desiaks
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अब मैं बुरी तरह से उलझ कर रह गया था. एक तरफ तो प्रिया का अचानक इस तरह से, मुझे प्यार करने लगना, मुझे उसका आकर्षण लग रहा था. वही दूसरी तरफ उसकी मेरे लिए समर्पण की भावना मे, मुझे उसका भोलापन और प्यार नज़र आ रहा था.
मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, प्रिया का ये प्यार सिर्फ़ एक आकर्षण है, या फिर सच मे उसका प्यार ही है. उसके दिए हुए गिफ्ट ने मुझे, उसके बारे मे ये सब सोचने पर मजबूर कर दिया था.
मैं चाह कर भी उसका गिफ्ट देखने के बाद, अपने आँसू बहने से रोक नही पाया था. मेरी आँखों से आँसू झर रहे थे और मैं उसका गिफ्ट देख रहा था.
अपना गिफ्ट देखने के बाद, मेरी आँखों से आँसू बहते देख कर, प्रिया को लगा कि, मुझे उसका गिफ्ट पसंद नही आया है. उसने अपने हाथों से मेरा चेहरा अपनी तरफ घुमाया और और पुच्छने लगी.
प्रिया बोली "ये तुम्हे क्या हुआ. तुम रो क्यो रहे हो. यदि तुम्हे मेरा गिफ्ट पसंद नही आया तो, मैं इसे वापस ले लेती हूँ. इसमे रोने की क्या बात है. मेरा इरादा तुम्हारे दिल को चोट पहुचाने का हरगिज़ नही था. लेकिन क्या करूँ, मेरी तो आदत ही हो गयी है. बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाती हूँ और सबका दिल दुखाती हूँ."
प्रिया की इस बात से मुझे एक और ज़ोर का झटका लगा. मेरे आँसू देख कर अपनी ग़लती मानने का, उसका बिल्कुल वही अंदाज था. जो कीर्ति का मेरे आँसू देख कर रहता है.
मेरे दिल ने फिर मुझसे कहा "ये कोई आकर्षण नही, ये सच मुच का प्यार है. जो इस भोली भाली लड़की को तुमसे हो गया है और यदि ऐसा है तो, इस भोली भली लड़की के दिल मे, इस समय बहुत दर्द है. जिसको ये तुमसे छुपा रही है."
मैं प्रिया के बारे मे ये सब सोच रहा था. जब प्रिया ने मुझे अपनी बात का कोई जबाब देते नही देखा. तब वो खुद ही मुझसे कहने लगी.
प्रिया बोली "तुम्हे ये गिफ्ट पसंद नही है ना. लाओ इसे मुझे वापस दे दो. मैं कल तुम्हे, तुम्हारी पसंद का गिफ्ट दिला दूँगी. इसके लिए तुम्हे इतना दुखी होने की ज़रूरत नही है."
ये कह कर वो मेरे हाथ से अपना गिफ्ट वापस लेने लगी. लेकिन तब तक मैं सोच चुका था कि, ऐसे हालत मे मुझे क्या करना चाहिए. मैने अपना हाथ दूसरी तरफ घुमा लिया और प्रिया को उसका गिफ्ट वापस नही लेने दिया. मैने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए प्रिया से कहा.
मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. मैं बस ये सोच कर परेशान हूँ कि, ये गिफ्ट तो तुमने उस लड़के के लिए खरीदा था. जिसे तुम प्यार करती थी. लेकिन अब सारी सचाई तुम्हारे सामने है. फिर भला मैं इस गिफ्ट को कैसे ले सकता हूँ."
प्रिया बोली "यदि बात सिर्फ़ यही है. तब तुम इस गिफ्ट को बेहिचक ले सकते हो. क्योकि मैने ये गिफ्ट तुम्हे सिर्फ़ दोस्ती के रिश्ते से देने के लिए लिया था."
ये बोल कर वो हँसने लगी. मगर मुझे उसकी बात पर यकीन नही आया. मैने उस से कहा.
मैं बोला "नही ये सच नही है. तुम ये बात सिर्फ़ मेरा दिल रखने के लिए कह रही हो. तुम मुझसे प्यार करती थी, इसलिए तुम मुझे ये गिफ्ट दे रही थी."
प्रिया बोली "ये बात सही है कि, मैं तुम्हे प्यार करती थी. तभी ये गिफ्ट दे रही थी. लेकिन मुझे ये गिफ्ट तुम्हे दोस्ती के रिश्ते से ही देना था. क्योकि मैं खुद तो तुम से, ये कह नही सकती थी कि, मैं तुमसे प्यार करती हूँ. जब मैं ये बात तुमसे कह नही सकती थी तो, फिर भला तुम्हे ये गिफ्ट प्यार के रिश्ते से कैसे दे सकती थी."
मैं बोला "हो सकता है कि, तुमने गिफ्ट देने के बाद, अपने प्यार का इज़हार करने की बात सोची हो. तभी तो तुम इतनी रात को मेरे पास आई थी."
प्रिया बोली "ऐसा कुछ भी नही है. ये सारे गिफ्ट कल रात को, तुम्हारे जाने के बाद से, यही रखे हुए है. मुझे तो आज शाम को पता चला कि, तुम्हारी जिंदगी मे कोई दूसरी लड़की है. याद करो जब पार्क मे, मैने तुम्हे फोन पर बात करते देखा था. तब मैं कितना गुस्सा थी और तुम्हे बात करने के लिए घर लेकर आई थी. बस तभी से मेरे मन मे तुमसे, इस बात को कहने का ख़याल आया था. उसके पहले तो मैने ऐसा कुछ करने का सोचा ही नही था."
