Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में - Page 7 - SexBaba
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Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में

मम्मी के रहते मैं विशाल से चुदवा नहीं सकती थी.......दिन में तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता था......मगर रात में चान्सस ज़्यादा थी मगर रिस्क भी उतना था.........क्यों की मम्मी पापा रात के वक़्त कई बार पानी पीने या बाथरूम के लिए बाहर आते थे.......उनका कमरा मेरे कमरे के बगल में था......और वही विशाल का कमरा सबसे आखरी में था.........इस लिए जब भी विशाल के कमरे में जाना हो तो मम्मी पापा के कमरे के सामने से होकर जाना पड़ता था........

मगर कहते है ना कि अगर शेर के मूह में खून लग जाए तो वो कभी उस स्वाद से दूर नहीं रह सकता......कुछ ऐसा ही हाल अब विशाल और मेरा था........उसे भी चूत की लत पड़ चुकी थी और मुझे उसके लंड की..........
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आज पूरे 4 दिन बीत चुके थे मेरा बहुत बुरा हाल था......मेरी चूत हर वक़्त गीली रहती थी......मुझे विशाल की सख़्त ज़रूरत थी उससे कहीं ज़्यादा उसके लंड की.......उधेर विशाल का भी कुछ वैसा ही हाल था.......वो भी हर पल बेचेन रहा करता था......दिन भर हम कॉलेज में होते तो वहाँ तो कोई मौका नहीं मिलता........और फिर घर पर भी कुछ वैसा ही हाल था.......मम्मी हर वक़्त मेरे साथ रहती थी कभी कभी तो मुझे मम्मी पर बहुत गुस्सा भी आता था........

ऐसे ही एक दिन जब मैं सुबेह सुबेह किचन में नाश्ता बना रही थी तभी विशाल किचन में आया और आकर वो मेरे पीछे सट कर मुझसे खड़ा हो गया.........उसने अपने दोनो हाथ मेरे सीने पर रख दिए और मेरे नरम बूब्स को धीरे धीरे अपने कठोर हाथों से मसल्ने लगा......मैं फिर से सिसक पड़ी थी वही मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था.......उससे कहीं ज़्यादा मेरे अंदर डर था की कहीं अगर किसी ने देख लिया तो क़यामत आ जाएगी......मैं विशाल को अपने से दूर करते हुए बोली......

अदिति- विशाल.......ये क्या कर रहे हो....अगर मम्मी पापा ने देख लिया तो......

विशाल- दीदी आज पूरा एक हफ़्ता गुज़र गया.......आपको क्या मालूम कि इस वक़्त मेरी कैसी हालत है.......अब मुझसे बर्दास्त नहीं होता.......प्लीज़ एक बार मुझे फक करने दो ना......
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अदिति- क्या!!!! तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक है ना विशाल......यहाँ पर......और इस वक़्त......तुम होश में तो हो.......

विशाल- मैं पूरे होश में हूँ दीदी.......मुझे इस वक़्त सबसे ज़्यादा आपकी ज़रूरत है......मम्मी इस वक़्त बाथरूम में है और पापा अपने रूम में.......अगर आज आपने मुझे अपनी चूत नहीं दी तो मैं आपसे कभी बात नहीं करूँगा.......

मेरे होश उड़ चुके थे मुझे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था कि मैं विशाल के बातों का क्या जवाब दूं.......मैं उसे दुखी नहीं करना चाहती थी मगर सवाल ये था की सुबेह के वक़्त आज सब घर पर थे और मम्मी पापा के रहते मैं ये सब.......आज तो हमारे कॉलेज की छुट्टी भी थी.

विशाल- उतारो ना दीदी अपनी ये लॅयागी.......मैं बहुत जल्दी फारिग हो जाऊँगा......विशवास करो मेरा.......कुछ नहीं होगा.........

अदिति -मगर विशाल.......अब भी मेरे चेहरे पर सवाल थे........

विशाल फिर मेरी बातों का परवाह किए बगैर उसने मेरी लॅयागी को धीरे धीरे नीचे की तरफ सरकाने लगा और मेरी लॅयागी को घुटनो तक नीचे कर दिया......फिर उसने मेरी पैंटी भी सरका कर मेरे घुटनों के नीचे कर दी........अब इस वक़्त मैं किचन में नंगी हालत में खड़ी थी......मेरी चूत ना जाने क्यों गीली होती जा रही थी....मगर डर भी बहुत लग रहा था.....मम्मी कभी भी किचन में आ सकती थी......अगर उन्होने हमे इस हाल में देख लिया तो फिर हमे उपर वाला भी आज नहीं बचा सकता था..........
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मैं विशाल का बिल्कुल विरोध नहीं कर सकी और इधेर विशाल फ़ौरन अपने पेंट की चैन खोलकर उसने अपना लंड अंडरवेर से बाहर निकाला और अगले ही पल वो अपना लंड मेरी चूत पर सेट करके एक ही झटके में अपना लंड मेरी चूत में पूरा उतरता चला गया......मेरे मूह से एक हल्की सी सिसकारी फुट पड़ी........मैने अपने दोनो हाथ किचन के स्लॅप पर रख दिए और विशाल को अपने जिस्म के साथ मनमानी करने देने लगी.......विशाल मेरे दोनो बूब्स को सूट के उपर से मसल रहा था वही तेज़ी से मेरी चूत भी चोद रहा था..........
 
मैं तो उपर वाले से दुवा कर रही थी कि विशाल जल्दी से फारिग हो जाए.......विशाल की धक्कों की स्पीड अब बढ़ती जा रही थी.......करीब 5 मिनिट तक विशाल मेरी चूत मारता रहा तभी मम्मी की आवाज़ मुझे सुनाई दी और अगले ही पल मेरे जिस्म में डर की एक तेज़ लहर दौड़ पड़ी.......मैं विशाल को पीछे की ओर धकेल्ति तभी उसका कम छूट पड़ा और उसने मुझे और ज़ोरों से भीच लिया और मेरी गान्ड को कसकर अपने दोनो हाथों से पकड़े रहा और ऐसे ही अपना लंड का सारा कम मेरी चूत की गहराई में उतारता रहा..........
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मैं ही जानती थी कि उस वक़्त मेरी का हालत हो रही थी.....मम्मी कभी भी किचन में आ स्काती थी....तभी मैं विशाल को पीछे की ओर धकेलने लगी और उसके कानो में धीरे से कहा कि मम्मी आ रही है फिर मैं बिना देर किए अपनी पैंटी और लॅयागी उपर की ओर सरकाने लगी तभी कमरे में मम्मी एंटर हुई और मेरे पीछे खड़े विशाल को देखकर वो उसे घूर घूर कर देखने लगी........

