hotaks444
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मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -8
दावत के रंग
इतनी देर में देखा की दूसरे रूम से हमारी प्यारी भाभी की चूत, की चुदाई समाप्त कर विश्वनाथजी नंगे ही हमारे रूम में घुसे और मुझे महेश से चिपका देखकर बोले ' अबे किसी और का नंबर आएगा आ नही, या सारा समय तू ही इस नंद रानी को चोदता रहेगा.
महेश - नही यार विश्वनाथ भाई मैं चोद चुका, तू इसे संभाल, ये बड़ी मजेदार चीज है। अगर आज ही बाकी चूतों का स्वाद न लेना होता तो मैं इसी से चिपका रहता।
विश्वनाथजी- अच्छा ये बात है देखता हूँ कितनी मजेदार चीज है इसकी भाभी को तो अभी मैं चोदकर आ रहा हूँ वो भी बड़ी मस्त चीज है जा उसका भी मजा लेले ।
महेश – मै मानता हूँ सच में इसकी भाभी बड़ी मस्त चीज है पर उसे तो मैं मेले मे चोद चुका हूँ अब में चला इसकी मामीजी के पास।
यह कह कर महेश ने मुझ नंगधड़ंग को विश्वनाथजी की तरफ धकेला और बाहर चला गया.
विश्वनाथजी ने तुरंत मेर नंगा बदन अपनी बाहों में धर दबोचा लिया और मेरे गाल चूमने लगे। मुझे बेहद शरम आ रही थी क्योंकि कल तक तो हम सब उनके मेहमान थे और हमारी भाभीजी को चोदकर हम सब उनके साथ अपने से बड़े जैसा व्यवहार करते थे और आज उन्होंने न सिर्फ़ मुझे एक मर्द के साथ नंगा देखा बल्कि बल्कि अब वो मुझे अपनी बाहों में दबोचकर मेरा एक गाल मुँह में भर कर चूस रहे थे तभी वो मेरी दोनो चूचियों को कस कर भोंपु की तरह दबाने लगे. जिससे मुझे दर्द होने लगा और मैं सीस्या उठी तभी उन्होंने मुझे खींच कर पलंग पर लिटा दिया और वहीं ज़मीन पर पड़ा हुआ मेरी पेटिकोट उठा कर मेरी चूत पोंछ्ते हुए विश्वनाथजी बोले-
“कहो बेला मज़ा आ रहा है न ।”
और मेरे जिस्म पर छा गये। कभी मेरे गालो को चूसते, कभी मेरी चूचियाँ जोरो से दबा देते । जैसे-जैसे वो मेरे बड़ी बड़ी चूचियों की पंपिंग कर रहे था, वैसे ही उसका लण्ड खड़ा हो रहा था मानो कोई उसमें हवा भर रहा हो.
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रखा और मुझे लण्ड सहलाने का इशारा किया. मैंने शर्माकर अपना हाथ उसके लण्ड से हटा लिया तो उन्होंने पूछा-
“अच्छा नही लगा रहा है क्या?”
मैं इनकार करते हुए बोली –
“ नहीं ये बात नही है पर हमको शर्म आ रही है ।”
विश्वनाथजी ताज्जुब और झुँझलाहट से बोले –
“अभी तू महेश के साथ थी तब तो तुझे शर्म नहीं आ रही थी अब अचानक ये शर्म कहाँ से आ गयी?”
मैं- दरअसल आप अबतक हमसे बड़े बुजुर्ग जैसा व्यवहार करते आये थे जो कि इस माहौल मे भी बीच बीच मे याद आ जाता है।
विश्वनाथजी हँसकर बोले-
ओहो तो ये बात है अरे वो तो हमारे दिखाने के दांत थे बेला हम तो बड़े फ़्री तबियत के आदमी हैं अगाली बार तुमको तब बुलायेंगे जब मेरी पत्नी भी यहाँ हो तब देखना ये दोनो रमेश और महेश अपनी बीबियों के साथ आयेंगे और मैं इनके सामने इनकी बीबियों को और ये मेरी बीबी को चोदेंगे। चूत और लण्ड तो होते ही मजे लेने के लिए हैं आखिर तुम भी तो इसीलिए दो दिनों से अलग अलग लण्डों से चुदकर अपनी चूत को उन लण्डों का मजा दे रही हो, तो शर्म छोड़ लण्ड सहलाओ और इस लण्ड का भी मजा लो ।”
अब मेरी झिझक एकदम दूर हो चुकी थी । मैं मजे से उनका लण्ड सहलाने लगी. जैसे-जैसे लण्ड सहला रही थी मुझे आभास होने लगा कि विश्वनाथजी का लण्ड महेश के लण्ड से करीब आधा इंच मोटा और 2 इंच लंबा है. मैने सोचा जो होगा देखा जाएगा. उनका लण्ड एक लोहे के रोड की तरह कड़ा हो गया था.