लेकिन अभी भी मेरे मन मे ये सवाल आ रहा था कि, दो लोग एक सा ही गिफ्ट कैसे दे सकते है. मैने अपने मन की बात जाहिर ना करते हुए प्रिया से पुछा.
मैं बोला "अगर ऐसी ही बात थी तो, तुमने सिर्फ़ मोबाइल देने का ही क्यों सोचा. कोई दूसरा गिफ्ट क्यो नही दिया."
प्रिया बोली "वो इसलिए क्योकि मैं चाहती थी. जब मैं तुमसे बात करूँ. तब कोई दूसरा हमें डिस्टर्ब ना करे. अब जाहिर सी बात है कि, तुम्हारे इस नंबर पर सबके कॉल आते है. अब मान लो तुम मुझसे बात कर रहे हो. तब किसी का कॉल आ जाता है तो, तुम मुझसे कहते कि, अभी मेरा कॉल आ रहा है. तुम कॉल रखो. मैं बाद मे बात करता हूँ. लेकिन अलग से मोबाइल रहने पर तुम्हे मेरा कॉल नही काटना पड़ता."
प्रिया की ये बात सुनकर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि, कीर्ति ने मुझे अलग से, ये मोबाइल क्यो दिया है. वो भी यही चाहती होगी कि, जब मैं उस से बात करूँ तो, कोई हमें डिस्टर्ब ना करे. लेकिन इस बात से मेरे मन एक बात और आई कि, आख़िर दोनो ने ही एक ही कंपनी का मोबाइल क्यों दिया है. तब मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला "चलो मैं तुम्हारी इस बात को मान भी लेता हूँ. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा है कि, तुमने देने के लिए, ये ही मोबाइल क्यो चुना."
प्रिया बोली "तुम सच मे ही बुद्धू हो. अरे इस कंपनी के मोबाइल आपस मे फ्री हो जाते है. उन्हे ऑल इंडिया फ्री कराया जा सकता है. किसी दूसरी कंपनी मे ये सुविधा नही है. अब तुम तो उतनी दूर रहते हो. ऐसे मे मैं तुमसे ज़्यादा देर बात नही कर सकती थी. लेकिन इसमे हम, जितनी चाहे उतनी बात कर सकते है. अब सब कुछ समझ मे आ गया, या फिर अभी भी कुछ बाकी है."
प्रिया की इस बात से मुझे, कीर्ति के नये मोबाइल लेने का राज भी समझ मे आ गया था. शायद उसने अपना मोबाइल फ्री करा लिया था. तभी वो मेरे कॉल करने के बाद भी, मेरा कॉल काट कर खुद नये मोबाइल पर कॉल कर रही थी. मैने इस बात पर से अपना ध्यान हटाते हुए प्रिया से कहा.
मैं बोला "हाँ बस एक आख़िरी बात बाकी है."
प्रिया बोली "तो इसमे इतना सोचने की क्या ज़रूरत है. जो भी पुच्छना है, पुच्छ लो."
मैं बोला "क्या मेरे बारे मे, सब कुछ जानने के बाद भी, तुम्हे ये लगता है कि, मुझे ये मोबाइल रखना चाहिए."
प्रिया बोली "हाँ सब कुछ जानने के बाद भी, तुम्हे ये मोबाइल रखना ही पड़ेगा और वहाँ जाने के बाद, अपनी गर्लफ्रेंड से छुप छुप कर, कम से कम 1 घंटे रोज, मुझसे बात भी करना पड़ेगी. क्योकि तुमने मुझसे हमेशा दोस्ती निभाने का वादा किया है. अब तुम्हारी आख़िरी बात भी हो गयी. अब मैं जाउ."
मैं बोला "जाने की क्या ज़रूरत है. तुम भी यही मेरे साथ सो जाओ."
प्रिया बोली "हाँ तुम्हारी ये बात सही है. मैं दरवाजा बंद कर के आती हूँ. फिर हम दोनो मिल कर आराम से सोएगे."
मुझे लगा कि वो मज़ाक कर रही है. लेकिन वो मेरे पास से उठ कर दरवाजा बंद करने जाने लगी. उसे ऐसा करते देख, मैने उस से कहा.
मई बोला "अरे नही नही, मैं तो मज़ाक कर रहा था."
प्रिया बोली "लेकिन मैं मज़ाक नही कर रही हू. मुझे सच मे तुम्हारे साथ सोना है."
ये कह कर उसने हंसते हुए दरवाजा बंद कर दिया. मैं उसे देखने के सिवा कुछ ना कर सका. फिर वो वापस मेरे पास आ कर, मेरे सामने खड़ी हो कर, मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए कहने लगी.
प्रिया बोली "चलो अब सोया जाए."
मैं बोला "यार अब मज़ाक बंद करो. रात बहुत हो गयी है. अब हमें सोना चाहिए. अब तुम अपने कमरे मे जाओ और मुझे भी सोने दो."
प्रिया बोली "हाँ अब रात ज़्यादा हो गयी है. अब हमे सोना चाहिए."
ये कहते हुए प्रिया ने, मुझे बेड की तरफ धक्का दे दिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि, मेरे दोनो पैर बेड से नीचे लटकते रहे और मैं बेड पर लेट गया. मेरे लेटते ही उसने अपने दोनो हाथ, मेरे दोनो कंधों के अगल बगल रखे और वो मेरे उपर झुक कर, मेरी आँखों मे देखने लगी.
