Kamukta Stories ससुराल सिमर का - Page 3 - SexBaba
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Kamukta Stories ससुराल सिमर का

ससुराल सिमर का—14

गतान्क से आगे……………

रजत भैया एकदम सुबह आफ़िस जाते थे, सुबह दस बजे मैं चोद कर आफ़िस जाता था, फिर माँ चढती थी अपनी लाडली बहू पर और शाम को वापस आकर रजत चोदता था इसे एक मिनिट को खाली नहीं रखते थे, इसकी मादक जवानी को पूरे दिन चखते थे, रात को सब मिल बाँट कर खाते थे, वैसा ही कुछ तुम्हारे और माँ के साथ अब होगा दो तीन दिन"

"पर मुझे बाँध क्यों दिया जीजाजी?"

"अरे नहीं तो मुठ्ठ मार लोगे, मुझे मालूम है क्या हाल होता है, पागल हो जाती थी मैं चुदासी से तेरे झडने पर अब हमारा कंट्रोल रहेगा भैया अरे टुकूर टुकूर क्या देख रहे हो, अब जन्नत का मज़ा लोगे तुम दोनों! ख़ासकर माँ को तो आज मैं और सासूजी देखेंगे प्यार से बीच बीच में तुझे देख जाया करेंगे वैसे ये मेरे पति और जेठजी तुम्हारा ख़याल रखेंगे" दीदी मेरे लंड को मुठियाते हुए बोली फिर जीजाजी से बोली "चलो, पहला नंबर किसका है?"

जीजाजी बोले "मैं नहाने जा रहा हू, आकर पहले ज़रा मांजी की बुर का प्रसाद लूँगा फिर अपने प्यारे साले से इश्क फरमाऊन्गा अभी भैया चढे होंगे मांजी पर तब तक सिमर, तू मज़ा कर ले अपने भाई के साथ, फिर दिन भर मौका मिले ना मिले"

जीजाजी के जाते ही सिमर दीदी मुझपर चढ कर चोदने लगी मन भर कर उसने मुझे चुदाया पर झड़ाया नहीं मैंने बहुत कहा, मुझसे यह सुख सहन नहीं हो रहा था दीदी कान को हाथ लगाकर बोली "नहीं बाबा, मुझे डाँट नहीं खानी, आज तेरे लंड की चाबी रजत और दीपक के हाथ में है मांजी भी नहीं झड़ाएँगी तुझको, हाँ चूत का रस पिला देती हू"

सिमर दीदी के जाने के बाद कुछ देर बाद जीजाजी वापस आए सीधे मेरे लंड पर ही बैठ गये अपनी गान्ड में उसे घुसाते हुए बोले "अमित, आज मैं मन भर कर मराऊम्गा तुझसे, कल सब के साथ जल्दी में मज़ा आया पर मन नहीं भरा"

बहुत देर तक मेरे लंड से वे मरावाते रहे उपर नीचे होकर, कभी हौले हौले, कभी हचक हचक कर अपने लंड को पकडकर वी मुठिया रहे थे मैं सुख से तडप रहा था लंड में मीठी अगन हो रही थी मन भर कर मरा कर वे जब उतरे तो मैंने कहा "जीजाजी, ऐसे सूखे मत छोडो, कम से कम मेरी ही गान्ड मार लो, कुछ तो राहत मिले"

वी बोले "यार मैं ज़रूर मारता, पर रजत ने नहीं कहा है तेरी गान्ड बहुत मस्त है, भैया तो आशिक हो गये हैं उसपर वे अभी आएँगे तब मारेंगे हाँ, तेरी मलाई मैं ज़रूर चखूगा और तुझे अपनी चखाऊन्गा" वे मेरे उपर उलटे लेट गये और मेरे मुँह में अपना लंड दे दिया मेरे लंड को चूसते हुए वे मेरे मुँह को चोदने लगे
 
उनके उस खूबसूरत लंड को चूसने में में ऐसा जुटा कि उन्हें झडा कर ही दम लिया उन्होंने भी मुझे झड़ाया और बूँद बूँद वीर्य निगल गये कुछ देर वे सुस्ताते हुए मेरे उपर पड़े रहे, मुझे चूमते रहे और मेरे निपालों से खेलते रहे "अमित, तू आया है तो घर में बहार आ गयी है अब आ रहा है मज़ा असली सेक्स का तीन औरतें और तीन आदमी, हर उमर के तुझे तो हम अब जाने ही नहीं देंगे, यहीं रहना हमारे पास"

जब मेरा लंड खड़ा होने लगा तो वे उठ कर चले गये "माँ को भेजता हू तेरे पास, वो तुझे भैया के लिए तैयार करेगी भैया तेरी माँ को चोद कर आएँगे पर बिना झडे आज उन्होंने अपना लंड सिर्फ़ तेरे लिए बचा कर रखा है"