अब विश्वनाथजी ने पास पड़ा तकिया उठा कर मेरे चूतड़ों के नीचे लगाया और फिर कटोरी से ढेर सारा घी मेरी चूत के मुहाने पर लगा कर अपना लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रख कर ज़ोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया. में सीस्या उठी. जबकि में कुछ ही देर पहले महेश से चूत चुदवा चुकी थी फिर भी मेरी चूत बिलबिला उठी.उसका लण्ड मेरी बुर में बड़ा कसा-कसा जा रहा था. फिर दुबारा ठप मारा तो पूरा लण्ड मेरी चूत में समा गया.
मैं जोरो से चिल्ला उठी 'उईईईईईई माँ, ............. दर्द हो रहा
है, प्लीज़ थोड़ा धीरे डालो , मेरी फटी जा रही है
विश्वनाथजी - अरे नहीं फटी जा रही है और न ही फ़टेगी, पहली बार मेरे लण्ड से चुदवाते समय शुरु में सब औरतों को ऐसा ही लगता है अभी मैं धीरे धीरे करुँगा, दो मिनट में नसिर्फ़ दर्द चला जायेगा बल्कि तुम्हें इतना मजा आयेगा कि और जोर से चुदवाने के लिए हल्ला मचाओगी ।”
अब वो मेरे गुदाज कन्धे पकड़ कर बारी बारी से मेरे निपल चूसते हुए धीरे-धीरे अपना लण्ड मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा । धीरे-धीरे मेरी बुर भी पानी छोड़ने लगी. बुर भीगी होने के कारण लण्ड बुर में करीब अंदर बाहर जाने लगा, और मुझे भी मज़ा आने लगा. और मैं चूतड़ उचकाने लगी क्योंकि वो कुछ रुक-रुक कर मुझे चोद रहा था । जब मुझसे रहा नही गया तो में खुद ही ऊपर से अपनी कमर के धक्के उसके लण्ड पर मारने लगी और बोली-
“हाय राजा इतना धीरे क्यों चोद रहे हो मेरी चूत, ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना ।”
ये सुन विश्वनाथजी ने मुझे पलटी देकर अपने ऊपर कर लिया और कहा-
अब तू ऊपर से अपनी चूत से मेरा लण्ड चोद ।”
जब मैं ऊपर से उनके लण्ड पर बैठते हुए घस्सा मारती तो वो नीचे से ऊपर कमर उचका कर अपने लण्ड को मेरी चूत में ठाँसता था और मेरी दोनो चूचियाँ पकड़ कर नीचे की ओर खींचता था जिस से लण्ड और ज्यादा चूत के अंदर तक जा रहा था और मुझे बेइन्तहा मजा आ रहा था मैं ऊपर से खूब जोर का घिस्सा मार रही थी. इसी तरह से मेरी चूँचियाँ दबवाते खिचवाते उनका लण्ड चोदते हुए धीरे धीरे हमारी चुदाई की स्पीड बढ़ने लगी और मेरी चूँचियाँ दबाने खींचने के साथ-साथ वो उनपर मुँह भी मारता जाता था और कभी मेरे निपल अपने दाँतों से काट ख़ाता था तो कभी मेरे गालों पर चुम्मा भर लेता था.पर जब वो मेरे होंठों को चूसता तो में उत्तेजना से बेहाल हो जाती थी ।
मैं मज़े में बड़बड़ा रही थी – हाय रआज़ा बहुत मज़ा आ रहा है, और ज़ोर से चोदो चोद कर फ़ाड़ दो और बना दो मेरी चूत का भोसड़ा..............
अब उत्तेजना तो बहुत बढ़ गई थी पर शायद विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मैं थकने लगी हूँ तो अचानक वे मुझे लिए लिए ही उठ खड़े हुए और मुझे बिस्तर पर पटक कर एक ही झटके में अपना विशालकाय लण्ड मेरी चूत में ठांस दिया और मेरी धुंआदार चुदाई करते हुए मेरी चूत की धज्जियां उड़ाने लगे। मैंने भी अपनी तरफ से नीचे से और ज़ोर ज़ोर चूतड़ उचका कर उनके लण्ड के धक्के अपनी चूत में लेने लगी । जब उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर होता था तो में चूत को और कस लेती थी, जब लण्ड बाहर आता था तो चूत को ढीला चोद देती थी । अचानक हमारे मुँह से निकला उम्म्म्म्म्ह आआआह्ह्ह
और मेरी चूत झड़ने लगी और उसके कुछ ही धक्कों के बाद विश्वनाथजी के लण्ड ने भी धार चोद दी और वो मारे आनन्द के मेरे गुदाज जिस्म से चिपट गये ।
चुदाई प्रोग्राम रात भर इसी तरह चलता रहा और ना जाने मैं, भाभी और मामीजी कितनी बार चुदीं होंगी, पर एक अजीब बात हुई हुआ यों कि महेश को शायद मामीजी का गोरा गुदाज बदन कुछ ज्यादा ही पसन्द आया था क्योंकि वह उनके गुलाबी गुदाज बदन से देर तक खेलता रहा(जैसा कि मामीजी ने बाद में बताया) और उसने चुदाई देर से शुरु की सो जब विश्वनाथजी मुझे चोद के हटे और लगभग तभी रमेश भाभी को चोद के हटा था उस समय महेश और मामीजी धुंआदार चुदाई के बीच में थे। भाभीजी और विश्वनाथजी तो वैसे भी एक दूसरे को पसन्द करते थे सो वख़्त बरबाद न करते हुए विश्वनाथजी भाभीजी पर पिल पड़े फ़िर तुक कुछ ऐसी बनी कि विश्वनाथजी मेरे और भाभीजी बीच ही बटे रह गये और मामीजी तक पहुँच ही नहीं पाये और नशे में होने के कारण, उन्होंने ये कमी महसूस भी नहीं की। उस रात अंत में थक हारकर हम सभी यूँ ही नंगे ही सो गये.
