hotaks444
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Part 7
दरवाज़े पर दस्तक देते ही घर का दरवाज़ा एकदम से खुला तो अपनी बहाँ संध्या को मैंने अपने सामने खड़ा पाया |
“ओह अम्मी की डांट और मार के बाद तो संध्या को इस वक़्त अपने कमरे में बंद हो कर रोना धोना चाहिए था, मगर यह तो इस वक़्त मेरे सामने यूँ खड़ी है जैसे कुछ हुआ ही ना हो” अपने अंदाज़े के उल्ट अपनी बहाँ को यूँ नार्मल हालत में मेरे लिए दरवाज़ा खोलते देखकर मुझे बहुत ही हैरत हुई |
“अम्मी किधर है संध्या” मैंने दरवाज़े पर खड़े खड़े सवाल किया |
“वो बाथरूम में नहा रही हैं” मेरी बात के जवाब में संध्या धीमी आवाज़ में बोली |
“तो घर आकर क्या कहा तुमसे अम्मी ने” संध्या की बात सुनते ही मैंने फौरन एक और सवाल किया |
“कुछ भी नहींईईईईईई” मेरी बात का उसी धीमे अंदाज़ में जवाब देते हुए संध्या बोली |
“क्याययययययययययययययययया” अपनी बहाँ के जवाब पर मैंने संध्या के चेहरे की तरफ देखा और हैरतज़दा अंदाज़ में मेरा मुँह खुला का खुला रह गया |
“उस वक़्त यूँ रंगे हाथों पकड़ने के बाद भी अम्मी ने घर आकर तुमसे कोई सवाल जवाब नही किया, यह कैसे मुमकिन हैं संध्या” अपनी बहाँ की
बात सुनते हुए मैंने हैरत से उसे देखा और बोला |
“हाँ घर आकर वाक्या ही अम्मी ने मुझे कुछ नही कहा, जिसपर मुझे भी बहुत हैरत है” अपनी बात के जवाब में मुझे यूँ एकदम हैरान होता देख
कर संध्या ने जवाब दिया |
अपनी अम्मी के इस रवैये पर मैं शॉक में आया और फिर शॉक की हालात में ही चलता हुए घर के अंदर दाखिल होकर अपने कमरे में चला आया |
मैं काफ़ी देर तक अपने कमरे में ही क़ैद हो कर अपनी अम्मी के इस हैरतज़दा रिएक्शन के बारे में सोचता रहा और साथ ही साथ अपने आपको अम्मी का सामना करने के लिए ज़ेह्नी तौर पर तैयार भी करता रहा |
मुझे घर वापिस आए हुए तक़रीबन एक घंटा हो चला था | जब अपने कमरे में बैठे बैठे अम्मी की आवाज़ मेरे कान में गूँजी “खाना लग गया है आ जाओ सब” |
दिन वाले वाक्या के बाद अपनी अम्मी का सामना करने की मूझमें हिम्मत नही हो रही थी |
इसलिए अम्मी की आवाज़ सुनते ही मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई मगर नाचाहते हुए भी मैं बोजल क़दमों के साथ आहिस्ता आहिस्ता चलता हुए किचन में जा पहुंचा |
किचन में जाते ही मुझे अम्मी और संध्या वहाँ पहले से मौजूद नज़र आईं मगर मेरे किचन में दाख़िल होते वक़्त ना तो संध्या और ना ही अम्मी ने मेरी तरफ नज़र उठाकर देखा और ना ही कोई बात की |
अपनी अम्मी का अंदाज़ देख कर मेरे दिल को थोड़ी सी तसल्ली हुई तो मैंने खाने के डोंगे से अपने लिए खाना लिया और किचन के एक कोने में पड़े मुढे पर बैठकर खामोशी से खाना खाने लगा |
हमारे घर के किचन में तीन बंदों की मौजूदगी के बावजूद खाना खाने के दौरान किचन में एक गंभीर सी ख़ामोशी छाई हुई थी और यह खामोशी मुझे आगे आने वाले किसी तूफ़ान का आमद लग रही थी |
थोड़ी देर बाद जब हम सब लोग खाने से फ़ारिग हुए तो अम्मी ने सिर उठा कर मेरी और संध्या की तरफ देखा और बोलीं “संध्या तुम अपने कमरे में जाओ और अफ़ताब तुम इधर ही रूको मैंने तुमसे बात करनी है” |
अम्मी की बात सुनते ही संध्या ने परेशानी के आल्म में एकदम मेरी तरफ देखा | मगर फिर अम्मी के हुक्म की तालीम करते हुए किचन से बाहर निकल गई |
संध्या के बाहर जाते ही अम्मी ने सारे बर्तन समेटे और उन्हें किचन के सींक में रखते हुए वापिस मेरी तरफ पलटीं और मुझे देखती हुए एकदम गुस्से से बोलीं “यह सब कितनी देर से चल रहा है अफ़ताब” |
