desiaks
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ये सब इतनी अचानक हुआ था कि, मुझे कुछ समझने का मौका ही नही मिला था और जब तक मैं कुछ समझ पाता उस से पहले ही मैं ज़मीन की धूल चाट रहा था. मेरा मोबाइल सड़क पर पड़ा था और उसके उपर से एक कार गुजर गयी थी.
शायद ये ही हाल मेरा भी हुआ होता, यदि किसी ने मुझे पिछे से धक्का देकर सड़क के किनारे ना धकेला होता. मुझे सही सलामत देख कर प्रिया ने मेरी तरफ दौड़ लगा दी. तब तक मेहुल और राज भी भाग कर मेरे पास आ चुके थे.
दोनो ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया और मेरे हाथ पैर देखने लगे. मुझे ज़्यादा चोट तो नही आई थी. बस हाथ थोड़े से छिल गये थे और गिरने की वजह से घुटने मे कुछ दर्द सा महसूस हो रहा था.
मैने उनसे सब ठीक होने की बात बोली, फिर इसके बाद मेरी नज़र उस लड़के की तरफ पड़ी, जिसने मुझे धक्का दिया था. वो लड़का कोई ओर नही हितेश था. वो खड़ा खड़ा अपने कपड़े झाड़ रहा था. शायद मुझे धक्का देने के चक्कर मे वो खुद भी ज़मीन पर गिर गया था. अपने कपड़े सॉफ करने के बाद, उसने मेरे पास आकर कहा.
लड़का बोला “तुम ठीक तो हो, तुमको ज़्यादा चोट तो नही आई.”
मैने उसकी इस बात का मुस्कुराते हुए जबाब दिया.
मैं बोला “थॅंक्स यार, मुझे कोई चोट नही आई. यदि आज तुम नही होते तो शायद मेरा भी वो ही हाल होता, जो मेरे मोबाइल का हुआ है.”
मेरी बात सुनकर, सबकी नज़र सड़क पर पड़े मेरे मोबाइल पर पड़ी. मेहुल दौड़ कर मेरा मोबाइल उठाने चला गया. तब तक प्रिया भी मेरे पास आ गयी. पता नही इस थोड़ी सी देर मे उसके दिल ने कितना कुछ सहा था. जो उसके चेहरे से झलक रहा था.
उसकी आँखों मे आँसू थे और वो बहुत डरी हुई लग रही थी. वो मेरे पास आते ही मेरे हाथों को देखने लगी और उसके बाद, मुझसे मेरा पॅंट उपर करके, पैर दिखाने के लिए कहने लगी.
प्रिया का ये बर्ताव मुझे बहुत बचकाना लग रहा था और राज के सामने उसका ये सब करना मुझे ज़रा भी अच्छा नही लग रहा था. लेकिन इस समय प्रिया को किसी के भी होने, ना होने की कोई परवाह नही थी. वो बस अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाह रही थी.
तब तक मेहुल भी मेरा मोबाइल लेकर वापस आ चुका था. उसने प्रिया को इस तरह मुझसे ज़िद करते देखा तो, हंसते हुए प्रिया से कहा.
मेहुल बोला “अरे प्रिया, इसे कुछ नही हुआ. इतनी सी चोट से इसको कोई फरक नही पड़ेगा. जब इसका सच मे आक्सिडेंट हुआ था, तब तो ये चलने फिरने से बाज नही आया था. फिर अभी तो इसे कुछ हुआ ही नही है.”
मगर मेहुल की ये बात सुनकर, प्रिया भड़क गयी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेहुल के सामने करते हुए कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम्हे ये बहता हुआ खून दिखाई नही दे रहा है. क्या तुमने ये देखा था कि, हीतू ने इसको कितनी ज़ोर का धक्का मारा था. यदि तुमने ये सब देखा होता तो, ये कभी ना कहते कि, इसे कुछ हुआ ही नही है.”
प्रिया की ये बात सुनकर, मेहुल झेप गया और कभी मुझे तो, कभी राज को देखने लगा. वही हितेश भी कुछ घबरा सा गया था. उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसने मुझे धक्का मार कर बहुत बड़ी ग़लती कर दी हो.
मेहुल और हीतू के चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर, राज ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुराते हुए कहा.
राज बोला “अरे तुम लोग प्रिया की बात को लेकर इतना परेशान मत हो. इस से किसी का खून देखा नही जाता है. इसलिए ये घबरा गयी है. अब बेहतर यही होगा कि, इसे पैर देख कर अपने दिल की तसल्ली कर लेने दो.”
राज की बात सुनकर, मैने बारी बारी से अपने दोनो पैर प्रिया को दिखा दिए. मुझे पैर मे कोई खास चोट नही लगी थी. बस गिरने की वजह से घुटने मे हल्की सी सूजन आ गयी थी. जिस वजह से थोड़ा बहुत दर्द हो रहा था.
लेकिन मेरे हाथ मे लगी चोट और पैर की सूजन देखने के बाद, प्रिया ने डॉक्टर को दिखाने की ज़िद पकड़ ली. मैने उसे समझाने की कोसिस करता रहा. लेकिन वो मेरी कोई भी बात सुनने को तैयार नही थी.
हमे इस तरह बहस करते देख, राज ने मुझे समझाते हुए कहा कि, प्रिया से बहस करना बेकार है. तुम उसकी बात मान लो और उसके साथ जाकर डॉक्टर को दिखा लो. तब तक मैं और मेहुल जाकर कार का पूजन कर लेते है.
आख़िर मे राज की बात मान कर, मैं प्रिया और हीतू के साथ पास ही एक डॉक्टर को दिखाने चला गया. डॉक्टर ने भी यही कहा कि, मामूली सी चोट है, घबराने की कोई बात नही है.
जब हम डॉक्टर के यहाँ से वापस लौटे तो, मेहुल लोग कार के साथ बाहर ही खड़े हमारा इंतजार कर रहे थे. हमारे उनके पास पहुचते ही मेहुल ने अपना मोबाइल मुझे पकड़ा दिया. उसका मोबाइल देखते ही मैने उस से कहा.