कुछ देर बाद शन्नो जी आईं आते ही पहले तो अपनी चुची मेरे मुँह में ठूस दी "बेटे, ले चूस, तू बहुत मन लगाकर चूसता है मैं तेरी माँ की चूस रही थी उसे बाँधने के बाद अपनी बुर चखाई और खूब गरम किया उसे, बेचारी रोने को आ गयी थी, सुख से तडप रही थी फिर जब रजत आया तब मैंने उसे छोड़ा रजत अभी उसे चोद रहा होगा बहू भी साथ में है, तेरी माँ को बुर चुसवा रही है"

फिर वे मुझपर चढ कर चोदने लगीं "तेरे लंड से चुदवा कर जो सुकून मिलता है बेटे वह बहुत दिन नसीब नहीं हुआ सच बता दीपक और रजत के साथ कल मज़ा आया या नहीं?"

मैंने कमर हिलाकर नीचे से चोदते हुए कहा "हाँ मांजी, मुझे मालूम नहीं था कि गान्ड मराने में इतना मज़ा आता है और लंड का स्वाद, अब तक ऐसा स्वाद नहीं लिया मैंने जीजाजी की गान्ड मारने में भी बहुत मज़ा आया रजत की नहीं मार पाया, उनकी भी बड़ी मस्त होगी, इतने हट्टे कट्टे गठीले चूतड हैं"

"अरे दीपक की तो बचपन से मारता है रजत उसकी सच में अच्छी है, लड़कियों जैसी गोरी गोरी तेरी भी कम नहीं है, बल्कि और जवान और रसीली है रजत की मार लेना आज रात, वह प्यार से मरवाएगा तुझसे, उसका एक ख़ास आसन है, तुझे अभी पता चल जाएगा"

दो तीन बार झडकर वे मेरे मुँह पर बैठ गयीं "बड़ी मेहनत की है तेरे लंड ने, खूब पानी निकाला है मेरी चूत से ले अपनी मेहनत का फल चख ले, फिर मैं जाती हू तेरा लंड भी अब फिर कैसा मचल रहा है देख, रजत ने मुझसे कहा था कि जब तक मैं अमित के पास पहूचू, उसका लंड सलाम में तना होना चाहिए"

आधे घंटे मैं वैसे ही पड़ा था फिर से लंड सनसना रहा था और बहुत तकलीफ़ दे रहा था लगता था कोई भी आए और किसी भी तरह से मुझे चोद जाए
 
आख़िर रजत अंदर आए उनके नंगे कसे मजबूत जिस्म को देखकर आज मुझे और उत्तेजना हुई, मैं उनकी राह देख रहा था जैसे कोई औरत या मर्द अपने प्रेमी या प्रेमिका की देखते हैं उनका लंड आज इस ज़ोर से खड़ा था कि पेट से सट गया था फूल कर मूसल जैसा लग रहा था

वे मेरे पास आए और मुझे चूम कर बोले "अमित, माँ ने बहुत प्यार से तैयार किया है तुझे, जैसा मैं चाहता था अब बोल, कैसे लेगा मेरा? और कैसे देगा मुझे? वैसे तेरे इस लंड को तो मैं चुसूँगा अपना इश्क खतम होने के बाद" झुक कर वे मेरे निपल चूसने लगे उनका एक हाथ अपने लंड को मुठिया रहा था और एक मेरे लंड को मस्त कर रहा था

मैंने सिहरकर कहा "रजत जी, आपकी गान्ड मारने का मन करता है"

"उसके लिए तुझे खोलना पड़ेगा वो मैं नहीं खोलूँगा आज दिन भर तू ऐसा ही हमारा खिलौना है रात को मार लेना अभी मैं तेरी मारता हू कल जल्दी में ठीक से नहीं मार पाया आज घंटे भर चोदून्गा तुझे, बिलकुल औरत मर्द वाली स्टाइल में चल तैयार हो जा" कहकर उन्होंने मेरे पैर खोल दिए हाथ वैसे ही बँधे थे

मेरे पैर उठाकर उन्होंने मोड कर मेरे कंधे से टिका दिए कुछ कुछ वैसे जैसे औरतों के करते हैं चोदते समय पैरों को उन्होंने मेरे पीछे पलंग के सिरहाने बाँध दिया "ठीक है ना, तकलीफ़ तो नहीं हो रही है?" प्यार से उन्होंने पूछा

मुझे थोड़ी तकलीफ़ ज़रूर थी पर ऐसी नहीं कि दर्द हो मैंने सिर हिलाया मेरी गान्ड अब पूरी खुली थी, उनके सामने ऐसे पेश थी जैसे कोई दावत हो वे पलंग पर चढ कर मेरी गान्ड के पास घुटने टेक कर बैठे और मेरे गुदा पर लंड रखकर पेलने लगे बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे मैं औरत हू और वे मेरी चूत में लंड घुसेड रहे हैं

