desiaks
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कुछ ही देर मे हम सब एरपोर्ट पहुच गये. वहाँ हमारा स्वागत अजय और अमन ने किया. अजय ने मुझे देखते ही अपने गले से लगा लिया. फिर हम सब एरपोर्ट के अंदर आ गये.
अब किसी भी समय हमारी फ्लाइट की घोषणा हो सकती थी. इसलिए मैं और मेहुल सबसे मिल कर विदा लेने मे लग गये. सबसे पहले मैं आकाश अंकल और पद्मिइनी आंटी के पास विदा लेने आया.
उन दोनो की ये जोड़ी प्यार की एक अनोखी मिसाल थी. जिसके आगे मेरा सर श्रद्धा से खुद ब खुद झुकता चला गया. मैने उनके पैर छु कर उनसे आशीर्वाद लिया. दोनो ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे आते रहने को कहा.
मेरी देखा कि मेहुल भी हमारे पास आ गया और अंकल आंटी से आशीर्वाद लेने लगा. मेहुल को अंकल आंटी के पास आया देख कर, मैं अंकल आंटी से विदा लेकर, रिया के पास आ गया.
रिया वो लड़की थी, जिसने पहली बार मेरे अंदर की वासना की आग को भड़काया था और जिसे मैं पहली मुलाकात मे ही अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहता था. मेरे गुप्त-अंग को स्पर्श करने वाली एक्लोति लड़की भी रिया ही थी.
यदि कीर्ति सही समय पर, मेरी जिंदगी मे नही आई होती तो, शायद मैं रिया के साथ और भी आगे बढ़ गया होता. लेकिन रिया को सिर्फ़ इसी वजह से याद रखा जाना, उसके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी करना था.
क्योकि मेरे मुंबई मे कदम रखने के पहले, ना तो राज और रिया के अलावा मैं यहाँ किसी को जानता था और ना कोई मुझे यहा जानता था. ऐसे मे मुझे सिर्फ़ राज और रिया से ही, थोड़ी बहुत मदद मिलने की उम्मीद थी.
मगर हमारे मुंबई मे पहला कदम रखते ही, रिया ने हमारी उम्मीद से कहीं ज़्यादा हमारे लिए कर दिया था. उसने हमे किसी होटेल मे नही रुकने दिया और ज़बरदस्ती अपने घर ले आई थी.
उसके हमे अपने घर ले आने की वजह से ही, हमसे एक के बाद एक, इतने सारे लोग जुड़ते चले गये थे. एक तरह से इस सब की वजह रिया ही थी और उसकी इस बात को किसी भी तरह से अनदेखा नही किया जा सकता था.
यदि रिया हमे पहले दिन ही अपने घर ना ले गयी होती तो, फिर ना ही मेरी निक्की से मुलाकात हो पाती और ना ही मैं इतने सारे लोगों से जुड़ पाता. लेकिन उसके इस साथ के लिए, उसे थॅंक्स कहना, एक तरह से उसे छोटा दिखाना ही था.
मेरे दिल मे रिया के लिए बहुत इज़्ज़त थी और मैं उसके इस साथ को भी छोटा दिखना नही चाहता था. इसलिए मैने रिया के पास आते हुए उस से कहा.
मैं बोला “मैं तुमको थॅंक्स कह कर, तुमको छोटा नही करूगा. लेकिन फिर भी हक़ीकत यही है कि, हम लोगों को मुंबई मे जो भी अपनापन मिला है, उस सबकी वजह सिर्फ़ तुम ही हो. यदि तुम नही होती तो, मैं इन सब से भी, कभी नही मिल पता. इस सब के लिए मैं जिंदगी भर के लिए तुम्हारा कर्ज़दार रहुगा.”
मेरी बात सुनकर, रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.
रिया बोली “ऐसा कुछ भी नही है. तुम और मेहुल हमारे दोस्त हो और फिर तुम दोनो ने भी तो, हम लोगों का वहाँ कितना ख़याल रखा था. ऐसे मे हम लोगों ने यहा तुम्हारा ख़याल रख कर, कोई महान काम नही कर दिया है. जिसके लिए तुम मेरे कर्ज़दार बन गये हो.”
“दोस्ती मे कोई कर्ज़ नही होता. दोस्ती मे सिर्फ़ फर्ज़ होता है और हमने अपना वो ही फर्ज़ निभाया है. इसलिए तुम इन सब फालतू की बातों को सोचना बंद करो और खुशी खुशी अपने घर जाओ. अमि निमी तुमको देखने के लिए तरस रही है. उन दोनो को हम सब की तरफ से प्यार देना और कहना कि, मैं उन दोनो को बहुत याद कर रही थी.”
ये कहते हुए रिया ने एक बॅग मुझे पकड़ा दिया. मैने बॅग ले तो लिया, लेकिन मुझे रिया का ये बॅग देने का मतलब समझ मे नही आ रहा था. रिया ने मेरी इस उलझन को समझ कर, उसे दूर करते हुए मुझसे कहा.
रिया बोली “इसमे ज़्यादा चौकने वाली कोई बात नही है. इस बॅग मे हम सब की तरफ से अमि निमी और बाकी सब के लिए गिफ्ट है. तुमने क्या सोचा था कि, हम लोग उन दोनो शैतानो को इतनी आसानी से भूल जाएगे.”
रिया की ये बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “लेकिन इस सब की क्या ज़रूरत थी. प्रिया ने पहले ही सबके लिए ढेर सारी शॉपिंग करवा दी थी.”
रिया बोली “वो सब तुम्हारी तरफ से थे और ये हमारी तरफ से है. अब इस सब के बारे मे कोई बेकार की बहस सुरू मत करो और मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो. ये माना कि अब तुम्हारे यहाँ बहुत से घर है. लेकिन तुम पर पहला हक़ हमारा ही है. इसलिए तुम जब भी यहाँ आओगे, तुमको हमारे ही घर मे रुकना पड़ेगा.”
रिया की ये बात सुनकर, मैं मुस्कुराए बिना ना रह सका और मैने बिना कोई बहस किए ही, उसकी इस बात की हामी भर दी. तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को देख कर मैने रिया से विदा ली और मैं नेहा के पास आ गया.
नेहा, जिसे पहली मुलाकात मे मैं प्रिया की सहेली के रूप मे जानता था. लेकिन बाद मे बरखा दीदी से मुझे उसके सही रूप की जानकारी मिली थी. वो एक बेहद ही नाकचॅढी और झगड़ालु किस्म की लड़की थी. जो बात बात पर किसी से भी लड़ने लगती थी और दूसरों को नीचा दिखाना उसके स्वाभाव मे शामिल था.
लेकिन इन सब बुराइयों के बाद भी, उसके अंदर एक अच्छाई ऐसी भी थी. जो उसकी इन सब बुराइयों पर परदा डाल देती थी. उसकी वो अच्छाई ये थी कि, वो शिखा दीदी पर जान देती थी और शिखा दीदी की कभी कोई बात नही काटती थी.