अम्मी की बात सुनते ही मैं डर तो गया मगर इसके बावजूद मैंने मासूम अंदाज़ में डरते डरते अम्मी से पूछा “क्या अम्मी जी” |
“तुम अच्छी तरह जानते हो मैं क्या पूछ रही हूँ” मेरे इस मासूम सवाल पर अम्मी ने मुझे गुस्से से डांटते हुए कहा |
“आज चूँकि गर्मी बहुत थी, जिसकी वजह से हमने ट्यूबवेल के ठंडे पानी में एक साथ नहाने की ग़लती कर ली, मगर यकीन माने इस से ज्यादा और कुछ नही किया हमने अम्मी जी” अम्मी के डाँटने पर मैंने एक बार फिर मासूम बनते हुए अपनी अम्मी की बात का जवाब दिया |
“अच्छा तो तुम मुझे बेवकूफ़ समझते हो, मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि कोई भी जवान लड़की किसी भी जवान लड़के के सामने यूँ ही अपने कपड़े नही उतार देती अफ़ताब” मेरी बात सुनते ही अम्मी ने गुस्से से एकदम चिंगाडते हुए मुझे कहा |
“अप मेरा एतबार करें, हम वाक्या ही नहा रहे थे अम्मी जान” अम्मी की बात के जवाब देते हुए मैं फिर हल्की आवाज़ में बोला |
“अच्छा अगर यह बात है तो संध्या ने इन गोलियों को क्यों अपने कमरे में छुपा कर रखा हुआ है फिर” मेरी बात खत्म होते ही अम्मी ने अपनी बंद मुट्ठी खोली और मुझे हमल रोकने वाली वो गोलियाँ दिखा दीं जो मैंने अपनी बहन के लिए गुजरात से खरीदी थीं |
अब अपनी अम्मी की इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैंने इस मौके पर खामोश रहना ही बेहतर समझा |
“वैसे इन गोलियों के साथ साथ डेरे के कमरे से मुझे कुछ और चीज़ भी मिली है” यह कहते हुए अम्मी ने किचन की अलमारी खोली और कंडोम के तीन नॉनयूज्ड पैकेट्स निकाल कर मेरे सामने रखते हुए बोलीं “तुम इन्हें किधर इस्तेमाल करते हो अफ़ताब” |
“उफफफफफफफफफ्फ़ घर तो घर अम्मी तो डेरे पर भी मेरी सारी ख़ुफ़िया जगहों के बारे में जानती हैं यार” अपने सामने पड़े हुए कंडोम देख कर हैरान होते हुए मेरे ज़ेहन में ख्याल आया |
इससे पहले कि मैं अपनी अम्मी की बात का कोई जवाब दे पाता | मेरी अम्मी मूझ पर एक और बॉम्ब गिराते हुए बोलीं “इन सब के इलावा तुम्हें एक और चीज़ भी दीखाती हूँ मैं” |
“वो क्या अम्मी जान” अपनी अम्मी की बात के जवाब में सवालिया नजरों से अम्मी को देखते हुए मैंने पूछा |
“यह देखो यह है वो कंडोम है जिसे इस्तेमाल करने के बाद तुम इसे कूड़े में फैंकना भूल गए थे शायद” मेरी बात के जवाब में अम्मी ने अपने ब्रेज़ियर में हाथ डाला और मेरा एक ताज़ा इस्तेमाल शुदा कंडोम अपने ब्रेज़ियर से निकाल कर मेरे सामने लहराना शुरू कर दिया |
यह कंडोम मैंने एक रात पहले ही अपनी बहन संध्या को चोदने के लिए यूज़ किया था और चुदाई के बाद उतार कर जल्दबाजी में अपनी बहन के पलंग के नीचे फैंक दिया था |
“लगता है अम्मी ने पूरी तैयारी से हम दोनों बहन भाई को पकड़ा है, ले बच्चू तू तो लौड़े लग गया आज अफ़ताब” अपने लौड़े की मनी से भरे कंडोम को अपनी नजरों के सामने अपनी अम्मी के हाथ में झूलता देखकर हैरत से मेरा मुँह इसलिए खुला का खुला रह गया क्योंके एक रात पुराना होने के बावजूद भी मेरे लौड़े का पानी कंडोम में अभी तक पूरी तरह सूखा नही था |
“मुझे जवाब दो यह सब क्या है अफ़ताब” यह सारी चीज़ें मेरे सामने रखने के बाद अम्मी ने गुस्से में मुझसे सवाल किया |
“हाँ मैं मानता हूँ कि जवानी के जज़्बात में बहक कर हम दोनों ने आपस में गुनाह भरा काम किया है, मगर यकीन जानीए यह सब कुछ हमसे अंजाने में हुआ है अम्मी जान”
अपनी नजरों के सामने पड़े हुए इतने सारे सबूत देखते हुए किसी बात से इंकार करना अब मेरे लिए नामुमकिन हो गया था | इसलिए डरते दिल के साथ आख़िर मैंने अपने जुर्म का इक़बाल करके शर्म से अपनी नज़रें झुका लीं |