मैं बोला “अबे अपना मोबाइल क्यो दे रहा है. मेरा मोबाइल कहाँ है.”
मेहुल बोला “मैं तेरा मोबाइल खा कर नही भाग जाउन्गा. तेरे जाते ही आंटी का कॉल आया था. उनसे बात करते करते तेरा कॉल अचानक कट गया था और फिर जब उन्हो ने तुझे दोबारा कॉल लगाया तो, तेरा कॉल बंद बता रहा था. इसलिए वो तुझे लेकर बहुत परेशान हो गयी थी और उन्हो ने मुझे कॉल लगाया था.”
मेहुल की ये बात सुनते ही मुझे याद आया कि, जब वो हादसा हुआ, तब मैं छोटी माँ से बात कर रहा था और उस हादसे की वजह से मुझे इस बात का ध्यान ही नही रहा था कि, मेरा कॉल अचानक कट जाने से वो परेशान हो रही होगी.
लेकिन मेरी इस लापरवाही ने अब मेरी परेशानी बढ़ा थी. मैने फ़ौरन मेहुल का मोबाइल लेते हुए उस से पुछा.
मैं बोला “तूने छोटी माँ को मेरे बारे मे क्या बताया है.”
मेहुल बोला “मैने यही कहा कि, वो आपसे सड़क किनारे टहलते हुए बात कर रहा था. तभी एक बेकाबू कार वहाँ से गुज़री और तेरी टक्कर उस कार से हो पाती उस पहले ही एक दोस्त ने तुझे धक्का देकर किनारे धकेल दिया. धक्का लगने की वजह से तू तो किनारे आ गिरा. मगर तेरा मोबाइल छूट कर सड़क पर जा गिरा और कार उसके उपर से निकल गयी. जिस वजह से तेरा मोबाइल बंद हो गया था.”
मेहुल की ये बात सुनकर, मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया और मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.
मैं बोला “साले, शरीर इतना बड़ा है. लेकिन भेजा रत्ती भर का भी नही है. तुझे ये सब बातें छोटी माँ को बताने की क्या ज़रूरत थी. क्या कोई बहाना नही बना सकता था.”
मेहुल बोला “अबे जब तू सही सलामत है. तुझे कुछ हुआ ही नही है तो, फिर कोई बहाना बनाने की क्या ज़रूरत थी. मैने उन्हे समझा दिया है कि, तू बिल्कुल ठीक है और तुझे कुछ भी नही हुआ है.”
मेहुल की इस बात पर मुझे ओर भी ज़्यादा गुस्सा आ गया और मैने उसे घूरते हुए कहा.
मैं बोला “तू भाग जा मेरे सामने से, वरना मुझे तो कुछ नही हुआ है, पर तुझे ज़रूर कुछ हो जाएगा.”
मेरी बात सुनकर, मेहुल मुझे ऐसे देखने लगा, जैसे मैने कोई बचकनी बात कर दी हो. लेकिन अभी वो कुछ बोल पाता कि, तभी उसका मोबाइल बजने लगा. मैने मोबाइल देखा तो, छोटी माँ का ही कॉल आ रहा था. मैने फ़ौरन कॉल उठा लिया. मेरे कॉल उठाते ही छोटी माँ ने कहा.
छोटी माँ बोली “हां, क्या हुआ, पुन्नू वापस आया या नही.”
वो बहुत घबराई हुई लग रही थी. उनको ऐसे घबराया हुआ देख कर, मैने मेहुल को गुस्से मे घूरा और छोटी माँ से कहा.
मैं बोला “जी छोटी माँ, मैं ही बोल रहा हूँ. लेकिन आप इतना घबरा क्यो रही है.”
मेरी आवाज़ सुनते ही छोटी माँ की आँखों मे शायद आँसू आ गये थे. उनकी आवाज़ कुछ नरम सी पड़ गयी और उन्हो ने मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “तू ठीक तो है ना. तुझे कहीं चोट तो नही आई.”
मैं बोला “जी छोटी माँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ. मुझे कही कोई चोट नही आई. आप इस मेहुल की बातों मे ज़रा भी मत आइए. ये तो पागल है, पता नही आपको क्या क्या बोल कर डरा दिया है.”
छोटी माँ बोली “देख, मुझसे कुछ मत छुपा. जो भी बात है सच सच बता दे.”
मैं बोला “छोटी माँ, मैं सच मे बिल्कुल ठीक हूँ. अब मैं आपको इस बात का कैसे यकीन दिलाऊ, आप खुद ही बता दीजिए.”
छोटी माँ बोली “यदि तू बिल्कुल ठीक है तो फिर डॉक्टर के यहाँ क्यो गया था.”
छोटी माँ की इस बात पर मैने हंसते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, यहा एक पागल लड़की प्रिया है. वो ही मुझे जबबर्दस्ती डॉक्टर के यहाँ पकड़ कर ले गयी थी. डॉक्टर ने भी ये ही कहा है कि, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मुझे कुछ नही हुआ.”
मेरी ये बात सुनकर, छोटी माँ ने मुझसे मोबाइल प्रिया को देने के लिए कहा तो, मैने मोबाइल प्रिया को दे दिया. प्रिया ने मोबाइल लेकर छोटी माँ से कहा.
प्रिया बोली “नमस्ते आंटी”
छोटी माँ बोली “…………” (“नमस्ते बेटा, मेरा पुन्नू ठीक तो है ना.”)
प्रिया बोली “जी आंटी, पुन्नू बिल्कुल ठीक है.”
छोटी माँ बोली “………..” (“बेटा जब उसको कुछ हुआ ही नही था तो, तुम उसको डॉक्टर के पास क्यो लेकर गयी थी.”)