वो बचपन से ही शिखा दीदी की लाडली थी और हमेशा साए की तरह उनसे चिपकी रहती थी. वो स्वाभाव से लड़ाकू थी और यदि कोई शिखा दीदी को कुछ ग़लत बात कह दे तो, उसका ये रूप और भी ज़्यादा भयंकर हो जाता था.
उसकी इसी बात ने, मेरे दिल मे उसकी भी एक खास जगह बना दी थी. सलीम वाली बात को लेकर मेरे मन मे उसके लिए कुछ देर के लिए गुस्सा ज़रूर आया था. लेकिन जब मुझे निक्की और प्रिया से पता चला कि, नेहा सलीम को सिर्फ़ हीतू का दोस्त होने की वजह से जानती थी तो, मेरा ये गुस्सा भी ख़तम हो गया था.
मगर शायद नेहा के मन मे अभी भी उस बात को लेकर डर समाया हुआ था. इसलिए वो कल से मेरा सामना करने से बच रही थी. लेकिन मैं जैसे ही उस से विदा लेने उसके पास आया तो, उसने अपनी सफाई देते हुए कहा.
नेहा बोली “तुम मुझे कल की बात को लेकर ग़लत मत समझना. कल जो कुछ भी हुआ था, उसमे मेरी ज़रा भी ग़लती नही थी. मैं तो सलीम से सिर्फ़ हीतू का दोस्त होने की वजह से बात कर रही थी. मुझे नही पता था कि, वो वहाँ ऐसा कुछ कर जाएगा.”
“यदि मुझे इस बात का, पहले से ज़रा भी पता होता तो, मैं तुम लोगों को अपने पास रोकने की ग़लती कभी नही करती और तुमसे पहले, मैं खुद ही उसे इस सब के लिए बुरी तरह से फटकार लगा देती.”
नेहा की इस बात मे सचाई थी और ये बात प्रिया मुझे पहले ही बोल चुकी थी. इसलिए मैने नेहा की बात को सुनकर, मुस्कुराते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तुम कल की बात को लेकर परेशान मत हो. मुझे प्रिया और निक्की ने कल ही सारी सच्चाई बता दी थी. इसलिए मेरे मन मे, कल की बात को लेकर तुम्हारे लिए कोई मैल नही है. हम आज भी वैसे ही दोस्त है, जैसे कल से पहले थे.”
मेरी ये बात सुनकर, नेहा ने सुकून की साँस लेते हुए कहा.
नेहा बोली “थॅंक्स, इन सबने तो मुझे डरा ही दिया था कि, तुम कल की बात को लेकर मुझसे बहुत नाराज़ हो. इसलिए मैं तुम्हारे सामने आने से भी बच रही थी.”
नेहा की इस बात को सुनकर मुझे हँसी आ गयी. लेकिन फिर मैने कुछ गंभीर होते हुए उस से कहा.
मैं बोला “मैं क्या, हम मे से कोई भी तुमसे नाराज़ नही है. सब तुमको इसलिए परेशान कर रहे थे. क्योकि तुम बेवजह सबसे लड़ती रहती हो. मेरी नज़र मे, दोस्ती मे लड़ना झगड़ना कोई बुरी बात नही है.”
“मैं भी मेहुल से हमेशा लड़ता ही रहता हूँ. लेकिन तुम्हारे अंदर की खराबी ये है कि, तुम दोस्ती मे लड़ने झगड़ने के साथ, अपने दोस्त को किसी के भी सामने नीचा दिखाने लगती हो. तुम्हारी इस हरकत को कुछ भी कहा जा सकता है, लेकिन दोस्ती कभी नही कहा जा सकता है.”
मेरी बात सुनकर, नेहा ने अपना सर झुका लिया और कुछ रुआंसा सी होते हुए कहा.
नेहा बोली “मैं इतनी बुरी नही हूँ, जितना तुम सब मुझको समझते हो. मुझे शिखा दीदी के अलावा कोई नही समझता.”
नेहा की इस बात से सॉफ पता चल रहा था कि, मेरी बात से उसके दिल को चोट पहुचि है. मगर मेरा इरादा उसके दिल को चोट पहुचने का हरगिज़ नही था. मैं तो उसे सिर्फ़ सच्चाई का आईना दिखाना चाहता था. ताकि वो दोबारा ऐसी ग़लती को ना दोहराए.
लेकिन शायद मेरा अपनी बात कहने का तरीका ग़लत था. इसलिए मैने अपनी कही हुई बात को संभालते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तुम मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल रही हो. मैं तुमको बुरा नही कह रहा हूँ. बल्कि एक सच्चे दोस्त की तरह, तुम्हारी ग़लती तुमको बता कर, उसे सुधारना चाहता हूँ. क्योकि तुम शिखा दीदी की सबसे ज़्यादा लाडली हो. इसलिए मैं तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा होते नही देख सकता.”
“मैं सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ कि, हमे अपने दोस्त की ग़लतियाँ उसके उपर जाहिर करना कोई बुरी बात नही है. लेकिन उन्ही ग़लतियों को किसी दूसरे के सामने बढ़ा चढ़ा कर रखना सिर्फ़ दोस्ती को मिटाने वाला काम है.”
“जैसा उस दिन तुम प्रिया को नीचा दिखा कर कर रही थी. प्रिया तुम्हारी दोस्त है और मान लो, वो यदि वैसा कुछ कर भी रही थी तो, तुमको उसको सबके सामने इस तरह शर्मिंदा करने की कोसिस नही करना चाहिए थी. वो ही बात तुम उस से अकेले मे भी बोल सकती थी.”
“मैने जाते जाते सिर्फ़ इसलिए तुम्हे ये बात समझाना ज़रूरी समझा. ताकि तुम अपनी इस आदत की वजह से कही प्रिया जैसी दोस्त को खो ना दो. फिर भी यदि तुम्हे मेरी ये बात बुरी लगी है तो, इसके लिए मैं तुमसे दिल से माफी चाहता हूँ.”
मेरी इस बात ने नेहा के उपर अपना असर दिखाया और उसने शर्मिंदा होते हुए कहा.
नेहा बोली “नही, तुमको किसी बात के लिए माफी माँगने की ज़रूरत नही है. तुम्हारी ये बात बिल्कुल सही है. उस दिन सच मे मेरी ही ग़लती थी. मैं इसके पहले भी, प्रिया को इस बात को लेकर नीचा दिखाने की कोसिस करती रहती थी.”
“उस दिन जब मैने तुम्हे उसके साथ देखा तो, मुझे लगा कि, वो मुझसे झूठ बोल रही है. इसलिए मैं फिर उसको नीचा दिखाने की कोसिस करने लगी थी. लेकिन अब मैं अपनी इस ग़लती को दोबारा नही दोहराउन्गी. अब जब अगली बार तुम यहाँ आओगे तो, तुमको ऐसा कुछ भी देखने को नही मिलेगा.”
मैं बोला “ये तो बहुत खुशी की बात है. लेकिन अब सिर्फ़ मैं ही यहाँ नही आउगा. बल्कि तुमको भी हमारे यहाँ आना पड़ेगा.”