अपनी अम्मी के सामने अपनी ही सग़ी बहन को चोदने का इक़बाल करने के बाद मैं तो इस उम्मीद में था कि मेरी बात खत्म होते ही अम्मी पर क़यामत टूट पड़ेगी और फिर गुस्से के आल्म में वो मुझ पर थप्पड़ों और लातों की बरसात कर देंगी |
मगर इन सब बातों के उल्ट मेरी बात खत्म होते ही जब अम्मी की तरफ से ऐसी कोई बात ना हुई तो हैरानी के आल्म में डरते डरते हुए मैंने अपनी नज़रें उठा कर अपनी अम्मी के चेहरे की तरफ देखा तो मुझे उन के चेहरे पर संजीदगी तो नज़र आई लेकिन अम्मी की आवाज़ के उल्ट गुस्से का कोई नाम-ओ-निशान अम्मी के चेहरे पर मौजूद नही था |
“तुम्हें अपनी ही बहन के साथ हम बिस्तरी करने से पहले यह ख्याल नही आया, कि अगर किसी और को इस बारे में इल्म हो गया, तो गाँव में हमारी क्या इज्ज़त रह जाएगी, और फिर इसके बाद तुम्हारी बहन से शादी कौन करेगा अफ़ताब” मेरी बात खत्म होते ही मुझ पर गुस्से होने या डाँटने की बजाए अम्मी ने मेरी तरफ देखते हुए संज़ीदा अंदाज़ में मुझे कहा |
“आप कह तो सही रही हैं, मगर आप फ़िक्र मत करें, मैं करूँगा संध्या से शादी” अपने ही सगे बच्चों के बारे में अपने ही बेटे के मुँह से गुनाह-आ-कभीरा वाली बात सुन कर गुस्से भरा कोई रिएक्शन देने की बजाए अम्मी को नॉर्मल अंदाज़ में मुझसे बात करते देखकर मुझे हैरत तो बहुत हुई | मगर इसके साथ ही मेरा हौसला भी बढ़ गया और धड़कते दिल के साथ मैंने अपनी अम्मी से अपने दिल की बात कह डाली |
“एक तो तुमने अपनी ही बहन से ज्नाह किया है और ऊपर से अपनी ही सग़ी बहन से शादी के सपने देखने लगे हो, क्या तुम पागल तो नही हो गए, तुम जानते हो ऐसा होना नामुमकिन है अफ़ताब” मेरी बात सुनते ही इस बार अम्मी के चेहरे पर हल्का से गुस्सा आया और वो एकदम बोल पडीं |
“होने को क्या नही हो सकता, हम सारी ज़मीन बेच कर कराची चले जाएंगे, जहाँ हमें कोई नही जानता और वहाँ मैं और संध्या बीवी की हैसियत से इकट्ठे रह लेंगे अम्मी जी” अम्मी के सामने अपना गुनाह कबूल करने के बाद उन के रवैये से मेरा हौसला इतना बढ़ गया कि अब मैं खुल कर अपने दिल की बात अपने मुँह पर ले आया |
“अपनी ही बहन का कंवारापन लूट कर, अब उसे अपनी बीवी भी बनाना चाहते हो तुम, बहुत खूब मेरे बेटे, क्या मैंने इसी दिन के लिए तुझे पाल पोस कर जवान किया था हरामखोर” मेरी बात सुन कर अम्मी ने पहली बार गुस्से वाला मुँह बनाते हुए मुझे जवाब दिया |
“मैं और संध्या एक दूसरे से प्यार करते हैं, और एक दूसरे के बिना नही रह सकते अब, अगर आप को मेरी बात पर यकीन नही तो बेशक़ संध्या से पूछ लें आप” अपनी अम्मी के गुस्से बहरे लहजे को नज़रदाज़ करते हुए एक बार फिर अम्मी से यह बात दोहराई |
अपनी बहन संध्या से प्यार करने वाली बात सुन कर अम्मी ने मेरी बात के जवाब में खामोशी इख्तियार की तो मैंने भी अब की बार अम्मी से और कोई और बात करना मुनासिब नही समझा |
किचन में इस वक़्त अब एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी | जिसके दौरान हम दोनों माँ बेटा अपनी अपनी जगह पर बैठकर खामोशी से एक दूसरे के मुँह को देखे जा रहे थे |
थोड़ी देर यूँ ही अपनी अम्मी को खामोशी से देखने के बाद मुझे उधर और बैठना ठीक नही लगा |
इसलिए मैं एकदम वहाँ से उठकर अपने कमरे की तरफ चलते हुए बोला “अच्छा खुदा हाफ़िज़ मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ अम्मी” |
“रुको मेरी बात अभी खत्म नही हुई अफ़ताब” मुझे किचन से बाहर जाते देख कर अम्मी ने पीछे से आवाज़ दी |
“कोई तो बात नही, अब मैं आपसे कल सुबह बात करूँगा अम्मी जान” अपनी अम्मी को जवाब देते हुए मैं अपने कमरे में चला आया |
