hotaks444
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खानदानी हिज़ाबी औरतें
में अपने कमरे में बैठा ज़ाहिद के साथ गप शप कर रहा था. ज़ाहिद मेरे चाचा का बेटा था और हम क्लास फेलोस भी थे और बेस्ट फ्रेंड्स भी. मेरे चाचा यानी उस के वालिद एक आक्सिडेंट में तीन साल पहले इंतिक़ाल कर गए थे और वो अपनी माँ चाची फ़हमीदा और बड़ी बहन नसरीन के साथ इस्लामाबाद में रहता था. अगरचे वो और में आपस में बड़े बे-तकल्लूफ थे लेकिन मैंने उससे कभी ये नही बताया था के में मामी शाहिदा, फूफी खादीजा और फूफी नीलोफर को चोद चुका हूँ. उस दिन मेरी ही किसी बात से उससे शक हो गया के मैंने फूफी खादीजा की चूत मारी है. वो बार बार मुझ से इसी बारे में पूछता रहा. मैंने बात टालने की बहुत कोशिश की मगर तीर कमान से निकल चुका था. जब उस ने मुझे कुछ ज़ियादा ही तंग किया तो में मान गया के मैंने फूफी खादीजा को चोदा है और ये के वो मुझे अब भी अपनी चूत देती हैं.
अपनी दो फुफियों और मामी को चोद लेने से मुझ पर ज़िंदगी की बहुत सी हक़ीक़त तो खुल ही चुकी थीं मगर अब इस में कोई शक ही नही रहा था के हम सब ने दुनिया की दिखाने के लिये अपने चेहरों पर नक़ाब पहन रखे हैं. मै अपने आप को भी ऐसे ही लोगों में शामिल समझता हूँ. हम सब शायद अपने आप से भी झूठ बोल बोल कर अपनी असल शख्सियत छुपाते हैं. इस का मतलब ये है के हर इंसान की दो शख्सियत हैं. एक उस की असल शख्सियत है और एक वो जो दुनिया को दिखाने के लिये है.
"अमजद यार तुम बहुत खुश-क़िस्मत हो जो फूफी खादीजा की चूत मार ली. उनकी तो बहुत मोटी और ज़बरदस्त फुद्दी हो गी?" ज़ाहिद राल टपकाते हुए बोला. एक लम्हे में वो सब अदब आदाब भूल गया और अपनी सग़ी फूफी की फुद्दी का ज़िकर यों करने लगा जैसे किसी गश्ती औरत का किया जाता है. मुझे ये समझने में देर नही लगी वो भी फूफी खादीजा पर गरम था.
“हाँ इस में तो कोई शक नही.” मैंने दिल ही दिल में खुश होते हुए कहा.
“अच्छा ये तो बताओ के फूफी खादीजा तुम्हे अपनी फुद्दी देने पर राज़ी कैसे होन?” उस ने पूछा.
“बस यार मैंने एक जादू पढ़ कर फूँका तो वो मान गईं.” मैंने हंस कर कहा. मै उससे नही बताना चाहता था के में फूफी खादीजा को चोदने में कैसे कामयाब हुआ था.
“फिर भी आख़िर हुआ किया?”
“छोड़ो यार लंबी कहानी है फिर कभी बताऊं गा. याद रखने वाली बात बस यही है के शादी शुदा औरतों की ज़िंदगी में कोई लुत्फ़ और अड्वेंचर नही होता. अगर उन्हे सही तरीके से फँसाया जाए और उन्हे यक़ीन हो के उनका राज़ राज़ ही रहे गा तो 100 में से 99 औरतें चूत मरवा लेतीं हैं. इस मामले में फूफी और बाहर की किसी औरत में कोई ख़ास फ़र्क़ नही. हाँ ये ज़रूर है के अपनी फूफी को फँसाना ज़रा ज़ियादा मुश्किल काम है.” मैंने उससे बताया.
“में भी तुम्हारे सामने अपना एक बहुत बड़ा राज़ खोलना चाहता हूँ.” वो मेरी बात सुन कर बोला.
“वो किया?”
"में भी अपनी अम्मी को चोद रहा हूँ." उस ने जैसे मेरे सर पर बम फाड़ दिया.
"तुम ने चाची फ़हमीदा को चोदा है यानी अपनी माँ को." मैंने हैरत-ज़डा हो कर कहा.
“हाँ अम्मी को में पिछल सात आठ महीनो से चोद रहा हूँ.” उस ने बताया.