मेरी इस बात को सुनकर, नेहा ने बड़े ही भोलेपन से कहा.
नेहा बोली “लेकिन मैं वहाँ कैसे आ सकती हूँ.”
मैं बोला “क्यो, इसमे कौन सी बड़ी बात है. मैने प्रिया, शिखा दीदी और बरखा दीदी से कहा है कि, वो जब भी हमारे यहाँ आए, तुमको ज़रूर अपने साथ लेकर आए. अब उनके साथ आने मे तो, तुम्हे कोई परेशानी नही होना चाहिए.”
मेरी बात सुनकर, नेहा के चेहरे पर रौनक आ गयी और उसने मुस्कुराते हुए, सबके साथ आने की हामी भर दी. मेरी अभी नेहा से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल और हीतू आ गये. मेहुल को देख कर, मैने नेहा से विदा ली और मैं हीतू के पास आ गया.
हीतू वो लड़का था, जिसने पहली मुलाकात मे ही, मेरी वजह से बरखा और प्रिया दोनो से थप्पड़ खाए थे. इसके बाद भी, उसने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई थी और फिर शिखा दीदी की शादी मे भी तन मन से मेरा साथ निभाया था.
लेकिन अभी तक मैने उस से इस सब के लिए कुछ भी नही कहा था. मगर अब मैं जा रहा था. ऐसे मे बिना कुछ कहे जाना भी ठीक नही था. इसलिए मैने हीतू के पास आते हुए कहा.
मैं बोला “सॉरी यार, तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया. लेकिन मैने तुम्हे किसी भी बात के लिए थॅंक्स तक नही कहा. तुम भी सोचोगे कि, ये कैसा लड़का है. जिसके लिए मैने इतना सब कुछ किया और इसने मुझे थॅंक्स तक नही कहा.”
मेरी बात को सुनकर, हीतू ने हंसते हुए कहा.
हितेश बोला “तुमने बिल्कुल सही किया. क्योकि दोस्तों को किसी बात के लिए थॅंक्स नही कहा जाता है. दोस्तों से सिर्फ़ गले मिला जाता है.”
ये बोल कर वो मेरी तरफ बढ़ गया और मैने भी आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. अभी मैं हीतू से गले मिल ही रहा था कि तभी हमारे पास राज आ गया.
राज वो लड़का था, जिसे मैं पहली मुलाकात से ही ग़लत समझता चला आ रहा था. लेकिन ये सब सिर्फ़ मेरी नज़रों का धोखा था. राज जैसा खुद को दिखता था, असल मे वो वैसा हरगिज़ नही था.
उसने मेरे सामने शिखा दीदी के बारे मे बहुत कुछ बुरा कहा था. लेकिन जैसे ही, उसे पता चला कि, मैं शिखा को अपनी बहन मानता हूँ तो, उसने इस बात को छुपाने के लिए मुझे बहुत खरी खोटी सुनाई और फिर शिखा दीदी को कहे ग़लत शब्दों के लिए मुझसे माफी भी माँगी.
लेकिन सच्चा दोस्त उसे कहते है, जो दोस्त के साथ, हर अच्छे बुरे समय मे कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहे और ये खूबी राज के अंदर कूट कूट कर भरी थी. उसने शिखा दीदी की शादी मे मुझे कभी भी अकेला महसूस नही होने दिया था.
मेरे लिए ये शहर अंजान था. ऐसे मे शिखा दीदी की शादी की एक छोटी सी भी ज़िम्मेदारी उठा पाना मेरे लिए आसान नही था. लेकिन राज ने शिखा दीदी की शादी के हर छोटे बड़े इंतेजाम को खुद खड़े होकर पूरा करवाया था.
उसके बिना ये सब कर पाना मेरे लिए संभव ही नही था. उसकी इस बात ने मेरा दिल जीत लिया था. वो मेरे पास आया तो, मैने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया. गले मिलने के बाद, राज मुझसे मुंबई आते रहने और फोन पर बात करते रहने की बात करने लगा.
अभी मेरी राज से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को देख कर मैने राज से विदा ली और हेतल दीदी के पास आ गया.
हेतल दीदी, जिनका चेहरा जितना खराब था, उनका व्यक्तित्व उतना ही उजाला और सॉफ था. अपने प्यार की खातिर, उन्हो ने अपना चेहरा खराब कर लिया था. लेकिन जब वो चेहरा सही होने का समय आया तो, उन्हो ने सिर्फ़ अपने भाई की शादी मे शामिल होने के लिए, उस मौके को भी खुशी खुशी लात मार दी थी.
ऐसी बहन किसी किस्मत वाले को ही मिलती. वो बहन के पवित्र प्यार की एक अद्भुत मिसाल थी और मैं खुश-नसीब था कि, मुझे भी उनके इस प्यार मे से कुछ हिस्सा मिला था. उनके सामने आते ही, मेरी आँखों मे नमी आ गयी और मैने उनसे कहा.
मैं बोला “दीदी, जब कभी भी आपकी सर्जरी हो, मुझे बुलाना मत भूलना. मैं आपकी सर्जरी के समय, आपके पास रहना चाहता हूँ.”
मेरी बात सुनकर, हेतल दीदी की आँखों मे भी नमी आ गयी. लेकिन उन्हो ने मुस्कुराते हुए, मुझे अपने गले से लगाते हुए कहा.
हेतल दीदी बोली “तुम फिकर मत करो, मेरी सर्जरी मे तुम ज़रूर मेरे पास रहोगे. यदि भैया ने मेरी सर्जरी के समय तुमको नही बुलाया तो, तुम देखना मैं फिर से सर्जरी करवाने से भाग जाउन्गी.”
ये बोल कर हेतल दीदी हँसने लगी और उनकी इस बात को सुनकर, मैं भी मुस्कुराए बिना ना रह सका. अभी मेरी उनसे बात चल ही रही थी की, तभी मेहुल आ गया और मैं उनसे विदा लेकर आरू के पास आ गया.
आरू वो लड़की थी, जिसके अंदर अज्जि की जान बसती थी. जो परियों की तरह सुंदर और बच्चो की तरह मासूम थी. जिसकी मासूमियत किसी का भी दिल जीत सकती थी और इसका एक नमूना उसने शिखा दीदी के गुस्से पर जीत हासिल करके दिखा दिया था.
मेरी उस से ज़्यादा बात चीत नही होती थी. लेकिन उसकी इस मासूमियत ने मेरा भी दिल जीत लिया था. उसे देखते ही, मेरे चेहरे पर खुद ब खुद मुस्कुराहट आ जाती थी और ऐसा ही कुछ अभी भी हुआ.
मैं जैसे ही आरू के सामने आया, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और मैने मुस्कुराते हुए आरू से कहा.
मैं बोला “तुमने मुझे लेकर प्रिया को बहुत परेशान किया है. क्या तुम निक्की के साथ भी ऐसा ही कर सकती हो.”