अपने बिस्तर पर बैठ कर मैं दिन को पेश आने वाले वाक्या और फिर अम्मी के रवैये के बारे में सोचने लग गया |
“दिन की रोशनी में खुले आसमान के नीचे अपनी ही जवान बहन के साथ रंगरलियाँ मनाते हुए अपनी ही अम्मी के हाथों पकड़े जाने के बाद होना तो यह चाहिए था कि, उसी वक़्त हम दोनों को अपने ही हाथों मार कर अम्मी खुद भी खुदकशी कर लेतीं, या फिर अपनी ही जवान बहन का कंवारापन ख़त्म करने के जुर्म में अम्मी मुझे अपने घर से बेदख्ल कर देतीं, मगर इन सब बातों के उल्ट, अम्मी बहुत ही पुरसकूँ नज़र आ रही हैं, तो इस की क्या वजह हो सकती है भला” अपनी अम्मी के रवैये को देख कर मेरे दिल में यह ख्याल आ रहे थे और मैं इस सोच में गुम था कि “ दाल में जरुर कुछ काला है” मगर हज़ार बार सोचने के बावजूद भी मुझे इस “क्या काला है” की समझ नही आ रही थी |
सोचते सोचते अम्मी का अपने मोटे मुम्मों के दरमियाँ से मेरे लौड़े के मादे वाले भरे हुए कंडोम निकालने वाली बात मेरे ज़ेहन में दुबारा से चली आई तो मैंने अपने आपसे खुद कलमी की “ओह अम्मी ने मेरे लौड़े के गरम पानी से भरे हुए कंडोम को अपने मुम्मों के दरमियाँ अपने ब्रेज़ियर में छुपा कर क्यों रखा था, संध्या के साथ साथ अम्मी को भी मेरे लौड़े की तलब तो नही हो रही कहीं” |
इस बात के बारे में सोचते सोचते अम्मी का चेहरा और उनका जिस्म मेरे ज़ेहन में एकदम से दौड़ने लगा, “हाईईईईईईईईईईई मेरी अम्मी रुखसाना की उम्र तो तक़रीबन 50 साल है, मगर घर और खेतों में काम काज करने की वजह से उम्र के लिहाज़ से उनका जिस्म काफ़ी फिट है |
जिसकी वजह से अम्मी अपनी उम्र से काफ़ी कम की लगती हैं, अम्मी का रंग काफ़ी साफ और गोरा है और उन का क़द भी काफ़ी उँचा है और उनके लंबे और घने बाल तो उन की पर्सनालिटी को और गज़ब बनाते हैं, और सब से बढ़ कर अम्मी के मोटे बड़े मुम्म्मे तो क़यामत है बस” आज पहली बार अपनी अम्मी के जिस्म को यूँ अपने तसुवर में लाकर सोचते हुए मेरे लौड़े में एकदम हलचल मच गई और मेरा लौड़ा कड़ा होकर मेरी शलवार में एकदम खड़ा हो गया |
“ अब्बू को मरे हुए काफ़ी टाइम हो गया है, इसलिए एक औरत होने के नाते अम्मी को उनके लौड़े की कमी तो जरुर महसूस हो रही होगी, अगर मैं अपनी ही सग़ी बहन की कुंवारी चूत को चोद कर उसे अपनी बहन से अपनी माशूका बना सकता हूँ, तो मैं अपनी अम्मी को चोद कर उन की बेवागिरी का दुःख कम क्यों नही कर सकता भला” यह बात सोचते हुए मेरे ज़ेहन में पहली बार अपनी अम्मी के बारे में ऐसा ख्याल आया तो शलवार में खड़े मेरे लौड़े में और सख्ती आने लगी |
“क्यों ना मैं अम्मी के कमरे में जाऊं और उनके बिस्तर में घुस कर उनकी चूत में अपना लौड़ा डालूं और उनकी बेवा चूत को फिर से आबाद कर दूँ” अपने बिस्तर पर बैठे बैठे मेरे ज़ेहन में यह ख्याल आया तो शलवार के ऊपर से अपने लौड़े को अपनी मुट्ठी में दवोचते हुए मैंने सोचा |
“नही मुझे जल्दबाज़ी नही करनी चाहिए, क्योंकि अगर अम्मी के बारे में मेरा ख्याल ग़लत निकला, तो इस बार अम्मी यक़ीनन मुझे जान से मार देंगी” | अपने ज़ेहन में अम्मी की चुदाई का ख्याल आते ही मेरे लौड़े को गर्मी तो बहुत चढ़ी | मगर मैंने अपने आपको अम्मी के कमरे में जाने से बामुश्किल रोका और फिर अपने दिल को काबू में करते हुए बिस्तर पर सोने के लिए लेट गया |
मुझे सोये हुए अभी आधा घंटा भी नही गुज़रा था कि मुझे यूँ लगा जैसे कोई मेरे कमरे का दरवाज़ा खोल कर चुपके से मेरे कमरे में दाखिल हुआ |
रात के तक़रीबन 12 बजे अपने कमरे में किसी और शक्स की मौजूदगी का एहसास होते ही मैं अपनी नींद से एकदम जाग गया और फ़ौरन पूछा “कौन है”?