उसके इस तरह मेरी आँखों मे आँखे डालकर देखने से, मेरी धड़कने बढ़ गयी. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, अब वो आगे क्या करने वाली है. मैं उसे एक तक देखता रहा. तभी वो मेरे उपर लेट गयी और उसके सीने से मेरा सीना टकरा गया.
उसके कोमल कोमल बूब्स मेरे सीने से दब गये. उसके बूब्स के इस कोमल अहसास से, मैं खुद को बाहर निकाल पता. उसके पहले ही उसने अपने होंठ, मेरे होंठों पर रख दिए और वो मेरे होंठों को चूसने लगी. मैं उसे रोकना चाहता था. लेकिन अब उसे रोकने की ताक़त मुझमे नही थी.
मैने भी अपने दोनो हाथ उसकी पीठ पर रख दिए और किस करने मे उसका साथ देने लगा. करीब 2 मिनट तक हम एक दूसरे के होंठों को चूस्ते रहे. फिर अचानक ही उसने किस करना बंद कर दिया और मेरी आँखों मे देखने लगी. उसकी आँखें मुझसे कुछ कहना चाह रही थी. मैं उसकी आँखों की इस बात समझने के लिए, उसकी आँखों मे देखने लगा.
लेकिन तभी उसने बारी बारी से, मेरी दोनो आँखों को चूमना सुरू कर दिया. उसे ऐसा करते देख, मैने अपनी आँखे बंद कर ली. मेरे आँखे बंद करते ही, वो पागलों की तरह, कभी मेरी आँखे चूमती तो, कभी मेरे चेहरे को चूमती रही और मैं आँखे बंद किए, अपने दोनो हाथों से उसकी पीठ सहलाता रहा.
मुझे कुछ भी समझ मे नही आ रहा था कि, वो ये सब क्यो कर रही है. फिर भी उसका कुछ भी करना, मुझे ग़लत नही लग रहा था. वो ना जाने कितनी देर मुझे चूमती रही. फिर अचानक ही मुझे, मेरे चेहरे पर आँसुओं के गिरने का अहसास हुआ और मैने अपनी आँखे खोल दी.
अपनी आँख खोलते ही, मेरा दिल दहल गया. प्रिया का चेहरा रुआंसा था. उसकी आँखों मे आँसू भरे हुए थे. वो पागलों की तरह मुझे चूम रही थी और उसके आँसू बहे जा रहे थे. मैने उसकी ऐसी हालत देखी तो, मैने उसका चेहरा अपने हाथों मे पकड़ा और कहा "प्रिया."
उसने आँसू भरी आँखों से, मेरी आँखों मे देखा और फिर मेरे माथे को चूमते हुए बोली "आइ लव यू."
इसके बाद वो इक झटके से, मेरे उपर से उठी और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी. ये सब इतनी जल्दी हो गया कि, मैं उस से कुछ बोल भी ना सका. बस उसे जाते हुए देखता रह गया.
वो लड़की जिसे मैने हमेशा हंसते खिलखिलाते हुए देखा था. उसका ये रूप मेरे लिए बिल्कुल नया था. मैं अजीब सी कशमकश मे फसा था.
मैं उस लड़की को समझने मे भूल कर गया था. सच तो ये था कि, मैं उसे कभी समझ ही नही सका था. ना ही उसके दर्द का ठीक से अंदाज़ा लगा पाया था. लेकिन अब मुझे उसके दर्द का अहसास हो रहा था और मुझे लग रहा था कि, वो अपने कमरे मे जाकर रो रही होगी.
यही सब सोचते सोचते, मैं काफ़ी देर वैसा ही लेटा लेटा, प्रिया के बारे मे सोचता रहा. फिर उठ कर मैने दरवाजा बंद किया और सोने की . करने लगा.
लेकिन आँख बंद करते ही मेरी आँखों के सामने, प्रिया का रोता हुआ चेहरा आ रहा था. जब मुझसे नही रहा गया. तब मैने प्रिया का दिया हुआ मोबाइल ऑन किया.
उसे ऑन करते ही स्क्रीन पर लिखा आया "हेलो माइ स्वीट फ्रेंड."
जिसे देखते ही मेरा दिल और भी ज़्यादा उदास हो गया. मैने कॉंटॅक्ट लिस्ट मे देखा तो, उसमे प्रिया का नंबर सेव था. मैने उस नंबर पर कॉल लगा दिया. मैं जानता था कि वो इस समय रो रही होगी. इसलिए मैने उसके कॉल उठाते ही, उसके बोलने से पहले ही कहा.
मैं बोला "क्या यार ये तुम्हारी अच्छी आदत नही है. खुद ने पप्पी झप्पी सब कुछ ले ली, और मेरी बारी आई तो उठ कर भाग गयी."
प्रिया को शायद मेरा कॉल आने से खुशी हुई थी. इसलिए वो मेरे इतने बात करने से अपने को सभाल चुकी थी. फिर भी उसकी बातों मे भारीपन था. उसने मेरी बात के जबाब मे कहा.
प्रिया बोली "मैं तो तुम्हारे साथ सोना चाहती थी. तुम ही बोले थे कि, मैं मज़ाक कर रहा हूँ. तब क्या मैं तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती सो जाती."
मैं बोला "मेरी बात को टालो मत. मैं सोने की बात नही कर रहा हूँ. मैं पप्पी झप्पी की बात कर रहा हूँ. मुझे मेरी पप्पी झप्पी चाहिए."
प्रिया बोली "तुम फिर शैतानी कर रहे हो. तुम्हे पप्पी झप्पी चाहिए तो, अब अपनी गर्लफ्रेंड को फोन लगाओ और उस से ले लो. मुझे सोने दो."