मेरी ये बात सुनकर, आरू मुझे हैरानी से देखने लगी. उसे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं किस बात के बारे मे कह रहा हूँ. लेकिन जैसे ही उसे बरखा दीदी के घर वाली बात याद आई. उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.
अर्चना बोली “वो तो मैने सीरू दीदी के कहने पर किया था. उस सब से मेरा कुछ भी लेना देना नही था और मैने वो बात निक्की और प्रिया के सामने तभी सॉफ कर दी थी.”
मैं बोला “ये तो मैं उसी समय समझ गया था कि, इस सब मे ज़रूर सीरू दीदी का ही हाथ होगा. लेकिन मेरा सवाल ये था कि, क्या तुम सीरू दीदी के कहने पर, निक्की के साथ भी ऐसा कर सकती हो.”
मेरी ये बात सुनकर, आरू मुस्कुरा कर रह गयी और फिर धीरे से कहा.
अर्चना बोली “सॉरी, वो बस ऐसे ही हो गया था.”
आरू की इस बात पर मैने भी मुस्कुराते हुए कहा
मैं बोला “इसमे सॉरी वाली कोई बात नही है. मैने अपने जाती समय, इस बात को सिर्फ़ इसलिए उखाड़ा है, ताकि तुम को भी पता चल जाए कि, मैं तुम लोगों के बीच पक रही खिचड़ी से अंजान नही हूँ और तुम मेरे जाती समय, फिर से प्रिया को परेशान करने के लिए कोई हरकत ना करो.”
मेरी बात सुनते ही, आरू की हँसी छूट गयी और उसने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.
अर्चना बोली “नही, अब ऐसा नही होगा. निक्की ने उस दिन इस बात को लेकर मेरी बहुत खिचाई की थी. मैने तो उसी दिन ऐसा करने से अपने कान पकड़ लिए थे.”
आरू की ये बात सुनकर, मुझे भी हँसी आ गयी. अभी मेरी आरू से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को आया देख कर, मैने आरू से विदा ली और सेलू दीदी के पास आ गया.
सेलू दीदी, जिनकी रंगत सीरू दीदी और आरू से कहीं ज़्यादा गोरी थी. एक तरफ वो दूध की तरह गोरी दिखती थी तो, दूसरी तरफ बिल्कुल छुईमुई सी नाज़ुक लगती थी. लेकिन उनके रंग से भी ज़्यादा सफेद, उनका मन था.
मैने उन्हे हमेशा सीरू दीदी की परच्छाई की बनकर, उनका साथ निभाते देखा था और उनकी ख़ासियत ये थी कि, वो सीरू दीदी के मन मे चल रही हर बात को, बिना कहे ही, आसानी से समझ जाती थी.
मैने उनको कभी भी, किसी की, किसी बात पर नाराज़ होते नही देखा था. वो ज़्यादातर समय चुप ही रहती थी. लेकिन उनकी कही एक छोटी सी बात भी, सबके उपर बहुत गहरा असर दिखाती थी.
उनको देखते ही, आज भी मेरी आँखों मे, शिखा दीदी के घर पर, उनके शिखा दीदी का नाम लेने पर, अजय का उनके गाल पर तमाचा मारने वाला नज़ारा घूम जाता है. अजय के उस तमाचे से, उनके दूध की तरह गोरे और नाज़ुक गाल, टमाटर की तरह लाल हो गये थे.
लेकिन इसके बाद भी, उनके चेहरे पर एक शिकन नही आई थी और वो पहले की तरह ही मुस्कुराती रही थी. उनके इसी भोलेपन और निश्चल स्वाभाव की वजह से, तीनो बहनो मे, वो ही मुझे सबसे प्यारी लगती थी.
मैं विदा लेने उनके पास पहुचा तो, मुझे देखते ही, उनके चेहरे पर, हमेशा की तरह मुस्कुराहट फैल गयी और उन्हो ने मुझे मजाकिया अंदाज मे चेतावनी देते हुए कहा.
सेलिना बोली “यहाँ से जाते ही, हम लोगों को भूल मत जाना. वरना मैं तुमको परेशान करने के लिए सीरू दीदी को तुम्हारे पिछे लगा दुगी.”
उनकी इस बात पर मैने भी मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, वो कोई पागल ही होगा, जो आप सबको इतनी आसानी से भूल जाए. फिर आप तो मेरी सबसे प्यारी दीदी हो. आपको भूलने का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता है.”
मेरी इस बात पर सेलू दीदी ने मुझे घूरते हुए कहा.
सेलिना बोली “झुटे, जाते जाते मुझे मस्का लगा रहे हो. भला मुझ मे ऐसा है ही क्या, जो मैं तुम्हारी सबसे प्यारी दीदी हो गयी.”
मैं बोला “नही दीदी, मैं कोई मस्का नही लगा रहा हूँ. किसी का दिल जीतने के लिए सीरू दीदी के पास उनका शैतानी दिमाग़ है तो, आरू के पास उसकी मासूमियत है. लेकिन आपके पास किसी का दिल जीतने के लिए, आपका निर्मल मन है. जिसमे सबके लिए एक समान प्यार छुपा है और इसी वजह से आप मेरी सबसे प्यारी दीदी हो.”
मेरी ये बात सुनकर, सेलू दीदी के चेहरे की मुस्कुराहट गहरी हो गयी. वो मुझे अपना ख़याल रखने और उनको कॉल करते रहने को कहने लगी. अभी मेरी उनसे बात चल ही रही थी कि, तभी यहाँ पर भी मेहुल टपक गया.
उसे अपने पास आया देख कर, मैने उसे गुस्से मे घूर कर देखा. लेकिन वो मुझे अनदेखा करके सेलू दीदी से बात करने लगा. उसे सेलू दीदी से बात करता देख कर, मैं सेलू दीदी से विदा लेकर सीरू दीदी की तरफ बढ़ गया.
सीरू दीदी की किसी बात से तारीफ करना, सूरज को चिराग दिखाने जैसा काम था. क्योकि वो किसी तारीफ की मोहताज नही थी. उन्हे शैतानो की नानी मानी जाता था और सब उनके शैतानी दिमाग़ से ख़ौफ़ खाया करते थे.
उनके शैतानी दिमाग़ की सबसे बड़ी ख़ासियत ये थी कि, उन्हे अपनी कोई भी शैतानी करने के लिए पल भर भी सोचना नही पड़ता था. मगर मैने उनकी जितनी भी शैतानी देखी थी. उन सभी शैतानियों से, किसी ना किसी का, कुछ ना कुछ भला होते ही देखा था.
उन्हो ने अपनी शैतानियों से मुझे भी बहुत परेशान किया था. मगर मुझे भी उनकी शैतानियों से कभी कोई नुकसान नही, बल्कि फ़ायदा ही हुआ था. लेकिन जैसे ही मैं शैतानो की नानी कही जाने वाली सीरू दीदी के पास विदा लेने पहुचा तो, उनको देख कर भौचक्का सा रह गया.