सुबह मेरी आँख खुली तो देखा कि में नंगी ही पड़ी हुई हूँ. मैं जल्दी से उठी और कपड़े पहन कर बाहर किचन की तरफ गयी तो देखा कि भाभी भी नंगी ही पड़ी हुई हैं. मुझे मस्ती सूझी और में करीब ही पड़ा बेलन उठा कर उस पर थोडा सा आयिल लगा कर उनकी चूत में घोंप दिया. बेलन का उनकी चूत में घुसना था कि वो आआआअहह् करते हुए उठ बैठी, और बोली
' यह क्या कर रही हो'.
मैं बोली
' मैं क्या कर रही हूँ, तुम चूत खोले पड़ी थी में सोची तुम चुदासी रह गईं हो, पर चोदने वाले तो कब के चले गये, इसलिये तुम्हारी चूत में बेलन लगा दिया.
भाभी-
' तुझे तो बस चुदाई ही सूझती रहती है'.
मैंने उनकी चूत से बेलन खींच कर कहा –
' चलो जल्दी उठो, वरना चन्दू मामा मामी आ जाएँगे तो क्या कहेंगे. रात तो खूब मज़ा लिया, कुछ मुझे भी तो बताओ क्या किया?
भाभी- तूने भी तो वही किया या तू भजन कर रही थी । बाद में बात करेंगे कि किसने किससे क्या किया' कह कर कपड़े पहन ने लगी तो में मामीजी को उठाने चली गयी.
मामी भी मस्त चूत खोले पड़ी थी । मैंने उनकी चूचियों पर हाथ रख कर उन्हे हिलाया और उठाया और कहा
' मामी यह तुम कैसे पड़ी हो कोई देखेगा तो क्या सोचेगा.'
वो जल्दी से उठी और कपड़े पहन ने लगी, फिर मेरे साथ ही बाहर निकल गयी. हम तीनों लोग उठ कर जल्दी जल्दी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हुए ताकि रात का कोई निशान हमारे जिस्मों या कपड़ों पे ना दिखे
मैं बैठक में गयी तो देखा कि विश्वनाथजी भी बैठक में रमेश और महेश के पास ही पड़े हुए थे. विश्वनाथजी का लण्ड धोती के अन्दर खड़ा था जिससे धोती तम्बू जैसी दिख रही थी । शयद कोई चुदाई का सपना देख रहे होंगे । मुझे शरारात सूझी मैंने विश्वनाथजी कि धोती उनके लण्ड पर से हटा दी और बाहर आकर मामीजी से बोली-
“मैं और भाभी नाश्ता बनाते हैं । ये अच्छा है कि चन्दू मामाजी तो दारू की वजह से आज देर से उठेंगे आप जल्दी विश्वनाथजी और मेहमानों को जगा दें जिससे चन्दू मामाजी के उठने से पहले वो लोग भी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हो अपने आप को दुरुस्त कर लें जिससे चन्दू मामाजी को कोई शक न हो ।”
मामीजी समझ गयी कि मेरा इशारा हम तीनों की लाली, बिन्दी आदि के विश्वनाथजी या रमेश, महेश के जिस्मों या कपड़ों पर मिलने की तरफ़ है। वो बैठक में उन्हें जगाने गयी । मैं ौर भाभी भी तुरंत दौड़ते हुए उनके पीछे गये और उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगे कि देखें विश्वनाथजी को उस हाल में देख मामी जी उन्हें कैसे जगाती हैं । विश्वनाथजी चारौ खाने चित्त लण्ड खड़ा किये सो रहे थे उन्हें इस हाल में देख मामीजी जगाने में झिझकीं । सो उन्हें न जगा कर रमेश, महेश को जगाने लगीं । रमेश और महेश ने आँखें खोली तो नहाई धोई पूरे श्रंगार में मामीजी को अपने ऊपर झुकी देख आवाक रह गये । झुकी होने के कारण मामीजी की दोनों गुलाबी गोरी चूचियाँ ब्लाउज में से झाँक रहीं थीं । रमेश और महेश ने उठते उठते ऊपर से ही ब्लाउज में हाथ डाल चूचियाँ थाम लीं और उन्हें अपनी गोद मे खीचते हुए बोले –
“आओ भौजी यहां बैठो, लगता है भाईसाहब सो रहे हैं क्यों न एक राउन्ड सबेरे सबेरे हो जाय, दिन अच्छा बीतेगा। क्या ख्याल है?”