इस वक़्त मेरी हालत बहुत खराब थी......जैसे तैसे मैने अपना कपड़ा सही किया मगर क्या पता विशाल ने अपना लंड पेंट के अंदर किया था या नहीं.......ये सोचकर मेरी हालत डर से और खराब हो चुकी थी वही दूसरी तरफ विशाल का कम मेरी चूत से बाहर की ओर बह रहा था जिससे मेरा वहाँ खड़ा होना भी मुश्किल होता जा रहा था.........मम्मी फिर मेरे बगल में आई तो विशाल ने मुझसे थोड़ी दूर बना रखी थी......इस वक़्त हम दोनो के चेहरे पर पसीने सॉफ दिखाई दे रहे थे........मम्मी कभी मेरे चेहरे की तरफ देख रही थी तो कभी विशाल के चेहरे की तरफ.....

स्वेता- विशाल...... तू यहाँ क्या कर रहा है.......

विशाल- ओह...मम्मी.....बस भूक लगी थी तो सोचा कि खुद ही आकर नाश्ता कर लूँ.......
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मम्मी विशाल को बड़े गौर से देख रही थी....उनका इस तरह से देखना मेरे दिल में डर भी बढ़ता जा रहा था.........कहीं मम्मी ने हमे देख तो नहीं लिया..........अगर ऐसा हुआ होगा तो आज हमारी खैर नहीं.......मैं अपने दिल को बार बार समझा रही थी कि कुछ नहीं होगा......मगर मेरे दिल से डर निकालने का नाम ही नहीं ले रहा था......वही दूसरी तरफ मेरी पैंटी पूरी तरह से भीग चुकी थी विशाल के कम से......मेरा अब वहाँ खड़ा होना भी मुश्किल होता जा रहा था.......

स्वेता- तुम जाओ अपने कमरे में विशाल........मैं तुम्हारे लिए नाश्ता ले आती हूँ......विशाल एक नज़र मेरी तरफ देखने लगा मैं बार बार उससे अपनी नज़रें चुरा रही थी........फिर वो मम्मी की तरफ देखकर अपने कमरे में चुप चाप चला गया........विशाल के जाते ही मम्मी मुझे सिर से लेकर पाँव तक घूर्ने लगी......ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे बॉडी को अपनी नज़रो से स्कॅन कर रही हो......एक बार फिर से मेरी डर से धड़कनें बढ़ चुकी थी.......

श्वेता- अदिति तुम्हें कितनी बार कहा है कि तुम अपना दुपट्टा अपने सीने पर लगाए रखा करो.......तुम्हें ज़रा भी समझ नहीं है कि अब तुम जवान हो चुकी हो.......मर्दों की नज़र और उनके नियत का कोई भरोसा नहीं......मैं ये नहीं कहती कि विशाल की नज़र भी ऐसी है........मगर वो है तो एक मर्द ही........तुम समझ रही हो ना मैं क्या कहना चाहती हूँ.......

अदिति- हां मा......आगे से ख्याल रखूँगी.......और फिर मैने फ्रीज़ पर रखा अपना दुपट्टा तुरंत अपने सीने पर लगा लिया......वो तो शुक्र था की मम्मी ने कुछ नहीं देखा था नहीं तो पता नहीं क्या होता.......वैसे मैं मम्मी की बातों से मुस्कुरा पड़ी थी उन्हें क्या पता था कि उनकी बेटी तो अपनी इज़्ज़त अपने भाई के हवाले कर चुकी है.....फिर दुपट्टा लगाकर फ़ॉर्मलीिटीज़ पूरी करने का सवाल ही कहाँ उठता था......फिर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम में गयी और तुरंत अपनी लॅयागी और पैंटी झट से नीचे की तरफ सरका दी........मेरी पैंटी विशाल के कम से पूरी तरह भीग चुकी थी.......

विशाल ने तो अपनी प्यास बुझा ली थी मगर मेरे अंदर की आग को उसने और भड़का दिया था........मेरे अंदर भी आग लगी हुई थी जी तो कर रहा था कि अभी जाकर अपना ये जिस्म विशाल के हवाले कर दूं और उसका लंड अपने चूत में ले लूँ.......मगर ये ना ही मेरे लिए इतना आसान था और ना ही विशाल के लिए........
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मैं फिर अपनी उंगली से अपनी चूत की आग को ठंडा करने लगी......इतने दिनों से लंड का स्वाद लग चुका था तो भला उंगली से क्या मज़ा मिलती.....मैं काफ़ी देर तक अपनी चूत को अपनी उंगलिओ से रगड़ती रही मगर मेरे अंदर की प्यास बुझने के बजाए और भड़क रही थी.....थोड़े देर बाद मैं नाहकार बाथरूम से बाहर आई फिर सबके साथ नाश्ता किया....आज पापा भी ऑफीस से छुट्टी ले चुके थे क्यों कि आज घर पर कथा होने वाली थी........

मेरे अंदर की तपीश अब और बढ़ती जा रही थी......उधेर विशाल फिर मेरे कमरे में आया और आकर मेरे पास बैठ गया......

विशाल- दीदी.......एक बात बोलूं........

अदिति- क्या विशाल.....

विशाल- मेरा बहुत मन हो रहा है........एक बार फिर से आपकी चुदाई करने को दिल कर रहा है.......पता नहीं मेरी प्यास भी दिन बा दिन बढ़ती जा रही है......आप हो ही ऐसी मेरा आपसे कभी मन नहीं भरता......

मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी.......मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर विशाल मुझसे कहना क्या चाहता है.......
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अदिति- अब नहीं विशाल.....आज बाल बाल बचे है हम दोनो.......अगर ज़रा सी भी देर हो जाती तो मम्मी हमे देख लेती......फिर तुम जानते हो की हमारा क्या हाल होता......

विशाल- मैं आपको यहाँ थोड़ी ही कुछ करने को कह रहा हूँ....चलो आज कहीं बाहर चलते है......किसी गार्डन में या फिर पार्क में........या फिर किसी होटेल में...............
 
अब आगे.......................................................
होटेल का नाम सुनकर मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी......मुझे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था कि मैं विशाल से क्या कहूँ......मगर मेरे अंदर भी आग लगी हुई थी और इस वक़्त मुझे अपने अंदर उस आग को बुझाने की पड़ी थी चाहे जैसे भी वो आग शांत हो......चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े......चाहे मुझे कहीं और क्यों ना जाना पड़े.........देखना था कि मैं इस तपीश के आग के चलते मैं कहाँ तक इस हवस की आग में गिर सकती हूँ ये तो आने वाले वक़्त के हाथों तय था......................................................