कुछ ही देर मे हम सब एरपोर्ट पहुच गये. वहाँ हमारा स्वागत अजय और अमन ने किया. अजय ने मुझे देखते ही अपने गले से लगा लिया. फिर हम सब एरपोर्ट के अंदर आ गये.
अब किसी भी समय हमारी फ्लाइट की घोषणा हो सकती थी. इसलिए मैं और मेहुल सबसे मिल कर विदा लेने मे लग गये. सबसे पहले मैं आकाश अंकल और पद्मिइनी आंटी के पास विदा लेने आया.
उन दोनो की ये जोड़ी प्यार की एक अनोखी मिसाल थी. जिसके आगे मेरा सर श्रद्धा से खुद ब खुद झुकता चला गया. मैने उनके पैर छु कर उनसे आशीर्वाद लिया. दोनो ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे आते रहने को कहा.
मेरी देखा कि मेहुल भी हमारे पास आ गया और अंकल आंटी से आशीर्वाद लेने लगा. मेहुल को अंकल आंटी के पास आया देख कर, मैं अंकल आंटी से विदा लेकर, रिया के पास आ गया.
रिया वो लड़की थी, जिसने पहली बार मेरे अंदर की वासना की आग को भड़काया था और जिसे मैं पहली मुलाकात मे ही अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहता था. मेरे गुप्त-अंग को स्पर्श करने वाली एक्लोति लड़की भी रिया ही थी.
यदि कीर्ति सही समय पर, मेरी जिंदगी मे नही आई होती तो, शायद मैं रिया के साथ और भी आगे बढ़ गया होता. लेकिन रिया को सिर्फ़ इसी वजह से याद रखा जाना, उसके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी करना था.
क्योकि मेरे मुंबई मे कदम रखने के पहले, ना तो राज और रिया के अलावा मैं यहाँ किसी को जानता था और ना कोई मुझे यहा जानता था. ऐसे मे मुझे सिर्फ़ राज और रिया से ही, थोड़ी बहुत मदद मिलने की उम्मीद थी.
मगर हमारे मुंबई मे पहला कदम रखते ही, रिया ने हमारी उम्मीद से कहीं ज़्यादा हमारे लिए कर दिया था. उसने हमे किसी होटेल मे नही रुकने दिया और ज़बरदस्ती अपने घर ले आई थी.
उसके हमे अपने घर ले आने की वजह से ही, हमसे एक के बाद एक, इतने सारे लोग जुड़ते चले गये थे. एक तरह से इस सब की वजह रिया ही थी और उसकी इस बात को किसी भी तरह से अनदेखा नही किया जा सकता था.
यदि रिया हमे पहले दिन ही अपने घर ना ले गयी होती तो, फिर ना ही मेरी निक्की से मुलाकात हो पाती और ना ही मैं इतने सारे लोगों से जुड़ पाता. लेकिन उसके इस साथ के लिए, उसे थॅंक्स कहना, एक तरह से उसे छोटा दिखाना ही था.
मेरे दिल मे रिया के लिए बहुत इज़्ज़त थी और मैं उसके इस साथ को भी छोटा दिखना नही चाहता था. इसलिए मैने रिया के पास आते हुए उस से कहा.
मैं बोला “मैं तुमको थॅंक्स कह कर, तुमको छोटा नही करूगा. लेकिन फिर भी हक़ीकत यही है कि, हम लोगों को मुंबई मे जो भी अपनापन मिला है, उस सबकी वजह सिर्फ़ तुम ही हो. यदि तुम नही होती तो, मैं इन सब से भी, कभी नही मिल पता. इस सब के लिए मैं जिंदगी भर के लिए तुम्हारा कर्ज़दार रहुगा.”
मेरी बात सुनकर, रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.
रिया बोली “ऐसा कुछ भी नही है. तुम और मेहुल हमारे दोस्त हो और फिर तुम दोनो ने भी तो, हम लोगों का वहाँ कितना ख़याल रखा था. ऐसे मे हम लोगों ने यहा तुम्हारा ख़याल रख कर, कोई महान काम नही कर दिया है. जिसके लिए तुम मेरे कर्ज़दार बन गये हो.”
“दोस्ती मे कोई कर्ज़ नही होता. दोस्ती मे सिर्फ़ फर्ज़ होता है और हमने अपना वो ही फर्ज़ निभाया है. इसलिए तुम इन सब फालतू की बातों को सोचना बंद करो और खुशी खुशी अपने घर जाओ. अमि निमी तुमको देखने के लिए तरस रही है. उन दोनो को हम सब की तरफ से प्यार देना और कहना कि, मैं उन दोनो को बहुत याद कर रही थी.”
ये कहते हुए रिया ने एक बॅग मुझे पकड़ा दिया. मैने बॅग ले तो लिया, लेकिन मुझे रिया का ये बॅग देने का मतलब समझ मे नही आ रहा था. रिया ने मेरी इस उलझन को समझ कर, उसे दूर करते हुए मुझसे कहा.
रिया बोली “इसमे ज़्यादा चौकने वाली कोई बात नही है. इस बॅग मे हम सब की तरफ से अमि निमी और बाकी सब के लिए गिफ्ट है. तुमने क्या सोचा था कि, हम लोग उन दोनो शैतानो को इतनी आसानी से भूल जाएगे.”
रिया की ये बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “लेकिन इस सब की क्या ज़रूरत थी. प्रिया ने पहले ही सबके लिए ढेर सारी शॉपिंग करवा दी थी.”
रिया बोली “वो सब तुम्हारी तरफ से थे और ये हमारी तरफ से है. अब इस सब के बारे मे कोई बेकार की बहस सुरू मत करो और मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो. ये माना कि अब तुम्हारे यहाँ बहुत से घर है. लेकिन तुम पर पहला हक़ हमारा ही है. इसलिए तुम जब भी यहाँ आओगे, तुमको हमारे ही घर मे रुकना पड़ेगा.”
रिया की ये बात सुनकर, मैं मुस्कुराए बिना ना रह सका और मैने बिना कोई बहस किए ही, उसकी इस बात की हामी भर दी. तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को देख कर मैने रिया से विदा ली और मैं नेहा के पास आ गया.
नेहा, जिसे पहली मुलाकात मे मैं प्रिया की सहेली के रूप मे जानता था. लेकिन बाद मे बरखा दीदी से मुझे उसके सही रूप की जानकारी मिली थी. वो एक बेहद ही नाकचॅढी और झगड़ालु किस्म की लड़की थी. जो बात बात पर किसी से भी लड़ने लगती थी और दूसरों को नीचा दिखाना उसके स्वाभाव मे शामिल था.
लेकिन इन सब बुराइयों के बाद भी, उसके अंदर एक अच्छाई ऐसी भी थी. जो उसकी इन सब बुराइयों पर परदा डाल देती थी. उसकी वो अच्छाई ये थी कि, वो शिखा दीदी पर जान देती थी और शिखा दीदी की कभी कोई बात नही काटती थी.