आज मुझे काफ़ी दुखा एक टीस उठी जब उनका सुपाडा अंदर गया मेरी सीतकारियों पर आज उन्होंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, बस लंड पेलते रहे उनके उस लोहे जैसे लंड के आगे मेरे चूतड क्या टिकते, जल्द ही उनकी झांतें मेरे नितंबों पर आ टकराईं, उनका लंड जड तक मेरी गान्ड में समा गया था

मेरे लंड को सहलाते हुए वे कुछ देर बैठे रहे और फिर झुक कर मुझपर लेट गये मुझे बाँहों में भरके उन्होंने मेरा गहरा चूबन लिया और बोले "आज राहत मिली है मेरे राजा, जब से तुझे देखा है, यही सोच रहा हू कि कब तू मेरे नीचे होगा! दीपक की मैं ऐसे ही मारता हू, देखना अब तुझे किस जन्नत में ले जाता हू"

क्रमशः……………..
 
ससुराल सिमर का—15

गतान्क से आगे……………

मुझे चूमते हुए वे मेरी गान्ड चोदने लगे पकापक पकापक उनका लौडा मेरी गान्ड में अंदर बाहर होने लगा पहले मुझे काफ़ी दर्द हुआ पर मेरी हल्की सिसकियों को उन्होंने अपने मुँह में दबा लिया मेरा लंड तन कर मेरे और उनके पेट के बीच दबा हुआ था घिसने से मज़ा आ रहा था दो मिनिट में मैं ऐसा मस्त हुआ कि उनके होंठों को चूसता हुआ कमर हिलाकर चूतड उछालने लगा कि उनके लंड को और गहरा अंदर लूँ

वे मुस्कराए और बोले "मज़ा आरहा है ना? यह आसन गान्ड मारने के लिए सबसे अच्छा है, औरतों की भी ऐसे मार सकते हैं तू माँ की मार कर देखना, चूम्मा लेते हुए ऐसे सामने से गान्ड मारने में जो मस्ती मिलती है वो पीछे से मारने में नहीं"

बहुत देर जेठजी ने मेरी मारी मैं आधी बेहोशी आधी उत्तेजना की मदहोश स्थिति में था हाथ बँधे थे नहीं तो ऐसा लग रहा था कि उन्हें बाँहों में भींच लूँ पर रजत ने खोलने से मना कर दिया "यार, मैं जब तक चाहू तेरी मार सकता हू, तू चिपटेगा तो जल्दी झडा देगा मुझे"

लंबी चुदाई के बाद वे जब झडे तो आनंद से उनके मुँह से हिचकी निकल आई मैं लगा हुआ था, मेरा लंड ऐसा तना था कि मुझे चुप नहीं बैठने दे रहा था पर उनका लंड सिकुड कर मेरी गान्ड से निकल आया अब मैं कुछ बोल भी नहीं पा रहा था, बस उनकी ओर कातर दृष्‍टि से देख रहा था कि मुझे मुक्ति दें

रजत ने आख़िर मेरा लंड छूसा और मुझे राहत दी मैं ऐसा झडा की लस्त हो गया समलिंगी सेक्स में इतना सुख हो सकता है ये आज मुझे पहली बार पता चला

मुझे चूम कर रजत आफ़िस चले गये बहुत तृप्त लग रहे थे उनके जाने के बाद मैं सो गया दो घंटे बाद दीदी ने आकर खाना खिलाया दीदी और शन्नो जी एक एक बार और मुझे भोगने आईं दोपहर बाद उन्होंने मुझे छोड़ा मैं फिर ऐसा सोया कि शाम को ही उठा

माँ को देखा तो वह ऐसे चल रही थी जैसे नींद में हो उसका चेहरा एक असीम सुख से तमतमाया हुआ था उसे भी सब ने दोपहर भर खूब निचोड़ा था ये लगता है

उस रात हमने ज़्यादा चुदाई नहीं की सब काफ़ी तृप्त थे पर वायदे के अनुसार उसी आसन में रजत ने एक बार मुझसे गान्ड मराई उनकी गान्ड एकदम टाइट थी, मेरे लंड को ऐसे पकडती थी जैसे घूसे में पकड़ा हो मैंने कहा भी

"अरे आज तक इतना बड़ा लंड भी कहाँ लिया है भैया ने, मेरा ही तो लिया है, गान्ड टाइट होगी ही" जीजाजी बोले

रजत पर सामने से चढ कर प्यार करते हुए चूमते हुए मैंने खूब चोदा मज़ा आ गया यह आसान मैंने बाद में दीदी और माँ पर भी आजमाया गान्ड मारने या मराने के लिए अब मैं अक्सर यही आसन इस्तेमाल करता हू
 