अदिति- होटेल.......मगर........किसी ने अगर हमे देख लिया तो......

विशाल- कुछ नहीं होगा.....बाहर के लोग ये नहीं जानते है कि आपका और मेरा रिस्ता क्या है..........और देखने वाले तो यही समझेंगे कि आप मेरी गर्लफ्रेंड हो........किसी को कुछ पता नहीं चलेगा........आप अगर चाहे तो अपने मूह पर अपना दुपट्टा बाँध सकती है.........आपके मन में जो शक है वो भी इसी दूर हो जाएगा.......

विशाल की बातों ने मुझे सोचने पर मज़बूर कर दिया था........मैं इसी पहले कभी किसी होटेल में नहीं गयी थी.......मगर जानती थी कि उन होटेलों में क्या होता होगा.....मेरी कई सारी सहेलियाँ अपने बाय्फ्रेंड के साथ अक्सर जाया करती थी मैने अक्सर उनके मूह से ये कहते सुना था.......मैं इसी उलझन में थी तभी विशाल तुरंत बोल पड़ता है.....

विशाल- जानता हूँ दीदी की ये आपके लिए बड़ी बात है.......मगर आप ही बताओ कि क्या घर पर ये सब पासिबल है.......उपर से आज पापा भी घर पर है......और ना जाने कितने मेहमान हमारे यहाँ आने वाले है.......आप कोई अच्छा सा बहाना बनाकर मेरे साथ निकल चलो.......एक दो घंटे की तो बात है........

मैं विशाल की बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी- विशाल तुम भी ना......ठीक है तुम्हारे लिए ये भी सही........विशाल मेरे मूह से हां सुनकर खुशी से खिल उठता है........मैं फिर बाथरूम में गयी और फिर फ्रेश होने लगी......मैने अपनी चूत के बाल अच्छे से सॉफ किए.......अब मेरी चूत एक दम चिकनी और सॉफ हो गयी थी.........नहाने के बाद मैने एक लाल रंग का टाइट सूट पहना और नीचे ब्लॅक रंग की लॅयागी......मेरे सीने पर इस वक़्त एक ब्लॅक कलर का ट्रॅन्स्परेंट दुपट्टा था जो मेरी छातियों को छुपा कम रहा था और क्सपोज़ ज़्यादा कर रहा था........इन कपड़ों में मैं आज भी बिल्कुल क़यामत सी लग रही थी........

विशाल की नज़र जब मुझपर पड़ी तो वो मुझे अपनी आँखें फाडे कुछ पल तक देखता रहा.......मैं फिर अपने कमरे में गयी और फिर थोड़ा मेकप वगेरह करने लगी......विशाल भी जल्दी से तैयार होने लगा.......मम्मी जब मेरे कमरे में आई तो उसने मुझे इस हाल में देखा तो वो हैरत से मेरी तरफ देखने लगी......

स्वेता- अदिति.......आज तो तेरे कॉलेज की छुट्टी है फिर तू इतनी साज संवर कर कहाँ जा रही है.......

अदिति- मा मुझे कुछ ज़रूरी काम है......दर-असल मेरे नोट्स पूरे नहीं है उन्हें मुझे किसी भी हाल में कंप्लीट करने है......मैं इस लिए पूजा के घर जा रही हूँ.......

मम्मी मुझे आँखें फाडे एक टक देखती रही- क्या!!!! ये जानते हुए भी की आज घर पर कथा होने वाला है.......मैं कैसे करूँगी इतना सब कुछ अकेले........तुझे तो बस अपनी फिकर रहती है........बाद में नहीं जा सकती क्या उसके वहाँ........

मैं मम्मी को क्या जवाब देती......उन्हें सच बता देती कि मैं पूजा के यहाँ नहीं बल्कि अपनी जवानी की आग ठंडी करवाने किसी होटेल में जा रही हूँ........और वो भी किसी बाय्फ्रेंड के साथ नहीं बल्कि अपने भाई के साथ.......

अदिति- मगर मा......मेरा जाना बहुत ज़रूरी है......प्लीज़ ट्राइ टू अंडरस्टॅंड........तभी पापा भी कमरे में आ जाते है......

मोहन- अरे ये क्या ख़ुसर पुसर हो रहा है मा बेटी के बीच में.......ज़रा मैं भी तो जानू......

स्वेता- कुछ समझाओ अपनी इस लड़ली को........इसे पता है कि आज घर पर इतने सारे लोग आने वाले है..... इसे मेरा काम में हाथ बताना चाहिए तो ये शहज़ादी जा रही है अपनी सहेली के घर घूमने........अब आप ही बताओ कि मैं अकेले ये सब कैसे कर पाउन्गि.........

मोहन- तुम भी बात बात पर अदिति पर नाराज़ होती हो......अभी तो इसके घूमने फिरने के दिन है........अरे ये किसी काम से ही तो जा रही होगी.......बेवजह तो ये कहीं नहीं जाती.......मैं तुम्हारा हाथ बटा दूँगा तुम फिकर मत करो.....
 
मैं पापा की तरफ देखकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी- थॅंक्स पापा.....मैं जल्द आने की कोशिश करूँगी......

मोहन- तुम जाओ बेटी.....मैं सब संभाल लूँगा......तभी विशाल कमरे में आया और मुझे जाने का इशारा करने लगा......शायद उसे मुझसे भी ज़्यादा जल्दी थी.......

कितना आसान है ना अपने मा बाप को बेवकूफ़ बनाना........वो भी बिना सोचे समझे हमारी बातों पर आसानी से विश्वास कर लेते है.......कभी एक पल के लिए ये नहीं सोचते कि हम सच कह रहें है या झूट.......ये सब सोचकर ना जाने क्यों मुझे आज अपने आप पर शरम सी आ रही थी........मैं कुछ देर तक वही खड़ी रही फिर मैं जैसे ही जाने के लिए मूडी तभी पापा ने मुझे आवाज़ दी........मेरे बढ़ते कदम अचानक से रुक गये......

एक बार तो दिल में ये ख्याल आया कि कहीं पापा को मुझपर शक तो नहीं हो गया.......मैं सवाल भरे नज़रो से पापा की तरफ देखने लगी......