“मैं हूँ तुम्हारी अम्मी अफ़ताब” मुझे अपनी नींद से एकदम जागता देख कर अम्मी ने आहिस्ता से कहा |
“आप और इस वक़्त मेरे कमरे में, खैरियत तो है ना अम्मी जान” रात के पिछले पहर अम्मी को यूँ दबे पावं मेरे कमरे में आते देखकर मुझे बहुत हैरत तो हुई मगर इसके साथ ही रात की तन्हाई में अम्मी को अपने कमरे में मौजूद पाकर मेरे सोये लौड़े ने एक बार फिर मेरी शलवार में अंगडाई लेना शुरू कर दी |
“हाँ तुमसे कुछ जरूरी बात करनी थी बेटा” अम्मी ने दरवाज़े पर खड़े खड़े मुझे ज्वाब दिया |
“अच्छा तो आपने सारी बात दरवाज़े पर खड़े खड़े ही करनी है, इधर आएं और मेरे पास बैठकर बात कर लें अम्मी” अपनी अम्मी को यह बात कहते हुए मैं उठकर बिस्तर पर बैठ गया |
दरवाज़े पर दस्तक देते ही घर का दरवाज़ा एकदम से खुला तो अपनी बहाँ संध्या को मैंने अपने सामने खड़ा पाया |
“ओह अम्मी की डांट और मार के बाद तो संध्या को इस वक़्त अपने कमरे में बंद हो कर रोना धोना चाहिए था, मगर यह तो इस वक़्त मेरे सामने यूँ खड़ी है जैसे कुछ हुआ ही ना हो” अपने अंदाज़े के उल्ट अपनी बहाँ को यूँ नार्मल हालत में मेरे लिए दरवाज़ा खोलते देखकर मुझे बहुत ही हैरत हुई |
“अम्मी किधर है संध्या” मैंने दरवाज़े पर खड़े खड़े सवाल किया |
“वो बाथरूम में नहा रही हैं” मेरी बात के जवाब में संध्या धीमी आवाज़ में बोली |
“तो घर आकर क्या कहा तुमसे अम्मी ने” संध्या की बात सुनते ही मैंने फौरन एक और सवाल किया |
“कुछ भी नहींईईईईईई” मेरी बात का उसी धीमे अंदाज़ में जवाब देते हुए संध्या बोली |
“क्याययययययययययययययययया” अपनी बहाँ के जवाब पर मैंने संध्या के चेहरे की तरफ देखा और हैरतज़दा अंदाज़ में मेरा मुँह खुला का खुला रह गया |
“उस वक़्त यूँ रंगे हाथों पकड़ने के बाद भी अम्मी ने घर आकर तुमसे कोई सवाल जवाब नही किया, यह कैसे मुमकिन हैं संध्या” अपनी बहाँ की
बात सुनते हुए मैंने हैरत से उसे देखा और बोला |
“हाँ घर आकर वाक्या ही अम्मी ने मुझे कुछ नही कहा, जिसपर मुझे भी बहुत हैरत है” अपनी बात के जवाब में मुझे यूँ एकदम हैरान होता देख
कर संध्या ने जवाब दिया |
अपनी अम्मी के इस रवैये पर मैं शॉक में आया और फिर शॉक की हालात में ही चलता हुए घर के अंदर दाखिल होकर अपने कमरे में चला आया |
मैं काफ़ी देर तक अपने कमरे में ही क़ैद हो कर अपनी अम्मी के इस हैरतज़दा रिएक्शन के बारे में सोचता रहा और साथ ही साथ अपने आपको अम्मी का सामना करने के लिए ज़ेह्नी तौर पर तैयार भी करता रहा |
मुझे घर वापिस आए हुए तक़रीबन एक घंटा हो चला था | जब अपने कमरे में बैठे बैठे अम्मी की आवाज़ मेरे कान में गूँजी “खाना लग गया है आ जाओ सब” |
दिन वाले वाक्या के बाद अपनी अम्मी का सामना करने की मूझमें हिम्मत नही हो रही थी |
इसलिए अम्मी की आवाज़ सुनते ही मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई मगर नाचाहते हुए भी मैं बोजल क़दमों के साथ आहिस्ता आहिस्ता चलता हुए किचन में जा पहुंचा |
किचन में जाते ही मुझे अम्मी और संध्या वहाँ पहले से मौजूद नज़र आईं मगर मेरे किचन में दाख़िल होते वक़्त ना तो संध्या और ना ही अम्मी ने मेरी तरफ नज़र उठाकर देखा और ना ही कोई बात की |
अपनी अम्मी का अंदाज़ देख कर मेरे दिल को थोड़ी सी तसल्ली हुई तो मैंने खाने के डोंगे से अपने लिए खाना लिया और किचन के एक कोने में पड़े मुढे पर बैठकर खामोशी से खाना खाने लगा |
हमारे घर के किचन में तीन बंदों की मौजूदगी के बावजूद खाना खाने के दौरान किचन में एक गंभीर सी ख़ामोशी छाई हुई थी और यह खामोशी मुझे आगे आने वाले किसी तूफ़ान का आमद लग रही थी |
थोड़ी देर बाद जब हम सब लोग खाने से फ़ारिग हुए तो अम्मी ने सिर उठा कर मेरी और संध्या की तरफ देखा और बोलीं “संध्या तुम अपने कमरे में जाओ और अफ़ताब तुम इधर ही रूको मैंने तुमसे बात करनी है” |
अम्मी की बात सुनते ही संध्या ने परेशानी के आल्म में एकदम मेरी तरफ देखा | मगर फिर अम्मी के हुक्म की तालीम करते हुए किचन से बाहर निकल गई |