प्रिया बोली “आंटी, ऐसी कोई बात नही है. वो क्या है कि, उसके हाथ छिल गये थे और घुटने मे सूजन आ गयी थी. जिसे देख कर मैं डर गयी थी और ज़बरदस्ती डॉक्टर के यहाँ ले गयी थी. लेकिन डॉक्टर ने कहा कि वो बिल्कुल ठीक है. आप भी उसकी फिकर मत कीजिए. उसका ख़याल रखने के लिए हम सब तो यहा है ना.”
छोटी माँ बोली “………..” (“थॅंक्स बेटा, मेरे बेटे का इस तरह ख़याल रखने के लिए मैं तुम्हारी अहसानमंद हूँ. मैं तुम्हारा ये अहसान जिंदगी भर नही भूलूगी.)
प्रिया बोली “अरे आंटी, आप ये कैसी बात कर रही है. इसमे अहसान मानने वाली क्या बात हो गयी. यदि मैं आपके घर आई होती तो, क्या आप मेरा ख़याल नही रखती.”
छोटी माँ बोली “……….” (“ज़रूर रखती बेटा, अब तुम जब कभी भी यहाँ आना, मेरे घर मे ही रुकना. मुझे तुम्हारे आने से बहुत खुशी होगी.”)
प्रिया बोली “मैं ज़रूर आउगि आंटी. मैने सुना है कि, आप बहुत अच्छे पराठे बनाती है. मुझे भी आपके हाथ के आलू के पराठे खाना है. क्या आप मुझे अपने हाथ के आलू के पराठे बना कर खिलाएगी.”
छोटी माँ बोली “………” (“हां, ज़रूर खिलाउन्गी बेटा.)
प्रिया छोटी माँ से बात करने मे इस तरह से खो गयी थी कि, उसे इस बात तक का अहसास नही था कि, हम सब उसकी बात ख़तम होने का इंतजार कर रहे है. जब मैने देखा कि प्रिया की छोटी माँ से बात ख़तम होने का नाम ही नही ले रही है तो, मैने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया.
वो मुझे हैरानी से देखने लगी. लेकिन मैने उसे चुप रहने का इशारा किया और फिर छोटी माँ से बताया कि, मैं यहाँ सबके साथ खड़ा हूँ. घर पहुचने के बाद, आप से बात करता हूँ. छोटी माँ ने मुझसे आज ही एक नया मोबाइल ले लेने को कहा और फिर उन्हो ने कॉल रख दिया.
उनके कॉल रखने के बाद, हमने हीतू को घर आने का बताया और फिर उसे बाइ कह कर घर के लिए निकल पड़े. नयी कार राज ड्राइव कर रहा था. उसके साथ रिया नितिका और मेहुल थे. दूसरी कार मे मैं, प्रिया, बरखा और निक्की हो गये. कुछ ही देर मे हम शिखा दीदी के घर पहुच गये
हमारे घर पहुचते ही शिखा दीदी पुछ्ने लगी की, तुम सब बिना बताए कहाँ चले गये थे. उनकी बात सुनकर, निक्की ने उनसे कहा
निक्की बोली “भाभी, आपके भाई को आपके लिए गिफ्ट लेना था. उसे अकेले गिफ्ट लेने जाने मे डर लग रहा था. इसलिए वो हम सबको अपने साथ ले गया था.”
निक्की की बात सुनकर, सब हँसने लगे. इसके बाद निक्की शिखा दीदी को पकड़ कर बाहर ले आई और उन्हे कार दिखाने लगी. जिसे देखने के बाद, शिखा दीदी मुझे इतना महगा गिफ्ट लेने के लिए गुस्सा करने लगी. लेकिन मैने उनको भी वो ही जबाब दिया, जो बरखा को दिया था.
जिसे सुनने के बाद, शिखा दीदी से कुछ बोलते नही बना. इसके बाद उनको हल्दी चढ़ाने की तैयारी होने लगी. नीचे बहुत भीड़ हो गयी थी, इसलिए मैं, राज और मेहुल के साथ उपर आ गया.
उपर आने पर मेहुल ने मुझे मेरा मोबाइल वापस लौटाया तो, मैं अपना मोबाइल देखने लगा. मेरा मोबाइल बहुत बुरी तरह से टूटा फूटा था और उसका सुधर पाना मुश्किल सा लग रहा था.
ये देख कर मेरा मूड खराब हो गया. मुझे मोबाइल की टूट फुट का कोई अफ़सोस नही था. मुझे दुख सिर्फ़ इस बात का हो रहा था कि, उस मे कीर्ति के ढेर सारे एसएमएस थे और वो मेरे लिए मोबाइल से कहीं ज़्यादा कीमती थे.
इस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि, मेरी अनमोल चीज़ किसी ने मुझसे छीन ली हो. अब मुझसे कीर्ति से बात किए बिना नही रहा जा रहा था. इसलिए मैने राज और मेहुल से कहा की, मैं ज़रा नीचे होकर आता हूँ और फिर मैं नीचे आ गया.
मगर नीचे आने पर भी मुझे कोई ऐसी जगह समझ मे नही आई, जहाँ मैं कीर्ति से बात कर सकूँ. इसलिए मैं घर से बाहर निकल कर आ गया. लेकिन अब मैं सड़क पर बात करने वाली पहले जैसी ग़लती को दोहराना नही चाहता था.
इसलिए मैं कीर्ति से बात करने के लिए सही जगह की तलाश करने लगा. लेकिन इस से पहले कि मैं कीर्ति से बात करने के लिए कोई सही जगह तलाश कर पाता, उसका कॉल आने लगा. कीर्ति का कॉल आते देख, मैं एक घर के सामने रुक गया और उसी घर की बॉंडरी वॉल पर बैठ कर कीर्ति का कॉल उठा कर, उस से कहा.
मैं बोला “तुझे अब 3 बजे मुझे कॉल करने का अब समय मिल रहा है. मैं कब से तुझसे बात करने के लिए मरा जा रहा था.”
लेकिन कीर्ति ने मेरी बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुम ठीक तो हो. तुमको कही चोट तो नही लगी.”