मामीजी ने नही नहीं करते हुए पीछे हटने की कोशिश की और सन्तुलन न संभाल सकने के कारण उनकी गोदमें गिर पड़ीं और रमेश और महेश के हाथ ब्लाउज में घुसे होने के कारण खिंचकर ब्लाउज की साड़ी चुटपुटिया खुल गयीं । महेश ने ब्रा का हुक खोल दिया और रमेश ने ब्रा ऊपर हटा दी । मामीजी की दोनों बड़ी बड़ी चूचियाँ थिरक कर आजाद हो गयीं । अब नजारा ये था कि रमेश और महेश ने मामीजी को गोद में बैठा रखा था, उनके ब्लाउज के दोनो पल्ले के पट खुले हुए थे और उन खुले पटों में से झांकती हलव्वी चूचियाँ में से एक रमेश और एक महेश ने थाम रखी थी और निपल चूसते हुए वे दोनों उनकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर को चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे मामीजी की गोरी गुलाबी मांसल पिन्डलियाँ और केले के तनों जैसी जाँघें आधी नंगी हो चुकीं थी। सकपकई मामीजी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहीं थी,-
“अरे अरे ये क्या कर रहे हो अगर तुम्हारे भाईसाहब जाग के नीचे आ गये तो साड़ी मस्ती धरी रह जायेगी और सब चौपट हो जायेगा ।”
इस उठ पटक और आवाजों को सुनकर विश्वनाथजी जाग गये और ये नजारा देखके बोले,-
“अरे अरे ! ये क्या बेहूँदापन है लड़कों, भौजी ने रात जरा सी छूट क्या दे दी तुम लोग पजामे से ही बाहर हुए जा रहे हो। अरे ! दिन का वख्त है कुछ तो लिहाज करो । छोड़ो इन्हें ! भौजी आप इधर आ जाइये ।”
विश्वनाथजी की आवाज सुनकर रमेश और महेश के हाथ जैसे ही जरा सा ढीले पड़े मामीजी भाग कर विश्वनाथजी के पास जा बैठीं ताकि अपने कपड़े ठीक कर सकें। विश्वनाथजी ने उन्हें अपने कसरती बदन से सटा लिया और उनकी साड़ी की सिलवटों पर हाथ से झाड़ते हुए ऐसा दिखाया कि जैसे उनके कपड़े ठीक करने में मदद करना चाहते हों। मामीजी को, अपने गुदाज बदन पर, विश्वनाथजी के कसरती बदन का अहसास और आत्मीयता के बोलों ने काफ़ी राहत दी । मामीजी ने अपने कपड़े ठीक करने के लिए, विश्वनाथजी से सटे सटे ही अपनी पीछे से खुली ब्रा के सिरे पकड़ने के लिए हाथ पीछे ले गयीं।
“हद कर दी लड़कों ने, देखो तो क्या हाल कर दिया बिचारी भौजी का ।” ऐसे बड़बड़ाते हुए विश्वनाथजी ने आगे से ब्रा में उनकी चूचियों डालने का उपक्रम किया, पर जैसे ही उनके बड़े मर्दाने हाँथ में मामीजी की हलव्वी छाती आई, मामीजी ने चौंककर विश्वनाथजी की तरफ़ देखा। विश्वनाथजी के कसरती बदन में दबा मामीजी का गुदाज बदन और उनके बड़े मर्दाने हाथ में मामीजी की हलव्वी छाती, अब मामीजी और विश्वनाथजी दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी, दोनो की नजरें मिलते ही विश्वनाथजी उखड़ी साँसों के साथ बोले-
“लड़कों का भी ज्यादा दोष नहीं है भौजी, आप हैं ही इतनी जबर्दस्त कि किसी का भी ईमान डोल जाय ।”
अब विश्वनाथजी के बदन की गर्मी से गरम होती मामीजी भी उनका लगभग सारा नाटक समझ गयीं और मुस्कुरा कर बोली-
“हटो भी विश्वनाथ लाला क्यों मस्खरी करते हो। लड़के देख रहे हैं ।”
मामीजी को मुस्कुराते देख विश्वनाथजी ने उनके बदन को और अपने जिस्म के साथ कसते और चूचियाँ सहलाते हुए कहा,-
“आप फ़िक्र न करें मैं इन्हें समझा लूँगा ।”
विश्वनाथजी का लण्ड पकड़कर मरोड़ते हुए मामीजी फ़िर मुस्कुराई-
“ तुमसे बचूँगी तब तो लड़कों से बचाओगे।”
मामीज़ी के जिस्म के जादू ने विश्वनाथजी के दिमाग की सोचने समझने की रही सही ताकत भी हर ली, उन्होंने अपने होठ मामीजी के होठों पर रख दिये और उन्हें वही लिटा दिया। उनकी साड़ी पेटीकोट पलटकर उनकी पावरोटी सी चूत मुट्ठी में दबोच ली ।
ये देखकर पहले से ही गरमाये रमेश, महेश और ज्यादा गरम हो के अपने लण्ड सहलाने लगे। तभी उनकी नजर हमदोनों( मैं और भाभी) पर पड़ी उन्होने दौड़ के हमे पकड़ के बैठक के अन्दर खींच के दरवाजा भिड़ा दिया और वहीं खड़े खड़े हमारी चूचियाँ दबाने लगे।
क्रमश:…………………
भाग -8
दावत के रंग
इतनी देर में देखा की दूसरे रूम से हमारी प्यारी भाभी की चूत, की चुदाई समाप्त कर विश्वनाथजी नंगे ही हमारे रूम में घुसे और मुझे महेश से चिपका देखकर बोले ' अबे किसी और का नंबर आएगा आ नही, या सारा समय तू ही इस नंद रानी को चोदता रहेगा.