संध्या के बाहर जाते ही अम्मी ने सारे बर्तन समेटे और उन्हें किचन के सींक में रखते हुए वापिस मेरी तरफ पलटीं और मुझे देखती हुए एकदम गुस्से से बोलीं “यह सब कितनी देर से चल रहा है अफ़ताब” |
अम्मी की बात सुनते ही मैं डर तो गया मगर इसके बावजूद मैंने मासूम अंदाज़ में डरते डरते अम्मी से पूछा “क्या अम्मी जी” |
“तुम अच्छी तरह जानते हो मैं क्या पूछ रही हूँ” मेरे इस मासूम सवाल पर अम्मी ने मुझे गुस्से से डांटते हुए कहा |
“आज चूँकि गर्मी बहुत थी, जिसकी वजह से हमने ट्यूबवेल के ठंडे पानी में एक साथ नहाने की ग़लती कर ली, मगर यकीन माने इस से ज्यादा और कुछ नही किया हमने अम्मी जी” अम्मी के डाँटने पर मैंने एक बार फिर मासूम बनते हुए अपनी अम्मी की बात का जवाब दिया |
“अच्छा तो तुम मुझे बेवकूफ़ समझते हो, मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि कोई भी जवान लड़की किसी भी जवान लड़के के सामने यूँ ही अपने कपड़े नही उतार देती अफ़ताब” मेरी बात सुनते ही अम्मी ने गुस्से से एकदम चिंगाडते हुए मुझे कहा |
“अप मेरा एतबार करें, हम वाक्या ही नहा रहे थे अम्मी जान” अम्मी की बात के जवाब देते हुए मैं फिर हल्की आवाज़ में बोला |
“अच्छा अगर यह बात है तो संध्या ने इन गोलियों को क्यों अपने कमरे में छुपा कर रखा हुआ है फिर” मेरी बात खत्म होते ही अम्मी ने अपनी बंद मुट्ठी खोली और मुझे हमल रोकने वाली वो गोलियाँ दिखा दीं जो मैंने अपनी बहन के लिए गुजरात से खरीदी थीं |
अब अपनी अम्मी की इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैंने इस मौके पर खामोश रहना ही बेहतर समझा |
“वैसे इन गोलियों के साथ साथ डेरे के कमरे से मुझे कुछ और चीज़ भी मिली है” यह कहते हुए अम्मी ने किचन की अलमारी खोली और कंडोम के तीन नॉनयूज्ड पैकेट्स निकाल कर मेरे सामने रखते हुए बोलीं “तुम इन्हें किधर इस्तेमाल करते हो अफ़ताब” |
“उफफफफफफफफफ्फ़ घर तो घर अम्मी तो डेरे पर भी मेरी सारी ख़ुफ़िया जगहों के बारे में जानती हैं यार” अपने सामने पड़े हुए कंडोम देख कर हैरान होते हुए मेरे ज़ेहन में ख्याल आया |
इससे पहले कि मैं अपनी अम्मी की बात का कोई जवाब दे पाता | मेरी अम्मी मूझ पर एक और बॉम्ब गिराते हुए बोलीं “इन सब के इलावा तुम्हें एक और चीज़ भी दीखाती हूँ मैं” |
“वो क्या अम्मी जान” अपनी अम्मी की बात के जवाब में सवालिया नजरों से अम्मी को देखते हुए मैंने पूछा |
“यह देखो यह है वो कंडोम है जिसे इस्तेमाल करने के बाद तुम इसे कूड़े में फैंकना भूल गए थे शायद” मेरी बात के जवाब में अम्मी ने अपने ब्रेज़ियर में हाथ डाला और मेरा एक ताज़ा इस्तेमाल शुदा कंडोम अपने ब्रेज़ियर से निकाल कर मेरे सामने लहराना शुरू कर दिया |
यह कंडोम मैंने एक रात पहले ही अपनी बहन संध्या को चोदने के लिए यूज़ किया था और चुदाई के बाद उतार कर जल्दबाजी में अपनी बहन के पलंग के नीचे फैंक दिया था |
“लगता है अम्मी ने पूरी तैयारी से हम दोनों बहन भाई को पकड़ा है, ले बच्चू तू तो लौड़े लग गया आज अफ़ताब” अपने लौड़े की मनी से भरे कंडोम को अपनी नजरों के सामने अपनी अम्मी के हाथ में झूलता देखकर हैरत से मेरा मुँह इसलिए खुला का खुला रह गया क्योंके एक रात पुराना होने के बावजूद भी मेरे लौड़े का पानी कंडोम में अभी तक पूरी तरह सूखा नही था |
“मुझे जवाब दो यह सब क्या है अफ़ताब” यह सारी चीज़ें मेरे सामने रखने के बाद अम्मी ने गुस्से में मुझसे सवाल किया |
“हाँ मैं मानता हूँ कि जवानी के जज़्बात में बहक कर हम दोनों ने आपस में गुनाह भरा काम किया है, मगर यकीन जानीए यह सब कुछ हमसे अंजाने में हुआ है अम्मी जान”
अपनी नजरों के सामने पड़े हुए इतने सारे सबूत देखते हुए किसी बात से इंकार करना अब मेरे लिए नामुमकिन हो गया था | इसलिए डरते दिल के साथ आख़िर मैंने अपने जुर्म का इक़बाल करके शर्म से अपनी नज़रें झुका लीं |