मैं बोला "ये ग़लत बात है. जब तुम पप्पी झप्पी ले सकती हो तो, फिर मैं क्यो नही ले सकता. अब जब तक तुम मुझे पप्पी झप्पी नही लेने देती. तब तक मैं फोन नही रखूँगा."
प्रिया बोली "तो मत रखो फोन. लेकिन अब मैं तुम्हे कोई पप्पी झप्पी नही देने वाली. समझ गये ना."
अब प्रिया का मूड मुझे कुछ ठीक होता समझ मे आया. मैने उसे बहलाते हुए कहा.
मैं बोला "याद रखना मैं तुम से इसका बदला ज़रूर लूँगा."
प्रिया बोली "अब तुम मेरा कुछ भी नही कर सकते. क्योकि अब मैं तुम्हारे पास आउगि ही नही."
मैं बोला "ये तुम भूल जाओ. मैं तुमसे इसका बदला ज़रूर लूँगा और कल ही लूँगा."
प्रिया बोली "अच्छा मैं भी तो सुनूँ कि कल तुम क्या करने वाले हो."
मैं बोला "अब ये तुम कल खुद देख लेना."
प्रिया बोली "हाँ देख लूँगी. अब तुम फोन रखो. मुझे सोना है."
मैं बोला "तुमने मेरी नींद खराब की है. मैं तुम्हे नही सोने दूँगा."
प्रिया बोली "ना लेना एक ना देना दो. मैं तो सो रही हूँ. तुम जागते रहो."
मैं बोला "तुम सोकर देखो. मैं भी देखता हूँ कि, तुम कैसे सोती हो."
प्रिया बोली "यार तुम तो ज़बरदस्ती मेरे पिछे पड़ गये. मैं भला तुमहरि बात क्यो सुनूँ."
मैं बोला "वो तो मैं पिछे पड़ूँगा ही है और तुमको मेरी बात सुनना भी पड़ेगी."
प्रिया बोली "हाँ, अब दोस्ती की है तो, निभानी भी पड़ेगी."
ये कह कर प्रिया हँसने लगी. उसे हंसते देख कर मुझे बहुत राहत मिल रही थी. मैं उसे काफ़ी देर तक ऐसे ही बातों मे उलझाए रहा और बात बात पर हँसाता रहा. फिर 4:30 बजे उसने कहा कि, अब उसे सच मे बहुत नींद आ रही है. तब मैं फोन रखने को तैयार हुआ और मैने उसे गुड नाइट कह कर फोन रख दिया.
अब मैं भी बहुत थक चुका था और मुझे नींद भी आ रही थी. ऐसे मे किसी का गिफ्ट देखने की मेरे अंदर ताक़त ही नही बची थी. मैने सारे गिफ्ट उठा कर एक किनारे रखे और फिर सोने की कोसिस करने लगा. लेकिन अभी भी मेरे दिमाग़ मे प्रिया ही घूम रही थी. मैं उसी के बारे मे सोचते सोचते ना जाने कब बहुत गहरी नींद सो गया.
सुबह मेरी नींद किसी के दरवाजा खटखटाने से खुली. कोई मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाए जा रहा था. मैने टाइम देखा तो, 6:15 बज रहे थे. मेरी नींद पूरी नही हुई थी. जिस वजह से मुझे अपनी आँख खोलने मे थोड़ी परेसानी हुई. मैने उठ कर दरवाजा खोला तो, सामने निक्की खड़ी थी.
वो इस समय नहा कर आई हुई लग रही थी. उसने ब्लू कलर का गाउन पहना हुआ था और अपने बाल सूखा रही थी. उसके बालों मे पानी बूंदे मोती की तरह चमक रही थी और वो बहुत सुंदर दिख रही थी. उसे इस रूप मे देखते ही मुझे कीर्ति की याद आ गयी. निक्की ने अपने बाल सुखाते हुए कहा.
निक्की बोली "मैं कब से दरवाजा खटखटा रही हूँ."
मैं बोला "हाँ रात को बहुत देर से सोया था, इसलिए बहुत गहरी नींद मे था."
निक्की बोली "लगता है रात को मेरे जाने के बाद भी आप लोग बहुत देर तक बातें करते रहे है."
मैं बोला "नही ऐसी कोई बात नही है. आपके जाने के थोड़ी देर बाद ही प्रिया भी चली गयी थी. लेकिन वो कुछ उदास सी लग रही थी, इसलिए मैं उस से फोन पर बात करता रहा. जिसमे 4:30 बज गये और मुझे सोते सोते 5 बज गये थे."
निक्की बोली "सॉरी, आपकी नींद पूरी नही हो पाई और मैने आपको जगा दिया. मुझे लगा कि आपको हॉस्पिटल जाना है, इसलिए आपको जगा देना चाहिए."
मैं बोला "नही आपने ठीक किया. यदि आप नही जगाती तो, मैं जागता भी नही और मेहुल अकेला वहाँ परेशान होता रहता."
निक्की बोली "ठीक है आप फ्रेश हो जाइए. तब तक मैं आपके लिए चाय नाश्ता ले आती हूँ."
इतना बोल कर वो चली गयी. उसके जाने के बाद मैं भी फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने और तैयार होने मे मुझे 7 बज गये. तब तक निक्की भी चाय नाश्ता ले आई. फिर हम दोनो साथ साथ चाय नाश्ता करने लगे. मेरी निक्की से प्रिया के बारे मे बात होती रही.
अभी हम दोनो की बात चल ही रही थी कि, तभी हम दोनो दरवाजे की तरफ देख कर चौक गये.