ज़ाहिद को अच्छी तरह जानने के बावजूद मुझे बिल्कुल ईलम नही था के वो अपनी माँ यानी चाची फ़हमीदा के साथ इन्सेस्ट कर रहा था. मै तो ये भी नही जानता था के वो मेरी तरह ही उन औरतों का शौक़ीन था जिन से उस का खूनी रिश्ता था और जो ज़रा बड़ी उमर की और सेहतमंद और मोटी ताज़ी थीं . इन्सेस्ट शायद हमारे खून में थी और यही वजह थी के ज़ाहिद अपनी माँ की चूत ले रहा था.
"यार ज़ाहिद चाची फ़हमीदा भी तो बड़े मज़बूत और तगड़े बदन वाली हैं. तुम कम खुश-नसीब नही हो जो उन्हे चोद रहे हो. कमाल कर दिया तुम ने." में खुद भी एक अरसे से चाची फ़हमीदा को चोदना चाहता था और अब जब ज़ाहिद ने उनके बारे में मुझे ये बात बताई तो मैंने भी उनके लिये अपने नंगे जज़्बात का इज़हार कर दिया.
मुझे गुमान गुज़रा के शायद वो फूफी खादीजा से मेरे ता’अलूक़ का सुन कर हसद में झूठ बोल रहा है.
“लेकिन ये सब हुआ कैसे?” मैंने कहा.
”एक दिन बाजी नसरीन खाला हामीदा के हाँ गई हुई थीं और में और अम्मी घर में अकेले थे. दोपहर के वक़्त मैंने एक ब्लू फिल्म देखी और अम्मी से कुछ बात करने उनके कमरे में आया. अम्मी सो रही थीं और उनके मम्मे उनकी क़मीज़ के खुले हुए गले में से नज़र आ रहे थे. तुम ने देखा हो गा के वो हमेशा काफ़ी खुले गले की क़मीज़ पहनती हैं. मै उनके मोटे मम्मे देख कर खुद पर क़ाबू नही रख सका और उनके मम्मों पर हाथ फेरने लगा. मेरा हाथ उनके मम्मों को लगा तो वो जाग गईं. पहले तो बहुत नाराज़ हुईं और मुझे बहुत डांटा और बुरा भला कहा. पहले तो में डर गया लेकिन फिर में उन से खुल कर बात की. मै उनकी एक आध पुरानी हरकत से भी वाक़िफ़ था. थोड़ी सी कोशिश से वो मान गईं और मैंने उन्हे चोद लिया." उस ने थोड़ी सी शर्मिन्दगी से कहा.
में अपने कमरे में बैठा ज़ाहिद के साथ गप शप कर रहा था. ज़ाहिद मेरे चाचा का बेटा था और हम क्लास फेलोस भी थे और बेस्ट फ्रेंड्स भी. मेरे चाचा यानी उस के वालिद एक आक्सिडेंट में तीन साल पहले इंतिक़ाल कर गए थे और वो अपनी माँ चाची फ़हमीदा और बड़ी बहन नसरीन के साथ इस्लामाबाद में रहता था. अगरचे वो और में आपस में बड़े बे-तकल्लूफ थे लेकिन मैंने उससे कभी ये नही बताया था के में मामी शाहिदा, फूफी खादीजा और फूफी नीलोफर को चोद चुका हूँ. उस दिन मेरी ही किसी बात से उससे शक हो गया के मैंने फूफी खादीजा की चूत मारी है. वो बार बार मुझ से इसी बारे में पूछता रहा. मैंने बात टालने की बहुत कोशिश की मगर तीर कमान से निकल चुका था. जब उस ने मुझे कुछ ज़ियादा ही तंग किया तो में मान गया के मैंने फूफी खादीजा को चोदा है और ये के वो मुझे अब भी अपनी चूत देती हैं.
अपनी दो फुफियों और मामी को चोद लेने से मुझ पर ज़िंदगी की बहुत सी हक़ीक़त तो खुल ही चुकी थीं मगर अब इस में कोई शक ही नही रहा था के हम सब ने दुनिया की दिखाने के लिये अपने चेहरों पर नक़ाब पहन रखे हैं. मै अपने आप को भी ऐसे ही लोगों में शामिल समझता हूँ. हम सब शायद अपने आप से भी झूठ बोल बोल कर अपनी असल शख्सियत छुपाते हैं. इस का मतलब ये है के हर इंसान की दो शख्सियत हैं. एक उस की असल शख्सियत है और एक वो जो दुनिया को दिखाने के लिये है.
"अमजद यार तुम बहुत खुश-क़िस्मत हो जो फूफी खादीजा की चूत मार ली. उनकी तो बहुत मोटी और ज़बरदस्त फुद्दी हो गी?" ज़ाहिद राल टपकाते हुए बोला. एक लम्हे में वो सब अदब आदाब भूल गया और अपनी सग़ी फूफी की फुद्दी का ज़िकर यों करने लगा जैसे किसी गश्ती औरत का किया जाता है. मुझे ये समझने में देर नही लगी वो भी फूफी खादीजा पर गरम था.