मैं बोला “तू परेशान मत हो, मैं बिल्कुल ठीक हूँ. मुझे कुछ भी नही हुआ. छोटी माँ ने बेकार मे ही तुझे परेशान कर दिया.”
कीर्ति बोली “मुझे मौसी ने कुछ नही बताया. मैं घर वापस आई तो, आंटी मेहुल से तेरे बारे मे पुछ रही थी. मुझसे उनसे ही पता चला की, तेरे साथ क्या हुआ.”
मैं बोला “अब छोड़ ना, मैं बिल्कुल ठीक हूँ. तू ये बता कि, तू सुबह से कहाँ गायब थी. मैं तुझे कितना मिस कर रहा था.”
कीर्ति बोली “तुम्हारी प्यारी बाजी को आफ्तरी देने गयी थी. वही से वापस आने मे देर हो गयी.”
कीर्ति की बात सुनकर मैं चौक गया और मैने उस से पुछा.
मैं बोला “वहाँ क्या हुआ. क्या बाजी ने आफ्तरी ले ली.”
कीर्ति बोली “ऐसा कोई काम नही, जो मैं करूँ और वो ना हो.”
मैं बोला “ज़्यादा पहेलियाँ मत बुझा, सीधे सीधे बता ना कि, बाजी इस सब के लिए कैसे तैयार हो गयी.”
कीर्ति बोली “ये इतना भी मुश्किल काम नही था, जितना तुम बता रहे थे. यहाँ तुम से भी बढ़ कर कोई था, जिसको देखते ही तुम्हारी बाजी से कुछ कहते ना बना.”
मैं बोला “मैं समझा नही, तू किसकी बात कर रही है.”
कीर्ति बोली “मैं अमि निमी को अपने साथ ले गयी थी और तुम्हारी बाजी से कहा कि, इनको ये समान लेकर तुमने भेजा है. बस फिर क्या था, उन दोनो को देखते ही तुम्हारी बाजी से कुछ कहते नही बना और वो पूरे समय बस उनकी खातिर दारी करने मे ही लगी रही.”
ये कह कर कीर्ति खिलखिलाने लगी. उसे बाजी की इस बात पर हँसी आ रही थी. इसके बाद मेरी उस से इसी बारे मे थोड़ी देर बात चलती रही. फिर उसने कुछ देर बाद कॉल करने की बात कह कर फोन रख दिया.
उसके फोन रखने के बाद, मैं वापस घर आ गया. शिखा दीदी को हल्दी लग चुकी थी और अब लड़कियाँ आपस मे एक दूसरे को हल्दी लगा रही थी. प्रिया ने मुझे बताया कि, निक्की शाम को आने का बोल कर वापस चली गयी है.
तब तक राज और मेहुल भी मेरे पास आ चुके थे. अभी प्रिया मुझसे बात कर ही रही थी कि, तभी नेहा अपनी कुछ सहेलियों के साथ वहाँ हल्दी से भरा थाल लेकर आ गयी और ये कहने लगी कि, दुल्हन के भाई को आज के दिन ऐसे सॉफ सॉफ नही रहना चाहिए.
ये कहते हुए वो मेरे चेहरे पर हल्दी लगाने लगी और बाकी लड़कियाँ ज़ोर से क़हक़हे लगाने लगी. जब उसने मेरे चेहरे पर हल्दी लगा दी तो, प्रिया ने उसको अब बस करने को कहा.
लेकिन नेहा ने प्रिया की बात को अनसुना कर मेरे कपड़ो मे भी हल्दी लगाना सुरू कर दिया. जिसे देख कर प्रिया को गुस्सा आ गया और उसने उन लड़कियों से हल्दी का थाल छीन कर, पूरा थाल ही नेहा के उपर पलट दिया.
जिसे देख कर लड़कियों की हँसी तो थम गयी. मगर मेरी, मेहुल और राज की हँसी छूट गयी. नेहा ने गुस्से मे प्रिया को घूरा और पैर पटकती हुई शिखा दीदी के पास चली गयी.
नेहा के जाते ही पंडाल लगाने वाला आ गया और हम लोग बाहर आकर पंडाल लगवाने लगे. कुछ देर बाद, मैने मेहुल को मोबाइल खरीदने जाने की बात जताई तो प्रिया भी साथ चलने की ज़िद करने लगी. इसलिए मैं प्रिया को साथ लेकर नया मोबाइल खरीदने चला गया.
फिर मैं नया मोबाइल खरीद कर 5 बजे वापस आया. तब तक पंडाल लगने का काम हो चुका था और अब लाइट लगने का काम चल रहा था. मेहुल और राज वहाँ खड़े होकर ये काम करवा रहे थे और बरखा भी उनके साथ ही खड़ी थी.
मैं और प्रिया भी उनके पास ही जाकर खड़े हो गये और मैं उन लोगों अपना नया मोबाइल दिखाने लगा. तभी प्रिया ने कहा कि, अपनी मोम को तो बता दो कि, तुमने नया मोबाइल खरीद लिया है.
प्रिया की बात सुनकर मैने छोटी माँ को कॉल किया और उनको नया मोबाइल लेने की बात बताने लगा. अभी मेरी छोटी माँ से बात चल ही रही थी कि, अचानक ही प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ कर, झटके से मुझे अपनी तरफ खीच लिया.
प्रिया की इस हरकत से मैं हड़बड़ा गया और मोबाइल मेरे हाथ से गिरते गिरते बचा. वही बाकी सब लोग भी चौक गये. लेकिन अगले ही पल जहाँ मैं खड़ा था, वहाँ एक बड़ी सी लाइट धडाम की आवाज़ के साथ गिर कर चकना चूर हो गयी.
सब हक्के बक्के से उस लाइट की तरफ ही देखने लगे. उस लाइट का वजन इतना ज़्यादा था कि, यदि मुझे वहाँ से हटने मे एक पल की भी देर हुई होती तो, वो मेरे सर पर गिर गयी होती और फिर मेरे सर का भी वो ही हाल हुआ होता, जो कि अभी उस लाइट का हुआ था.