महेश - नही यार विश्वनाथ भाई मैं चोद चुका, तू इसे संभाल, ये बड़ी मजेदार चीज है। अगर आज ही बाकी चूतों का स्वाद न लेना होता तो मैं इसी से चिपका रहता।
विश्वनाथजी- अच्छा ये बात है देखता हूँ कितनी मजेदार चीज है इसकी भाभी को तो अभी मैं चोदकर आ रहा हूँ वो भी बड़ी मस्त चीज है जा उसका भी मजा लेले ।
महेश – मै मानता हूँ सच में इसकी भाभी बड़ी मस्त चीज है पर उसे तो मैं मेले मे चोद चुका हूँ अब में चला इसकी मामीजी के पास।
यह कह कर महेश ने मुझ नंगधड़ंग को विश्वनाथजी की तरफ धकेला और बाहर चला गया.
विश्वनाथजी ने तुरंत मेर नंगा बदन अपनी बाहों में धर दबोचा लिया और मेरे गाल चूमने लगे। मुझे बेहद शरम आ रही थी क्योंकि कल तक तो हम सब उनके मेहमान थे और हमारी भाभीजी को चोदकर हम सब उनके साथ अपने से बड़े जैसा व्यवहार करते थे और आज उन्होंने न सिर्फ़ मुझे एक मर्द के साथ नंगा देखा बल्कि बल्कि अब वो मुझे अपनी बाहों में दबोचकर मेरा एक गाल मुँह में भर कर चूस रहे थे तभी वो मेरी दोनो चूचियों को कस कर भोंपु की तरह दबाने लगे. जिससे मुझे दर्द होने लगा और मैं सीस्या उठी तभी उन्होंने मुझे खींच कर पलंग पर लिटा दिया और वहीं ज़मीन पर पड़ा हुआ मेरी पेटिकोट उठा कर मेरी चूत पोंछ्ते हुए विश्वनाथजी बोले-
“कहो बेला मज़ा आ रहा है न ।”
और मेरे जिस्म पर छा गये। कभी मेरे गालो को चूसते, कभी मेरी चूचियाँ जोरो से दबा देते । जैसे-जैसे वो मेरे बड़ी बड़ी चूचियों की पंपिंग कर रहे था, वैसे ही उसका लण्ड खड़ा हो रहा था मानो कोई उसमें हवा भर रहा हो.
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रखा और मुझे लण्ड सहलाने का इशारा किया. मैंने शर्माकर अपना हाथ उसके लण्ड से हटा लिया तो उन्होंने पूछा-
“अच्छा नही लगा रहा है क्या?”
मैं इनकार करते हुए बोली –
“ नहीं ये बात नही है पर हमको शर्म आ रही है ।”
विश्वनाथजी ताज्जुब और झुँझलाहट से बोले –
“अभी तू महेश के साथ थी तब तो तुझे शर्म नहीं आ रही थी अब अचानक ये शर्म कहाँ से आ गयी?”
मैं- दरअसल आप अबतक हमसे बड़े बुजुर्ग जैसा व्यवहार करते आये थे जो कि इस माहौल मे भी बीच बीच मे याद आ जाता है।
विश्वनाथजी हँसकर बोले-
ओहो तो ये बात है अरे वो तो हमारे दिखाने के दांत थे बेला हम तो बड़े फ़्री तबियत के आदमी हैं अगाली बार तुमको तब बुलायेंगे जब मेरी पत्नी भी यहाँ हो तब देखना ये दोनो रमेश और महेश अपनी बीबियों के साथ आयेंगे और मैं इनके सामने इनकी बीबियों को और ये मेरी बीबी को चोदेंगे। चूत और लण्ड तो होते ही मजे लेने के लिए हैं आखिर तुम भी तो इसीलिए दो दिनों से अलग अलग लण्डों से चुदकर अपनी चूत को उन लण्डों का मजा दे रही हो, तो शर्म छोड़ लण्ड सहलाओ और इस लण्ड का भी मजा लो ।”
अब मेरी झिझक एकदम दूर हो चुकी थी । मैं मजे से उनका लण्ड सहलाने लगी. जैसे-जैसे लण्ड सहला रही थी मुझे आभास होने लगा कि विश्वनाथजी का लण्ड महेश के लण्ड से करीब आधा इंच मोटा और 2 इंच लंबा है. मैने सोचा जो होगा देखा जाएगा. उनका लण्ड एक लोहे के रोड की तरह कड़ा हो गया था.
