ा आता था.....वो मेरा कुछ बिगाड़ तो नहीं सकता था मगर मुझसे गुस्सा बहुत होता था......और वैसे भी वो मुझसे गुस्सा होकर करता भी क्या.....
खैर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम से बाहर आई तो वो फ़ौरन बाथरूम में घुस गया.....शकल उसकी देखने लायक थी.......उसके चेहरे पर मेरे लिए गुस्सा अब भी था......मैं उसे चिड़ाते हुए बाहर आई और अपने कमरे में चल पड़ी..
थोड़ी देर बाद मैने एक नीले रंग का सूट पहना और नीचे वाइट कलर की लॅयागी......जो मेरे बदन से अब पूरी चिपकी हुई थी......उन कपड़ों में मेरी फिगर का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता था.......वैसे मुझे जीन्स पहनना थोड़ा ऑड लगता था......ज़्यादातर मैं सूट में ही रहती थी.......मैने अपने बाल सवरे जो इस वक़्त पूरे गीले थे नहाने की वजह से.......फिर आँखों पर हल्का सा काजल लगाया और माथे पर उसी रंग की मॅचिंग बिंदिया......थोड़ा मेकप और फाइनल टच देकर मैं अपने कमरे से बाहर निकली और जाकर सीधे ड्रॉयिंग रूम में डाइनिंग चेर पर बैठ गयी और नाश्ता आने का इंतेज़ार करने लगी.......
तभी मुझे विशाल बाथरूम से बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया......अब भी उसका चेहरा गुस्से से लाल था.....वैसे वो मुझे गुस्से में ज़्यादा क्यूट लगता था......थोड़ी देर बाद वो भी वही डाइनिंग टेबल पर आया और मेरे सामने वाले चेर पर आकर बैठ गया......तभी कमरे में मम्मी आई उनकी हाथों में नाश्ते का ट्रे था.......मम्मी की उमर करीब 46 साल.......दिखने में काफ़ी हेल्ती और मोटी थी.........रंग उनका भी गोरा था मेरी तरह......वो भी जवानी के दिनों में बहुत खूबसूरत रही होंगी मगर अब पहले जैसे खूबसूरती उनके चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी.......कुछ घर की ज़िम्मेदारी की वजह से और कुछ हमारी परवरिश के चलते उन्होने कभी अपने उपर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.....मेरी मम्मी का नाम स्वेता था......
स्वेता- क्यों शहज़ादी .......अब तो तुम इतनी बड़ी हो गयी हो........कभी तुम्हारे अंदर ज़िम्मेदारी नाम की कोई चीज़ आएगी भी या नहीं........या सारी उमर ऐसे ही गुज़ारने का इरादा है.....अरे कुछ दिनों में तेरी शादी हो जाएगी क्या तू अपने ससुराल में भी ऐसे ही रहेगी.......तुझे ज़रा भी होश नहीं रहता कि घर पर काम भी होता है.......मैं अकेले थक जाती हूँ......तुझे मेरा हाथ बटाना चाहिए तो तू सुबेह तक सोती रहती है.........आख़िर ऐसा कब तक चलेगा........
अदिति- क्या मोम......आपका ये प्रवचन सुन सुन कर मैं तो तंग आ गयी हूँ.......जब देखो तब मेरी शादी के चक्कर में पड़ी रहती हो....अरे अच्छा ख़ासा आज़ाद हूँ और आप मुझसे मेरी आज़ादी छीनने पर तुली हुई हो.........और आपको क्या लगता है कि मैं अभी से घर की ज़िम्मेदारी अकेले निभा पाउन्गि........देखो मुझे अभी तो मेरी उमर कहाँ हुई है इन सब चीज़ों के लिए......