मोहन- ये लो बेटी कुछ पैसे......तुम्हें भी तो कुछ ज़रूरत होती होगी...... खरीद लेना अपने लिए कुछ जो तुम्हारा दिल करे......फिर पापा ने मुझे दो हज़ार के दो नोट थमा दिए और ना जाने क्यों मैं अपने जज्बातो को ना सभाल सकी और पापा से मैं लिपटी चली गयी......पापा ने भी हंस कर मुझे अपने सीने से लगा लिया......एक बार तो मेरे दिल में ये ख्याल आया कि मैं सब कुछ उन्हें सच सच बता दूं कि आपकी लड़की इस वक़्त किसी होटेल में जा रही है अपनी जवानी किसी से नीलाम करवाने........किसी से क्या वो अपने सगे भाई के साथ......मगर मैं जानती थी कि अगर पापा ये बात जान गये तो क़यामत आ जाएगी.....

मैं फिर फ़ौरन विशाल के साथ बाहर आई और और विशाल अपनी बाइक निकाल कर तेज़ी से उसे अपनी मंज़िल की तरफ अपनी बाइक मोड़ दी.......मैं रास्ते भर खामोश रही......मेरे अंदर इस वक़्त बहुत घबराहट हो रही थी......पहली बार मैं किसी होटेल में जा रही थी उस वक़्त मुझे ऐसा फील हो रहा था कि मैं एक पेशावॉर रंडी हूँ.......रंडिया पैसों के लिए ये सब करती है और मैं अपनी हवस शांत करवाने के लिए....थोड़ी दूर जाने पर विशाल ने अपनी बाइक रोक दी और मुझे अपने मूह पर दुपट्टा लगाने का इशारा किया.......

मैने अपना दुपट्टा अपने मूह पर अच्छे से बाँध लिया अब मुझे कोई नहीं पहचान सकता था.........फिर विशाल तेज़ी से सहर के बाहर एक होटेल में मुझे ले गया वो होटेल बहुत बड़ा था और चुदाई के लिए काफ़ी मशहूर था.......वहाँ अधिकतर कपल आते थे और दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वहाँ धंधा भी होता था..........जैसे ही विशाल ने अपनी बाइक रोकी मैं वही खड़ी होकर बड़े गौर से उस होटेल को देखे लगी........वहाँ मौजूद वर्कर्स मेरी तरफ बड़ी ही अजीब नज़रो से मुझे देख रहें थे.

सबके चेहरे पर एक कातिलाना मुस्कान थी........सबकी नज़रें मेरे बदन को पल पल नंगा करती जा रही थी.......मैं उन सब से अपनी नज़रें ना मिला सकी और फ़ौरन विशाल के पीछे पीछे सामने रेसियेप्षन हाल में अंदर आ गयी.......इस वक़्त होटेल खाली था....दो तीन लोग की मुश्किल से बुकिंग हुई होगी.........मैं अकेली लड़की थी वहाँ मौजूद मॅनेजर से लेकर सभी वर्कर्स मुझे बड़ी अजीब सी नज़रो से मुझे देख रहें थे........सामने दो तीन वर्कर्स थे जो मेरी तरफ देखते हुए बातें कर रहें थे.........

मैने उनकी बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और चुप चाप जाकर सामने वाली सीट पर बैठ गयी.......विशाल फिर जैसे ही अपना पर्स निकालने के लिए अपने जेब में हाथ डाला उसे एक ज़ोर का झटका लगा.......उसका पर्स घर पर छूट गया था......फिर वो मेरे पास आया और उसने अपनी प्राब्लम मुझे बताई.......मैने अपना पर्स खोला और उसमे से एक हज़ार का नोट विशाल के हाथों में धीरे से थमा दिया.......

विशाल धीरे से मुस्कुराता हुआ मॅनेजर के पास गया और फिर पैसे जमा करने लगा......

मॅनेजर की भी निगाह मुझ पर थी.......वो बड़े गौर से मेरे जिस्म को घूर रहा था.......मुझे ना जाने क्यों बहुत अजीब सा लग रहा था.......वहाँ मौजूद सभी लोग अच्छे से जानते थे कि मैं विशाल के साथ उस होटेल में क्या करने जा रही हूँ.......यही सोच सोच कर मेरा शरम से और भी बुरा हाल था.......

मॅनेजर ने फिर विशाल से आई डी माँगी तो उसने अपनी डी एल( ड्राइविंग लाइसेन्स) दे दिया.......फिर उसने मेरा भी आइडी विशाल से माँगा.......विशाल फिर मेरे पास आया और मैने उसे धीरे से अपनी आइडी उसके हाथों में थमा दी........जैसे ही मॅनेजर ने उस आइडी को अपने हाथों में लिया वो मेरे आइडी को बड़े ध्यान से देखने लगा.........तभी उसने मुझे अपने पास आने का इशारा किया.....

मॅनेजर- अगर आप बुरा ना माने तो क्या मैं आपका चेहरा देख सकता हूँ.......क्यों की इस होटेल का रूल है हम ऐसे बिना किसी का चेहरा देखे इस होटेल की बुकिंग नहीं करते......मेरा दिल फिर से ज़ोरों से धड़कने लगा था......मगर मुझे उस मॅनेजर की बात तो माननी ही थी.......मैने झट से अपना दुपट्टा अपने चेहरे से हटा दिया और अगले ही पल मॅनेजर मुझे खा जाने वाली नज़रो से मुझे देखने लगा........
 
मॅनेजर के चेहरे पर मुस्कान थी.......और मैं जानती थी कि वो मुझे ऐसे देखकर क्यों मुस्कुरा रहा है........मगर मैं कर भी क्या सकती थी........

मॅनेजर- ये लड़का तुम्हारा कौन लगता है........क्या ये तुम्हारा बाय्फ्रेंड है......उसने विशाल की तरफ इशारा करते हुए मुझसे ये कहा....

मैने धीरे से अपना सर हां में नीचे झुका दिया ......वही विशाल के चेहरे पर गुस्सा सॉफ ज़ाहिर हो रहा था.......

फिर मॅनेजर ने जब मेरे आइडी और विशाल के आइडी को मिलाया और जब उसने हमारा सरनेम एक देखा तो वो मेरे चेहरे की तरफ फिर से बड़ी गौर से देखने लगा........

मॅनेजर- क्या बात है तुम दोनो का सरनेम भी एक है.......कहीं तुम पति पत्नी तो नहीं हो ना.......मगर पति पत्नी होते तो तुम इस होटेल में क्या करने आते......खैर उससे मुझे क्या........इतना कहकर वो मॅनेजर धीरे से मुस्कुरा पड़ता है..... मेरा इस वक़्त शरम से बुरा हाल था.......मैं तो ये मना रही थी कि हमे जल्द से जल्द रूम मिल जाए.....