अब विश्वनाथजी ने पास पड़ा तकिया उठा कर मेरे चूतड़ों के नीचे लगाया और फिर कटोरी से ढेर सारा घी मेरी चूत के मुहाने पर लगा कर अपना लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रख कर ज़ोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया. में सीस्या उठी. जबकि में कुछ ही देर पहले महेश से चूत चुदवा चुकी थी फिर भी मेरी चूत बिलबिला उठी.उसका लण्ड मेरी बुर में बड़ा कसा-कसा जा रहा था. फिर दुबारा ठप मारा तो पूरा लण्ड मेरी चूत में समा गया.
मैं जोरो से चिल्ला उठी 'उईईईईईई माँ, ............. दर्द हो रहा
है, प्लीज़ थोड़ा धीरे डालो , मेरी फटी जा रही है
विश्वनाथजी - अरे नहीं फटी जा रही है और न ही फ़टेगी, पहली बार मेरे लण्ड से चुदवाते समय शुरु में सब औरतों को ऐसा ही लगता है अभी मैं धीरे धीरे करुँगा, दो मिनट में नसिर्फ़ दर्द चला जायेगा बल्कि तुम्हें इतना मजा आयेगा कि और जोर से चुदवाने के लिए हल्ला मचाओगी ।”
अब वो मेरे गुदाज कन्धे पकड़ कर बारी बारी से मेरे निपल चूसते हुए धीरे-धीरे अपना लण्ड मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा । धीरे-धीरे मेरी बुर भी पानी छोड़ने लगी. बुर भीगी होने के कारण लण्ड बुर में करीब अंदर बाहर जाने लगा, और मुझे भी मज़ा आने लगा. और मैं चूतड़ उचकाने लगी क्योंकि वो कुछ रुक-रुक कर मुझे चोद रहा था । जब मुझसे रहा नही गया तो में खुद ही ऊपर से अपनी कमर के धक्के उसके लण्ड पर मारने लगी और बोली-
“हाय राजा इतना धीरे क्यों चोद रहे हो मेरी चूत, ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना ।”
ये सुन विश्वनाथजी ने मुझे पलटी देकर अपने ऊपर कर लिया और कहा-
अब तू ऊपर से अपनी चूत से मेरा लण्ड चोद ।”
जब मैं ऊपर से उनके लण्ड पर बैठते हुए घस्सा मारती तो वो नीचे से ऊपर कमर उचका कर अपने लण्ड को मेरी चूत में ठाँसता था और मेरी दोनो चूचियाँ पकड़ कर नीचे की ओर खींचता था जिस से लण्ड और ज्यादा चूत के अंदर तक जा रहा था और मुझे बेइन्तहा मजा आ रहा था मैं ऊपर से खूब जोर का घिस्सा मार रही थी. इसी तरह से मेरी चूँचियाँ दबवाते खिचवाते उनका लण्ड चोदते हुए धीरे धीरे हमारी चुदाई की स्पीड बढ़ने लगी और मेरी चूँचियाँ दबाने खींचने के साथ-साथ वो उनपर मुँह भी मारता जाता था और कभी मेरे निपल अपने दाँतों से काट ख़ाता था तो कभी मेरे गालों पर चुम्मा भर लेता था.पर जब वो मेरे होंठों को चूसता तो में उत्तेजना से बेहाल हो जाती थी ।
मैं मज़े में बड़बड़ा रही थी – हाय रआज़ा बहुत मज़ा आ रहा है, और ज़ोर से चोदो चोद कर फ़ाड़ दो और बना दो मेरी चूत का भोसड़ा..............
अब उत्तेजना तो बहुत बढ़ गई थी पर शायद विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मैं थकने लगी हूँ तो अचानक वे मुझे लिए लिए ही उठ खड़े हुए और मुझे बिस्तर पर पटक कर एक ही झटके में अपना विशालकाय लण्ड मेरी चूत में ठांस दिया और मेरी धुंआदार चुदाई करते हुए मेरी चूत की धज्जियां उड़ाने लगे। मैंने भी अपनी तरफ से नीचे से और ज़ोर ज़ोर चूतड़ उचका कर उनके लण्ड के धक्के अपनी चूत में लेने लगी । जब उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर होता था तो में चूत को और कस लेती थी, जब लण्ड बाहर आता था तो चूत को ढीला चोद देती थी । अचानक हमारे मुँह से निकला उम्म्म्म्म्ह आआआह्ह्ह
और मेरी चूत झड़ने लगी और उसके कुछ ही धक्कों के बाद विश्वनाथजी के लण्ड ने भी धार चोद दी और वो मारे आनन्द के मेरे गुदाज जिस्म से चिपट गये ।
चुदाई प्रोग्राम रात भर इसी तरह चलता रहा और ना जाने मैं, भाभी और मामीजी कितनी बार चुदीं होंगी, पर एक अजीब बात हुई हुआ यों कि महेश को शायद मामीजी का गोरा गुदाज बदन कुछ ज्यादा ही पसन्द आया था क्योंकि वह उनके गुलाबी गुदाज बदन से देर तक खेलता रहा(जैसा कि मामीजी ने बाद में बताया) और उसने चुदाई देर से शुरु की सो जब विश्वनाथजी मुझे चोद के हटे और लगभग तभी रमेश भाभी को चोद के हटा था उस समय महेश और मामीजी धुंआदार चुदाई के बीच में थे। भाभीजी और विश्वनाथजी तो वैसे भी एक दूसरे को पसन्द करते थे सो वख़्त बरबाद न करते हुए विश्वनाथजी भाभीजी पर पिल पड़े फ़िर तुक कुछ ऐसी बनी कि विश्वनाथजी मेरे और भाभीजी बीच ही बटे रह गये और मामीजी तक पहुँच ही नहीं पाये और नशे में होने के कारण, उन्होंने ये कमी महसूस भी नहीं की। उस रात अंत में थक हारकर हम सभी यूँ ही नंगे ही सो गये.