अब मैं बुरी तरह से उलझ कर रह गया था. एक तरफ तो प्रिया का अचानक इस तरह से, मुझे प्यार करने लगना, मुझे उसका आकर्षण लग रहा था. वही दूसरी तरफ उसकी मेरे लिए समर्पण की भावना मे, मुझे उसका भोलापन और प्यार नज़र आ रहा था.
मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, प्रिया का ये प्यार सिर्फ़ एक आकर्षण है, या फिर सच मे उसका प्यार ही है. उसके दिए हुए गिफ्ट ने मुझे, उसके बारे मे ये सब सोचने पर मजबूर कर दिया था.
मैं चाह कर भी उसका गिफ्ट देखने के बाद, अपने आँसू बहने से रोक नही पाया था. मेरी आँखों से आँसू झर रहे थे और मैं उसका गिफ्ट देख रहा था.
अपना गिफ्ट देखने के बाद, मेरी आँखों से आँसू बहते देख कर, प्रिया को लगा कि, मुझे उसका गिफ्ट पसंद नही आया है. उसने अपने हाथों से मेरा चेहरा अपनी तरफ घुमाया और और पुच्छने लगी.
प्रिया बोली "ये तुम्हे क्या हुआ. तुम रो क्यो रहे हो. यदि तुम्हे मेरा गिफ्ट पसंद नही आया तो, मैं इसे वापस ले लेती हूँ. इसमे रोने की क्या बात है. मेरा इरादा तुम्हारे दिल को चोट पहुचाने का हरगिज़ नही था. लेकिन क्या करूँ, मेरी तो आदत ही हो गयी है. बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाती हूँ और सबका दिल दुखाती हूँ."
प्रिया की इस बात से मुझे एक और ज़ोर का झटका लगा. मेरे आँसू देख कर अपनी ग़लती मानने का, उसका बिल्कुल वही अंदाज था. जो कीर्ति का मेरे आँसू देख कर रहता है.
मेरे दिल ने फिर मुझसे कहा "ये कोई आकर्षण नही, ये सच मुच का प्यार है. जो इस भोली भाली लड़की को तुमसे हो गया है और यदि ऐसा है तो, इस भोली भली लड़की के दिल मे, इस समय बहुत दर्द है. जिसको ये तुमसे छुपा रही है."
मैं प्रिया के बारे मे ये सब सोच रहा था. जब प्रिया ने मुझे अपनी बात का कोई जबाब देते नही देखा. तब वो खुद ही मुझसे कहने लगी.
प्रिया बोली "तुम्हे ये गिफ्ट पसंद नही है ना. लाओ इसे मुझे वापस दे दो. मैं कल तुम्हे, तुम्हारी पसंद का गिफ्ट दिला दूँगी. इसके लिए तुम्हे इतना दुखी होने की ज़रूरत नही है."
ये कह कर वो मेरे हाथ से अपना गिफ्ट वापस लेने लगी. लेकिन तब तक मैं सोच चुका था कि, ऐसे हालत मे मुझे क्या करना चाहिए. मैने अपना हाथ दूसरी तरफ घुमा लिया और प्रिया को उसका गिफ्ट वापस नही लेने दिया. मैने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए प्रिया से कहा.
मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. मैं बस ये सोच कर परेशान हूँ कि, ये गिफ्ट तो तुमने उस लड़के के लिए खरीदा था. जिसे तुम प्यार करती थी. लेकिन अब सारी सचाई तुम्हारे सामने है. फिर भला मैं इस गिफ्ट को कैसे ले सकता हूँ."
प्रिया बोली "यदि बात सिर्फ़ यही है. तब तुम इस गिफ्ट को बेहिचक ले सकते हो. क्योकि मैने ये गिफ्ट तुम्हे सिर्फ़ दोस्ती के रिश्ते से देने के लिए लिया था."
ये बोल कर वो हँसने लगी. मगर मुझे उसकी बात पर यकीन नही आया. मैने उस से कहा.
मैं बोला "नही ये सच नही है. तुम ये बात सिर्फ़ मेरा दिल रखने के लिए कह रही हो. तुम मुझसे प्यार करती थी, इसलिए तुम मुझे ये गिफ्ट दे रही थी."
प्रिया बोली "ये बात सही है कि, मैं तुम्हे प्यार करती थी. तभी ये गिफ्ट दे रही थी. लेकिन मुझे ये गिफ्ट तुम्हे दोस्ती के रिश्ते से ही देना था. क्योकि मैं खुद तो तुम से, ये कह नही सकती थी कि, मैं तुमसे प्यार करती हूँ. जब मैं ये बात तुमसे कह नही सकती थी तो, फिर भला तुम्हे ये गिफ्ट प्यार के रिश्ते से कैसे दे सकती थी."
मैं बोला "हो सकता है कि, तुमने गिफ्ट देने के बाद, अपने प्यार का इज़हार करने की बात सोची हो. तभी तो तुम इतनी रात को मेरे पास आई थी."
प्रिया बोली "ऐसा कुछ भी नही है. ये सारे गिफ्ट कल रात को, तुम्हारे जाने के बाद से, यही रखे हुए है. मुझे तो आज शाम को पता चला कि, तुम्हारी जिंदगी मे कोई दूसरी लड़की है. याद करो जब पार्क मे, मैने तुम्हे फोन पर बात करते देखा था. तब मैं कितना गुस्सा थी और तुम्हे बात करने के लिए घर लेकर आई थी. बस तभी से मेरे मन मे तुमसे, इस बात को कहने का ख़याल आया था. उसके पहले तो मैने ऐसा कुछ करने का सोचा ही नही था."