मॅनेजर ने मेरी तरफ देखते हुए फिर कहा- आपको देखने से ऐसा तो नहीं लगता कि आप उस किसम की लड़की है.......खैर बदन की आग होती ही ऐसी है कि किसी को भी पागल बना सकती है........अंदर जाओ और मज़े करो.......फिर वो मॅनेजर एक नौकर को बुलाया और उसे एक रूम की चाभी दी.......उसने कमरा 413 नंबर बुक किया था.......मैं फिर जैसे ही जाने के लिए मूडी तभी वो मॅनेजर ने ऐसी बात कही कि मैं एक बार फिर से शरम से पानी पानी हो गयी.......

मॅनेजर- वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं की अंदर सारे कमरे साउंड प्रूफ है........आपकी चीखने की आवाज़ बाहर नहीं आएँगी......इस लिए आप इस बात से निसचिंत रहिएगा.......बेस्ट ऑफ लक........मैं क्या कहती मैने फ़ौरन अपनी नज़रें नीचे झुका ली और चुप चाप उस नौकर के पीछे चल पड़ी.......मैं अच्छे से जानती थी कि वो मॅनेजर कौन सी चीखें की बात कह रहा था.......

वही बगल में दो नौकर भी खड़े थे वो मुझे देखकर कहने लगे......क्या जमाना आ गया है यार एक समय था जब लड़के चोदने के पैसे देते थे....मगर अब देखो लड़कियाँ उल्टे अपनी चुदाई के पैसे देती है.......वो तो शुक्र था कि विशाल ने उनकी बातें नहीं सुनी थी नहीं तो वो उसके हाथ पैर ज़रूर तोड़ देता.......

मगर एक बार फिर से मेरा चेहरा शरम से लाल पड़ गया था......मैं अपनी गर्देन नीचे की तरफ झुका कर फ़ौरन होटेल के अंदर चल पड़ी.........थोड़ी देर बाद वो नौकर कमरे की चाभी थामता हुआ बाहर चला गया तब जाकर मेरी जान में जान आई........मैं फिर फ़ौरन कमरे के अंदर गयी तो कमरा ना ही कोई बहुत बड़ा था और ना ही कोई छोटा.........एक किंग साइज़ की बेड लगी थी और उपर वाइट रंग का चादर बिछा था......एक टी.वी था और उसके बगल में एक म्यूज़िक सिस्टम......उसके बगल में एक अतच बाथरूम भी था........विशाल फिर तुरंत कमरे का दरवाज़ा बंद किया और उसने मुझे झट से अपने सीने से लगा लिया मैं भी बिना किसी विरोध के उससे लिपटी चली गयी.........
 
सच तो ये था कि मैं मॅनेजर और उन नौकरों की बातों को सुनकर मैं पूरी तरह से गीली हो चुकी थी........मेरे अंदर की तपीश अब और भी ज़्यादा भड़क चुकी थी........और उपर से एक हफ़्ता हो गया था मेरी चुदाई को इस लिए अब मेरा सब्र पूरी तरह से टूट चुका था.......

विशाल फिर मुझे बेड पर बैठने का इशारा किया और मैं मुस्कुराते हुए बिस्तेर पर चुप चाप आकर बैठ गयी....बिस्तेर काफ़ी आरामदायक था........मेरा दिल एक बार फिर से ज़ोरों से धड़क रहा था......मैं तो चाहती थी कि विशाल अपना लंड एक ही झटके में मेरी चूत की गहराई में पूरा उतार दें और मेरे अंदर की उस आग को पूरी तरह से बुझा दें.....जो पिच्छले हफ्ते से मेरे अंदर सुलग रही थी........

विशाल फिर मेरे करीब आया तो मैने फ़ौरन अपने सीने पर लगा दुपट्टा हटा दिया और उसे वही बिस्तेर पर रख दी.......विशाल मुझे देखते हुए मुस्कुराता रहा मगर कुछ ना बोला.......वो फिर तुरंत मेरे सीने पर अपना एक हाथ रखकर बड़ी बेरहमी से मेरी एक बूब्स को मसल्ने लगा......जवाब में मैं ज़ोरों से सिसक पड़ी....आआआआआआआआआ............हह.......ईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई............विशाल......और फिर मैं विशाल के सीने से लिपटती चली गयी........विशाल ने अपने हाथों को मेरे सीने से नहीं हटाया और उसी तरह से मेरे बूब्स को मसलता रहा........

मेरी आँखें अब सुर्ख लाल हो चुकी थी........विशाल अच्छे से जानता था कि मैं इस वक़्त बहुत गरम हो चुकी हूँ.......इसी बात का वो फ़ायदा मुझसे उठा रहा था.........जैसे ही उसके हाथ मेरी निपल्स को मसल्ते मेरे मूह से एक तेज़्ज़ आहें फुट पड़ी........मेरी चूत इस वक़्त लगभग भीग चुकी थी.......जी तो कर रहा था कि अभी अपने सारे कपड़े विशाल के सामने उतार दूं और अपनी चूत उससे जी भर कर चटवाउन्गि.......मगर हर बार की तरह मैं पहले पहल नहीं करना चाहती थी.........

विशाल-अदिति आज तुम मुझपर चढ़ोगी........आज तुम मेरे लंड की सवारी करोगी........मैं फिर से विशाल की तरफ हैरत से देखने लगी.......मुझे उसकी बातें कुछ समझ में नहीं आ रही थी.......

अदिति- मुझे क्या करना होगा विशाल........मैं कुछ समझी नहीं......

विशाल- यही की आज मैं कुछ नहीं करूँगा जो कुछ करोगी तुम करोगी......यू समझ लो कि मुझे सेक्स के बारे में कुछ पता नहीं....तुम मुझे चोदना सिखाओगि.......

एक बार फिर से मेरा चेहरा शरम से लाल पड़ चुका था मगर मैं विशाल को अच्छे से जानती थी कि वो बहुत ज़िद्दी है.......उसने जो कहा है वो करके ही मानेगा........इस लिए अब मेरे पास उसकी बातें मानने के सिवा और कोई चारा नहीं था.........

मैं फिर उठकर विशाल के पास आई और उसके गोद में आकर बैठ गयी.......मेरा मूह उसके चेहरे के बेहद करीब था......मैं उसके साँसों को आसानी से महसूस कर सकती थी........