ये सब इतनी अचानक हुआ था कि, मुझे कुछ समझने का मौका ही नही मिला था और जब तक मैं कुछ समझ पाता उस से पहले ही मैं ज़मीन की धूल चाट रहा था. मेरा मोबाइल सड़क पर पड़ा था और उसके उपर से एक कार गुजर गयी थी.
शायद ये ही हाल मेरा भी हुआ होता, यदि किसी ने मुझे पिछे से धक्का देकर सड़क के किनारे ना धकेला होता. मुझे सही सलामत देख कर प्रिया ने मेरी तरफ दौड़ लगा दी. तब तक मेहुल और राज भी भाग कर मेरे पास आ चुके थे.
दोनो ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया और मेरे हाथ पैर देखने लगे. मुझे ज़्यादा चोट तो नही आई थी. बस हाथ थोड़े से छिल गये थे और गिरने की वजह से घुटने मे कुछ दर्द सा महसूस हो रहा था.
मैने उनसे सब ठीक होने की बात बोली, फिर इसके बाद मेरी नज़र उस लड़के की तरफ पड़ी, जिसने मुझे धक्का दिया था. वो लड़का कोई ओर नही हितेश था. वो खड़ा खड़ा अपने कपड़े झाड़ रहा था. शायद मुझे धक्का देने के चक्कर मे वो खुद भी ज़मीन पर गिर गया था. अपने कपड़े सॉफ करने के बाद, उसने मेरे पास आकर कहा.
लड़का बोला “तुम ठीक तो हो, तुमको ज़्यादा चोट तो नही आई.”
मैने उसकी इस बात का मुस्कुराते हुए जबाब दिया.
मैं बोला “थॅंक्स यार, मुझे कोई चोट नही आई. यदि आज तुम नही होते तो शायद मेरा भी वो ही हाल होता, जो मेरे मोबाइल का हुआ है.”
मेरी बात सुनकर, सबकी नज़र सड़क पर पड़े मेरे मोबाइल पर पड़ी. मेहुल दौड़ कर मेरा मोबाइल उठाने चला गया. तब तक प्रिया भी मेरे पास आ गयी. पता नही इस थोड़ी सी देर मे उसके दिल ने कितना कुछ सहा था. जो उसके चेहरे से झलक रहा था.
उसकी आँखों मे आँसू थे और वो बहुत डरी हुई लग रही थी. वो मेरे पास आते ही मेरे हाथों को देखने लगी और उसके बाद, मुझसे मेरा पॅंट उपर करके, पैर दिखाने के लिए कहने लगी.
प्रिया का ये बर्ताव मुझे बहुत बचकाना लग रहा था और राज के सामने उसका ये सब करना मुझे ज़रा भी अच्छा नही लग रहा था. लेकिन इस समय प्रिया को किसी के भी होने, ना होने की कोई परवाह नही थी. वो बस अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाह रही थी.
तब तक मेहुल भी मेरा मोबाइल लेकर वापस आ चुका था. उसने प्रिया को इस तरह मुझसे ज़िद करते देखा तो, हंसते हुए प्रिया से कहा.
मेहुल बोला “अरे प्रिया, इसे कुछ नही हुआ. इतनी सी चोट से इसको कोई फरक नही पड़ेगा. जब इसका सच मे आक्सिडेंट हुआ था, तब तो ये चलने फिरने से बाज नही आया था. फिर अभी तो इसे कुछ हुआ ही नही है.”
मगर मेहुल की ये बात सुनकर, प्रिया भड़क गयी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेहुल के सामने करते हुए कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम्हे ये बहता हुआ खून दिखाई नही दे रहा है. क्या तुमने ये देखा था कि, हीतू ने इसको कितनी ज़ोर का धक्का मारा था. यदि तुमने ये सब देखा होता तो, ये कभी ना कहते कि, इसे कुछ हुआ ही नही है.”
प्रिया की ये बात सुनकर, मेहुल झेप गया और कभी मुझे तो, कभी राज को देखने लगा. वही हितेश भी कुछ घबरा सा गया था. उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसने मुझे धक्का मार कर बहुत बड़ी ग़लती कर दी हो.
मेहुल और हीतू के चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर, राज ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुराते हुए कहा.
राज बोला “अरे तुम लोग प्रिया की बात को लेकर इतना परेशान मत हो. इस से किसी का खून देखा नही जाता है. इसलिए ये घबरा गयी है. अब बेहतर यही होगा कि, इसे पैर देख कर अपने दिल की तसल्ली कर लेने दो.”
राज की बात सुनकर, मैने बारी बारी से अपने दोनो पैर प्रिया को दिखा दिए. मुझे पैर मे कोई खास चोट नही लगी थी. बस गिरने की वजह से घुटने मे हल्की सी सूजन आ गयी थी. जिस वजह से थोड़ा बहुत दर्द हो रहा था.
लेकिन मेरे हाथ मे लगी चोट और पैर की सूजन देखने के बाद, प्रिया ने डॉक्टर को दिखाने की ज़िद पकड़ ली. मैने उसे समझाने की कोसिस करता रहा. लेकिन वो मेरी कोई भी बात सुनने को तैयार नही थी.
हमे इस तरह बहस करते देख, राज ने मुझे समझाते हुए कहा कि, प्रिया से बहस करना बेकार है. तुम उसकी बात मान लो और उसके साथ जाकर डॉक्टर को दिखा लो. तब तक मैं और मेहुल जाकर कार का पूजन कर लेते है.
आख़िर मे राज की बात मान कर, मैं प्रिया और हीतू के साथ पास ही एक डॉक्टर को दिखाने चला गया. डॉक्टर ने भी यही कहा कि, मामूली सी चोट है, घबराने की कोई बात नही है.
जब हम डॉक्टर के यहाँ से वापस लौटे तो, मेहुल लोग कार के साथ बाहर ही खड़े हमारा इंतजार कर रहे थे. हमारे उनके पास पहुचते ही मेहुल ने अपना मोबाइल मुझे पकड़ा दिया. उसका मोबाइल देखते ही मैने उस से कहा.