वो बचपन से ही शिखा दीदी की लाडली थी और हमेशा साए की तरह उनसे चिपकी रहती थी. वो स्वाभाव से लड़ाकू थी और यदि कोई शिखा दीदी को कुछ ग़लत बात कह दे तो, उसका ये रूप और भी ज़्यादा भयंकर हो जाता था.
उसकी इसी बात ने, मेरे दिल मे उसकी भी एक खास जगह बना दी थी. सलीम वाली बात को लेकर मेरे मन मे उसके लिए कुछ देर के लिए गुस्सा ज़रूर आया था. लेकिन जब मुझे निक्की और प्रिया से पता चला कि, नेहा सलीम को सिर्फ़ हीतू का दोस्त होने की वजह से जानती थी तो, मेरा ये गुस्सा भी ख़तम हो गया था.
मगर शायद नेहा के मन मे अभी भी उस बात को लेकर डर समाया हुआ था. इसलिए वो कल से मेरा सामना करने से बच रही थी. लेकिन मैं जैसे ही उस से विदा लेने उसके पास आया तो, उसने अपनी सफाई देते हुए कहा.
नेहा बोली “तुम मुझे कल की बात को लेकर ग़लत मत समझना. कल जो कुछ भी हुआ था, उसमे मेरी ज़रा भी ग़लती नही थी. मैं तो सलीम से सिर्फ़ हीतू का दोस्त होने की वजह से बात कर रही थी. मुझे नही पता था कि, वो वहाँ ऐसा कुछ कर जाएगा.”
“यदि मुझे इस बात का, पहले से ज़रा भी पता होता तो, मैं तुम लोगों को अपने पास रोकने की ग़लती कभी नही करती और तुमसे पहले, मैं खुद ही उसे इस सब के लिए बुरी तरह से फटकार लगा देती.”
नेहा की इस बात मे सचाई थी और ये बात प्रिया मुझे पहले ही बोल चुकी थी. इसलिए मैने नेहा की बात को सुनकर, मुस्कुराते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तुम कल की बात को लेकर परेशान मत हो. मुझे प्रिया और निक्की ने कल ही सारी सच्चाई बता दी थी. इसलिए मेरे मन मे, कल की बात को लेकर तुम्हारे लिए कोई मैल नही है. हम आज भी वैसे ही दोस्त है, जैसे कल से पहले थे.”
मेरी ये बात सुनकर, नेहा ने सुकून की साँस लेते हुए कहा.
नेहा बोली “थॅंक्स, इन सबने तो मुझे डरा ही दिया था कि, तुम कल की बात को लेकर मुझसे बहुत नाराज़ हो. इसलिए मैं तुम्हारे सामने आने से भी बच रही थी.”
नेहा की इस बात को सुनकर मुझे हँसी आ गयी. लेकिन फिर मैने कुछ गंभीर होते हुए उस से कहा.
मैं बोला “मैं क्या, हम मे से कोई भी तुमसे नाराज़ नही है. सब तुमको इसलिए परेशान कर रहे थे. क्योकि तुम बेवजह सबसे लड़ती रहती हो. मेरी नज़र मे, दोस्ती मे लड़ना झगड़ना कोई बुरी बात नही है.”
“मैं भी मेहुल से हमेशा लड़ता ही रहता हूँ. लेकिन तुम्हारे अंदर की खराबी ये है कि, तुम दोस्ती मे लड़ने झगड़ने के साथ, अपने दोस्त को किसी के भी सामने नीचा दिखाने लगती हो. तुम्हारी इस हरकत को कुछ भी कहा जा सकता है, लेकिन दोस्ती कभी नही कहा जा सकता है.”
मेरी बात सुनकर, नेहा ने अपना सर झुका लिया और कुछ रुआंसा सी होते हुए कहा.
नेहा बोली “मैं इतनी बुरी नही हूँ, जितना तुम सब मुझको समझते हो. मुझे शिखा दीदी के अलावा कोई नही समझता.”
नेहा की इस बात से सॉफ पता चल रहा था कि, मेरी बात से उसके दिल को चोट पहुचि है. मगर मेरा इरादा उसके दिल को चोट पहुचने का हरगिज़ नही था. मैं तो उसे सिर्फ़ सच्चाई का आईना दिखाना चाहता था. ताकि वो दोबारा ऐसी ग़लती को ना दोहराए.
लेकिन शायद मेरा अपनी बात कहने का तरीका ग़लत था. इसलिए मैने अपनी कही हुई बात को संभालते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तुम मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल रही हो. मैं तुमको बुरा नही कह रहा हूँ. बल्कि एक सच्चे दोस्त की तरह, तुम्हारी ग़लती तुमको बता कर, उसे सुधारना चाहता हूँ. क्योकि तुम शिखा दीदी की सबसे ज़्यादा लाडली हो. इसलिए मैं तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा होते नही देख सकता.”
“मैं सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ कि, हमे अपने दोस्त की ग़लतियाँ उसके उपर जाहिर करना कोई बुरी बात नही है. लेकिन उन्ही ग़लतियों को किसी दूसरे के सामने बढ़ा चढ़ा कर रखना सिर्फ़ दोस्ती को मिटाने वाला काम है.”
“जैसा उस दिन तुम प्रिया को नीचा दिखा कर कर रही थी. प्रिया तुम्हारी दोस्त है और मान लो, वो यदि वैसा कुछ कर भी रही थी तो, तुमको उसको सबके सामने इस तरह शर्मिंदा करने की कोसिस नही करना चाहिए थी. वो ही बात तुम उस से अकेले मे भी बोल सकती थी.”
“मैने जाते जाते सिर्फ़ इसलिए तुम्हे ये बात समझाना ज़रूरी समझा. ताकि तुम अपनी इस आदत की वजह से कही प्रिया जैसी दोस्त को खो ना दो. फिर भी यदि तुम्हे मेरी ये बात बुरी लगी है तो, इसके लिए मैं तुमसे दिल से माफी चाहता हूँ.”
मेरी इस बात ने नेहा के उपर अपना असर दिखाया और उसने शर्मिंदा होते हुए कहा.
नेहा बोली “नही, तुमको किसी बात के लिए माफी माँगने की ज़रूरत नही है. तुम्हारी ये बात बिल्कुल सही है. उस दिन सच मे मेरी ही ग़लती थी. मैं इसके पहले भी, प्रिया को इस बात को लेकर नीचा दिखाने की कोसिस करती रहती थी.”
“उस दिन जब मैने तुम्हे उसके साथ देखा तो, मुझे लगा कि, वो मुझसे झूठ बोल रही है. इसलिए मैं फिर उसको नीचा दिखाने की कोसिस करने लगी थी. लेकिन अब मैं अपनी इस ग़लती को दोबारा नही दोहराउन्गी. अब जब अगली बार तुम यहाँ आओगे तो, तुमको ऐसा कुछ भी देखने को नही मिलेगा.”
मैं बोला “ये तो बहुत खुशी की बात है. लेकिन अब सिर्फ़ मैं ही यहाँ नही आउगा. बल्कि तुमको भी हमारे यहाँ आना पड़ेगा.”