अदिति- तो कौन सी सेवा करूँ तुम्हारी........लगता है तुम्हारे चक्कर में मुझे अब पूरी तरह से बेशरम बनना पड़ेगा.......और वैसे भी तुमने मेरे अंदर शरम कहाँ छोड़ी है अब तक.......अपनी ही बेहन को होटेल में ले आए .......आज मैं तुम्हें दिखाती हूँ की बहशर्मी किसे कहते है.......इतना कहकर मैने विशाल के लबों पर अपने होंठ रख दिए और उसके होंठो को धीरे धीरे चूसने लगी........विशाल भी मेरे होंठो को बड़े प्यार से चूसने लगा........

मेरे अंदर की आग अब धीरे धीरे एक शोला का रूप लेने लगी थी........मैने विशाल का हाथ धीरे से थामा और उसे धीरे धीरे सरकाते हुए अपने सीने पर रख दिया......विशाल फिर मेरे बूब्स पर अपने हाथ धीरे धीरे फेरने लगा.......अगले ही पल मैने अपने हाथों को और कसकर उसके हाथों पर दबाव डाला.......
 
अदिति- और कसकर मसलो इन्हें विशाल.........तब तक इन्हें मसल्ते रहो जब तक तुम्हारा जी नहीं भर जाता.......फिर विशाल मेरे दोनो बूब्स को अपने कठोर हाथों में लेकर उन्हें तेज़ी से मसल्ने लगा......एक बार फिर से मेरी आँखें लज़्जत से बंद हो चुकी थी........मुझे बड़ी शिद्दत से इंतेज़ार था कि कब विशाल मेरी फिर से चुदाई करेगा और मेरे अंदर की इस तपीश को शांत करेगा.

विशाल के दोनो हाथ इस वक़्त मेरे सीने पर थे और वो अपने कठोर हाथों से मेरे इन दोनो दूधो को बड़ी ही बेदर्दी से मसल रहा था......लज़्जत से मेरी आँखें बार बार बंद हो रही थी......मैं कसकर अपनी मुट्ठी से बिस्तेर को मसल रही थी......अब मेरे अंदर का सब्र पूरी तरह से टूट चुका था.........

अदिति- आआआआआआ.हह......ईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई.........अब बस भी करो विशाल......मुझसे अब और सहन नहीं होता............

विशाल- क्या सहन नहीं होता अदिति........

मैं एक नज़र विशाल के चेहरे की तरफ देखने लगी......मैं अच्छे से जानती थी कि विशाल मेरे मूह से क्या सुनना चाहता है.......

अदिति- अपना लंड जल्दी से मेरी चूत में पूरा उतार दो विशाल......अब मुझे और ना तडपाओ........

विशाल मेरी बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ा- इतनी भी क्या जल्दी है अदिति.......जो मज़ा तड़प में है और बाकी में कहाँ........फिर विशाल मेरी सूट धीरे धीरे उपर की ओर उठाने लगा......मैने फ़ौरन अपने दोनो हाथ उपर कर दिए और विशाल का साथ देने लगी........अब मेरे सीने पर एक ब्लॅक रंग की ब्रा मौजूद थी........विशाल कुछ देर तक मुझे ऐसे ही घूरता रहा फिर उसने धीरे से मेरी ब्रा भी उतार दी........अब मैं कमर के उपर से पूरी नंगी थी........

विशाल मुझे खा जाने वाली नज़रो से देख रहा था......मेरे शरम से और भी बुरा हाल था.....वैसे तो मैं ना जाने कितनी बार अब विशाल के सामने नंगी हो चुकी थी मगर मेरे अंदर थोड़ी बहुत झिझक बाकी थी.........शायद विशाल अब वो झिझक भी दूर करना चाहता था......

फिर वो बिना देर किए मेरी लागी को भी धीरे धीरे नीचे की ओर सरकाने लगा और उसके तुरंत बाद उसने मेरी पैंटी भी नीचे सरका दी......अब मैं एक बार फिर से विशाल के सामने सिर से लेकर पाँव तक पूरी नंगी थी.......

विशाल- अब ऐसे ही शरमाती रहोगी या आगे भी कुछ करोगी........चलो अब आप मेरे भी कपड़े उतारो और मेरा लंड अपने मूह में लेकर उसे अच्छे से चूसो........

विशाल लगभग अब मुझसे पूरी तरह से खुल चुका था......मैं भी उससे कुछ नहीं बोली और उसका शर्ट फिर पेंट धीरे धीरे उतारने लगी.......उसके पेंट पर उसके लंड का उभार सॉफ दिखाई दे रहा था........कुछ देर बाद विशाल सिर्फ़ अंडरवेर में मेरे सामने था.......मैं फिर उसका अंडरवेर भी सरकाते हुए नीचे की तरफ ले गयी और कुछ देर बाद हम दोनो बिस्तेर पर पूरी नंगी हालत में थे........

विशाल फिर फ़ौरन खड़ा हो गया तो मैं वही फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठ गयी और उसका लंड धीरे धीरे अपने मूह में लेकर चूसने लगी.......विशाल का एक बार फिर से मज़े से बुरा हाल था.......उसकी आँखें बंद हो चुकी थी और वो मेरे बालों से खेल रहा था.......मैं भी अपना जीभ धीरे धीरे उसके लंड पर फेर रही थी.........धीरे धीरे वो भी मेरे मूह में धक्के लगाने लगा.......
 
करीब 10 मिनट तक लंड चुसाई के बाद विशाल अब झडने के बहुत करीब था तो उसने मुझे अपने से दूर किया और फिर वो फ़ौरन बेड पर पीठ के बल लेट गया और मुझे अपने मूह पर बैठने का इशारा किया........मैं भी अपनी दोनो टाँगें पूरा फैलाकर उसके मूह पर अपनी चूत को धीरे से सेट कर दिया और विशाल फिर से मेरी चूत को धीरे धीरे चाटने लगा.......एक बार फिर से मेरा बुरा हाल था.......

मैं अपनी सिसकारी नहीं रोक पा रही थी.......मैं भी धीरे धीरे अपनी गान्ड विशाल के लंड पर रगड़ रही थी......उधेर विशाल मेरी चूत से बहता रस धीरे धीरे अपने मूह में ले रहा था.......फिर उसने ऐसी हरकत की जिससे मैं वही ज़ोरों से उछल पड़ी........वो अपना जीभ धीरे धीरे मेरी गान्ड के छेद पर सरका रहा था......ये मेरे लिए नया अनुभव था........मैं उसके इस हमले से अपने आप को ना सभाल सकी और ना चाहते हुए भी वही ज़ोरों से चीख पड़ी......