अपनी अम्मी के सामने अपनी ही सग़ी बहन को चोदने का इक़बाल करने के बाद मैं तो इस उम्मीद में था कि मेरी बात खत्म होते ही अम्मी पर क़यामत टूट पड़ेगी और फिर गुस्से के आल्म में वो मुझ पर थप्पड़ों और लातों की बरसात कर देंगी |
मगर इन सब बातों के उल्ट मेरी बात खत्म होते ही जब अम्मी की तरफ से ऐसी कोई बात ना हुई तो हैरानी के आल्म में डरते डरते हुए मैंने अपनी नज़रें उठा कर अपनी अम्मी के चेहरे की तरफ देखा तो मुझे उन के चेहरे पर संजीदगी तो नज़र आई लेकिन अम्मी की आवाज़ के उल्ट गुस्से का कोई नाम-ओ-निशान अम्मी के चेहरे पर मौजूद नही था |
“तुम्हें अपनी ही बहन के साथ हम बिस्तरी करने से पहले यह ख्याल नही आया, कि अगर किसी और को इस बारे में इल्म हो गया, तो गाँव में हमारी क्या इज्ज़त रह जाएगी, और फिर इसके बाद तुम्हारी बहन से शादी कौन करेगा अफ़ताब” मेरी बात खत्म होते ही मुझ पर गुस्से होने या डाँटने की बजाए अम्मी ने मेरी तरफ देखते हुए संज़ीदा अंदाज़ में मुझे कहा |
“आप कह तो सही रही हैं, मगर आप फ़िक्र मत करें, मैं करूँगा संध्या से शादी” अपने ही सगे बच्चों के बारे में अपने ही बेटे के मुँह से गुनाह-आ-कभीरा वाली बात सुन कर गुस्से भरा कोई रिएक्शन देने की बजाए अम्मी को नॉर्मल अंदाज़ में मुझसे बात करते देखकर मुझे हैरत तो बहुत हुई | मगर इसके साथ ही मेरा हौसला भी बढ़ गया और धड़कते दिल के साथ मैंने अपनी अम्मी से अपने दिल की बात कह डाली |
“एक तो तुमने अपनी ही बहन से ज्नाह किया है और ऊपर से अपनी ही सग़ी बहन से शादी के सपने देखने लगे हो, क्या तुम पागल तो नही हो गए, तुम जानते हो ऐसा होना नामुमकिन है अफ़ताब” मेरी बात सुनते ही इस बार अम्मी के चेहरे पर हल्का से गुस्सा आया और वो एकदम बोल पडीं |
“होने को क्या नही हो सकता, हम सारी ज़मीन बेच कर कराची चले जाएंगे, जहाँ हमें कोई नही जानता और वहाँ मैं और संध्या बीवी की हैसियत से इकट्ठे रह लेंगे अम्मी जी” अम्मी के सामने अपना गुनाह कबूल करने के बाद उन के रवैये से मेरा हौसला इतना बढ़ गया कि अब मैं खुल कर अपने दिल की बात अपने मुँह पर ले आया |
“अपनी ही बहन का कंवारापन लूट कर, अब उसे अपनी बीवी भी बनाना चाहते हो तुम, बहुत खूब मेरे बेटे, क्या मैंने इसी दिन के लिए तुझे पाल पोस कर जवान किया था हरामखोर” मेरी बात सुन कर अम्मी ने पहली बार गुस्से वाला मुँह बनाते हुए मुझे जवाब दिया |
“मैं और संध्या एक दूसरे से प्यार करते हैं, और एक दूसरे के बिना नही रह सकते अब, अगर आप को मेरी बात पर यकीन नही तो बेशक़ संध्या से पूछ लें आप” अपनी अम्मी के गुस्से बहरे लहजे को नज़रदाज़ करते हुए एक बार फिर अम्मी से यह बात दोहराई |
अपनी बहन संध्या से प्यार करने वाली बात सुन कर अम्मी ने मेरी बात के जवाब में खामोशी इख्तियार की तो मैंने भी अब की बार अम्मी से और कोई और बात करना मुनासिब नही समझा |
किचन में इस वक़्त अब एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी | जिसके दौरान हम दोनों माँ बेटा अपनी अपनी जगह पर बैठकर खामोशी से एक दूसरे के मुँह को देखे जा रहे थे |
थोड़ी देर यूँ ही अपनी अम्मी को खामोशी से देखने के बाद मुझे उधर और बैठना ठीक नही लगा |
इसलिए मैं एकदम वहाँ से उठकर अपने कमरे की तरफ चलते हुए बोला “अच्छा खुदा हाफ़िज़ मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ अम्मी” |
“रुको मेरी बात अभी खत्म नही हुई अफ़ताब” मुझे किचन से बाहर जाते देख कर अम्मी ने पीछे से आवाज़ दी |
“कोई तो बात नही, अब मैं आपसे कल सुबह बात करूँगा अम्मी जान” अपनी अम्मी को जवाब देते हुए मैं अपने कमरे में चला आया |
अपने बिस्तर पर बैठ कर मैं दिन को पेश आने वाले वाक्या और फिर अम्मी के रवैये के बारे में सोचने लग गया |