लेकिन अभी भी मेरे मन मे ये सवाल आ रहा था कि, दो लोग एक सा ही गिफ्ट कैसे दे सकते है. मैने अपने मन की बात जाहिर ना करते हुए प्रिया से पुछा.
मैं बोला "अगर ऐसी ही बात थी तो, तुमने सिर्फ़ मोबाइल देने का ही क्यों सोचा. कोई दूसरा गिफ्ट क्यो नही दिया."
प्रिया बोली "वो इसलिए क्योकि मैं चाहती थी. जब मैं तुमसे बात करूँ. तब कोई दूसरा हमें डिस्टर्ब ना करे. अब जाहिर सी बात है कि, तुम्हारे इस नंबर पर सबके कॉल आते है. अब मान लो तुम मुझसे बात कर रहे हो. तब किसी का कॉल आ जाता है तो, तुम मुझसे कहते कि, अभी मेरा कॉल आ रहा है. तुम कॉल रखो. मैं बाद मे बात करता हूँ. लेकिन अलग से मोबाइल रहने पर तुम्हे मेरा कॉल नही काटना पड़ता."
प्रिया की ये बात सुनकर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि, कीर्ति ने मुझे अलग से, ये मोबाइल क्यो दिया है. वो भी यही चाहती होगी कि, जब मैं उस से बात करूँ तो, कोई हमें डिस्टर्ब ना करे. लेकिन इस बात से मेरे मन एक बात और आई कि, आख़िर दोनो ने ही एक ही कंपनी का मोबाइल क्यों दिया है. तब मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला "चलो मैं तुम्हारी इस बात को मान भी लेता हूँ. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा है कि, तुमने देने के लिए, ये ही मोबाइल क्यो चुना."
प्रिया बोली "तुम सच मे ही बुद्धू हो. अरे इस कंपनी के मोबाइल आपस मे फ्री हो जाते है. उन्हे ऑल इंडिया फ्री कराया जा सकता है. किसी दूसरी कंपनी मे ये सुविधा नही है. अब तुम तो उतनी दूर रहते हो. ऐसे मे मैं तुमसे ज़्यादा देर बात नही कर सकती थी. लेकिन इसमे हम, जितनी चाहे उतनी बात कर सकते है. अब सब कुछ समझ मे आ गया, या फिर अभी भी कुछ बाकी है."
प्रिया की इस बात से मुझे, कीर्ति के नये मोबाइल लेने का राज भी समझ मे आ गया था. शायद उसने अपना मोबाइल फ्री करा लिया था. तभी वो मेरे कॉल करने के बाद भी, मेरा कॉल काट कर खुद नये मोबाइल पर कॉल कर रही थी. मैने इस बात पर से अपना ध्यान हटाते हुए प्रिया से कहा.
मैं बोला "हाँ बस एक आख़िरी बात बाकी है."
प्रिया बोली "तो इसमे इतना सोचने की क्या ज़रूरत है. जो भी पुच्छना है, पुच्छ लो."
मैं बोला "क्या मेरे बारे मे, सब कुछ जानने के बाद भी, तुम्हे ये लगता है कि, मुझे ये मोबाइल रखना चाहिए."
प्रिया बोली "हाँ सब कुछ जानने के बाद भी, तुम्हे ये मोबाइल रखना ही पड़ेगा और वहाँ जाने के बाद, अपनी गर्लफ्रेंड से छुप छुप कर, कम से कम 1 घंटे रोज, मुझसे बात भी करना पड़ेगी. क्योकि तुमने मुझसे हमेशा दोस्ती निभाने का वादा किया है. अब तुम्हारी आख़िरी बात भी हो गयी. अब मैं जाउ."
मैं बोला "जाने की क्या ज़रूरत है. तुम भी यही मेरे साथ सो जाओ."
प्रिया बोली "हाँ तुम्हारी ये बात सही है. मैं दरवाजा बंद कर के आती हूँ. फिर हम दोनो मिल कर आराम से सोएगे."
मुझे लगा कि वो मज़ाक कर रही है. लेकिन वो मेरे पास से उठ कर दरवाजा बंद करने जाने लगी. उसे ऐसा करते देख, मैने उस से कहा.
मई बोला "अरे नही नही, मैं तो मज़ाक कर रहा था."
प्रिया बोली "लेकिन मैं मज़ाक नही कर रही हू. मुझे सच मे तुम्हारे साथ सोना है."
ये कह कर उसने हंसते हुए दरवाजा बंद कर दिया. मैं उसे देखने के सिवा कुछ ना कर सका. फिर वो वापस मेरे पास आ कर, मेरे सामने खड़ी हो कर, मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए कहने लगी.
प्रिया बोली "चलो अब सोया जाए."
मैं बोला "यार अब मज़ाक बंद करो. रात बहुत हो गयी है. अब हमें सोना चाहिए. अब तुम अपने कमरे मे जाओ और मुझे भी सोने दो."
प्रिया बोली "हाँ अब रात ज़्यादा हो गयी है. अब हमे सोना चाहिए."
ये कहते हुए प्रिया ने, मुझे बेड की तरफ धक्का दे दिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि, मेरे दोनो पैर बेड से नीचे लटकते रहे और मैं बेड पर लेट गया. मेरे लेटते ही उसने अपने दोनो हाथ, मेरे दोनो कंधों के अगल बगल रखे और वो मेरे उपर झुक कर, मेरी आँखों मे देखने लगी.