“हाँ इस में तो कोई शक नही.” मैंने दिल ही दिल में खुश होते हुए कहा.
“अच्छा ये तो बताओ के फूफी खादीजा तुम्हे अपनी फुद्दी देने पर राज़ी कैसे होन?” उस ने पूछा.
“बस यार मैंने एक जादू पढ़ कर फूँका तो वो मान गईं.” मैंने हंस कर कहा. मै उससे नही बताना चाहता था के में फूफी खादीजा को चोदने में कैसे कामयाब हुआ था.
“फिर भी आख़िर हुआ किया?”
“छोड़ो यार लंबी कहानी है फिर कभी बताऊं गा. याद रखने वाली बात बस यही है के शादी शुदा औरतों की ज़िंदगी में कोई लुत्फ़ और अड्वेंचर नही होता. अगर उन्हे सही तरीके से फँसाया जाए और उन्हे यक़ीन हो के उनका राज़ राज़ ही रहे गा तो 100 में से 99 औरतें चूत मरवा लेतीं हैं. इस मामले में फूफी और बाहर की किसी औरत में कोई ख़ास फ़र्क़ नही. हाँ ये ज़रूर है के अपनी फूफी को फँसाना ज़रा ज़ियादा मुश्किल काम है.” मैंने उससे बताया.
“में भी तुम्हारे सामने अपना एक बहुत बड़ा राज़ खोलना चाहता हूँ.” वो मेरी बात सुन कर बोला.
“वो किया?”
"में भी अपनी अम्मी को चोद रहा हूँ." उस ने जैसे मेरे सर पर बम फाड़ दिया.
"तुम ने चाची फ़हमीदा को चोदा है यानी अपनी माँ को." मैंने हैरत-ज़डा हो कर कहा.
“हाँ अम्मी को में पिछल सात आठ महीनो से चोद रहा हूँ.” उस ने बताया.
ज़ाहिद को अच्छी तरह जानने के बावजूद मुझे बिल्कुल ईलम नही था के वो अपनी माँ यानी चाची फ़हमीदा के साथ इन्सेस्ट कर रहा था. मै तो ये भी नही जानता था के वो मेरी तरह ही उन औरतों का शौक़ीन था जिन से उस का खूनी रिश्ता था और जो ज़रा बड़ी उमर की और सेहतमंद और मोटी ताज़ी थीं . इन्सेस्ट शायद हमारे खून में थी और यही वजह थी के ज़ाहिद अपनी माँ की चूत ले रहा था.
"यार ज़ाहिद चाची फ़हमीदा भी तो बड़े मज़बूत और तगड़े बदन वाली हैं. तुम कम खुश-नसीब नही हो जो उन्हे चोद रहे हो. कमाल कर दिया तुम ने." में खुद भी एक अरसे से चाची फ़हमीदा को चोदना चाहता था और अब जब ज़ाहिद ने उनके बारे में मुझे ये बात बताई तो मैंने भी उनके लिये अपने नंगे जज़्बात का इज़हार कर दिया.
मुझे गुमान गुज़रा के शायद वो फूफी खादीजा से मेरे ता’अलूक़ का सुन कर हसद में झूठ बोल रहा है.
“लेकिन ये सब हुआ कैसे?” मैंने कहा.
”एक दिन बाजी नसरीन खाला हामीदा के हाँ गई हुई थीं और में और अम्मी घर में अकेले थे. दोपहर के वक़्त मैंने एक ब्लू फिल्म देखी और अम्मी से कुछ बात करने उनके कमरे में आया. अम्मी सो रही थीं और उनके मम्मे उनकी क़मीज़ के खुले हुए गले में से नज़र आ रहे थे. तुम ने देखा हो गा के वो हमेशा काफ़ी खुले गले की क़मीज़ पहनती हैं. मै उनके मोटे मम्मे देख कर खुद पर क़ाबू नही रख सका और उनके मम्मों पर हाथ फेरने लगा. मेरा हाथ उनके मम्मों को लगा तो वो जाग गईं. पहले तो बहुत नाराज़ हुईं और मुझे बहुत डांटा और बुरा भला कहा. पहले तो में डर गया लेकिन फिर में उन से खुल कर बात की. मै उनकी एक आध पुरानी हरकत से भी वाक़िफ़ था. थोड़ी सी कोशिश से वो मान गईं और मैंने उन्हे चोद लिया." उस ने थोड़ी सी शर्मिन्दगी से कहा.