मेरी इस बात को सुनकर, नेहा ने बड़े ही भोलेपन से कहा.
नेहा बोली “लेकिन मैं वहाँ कैसे आ सकती हूँ.”
मैं बोला “क्यो, इसमे कौन सी बड़ी बात है. मैने प्रिया, शिखा दीदी और बरखा दीदी से कहा है कि, वो जब भी हमारे यहाँ आए, तुमको ज़रूर अपने साथ लेकर आए. अब उनके साथ आने मे तो, तुम्हे कोई परेशानी नही होना चाहिए.”
मेरी बात सुनकर, नेहा के चेहरे पर रौनक आ गयी और उसने मुस्कुराते हुए, सबके साथ आने की हामी भर दी. मेरी अभी नेहा से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल और हीतू आ गये. मेहुल को देख कर, मैने नेहा से विदा ली और मैं हीतू के पास आ गया.
हीतू वो लड़का था, जिसने पहली मुलाकात मे ही, मेरी वजह से बरखा और प्रिया दोनो से थप्पड़ खाए थे. इसके बाद भी, उसने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई थी और फिर शिखा दीदी की शादी मे भी तन मन से मेरा साथ निभाया था.
लेकिन अभी तक मैने उस से इस सब के लिए कुछ भी नही कहा था. मगर अब मैं जा रहा था. ऐसे मे बिना कुछ कहे जाना भी ठीक नही था. इसलिए मैने हीतू के पास आते हुए कहा.
मैं बोला “सॉरी यार, तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया. लेकिन मैने तुम्हे किसी भी बात के लिए थॅंक्स तक नही कहा. तुम भी सोचोगे कि, ये कैसा लड़का है. जिसके लिए मैने इतना सब कुछ किया और इसने मुझे थॅंक्स तक नही कहा.”
मेरी बात को सुनकर, हीतू ने हंसते हुए कहा.
हितेश बोला “तुमने बिल्कुल सही किया. क्योकि दोस्तों को किसी बात के लिए थॅंक्स नही कहा जाता है. दोस्तों से सिर्फ़ गले मिला जाता है.”
ये बोल कर वो मेरी तरफ बढ़ गया और मैने भी आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. अभी मैं हीतू से गले मिल ही रहा था कि तभी हमारे पास राज आ गया.
राज वो लड़का था, जिसे मैं पहली मुलाकात से ही ग़लत समझता चला आ रहा था. लेकिन ये सब सिर्फ़ मेरी नज़रों का धोखा था. राज जैसा खुद को दिखता था, असल मे वो वैसा हरगिज़ नही था.
उसने मेरे सामने शिखा दीदी के बारे मे बहुत कुछ बुरा कहा था. लेकिन जैसे ही, उसे पता चला कि, मैं शिखा को अपनी बहन मानता हूँ तो, उसने इस बात को छुपाने के लिए मुझे बहुत खरी खोटी सुनाई और फिर शिखा दीदी को कहे ग़लत शब्दों के लिए मुझसे माफी भी माँगी.
लेकिन सच्चा दोस्त उसे कहते है, जो दोस्त के साथ, हर अच्छे बुरे समय मे कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहे और ये खूबी राज के अंदर कूट कूट कर भरी थी. उसने शिखा दीदी की शादी मे मुझे कभी भी अकेला महसूस नही होने दिया था.
मेरे लिए ये शहर अंजान था. ऐसे मे शिखा दीदी की शादी की एक छोटी सी भी ज़िम्मेदारी उठा पाना मेरे लिए आसान नही था. लेकिन राज ने शिखा दीदी की शादी के हर छोटे बड़े इंतेजाम को खुद खड़े होकर पूरा करवाया था.
उसके बिना ये सब कर पाना मेरे लिए संभव ही नही था. उसकी इस बात ने मेरा दिल जीत लिया था. वो मेरे पास आया तो, मैने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया. गले मिलने के बाद, राज मुझसे मुंबई आते रहने और फोन पर बात करते रहने की बात करने लगा.
अभी मेरी राज से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को देख कर मैने राज से विदा ली और हेतल दीदी के पास आ गया.
हेतल दीदी, जिनका चेहरा जितना खराब था, उनका व्यक्तित्व उतना ही उजाला और सॉफ था. अपने प्यार की खातिर, उन्हो ने अपना चेहरा खराब कर लिया था. लेकिन जब वो चेहरा सही होने का समय आया तो, उन्हो ने सिर्फ़ अपने भाई की शादी मे शामिल होने के लिए, उस मौके को भी खुशी खुशी लात मार दी थी.
ऐसी बहन किसी किस्मत वाले को ही मिलती. वो बहन के पवित्र प्यार की एक अद्भुत मिसाल थी और मैं खुश-नसीब था कि, मुझे भी उनके इस प्यार मे से कुछ हिस्सा मिला था. उनके सामने आते ही, मेरी आँखों मे नमी आ गयी और मैने उनसे कहा.
मैं बोला “दीदी, जब कभी भी आपकी सर्जरी हो, मुझे बुलाना मत भूलना. मैं आपकी सर्जरी के समय, आपके पास रहना चाहता हूँ.”
मेरी बात सुनकर, हेतल दीदी की आँखों मे भी नमी आ गयी. लेकिन उन्हो ने मुस्कुराते हुए, मुझे अपने गले से लगाते हुए कहा.
हेतल दीदी बोली “तुम फिकर मत करो, मेरी सर्जरी मे तुम ज़रूर मेरे पास रहोगे. यदि भैया ने मेरी सर्जरी के समय तुमको नही बुलाया तो, तुम देखना मैं फिर से सर्जरी करवाने से भाग जाउन्गी.”
ये बोल कर हेतल दीदी हँसने लगी और उनकी इस बात को सुनकर, मैं भी मुस्कुराए बिना ना रह सका. अभी मेरी उनसे बात चल ही रही थी की, तभी मेहुल आ गया और मैं उनसे विदा लेकर आरू के पास आ गया.
आरू वो लड़की थी, जिसके अंदर अज्जि की जान बसती थी. जो परियों की तरह सुंदर और बच्चो की तरह मासूम थी. जिसकी मासूमियत किसी का भी दिल जीत सकती थी और इसका एक नमूना उसने शिखा दीदी के गुस्से पर जीत हासिल करके दिखा दिया था.
मेरी उस से ज़्यादा बात चीत नही होती थी. लेकिन उसकी इस मासूमियत ने मेरा भी दिल जीत लिया था. उसे देखते ही, मेरे चेहरे पर खुद ब खुद मुस्कुराहट आ जाती थी और ऐसा ही कुछ अभी भी हुआ.
मैं जैसे ही आरू के सामने आया, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और मैने मुस्कुराते हुए आरू से कहा.
मैं बोला “तुमने मुझे लेकर प्रिया को बहुत परेशान किया है. क्या तुम निक्की के साथ भी ऐसा ही कर सकती हो.”