सुबह मेरी आँख खुली तो देखा कि में नंगी ही पड़ी हुई हूँ. मैं जल्दी से उठी और कपड़े पहन कर बाहर किचन की तरफ गयी तो देखा कि भाभी भी नंगी ही पड़ी हुई हैं. मुझे मस्ती सूझी और में करीब ही पड़ा बेलन उठा कर उस पर थोडा सा आयिल लगा कर उनकी चूत में घोंप दिया. बेलन का उनकी चूत में घुसना था कि वो आआआअहह् करते हुए उठ बैठी, और बोली
' यह क्या कर रही हो'.
मैं बोली
' मैं क्या कर रही हूँ, तुम चूत खोले पड़ी थी में सोची तुम चुदासी रह गईं हो, पर चोदने वाले तो कब के चले गये, इसलिये तुम्हारी चूत में बेलन लगा दिया.
भाभी-
' तुझे तो बस चुदाई ही सूझती रहती है'.
मैंने उनकी चूत से बेलन खींच कर कहा –
' चलो जल्दी उठो, वरना चन्दू मामा मामी आ जाएँगे तो क्या कहेंगे. रात तो खूब मज़ा लिया, कुछ मुझे भी तो बताओ क्या किया?
भाभी- तूने भी तो वही किया या तू भजन कर रही थी । बाद में बात करेंगे कि किसने किससे क्या किया' कह कर कपड़े पहन ने लगी तो में मामीजी को उठाने चली गयी.
मामी भी मस्त चूत खोले पड़ी थी । मैंने उनकी चूचियों पर हाथ रख कर उन्हे हिलाया और उठाया और कहा
' मामी यह तुम कैसे पड़ी हो कोई देखेगा तो क्या सोचेगा.'
वो जल्दी से उठी और कपड़े पहन ने लगी, फिर मेरे साथ ही बाहर निकल गयी. हम तीनों लोग उठ कर जल्दी जल्दी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हुए ताकि रात का कोई निशान हमारे जिस्मों या कपड़ों पे ना दिखे
मैं बैठक में गयी तो देखा कि विश्वनाथजी भी बैठक में रमेश और महेश के पास ही पड़े हुए थे. विश्वनाथजी का लण्ड धोती के अन्दर खड़ा था जिससे धोती तम्बू जैसी दिख रही थी । शयद कोई चुदाई का सपना देख रहे होंगे । मुझे शरारात सूझी मैंने विश्वनाथजी कि धोती उनके लण्ड पर से हटा दी और बाहर आकर मामीजी से बोली-
“मैं और भाभी नाश्ता बनाते हैं । ये अच्छा है कि चन्दू मामाजी तो दारू की वजह से आज देर से उठेंगे आप जल्दी विश्वनाथजी और मेहमानों को जगा दें जिससे चन्दू मामाजी के उठने से पहले वो लोग भी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हो अपने आप को दुरुस्त कर लें जिससे चन्दू मामाजी को कोई शक न हो ।”
मामीजी समझ गयी कि मेरा इशारा हम तीनों की लाली, बिन्दी आदि के विश्वनाथजी या रमेश, महेश के जिस्मों या कपड़ों पर मिलने की तरफ़ है। वो बैठक में उन्हें जगाने गयी । मैं ौर भाभी भी तुरंत दौड़ते हुए उनके पीछे गये और उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगे कि देखें विश्वनाथजी को उस हाल में देख मामी जी उन्हें कैसे जगाती हैं । विश्वनाथजी चारौ खाने चित्त लण्ड खड़ा किये सो रहे थे उन्हें इस हाल में देख मामीजी जगाने में झिझकीं । सो उन्हें न जगा कर रमेश, महेश को जगाने लगीं । रमेश और महेश ने आँखें खोली तो नहाई धोई पूरे श्रंगार में मामीजी को अपने ऊपर झुकी देख आवाक रह गये । झुकी होने के कारण मामीजी की दोनों गुलाबी गोरी चूचियाँ ब्लाउज में से झाँक रहीं थीं । रमेश और महेश ने उठते उठते ऊपर से ही ब्लाउज में हाथ डाल चूचियाँ थाम लीं और उन्हें अपनी गोद मे खीचते हुए बोले –
“आओ भौजी यहां बैठो, लगता है भाईसाहब सो रहे हैं क्यों न एक राउन्ड सबेरे सबेरे हो जाय, दिन अच्छा बीतेगा। क्या ख्याल है?”