उसके इस तरह मेरी आँखों मे आँखे डालकर देखने से, मेरी धड़कने बढ़ गयी. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, अब वो आगे क्या करने वाली है. मैं उसे एक तक देखता रहा. तभी वो मेरे उपर लेट गयी और उसके सीने से मेरा सीना टकरा गया.
उसके कोमल कोमल बूब्स मेरे सीने से दब गये. उसके बूब्स के इस कोमल अहसास से, मैं खुद को बाहर निकाल पता. उसके पहले ही उसने अपने होंठ, मेरे होंठों पर रख दिए और वो मेरे होंठों को चूसने लगी. मैं उसे रोकना चाहता था. लेकिन अब उसे रोकने की ताक़त मुझमे नही थी.
मैने भी अपने दोनो हाथ उसकी पीठ पर रख दिए और किस करने मे उसका साथ देने लगा. करीब 2 मिनट तक हम एक दूसरे के होंठों को चूस्ते रहे. फिर अचानक ही उसने किस करना बंद कर दिया और मेरी आँखों मे देखने लगी. उसकी आँखें मुझसे कुछ कहना चाह रही थी. मैं उसकी आँखों की इस बात समझने के लिए, उसकी आँखों मे देखने लगा.
लेकिन तभी उसने बारी बारी से, मेरी दोनो आँखों को चूमना सुरू कर दिया. उसे ऐसा करते देख, मैने अपनी आँखे बंद कर ली. मेरे आँखे बंद करते ही, वो पागलों की तरह, कभी मेरी आँखे चूमती तो, कभी मेरे चेहरे को चूमती रही और मैं आँखे बंद किए, अपने दोनो हाथों से उसकी पीठ सहलाता रहा.
मुझे कुछ भी समझ मे नही आ रहा था कि, वो ये सब क्यो कर रही है. फिर भी उसका कुछ भी करना, मुझे ग़लत नही लग रहा था. वो ना जाने कितनी देर मुझे चूमती रही. फिर अचानक ही मुझे, मेरे चेहरे पर आँसुओं के गिरने का अहसास हुआ और मैने अपनी आँखे खोल दी.
अपनी आँख खोलते ही, मेरा दिल दहल गया. प्रिया का चेहरा रुआंसा था. उसकी आँखों मे आँसू भरे हुए थे. वो पागलों की तरह मुझे चूम रही थी और उसके आँसू बहे जा रहे थे. मैने उसकी ऐसी हालत देखी तो, मैने उसका चेहरा अपने हाथों मे पकड़ा और कहा "प्रिया."
उसने आँसू भरी आँखों से, मेरी आँखों मे देखा और फिर मेरे माथे को चूमते हुए बोली "आइ लव यू."
इसके बाद वो इक झटके से, मेरे उपर से उठी और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी. ये सब इतनी जल्दी हो गया कि, मैं उस से कुछ बोल भी ना सका. बस उसे जाते हुए देखता रह गया.
वो लड़की जिसे मैने हमेशा हंसते खिलखिलाते हुए देखा था. उसका ये रूप मेरे लिए बिल्कुल नया था. मैं अजीब सी कशमकश मे फसा था.
मैं उस लड़की को समझने मे भूल कर गया था. सच तो ये था कि, मैं उसे कभी समझ ही नही सका था. ना ही उसके दर्द का ठीक से अंदाज़ा लगा पाया था. लेकिन अब मुझे उसके दर्द का अहसास हो रहा था और मुझे लग रहा था कि, वो अपने कमरे मे जाकर रो रही होगी.
यही सब सोचते सोचते, मैं काफ़ी देर वैसा ही लेटा लेटा, प्रिया के बारे मे सोचता रहा. फिर उठ कर मैने दरवाजा बंद किया और सोने की . करने लगा.
लेकिन आँख बंद करते ही मेरी आँखों के सामने, प्रिया का रोता हुआ चेहरा आ रहा था. जब मुझसे नही रहा गया. तब मैने प्रिया का दिया हुआ मोबाइल ऑन किया.
उसे ऑन करते ही स्क्रीन पर लिखा आया "हेलो माइ स्वीट फ्रेंड."
जिसे देखते ही मेरा दिल और भी ज़्यादा उदास हो गया. मैने कॉंटॅक्ट लिस्ट मे देखा तो, उसमे प्रिया का नंबर सेव था. मैने उस नंबर पर कॉल लगा दिया. मैं जानता था कि वो इस समय रो रही होगी. इसलिए मैने उसके कॉल उठाते ही, उसके बोलने से पहले ही कहा.
मैं बोला "क्या यार ये तुम्हारी अच्छी आदत नही है. खुद ने पप्पी झप्पी सब कुछ ले ली, और मेरी बारी आई तो उठ कर भाग गयी."
प्रिया को शायद मेरा कॉल आने से खुशी हुई थी. इसलिए वो मेरे इतने बात करने से अपने को सभाल चुकी थी. फिर भी उसकी बातों मे भारीपन था. उसने मेरी बात के जबाब मे कहा.
प्रिया बोली "मैं तो तुम्हारे साथ सोना चाहती थी. तुम ही बोले थे कि, मैं मज़ाक कर रहा हूँ. तब क्या मैं तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती सो जाती."
मैं बोला "मेरी बात को टालो मत. मैं सोने की बात नही कर रहा हूँ. मैं पप्पी झप्पी की बात कर रहा हूँ. मुझे मेरी पप्पी झप्पी चाहिए."
प्रिया बोली "तुम फिर शैतानी कर रहे हो. तुम्हे पप्पी झप्पी चाहिए तो, अब अपनी गर्लफ्रेंड को फोन लगाओ और उस से ले लो. मुझे सोने दो."