विशाल फिर अपने दोनो हाथों से मेरी गान्ड के दोनो फांकों को अच्छे से फैला कर अपना जीभ मेरी गान्ड के छेद पर रखकर मेरी गान्ड को चाटने लगा.......मेरा तो मज़े से बुरा हाल था.....मुझे नहीं पता था कि वहाँ भी ऐसा ही मज़ा आएगा......मेरे जिस्म के रोयें पूरी तरह से खड़े हो चुके थे.......कुछ देर की चटाइ के बाद मैं अपना कंट्रोल खो बैठी और वही ज़ोरों से हाम्फते हुए बिल्कुल किसी लाश की तरह ठंडी पड़ गयी.........एक बार फिर से मैं झड चुकी थी......

विशाल फिर मुझे अपने उपर तुरंत सोने का इशारा किया और मैं बिना कुछ कहे उसके उपर लेट गयी और अपनी चूत को उसके लंड पर सेट करके उसके उपर कूदने लगी........मेरी चूत इस वक़्त पूरी तरह से गीली थी जिससे विशाल का लंड तेज़ी से अंदर बाहर फिसल रहा था.......विशाल इस वक़्त मेरे दोनो बूब्स को थामे हुए नीचे से मेरी चूत चोद रहा था........एक बार फिर से मैं गरम हो चुकी थी........पूरे कमरे में फंच फंच की मधुर आवाज़े गूँज रही थी........एक बार फिर से मेरी चुदाई ज़ोरों पर थी......

हालाँकि अंदर ए.सी भी चल रही थी तो भी हम दोनो पसीने से भीग चुके थे.......धीरे धीरे विशाल की धक्को की स्पीड बढ़ती गयी और मेरे बूब्स पर उसका सिकंजा कसता गया.......करीब 10 मिनट तक विशाल उसी पोज़िशन में मेरी चुदाई करता रहा और आख़िर कार वो भी अपने चरम पर पहुँच गया और उसने मुझे बाहों में कसकर भीच लिया.......उसकी पकड़ इस वक़्त इतनी टाइट थी कि मुझे एक पल तो ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म की हड्डीया टूट जाएँगी.

वो मुझे इसी तरह अपनी गिरफ़्त में लिए हुए अपना वीर्य मेरी चूत की गहराई में उतारता रहा और उस वक़्त मेरी भी वही चीखते हुए ज़ोरों से झडने लगी........अब कमरे में चारों तरफ खामोशी थी........हम दोनो किसी प्रेमी की तरह एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए थे.......हम दोनो के सीने बहुत ज़ोरों से धड़क रहें थे........एक बार फिर से मैं उस चरम सुख को पा लिया था.......करीब 10 मिनट तक मुझे कुछ होश ना रहा......जब मैने अपनी आँखें खोली तो मेरे चूत से अभी भी हल्की हल्की विशाल की मनी बाहर की ओर बह रही थी............
 
मैं फिर फ़ौरन बाथरूम में चली गयी और अपनी चूत को अच्छे से सॉफ किया.......जब मैं बाहर आई तो विशाल अपने कपड़े पहन रहा था......मां भी जल्दी से अपने कपड़े पहनने लगी.......जब मेरी नज़र घड़ी पर पड़ी तो उस वक़्त दोपहर के 2 बज रहें थे........मेरे तो होश उड़ गये थे.....हमे यहाँ आए लगभग 4 घंटे हो चुके थे.......और उधेर मेरे घर पर कथा भी पूरी हो चुकी होगी ऐसा मुझे लग रहा था.......

मैने फिर विशाल को जल्दी से घर चलने का इशारा किया.....मैने फिर अपने बाल संवारे.......चुदाई के दौरान मेरे बाल पूरे बिखरे हुए थे.......हम दोनो फिर तैयार होकर बाहर आए तो एक बार फिर से मैं अपने मूह पर अपना दुपट्टा अच्छे से बाँध लिया.........

वहाँ मौजूद नौकर मुझे बड़ी ही अजीब नज़रो से देख रहें थे और मुझे देखकर मुस्कुरा भी रहे थे.......जैसे ही मैं हाल के करीब आई एक नौकर ने मुझे देखकर स्माइल की और जैसे ही मैं आगे बढ़ी उसके अपनी हाथों से मुझे बहुत गंदे गंदे इशारे किए......एक बार फिर से मेरा शरम से बुरा हाल था......

मैं चाहती थी कि मैं वहाँ से जल्द से जल्द निकलूं...क्यों कि मुझे उन सब की नज़रें पल पल नंगा करती जा रही थी......मॅनेजर के चेहरे पर भी वही मुस्कान थी जैसे बाकी नौकरों के चेहरे पर थी......मॅनेजर आँखों ही आँखों में मुझसे बातें कर रहा था......जैसे वो मुझसे पूछ रहा हो कि चुदवाने में मज़ा आया कि नहीं......मैं जैसे ही आगे बढ़ी तभी मॅनेजर ने हमे दुबारा आने को इन्वाइट किया....विशाल कुछ ना बोला और हम फिर बाहर निकल गये.....तब जाकर मेरी जान में जान आई.......

वैसे हमने इस बीच अपना मोबाइल साइलेंट मोड़ पर रखा हुआ था......जब मेरी नज़र मोबाइल के स्क्रीन पर गयी तो अगले ही पल मेरे होश उड़ गये......मम्मी का 6 मिस्ड कॉल आया था.......हम दोनो इतने मस्त थे कि हमे फोन की कोई खबर ही नहीं रही........मेरा दिल में एक अजीब सा डर भी लग रहा था.......मैं तो यही मना रही थी कि मा हम पर नाराज़ ना होये.....मगर ये तो आने वाला वक़्त ही बता सकता था......

थोड़ी देर बाद जब हम घर पहुँचे तो मम्मी का चेहरा गुस्से से लाल था.....मेहमान भी सब जा चुके थे और कथा भी पूरी हो चुकी थी.......हमने आने में शायद बहुत देर कर दी थी.........मम्मी मुझे देखकर तुरंत अंदर चली गयी मेरे अंदर भी हिम्मत नहीं थी कि मैं मम्मी से कुछ कहती ........पापा वही खड़े थे शायद वो भी हम पर थोड़े नाराज़ थे........

मैं फिर जाकर चेंज करने लगी और विशाल भी अपने कमरे में चला गया.......करीब एक घंटे बाद मम्मी पापा वही हाल में थे तब हम दोनो वहाँ आए और आकर उनके सामने वाली सीट पर बैठ गये........मम्मी मुझे खा जाने वाली नज़रो से घूर रही थी...........