मामीजी ने नही नहीं करते हुए पीछे हटने की कोशिश की और सन्तुलन न संभाल सकने के कारण उनकी गोदमें गिर पड़ीं और रमेश और महेश के हाथ ब्लाउज में घुसे होने के कारण खिंचकर ब्लाउज की साड़ी चुटपुटिया खुल गयीं । महेश ने ब्रा का हुक खोल दिया और रमेश ने ब्रा ऊपर हटा दी । मामीजी की दोनों बड़ी बड़ी चूचियाँ थिरक कर आजाद हो गयीं । अब नजारा ये था कि रमेश और महेश ने मामीजी को गोद में बैठा रखा था, उनके ब्लाउज के दोनो पल्ले के पट खुले हुए थे और उन खुले पटों में से झांकती हलव्वी चूचियाँ में से एक रमेश और एक महेश ने थाम रखी थी और निपल चूसते हुए वे दोनों उनकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर को चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे मामीजी की गोरी गुलाबी मांसल पिन्डलियाँ और केले के तनों जैसी जाँघें आधी नंगी हो चुकीं थी। सकपकई मामीजी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहीं थी,-
“अरे अरे ये क्या कर रहे हो अगर तुम्हारे भाईसाहब जाग के नीचे आ गये तो साड़ी मस्ती धरी रह जायेगी और सब चौपट हो जायेगा ।”
इस उठ पटक और आवाजों को सुनकर विश्वनाथजी जाग गये और ये नजारा देखके बोले,-
“अरे अरे ! ये क्या बेहूँदापन है लड़कों, भौजी ने रात जरा सी छूट क्या दे दी तुम लोग पजामे से ही बाहर हुए जा रहे हो। अरे ! दिन का वख्त है कुछ तो लिहाज करो । छोड़ो इन्हें ! भौजी आप इधर आ जाइये ।”
विश्वनाथजी की आवाज सुनकर रमेश और महेश के हाथ जैसे ही जरा सा ढीले पड़े मामीजी भाग कर विश्वनाथजी के पास जा बैठीं ताकि अपने कपड़े ठीक कर सकें। विश्वनाथजी ने उन्हें अपने कसरती बदन से सटा लिया और उनकी साड़ी की सिलवटों पर हाथ से झाड़ते हुए ऐसा दिखाया कि जैसे उनके कपड़े ठीक करने में मदद करना चाहते हों। मामीजी को, अपने गुदाज बदन पर, विश्वनाथजी के कसरती बदन का अहसास और आत्मीयता के बोलों ने काफ़ी राहत दी । मामीजी ने अपने कपड़े ठीक करने के लिए, विश्वनाथजी से सटे सटे ही अपनी पीछे से खुली ब्रा के सिरे पकड़ने के लिए हाथ पीछे ले गयीं।
“हद कर दी लड़कों ने, देखो तो क्या हाल कर दिया बिचारी भौजी का ।” ऐसे बड़बड़ाते हुए विश्वनाथजी ने आगे से ब्रा में उनकी चूचियों डालने का उपक्रम किया, पर जैसे ही उनके बड़े मर्दाने हाँथ में मामीजी की हलव्वी छाती आई, मामीजी ने चौंककर विश्वनाथजी की तरफ़ देखा। विश्वनाथजी के कसरती बदन में दबा मामीजी का गुदाज बदन और उनके बड़े मर्दाने हाथ में मामीजी की हलव्वी छाती, अब मामीजी और विश्वनाथजी दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी, दोनो की नजरें मिलते ही विश्वनाथजी उखड़ी साँसों के साथ बोले-
“लड़कों का भी ज्यादा दोष नहीं है भौजी, आप हैं ही इतनी जबर्दस्त कि किसी का भी ईमान डोल जाय ।”
अब विश्वनाथजी के बदन की गर्मी से गरम होती मामीजी भी उनका लगभग सारा नाटक समझ गयीं और मुस्कुरा कर बोली-
“हटो भी विश्वनाथ लाला क्यों मस्खरी करते हो। लड़के देख रहे हैं ।”
मामीजी को मुस्कुराते देख विश्वनाथजी ने उनके बदन को और अपने जिस्म के साथ कसते और चूचियाँ सहलाते हुए कहा,-
“आप फ़िक्र न करें मैं इन्हें समझा लूँगा ।”
विश्वनाथजी का लण्ड पकड़कर मरोड़ते हुए मामीजी फ़िर मुस्कुराई-
“ तुमसे बचूँगी तब तो लड़कों से बचाओगे।”
मामीज़ी के जिस्म के जादू ने विश्वनाथजी के दिमाग की सोचने समझने की रही सही ताकत भी हर ली, उन्होंने अपने होठ मामीजी के होठों पर रख दिये और उन्हें वही लिटा दिया। उनकी साड़ी पेटीकोट पलटकर उनकी पावरोटी सी चूत मुट्ठी में दबोच ली ।
ये देखकर पहले से ही गरमाये रमेश, महेश और ज्यादा गरम हो के अपने लण्ड सहलाने लगे। तभी उनकी नजर हमदोनों( मैं और भाभी) पर पड़ी उन्होने दौड़ के हमे पकड़ के बैठक के अन्दर खींच के दरवाजा भिड़ा दिया और वहीं खड़े खड़े हमारी चूचियाँ दबाने लगे।
क्रमश:…………………