मैं बोला "ये ग़लत बात है. जब तुम पप्पी झप्पी ले सकती हो तो, फिर मैं क्यो नही ले सकता. अब जब तक तुम मुझे पप्पी झप्पी नही लेने देती. तब तक मैं फोन नही रखूँगा."
प्रिया बोली "तो मत रखो फोन. लेकिन अब मैं तुम्हे कोई पप्पी झप्पी नही देने वाली. समझ गये ना."
अब प्रिया का मूड मुझे कुछ ठीक होता समझ मे आया. मैने उसे बहलाते हुए कहा.
मैं बोला "याद रखना मैं तुम से इसका बदला ज़रूर लूँगा."
प्रिया बोली "अब तुम मेरा कुछ भी नही कर सकते. क्योकि अब मैं तुम्हारे पास आउगि ही नही."
मैं बोला "ये तुम भूल जाओ. मैं तुमसे इसका बदला ज़रूर लूँगा और कल ही लूँगा."
प्रिया बोली "अच्छा मैं भी तो सुनूँ कि कल तुम क्या करने वाले हो."
मैं बोला "अब ये तुम कल खुद देख लेना."
प्रिया बोली "हाँ देख लूँगी. अब तुम फोन रखो. मुझे सोना है."
मैं बोला "तुमने मेरी नींद खराब की है. मैं तुम्हे नही सोने दूँगा."
प्रिया बोली "ना लेना एक ना देना दो. मैं तो सो रही हूँ. तुम जागते रहो."
मैं बोला "तुम सोकर देखो. मैं भी देखता हूँ कि, तुम कैसे सोती हो."
प्रिया बोली "यार तुम तो ज़बरदस्ती मेरे पिछे पड़ गये. मैं भला तुमहरि बात क्यो सुनूँ."
मैं बोला "वो तो मैं पिछे पड़ूँगा ही है और तुमको मेरी बात सुनना भी पड़ेगी."
प्रिया बोली "हाँ, अब दोस्ती की है तो, निभानी भी पड़ेगी."
ये कह कर प्रिया हँसने लगी. उसे हंसते देख कर मुझे बहुत राहत मिल रही थी. मैं उसे काफ़ी देर तक ऐसे ही बातों मे उलझाए रहा और बात बात पर हँसाता रहा. फिर 4:30 बजे उसने कहा कि, अब उसे सच मे बहुत नींद आ रही है. तब मैं फोन रखने को तैयार हुआ और मैने उसे गुड नाइट कह कर फोन रख दिया.
अब मैं भी बहुत थक चुका था और मुझे नींद भी आ रही थी. ऐसे मे किसी का गिफ्ट देखने की मेरे अंदर ताक़त ही नही बची थी. मैने सारे गिफ्ट उठा कर एक किनारे रखे और फिर सोने की कोसिस करने लगा. लेकिन अभी भी मेरे दिमाग़ मे प्रिया ही घूम रही थी. मैं उसी के बारे मे सोचते सोचते ना जाने कब बहुत गहरी नींद सो गया.
सुबह मेरी नींद किसी के दरवाजा खटखटाने से खुली. कोई मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाए जा रहा था. मैने टाइम देखा तो, 6:15 बज रहे थे. मेरी नींद पूरी नही हुई थी. जिस वजह से मुझे अपनी आँख खोलने मे थोड़ी परेसानी हुई. मैने उठ कर दरवाजा खोला तो, सामने निक्की खड़ी थी.
वो इस समय नहा कर आई हुई लग रही थी. उसने ब्लू कलर का गाउन पहना हुआ था और अपने बाल सूखा रही थी. उसके बालों मे पानी बूंदे मोती की तरह चमक रही थी और वो बहुत सुंदर दिख रही थी. उसे इस रूप मे देखते ही मुझे कीर्ति की याद आ गयी. निक्की ने अपने बाल सुखाते हुए कहा.
निक्की बोली "मैं कब से दरवाजा खटखटा रही हूँ."
मैं बोला "हाँ रात को बहुत देर से सोया था, इसलिए बहुत गहरी नींद मे था."
निक्की बोली "लगता है रात को मेरे जाने के बाद भी आप लोग बहुत देर तक बातें करते रहे है."
मैं बोला "नही ऐसी कोई बात नही है. आपके जाने के थोड़ी देर बाद ही प्रिया भी चली गयी थी. लेकिन वो कुछ उदास सी लग रही थी, इसलिए मैं उस से फोन पर बात करता रहा. जिसमे 4:30 बज गये और मुझे सोते सोते 5 बज गये थे."
निक्की बोली "सॉरी, आपकी नींद पूरी नही हो पाई और मैने आपको जगा दिया. मुझे लगा कि आपको हॉस्पिटल जाना है, इसलिए आपको जगा देना चाहिए."
मैं बोला "नही आपने ठीक किया. यदि आप नही जगाती तो, मैं जागता भी नही और मेहुल अकेला वहाँ परेशान होता रहता."
निक्की बोली "ठीक है आप फ्रेश हो जाइए. तब तक मैं आपके लिए चाय नाश्ता ले आती हूँ."
इतना बोल कर वो चली गयी. उसके जाने के बाद मैं भी फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने और तैयार होने मे मुझे 7 बज गये. तब तक निक्की भी चाय नाश्ता ले आई. फिर हम दोनो साथ साथ चाय नाश्ता करने लगे. मेरी निक्की से प्रिया के बारे मे बात होती रही.
अभी हम दोनो की बात चल ही रही थी कि, तभी हम दोनो दरवाजे की तरफ देख कर चौक गये.