भाग ५)
मैं काफ़ी परेशान सा था |
पता नहीं मुझे परेशान होना चाहिए था या नहीं पर जिनके साथ मैं रहता हूँ, खाना पीना, उठाना बैठना लगा रहता है... उनके प्रति थोड़ा बहुत चिंतित होना तो स्वाभाविक है |
सवालों के उधेड़बुन में फंसा था ---
क्या करूँ या क्या करना चाहिए... कुछ समझ नहीं आ रहा था ... बात कुछ ऐसी भी नहीं थी की मैं सीधे जा कर चाची से कुछ पूछ सकूँ |
कहीं न कहीं मुझे खुद के बेदाग़ रहने की भी फ़िक्र थी ... कहीं मैं ऐसा कुछ न कर दूं जिससे चाची को यह लगे की मैं चोरी छिपे उनकी जासूसी कर रहा हूँ या उनपर नज़र रखता हूँ | बहुत दिमागी पेंचें लगाने का बाद भी जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने ये सब चिंताएं छोड़ अपने काम पे ध्यान देने का निर्णय लिया और व्यस्त हो गया ----- |
जॉब मिल नहीं रही थी इसलिए मैंने अपना खर्चा निकालने के लिए इसी घर के एक अलग बने कमरे में ट्यूशन (कोचिंग करने) पढ़ाने लगा था | कुछ महीनो में ही कोचिंग जम गया गया था और अच्छे पैसे भी आने लगे थे | कभी कभी उन पैसों से चाची के लिए कोई कीमती साड़ी और चाचा के लिए एक अच्छी ब्रांडेड शर्ट खरीद कर ला देता ----
चाची को कपड़ो का बहुत शौक था इसलिए जब भी कोई कीमती साड़ी उन्हें लाकर देता तो वो मना तो करतीं पर साथ ही बड़ी खुश भी होती |
खैर, बहुत देर बाद चाची निकली..
अब भी थोड़ा लंगड़ा रही थीं, मैंने पूछना चाहा पर पता नहीं क्यों... चुप रहना ही श्रेष्ठ समझा ---
मुझे सामने देख कर चाची ने इधर उधर की बातें कीं --- अपने लिए थोड़ा सा खाना निकाला उन्होंने --- मेरे पूछने पर बताया की वो बाहर से ही खा कर आई है --- अपनी किसी सहेली का नाम भी बताया उन्होंने |
ठीक से खाया नहीं जा रहा था उनसे ....
बोलते समय आवाज़ काँप रही थी उनकी ....
आँखों में भी बहुत रूआंसापन था... |
मैं अन्दर ही अन्दर कन्फर्म हो गया था की यार कहीं न कहीं , कुछ न कुछ गड़बड़ है और मुझे इस गड़बड़ का कारण / जड़ का पता करना पड़ेगा | कहीं ऐसा ना हो की समय हाथ से यूँ ही निकल जाए और कोई बड़ा और गंभीर काण्ड हो जाए ... |
सोचते सोचते मेरी नज़र उनके कंधे और ऊपरी सीने पर गई ----
दोबारा चौंकने की बारी थी ....
चाची के कंधे पर हलके नीले निशान थे और सीने के ऊपरी हिस्से पर के निशान थोड़ी लालिमा लिए हुए थे !
समझते देर न लगी की चाची पर किसी चीज़ का बहुत ही प्रेशर पड़ा है ----
ये भी सुना है की अक्सर मार पड़ने से भी शरीर के हिस्सों पे नीले दाग पड़ जाते हैं .....
इसका मतलब हो सकता है कि चाची को किसी ने मारा भी हो .....?
सोचते ही मैं सिहर उठा, रूह काँप गई मेरी --- मेरी सुन्दर, मासूम सी चाची पर कौन ऐसी दरिंदगी कर सकता है भला और क्यों?
चाची खा पी कर अपने कमरे में चली गई आराम करने और इधर मैं अपने सवालों और ख्यालों के जाल में फंसा रहा ---- |
रात हुई ....