मैं बोला “अबे अपना मोबाइल क्यो दे रहा है. मेरा मोबाइल कहाँ है.”
मेहुल बोला “मैं तेरा मोबाइल खा कर नही भाग जाउन्गा. तेरे जाते ही आंटी का कॉल आया था. उनसे बात करते करते तेरा कॉल अचानक कट गया था और फिर जब उन्हो ने तुझे दोबारा कॉल लगाया तो, तेरा कॉल बंद बता रहा था. इसलिए वो तुझे लेकर बहुत परेशान हो गयी थी और उन्हो ने मुझे कॉल लगाया था.”
मेहुल की ये बात सुनते ही मुझे याद आया कि, जब वो हादसा हुआ, तब मैं छोटी माँ से बात कर रहा था और उस हादसे की वजह से मुझे इस बात का ध्यान ही नही रहा था कि, मेरा कॉल अचानक कट जाने से वो परेशान हो रही होगी.
लेकिन मेरी इस लापरवाही ने अब मेरी परेशानी बढ़ा थी. मैने फ़ौरन मेहुल का मोबाइल लेते हुए उस से पुछा.
मैं बोला “तूने छोटी माँ को मेरे बारे मे क्या बताया है.”
मेहुल बोला “मैने यही कहा कि, वो आपसे सड़क किनारे टहलते हुए बात कर रहा था. तभी एक बेकाबू कार वहाँ से गुज़री और तेरी टक्कर उस कार से हो पाती उस पहले ही एक दोस्त ने तुझे धक्का देकर किनारे धकेल दिया. धक्का लगने की वजह से तू तो किनारे आ गिरा. मगर तेरा मोबाइल छूट कर सड़क पर जा गिरा और कार उसके उपर से निकल गयी. जिस वजह से तेरा मोबाइल बंद हो गया था.”
मेहुल की ये बात सुनकर, मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया और मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.
मैं बोला “साले, शरीर इतना बड़ा है. लेकिन भेजा रत्ती भर का भी नही है. तुझे ये सब बातें छोटी माँ को बताने की क्या ज़रूरत थी. क्या कोई बहाना नही बना सकता था.”
मेहुल बोला “अबे जब तू सही सलामत है. तुझे कुछ हुआ ही नही है तो, फिर कोई बहाना बनाने की क्या ज़रूरत थी. मैने उन्हे समझा दिया है कि, तू बिल्कुल ठीक है और तुझे कुछ भी नही हुआ है.”
मेहुल की इस बात पर मुझे ओर भी ज़्यादा गुस्सा आ गया और मैने उसे घूरते हुए कहा.
मैं बोला “तू भाग जा मेरे सामने से, वरना मुझे तो कुछ नही हुआ है, पर तुझे ज़रूर कुछ हो जाएगा.”
मेरी बात सुनकर, मेहुल मुझे ऐसे देखने लगा, जैसे मैने कोई बचकनी बात कर दी हो. लेकिन अभी वो कुछ बोल पाता कि, तभी उसका मोबाइल बजने लगा. मैने मोबाइल देखा तो, छोटी माँ का ही कॉल आ रहा था. मैने फ़ौरन कॉल उठा लिया. मेरे कॉल उठाते ही छोटी माँ ने कहा.
छोटी माँ बोली “हां, क्या हुआ, पुन्नू वापस आया या नही.”
वो बहुत घबराई हुई लग रही थी. उनको ऐसे घबराया हुआ देख कर, मैने मेहुल को गुस्से मे घूरा और छोटी माँ से कहा.
मैं बोला “जी छोटी माँ, मैं ही बोल रहा हूँ. लेकिन आप इतना घबरा क्यो रही है.”
मेरी आवाज़ सुनते ही छोटी माँ की आँखों मे शायद आँसू आ गये थे. उनकी आवाज़ कुछ नरम सी पड़ गयी और उन्हो ने मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “तू ठीक तो है ना. तुझे कहीं चोट तो नही आई.”
मैं बोला “जी छोटी माँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ. मुझे कही कोई चोट नही आई. आप इस मेहुल की बातों मे ज़रा भी मत आइए. ये तो पागल है, पता नही आपको क्या क्या बोल कर डरा दिया है.”
छोटी माँ बोली “देख, मुझसे कुछ मत छुपा. जो भी बात है सच सच बता दे.”
मैं बोला “छोटी माँ, मैं सच मे बिल्कुल ठीक हूँ. अब मैं आपको इस बात का कैसे यकीन दिलाऊ, आप खुद ही बता दीजिए.”
छोटी माँ बोली “यदि तू बिल्कुल ठीक है तो फिर डॉक्टर के यहाँ क्यो गया था.”
छोटी माँ की इस बात पर मैने हंसते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, यहा एक पागल लड़की प्रिया है. वो ही मुझे जबबर्दस्ती डॉक्टर के यहाँ पकड़ कर ले गयी थी. डॉक्टर ने भी ये ही कहा है कि, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मुझे कुछ नही हुआ.”
मेरी ये बात सुनकर, छोटी माँ ने मुझसे मोबाइल प्रिया को देने के लिए कहा तो, मैने मोबाइल प्रिया को दे दिया. प्रिया ने मोबाइल लेकर छोटी माँ से कहा.
प्रिया बोली “नमस्ते आंटी”
छोटी माँ बोली “…………” (“नमस्ते बेटा, मेरा पुन्नू ठीक तो है ना.”)
प्रिया बोली “जी आंटी, पुन्नू बिल्कुल ठीक है.”
छोटी माँ बोली “………..” (“बेटा जब उसको कुछ हुआ ही नही था तो, तुम उसको डॉक्टर के पास क्यो लेकर गयी थी.”)