“दिन की रोशनी में खुले आसमान के नीचे अपनी ही जवान बहन के साथ रंगरलियाँ मनाते हुए अपनी ही अम्मी के हाथों पकड़े जाने के बाद होना तो यह चाहिए था कि, उसी वक़्त हम दोनों को अपने ही हाथों मार कर अम्मी खुद भी खुदकशी कर लेतीं, या फिर अपनी ही जवान बहन का कंवारापन ख़त्म करने के जुर्म में अम्मी मुझे अपने घर से बेदख्ल कर देतीं, मगर इन सब बातों के उल्ट, अम्मी बहुत ही पुरसकूँ नज़र आ रही हैं, तो इस की क्या वजह हो सकती है भला” अपनी अम्मी के रवैये को देख कर मेरे दिल में यह ख्याल आ रहे थे और मैं इस सोच में गुम था कि “ दाल में जरुर कुछ काला है” मगर हज़ार बार सोचने के बावजूद भी मुझे इस “क्या काला है” की समझ नही आ रही थी |
सोचते सोचते अम्मी का अपने मोटे मुम्मों के दरमियाँ से मेरे लौड़े के मादे वाले भरे हुए कंडोम निकालने वाली बात मेरे ज़ेहन में दुबारा से चली आई तो मैंने अपने आपसे खुद कलमी की “ओह अम्मी ने मेरे लौड़े के गरम पानी से भरे हुए कंडोम को अपने मुम्मों के दरमियाँ अपने ब्रेज़ियर में छुपा कर क्यों रखा था, संध्या के साथ साथ अम्मी को भी मेरे लौड़े की तलब तो नही हो रही कहीं” |
इस बात के बारे में सोचते सोचते अम्मी का चेहरा और उनका जिस्म मेरे ज़ेहन में एकदम से दौड़ने लगा, “हाईईईईईईईईईईई मेरी अम्मी रुखसाना की उम्र तो तक़रीबन 50 साल है, मगर घर और खेतों में काम काज करने की वजह से उम्र के लिहाज़ से उनका जिस्म काफ़ी फिट है |
जिसकी वजह से अम्मी अपनी उम्र से काफ़ी कम की लगती हैं, अम्मी का रंग काफ़ी साफ और गोरा है और उन का क़द भी काफ़ी उँचा है और उनके लंबे और घने बाल तो उन की पर्सनालिटी को और गज़ब बनाते हैं, और सब से बढ़ कर अम्मी के मोटे बड़े मुम्म्मे तो क़यामत है बस” आज पहली बार अपनी अम्मी के जिस्म को यूँ अपने तसुवर में लाकर सोचते हुए मेरे लौड़े में एकदम हलचल मच गई और मेरा लौड़ा कड़ा होकर मेरी शलवार में एकदम खड़ा हो गया |
“ अब्बू को मरे हुए काफ़ी टाइम हो गया है, इसलिए एक औरत होने के नाते अम्मी को उनके लौड़े की कमी तो जरुर महसूस हो रही होगी, अगर मैं अपनी ही सग़ी बहन की कुंवारी चूत को चोद कर उसे अपनी बहन से अपनी माशूका बना सकता हूँ, तो मैं अपनी अम्मी को चोद कर उन की बेवागिरी का दुःख कम क्यों नही कर सकता भला” यह बात सोचते हुए मेरे ज़ेहन में पहली बार अपनी अम्मी के बारे में ऐसा ख्याल आया तो शलवार में खड़े मेरे लौड़े में और सख्ती आने लगी |
“क्यों ना मैं अम्मी के कमरे में जाऊं और उनके बिस्तर में घुस कर उनकी चूत में अपना लौड़ा डालूं और उनकी बेवा चूत को फिर से आबाद कर दूँ” अपने बिस्तर पर बैठे बैठे मेरे ज़ेहन में यह ख्याल आया तो शलवार के ऊपर से अपने लौड़े को अपनी मुट्ठी में दवोचते हुए मैंने सोचा |
“नही मुझे जल्दबाज़ी नही करनी चाहिए, क्योंकि अगर अम्मी के बारे में मेरा ख्याल ग़लत निकला, तो इस बार अम्मी यक़ीनन मुझे जान से मार देंगी” | अपने ज़ेहन में अम्मी की चुदाई का ख्याल आते ही मेरे लौड़े को गर्मी तो बहुत चढ़ी | मगर मैंने अपने आपको अम्मी के कमरे में जाने से बामुश्किल रोका और फिर अपने दिल को काबू में करते हुए बिस्तर पर सोने के लिए लेट गया |
मुझे सोये हुए अभी आधा घंटा भी नही गुज़रा था कि मुझे यूँ लगा जैसे कोई मेरे कमरे का दरवाज़ा खोल कर चुपके से मेरे कमरे में दाखिल हुआ |
रात के तक़रीबन 12 बजे अपने कमरे में किसी और शक्स की मौजूदगी का एहसास होते ही मैं अपनी नींद से एकदम जाग गया और फ़ौरन पूछा “कौन है”?
“मैं हूँ तुम्हारी अम्मी अफ़ताब” मुझे अपनी नींद से एकदम जागता देख कर अम्मी ने आहिस्ता से कहा |
“आप और इस वक़्त मेरे कमरे में, खैरियत तो है ना अम्मी जान” रात के पिछले पहर अम्मी को यूँ दबे पावं मेरे कमरे में आते देखकर मुझे बहुत हैरत तो हुई मगर इसके साथ ही रात की तन्हाई में अम्मी को अपने कमरे में मौजूद पाकर मेरे सोये लौड़े ने एक बार फिर मेरी शलवार में अंगडाई लेना शुरू कर दी |
“हाँ तुमसे कुछ जरूरी बात करनी थी बेटा” अम्मी ने दरवाज़े पर खड़े खड़े मुझे ज्वाब दिया |
“अच्छा तो आपने सारी बात दरवाज़े पर खड़े खड़े ही करनी है, इधर आएं और मेरे पास बैठकर बात कर लें अम्मी” अपनी अम्मी को यह बात कहते हुए मैं उठकर बिस्तर पर बैठ गया |