मेरी ये बात सुनकर, आरू मुझे हैरानी से देखने लगी. उसे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं किस बात के बारे मे कह रहा हूँ. लेकिन जैसे ही उसे बरखा दीदी के घर वाली बात याद आई. उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.
अर्चना बोली “वो तो मैने सीरू दीदी के कहने पर किया था. उस सब से मेरा कुछ भी लेना देना नही था और मैने वो बात निक्की और प्रिया के सामने तभी सॉफ कर दी थी.”
मैं बोला “ये तो मैं उसी समय समझ गया था कि, इस सब मे ज़रूर सीरू दीदी का ही हाथ होगा. लेकिन मेरा सवाल ये था कि, क्या तुम सीरू दीदी के कहने पर, निक्की के साथ भी ऐसा कर सकती हो.”
मेरी ये बात सुनकर, आरू मुस्कुरा कर रह गयी और फिर धीरे से कहा.
अर्चना बोली “सॉरी, वो बस ऐसे ही हो गया था.”
आरू की इस बात पर मैने भी मुस्कुराते हुए कहा
मैं बोला “इसमे सॉरी वाली कोई बात नही है. मैने अपने जाती समय, इस बात को सिर्फ़ इसलिए उखाड़ा है, ताकि तुम को भी पता चल जाए कि, मैं तुम लोगों के बीच पक रही खिचड़ी से अंजान नही हूँ और तुम मेरे जाती समय, फिर से प्रिया को परेशान करने के लिए कोई हरकत ना करो.”
मेरी बात सुनते ही, आरू की हँसी छूट गयी और उसने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.
अर्चना बोली “नही, अब ऐसा नही होगा. निक्की ने उस दिन इस बात को लेकर मेरी बहुत खिचाई की थी. मैने तो उसी दिन ऐसा करने से अपने कान पकड़ लिए थे.”
आरू की ये बात सुनकर, मुझे भी हँसी आ गयी. अभी मेरी आरू से बात चल ही रही थी कि, तभी मेहुल हमारे पास आ गया. मेहुल को आया देख कर, मैने आरू से विदा ली और सेलू दीदी के पास आ गया.
सेलू दीदी, जिनकी रंगत सीरू दीदी और आरू से कहीं ज़्यादा गोरी थी. एक तरफ वो दूध की तरह गोरी दिखती थी तो, दूसरी तरफ बिल्कुल छुईमुई सी नाज़ुक लगती थी. लेकिन उनके रंग से भी ज़्यादा सफेद, उनका मन था.
मैने उन्हे हमेशा सीरू दीदी की परच्छाई की बनकर, उनका साथ निभाते देखा था और उनकी ख़ासियत ये थी कि, वो सीरू दीदी के मन मे चल रही हर बात को, बिना कहे ही, आसानी से समझ जाती थी.
मैने उनको कभी भी, किसी की, किसी बात पर नाराज़ होते नही देखा था. वो ज़्यादातर समय चुप ही रहती थी. लेकिन उनकी कही एक छोटी सी बात भी, सबके उपर बहुत गहरा असर दिखाती थी.
उनको देखते ही, आज भी मेरी आँखों मे, शिखा दीदी के घर पर, उनके शिखा दीदी का नाम लेने पर, अजय का उनके गाल पर तमाचा मारने वाला नज़ारा घूम जाता है. अजय के उस तमाचे से, उनके दूध की तरह गोरे और नाज़ुक गाल, टमाटर की तरह लाल हो गये थे.
लेकिन इसके बाद भी, उनके चेहरे पर एक शिकन नही आई थी और वो पहले की तरह ही मुस्कुराती रही थी. उनके इसी भोलेपन और निश्चल स्वाभाव की वजह से, तीनो बहनो मे, वो ही मुझे सबसे प्यारी लगती थी.
मैं विदा लेने उनके पास पहुचा तो, मुझे देखते ही, उनके चेहरे पर, हमेशा की तरह मुस्कुराहट फैल गयी और उन्हो ने मुझे मजाकिया अंदाज मे चेतावनी देते हुए कहा.
सेलिना बोली “यहाँ से जाते ही, हम लोगों को भूल मत जाना. वरना मैं तुमको परेशान करने के लिए सीरू दीदी को तुम्हारे पिछे लगा दुगी.”
उनकी इस बात पर मैने भी मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, वो कोई पागल ही होगा, जो आप सबको इतनी आसानी से भूल जाए. फिर आप तो मेरी सबसे प्यारी दीदी हो. आपको भूलने का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता है.”
मेरी इस बात पर सेलू दीदी ने मुझे घूरते हुए कहा.
सेलिना बोली “झुटे, जाते जाते मुझे मस्का लगा रहे हो. भला मुझ मे ऐसा है ही क्या, जो मैं तुम्हारी सबसे प्यारी दीदी हो गयी.”
मैं बोला “नही दीदी, मैं कोई मस्का नही लगा रहा हूँ. किसी का दिल जीतने के लिए सीरू दीदी के पास उनका शैतानी दिमाग़ है तो, आरू के पास उसकी मासूमियत है. लेकिन आपके पास किसी का दिल जीतने के लिए, आपका निर्मल मन है. जिसमे सबके लिए एक समान प्यार छुपा है और इसी वजह से आप मेरी सबसे प्यारी दीदी हो.”
मेरी ये बात सुनकर, सेलू दीदी के चेहरे की मुस्कुराहट गहरी हो गयी. वो मुझे अपना ख़याल रखने और उनको कॉल करते रहने को कहने लगी. अभी मेरी उनसे बात चल ही रही थी कि, तभी यहाँ पर भी मेहुल टपक गया.
उसे अपने पास आया देख कर, मैने उसे गुस्से मे घूर कर देखा. लेकिन वो मुझे अनदेखा करके सेलू दीदी से बात करने लगा. उसे सेलू दीदी से बात करता देख कर, मैं सेलू दीदी से विदा लेकर सीरू दीदी की तरफ बढ़ गया.
सीरू दीदी की किसी बात से तारीफ करना, सूरज को चिराग दिखाने जैसा काम था. क्योकि वो किसी तारीफ की मोहताज नही थी. उन्हे शैतानो की नानी मानी जाता था और सब उनके शैतानी दिमाग़ से ख़ौफ़ खाया करते थे.
उनके शैतानी दिमाग़ की सबसे बड़ी ख़ासियत ये थी कि, उन्हे अपनी कोई भी शैतानी करने के लिए पल भर भी सोचना नही पड़ता था. मगर मैने उनकी जितनी भी शैतानी देखी थी. उन सभी शैतानियों से, किसी ना किसी का, कुछ ना कुछ भला होते ही देखा था.
उन्हो ने अपनी शैतानियों से मुझे भी बहुत परेशान किया था. मगर मुझे भी उनकी शैतानियों से कभी कोई नुकसान नही, बल्कि फ़ायदा ही हुआ था. लेकिन जैसे ही मैं शैतानो की नानी कही जाने वाली सीरू दीदी के पास विदा लेने पहुचा तो, उनको देख कर भौचक्का सा रह गया.