प्रिया बोली “आंटी, ऐसी कोई बात नही है. वो क्या है कि, उसके हाथ छिल गये थे और घुटने मे सूजन आ गयी थी. जिसे देख कर मैं डर गयी थी और ज़बरदस्ती डॉक्टर के यहाँ ले गयी थी. लेकिन डॉक्टर ने कहा कि वो बिल्कुल ठीक है. आप भी उसकी फिकर मत कीजिए. उसका ख़याल रखने के लिए हम सब तो यहा है ना.”
छोटी माँ बोली “………..” (“थॅंक्स बेटा, मेरे बेटे का इस तरह ख़याल रखने के लिए मैं तुम्हारी अहसानमंद हूँ. मैं तुम्हारा ये अहसान जिंदगी भर नही भूलूगी.)
प्रिया बोली “अरे आंटी, आप ये कैसी बात कर रही है. इसमे अहसान मानने वाली क्या बात हो गयी. यदि मैं आपके घर आई होती तो, क्या आप मेरा ख़याल नही रखती.”
छोटी माँ बोली “……….” (“ज़रूर रखती बेटा, अब तुम जब कभी भी यहाँ आना, मेरे घर मे ही रुकना. मुझे तुम्हारे आने से बहुत खुशी होगी.”)
प्रिया बोली “मैं ज़रूर आउगि आंटी. मैने सुना है कि, आप बहुत अच्छे पराठे बनाती है. मुझे भी आपके हाथ के आलू के पराठे खाना है. क्या आप मुझे अपने हाथ के आलू के पराठे बना कर खिलाएगी.”
छोटी माँ बोली “………” (“हां, ज़रूर खिलाउन्गी बेटा.)
प्रिया छोटी माँ से बात करने मे इस तरह से खो गयी थी कि, उसे इस बात तक का अहसास नही था कि, हम सब उसकी बात ख़तम होने का इंतजार कर रहे है. जब मैने देखा कि प्रिया की छोटी माँ से बात ख़तम होने का नाम ही नही ले रही है तो, मैने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया.
वो मुझे हैरानी से देखने लगी. लेकिन मैने उसे चुप रहने का इशारा किया और फिर छोटी माँ से बताया कि, मैं यहाँ सबके साथ खड़ा हूँ. घर पहुचने के बाद, आप से बात करता हूँ. छोटी माँ ने मुझसे आज ही एक नया मोबाइल ले लेने को कहा और फिर उन्हो ने कॉल रख दिया.
उनके कॉल रखने के बाद, हमने हीतू को घर आने का बताया और फिर उसे बाइ कह कर घर के लिए निकल पड़े. नयी कार राज ड्राइव कर रहा था. उसके साथ रिया नितिका और मेहुल थे. दूसरी कार मे मैं, प्रिया, बरखा और निक्की हो गये. कुछ ही देर मे हम शिखा दीदी के घर पहुच गये
हमारे घर पहुचते ही शिखा दीदी पुछ्ने लगी की, तुम सब बिना बताए कहाँ चले गये थे. उनकी बात सुनकर, निक्की ने उनसे कहा
निक्की बोली “भाभी, आपके भाई को आपके लिए गिफ्ट लेना था. उसे अकेले गिफ्ट लेने जाने मे डर लग रहा था. इसलिए वो हम सबको अपने साथ ले गया था.”
निक्की की बात सुनकर, सब हँसने लगे. इसके बाद निक्की शिखा दीदी को पकड़ कर बाहर ले आई और उन्हे कार दिखाने लगी. जिसे देखने के बाद, शिखा दीदी मुझे इतना महगा गिफ्ट लेने के लिए गुस्सा करने लगी. लेकिन मैने उनको भी वो ही जबाब दिया, जो बरखा को दिया था.
जिसे सुनने के बाद, शिखा दीदी से कुछ बोलते नही बना. इसके बाद उनको हल्दी चढ़ाने की तैयारी होने लगी. नीचे बहुत भीड़ हो गयी थी, इसलिए मैं, राज और मेहुल के साथ उपर आ गया.
उपर आने पर मेहुल ने मुझे मेरा मोबाइल वापस लौटाया तो, मैं अपना मोबाइल देखने लगा. मेरा मोबाइल बहुत बुरी तरह से टूटा फूटा था और उसका सुधर पाना मुश्किल सा लग रहा था.
ये देख कर मेरा मूड खराब हो गया. मुझे मोबाइल की टूट फुट का कोई अफ़सोस नही था. मुझे दुख सिर्फ़ इस बात का हो रहा था कि, उस मे कीर्ति के ढेर सारे एसएमएस थे और वो मेरे लिए मोबाइल से कहीं ज़्यादा कीमती थे.
इस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि, मेरी अनमोल चीज़ किसी ने मुझसे छीन ली हो. अब मुझसे कीर्ति से बात किए बिना नही रहा जा रहा था. इसलिए मैने राज और मेहुल से कहा की, मैं ज़रा नीचे होकर आता हूँ और फिर मैं नीचे आ गया.
मगर नीचे आने पर भी मुझे कोई ऐसी जगह समझ मे नही आई, जहाँ मैं कीर्ति से बात कर सकूँ. इसलिए मैं घर से बाहर निकल कर आ गया. लेकिन अब मैं सड़क पर बात करने वाली पहले जैसी ग़लती को दोहराना नही चाहता था.
इसलिए मैं कीर्ति से बात करने के लिए सही जगह की तलाश करने लगा. लेकिन इस से पहले कि मैं कीर्ति से बात करने के लिए कोई सही जगह तलाश कर पाता, उसका कॉल आने लगा. कीर्ति का कॉल आते देख, मैं एक घर के सामने रुक गया और उसी घर की बॉंडरी वॉल पर बैठ कर कीर्ति का कॉल उठा कर, उस से कहा.
मैं बोला “तुझे अब 3 बजे मुझे कॉल करने का अब समय मिल रहा है. मैं कब से तुझसे बात करने के लिए मरा जा रहा था.”
लेकिन कीर्ति ने मेरी बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुम ठीक तो हो. तुमको कही चोट तो नही लगी.”