चाची ने काफ़ी नार्मल बिहेव किया चाचा के सामने ---
तब तक काफ़ी ठीक भी हो गई थी --- मैंने भी रोज़ के जैसा ही बर्ताव किया ... सब ठीक टाइम पर खाए पीये और सो गए; मुझे छोड़ के !
मैं देर रात तक जागता रहा ...
कश पे कश लगाता रहा और सिगरेट पे सिगरेट ख़त्म करता रहा --- जितना सोचता उतना उलझता --- एक पॉइंट पे आ कर मुझे ये भी लगने लगा की जो भी संकट या गड़बड़ है, इसमें शायद कहीं न कहीं चाची का खुद का कोई योगदान है , अब चाहे वो जाने हो या अनजाने में ---
कश पे कश लगाते हुए ही मेरे दिमाग में एक सीन ने दस्तक दिया और दस्तक देते ही डेरा भी जमा लिया ---
सीन था वही सुबह वाला ---- चाची के ऑटोरिक्शा पे बैठ कर जाना और उनके पीछे उस लाल वैन का जाना ---- काले शीशों वाला वैन !
उफ़! न जाने क्यों दूसरी कोई भी बात सोचते या सोचने से पहले ही ये लाल वैन आ कर दिमाग में और आँखों के सामने चलायमान हो जाता है ---
सोचते सोचते ही अचानक से एक और बात ने मेरे मन में एक हुक सा प्रश्न चुभो दिया .....
क्या ये संभव है की जिस तरह मैंने उस लाल वैन को देखा, उसी तरह उस लाल वैन में मौजूद शख्स ने मुझे देखा हो? --- माना दूरी बहुत थी --- मैं शायद उनके पहचान में भी नहीं आऊँगा ; पर इतना तो संभव है ही कि उस या उन लोगों ने दरवाज़े पर किसी को खड़े रहते देखा हो ---? इतना तो देख ही सकते हैं ...
और,
तब तक तो चाची ने ऑटोरिक्शा भी पकड़ा नहीं था...
मोड़ के उस पार जा कर ही ऑटो ली थी ---
तो, अब अगर हिसाब लगाया जाए तो घर के लोहे वाले गेट से लेकर सड़क तक पहुँचने में ..... २ मिनट ....
रास्ते पे चलते हुए रास्ते के उस मोड़ पर पहुँचने तक ..... ५ मिनट ...
और फ़िर,
रास्ते को पार कर ... उस पार जाने में उन्हें लगा होगा करीबन .... मम्म.... २ मिनट... चूँकि ट्रैफिक अधिक न थी उस समय..
और ऑटो लेने में लगा होगा ... २ से ३ मिनट... म्मम्म... नहीं, २ मिनट ही लेता हूँ....
तो कुल मिलाकर हो गए,
ग्यारह मिनट !!
होली शिट मैन !!
इतना समय तो बहुत है ;
वो लोग जो भी होंगे उन्होंने मुझे देखा हो सकता है ---
ये आवश्यक नहीं की ऐसा ही हुआ हो --- परन्तु विद्वानों ने कहा है कि संभावनाओं को पूरी तरह से कभी भी अनदेखा नहीं करना चाहिए चाहे कितनी भी छोटी या बचकानी लगे ----
तो फ़िर ....??
दोनों ही पॉसिबिलिटी को ले कर चलना होगा,
१) उन्होंने देखा है...
२) उन्होंने मुझे नहीं देखा है .... क्योंकि शायद उस समय उनका ध्यान चाची पर ही रहा हो ...
पर,
एक बात और भी तो हो सकती है ;
और वो यह की चाची के ऑटो पकड़ कर जाने और ठीक तभी उस वैन का उस ऑटो के पीछे जाना महज एक संयोग भी तो हो सकता है ...?!
उफ़... सर भारी होने लगा ---
बची सिगरेट बुझाई..
ब्रश किया,
हाथ पैर धोया और ईश्वर का नाम ले कर सोने चला गया ---
साथ ही मन में इस बात को ठाने कि,
मैं अब से जितना हो सकेगा, चाची की हरेक गतिविधि पर नज़र रखूँगा .... ----
क्रमशः
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