दो दिन और मुझे और माँ को इसी तरह दिन में बाँध कर रखा गया जो जैसा समय मिलता आकर चोद जाता रजत तो एक बार आफ़िस से सिर्फ़ मुझपर चढ़ने को बीच में वापस आए और फटाफट चोद कर चले गये जीजाजी की कृपा अब माँ पर ज़्यादा रही

धीरे धीरे हम चुदाई के एक अटूट बंधन में बँध गये दोनों परिवार ऐसे बँधे कि अलग होना मुश्किल हो गया किसकी किस से शादी हुई है, कौन औरत है कौन मर्द, कौन बड़ा है कौन छोटा, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था जैसा जिसे अच्छा लगे, चढ जाता था

शन्नो जी के आग्रह पर मैं और माँ अपना घर बंद करके दीदी के यहाँ हमेशा को रहने आ गये मुझे वहीं के एक कालेज में एडमिशन मिल गया

एक दिन रजत ने कहा "चलो, अब कहीं घूम आते हैं दार्जीलिंग चलते हैं हफ्ते भर रहेंगे यहाँ बहुत चुदाई हो चुकी, सब थक भी गये हैं तीन चार दिन आराम कर लो, फिर मैं बूकिंग कर देता हू"

शन्नो जी बोलीं "पर बेटे, रहेंगे कहाँ, किसी होटल में इतना बड़ा कमरा नहीं होता कि हम सब उसमें आ जाएँ"

रजत बोले "कौन कहता है कि एक कमरे में रहेंगे? हम तो एक फ़ाइव स्टार होटल में तीन कमरे लेकर रहेंगे"

दीदी बोली "तो साथ चुदाई का क्या होगा?"

शन्नो जी सुन रही थीं मुस्करा कर बोलीं "मुझे मालूम है मेरे बेटे के मन में क्या है, साथ चुदाई बहुत हो गयी, आगे भी होगी जब हम वापस आएँगे अभी छुट्टी में हम जोड़ियाँ बनाकर अलग कमरों में रहेंगे"

माँ बोली "पर दीदी, कैसी जोड़ियाँ बनेंगी?"

जेठजी बोले "सब तरह की जोड़ियाँ बनेंगी हम छह लोग हैं, हमारी पंद्रहा तरह से जोड़ियाँ बन सकती हैं, तीन कमरे ले लेंगे, हर जोड़ी के लिए एक, पाँच दिन में सब तराहा की जोड़ियाँ बन जाएँगीं मज़ा आएगा हर रात एक अलग पार्टनर मन लगाकर उसके साथ जो मन में आए, कर सकते हैं मेरे भी मन में बहुत कुछ है, करने को और करवाने को जो सब के सामने करने में झिझक होती है, जोड़ी बना कर हम मनचाहा काम कर सकते हैं" वे मेरी ओर प्यार से देख रहे थे, साथ ही साथ उनकी नज़र माँ की ओर भी थी मैंने जीजाजी की ओर देखा मन में सोच रहा था कि कैसी जोड़ियाँ बनेँगीं और उनमें किस जोड़ी में ख़ास मज़ा आएगा!

शन्नो जी माँ की ओर और दीदी की ओर देखते हुए बोलीं "बिलकुल ठीक है बेटे, मैं भी कुछ कुछ करना चाहती हू"

"तो तय रहा अब सब अलग अलग सोना शुरू कर दो, अपनी बैटरी चार्ज कर लो और हाँ, सोच लो किस के साथ क्या करना है, यही मौका है, मन की हर मुराद पूरी कर लेने का प्राईवेसी में, मन को पिंजरे से निकाल कर खुला उडने का मौका देने का!" रजत ने मेरे चूतडो पर चपत मार कर कहा मुझपर वे ख़ास मेहरबान थे

सब एक दूसरे की ओर देख कर मुस्करा रहे थे सब को बात जॅंच गयी थी आँखों में झलकती कामना से यह सॉफ था कि सभी मन ही मन में सोचने लगे थे कि क्या करना है

रजत ने शन्नो जी से कहा "अम्मा, वापस आकर भी हम रोज जोड़ियाँ बना कर सोया करेंगे, चार बड़े कमरे हैं, किसी को कोई तकलीफ़ नहीं होगी जोड़ियाँ जितनी बार चाहे बदली जा सकती हैं बस शनिवार रविवार को मिलाकर हम सामूहिक प्रेमालाप करेंगे ठीक है ना"

सब ने हाँ कहा हमारे परिवार प्रेम का एक नया अध्याय शुरू हो रहा था तो दोस्तो ये कहानी आपको कैसी लगी ज़रूर बताना दोस्तो फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त
 
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