मैं बोला “तू परेशान मत हो, मैं बिल्कुल ठीक हूँ. मुझे कुछ भी नही हुआ. छोटी माँ ने बेकार मे ही तुझे परेशान कर दिया.”
कीर्ति बोली “मुझे मौसी ने कुछ नही बताया. मैं घर वापस आई तो, आंटी मेहुल से तेरे बारे मे पुछ रही थी. मुझसे उनसे ही पता चला की, तेरे साथ क्या हुआ.”
मैं बोला “अब छोड़ ना, मैं बिल्कुल ठीक हूँ. तू ये बता कि, तू सुबह से कहाँ गायब थी. मैं तुझे कितना मिस कर रहा था.”
कीर्ति बोली “तुम्हारी प्यारी बाजी को आफ्तरी देने गयी थी. वही से वापस आने मे देर हो गयी.”
कीर्ति की बात सुनकर मैं चौक गया और मैने उस से पुछा.
मैं बोला “वहाँ क्या हुआ. क्या बाजी ने आफ्तरी ले ली.”
कीर्ति बोली “ऐसा कोई काम नही, जो मैं करूँ और वो ना हो.”
मैं बोला “ज़्यादा पहेलियाँ मत बुझा, सीधे सीधे बता ना कि, बाजी इस सब के लिए कैसे तैयार हो गयी.”
कीर्ति बोली “ये इतना भी मुश्किल काम नही था, जितना तुम बता रहे थे. यहाँ तुम से भी बढ़ कर कोई था, जिसको देखते ही तुम्हारी बाजी से कुछ कहते ना बना.”
मैं बोला “मैं समझा नही, तू किसकी बात कर रही है.”
कीर्ति बोली “मैं अमि निमी को अपने साथ ले गयी थी और तुम्हारी बाजी से कहा कि, इनको ये समान लेकर तुमने भेजा है. बस फिर क्या था, उन दोनो को देखते ही तुम्हारी बाजी से कुछ कहते नही बना और वो पूरे समय बस उनकी खातिर दारी करने मे ही लगी रही.”
ये कह कर कीर्ति खिलखिलाने लगी. उसे बाजी की इस बात पर हँसी आ रही थी. इसके बाद मेरी उस से इसी बारे मे थोड़ी देर बात चलती रही. फिर उसने कुछ देर बाद कॉल करने की बात कह कर फोन रख दिया.
उसके फोन रखने के बाद, मैं वापस घर आ गया. शिखा दीदी को हल्दी लग चुकी थी और अब लड़कियाँ आपस मे एक दूसरे को हल्दी लगा रही थी. प्रिया ने मुझे बताया कि, निक्की शाम को आने का बोल कर वापस चली गयी है.
तब तक राज और मेहुल भी मेरे पास आ चुके थे. अभी प्रिया मुझसे बात कर ही रही थी कि, तभी नेहा अपनी कुछ सहेलियों के साथ वहाँ हल्दी से भरा थाल लेकर आ गयी और ये कहने लगी कि, दुल्हन के भाई को आज के दिन ऐसे सॉफ सॉफ नही रहना चाहिए.
ये कहते हुए वो मेरे चेहरे पर हल्दी लगाने लगी और बाकी लड़कियाँ ज़ोर से क़हक़हे लगाने लगी. जब उसने मेरे चेहरे पर हल्दी लगा दी तो, प्रिया ने उसको अब बस करने को कहा.
लेकिन नेहा ने प्रिया की बात को अनसुना कर मेरे कपड़ो मे भी हल्दी लगाना सुरू कर दिया. जिसे देख कर प्रिया को गुस्सा आ गया और उसने उन लड़कियों से हल्दी का थाल छीन कर, पूरा थाल ही नेहा के उपर पलट दिया.
जिसे देख कर लड़कियों की हँसी तो थम गयी. मगर मेरी, मेहुल और राज की हँसी छूट गयी. नेहा ने गुस्से मे प्रिया को घूरा और पैर पटकती हुई शिखा दीदी के पास चली गयी.
नेहा के जाते ही पंडाल लगाने वाला आ गया और हम लोग बाहर आकर पंडाल लगवाने लगे. कुछ देर बाद, मैने मेहुल को मोबाइल खरीदने जाने की बात जताई तो प्रिया भी साथ चलने की ज़िद करने लगी. इसलिए मैं प्रिया को साथ लेकर नया मोबाइल खरीदने चला गया.
फिर मैं नया मोबाइल खरीद कर 5 बजे वापस आया. तब तक पंडाल लगने का काम हो चुका था और अब लाइट लगने का काम चल रहा था. मेहुल और राज वहाँ खड़े होकर ये काम करवा रहे थे और बरखा भी उनके साथ ही खड़ी थी.
मैं और प्रिया भी उनके पास ही जाकर खड़े हो गये और मैं उन लोगों अपना नया मोबाइल दिखाने लगा. तभी प्रिया ने कहा कि, अपनी मोम को तो बता दो कि, तुमने नया मोबाइल खरीद लिया है.
प्रिया की बात सुनकर मैने छोटी माँ को कॉल किया और उनको नया मोबाइल लेने की बात बताने लगा. अभी मेरी छोटी माँ से बात चल ही रही थी कि, अचानक ही प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ कर, झटके से मुझे अपनी तरफ खीच लिया.
प्रिया की इस हरकत से मैं हड़बड़ा गया और मोबाइल मेरे हाथ से गिरते गिरते बचा. वही बाकी सब लोग भी चौक गये. लेकिन अगले ही पल जहाँ मैं खड़ा था, वहाँ एक बड़ी सी लाइट धडाम की आवाज़ के साथ गिर कर चकना चूर हो गयी.
सब हक्के बक्के से उस लाइट की तरफ ही देखने लगे. उस लाइट का वजन इतना ज़्यादा था कि, यदि मुझे वहाँ से हटने मे एक पल की भी देर हुई होती तो, वो मेरे सर पर गिर गयी होती और फिर मेरे सर का भी वो ही हाल हुआ होता, जो कि अभी उस लाइट का हुआ था.