मम्मी फिर पापा को देखते हुए कहने लगी- इसी पूछो कि ये कहाँ गयी थी अब तक....और इसने मेरा फोन क्यों नहीं रिसेव किया........अगर मैं कुछ कहूँगी तो इस शहज़ादी को बुरा लग जाएगा......और आप भी मुझे ही ताना दोगे........पर अब मुझे आपकी लड़की के लक्षण कुछ ठीक नहीं लगते.......इसी पूछो कि ये पूजा के घर ही गयी थी या कहीं और........

मोहन- बेटी तुमने फोन क्यों नहीं रिसिव किया......कितने सारे मेहमान आए थे.....सब तुझे और विशाल को पूछ रहे थे........कहाँ थी तू अब तक........

मेरे तो मानो होश उड़ गये थे........एक बार दिल में डर भी जनम ले रहा था कि कहीं मम्मी पापा को इस बारे में कुछ पता तो नहीं चल गया......उधेर विशाल भी चुप चाप अपनी नज़रें नीचे झुकाए बैठा था......बीच बीच में वो मेरे चेहरे की तरफ देख रहा था......

अदिति- वो पापा.....मैं ......पूजा के घर......पर थी......


तभी मम्मी मुझपर गुस्से से चिल्ला उठती है- झूट बोल रही है तू अदिति......सरासर झूट........अगर तू पूजा के यहाँ थी तो पूजा ने मुझसे ये क्यों कहा कि तू उसके घर नहीं गयी थी......मैने उससे तेरी बाकी सहेलियों के भी नंबर लिए थे.......सब का एक ही जवाब मुझे मिला........तू किसी के घर नहीं गयी थी और ना ही तुझे कोई काम था......सच सच बता मुझे कि तू कहाँ से आ रही है इस वक़्त.......
 
मेरा जिस्म डर से थर थर काँप रहा था....मम्मी को इतने गुस्से में मैने इसी पहले कभी नहीं देखा था.......मेरी तो मानो बोलती ही बंद हो चुकी थी........

अदिति- वो मा.....मैं.....

स्वेता- चुप क्यों है....मुझे तेरा जवाब चाहिए.......बता कहाँ गयी थी तू....ऐसा कौन सा काम था जो आज अपने घर हो रही कथा से ज़रूरी था.......

अदिति- मा.......ये सच है कि मैं पूजा के घर नहीं गयी थी........मेरी एक सहेली है वंदना उसका घर यहाँ से दूर है......उसका आज बर्तडे था तो उसने मुझे इन्वाइट किया था.......मैं उसके घर चली गयी थी.......

स्वेता- मगर बर्तडे तो शाम को मनाया जाता है......और ये तेरी नयी सहेली कौन है....इसके बारे में तुमने मुझे कभी कुछ नहीं बताया........

मोहन- छोड़ो ना स्वेता.......तुम भी बेकार की बातें लेकर बैठ गयी........होगी उसकी सहेली.......होगा उसको कोई पर्सनल काम......

स्वेता- ठीक है मैं ही ग़लत हूँ.......तुम तो हर वक़्त इसकी तरफ़दारी करते रहते हो........देख रही हूँ तुम्हारी इस लाडली को कुछ दिनों से मैं......ये अब पहले जैसी नहीं है......इसे अब झूट बोलना भी शुरू कर दिया है........अगर कल को कोई उन्च नीच हो गयी तो मुझे दोष मत देना.......

मैं कुछ ना कह सकी और फ़ौरन अपने रूम में आकर वही अपने बिस्तेर पर आकर लेट गयी ...........मेरे दिल में इस वक़्त बेचैनी बहुत हो रही थी........पता नहीं क्यों मुझे बार बार ऐसा लग रहा था कि जैसे मम्मी को मुझपर शक़ हो गया हो.........

कुछ देर बाद मम्मी मेरे रूम में आई........उसके हाथों में दूध का ग्लास था.......मेरी नज़र जब मम्मी पर पड़ी तो एक बार फिर से मेरा कलेजा ज़ोरों से धड़कने लगा........मम्मी मेरे करीब आकर बैठ गयी और मेरे सिर पर बड़े प्यार से अपना हाथ फेरने लगी.......

स्वेता- बेटी.......मेरी बातों का बुरा मत मानना.......मगर मैं कुछ दिन से तुझे देख रही हूँ कि तू अब पहले से बहुत बदल गयी है.........मैं तुझसे अब दुबारा ये सवाल नहीं पूछूंगी कि तू आज कहाँ गयी थी.......मगर ना जाने क्यों मेरा दिल तेरे बारे में सोचकर कुछ घबरा रहा है......ऐसा मुझे लग रहा है कि तू मुझसे कुछ छुपा रही है.........

अदिति- मा.......ऐसी बात नहीं है......आप मुझे ग़लत समझ रही हो..........

स्वेता- ठीक है मैं ही ग़लत हूँ.......मगर क्या ये सच नहीं है कि तू कुछ दिनों से विशाल से और भी करीब रहने लगी है........पहले तो उससे तेरी नहीं बनती थी फिर अब ऐसा उसने तुझपर क्या जादू कर दिया है जो तू अब उससे एक पल भी दूर नहीं रहती.........मैं भी जानती हूँ कि विशाल तेरा भाई है वो तेरे साथ कभी बुरा नहीं सोचेगा.....मगर ये तू क्यों भूल रही है कि तू अब एक औरत है और विशाल एक मर्द.........और जब इंसान के अंदर हवस जनम ले लेता है तो सारे रिश्ते पल भर में बिखरते चले जाते है........जानती हूँ कि तुझे मेरी बातें बुरी लगेगी मगर मेरी बातों पर ज़रा गौर करना.......ये एक कड़वा सच है......

मैने रिश्तो की गर्मियो को टूटते हुए देखा है......जानती हूँ कि तू ऐसा कुछ नहीं करेगी खैर मैं चलती हूँ......फिर मम्मी अपने कमरे में चली जाती है....जाते वक़्त भी मम्मी मुझे बड़े गौर से देख रही थी......उनकी नज़र मेरे जिस्म पर थी....शायद मेरे जिस्म में भी तेज़ी से परिवर्तन हो रहे थे.......पहले मेरे सीने का साइज़ 32 था मगर अब उसका साइज़ 36 हो चुका था.......और मेरा बदन भी भरा भरा सा लग रहा था......दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मैं एक पूरी औरत लग रही थी ......लग क्या रही थी मैं तो अब औरत बन चुकी थी........
 
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